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हाल ही में अंडमान सागर में जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल और भारतीय नौसेना के बीच एक समुद्री साझेदारी अभ्यास (MPX) आयोजित किया गया।
- भारत और जापान के बीच अन्य समुद्री अभ्यासः
- जापान-भारत समुद्री अभ्यास (JIMEX)
- मालाबार अभ्यास (भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया)
भारत-जापान समुद्री अभ्यासः
- परिचयः
- इस अभ्यास का उद्देश्य इंटरऑपरेबिलिटी को बढ़ाना, जहाज़रानी और संचार प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना है।
- यह अभ्यास हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग और व्यापार सुनिश्चित करने की दिशा में दोनों नौसेनाओं के बीच चल रहे प्रयासों का हिस्सा है।
- दोनों देश समुद्री संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में हिंद महासागर क्षेत्र में नियमित अभ्यास करते आ रहे हैं।
- प्रतिभागीः
- सुकन्या श्रेणी के गश्ती जहाज़ बड़े, अपतटीय गश्ती जहाज़ हैं।
- कोरिया टैकोमा द्वारा तीन प्रमुख जहाज़ों का निर्माण किया गया था, जो अब हंजिन समूह का हिस्सा है।
- सुकन्या वर्ग के जहाज़ों का नाम भारतीय महाकाव्यों की उल्लेखनीय महिलाओं के नाम पर रखा गया है।
- सुकन्या वर्ग के पास बड़े पतवार हैं, हालाँकि वे हल्के हथियारों से लैस हैं क्योंकि उनका उपयोग मुख्य रूप से भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के अपतटीय गश्त के लिये किया जाता है।
- जे. एस. समीदारे जापान मैरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स के मुरासेम वर्ग के विध्वंसक है।
- जे.एस. समीदारे (DD-106) जापान मैरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स (JMSDF) के मुरासामे-श्रेणी के विध्वंसक का छठा जहाज़ है।
- गतिविधियाँः
- ऑपरेशनल इंटरैक्शन के हिस्से के रूप में इसमें सीमैनशिप गतिविधियाँ, विमान संचालन और सामरिक युद्धाभ्यास शामिल हैं।
भारत के अन्य समुद्री अभ्यासः
- थाईलैंडः
- भारत-थाईलैंड समन्वित गश्ती (भारत-थाई CORPAT)
- युनाइटेड किंगडमः
- इंडोनेशियाः
- सिंगापुरः
- कतरः
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नः
प्रश्न. हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (b)
Q. भारत और जापान के लिये एक मज़बूत समकालीन संबंध बनाने का समय आ गया है, जिसमें वैश्विक एवं रणनीतिक साझेदारी शामिल है जो पूरे एशिया तथा दुनिया के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होगी। चर्चा कीजिये। (2019)
स्रोतः पी.आई.बी.
हाल ही में एक अध्ययन में इस बात की जाँच की गई कि दक्षिण-मध्य एशिया के काराकोरम रेंज के हिमनद अन्य स्थानों के हिमनदों की तरह जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्यों नहीं हुए हैं।
- अध्ययनकर्त्ताओं ने काराकोरम विसंगति नामक इस घटना को पश्चिमी विक्षोभ (WDs) की हालिया पुनरुत्पति के लिये उत्तरदायी माना है।
काराकोरम विसंगतिः
- 'काराकोरम विसंगति' को हिमालय की अन्य निकटवर्ती पर्वत शृंखलाओं और दुनिया की अन्य पहाड़ी शृंखलाओं में हिमनद के पीछे हटने के विपरीत केंद्रीय काराकोरम में ग्लेशियरों की स्थिरता या असंगत वृद्धि के रूप में जाना जाता है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षः
- यह पहली बार हुआ है कि जब कोई अध्ययन उस महत्त्व को सामने लाया है जो संचय अवधि के दौरान उस पश्चिमी विक्षोभ- वर्षा की मात्रा को बढ़ाता है जो क्षेत्रीय जलवायु विसंगति को संशोधित करने में भूमिका निभाता है।
- पिछले अध्ययनों ने वर्षों से विसंगति को स्थापित करने और बनाए रखने में तापमान की भूमिका पर प्रकाश डाला है।
- पश्चिमी विक्षोभ (WDs) सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र के लिये बर्फबारी का प्राथमिक कारक है।
- अध्ययन से पता चलता है कि ये कुल मौसमी हिमपात के लगभग 65% और कुल मौसमी वर्षा के लगभग 53% के लिये उत्तरदायी हैं, अतः ये नमी के सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- इसके अलावा, पिछले दो दशकों में काराकोरम को प्रभावित करने वाले पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा की तीव्रता में लगभग 10% की वृद्धि हुई है, जो क्षेत्रीय विसंगति को बनाए रखने में उसकी भूमिका को और अधिक महत्त्वपूर्ण बनाता है।
काराकोरम श्रेणीः
- काराकोरम एशिया के केंद्र में पर्वत शृंखलाओं के एक परिसर का हिस्सा हैं, जिसमें पश्चिम में हिंदूकुश, उत्तर-पश्चिम में पामीर, उत्तर-पूर्व में कुनलुन पर्वत और दक्षिण-पूर्व में हिमालय शामिल हैं।
- काराकोरम अफगानिस्तान, चीन, भारत, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान के कुछ हिस्सों को कवर करता है।
हिमालय के ग्लेशियरों का महत्त्वः
- हिमालय के ग्लेशियरों का भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से उन लाखों निवासियों के लिये जो अपनी दैनिक जल आवश्यकताओं के लिये इन बारहमासी नदियों पर निर्भर करते हैं, बहुत महत्त्व है।
- ये ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण तेज़ी से कम हो रहे हैं। आने वाले दशकों में जल संसाधनों पर दबाव कम करना बहुत ज़रूरी है।
विगत वर्ष के प्रश्नः
प्रश्नः सियाचिन ग्लेशियर स्थित हैः (2020)
उत्तरः (D)
स्रोत : पी.आई.बी.
अमेरिका के यूजीन में भारत के स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की भाला फेंक स्पर्द्धा का रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। नीरज ने 24 जुलाई, 2022 को अमेरिका में अयोजित प्रतियोगिता के फाइनल में 88.13 मीटर दूरी के साथ दूसरा स्थान प्राप्त किया। ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने 90.54 मीटर के साथ स्वर्ण पदक जीता, जबकि चेक गणराज्य के याकूब वालडेश को कांस्य पदक मिला। नीरज चोपड़ा विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय हैं। विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत ने 19 वर्ष बाद दूसरी बार पदक जीता है। इससे पहले महिलाओं की लंबी कूद में अंजू बॉबी जॉर्ज ने वर्ष 2003 में कांस्य पदक जीता था।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड तथा देश भर में इसके सभी क्षेत्रीय कार्यालयों में 24 जुलाई, 2022 को 163वांँ आयकर दिवस मनाया गया। 24 जुलाई, 1860 को ब्रिटिश शासन द्वारा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन को हुए नुकसान की भरपाई के लिये सर जेम्स विल्सन द्वारा भारत में पहली बार आयकर पेश किया गया था। वर्ष 1963 में 'केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963' (Central Board of Revenue Act, 1963) के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन दो संस्थाओं- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation) तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Customs) का गठन किया गया था, ये दोनों ही संस्थाएँ 'सांविधिक निकाय' (Statutory Body) हैं। CBDT. प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों का प्रशासन करता है। वहीं CBEC भारत में सीमा शुल्क (custom duty), केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) तथा नारकोटिक्स (Narcotics) के प्रशासन के लिये उत्तरदायी नोडल एजेंसी है।
25 जुलाई, 2022 को समाजसेवी हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि है। हरमोहन सिंह यादव ने किसानों, पिछडे वर्गों और समाज के अन्य वंचित वर्गो के हित के लिये जीवन भर प्रयास किया। वे लंबे समय तक राजनीति में भी सक्रिय रहे। उन्होंने विधान परिषद सदस्य, विधायक, राज्यसभा सदस्य और अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष के रूप में काम किया। अपने पुत्र सुखराम सिंह के सहयोग से उन्होंने कानपुर और उसके आसपास अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हरमोहन सिंह यादव को वर्ष 1984 के दंगों के दौरान सिख समुदाय के अनेक सदस्यों की जान बचाने के लिये वर्ष 1991 में शौर्यचक्र से भी सम्मानित किया गया था।
हाल ही में 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की जूरी ने 22 जुलाई, 2022 को वर्ष 2020 के विजेताओं की घोषणा की जिसमें सोरारई पोटरू (Soorarai Pottru) ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता। सोरारई पोटरू ने चार सबसे बड़े पुरस्कारों में से तीन जीते हैं, सोरारई पोटरू के अभिनेता सूर्या और अजय देवगन को फिल्म तान्हाजी द अनसंग वॉरियर के लिये संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवॉर्ड मिला है। वहीं अपर्णा बालमुरली को सोरारई पोटरू के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वर्ष 1954 में स्थापित किया गया था। यह देश में सबसे प्रमुख फिल्म पुरस्कार समारोह है। फिल्म समारोह निदेशालय भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव और भारतीय पैनोरमा के साथ यह पुरस्कार प्रदान करता है। पुरस्कार नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रदान किये जाते हैं। इसका आयोजन सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
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लेख लुई IX और सातवां धर्मयुद्ध मुस्लिम कैद से इस राजा की रिहाई के बारे में एक संदेश के साथ समाप्त हुआ। आज हम लुई की स्वदेश वापसी, उसके सुधारों और नए धर्मयुद्ध के बारे में बात करेंगे, जो उसके लिए घातक बन गया।
"चरवाहों का धर्मयुद्ध"
कैस्टिले के लुई ब्लैंका की मां को पहले तो मिस्र में तबाही की खबर पर विश्वास नहीं हुआ। उसने लगभग पहले दूतों को मारने का आदेश दिया। और फ्रांस में, राजा के कब्जे से अप्रत्याशित और बहुत दुखद घटनाएं हुईं। यरूशलेम और बदकिस्मत लुई दोनों को मुक्त करने के उद्देश्य से एक नए धर्मयुद्ध के लिए लोगों के बीच आह्वान फैलने लगा। लेकिन मिस्र में एक अभियान के बजाय, पूरे देश में बड़े पैमाने पर नरसंहार हुए, जिसमें किसानों की भीड़ ने भाग लिया, उत्तरी प्रांतों से पेरिस और आगे दक्षिण में जा रहे थे। रास्ते में, उन्होंने पड़ोस को लूट लिया और यहूदियों के साथ-साथ स्थानीय अधिकारियों, पुजारियों और भिक्षुओं को भी मार डाला, जिन्होंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वे इस तरह धर्मयुद्ध पर नहीं जाते हैं - उन्होंने उन पर राजा को धोखा देने का आरोप लगाया और इसका कारण बताया। पवित्र सेपुलचर की मुक्ति। नंगी के इतिहासकार गिलौम ने इसके बारे में लिखा हैः
"1251. फ्रांसीसी साम्राज्य में एक अद्भुत और अनसुना चमत्कार हुआ। लुटेरों के सरगनाओं ने, आम लोगों को बहकाने और झूठी कल्पनाओं के प्रलोभन में उनका परिचय कराने के लिए, यह दिखावा किया कि उनके पास स्वर्गदूतों के दर्शन हैं और धन्य वर्जिन मैरी प्रकट हुई, उन्हें क्रॉस लेने का आदेश दिया और, चरवाहों के साथ और पवित्र भूमि को बचाने के लिए किसी प्रकार की सेना को इकट्ठा करने और फ्रांसीसी राजा की मदद करने के लिए भगवान द्वारा चुने गए अन्य आम लोग . . . पहले वे फ़्लैंडर्स और पिकार्डी के माध्यम से, गांवों और खेतों के माध्यम से, और तुरही की आवाज़ के साथ, लोहे की तरह चले गए चुंबक, उन्होंने चरवाहों और आम लोगों को आकर्षित किया। जब वे फ्रांस (इले-दे-फ्रांस का प्रांत) आए, तो उनमें से बहुत से पहले से ही थे कि वे एक सेना की तरह, सैकड़ों और हजारों में तोड़ने के लिए शुरू हुए, और जब वे ग्रामीण इलाकों से पिछले भेड़-बकरियों और झुंडों से गुजरे भेड़ों की, चरवाहों ने अपने झुंडों को छोड़ दिया और, जैसे कि किसी तरह के डोप में, रिश्तेदारों को भी चेतावनी दिए बिना, वे इस आपराधिक अभियान में शामिल हो गए। चरवाहों और आम लोगों ने यह नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं, लेकिन अच्छे इरादों के साथ; हालांकि, उनमें से कई डाकू और हत्यारे थे जो उस आपराधिक लक्ष्य के बारे में जानते थे जिसका उन्होंने गुप्त रूप से पीछा किया था, और इसमें उन्हें सेना का नेतृत्व करने वाले नेताओं द्वारा निर्देश दिया गया था . . . यह देखकर कि लोग एक महान पाप में गिर गए थे, पादरी वर्ग बहुत दुखी थे; लेकिन जैसे ही उन्होंने विरोध किया . . . उन्होंने चरवाहों और लोगों से इतनी नफरत कैसे की कि कई मारे गए और शहीदों के जत्थे में शामिल हो गए। रानी ब्लैंका, जिन्होंने उस समय अकेले फ्रांस के राज्य पर शासन किया था, और अद्भुत कौशल के साथ शासन किया था, ने उन्हें कार्रवाई की पूर्ण स्वतंत्रता दी, निश्चित रूप से, इसलिए नहीं कि उन्होंने उनका पक्ष लिया, बल्कि इसलिए कि उनका मानना था कि वे उनकी सहायता के लिए जा रहे थे। पुत्र, पवित्र राजा लुई और पवित्र भूमि . . . और चूंकि किसी ने उन्हें वापस नहीं रखा, वे अपने पापों में स्थिर हो गए और चोरी और लूट के अलावा कुछ नहीं किया। ऑरलियन्स पहुंचने के बाद, उन्होंने विश्वविद्यालय के पादरियों पर हमला किया और उनमें से कई को मार डाला . . . उनके नेता, जिन्हें वे हंगरी से शिक्षक कहते थे, अपनी सेना के साथ ऑरलियन्स से बोर्जेस आए, यहूदी आराधनालय में घुस गए, पुस्तकों को नष्ट कर दिया और अवैध रूप से उन्हें वंचित कर दिया। सभी संपत्ति। लेकिन जब वह और उसके साथियों ने शहर छोड़ दिया, तो बौर्जेस के निवासी हथियार उसका पीछा किया और मास्टर और उसके लगभग सभी साथियों को मार डाला। उसके बाद, बाकी, अलग-अलग दिशाओं में भाग गए, उनके अत्याचारों के लिए उन्हें मार दिया गया या उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। बाकी धुएं की तरह गायब हो गए। "
और पहले से ही मुक्त लुई, इन दंगों के बारे में जानकर भी अपने वतन नहीं लौटे। दुर्भाग्यपूर्ण राजा, जाहिरा तौर पर, अपनी प्रजा के सामने खुद को दिखाने के लिए शर्मिंदा था, और इसलिए उसने लगभग 4 और साल फिलिस्तीन में बिताए। लुई ने नासरत की तीर्थयात्रा की (वहां नंगे पैर गए), जाफ़ा, कैसरिया और सिडोन के किले को मजबूत करने के लिए सभी के साथ समान स्तर पर काम किया, व्यक्तिगत रूप से मृत सैनिकों के अंतिम संस्कार में भाग लिया, अपनी सेना के पकड़े गए सैनिकों को फिरौती देने की कोशिश की। यह तब था, जब बड़ी कठिनाई के साथ, लुडोविक के भाई, अल्फोंस की रिहाई (बेशक, मुक्त नहीं) पर सहमत होना संभव था। अपनी मां की मृत्यु के बारे में, जिनकी नवंबर 1252 में मृत्यु हो गई, लुई ने अगले वर्ष के वसंत में सीखा। फ्रांस ने खुद को एक आधिकारिक और दृढ़ नेतृत्व के बिना पाया। पेरिस में रहने वाले वारिस की उम्र महज 9 साल थी। किसी भी समय, प्रांतीय बैरन का एक और विद्रोह छिड़ सकता था, लेकिन इसने भी राजा को अपनी मातृभूमि में लौटने के लिए मजबूर नहीं किया। वह केवल 1254 में फ्रांस लौटाः 25 अप्रैल, 1254 को एकर से नौकायन करते हुए, वह 17 जुलाई को सालिन शहर पहुंचा। इस अवसर पर जीन डी जॉइनविल द्वारा बोले गए शब्द बहुत ही रोचक हैंः
"इस पृथ्वी के खतरों से बचने के लिए दूसरी बार जन्म लेना है। "
मुझे कहना होगा कि लुई IX एक बहुत अच्छा प्रशासक था जिसने अपनी प्रतिभा का एहसास नहीं किया और हठपूर्वक वह करने की कोशिश की जो वह नहीं जानता था कि कैसे करना है - लड़ने के लिए। उन्होंने अपने धर्मयुद्ध की तैयारी का उत्कृष्ट काम किया - और एक सैन्य नेता के रूप में असफल रहे। इसलिए 1254 में फ्रांस लौटने के बाद उनके कार्य देश के लिए उपयोगी साबित हुए।
लुई की पहल पर, 20 प्रशासनिक जिलों की स्थापना की गई, जिसका नेतृत्व शाही अधिकारियों - बेल्स ने किया।
द लेगिस्ट्स (लैटिन शब्द लेक्स - "लॉ") से, क्षुद्र बड़प्पन के शिक्षित लोग और यहां तक कि धनी नागरिकों के परिवारों को भी उच्चतम कुलीनता के प्रतिनिधियों के साथ पेरिस संसद (न्यायिक निकाय) की संरचना में पेश किया गया था। पेरिस के पार्लमेंट के निर्णय सभी प्रांतों पर बाध्यकारी हो गए। शाही अदालतों के फैसले भी प्रांतीय अदालतों के फैसलों पर पूर्वता लेने लगे। वित्तीय निरीक्षण का एक नया निकाय दिखाई दिया - लेखा चैंबर।
ईशनिंदा, मद्यपान, वेश्यावृत्ति और जुए को दबाने के उद्देश्य से एक अध्यादेश "नैतिक परिवर्तन पर" जारी किया गया था।
1257 में लुई के विश्वासपात्र रॉबर्ट डी सोरबन ने पेरिस में धर्मशास्त्र के अध्ययन के लिए एक कॉलेजियम की स्थापना की, जो अंततः एक विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
11 मई, 1258 को, कोरबील में आरागॉन राज्य के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार फ्रांस ने कैटेलोनिया के अधिकारों को त्याग दिया, ऐतिहासिक सेर्डन प्रांत (अब स्पेन और फ्रांस के बीच विभाजित), रूसिलॉन और मोंटपेलियर, लेकिन प्रोवेंस और लैंगडॉक का अधिग्रहण किया।
1259 में, इंग्लैंड के साथ क्षेत्रीय विवादों का निपटारा किया गया थाः पेरिस की संधि के अनुसार, हेनरी III को लिमोसिन, पेरिगॉर्ड, सेंटोंज का हिस्सा, क्वेर्सी और एजेनोइस, लुई IX - नॉरमैंडी, अंजु, मेन और पोइटौ प्राप्त हुआ। इसके अलावा, हेनरी ने लुइस को काउंट ऑफ गायेन के रूप में जागीरदार की शपथ दिलाई।
1261 में, फ्रांस में अदालती लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1263 में, एक नया चांदी का सिक्का दिखाई दिया - ईक्यू, जिसे तब पर्यटक पैसा भी कहा जाता था। इन सिक्कों को फ्रांस के सभी प्रांतों में स्वीकार किया जाना था (लेकिन स्थानीय ड्यूक या काउंट द्वारा वहां बनाए गए सिक्कों को अभी तक रद्द नहीं किया गया है)।
उस समय फ्रांसीसी सम्राट का अधिकार इतना अधिक था कि 1264 में उन्हें अंग्रेजी राजा हेनरी III और इस देश के बैरन (उन्होंने हेनरी के पक्ष में शासन किया) के बीच विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ के रूप में आमंत्रित किया गया था।
सब कुछ ठीक था, लेकिन 25 मार्च, 1267 को, "कार्यक्रम विफलता" फिर से हुई।
उनके द्वारा आयोजित धर्मयुद्ध की विफलता के बाद, लुई IX ने फैसला किया कि विफलता का कारण यह था कि भगवान ने उन्हें पवित्र सेपुलचर को मुक्त करने के उच्च मिशन के लिए अयोग्य माना। और इसलिए उन्होंने गहन प्रार्थना, सख्त उपवास, दिन में दो बार सामूहिक रूप से, बिस्तर पर जाने से पहले 50 साष्टांग प्रणाम, गरीबों के पैर धोने, जिन्हें विशेष रूप से महल में लाया गया था, और आत्म-ध्वज के साथ स्थिति को सुधारने का फैसला किया।
शाही विश्वासपात्र ने बाद में याद कियाः
"जितना सोना चाँदी से अधिक मूल्यवान है, उतना ही उसका नया जीवन तरीका, जिसे उसने पवित्र भूमि से लौटने के बाद नेतृत्व किया, पवित्रता में उसके पिछले जीवन से आगे निकल गया। "
लुई को यह पर्याप्त नहीं लग रहा था, और 1269 में धर्मपरायण राजा ने एक फरमान जारी किया कि फ्रांसीसी यहूदियों को अपने कपड़ों पर पीली धारियां पहनने के लिए बाध्य किया और उन्हें पवित्र सप्ताह के दौरान सड़कों पर आने से मना किया - ताकि "पवित्र दुःख में डूबे ईसाइयों को भड़काओ मत". हालांकि, यह अभी भी एक अपेक्षाकृत हल्का निर्णय था, क्योंकि 1268 में उन्होंने कैथोलिक राजाओं इसाबेला और फर्डिनेंड द्वारा ग्रेनेडा के कुख्यात एडिक्ट का लगभग अनुमान लगाया थाः उन्होंने फ्रांस से सभी यहूदियों को निकालने की संभावना पर गंभीरता से विचार किया था। उसने खुद को यहूदी मूल के लोम्बार्ड और काहोर सूदखोरों के निष्कासन तक सीमित कर दिया।
अंत में, लुई ने फैसला किया कि वह यरूशलेम को मुक्त करने के दूसरे प्रयास के लिए पर्याप्त "स्वच्छ" था, और 25 मार्च, 1267 को, पेरिस के पार्लेमेंट की एक बैठक में, उसने घोषणा की कि वह फिर से क्रूस को स्वीकार कर रहा है। उसी समय, उनके तीन बेटों ने यह घोषणा की - बड़े फिलिप, जीन ट्रिस्टन (घिरे हुए दमिएटा में पैदा हुए, जब लुई खुद कैद में थे) और पीटर। फिलिप के साथ, आरागॉन की उनकी पत्नी इसाबेला एक अभियान पर गईं। वे लुई के भाइयों, अल्फोंस डी पोइटियर्स और अंजु के चार्ल्स, सिसिली के राजा से जुड़ गए थे। उनके अलावा, अंग्रेजी राजकुमार एडवर्ड और नवरे थिबॉल्ट II के राजा आठवीं धर्मयुद्ध में भाग लेने के लिए सहमत हुए। एडवर्ड, वैसे, देर हो जाएगी, एकड़ में जाओ, मंगोलों के साथ सहयोग करने की कोशिश करो, लेकिन शांत हो जाएगा, एक हत्यारे द्वारा उस पर लगाए गए खंजर से गंभीर घाव प्राप्त करने के बाद। इंग्लैण्ड लौट आओ और वहाँ के राजा बनो।
आइए फ्रांस लौटते हैं, जहां एक नए धर्मयुद्ध की तैयारी शुरू हो गई है, इस बार ट्यूनीशिया के सुल्तान के खिलाफ निर्देशित। लुई ने अजेय सुल्तान बैबर्स से लड़ने से इनकार करके अप्रत्याशित विवेक दिखाया, जिन्होंने उस समय मिस्र में शासन किया था। लेकिन इससे भी उसे कोई फायदा नहीं हुआ।
फ्रांस में, राजा की पहल से खुशी नहीं हुई। जॉइनविल ने भी यह कहते हुए मना कर दियाः
"जब मैं समुद्र के पार प्रभु और राजा की सेवा में था, फ्रांस के राजा और नवरे के राजा के सेवकों ने मुझे बर्बाद कर दिया और मेरे लोगों को इतना लूट लिया कि हम, शायद, उनकी ज्यादतियों से कभी उबर नहीं पाएंगे . . . प्रभु को यह प्रसन्नता है कि मैं घर पर रहकर उनकी सहायता और रक्षा करता हूं। और अगर मैं अपने आप को धर्मयुद्ध की कठिनाइयों के लिए उजागर करता हूं, तो स्पष्ट रूप से यह महसूस करते हुए कि इससे मेरे लोगों को दुर्भाग्य और नुकसान होगा, मैं भगवान को क्रोधित करूंगा, जिन्होंने अपने लोगों के उद्धार के लिए खुद को बलिदान कर दिया।
एक नए (आठवें) धर्मयुद्ध की तैयारी तीन साल तक चली। यात्रा में ही साढ़े तीन महीने लग गए। 17 जुलाई, 1270 को, कार्थेज में XNUMX-मजबूत क्रूसेडर सेना उतरी।
25 अगस्त को, ट्यूनिस शहर के पास राजा लुई IX पहले ही मर चुका था। उसी दिन, अंजु के उनके भाई चार्ल्स क्रूसेडर शिविर में पहुंचे, उन्होंने सैनिकों की कमान संभाली।
और यहां बताया गया है कि अल्फोंस डी न्यूविल (1789 XNUMX) द्वारा चित्र में लुई IX की मृत्यु का प्रतिनिधित्व कैसे किया जाता हैः
गिलौम डी सेंट-पाटू के अनुसार, इस राजा द्वारा बोले गए अंतिम शब्द थे "ओह जेरूसलम, जेरूसलम'.
और 1 नवंबर को ईसाई सेना ट्यूनीशिया से रवाना हुई।
इस अभियान का एकमात्र परिणाम ट्यूनीशियाई सुल्तान द्वारा सिसिली के राजा, अंजु के चार्ल्स (मृतक लुई IX के भाई) को 30 लीवर की वार्षिक श्रद्धांजलि का भुगतान फिर से शुरू करना था।
लुई IX की मृत्यु के बाद क्रूसेडर कितनी जल्दी और स्वेच्छा से घर चले गए, यह देखते हुए, यह अभियान इस राजा का विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला था। अन्य सभी के लिए, ट्यूनीशिया और होली सेपुलचर दोनों की विशेष रूप से आवश्यकता नहीं थी।
ऐसा लगता है कि फ्रांसीसी को इस तथ्य के लिए लुई IX का बहुत आभारी होना चाहिए कि इस बार वह बस मर गया और उसे पकड़ नहीं लिया गया - उसने अपने विषयों को एक बार फिर उसके लिए एक विनाशकारी छुड़ौती का भुगतान करने के दायित्व से बचाया। और उस ने उस सेना के सिपाहियों को विवश नहीं किया, जो उन्होंने कई वर्षों तक एक विदेशी भूमि पर अपना खून बहाने के लिए इकट्ठा किए थे, और उसी पेचिश की तरह पूरी तरह से गैर-वीर रोगों से मर गए थे। लेकिन, लुई के अलावा, ट्यूनीशिया में, उनके बेटे जीन ट्रिस्टन बीमारियों से बुरी तरह से मरने में कामयाब रहे (3 अगस्त, उनकी मृत्यु लुई से 8 दिनों तक छिपी रही), अल्बानी के पोप लेगेट राउल, मार्च के काउंट ह्यूग, फ्रांस के मार्शल गौथियर डे नेमोर्स, जेरूसलम के पूर्व राजा बेरेन के अल्फोंस और कुछ अन्य महान सज्जनों के पुत्र। साधारण सैनिकों, हमेशा की तरह, किसी की गिनती नहीं हुई। लुई का एक और बेटा - उसका उत्तराधिकारी फिलिप (उसे ट्यूनीशिया में फ्रांस का राजा घोषित किया जाएगा) भी बीमार पड़ गया, लेकिन ठीक होने में कामयाब रहा। हालांकि, पेरिस लौटने पर, उनकी गर्भवती पत्नी घोड़े से गिर गई, जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले जन्म हुआः रानी इसाबेला ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया और जल्द ही खुद मर गई।
घर लौटने पर, नवरे थिबॉल्ट II के राजा और लुई IX अल्फोंस डी पोइटियर्स के भाई की भी मृत्यु हो गई (और अल्फोंस की पत्नी जीन की कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गई)। अंत में, वापस रास्ते में, तूफान ने कई जहाजों को डुबो दिया, जिस पर लगभग चार हजार योद्धा मारे गए। सामान्य तौर पर, भविष्य के संत अपने साथ "अगली दुनिया" में एक विशाल "रेटिन्यू" ले गए, जिससे कोई भी मूर्तिपूजक ईर्ष्या करेगा। और अगर हम सातवें धर्मयुद्ध के भारी नुकसान को याद करते हैं, तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि फ्रांस का यह संत बेहद महंगा था।
लुई IX की मृत्यु क्यों हुई?
पेरिस में नोट्रे डेम कैथेड्रल में संग्रहीत लुइस के जबड़े के आधुनिक अध्ययनों के अनुसार, उनकी मृत्यु का मुख्य कारण स्कर्वी था। इसके बिना, अभी तक बूढ़ा नहीं हुआ लुई का शरीर आंतों के संक्रमण से अच्छी तरह निपट सकता था। ऐसा प्रतीत होता है कि भोजन से एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी) के सेवन की कमी से जुड़ी बीमारी के परिणामों से राजा के लिए मरना मुश्किल है। लेकिन, यदि आप लुई IX की तरह कड़ी मेहनत करते हैं, जो हमेशा उपवास करता है (और यहां तक कि अभियानों के दौरान "मोहम्मडन" भोजन से इनकार करता है), तो आप कर सकते हैं। इसके अलावा, महान "उपवास" लुई IX का स्कर्वी संभवतः लोहे की कमी वाले एनीमिया से बढ़ गया था।
लुई IX के शरीर को "ट्यूटोनिक संस्कार के अनुसार" उत्सर्जित किया गया थाः अंतड़ियों को हटाने के बाद, लाश को शराब और मसालों के साथ बड़ी मात्रा में समुद्र के पानी में उबाला गया और उबाला गया। कलश में रखे गए अवशेष केवल 9 महीने के बाद - 21 मई, 1271 को पेरिस पहुंचाने में सक्षम थे। अगले दिन उन्हें सेंट-डेनिस के अभय में दफनाया गया।
परंपरागत रूप से, यह "राष्ट्रव्यापी दुःख" के बारे में कहा जाता है, जिसने लुई IX की मृत्यु की खबर पर फ्रांस (और यहां तक कि यूरोप) पर कब्जा कर लिया था। इन रिपोर्टों को उचित मात्रा में संदेह के साथ माना जाना चाहिए। वंचित फ्रांसीसी किसानों के पूर्ण बहुमत (यानी, देश की आबादी का विशाल बहुमत) को कम से कम स्थानीय गिनती की शक्ति याद थी, कम से कम शाही (एक निर्दयी शब्द के साथ), केवल जब उन्होंने अतिरिक्त करों को मारना शुरू किया युद्ध या उसी धर्मयुद्ध के लिए उनसे। कई दर्जन भिखारी, जिन्हें लुई IX द्वारा व्यक्तिगत रूप से धोया गया था (सबसे अधिक संभावना है, विशेष रूप से इस राजा की सनक को संतुष्ट करने के लिए दरबारियों द्वारा चुने गए), "मौसम नहीं बना। "
पहले से ही 1295 में, पोप बोनिफेस VIII ने राजा लुई IX के कार्यों का अध्ययन करने के लिए एक आयोग बनाया। इसके सदस्यों ने बहुत तेज़ी से काम किया, और सिर्फ दो साल बाद, 1297 में, लुई IX को "कन्फ़ेसर" के रूप में विहित किया गया - एक ऐसा व्यक्ति जिसने एक धर्मी जीवन का उदाहरण स्थापित किया। बाद में, उन्हें एक चिकित्सक के रूप में भी सम्मानित किया जाने लगा।
सेंट लुइस की यह मूर्ति उनके विमुद्रीकरण के तुरंत बाद बनाई गई थी - लगभग 1300 (यू ट्री)
सेंट लुइस का पंथ फ्रांस और यूरोप दोनों में काफी लोकप्रिय था। यह कहने के लिए पर्याप्त है कि मॉस्को में तीन कैथोलिक चर्चों में से एक का नाम उसका है (अन्य दो कैथेड्रल ऑफ द बेदाग कॉन्सेप्शन ऑफ द धन्य वर्जिन मैरी और चर्च ऑफ सेंट ओल्गा हैं)।
पेरिस में सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल के पोर्टिको को दो मूर्तियों से सजाया गया है - जोन ऑफ आर्क और लुई IX:
यह उत्सुक है कि अगस्त 1830 में, ट्यूनिस के सलाहकार, अल-हुसैन इब्न महमूद ने लुई IX की मृत्यु के स्थान पर एक कैथोलिक चर्च बनाने के प्रस्ताव के साथ फ्रांसीसी वाणिज्य दूत मैथ्यू लेसेप्स की ओर रुख किया। कौंसल के बेटे, दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि क्रूसेडर्स का शिविर बिरसा की पहाड़ी पर स्थित था, जहां पहले एशमुनु का पुनिक मंदिर स्थित था। सेंट लुइस के कैथेड्रल का निर्माण, जिसे आप नीचे देखेंगे, 1893 से 1897 तक चला।
ट्यूनीशिया को स्वतंत्रता मिलने के बाद, इसमें पूजा बंद हो गई। 1994 से, इस इमारत को "एक्रोपोलिस" कहा जाता है, एक संग्रहालय और एक कॉन्सर्ट हॉल है।
और लुई IX की यह प्रतिमा कार्थेज के राष्ट्रीय संग्रहालय के बगीचे में देखी जा सकती हैः
14 फरवरी, 1764 को, मिसिसिपी और मिसौरी नदियों के संगम के पास, उत्तरी अमेरिका में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों द्वारा एक शहर की स्थापना की गई, जिसे उन्होंने अपने पवित्र राजा - सेंट लुइस का नाम दिया।
वर्तमान में, सेंट लुइस, बहुसंख्यक अफ्रीकी अमेरिकी आबादी (47,9%) के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे खतरनाक शहरों में से एक है, 2017 में देश में प्रति व्यक्ति रिकॉर्ड हत्या दर थी। यहां हिंसक अपराधों का प्रतिशत संयुक्त राज्य अमेरिका में औसत से 6 गुना अधिक है, संपत्ति के खिलाफ अपराधों की संख्या अमेरिकी औसत से "केवल" 2 गुना अधिक है।
वैसे, यह 2014 में सेंट लुइस फर्ग्यूसन का उपनगर था जो चरमपंथी संगठन बीएलएम के कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित सामूहिक नरसंहार के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया।
जैसा कि आपने अनुमान लगाया होगा, अमेरिकी कार्यकर्ता वर्तमान में सेंट लुइस शहर का नाम बदलने और लुई IX की मूर्ति को ध्वस्त करने की मांग कर रहे हैं। इन मांगों के साथ एक आधिकारिक याचिका 18 जून, 2020 को दर्ज की गई थी। रिपब्लिकन मिसौरी के गवर्नर माइक पार्सन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस कदम का विरोध किया। हालांकि, "सम्मानजनक अमेरिकी समाज" में पवित्र फ्रांसीसी राजा को अब आमतौर पर "एक उत्साही विरोधी यहूदी और इस्लामोफोब" के रूप में जाना जाता है, जिनके विचारों ने नाजी जर्मनी के नेताओं के लिए "प्रेरणा का स्रोत" के रूप में कार्य किया।
- लेखकः
- रियाज़ोव वी. ए.
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विजय हजारे ट्रॉफी को भी रणजी वनडे ट्रॉफी के रूप में जाना जाता है, वर्ष 2002-03 में एक सीमित ओवरों के रूप में शुरू किया गया था रणजी ट्रॉफी प्लेट से राज्य की टीमों से जुड़े घरेलू प्रतियोगिता हैं। यह प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर विजय हजारे के नाम पर है। तमिलनाडु ट्रॉफी 5 बार जीत लिया है। झारखंड 2011 में ट्राफी जीत ली, होल्कर क्रिकेट स्टेडियम, इंदौर में फाइनल में गुजरात को हराया। बंगाल 2011-12 पर यह जीत हासिल की। तमिलनाडु 2016-17 में ट्राफी के मौजूदा चैंपियन हैं, जिन्होंने फाइनल में बंगाल को हराकर अपना पांचवां खिताब जीता। .
एम चिन्नास्वामी स्टेडियम बेंगलूरु के एक प्रसिद्ध क्रिकेट का मैदान हैं। .
एलाइट समूह क्रिकेट अथवा क्रिकेट अ सूची क्रिकेट के खेल में निश्चित ओवर (एकदिवसीय) क्रिकेट प्रारूप का वर्गीकरण है। जैसे प्रथम श्रेणी क्रिकेट, टेस्ट क्रिकेट से एक स्तर नीचे की घरेलू शृंखला है वैसे ही यह भी एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय से एक स्तर नीचे के खेल हैं। .
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त्रिपुरा क्रिकेट टीम एक घरेलू क्रिकेट टीम है जो भारतीय राज्य त्रिपुरा का प्रतिनिधित्व करती है।.
दिनेश मोंगिया भारत के क्रिकेट खिलाडी हैं। श्रेणीःभारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणीःबाएं हाथ के बल्लेबाज.
दिनेश कार्तिक भारतीय क्रिकेट दल का एक खिलाड़ी है जो बल्लेबाजी और विकेटकीपर के लिए जाने जाते हैं। वे 2004 से भारतीय टीम के साथ जुड़े हुए है। .
दिल्ली क्रिकेट टीम, दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा चलाया जाने वाला, दिल्ली में स्थित प्रथम श्रेणी क्रिकेट टीमों में से एक है, जोकि भारत की घरेलू प्रतियोगिता, रणजी ट्रॉफी, में खेलता है। वे टूर्नामेंट में सात बार विजेता बन चुके है और सात बार उपविजेता रह चुके है। वर्ष 2007-08 में उनकी नवीनतम शीर्षक 16 साल के लंबे इंतजार के बाद आया है। इस टीम की पिछली जीत 1991-92 सत्र में था जब उन्होंने फाइनल में तमिलनाडु को हराया जब। टीम का घरेलू मैदान फिरोजशाह कोटला ग्राउंड है। दिलीप ट्रॉफी और देवधर ट्रॉफी में दिल्ली नॉर्थ जोन क्रिकेट टीम के अंतर्गत आता है। .
पंजाब क्रिकेट टीम (भारत)
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प्रवीण कुमार भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। .
फिरोज शाह कोटला ग्राउंड दिल्ली का एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। यहा क्रिकेट खेला जाता हैं। .
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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने भारत में क्रिकेट के लिए राष्ट्रीय शासकिय निकाय है। बोर्ड के एक समाज, तमिलनाडु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत के रूप में दिसंबर 1928 में गठन किया गया था। यह राज्य क्रिकेट संघों के एक संघ है और राज्य संघों उनके प्रतिनिधियों जो बदले में बीसीसीआई अधिकारियों का चुनाव चुनाव। .
मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम एक घरेलू क्रिकेट टीम है जो भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में आधारित है। यह प्लेट में और रणजी ट्रॉफी के एलिट ग्रुप में है। .
मनदीप सिंह (अंग्रेजीःMandeep Singh) (जन्म १८ दिसम्बर १९९१) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जिन्होंने अपने ट्वेन्टी-ट्वेन्टी कैरियर की शुरुआत १८ जून २०१६ को भारत - ज़िम्बाब्वे शृंखला में की। ये दाहिने हाथ से बल्लेबाजी तथा दाहिने ही हाथ से गेंदबाजी करते हैं। जनवरी २०१८ में इन्हें २०१८ इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने खरीदा है। .
मनीष कृष्णानंद पांडेय (जन्म 10 सितंबर 1989) एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर हैं। मुख्य रूप से एक दाएं हाथ के मध्यक्रम के बल्लेबाज घरेलू क्रिकेट में कर्नाटक का और आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स में का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने अपने पूर्व आईपीएल टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के लिए एक सलामी बल्लेबाज के रूप में खेला आईपीएल (2009) में शतक लगाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। पांडे ने भारत के लिए अपने एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध जुलाई 2015 में किया उन्होंने इसी दौरे पर 17 जुलाई 2015 को भारत के लिए ट्वेंटी -20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया .
मयंक अग्रवाल (जन्म १६ फरवरी १९९१) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है। ये बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल और बैंगलोर में जैन विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। ये एक सलामी बल्लेबाज है जो कर्नाटक के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते है। इन्होंने भारतीय क्रिकेट के घरेलू सत्र में २०१७-१८ में सचिन तेंदुलकर के बाद सबसे ज्यादा २२५३ रन बनाये और नया कीर्तिमान अपने नाम किया था। २०१० के आईसीसी अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप में तो साल २००८-०९ में अंडर-१९ कूच बिहार ट्रॉफी में अपने प्रदर्शन के साथ प्रमुखता में आए, जिसमें वह भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बने थे। उन्हें २०१० में कर्नाटक प्रीमियर लीग में श्रृंखला का मैन भी चुना गया था, इस दौरान इन्होंने उस टूर्नामेंट में शतक भी बनाया था। .
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सचिन तेंदुलकर, मुंबई क्रिकेट टीम का एक अग्रणी खिलाड़ी मुंबई क्रिकेट टीम भारतीय शहर मुंबई की अन्तर्राज्यीय स्तर की क्रिकेट टीम है। यह टीम भारतीय क्रिकेट के अन्तर्राज्यीय स्तर की प्रतियोगिता रणजी ट्रॉफी की सबसे शक्तिशालि टीम है। टीम ने भारतीय क्रिकेट टीम के बहुत से अग्रणी क्रिकेटर दिये हैं। इस टीम ने ३९ उपाधियां प्राप्त की हैं जिसमें हाल की २००९-२०१० टूर्नामेंट है। इस टीम का गृहस्थान मैदान दक्षिण मुंबई में चर्च गेट रेलवे स्टेशन के निकट स्थित वांखेडे स्टेडियम है। इस टीम का पूर्व नां बॉम्बे क्रिकेट टीम था जिसे बाद में शहर के पुनर्नामकरण के चलते बदल कर मुंबई कर दिया गया। .
मोहम्मद सिराज (जन्म १३ मार्च १९९४) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जो हैदराबाद के लिए घरेलू क्रिकेट खेलते है जबकि २०१८ इंडियन प्रीमियर लीग में ये रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की तरफ से खेलते हुए नजर आयेंगे और ये भारतीय क्रिकेट टीम के लिए भी खेलते है। .
मोहम्मद अजहरुद्दीन (८ फरवरी, १९६३, हैदराबाद) भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान रहे थे। इनका जन्म ८ फरवरी, १९६३ को हैदराबाद में हुआ था। अजहरुद्दीन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट कॅरियर की शुरुआत १९८४-८५ में इंग्लैंड के विरुद्ध की थी। उन्होंने ९९ टेस्ट मैचों में ४५.०३ की औसत से कुल ६२१५ रन बनाए हैं। इसमें १९९ रन उनका सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर रहा है। अजहरुद्दीन ने टेस्ट मैचों में २२ शतक एवं २१ अर्धशतक लगाए हैं। अजहरुद्दीन ने अपने एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत १९८५ में इंग्लैंड के विरुद्ध बेंगलुरु में की थी। उन्होंने ३३४ एकदिवसीय मैचों की ३०८ पारियों में ५४ बार नाबाद रहते हुए ३६.९२ की औसत से कुल ९३७८ रन बनाए हैं। इसमें नाबाद १५३ रन उनका सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर रहा है। अजहरुद्दीन ने एकदिवसीय मैचों में ७ शतक एवं ५८ अर्धशतक लगाए हैं। उन्होंने २२९ प्रथम श्रेणी मैचों में ५१.९८ की औसत से कुल १५,८५५ रन बनाए हैं। बचपन- मोहम्मेद अऴरुद्दिन हैद्राबाद के आल सैन्त्स है स्कूल में अप्नी पुर्व सिक्शा हासिल की। वह निज़ाम कोलेज, ओस्मानिया उनिवेर्सैटी, अन्ध्र प्रदेश में बी कम पास किये। अपनी परिवार और निजी- जब अऴरुद्दिन ५० साल के हुवे तब ह्य्द्रबाद के नाउरिन नामक एक युवाती से विवाह किया जिन्हे ९ साल के बाद प्रथाक कर दिया। और (१९९६ मे) सग्गिता बिज्लानि नमाक एक प्र्बल-कलकार से विवाह किया। बिज्लानि के साथ सिर्फ १४ साल बिताये। और फिर उन्से २०१० में प्रथाक कर दी। उन्की पहली पत्नी नौरीन के दो दो पुत्र हैन जिन्का नाम असद और अयाज़ जिन्मे अयाज़ अप्ने १९ साल के उम्र में एक अप्घात में अप्नी प्राण दिये। अज़र एक प्रमुख खिलाडी है। वह अप्ने खेल जी-जान से खेल्ते हैं। वह टेस्ट में २२ शतक लगाये और और ओ-डी-आई में ७ शतक लगाये हैं। और वह एक उत्तम फिल्डर है। उनहोने १५६ केचेस पक्डे है। यह एक ममुली साधन नहि है मगर इस को स्री लन्का के महेला जयवर्धने ने इसे तोड दिया। उन्होंने यह साधन भी किया है कि कम समय में उन्होंने ज़्यदा शतक बनाये हैं जिसे आज के वीरो ने तोड दिया। १९९० में जब इन्ग्ग्लानड में साथ टेस्ट खेले थे तब उन्होंने सिर्फ ८७ ग्गेन्दो में शताक बनया और यह एक उत्तम इन्निंस थी पर वह खेल वह हार गये। एडेन गर्डन जो की कोल्कत्ता में है अज़र के लिये एक पसन्दिदा मैदान है, जह उन्होंने सात टेस्ट में ५ शतक बनये थे। १९९१ में इन्हे विस्डम क्रिकेटर ओफ द यर का पुरस्कार मिला था। वे भरत के जवान वीरो के लिये एक आदर्श थे। जब अज़र ९९ टेस्ट खेल चुके थे तब उन्कि ज़िन्दगी में बद्लाव आगया और उन्हे मेच फिकसिग्ग के आरोप में झुट्लाया और फसा दिया और उन्की खेल कि ज़िन्दगी यह पर खत्म् हो गयी। मगर आन्ध्र प्रदेश की सर्कार ने इसे सरासर झूट साबित कर दिया और अजहरुद्दीन औतर मसूम साबित कर दिया। ८ नोवेम्बेर २०१२ को अन्ध्र प्रदेश कि सर्कार ने पर्दा फाश किया और उन्हके ऊपर लगये गये आरोप को बेकार और बेव्कूफी करार किया। भारत टीम म बहुत कप्तान थे मगर जो काम अजहर ने कप्तान बन के किय है वो आज तक भी एक रेकार्ड रह है। उन्होंने १०३ ओ-डी - आई मेच कप्तान बन कर जिताये हैं। और १४ टेस्ट मेच जिताये हैं जिसको सौरव गग्गुली ने फिर तोड दिया। मोहम्मेद अऴरुद्दिन ने हर एक क्रिकेट टीम के खिलाफ बहुत अच्छा खेला है। राजनीती- जिस तरह अजहर एक अच्छे खिलाडी रहे उसि तरह वह एक अच्छे नेता भी रहे। १९ फ़रवरी २००९ में वह भारतीया काग्ग्रेस पार्टी में भाग लिये। वे २००९ में मोरादाबाद नामक शहर उत्तर प्रदेश के नेता चुनाव में भाग लिया। और वह भारातिय जनता पार्टी के कुन्वर सर्वेश कुमार् सिन्ग्घ को हराया और वह जीत गये थे। उन्हे वह चुनाव से ५०००० से ज़्यदा मत मिले थे। उन्होंने मुरदबाद के लोगो को यह वचन दिया है कि वह मुरादाबाद में एक युनिवेर्सिटी और एक मैदान खोलेग्गे और मुरादाबाद में जो बिज्ली कि तक्लीफ है उसे वह दूर करेग्गे। जब उन्के मेच फिक्सिन्ग्ग के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हे लोग निशाना बना रहे थे क्यु क वह निच्लि वर्ग के थे। अभी हाल में सुना गया है कि वह २०१४ में लोक सभा चुनाव वेस्ट बन्ग्गल से भाग लेग्गे। मुहम्मद अज़र उद्दिन के कहि साहस -क्रिक्केट इतिहास में मुहम्मद अज़र उद्दिन ही पेह्ला वीर जो ३ शतक लगातार ३ तेस्त खेल में बनाये थे। -अज़हर एक ऐसे खिलाडी है जो ओ-डी-आइ खेल में १५६ केच पक्डे है। -वे एक ऐसे कप्तान जिस्ने अपनी कातप्तानी में १४ टेस्ट और १०३ ओ-डी-आइ जीताये हैं। -अज़हरुद्दिन एक ऐसे खिलाडी है जिस्ने ६२ गेन्दो में शतक लगाया है नियु ज़ेलान्ड के खिलाफ। -अज़हरुद्दिन एक ऐसे खिलाडी है जिस्ने अप्नी क्रिकेट खेलो में ३०० से ज़्यदा मेच खेले है। -सन १९९१ में मुहम्मद अज़र उद्दिन को उस साल कि कि विस्देन च्रिच्केतेर नामक सम्पथि मिली। -मुहम्मद अज़र उद्दिन ही उन वीरो के नायक थे जिन्हे इंलैन्द् को उन्के मात्र भूमी पर परास्थ किये। -मुहम्मद अज़र उद्दिन ९९ तेस्त खेल में २२ शतक बनये थे। -मुहम्मद अज़र उद्दिन ने ३३४ odi में ७ शतक और समान्य में ३४ रन बनाये थे। -मुहम्मद अज़र उद्दिन ही पेहला खिल्लाडी थे जो अप्नी पेह्ला और आख्री तेस्त खेल में शतक बनाये थे। -मोहम्मद अज़र् उद्दिन ने भारतीय कग्ग्रेस में जा कर मोरदबाद में चुनाव जीता। उनका एक बेत जिसका नाम अब्बास है। अब्बास का असली नाम मोहम्मद अशाउद्दिन है। .
रणजी ट्रॉफी भारत की एक घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता है। रणजी ट्रॉफी में एक घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट चैम्पियनशिप क्षेत्रीय क्रिकेट संघों का प्रतिनिधित्व टीमों के बीच भारत में खेला जाता है। प्रतियोगिता वर्तमान में, 27 टीमों के होते भारत और दिल्ली (जो एक केंद्र शासित प्रदेश है) में 29 राज्यों में से 21 के साथ कम से कम एक प्रतिनिधित्व कर रही है।प्रतियोगिता पहले भारतीय क्रिकेटर हैं, जो इंग्लैंड और ससेक्स, रणजीतसिंहजी जो भी "रणजी" में जाना जाता था के लिए खेला के नाम पर है। .
राहुल शरद द्रविड़ (कन्नड़ः ರಾಹುಲ್ ಶರದ್ ದ್ರಾವಿಡ,राहुल शरद द्रविड) (11 जनवरी 1973 को जन्मे) भारतीय राष्ट्रीय टीम के सबसे अनुभवी क्रिकेटरों में से एक हैं, 1996 से वे इसके नियमित सदस्य रहें हैं।अक्टूबर 2005 में वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में नियुक्त किये गए और सितम्बर 2007 में उन्होंने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया। १६ साल तक भारत का प्रतिनिधित्व करते रहने के बाद उन्होंने वर्ष २०१२ के मार्च में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय क्रिकेट के सभी फॉर्मैट से सन्यास ले लिया। द्रविड़ को वर्ष 2000 में पांच विसडेन क्रिकेटरों में से एक के रूप में सम्मानित किया गया। द्रविड़ को 2004 के उद्घाटन पुरस्कार समारोह में इस वर्ष के आईसीसी प्लेयर और वर्ष के टेस्ट प्लेयर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लम्बे समय तक बल्लेबाजी करने की उनकी क्षमता के कारण उन्हें दीवार के रूप में जाना जाता है, द्रविड़ ने क्रिकेट की दुनिया में बहुत से रिकॉर्ड बनाये हैं। द्रविड़ बहुत शांत व्यक्ति है। "दीवार" के रूप में लोकप्रिय द्रविड़ पिच पर लम्बे समय तक टिके रहने के लिए जाने जाते हैं। सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर के बाद वे तीसरे ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में दस हज़ार से अधिक रन बनाये हैं, 14 फ़रवरी 2007 को, वे दुनिया के क्रिकेट इतिहास में छठे और भारत में सचिन तेंडुलकर और सौरव गांगुली के बाद तीसरे खिलाड़ी बन गए जब उन्होंने एक दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट में दस हज़ार रन का स्कोर बनाया वे पहले और एकमात्र बल्लेबाज हैं जिन्होंने सभी 10 टेस्ट खेलने वाले राष्ट्र के विरुद्ध शतक बनाया है। 182 से अधिक कैच के साथ वर्तमान में टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा कैच का रिकॉर्ड द्रविड़ के नाम है। द्रविड़ ने 18 अलग-अलग भागीदारों के साथ 75 बार शतकीय साझेदारी की है, यह एक विश्व रिकॉर्ड है। .
राजस्थान क्रिकेट टीम एक क्रिकेट टीम है। यह भारत के राजस्थान राज्य की क्रिकेट टीम है। इस टीम का घरेलु मैदान सवाई मानसिंह स्टेडियम है। राजस्थान क्रिकेट टीम दो बार रणजी ट्रॉफी का खिताब जीत चूकी है तथा इस टीम का संचालन राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन कर रहे हैं। यह टीम "टीम राजस्थान" के लोकप्रिय नाम से भी जानी जाती है। .
राउंड-रॉबिन प्रतियोगिता (या सभी मैच खेलने का टूर्नामेंट/प्रतियोगिता) एक प्रतियोगिता का नियम है जिसमें प्रत्येक प्रतियोगी टीम अपने पूरे मैच खेलती है ये प्रारूप आमतौर पर क्रिकेट में ही प्रयोग किया जाता है। .
रिद्धिमान साहा (अंग्रेजीःWriddhiman Saha) (जन्म 24 अक्टुबर 1984) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं ये बंगाल की ओर से रणजी मैच खेलते हैं। रिद्धिमान साहा दाएँ हाथ के बल्लेबाज तथा विकेट कीपर है। रिद्धिमान साहा २०१४ से २०१७ तक इंडियन प्रीमियर लीग में किंग्स इलेवन पंजाब की ओर से खेले इस दौरान २०१४ इंडियन प्रीमियर लीग के फाइनल मैच में शतक लगाकर ऐसा करने वाले पहले बल्लेबाज बन गए थे। जनवरी २०१८ में हुई दो दिवसीय नीलामी में इन्हें सनराइजर्स हैदराबाद ने अपनी टीम में जगह दी है। .
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श्रीवत्स गोस्वामी (जन्म १८ मई १९८९) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जो एक बाएं हाथ के बल्लेबाज और विकेट-कीपर हैं। उनका जन्म कोलकाता, पश्चिम बंगाल में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रतिभू गोस्वामी है। इन्होंने ११ वर्ष की उम्र में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। इन्होंने बंगाल के लिए अंडर -१९ घरेलू क्रिकेट खेला है। जनवरी, २००८ में दक्षिण अफ्रीका में अंडर -१९ त्रिकोणीय श्रृंखला के दौरान, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ९७ और बांग्लादेश के खिलाफ १०४ रन बनाए थे। मलेशिया में २००८ के अंडर-१९ क्रिकेट विश्व कप में, उन्होंने लीग मैचों में से एक में ५८ और न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में ५१ रन बनाए थे। ये इंडियन प्रीमियर लीग में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर, कोलकाता नाइट राइडर्स, राजस्थान रॉयल्स के लिए खेल चुके है। जबकि जनवरी २०१८ में २०१८ इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी में इन्हें सनराइजर्स हैदराबाद ने १ करोड़ से खरीदा है। .
यह एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। .
सेवा क्रिकेट टीम रणजी ट्रॉफी में खेलती है, जो भारत में मुख्य घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता है।.
यह जयपुर का एक प्रमुख खेल का मैदान है। .
संदीप शर्मा भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। यह पंजाब के लिए कई घरेलू मैच खेल चुके हैं। यह 2013 में किंग्स एलेवन पंजाब के लिए आईपीएल में खेले थे। .
संजय मांजरेकर एक पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है। मांजरेकर अपने समय में भारतीय टीम के लिए टेस्ट तथा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला करते थे। .
सौराष्ट्र गुजरात में तीन क्रिकेट टीमों में से एक है जो रणजी ट्राफी (बड़ौदा और गुजरात की अन्य हैं) में प्रतिस्पर्धा करता है।.
कोई विवरण नहीं।
हैदराबाद क्रिकेट टीम (भारत)
कोई विवरण नहीं।
जम्मू और कश्मीर क्रिकेट टीम, जम्मू और कश्मीर के भारतीय राज्य में स्थित एक क्रिकेट टीम है, जो जेकेसीए द्वारा संचालित है।.
जसप्रीत जसबीरसिंह बुमराह (जन्म अहमदाबाद, गुजरात, भारत में 6 दिसंबर 1993) एक भारतीय दाएँ हाथ के तेज मध्यम गेंदबाज है, और अपने अलग बॉलिंग एक्शन के लिए प्रसिद्ध भी है जो गुजरात और मुंबई इंडियंस के लिए क्रिकेट खेलते हैं। बुमराह ने 4 अप्रैल 2013 को रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के खिलाफ 3/32 ले कर, मुंबई इंडियंस के लिए एक सफल इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत की। जनवरी 2016 में वह घायल मोहम्मद शमी की जगह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी श्रृंखला के लिए भारत की ट्वेंटी -20 अंतरराष्ट्रीय टीम में जोड़ा गया है। .
वानखेड़े स्टेडियम मुंबई का एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। .
विदर्भ क्रिकेट टीम भारत के घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता रणजी ट्रॉफी में एक घरेलू क्रिकेट टीम है.
विनय कुमार (जन्मः जन्म १२ फ़रवरी १९८४) भारत के एक क्रिकेट खिलाड़ी हैं। .
विराट कोहली (Virat Kohli.)(जन्मः 5 नवम्बर 1988) भारतीय क्रिकेट टीम के तीनों फॉर्मेट के कप्तान हैं। वे सन् 2008 की 19 वर्ष से कम आयु वाले विश्व कप क्रिकेट विजेता दल के कप्तान भी रह चुके है। भारत के घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट में विराट दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते है। दिल्ली में पैदा हुए और वही के रहवासी होते हुए, कोहली ने 2006 में अपनी पहली श्रेणी क्रिकेट कैरियर की शुरुआत करने से पहले विभिन्न आयु वर्ग के स्तर पर शहर की क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 2008, मलेशिया में अंडर -19 विश्व कप में जीत हासिल की, और कुछ महीने बाद, 19 साल की उम्र में श्रीलंका के खिलाफ भारत के लिए अपना ओडीआई पदार्पण किया। शुरुआत में भारतीय टीम में रिजर्व बल्लेबाज के रूप में खेलने के बाद, उन्होंने जल्द ही ओडीआई के मध्य क्रम में नियमित रूप से अपने आप को स्थापित किया और टीम का हिस्सा रहे और 2011 विश्व कप जीता। उन्होंने 2011 में अपना टेस्ट मैच कैरियर शुरू किया और 2013 तक ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट शतक के साथ "ओडीआई विशेषज्ञ" के टैग को झुका दिया। 2013 में पहली बार ओडीआई बल्लेबाजों के लिए आईसीसी रैंकिंग में नंबर एक स्थान पर पहुंचने के बाद, कोहली को ट्वेंटी -20 प्रारूप में भी सफलता मिली, आईसीसी विश्व ट्वेंटी 20 (2014 और 2016 में) में मैन ऑफ द टूर्नामेंट दो बार वह जीते । 2014 में, वह आईसीसी रैंकिंग में शीर्ष रैंकिंग वाले टी 20 आई बल्लेबाज बने, जिसने 2017 तक तीन लगातार वर्षों की स्थिति संभाली। अक्टूबर 2017 के बाद से, वह दुनिया में शीर्ष रैंकिंग ओडीआई बल्लेबाज भी रहे हैं। एक ऐसा समय भी आया जब 13 दिसंबर 2016 को वह आईसीसी रैंकिंग में तिनो फॉर्मैट के प्रथम 3 स्थानों में शामिल थे। कोहली को 2012 में ओडीआई टीम के उप-कप्तान नियुक्त किया गया था और 2014 में महेंद्र सिंह धोनी की टेस्ट सेवानिवृत्ति के बाद टेस्ट कप्तानी सौंपी गई थी। 2017 की शुरुआत में, वह धोनी के पद से नीचे उतरने के बाद सीमित ओवर के कप्तान बने। ओडीआई में, कोहली की दूसरी सबसे ज्यादा शतक और दुनिया में रन-चेस में शतक की सबसे ज्यादा संख्या है। कोहली के सबसे तेज ओडीआई शतक सहित कई भारतीय बल्लेबाजी रिकॉर्ड हैं, सबसे तेज बल्लेबाज 5,000 ओडीआई रन और 10 एकदिवसीय शतक के लिए सबसे तेज़ बल्लेबाज हैं। वह लगातार दूसरे कैलेंडर वर्ष के लिए 1,000 या उससे अधिक ओडीआई रन बनाने वाले विश्व के दूसरे बल्लेबाज हैं। कोहली द्वारा आयोजित टी 20 आई विश्व रिकॉर्ड में से हैंः सबसे तेज बल्लेबाज 1,000 रनों के लिए, कैलेंडर वर्ष में सबसे ज्यादा रन बनाए गए और प्रारूप में सबसे अधिक अर्धशतक। वह विश्व ट्वेंटी 20 और आईपीएल दोनों के एक टूर्नामेंट में अधिकांश रनों के रिकॉर्ड भी रखते है। आईसीसी रैंकिंग में ओडीआई (909 अंक) और टी 20 आई (897 अंक) में एक भारतीय बल्लेबाज के लिए उनके पास सबसे ज्यादा ऐतिहासिक रेटिंग अंक हैं और केवल सुनील गावस्कर के पीछे टेस्ट (912 अंक) में दूसरे उच्चतम रेटिंग अंक हैं। वह टेस्ट मैचों, ओडीआई और टी 20 आई में एक साथ 50 से अधिक औसत के इतिहास में एकमात्र बल्लेबाज हैं। कोहली 2017 में सर गारफील्ड सोबर्स ट्रॉफी (वर्ष का आईसीसी क्रिकेटर) जैसे कई पुरस्कार के प्राप्तकर्ता रहे हैं; 2012 में 2017 में आईसीसी ओडीआई प्लेयर ऑफ द ईयर, और 2017 में दुनिया में विस्डेन अग्रणी क्रिकेट खिलाड़ी। 2013 में, उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी उपलब्धियों के सम्मान में अर्जुन पुरस्कार दिया गया था। पद्मश्री को उन्हें खेल श्रेणी के तहत 2017 में सम्मानित किया गया था। अपने क्रिकेट करियर के साथ, कोहली आईएसएल में एफसी गोवा का सह-मालिक है, आईपीटीएल फ्रेंचाइजी संयुक्त अरब अमीरात रॉयल्स और पीडब्लूएल टीम बेंगलुरू योधा का सह-मालिक है। उनके पास अन्य व्यावसायिक उद्यम भी हैं और 20 से अधिक ब्रांड समर्थन हैं। कोहली ईएसपीएन द्वारा दुनिया के सबसे प्रसिद्ध एथलीटों में से एक है और फोर्ब्स द्वारा सबसे मूल्यवान एथलीट ब्रांडों में से एक है। 2018 में, टाइम पत्रिका ने कोहली को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक नाम दिया। .
विजय सैमुअल हज़ारे (११ मार्च १९१५ - १८ दिसम्बर २००४) भारतीय राज्य महाराष्ट्र से भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी थे। वो १९५१ से १९५३ के मध्य भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे। उन्होंने अपनी कप्तानी में भारत को टेस्ट-क्रिकेट में प्रथम सफलता दिलाई। सन् १९६० में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया। उनका १८ दिसम्बर २००४ को निधन हो गया। .
विजय हजारे ट्रॉफी 2016-17 विजय हजारे ट्रॉफी, एक लिस्ट ए क्रिकेट टूर्नामेंट में भारत का 15 वा मौसम है। यह भारत के 28 घरेलू क्रिकेट टीमों द्वारा चुनाव लड़ा जाएगा। तमिलनाडु ने टूर्नामेंट जीता, फाइनल में बंगाल को 37 रन से हराया। .
2017-18 विजय हजारे ट्राफी को विजय हजारे ट्रॉफी के 16 वें सत्र का आयोजन करना है, जो कि भारत में लिस्ट ए क्रिकेट टूर्नामेंट है। यह भारत की 28 घरेलू क्रिकेट टीमों द्वारा मुकाबला होगा। तमिलनाडु में मौजूदा चैंपियन हैं। दिसंबर 2017 में, खिलाड़ियों को इंडियन प्रीमियर लीग 2018 से पहले खिलाड़ियों को अभ्यास करने की अनुमति देने के लिए आगे लाया गया। .
वेंकटपति राजू भारत के क्रिकेट खिलाडी हैं। श्रेणीः1969 में जन्मे लोग श्रेणीःभारतीय एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी श्रेणीःभारतीय टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी.
गुजरात क्रिकेट टीम भारत के घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता रणजी ट्रॉफी में गुजरात राज्य का प्रतिनिधित्व करने तीन में से एक घरेलू क्रिकेट टीम है(अन्य दो टीम बड़ौदा क्रिकेट टीम और सौराष्ट्र क्रिकेट टीम है)। पार्थिव पटेल के नेतृत्व में गुजरात ने 2016-17 सीजन को इंदौर में हुए फाइनल मुकबले में मुंबई को हरा कर रणजी ट्रॉफी का खिताब अपने नाम किया। रणजी ट्राफी के फाइनल में मैच में सबसे ज्यादा सफल रन चेस था।.
श्रेणीःभारत के क्षेत्रीय क्रिकेट टीम.
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श्रेणीःभारत की क्षेत्रीय क्रिकेट टीम.
इडेन गार्डेंस (बांग्लाः ইডেন গার্ডেন্স), भारत का एक प्रमुख खेल का मैदान हैं। यह कोलकाता में स्थित हैं। यहाँ क्रिकेट खेला जाता हैं। .
इशांक जग्गी एक भारतीय घरेलू क्रिकेट खिलाड़ी है जो २०१७ से इंडियन प्रीमियर लीग में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए खेलते है। ये घरेलू क्रिकेट झारखंड के लिए खेलते है जिसमें मुख्य रूप से बल्लेबाज की भूमिका निभाते है। इन्होंने अपने शुरूआती ७५ प्रथम श्रेणी क्रिकेट में १८ शतक बनाये है। .
कर्नाटक से एक प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी अनिल कुंबले कर्नाटक क्रिकेट टीम भारतीय राज्य कर्नाटक की अन्तर्राज्यीय स्तर की क्रिकेट टीम है। यह टीम रणजी ट्रॉफी के एलाइट समूह की सबसे शक्तिशालि टीमों में से एक है। टीम ने भारतीय क्रिकेट टीम के बहुत से अग्रणी क्रिकेटर दिये हैं। इस टीम ने छः बार रणजी ट्रॉफी जीती है तथा ५ बार द्वितीय स्थाण पर रही है, जिसमें पूर्व मैसूर टीम २ बार अग्रणी रही थी। इस टीम का गृहस्थान मैदान बंगलुरु स्थित चिन्नास्वामी स्टेडियम है। .
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अमित मिश्रा अमित मिश्रा (जन्म 24 नवम्बर 1982) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी है जो दाएँ हाथ से लेगब्रेक गेंदबाजी करते हैं तथा निचले क्रम के दाएँ हाथ के बल्लेबाज है। अमित मिश्रा घरेलू मैच रणजी ट्रॉफी में हरियाणा की ओर से खेलते हैं तथा 2017 इंडियन प्रीमियर लीग में दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से खेल रहे थे। मिश्रा ने अपने टेस्ट क्रिकेट कैरियर की शुरुआत १७ अक्टूबर २००८ को ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के खिलाफ की थी। जबकि पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत १३ अप्रैल २००३ को दक्षिण अफ़्रीका क्रिकेट टीम के खिलाफ खेलकर की थी। और पहला ट्वेन्टी-ट्वेन्टी मुकाबला १३ जून २०१० को ज़िम्बाब्वे क्रिकेट टीम के खिलाफ खेला था। .
श्रेणीःभारत की क्षेत्रीय क्रिकेट टीम.
अजिंक्य रहाणे एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर है, जो घरेलू प्रतियोगिताओं में मुंबई के लिए खेलते हैं। वह इंडियन प्रीमियर लीग में राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलते हैं। वह दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं, जो 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत की और 2013 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत किया था। 2007-08 के सत्र में रहाणे ने अपने प्रथम श्रेणी कैरियर की शुरुआत की और 100 प्रथम श्रेणी पारी के बाद 62.04 के औसत बनाया था। 31 अगस्त 2011 को मैनचेस्टर में उसकी T20I शुरुआत की और उस मैच में 61 रन बनाए और सितंबर 2011 में अपने कैरियर की शुरुआत पर एक दिवसीय मैच में 40 रन बनाए। श्रृंखला में दिखाया वादा के बाद टेस्ट टीम में शामिल किया गया था। लेकिन, अंतिम एकादश में तोड़ करने में असमर्थ होने के बाद 16 महीने के लिए भारतीय टेस्ट दस्तों का हिस्सा बना रहा। सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ने अपने पहले टेस्ट मैच में अपनी उंगलियों को घायल, रहाणे अंत में 2013 सीमा गावस्कर ट्राफी में अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की। पहली पसंद के खिलाड़ियों में से अधिकांश विभिन्न कारणों से मुंबई उपलब्ध नहीं थे। जब रहाणे कराची में, सितंबर 2007 में मोहम्मद निसार ट्राफी में कराची अर्बन के खिलाफ मुंबई के लिए प्रथम श्रेणी के अपने कैरियर की शुरुआत की। हाल ही में, 2013/11/28 पर विदर्भ के खिलाफ रणजी ट्राफी मैच में मुंबई के लिए खेल रहे हैं और जब 133 रन की अद्भुत पारी खेली। एक शानदार बल्लेबाजी कौशल है और उसके कवर ड्राइव के लिए जाना जाता है। आज भी, रहाणे विराट कोहली को पूरा समर्थन देता है। रहाणे के योगदान को कम आंका नहीं किया जा सकता। वह फिर से दबाव की स्थिति के तहत क्रीज पर खड़े रहने के लिए उसकी मजबूती की क्षमता प्रदर्शित की है। सबसे अच्छी बात यह हमेशा एक शांत और रचना तरीके में खेलता है और पूरी तरह से अपने शॉट्स निभाता है। रहाणे मूल रूप से एक सलामी बल्लेबाज है और किसी भी स्थिति में फिट करने की क्षमता है। और रहाणे बल्लेबाजी औसत 57.60-कर दिया गया है, जहां आईपीएल में उनकी टीम राजस्थान रॉयल्स के लिए एक मुख्य खिलाड़ी साबित हुई। रहाणे ने आईपीएल में सर्वाधिक रन गणक है। चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ आईपीएल के सेमीफाइनल में सिर्फ 56 गेंदों में अपने प्रशंसकों के 70 रन की अपनी अद्भुत पारी खेली । उसकी ईमानदारी और कड़ी मेहनत के कारण, लोगो ने बताया की मुरली विजय से बहुत ही अच्छा खेलता है और निश्चित रूप से मैं भारतीय क्रिकेट का भविष्य है। अजिंक्या रहाणे ने अपने दूसरे रणजी सत्र में 1089 रन के साथ, मुंबई के 38 वें खिताब जीतने में एक महत्त्वपूर्ण कारक था, जो एक शीर्ष क्रम मुंबई बल्लेबाज हैं। केवल 11 खिलाड़ियों को एक भी रणजी सत्र में 1000 रन बनाए हैं और उस परिप्रेक्ष्य में अपने प्रयास डालता है। मुंबई रणजी टीम में रहाणे की प्रगति प्राकृतिक एक था। वह सभी आयु के स्तर पर उन्हें प्रतिनिधित्व मिला, और अधिक नहीं तो हमेशा एक भावी मुंबई खिलाड़ी के रूप में देखा गया था। उनका भरपूर रणजी सत्र मैं एक इंग्लैंड लायंस हमले के खिलाफ 172 रन बनाए, जहां वर्ष 2007-08 में दिलीप ट्रॉफी में एक प्रभावशाली दिखाने कि पीछा शामिल ग्राहम ओनियंस, मोंटी पनेसर, स्टीव किर्बी और लियाम प्लंकेट । रणजी ट्राफी के 2010-11 सीजन के ऑस्ट्रेलिया में इमर्जिंग प्लेयर्स टूर्नामेंट में दो सदियों उसे 2011 में इंग्लैंड के दौरे के लिए भारतीय वनडे टीम में जगह लाया गया था। बेंच पर बैठा है और टेस्ट टीम के साथ यात्रा के महीनों के बाद, रहाणे मार्च 2013 को दिल्ली में अपनी शुरुआत मिला। .
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ऐसा नहीं है बहुत पहले प्रस्तुत किया और बाजार के लिए मूल एटीवी "Tarus" घरेलू उत्पादन शुरू की गई थी। कुछ दर्जन की प्रतियां, योजना बनाई बाजार के विस्तार और सीरियल उत्पादन में वृद्धि की संख्या। दो पहिया एसयूवी एक azhitotazh वजह से न केवल otechestennyh पारखियों, लेकिन यह भी विशेष विदेशी पत्रिकाओं zaintersoval। सबसे पहले, इस मॉडल, विश्वसनीय सरल, शक्तिशाली और किफायती मूल्य है।
"Tarus 2x2» - एटीवी, जो कोई अलग सुरुचिपूर्ण लाइनों और उपकरणों अधिक भरने है। परिवहन में गंभीर समस्याओं का समाधान करना है बाधाओं पर काबू पाने। उन्होंने कहा कि वन, किसानों, ट्रक ड्राइवरों, शिकार और मछली पकड़ने के प्रशंसकों के लिए एक बहुत मदद हो जाएगा, लेकिन यह भी जो लोग पेशेवर सुविधाओं आप लंबी दूरी तक के लिए सड़क पर ले जाने की आवश्यकता के कारण के लिए।
शक्ति इकाई मोटरसाइकिल वजन यह 50 से 80 किलोग्राम से है के सेट पर निर्भर करता है, सबसे हल्का संशोधन वास्तव में मैन्युअल रूप से ले जाया। उपकरण स्थापित बारह स्तरीय बस 25 के लिए एटीवी बहुत गंदे और दुर्गम क्षेत्र पर ड्राइविंग के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है, आसानी से सभी बाधाओं पर काबू पा। गति सीमा 35 किमी / घंटा है। गियरशिफ्ट मोड दो गति (निष्क्रिय मोड और आगे ले जाने के) के होते हैं।
मुख्य लाभ यह है कि एटीवी "Tarus" है - यह अपने परिवर्तन है। कम समय में यह बनाया जा सकता है या आसानी से कार ट्रंक में किए गए या भागों से ले जाया disassembled। डिजाइन लगभग बहुत जटिल और कोई छोटे भागों है। तकनीक देखभाल, रखरखाव और सफाई में picky।
नाम पहिया ड्राइव एटीवी "Tarus" नदी Tarusa के नाम पर रखा गया था।
डेवलपर्स का मुख्य कार्य कम वजन और उच्च पारगम्यता के संयोजन था। चेन, ड्राइव इकाई, तारेः सभी इलाके वाहन की व्यवस्था के लिए एसयूवी के सभी ठेठ तत्व शामिल हैं। यह प्रावरणी के पीछे ड्राइव छुपा गंदगी संरचना से इकाई के इंटीरियर सुरक्षा करता है।
पार शाफ्ट सीट के नीचे स्थित है। बड़े सितारे, चादर स्टील के बने की मदद से, ट्रांसमिशन इकाई उतार दिया और राहत मिली है। सभी संरचनात्मक भागों उपलब्ध हैं, जो राष्ट्रीय मशीनरी के मुख्य भागों से जुड़ा है। वे किसी भी क्षेत्र में खरीदा जा सकता है। आप 350 घन सेंटीमीटर करने के लिए इंजन का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन अधिक भारी मोटर्स अव्यावहारिक रखा होगा।
घरेलू चार पहिया ड्राइव एटीवी "Tarus" "UAZ" से टायर के साथ सुसज्जित है। वे झटके को अवशोषित और धीरा गति के साथ बाहर चिकनी। मोटरसाइकिल nachinaett उछाल की आलोचना की गति पर। विषय क्षेत्रों कक्ष पट्टियाँ, एक कन्वेयर बेल्ट से बना कस की प्रत्यक्षता को बढ़ाने के लिए है, जो एक कील की तरह समकक्षों से जुड़े होते हैं करने के लिए।
इस डिजाइन सुविधाओं पहियों का नुकसान पंचर करने के लिए अपनी संवेदनशीलता और सूरज की किरणों के प्रभाव है। आप अक्सर टायर फटने का उपयोग करें, लेकिन यह एक 1-2 मौसम की तुलना में अधिक के लिए नहीं बनाया गया है। टायर कार्रवाई के जीवन टायर का एक प्रकार के रूप में सेवारत अतिरिक्त कक्ष की स्थापना के द्वारा प्राप्त किया जा सकता बढ़ाएँ। कई किलोग्राम से सभी इलाके वाहन बढ़ जाती है का कुल वजन।
के बाद से सवाल में वाहन, संदूषण के अधीन है कांच के आवरण की सुरक्षा है के रूप में। फ्रेम करने के लिए वेल्डेड कदम, अपूर्ण हैंः वे छोटे आकार के होते हैं, कोई समर्थन नहीं है। बिजली संयंत्र के लिए के रूप में, यह बहु पारी मोड के लिए नहीं बनाया गया है। यह सुस्ती और पूर्ण थ्रोटल आगे के लिए प्रदान की है।
एटीवी "Tarus" -, गैर विश्वसनीय और सस्ती दो पहिया ऑफ-रोड मॉडल। इलेक्ट्रिकल आइटम याद कर रहे हैं, सिम्युलेटर हेडलाइट्स के लिए छोड़कर। लेकिन इस तकनीक पूरी तरह से अगम्य क्षेत्रों पर आंदोलन (संकीर्ण ट्रेल्स, बर्फ, मिट्टी, रेत) के साथ सामना कर रहा है। डिजाइनर बाइक उन्नयन कुछ घटकों में सुधार होगा पर काम करना जारी, डिजाइन इकाई की अधिकतम त्वरित और आसान विधानसभा के लिए स्टैक।
नीचे बुनियादी विनिर्देशों जो एटीवी "Tarus" मानक विन्यास में से एक में है कर रहे हैंः
- पावरट्रेन - "लिफ़ान" 168F-2 ( "होंडा" GX-200 लाइसेंस के तहत), चार स्ट्रोक, पेट्रोल।
- विस्थापन (सीसी। ) - 210।
- मोटर शक्ति अनुपात (एचपी। ) - 7।
- ईंधन टैंक क्षमता (एल) - 4।
- ग्रूवी prsposoblenie - बिजली शुरू, मैनुअल शुरू।
- ट्रांसमिशन इकाई - क्लच स्वतः केन्द्रापसारक प्रकार।
- ड्राइव - एक जुड़ा सामने के साथ पूरा।
- ब्रेक प्रणाली - एक लीवर स्टीयरिंग व्हील से संचालित के साथ पहियों।
- गति की अधिकतम दर (किमी / घंटा) - 35।
- 350 - बर्फ कवर गहराई (मिमी) चढ़ाई।
- लंबाई (मी) - 1. 76।
- सीट ऊंचाई (मीटर) -0. 79।
- चौड़ाई (एम) - 0. 33।
- वजन (किलो) - 80।
संशोधन हल्के वजन 15-20 किलो कम आमतौर पर सुसज्जित चीनी पावरप्लांटों खर्च कर रहे हैं।
एटीवी "Tarus 2x2", कीमत जिनमें से इंजन के प्रकार पर निर्भर करता है, अभी तक केवल घरेलू बाजार पर खरीदा जा सकता है। हालांकि, निर्माताओं निकट भविष्य में विदेश में बिक्री इकाई का विस्तार करना चाहते हैं। सभी इलाके बाइक मानक की लागत के बारे 75 हजार रूबल है।
मालिकों मोटरसाइकिल माना इकाई के मुख्य लाभ और इसकी कमियों के कुछ पर प्रकाश डाला। मॉडल के फायदे, सभी उपयोगकर्ताओं को निम्नलिखित शामिल हैंः
- खूबसूरती से मदडी क्ले, रेत, बर्फ से जाल और जंगली रास्तों पर किसी भी ऑफ-रोड सवारी पर बहुत बढ़िया तैरने की क्रिया।
- मनभावन डिजाइन टीम, धन्यवाद जो करने के लिए यह लगभग किसी भी मशीन के ट्रंक में जाया जा सकता है।
- डिवाइस विधानसभा कुछ ही मिनटों में किया जाता है।
- यह एक स्वीकार्य गैस लाभ है।
- वहनीय मूल्य।
- चालाक डिजाइन और बेल्ट ड्राइव के संरक्षण, धन्यवाद जो करने के लिए वाहन कीचड़ में ठप नहीं है।
नहीं दोष हैं, जो एटीवी "Tarus" है बिना। इस संबंध में राज्य के मालिकों के रूप में सभी समान है और गड्ढे से महसूस किया है कि, पूरा होने unsprung सीट की आवश्यकता की समीक्षा। कुछ शोर श्रृंखला ड्राइव और कम गति से संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन लोगों को यह एक महत्वपूर्ण कमी पर विचार नहीं करते। जब पार करने नदी बाइक रोकने को क्या हुआ है, लेकिन एक नाव के रूप में काम किया। यह दूसरी तरफ के परिवहन के लिए, स्टीयरिंग व्हील धारण आसानी से हो सकता है।
घरेलू दो पहिया ऑफ-रोड वाहन की समीक्षा समापन, यह उल्लेखनीय है कि एटीवी "Tarus 2x2", कीमत, जो की साधारण शौकिया ऑफ-रोड ड्राइविंग, सादगी, विश्वसनीयता, और उच्च यातायात की विशेषता के लिए काफी सुलभ है। संक्षिप्त डिजाइन इसे मैन्युअल रूप से स्थानांतरित करने के लिए इकाई की अनुमति देता है, या कार है, जो कुछ स्थितियों में बहुत आसान है द्वारा ले जाया।
बाइक जिन लोगों के पेशे या शौक एक दलदली, वन, चिपचिपा क्षेत्रों, रेत और जंगलों की औसत दूरी पर काबू पाने की जरूरत से संबंधित के लिए एकदम सही है। निर्माता लगातार एटीवी को संशोधित कर रहे हैं, बाजार का विस्तार करने की योजना है, कि पूरी तरह से सही है। विदेशी मीडिया जो घरेलू रिक्त स्थान में न केवल अपने संभावित मांग को इंगित करता है एसयूवी की पायलट संस्करण, में रुचि रखते हैं।
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था । मैंने कहा, 'यह मुझसे न होगा । मैं तो कुछ चाहता नहीं। तुम्हारी इच्छा हो किसी दूसरे को दे दो। '
" एकमात्र ईश्वर का दास हूँ - और किसका दास बनूँ?
मुझे खाने की देर होती थी, इसलिए मल्लिक ने भोजन पकाने के लिए एक ब्राह्मण नौकर रख दिया था। एक महीने में एक रुपया दिया था। तब मुझे लज्जा हुई, उसके बुलाने से ही दौड़ना पड़ता था ! -- खुद जाऊँ वह बात दूसरी है।
"सांसारिक जीवन व्यतीत करने में मनुष्य को न जाने कितने नीच आदमियों को खुश करना पड़ता है, और उसके अतिरिक्त और भी न जाने क्या क्या करना पड़ता है।
" ऊँची अवस्था प्राप्त होने के पश्चात् तरह तरह के दृश्य मुझे दीख पड़ने लगे। तब माँ से कहा, माँ, यहीं से मन को मोड़ दो- जिससे मुझे धनी लोगों की खुशामद न करनी पड़े।
" जिसका काम कर रहे हो, उसीका करो । लोग सौ पचास रुपये के लिए जी देते हैं, तुम तो तीन सौ महीना पाते हो । उस देश में मैंने डिप्टी देखा था, ईश्वर घोषाल को। सिर पर टोपी - गुस्सा नाक पर; मैंने लड़कपन में उसे देखा था; डिप्टी कुछ कम थोड़े ही होता है।
"जिसका काम कर रहे हो, उसी का करते रहो । एक ही आदमी की नौकरी से जी ऊब जाता है, फिर पांच आदमियों की नौकरी !
" एक स्त्री किसी मुसलमान को देखकर मुग्ध हो गई थी, उसने उसे मिलने के लिए बुलाया । मुसलमान, आदमी अच्छा था, प्रकृति का साधु था । उसने कहा, - 'मैं पेशाब करूंगा, अपनी हण्डी ले आऊँ । उस स्त्री ने कहा - ' हण्डी तुम्हें यहीं मिल जायगी, मैं दूंगी तुम्हें हण्डी ।
उसने कहा - 'ना, सो बात नहीं होगी ! जिस हण्डी के पास मैंने एक दफे शर्म खोई, इस्तेमाल तो मैं उसीका करूँगा, - नई हण्डी के पास दोबारा बेइमान न हो सकूँगा ।' यह कहकर वह चला गया। औरत की भी अक्ल दुरुस्त हो गई; हण्डी का मतलब वह समझ गई । "
पिता का वियोग हो जाने पर नरेन्द्र को बड़ी तकलीफ हो रही है। माता और भाइयों के भोजन-वस्त्र के लिए वे नौकरी की तलाश कर रहे हैं। विद्यासागर के बहूबाजार वाले स्कूल में कुछ दिनों तक उन्होंने प्रधान शिक्षक का काम किया था ।
अधर - अच्छा, नरेन्द्र कोई काम करेगा या नहीं।
श्रीरामकृष्ण - हाँ, वह करेगा । माँ और भाई जो हैं ।
अधर - अच्छा, नरेन्द्र की ज़रूरत पचास रुपये से भी पूरी हो सकती है और सौ रुपये से भी उसका काम चल सकता है। अब अगर उसे सौ रुपये मिलें तो वह काम करेगा या नहीं ?
श्री रामकृष्ण - विषयी लोग धन का आदर करते हैं। वे सोचते हैं, ऐसी चीज़ और दूसरी न होगी । शम्भू ने कहा, यह सारी सम्पत्ति ईश्वर के श्रीचरणों में सौंप जाऊँ, मेरी बड़ी इच्छा है। वे विषय थोड़े ही चाहते हैं? वे तो ज्ञान, भक्ति, विवेक, वैराग्य, यह सब चाहते हैं।
जब श्रीठाकुर मन्दिर से गहने चोरी चले गए, तब सेजो बाबू ने कहा - " क्यों महाराज ! तुम अपने गहने न बचा सके ! हंसेश्वरी देवी को देखो, किस तरह अपने गहने बचा लिये थे !"
" सेजो बाबू ने मेरे नाम एक ताल्लुका लिख देने के लिए कहा था। मैंने काली मन्दिर से उनकी बात सुनी। सेजो बाबू और
हृदय एक साथ सलाह कर रहे थे। मैंने सेजो बाबू से जाकर कहा, देखो, 'ऐसा विचार न करो, इसमें मेरा बड़ा नुकसान है । "
अधर - जैसी बात आप कह रहे हैं, सृष्टि के आरम्म से अब तक ज्यादा से ज्यादा छः ही सात ऐसे हुए होंगे ।
श्रीरामकृष्ण - क्यों, त्यागी हैं क्यों नहीं? ऐश्वर्य का त्याग करने से ही लोग उन्हें समझ जाते हैं। फिर ऐसे भी त्यागी पुरुष हैं, जिन्हें लोग नहीं जानते। क्या उत्तर भारत में ऐसे पवित्र पुरुष नहीं हैं ?
अधर - कलकत्ते में एक को जानता हूँ, वे देवेन्द्र ठाकुर हैं। श्रीरामकृष्ण - कहते क्या हो ! - उसने जैसा भोग किया वैसा बहुत कम आदमियों को नसीब हुआ होगा। जब सेजो बाबू के साथ मैं उसके वहाँ गया, तब देखा छोटे छोटे उसके कितने ही लड़के थे, डाक्टर आया हुआ था, नुस्खा लिख रहा था। जिसके आठ लड़के और ऊपर से लड़कियाँ हैं, वह ईश्वर की चिन्ता न करे तो और कौन करेगा? इतने ऐश्वर्य का भोग करके भी अगर वह ईश्वर की चिन्ता न करता तो लोग कितना धिक्कारते ?
निरंजन - द्वारकानाथ ठाकुर का सब कर्ज़ उन्होंने चुका दिया था । श्री रामकृष्ण - चल, रख ये सब बातें । अब जला मत । शक्ति के रहते भी जो बाप का किया हुआ कर्ज नहीं चुकाता, वह भी कोई आदमी है ?
"हाँ, बात यह है कि संसारी लोग बिलकुल डूबे रहते हैं, उनकी तुलना में वह बहुत अच्छा था -- उन्हें शिक्षा मिलेगी।
" यथार्थ त्यागी भक्त और संसारी भक्त में बड़ा अन्तर है । यथार्थ सन्यासी - सञ्चा त्यागी भक्त - मधुमक्खी की तरह है। मधुमक्खी फूल को
छोड़ और किसी चीज़ पर नहीं बैठती। मधु को छोड़ और किसी चीज़ का ग्रहण नहीं करती । संसारी भक्त दूसरी मक्खियों के समान होते हैं जो बर्फियों पर भी बैठती हैं और सड़े घावों पर भी। अभी देखो तो वे ईश्वरी भावों में मग्न हैं, थोड़ी देर में देखो तो कामिनी और कांचन को लेकर मतवाले हो जाते हैं ।
सच्चा त्यागी भक्त चातक के समान होता है। चातक स्वाति नक्षत्र के जल को छोड़ और पानी नहीं पीता, सात समुद्र और तरह नदियां भले ही भरी रहें। वह दूसरा पानी हरगिज़ नहीं पी सकता । सच्चा भक्त कामिनी और कांचन को छू भी नहीं सकता, पास भी नहीं रख सकता क्योंकि कहीं आसक्ति न आ जाय । "
चैतन्यदेव, श्रीरामकृष्ण और लोकमान्यता ।
अधर - चैतन्य ने भी भोग किया था । । श्रीरामकृष्ण (चौंककर ) - क्या भोग किया था ? अधर - उतने बड़े पण्डित थे, कितना मान था !
श्रीरामकृष्ण - दूसरों की दृष्टि में वह मान था, उनकी दृष्टि में कुछ - भी नहीं था ।
" मुझे तुम जैसा डिप्टी माने अथवा यह छोटा निरंजन, मेरे लिए दोनों एक है, सच कहता हूँ । एक धनी आइमी मेरे वश में रहे, ऐसा भाव मेरे मन में नहीं पैदा होता । मनोमोहन ने कहा है, 'सुरेन्द्र कहता था, राखाल इनके ( श्रीरामकृष्ण के ) पास रहता है, इसका दावा हो सकता है।' मैंने कहा, कौन है रे सुरेन्द्र ? जिसकी दरी और तकिया यहाँ है, और जो दस रुपया महीना देता है, उसकी इतनी हिम्मत कि वह ऐसी बातें कहे ?"
अधर - क्या दस रुपये प्रति महीना देते हैं।
श्रीरामकृष्ण - दस रुपये में दो महीने का खर्च चलता है। कुछ भक्त यहाँ रहते हैं, वह भक्तों की सेवा के लिए खर्च देता है । यह उसीके लिए पुण्य है, इसमें मेरा क्या है ? मैं राखाल और नरेन्द्र आदि को प्यार करता हूँ तो क्या किसी अपने लाभ के लिए ?
मास्टर - यह प्यार माँ के प्यार की तरह है।
श्रीरामकृष्ण - माँ फिर भी इस आशा से बहुत कुछ करती है कि नौकरी करके खिलाएगा । मैं जो इन्हें प्यार करता हूँ, इसका कारण यह है कि मैं इन्हें साक्षात् नारायण देखता हूँ - यह बात की बात नहीं है।
( अधर से ) "सुनो, दिया जलाने पर कीड़ों की कमी नहीं रहती। उन्हें पा लेने पर फिर वे सब बन्दोबस्त कर देते हैं, कोई कमी नहीं रह जाती। वे जब हृदय में आजाते हैं, तब सेवा करनेवाले बहुत इकट्ठे हो जाते हैं।
" एक कम उम्र सन्यासी किसी गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए गया। वह जन्म से ही सन्यासी था । संसार की बातें कुछ न जानता था । गृहस्थ की एक युवती लड़की ने आकर भिक्षा दी। सन्यासी ने कहा, 'माँ, इसकी छाती पर कितने बड़े बड़े फोड़े हुए हैं !" उस लड़की की माँ ने कहा, 'नहीं महाराज, इसके पेट से बच्चा होगा, बच्चे को दूध पिलाने के लिए ईश्वर ने इसे स्तन दिये हैं, ― उन्हीं स्तनों का दूध बच्चा पियेगा । तब सन्यासी ने कहा, 'फिर सोच किस बातका है ? मैं अब क्यों भिक्षा माँगूं ? जिन्होंने मेरी सृष्टि की है, वे ही मुझे खाने को भी देंगे ।
"सुनो, जिस यार के लिए सब कुछ छोड़कर स्त्री चली आई है, उससे मौका आने पर वह अवश्य कह सकती है कि तेरी छाती पर चढ़कर भोजन-वस्त्र लूँगी ?
"न्यांगटा कहता था कि एक राजा ने सोने की थाली और सोने के गिलास में साधुओं को भोजन कराया था। काशी में मैंने देखा, बड़े बड़े महन्तों का बड़ा मान है - कितने ही पश्चिम के अमीर हाथ जोड़े हुए उनके सामने खड़े थे और कह रहे थे - कुछ आज्ञा हो ।
परन्तु जो सच्चा साधु है - यथार्थ त्यागी है, वह न तो सोने की थाली चाहता है और न मान । परन्तु यह भी है कि ईश्वर उनके लिए किसी बात की कमी नहीं रखते। उन्हें पाने के लिए प्रयत्न करते हुए जिसे जिस चीज़ की ज़रूरत होती है, वे पूरी कर देते हैं ।
आप हाकिम हैं - क्या कहूँ - जो कुछ अच्छा समझो, वही करो। मैं तो मूर्ख हूँ। "
अधर (हँसते हुए, भक्तों से ) - क्या आप मेरी परीक्षा ले रहे हैं? श्री रामकृष्ण ( सहास्य ) - निवृत्ति ही अच्छी है। देखो न मैंने दस्तखत नहीं किये । ईश्वर ही वस्तु हैं और सब अवस्तु ।
'हाजरा भक्तों के पास फर्श पर आकर बैठे। हाजरा कभी कभी 'सोऽहम् - सोऽहम् ' किया करते हैं। वे लाटू आदि भक्तों से कहते हैं, 'उनकी पूजा करके क्या होता है? उन्हीं की वस्तु उन्हें दी जाती है। ' एक दिन उन्होंने नरेन्द्र से भी यही बात कही थी। श्रीरामकृष्ण हाजरा से कह रहे हैं -
लाटू से मैंने कहा था, कौन किसकी भक्ति करता है ? " हाजरा - भक्त आप ही अपने को पुकारता है।
श्रीरामकृष्ण - यह तो बड़ी ऊँची बात है। महाराज बलि से बृन्धावलि ने कहा था, तुम ब्रह्मण्य देव को क्या धन दोगे ?
'तुम जो कुछ कहते हो, नाम और गुणों का कीर्तन है।
उसी के लिए साधन-भजन तथा उनके
" अपने भीतर अगर अपने दर्शन हो जायँ तब तो सब हो गया। उसके देखने के लिए ही साधना की जाती है। और उसी साधना के लिए शरीर है। जब तक सोने की मूर्ति नहीं ढल जाती तब तक मिट्टी के साँच की ज़रूरत रहती है। सोने की मूर्ति के बन जाने पर मिट्टी का सांचा फेक दिया जाता है। ईश्वर के दर्शन हो जाने पर शरीर का त्याग किया जा सकता है।
" वे केवल अन्तर में ही नहीं हैं, बाहर भी हैं। काली मन्दिर में माँ मुझे दिखाया, सब कुछ चिन्मय है। माँ स्वयं सब कुछ बनी हैं - प्रतिमा, मैं, पूजा की चीजें, पत्थर - सब चिन्मय हैं ।
इसका साक्षातकार करने के लिए ही साधन-भजन-नाम-गुण कीर्तन आदि सच है। इसके लिए ही उन्हें भक्ति करना है । वे लोग (लाटू आदि) अभी साधारण भावों को लेकर हैं - अभी उतनी ऊँची अवस्था नहीं हुई। वे लोग भक्ति लेकर हैं। और उनसे 'सोऽहम् ' आदि बातें मत कहना ।
अधर और निरंजन जलपान करने के लिए बरामदे में गये। मास्टर श्रीरामकृष्ण के पास फर्श पर बैठे हुए हैं।
अधर ( सहास्य ) - हमलोगों की इतनी बातें हो गई, ये ( मास्टर ) तो कुछ भी न बोले ।
श्रीरामकृष्ण - केशव के दल का एक लड़का - वह चार परीक्षाएँ पास कर चुका थासब को मेरे साथ तर्क करते हुए देखकर बस मुस्कराता था और कहता था, इनसे भी तर्क ! मैंने केशव सेन के यहाँ एक बार और उसे देखा था, परन्तु तब उसका वह चेहरा न रह गया था।
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पणजी भारत के पश्चिमी प्रान्त गोवा की राजधानी है। यह मांडोवी नदी के मुहाने के तट पर, उत्तरी गोवा के जिले में निहित है। 114,405 महानगर की आबादी के साथ पणजी वास्कोडिगामा और मडगांव के बाद गोवा का सबसे बड़ तीसरा शहर है। पणजी का मतलब है, पणजी "कि बाढ़ कभी नहीं" भूमि है। पणजी, गोवा की राजधानी और उत्तरी गोवा जिला, मांडोवी नदी के बाएं किनारे पर एक छोटे और आकर्षक शहर के मुख्यालय, लैटिन शैली में निर्मित लाल की छत वाले मकान के साथ भी आधुनिक घरों, अच्छी तरह से रखी उद्यान, मूर्तियों और रास्ते लाइन में खड़ा है गुलमोहर, Acassia और अन्य पेड़ के साथ। पणजी गोवा और लाल- छत वाले घरों लाटिन शैली में निर्मित के साथ उत्तर गोवा जिला, इस मांडोवी नदी के बाएं किनारे पर एक छोटे और खूबसूरत शहर है, के मुख्यालय की राजधानी में भी आधुनिक मकानों, सुसंगठित उद्यान, मूर्तियों और अवसर पंक्तिवाला है गुलमोहर, Acassia और अन्य के पेड़ के साथ। मुख्य चौराहे, वास्तुकला, सुंदर विला, cobbled सड़कों और दिलचस्प इमारतों पर चर्च पणजी एक पुर्तगाली माहौल दे। मुख्य चौराहे पर चर्च के बरोक वास्तुकला, सुंदर विला और सड़कों cobbled दिलचस्प इमारतों पणजी एक पुर्तगाली माहौल दे। सीढ़ीदार पहाड़ियों, सनकी बालकनियों और लाल टाइल छतों, प्रक्षालित साफ चर्चों और एक नदी के किनारे सैर के साथ कंक्रीट की इमारतों की गड़बड़ी के खिलाफ ढेर - शहर मांडोवी नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह शहर मांडोवी नदी के बाईं बैंक के साथ झूठ - सीढ़ीदार पहाड़ियों, सनकी बालकनियों और लाल टाइलों छत, प्रक्षालित साफ चर्चों और एक रिवरसैद सैर के साथ कंक्रीट इमारतों की एक गड़बड़ी के खिलाफ उठ नुकीला। .
43 संबंधोंः चौदहवीं लोकसभा, तिस्वाड़ी, थिविम रेलवे स्टेशन, दाराशा नौशेरवां वाडिया, प्रणामसागर, पॅन्हा दि फ़्रांका, गोवा, पोण्डा, पोरवोरिम, फ़ार्मागुड़ी, बम्बोलिम, बागा नदिका, बिचोलिम, भारत, भारत में स्मार्ट नगर, भारत का भूगोल, भारत के प्रवेशद्वार, भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - संख्या अनुसार, भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश, भारत के राज्यों और संघ क्षेत्रों की राजधानियाँ, भारत के शहरों की सूची, भारत के हवाई अड्डे, भारत के उच्च न्यायालयों की सूची, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष, म्हापसा, मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान, यूसुफ़ शेख, राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल, राष्ट्रीय राजमार्ग १७, राष्ट्रीय राजमार्ग ४ए, राजभवन (गोआ), लक्ष्मीकांत पारसेकर, शिमगो, सालगाँव, वास्को द गामा, गोवा, विधान सभा, गोवा, गोआ वेल्हा, आधिकारिक आवास, आगसईम, अरम्बोल, अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, उत्तर गोवा जिला।
भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .
तिस्वाड़ी, भारत के राज्य गोवा के उत्तर गोवा जिले का एक तालुक है। तिस्वाड़ी शब्द दो शब्दों तीस और बाड़ी से मिलकर बना है जिसका अर्थ है तीस बस्तियां। तिस्वाड़ी नाम, गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की उन तीस बस्तियों की द्योतक है जिनको उत्तर भारत के मगध क्षेत्र से प्रवासित ब्राह्मणों ने यहाँ बसाया था। भौगोलिक रूप से यह एक द्वीप है और इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण मांडवी नदी द्वारा होता है। दिवार और चोराव नामक द्वीप, तिस्वाड़ी तालुक का हिस्सा हैं और गोवा की राजधानी पणजी द्वीप की मुख्य भूमि पर स्थित है। तिस्वाड़ी में ही पुराने गोवा की स्थापना की गयी थी। बॉम जीसस बेसिलिका नामक शानदार गिरजाघर यहीं पर स्थित है। .
थिविम रेलवे स्टेशन उत्तरी गोवा के थिविम का एक मुख्य रेलवे स्टेशन में से एक है। यह उत्तर दक्षिण लाइन का हिस्सा है और लगभग प्रत्येक ट्रेन इस स्टेशन से होकर गुजरती है। .
प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया (Darashaw Nosherwan Wadia FRS; 25 अक्तूबर 1883 - 15 जून 1969) भारत के अग्रगण्य भूवैज्ञानिक थे। वे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में कार्य करने वाले पहले कुछ वैज्ञानिकों में शामिल थे। वे हिमालय की स्तरिकी पर विशेष कार्य के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होने भारत में भूवैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान स्थापित करने में सहायता की। उनकी स्मृति में 'हिमालयी भूविज्ञान संस्थान' का नाम बदलकर १९७६ में 'वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान' कर दिया गया। उनके द्वारा रचित १९१९ में पहली बार प्रकाशित 'भारत का भूविज्ञान' (Geology of India) अब भी प्रयोग में बना हुआ है। .
मुनि श्री 108 Pranamsagar जी महाराज एक Digambara भिक्षुहै। .
पॅन्हा दि फ़्रांका (पुर्तगालीः Penha de França) भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले के बार्देज में स्थित एक कस्बा है। यह गोवा की राजधानी पणजी के उत्तर में स्थित है। इस कस्बे का नाम यहाँ के गिरिजाघर की संरक्षिका, नोसा सॅनोरा दा पॅन्हा दि फ़्रांका (Nossa Senhora da Penha de França) के नाम पर पड़ा है और जो लिस्बन में इसी नाम के स्थान से अपना नाम साझा करता है। यह कस्बा लेखिका विमला देवी का जन्मस्थान है। .
पोण्डा (कोंकणीः फोणे), भारतीय राज्य गोवा के उत्तर गोवा जिले का एक नगर और नगर परिषद है। पोण्डा तालुक का मुख्यालय यह नगर गोवा के मध्य भाग में स्थित है और गोवा की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है। यह गोवा की राजधानी पणजी के दक्षिण पूर्व में 29 किमी की दूरी पर और गोवा की आर्थिक राजधानी मडगांव के पूर्वोत्तर में 18 किमी की दूरी पर स्थित है। पोंडा गोवा में उद्योगों का मुख्य केन्द्र है और यहां कई बड़े कारखाने और उद्योग-धंधे स्थित हैं। लगभग 20,000 की जनसंख्या वाला यह शहर गोवा का सबसे तेजी से विकसित होता शहर है। गोवा का सबसे प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेज गोवा इंजीनियरिंग कॉलेज पास के फरमागुडी में स्थित है। .
पोरवोरिम (कोंकणीः पर्वरी) भारत के गोवा राज्य की वैधानिक राजधानी है। यह माण्डवी नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। राज्य की प्रशासनिक राजधानी पणजी नदी के दूसरे तट पर स्थित है। पोरवोरिम को पणजी का उपनगर माना जाता है, और यह मुम्बई-गोआ महामार्ग ऍन०ऍच-17 पर स्थित होने के कारण एक सम्भ्रन्त-वर्गीय आवासीय केन्द्र माना जाता है। पोरवोरिम, गोवा की राजधानी पणजी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आधिकारिक रूप से यह एक गाँव है, लेकिन जिस प्रकार की सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं वह किसी कस्बे या छोटे नगर से कम नहीं हैं। पोरवोरिम में बहुत से आवासीय परिसर स्थित हैं जैसे.
फ़ार्मागुड़ी भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले में स्थित एक कस्बा है। यह पौण्डा तालुक में स्थित है। यह पणजी की ओर जाने वाले मार्ग मुख्य पौण्डा नगर से 3 किमी दूर एक पठार पर स्थित है। यहाँ के कुछ प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं (जीवीऍम का) उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जीवीऍम का वाणिज्य व अर्थशास्त्र महाविद्यालय, पौण्डा शिक्षा संघ का उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और गोवा अभियान्त्रिकी महाविद्यालय। प्रसिद्ध गोपाल गणपती मन्दिर और शिवाजी का किला भी पणजी जाने वाले मार्ग पर स्थित हैं। श्रेणीःगोवा के नगर, कस्बे, और ग्राम.
बम्बोलिम भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले के तिसवाडी तालुक में स्थित एक जनगणना कस्बा है। गोवा मैडिकल कॉलॅज जो गोवा में एकमात्र ऐलोपैथिक चिकित्सा कालेज है, इसी कस्बे में स्थित है। राज्य की राजधानी पणजी से बम्बोलिन की दूरी लगभग 7 किमी है। बम्बोलिम अपने निर्जन समुद्र-तट के लिए उत्तर गोवा में प्रसिद्ध है। .
निचले ज्वार के दौरान ज्वारनदीमुख बागा नदिका भारत के गोवा राज्य में एक ज्वारनदीमुख (ऍस्चुएरी) है जो बागा कस्बे के निकट निर्देशांकों पर स्थित है। यह नदिका बागा तट के उत्तरी कोने पर अरब सागर में मिलती है। बागा नदिका के मुहाने के निकट से पणजी और कालनगूट के लिए बसें चलती हैं। .
गोवा में बिचोलिम की अवस्थिति (नारंगी रंग से दर्शाया गया है) बिचोलिम, (कोंकणीः दिवचल, मराठीः डिचोली), भारतीय राज्य गोवा के जिले उत्तर गोवा, का एक शहर और नगर परिषद है। यह बिचोलिम तालुका का मुख्यालय भी है। यह गोवा के पूर्वोत्तर में स्थित है और यह पुर्तगाल की नोवास कोंक्विस्टास (नई विजय) का हिस्सा था। बिचोलिम, गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गोवा में यह खनन का गढ़ है। .
भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायोंः हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
भारत में स्मार्ट नगर की कल्पना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की है जिन्होंने देश के १०० नगरों को स्मार्ट नगरों के रूप में विकसित करने का संकल्प किया है। सरकार ने २७ अगस्त २०१५ को ९८ प्रस्तावित स्मार्ट नगरों की सूची जारी कर दी। .
भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने ३२,८७,२६३ वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग १.३ अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। भारत की भौगोलिक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है। प्राकृतिक विविधता ने यहाँ की नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साथ मिलकर इसे आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विविधता प्रदान की है। इन सबके बावजूद यहाँ की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करती है। हिमालय द्वारा उत्तर में सुरक्षित और लगभग ७ हज़ार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साथ हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थित भारत का भू-राजनैतिक महत्व भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। .
प्रवेशद्वारःभारत के सभि राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश १. प्रवेशद्वारःअरुणाचल प्रदेश (इटानगर) २. प्रवेशद्वारःअसम (दिसपुर) ३. प्रवेशद्वारःउत्तर प्रदेश (लखनऊ) ४. प्रवेशद्वारःउत्तरांचल (देहरादून) ५. प्रवेशद्वारःउड़ीसा (भुवनेश्वर) ६. प्रवेशद्वारःअंडमान और निकोबार द्वीप* (पोर्टब्लेयर) ७. प्रवेशद्वारःआंध्र प्रदेश (हैदराबाद) ८. प्रवेशद्वारःकर्नाटक (बंगलोर) ९. प्रवेशद्वारःकेरल (तिरुवनंतपुरम) १०.
भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची (संख्या के क्रम में) भारत के राजमार्गो की एक सूची है। .
भारत राज्यों का एक संघ है। इसमें उन्तीस राज्य और सात केन्द्र शासित प्रदेश हैं। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बांटे गए हैं।.
यह सूची भारत के राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की राजधानियों की है। भारत में कुल 29 राज्य और 7 केन्द्र-शासित प्रदेश हैं। सभी राज्यों और दो केन्द्र-शासित प्रदेशों, दिल्ली और पौण्डिचेरी, में चुनी हुई सरकारें और विधानसभाएँ होती हैं, जो वॅस्टमिन्स्टर प्रतिमान पर आधारित हैं। अन्य पाँच केन्द्र-शासित प्रदेशों पर देश की केन्द्र सरकार का शासन होता है। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत राज्यों का निर्माण भाषाई आधार पर किया गया था, और तबसे यह व्यवस्था लगभग अपरिवर्तित रही है। प्रत्येक राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेश प्रशासनिक इकाईयों में बँटा होता है। नीचे दी गई सूची में राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की विभिन्न प्रकार की राजधानियाँ सूचीबद्ध हैं। प्रशासनिक राजधानी वह होती है जहाँ कार्यकारी सरकार के कार्यालय स्थित होते हैं, वैधानिक राजधानी वह है जहाँ से राज्य विधानसभा संचालित होती है, और न्यायपालिका राजधानी वह है जहाँ उस राज्य या राज्यक्षेत्र का उच्च न्यायालय स्थित होता है। .
कोई विवरण नहीं।
यह सूची भारत के हवाई यातायात है। .
भारतीय उच्च न्यायालय भारत के उच्च न्यायालय हैं। भारत में कुल २४ उच्च न्यायालय है जिनका अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं। उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१४, अध्याय ५ भाग ६ के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं। न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं .
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। इसकी स्थापना १ अप्रैल सन १९३५ को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ऐक्ट १९३४ के अनुसार हुई। बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई हैं, उनके द्वारा प्रदान किये गए दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धांत के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक बनाई गई थी। बैंक कि कार्यपद्धती या काम करने शैली और उसका दृष्टिकोण बाबासाहेब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने रखा था, जब 1926 में ये कमीशन भारत में रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फिनांस के नाम से आया था तब इसके सभी सदस्यों ने बाबासाहेब ने लिखे हुए ग्रंथ दी प्राब्लम ऑफ दी रुपी - इट्स ओरीजन एंड इट्स सोल्यूशन (रुपया की समस्या - इसके मूल और इसके समाधान) की जोरदार वकालात की, उसकी पृष्टि की। ब्रिटिशों की वैधानिक सभा (लेसिजलेटिव असेम्बली) ने इसे कानून का स्वरूप देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया गया। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन १९३७ में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन १९४९ से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है। उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने ४ सितम्बर २०१६ को पदभार ग्रहण किया। पूरे भारत में रिज़र्व बैंक के कुल 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांश राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं। मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने ३१ मार्च २०१४ तक सन् २००५ से पूर्व जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया है। .
3 मई 2013 (शुक्रवार) को भारतीय सिनेमा पूरे सौ साल का हो गया। किसी भी देश में बनने वाली फिल्में वहां के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाज का दर्पण होती हैं। भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास में हम भारतीय समाज के विभिन्न चरणों का अक्स देख सकते हैं।उल्लेखनीय है कि इसी तिथि को भारत की पहली फीचर फ़िल्म "राजा हरिश्चंद्र" का रुपहले परदे पर पदार्पण हुआ था। इस फ़िल्म के निर्माता भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके थे। एक सौ वर्षों की लम्बी यात्रा में हिन्दी सिनेमा ने न केवल बेशुमार कला प्रतिभाएं दीं बल्कि भारतीय समाज और चरित्र को गढ़ने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। .
म्हापसा भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले में स्थित एक कस्बा है। यह राज्य की राजधानी पणजी से 13 किमी उत्तर में स्थित है। यह कस्बा बार्देज तालुक का मुख्यालय है। यह मुम्बई को कोचीन से जोड़ने वाले महामार्ग ऍनऍच-17 पर स्थित है। .
मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक के साथ पूर्वी सीमा पर संगेम तालुक, गोवा में दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट में स्थित १०७ वर्ग किलोमीटर का एक राष्ट्रीय उद्यान है। यह क्षेत्र मोलेम शहर के पास स्थित है और गोवा राज्य की राजधानी पणजी के पूर्व ५७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भगवान महावीर अभयारण्य के साथ मिलकर इसका क्षेत्रफल २४० वर्ग किलोमीटर बन जाता है। श्रेणीःभारत के अभयारण्य श्रेणीःराष्ट्रीय उद्यान, भारत श्रेणीःभारत के राष्ट्रीय उद्यान.
यूसुफ़ शेख (1948-2017) एक प्रसिद्ध कोंकणी साहित्यकार थे। वे इस भाषा में अपनी काव्य रचनाओं के लिए जाने जाते हैं। .
राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर), भोपाल स्थित एक शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान है। एनआईटीटीटीआर मुख्य रूप से मांग आधारित गुणवत्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से सक्षम मानव संसाधन के विकास, शोध अध्ययन, अधिगम संसाधन का विकास, तकनीकी संस्थाओं, उद्योग एवं कम्युनिटी के लिए मांग आधारित पाठ्यक्रम के विकास के लिए जिम्मेदार है। यह संस्थान इन तकनीकी संस्थाओं के शिक्षकों और स्टॉफ के सदस्यों के उत्थान के लिए एवं तकनीकी शिक्षकों को मजबूती प्रदान करने के लिए निरन्तर कार्यरत है। इस प्रकार एन.आई.टी.टी.टी.आर.
१२६९ किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग मुंबई को एरनाकुलम से जोड़ता है। इसका रूट पानवेल - महद - खेड - चिपलुन - संगमेश्वर - सावंतवाडी - पणजी - करवर - मैंगलोर - कन्नूर - कोज़ीकोड - फेरोख - कुतीपुरम - पुडु - पोनानी - चौघाट - कन्नूर - इदपल्ली (राष्ट्रीय राजमार्ग 47 के पास) है। ्यह मुख्यतः अरब सागर के समानांतर चलता है। श्रेणीःभारत के राष्ट्रीय राजमार्ग.
१५३ किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग कर्नाटक में बेलगाम से निकलकर गोआ की राजधानी पणजी तक जाता है। इसका रूट बेलगाम - अनमोड़ - पोंडा - पणजी है। श्रेणीःभारत के राष्ट्रीय राजमार्ग.
राजभवन (गोआ)
राजभवन (गोआ) भारत के गोवा राज्य के राज्यपाल का अधिकारिक आवास है। यह राज्य की राजधानी पणजी में स्थित है। भारत वीर वांचू गोवा के वर्तमान राज्यपाल हैं और उन्होंने ५ मई २०१२ को राज्यपाल का पद ग्रहण किया था। .
लक्ष्मीकांत यशवंत पारसेकर (जन्म 4 जुलाई 1956) गोवा के एक राजनेता हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य है। वे गोवा के मुख्यमंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री रह चुके है। .
गोवा के निवासी होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। वे इस अवसर पर वसंत का स्वागत करने के लिए रंग खेलते हैं। इसके बाद भोजन में तीखी मुर्ग या मटन की करी खाते हैं जिसे शगोटी कहा जाता है। मिठाई भी खाई जाती है। गोआ में शिमगोत्सव की सबसे अनूठी बात पंजिम का वह विशालकाय जलूस है जो होली के दिन निकाला जाता है। यह जलूस अपने गंतव्य पर पहुँचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में परिवर्तित हो जाता है। इस कार्यक्रम में नाटक और संगीत होते हैं जिनका विषय साहित्यिक, सांस्कृतिक और पौराणिक होता है। हर जाति और धर्म के लोग इस कार्यक्रम में उत्साह के साथ भाग लेते हैं। .
सालगाँव भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले में स्थित एक जनगणना नगर है। यह पोरवोरिम, पारा, गुइरिम, सांगोल्दा, पिलर्न, कण्डोलिम, कालनगूट और नागोआ गाँवों से घिरा हुआ है और गोवा के बार्देज तालुक में स्थित है। यह राजधानी पणजी से 10 किमी, मापूसा से 6 किमी, और कालनगूट समुद्र-तट से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। .
वास्को द गामा या वास्को दा गामा (कोंकणीः वास्को); संक्षेप में बहुधा केवल वास्को), भारत के पश्चिमी तट पर स्थित देश के सबसे छोटे राज्य गोवा का सबसे बड़ा नगर है। इसका नाम पुर्तगाली अन्वेषक वास्को द गामा के नाम पर रखा गया है। जनसंख्या अनुसार वास्को, गोवा का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर है और यह अनुमानितः 1,00,000 से अधिक है। यह मुरगांव तालुक का मुख्यालय भी है। यह नगर मुरगांव प्रायद्वीप के पश्चिमी छोर पर और जुवारी नदी के मुहाने पर स्थित है। गोवा की राजधानी पणजी से यह 30 किलोमीटर और, डाबोलिम हवाई अड्डे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस नगर की स्थापना 1543 में की गई थी और 1961 तक यह पुर्तगाली साम्राज्य का भाग बना रहा, जब इसे भारत ने अपने अधिकार में ले लिया था। भारतीय नौसेना का गोवा नौसेना क्षेत्र (अड्डा) वास्को में स्थित है जहां से यह डाबोलिम हवाई अड्डे पर नियन्त्रण रखते हैं। अतीत में वास्को द गामा का नाम बदल कर सम्भाजी नगर करने के कुछ असफल प्रयास भी किये गये हैं। .
विधान सभा या वैधानिक सभा जिसे भारत के विभिन्न राज्यों में निचला सदन(द्विसदनीय राज्यों में) या सोल हाउस (एक सदनीय राज्यों में) भी कहा जाता है। दिल्ली व पुडुचेरी नामक दो केंद्र शासित राज्यों में भी इसी नाम का प्रयोग निचले सदन के लिए किया जाता है। 7 द्विसदनीय राज्यों में ऊपरी सदन को विधान परिषद कहा जाता है। विधान सभा के सदस्य राज्यों के लोगों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होते हैं क्योंकि उन्हें किसी एक राज्य के 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के नागरिकों द्वारा सीधे तौर पर चुना जाता है। इसके अधिकतम आकार को भारत के संविधान के द्वारा निर्धारित किया गया है जिसमें 500 से अधिक व् 60 से कम सदस्य नहीं हो सकते। हालाँकि विधान सभा का आकार 60 सदस्यों से कम हो सकता है संसद के एक अधिनियम के द्वाराः जैसे गोवा, सिक्किम, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी। कुछ राज्यों में राज्यपाल 1 सदस्य को अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त कर सकता है, उदा० ऐंग्लो इंडियन समुदाय अगर उसे लगता है कि सदन में अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। राज्यपाल के द्वारा चुने गए या नियुक्त को विधान सभा सदस्य या MLA कहा जाता है। प्रत्येक विधान सभा का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है जिसके बाद पुनः चुनाव होता है। आपातकाल के दौरान, इसके सत्र को बढ़ाया जा सकता है या इसे भंग किया जा सकता है। विधान सभा का एक सत्र वैसे तो पाँच वर्षों का होता है पर लेकिन मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्यपाल द्वारा इसे पाँच साल से पहले भी भंग किया जा सकता है। विधानसभा का सत्र आपातकाल के दौरान बढ़ाया जा सकता है लेकिन एक समय में केवल छः महीनों के लिए। विधान सभा को बहुमत प्राप्त या गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर भी भंग किया जा सकता है। .
right गोवा या गोआ (कोंकणीः गोंय), क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से चौथा सबसे छोटा राज्य है। पूरी दुनिया में गोवा अपने खूबसूरत समुंदर के किनारों और मशहूर स्थापत्य के लिये जाना जाता है। गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया और दिसंबर 1961 में यह भारतीय प्रशासन को सौंपा गया। .
गोवा वेल्हा (पुर्तगाली भाषा में "वेल्हा" यानि पुराना), भारत के राज्य गोवा के उत्तर गोवा जिले का एक शहर है। .
सामान्य रूप में आधिकारिक आवास किसी अधिकार या पद के साथ मिलनेवाले आवास को कहते है। लेकिन सार्वभौमिक रूप से, किसी देश के राष्ट्रप्रमुख, शासनप्रमुख, राज्यपाल या अन्य वरिष्ठ पद के निवासस्थान को "आधिकारिक आवास" कहते है। निम्नलिखित दुनिया के आधिकारिक आवासों की सूची है। सूची का प्रारूप इस प्रकार है.
आगसईम (पुर्तगालीः Agaçaim उच्चारणः आगसईम) भारत के गोवा राज्य के इलहास में बहने वाली ज़ुआरी नदी के उत्तरी किनारे पर पसा एक गाँव है। यह उत्तर में पणजी, दक्षिण में मडगाँव, पश्चिम में वास्को द गामा और पूर्व में पौण्डा से घिरा हुआ है और इस कारण से यह उत्तर और दक्षिण गोवा को ज़ुआरी सेतु द्वारा जोड़ने वाला एक मुख्य मार्ग है। आगसईम गोवा के चोरिसो (एक प्रकार का पुडिंग) के लिए प्रसिद्ध है। .
अरम्बोल तट जिसे हरमल नाम से भी जाना जाता है, भारत के गोवा राज्य में स्थित एक पारम्परिक रूप से मछुआरों का एक गाँव है जो डाबोलिम हवाईअड्डे से एक घण्टे की वाहनीय दूरी पर है। यह उत्तरी गोवा के परनेम प्रशासनिक क्षेत्र में स्थित है। गोवा की राजधानी पणजी से इसकी दूरी लगभग 55 किलोमीटर है। इस तट पर बहुत से अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आना-जाना है, विशेषकर नवम्बर से मार्च के महीनों के दौरान। अरम्बोल तट पर एक विशिष्ट बोहिमियाई अनुभूति प्राप्त होती है जो अन्य क्षेत्रों, जैसे कालनगूट, में नहीं मिलती और इस कारण से यह अपरिहार्य रूप से बहुत से वैकल्पिक पर्यटकों को आकर्षित करता है। अरम्बोल के समुद्र-तट को गोवा के सबसे सुन्दर समुद्र-तटों में से एक माना जाता है, जिनमें अन्य प्रसिद्ध स्थल है वागाटोर, अंजुना और पालोलम। इसके उत्तर में केरी तट और दक्षिण में मन्दरेम तट हैं। .
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन मराठी भाषा के लेखकों का वार्षिक साहित्यिक सम्मेलन है।प्रथम मराठी साहित्य सम्मेलन १८७८ ई में पुणे में हुआ था जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानडे ने की थी। .
उत्तर गोवा और इसके तालुकाओं (तहसीलों) को बैंगनी वर्णों से दर्शाया गया है उत्तर गोवा जिला, भारतीय राज्य गोवा के दो जिलों में से एक है। जिले का क्षेत्रफल 1736 किमी² है और यह उत्तर और पूर्व में क्रमशः महाराष्ट्र के जिलों सिंधुदुर्ग और कोल्हापुर से, दक्षिण में दक्षिण गोवा जिला और पश्चिम में अरब सागर से घिरा है। .
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निर्बाध रूप से कई तरीके हैं।धातु तत्वों के कनेक्शन, लेकिन सभी विशेष स्थानों में संधारित्र वेल्डिंग द्वारा कब्जा कर लिया जाता है। पिछले शताब्दी के 30 के दशक से प्रौद्योगिकी लोकप्रिय हो गई है। वांछित जगह पर विद्युत प्रवाह की आपूर्ति करके डॉकिंग किया जाता है। एक शॉर्ट सर्किट बनाया जाता है जो धातु को पिघला देता है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि संधारित्र वेल्डिंग कर सकते हैंन केवल औद्योगिक परिस्थितियों में, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें एक छोटे आकार के उपकरण का उपयोग शामिल है जिसमें निरंतर वोल्टेज का प्रभार होता है। ऐसा उपकरण आसानी से काम करने वाले क्षेत्र के चारों ओर स्थानांतरित कर सकता है।
प्रौद्योगिकी के फायदों में से ध्यान दिया जाना चाहिएः
- उच्च प्रदर्शन;
- इस्तेमाल किए गए उपकरणों की स्थायित्व;
- विभिन्न धातुओं को जोड़ने की क्षमता;
- कम गर्मी पीढ़ी;
- अतिरिक्त उपभोग्य सामग्रियों की कमी;
- कनेक्शन तत्वों की सटीकता।
हालांकि, आवेदन करने के लिए स्थितियां हैंभागों को जोड़ने के लिए संधारित्र वेल्डिंग मशीन संभव नहीं है। यह मुख्य रूप से प्रक्रिया की शक्ति की छोटी अवधि और संयुक्त तत्वों के पार अनुभाग पर प्रतिबंध के कारण होता है। इसके अलावा, आवेग भार नेटवर्क के साथ हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
रिक्त स्थान में शामिल होने की प्रक्रिया का तात्पर्य हैवेल्डिंग से संपर्क करें, जिसके कार्यान्वयन के लिए विशेष कैपेसिटर्स में ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा का उपभोग होता है। इसकी रिलीज लगभग तुरंत होती है (1 - 3 एमएस के भीतर), जिसके कारण गर्मी से प्रभावित क्षेत्र कम हो जाता है।
कंडेनसर को चलाने के लिए यह सुविधाजनक हैDIY वेल्डिंग, क्योंकि प्रक्रिया आर्थिक है। प्रयुक्त डिवाइस को सामान्य विद्युत नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है। उद्योग में उपयोग के लिए विशेष उच्च शक्ति उपकरण हैं।
तकनीक ने कार्यशालाओं में विशेष लोकप्रियता प्राप्त की,वाहन निकायों की मरम्मत के लिए इरादा है। काम के दौरान, धातु की पतली चादरें जला और विकृत नहीं होती हैं। अतिरिक्त सीधीकरण की आवश्यकता समाप्त हो गई है।
एक उच्च गुणवत्ता वाले स्तर पर संधारित्र वेल्डिंग करने के लिए, कुछ स्थितियों का पालन किया जाना चाहिए।
- संसाधित पर संपर्क तत्वों का दबावआवेग के पल में विवरण विश्वसनीय कनेक्शन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। इलेक्ट्रोड को अनवरोधित करना एक छोटी देरी के साथ किया जाना चाहिए, जिससे धातु के हिस्सों के क्रिस्टलाइजेशन का बेहतर तरीका प्राप्त हो सके।
- जुड़े हुए रिक्त स्थान की सतह होना चाहिएअशुद्धता से साफ किया जाता है ताकि ऑक्साइड और जंग की फिल्मों को सीधे भाग पर विद्युत प्रवाह के संपर्क में आने पर बहुत अधिक प्रतिरोध न हो। विदेशी कणों की उपस्थिति में, प्रौद्योगिकी की दक्षता में काफी कमी आई है।
- कॉपर रॉड इलेक्ट्रोड के रूप में आवश्यक हैं। संपर्क क्षेत्र में एक बिंदु का व्यास वेल्डेड होने के लिए तत्व की मोटाई 2-3 गुना से कम नहीं होना चाहिए।
वर्कपीस पर प्रभाव के लिए तीन विकल्प हैंः
- कैपेसिटर स्पॉट वेल्डिंग मुख्य रूप से एक अलग मोटाई अनुपात के साथ भागों को जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरण इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
- रोलर वेल्डिंग एक ठोस वेल्ड के रूप में बने बिंदु जोड़ों की एक निश्चित संख्या है। इलेक्ट्रोड घूर्णन कॉइल्स जैसा दिखता है।
- प्रभाव कंडेनसर वेल्डिंग आपको बनाने की अनुमति देता हैएक छोटे से अनुभाग के साथ तत्वों के बट जोड़ों। रिक्त स्थान की टक्कर से पहले, एक चाप निर्वहन रूप, सिरों को पिघलने से पहले। भागों वेल्डिंग के संपर्क के बाद किया जाता है।
लागू होने के वर्गीकरण के लिएउपकरण, एक ट्रांसफॉर्मर की उपस्थिति से प्रौद्योगिकी को विभाजित करना संभव है। इसकी अनुपस्थिति में, मुख्य उपकरण का डिज़ाइन सरलीकृत होता है, और प्रत्यक्ष संपर्क के क्षेत्र में गर्मी का मुख्य द्रव्यमान जारी किया जाता है। ट्रांसफॉर्मर वेल्डिंग का मुख्य लाभ ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा प्रदान करने की क्षमता है।
0.5 मिमी या उससे कम तक पतली शीट में शामिल होने के लिएभागों, आप रहने की स्थितियों में बने एक साधारण डिजाइन का उपयोग कर सकते हैं। इसमें, नाड़ी एक ट्रांसफार्मर के माध्यम से खिलाया जाता है। द्वितीयक घुमाव के सिरों में से एक मुख्य भाग की सरणी, और दूसरा इलेक्ट्रोड के लिए आपूर्ति की जाती है।
ऐसे डिवाइस के निर्माण में हो सकता हैउस योजना को लागू करें जिसमें प्राथमिक घुमाव विद्युत नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। इसके सिरों में से एक डायोड पुल के रूप में कनवर्टर के विकर्ण के माध्यम से उत्पादन होता है। दूसरी ओर, सिग्नल सीधे थाइरिस्टर से आपूर्ति की जाती है, जो स्टार्ट बटन के नियंत्रण में है।
इस मामले में आवेग द्वारा उत्पादित किया जाता हैएक संधारित्र जिसमें 1000-2000 यूएफ की क्षमता है। एक ट्रांसफार्मर के निर्माण के लिए 70 मिमी की मोटाई होने के साथ कोर डब्ल्यू -40 लिया जा सकता है। तीन सौ मोड़ों की प्राथमिक घुमावदार तार के साथ 0.8 मिमी के क्रॉस सेक्शन के साथ तार से बनाना आसान है। नाम KU200 या PTL-50 के साथ एक थाइरिस्टर नियंत्रण के लिए उपयुक्त है। दस मोड़ों की उपस्थिति के साथ द्वितीयक घुमाव तांबा बस से बना जा सकता है।
बिजली बढ़ाने के लिए होगानिर्मित डिवाइस के डिजाइन को बदलें। सही दृष्टिकोण के साथ, इसका उपयोग 5 मिमी तक के क्रॉस सेक्शन के साथ तारों को जोड़ने के साथ-साथ 1 मिमी से अधिक की मोटाई वाली पतली चादरों के साथ भी किया जा सकता है। सिग्नल को नियंत्रित करने के लिए, एमटीटी 4 के अंकन के साथ एक संपर्क रहित स्टार्टर, 80 ए के विद्युत प्रवाह के लिए डिज़ाइन किया गया है।
आम तौर पर, समानांतर, डायोड और एक प्रतिरोधी में जुड़े thyristors नियंत्रण इकाई में शामिल हैं। ऑपरेशन का अंतराल इनपुट ट्रांसफॉर्मर के मुख्य सर्किट में स्थित रिले का उपयोग करके कॉन्फ़िगर किया गया है।
ऊर्जा इलेक्ट्रोलाइटिक में गरम किया जाता हैएक समानांतर कनेक्शन के माध्यम से एक बैटरी में संयुक्त capacitors। तालिका में आप आवश्यक पैरामीटर और तत्वों की संख्या देख सकते हैं।
मुख्य ट्रांसफॉर्मर घुमाव तार के बने 1.5 मिमी के पार अनुभाग के साथ होता है, और माध्यमिक - एक तांबा बस से।
स्वयं निर्मित उपकरण का काम होता हैआरेख के बाद। जब स्टार्ट बटन दबाया जाता है, तो स्थापित रिले ट्रिगर होता है, जो, थाइरिस्टर संपर्कों का उपयोग करके, वेल्डिंग इकाई के ट्रांसफार्मर को चालू करता है। कैपेसिटर के निर्वहन के तुरंत बाद डिस्कनेक्शन होता है। आवेग प्रतिक्रिया एक परिवर्तनीय प्रतिरोधी के माध्यम से सेट है।
संधारित्र के लिए निर्मित डिवाइसवेल्डिंग में एक सुविधाजनक वेल्डिंग मॉड्यूल होना चाहिए जो इलेक्ट्रोड को स्वतंत्र रूप से ठीक करने और स्थानांतरित करने की क्षमता प्रदान करता है। सबसे सरल डिजाइन में संपर्क तत्वों के मैन्युअल प्रतिधारण शामिल हैं। एक अधिक जटिल संस्करण में, निचला इलेक्ट्रोड स्थिर स्थिति में तय किया जाता है।
इसके लिए, उपयुक्त आधार पर, यह तय किया गया है10 से 20 मिमी की लंबाई और 8 मिमी से अधिक का एक पार खंड। संपर्क का ऊपरी भाग गोलाकार है। दूसरा इलेक्ट्रोड साइट से जुड़ा हुआ है, जो स्थानांतरित करने में सक्षम है। किसी भी मामले में, समायोजन शिकंजा स्थापित किया जाना चाहिए, जिसके साथ अतिरिक्त दबाव बनाने के लिए अतिरिक्त दबाव लागू किया जाएगा।
चलती प्लेटफॉर्म से इलेक्ट्रोड के संपर्क में आधार को अलग करना जरूरी है।
अपने हाथों से कैपेसिटर स्पॉट वेल्डिंग करने से पहले, आपको बुनियादी चरणों से परिचित होना चाहिए।
- प्रारंभ में जुड़े तत्वठीक से तैयार उनकी सतह से, धूल, जंग, और अन्य पदार्थों के कणों के रूप में अशुद्धता हटा दी जाती है। विदेशी समावेशन की उपस्थिति उच्च गुणवत्ता वाले जुड़ने वाले रिक्त स्थान प्राप्त करने की अनुमति नहीं देगी।
- विवरण वांछित स्थिति में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। वे दो इलेक्ट्रोड के बीच स्थित होना चाहिए। निचोड़ने के बाद, प्रारंभ बटन दबाकर संपर्क तत्वों पर एक नाड़ी लगाई जाती है।
- जब वर्कपीस पर विद्युत प्रभावरुक जाएगा, इलेक्ट्रोड अलग हो जाया जा सकता है। तैयार भाग हटा दिया गया है। यदि आवश्यक हो, तो यह एक अलग बिंदु पर स्थापित है। अंतराल आकार सीधे वेल्डेड तत्व की मोटाई से प्रभावित होता है।
विशेष उपकरण का उपयोग करके काम किया जा सकता है। इस तरह की किट में आमतौर पर शामिल हैंः
- नाड़ी बनाने के लिए उपकरण;
- वेल्डिंग और क्लैम्पिंग फास्टनरों के लिए डिवाइस;
- रिटर्न केबल, दो क्लैंप से लैस;
- कोलेट सेट;
- उपयोग के लिए निर्देश;
- मुख्य से जुड़ने के लिए तार।
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जायेगा। और फिर माँ बंट गयी चार-चार महीने के लिए अपने तीनों बेटों पर । चार महीने बीतते ही माँ को घर से रवाना कर दिया जाता, उनकी हारी बीमारी को देखे बगैर और आखिर में वह दिन भी आ गया जब माँ सबके लिए बोझ बन गयी। अब चार महीने झेलना भी मुश्किल । निर्णय लिया गया बंगलौर के आश्रम में भेजने का । कोई पूछेगा तो कह सकेंगे- "उनका मन भगवद्-भक्ति में रम गया था सो गृहस्थ का मोह त्याग गयीं। कितना आसान तरीकेो....मुक्ति का उनकी और परिवार को.... दोनों की 13
लेकिन इससे पहले कि उन्हें वहाँ भेजा जाता, वे सब छोड़ वापिस अपने गाँव चली जाती हैं और बेटे माँ को लापता समझ थाने में रिपोर्ट डलवा देते हैं। यहीं कहानी का अंत हो जाता है ।
रेहन चढ़ा बुढ़ापा, ग्रामीण सुलभ भोलापन, श्रम और रिश्तों की गरिमा व शहरी स्वार्थपरता से लबरेज यह कहानी वर्तमान समाज का आईना है ।
२. बेटी
'बेटी' एक ऐसी बेटी की कहानी, जो हमारे भारतीय ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी हर बेटी की कहानी है। इसमें सदियों से चली आ रही बेटियों के प्रति भेदभावना को मैत्रेयी जी ने बड़े ही मार्मिक ढंग से दर्शाया है। बचपन से ही बेटियों के प्रति यह भावना कि वह तो पराये घर का दलिद्दर हैं और बेटे तो हमारे बुढ़ापे का सहारा हैं, को एक नन्हीं बच्ची मुन्नी के माध्यम से दर्शाया गया हैं।
कहानी का प्रारम्भ मुन्नी की अभिन्न सखी वसुधा के विचारों से होता हैं । वसुधा का बाल मन सदैव मुन्नी से ईर्ष्या करता कि वह स्वच्छन्द है, उसे पढ़ना नहीं पड़ता, स्कूल नहीं जाना पड़ता, टीचर्स की डाँट नहीं खानी पड़ती आदि । वह तो बस खेलती कूदती हैं, खेतों में काम करती है और कहीं भी कभी भी आ जा सकती है। लेकिन जैसे जैसे वसुधा बड़ी होती जाती है उसे मुन्नी के प्रति सहानुभूति बढ़ने लगती हैं। तब उसे अहसास होता है कि जिसे वह स्वच्छन्दता समझ रही थी, वह वास्तव में अमूल्य
12 वहि पृष्ठ - 15 'अपना-अपना आकाश - मैत्रेयी
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समय का क्षय था और जिसे बंधन, वह वास्तव में जीवन की सच्चाई। उसे वह सब याद आता है कि मुन्नी किस प्रकार अपनी अम्मा से जिद करती थी"अम्मा, तुम मेरे साथ जो कर रहीं हो, वह कुछ अच्छा नहीं कर रहीं । तुम मेरी पांच-पाचं लड़कों को पढ़ा सकती हों, लेकिन मेरे लिए तुम्हारे घर अकाल है. किताब-कापी के पैसे तुम्हें भारी हैं अम्मा ।"
उसकी माँ खींच कर कहती - "रोज एक ही बात की हठ करती है तू। हमने कह दिया न, नहीं पढ़ा सकते तुझे ।"
"क्यों नहीं अम्मा, मुझे क्यों नहीं ?"
"चुप होती है कि नहीं? बहुत जबान चल गयी है तेरी । तू लड़कों की बराबरी करती है। बेटे तो बुढ़ापे की लाठी है हमारी, हमें सहारा देंगे तू पराए घर का दलिद्दर। तेरी कमाई नहीं खानी हमें.....कह दिया, कान खोल कर सुन ले ।"
मुन्नी इसके आगे क्या कहती एक ही हाँक में चुप हो जाती । लेकिन वसुधा जानती थी कि मुन्नी बड़ी चतुर और बुद्धिमान लड़की थी यदि उसे पढ़ाया जाता तो वह अति प्रतिभाशाली छात्रा साबित होती अपने भाईयों के मुकाबले में। लेकिन उससे तो घर का सारा काम कराया जाता । मुँह अंधेरे भाइयों के लिए पराठें सेंकती, उन्हें स्कूल भेजती, कपड़े धोती, पिता के साथ खेत में काम करती और बासी कूसी रोटी खाकर सो जाती। लेकिन अपनी रूचि के चलते वह अनेक विद्याओं में पारंगत हो गयी। पाक कला, नृत्यकला, सिलाई कढ़ाई के हुनर के साथ वह रूपवती व गुणवती कन्या सरलता से ब्याह कर चली गयी । 14
धीरे-धीरे उस माँ के पाँच बेटे बड़े होकर, ब्याहकर अपनी अपनी गृहस्थी में ऐसे रमें कि माँ के कष्टों की अनुभूति पाँचों में से किसी को न हुई थी । बहुओं ने ऐसे तेवर दिखाये कि माँ को खाने तक के लाले पड़ने लगे । जिस माँ को मुन्नी के रहते कभी तवे में एक चिन्दी नहीं डालनी पड़ी, वह अब आँखों में मोतियाबिन्द लिए दिनभर चूल्हा फूंकती रहती और खाँसती रहती। माँ ने ना उम्मीदी से मुन्नी को खत डाला। उसी समय वसुधा भी अपने ससुराल से आयी थी, तभी मुन्नी भी अपनी बेटी को लेकर माँ के पास गाँव आयी थी। दोनों सखियाँ खुशी से प्रफुल्लित हो उठीं। तभी मुन्नी ने
कहानी - मैत्रेयी पुष्पा
बताया, कि माँ की चिट्ठी मिली, तो मैं अपने को रोक नहीं पायी और दौड़ी चली आयी, साथ अपनी बेटी को लायी हूँ, यही छोड़ जाऊँगी माँ की रोटी बनाने के लिए, और वह माँ के दुःख को बता रोने लगी । वसुधा उसे चुप कराने लगी और बोली, ठीक किया तूने लेकिन मूर्ख, यह उसके पढ़ने की उम्र है, यहाँ पढ़ेगी कैसे?"
मुन्नी ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा- "वसुधा तू भी तो यहीं रहकर पढ़ी थी, ऐसे ही वह भी पढ़ लेगी । 15
यही कहानी का अंत हो जाता है। मैत्रेयी जी ने कहानी के माध्यम से बतलाना चाहा है कि एक माँ के दर्द को जितना एक बेटी समझ सकती है उतना बेटे नहीं। फिर भी माँयें सदियों से बेटियों की उपेक्षा कर बेटों के लिए आंचल पसारती आयी हैं, जो बुढ़ापे में उन्हें फालतू की चीज समझ किनारा कर लेते हैं। बेटे सक्षम होने पर भी माँ को सहारा न दे सके, किन्तु बेटी अक्षम होने पर भी माँ का सहारा बनी- फिर चाहे वह बेटी की बेटी ही क्यों न हो। मैत्रेयी जी अपने उद्देश्य में सफल रही हैं ।
३. सहचर
'सहचर' एक ऐसे युवक की कहानी है जिसे बचपन से ही छोटे भाई की अपेक्षा उपेक्षा का शिकार होना पड़ा । जहाँ उसे पढ़ाई-लिखायी से वंचित कर खेतों में जोत दिया गया, वहाँ उसकी सरलता व सीधेपन को उसकी मूर्खता व पागलपन से जोड़ कर देखा जाता है। जब वह बंसी नाम का युवक बड़ा हुआ तो उसका विवाह एक योग्य, नृत्य में रूचि लेने वाली रूपवती कन्या छबीली से कर दिया गया। हालाकि शादी के पीछे दहेज का लोभ था किन्तु छबीली के रूप व गुन को देख बंसी व उनका छोटा भाई ठगे से रह गये । चूँकि छोटे भाई को शुरू से ही योग्य, पढ़ा-लिखा व बुद्धिमान माना जाता था, अतः वह भी भइया भाभी को अपने काबिल न समझ निरन्तर उनकी उपेक्षा कर अपनी पढ़ाई में मशगूल रहता, वहीं बंसी छबीली का प्यार पा विभोर सा रहता और समस्त गृहकार्य व खेतों की निराई-गुड़ाई - बुबाई-कटाई समस्त कार्य प्रसन्नता पूर्वक करते । घर आकर छबीली की एक मुस्कान पर ही समस्त थकावट भूल न्योछावर हो उससे हंसता बतियाता। उन्हें इस प्रकार देख अम्मा व दद्दा का कलेजा फ्रँक जाता व वे बंसी को हजार गाली देते । निक्कमा, मूर्ख, बौड़म, जोरू का
15 'बेटी' - मैत्रेयी पुष्पा - पृष्ठ - 23
गुलाम, पागल आदि वचन सुन भी बंसी अपने में मगन रहता। बंसी ने अपने जीवन में सिर्फ अपनी दादी माँ व छबीली से प्यार पाया था। वे दादी को खो चुके थे और अब छबीली को खोना नहीं चाहते थे। बंसी रात दिन बेचैन रहते और अम्मा दद्दा की हजार गाली सुनकर भी छबीली की देखभाल में कोताही न बरतते । घर में और किसी को छबीली की ऐसी हालत से कुछ लेना देना नहीं था । किन्तु भाई की ऐसी दशा देख व भाभी के अपने प्रति (छोटे भाई के प्रति) किये गये कार्यों को देख जब छोटे भाई ने अम्मा व ददा से बात की, तो वे उसे अस्पताल ले जाने को तैयार हुये। बंसी भईया चाहकर भी दद्दा की वजह से अस्पताल न जा सके। वहाँ पता चला छबीली को पाँव में गैंगरीन हो गया है और घाव बढ़ने के कारण पाँव काटना पड़ेगा। सुन छोटा भाई भी चौंक गया किन्तु दद्दा में कोई असर न हुआ और वे छबीली को निरर्थक जान उसे उसके चाचा के पास मायके भेज देते हैं। बंसी को जब यह बात पता चलती है तो वह बर्दास्त नहीं कर पाता चलती है और विक्षिप्तों जैसी बातें व हरकते करने लगता है। वह समस्त गृहकार्य त्याग अपने में ही खोया खोया रहने लगता है ।
छोटा भाई शहर इम्तहान देने जाता है जहाँ उसे अपने गाँव के मास्टर से बंसी भइया के दूसरे विवाह के बारे में पता चलता है। वह यह अनहोनी रोकने के लिये गाँव जाता है तो दद्दा उसे बरगला कर वापिस भेज देते हैं, किन्तु वह ऐन मौके पर उस गाँव पहुँच जाता है, जहाँ बंसी भइया की बारात पहुँची थी, लेकिन वहाँ दद्दा की हालत देखने लायक थी । बंसी भइया का कहीं पता न था । बहुत ढूढनें के बाद भी जब बंसी भइया न मिले तो दुल्हन के मुंह बोले डाकू भाई विक्रमसिंह के दबाव के चलते आखिरकार दद्दा को बंसी के छोटे भाई को दुल्हे के रूप में प्रस्तुत करना पड़ा। मन मारकर, न चाहते हुये भी उसे ताड़का स्वरूपिणी लड़की से विवाह करना पड़ा, जो उसके योग्य न थी। समय के साथ-साथ सब बंसी भइया को भूल गये और उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश भी न की गयी ।
बहुत दिनों बाद घर में बच्चा हुआ है। अम्मा व दद्दा प्रसन्न हैं। दद्दा कस्बे में बाजार करने गये थे कि उन्हें वहाँ बंसी भइया दिख गये। दद्दा को बहुत नफरत है उनसे, उसकी सूरत भी देखना नहीं चाहते थे। अतः उससे नहीं मिले। लेकिन उसके जाने के पश्चात् वे उस सुनार की दुकान पर गये, जहाँ बंसी खड़ा था। दुकानदार ने
बताया कि बंसी यह आरसी वाली अंगूठी (जो उसे उसकी दादी माँ ने बहू की खातिर दी थी) बेंच गया है "कह रऔ हतो कि वो छबीली को पाँव बनवाने पूना जा रऔ । 16
इसी के साथ कहानी का अंत हो जाता हैं। मैत्रीयी जी कहानी के माध्यम से बंसी की संवेदना को प्रकट करने में सफल रही हैं साथ ही उस वातावरण को भी प्रकट करने में सफलता पायी है जहाँ निस्वार्थता, सरलता, सीधेपन को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।
४. बहेलिये
यह एक ऐसी मां और दो बेटियों की कहानी है जिनके गाँव में चहुँ ओर शर- संधान हो रहे थे। हत्याओं के षड़यंत्र, आत्महत्याओं की बाध्यता - उन्मादी और उत्पीड़क यंत्रणायें। ऐसे माहौल में पली बढ़ी दोनो बेटियाँ बिना बाप के चाचा के घर आश्रित थीं। जहाँ चाचा ने अपने तीन लड़को व एक बेटी रूपा को खूब पढ़ाया लिखाया वहाँ अपनी दोनो भतीजियों को निरक्षर रखा और दोनों का विवाह अधबूढ़े, कमजोर और अयोग्य व्यक्यितों से कर दिया, जिसमें से एक बहन अपने पति से क्षय रोग का शिकार होकर असमय ही इस दुनिया से विदा हो गयी और अपने पीछे तीन माह के बालक 'सूरज' को छोड़ गयी। दूसरी बहन का पति भी तेज हवा से उखड़कर गिरे पेड को अपने ऊपर नहीं झेल पाया और इस दुनिया से सदैव के लिये चला गया। छोड़ गया पीछे गिरजा के लिये वैधव्य का संसार । माँ, बेटी गिरजा के पास तड़पती हुयी आ गयी। और फिर बेटी ने उन्हें जाने नहीं दिया, क्योंकि चाचा के घर उनकी दशा एक नौकरानी से ज्यादा न थी। माँ-बेटी ने मिलकर सूरज को बड़ा किया और उसे एक काबिल पुलिस अफसर बनाया गाँव में हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिये जहा माँ स्वयं प्रधान के पद पर आसीन होती है वहीं सूरज से काफी उम्मीदें लगाये रहती है लेकिन सूरज की अन्य शहर में नियुक्ति के कारण वह गाँव में हो रहे अनाचारों को चाहकर भी रोक नहीं पा रही है। रोज अतरे दिन गाँव में मासूम लड़कियों के साथ बलात्कार, हत्या और संगीन जुर्म हो रहे थे और पुलिस सिर्फ अपराधियों की तिजोरी ताक रही थी। जब सब्र की इंतहा हो जाती हो वह सूरज को अपने गाँव में तबादला करवाकर लाने का फैसला लेती है और इसके लिये वह
16 कहानी
अफसरों के यहाँ एड़ीजोटी का जोर लगा देती है। आखिरकार एक परिचित एम.एल.ए. साहब काम करवाने के लिये तैयार हो जाते है और तबादले हेतु उनसे सूरज द्वारा लिखित एक प्रार्थना पत्र लाने को कहते हैं। माँ (मौसी) बड़ी उम्मीदों के साथ बेटे के पास पहुँचती है। बेटा- बहू दोनों मौसी के चरण स्पर्श कर आवभगत करते हैं माँ बेटे को तत्परता देख प्रसन्न होती है और सूरज से अपने गाँव चलने को कहती है। सूरज एक अर्जी लिख देता है। माँ सोने के लिये अपने बिस्तर पर जाने ही वाली थी कि उसे अपने संग लाये गाँव के आदमी 'हरिया' का ध्यान आया और वह उसे देखने कि, उसने खा-पी लिया और उसके सोने का क्या इंतजाम है, हेतु बाहर जाती है, थोड़ी दूर पर उसे सूरज का ऑफिस दिखलायी देता है, वहाँ भरपूर रोशनी थी, वह यह सोच कि बेटा अभी तक काम कर रहा है, उसे देखने की ललक से वहाँ चली गयी, खिड़की से देखा सूरज पीठ किये अपनी कुर्सी पर बैठा था, सामने एक वृद्ध और एक षोडशी कन्या खड़ी थी। वे खड़ी होकर उनका वार्तालाप सुनने लगी । और जो सुना उससे उनकी कनपटी जल उठी। उनका बेटा सूरज उस वृद्ध से उसकी ही बेटी का व्यापार कर रहा था। वह उसके लड़के को छोड़ने की एवज में उस लड़की की देह माँग रहा था। ऐसा सुन उनका कलेजा मुँह को आ जाता है। वे वापिस घर आ जाती है और रात भर बैचेनी में काट देती है, सुबह जल्दी उठ नहा धोकर व तैयार हो जाती है । सूरज पत्नी से यह कह कि लौटकर नाश्ता मौसी के साथ करूँगा, ऑफिस चला जाता है। माँ अपने साथ लाये हरिया को लेकर तुरन्त बस स्टॉप पहुँच जाती है और बस में बैठ जाती हैं। बस चल देती है। पीछे सूरज भागता हुआ चला आ रहा था। लेकिन वे नहीं रूकी और उस कागज के मुश्किल से चार टुकड़े कर दिये, जिसे ले वे कल बड़ी उम्मीद से वहाँ आयी थी ।
"धुँआ उड़ाती बस थानाध्यक्ष सूरज प्रकाश की पहुँच से बाहर हो गयी। सूरज ने जमीन पर पड़े वे कागज के टुकड़े उठा लिये, जिन्हें मौसी फाड़कर फेंक गयी थीं तबादले का प्रार्थना पत्र था उनके अपने ही हाथों का लिखा हुआ चार चिन्दियों में विभाजित ।"17
इसी के साथ कहानी का अंत हो जाता है और अंत हो जाता है एक माँ की ढेर सारी उम्मीदों, मंसूबों और इच्छाओं का । मैत्रेयी जीने इस कहानी के माध्यम से वर्तमान समय व सामाजिक यथार्थ की घिनौनी तस्वीर हमारे समक्ष प्रस्तुत की है।
'कहानी 'बहेलिये'
• मैत्रेयी पुष्पा
५. मन नाँहि दस-बीस
सूरदास के भ्रमरगीत की प्रसिद्ध पंक्ति को आधार बनाकर लिखी गयी यह कहानी वर्ण और जाति के भेदभाव को दर्शाती है। यह एक ऐसे लड़के-लड़की के प्रेम की कहानी है जिसमें लड़का हरिजन जाति का युवक है, जिसके पिता उस बस्ती के एक मात्र साहूकार (लाला) के यहाँ ढोर - डंगरों के चारे पानी की व्यवस्था के लिये मजूरी करते थे। इन्हीं लाला को एक की मात्र बेटी चन्दना से युवक स्वराज का प्रेम ऐसा जुड़ा कि दोनों के बड़े होने पर लोगो की निगाहे उन्हें शंका से देखने लगी । किन्तु दोनों ने परवाह न की और पूर्ववत मिलते जुलते, खाते पीते हंसते खेलते रहे । लेकिन इस समाज को यह कहाँ मंजूर था कि एक चमार का लड़का एक सवर्ग जाति की लड़की के साथ उठे-बैठे, प्रेम तो दूर। लोगों ने काना फूसी आरम्भ कर दी । लाला व सेठानी घबरा उठे अपने अहसानों के बदले में और अपनी बेटी के सुखद भविष्य की खातिर लाला ने स्वराज के पिता से स्वराज का वनवास माँग लिया और एक रात स्वराज को बिना बताये वे उसे पढ़ाई का बहाना कर ग्वालियर ले गये और वहीं छोड़ आये। इधर चन्दना उधर स्वराज दोनों ही विछोह में तड़पते रहे और माँ - बाप कसम कौल धरते रहे। ऐसे में लाला ने चुपके से चन्दना का विवाह आगरा कर दिया। लौटकर जब वह वापिस आयी तो उसे एदल, जो स्वराज का बचपन का दोस्त था, से स्वराज का पता मिला, उसने स्वराज को पत्र डाल एक बार मिलने को कहा, लेकिन स्वराज न आ सका । छः महीने बाद एदल का एक पत्र फिर मिला, जिसमें लिखा था । कि अब चले आओ स्वराज । चन्दना का गौना है फिर पता नहीं कब आये ? स्वराज अपने को रोक न सका और उससे मिलने चला गया। वहाँ पहुँच कर उसे चन्दना की पहले जैसी आतुरता देखने को न मिली। पता चला उसका देवर व पति उसे लेने आये हैं। जाने से पहले की रोज चन्दना चुपके से उससे मिलने आयी और जानना चाहा कि वह उसे यूँ अकेला छोड़ कर क्यों चला गया था ? स्वराज के ये बताने पर कि उसे जबरदस्ती लाला ने ही ग्वालियर भेज दिया था, वह फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ क्षण वे दोनो खामोश बैठे रहे। फिर स्वराज ने उसे अपने गले की जंजीर निशानी स्वरूप दे दी। वह वहाँ से चली गयी और अगले दिन स्वराज ग्वालियर ।
उसके बाद समय बीतता गया और स्वराज अपनी मेहनत से प्रशासनिक अधिकारी बन गया और एक दिन स्वराज को सूचना मिली की चन्दना ने अपने पति
और देवर को जहर देकर मारने की कोशिश की। तब से बेचैन स्वराज उससे मिलने को आतुर उसे जगह-जगह खोजते रहे। आज अचानक वनगाँव के दौरे के दौरान वह उन्हें दिखलायी दी। किसी प्रकार उन्होंने महिला विकास केन्द्र की कर्ताधर्ता कल्याणी देवी से मिलकर उससे मिलने का इंतजाम किया और उसके मुख से सच्चाई सुनकर आवाक रह गये। चन्दना ने बताया कि उस रात जब वह उससे मिलने आयी थी, तो देवर भी पीछे से आ गया था, जिसका उसे पता न था । बस उसी दिन से प्रताड़ना चालू हो गयी और तुम्हारे नाम के उलाहने प्रतिपल दिये जाने लगे। पति के नपंसुक होने के कारण मैं बच्चा जनने में असमर्थ सास की शह पर देवर के अत्याचार व बलात्कार की कोशिशों को निरन्तर झेलती रही और पति दब्बू स्वभाव के कारण सिर्फ मूक दर्शक बन सब देखते रहे । जब सब्र की इंतहा हुयी तो मैने आटे में जहर मिला देवर को खाना बना परोस दिया । वह अभी खा ही रहा था कि दूसरे शहर से लौटे पति इतने भूखे थे कि मेरे मना करने पर भी उसके साथ उसी थाली में खाने लगे। खाने की मात्रा के अनुसार रात में दोनों पागल हो उठे। सुबह पुलिस आयी और मैंने आत्मसमर्पण कर दिया। केस चल रहा है। एदल, जो अब वकील बन गया था, चन्दना का केस लड़ रहा था, जान स्वराज को खुशी हुयी । इस सब के लिये वे स्वयं को दोषी मानते थे और चन्दना से माफी मांग रहे थे, किन्तु चन्दना का यह कथन - 'क्षमा किसलिये, स्वराज ! वह तो हमारी अपनी-अपनी जंग थी, जो जिसके हिस्से आया, वह तो लड़ना ही था। तुमने भी लड़ा और मैने भी। घायल कौन कितना हुआ, जंग में इसका हिसाब होता ही कहाँ है ।' जीवन की सच्चाई को उजागर करता है।
"अब सारे युद्ध समाप्त हो गये चन्दना" स्वराज के इस स्वर के साथ कहानी का सुखद अंत हो जाता है और पाठक एक राहत की सांस महसूस करता है ठीक वैसे ही जैसे किसी हिन्दी फिल्म के नायिका नायक के मिलन पर । स्त्री का एक ही मन होता है मैत्रेयी जी कहना चाहती है। तभी तो चन्दना जो अपना मन स्वराज को दे चुकी थी, शादी के बाद न तो पति को दे सकी और न ही शरीर के भूखे देवर को । उसका मन समस्त जाति बन्धन को तोड़ आखिरकार स्वराज से मिल ही गया । कहानी के माध्यम से मैत्रेयी ने जाति परक भेदभाव को दर्शाया है ।
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तेरहवाँ अध्याय
हमारी पहली पुस्तक का निष्कर्ष मुख्यतः निषेधात्मक ही रहा। सत् से सम्बन्धित कई विचारवाराओं की हमने परीक्षा की, परन्तु वे सब-की-सव स्वयं-भिन्नता के दोप से युक्त सिद्ध हुई । इसके अन्तर्गत जो भी विवेय सत् के लिए रखे गये, वे कम-से-कम अपने अब तक के स्वरूप में, असंगत ही सिद्ध हुए। हाँ, अन्त में हमने जो विचार प्रस्तुत किया उसमें अवश्य ही कुछ तत्त्व दीखता है । जिसको आभास कह कर छोड़ दिया जाता है, वह अवस्तु नहीं हो सकता, क्योंकि उसका अस्तित्व आभास होने से ही सिद्ध है । उसको मूर्त रूप में टाल देना अथवा उसमे केवल पल्ला छुड़ा लेना सम्भव नहीं, और कहीं-न-कहीं या किसी-न-किसी से उसका सम्बन्ध होना आवश्यक है अतः वह अवश्य ही सत् से सम्बन्धित होगा। किसी अज्ञात ढंग से, अवस्तु के रूप में उसका अस्तित्व मानना निःसन्देह कोई अर्थ नहीं रखता, क्योंकि सत् उसे अस्वीकार नहीं कर सकता और न स्वयं ही आभास से कम हो सकता है - यही एक निश्चित परिणाम है जिस पर हम अभी तक पहुँच पायें । परन्तु सत् का जो विशेष स्वरूप या स्वभाव है, उसके विषय में हम अभी तक कुछ नहीं जानते, और हमारी अवशिष्ट गवेषणा का लक्ष्य इसी के विषय मैं और आगे ज्ञान प्राप्त करना है। प्रस्तुत पुस्तक के, किसी सीमा तक, दो भाग किये जा सकते हैं। इनमें से पहले का सम्बन्ध तो मुख्यतः सत् की सामान्य विशेषताओं तथा उनके आओपों के उत्तर से है। फिर इसको आधार मानकर, हमने दूसरे भाग में मुख्यतः कुछ विशेष लक्षणों पर विचार किया है, परन्तु, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने वर्गीकरण या विभाजन के किसी भी सिद्धान्त का कड़ाई के साथ पालन नहीं किया है। जो भी अच्छा-से-अच्छा ढंग सूझा उसी से में आगे बढ़ता गया, इसके अतिरिक्त वस्तुतः मैंने में किसी क्रम या नियम का अनुसरण नहीं किया है ।
सत् के स्वरूप की जो खोज चल रही है, उसके प्रारम्भ में, निःसन्देह, हमें एक सामान्य सन्देह अथवा निषेत्र का सामना करना पड़ा । यह कहा जायेगा कि सत् को जानना असंभव, अथवा, कम-से-कम पूर्णतया अव्यावहारिक है। मूल तत्वों का निश्चित ज्ञान सम्भव नहीं, और यदि यह संभव हो तो, हमको यह पता नहीं चल सकता कि
वह ज्ञान हमें कब हुआ। संक्षेप में जिसको स्वीकार नहीं किया गया वह है किसी मानदण्ड का अस्तित्व । आगे चलकर, २७वें अध्याय में, एक सुव्यवस्थित नास्तिकता के आक्षेपों पर विचार किया जायगा, अतः यहाँ पर केवल उतना ही लिया जायगा जितने की इस समय आवश्यकता है ।
क्या कोई ऐकान्तिक मानदण्ड है ? इस प्रश्न का उत्तर, मेरी समझ में, दूसरे प्रश्न के द्वारा दिया जा सकता है-- अन्यथा हम आभास के विषय में कुछ भी कैसे कह सकते हैं ? क्योंकि, पाठकों को याद होगा पिछली पुस्तक में, हम प्रायः आलोचना ही करते रहे । हमने प्रतीयमान नाम-रूप पर विचार किया और उसका तिरस्कार कर दिया, इसमें हम सदा यही मानकर चले हैं कि मानों स्वयं-विरोधी तत्व सत् नहीं हो सकते । परन्तु इसके लिए निःसन्देह एक ऐकान्तिक मानदण्ड की आवश्यकता थी । क्योंकि जरा सोचिए -- जब सत् के विषय में कुछ कहा जा रहा हो, तो आप कैसे चुपचाप रह सकते हैं ? जहाँ तक आप जानते हैं, कम-से-कम वहाँ तक आप प्रत्येक कल्पना को सत्, परम और पूर्ण सत् कैसे मानते चले जायेंगे । क्योंकि यदि आप सत्यासत्य विवेक को दृष्टि से सोचें, तो आप देखेंगे कि स्पष्ट स्वयं-विरुद्धता को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिए विचारने का अर्थ है विवेचन, विवेचन का आलोचना और आलोचना का अर्थ है सत्य के किसी मानदण्ड का प्रयोग करना । निःसन्देह इस पर सन्देह करने का अभिप्राय केवल अंधापन अथवा भ्रममूलक आत्मप्रवंचना है । परन्तु यदि यह बात है तो यह स्पष्ट है कि असंगत को आभास कहकर टालने में, हम वस्तुओं की अंतिम प्रकृति के एक निश्चित ज्ञान का प्रयोग कर रहे हैं । अंतिम सत् स्वयं-विरोधी नहीं होता, इसके ऐकान्तिक होने का प्रमाण यह है कि, चाहे हम इसे अस्वीकार करने का प्रयत्न करें अथवा इसके विषय में संदेह करने का यत्न करें, हमको प्रत्येक अवस्था में, इसकी सत्यता को मूक रूप से मानना पड़ता है ।
लगे हाथों हम इन प्रवंचक प्रयत्नों में से एक को लेते हैं । हमसे यह कहा जा सकता है कि हमारा मानदण्ड अनुभव के द्वारा विकसित हुआ है और कम-से-कम इसलिए वह, संभव है कि, ऐकान्तिक न हो । परन्तु पहले तो यह बात स्पष्ट नहीं कि अनुभव के आधार पर विकसित होने वाली कोई वस्तु ओछी क्यों न हो। दूसरे, समझ में आने पर सारा संदेह स्वयं अपना ही विनाश कर लेता है। क्योंकि हमारे मानदण्ड का जो मूल वतलाया जाता है वह हमें ऐसे ज्ञान से प्राप्त होता है जो सर्वत्र, ऐकान्तिक कसौटी के रूप में होने वाले इसके प्रयोग पर आधारित है। इससे अधिक मूर्खतापूर्ण बात क्या होगी कि किसी सिद्धान्त को तब भी संदिग्ध सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाय जब कि स्वयं प्रमाण भी प्रत्येक अवस्था में उसी के अनुपहित सत्य पर आश्रित है ? यदि कोई
इस मानदण्ड का सहारा लेता है, एक विपरीत निष्कर्ष तक पहुँचने में उसका प्रयोग करता है और फिर यह कहता है कि इसलिए हमारा सम्पूर्ण ज्ञान आत्मघाती है, तो निःसन्देह इसमें कोई मूर्खता की बात नहीं होगी, क्योंकि यह अनिवार्यतः हमें ऐसे परि पाम पर पहुंचाता है जो ग्राह्य नहीं हो सकता । परन्तु यह वह परिणाम नहीं जिसको हमारे कतिपय विरोधी अपना लक्ष्य माने हुए हैं जयवा जिसका वे स्वागत करेंगे । सामान्यतः वह यह दिखाने का प्रयत्न नहीं करता कि कोई मनोवैज्ञानिक उपज तत्वज्ञानीय प्रामाणिकता के किसी प्रकार विरुद्ध है । और वह अपने उस मनोवैज्ञानिक ज्ञान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं, जो यदि वह मानदण्ड ऐकान्तिक नहीं है तो निःसन्देह नष्ट हो जायगा ।
जब हम विचार करते हैं तो पता चलता है कि इस सन्देह का लावार वही है जिस पर वह आपत्ति करता है और वह केवल आँख मूंद कर सत् सम्बन्धी हमारे ज्ञान को परम निश्चित मान रहा है ।
इस प्रकार हमारे पास एक मानदण्ड है और यह मानदण्ड सर्वोच्च है। मैं इस बात को अस्वीकार नहीं करता कि मानदण्ड कई हो सकते हैं, जो वस्तुओं के स्वभाव के विषय में पृथक्-पृथक् सूचना दें। परन्तु यह कुछ भी हो, हमारे पास फिर भी सत्य की एक सर्वोच्च कसौटी है। और यदि विभिन्न मानदण्ड का अस्तित्व भी हो तो वे निश्चित रूप से गौण होंगे । यह तुरन्त स्पष्ट हो जाता है क्योंकि हम इन विभिन्न मानदण्डों को एक साथ एकत्र करने तथा उनसे सामंजस्य ढूंढ़ने को अस्वीकार नहीं कर सकते अथवा यदि प्रत्येक की अपने तथा अन्य सब के साथ अयुक्तता के विरुद्ध में कोई सन्देह प्रकट क्रिया जाय, तो कम-से-कम हमें निर्णय करने के लिए विवश होना पड़ता है और यदि वे परीक्षा अथवा तुलना के पश्चात स्वयं-विरुद्ध होने के दोषी पाये जायँ तो हमें उनको जाभास मान लेना चाहिए । परन्तु वे सव-के-सव यदि एक ही न्याय व पंचायत के अन्तर्गत न जाते हों तो हमारे लिए यह करना सम्भव नहीं और इसलिए हमें उसको सर्वोच्च और ऐकान्तिक मानने के लिए विवश होना पड़ता है। और यदि वे परीक्षा जयवा तुलना के पश्चात् स्वयं विरुद्ध होने के दोपी हो जायँ, तो हमें उनको आभास मान लेना चाहिए । परन्तु यदि वे सबके सत्र एक ही न्याय पंचायत के अन्तर्गत न आते हो तो हमारे लिए यह करना सम्भव नहीं। और इसलिए हन उसको सर्वोच्च और ऐकान्तिक मानने के लिए विवश होते हैं, क्योंकि हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिलता जो स्वसंगतता कसोटी के आश्रित न हों ।
परन्तु यह कहा जा सकता है कि इससे हमें कोई वास्तविक सूचना नहीं मिलती। यदि हम विचार करते हैं, तो निश्चित रूप से हम असंगत नहीं हो सकते । यह सत्र मानते
हैं कि यह कसौटी अनुपहित और ऐकान्तिक है । परन्तु यह कहा जायगा, कि किसी विषय के ज्ञान के लिए, हमें केवल निषेध के अतिरिक्त कुछ और भी चाहिए हम इस के बात से सहमत हैं कि अंतिम सत् में स्वयं-विरुद्धता नहीं हो सकती, परन्तु कुछ लोग कहेंगे कि निषेध अथवा अभाव निश्चित ज्ञान नहीं कहा जा सकता । इसलिए असंगतियों को अस्वीकार करने में किसी निश्चित गुण की स्थापना नहीं हो जाती ।
परन्तु इस प्रकार की आपत्ति ठहर नहीं सकती। वह इतना तो कह सकती है कि एक अस्वीकृति - मात्र संभव है । और यद्यपि हमारे पास कोई निश्चित आधार नहीं, और यद्यपि इस अस्वीकृति से कोई विशेष प्रयोजन नहीं निकलता। परन्तु फिर भी हम किसी विधेय को अस्वीकार कर सकते हैं, इस मूल का खंडन 'प्रिंसिपल आफ लाजिक' ( प्रथम पुस्तक अध्याय तीन ) नामक मेरी पुस्तक में किया गया है । और उसका विवेचन मैं यहाँ नहीं करना चाहता । मैं अब यह दिखलाना चाहता हूँ कि एक दूसरे अर्थ में यह आक्षेप कितना सवल प्रतीत होता है । यह कहा जा सकता है कि मानदण्ड स्वयं तो निःसन्देह निश्चित है, परन्तु, हमारे ज्ञान के लिए और परिणामतः वह केवल निषेधात्मक है । और इसलिए उससे सत् के विषय में हमें कोई सूचना नहीं मिलती, क्योंकि ज्ञान होते हुए भी उसको व्यक्त नहीं किया जा सकता । मानदण्ड एक ऐसा आधार है जिस पर निषेध आश्रित हो सकता है । परन्तु इस आधार को व्यक्त करना असम्भव होने के कारण हम केवल उसका सहारा ले सकते हैं । परन्तु उसको देख नहीं सकते और इसलिए परिणामतः वह हमें कुछ भी नहीं बताता । इस रूप में कहे जाने पर यह आक्षेप सम्भवतः संगत जान पड़े और एक अर्थ में मैं उसको सच मानने को तैयार भी हूँ । यदि सत् की प्रकृति से हमारा अभिप्राय उसके पूर्ण स्वभाव से है तो मैं यह नहीं कहता कि वह अपने पूर्ण रूप में ज्ञेय है । परन्तु यहाँ विवाद का विषय यह कदापि नहीं, क्योंकि यह आक्षेप यही अस्वीकार करता है कि हमारे पास ऐसा कोई मानदण्ड है जो कि कोई निश्चित ज्ञान, कोई पूरी या अधूरी सूचना हमें वास्तविक सत् के विषय में देता है। और यह अस्वीकृति निःसंदेह एक भूल है ।
यह आक्षेप इस बात को स्वीकार करता है कि सत् जो करता है वह हमें मालूम है, परन्तु वह यह नहीं मानता कि हम सत् के अस्तित्व के विषय में कुछ भी जानते हैं । यह निश्चित है कि उस मानदण्ड का अस्तित्व भी है और एक निश्चित स्वरूप भी, और यह भी सर्वमान्य है कि वह स्वरूप असंगति को स्वीकार नहीं करता । यह स्वीकार किया जाता है कि हम इस बात को जानते है, परन्तु विवाद का विषय यह है कि इस प्रकार के ज्ञान से कोई निश्चित सूचना मिलती है या नहीं ? और मेरी समझ में इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन नहीं, क्योंकि जब मैं एक वस्तु सक्रिय देखता हूँ, तो, मेरी
समझ में नहीं आता कि मैं किस प्रकार वहाँ खड़े होते हुए इस बात का आग्रह करूं कि मैं उसके स्वरूप के विषय में कुछ भी नहीं जानता। मैं यह भी जानने में असमर्थ हूँ कि कोई व्यापार पूर्णतया कैसे व्यर्थ हो सकता है ? और जिस पर मैं उसका आक्षेप करता हूँ उसकी विशेषता वह निश्चित रूप से कैसे नहीं प्रकट करता ? नैं यह स्वीकार करता हूँ कि केवल इतना जानना सम्भवतः व्यर्थ हो, जिस सूचना को प्राप्त करना हम अत्यधिक चाहते हैं ।
हमारा मानदण्ड असंगति को अस्वीकार करता है और, इसलिए, संगति-समर्थन करता है। अगर हमको यह विश्वास हो कि जो असंगतता है वह असत् है तो यह तर्कसंगत बात है कि हमें इस बात का भी विश्वास हो कि जो सत् है वह मुसंगत है। सारा प्रश्न यह है कि सुसंगतता को क्या अर्थ दिया जाय ? हम देख चुके हैं कि केवल विरोध का परिहार मात्र सुसंगति नहीं है, क्योंकि यह तो केवल हमारी सूक्ष्म कल्पना मात्र हैं, अन्यथा कुछ भी नहीं। अभी तक हमारा परिणाम यह रहा है - सत् का एक निश्चित स्वरूप है परन्तु इस स्वरूप को इस समय इसी रूप में निश्चित कर सकते हैं कि वह ऐसा है जिसमें विरोध को स्थान नहीं ।
परन्तु हम कुछ और प्रगति कर सकते हैं। पिछले अन्याय में हम देख चुके हैं कि समस्त आभास का सम्बन्ध सत् से होना चाहिए, क्योंकि जिसका आभास होता है और जिसका अस्तित्व है वह सत् की सीमा के बाहर नहीं रह सकता। अब हम इस परिणाम को उस निष्कर्ष से मिला सकते हैं जिस पर हम अभी पहुंचे हैं। हम यह कह सकते हैं कि जिस वस्तु की प्रतीति होती है वह इस रूप में सत् है कि वह साथ ही स्वयं संगति भी है। सत् के स्वरूप में प्रतीयमान नाम-रूप का सर्वाय एक समन्वित रूप में आ जाता है । इसी सत्य को मैं दूसरे शब्दों में कहूँगा । सत् एक अर्थ में है कि उसका एक निविरोध निश्चित स्वभाव है, एक ऐसा स्वभाव, जिसके अन्तर्गत सत् होने वाली प्रत्येक वस्तु आ जाती है। उसकी विविधता वहीं तक विविध है, जहाँ तक कि उसमें संघर्ष या विरोध का अभाव है, और जो कहीं भी इससे विपरीत है वह सत् नहीं हो सकता । और दूसरी ओर से जिसकी प्रतीति होती है वह प्रत्येक वस्तु सत् है । प्रतीति अग्रवा आभास का सम्बन्ध सत् से है । और इसलिए उसमें समन्वय होना चाहिए । और वह प्रतीयमान से भिन्न होना चाहिए। इसलिए, प्रतीयमान नाम-रूप की विविधता किसी-न-किसी प्रकार से एक और स्वयं संगत होनी चाहिए, क्योंकि वह सत् के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं रह सकती और सत् में विरोव सम्भव नहीं । अन्यथा उसी बात को हम इस प्रकार रख सकते हैं कि सत् वैयक्तिक है, वह इस अर्थ में एक है कि उसके निश्चित स्वरूप के अन्तर्गत, सभी भेद एक व्यापक समन्वय में स्थित हो जाते हैं। और
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स्टू एक प्रकार की डिश है जो वेजिटेबल्स या मीट को लिक्विड में कम टेम्प्रेचर पर पका कर बनाई जाती है। एक अच्छे स्वाद और टेक्सचर (texture) के लिए स्टू को गाढ़ा होना चाहिए। लेकिन उसे बिल्कुल सही लेवल तक गाढ़ा करना कठिन हो सकता है। अगर आपने जो स्टू बनाया है वह बहुत पतला है तो परेशान न हों! उसे आटा या कोई आम स्टार्च वाली चीजें मिलाकर आसानी से गाढ़ा किया जा सकता है। नहीं तो, आप स्टू के कुछ हिस्से की प्यूरी बनाकर, या उसे उबालकर उसके फालतू पानी को सुखा सकते हैं। इस तरह आप बहुत जल्दी एक लाजवाब स्वाद वाले स्टू का मज़ा ले सकेगें!
1. कॉर्नस्टार्च (cornstarch) या कॉर्न फ्लोर (cornflour) इस्तेमाल करेंः
एक बड़े चम्मच (15 mL) पानी में एक बड़ा चम्मच (5 g) कॉर्नस्टार्च या कॉर्न फ्लोर डालें और उनको मिलाकर एक पेस्ट बनायें। फिर उस पेस्ट को स्टू में डालें। स्टू को हिलाएं ताकि पेस्ट उसमें अच्छी तरह से मिल जाये। उसके बाद स्टू को 2 मिनट के लिए पकाएं। ऐसा करने से कॉर्नस्टार्च स्टू में ठीक से मिल जायेगा।
स्टू कितना गाढ़ा हुआ है ये चेक करें, यदि ज़रूरत हो तो थोड़ा और पेस्ट मिलाएं। पेस्ट मिलाने के बाद स्टू को दोबारा 2 मिनट तक पकाना न भूलें।
कॉर्नस्टार्च या कॉर्न फ्लोर की जगह अरारोट (arrowroot) का उपयोग किया जा सकता है। उसका कॉर्नस्टार्च से ज्यादा तटस्थ (neutral) स्वाद होता है। उसे अलग-अलग टेम्प्रेचर पर इस्तेमाल कर सकते हैं और हर तापमान पर उसकी गाढ़ा करने की क्षमता कायम रहती है।
2. अगर एक सीधा-सादा उपाय अपनाना हो तो थोड़े से ब्रेड के टुकड़े या उसका चूरा (breadcrumbs) डालेंः
स्टू में ब्रेड मिलाएं और उसे पानी को सोकने का समय दें। दो-चार मिनटों के बाद चेक करें कि स्टू कितना गाढ़ा हुआ है। ब्रेड डालने से स्टू के स्वाद में ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि ब्रेड का कोई तेज़ स्वाद नहीं होता है।
इसके बाद भी अगर स्टू पतला हो तो आप थोड़े और ब्रेड के टुकड़े या चूरा मिला सकते हैं। लेकिन आपको बहुत ज्यादा ब्रेड नहीं मिलानी चाहिए नहीं तो स्वाद बदल सकता है।
आप ताज़ा, फ्रीज़ करा हुआ, या सूखा ब्रेड का चूरा इस्तेमाल कर सकते हैं।
अगर आप ताज़ी ब्रेड का उपयोग करना चाहें तो वाइट ब्रेड (white bread) चुनें क्योंकि वह इस काम के लिए सबसे अच्छी है।
3. स्टू को ज्यादा क्रीमी बनाने के लिए उसमें मैश (mash) करे हुए आलू डालेंः
अगर आप ज्यादा झंझट नहीं करना चाहते हैं तो स्टू में से कुछ आलू निकालें और उनको मैश करें। अगर आपको आलू बहुत पसंद हैं और आप उनके टुकड़ों को स्टू में से नहीं निकालना चाहते हैं तो अलग बर्तन में छिले हुए आलुओं को उबालें और उनको मैश करें। फिर एक बड़े चम्मच से मैश करे हुए आलू को स्टू में डालकर अच्छी तरह मिलाएं। इस तरह थोड़ा-थोड़ा मैश किया हुआ आलू मिलाते जाएँ जब तक स्टू उतना गाढ़ा न हो जाये जितना कि आप चाहते हैं।
इसके अलावा एक और सरल तरीका भी है। आप स्टू में थोड़े से सूखे मैश करे हुए आलू के फ्लेक्स (dried mashed potato flakes) छिड़क सकते हैं। आप थोड़े से फ्लेक्स डालें, उन्हें मिलाएं, फिर देखें कि स्टू कितना गाढ़ा हुआ है। जब तक आपके पसंद का गाढ़ापन न आ जाये फ्लेक्स मिलाते रहें।
आलू का तटस्थ स्वाद होता है। इसलिए उसको मिलाने से स्टू के स्वाद में ज्यादा बदलाव नहीं आयेगा।
4. रसे में एक बड़ा चम्मच (5 g) ओट्स मिलाएंः
ओट्स डालने के बाद कुछ मिनटों के लिए इंतज़ार करें। बीच-बीच में कई बार स्टू को हिलाएं और देखें कि ओट्स ने कितना पानी सोक लिया है। अगर स्टू अभी भी काफी गाढ़ा न हुआ हो तो थोड़े और ओट्स डालें। लेकिन हद से ज्यादा ओट्स न डालें क्योंकि ऐसा करने से स्टू का स्वाद बदल जायेगा।
इस काम के लिए पिसे हुए क्विक ओट्स (quick oats) सबसे अच्छे हैं।
आप कितना स्टू बना रहे हैं इसके मुताबिक आपको तय करना पड़ेगा कि कितने ओट्स मिलाने हैं ताकि स्टू का स्वाद न बदले।
5. मक्खन और आटा मिलाकर एक रॉक्स (roux) बनायेंः
मक्खन और आटा की बराबर मात्रा लें। उनको एक बर्तन में डालें और मध्यम (medium) या उससे थोड़ी धीमी (medium-low) आंच पर गर्म करें। उन्हें लगातार हिलाते रहें ताकि वे जले नहीं। रॉक्स को 10 मिनट तक पकाएं जब तक वह भूरे-लाल रंग का हो जाये। थोड़ा सा रॉक्स स्टू में डालें और बड़े चम्मच से मिलाएं। इस तरह स्टू में थोड़ा-थोड़ा रॉक्स मिलाते रहें ताकि वह ठीक से गाढ़ा हो जाये।
रॉक्स को थोड़ा-थोड़ा करके डालना ज़रूरी है नहीं तो स्टू में उसके ढेले बन जायेंगे।
रॉक्स से स्टू में ज्यादा अच्छा स्वाद आना चाहिए।
अगर आपको पसंद हो तो मक्खन की जगह कोई वनस्पति तेल इस्तेमाल कर सकते हैं।
6. आटे का पेस्ट बनाकर स्टू में मिलाएंः
स्टू को गाढ़ा करने का ये एक बहुत सरल तरीका है। आप बराबर मात्रा में पानी और आटा लें और उनको मिलाकर एक पेस्ट बनायें। एक बड़े चम्मच से पेस्ट को स्टू में थोड़ा-थोड़ा करके डालते जाएँ और अच्छी तरह मिलाते रहें। उसके बाद स्टू को दोबारा उबालें। इससे आटे का स्वाद लुप्त हो जायेगा।
अगर आप स्टू को जितना गाढ़ा बनाना चाहते हैं वह उतना गाढ़ा न हुआ हो तो थोड़ा और पेस्ट मिलाएं।
कोशिश करके कम आटा इस्तेमाल करें क्योंकि उससे स्टू के स्वाद में बदलाव आ सकता है और कच्चे आटे का स्वाद इतना अच्छा नहीं होता है।
सूप में बहुत ज्यादा पेस्ट न डालें नहीं तो ढेले बन जायेंगे। इसके अलावा, सारे पेस्ट को एक ही बार में नहीं डालना चाहिए।
7. स्टू के एक हिस्से को बाहर निकालेंः
उसे निकालने की खातिर एक कलछुल या बड़ा चम्मच इस्तेमाल करें ताकि आपका हाथ न जले। पहले 1 से 2 कप (0.24 से 0.47 L) स्टू निकालें। अगर ज़रूरत हो तो बाद में और प्यूरी बना सकते हैं।
हालाँकि आप स्टू के किसी भी हिस्से को निकालकर प्यूरी बना सकते हैं आलू और गाजर जैसी जड़ की सब्जियों की प्यूरी बनाना सबसे आसान है।
अगर आप सूप का स्वाद बनाये रखना चाहते हैं, और यदि सूप में कम ठोस पदार्थ हों तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है तो प्यूरी बनाना एक बेहतरीन विकल्प है।
स्टू को निकालते और ब्लेंड करते समय सावधानी से काम करें क्योंकि वह उस समय बहुत ज्यादा गर्म होगा। उसे ब्लेंड करते समय हाथ जल सकते हैं। इसलिए संभलकर काम करें और फूड प्रोसेसर या ब्लेंडर और उसकी लिड को एक तौलिये से छूएं।
8. स्टू के निकाले हुए हिस्से को एक फूड प्रोसेसर या ब्लेंडर में डालेंः
ब्लेंडर में इतना स्टू डालें कि वह आधा भर जाये। उसके बर्तन को एक तौलिये से पकड़ना न भूलें क्योंकि वह बहुत जल्दी गर्म हो जायेगा।
अगर ब्लेंड करने के लिए आपके पास ज्यादा स्टू है तो उसे बारी-बारी ब्लेंड करें। एक बार में ब्लेंडर के बर्तन को आधा से ज्यादा नहीं भरना चाहिए। यदि आप उसे ऊपर तक भरेंगे तो ठोस टुकड़ों को काटना ज्यादा मुश्किल होगा।
9. स्टू को तब तक ब्लेंड करें जब तक वह स्मूद हो जायेः
ब्लेंड करते समय बीच-बीच में फूड प्रोसेसर या ब्लेंडर को रोकें और उसके अंदर के ठोस पदार्थों को हिलाएं। इस प्रकार स्टू को ब्लेंड करते रहें जब तक वह एक गाढ़ा तरल बन जाये।
अगर आपके फूड प्रोसेसर या ब्लेंडर में सेटिंग करने की सुविधा है तो आप उसमें प्यूरी करने की सेटिंग चुनें।
10. ब्लेंड करे हुए स्टू को फिर से स्टू के बर्तन में डालेंः
उसे धीरे से उंडेलें ताकि वह छपाक से बाहर न गिरे। उसके बाद स्टू को हिलाएं ताकि ब्लेंड किया हुआ स्टू रसे में ठीक से मिल जाये।
यदि स्टू अभी भी ठीक से गाढ़ा न हुआ हो तो आप थोड़ा और ठोस पदार्थ स्टू में से निकालें और पूरी प्रक्रिया को दोहराएँ।
11. स्टू के बर्तन के ऊपर से ढक्कन हटायेंः
आप स्टू को ढके बिना पकाएं। ऐसा करने से बर्तन में से भाप बाहर निकल जाएगी। भाप जब अंदर रुकी रहती है तो स्टू पतला और पानी जैसा होता है।
ध्यान रहे कि ऐसा करने से स्टू का स्वाद केन्द्रित हो जायेगा जिसकी वजह से वह खाने में काफी तेज़ लगेगा। उदाहरण के तौर पर, वह बहुत ज्याद नमकीन हो सकता है।
12. मध्यम या उससे ज्यादा तेज़ आंच (medium-high heat) पर स्टू को उबालेंः
उसे धीरे-धीरे उबालना चाहिए इसलिए आंच को केवल इतना तेज़ रखें कि वह धीमे-धीमे उबलता रहे। स्टू पर नज़र रखें ताकि वह जलने न लगे।
अगर स्टू बहुत ज्यादा उबलने लगे तो आंच को धीमा करें।
13. सूप को हिलाएं जब तक वह ठीक से गाढ़ा हो जायेः
आप सूप को लगातार एक बड़े लकड़ी या प्लास्टिक के चम्मच से हिलाते रहें। इससे सूप जलने से बच जायेगा और आपको पता रहेगा कि सूप किस हालत में है और उसे कितना और गाढ़ा करना है।
आपको स्टू के बर्तन से थोड़ा दूर खड़ा होना चाहिए। नहीं तो, उसके अंदर से निकलने वाली भाप से स्किन जल सकती है।
14. जब पानी सूख जाये तो स्टू को आंच पर से हटायेंः
उबालने से जब स्टू का पानी सूख जाये तो बर्नर को ऑफ करें। स्टू के बर्तन को स्टोव पर एक ठंडी जगह पर या कूलिंग पैड (cooling pad) के ऊपर रखें। सूप को दो-चार मिनट तक ठंडा होने दें, बीच-बीच में उसे हिलाएं।
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उत्तरदाताओं की सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकिकीय विशेषतायें
यदि हम धूम्रपान तथा हृदय कैन्सर के बीच में सम्बन्ध स्थापित करना चाहे तो हमें तथ्यों की आवश्यकता पड़ती है। यदि हम किसी औषधि या टीके के प्रभाव की जानकारी करना चाहते हैं, तो हमें तथ्यों की आवश्यकता पड़ती है। यदि हम समाज की किसी भी समस्या की जानकारी करना चाहते हैं तब भी हमें सांख्यिकीय आंकड़ों की आवश्यकता पड़ती है।
प्रत्येक राष्ट्र अपनी सीमाओं में निवास करने वाले प्राणियों से सम्बन्धित होता है अतः उसे समाज की आवश्यकताओं तथा समस्याओं का बोध होना चाहिये जैसे- उनका स्वभाव आकार तथा सम्पूर्ण जनसंख्या में उनका वितरण आदि । किस प्रकार ये समस्याऐं एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती हैं और वे एक समयावधि में सामाजिक, आर्थिक परिस्थितिवश परिवर्तित होती हैं। इस प्रकार की किसी भी समीक्षा के लिये कुछ निश्चित मापक अनिवार्य होते हैं । यही सामाजिक, आर्थिक तथा जनांकिकीय तथ्य कहलाते हैं जो जन्म, मृत्यु, विवाह, शिक्षा, व्यवसाय तथा आय से सम्बन्धित होते हैं जो सामुदायिक जीवन में विद्यमान होते हैं। यथार्थ रूप से सम्पादित वर्गीकृत तथा विश्लेषित घटनाऐं समाज की वर्तमान स्थिति एवं समस्याओं को मापने के यंत्रों का कार्य करते हैं ।" युवाओं में मादक द्रव्य सेवन की प्रकृति ज्ञात करने हेतु, यथा- जनसंख्या, आय, वितरण, जन-घनत्व तथा अन्य कारक जैसे- पोषण, आवासीय स्थिति, सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरणीय
सेवाऐं - संस्थाऐं युवाओं की स्थिति तथा समस्याओं का ज्ञान और उनकी तुलना समुदाय से करना है कि उनकी वर्तमान तथा भूतकाल में क्या स्थिति थी, उनकी भावी आवश्यकताओं की पहचान करने हेतु अनुरूप लक्ष्यों का निर्धारण करना, कार्यक्रम की रचना, क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन आदि जनसंख्यात्मक प्रक्रियाओं यथा जन्मदर, जनसंख्या घनत्व, विवाह दर, वृद्धि दर तथा सामाजिक गतिशीलता पर निर्भर करता है । ये प्रक्रियाऐं निरंतर रूप से जनसंख्या के निर्धारण में, रचना में तथा आकार निर्मित करने में कार्यरत रहती हैं ।
सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताऐं अधिकांशतः जनसंख्या से सम्बन्धित होती हैं क्योंकि युवाओं में समूह सदस्यों के गत्यात्मक सम्बन्धों जो अन्तः क्रियाओं के रूप में होते हैं पर निर्भर होता है। साथ ही उनमें आकार तथा कार्यकुशलता आत्मसात होती है, जिसके आधार पर वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं । मानव जीवन को निर्धारित करने में उसके सामाजिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पर्यावरण मनुष्य के जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है तथा उसके सामाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक स्वरूप को भी निश्चित करता है । किसी विशिष्ट पर्यावरण में व्यक्ति की कार्य पद्धति तथा जीवनशैली का स्वरूप किस प्रकार का होगा; यह बहुत कुछ उसके पर्यावरण पर ही निर्भर करता है क्योंकि पर्यावरण व्यक्ति को विवश करता है कि वह अपने को उसके अनुरूप ढाले । मनुष्य की अवोध प्रगति उसकी सामाजिकता का ही परिणाम है। समाज के सम्पर्क में आने पर ही वह जैवकीय प्राणी से सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होता है । मनुष्य तथा उसके चारों ओर का परिवेश अर्थात् पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य को उसके इस पर्यावरण से अलग नहीं किया जा सकता है । श्री तिलाश के0एस0 (1990:132) ने भी उस कथन की
पुष्टि करते हुऐ कहा है कि "मनुष्य एक चिन्तनशील तथा जिज्ञासु सामाजिक प्राणी है जिसका जीवन समाज में ही पनपता है और निकटवर्ती भौतिक परिवेश तथा पर्यावरण के मध्य अन्तः क्रियाऐं करते हुऐ सामाजिक परिवेश में जीवनयापन करता है, जिसे सामाजिक पर्यावरण से कदापि पृथक नहीं किया जा सकता है क्योंकि पर्यावरण एक प्रकार का "ताना" है जिसमें प्राणी रूपी "बाना" डालने से ही समाज के "सजीव वस्त्र' का निर्माण होता है ।" किसी भी मनुष्य को अत्याधिक जानने-समझने के लिये उसके सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण को जानना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यही उसकी सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है । मानव भी अन्य प्राणियों की भांति जैवकीय प्राणी है परन्तु उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उसे अन्य प्राणियों से भिन्न बनाती है क्योंकि वह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक, वैयक्तिक तथा शैक्षिक विशेषताओं का सम्मिलित रूप है । मनुष्य उपरोक्त विभिन्न पक्षों से मिलकर ही सम्पूर्णता को प्राप्त करता है । सुस्पष्ट है कि सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत मनुष्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी सन्दर्भ में श्री लवानिया (1967:203) ने लिखा है कि "सम्पूर्ण रूप से यह 'सजीव वस्त्र' मनुष्य मात्र के लिये सामाजिक पृष्ठभूमि है, जो वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण से निर्धारित होती है।" "सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति पर उसके पर्यावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभावों को मूलतः दो रूपों में ग्रहण किया जाता है :(1) वंशानुक्रमण तथा
(2) पर्यावरण/संगति व साहचर्य
जहां एक ओर व्यक्ति को शारीरिक रचना (आँख, कान, नाकनक्शा, रंगरूप आदि) वंशानुक्रम से प्राप्त होते हैं वहीं दूसरी ओर उसे शिक्षा, संस्कार, जीवनमूल्य, व्यवसाय, व्यवहार, आदतें, लगाव आदि पर्यावरण से प्राप्त होते हैं, इसलिये कोई भी व्यक्ति वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण के पड़ने वाले प्रभावों को नकार नहीं सकता है। जैसा कि शारस्वत (1993:157) ने लिखा है कि, "मनुष्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उस समुदाय की सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न अंग होती है जिसमें कि वह सामाजिक प्राणी रह रहा होता हैं।" सुस्पष्ट है कि सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत मनुष्य की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। श्री रयूटर तथा हार्ट ने भी सामाजिक व्यवस्थापन के संदर्भ में लिखा है कि, "समाज में मनुष्य की सामाजिक पृष्ठभूमि उसके सांस्कृतिक पर्यावरण का एक अभिन्न अंग होती है जिसमें कि व्यक्ति रह रहा होता है अथवा रह चुका है ।"
किसी मनुष्य की आदतें, स्वभाव, रहन-सहन का स्तर, जीवनशैली, वैचारिकी आदि उसकी सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से ही निर्धारित होती है अर्थात् उसके चारों ओर के भौतिक परिवेश का उसके जीवन के प्रत्येक पहलू पर अवश्यंभावी प्रभाव पड़ता है। इस सन्दर्भ में प्रोफेसर अग्रवाल का कथन है कि, "मानव केवल एक जैवकीय प्राणी नहीं है बल्कि इसके अतिरिक्त भी कुछ है और इसके अतिरिक्त वह जो कुछ भी है उसके कारण उसके व्यवहार, आचार-विचार, चिन्तन तथा जीवनशैली आदि प्रभावित होते है ।"
यह भी सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि प्रत्येक सामाजिक प्राणी की सामाजिक प्रस्थिति तथा भूमिका के निर्धारण में उसकी सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसी प्रसंग में सर्वश्री मिश्रा पी0के0
(1997:37) ने लिखा है कि, "चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिये उसकी आकांक्षाऐं तथा आवश्यकताऐं अनन्त है । इन आकांक्षाओं व आवश्यकताओं के प्रति उसकी क्रियाशीलता, सफलता-असफलता, उसके सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन की पृष्ठभूमि को निर्धारित करती है।
अनुसंधान के क्षेत्र में सामाजिक विज्ञान के प्रायः सभी शोध अध्ययनों में निर्देशितों की सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक विशेषताओं का अध्ययन अवश्य किया जाता है बल्कि प्राकृतिक विज्ञानों के शोध अध्ययनों में भी इनका गहन तथा सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है । इसलिये सामाजिक विज्ञानों के शोध अध्ययनों में इनके अध्ययन की महत्ता बढ़ जाती है क्योंकि उत्तरदाताओं की सामाजिक, सांस्कृतिक विशेषताओं की अवहेलना नहीं की जा सकती है।
यही कारण है कि किसी भी सामाजिक विज्ञान के अनुसंधान में यह आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य होता है कि अध्ययन की इकाईयों के सामाजिक- आर्थिक तथा सांस्कृतिक पक्षों को जानकर उनका गहन तथा सूक्ष्म अध्ययन किया जाये क्योंकि व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का निर्माण कई कारकों से मिलकर होता है। इसी संदर्भ में श्री सत्येन्द्र (1992:49) ने लिखा है कि, "विशेषकर सामाजिक विज्ञानों के शोध अध्ययनों में सूचनादाताओं की सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा आर्थिक दशाऐं अहम होती हैं।"
शोध अध्ययनों में उत्तरदाताओं की सामाजिक सांस्कृतिक विशेषताओं का अध्ययन इसलिये भी आवश्यक है कि अगर हम उत्तरदाताओं की समस्याओं का अध्ययन गम्भीरता तथा सूक्ष्मता से करना चाहते हैं तो हमें उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि सभी विशेषताओं का ज्ञान होना अत्यावश्यक है तभी हम उनकी समस्याओं के कारणों को ठीक से समझ सकेंगे। चूंकि शोधार्थी का
शोध विषय "युवाओं में मादक द्रव्यों के सेवन की प्रकृति एवं प्रभाव का अध्ययन" है की सामाजिक, आर्थिक स्थिति तथा मनौवैज्ञानिक समस्याओं से सम्बन्धित है अतः प्रस्तुत शोध अध्ययन में उनकी सामाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक विशेषताओं का अध्ययन अत्यावश्यक तथा महत्वपूर्ण हो जाता है । सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना आवश्यक होती है । अतः कार्य-कारण सम्बन्धों को स्थापित करने के लिये सामाजिक, सांस्कृतिक विशेषताओं को जानना आवश्यक है । साथ ही इन कार्य-कारण सम्बन्धों का सामाजिक घटनाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है, इन्हें जानना भी सरल हो जाता है क्योंकि व्यक्ति के रहन-सहन, चिन्तन, जीवनशैली आदि सभी पर उसके चारों ओर की भौतिक तथा सामाजिक विशेषताओं का प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। कोई भी अनुसंधानकार्य तभी सफल कहा जा सकता है जब इसमें सामाजिक घटना के सभी पहलुओं का अध्ययन गहनता से किया जायें । इसलिये शोध अध्ययन में उत्तरदाताओं की सभी विशेषताओं का अध्ययन करना अनिवार्य हो जाता है।
यदि हम शोध अध्ययनों में व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृतिक विशेषताओं को नजर अंदाज कर दें तो फिर वह अध्ययन सामाजिक प्राणी (मनुष्य) का नहीं बल्कि जैवकीय प्राणी (मानव शरीर) का होगा और नितान्त अपूर्ण कहलायेगा । क्योंकि सामाजिक, आर्थिक तथा जनांकिकीय सूचनाओं के बिना सामाजिक अनुसंधान की कल्पना उस जहाज से ही की जा सकती है जो बिना लक्ष्य के व्यर्थ चक्कर काटता रहता है। सुस्पष्ट है कि व्यक्ति सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक आदि सभी विशेषताओं का योग है। साथ ही सामाजिक तथ्यों के निरूपण के लिये भी इनका अध्ययन अनिवार्य हो जाता है ।
प्रत्येक सामाजिक अनुसंधान का आवश्यक परिणाम अध्ययन किये गये विषय के सम्बन्ध में निष्कर्ष प्रस्तुत करना तथा भविष्यवाणी करना होता है। परन्तु यदि हम विषय का सम्पूर्ण अध्ययन ही नहीं करेगे तो उससे प्राप्त निष्कर्ष सत्यता पर आधारित नहीं होगे तथा उनके आधार पर की गई भविष्यवाणी के गलत होने की सम्भावना बढ़ जायेगी । अतः शोध अध्ययन के वैज्ञानिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये परमावश्यक है कि चयनित उत्तरदाताओं की समस्त विशेषताओं का गहन अध्ययन किया जाये। किसी भी सामाजिक घटना का सूक्ष्म अध्ययन करके ही उसके निवारण के उपाय ढूंढने में सफलता मिलती है । इसलिये युवाओं की विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का अध्ययन करने के दृष्टिकोण से अत्यावश्यक है कि उन युवाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आर्थिक तथा शैक्षिक स्तर, मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक आदि विशेषताओं का सूक्ष्म अध्ययन किया जाये तभी मानव व्यवहार को समझना सरल हो सकता है ।
युवाओं के सुधार की नीति विचारणीय रूप से अधिक ग्रन्थिपूर्ण है क्योंकि नगर क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्ध ग्रामीण परम्परागत परिस्थितियों की तुलना में बहुत भिन्न तथा अधिक उलझे होते हैं । युवाओं का कल्याण (सुधार) अनेक कारकों पर निर्भर करता है । नीति निर्धारकों का अधिकांश समय नीति निर्धारण में लग जाता है क्योंकि कम तथा अनुपयुक्त सूचनाओं के कारण विशेषकर इन युवाओं के सम्बन्ध में कोई भी नीति तब तक सार्थक लाभ प्रदान नहीं कर सकती जब तक उन प्राणियों के बारे में पर्याप्त तथ्य प्राप्त नहीं होते जिनके बारे में नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं ।
इस पृष्ठभूमि में इस आशय में उत्तरदाताओं के सम्बन्ध में उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकिकीय विशेषताओं की पहचान करने का प्रयास
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सा उच्चगोअ मणुदुग, सुरदुग पचिदिय जाइ पण देहा । आइतितणूणुवगा, आइमसघयण सठाणा ॥१५॥ वण्णचउक्कागुरुलहु, परघाउस्सास आयवुज्जोअ । सुभखगइनिमिणतसदस, सुर नर तिरिआउ तित्थयर ॥१६॥ तस बायर पज्जत पत्तेअ थिरं सुभ च सुभग च । सुस्सर आइज्ज जस, तसाइ दसग इम होइ ॥१७॥
अर्थ - १ साता वेदनीय २ उच्चगोत्र ३ मनुष्यगति ४ मनुष्यानुपूर्वी ५ देवगति ६ देवानुपूर्वी ७ पचेन्द्रियजाति पाँच शरीर ८ औदारिक ९ वैक्रायिक १० आहारक ११ तैजस १२ कार्मण । तीन अगोपाग - १३ औदारिक अगोपाग १४ वैक्रियक अगोपाग १५ आहारक अगोपाग १६ वज्रर्षभनाराच सघयण १७ समचतुरस्र संस्थान, शुभ वर्ण चतुष्क - १८ वर्ण १९ गन्ध २० रस २१ स्पर्श, २२ अगुरुलघु नाम कर्म २३ पराघात २४ स्वासोच्छ्वास २५ आतप २६ उद्योत २७ शुभ विहायोगति २८ निर्माण । त्रसदशक २९ त्रस ३० बादर ३१ पर्याप्त ३२ प्रत्येक ३३ स्थिर ३४ शुभ ३५ सुभग ३६ सुस्वर ३७ आदेय ३८ यश कीर्ति ३९ देवायु ४० मनुष्यायु ४१ तिर्यगायु ४२ तीर्थङ्कर नाम कर्म । ये पुण्य प्रकृतियाँ है ।
पापतत्व की ८२ प्रकृतियाँ इस प्रकार है नाणतरायदसग, नव बीये नीयअसाय मिच्छत्त । थावरदस- निरयतिग कसाय पणवीस तिरियदुग ॥ १८ ॥ इग - वि - ति - चउ, जाईओ, कुखगइ उवघाय हुति पावस्स । अपसत्थं वण्ण चउ अपढम सघयण सठाणा ॥१९॥
अर्थ - ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच- १ मति ज्ञानावरणीय २ श्रुत ज्ञानावरणीय ३ अवधि ज्ञानावरणीय ४ मन पर्याय ज्ञानावरणीय ५ केवल ज्ञानावरणीय । पाच अन्तराय की- ६ दानान्तराय ७ लाभान्तराय ८ भोगान्तराय ९ उपभोगान्तराय १० वीर्यान्तराय । दर्शनावरणीय की नव - ११ चक्षुदर्शनावरणीय १२ अचक्षुदर्शनावरणीय १३ अवधि दर्शनावरणीय १४ केवल दर्शनावरणीय १५ निद्रा १६ निद्रानिद्रा १७ प्रचला १८ प्रचलाप्रचला १९ स्त्यानर्द्धि २० नीच गोत्र २१ असातावेदनीय २२ मिथ्यात्व मोहनीय । स्थावर दशक - २३ स्थावर २४ सूक्ष्म २५ अपर्याप्त २६ साधारण २७ अस्थिर २८ अशुभ २९ दौर्भाग्य ३० दुस्वर ३९ अनादेय ३२ अयशकीर्ति ३३ नरकगति ३४ नरकानुपूर्वी ३५ नरकायु । ३६ अनन्तानुबन्धी क्रोध ३७ अ० मान ३८ अ० माया ३९ अ० लोभ ४० अप्रत्याख्यानी क्रोध ४१ अप्र० मान ४२ अप्र0 माया ४३ अप्र० लोभ ४४ प्रत्याखानी क्रोध ४५ प्रत्या० मान ४६ प्रत्या० माया ४७ प्रत्या० लोभ ४८ सज्वलन क्रोध ४९ स० मान ५० स० माया ५१ स० लोभ । ५२ हास्य ५३ रति ५४ अरति ५५ भय ५६ शोक ५७ जुगुप्सा ५८ स्त्रीवेद ५९ पुरुषवेद ६० नपुसकवेद ६१ तिर्यग्गति ६२ तिर्यगानुपूर्वी । ६३ एकेन्द्रिय जाति ६४ द्वीन्द्रिय जाति ६५ त्रीन्द्रिय जाति ६६ चतुरिन्द्रिय जाति ६७ अशुभ विहायोगति ६८ उपघात नाम कर्म ६९ अशुभवर्ण ७० अशुभगन्ध ७१ अशुभ रस ७२ अशुभ स्पर्श ७३ ऋषामनाराच समयण ७४ नाराच सघयण ७५ अर्द्धनाराच सघयण ७६ कौलिका सघयण ७७ सेवा सघयण ७८ न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान ७९ सादि संस्थान ८० वामन संस्थान ८१ कुब्ज संस्थान ८२ हुण्डक संस्थान । अत पुण्य पाप दोनों ही कर्म रूप है । सुख व दुख रूप भोगे जाते हैं । यही कहते हैं.
कम्ममसुह दुहद, सुहकम्पं भुंजइ सुहरूव । तहवि कह सुहरूव, ज ससार पवड्ढेइ ॥३॥
व्याख्याः - जीव के मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योगों की जो शुभाशुभ भाव रूप परिणति होती है, उन्होंके द्वारा स्वक्षेत्रगत कार्मणवर्गणा के ग्रहण से शुभाशुभ रागद्वेष कषाय स्थान की परिणति से- रसभेद परिणमन से पुण्य पाप प्रकृतियों का वन्ध होता है । यह सब आत्मा का स्वरूप नहीं है । हेतु परिणत जीव के द्वारा जो कर्म अशुभ ज्ञानावरणीयादि रूप से किये जाते हैं, वे दुखदायक और शुभ-साता वेदनीयादि बॉधे जाते है, वे भोगते समय सुख रूप लगते हे । यथार्थ से अवलोकन करने पर पुण्य कर्म कैसे सुख रूप माना जाय ) जो एकान्त रूप से असार है । भोगते हुए ससार की प्रकर्षरूप से वृद्धि करने वाला कहा गया है । वह पुण्य मेरा अर्थात् आत्मा का स्वरूप नहीं है ।
उसी को उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझाते है
किसी चाडालिनी के दो पुत्र हुये, जन्मते ही एक पुत्र को सदाचारी ब्राह्मण ले गया, दूसरा अपने हो घर रहा । विप्र के पास वह बालक स्नान दान अध्ययनादि कार्य करता हुआ उत्तम आचारवान् बन गया और जो चाडाल के घर रहा वह माँस मदिरादि का सेवन आदि चाडाल क.. करने लगा । एक ही माता को कुक्षि से उत्पन्न होने पर और समान यु सदृश पुद्गल निर्मित होने पर भी दोनों ही निमित्तभेद से और आच से विभिन्न अवस्थाओं - स्थितियों वाले बने । इसी प्रकार पुण्य पुद्गल स्कन्धो से निष्पन्न, मोह के हेतु आत्मगुणों को आवृत करने विपाक मे तुल्य हैं । तथापि भोगते समय आस्वाद भेद से भिन्न अनुभव होने से, पुण्य और पाप रूप से प्रसिद्ध है, तथापि विपाक भेद होने पर सम्यग्दृष्टि जीवो के स्वगुणों को रोकने रूप अविपाक स्वरूप होने से तुल्यता का भास नहीं होता । अत "वेश भेद से कुल भेद" इस न्याय से पुण्य व पाप का क्षेत्रावगाहित्व होने पर भी वे आत्मा के नहीं; पर ही हैं, ऐसा तीर्थङ्कर देवों ने कहा है । शुभाशुभ परिणाम का निमित्तत्व होने से
कारण भेद है। शुभाशुभ पुद्गलों में परिणत होने से स्वभाव-भेद है । और शुभाशुभ फल का पाक होने से अनुभूति भेद है। एक ही कर्म कुछ शुभ और कुछ अशुभ है ऐसा भी कितने ही लोगों का जो मत है, वह तो प्रतिपक्ष है । तथापि शुभ, अशुभ तो जीव का परिणाम है । केवल पुद्गल मय होने से एकत्व होने पर स्वभाव भेद से एक कर्म शुभ या अशुभ फल पाक वाला है वह जीव का परिणाम है । भेदत हो केवल पुद्गलमय होने से एक देह मे एकत्व होने व अनुभव भी होने से दोनोपुण्य पाप एक ही कर्म के दो रूप है ।
अब दोनो की विपाक भिन्नता दिखलाते हैं -
सोवण्णमय पि निअड रोहएड कालसपि गुण भाव ।
तह रोहइ जीअ सत्ति सुहासुह कम्म भुज्जत ॥४॥ व्याख्या - जैसे सोने की बेडी चलना आदि प्राणी की शक्ति को रोकती है वैसे लोहे की वेडी भी । रोकने रूप धर्म दोनों का समान ही है वैसे हो कर्मोदय से प्राप्त पुण्य भी अव्यावाघ आदि आत्म गुणों का ५१. क है । कर्मोदय से प्राप्त पाप भो आत्मगुणों का अवरोध करता है । अवरोधक रूप कार्य दोनों का तुल्य होने से दोनों ही पुण्य और र्म है । यद्यपि पुद्गल स्वत जीव के गुणों को नहीं समझता पर व द्वारा गृहीत पुद्गल ही आत्मा के गुणों को आवृत करने वाले हो जाते हैं। स्वयं जीव स्वगुणरोधक स्वभाव वाला नहीं है, परन्तु कुशोल ससर्ग से ऐसा होता है । अत कुशील का आचरण और राग का ससर्ग मत करो, आत्म गुणों का नाश कुशील व राग से ही होता है। इसी को स्पष्ट करते हैं
रत्तो बधई कम्म मुच्चइ जीवो विराय सपन्नो । एसो जिणोवएसो तम्हा कम्मेसु मा रज्ज ॥५॥
व्याख्याः- "जो रागो है वह अवश्य ही कर्म वाघता है और विरागी ही मुक्त होता है" ऐसा जिनेश्वर देवों का उपदेश है । अतः पुद्गलादि मे राग रखना अज्ञान है । सर्व पर - भावों में विरक्तता करनी चाहिये । अपने ज्ञान दर्शन चारित्रादि धर्मो को सम्यक प्रकार से ग्रहण करने वाला आत्मा ही सर्व दोषो से मुक्त होता है । अतः तत्वज्ञ जन आत्मतत्व में रत और सर्व पर - भावों से विरत हो रहते हैं ।
अब "सम्यग्ज्ञान मोक्ष का हेतु है" यह बताते है.. परमट्टो खलु समओ सुद्धो जे केवली मुणी णाणी । तम्मि (म्हि) ट्ठिया सहावे मुणिणो पावति निव्वाण ॥ ६ ॥ व्याख्याः - मुख्यरूप से आत्मा के दो गुण हैंः - १ ज्ञान, २ दर्शन । जैसा कि भगवती सूत्र मे - "गुणओ उवओग गुणे" गुण से आत्मा के उपयोग - ज्ञान और दर्शन गुण है । ऐसा पाठ है । औपपातिक सूत्र मे भी -
" असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे अ णाणे य । सागार मनागारं लक्खणमेय तु सिद्धाण ॥ ११ ॥ वे सिद्ध अशरीरी है मात्र जीव स्वरूप होने से जिनके प्रदेश घनरूप हैं, ज्ञान और दर्शन में जिनका सदा उपयोग लगा रहता है, वह उपयोग साकार व अनाकार भेद से दो प्रकार है पर दोनों साथ ही रहते है । यही सिद्धों का शुद्ध आत्माओं का लक्षण है ॥११॥
ग्यारहवे गणधरवाद मे भी कहा है कि क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और सिद्धत्व सिद्धावस्था में होते है और कोई तो दानादि पचक और चारित्र सिद्धों के भी मानते है ।
और तत्वार्थकार से यथार्थ मे आशिक मतभेद है, कि वे सम्यक्त्व भी वहाँ सिद्धावस्था मे स्वीकार करते हैं । मुख्यरूप से तो दो गुण ही आत्मा
के माने गये है। उनके अभिप्राय में आत्मा का वास्तविक स्वरूप ज्ञान ही है । उनकी क्रिया ज्ञान की ही प्रवृत्ति है । वह कारणावस्था में होती है, अतएव कहते है -- ज्ञान ही मोक्ष हेतु है। शुभाशुभ कर्म बन्ध की हेतु होने से अज्ञान अवस्था में की गई क्रिया, मोक्ष की हेतु नहीं है । वही ज्ञानमय आत्मा, जो भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म से भिन्न चिदानन्दमय, परमार्थमय, और वास्तविक परमार्थ है । इसे ग्रन्थकार ने यों कहा है कि समय अर्थात् स्वभाव ही निश्चय से परमार्थ है । उस स्वभाव में स्थित मुनिजन ही निर्वाण प्राप्त करते हैं ।
इस वाक्य से आत्मा के अपने असख्य प्रदेशों में व्याप्त व्यापक भाव से परिणत ज्ञान आनन्दादि स्वगुण ही स्वभाव रूप है । वह स्वसमय स्वभाव ही परमार्थ है । उस परमार्थ में स्थिति अर्थात् स्वरूप स्वभाव में जो रहना है, वहीं मोक्ष हेतु है स्वरूपालम्वन के बिना परमार्थ शून्यजन जो जप तप व्रतादि अनुष्ठान करते हैं, वो सब बालतप ही है, और निर्वाण का साधन नहीं है । कल्पभाष्य में कहा हैपरमट्ठमि नु अट्ठिआ, जे नाण तव च धारिति । त सव्व बालतव चालवय बिति सव्वन्नू ॥१॥
अर्थ - परमार्थ मे नही रहे हुये जो ज्ञान-तप आदि धारण करते हैं उन सब को सर्व बालतप और बालव्रत कहते हैं और विष गरलादि रूप से किये गये सभी अनुष्ठान संसारवृद्धि के लिये है । अत परमार्थ रहित जो करना है, वह सब संसार का हेतु है ।
आणाए तवो आणाए संयमो, तह य दाणमाणाए । आणारहियो धम्मो, पलाल पूलव्व पडिहाई ॥७॥
अर्थ - आज्ञा से ही तप संपम और दान आदि धर्म, धर्म रूप है । तीर्थकर की आशा रहित धर्म कार्य, भूसे के पूले के समान त्यागने योग्य है ।
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कि सम्पूर्ण व्यवहार परिवर्तन में मानदण्ड की भूमिका ही अहम् होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षक को शिक्षक प्रत्यय एवं शिक्षक-व्यवहार का बोध होना चाहिए। इस अध्याय में शिक्षक प्रत्यय, शिक्षक प्रभावशीलता एवं शिक्षक व्यवहार का विवेचन किया गया है2.1 शिक्षक की अवधारणा (Concept of a Teacher)
इसकी परिभाषा तीन रूपों में की गई है(1) शिक्षक एक व्यवसाय के उद्देश्य से (Teacher as an Aim-Job),
(2) शिक्षक एक कौशल के लक्ष्य से (Teacher as a Skilled-Job) तथा
इकाई-2: प्रभावी और प्रतियोगिता आधारित अध्यापक शिक्षा
(3) शिक्षक एक भूमिका के रूप से (Teacher as a Role-job)।
इनका विवरण निम्नांकित पंक्तियों में किया गया है( 1 ) शिक्षक एक व्यवसाय के उद्देश्य से (Teacher as an Aim-Job)-शिक्षक-व्यवसाय को कुछ लक्ष्यों के रूप में परिभाषित किया गया है; जैसे-एक किसान के व्यवसाय का लक्ष्य होता है-कृषि की विभिन्न क्रियाओं का सम्पादन करना। इसी प्रकार शिक्षक व्यवसाय में शिक्षक को शिक्षण उद्देश्य के अनुसार विभिन्न क्रियायें करनी होती हैं। एक डॉक्टर का मुख्य लक्ष्य बीमार को स्वस्थ करने के लिए निदान करना तथा उसके उपचार हेतु दवा देना होता है । इस प्रकार स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि व्यवसाय-लक्ष्य का तात्पर्य शिक्षक के व्यवसाय से होता है।
( 2 ) शिक्षक एक कौशल के लक्ष्य से (Teacher as a Skilled-job) - एक शिक्षक केवल ऐसा व्यक्ति ही नहीं होता कि वह दूसरों की शिक्षा के लिए ही परिस्थितियों का सृजन करता हो वह अपितु अपने शिक्षण में कार्य-कुशलता एवं दक्षता भी विकसित करता है। इस प्रकार वह व्यक्तियों के कथनों की पुष्टि भी करता है । वह सिखाता ही नहीं अपितु स्वयं भी अभ्यास से व्यवसाय-कौशल को विकसित कर लेता है। अनुभव की परिस्थितियाँ सीखने का मुख्य आधार होती हैं। एक शिक्षक को अनेक कौशलों की आवश्यकता होती है। इस सम्बन्ध में कोई सामान्य कथन नहीं दिया जा सकता है। इसमें यह भी सम्भव हो सकता है कि शिक्षक अपने छात्रों के अध्ययन में किस प्रकार के शिक्षण कौशल का उपयोग करता है। एक शिक्षक को शिक्षण-कौशल तथा सामाजिक कौशलों की आवश्यकता होती है। एक शिक्षक का उत्तरदायित्व अपने छात्रों के प्रति ही नहीं होता अपितु प्रशासक के प्रति भी होता है।
( 3 ) शिक्षक एक भूमिका के रूप से (Teacher as a Role-job)-शिक्षक के प्रत्यय को समझने के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि शिक्षण की 'भूमिका निर्वाह' को व्यवसाय क्यों माना जाता है। एक शिक्षक के अपने उत्तरदायित्व एवं अधिकार होते हैं तथा उसे प्रशासक से भी सम्बन्ध रखने पड़ते हैं। यह अधिकार एवं कर्तव्य ही शिक्षक की भूमिका होती है।
(i) शिक्षक भूमिका का उपयोग कक्षा-शिक्षण के लिए व्यापक रूप में किया जाता है।
(ii) शिक्षक भूमिका का उपयोग विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये भी किया जाता है।
(iii) शिक्षक भूमिका एक सामाजिक कार्य होता है।
(iv) शिक्षक भूमिका का उपयोग उत्तरदायित्व एवं अधिकार के निर्वाह के लिए भी किया जाता है।
इस प्रकार की भूमिका में संस्था की क्रियाओं की व्याख्या की जाती है। इसके अन्तर्गत यह भी स्पष्ट होता है कि समाज और राष्ट्र के प्रति क्या-क्या विशिष्ट कार्य करने हैं?
एक शिक्षक का यह उत्तरदायित्व एवं कर्त्तव्य है कि उसे अध्ययनशील तत्कालीन समाज का बोध होना चाहिए तभी यह छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है तथा कक्षा-शिक्षण की भूमिका निर्वाह समुचित ढंग से कर सकता है। एक शिक्षक को शिक्षण का भी सही बोध होना चाहिए। इस संदर्भ में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने शिक्षक की व्यापक परिभाषा इस प्रकार दी हैA teacher can never truly teach unless, he is still learning himself. A lamp can never light another lamp unless it continues to burn its own flame. The teacher who has no living traffic
अध्यापक शिक्षा
with his knowledge, but merely repeats his students can only load their minds. He can not quicken them. - R.N. Tagore
एक शिक्षक वास्तव में तभी शिक्षण कर सकता है जब वह स्वयं अध्ययनशील रहता हो । एक जलता हुआ दीपक ही दूसरे दीपक को प्रज्ज्वलित कर सकता है। यदि एक शिक्षक ने अपने विषय का अध्ययन करना समाप्त कर दिया और अपने ज्ञान का आदान-प्रदान भी नहीं करता तब वह अपने छात्रों में जाग्रति नहीं ला सकता है। अपने शिक्षण में मात्र पाठ्यवस्तु को शामिल करके छात्रों के मस्तिष्क को बोझिल करता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार एक शिक्षक जीवन - पर्यन्त छात्र ही रहता है। उसे अपने विषय की पूर्ण जानकारी नहीं रहती है। शिक्षक को अपने छात्रों तथा अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने शिक्षक को एक दीपक की उपमा दी है। उपरोक्त परिभाषा का सारांश है - दीप से दीप जले ।
शिक्षक को जॉन लेटिन से भी सम्बोधित किया जाता है, जिसमें जॉन का अर्थ छात्र तथा लेटिन का अर्थ विषय होता है। इस प्रकार शिक्षक को अपने विषय तथा छात्रों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए तभी वह प्रभावशाली या आदर्श शिक्षक माना जा सकता है।
शिक्षक शब्द 'शिक्ष्' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है सीखना और सिखाना। एक शिक्षक स्वयं भी सीखता रहता है और छात्रों को सिखाता रहता है। शिक्षक को एक दार्शनिक की भी संज्ञा दी जाती है। आज शिक्षक को प्रबन्धक भी माना जाता है।
ओकशोट ने शिक्षक की चार क्रियाओं का उल्लेख किया है, जो शिक्षक को सामान्य रूप में करनी होती हैं(1) अपने छात्रों तक सूचनाओं का सम्प्रेषण करना,
(2) विषय सम्बन्धी सूचनाओं का सम्प्रेषण करना,
(3) सूचनाओं का ज्ञान होना जिसका उसे उपयोग करना है तथा
(4) विशिष्ट पाठ्यवस्तु के लिये अनुदेशनात्मक प्रक्रिया का उपयोग करना।
क्या आप जानते हैं प्राचीन काल में गुरुकुलों के शिक्षक आधुनिक प्रशिक्षण प्रणाली में प्रशिक्षित नहीं थे किन्तु शिक्षण के प्रति उनका समर्पित भाव उन्हें सक्षम एवं समर्थ शिक्षक बनाता था।
2.2 शिक्षक व्यवहार ( Teacher Behaviour)
शिक्षक विभिन्न परिस्थितियों में तथा विभिन्न सन्दर्भों में अनेक प्रकार के कार्य करता है। वह स्कूल की विभिन्न क्रियाओं में भाग लेता है। शिक्षक की इन सभी क्रियाओं को एक सामान्य वर्ग ( शिक्षक व्यवहार) में रखा जा सकता है। परन्तु विभिन्न शोध-प्रबन्धों में शिक्षक व्यवहार से जो तात्पर्य लिया गया है, वह इससे भिन्न है। रेयन्स (1970 ) के अनुसार, शैक्षिक व्यवहार से तात्पर्य व्यक्ति की उन सभी क्रियाओं तथा व्यवहार से है, जो किसी शिक्षक के करने योग्य मानी जाती है, विशेष रूप से वे क्रियाएँ जो दूसरों के सीखने में निर्देशन एवं मार्गदर्शन से सम्बन्धित है। म्यूएक्स तथा स्मिथ (1964) ने शिक्षक व्यवहार को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि शिक्षक-व्यवहार के अन्तर्गत शिक्षक की वह क्रियाएँ आती हैं, जो वह छात्रों के सीखने में उन्नति व वृद्धि करने हेतु विशेष रूप से कक्षा में करता है।
कक्षा में शिक्षण के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों का अवलोकन करता है, उनकी भावनाओं की अनुभूति करता है तथा अधिकाधिक समझने का प्रयास करता है, वह विषय-वस्तु को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है, उसका विश्लेषण करता है तथा व्याख्या करता है। इन सभी शिक्षण क्रियाओं में भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। अतः शिक्षण मुख्यतः एक शाब्दिक व्यवहार होता है । यद्यपि शिक्षक के चेहरे के हाव-भाव, शारीरिक क्रियायें आदि जैसे अशाब्दिक व्यवहार
इकाई - 2: प्रभावी और प्रतियोगिता आधारित अध्यापक शिक्षा
भी कक्षा में होते हैं, परन्तु निरीक्षणों से यह पता चलता है कि कक्षा शिक्षण में शाब्दिक व्यवहार को ही प्रधानता दी जाती है।
2.3 शिक्षक व्यवहार का सिद्धांत (Theory of Teacher Behaviour)
रेयन्स (1970 ) ने शिक्षक व्यवहार की जो परिभाषा दी है उसके दो प्रमुख आधार तत्व (Postulates) हैं - (1) शिक्षक व्यवहार सामाजिक व्यवहार है - रेयन्स के अनुसार शिक्षक व्यवहार एक सामाजिक व्यवहार है अर्थात शिक्षण प्रक्रिया में सिखाने वाले (शिक्षक) के अतिरिक्त सीखने वाले (छात्र) का उपस्थित होना आवश्यक है, जिसके साथ शिक्षक सम्प्रेषण क्रिया करता है और छात्रों को प्रभावित करता है। शिक्षक छात्र के मध्य व्यवहार पारस्परिक होता है। अतः न केवल शिक्षक ही छात्रों के व्यवहार को प्रभावित करता है बल्कि छात्र भी शिक्षक-व्यवहार को प्रभावित करते हैं ।
( 2 ) शिक्षक व्यवहार सापेक्षिक है- शिक्षक कक्षा में जो कुछ भी करता है, वह सामाजिक परिस्थितियों का परिणाम है, जिसमें शिक्षक पढ़ाता है। शिक्षक का व्यवहार अच्छा है या बुरा, सही है या गलत, प्रभावशाली
है या प्रभावहीन, इस बात पर निर्भर करता है कि शिक्षक का व्यवहार, छात्र उपलब्धि के प्रकार, अपेक्षित शिक्षण-विधियाँ किस सीमा तक उस संस्कृति के मूल्यों के साथ अनुरूपता रखती हैं, जिसमें वह रहता है तथा जिसके लिए वह भावी पीढ़ी को तैयार कर रहा है।
नोट्स शिक्षण में सफलता अनेक वैयक्तिक गुणों, आवश्यकताओं तथा वातावरण के अनेक तत्वों से संबंधित है। शिक्षक कुशलता हेतु कोई निश्चित मानदण्ड निश्चित करना एक जटिल कार्य है।
2.4 शिक्षक व्यवहार सिद्धांत की आधारभूत अवधारणाएँ ( Basic Assumptions Theory of Teacher-Behaviour)
(1) शिक्षक व्यवहार - परिस्थितिजन्य तत्वों तथा शिक्षक की वैयक्तिक विशेषताओं का कार्यकारी रूप है। शिक्षक का व्यवहार जो कुछ भी होता है उस पर बाह्य परिस्थितियों तथा शिक्षक की वैयक्तिक विशेषताओं का प्रभाव पड़ता है तथा इन दोनों के पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम ही शिक्षक-व्यवहार कहलाता है।
मैकडोनाल्ड ( 1959 ) ने शिक्षक व्यवहार को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया हैशिक्षक संबंधी चर
शिक्षक व्यवहार
छात्र संबंधी चर
रेयन्स भी शिक्षक व्यवहार के तीन कारकों पर बल देता है- (1) शिक्षक की विशेषताएँ, (2) परिस्थिति एवं ( 3 ) अन्तःक्रिया तथा पारम्परिक निर्भरता।
इस अवधारणा के साथ पुनः कुछ अभ्युदित रेयन्स ने दिये हैं1.
शिक्षक व्यवहार में विश्वसनीयता होती है।
शिक्षक व्यवहार में प्रतिक्रियाओं की संख्या सीमित होती है।
शिक्षक व्यवहार निश्चित न होकर सदैव सम्भावित होता है।
शिक्षक व्यवहार प्रत्येक शिक्षक की वैयक्तिक विशेषताओं का क्रियात्मक रूप होता है ।
शिक्षक-व्यवहार अपनी परिस्थितियों की सामान्य विशेषताओं का क्रियात्मक रूप है। शिक्षक-व्यवहार विशिष्ट परिस्थिति का जिसमें वह घटित होता है का क्रियात्मक रूप है।
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चंद्रप्रभ चरित[ श्लो० १४-१९.
हुआ। वह रानी कमलनिवासिनी लक्ष्मीके समान सुन्दरी और राजाके शरीरसे अभिन्न अर्थात् सच्ची अर्धांगिनी थी; अथवा यों कहो कि वे दोनों ' एक प्राण दो-देह' थे । प्रशंसनीय और शरदऋतुके स्वच्छ चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्ज्वल सारे पातिव्रत्य आदि गुण मानों अपने शरीरको अत्यन्त उज्ज्वल करनेके लिए शरीरकान्तिशोभा-रूपी निर्मल जलमें नहाकर, उस सुन्दरीके शरीर में इकट्ठे हुए थे । लक्ष्मीने सारे संसारकी सुन्दरियोंमें शील, क्षमा, विनय और रूप गुणके कारण पूजनीया जो श्रीकान्ता रानी हैं उन्हें अपने स्वामी श्रीषेणके मनको रमाने में सहायक रूपसे सादर स्वयं स्वीकार किया । देवसभामें गाया गया जो त्रिभुवनमें व्याप्त श्रीकान्ता रानी के रूपका चन्द्रमाके समान स्वच्छ यश है उसे सुनकर उनका सौन्दर्य पानेकी अभिलाषा करके तप करनेके लिए देवोंकी स्त्रियाँ भी स्वर्ग से पृथ्वीपर आनेकी इच्छा रखती हैं। सूर्यकी सबेरेके समयकी युतिके समान श्रीकान्ता रानी, चन्द्रमांकी कान्तिको परास्त किये हुए थी । सूर्यकी कान्ति दोषा अर्थात् रात्रिके सम्बन्धसे रहित होती है, रानी भी दोषके सम्बन्धसे रहित थी । सूर्यकी कान्ति तम ' अन्धकार से रहित होती है, रानी भी तम 'अज्ञान या तमोगुण, ' से शून्य थी । वह भी रम्य होती है, यह भी रम्य थी । सूर्यकी कान्ति कमलोंको प्रफुल्लित करती है, रानीने भी अपने बन्धुबान्धवोंको प्रफुल्लित कर रक्खा था। राजा श्रीषेणका यश चन्द्रमाके समान उज्ज्वल और दिशाओंको प्रकाशित किये हुए था । वे राजा धर्म और अर्थको बाधा न पहुँचने देकर उस रानीके साथ मान करने और मनानेके सुखका अनुभव करते हुए बहुत दिनोंतक आनन्द भोग करते रहे।
किन्नरगण जिनकी कीर्तिको गाते हैं ऐसे राजा श्रीषेण एक दिन सब कार्मोंसे निपट कर अन्तःपुरमें पधारे तो उन्होंने देखा कि उनकी
प्यारी रानी हथेली पर कपोल रक्खे आँखोंमें आँसू भरे हुए बैठी है । रानीकी यह दशा देखकर उसके समान ही दुःख राजाको भी हुआ । मानों रानीके दुःखको बँटानेके लिए ही घबराये हुए राजाने शीघ्रता के साथ रानीसे ऐसे भारी शोकका कारण पूछा। राजाने कहा- हे कमलनयने ! मैंने बड़े बड़े पराक्रमी शत्रुओंको परास्त कर रक्खा है और मेरा प्रबल प्रताप पृथ्वीमण्डल भरपर फैला हुआ है। ऐसे मुझ जीविते - श्वरके जीवित रहते किसी दूसरेके द्वारा तुम्हारा अपमान होना तो किसी प्रकार संभव ही नहीं है । और हे मत्तगजगामिनि ! संतापका मुख्य मित्र जो तुम्हारा विरह है उसे मैं क्षण भर भी नहीं सह सकता । इस मैं कारण तुम निश्चय समझो कि मुझसे भी प्रणयभंगकी संभावना नहीं है । हे चन्द्रमुखि ! तुम्हारी सखियाँ भी तुम्हारे चरणोंकी दासी हैं, उनका जीवन तुम्हारे अधीन है, वे सर्वथा तुम्हें प्रसन्न रखनेमें तत्पर रहती हैं, चे सरला हैं, उनका शरीर अर्थात् हृदय तुम्हारे हृदयसे भिन्न नहीं है । ऐसी सखियोंसे कोई कपट या अपराध होना भी असम्भव ही है । हे तन्वि ! तुम्हारे भृत्यवर्ग और बान्धवगण तुम्हारी इच्छाके अनुसार ही सब काम करते हैं; अन्तःपुरकी सघ स्त्रियाँ दासीकी तरह तुम्हारी आज्ञाका पालन करती हैं - वे तुम्हारी टेढ़ी भौंहको देख भी नहीं सकती। ऐसी दशा में यह भी अनुमान नहीं किया जा सकता कि किसीने तुम्हारी आज्ञा न मानी होगी । हे देवि ! तुम्हारे दुःखके इतने ही कारण हो सकते हैं। बतलाओ, इनमेंसे तुम्हारे इस शोकका कारण क्या है ? इस प्रकार राजाके पूछने पर लज्जाके मारे रानीने कुछ कहा तो नहीं, किन्तु वे अपनी बाल्यकालकी सखीके मुखकी तरफ देखने लगीं । दूसरेके इशारेको समझनेवाली उस रानीकी सखीने लज्जाके कारण मीठी और धीमी आवाज़ में यों कहा कि, हाँ देव, आपका कहना सच है । आपके भारी प्रेमको पाकर परम पूजनीया हमारी महारानीका तिरस्कार
चंद्रप्रभ चरितSAMMŲ LANKANA
या अपमान होना सर्वथा असम्भव ही है। महाराज, हमारी महारानीके इस विषादका कारण कुछ और ही है। दैव अर्थात् पुण्यके सिवा और किसीके द्वारा वह दूर नहीं किया जासकता । तथापि वह सब मैं महाराजके आगे वर्णन करती हूँ । आगे कर्तव्य वस्तुमें प्रमाण तो नियति ही है, अर्थात् जो बदा होता है वही होता है। ये महारानी आज महलकी छतपर मेरे साथ इस आपके प्रभावसे समृद्धिशाली नगरकी शोभा निहारनेको गई थीं । वहाँपरसे इन्होंने देखा कि सुन्दर सुन्दर धनियोंके बालक हाथकी थपकियाँ देदेकर गेंद खेल रहे हैं । उन चन्द्रमाके समान सुन्दर मुखवाले बालकोंको देखकर चिन्तासे इनका मुखारविंद मलिन होगया । इन्होंने सोचा कि ऐसे बालकोंको गर्भमें धारण करनेसे जिनका जन्म सफल होचुका है वे स्त्रियाँ धन्य हैं- मैं उनको अपनेसे कहीं अधिक भाग्यशालिनी समझ कर उनके समान होनेकी कामना करती हूँ । जिन्होंने पूर्वजन्म पुण्यसञ्चय नहीं किया है, और इसी कारण जो मेरे समान पुष्पवती होकर भी फलसे हीन हैं वे 'बाँझ' स्त्रियाँ वन्ध्या लताओंके समान इस लोकमें सुशोभित नहीं होती और सब लोग उनके निष्फल जन्मकी निन्दा करते हैं । गर्भ धारण ही स्त्रीका प्रसिद्ध धर्म हैं । जो स्त्री गर्भधारण के बिना ही स्त्रीशब्दको धारण करती हैं वे उसी अन्धेके समान, जो अपनेको सुलोचन कहलाना चाहता हो, जगत् में हँसी जाती हैं। जब चन्द्रमा आकाशमार्ग में नहीं रहता तब सूर्यदेव उसे अलंकृत करते हैं और ऐसे ही हंसोंसे शून्य सरोवरको कमलके कुसुम-समूह सुशोभित करते हैं। किन्तु कुलकामिनियोंके लिए वंशको बढ़ानेवाले बीज रूप पुत्रके सिवा और कोई भूषण नहीं है । उस अपने कुलके एकमात्र अलंकार तथा सौभाग्य, सुख और वैभवके स्थिर कारण पुत्रसे रहित जो मैं हूँ उस पुण्यहीनाको बन्धु-बान्धव, सुहृद्रण या पतिकी प्रसन्नता अथवा आदर कोई भी सुखी नहीं बना
सकता । हे देव । इसप्रकार विषादको प्राप्त रानीने उदास होकर अपना दुःख मुझसे कहा और आप पलँगपर पड़ रहीं । महाराज । मैंने देवीको बहुत तरहसे समझाया बुझाया भी पर उनका शोक रत्तीभर भी कम नहीं हुआ । सखीके मुखसे इसप्रकार रानीके विषादका कारण सुनकर राजाने एक लम्बी साँस ली और फिर उसके बाद रानीसे कहा कि, हे देवि ! जो वस्तु दैवके अधीन है उसके लिए शोक करना किसी तरह ठीक नहीं । देखो, यह शोक शरीर, इन्द्रियों और हृदयको सुखा डालता है । प्रिये ! तुम्हारे दुःखसे पहले तो मुझे ही दुःख होगा और मेरे दुःखसे सारी प्रजाको दुःख होगा । हे कृपामयी ! इस प्रकार सारे जनसमूहको सन्ताप देनेवाले बढ़ते हुए शोककी वशवर्तिनी मत बनो । पहले जन्ममें अपने परिणामके वशवर्ती होकर जिसने जो अच्छा या बुरा कर्म किया है उसीके अनुसार इष्ट या अनिष्ट फल प्राप्त होता है । फिर तुम अकारण क्यों शोक कर रही हो ? हे मन्दगामिनि ! पुत्रकी प्राप्तिको अत्यन्त असाध्य मत समझो । यदि भाग्य सर्वथा प्रतिकूल न होगा तो तुम्हारा यह मनोरथ बहुत ही शीघ्र पूर्ण होगा। इस जिनसमयमें केवलज्ञानी और अवधिदर्शी आदि अनेक प्रकारके रिद्धिधारी मुनि वर्तमान हैं । उनको, प्रबुद्ध और मोहको प्राप्त यह चराचर संसार करतलगतसा ज्ञात है। तुम्हारे शोकको दूर करनेके लिए सर्वथा उद्यत होकर मैं उन मुनियोंके निकट जाकर तुम्हारे पुत्र न होनेका कारण पूछूंगा और उसकी बाधा दूर करनेका पूरा प्रयत्न करूँगा। सब दिशाओंके राजाओंसे कर लेनेवाले उन राजाने इस प्रकार मनोहर वचनोंसे अपनी प्यारी रानीका शोक दूर कर दिया ।
एक समय, जब कि उपवन में वसन्त ऋतुकी शोभा फैली हुई थी, अत्यन्त कौतुकके साथ सुहृद्गण सहित राजा श्रीषेण अपने क्रीड़ावनमें उसकी शोभा देखनेके लिए गये। उस बाग़में मयूर नाच रहे थे,
PREDEN SVE
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चंद्रप्रभ चरित[ श्ली० ४३-५०.
कोकिलायें मन्द-मधुर शब्द कर रही थीं, स्वाद - भरे सुन्दर फल लगे हुए थे, पुष्पोंकी सुगन्ध फैली हुई थी, शीतल मन्द पवन डोल रहा था । ऐसे सब इन्द्रियोंको प्रसन्न करनेवाले उस बाग में महाराज श्रीषेण विहार करने लगे। इसी बीचमें श्रेष्ठ शोभा धारण करनेवाले और २५ प्रकार के मलोंसे राहत शुद्ध सम्यक्त्वको धारण करनेवाले राजाने सहसा देखा कि भारी तपस्या तेजसे शोभायमान और आकाशचारी अनन्त नाम अवधिज्ञानी मुनिराज आकाशसे नीचे उतर रहे हैं । आनन्दके मारे राजाके शरीर में रोमाञ्च हो आया । उन्होंने तमालतरुके तले विराजमान उन मुनिराजके संसारसागरके पार जानेके लिए नौकास्वरूप चरणों में भारी भक्ति के भारसे आप ही झुका हुआ मस्तक रखकर प्रणाम किया । दोषरहित परम आगमका उपदेश देनेवाले मुनिराजने अपने स्वरूपके ध्यान में लगी हुई समाधिको समाप्त करके श्वेतकमलके समान उज्ज्वल और धर्माभिषेक के जल सरीखी पवित्र मंद मुसकानसे राजाको नहलाते हुए आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद पाने के उपरान्त महाराज श्रीघेणने कली हुए कमलकुसुमके समान शोभायमान हाथ जोड़कर अपने उज्ज्वल दाँतोंकी चमकसे मुनिवरके चरणोंमें चन्दन चढ़ाते हुए यौ विनयपूर्ण वाणी कही - पापनाशके लिए बहुत दूर जाकर भी जिनके पवित्र रज- पूर्ण चरणोंका दर्शन करना चाहिए वे आप मुनिवर स्वयं मेरे यहाँ पधारे हैं ! आपके इस आगमनका कारण मेरे पूर्वजन्मके पुण्योंके सिवा और क्या हो सकता है ? भगवन् ! आपका दर्शन थोड़े । पुण्यसे नहीं प्राप्त हो सकता । हे सुचरित ! आपके दर्शनसे कल्याणकी वृद्धि होती है, विवेक बढ़ता है, पाप नष्ट होते हैं और ऐश्वर्यका अभ्युदय होता है । कहाँतक कहें आपका दर्शन सम्पूर्ण मङ्गलोंका मूल कारण है । हे मुनिनाथ ! जो हो गया है और जो होगा वह सब आप जानते हैं । इस लिए प्रसन्न होकर आप यह बताइए कि संसारका सारा हाल अच्छी
तरह जाननेपर भी अबतक उससे मुझे वैराग्य क्यों नहीं होता ? वे मुनिवर राजाके मनकी चिन्ताको जानकर उनके यों कहनेके उपरान्त बोले कि राजन ! जबतक पुत्रकी अभिलाषा बनी हुई है तबतक तुम्हें वैराग्य नहीं हो सकता । और जबतक तुम्हारे शत्रुकुलसंहारक वीर बालक नहीं उत्पन्न होता तबतक वह मानसिक चिन्ता मिट नहीं सकती । परन्तु पुत्र पैदा होनेपर भी तुम्हारे वैराग्य में विघ्न करनेवाला और एक पूर्वजन्मसम्बन्धी कारण वर्त्तमान है। वह कारण कहता हूँ -~-सुनो । यह तुम्हारी पटरानी पूर्वजन्म में इसी नगरके देवांगद नाम बनियेकी लड़की थी । इसकी माताका नाम श्री और इसका नाम सुनन्दा था । यह परम गुणबती थी और इसके पितासे सब बन्धु-बान्धव परम प्रसन्न थे । नासमझ सुनन्दाने जवानी में ही गर्भकी पीड़ासे व्याकुल और शिथिल शरीर हो जाने के कारण शोभाहीन एक दूसरी स्त्रीको देखकर ऐसी इच्छा की कि अन्य जन्ममें भी जवानी में मेरी ऐसी दशा न हो । यही इसके इस जन्म में अबतक पुत्र न होनेका कारण है । सुनन्दा श्रावकाचारका पालन करते हुए वह शरीर छोड़कर सौधर्म नाम स्वर्ग में देवबधू हुई । उसके बाद स्वर्गभोग समाप्त होनेपर यह फिर पृथ्वीपर आई और शेष पुण्यके कारण राजा दुर्योधनकी कन्या और तुम्हारी स्त्री हुई है । इस कारण पूर्वजन्मके कारणसे जवानीमें तुम्हारी राँनीके कोई बालक नहीं हुआ। राजन् ! कुछ दिनोंमें उस दोषके शान्त होने पर निःसंशय तुम्हारे पुत्र उत्पन्न होगा । चन्द्रमाके समान सबके मनको हरनेवाले उस परम तेजस्वी पुत्रको पृथ्वी के पालनका भार देकर तुम जिनदीक्षा ग्रहण करोगे और फिर सारे कर्मबन्धन क्षीण हो जानेपर तुम्हें निर्वाण प्राप्त होगा इस प्रकार संक्षेपसे ये वचन कहकर इष्ट-लाभकी सूचनासे राजा श्रीषेणको भलीभाँति आनन्दित करके वे मुनिवर यथेष्ट स्थानको चले गये ।
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१४ नार्वे का साहित्य
नार्वे को प्रकृति ने अपने हाथो संवारा है। यूरोप का वह प्राय उत्तरतम देश है। आधी रात को वहाँ सूर्य चमकता है और उषाकाल उत्तरी क्षितिज पर लघुतम अग्निपिण्ड उछलते हैं, अनन्त तारिकाएँ ज्वलन्त स्वर्णमयी नीहारिकाओ के रूप मे निरन्तर उछलती, टूटकर बिखरती रहती है । ऐसा नार्वे स्वाभाविक ही कवि की चेतना को जागृत करेगा । नार्वे के साहित्य का प्रारंभिक काल इसी कारण अपने अनूठे प्राकृतिक वातावरण में गायन का अभिराम स्वर लिये उतरा ।
३३० ई० पू० जब ग्रीक पीथियस् इग्लैंड और स्कॉटलैंड के समुद्रतट से नार्वे पहुँचा तब उस देश में आबादी का नाम न था । बर्फीले प्रसार पर प्रकृति जैसे सोती थी, जो जबतव बनैले जानवरो की उछल-कूद से अँगडाती, फिर सो जाती । नार्वे में मनुष्य को वस्तियो का विशेष विकास ईसा की प्रारंभिक सदियो में हुआ, और तब से उसकी आबादी निरन्तर बढती गई, यद्यपि जीने के साधन नार्वे के उन निवासियो के पास कम थे । यही कारण है कि उन्होने आसपास के देशो पर हमले शुरू किये । पास कुछ खाने को न था और समुद्र तट का जीवन उनके लिए ऐसा स्वाभाविक था जैसा मछलियो का होता है। इससे माँझी बनने में उन्हें किसी प्रकार की अडचन न पडी ।
नार्वे का आकार प्रकार वडा है पर आवादी थोडी है । वह आबादी भी अन्य देशो में एक बडी संख्या में बिखरी हुई है । इग्लैंड और अमेरिका में उसकी एक पर्याप्त संख्या है, और प्रचुर संख्या समुद्र पर है । समुद्र पर्वत और 'फ्योर्द' नावँ-निवासियो के जीवन मे रम गये हैं 'स्कीइंग और स्केटिंग के लिए जितना नार्वे के वर्फ से ढके पहाड और जमे पानी से दर्पण की भांति चमकती झीलें उपयुक्त है उतना दुनिया का कोई स्वल नही । मौंदर्य वहाँ सर्वत्र लहराता है और वह न केवल मानवेतर प्राकृतिक विभूतियो का हो एकान्त रूप है वरन् स्वय मानव का भी । और मानव तथा प्रकृति की यह अनन्य एकता मानव में एकान्त गायन की रति अनायास भर देती है ।
ईसा की दूसरी और छठी सदियों के बीच मनुष्य ने वहां अपने सास्कृतिक जीवन का आरंभ किया । १५ सदियो तक फिर लगातार, वहाँ, वह अपने विविध स्वरों में भगीन भरता रहा जिसका एक भाग 'वाइकिंग' कहलाता है। दूसरा अभिजातवर्गीव उमर कृतियो का गान है और तीसरा 'एट्टा' नाम की धार्मिक कविताएँ । इनमें अधिस्तर सभ्रान्त जमीदारो का ही सगीत मुखरित हुआ ।
वाइकिंग काव्य
'वाइकिंग' कविता का युग साधारणत दूसरी से सातवी सदी के बीच माना जाता । वह साहित्य अधिकतर हमलावर अभिजात कुलो का था, प्राय सारा का सारा अलिखित, जिसे लोग गा-सुनाकर सुरक्षित रखते थे । वाकिंग-काव्य स्वाभाविक ही चारण-काव्य है, जो लाक्षणिक रूप से 'स्काल्दिक' कहलाता है। त्योहारो के अवसर पर मंत्र के रूप में यह गाये जाते थे और इनको गाने तथा गाकर सुरक्षित रखने वाले चारण सरदारो के दरबार में रहते थे । वे दरबार - दरबार घूमते रहते थे। उनके प्रति लोगो की श्रद्धा थी और स्केण्डिनेविया (नार्वे, स्विडन और डेनमार्क) तथा ब्रिटिश द्वीपो में जहाँ भी वे पहुँच जाते उनको आदर और सरकार की कमी न रहती । वाइकिंग- अभिजात कुलो का जीवन आक्रान्ता का जीवन था, निरन्तर हमलो और युद्धो का जीवन, जिससे उनके सबध की कविताओ का भी ओजस्वी होना स्वाभाविक ही था, यद्यपि इसी कारण उनमें करुणा और दया का भी प्राय अभाव है । वाइकिग काव्य गर्वीले मानव की गर्वोक्ति है। सेनाओ के अभियान की धमक और अस्त्रो की झकार उनका प्राण है । उस काव्यधारा में वीरो की हुकार देवताओ के साहचर्य की निष्ठा रखती है और पूजा में भी दासत्व- प्रकाश का कही नाम नही होता । स्वय चारण सरदारों के प्रसाद पर जीने वाले अकिंचन गायक नही, अनेक बार तो स्वय हमलावर कबीलो के सरदार थे और सदा अभिजात वशघर । वे उन प्रशस्तियो को उद्गीरित करते थे जिनके भौतिक निर्माण में स्वय उनका भी हाथ रहा था । प्रगट है कि उन काव्यो की ओजस्विता सार्थक होगी, क्योकि उनके गायक स्वयं उनके निर्माता भी थे । नार्वे के साहित्य के इस प्रारंभिक काव्य का यह रूप सभवत ससार के साहित्य में अनूठा है। 'स्काल्दिक' काव्य अलकरण मे बडा ऋद्ध है। उसकी प्रभूत उपमाएँ दृश्य के साक्षात्करण में अत्यन्त सहायक होती हैं, और उसकी सादगी स्थिति को स्पष्ट करने में शक्तिम । अलकार के होते हुए भी उसमें कृत्रिमता का सर्वथा अभाव है। जीवन जैसे उसमें उवला पडता है।
अनेक बार उस 'स्काल्दिक' काव्य में वशावलियो का उल्लेख हुआ है । क्वाइन के कवि त्योदोल्फ' ने इस प्रकार की एक 'इगलिंग की वशावली' रची जिसमें उसके राजा सुकेशी हेराल्द के 'जन' का कुर्सीनामा प्रस्तुत हुआ । 'हालोगालैंड के श्रीमानो को वशाचलि' गाकर आइविन्द स्काल्दास्पिलिर ने भी उसी प्रकार प्रशस्तियो को इतिहासपरक बनाया । इन प्रशस्तियो से नार्वे के इतिहास लेखन को वडी सहायता मिली है।
उस काल के विख्यात चारण कवि त्योदोल्फ और आइविन्द थे जिन्होने श्रमदा हेराल्द और हाकन के दरबारो और सुकृत्यो का बखान किया । त्योदोल्फ की कविता
Agder poct Tjodolf of Kvine Eyvind Skaldaspillir
'पतझड का गान' जितनी मधुर थी, आइविन्द की 'राजा हाकन की स्मृति' उतनी ही शालीन । उनके समकालीन चारण कवि थोर त्र्योर्न हॉर्नक्लोवी ने भी कल्पना और ओज से प्रौढ काव्य रचा । वाइकिंग के जमाने में ही नार्वे निवासियो ने जो आइसलैंड को जीत कर वहाँ अपनी बस्तियाँ बसा ली थी उससे वहाँ के दसवी-ग्यारहवी सदियो के कवियों ने भी नार्वे के दृश्यो को ही अपनी कविता में चित्रित किया ।
वाइकिंग-काल में अनन्त ख्यातो और पौराणिक आख्यानो का भी एक विपुल समुदाय प्रस्तुत हुआ । लोक-साहित्य खूब फूला-फला जिसमे पहाड और समुद्र, परियो और दानवो की कहानियाँ असीम मात्रा में प्रस्तुत हुईं । उस काल का धर्म वह अभिजात्य धर्म था जो बाहर के आक्रमणो, समुद्र के वीर-कृत्यो तथा भू-स्वामिता से सबध रखता है। समुद्री राजाओ की कमी न थी और न उत्तरी तथा बाल्टिक समुद्रो की सतह पर वीर कृत्यो की कमी थी । काव्य एक नयी दिशा की ओर चल पडा, धार्मिक गायन की ओर । परिणाम हुआ 'एद्दा' काव्यधारा का उदय । 'एद्दा' कविताओ का स्वर बहुत कुछ होमर के स्वर से मिलता-जुलता है और राइनलँड तथा वर्गण्डी जीतने वाले वीर-कृत्यो से अनुप्राणित है । 'एद्दा' कविताओ का एक दल 'वीरो के गीत' नाम से सगृहीत है जिसका एक भाग 'देवताओ के गान' है। 'देवताओ के गान' का आधार 'वोलुस्पो' नवी या दसवी सदी मे लिखा वह सबल काव्य है जिसमें भविष्यवादिनी, 'वोल्वेन', सृष्टि की कहानी कहती है । कहानी व्याख्यात्मक है । उसमें सृष्टि का उदय, देवासुर संग्राम, मानव जाति के मूल और भाग्यो का बखान है । इनके बाद वह दैवी भविष्य के उन दिनो का काल्पनिक रूप अकित करती है जव अनाचार और क्रूरता, भ्रातृ-विनाश और नर-सहार ससार की एकमात्र क्रिया-शक्ति हो जायेंगे और पाप और पुण्य की शक्तियो के अतिम सघर्प मे उसका विराम होगा । उस सघर्ष का नाम भविष्यवादिनी ने 'राग्नारोक' दिया है । उस संघर्ष के बाद उसका कहना है, 'एक नये और सुन्दर ससार की अभिसृष्टि होगी ।' 'एद्दा' के गीतो में देवताओ के कृत्य और समस्याएँ भी अपना भाग पाती हैं। उनकी रचना ७०० से ११०० ई० के बीच हुई और उनका संग्रह १२०० ई० के लगभग हुआ । इन कविताओं का नाम तेरहवी सदी में "एद्दा" पड़ा जिसका अर्थ है "ओही" - पुस्तक । बोद्दी आइनलँड में एक स्थान का नाम था जहाँ यह कविताएँ नाव से ले जाकर एकत्र की गई । 'एद्दा' कविताओ का प्रवाह और सादगी वाइकिंग चारणो की कविताओं से कही अधिक है। विशेष कर 'वोलुस्पों' के दृश्य बड़े शालीन हैं और उनके वर्णन दृश्यो को मूर्तिमान कर देने में नितान्त समर्थ ।
१. Thobjorn Homklovn
यहा पर 'एद्दा' और 'स्काल्दिक' गीतो को स्पष्ट कर देना समीचीन होगा । 'एद्दा' कविताएँ वाइकिंग काल की सर्वोत्तम साहित्य कृतियाँ है । नार्वे के मानुषिक जीवन के कल्पना चित्र, उनके पुराणो, देवताओ, वीरो और तत्सबधी आख्यानो के साथ उनमे काव्यबद्ध हुए । उनकी शैली सक्षिप्त और मत्रवत् है, उनमे नाटकीय शक्ति है और असाधारण सादगी । सुननेवालो पर निस्सदेह उनका प्रभाव गहरा पडता होगा। उनके विपरीत "स्काल्दिक" गीत जो राजाओ-सरदारो के सस्मरण अथवा प्रशस्तियो का अकन करते हैं, जाने हुए कवियो की रचनाए है । यह कवि नार्वे के प्राचीनतम काल के कवि हैं, इनमें से कुछ आइसलैंड के भी है, बारहवी-तेरहवी सदियो के । स्काल्दिक कविताओ की शैली अलकार - बोझिल और उपमाओ के पेच से कसी है ।
आइसलैंड के साहित्यिको मे सबसे महान् स्नोरे स्तलसोन १ था जो १२४१ में मरा । उसका प्रधान ग्रन्थ 'हाइग्लिा' है। उसमे ११७७ तक के नार्वे के राजाओ का इतिहास अद्भुत क्षमता से अकित हुआ है । नार्वे की साधारण जनता उसे आज भी बडे चाव से पढती है । जब-जब नार्वे की राष्ट्रीयता को चोट पहुँची है तब-तब इसी ग्रन्थ के स्वर जनता की आवाज में बुलन्द हुए है । १८१४, १९०५ और १९४० का राजनीतिक इतिहास नार्वेई ग्रन्थ का दम भरता है ।
तेरहवी सदी में नाव का सबध यूरोप के इग्लैंड और फ्रास आदि देशो से सास्कृतिक तथा व्यावसायिक क्षेत्र मे पर्याप्त घना हुआ । उससे उन देशो के साहित्य का नार्वे पर छाया पडनी अनिवार्य थी। 'कागेस्पाइलेत' ( राजा का दर्पण ), जो एक सुन्दर सास्कृतिक सग्रह है, अनूदित साहित्य के रूप में इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है । इस सग्रह मे पश्चिमी यूरोप के वीर-काल की कविताएँ नार्वे की भाषा मे सगृहीत हुई । नार्वे की १४वी सदी साहित्य निर्माण की दिशा में कगाल सिद्ध हुई । इसका कारण काल-मृत्यु का वह परिणाम था जिसने यूरोप के अनेक भू-भागो को वीरान कर दिया। उसमें अधिक क्षति उस काल की संस्कृति के अग्रणी पादरियो को हुई जिससे साहित्य के क्षेत्र पर तुपारापात हो गया । हाँ, मध्ययुग की पिछली सदियों में निश्चय ही नार्वे में पर्याप्त काव्य-रचना हुई, यद्यपि मौलिक कविताओ का ही साहित्य में प्राधान्य रहा । उनका लिखित सग्रह १९वी सदी के मध्य पहली बार प्रस्तुत हुआ ।
नार्वे के उत्तर-मध्यकालीन लोकगीतो का सबध डेनी, अंग्रेजी और स्काटी 'वैलेड' कविता से है । इससे यह ध्वनि निकालने की आवश्यकता नही कि नावें के अपने 'बैलेडो' की कोई अपनी सत्ता नही । वस्तुत उनका अपना सौंदर्य है और उनकी शक्ति लिरिक अथवा वीर-काव्यो में कम हो पायी जाती है। उनकी मनोवैज्ञानिक और नाटकीय प्रौटता
Snore Sturlason
नार्वे का साहित्य
चैयक्तिक दृश्यो मे उन कविताओ मे प्राय सर्वत्र लक्षित होती है । उन लोकप्रिय काव्यकृतियो में मूल रूप से उन पौराणिक आख्यानो, विश्वासो और कथाओ का समावेश है जो नावें के पर्वत और समुद्र प्रधान जीवन को व्यक्त करती है । नार्वे के बौद्धिक इतिहास की १४वी, १५वी और १६वी सदिया साहित्य की दृष्टि से अनुर्वर कही गई है। परन्तु यह न भूलना चाहिए कि उसी काल उन लोक-कहानियो, का विशेषत साहित्य में आरम्भ हुआ था जो उस काल के लोक-विश्वास को प्रगट करती है । वे कथाएँ पीढ़ी दर पीढी १८४० तक कही जाती रही और तब उनको संग्रह के रूप में एकत्र कर लिया गया । उस पर्वतीय देश मे घाटियो का बाहुल्य है और इन्ही घाटियो में नावें की किसान जनता एक लबे काल तक अपना अविकृत जीवन बिताती रही थी, जब वीरे-धीरे यूरोपीय बौद्धिक धारा और साहित्यिक शैलियो का आन्दोलन वहाँ पहुचा । परन्तु यद्यपि, यूरोपीय साहित्य-चेतना ने नार्वे की भाषा तथा साहित्य को समृद्ध किया, वह उसकी मुलभूत प्रेरणाओ को विकृत न कर सकी। इसी कारण नार्वे की कला और साहित्य दोनो स्थानीय विशेषताओं से युक्त और अपनी आघारभूत प्रेरणाओ से अनुप्राणित हुए। उस साहित्य की लोक कथाओ में जब एरिक बेरेन्सिक ओल्ड' और थ्योडोर किटल्सन ने उनको चित्राकित कर दिया तब वे नार्वे में घर-घर की निधि बन गई । तब उनका अनुवाद अग्रेजी और फ्रेंच मे भी हुआ और लोकसाहित्य के अध्येताओ की वे मनन की वस्तु वन गई ।
धार्मिक सुधारवादी आन्दोलन ने नॉर्वे के इतिहास को भी प्रगति दी । वहाँ उसके प्रभाव से साहित्यिक चेतना सजग हो उठी । उस देश के पादरियो ने वौद्धिक जीवन की बागडोर तव अपने हाथ में ली। उनमें से अनेक कोपेनहागेन के विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रह चुके थे और वहाँ वे नये विचारो और विदेशी बौद्धिक प्रवृत्तियों के सम्पर्क में आये थे । १६वी और १७वी सदियों से उनके द्वारा नार्वे के साहित्य में मानवतावादी ज्ञान था रजित काव्यधारा का प्रवेश हुआ । फिर भी १८वी सदी में ही आधुनिक परपरा की प्रतिभा का उस देश में विकास हुआ । उसकी पहली मजिल लुडविग होत्वर्ग ने तय की । उसके प्रादुर्भाव से देश के साहित्य में एक नयी चेतना का आरंभ हुआ। उसका स्थान समसामयिक यूरोप के प्रधान मेधावियो में था । होल्वर्ग का जन्म वर्लिन में हुआ था । और अपनी तरुणावस्था में उसने हालँड, इग्लैंड, जर्मनी, फ्राम तथा इटली का ग्रमण किया था । इग्लैंड के अपने ढाई वर्ष के प्रवास में उसने क्वीन ऐन-कालीन वौद्धिक वातावरण से गहरा सम्पर्क स्थापित किया । परिणामस्वरूप जो उनने कॉमेडी नाटकों को एक लम्बी परपरा रच दी वह डेनी और नार्वे साहित्य के प्रवल पायें सिद्ध हुए । जीवन के
१ Enk Werershiold,
Theodore Kittelsen,
Luding Holberg
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कंपनी ओकिटल हाल ही में दिखाई दिया,2015 की शुरुआत में। मुख्य मालिक एक कंपनी है जो गैजेट्स के साथ 10 से अधिक वर्षों से काम कर रही है, इसलिए नए ब्रांड का विकास और प्रचार बड़ा और प्रतिस्पर्धी होगा। कंपनी "दुनिया के शीर्ष 10 फ्लैगशिप" सूची पर होने का दावा करती है। खैर, अभी के लिए, चीनी ने खुद को जोर से घोषणा की है और पहले से ही कई उच्च गुणवत्ता वाले मॉडल जारी कर चुके हैं। उनमें से एक फोन ओकिटल के 6000 प्रो बन गया।
चीनी लालची नहीं बन गए और एक बॉक्स में डाल दिया,एक स्मार्टफोन को छोड़कर, बहुत सारी रोचक चीजें। वैसे, बॉक्स स्वयं काफी प्रस्तुत करने योग्य है। उसके पास एक उज्ज्वल नारंगी रंग है, एक मोटी कार्डबोर्ड, स्पर्श करने के लिए सुखद है, जिस पर फोन के रंग के बारे में केवल एक बार कोड और जानकारी है।
अंदर ओकिटल के 6000 प्रो स्वयं है,जिसकी समीक्षा हम अब करेंगे। इसके तहत सभी आवश्यक दस्तावेज हैं, जिसमें उन्होंने स्लॉट के लिए "क्लिप" छुपाया। इसके अलावा, बॉक्स में आप चार्जर, यूएसबी केबल और ओटीजी पा सकते हैं। वैसे, बाद की मदद से आप एक और स्मार्टफोन चार्ज कर सकते हैं जिसमें बैटरी कमजोर है। लेकिन क्या पर्याप्त नहीं है, यह एक हेडसेट है।
लेकिन, शायद, ब्याज के साथ पारदर्शी द्वारा प्रतिस्थापित किया गया हैओकिटल के 6000 प्रो और पहले से ही दो सुरक्षात्मक फिल्मों के लिए सिलिकॉन केसः पहले से ही फोन स्क्रीन पर, दूसरा - दस्तावेजों के साथ। यह देखते हुए कि ऐसे मॉडल के लिए मामलों और फिल्मों को ढूंढना आम तौर पर मुश्किल होता है, यह उपकरण बहुत सफल होता है। खैर, हेडफोन को अलग से खरीदा जाना है।
चीनी ने डिजाइन पर उत्पादक रूप से काम किया हैOukitel K6000 प्रो। उपस्थिति का अवलोकन इस तथ्य से शुरू होना चाहिए कि यह मॉडल एक monoblock है। मामले के इस संस्करण के बारे में, आप लंबे समय तक बहस कर सकते हैं, फिर भी, सब कुछ काफी अच्छी तरह से और मजबूती से किया जाता है। इसके अलावा, अखंडता के कारण, "बैकलैश" मनाया नहीं जाता है।
पिछला कवर एल्यूमीनियम से बना है, प्लास्टिक के आवेषण ऊपर और नीचे रखा गया है। पक्षों पर एल्यूमीनियम किनारे को सभी संचार मॉड्यूल के उच्च गुणवत्ता वाले संचालन के लिए प्लास्टिक के साथ सामंजस्यपूर्ण रूप से जोड़ा जाता है।
सामने के लिए एक विशेष सुरक्षात्मक ग्लास हैOukitel K6000 प्रो, जिसकी समीक्षा इसकी गुणवत्ता की पुष्टि करती है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने बार-बार स्मार्टफोन गिरा दिया है, लेकिन स्क्रीन बरकरार रही है। हालांकि असफल परिणाम के मामले थे।
पर्याप्त रूप से बड़ी स्क्रीन का किनारा - रंग मेंशरीर, तो यह एक गहरे विकल्प की तरह दिखता है। यह दृश्य रूप से डिस्प्ले फ्रेम को बढ़ाता है, जो इसे बड़ा दिखता है। खरीदारों दो रंग उपलब्ध हैंः चांदी और भूरे रंग। सामने के "चांदी" संस्करण में फोन पूरी तरह से सफेद है, लेकिन पिछला पैनल हल्का भूरा है।
नीचे के सामने क्लासिक तीन हैंटच बटन, और केंद्र शीर्ष पर एक बातचीत स्पीकर द्वारा कब्जा कर लिया गया है। बाएं हाथ के कोने के करीब "सामने" स्थित है, और दाईं ओर एक निकटता और रोशनी सेंसर है।
चूंकि यह एक कैंडी बार है, इसलिए सिम कार्ड स्लॉट और मेमोरी कार्ड फोन के बाईं ओर स्थित हैं। आप इसे उसी "क्लिप" के साथ खोल सकते हैं। दाईं ओर वॉल्यूम और लॉक (ऑफ) बटन बने रहे।
ऊपर, जैसा कि कई अन्य स्मार्टफोन में है -हेडफ़ोन के लिए एक जगह, और निचले सिरे पर अकेले माइक्रो-यूएसबी कनेक्टर है। केंद्र के पीछे शीर्ष पर एक ध्यान देने योग्य कैमरा है, जिसके तहत एक फिंगरप्रिंट स्कैन करने के लिए एक खिड़की है। लेंस के बाईं ओर एक डबल डायोड फ़्लैश है।
बैक पैनल पर खरीदते समय आप इसका पता लगा सकते हैंएक निर्देश के साथ एक स्टिकर जो बताता है कि सिम कार्ड स्लॉट कहां है और इसका सही तरीके से उपयोग कैसे करें। फोन को दो सिम कार्ड स्लॉट प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एक मेमोरी कार्ड के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यही है, या तो एक सिम कार्ड और एक मेमोरी कार्ड उपलब्ध है, या दो सिम कार्ड। इस मुद्दे के बारे में, उपयोगकर्ताओं के पास भी दावा था। ऐसा लगता है कि समाधान काफी दिलचस्प है। लेकिन कुछ को दो बार "सिम्स" और एक मेमोरी कार्ड की आवश्यकता होती है।
Oukitel K6000 प्रो समीक्षा के ergonomics पर आप कर सकते हैंदो "शिविर" में बांटा गया। इनमें से एक महिलाएं शामिल हैं, जिनके लिए स्मार्टफोन के आयाम काफी असामान्य हैं, दूसरे के लिए - जो लोग फोन का उपयोग करके सहज महसूस करते हैं।
डिवाइस को चिकना कोनों को प्राप्त हुआ, जिससे बन रहा हैशास्त्रीय कवरेज में सुविधाजनक। फिंगर्स तुरंत बटन की स्थिति मानते हैं, जिन्हें एक हाथ से भी आदत से उपयोग किया जाता है। इस तथ्य के बावजूद कि सभी चाबियाँ बहुत चिकनी हैं, वे भी स्पष्ट हैं, जो आकस्मिक क्लिक से बचने में मदद करती हैं।
एक और अच्छी खबर यह है किमूल K6000 Oukitel Pro में एक फिंगरप्रिंट स्कैनर है। और इस विकल्प के लिए लेंस के नीचे की जगह बहुत सुविधाजनक है, क्योंकि उंगली तुरंत एक छोटे से "छेद" में पड़ जाती है। यह फ़ंक्शन सही ढंग से काम करता है, जल्दी से काम अनलॉक कर रहा है, इसलिए इसमें कोई प्रश्न नहीं है।
विकर्ण प्रदर्शन 5.5 इंच, और संकल्प -FullHD। आज के मानकों के अनुसार, स्मार्टफोन की कीमत के मुताबिक यह एक अच्छा विकल्प है। स्क्रीन छवि की गुणवत्ता उत्कृष्ट है, आईपीएस मैट्रिक्स रंगों को शांत बनाता है। यदि पर्याप्त चमक नहीं है, तो इसे आसानी से जोड़ा जा सकता है। फोन में कोई अन्य स्क्रीन सेटिंग्स नहीं हैं।
देखने कोणों से प्रसन्न। केवल रंग की अधिकतम झुकाव के साथ ही शायद ही फीका। बाकी में एक ही तस्वीर अपरिवर्तित बनी हुई है। डिवाइस की चमक इष्टतम है। पूरी तरह से अंधेरे में अपनी आंखें मत डालें, और धूप वाले दिनों में आप आसानी से अपने स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं।
Oukitel K6000 प्रो स्क्रीन के लिए, उपयोगकर्ता समीक्षा सकारात्मक हैं। विशेष रूप से प्रसन्नता इसका आकार है, जो आपको यूट्यूब पर आसानी से फिल्में और वीडियो देखने की अनुमति देता है।
स्मार्टफोन एक नए एंड्रॉइड 6.0 मार्शमलो द्वारा चलाया जाता है। बिल्ट-इन लॉन्चर आपके लिए इंटरफ़ेस को समायोजित करने में मदद करता है। आप आइकन की उपस्थिति को बदल सकते हैं और डेस्कटॉप सेटिंग्स में सुधार कर सकते हैं।
शेष फोन बिना "साफ" ओएस के साथ उपलब्ध हैअतिरिक्त सॉफ्टवेयर, जिनमें से कुछ अभी भी हटा दिया जाना है। एंड्रॉइड द्वारा शटर छोड़ा गया था। सेटिंग मेनू, संपर्क, मैसेंजर और डायलिंग नंबरों के बारे में भी यही कहा जा सकता है।
डेवलपर्स ने मेनू पर काम किया है। इंटरफ़ेस बहुत उच्च गुणवत्ता और सुविधाजनक था। प्रक्रिया में कई चरणों हैं, जिनमें से प्रत्येक स्पष्ट रूप से वर्णित है।
एंड्रॉइड 6.0 मार्शमलो डिवाइस के साथ सही तरीके से काम करता है। पूरी तरह से प्रणाली स्थिरता से काम कर रहा है। यह अच्छी तरह अनुकूलित है, और अतिरिक्त सॉफ्टवेयर की कमी के कारण धन्यवाद, यह भी तेज़ है।
फोन के लिए, हमने मीडियाटेक प्रोसेसर तैयार कियाMT6753, 8 कोर पर चल रहा है, जिसकी घड़ी आवृत्ति 1.3 गीगाहर्ट्ज है। शेली के लिए माली-टी 720 एमपी 3 के लिए ज़िम्मेदार है। प्रो विकसित रैम के संस्करण के लिए 3 जीबी जितना अधिक है, जो बहुत अच्छा है, क्योंकि इसका हिस्सा ओएस का उपयोग करता है। यहां अंतर्निहित स्मृति 32 जीबी है। इसलिए, फोन को अक्सर "सिम कार्ड" के लिए उपयोग किया जाता है, क्योंकि मेमोरी कार्ड की आवश्यकता न्यूनतम होती है।
बेशक, इस डिवाइस को गेमिंग नहीं कहा जा सकता है, लेकिन अंदरगेमर के उद्देश्यों, आप सुरक्षित रूप से इसका उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध खिलौना लारा क्रॉफ्टः रिलिक रन इस मॉडल पर मुफ्त है, जिसमें औसत 60 एफपीएस है।
टैंक की लोकप्रिय दुनियाः ब्लिट्ज ने लगातार 50-60 एफपीएस दिखाए। अधिकतम सेटिंग्स पर सही ढंग से काम किया गया और गॉडफायरः प्रोमेथियस का उदय, लेकिन पहले से ही 30 एफपीएस के साथ। सामान्य रूप से, डिवाइस का प्रदर्शन उच्च स्तर पर होता है।
लेकिन Oukitel K6000 प्रो समीक्षा की आवाज के बारे मेंअलग। सबसे अधिक संभावना है, यह निर्माण की गुणवत्ता के कारण है, और फिर भी ऑडियो ट्रैक की गुणवत्ता हेडसेट के साथ और बिना औसत से ऊपर है। कम आवृत्तियों को हाइलाइट करता है, जो अक्सर पर्याप्त नहीं होते हैं। संगीत और फिल्में बहुत अच्छी और प्राकृतिक लगती हैं।
बातचीत गतिशीलता के बारे में भी यही कहा जा सकता है। बिना किसी शोर के, इंटरलोक्यूटर अच्छी तरह से सुना जाता है। आप स्पीकर की मात्रा समायोजित कर सकते हैं, क्योंकि यह काफी "शोर" है।
शायद, चीनी सभी उपयोगकर्ता प्रतिक्रिया पढ़ें, क्योंकि कोई भी विवरण गुणात्मक रूप से किया जाता है। स्मार्टफोन ओकिटल के 6000 प्रो ने 16 मेगापिक्सल और फ्रंटॉकॉय पर 8 मेगापिक्सेल पर उच्च गुणवत्ता वाले मुख्य कैमरा प्राप्त किए।
कैमरा मेनू "एंड्रॉइड" के लिए मानक है, लेकिन वहां हैकुछ उपयोगी जोड़ों। एचडीआर मोड की उपस्थिति को प्रसन्न करता है, पैनोरमा शूट करता है, चेहरों की तलाश करता है आदि। शूटिंग मोड की अच्छी तरह से ट्यूनिंग अच्छी तरह से काम करती है। इसलिए, यदि उपयोगकर्ता इसे समझता है, तो छवियां और भी बेहतर होंगी।
दावा किया गया 16 एमपी उनके जवाब देते हैंसूचकांक। यह सब उच्च संकल्प के कारण है। इसलिए, दोपहर या शाम को चित्र अच्छे हैं। दोहरी फ्लैश उज्ज्वल प्रकाश प्रदान करता है, ताकि आप बिना किसी समस्या के रात में तस्वीरें ले सकें।
फ्रंट कैमरा 8 मेगापिक्सल का औचित्य देता है। स्वयंसेवक और वीडियो कॉल दिन में शोर से मुक्त होते हैं। इसलिए, सामाजिक नेटवर्क में फोटो पोस्ट करने और संवाद Oukitel K6000 प्रो ग्रे के साथ और अधिक आरामदायक हो गया।
डेवलपर्स ने अधिकतम विकल्पों पर कड़ी मेहनत की है। एक धमाके के साथ सभी संभावित लांचर, कैमरा और सॉफ्टवेयर काम करते हैं। वायरलेस इंटरफेस द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाई जाती है।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, उपयोगकर्ता उपलब्ध हैं2 सिम कार्ड यदि आप उनमें से किसी एक को कॉल प्राप्त करते हैं, तो दूसरा नींद मोड में प्रवेश करता है। एक सिम कार्ड को मेमोरी कार्ड में बदलना संभव है। इस मामले में, हर कोई उसे जो चाहिए उसे चुनता है। लेकिन इस बात पर विचार करते हुए कि यहां आंतरिक मेमोरी 32 जीबी है, अधिकतर, वे अक्सर दो टेलीकॉम ऑपरेटरों के समर्थन का उपयोग करेंगे।
चूंकि फोन काफी उन्नत है, इसके पास एक पसंदीदा 4 जी मानक भी है, जो अब उच्च मांग में है। सामान्य गति के साथ ट्रांसमिशन स्थिर है।
शेष मॉड्यूल सभी आधुनिक स्मार्टफ़ोन में निहित हैंः वाई-फाई और ब्लूटूथ। वायरलेस इंटरनेट भी घर पर और सार्वजनिक स्थानों पर गुणवत्ता संकेत प्राप्त करने के साथ-साथ अच्छी तरह से काम कर रहा है।
खैर, आखिरकार, स्मार्टफोन ओकिटल के 6000 की हाइलाइटप्रो ग्रे उसका अकेला काम है। यही कारण है कि यह डिवाइस दुकान में अपने "सहयोगियों" के बीच लोकप्रिय हो गया। बेशक, 10 हजार एमएएच की बैटरी के साथ एक और अधिक शक्तिशाली डिवाइस है, लेकिन हम 6000 एमएएच की थोड़ी कम क्षमता वाली बैटरी के बारे में बात कर रहे हैं, जो मॉडल के नाम से स्पष्ट है। अब यह स्पष्ट है कि ओकिटल के 6000 प्रो की कीमत इस प्रभावशाली प्लस पर निर्भर करती है।
उपयोगकर्ता लंबे समय से इस तथ्य का आदी हो गए हैंऔसत स्मार्टफोन चार्ज किए बिना केवल एक कामकाजी दिन "लाइव" कर सकता है। कोई पहले से ही चार्ज करने में फोन की निरंतर आवश्यकता पर ध्यान नहीं देता है, कोई ऐसे "अत्याचारी" उपकरण से ऊब जाता है।
शायद, पिछले चीनी और आविष्कार के लिएOukitel K6000 प्रो। स्मार्टफोन की विशेषताएं इतनी प्रतिस्पर्धी हैं, लेकिन इतनी बड़ी बैटरी क्षमता आमतौर पर एक उपहार है। बैटरी का परीक्षण करने से पता चला है कि अगर बैटरी ठीक से "रिचार्ज किया गया" है, तो फोन रिचार्ज किए बिना एक सप्ताह तक पकड़ सकता है। बेशक, यह विकल्प केवल डिवाइस के मध्यम उपयोग के साथ संभव है।
अगर मालिक फिल्मों को देखना चाहता थासड़क, स्मार्ट 11 घंटे तक चलेगा। फोन का पर्याप्त रूप से सक्रिय उपयोग - कॉल, सर्फिंग, फोटो, संगीत सुनना और गेम खेलना - इस मॉडल को केवल 3-4 दिनों के बाद निर्वहन करेगा। इस तथ्य के कारण कि ओकिटल के 6000 प्रो की कीमत मध्यम है, इसे एक नेविगेटर के रूप में भी लिया जाता है, क्योंकि यह एक वास्तविक "लंबा यकृत" है।
अब यह स्पष्ट है कि किट में ओटीजी-केबल की उपस्थिति - अनिवार्य नहीं है। आखिरकार, आप चार्ज आसानी से अन्य उपकरणों के साथ साझा कर सकते हैं।
इस तरह डेवलपर्स को ओकिटल के 6000 मिल गयाप्रो। विशेषताएं स्मार्टफोन को प्रतिस्पर्धी बनाती हैं, और दुनिया के फ्लैगशिप के "शीर्ष 10" में शामिल होने का कंपनी का वादा काफी यथार्थवादी है। डिवाइस वास्तव में गुणात्मक, तेज़, सुंदर, और सबसे महत्वपूर्ण, दृढ़ता से बाहर निकला।
चीन में, आप इस फोन को 142 के लिए ऑर्डर कर सकते हैंडॉलर, जो आश्चर्यजनक है, यह विचार कर रहा है कि यह कितना अच्छा हो गया। पागल बैटरी जीवन के अलावा, मॉडल को एक नया संकल्प वाला फिंगरप्रिंट स्कैनर मिला, एक अच्छा रिज़ॉल्यूशन वाला एक बड़ी स्क्रीन। कैमरे 16 और 8 मेगापिक्सल पर लेंस से अच्छी तस्वीरें लेता है। एक बंडल खुश नहीं हो सकता है।
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Ghazwaye Hind vs Akhand Bharat: ग़ज़्वाये हिंद बनाम अखण्ड भारत!
Ghazwaye Hind vs Akhand Bharat: आमतौर पर मुस्लिम की जो पहचान मीडिया पेश करता है वह सर पर टोपी पहने और लम्बी दाढ़ी रखे एक मौलाना टाईप के व्यक्ति की होती है। इस वेशभूषा और हुलिये के अलावा भी एक बड़ी तादाद मुसलमानों की मौजूद है जिनकी सामान्य वेशभूषा है और वह इन मौलाना टाईप की वेशभूषा वालों से अलग हैं और काफ़ी शिक्षित, सेक्यूलर और प्रगतिशील हैं। उन्हे अपनी सामाजिक जिंदगी में आने वाली किसी भी समस्या या सवाल के लिए किसी मौलाना के पास जाने की ज़रुरत नही है बल्कि वह अपने विवेक से ज़्याद सही निर्णय लेने में समर्थ और सक्षम हैं लेकिन ऐसे लोगों से मीडिया घबराता है क्योंकि उनको टीवी बहस में ऐसे हुलिये और बौद्धिक क्षमता के लोग चाहियें जो मीडिया के उल्टे-सीधे सवालों पर या तो बगलें झांकने लगे या ऐसी प्रतिक्रिया दें जिससे मुस्लिम समाज का मज़ाक़ उड़े। इसके अलावा मीडिया मुसलमानों के बारे में एक डर फैलाता है कि उनकी आबादी बढ़ रही है और वह एक दिन भारत पर कब्ज़ा कर लेंगे। आज हम उसी डर पर चर्चा करेंगे।
डर यानि फ़ोबिया । डर मानव की एक सहज भावनात्मक प्रवृत्ति या प्रतिक्रिया है जैसे ज़ोर से आवाज़ होने या अचानक किसी के तेज़ आवाज़ में डांटने या अंधेरे से डर जाना। यह कोई बीमारी नही है लेकिन जब बिना बात या किसी अंधविश्वास या प्रचार का शिकार होकर कोई व्यक्ति या समाज किसी व्यक्ति या समुदाय से अत्याधिक भयभीत होने उससे डरने लगता है तब यह फ़ोबिया कहलाता है जो बीमारी की केटेगरी में आता है। फ़ोबिया अनेक प्रकार का होता है। किसी को तंग जगह से डर लगता हे तो कोई दांत की तकलीफ़ से डरता है तो कोई मकड़ी, कुत्ते, सांप-बिच्छू आदि से डरता है। आज हम इस फ़ोबिया नामक बीमारी पर ही बात करने जा रहे हैं। हम अपने समाज और दुनिया के अनेक हिस्सों में फैले धर्मो के फ़ोबिया पर बात करेंगे। धर्मो का फ़ोबिया यानि कोई व्यक्ति या समाज दूसरे धर्म के मानने वालों से भयभीत होने लगे। हिन्दू, मुस्लिम धर्म या ईसाई धर्म के मानने वालों से डरने लगे और मुस्लिम या ईसाई, हिन्दू धर्म के मानने वालों से खौफ़ खाने लगे। आज हम दो अलग अलग फ़ोबिया पर बात करेंगे एक इस्लामोफ़ोबिया और दूसरा हिन्दू फ़ोबिया। इनमें से हर फ़ोबिया अनेक तत्वों यानि एलीमेंट से मिलकर बना है इसलिए हम उन अनेक एलीमेंटस में से दोनों में पाये जाने वाले एक-एक एलीमेंट पर बात करेंगे। हम इस्लामोफ़ोबिया के एक एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद और हिन्दू फ़ोबिया के एलीमेंट अखण्ड भारत पर बात करेंगे। सबसे पहले इस्लामोफ़ोबिया के एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद पर बात करते हैं। गज़्वायें हिंद का विचार एक हदीस से निकला है। हदीस यानि वह बातें जो इस्लाम के पैंग़म्बर हज़रत मौहम्मद ने अपने सम्पर्क में आने वाले किसी शख्स से कही चाहे वह किसी सवाल के जवाब में या बतौर नसीहत कही हों। उनकी इन बातों को यानि हदीसों को उनकी मृत्यु के लगभग 211 साल बाद एकत्रित किया गया। इस्लामी आलिमों ने इन हदीसों में से बड़ी तादाद उन हदीसो की मानी है जो दलाईल के पैमाने पर कमज़ोर, जर्जर यानि जईफ़ या संदिग्ध हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि अनेक शासकों ने अपने किसी काम या आचरण को सही ठहराने और उसपर जनता की सहमति लेने के लिए पैग़म्बर साहब के नाम से उनको गढ़ा है। इसी तरह की हदीसों में औरत की गवाही को आधा यानि जिस बात की गवाही के लिए एक मर्द पर्याप्त है उसके लिए दो औरतों की गवाही चाहिये। यह उन पुरुष शासकों या धार्मिक पद पर आसीन व्यक्तियों ने औरत की हैसियत को पुरुष की तुलना में कम करने उन्हे मानसिक रुप से अपने अधीन रखने के लिए किया।
ग़ज़्वाये हिंद के बारे में जो हदीस है वह पैग़म्बर हज़रत मौहम्मद साहब की वफ़ात के 211 साल बाद सन् 843 में बसरा यानि मिस्त्र में पैदा हुये नईम इब्ने हम्माद नामक इस्लामी विद्वान द्वारा संकलित की गई जिसको उन्होने अपनी किताब, "किताब अल फ़ितना" में दर्ज किया। यह हदीस संकलन कर्ता, इस्लामी न्यायशास्त्र के माहिर इमाम अबू हनीफ़ा के मुखालिफ़ थे और इनके बारे में भी यह कहा जाता है कि इन्होने भी अनेक हदीसों को गढ़ा था। इनकी किताब में ही वह हदीस है जिसमें कहा गया है कि खुरासान से काले झंडे लिए हुये एक लश्कर निकलेगा जिसका रुख़ भारत की ओर होगा यहां वह गैर मुस्लिमों से जंग करेगा और उन्हे हराने के बाद वहां के बादशाह को जंजीरो से बांधकर वापस सीरिया पंहुचेगा जहां उनकी मुलाकात ईसा इब्ने मरियम यानि मरियम के बेटे हज़रत ईसा से होगी। इसी किताब में इस हदीस को दूसरी तरह से पेश किया गया है कि यूरोशलम का बादशाह योद्धाओं का एक लश्कर हिंद और सिंध की ओर भेजेगा जो वहां के मूर्तिपूजकों से जंग करेंगे और विजय हासिल करने के बाद वहां का खज़ाना ज़ब्त करके वहां के राजा को जंजीरो से बांधकर वापस यूरोशलम के बादशाह के सामने पेश करेगे और जो लूटा हुआ खज़ाना होगा उससे यूरोशलम का सौंदर्यकरण करेंगे। अब इसमें दो अलग अलग कहानियां हो गई एक यूरोशलम यानि आज के इज़राईल की और दूसरी मध्य एशिया के क्षेत्र खुरासान की।
खुरासान ईरान के एक प्रदेश का नाम भी है और यह भी कहा जाता है कि प्राचीन खुरासान में इरान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का क्षेत्र आता है। तालिबान के विरोधी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट आॅफ खुरासान जिसने काबुल हवाई अडडे पर हमला किया था वह अपना लक्ष्य इस पूरे क्षेत्र को मिलाकर प्राचीन खुरासान देश का निर्माण करना बताता है। अगर हम इस हदीस को सच भी मान लें तो यह भविष्यवाणी उस दौर के बारे में है जब दुनिया में बादशाही निज़ाम था जिसमें झंडे और तलवारें-भाले-तीरकमान लेकर घोड़ों या ऊंटों पर सवार फ़ौज किसी बादशाह या बादशाह द्वारा नियुक्त किसी योद्धा के नेतृत्व में निकलती और दूसरे बादशाहों के इलाके पर हमला करके हारने वाले राजा को कैंदी बना लेती और उसके खज़ाने पर कब्ज़ा कर लेती। उस ज़माने में यह तसव्वुर नही किया जा सकता कि कभी मानव इतिहास में ऐसा दौर भी आयेगा जब दुनिया में मौजूद बादशाही निज़ाम खत्म हो जायेगा और उसकी जगह सरमायेदाराना निज़ाम और उसके नतीजे में जम्हूरियत यानि डेमोक्रेसी जैसी कोई राज्य व्यवस्था भी आयेगी जिसमें शासन संविधान नामक किसी किताब के आधार पर चलाने के लिए अवाम अपना प्रतिनिधि चुनेगी।
जैसाकि उक्त हदीस में दिया है कि सीरिया में मरियम के बेटे की हुकूमत होगी तो क्या सीरिया में आज मरियम के बेटे ईसा की हुकूमत है ? और क्या यूरोशलम में आज बादशाहत क़ायम है ? यूरोशलम में आज इज़राईल की सरकार है और वहां चुनाव के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधि को चुनती है। ऐसी हालत में क्या इज़राईल का प्रधानमंत्री हिन्दुस्तान से जंग करने अपना लश्कर भेजेगा जो भारत को जीतकर और यहां के बादशाह को जंजीरों में जकड़कर और भारत का ख़ज़ाना ज़ब्त करके वापस यूरोशलम लौटेगा। उस दौर के भविष्यवक्ता को यह भी अनुमान नही था कि 1400 साल बाद अरब के इस क्षेत्र यूरोशलम में मुसलमानों की बजाये यहूदियों का शासन होगा। क्या आज के दौर में 1400 सालों पहले की जाने वाली कोई भविष्यवाणी सच हो सकती है ? ऐसी कल्पना परियों, देवों की तिल्सिमी कहानियों में ही की जा सकती है जिनपर केवल बच्चे या जिनकी बुद्धि बच्चों जैसी है वह ही यकीन कर सकते हैं। कोई विवेकशील व्यक्ति अगर आज के वैज्ञानिक दौर में ऐसी कहानियों पर विश्वास करता है तो यह उसका मानसिक विकार ही कहलायेगा। क्या आज के दौर में अश्वमेघ यज्ञ किया जा सकता है जिसमें कोई प्रतापी या शक्तिशाली राजा अपने घोड़े को छोड़ दे और वह घोड़ा किसी दूसरे शासक के राज में जाकर उसको चुनौती दे कि या तो मेरी अधीनता स्वीकार करो या मुझसे जंग करो ?
अगर आज के दौर में अश्वमेघ मुमकिन है तब ग़ज़्वाये हिंद की भविष्यवाणी को भी सच माना जा सकता है। फिर आज जो ओआईसी के 57 मुस्लिम बहुल मुल्क है अगर उनका आकलन करें तो क्या उनमें से किसी एक में भी यह सामथ्र्य है कि वह दूसरे देश पर हमला कर सके ? वह तो खुद अपने वजूद के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं। 40 करोड़ की मुस्लिम आबादी से घिरा 70 लाख की आबादी वाला इज़राईल मध्यपूर्व के इन अरब देशों को ग़ज्वे यानि जंग में दो-दो बार हरा चुका है। रही तालिबानियों की बात जिन्होने पहले सोवियत संघ और अब अमरीका को वापस अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया तो उसके पीछे उनके खुद के बनाये हथियारों और जंग की तकनीक की भूमिका नही बल्कि जब वह सोवियत संघ से लड़ रहे थे तब हथियारों से लेकर खाने तक का सारा खर्चा अमरीका और सऊदी अरब उठा रहा था अगर अमरीका उनको कंधे पर रखकर छोड़ी जाने वाली स्टिंगर मिसाईल नही देता तो क्या वह सोवियत संघ को हरा सकते थे ? नही यह मुमकिन नही था। इसका सबूत है कि जिस तालीबान का राज सोवियत सैना के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर कायम हुआ था वह अमरीकी हमले के बाद कुछ ही वक्त में खत्म हो गया और तबसे लड़ते लड़ते अब आकर जब अमरीका थक गया और अफ़गानिस्तान उसने पत्थर युग में पंहुचा दिया तब वापस गया। इसको तालिबान की जीत नही कहा जा सकता इसमें भी उनकी मदद रुस और चीन ने अगर नही की होती और अमरीका वैश्विक आर्थिक संकट से कमज़ोर न हुआ होता तो आज भी तालिबान का जीतना मुमकिन नही था।
तो यह कुछ मिसाले हैं जो आज के दौर की हकीकत को बताती हैं इसलिए ग़ज़्वायें हिंद अव्यवहारिक कल्पना है जिसे हकीकत की जमीन पर उतारा नही जा सकता यह एक अविश्वसनीय भविष्यवाणी है जिससे डरना वैसा ही है जैसे रस्सी को सांप समझकर डर जाना या भूत-प्रेत-जिन्न जिनको विज्ञान की कसौटी पर साबित नही किया जा सका है उनसे भयभीत रहना। दुनिया में बहुत सी ऐसी चीज़ें मौजूद है जिनका भौतिक रुप में कोई वजूद नही है लेकिन उनसे डराकर लाखों लोगों को रोज़गार मिलता है। भूत प्रेत जिन्न भगाने वाले ओझा ओर रुहानी इलाज करने वाले स्वंयभू आलिम आपको अपने आसपास भी मिल जायेंगे। उनके विज्ञापन आप रेल के डिब्बों और बसो में पा सकते हैं। मैं अपनी बात को फिरसे दोहराता हूं कि जिस तरह आज के दौर में अश्वमेघ यज्ञ मुमकिन नही है उसी तरह गज़्वाये हिंद भी मुमकिन नही है। जो लोग गज़्वाये हिंद के कारण इस्लामोफ़ोबिया का शिकार हैं उनको इस बात को तार्किकता और विवेक की कसौटी पर कसना होगा। कौआ कान ले गया इसपर यक़ीन करके कौअे के पीछे दौड़ने की बजाये अपना कान टटोलकर देखना होगा।
दुनियाभर में बौद्धिक व भौतिक विकास में पीछे रह जाने वाले पाकिस्तानी मुस्लिम धार्मिक लोग साईस को गाली देते हुये आधुनिक साईस का आनंद उठा रहे हैं वही यूटयूब पर आकर गज़्वाये हिंद की भविष्यवाणी से अवाम में इस्लामोफ़ोबिया पैदा करते हैं और जिसका विस्तार भारत में वह लोग कर रहे हैं जिनको इस तरह का इस्लामोफ़ोबिया पैदा करने से राजनीतिक व आर्थिक हित लाभ मिलता है।
अब हम हिन्दू फ़ोबिया की सच्चाई पर ग़ौर करते हैं। हिन्दू फ़ोबिया यानि हिन्दु धर्म के मानने वालों को खतरा मानकर उनसे ख़ौफ़ज़दा होना यह चीज़ वैसे तो पाकिस्तान और बंगलादेश में पाई जाती है लेकिन जिसका विस्तार भारत में हो रहा है। जिस तरह इस्लामोफ़ोबिया का एक तत्व यानि एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद है उसी तरह हिन्दू फ़ोबिया का एक तत्व अखण्ड भारत और हिन्दू राष्ट्र है जिसमें सवर्ण हिन्दुओं को छोड़कर बाकि उनसे निम्नतर होगे। आज के दौर में अगर कुछ लोग अखण्ड भारत बनाने को अपना लक्ष्य बताने लगे तो क्या उनकी इस काल्पनिक इच्छा की आज के दौर में कोई हकीकत है आईये उनकी इस बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं। अखण्ड भारत में कौन कौन से देश आते हैं पहले उसको जान लेते हैं। अखण्ड भारत में पाकिस्तान, बंगलादेश, अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, भूटान और कल का बर्मा और आज का मियंामार आता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि कैलाश पर्वत सहित भारत का एक बड़ा भूभाग चीन के कब्ज़े में है और जिसे हम आजतक वापस नही ले पा रहे हैं। अभी वर्तमान सरकार के दौर में चीन ने कुछ और भारत भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है ऐसे में क्या ज़रा सा भी मुमकिन है कि हम उपरोक्त 7 देशों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण या किसी संगठन द्वारा दिखाये जा रहे सपने को साकार कर पायेंगे।
अफ़ग़ानिस्तान की ही बात लें तो अफ़ग़ानियों ने दुनिया की सबसे ज़्यादा सैनिक और आर्थिक शक्ति वाले देश अमरीका को भारी नुक्सान उठाने के बाद वापस अपने देश जाने पर मजबूर कर दिया क्या भारत उसको अपनी सैनिक ताकत के बलपर अपनी सीमा में शामिल कर सकता है ? यह सारे स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाले देश हैं इनपर बलपूर्वक कब्ज़ा करने की कल्पना करना क्या मुमकिन है लेकिन पाकिस्तान के यू टयूब पर बैठे डा0 इसरार अहमद, उरिया मकबूल या ज़ेद हामिद और इसी तरह के दूसरे लोग पाकिस्तानी अवाम को अखण्ड भारत की कल्पना से डराते रहते हैं साथ ही ग़ज़्वाये हिंद की बात करके भारत के हिन्दुओं में इस्लामोफ़ोबिया पैदा करते हैं। ऐसे ही भारत के कुछ लोग और उनके संगठन अखण्ड भारत बनाने का सपना अपने अनुयायियों को दिखाते रहते हैं। इस चर्चा का सार यह निकलता है कि आज के दौर में न तो ग़ज़्वाये हिंद और न ही अखण्ड भारत मुमकिन है जो लोग इस तरह के ख्वाब में डूबे रहना चाहते हैं उनको डूबे रहने दो लेकिन बाक़ी जो विवेकशील लोग हैं और जो हर बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं उनके लिए ऐसी नामुमकिन बातों पर सोचना अपना समय बर्बाद करना है। अखण्ड भारत या ग़ज़्वाये हिंद जैसे शेख़चिल्लीय ख्वाबों पर ग़ालिब का यह शेर खरा उतरता है, "हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन, दिल को समझाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है।"
लेखक मुशर्रफ़ अली वरिष्ठ पत्रकार है और आर्थिक जगत पर एक अच्छी पकड़ रखते है।
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थर्मामीटर लगभग सभी से परिचित हैंएक साधन के रूप में मनुष्य, जो इस या उस माहौल में तापमान शासन के बारे में जानकारी देता है कार्य की सादगी के बावजूद, निर्माताओं इस डिवाइस को विभिन्न रूपों में बनाते हैं, डिजाइन और प्रदर्शन में भिन्नता है।
आधुनिक थर्मामीटर एर्गोनोमिक हैमापने वाला उपकरण, जो उपयोगकर्ता के अनुकूल रूप में लक्ष्य परिवेश के जलवायु पैरामीटर को दर्शाता है। कम से कम, अपने उत्पादों की इस धारणा के लिए, इस उपकरण के डेवलपर्स की ख्वाहिश।
बाहरी रूप से, इस के अधिकांश मापने के उपकरणप्रकार एक छोटी सी युक्ति है, जिसमें से भरना संवेदन तत्व के एक निश्चित प्रकार के दोलन को फिक्स करने पर केंद्रित है। एक उत्कृष्ट उदाहरण ग्लास के मामले में एक तरल के साथ आयताकार ट्यूब होता है। लोगों में इसे थर्मामीटर कहा जाता है इसका उपयोग चिकित्सा प्रयोजनों के लिए और सड़क के तापमान पर नज़र रखने के लिए किया जा सकता है इस मामले में, माप सिद्धांत गर्मी के प्रभाव के तहत द्रव की क्षमता के विस्तार पर आधारित होता है। एक इलेक्ट्रॉनिक थर्मामीटर भी लोकप्रिय है यह एक कॉम्पैक्ट डिवाइस भी है जो सेंसर के रूप में एक संवेदनशील तत्व के कारण तापमान मान लेता है। इस तरह के मॉडलों की वजह से उच्च त्रुटि के कारण पारा एनालॉग को खो दिया जाता है, लेकिन वे पूरी तरह से सुरक्षित और संचालित करने के लिए सुविधाजनक हैं।
इसके द्वारा कई मापदंड हैंथर्मामीटर विभाजित हैं, और मापने के साधनों के इस समूह के ऊपर के प्रतिनिधियों ने उनके कार्यान्वयन के केवल दो उदाहरणों को स्पष्ट किया है। मुख्य वर्गीकरण में से एक यह है कि काम के वातावरण का विभाजन। बाजार आप थर्मामीटर पा सकते हैं पर, हवा, मिट्टी, पानी, जीवित शरीर के उत्पाद को मापने, और इतने पर पर सेंसर के सिद्धांत पारंपरिक तरल, इलेक्ट्रॉनिक, गैस और यांत्रिक उपकरणों से बरामद किया जा सकता पर डी ध्यान केंद्रित किया।। और अधिक आधुनिक अवरक्त, डिजिटल और ऑप्टिकल डिवाइस हैं। यह भूलना महत्वपूर्ण नहीं है कि माप उपकरण को केवल एक निश्चित तरीके से मूल्यों को ठीक नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें एक रूप या किसी अन्य रूप में भी प्रदान करना चाहिए। इस अर्थ में, एक थर्मामीटर - एक उपकरण है जो एक पैमाने के रूप में या एक इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ तापमान शासन के प्रदर्शन को दर्शाता है। डिजिटल मॉडल धीरे-धीरे एनालॉग को डेटा प्रस्तुत करने के एक यांत्रिक तरीके से प्रतिस्थापित करते हैं, लेकिन वे रीडिंग की सटीकता के मामले में हार जाते हैं।
ऐसे मॉडल एक्वैरियम कहा जाता हैथर्मामीटर, जिसकी मदद से उपयोगकर्ता जलीय पर्यावरण में तापमान व्यवस्था का मूल्यांकन कर सकता है। इस प्रकार के उपकरण दो संस्करणों में प्रस्तुत किए जाते हैं। एक अधिक आम जल थर्मामीटर एक तरल प्रकार का उपकरण होता है जिसमें संकेतक का कार्य पारा के बजाय अल्कोहल द्वारा किया जाता है। चूंकि माप की तकनीक में पानी की मध्यम परतों में विसर्जन शामिल है, तरल मॉडल में खतरनाक जहरीले पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है।
पानी थर्मामीटर का दूसरा संस्करण हैस्वयं चिपकने वाला उपकरण। यही है, यह सीधे माध्यम में विसर्जित नहीं होता है, लेकिन जलाशय की दीवार पर तय किया जाता है। माप का सिद्धांत तरल में कुछ पदार्थों के गुणों पर आधारित होता है ताकि हीटिंग की तीव्रता के आधार पर इसकी गुणवत्ता बदल सके। पानी के लिए चिपकने वाला थर्मामीटर थर्मोकेमिकल पेंट द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसे तापमान पैमाने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार के उपकरण के फायदे में यांत्रिक स्थिरता, स्थापना और सुरक्षा में लचीलापन शामिल है। हालांकि, यह थर्मामीटर उच्च माप सटीकता प्रदान करने में सक्षम नहीं है - खासकर अगर पानी की टंकी के पास सक्रिय ताप स्रोत हैं।
यह मापने के लिए उपकरणों का एक अलग समूह हैतापमान, जिसका सिद्धांत एक विशेष पदार्थ या माध्यम में दबाव संकेतकों के निर्धारण के साथ जुड़ा हुआ है। दरअसल, तापमान के प्रभाव में दबाव में परिवर्तन और संवेदनशील तत्व के कार्य को निष्पादित करता है। यह एक और मामला है कि एक जटिल गेजिंग डिवाइस के माध्यम से माप के बाद दबाव खुद को रिकॉर्ड किया जाता है और तापमान पैमाने के लिए परिवर्तित किया जाता है। आम तौर पर इस उद्देश्य के लिए एक प्रणाली का उपयोग एक पनडुब्बी संवेदन तत्व, एक ट्यूबलर वसंत और एक केशिका तार के एकीकरण के साथ किया जाता है। तापमान में उतार-चढ़ाव के आधार पर, लक्षित डूबे हुए ऑब्जेक्ट में दबाव में परिवर्तन होता है। संकेतक में मामूली विचलन एक गेज थर्मामीटर है जो स्विच तंत्र के माध्यम से दर्शाता है। काम करने वाले पदार्थ, गैस, संघनन और तरल उपकरणों के प्रकार से भिन्न होता है।
एक अर्थ में, थर्मामीटर के इस समूहजिम्मेदार ठहराया जा सकता है और उपर्युक्त मनोमितीय उपकरण। यह किसी को एक को प्राप्त करने की अनुमति देता है लेकिन कई मापे गए मान - विशेष रूप से, दबाव और तापमान। हालांकि, मैनोमेट्रिक डिवाइस अक्सर तापमान के रूप में मुख्य सूचक को ठीक करने के लिए एक सहायक ऑपरेशन के रूप में दबाव मापने के सिद्धांत का उपयोग करते हैं। पूर्ण-निर्मित बहु-कार्यात्मक उपकरण आपको कई संकेतकों को अलग-अलग ट्रैक करने की अनुमति देते हैं, जिनमें से एक ही दबाव, आर्द्रता और हवा की गति भी होती है। यह एक प्रकार का मौसम स्टेशन है, जो बैरोमीटर, थर्मामीटर, हाइग्रोमीटर और अन्य मापने वाले घटक प्रदान करता है।
एक नियम के रूप में, ऐसे परिसरों का उपयोग एंगलर्स द्वारा किया जाता है,विशेष उद्यमों के यात्रियों और कर्मचारियों, जिनका काम बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। स्टेशन यांत्रिक और इलेक्ट्रॉनिक भी हैं, जो संचालन में उनकी सटीकता और सुविधा निर्धारित करते हैं।
ऐसे उपकरणों में,एक विशेष कंडक्टर, जिसके माध्यम से सेंसर के माध्यम से प्राप्त जानकारी प्रसारित की जाती है। यही है, डिवाइस का आधार एक इंटरफेस और एक डिस्प्ले वाला पैनल है, जिसके माध्यम से उपयोगकर्ता तापमान के बारे में सीखता है। और सेंसर, बदले में, सीधे लक्षित वातावरण में रखा जा सकता है। ऐसे मॉडल आमतौर पर उसी एक्वैरियम या सड़क पर तापमान शासन निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इस मामले में, सेंसर के साथ थर्मामीटर काम कर सकता है और वायरलेस रूप से। इस मामले में, सेंसर स्वयं अधिक भारी होगा, क्योंकि इसकी बिजली आपूर्ति बैटरी या बैटरी के लिए एक विशेष जगह की आवश्यकता होगी।
सबसे तकनीकी, सटीक और भरोसेमंदमॉडल बॉश, डेवाल्ट, रियोबी, स्टेनली इत्यादि द्वारा पेश किए जाते हैं। यह उत्पाद सामान्य उपभोक्ताओं द्वारा निजी जरूरतों और विशेषज्ञों के लिए उपयोग किया जाता है। हालांकि, पेशेवर कार्यों के लिए, यह अभी भी अनुशंसा की जाती है कि उन कंपनियों के उत्पाद जो मापने वाले उपकरणों के विकास में उद्देश्य से लगे हुए हैं। एडीए, मिस्तेच, फ्लूक और टेस्टो द्वारा सबसे बड़ा ट्रस्ट आनंद लिया जाता है। "मेगियन" का घरेलू उत्पादक भी एक उच्च गुणवत्ता वाले थर्मामीटर का उत्पादन करता है, जो उपयोग में उच्च सटीकता और सुविधा द्वारा अंडरस्कोर किया जाता है। इसके अलावा, इस लाइन के मॉडल बहुत सस्ता हैं - औसत लागत 2-3 हजार रूबल है।
एक उपयुक्त थर्मामीटर मॉडल की पसंद कर सकते हैंजटिल लगते हैं यदि आप किसी विशेष मामले में डिवाइस को निष्पादित करने वाले कार्यों की स्पष्ट समझ के बिना बाजार के वर्गीकरण में कूदते हैं। यह खरीदने से पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि डिवाइस किस परिस्थितियों में काम करेगा, इसकी सटीकता की क्या आवश्यकता है, इसे किस खतरे की रक्षा करनी चाहिए और अतिरिक्त कार्यों के पास क्या होना चाहिए।
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श्री केशव बलिराम हेडगेवार जी, एक स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने बचपन से ही अपने निजी जीवन में कठिनाइयों का सामना किया था, उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करते हुए खुद को राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था। ब्रिटिश शासन और अन्याय का विरोध करने के लिए उन्हें दो बार कैद किया गया था। देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए काम करते हुए, उन्हें समग्र रूप से भारतीय लोगों की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में पता चला।
उन्होंने महसूस किया कि अधिकांश लोग महान भारतीय संस्कृति की जड़ों को भूल गए हैं, एक गुलाम मानसिकता विकसित कर रहे हैं और अपनी लड़ाई की भावना खो रहे हैं। लोग राष्ट्रीय चरित्र के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार नहीं हैं। समाज को मुख्य रूप से जाति के आधार पर लड़ने के लिए व्यवस्थित रूप से योजना की गई है, ताकि लोग कभी भी ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए एक साथ न आएं। महान वेदों, उपनिषदों और संस्कृति के खिलाफ दिमाग मे जहर भर दिया गया था। लोग अतीत के महान योद्धाओं जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप और स्वामी विवेकानंद जैसे संतों को भूल गए थे ... वे भगवद गीता और चाणक्य नीति के अपार ज्ञान को भूल गए थे।
सबसे महत्वपूर्ण अहसास "शत्रुबोध" था, लोगों ने यह जानने की शक्ति खो दी थी कि कौन हमारा मित्र है और कौन हमें नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। इसने जनता और नेताओं के बीच एक महत्वपूर्ण विवाद पैदा कर दिया था। इसने विभिन्न समूहों के भीतर और अधिक शत्रु पैदा किए हैं, साथ ही अनावश्यक विवाद भी पैदा किए हैं। इसने समाज के ताने-बाने को काफी नुकसान पहुंचाया है और सनातन धर्म को नुकसान पहुंचाया है। इस्लाम और ईसाई धर्म में परिवर्तन बडी मात्रा मे हो रहा है।
इन सभी अहसासों ने डॉ हेडगेवार को अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया। भारत को सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से फिर से महान बनाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता थी, ताकि यह हमारे राष्ट्र को इतना मजबूत बना सके कि कोई भी इस महान राष्ट्र पर फिर से आक्रमण करने की हिम्मत न करे। परिणामस्वरूप, 1925 में, उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के राष्ट्रीय चरित्र को विकसित करने के लिए "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" की स्थापना की।
चूंकि हमारी हिंदू संस्कृति अभ्यास पर एक उच्च मूल्य रखती है और खाली बौद्धिक तर्कों को खारिज करती है जो सकारात्मक कार्यो के साथ नहीं हैं, डॉ हेडगेवार के जीवन के ये कुछ संस्मरण आज के हिंदू पुनर्जागरण में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये मामूली सी लगने वाली घटनाएं दिल को छू जाती हैं, और उनमें दर्शाए गए कार्य राष्ट्रीय चरित्र की गहराई, एक महान व्यक्तित्व की गहराई को प्रदर्शित करते हैं। डॉ. हेडगेवार की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाँ और बातचीत, गहन अर्थ से ओतप्रोत, दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।
कॉलेज शुरू करने के तुरंत बाद डॉक्टरजी ने विभिन्न प्रांतों के छात्रों के साथ घनिष्ठ मित्रता की। उन्होंने अपने खाली समय में उनके साथ मजबूत दोस्ती की और निभाई। वह तेजी से सबसे अधिक मांग वाले मित्र की स्थिति तक पहुंच गये। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो उनकी ओर आकर्षित न हुआ हो। यही उनका मिलनसार व्यवहार था।
गांधीजी ने एक बार पूछा था कि एक स्वयंसेवक के रूप में आपसे वास्तव में क्या अपेक्षा की जाती है? डॉक्टरजी ने उत्तर दिया, जो व्यक्ति राष्ट्र की रक्षा के लिए प्रेमपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है, वह स्वयंसेवक है। स्वयंसेवक का अर्थ है देशभक्त, स्वयंसेवक का अर्थ है सामाजिक कार्यकर्ता, स्वयंसेवक का अर्थ है वीर मजबूत नेतृत्व। संघ का लक्ष्य ऐसे स्वयंसेवकों को बनाना और एकीकृत करना है। एक टीम में एक स्वयंसेवक और एक नेता के बीच कोई अंतर नहीं है। हम सभी स्वयंसेवक और अधिकारी समान हैं। हमारे बीच कोई बड़ा या छोटा अंतर नहीं है। हम सभी एक दूसरे का समान रूप से सम्मान और प्यार करते हैं। शुद्ध सात्विक प्रेम ही हमारे कर्म का आधार है और इसी के कारण संघ ने इतने कम समय में बिना किसी बाहरी सहायता के, बिना धन और प्रसिद्धि के उन्नति की है। गांधीजी ने कहा, मुझे यह सुनकर बहुत खुशी हुई। आपके प्रयासों और सफलता से देश को लाभ होगा।
डॉक्टरजी के मन में उन लोगों के प्रति बहुत सहानुभूति थी जो मुसीबत में थे। 1913 में भारत के बंगाल प्रांत में दामोदर नदी में बाढ़ आ गई थी। बाढ़ के पानी ने लोगों, जानवरों, घरों और झोपड़ियों में पानी भर दिया। डॉक्टरजी और उनके साथी हरकत में आ गए। वे पीड़ितों की रक्षा के लिए घटनास्थल पर पहुंचे और उनकी जरूरत की घड़ी में सहायता प्रदान की। उन्होंने भूखे लोगों को खाना खिलाया और उन लोगों को साहस और आत्मविश्वास के शब्द बोले, जिन्होंने अपने भविष्य के लिए सभी आशा खो दी थी। केशवराव दिन और रात के सभी घंटों में खुद को व्यस्त रखते थे। लोगों की सेवा करने के उनके रास्ते में कोई भाषा या भौगोलिक बाधा नहीं थी।
शाम 6:30 बजे। एक शाम, एक स्वयंसेवक डॉक्टरजी को वर्धा शहर के सबसे वरिष्ठ संघ अधिकारी (नागपुर से 40 मील) से एक अनुरोध लाया। वर्धा को अगली सुबह बहुत जल्दी एक टैक्सी की जरूरत थी। समय पर पहुंचने के लिए, टैक्सी को सुबह 6 बजे नागपुर से निकलना होगा। नागपुर के एक स्वयंसेवक ने स्वेच्छा से टैक्सी की व्यवस्था करने के लिए कहा। जब वह टैक्सी ड्राइवरों से बात करने गया, तो कोई भी अगली सुबह इतनी जल्दी नागपुर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। 9. 30 बजे, स्वयंसेवक लौट आया, डॉक्टरजी को सूचित किया कि कार्य पूरा नहीं हो सकता है, और सोने के लिए चला गया।
तड़के लगभग 3 बजे संघ कार्यालय के स्वयंसेवक ने देखा कि डॉक्टरजी दरवाजे पर खड़े हैं! उसने दरवाजा खोला, आश्चर्यचकित और निराश होकर डॉक्टरजी से पूछा कि क्या गलत है। "ठीक है, मैं आपको बताने आया था कि टैक्सी कैब की व्यवस्था की गई है," डॉक्टरजी ने कहा। कृपया सुनिश्चित करें कि आप और वर्धा कार्यकर्ता समय पर उठें। " जबकि स्वयंसेवक ने कोशिश की और असफल रहा, डॉक्टरजी ने कार्य को नही छोडा; वह तब तक धैर्य और दृढ़ता के साथ प्रयास करते रहे जब तक कि हाथ में लिया काम पूरा नहीं हो गया।
डॉक्टरजी ने एक छोटी छुट्टी ली और अपने एक धनी मित्र श्री नाना साहब तातातुले के आलीशान घर में रहे। श्री तातातुले एक कुशल निशानेबाज और शिकारी थे। डॉक्टरजी और उनके साथी स्वयंसेवकों को श्री तातातुले ने आसन दिए।
इस तथ्य के बावजूद कि यह एक कड़ाके की ठंड और हवा वाली रात थी, डॉक्टरजी ने नागपुर से अपना पुराना पहना हुआ "कंबल" (एक हाथ का बना, पतला गलीचा) निकाला और उसे अपने मेजबान द्वारा प्रदान किए गए हरे-भरे महंगे आसनों से बदल दिया। वह "कंबल" कड़वी सर्द रात के लिए उपयुक्त नहीं था। "डॉक्टरजी, जब हमारे दयालु मेजबान ने हमें ऐसे उत्कृष्ट, आरामदेह आसनों के साथ प्रदान किया है, तो आप अभी भी पुराने कंबल का उपयोग क्यों कर रहे हैं? " स्वयंसेवकों ने पूछा। यह ठंड, सर्द रात के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त है! "
डॉक्टरजी की शांत प्रतिक्रिया की आज भी जरूरत हो सकती है। "सिर्फ इसलिए कि हम अस्थायी रूप से विलासिता की वस्तुओं से घिरे हुए हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हमें उनके उपयोग के आगे झुकना होगा," उन्होंने कहा। यह बेहतर है अगर हम उन साधारण चीजों से खुश और संतुष्ट हैं जो हम दैनिक उपयोग के लिए खर्च कर सकते हैं! "
एक स्वस्थ समाज और एक महान राष्ट्र के निर्माण के लिए काम कर रहे लाखों स्वयंसेवको,लगभग 140000 सेवा परियोजनाओ के साथ 150 देशों में फैले एक संगठन के निर्माण में डॉक्टरजी का समर्पण और कड़ी मेहनत अतुल्य है। इस महान नेता को उनकी जयंती पर याद करने और उन्हें सम्मानित करने का समय आ गया है।
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हर मकान मालिक का यह सपना होता है। कि एक दिन वह अपना मकान / दुकान या प्रॉपर्टी किराये पर उठाएगा। और मुनाफा कमायेगा। पर कई बार उसे कई प्रकार की तकलीफ झेलनी पड़ जाती है। यदि आपका किरायेदार बेईमान और धूर्त प्रवृत्ति का निकल गया तो यह बहुत समस्या पैदा कर सकता है।
कई किरायेदार तो किराया भी नहीं देते हैं। और जबरन प्रॉपर्टी पर कब्जा करके बैठ जाते हैं। ऐसे में मकान मालिक का सुख चैन और रातों की नींद उड़ जाती है। वह लगातार परेशान रहने लग जाता है। और यह सोचता है। कि वह कैसे जल्द से जल्द अपनी प्रॉपर्टी किरायेदार से खाली करवा सकता है।
इस लेख में हम आपको कुछ जबरदस्त टिप्स देंगे। जिसे अपनाकर आप भी अपनी प्रॉपर्टी किरायेदार से तुरंत खाली करा सकते हैं। इस आर्टिकल में आपको दुकान खाली करने के तरीके, मकान खाली कराने के उपाय, दुकान खाली करने के नियम, किरायेदार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले, पुराने किराए के कानूनी नियम, दुकान किराया समझौते नियम आदि की जानकारी मिलेगी।
11 महीने के रेंट एग्रीमेंट को कच्चा एग्रीमेंट समझा जाता है। यदि किरायेदार घर या दुकान खाली करने से मना कर देता है। तो कोर्ट में 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट दिखाकर यह बताया जाता है। कि मैंने छोटे समय के लिए यह प्रॉपर्टी किराये पर दी थी। सरकार को इसमें कोई टैक्स में लाभ नहीं मिलता है। 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट कोर्ट में दिखाने पर किरायेदार को स्टे नहीं मिलता है। मकान मालिक केस जीत जाता है। हर साल आपको रेंट एग्रीमेंट को रिन्यू करवाना चाहिए।
जब भी आप अपनी प्रॉपर्टी किसी किरायेदार को दे तो उससे पहले पुलिस के पास व्यक्तिगत रूप से जाकर सत्यापन अवश्य करवाएं। सभी मकान मालिकों के लिए यह बेहद जरूरी होता है। इससे आपको जानकारी मिल जाएगी कि किरायेदार का कोई आपराधिक रिकॉर्ड तो नहीं है।
जब भी आप अपना मकान या दुकान किसी किरायेदार को दे तो उसके पिछले मालिक से उसका रिकॉर्ड जरूर चेक करें। वह समय पर किराया देता है। या नहीं। आपराधिक प्रवृत्ति का है। या नहीं ये सब जानकारी आपको होनी चाहिये।
जब भी किरायेदार किराया देने से या घर खाली करने से मना कर दे और सम्पत्ति पर कब्जा कर ले तो उसका बिजली और पानी का कनेक्शन नहीं काटना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर वह व्यक्तिगत रूप से बिजली और पानी का कनेक्शन ले सकता है।
यह बहुत जरूरी है। कि जब भी आप किसी किरायेदार को अपनी दुकान या घर किराए पर दे तो वह प्रॉपर्टी के कागज आपके नाम से होना चाहिए। यदि प्रॉपर्टी आपके पिताजी, दादाजी या किसी और के नाम से है। तो ऐसी स्थिति में किरायेदार आपको परेशान कर सकता है। बेहतर यह होगा। कि आप प्रॉपर्टी के कागज अपने नाम से बनवा लें। उसके बाद किसी किरायेदार को दें।
किरायेदार से मकान / दुकान किस आधार पर खाली करवा सकते है?
- यदि किरायेदार ने किराया देना बंद कर दिया है।
- यदि किरायेदार ने आपकी प्रॉपर्टी में कुछ नया निर्माण (new construction) कर लिया है।
- एंव यदि किरायेदार ने आपको बिना बताए और भी दूसरे लोगों के साथ आपकी प्रॉपर्टी में रह रहा है।
- यदि किरायेदार आपकी प्रॉपर्टी पर गैरकानूनी काम कर रहा है।
- यदि किरायेदार ने आपकी प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया है।
- और यदि आप अपनी प्रॉपर्टी का इस्तेमाल खुद के लिए करना चाहते हैं।
आप किरायेदार पर दबाव बनाइये कि वह आपकी प्रॉपर्टी खाली कर दें। इसके लिए आप पुलिस की सहायता भी ले सकते हैं। साथ-साथ आसपास और पड़ोस के प्रभावशाली लोगों की सहायता भी ली जा सकती है। बेहतर होगा। कि किरायेदार को समझा-बुझाकर प्रॉपर्टी खाली करा ली जाए।
ऊपर बताए हुए आधारों में से यदि आपके पास भी कोई आधार है। तो सबसे पहले आप किरायेदार को घर या दुकान खाली करने का नोटिस भेजे।
यदि नोटिस देने के बाद भी किरायेदार आपका मकान या प्रॉपर्टी खाली नहीं करता है। तो आप सिविल कोर्ट में याचिका डालें। आजकल इस पर बहुत तेज सुनवाई होती है। आपको कोर्ट से आदेश मिल जाएगा। और किरायेदार आप की प्रॉपर्टी खाली कर देगा।
भारतीय संविधान की धारा 103 आईपीसी के अनुसार यदि किरायेदार आप की प्रॉपर्टी पर जबरन कब्जा कर लेता है। तो उसे बल का प्रयोग करके प्रॉपर्टी का खाली कराई जा सकती है। इस दौरान यदि झगड़ा या कोई विवाद हो जाता है। तो उसमें आप उतना ही बल प्रयोग कर सकते हैं। जितना सामने वाला कर रहा है। यदि सामने वाला आप पर लाठियों से हमला कर रहा है। तो आप भी लाठी डंडों का सहारा ले सकते हैं। यदि वह आप पर बंदूक निकाल कर फायरिंग करने का प्रयास करता है। तो भी आत्मरक्षा में आप गोली चला सकते हैं।
Supreme court judgment - Poona Ram Vs Moti Ram (29 January 2019)
के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। कि यदि किराए पर दी गई प्रॉपर्टी आपके नाम पर रजिस्टर्ड है। और किरायेदार प्रॉपर्टी खाली करने से मना कर रहा है। और उस पर कब्जा जमा कर बैठा हुआ है, तो बल/ शक्ति का प्रयोग करके उसे हटाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यहां पर शक्ति का स्पष्टीकरण नहीं किया है। उसका कहना है। कि प्रॉपर्टी खाली कराते समय आप उतनी ही शक्ति का इस्तेमाल करें जितना आवश्यक है। इसके लिए कोर्ट जाने की जरूरत नहीं है।
- मकान मालिक को किरायेदार से नियमित रूप से किराया प्राप्त करने का अधिकार है।
- किरायेदार मकान को साफ सुथरा रखें, उसे नुकसान ना पहुंचाएं।
- किरायेदार मकान मालिक से बिना पूछे किसी तरह का नया निर्माण, मकान की मरम्मत, फेर-बदल नही कर सकता है।
- साथ ही किरायेदार मकान मालिक को बिना बताये किसी और व्यक्ति को घर में लाकर नहीं रख सकता है।
- किरायेदार मकान / दुकान या प्रॉपर्टी में किसी प्रकार का गैर कानूनी काम नहीं कर सकता है।
- किरायेदार प्रॉपर्टी को किसी दूसरे को बेच नहीं सकता है।
- मकान मालिक को यह अधिकार है। कि किरायेदार जब भी घर खाली करता है। उसे 1 महीने पहले नोटिस देना होगा।
- यदि किरायेदार 6 महीने तक किराया नहीं देता है। तो मकान मालिक इस आधार पर प्रॉपर्टी खाली करा सकता है।
- किरायेदार को हर महीने किराया देने पर रसीद प्राप्त करने का अधिकार है। यदि मकान मालिक समय से पहले किरायेदार को निकालता है। तो कोर्ट में रसीद को सबूत के तौर पर दिखाया जा सकता है। और यह बता सकते है। कि किरायेदार नियमित तौर से किराया दे रहा था।
- किरायेदार को किराए का भुगतान चेक से या ऑनलाइन बैंकिंग द्वारा सीधे बैंक अकाउंट में करना चाहिए। किसी विवाद होने पर किरायेदार यह सबूत के तौर पर दिखा सकता है। कि वह किराए का नियमित भुगतान कर रहा है।
- किरायेदार को हर हालत में बिजली और पानी पाने का अधिकार है। कानून के मुताबिक बिजली और पानी किसी भी व्यक्ति के लिए मूलभूत आवश्यकता होती है।
- किरायेदार को इस बात का अधिकार है। कि जब भी मकानमालिक प्रॉपर्टी खाली कराता है। तो उससे इसका उचित कारण बताना होगा।
- यदि मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट में तय की गई शर्तों के अलावा कोई और शर्त थोपता है। या अचानक से किराया बढ़ा देता है। तो किरायेदार कोर्ट में याचिका दे सकता है।
- किरायेदार को यह बात समझनी चाहिए कि वह कितने भी वर्षों तक उस प्रॉपर्टी (मकान / दुकान) में रह ले पर वह किरायेदार ही रहेगा। उसे खुद को मकान मालिक कभी नहीं समझना चाहिए।
- किरायेदार की अनुपस्थिति में मकान मालिक घर का ताला नही तोड़ सकता है। न ही किरायेदार के सामान को बाहर फेंक सकता है। यदि मकान मालिक ऐसा करता है। तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते है। इस स्थिति में किरायेदार को 30 दिन के अंदर कोर्ट में याचिका देनी होगी। उसे फिर से मकान या प्रॉपर्टी पर कब्जा मिल जाएगा।
किराएदार से मकान कैसे खाली करें?
किराएदार से मकान खाली करने के लिए सबसे पहला काम आपका या है कि आप एक लीगल नोटिस किराएदार को भेजें । नोटिस अच्छी तरह लिखी हुई होनी चाहिए एवं उसने सभी नियम शर्ते हैं एवं टाइम पीरियड का भी जिक्र होना चाहिए। जो नोटिस आप किराएदार को भेज रहे हैं उसकी एक प्रति अपने पास सुरक्षित जरूर रखें ।
रजिस्टर्ड किरायानामा क्या होता है?
कोर्ट के आदेश के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को कोई भी प्रॉपर्टी बिना रजिस्टर्ड किए किराए पर नहीं दे सकता है । किराएदार एवं मकान मालिक के बीच में अनुबंध तैयार किया जाता है उसे ही किरायानामा कहा जाता है ।
मकान किराया भत्ता क्या है?
ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनी में कार्य करने वाले व्यक्तियों को मिलने वाली सैलरी में एचआरए अर्थात हाउस रेंट अलाउंस भी शामिल होता है। जिन व्यक्तियों के सैलरी में हाउस रेंट अलाउंस शामिल होता है, तो वह आइटीआर फाइल करते समय छूट का लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।
दुकान का एग्रीमेंट कितने साल का होता है?
किसी भी प्रॉपर्टी का एग्रीमेंट 11 महीने का ही होता है जिसे हर साल रिनुअल कराना होता है ।
किराया कानून क्या है?
किराएदार एवं मालिकों के हितों की सुरक्षा करने के लिए सरकार द्वारा किराया कानून का निर्माण किया गया है । ताकि किराएदार एवं मालिक को किसी प्रकार के कोई समस्या का सामना ना करना पड़े । और कोई एक दूसरे के हित को अनदेखा ना कर सके ।
तो दोस्तों यह थी किरायेदार से मकान / दुकान कैसे खाली करवाये? के बारे में आवश्यक जानकारी। यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें। साथ ही यदि आपका किसी भी प्रकार का कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करें। । धन्यवाद। ।
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१. व्यक्ति कितने साल जियेगा २. वह किस प्रकार का काम करेगा ३. उसके पास कितनी संपत्ति होगी ४. उसकी मृत्यु कब होगी .
पुत्र, मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल धन्य हो जाता है.
जैसे मछली दृष्टी से, कछुआ ध्यान देकर और पंछी स्पर्श करके अपने बच्चो को पालते है, वैसे ही संतजन पुरुषों की संगती मनुष्य का पालन पोषण करती है.
जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है.
विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है. वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है. इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है.
सैकड़ों गुणरहित पुत्रों से अच्छा एक गुणी पुत्र है क्योंकि एक चन्द्रमा ही रात्रि के अन्धकार को भगाता है, असंख्य तारे यह काम नहीं करते.
एक ऐसा बालक जो जन्मते वक्त मृत था, एक मुर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है. पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख की अग्नि में जलाता है.
१. एक छोटे गाव में बसना जहा रहने की सुविधाए उपलब्ध नहीं.
२. एक ऐसे व्यक्ति के यहाँ नौकरी करना जो नीच कुल में पैदा हुआ है.
३. अस्वास्थय्वर्धक भोजन का सेवन करना.
४. जिसकी पत्नी हरदम गुस्से में होती है.
५. जिसको मुर्ख पुत्र है.
६. जिसकी पुत्री विधवा हो गयी है.
वह गाय किस काम की जो ना तो दूध देती है ना तो बच्चे को जन्म देती है. उसी प्रकार उस बच्चे का जन्म किस काम का जो ना ही विद्वान हुआ ना ही भगवान् का भक्त हुआ.
१. पुत्र और पुत्री २. पत्नी ३. भगवान् के भक्त.
यह बाते एक बार ही होनी चाहिए..
१. राजा का बोलना.
२. बिद्वान व्यक्ति का बोलना.
३. लड़की का ब्याहना.
जब आप तप करते है तो अकेले करे.
अभ्यास करते है तो दुसरे के साथ करे.
गायन करते है तो तीन लोग करे.
कृषि चार लोग करे.
युद्ध अनेक लोग मिलकर करे.
वही अच्छी पत्नी है जो शुचिपूर्ण है, पारंगत है, शुद्ध है, पति को प्रसन्न करने वाली है और सत्यवादी है.
जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है. जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है. मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है. निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ है.
जिस अध्यात्मिक सीख का आचरण नहीं किया जाता वह जहर है. जिसका पेट खराब है उसके लिए भोजन जहर है. निर्धन व्यक्ति के लिए लोगो का किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रम में एकत्र होना जहर है.
जिस व्यक्ति के पास धर्म और दया नहीं है उसे दूर करो. जिस गुरु के पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है उसे दूर करो. जिस पत्नी के चेहरे पर हरदम घृणा है उसे दूर करो. जिन रिश्तेदारों के पास प्रेम नहीं उन्हें दूर करो.
सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है. यदि घोड़े को हरदम बांध कर रखते है तो वह बूढा हो जाता है. यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बुढी हो जाती है. धुप में रखने से कपडे पुराने हो जाते है.
आपके उर्जा स्रोत.
द्विज अग्नि में भगवान् देखते है.
भक्तो के ह्रदय में परमात्मा का वास होता है.
जो अल्प मति के लोग है वो मूर्ति में भगवान् देखते है.
लेकिन जो व्यापक दृष्टी रखने वाले लोग है, वो यह जानते है की भगवान सर्व व्यापी है.
ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए . दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए . पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए .
सोने की परख उसे घिस कर, काट कर, गरम कर के और पीट कर की जाती है. उसी तरह व्यक्ति का परीक्षण वह कितना त्याग करता है, उसका आचरण कैसा है, उसमे गुण कौनसे है और उसका व्यवहार कैसा है इससे होता है.
यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे. लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए.
अनेक व्यक्ति जो एक ही गर्भ से पैदा हुए है या एक ही नक्षत्र में पैदा हुए है वे एकसे नहीं रहते. उसी प्रकार जैसे बेर के झाड के सभी बेर एक से नहीं रहते.
वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है कार्यालय में काम नहीं करना चाहता. जिस ने अपनी कामना को खतम कर दिया है, वह शारीरिक शृंगार नहीं करता, जो आधा पढ़ा हुआ व्यक्ति है वो मीठे बोल बोल नहीं सकता. जो सीधी बात करता है वह धोका नहीं दे सकता.
मूढ़ लोग बुद्धिमानो से इर्ष्या करते है. गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से इर्ष्या करती है. बदसूरत औरत खुबसूरत औरत से इर्ष्या करती है.
खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है. दुसरो को देखभाल करने के लिए देने से पैसा नष्ट होता है. गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान अपने बीजो का नाश करता है. यदि सेनापति नहीं है तो सेना का नाश होता है.
अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है.
घर की इज्जत अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है.
अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है.
किसीभी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आँखों में दिखता है.
धमर्ं की रक्षा पैसे से होती है.
ज्ञान की रक्षा जमकर आजमाने से होती है.
राजा से रक्षा उसकी बात मानने से होती है.
घर की रक्षा एक दक्ष गृहिणी से होती है.
जो वैदिक ज्ञान की निंदा करते है, शार्स्त सम्मत जीवनशैली की मजाक उड़ाते है, शांतीपूर्ण स्वभाव के लोगो की मजाक उड़ाते है, बिना किसी आवश्यकता के दुःख को प्राप्त होते है.
दान गरीबी को खत्म करता है. अच्छा आचरण दुःख को मिटाता है. विवेक अज्ञान को नष्ट करता है. जानकारी भय को समाप्त करती है.
वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं. मोह के समान कोई शत्रु नहीं. क्रोध के समान अग्नि नहीं. स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं.
व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है. अकेले ही मरता है. अपने कर्मो के शुभ अशुभ परिणाम अकेले ही भोगता है. अकेले ही नरक में जाता है या सदगति प्राप्त करता है.
जिसने अपने स्वरुप को जान लिया उसके लिए स्वर्ग तो तिनके के समान है. एक पराक्रमी योद्धा अपने जीवन को तुच्छ मानता है. जिसने अपनी कामना को जीत लिया उसके लिए स्त्री भोग का विषय नहीं. उसके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तुच्छ है जिसके मन में कोई आसक्ति नहीं.
जब आप सफर पर जाते हो तो विद्यार्जन ही आपका मित्र है. घर में पत्नी मित्र है. बीमार होने पर दवा मित्र है. अर्जित पुण्य मृत्यु के बाद एकमात्र मित्र है.
समुद्र में होने वाली वर्षा व्यर्थ है. जिसका पेट भरा हुआ है उसके लिए अन्न व्यर्थ है. पैसे वाले आदमी के लिए भेट वस्तु का कोई अर्थ नहीं. दिन के समय जलता दिया व्यर्थ है.
वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं. खुदकी शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं. नेत्र ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं. अन्न से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं.
निर्धन को धन की कामना. पशु को वाणी की कामना. लोगो को स्वर्ग की कामना. देव लोगो को मुक्ति की कामना.
सत्य की शक्ति ही इस दुनिया को धारण करती है. सत्य की शक्ति से ही सूर्य प्रकाशमान है, हवाए चलती है, सही में सब कुछ सत्य पर आश्रित है.
लक्ष्मी जो संपत्ति की देवता है, वह चंचला है. हमारी श्वास भी चंचला है. हम कितना समय जियेंगे इसका कोई ठिकाना नहीं. हम कहा रहेंगे यह भी पक्का नहीं. कोई बात यहाँ पर पक्की है तो यह है की हमारा अर्जित पुण्य कितना है.
आदमियों में नाई सबसे धूर्त है. कौवा पक्षीयों में धूर्त है. लोमड़ी प्राणीयो में धूर्त है. औरतो में लम्पट औरत सबसे धूर्त है.
ये सब आपके पिता है...१. जिसने आपको जन्म दिया. २. जिसने आपका यज्ञोपवित संस्कार किया. ३. जिसने आपको पढाया. ४. जिसने आपको भोजन दिया. ५. जिसने आपको भयपूर्ण परिस्थितियों में बचाया.
इन सब को आपनी माता समझें .१. राजा की पत्नी २. गुरु की पत्नी ३. मित्र की पत्नी ४. पत्नी की माँ ५. आपकी माँ.
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क्या आपका अभी-अभी ब्रेकअप हुआ है, लेकिन आपका दिल कहता है कि आपके पास अभी भी चीजों को ठीक करने का और उसके साथ पैचअप (patch up) करने का एक मौका है? अपने एक्स को वापिस पाने के लिए नो कॉन्टैक्ट रूल (no contact rule) का इस्तेमाल करके देखें। तो क्या होता है ये नो कॉन्टैक्ट रूल? मूल रूप से, नो कॉन्टैक्ट रूल कहता है यदि आप ब्रेकअप के बाद अस्थायी रूप से अपने एक्स से बात करना बंद कर देते हैं, तो इससे उनके आपको याद करने और अपनी लाइफ में आपको वापिस पाने की इच्छा जगने की संभावना बढ़ सकती है। साथ ही ये आपको अपने टूटे रिश्ते के दर्द से उबरने के लिए अपने एक्स से दूर रहने का भी मौका देगा, इसलिए इस नियम को आजमाकर देखा जा सकता है! आपकी मदद करने के लिए, हम आपके एक्स को वापस पाने के लिए नो कॉन्टैक्ट नियम का उपयोग करने के तरीके के बारे में आपको बताएंगे। (Kaise Apne Ex ko Wapis Pae, Zero Contact Rule)
1. अपने एक्स को बताएं कि कुछ समय के लिए आप उससे संपर्क नहीं करेंगेः
ये उन्हें बताए बिना उसके साथ में संपर्क काटने के बजाय, नो-कम्युनिकेशन नियम शुरू करने का एक मेच्योर और सम्मानजनक तरीका है। ब्रेकअप के कुछ दिनों बाद अपने एक्स को कॉल या टेक्स्ट करें और उसे बताएं कि आप फिलहाल उससे संपर्क नहीं करेंगे।
आप अपने एक्स को बोल सकते हैं, "हमें कुछ समय के लिए बात नहीं करनी चाहिए।" या "मुझे अकेले रहने की ज़रूरत है।"
आपके बीच ये चुप्पी कितने समय तक चलेगी, इस बारे में अस्पष्ट रहने का प्रयास करें। ये अनिश्चितता आपके एक्स को यह तय करने के लिए प्रेरित करेगी कि क्या वह इस रिश्ते को बचाना चाहता है।
अपने एक्स को यह न बताएं कि आप नो कॉन्टैक्ट नियम का पालन कर रहे हैं। इस तरीके को आजमाने से तब बेहतरीन परिणाम प्राप्त होते हैं जब दूसरे पक्ष को यह नहीं पता होता है कि यह स्थिति अस्थायी है।
2. बनाएं कि आप कितने समय तक बिना संपर्क की अवधि तक रहना चाहते हैंः
अपने बीच की चुप्पी के खत्म करने के समय का निर्धारित करना आपको नो कॉन्टैक्ट रूल को बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सकता है, यहाँ तक कि इसके असहनीय लगने के बाद भी। आमतौर पर ब्रेकअप के बाद आपके एक्स के लिए आपके साथ में अपने रिश्ते के बारे में अपना विचार बदलने के लिए 4 सप्ताह का समय पर्याप्त माना जाता है। हालाँकि, आपको जैसा सही लगे, उस हिसाब से इस अवधि को लंबा या छोटा रख सकते हैं।
आप इसे खत्म करने की एक तय तारीख को चुनना चाहते हैं या नहीं, आप पर निर्भर है। लेकिन फिर भी एक विचार लेकर चलें, ताकि आप हमेशा के लिए इंतज़ार न करते रह जाएँ।
इस तय समय की अवधि भी बदल सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि आपके एक्स ने आपसे संपर्क किया है या फिर आपकी खुद की भावनाएं बदल गई हैं।
3. यदि आप दोनों व्यक्तिगत रूप से मिला करते हैं तो संपर्क सीमित करने का नियम लागू करेंः
ऐसे समय भी होते हैं जब नो-कॉन्टैक्ट नियम लागू कर पाना संभव नहीं होता है, जैसे कि जब दो लोग एक ही ऑफिस में काम करते हैं या फिर एक ही कॉलेज में जाते हैं। इन परिस्थितियों में, जॉब को बदलने या कॉलेज बदलने की तुलना में संपर्क प्रतिबंध नियम को बदलना अधिक व्यावहारिक होता है। लिमिटेड कॉन्टैक्ट रूल का इस्तेमाल करने के लिएः
अपने एक्स के साथ बातचीत शुरू करने से बचें। अगर वो पहले आप से बात शुरू करते हैं, तो अपने जवाब को बहुत छोटा, लेकिन विनम्र रखने की कोशिश करें।
उदाहरण के लिए, यदि आपका एक्स आप से आपका हालचाल पूछता है, तो ऐसे जवाब दें, "मैं ठीक हूँ, पूछने के लिए शुक्रिया। तुमसे मिलकर अच्छा लगा।"
अगर आप उनसे नाराज या उनके प्रति रूखा व्यवहार करते हैं, तो वह सोच सकता है "छोड़ देना अच्छा है," और इससे शायद वो आपके पास वापस नहीं आना चाहेगा।
आप इस नियम को अभी भी लागू कर सकते हैं यदि आप बिना संपर्क के नियम का उपयोग कर रहे हैं लेकिन अचानक ही उस व्यक्ति से टकराते हैं।
4. अपने एक्स से संपर्क करने से बचेंः
आपके द्वारा तय किए गए गैर-संपर्क समय के दौरान, जितना हो सके व्यक्ति के पास जाने से बचने की कोशिश करें। यदि आपका एक्स पहले आपसे संपर्क करता है, तो आप उसे जवाब देते हैं या नहीं ये आप पर और नो कॉन्टैक्ट रूल के साथ आपका लक्ष्य क्या है, पर निर्भर करता है। अगर आप उसे वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं जब तक वह एक साथ वापस आने की बात न कर रहा हो, तब तक जवाब न दें।
अपने एक्स के उन कॉल या मैसेज का जवाब न देने का प्रयास करें जो आपके रिश्ते पर गंभीर रूप से चर्चा के बारे में नहीं हैं।
यदि आप उनके मैसेज करने पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं, तो वह व्यक्ति सोच सकता है कि आप उसके साथ नहीं रहते हुए भी उसके साथ ही हैं।
5. अपने स्वयं के जीवन पर ध्यान देंः
जब आप किसी के साथ रिलेशनशिप में होते हैं उस दौरान अपने जीवन को जीने की आपकी कुछ आदतों को बदलना पड़ सकता है। अपने एक्स के साथ रहने की आदतों के बारे में सोचते रहने के बजाय, इस मौके का इस्तेमाल अपने लिए, केवल "खुद के लिए" कुछ समय का आनंद लेने के लिए करें।
अपने फ्रेंड्स और फैमिली के साथ कुछ समय बिताएँ, अपनी ऊर्जा अपने शौक या करियर पर लगाएँ या फिर अपने खुद के लिए कुछ नए लक्ष्य बनाएँ।
याद रखें कि यदि आपका एक्स आपके साथ वापस नहीं आता है, उस दौरान भी नो-कॉन्टैक्ट नियम आपको उसकी यादों से उबरकर, ठीक होने में भी आपकी मदद करता है।
ब्रेकअप के बाद उदास मूड से छुटकारा पाने और अपना आत्मविश्वास वापस पाने के लिए अपने मन को उससे हटाने के तरीकों की तलाश करें।
6. अपने एक्स के ध्यान में बने रहने के लिए सोशल मीडिया और म्यूचुअल फ्रेंड्स का इस्तेमाल करेंः
यदि आप परेशान हैं कि अपने एक्स को इग्नोर करने के दौरान शायद वो आपको भूल जाएगा, तो फिर उसकी सोशल मीडिया फीड में बने रहें और लगातार आपकी याद दिलाते रहने के लिए अपने म्यूचुअल फ्रेंड्स के संपर्क में भी रहें।
आप जिन मजेदार चीजों को करते हैं उन्हें ऑनलाइन पोस्ट करने का प्रयास करें ताकि आपका एक्स आपके साथ बिताए उन दिनों को याद कर सके, जब वो आपके जीवन का एक हिस्सा हुआ करते थे।
आपसी दोस्तों (mutual friends) के संपर्क में रहने की कोशिश करें ताकि वो आपके एक्स को आपके बारे में खबर दे सकें।
7. अपने एक्स के बारे में कुछ बुरा न बोलेंः
शायद आप अपने फ्रेंड्स से अपने एक्स के बारे में शिकायत करना या फिर आपको छोड़ने के उसके फैसले के बारे में बुरा-भला कहने का सोच सकते हैं। लेकिन एक बात न भूलें कि आपकी बोली हुई बातें उसके कानों तक पहुँच सकती हैं। यदि उसे पता चल जाता है कि उसकी पीठ पीछे आप उसके बारे में बुरा-भला कह रहे हैं, तो उसे ऐसा लग सकता है कि आप उसे वापिस नहीं पाना चाहते।
आपको अपने एक्स की तारीफ करने की जरूरत नहीं है, केवल इतना ध्यान रखें कि उसके बारे में आप जैसा भी सोचते हैं, उसमें न्यूट्रल या पॉज़िटिव रहने की कोशिश करें।
उदाहरण के लिए, अगर कोई आप से पूछता है कि क्या आप अभी भी अपने एक्स के साथ फ्रेंड हैं, तो कहें, "इस समय हम दोनों बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन हो सकता है कि आगे कभी बात हो जाए!
8. नो कॉन्टैक्ट पीरियड के खत्म होने के बाद अपने एक्स से संपर्क करेंः
आपके 4 सप्ताह (या फिर आपने जितना भी समय तय किया है) के पूरा होने और आपके एक्स के खुद पहले आप से संपर्क न करने पर, आप अपने एक्स को संपर्क करने की कोशिश कर सकते हैं। आप उसके साथ फिर से रिश्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ये बात स्पष्ट करने की बजाय, ऐसे सोचें कि आप अपने एक पुराने फ्रेंड से किसी ऐसी चीज के बारे में बात कर रहे हैं, जिसकी वजह से आपको उसकी याद आई।
सबसे पहले, अपने बीच की खामोशी के बारे में कुछ ऐसा कहते हुए बात करें, "बात न करने के लिए सॉरी। मुझे बस कुछ समय अकेले अपने लिए चाहिए था।"
फिर, कोई मीठी याद को सामने लाएँ, जैसे, उस दिन मैं हमारे फेवरिट रेस्तरां गया," या "मैंने वो टीवी शो पूरा देख लिया, जो हमने साथ में देखना शुरू किया था।"
इसके बाद, फिर कुछ इस तरह की बात के साथ केजुअल कन्वर्जेशन की ओर कदम बढ़ाने की कोशिश करें, "मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा था। तुम कैसी हो?"
9. ब्रेकअप के बारे में पर्सनली डिस्कस करेंः
अपने एक्स के साथ संपर्क बनाने के बाद, आपको आपके बीच की सबसे बड़ी रुकावट के ऊपर चर्चा करने की जरूरत पड़ेगी। बातचीत का ये हिस्सा बेहतर होगा कि आमने सामने बैठकर पूरा किया जाएः ठीक जैसे फोन पर ब्रेकअप करने की तरह ही, किसी को भी फोन पर ब्रेकअप के बारे में चर्चा करना पसंद नहीं होता।
आप ऐसा कुछ कहते हुए बात शुरू कर सकते हैं, तुमसे फिर से बात करना बहुत अच्छा रहा। क्या तुम कभी फिर से कॉफी या खाने पर मिलना पसंद करोगे?"
जब आप दोनों मिलना और थोड़ा बात करना शुरू कर देते हैं, फिर ऐसा पूछकर ब्रेकअप के बारे में बात करें, "क्या लगता है, हमारा रिश्ता कहाँ पर गलत गया?"
अपने एक्स की बातों को सम्मान के साथ सुनें और जवाब दें। और ज्यादा बहस, झगड़ा करके इस रिश्ते को बचाने में कोई मदद नहीं मिलेगी।
उदाहरण के लिए, अगर आपका एक्स कहता है, कि आप सपोर्ट नहीं किया करते थे, तो कहें, "आई एम सॉरी। ये एक ऐसी चीज है, जिसे सुधारने पर काम कर रहा हूँ।"
10. एक-साथ अपने बेहतर भविष्य के बारे में बात करेंः
आप दोनों के अपने पिछले रिश्ते के बारे में चर्चा करने के बाद, अब समय है अपने भविष्य की तरफ देखना शुरू करने का। अगर आप अभी भी रिश्ते को एक और मौका देना चाहते हैं, तो विश्वास दिलाएँ कि इस बार ये पहले से अलग और बेहतर होगा।
अगर आप दोबारा साथ में आने के विषय पर बात करना शुरू करना चाहते हैं, तो बहुत संवेदना के साथ उसे सामने लाएँ और याद रखें कि आपके एक्स के पास न कहने का पूरा अधिकार है।
अगर आप चाहते हैं कि आपका एक्स खुद साथ में वापिस आने पर चर्चा शुरू करे, तो फिर उसे अपना समय लेकर, अपनी मर्जी से ऐसा करने तक इंतज़ार करने के लिए तैयार रहें।
याद रखें कि एक साथ वापिस आना एक नई शुरुआत है। पहले जिस वजह से ब्रेकअप हुआ था, इस बार फिर उस वजह को आपके बीच में दरार न डालने दें!
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रमेश ने पुराने मकान में आने में विलम्ब न किया। इसके पहले नलिनी के साथ रमेश के भाव का जो अन्तर था वह इस बार न रहा। रमेश उसके घर का सा आदमी हो गया। रमेश और नलिनी में बड़ी घनिष्ठता हुई। दोनों ओर से हँसी खेल, आमोद विनोद, एक साथ खाना पीना, आदि जैसा चाहिए, होने लागा ।
इसके पूर्व पढ़ने में विशेष परिश्रम करने के कारण नलिनी की मुखश्री मैलिन हो गई थी। उसका शरीर इतना दुर्बल हो गया था कि ज़रा ज़ोर से हवा लगने ही से मालूम होता था कि उसकी कमर टूट जायगो । उसका स्वभाव बहुत गम्भीर था । वह कम बोलती थी। लोग उसके साथ बात करने में भय खाते थे कि शायद वह बात उसे न रुचे ।
इधर कुछ ही दिन में उसमें बहुत परिवर्तन हो गया । उसके पीले कपोलों पर गुलाबी छटा दीखने लगी। उसके नेत्र बात बात में मानों हँसते और खुशी से नाचते थे। पहले वह वेश-विन्यास या कार में मन देना श्रज्ञानता ही नहीं अनुचित समझती थो । किन्तु अब किसी के साथ इस विषय में कुछ तर्क न करके क्यों उसका मन बदलता जाता था, यह अन्तर्यामी महापुरुष के सिवा कौन कह सकता है ?
कर्तव्य के अनुरोध से रमेश भी कुछ कम गम्भीर न था । विचारशक्कि के बोझ से उसका शरीर और मन शिथिल हो
गया था। आकाश के ग्रह नक्षत्र अपनी नियत गति से चलते फिरते हैं। किन्तु मानमन्दिर अपने श्राकाशस्थित यन्त्रों के लेकर बड़ी सावधानी के साथ स्थिर होकर बैठा है। रमेश भी वैसे ही इस जङ्गमशील संसार के भीतर अपने तर्क की
आयोजना के भार से स्थिर था । वह भी आज इतनी चञ्चल क्यों हो गया ? किसने उसे चश्चल कर दिया ? आज कल वह भी परिहास का समीचीन उत्तर न दे सकने के कारण बात बात में ठठाकर हँस उठता है । यद्यपि वह अब भी बालों पर कंघी नहीं फेरता तथापि आइने में बार बार अपना चेहरा देखने से बाज़ नहीं आता । उसका पहनावा श्रोढ़ावा भी पहले की तरह अब मैला नहीं रहने पाता। उसके शरीर और मन में एक प्रकार की नई शक्ति उत्पन्न हुई सी जान पड़ती है । है
नवाँ परिच्छेद
विमियों के लिए काव्य में जिन सब बातों की व्यवस्था लिखी है, वह कलकत्ते में कहाँ पाइए । न वहाँ कहीं फूले अशोक, पलाश और मौलसरी का उपवन है, न कहीं विकसित मालती और माधवी का लतावितान है, न कहीं नवमञ्जरी. रञ्जित रसाल-वाटिका में कोयलों की कुहक है, तो भी इस उद्दीपक विभावविहीन नगरी में प्रेम का पिपासु विफल होकर नहीं जाने पाता । इस लोहे की पटरी से बँधी हुई पक्की सड़क पर, इस घोड़ा गाड़ियों की अपार भीड़ में एक अदृश्य प्राचीन देवता अपने धनुष को छिपाये, लाल साफ़े. वाले पहरेदारों की आँख के सामने से होकर दिन रात में कितनी बार कहाँ कहाँ प्राता जाता है, यह कौन कह सकता है ?
नलिनी और रमेश चमड़े की दूकान के सामने हलवाई की दूकान के पास कोलूटोला महल्ले में किराये के मकान में रहते थे। इससे कोई यह न समझे कि प्रेमविकाश के सम्बन्ध में ये दोनों कुञ्जकुटीर में रहनेवालों की अपेक्षा किसी तरह पीछे रहे हों । घनानन्द बाबू के चाय-रस-सुवासित, उस छोटे से मैले टेबुल रूपी पद्मसरोवर में मधुप रूपी रमेश को कुछ भी प्रभाव न था । नलिनी की बिल्ली मृगशावक न होने पर भी रमेश उसका कम श्रादर न करता था। जब वह कोमलता के साथ उसका गला पकड़ कर हिला देता और जब वह धनुष की
तरह पीठ फुला कर आलस्य त्याग कर उसका बदन चाटती थी तब रमेश की मुग्धदृष्टि में नलिनी का वह पालित जीव किसी दूसरे चौपाये की अपेक्षा कम गौरवास्पद नहीं जान
पड़ता था ।
नलिनी परीक्षा देने की उलझन में पड़कर सिलाई की शिक्षा में विशेष प्रवीणता लाभ न कर सकी थी । इसलिए वह कुछ दिन से जी लगा कर अपनी एक प्रवीण सखी के पास सिलाई सीखने लगी । रमेश सिलाई के काम को अनावश्यक और तुच्छ समझता था । साहित्य और दर्शन-शास्त्र में रमेश का नलिनी के साथ तर्क वितर्क चलता था, परन्तु सिलाई के विषय में रमेश को कुछ बोलने का अवसर न मिलता था । इसलिए वह कभी कभी कुढ़कर कमलिनी से कहता था - "न मालूम आज कल श्राप सिलाई के काम में क्यों इस तरह उलझ पड़ी हैं ? जिन लोगों को समय बिताने का दूसरा उपाय नहीं वही लोग इसे पसन्द करते हैं। जिन्हें कोई काम नहीं, वे बैठे बैठे सिलाई न करें तो क्या करें ।" नलिनी कुछ जवाब न देकर मुस्कुराती हुई सुई में रमेशका डोरा पिरोने लगती थी । अक्षयकुमार इस मौके पर तीब्रस्वर में बोल उठता था, "जो काम प्रयोजनीय है, जिससे संसार का कुछ उपकार हो सकता है, वह सभी रमेश बाबू के ऊँचे खयाल में व्यर्थ और तुच्छ जँचता
। महाशय ! आप चाहे जितने बड़े तत्त्वज्ञानी और कवि क्यों न हों, बिना तुच्छ वस्तुओं के एक दिन भी संसार का काम नहीं चल सकता ।" रमेश इसके ख़िलाफ़ बहस करने लगता था । नलिनी उसे रोक कर कहती - "रमेश बाबू ! आप सव बातों का उत्तर देने के लिए क्यों इतने व्यग्र होते हैं ? चुप रहने में जितना लाभ है उतना बहुत बोलने में नहीं" यह कढ़
कर वह सिर नीचा करके फिर बड़ी सावधानी के साथ सिलाई का डोरा चलाने लगती थी ।
एक दिन रमेश ने उसके पढ़ने के घर में जाकर देखा, मेज़ पर रेशम के फूल निकाले हुए मख़मल से बँधी हुई एक ब्लाटिङ्गबुक बड़ी हिफ़ाज़त से रक्खी है। मख़मल के एक कोने में 'र' अक्षर लिखा है और एक कोने में सुनहले रेशम के डोरे से एक कमल का फूल बनाया हुआ है। ब्लाटिङ्ग बही का इतिहास और तात्पर्य समझने में रमेश को कुछ भी विलम्ब न हुआ । उसका हृदय श्रानन्द से नाचने लगा । सिलाई करना तुच्छ नहीं है, यह उसके अन्तरात्मा ने बिना वाद-विवाद के ही स्वीकार कर लिया । वह उस बही को छाती से लगाकर अक्षयकुमार निकट हार मानने को भी राज़ी हुआ। उसने ब्लाटिङ्ग बही को खोलकर उसपर एक चिट्ठी लिखने का काग़ज़ रखकर लिखा"अगर मैं कवि होता, तो कविता करके ही इसका उत्तर देता । किन्तु मैं कवित्व-शक्ति से वञ्चित हूँ । ईश्वर ने मुझको वह योग्यता नहीं दी जो किसी को कुछ देकर प्रसन्न कर सकूँ । पर दान-ग्रहण की क्षमता भी एक क्षमता है। इस आशातीत उपहार को मैंने किस खुशी के साथ ग्रहण किया है, यह अन्तर्यामी भगवान् को छोड़ दूसरा नहीं जान सकता । दान आँखों से देखने की चीज़ है, परन्तु दानग्रहण का आनन्द हृदय के भीतर छिपा रहता है। इति । चिरऋषी ।"
रमेश की यह हस्तलिपि कमलिनी के हाथ पड़ी। इसके बाद इस सम्बन्ध में उन दोनों में फिर कोई बात न हुई ।
निदान बरसात का मौसम आया। यह ऋतु मानवसमाज के लिए उतना सुखकर नहीं होता जितना अरण्यचरों के लिए।
वर्षा से बचने के लिए लोग घर के ऊपर छत-छप्पर देते हैं, पथिक छाते से उसका निवारण करते हैं और ट्राम गाड़ी के सवार उसे पर्दे से रोकते हैं। नदी, पहाड़, जङ्गल और मैदान बरसात को बन्धु समझ कर आदरपूर्वक बुलाते हैं । यथार्थ में वर्षा की बहार वहीं के लिए है। वहाँ सावन भादो महीने में भूलोक और स्वर्गलोक के श्रानन्द सम्मिलन के बीच कोई व्यव धान नहीं रह जाता ।
किन्तु नया प्रेम मनुष्य को जङ्गल पहाड़ का वह सुख घर बैठे देता है। लगातार पानी बरसने से घनानन्द बाबू का जी एकदम भिन्ना उठा, परन्तु नलिनी और रमेश की चित्तस्फूर्ति में किसी तरह का व्यतिक्रम न हुआ। बादल की अँधियारो, वि. जुली की चमक, मूसलधार पानी बरसने का मधुर शब्द और बीच बीच में मेघ को गम्भीर ध्वनि ने उन दोनों नये प्रेमियों के मानसिक सम्बन्ध को और भी सुदृढ़ कर दिया ।
वृष्टि के कारण रमेश को कचहरी जाने में प्रायः विघ्न होने लगा । किसी किसी दिन सबेरे ऐसे ज़ोर की वर्षा होती थी कि नलिनी उद्विग्न होकर कहने लगती थी - "रमेश बाबू ! इस वर्षा में आप कैसे घर जाइएगा ?" रमेश शरमाता हुआ कहता था - "क्या होगा ? किसी तरह चला जाऊँगा ?"
नलिनी - "पानी में भीगने से सर्दी होगी। भोजन कर लीजिए तो जाइएगा ।"
रमेश को सर्दी का कुछ भय न था; थोड़ी देर पानी में भीगने से उसको सर्दी होते आज तक किसी ने न देखा था । किन्तु जिस दिन वर्षा होती थी उस दिन उसे नलिनी की
श्राशा के अधीन होकर रहना पड़ता था। दो चार डग पानी में चलकर अपने घर जाना हान्याय और दुःसाहस समझा जाता था। जिस दिन श्राकाश में घटा घिर श्राती थी, और पानी बरसने का लक्षण देख पड़ता था, उस दिन सबेरे रमेश बाबू को खिचड़ी खाने का न्योता हो जाता था। रमेश को आने भर को देरी रहती थी, फिर उसका जाना नलिनी के इच्छाधीन, बिना उसकी मर्जी के रमेश कब जा सकता था । रमेश को दिन भर में कई बार खिलाने से जो उसे अजीर्ण की बीमारी होगी, इसका भय नलिनी को उतना न था, जितना उसे रमेश के पानी में भीगने से सर्दी होने का भय था ।
इसी तरह दिन पर दिन बीतने लगा। इस परवशता का परिणाम क्या होगा, रमेश इसे न सोचता था, किन्तु घनानन्द बाबू सोचते थे । और उनके समाज के दस पाँच श्रादमी उसकी श्रालोचना करते थे । रमेश का शास्त्रीय ज्ञान जितना बड़ा था, व्यावहारिक ज्ञान उतना बड़ा न था। इस कारण इस प्रेमावस्था में उसकी लौकिक समझ और भी मन्द हो गई है। घनानन्द बाबू रोज़ ही उसके मुँह की ओर विशेष आशा से देखते थे, किन्तु उन्हें उसका कुछ उत्तर नहीं मिलता था ।
दसवाँ परिच्छेद
ज्ञयकुमार का स्वर उतना अच्छा न था, किन्तु जब वह सितार बजाकर गाता था, तब विशेष मार्मिक को छोड़ साधारण सुननेवाले कुछ न बोलते थे, बल्कि कितनेही और गाने का अनुरोध करते थे । घनानन्द बाबू को सङ्गीत में उतना अनुराग न था, परन्तु वेइस बात को कुबूल न करते थे। लोग यह न समझे कि उन्हेंगाने बजाने का शौक नहीं है, वे बराबर इसकी चेष्टा करते थे । जब कोई अक्षयकुमार से गाने बजाने का अनुरोध करता था तब वे कहते थे - "तुम लोगों में यही भारी दोष है । वह बेचारा गाना जानता है तो क्या उस पर एकदम इतना प्रत्या चार करना चाहिए ?"
अक्षयकुमार हाथ जोड़ कर कहता था- "नहीं नहीं । आप इसके लिए कोई चिन्ता न करें । अत्याचार की इसमें कौन सी बात है ?"
अनुरोधकर्ता उमँग कर बोलता - "तो कुछ सुनाइए ।"
उस दिन दोपहर के बाद सारा आकाशमण्डल बादल से छा गया । खूब ज़ोर से पानी बरसने लगा । साँझ हो गई पर तो भी पानी बरसता ही रहा । अक्षयकुमार का जाना रुक गया । नलिनी ने कहा - "अक्षय बाबू ! कुछ गाइए।" यह कह रक नलिनी हारमोनियम लेकर बैठी और सुर भरने लगी।
अक्षयकुमार सितार का सुर मिलाकर गाने लगा"वायु वहे पुरवैया, नींद नहीं बिन सैंयाँ ।"
अक्षयकुमार क्या गाता था, यह स्पष्ट रूप से कोई न समझ सकता था। समझने की उतनी आवश्यकता भी न थी। जब मनमें विरह-वेदना का भाव भरा है तब उसका श्राभास मात्र यथेष्ट है। इतना अवश्य समझा गया कि पानी बरसता है, मोर नाचता है, बिजली कड़कती है, और एक व्यक्ति को एक व्यक्ति से मिलने के लिए चित्त व्याकुल हो रहा है 1
अक्षयकुमार सितार की ध्वनि में अपने मन का भाव व्यक्त करने की चेष्टा करता था, किन्तु उस ध्वनि का विशेष मर्म समझते थे दो ही मनुष्य । उस ध्वनि की लहरें दो ही व्यक्तियों के हृदय में विशेष आघात पहुँचा रही थीं ।
उस दिन जैसे निरन्तर पानी बरस रहा था, वैसे ही गान की भी झड़ी लग गई थी। नलिनी बारबार अनुनयपूर्वक कहने लगी - "अक्षयबाबू ! श्राप को मेरी सौगन्द है, अभी गाना समाप्त न कीजिए, एक और गीत गाइए । "
अक्षय का उत्साह दूना बढ़ गया । उसने गाने में और भी आलाप की मात्रा अधिक करदा। गाते गाते वह तन्मय हो गया । बड़ी देर तक योंही गाने बजाने का ठाठ जमा रहा। जंब रात बहुत बीती और पानी बरसना बन्द हुआ तब अक्षयकुमार अपने घर को गया । रमेश ने विदा होते समय सतृष्णनयन से एकबार नलिनी के मुँह की ओर देखा । नलिनी भी चकितदृष्टि से रमेश को एकबार देखकर उठ खड़ी हुई । उसकी दृष्टि में भी गान का असर भरा था ।
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भाव नहीं मानोंगे तो किसी पदार्थका निर्वाह नहीं होगा इस लिये स्याद्वादसिद्धान्तकी शरण गहो जिससे तुम्हारा मिथ्या ज्ञान मिटे और आत्मज्ञान होय सो हे भोले भाइयों ! स्थाणु निरोधकी आपत्तिरूप हाथी बनाया था उसका तेज रयाद्वादसिंहके सामने न ठहरा किन्तु भागकर वनकी सैर करता हुवा और जो तुमने कहा कि सत् रूपाति वादी भीति न दंडकादिकन में स्थानू निरोधादिक फल नहीं मानें तो दंडादिकनको सत् कहना विरुद्ध अर्थात् निष्फल है तो अब इस जगह भी नेत्रमींचकर हृदयको देखो कि जिस पुरुषको सत्य वस्तुका यथावत् ज्ञान होगा उसीको उस सत्य वस्तुका भ्रम ज्ञान होगा नतु अज्ञानी अर्थात् अजानको होगा तो सत्य वस्तुके यथावत् ज्ञान विना भ्रम काल में किस वस्तुका भ्रम ज्ञान मानोगे क्योंकि उस भ्रम वाले पुरुषको सत्य वस्तुका ज्ञान तो है नहीं जो सत्य वस्तुका ज्ञानही नहीं है तो उस पुरुषको इष्ट अनिष्ट साधनका भी विवेक न होने से उस पुरुषकी प्रवृत्ति निवृत्तिही, न बनेगी इसलिये हे भोले भाइयो ! अनिर्वचनीय ख्यातिको छोड़कर सत्य ख्यातिकी शरण गहो अमरपद लहो संसार समुद्र में क्यों वही जो तुम आत्मस्वरूप चाहो; तब इस वाक्यको सुनकर वेदान्ती चौककर बोलता हुवा कि भ्रमस्थलमें सत् पदार्थ की उत्पत्ति मानो हो तो भंगार सहित ऊसर भूमिमें जल भ्रम होते है तहां जलसे अंगार शांति हुवा चाहिये और 'तुला' अर्थात् रुईके ऊपरी घरे हुवे गुंजा अर्थात् लाल चोंटनी के पुंजसे अनि भ्रम होते है तहां तुलाका दाह होना चाहिये और जो ऐसा कहे कि दोष सहित कारणते उपजे पदार्थकी अन्यको प्रतीत होवे नहीं जाके दोषसे उपजे है ताहीको प्रतीति होवे है तो दोषके कार्य जल अभिसे आर्द्राभाव दा छ होवे नहीं तो तिनको सतही कहना हास्यका हेतु है क्योंकि अवयव तो स्थाणु निरोधादिक हेतु नहीं है और audte कोई कार्य होवे नहीं ऐसे पदार्थको सत् कहना बुद्धि असे मानोंको हास्यका कारण है इसलिये सत्यख्याति असंगतही है अव इनका समाधान सुनो कि जो तुमने कहा कि जहां अंगार सहित ऊसर भूमिमें जल भ्रम होवे तहां जलसे अंगार शीत हुवा चाहिये इस तुम्हारी तर्करूप 'टटुवानी' अर्थात् निर्बल बछेरीको देखकर दास्य सहित करुणा आती है कि यह निर्बल जर्जरीभूत स्याद्वादयुक्ति रूप चावुक क्योंकर सहेगी सो युक्तिरूप चाबुकका स्वाद तो चक्खो कि जिस पुरुषकों जलभ्रम होता है वह पुरुष जल भ्रम स्थल में पहुंच कर जल नहीं पानेसे अर्थात् न होनेसे निराश होकर क्या बोलता है सो कहो तो तुमको कहना ही पड़ेगा कि वह पुरुष कहेगा कि जल विना मिले मेरेको जलका भ्रम हो गया कारण कि इस भूमिमें अंगार की तेजीसे जल कीसी दमक होने से मेरेको जलका धोखा होगया ऐसा कहेगा तो फिर तुम अनिर्वचनीय अनिर्वचनीय !! अ--- निर्वचनीय !!! तातेकी तरह है हैं क्या पुकारते हो और जो तुमने कहा कि कईके ऊपर घरी
लाल चटनीसे अग्रिम हो तहां रुईका दाह होना चाहिये सो भी कहना विषेक शून्य मालूम होता है क्योंकि देखो जो रुईका दाह हो जाता तो उस जगह अग्रिका भ्रम ज्ञान जहां होता किन्तु सत्य अनित्य प्रतीति देती सो उस जगह रूईका दाइ तो हुवा नदी इसलिये उस जगह सत्य अनिका भ्रम ज्ञान हुवा है इसीलिये उसको भ्रमस्थल में भ्रम ज्ञान कहते है इस लिये तुम्हारी मुक्ति ठीक नबनी और जो तुमने कहा कि ऐसे पदार्थोंको सत्य कहना बुद्धि
मानोंको हास्यका हेतु है तो हम तुम्हारेको यह बात पूछे हैं कि सत्य और असत्य इनके सिवाय और कोई तीसरा पदार्थ भी जगत्में कहीं प्रतीति देता होय तो कहो तुमको व्यनिर्वाच्य होने के सिवाय कुछ भी न बनेगा क्योंकि देखो बुद्धिमानोंने सत्य पदार्थको सत्य कहा तसेही आनन्द होगा हां अलबत्त जो आत्मानुभव शून्य निर्विवेक भ्रमजाल में फसे हुवे तुम्हारे जैसे है। कृप्त कल्पनाको छोड़कर अकृत कल्पनाको ग्रहण करके भांड़चेष्टा की तरह जो अपनेको बुद्धि-मान मानकर मनुष्य की पूंछकी तरह इस अनिर्वचनीय ख्यातिको पकड़े बैठे है इसलिये उनक पदार्थका बोध न होगा और जो पहले कहा था की दृष्टान्त दाष्टीत विषम है सो इन का खण्डन तो पहले ही वेदान्त मत के निरूपण में अथवा अनिर्वचनीय ख्याति के खण्डन में दिखा चुके हैं परन्तु किश्चित् यहां भी प्रसंग दिखाते हैं कि जो तुम कहो कि शुक्ति रजत द्रष्टान्त से प्रपंच को मिथ्यात्व को अनुमति होते है यह तुम्हारा कहना असंगत है क्योंकि प्रपंच को मिथ्यात्व की अनुमति होते है सो मिथ्या नाम झूठका अर्थात् न होना उस को कहते हैं तो यह प्रपंच अर्थात् जगत् प्रत्यक्ष दीखता है और तुम कहते हो कि जगत् मिथ्या है सो क्या तुम जाग्रत में भी स्वप्न देख कर बरीते हो अजी नेत्र मींच के हृदय में विचार करो कि घट, पट, खाना, पीना, सोना, बैठना, पुरुष, स्त्री, बाल, बूढ़ा, युवा, पशु, पक्षी, जन्म, मरण, हाथी, घोडा, गाय, भैंस, ऊंट, बकरी, राजा, प्रजा, इत्यादिक अनेक जो दीखे है उन को तुम प्रपंच कहो हो तो इस जंगत् को आवाल कोई भी मिथ्या अर्थात् झूठ नहीं कहता है परंतु न मालूम कि तुमलोगों का हृदय नेत्र तो फूट गया किन्तु बाह्य नेत्र से भी नहीं दीखता है तो मालूम हुवा कि तुमलोगों के नेत्र का आकार है परन्तु ज्योति शून्य है इस लिये हम तुम को क्यों कर बोध करावें और जो तुम कहो कि प्रपंच को हम व्यवहार सत्तावाला मानते हैं और परमार्थ सत्ता से प्रपंच को मिथ्या कहते हैं तो अब हम तुमको पूछें हैं कि शुक्ति और रजत यह दोनो व्यवहार सत्तावाली हैं जिस से शुक्ति में रजत का भ्रम होता है क्योंकि सादृश्य और एक सत्ता है तैसे ही परमार्थ सत्ता को छोड़ कर व्यवहारिक सत्ता मानो तो शुक्ति रजत का दृष्टान्त बनजाय अथवा जगत की व्यवहारिक सत्ता छोड़कर परमार्थ की सत्ता मानो तो द्रष्टान्त दाष्टीन्त बन जाय इस लिये अनेक सत्ता का मानना छोड़कर एक सत्ता को मानो, तजो अभिमानो, समझ गुरु ज्ञानों, होय कल्यानों तो आत्मरूप पहिचानों जिस से कार्य सब सिद्ध हों जो तुम व्यवहारिक और प्रतिभासक और परमार्थ सत्ता जुदी २ मानोंगे तो तुम्हारा द्रष्टान्त दान्त इन तीनों सत्ताओं तीनों सत्ताओं से कदापि सिद्ध नहीं होगा क्योंकि जब भ्रमस्थल में व्यवहारिक शुक्ति में व्यवहारिक रजत का भ्रम ज्ञान होता है और कहते हो कि उस भ्रमस्थल में अनिर्वचनीय अर्थात् प्रतिभासक रजत उत्पन्न होती है और व्यवहारिक रजत है नहीं तो व्यवहारिक शुक्तिका ज्ञान होनेसे प्रातिभासक रजतकी निवृत्ति क्योंकर बनैगी कदाचित् व्यवहारिक शुक्ति के ज्ञान से प्रातिभासिक रजतकी निवृत्ति मानोगे तो स्व सत्ता साधक वाधक है विषम सत्ता नहीं ऐसा जो तुम्हारा सिद्धान्त है सो इस तुम्हारे सिद्धान्तको जलांजली देकर पीछे व्यवहारिक शुक्तिके ज्ञान से प्रातिभासक रजतकी निवृत्ति करना इस लिये जो शुक्ति रजतके द्वष्टान्तसे प्रपंचको अनुमति होवे
स्याद्वादानुभव रत्नाकर ।
है सो सिद्ध न हुई इस वाक्यको सुनकर मिथ्यात्वरूपी प्यालेके नशे में चकचूर होकर बोलता हुवा कि अजी तुमने अनिर्वचनीय ख्यातिका तो युक्तिसे खंडन करदिया परन्तु तुम्हारी मानी हुई जो सत्य ख्याति वाद में शुक्तिमें रजत सत्य है सो द्रष्टान्त देकर प्रपंच में मिथ्यात्व सिद्ध होते नहीं इस लिये सत्य ख्यातिभी न बनी फिर कौनसी ख्याति माननी चाहिये सो कहो अरे भोले भाइयों ! इस तुम्हारे वाक्यको सुनकर बुद्धिमानों को हास्य आता है क्योंकि जैसे बहरेको गीतका सुनना और अंधेक सामने आईना दिखाना तैसे ई हमारी इतनी युक्तियोंका कथन करना हो गया परन्तु खैर अब और भी तुमको द्रष्टान्त दान्त उतार कर दिखाते हैं सो देखो कि इस जगत् में जो जो पदार्थ हैं सो सो स्व २ सत्ता करके सर्व सत् हैं परन्तु पदार्थ के ज्ञान होनेसे क्या नियम होता है सो हम कहते हैं कि " पदार्थज्ञाने प्रतिपक्षी नियामका " इसको सब कोई मानते हैं क्यों कि प्रतिपक्षी विना पदार्थका ज्ञान नहीं होता है इस लिये यह प्रतिपक्षी पदार्थको दिखाते हैं कि प्रति पक्षी किसको कहते हैं जैसे सत्यासत्य अर्थात् सत्यका प्रतिपक्षी झूठ और झूठका प्रतिपक्षी सत्य है तैसे ही खरा, खोटा, और स्त्री, पुरुष, नर, मादी, सुख, दुःख, बुरा, भला, राग, द्वेष, धर्म, अधर्म, तृष्णा, संतोष, मीठा, कड़वा, नरक, स्वर्ग, जन्म, मरण, रात, दिन, राजा, प्रजा, चोर साहूकार, जीव, अजीव, बंध, मोक्ष इत्यादि अनेक वस्तुओं में प्रतिपक्षी इसी रीतिसे जान लेना सो यह वस्तु सर्व जगत् अर्थात् संसार में अनादिकाल शास्वत द्रव्य क्षेत्र काल भाव करके स्वसत्तासे सत् सत्तावाली है इस लिये जगत् में जो पदार्थ हैं सो सभी अपनी २ अपेक्षासे सत् हैं परंतु पर अपेक्षा से प्रतिपक्षी पदार्थ में असत्यता है इसी लिये श्री वीतरागसर्वज्ञकी वाणी स्याद्वादरूप है इस स्माद्वादके विना जाने यथा- 3 वत् ज्ञान होना कठिन है अब देखो इसी स्याद्वादरीतिको समझो कि द्रष्टान्त तो शुक्ति में रजतका भ्रम ज्ञान होना इस द्रष्टान्तकी पेइतर व्यवस्था दिखाते हैं कि जिस पुरुषको रज त अर्थात् चांदका यथावत् ज्ञान इष्टसाधनताका बोध होगा उसही पुरुषको शुक्ति में र जतका भ्रम ज्ञान होगा नतु अन्य पुरुषको और भी समझो कि शक्तिके सिवाय और भी जो रजत सादृश्य पदार्थ हैं उन में भी रजतका भ्रम ज्ञान होता है जैसे सफेद दमकदार कपड़े में कोई वस्तु बॅधी होय, अथवा चूनाकी ढेलियाँ सफेद पत्थर में भी रजतका भ्रम ज्ञान होता है क्योंकि रजतके सादृश्य होनेसे; इसी रीतिसे सर्व भ्रमस्थलों में सादृश्य व स्तु में सत्य वस्तुका भ्रमज्ञान होता है और जो जो सादृश्य पदार्थ नहीं है उसमें किसीको भ्रम ज्ञान नहीं होता है कदाचित् असादृश्य पदार्थ मे भ्रमज्ञान माने तो हरेक वस्तुमें ह रेकका भ्रम ज्ञान हो जायगा इसी लिये सादृश्य पदार्थ में ही भ्रमज्ञान होता है नतु अ--- सादृश्य में और जिस वस्तु में भ्रम होता है सो भी स्वसत्ता करके सत्य है और जिस वस्तुका भ्रम होवे सो भी स्वसत्ता करके सत् है परन्तु पर अपेक्षा से असत्य है जो पर सत्ता से असत् नहीं माने तो भ्रमज्ञान होवे नहीं इस लिये स्वसत्ता करके सत्य और परसत्ता करके असत्य है इस रीति से द्रष्टान्तकी व्यवस्था जानों अब दान्तकी व्यवस्था कहते है कि मात्मा सत् चित् आनन्दरूप है सो सत्य नाम जो उत्पाद व्यय ध्रुव करके तीन काल मे रहे उसको सत्य कहते हैं और चित् नाम ज्ञानका है अथवा चित्
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'बचपन में?' बाबा चकित हुए।
आँख की बीमारी पैदाइशी थी।
सुनिधि और वह बचपन में प्रतापगढ़ के एक ही मुहल्ले में पड़ोसी थे। वह अपने बाबा के साथ रहता था। सारे बच्चे उसे कौतुक, दया, डर और प्यार से देखा करते थे। क्योंकि सभी को मालूम था कि वह एक ऐसा बच्चा है जिसके माँ, बाप, भाई, बहन सड़क दुर्घटना में मारे जा चुके थे। आँखों की बीमारी ने उसे बचाया था, वर्ना वह भी मारा जाता। उस रोज प्रतापगढ़ में मद्रास के प्रसिद्ध शंकर नेत्र चिकित्सालय के कोई डॉक्टर आए थे इसलिए वह बाबा के पास रह गया था। मद्रास के डॉक्टर ने जाँच पड़ताल के बाद कहा था : 'इसकी आँखें कभी ठीक नहीं होंगी। चश्मा लगा कर भी यह उतना ही देखेगा जितना बगैर चश्मा के। हाँ इलाज से यह फायदा होगा कि इतनी रोशनी आगे भी बनी रहेगी और यह अंधा होने से बच जाएगा।' लौटते वक्त बाबा उसे अपनी छाती से चिपकाए रहे। रास्ते में उन्होंने उसके लिए रसगुल्ले खरीदे थे।
वह रसगुल्ले खा रहा था तभी घर के लोगों की मौत की खबर आई थी। बाबा ने उसके हाथ से रसगुल्लों का कुल्हड़ छीन कर फेंक दिया था। बाबा ने पहली और आखिरी बार उसके हाथ से कुछ छीना था। इसके बाद हमेशा उन्होंने उसे कुछ न कुछ दिया ही था। वह उसके लिए खिलौने खरीदने में समर्थ नहीं थे, तो खुद अपने हाथ से खिलौने बना कर देते थे। उनकी हस्तकला से निर्मित मिट्टी और दफ्ती की अनेक मोटरों, जानवरों, वस्तुओं ने बचपन में रतन कुमार का मन लगाया था। बाबा उसे खाना बना कर खिलाते थे और जायका बदलने के लिए मौसमी फल तोड़ कर, बीन कर लाते थे। वह पोते के स्वाद के लिए प्रायः आम, जामुन, चिलबिल, अमरूद और करौंदे के वृक्षों तले भटकते थे। उन्होंने पोते के लिए फटे कपड़ों की सिलाई करना और उन पर पैबंद लगाना सीखा। इतना ही नहीं उन्होंने अपने हाथों से लकड़ी गढ़ कर रतन कुमार को बल्ला, हाकी और तोते दिए थे।
लेकिन इस बच्चे को हर तरह से खुश करने की कोशिश के बावजूद उसे लगातार यह सबक भी सिखाते रहे कि वह खूब मन लगा कर पढ़े। पढ़ाई ही उसकी दुश्वारियों का तारणहार बनेगी, यह बात बाबा ने उसके दिमाग में शुरुवाती दौर में बैठा दी थी। नतीजा यह था कि किताबें उसे प्रिय लगने लगी थीं। छपे हुए शब्द उसको ज्ञान और मनोरंजन दोनों देते थे।
उसे किताबें चेहरे के काफी नजदीक रख कर पढ़नी पढ़ती थीं, हालाँकि पढ़ने में उसको तकलीफ होती थी। शायद इस तकलीफ को कम करने के लिए उसकी याद्दाश्त विलक्षण हो गई थी या हो सकता है कुदरत ने कोई चमत्कार किया था - वह जो भी पढ़ता सुनता तुरंत याद हो जाता था। इसलिए इम्तिहानों में वह हमेशा टॉप करता था। लोग उसकी स्मरणशक्ति से इतना हतप्रभ और भयभीत रहते कि प्रचलित हो गया था, उसको एक साधू का वरदान प्राप्त है, कोई किताब छूते ही उसके माथे में छप जाती है।
अजीब बात थी उसे सड़क दुर्घटना की हमेशा चिंता रहती थी लेकिन अपनी दृष्टिबाधा को ले कर वह कभी परेशान नहीं दिखता था। बाद में ऐसा हुआ कि वह वास्तविकता से भी ज्यादा दृष्टिमंदता को कुछ बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित करने लगा। नजदीक से ही सही, नन्हें अक्षरों को पढ़ लेने वाला वह कभी कभार सामने वाले को पहिचानने से इनकार कर देता अथवा गलत नाम से पुकारता।
यह हरकत लड़कियों को विशेष रूप से आहत करती थी। वह छरहरी रूपयौवना को किसी अध्यापिका के रूप में संबोधित करता तो वह खफा हो जाती थी। दिल्ली के करोलबाग की एक प्रसि़द्ध दुकान से मँगाए गए दुपट्टे पहने लड़की से उसने कहा, 'लड़कियों में यह अगौंछा पहनने का फैशन अभी शुरू हुआ है?' लेकिन वह इतना मेधावी था, नाकनक्श से आकर्षक था और वक्तृता उसकी ऐसी पुरजोर थी कि लड़कियाँ पलट कर उसे जली कटी नहीं सुनाती थीं। उलटे इस वजह से उसकी ओर अधिक खिंचने लगती थीं। वे अकसर अपने को दिखा पाने के लिए उसके काफी पास खड़ी हो जातीं, तब वह यह कह कर आहत कर देता था, 'इतनी दूर खड़ी होने के कारण मुझको ठीक से दिखाई नहीं दे रही हो।' वे उदास हो जाती थीं। और तब शर्मशार हो जातीं जब उनकी सुडौल उँगलियों की नेलपालिश देख कर वह कहता, 'पेन लीक कर रही थी क्या जो उँगलियों में इतनी इंक पुती है।' एक लड़की की भाभी उसके लिए फ्रांस से लिपस्टिक लाई थी जिसकी लाली उसके होठों पर देख कर उसकी टिप्पणी थी, 'वैदेही, पान मत खाया करो, दाँत खराब हो जाएँगे।' ये सब देख कर लड़कों ने उसके विषय में घोषणा की, 'रतन कुमार एक नंबर का पहुँचा हुआ सिटियाबाज है और लड़की पटाने की उसकी ये स्टाइल है।' लेकिन जब इन्हीं में एक की शर्ट में पेन देख कर उसने कहा, 'तुम कंघी ऊपर की जेब में क्यों रखते हो, तुम्हारी पतलून में हिप पाकेट नहीं है?' तो लड़कों को भरोसा होने लगा कि रतन कुमार वाकई में कम देखता है। इस ख्याल में इजाफा एक दिन कैंटीन में हुआ। उसने समोसा चटनी में डुबोने के लिए हाथ नीचे किया तो वह प्लेट की जगह मेज पर जा गिरा था।
'बेहतर।' रतन ने बताया।
'क्या किसी नए डॉक्टर को दिखाया था।' वह उत्साहित हुई थी।
'मतलब?' सुनिधि आधी भौचक्की आधी परम खुश थी।
वह चौंक पड़ी थी।
सुनिधि हँसी, उसे उसकी बात पर रत्ती भर एतबार नहीं हुआ। उसने यही नतीजा निकाला था कि इसने बड़ी होशियारी से इस मौके़ को अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर लिया। यह ढंग उसे पसंद आया था इसलिए वह हँसी थी मोहक तरीके़ से। अगले ही क्षण वह चुप हो गई थी जैसे एक युग के लिए मौन इख्तियार कर लिया हो। और दुबारा हँस पड़ी थी जैसे एक युग के बाद हँसी हो।
उसने तिल देखा था सुनिधि की गरदन के बाईं तरफ भी जहाँ केशों का इलाका खत्म होता था। उसने तिल देखा था नितंब पर और स्कंध पर और नाभि के थोड़ा ऊपर।
सुनिधि खौफ, हर्ष, अचंभा और उन्माद से सिहर उठी थी कि सात दीयों के नीम उजाले में वह उसके सूक्ष्मतम कायिक चिह्नों की शिनाख्त कर पा रहा है।
उस रात सात दीपक रात भर जलते रहे थे और वे दोनों रात भर जगते रहे थे। इसे यूँ भी कहा जा सकता है : सात दिए रात भर जगते रहे दो लोग रात भर जलते रहे।
वे उन दोनों के सबसे हँसमुख दिन थे। सुनिधि बड़ी पगार पर एक कंपनी में काम कर रही थी। वह भी विश्वविद्यालय में लेक्चरर हो गया था। कहते हैं कि इंटरव्यू के लिए बनी विशेषज्ञों की चयन समिति का एक सदस्य घनघोर पढ़ाकू था, जिसके बारे में चर्चा थी कि साक्षात्कार के समय प्रत्याशी के जाने और दूसरे के आने के अंतराल में वह किताब पढ़ने लगता था। यहाँ तक कि जब उसे प्रश्न नहीं पूछना रहता था जो वह पढ़ने लगता था। इस अध्ययनशील बौद्धिक की भृकुटि रतन कुमार को देख कर टेढ़ी हो गई थी। वह टेढ़ी भृकुटि के साथ ही बोला था, 'एक अध्यापक को जीवन भर पढ़ना होता है, आप इन आँखों के साथ कैसे पढ़ेंगे?' यह कह कर उसने पढ़ने के लिए अपनी किताब हाथ में ले ली थी। वह पृष्ठ खोलने जा रहा था कि उसे रतन कुमार की आवाज सुनाई पड़ी, 'पढ़ने के लिए अपनी आँखों और किताब को कष्ट क्यों दे रहे हैं, मैं जबानी सुना देता हूँ।' रतन कुमार ने आँखें मूद लीं और उस किताब को अक्षरशः बोलने लगा था।
अर्द्धविराम, पूर्णविराम के साथ उसने पुस्तक का एक अध्याय सुना दिया था। इस किस्से में अतिरंजना का पर्याप्त हिस्सा होना निश्चित लगता है लेकिन यह तय है कि कमोबेश कुछ करिश्मा हुआ था, क्योंकि रतन कुमार को सिफारिश और जातिगत समीकरण के बगैर चुन लिया गया था।
'इनसान केवल जिंदगी चुनता है बाबा। मौत अपनी जगह और तरीका खुद तय करती है।' उसने बाबा से जिरह की।
'इनसान के हाथ में कुछ नहीं है न मौत के हाथ में। सब ऊपर वाले की मर्जी है। बस ये समझ कि उसकी मर्जी है कि तेरा बाबा प्रतापगढ़ में रहे।' बाबा ने एक तरह से इस प्रसंग को यहीं खत्म कर दिया था।
वह खाली हाथ वापस आ कर अपने अध्यापक जीवन में विधिवत दाखिल हो गया था। उसकी बाकी मुरादें पूरी हो रही थीं। वह अपने बचपन को याद करता था जब उसकी आँखों को देखते ही बाबा की आँखों में अँधेरा छा जाता था जो धीरे धीरे चेहरे पर इतना उतर आता कि चेहरा स्याह पड़ जाता था। उन दिनों लड़के उसकी आँखों का मजाक बनाते और बड़े उसके बंजर भविष्य को ले कर कोहराम मचाते थे। उसे खुद यही लगता था कि उसका जीवन काँटों की सेज है लेकिन अब वह काफी़ खुशनसीब नौजवान था उसके पास पसंदीदा नौकरी थी और सुनिधि के रूप में अद्वितीय हमजोली।
उसने चाबी पाकेट में रखते हुए कहा था, 'घर के अंदर मैं संत नहीं शैतान बनना चाहूँगा।' उसकी बात पर सुनिधि ने बनावटी गुस्सा दिखाया जिस पर वह बनावटी ढंग से डर गया था।
पर उस फ्लैट के लॉक को खोलना भी मुश्किल काम था। उसकी कमजोर आँखें लॉक के छिद्र को ठीक से देख नहीं पाती थीं। वह अंदाजा से चाबी यहाँ वहाँ कहीं रखता और आखिरकार एक बार दरवाजा खुल जाता था।
वह जाड़े की शाम थी। तूफानी ठंड पड़ रही थी। हिमाचल में बर्फबारी हुई थी, जिससे उत्तर प्रदेश भी सर्द हवाओं से भर उठा था। आज उसके पास कई थैले थे जिन्हें दीवार पर टिका कर वह लॉक खोल रहा था। किंतु उसकी उँगलियां ठंड से इतनी सिकुड़ गई थीं कि वह चाबी ठीक से पकड़ नहीं पा रहा था।
स्वयं रतन कुमार को अंदाजा नहीं था कि उसका स्तंभ 'अप्रिय' इतना लोकप्रिय हो जाएगा। वह न पेशेवर पत्रकार था न राजनीतिक विश्लेषक लेकिन 'अप्रिय' ने पत्रकारिता, राजनीति, समाज में इतनी जल्दी जो ध्यानाकार्षण और शोहरत हासिल किया, वह बेमिसाल था। उसकी लोकप्रियता का आकलन इससे भी किया जा सकता है कि बांग्ला, उर्दू और गुजराती के अखबारों ने इसे अपने अपने अखबार में छापने के लिए जनादेश के संपादक से अनुमति माँगी थी। जबकि इसी प्रदेश के एक अंग्रेजी अखबार का रतन कुमार से अनुरोध था कि वह जनादेश के बदले उसके अखबार में लिखे।
अप्रिय की अभी तक की दस किस्तों ने रतन कुमार को एक नामचीन शख्सियत बना दिया था। ये दसों किस्तें वस्तुतः एक लेखमाला की तरह थीं जो शब्दों के लघुरूप और कूट संरचनाओं (कोड) पर आधारित थी। उसने प्रारंभ में ही आज के अखबारी फैशन के विपरीत राजनीतिक दलो को उनके पूरे नाम से पुकारा था। उसे भाजपा, सपा, बसपा, माकपा, आदि को उस तरह नहीं पूरे नाम से लिखा था। इसका कारण बताते हुए उसने कहा : 'किसी राजनीतिक दल का पूरा नाम एक प्रकार से उसका मुख्तसर घोषणापत्र होता है।
उनके नाम के मूल और समग्र रूप में उनका इतिहास, उनके विचार सरोकार और जनता को दिखाए गए सपने शामिल रहते हैं।' उसने अपने मत को स्पष्ट करने के लिए माकपा का जिक्र किया था। उसने लिखा थाः 'माकपा का मूल नाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) है। इस संज्ञा से पता चलता है कि इसका निर्माण कम्यूनिज्म, मार्क्सवाद, क्रांति और सामाजिक परिवर्तन के सरोकारों के तहत हुआ था। आप सभी को मालूम है कि तमाम की तरह यह पार्टी भी आज इन सब पर कायम नहीं है। इसलिए 'माकपा' उसके लिए एक रक्षाकवच है। यह संबोधन अपने उद्देश्यों से इस पार्टी के फिसलन को ढँकता है और ऐसे भ्रम की रचना करता है कि साम्यवाद और सर्वहारा कभी इसकी बुनियादी प्रतिज्ञा थे ही नहीं। यही बात अपने नाम का संक्षिप्तीकरण करने वाले अन्य राजनीतिक दलों पर भी लागू होती है।' इसे उसने कुछ दूसरे उदाहरणों से प्रमाणित भी किया था।
अगले दिन कुछ पाठकों ने काट करते हुए प्रतिक्रिया दी थी : आप दूर की हाँक रहे हैं। शार्ट फार्म महज वक्त और जगह की किफायत करने के इरादे से प्रचलन में लाए गए हैं। इस पर उसने अगली किस्त में उत्तर दिया था : 'फिर मुलायम सिंह यादव को मुसिया, नरेंद्र मोदी को नमो, सोनिया गांधी को सोगां और नारायण दत्त तिवारी को नांदति क्यों नहीं लिखा जाता।' उसने इन नामों को इस प्रकार नहीं लिखा था किंतु उसने अपने स्तंभ में लोगों की जाति हटा दी थी। अतः यहाँ पर अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी हो गए थे और शरद यादव सिर्फ शरद। उसने कई बाहुबली नेताओं को भी उनकी जाति से बेदखल कर दिया था। नतीजा यह हुआ कि बबलू श्रीवास्तव सिमट कर बबलू हो गए, धनंजय सिंह धंनजय, अखिलेश सिंह अखिलेश बन कर रह गए।
ऐसा नहीं कि उन संदेशों में उसकी शान में कसीदे ही पढ़े गए होते थे। विरोध की भी आवाजें रहतीं। अनेक पार्टियों और नेताओं के समर्थकों ने उसके खिलाफ राय दी थी। जिसे उन्होंने पत्रों और प्रेस विज्ञप्तियों के मार्फत दैनिक जनादेश में भी अभिव्यक्त किया था। इनका मत था कि रतन कुमार उनके नेताओं को अपमानित करने के इरादे से उनके नाम को तोड़मरोड़ रहा है। उन्होंने तोहमत लगाई थी कि वह इस काम के एवज में भारतीय लोकतंत्र की दुश्मन किसी विदेशी एजेंसी से अनुदान पा रहा है।
अगले सप्ताह कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी उससे खफा हो गए थे। क्योंकि उसने अपने स्तंभ में उन अधिकारियों के अविकल नामों की एक सूची प्रस्तुत की थी जो अपने नाम संक्षेप में लिखते थे। इस सूची से उनको कोई असुविधा नहीं हुई जिनके नाम दूसरों ने प्यार से अथवा अपनी सहूलियत के लिए छोटे कर दिए थे। लेकिन जिन्होंने अपनी संज्ञा का नवीनीकरण अपने आप किया था वे रतन कुमार से बहुत नाराज थे या उसे पागल, सनकी कहते हुए उस पर हँस रहे थे। रतन कुमार ने सूची में बी.आर. त्रिपाठी को बचई राम त्रिपाठी, जी.डी. शर्मा को गेंदा दत्त शर्मा, पी.एस. अटोरिया को पन्ना लाल अटोरिया लिखा था और कोष्ठक में कहा था : (कृपया इनकी जाति हटा कर इन्हें पढ़ें)। सूची के अखीर में उसने टिप्पणी की थी : 'जो शख्स अपने नाम को असुंदर होने के कारण छुपा रहा है वह दरअसल अपने यथार्थ को छुपा रहा है। यही नहीं, वह सौंदर्यविरोधी कार्रवाई भी कर रहा है क्योंकि उसका नाम रखते वक्त उसके पिता, माँ, दादी, बाबा आदि के मन में जो ममता और सुंदरता रही होगी, वह उसका तिरस्कार कर रहा है।
'बिलावजह शक मत किया कर। कलक्टर और कप्तान साहेब दोनों तुम्हारी तारीफ कर रहे थे और पूछ रहे थे तेरे बचपन के बारे में, तेरी आँखों, तेरी आदतों के बारे में। उन्होंने बड़े गौर से मेरी बातें सुनीं। चाय पिलाई। मेरा तो रुआब बढ़ गया रे रतन।' बाबा की आवाज भावुकता के कारण भर्रा उठी थी।
उनके चले जाने के बाद रतन कुमार ने उठ कर दरवाजा बंद किया। उसने पाया कि वह डरा हुआ है लेकिन उसमें मृत्यु की दहशत नहीं थी। दरअसल उसका यह अधंविश्वास अभी तक बरकरार था कि उसकी मृत्यु सड़क दुर्घटना में होगी न कि किसी हथियार से। इसीलिए सामने आता हुआ कोई वाहन उसके लिए रिवाल्वर या धारदार हथियार से अधिक खौफनाक था। उसने एक गिलास पानी पिया था और थाने में रिपोर्ट लिखाने के लिए मजमून तैयार करने लगा था।
इत्तेफाक था या इसके पीछे कोई योजना थी कि रतन कुमार पर हमले के प्रसंग ने तूल पकड़ लिया। एक अन्य समाचारपत्र ने रायशुमारी के लिए उपरोक्त प्रश्न को दूसरे ढंग से पूछा था : रतन कुमार पर हमले की बात झूठ का पुलिंदा है?
रतन कुमार प्रसंग की मीडिया में जो इतनी अधिक चर्चा हो रही थी, उसके बारे में बहुत सारे लोगों का मानना था कि यह मीडिया के भेड़ियाधसान और परस्पर होड़ का नतीजा है। कुछ इसमें मुख्य विपक्षी दल का हाथ खोज लिए थे जिसके अनुसार सरकार की फजीहत करने के लिए विपक्षी नेता ने भीतर ही भीतर इस प्रसंग की आँच को हवा दी थी। तीसरी चर्चा, जो आमतौर पर पत्रकारों के बीच ही सीमित थी, यह कि ये रतन कुमार छटा हुआ अंधा है। कॉलम की शोहरत से पेट न भरा तो ये नया शगूफा छेड़ दिया। फिलहाल वस्तुस्थिति यह थी रतन कुमार के मुद्दे पर माहौल गर्म हो रहा था।
एक अखबार ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का साक्षात्कार छापा था जिसमें सवाल था : रतन कुमार के हमलावरों को पकड़ सकने में पुलिस विफल क्यों रही है? इसका जवाब उसने यूँ दिया था : रतन कुमार पुलिस का सहयोग नहीं कर रहे हैं। हम उन पर आरोप कतई नहीं लगा रहे हैं कि उनकी दिलचस्पी गुनहगारों को पकड़े जाने से ज्यादा इस बात में है कि पुलिस बदनाम हो लेकिन इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि उनके बयान में इतने अधिक अंतर्विरोध हैं कि उन पर हमले की बात गढ़ी गई दास्तान लगने लगती है। रतन कुमार हमलावरों का न हुलिया बता पाते हैं न नाम। कहते हैं कि नाम बताने का अपराधियों ने कष्ट नहीं किया और हुलिया बताना इसलिए मुमकिन नहीं क्योंकि उन्हें साफ दिखाई नहीं पड़ता है। बस इतना सुराग देते हैं कि दो मोटे थे दो पतले। सबसे मुश्किल बात यह है कि रतन कुमार को अपने से किसी की दुश्मनी से साफ साफ इनकार है और ऐसी किसी वजह से हमला होने को आशंका को वह खारिज करते हैं। दूसरी तरफ वह कहते हैं कि उनके घर पर न लूटपाट हुई न छीनाझपटी। अब ऐसी दशा में अपराधियों को गिरफ्तार करना काफी मुश्किल हो जाता है किंतु हम पूरी कोशिश कर रहे हैं और उम्मीद है कि जल्द ही सच्चाई पर से परदा हटेगा।
उपर्युक्त अखबार के प्रतिद्वंद्वी अखबार ने बढ़त लेते हुए अपने संपादकीय पृष्ठ पर आमने सामने स्तंभ में राज्य के पुलिस महानिदेशक और रतन कुमार मय अपनी अपनी फो़टो के परस्पर रूबरू थे। पुलिस महानिदेशक खल्वाट खोपड़ी वाला था। उसकी वर्दी पर अशोक की लाट की अनुकृति चमन रही थी और उसकी खोपड़ी के ऊपर धरी कैप के सामने भी अशोक की लाट टँगी हुई थी, इसलिए उसका खल्वाट अदृश्य था और उनसठ का वह 65 का दिखने के बजाय 55 का लग रहा था। रतन कुमार की तसवीर से लग रहा था कि वह एक कृशकाय नौजवान है। उसके होंठों पर मामूलीपन था और आँखों में चौकन्नेपन की फ़़ुर्ती थी लेकिन कुल मिला कर लगता था कि उसकी नींद पूरी नहीं हुई है। ऐसा उसके बिखरे हुए बालों और पुरानी टाइप के कालर वाली कमीज के कारण भी हो सकता था।
पुलिस महानिदेशक की टिप्पणी का सार था : रतन कुमार एक महत्वपूर्ण पत्रकार हैं और मैं स्वयं उनका स्तंभ 'अप्रिय' बड़े चाव से पढ़ता हूँ। मेरे परिवार के सदस्य मुझसे भी अधिक उनके प्रशंसक हैं। इसके बावजूद कहना चाहता हूँ कि प्राथमिकी में उनकी शिकायतें ठोस तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। उनके स्तंभ को ध्यानपूर्वक पढ़नेवाले जानते होंगे कि वह ऐसी बातें लगातार लिखते रहे हैं जो मौलिक, विचारोत्तेजक होने के बावजूद यथार्थवादी जरा कम होती हैं जबकि लेखन का महान तत्व है यथार्थ। कहना जोखिम भरा होने के बावजूद कह रहा हूँ कि उनकी प्राथमिकी भी जैसे उनके स्तंभ की एक किस्त हो। फिर भी हम गहन छानबीन कर रहे हैं और हमारी तफ्तीश जरूर ही किसी मुकाम पर पहुँच जाएगी। निश्चय ही हमें मालूम है कि रतन कुमार जी स्तंभकार पत्रकार होने के साथ साथ विश्वविद्यालय में सम्माननीय अध्यापक भी हैं, इसलिए कोई मुलाजिम उनके मामले में लापरवाही, बेईमानी करने की गुस्ताखी नहीं कर सकता। अंत में श्री रतन कुमार जी से अनुरोध है कि कृपया वह अपने आरोप के समर्थन में कुछ तथ्य और प्रमाण भी पेश करें, ताकि हमें अपराधियों तक पहुँचने में मदद मिले।
रतन कुमार ने अपना पक्ष एक संबोधन के रूप में प्रस्तुत किया था। उसमें लिखा था : प्रिय दोस्तो! यह बिल्कुल सही है कि अपने खिलाफ हुई कारगुजारी को उजागर करने वाले तथ्य और सबूत मैं पेश नहीं कर पा रहा हूँ लेकिन क्या तथ्यों और सबूतों को मुहैया कराना - उनकी खोज करना और उन्हें सुरक्षित रखना पीड़ित का ही कर्तव्य होता है। इन चीजों की नामौजूदगी के कारण पुलिस कह रही है कि उसे अपराधियों को गिरफ्तार करने में असुविधा हो रही है। हमलावारों की गिरफ्तारी और दंड से अधिक मेरी रुचि इसकी पड़ताल में है कि वे लोग क्यों मेरे विरुद्ध हैं? बेशक वे चार गुंडे थे और उन्हें किसी ने हमला करने का आदेश दिया था। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी किस बात से कोई इतना प्रतिशोधमय हो गया? मैं भी कहता हूँ कि वे लुटेरे नहीं थे। मेरे पास लूट के लिए कुछ खास है भी नहीं। मेरे घर में कोई कीमती सामान नहीं, सिवा मेरी कलम, कागज और मेरे दिमाग के। मेरे घर का तो पंखा भी बहुत धीमी चाल से टुटरूँ टूँ चलता है और खड़खड़ करता है। इसलिए तय है कि कोई या कुछ लोग मुझसे रंजिश रखते हैं लेकिन क्यों, इसी का मुझे जवाब चाहिए। किंतु पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठती है और रटंत लगाए है कि कानून बगैर सबूतों के काम नहीं करता। साथियो, सबूत की इसी लाठी से राज्य ने हर गरीब, प्रताड़ित और दुखियारे को मारा है। आज इस देश में असंख्य ऐसे परिवार हैं जो अन्न, घर, स्वास्थ्य, शिक्षा से वंचित हैं किंतु राज्य इनकी पुकार सुनने की जरूरत नहीं महसूस करता है। क्योंकि इन परिवारों के पास अपनी यातना को सिद्ध करने वाले सबूत नहीं हैं। हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार के अनगिनत मुजरिम गुलछर्रे उड़ाते हैं क्योंकि उनके अपराध को साबित करने वाले सबूत नहीं हैं।
पुलिस, सेना जैसी राज्य की शक्तियाँ जनता पर जुल्म ढाती हैं तथा लोगों का दमन, उत्पीड़न, वध, बलात्कार करके उन्हें नक्सलवादी, आतंकवादी बता देती हैं और कुछ नहीं घटता है। क्योंकि सबूत नहीं है। इसी सबूत के चलते देश के आदिवासियों से उनकी जमीन, जंगल और संसाधन छीन लिए गए क्योंकि आदिवासियों के पास अपना हक साबित करने वाले सबूत नहीं हैं। न जाने कितने लोग अपने होने को सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके पास राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, बैंक की पासबुक, ड्राइविंग लाइसेंस या पैन कार्ड नहीं हैं। वे हैं लेकिन वे नहीं हैं। दरअसल इस देश में सबूत ऐसा फंदा है जिससे मामूली और मासूम इनसान की गरदन कसी जाती है और ताकतवर के कुकृत्यों की गठरी को पर्दे से ढाँका जाता है।
और जब यह मुद्दा, जो प्रदेश की विधान सभा के नेता विपक्ष के शब्दानुसार मुद्दा नहीं बतंगड़ था, टेलिविजन के एक राष्ट्रीय चैनल पर उठ गया तो प्रदेश के मुख्य सचिव ने एक ही तारीख में दो बैठकें बुलाईं। पहली बैठक 15.40 पर और दूसरी 16.15 पर। पहली बैठक प्रदेश के सूचना निदेशक के साथ हो रही थी। मगर उसके पहले 'मुद्दा नहीं बतंगड़ है' की चर्चा।
विधान सभा के नेता विपक्ष की एक प्रेस कांफ्रेंस में रतन कुमार पर हमले के बारे में प्रश्न होने पर उन्होंने हँसते हुए कहा था - यह बतंगड़ है, जो सरकार के पुलिस महकमे की शिथिलता और बदजबानी के कारण मुद्दा बनता जा रहा है। मैं इसे दिशाहीन नहीं दिशाभ्रष्ट सरकार कहता हूँ। इस सरकार की प्रत्येक योजना तथा जाँच की तरह रतन कुमार जी का प्रकरण भी दिशाभ्रष्ट हो गया है। हालाँकि रतन कुमार जी का भी कसूर है कि वह साफ साफ बता नहीं रहे हैं कि हमला सरकार द्वारा प्रायोजित है जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का गला घोटने के इरादे से किया गया है।' इसके बाद उन्होंने कई अन्य प्रश्नों का जवाब देने के बाद अंत में मुख्यमंत्री से इस्तीफे की माँग की थी।
अगली प्रेस वार्ता में नेता विपक्ष ने उस प्रवक्ता को 'यमला पगला दिवाना' कहा था और कहा था, 'भगवान मूर्खों को सद्बुद्धि दे।' और हँस पड़े थे। उनका यह बयान बाद की बात है, उसके दो दिन पहले जब मुख्य सचिव ने मध्याह्न में दो बैठकें की थीं और 15.40 पर सूचना निदेशक उनके कमरे में थे। सूचना निदेशक 2001 बैच का आई.ए.एस. अधिकारी था और चाहे जो सरकार हो, वह महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहा।
'तुम ये बताओ कि रतन कुमार क्या बला है?' मुख्य सचिव ने एक फाइल पर हस्ताक्षर करते हुए पूछा।
'सर! सर बस ये है कि सर... रतन कुमार वाकई एक बला है सर!' सूचना निदेशक कुशल वक्ता था किंतु अपने से वरिष्ठ अफसरों, मंत्रियों के सामने घबरा कर बोलने का अभिनय करता था। वस्तुतः यह उसका सम्मान दर्शाने का तरीका था कि महोदय, आप देखें आप इतने खास है कि आपने सामने मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई है। उसकी यह अदा मुख्य सचिव को पसंद आई।
'चाय पियो।' मुख्य सचिव अपनेपन से बोला। वह अपना बड़प्पन दिखा रहा था कि मातहत अफसरों के साथ उसके बर्ताव में सरलता रहती है।
'अफवाहें?' सूचना निदेशक ने न समझने का अभिनय किया। हालाँकि वह जान गया था, अफवाहें से मुख्य सचिव का आशय है, रतन कुमार की कमजोरियाँ।
'फैक्ट सर फैक्ट...।' उस पर फिर सिट्टी पिट्टी गुम होने का दौरा पड़ा।
'ओह!' मुख्य सचिव हँसा।
'जी सर।' सूचना निदेशक मुस्कुराया।
'क्या इसको बहुत कम दिखता है?' मुख्य सचिव ने पूछा।
'शायद ऐसा नहीं है सर।' सूचना निदेशक ने मायूस हो कर कहा।
'नो सर।' लग रहा था, सूचना निदेशक निराशा के मारे रो पड़ेगा।
'ठीक।' यह इशारा था कि बैठक खत्म। इस समय घड़ी में शाम के चार बज रहे थे। 16.15 पर मुख्य सचिव ने जो दूसरी बैठक की उसके विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि उस बैठक के बारे मुख्य सचिव के निजी सचिव का कहना है कि ऐसी कोई बैठक रखी ही नहीं गई थी। उस दौरान साहब अपने कक्ष में अकेले बैठे मोबाइल पर लंबी वार्ता कर रहे थे जो लगभग पैंतालीस मिनट हुई होगी। जबकि चपरासी का कहना है कि एक महिला कमरे में गई थी और कुछ देर बाद लौट आई थी।
एक अंदेशा है कि अपराध अनुसंधान विभाग का महानिरीक्षक मुख्य सचिव के कमरे में घुसा था, वह समय ठीक 16.15 का था। उसके विभाग के एक इंस्पेस्टर ने बीस दिन रतन कुमार की खुफिया पड़ताल करके एक रिपोर्ट बनाई थी। मुख्य सचिव के कमरे में जाते समय महानिरीक्षक के दाएँ हाथ की चुटकी में उस रिपोर्ट की फाइल थी और 16.50 पर कमरे से निकलने वक्त वह फाइल नहीं थी।
मुख्य सचिव के विशेष कार्याधिकारी और स्टाफ अफसर की जानकारियों के मध्य भी इस बारे में मतैक्य नहीं था। विशेष कार्याधिकारी ने अपनी अघोषित तीसरी पत्नी से उसके हाथ के बने गलावटी कबाब खाते हुए कहा था कि मुख्य सचिव आज चार बजे ही दफ्तर छोड़ गया था। सूचना निदेशक से बैठक खत्म होते ही वह गुपचुप गाड़ी में बैठ कर कहीं चला गया था। और तीन घंटे बाद लौटा था। 'जानती हो वह कहाँ गए थे?' उसने अघोषित तीसरी पत्नी से पूछा था। पत्नी बोलती कम थी, उसने भौंहों को उचका कर पूछा, 'कहाँ?' विशेष कार्याधिकारी कबाब लगे हाथ को उसके पल्लू से पोछते हुए फुसफुसाया, कि मुख्य सचिव आगामी चुनाव में मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार विपक्षी नेता के पास गए थे। 'जानती हो क्यों?' उसने पूछा था जिसके प्रत्युत्तर में पत्नी की भौंहें उचकी थीं। तब उसने कहा था, 'ये मुख्यमंत्री और भावी मुख्यमंत्री दोनों के हाथ में लड्डू पकड़ाते हैं।' इसके बाद उसने अघोषित पत्नी को खींच कर ऐसी हरकत की थी कि वह उसे धक्का दे कर हँसने लगी थी।
स्टाफ अफसर की डफली का अलग राग था। उसके अनुसार मुख्य सचिव सूचना निदेशक के साथ ही निकले थे और सीधे मुख्यमंत्री के कक्ष में चले गए थे। उनके साथ कुछ जरूरी फाइलें भी गई थीं जिनके बारे में मुख्यमंत्री ने वार्ता करने का निर्देश दिया था।
अब सही क्या था और गलत क्या था इसे ठीक ठीक बताना असंभव हो चुका था। एक प्रकार से देखा जाय, सही और गलत का विभाजन ही समाप्त हो गया था। दरअसल देखें तो मुख्यसचिव की उपस्थिति एक टेक्स्ट हो गया था जिसके अपने अपने पाठ थे। इस तरह का प्रत्येक पाठ सत्य के ढीले ढाले चोले में हकीकत का एक अंदाजा भर होता है, वह जितना यथार्थ हो सकता है उतना ही मिथ्या और संसार की कौन सी मिथ्या है जो कमोबेश यथार्थ नहीं होती है जैसे कि हर कोई यथार्थ रंचमात्र ही सही, मिथ्या अवश्य होता है। इसीलिए प्रत्येक यथार्थ के अनेक संस्करण होते हैं, उनकी कई कई व्याख्याएँ होती हैं लेकिन सर्वाधिक कठिन घड़ी वह होती है जब किसी ऐसी स्थिति से सामना होता है जिसके बारे में यह बूझना असंभव हो जाता है कि वह वास्तविकता है अथवा आभास अथवा वह ये दोनों है अथवा ये दोनों ही नहीं है। मुख्य सचिव की दूसरी बैठक का मर्म ऐसे ही मुकाम पर पहुँच गया था।
गौरतलब यह है कि जिस प्रकार सूचना निदेशक के साथ बैठक का रतन कुमार से ताल्लुक था उसी प्रकार क्या दूसरी बैठक भी रतन कुमार के प्रसंग से जुड़ी थी अथवा यह कयास बिल्कुल बकवास है? यदि रतन कुमार को ले कर मुख्य सचिव ने दूसरी बैठक भी की थी तो उसमें क्या चर्चा हुई इसका उत्तर ढूँढ़ सकना अब नामुमकिन दिखता है। लगभग इससे भी ज्यादा पेचीदा मसले ने रतन कुमार को घेर लिया था। जब मुख्य सचिव ने सूचना निदेशक तथा नामालूम के साथ बैठकें की थीं, उसके अगले दिन रतन कुमार के सिर में तेज दर्द था और आँखों में कड़ुवाहट थी। वह बीती रात जाग कर अपना कॉलम लिखता रहा था जिसमें उसने यह अभिव्यक्त किया थाः
अपना स्तंभ लिख चुकने के बाद उसने सोचा था, मैं सो जाऊँगा और दोपहर तक सोता रहूँगा। पर हमेशा की तरह वही हुआ कि फोन नंबर वितरित न करने की होशियारी के बावजूद उसका फोन बजने लगा था। वह जग कर चिड़चिड़ाया और फोन उठा कर बात करने लगा। वही बातें थीं : लोग हमले को ले कर अपना समर्थन दे रहे थे या पुलिस महकमे को निकम्मा कह रहे थे।
अब उसकी नींद उचट गई थी। उसने इधर उधर करके बाकी वक्त बिताया अथवा गँवाया फिर विश्वविद्यालय चला गया था। शाम को जब वह सुनिधि के फ्लैट में था तो उसका सिर दर्द से टीस रहा था और आँखों से लगातार पानी रिस रहा था। सुनिधि चाय बना कर ले आई, साथ में खाने के लिए भी कुछ - 'कुछ आराम हुआ?' उसने रतन से पूछा।
'हुआ क्या है?' सुनिधि घबरा गई थी।
'तुम फोन बंद कर दिया करो।' सुनिधि की सलाह हुई।
'और!' सुनिधि उसके इस अंदरूनी घमासान को जान कर विकल थी।
शायद अच्छे दिन खत्म हो चुके थे। आँखों की तकलीफ और अंधकार की समस्या से उसे बड़े जतन के बाद भी छुटकारा नहीं मिल रहा था। उसने किसी की सलाह पर ब्रह्ममूहुर्त में उठ कर ध्यान लगाना शुरू कर दिया था। उसने सोचा था कि आँखों की तकलीफ में न सही किंतु अँधेरे की शिकायत में कमी जरूर आएगी लेकिन सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया था। किसी आकृति, ध्वनि, गंध अथवा स्पर्श को याद करके ध्यान केंद्रित करने पर वह पाता कि ध्यान का वह केंद्र किसी अँधेरे से उदित हो रहा है। वह तय करता कि उन क्षणों में उसकी वेदना कुछ समय के लिए समय के घेरे से मुक्त हो जाए। हर कोई रूप आकृतियों से, ध्वनि ध्वनियों से, स्पर्श स्पर्शों से स्वतंत्र हो जाए। कुछ भी न बचे उसमें कुछ वक्त के लिए, शेष रहे केवल एक विराट अनुभूति। वह सभी से विरक्त और विस्मृत हो जाता था लेकिन अँधेरा उसका पीछा नहीं छोड़ता था। अंततः किसी उदात्त आध्यात्मिक आस्वाद के बजाय उसमें यह अहसास बचता था कि अथाह अँधेरे में संसार डूब गया है। या दुनिया पर अँधेरे की चादर बिछ गई है।
उसने इस बात की पड़ताल भी की कि क्या आँखों की तकलीफ और आँखों में अँधेरे का कोई संबंध हैं, क्योंकि दोनों का उभार एक साथ हुआ था। परखने के लिए उसने दर्द निवारक दवा खा ली थी। इससे उसकी पीड़ा में काफी कमी आ गई थी जो छः घंटे तक बरकरार रही थी किंतु अँधेरे की वह यातना, जब तक वह जगता रहता था, पिंड नहीं छोड़ती थी। बल्कि एक तरह से कहा जाय कि वह स्वप्न में भी अँधेरा देखता था। सपने में कोई वाकया, कोई किस्सा शुरू हो कर पूर्ण होता था तो वह अँधेरे की पृष्ठभूमि में होता था। जैसे अँधेरे का कोई पर्दा हो जिस पर स्वप्न नहीं स्वप्न के निगेटिव की फिल्म चल रही है। इस तरह उसका जीवन अँधेरे में था और उसका स्वप्न भी अँधेरे में था।
उसके लिखने पढ़ने में भी ये चीजें अवरोध डालने लगी थीं। उसका दर्द बढ़ जाता था इनसे। इस मुश्किल का निदान उसने यह सोचा था कि वह बोल कर लिखवा दिया करे और दूसरे से पढ़वा कर पढ़ लिया करे। लेकिन उसने पाया कि इस विधि को वह साध नहीं सका है। अपना कॉलम जब उसने बोल कर लिखाया तो उसमें न वह मौलिकता थी न गहराई जिनके लिए उसका 'अप्रिय' मशहूर था। उसमें प्रहार और बल भी न थे। अतः उसने वे पन्ने फाड़ डाले थे। उसने रास्ता यह ढूँढ़ा कि वह स्वयं से बोला था और स्वयं सुन कर अपनी चेतना की स्लेट पर लिख लेता था। इस प्रकार बोलने के पहले ही उसके अंदर 'अप्रिय' की पूरी अगली किस्त लिख उठी थी। तब उसी लिखे हुए को वह बोला था जिसे सुनिधि ने लिपिबद्ध किया था। निश्चय ही यह लिखत उसके स्तंभ के रंगों और आवाजों का काफी कुछ हमरूप था। पढ़ने में भी उसने ढंग बदल लिया था। जब सुनिधि या उसका कोई छात्र उसे कोई पृष्ठ पढ़ कर सुनाता तो वह तुरंत हृदयंगम नहीं करता था। उस वक्त वह जो सुन रहा होता था उसे अपने दिमाग के टाइपराइटर पर टाइप करता जाता था फिर उसका दिमाग उस टाइप को अंदर ही अंदर पढ़ता था और सदा के लिए कंठस्थ कर लेता था। स्मरण शक्ति उसकी बेमिसाल पहले से ही थी, आँखों में दर्द रहने के बाद उसमें और इजाफा हो गया था। पहले उसे किसी पाठ को दोहराते वक्त यदा कदा अटकना भटकना भी पड़ सकता था, अब पूर्ण विराम अर्द्धविराम सहित अक्षरशः सुना सकने की क्षमता उसमें प्रकट हो चुकी थी।
'जी शुक्रिया।' रतन ने रस्म निभाया।
'आपकी खतरनाक किताबें नहीं दिखाई दे रही हैं जिन्होंने खतरनाक विचारों को पैदा किया।' कोतवाल मुस्कुरा कर बोला।
'वैसी किताबें वहाँ नहीं यहाँ हैं।' रतन कुमार ने हँस कर अपनी खोपड़ी की तरफ इशारा किया, 'जो आप देख रहे हैं उससे बड़ी लाइब्रेरी इधर है।' रतन कुमार से हाथ मिला कर कोतवाल विदा हुआ।
रतन कुमार को लगा कि यह एक भला आदमी है। उसे अपने ऊपर गुरूर भी हुआ कि शहर कोतवाल भी उसको पढ़ता और पसंद करता है। उसको तसल्ली हुई, शहर कोतवाल से पहिचान बुरे वक्त में काम आएगी।
वाकई जब बुरे दिन सघन हुए, सबसे पहले इस कोतवाल की ही याद आई थी।
आँखों का दर्द और अंधकार की दिक्कत अभी भी बनी हुई थी। जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि शायद उसके अच्छे दिन खत्म हो गए थे। वह राँची से व्याख्यान दे कर अपने शहर आया तो सुबह का समय था। अलस्सुबह और देर रात में अपना शहर देखना हमेशा मोह जगाता है। इसी तरह की मनःस्थिति में वह अपने घर का ताला खोल रहा था। लेकिन ताला खुला हुआ था। वह खुद पर हँसा, 'सब कुछ याद हो जाता है पर ताला लगाना भूल जाता हूँ।' वह भीतर गया और पाया कि ताला लगाना वह भूला नहीं था बल्कि ताला टूटा हुआ था। उसने सामानों, चेक बुक, थोड़े से कैश और सुनिधि द्वारा दिए गए तोहफों की पड़ताल की, उन्हें अपनी आँखों पर रख कर देखा, सुरक्षित थे। उसका पूरा घर महफूज था मगर उलट पुलट दिया गया था। अच्छी तरह तलाशी ली गई थी उसकी नामौजूदगी में। हर जगह कागज, किताबें और कपड़े फैले हुए थे।
'किस चीज का तलाशी ली गई?' मुंशीजी ने पूछा।
थाने से निकलने पर उसने बड़ी शिद्दत से कोतवाल को याद किया था और मुलाकात के लिए कोतवाली चला गया था। आज वह वर्दी में कुर्सी पर बैठा था। उसकी वर्दी, बिल्ला, कैप उसके साथ थे और फब रहे थे। उसने कोतवाल को सब हाल सुनाया।
'कोई बात नहीं, हम दो तीन लोगों को भेज देते हैं वे सब सामान ठीक से लगा देंगे।' कोतवाल ने हमदर्दी जतायी।
'पता नहीं।' कोतवाल ने मजाक किया, 'लगता है उन्हें किसी और घर में जाना था भटक कर आपके यहाँ पहुँच गए।' उसने घंटी बजा कर चाय लाने का आदेश दिया।
'एक सेमिनार में।' उसने बताया।
'गया था, पर मैं आदिवासियों के बीच वक्त गुजारने गया था, बस।' उसे पसीना आ गया था।
रतन कुमार ने बात बीच में काट दी थी, 'आप परेशान न हों, मुझे बुरा नहीं लग रहा है।' उसने अब फोन काट दिया।
उसे कॉलम बंद होने का अफसोस नहीं था, महज इतना ही था कि बाबा अखबार में उसकी फोटो देख कर बहुत खुश होते थे, अब नहीं होंगे। मगर उसे इस बात की उलझन अवश्य थी कि संपादक जो अभी पिछले हफ्ते तक 'अप्रिय' की इतनी तारीफ करता था और कहता था कि इसे सप्ताह में दो बार क्यूँ न छापा जाय, यकायक बंद करने का फरमान क्यों जारी करने लगा।
जनादेश के दूसरे संपर्कां के जरिए पूछताछ में एक नहीं अनेक वजहें सामने आ रही थीं जिससे किसी एक नतीजे पर पहुँचाना कठिन हो गया था। एक सूत्र का कथन था कि संपादक के पास मुख्यमंत्री सचिवालय से कॉलम रोकने की कोशिश पहले से हो रही थी किंतु संपादक अड़ा हुआ था। तब मुख्यमंत्री सचिवालय ने उस भूखंड का आवंटन तकनीकी कारणों से रद्द करने की धमकी दी जिसे बहुत कम कीमत में संपादक ने मुख्यमंत्री के सौजन्य से ग्रेटर नोएडा में हासिल किया था। साथ ही आठ एयरकंडीनर आठ ब्लोवर, तीन गीजर वाला उसका घर था जिसका बिजली भुगतान बकाया न चुकाने के कारण रुपए सात लाख पहुँच गया था। संपादक ने उसे माफ करने की अर्जी लगा रखी थी लेकिन उसके पास कनेक्शन काट देने की नोटिस भेज दी गई। तब उसने अपने प्रिय स्तंभ 'अप्रिय' को बंद करने का निर्णय भावभीगे मन से किया।
बाद में पता चला कि एडीटर की वाइफ के पिता का नाम डी.पी.एस. (दद्दा प्रसाद सिंह) था और बड़े भाई का एल.पी.एस. (लालता प्रसाद सिंह) था। वाइफ उसी रोज से रतन से खार खाए हुई थी जब उसने शब्दों के संक्षिप्त रूप पर कलम चलाई थी।
सुनिधि मोबाइल के संदेश पर नजर गड़ाए हुए थी कि हथेली में झनझनाहट हुई और वह फोन बजने लगा। अब उसने पुनः स्क्रीन देखा और चौंक गई - स्क्रीन पर न कोई नाम था न नंबर। उस पर टिमटिमा रहा था - UNKNOWN NUMBER।
'इस वक्त मेहबूबा के फ्लैट में बैठे मजे़ कर रहे हो।' उधर से कहा गया।
'मैं एक कोड हूँ। मेरी पहिचान को डिकोड करो तुम। क्या लिखते हो तुम - हाँ मैं एक कूट संरचना हूँ।' ठहाका सुनाने के बाद फोन काट दिया गया। उसने बगैर कोई वक्त गँवाए सुनिधि से कहा, 'काल लॉग से इसके नंबर पर फोन मिलाओ।' लेकिन काल लॉग में 'अननोन नंबर' गायब था।
'कौन था?' सुनिधि ने मोबाइल उसे लौटाते हुए सवाल किया।
'इस तरह के नंबर अमूमन केंद्र सरकार के गुप्तचरों के पास रहते हैं लेकिन आजकल कुछ और लोगों के पास भी यह सुविधा है।' उससे आगे नहीं बोला गया। लग रहा था, वह निढाल हो चुका है। उसके मस्तक पर पसीने के कण थे। जैसे किसी ने वहाँ स्प्रे कर दिया हो।
रतन कुमार कुछ बोला नहीं, साँस लेता रहा।
'क्या सोच रहे हो? यही न कि 'मेरी मौत रिवाल्वर से हो ही नहीं सकती, मैं एक्सीडेंट से मरूँगा।' उसने हूबहू रतन कुमार के बोलने की शैली की नकल उतारी थी। और रतन कुमार के हाथ से मोबाइल गिर पड़ा था। वह ढह गया था, 'मेरे साथ क्या हो रहा है?' वह परेशान हो गया था लेकिन शाम तक उसने अपने को सँभाल लिया और कल क्लास में देनेवाले अपने लेक्चर की तैयारी करने लगा था। मगर जब देर रात सोने के लिए उसने बिजली गुल की और बिस्तर पर पहुँचा तो वह डर पुनः प्रकट हुआ। जैसे वह डर के झूले पर सवार था जो बहुत तेज घूम रहा था। वह डर का झूला इतना तेज घूमता था कि पलक झपकते उसके अनेक चक्कर पूरे हो जाते थे। चक्रवात सा चल रहा था। उसकी आँखों का दर्द कल के लेक्चर की तैयारी से अथवा डर के झूले के घूर्णन से बढ़ गया था। अंधकार की समस्या वैसी ही थी, अँधेरे में अंधकार और घना हो चुका था।
उसे अविश्वसनीय लग रहा था कि कोई उसका इतना राई रत्ती जान सकता है। अर्धरात्रि तक उसे लगने लगा : 'वह मैं ही तो नहीं जो अपने को फोन कर रहा हूँ। मैं अपने सामने अपने राज खोल रहा हूँ और मैंने ही डकार की तरह अट्टहास किया था।' उसे महसूस हो रहा था : 'रतन कुमार अपने शरीर से बाहर चला गया है जो नई नई आवाजों में फोन करके मुझे त्रस्त कर रहा है। रतन कुमार ही मेरी मौत का फरमान सुना रहा था और मेरे भेद बताने की शेखी बघार रहा था। क्या सचमुच मेरी हत्या की जाएगी और मैं ही हत्यारा रहूँगा।' उसने तर्क किया यह एक असंभव स्थिति है, ऐसा भला कहीं होता है! लेकिन जो घटित हो रहा था वह भी तो असंभव था। आखिर कोई दूसरा किसी की इतनी बातें कैसे जान सकता है। उसने इस पर भी विचार किया कि संभवतः यह एक मतिभ्रम है, जिसका रिश्ता उसकी आँखों के दर्द और अँधेरे की समस्या से है।
'सुनिधि छह के पहले पहुँच गई न। क्या बोले थे उससे तुम - बहुत जरूरी है - यही न।' इस बार कोई फर्क आवाज थी।
इस पूरे संवाद को सुनिधि ने सुना था और कहा था, 'मामला गंभीर होता जा रहा है। हमें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए। वह सर्विलांस के जरिए या चाहे जैसे, फोन करनेवालों का पता करे और उनको पकड़े।' वह उसी समय रतन कुमार के साथ कोतवाली गई थी। कोतवाल वहाँ मौजूद था।
'आप कुछ कार्रवाई करें सर!' सुनिधि ने हस्तक्षेप किया।
'करता हूँ कुछ कार्रवाई।' कोतवाल भद्दे तरीके से बोला था।
उसकी यातना का सिलसिला अभी थमने वाला नहीं था। एक रात उसे बहुत सारे कुत्तों के रोने की और भौंकने की आवाज सुनाई देने लगी। थोड़ी देर बाद लगा कि वे कुत्ते उसके घर के बहुत पास उसके दरवाजे़ पर मुँह लगा कर रो रहे हैं। रुलाई और भौंकने की ये बड़ी तेज, मनहूस और नजदीकी आवाजें थीं। लग रहा था जैसे वे कुत्ते अब उसके घर से बिल्कुल सट कर रो रहे थे। जब बरदाश्त नहीं हुआ तो वह किवाड़ खोल कर बाहर निकला। उसके हाथ में डंडा था जो कुत्तों को मार कर भगाने के लिए कम, उनसे बचाव के लिए अधिक था लेकिन डंडे का उपयोग नहीं हुआ क्योंकि बाहर सन्नाटा था। उसने देखा बाहर निरभ्र शांति थी। वहाँ न आवाजें थीं न कुत्ते। गोया कुत्ते नहीं कोई टेप शोर मचा रहा था जिसमें कुत्तों का रुदन और भौंकना रिकार्ड था। ऐसा लगातार होता रहा और उस दिन खत्म हुआ जब देर रात वह लौटा था। उसने देखा, उसके घर के सामने तमाम विदेशी नस्ल के खूँखार, लहीम-शहीम अनेक रंगों और आकारों के कुत्ते मँडरा रहे है।
वह इतना परेशान हो गया था कि पिछली खराब मुलाकात की याद को भुला कर पुनः वह शहर कोतवाल से मिलने चला गया था। जब पहली बार चाय पीने और उसके कॉलम की तारीफ करने कोतवाल उसके घर आया था तो एक खुशमिजाज आदमी लग रहा था लेकिन दफ्तर में वह समझदार और मानवीय नहीं लगा था। रतन कुमार ने सोचा कि हो सकता है, दफ्तर में कोतवाल खराब आदमी हो जाता है और घर पर बेहतर। अतः वह सुबह उसके बंगले पर चला गया था जहाँ वह अपनी सुंदर पत्नी के साथ लॉन में चाय पी रहा था। संयोग से उसकी पत्नी भी हिंदी की पत्रिकाएँ पढ़ती थी और साहित्यिक पत्रिकाओं में विशेष रूप से कहानियों की पाठिका थी।
रतन कुमार को कोतवाल ने वहीं बुला लिया और चाय भी पेश की। इससे रतन कुमार को यकीन हो गया कि कोतवाल का दिमाग आफिस में खराब रहता है। अनुकूल स्थितियाँ देख कर उसने कोतवाल से अपना दुखड़ा रोया।
'बिस्किट भी लीजिए।' कोतवाल ने दुखड़ा सुन कर प्यार जताया, 'आपको किसका खौफ है? नक्सलवाद से पूरा हिंदुस्तान डरता है तो किसकी हिम्मत जो आपसे पंगा ले?' कोतवाल स्वयं बिस्किट प्लेट से उठा कर कुतरने लगा।
रतन कुमार पछतावे से भर उठा। उसे इस बात का तीव्र अहसास हो रहा था कि अपनी सुबह तबाह करने का वह स्वयं जिम्मेदार है।
अंततः वह हर तरफ से नाउम्मीद हो गया था और अपने आँखों के दर्द, अंधकार की समस्या और अनहोनी की आशंका के घमासान में निहत्था हो गया था। इस विकल्प को वह पहले ही खारिज कर चुका था कि इस घर को छोड़ कर दूसरा कोई मकान ले कर उसमें चला जाय। उसने जान लिया था कि जो लोग उसकी हर सूचना हर सच्चाई हर कदम से वाकिफ हैं उनके लिए उसका नया ठिकाना ढूँढ़ना बेहद सरल काम होगा। बल्कि वह ऐसा फंदा तैयार करेंगे जिससे वह उसी नए मकान में जाएगा जहाँ पहले से उसे बरबाद करने की तैयारी वे कर चुके होंगे। वह सुनिधि के फ्लैट में कुछ दिन रहने के ख्याल को इसलिए रद्द कर चुका था कि इसके लिए वह राजी नहीं होगी। यदि उसकी विपत्ति से पिघल कर हो गई तो भी कुछ हासिल नहीं होगा सिवा सुनिधि को भी अपने नर्क में गर्क कर देने के या सुनिधि के जीवन को नर्क बना देने के। यही बाबा के मामले में था। पहले उसने सोचा, बाबा हमेशा मुश्किलों से बचाते रहे हैं। उन्होंने असंख्य दुखों, घावों, अपशकुनों, अभावों से उसकी हिफाजत की है। वह बारिश में छाता उसके सिर पर कर देते थे और खुद छाते की मूठ पकड़े बाहर भीगते रहते थे। गर्मी में उनके हिस्से का शरबत, लस्सी, वगैरह भी उसे मिल जाता था और जाड़े में अपने स्वेटर का ऊन खोल कर पोते के लिए स्वेटर उन्होंने खुद बुना था। लोग हँसी उड़ाते, बाबा औरतों वाला काम कर रहे हैं पर बाबा मनोयोग से सलाई ऊन में फँसा कर ऊपर नीचे करते रहते थे। लेकिन इस बार शत्रु ऋतुओें से ज्यादा ताकतवर और खतरनाक थे। बाबा को भी मुसीबत में डालने से क्या फायदा - उसने सोचा था और आखिर कर अकेला हो गया था।
अब उसके पास यही रास्ता बचा था कि इंतजार करे। वह बाट जोहने लगा था हादसे का। उसे नहीं मालूम था कि हादसा सोमवार को, मंगल को, शुक्र, इतवार किस रोज होगा? वे दिन या रात, कब आएँगे या कितने जन रहेंगे उसे बिल्कुल नहीं पता था। उसको यह भी साफ नहीं था कि उसे प्रताड़ित किया जाएगा या मार दिया जाएगा? वह किसी बात से वाकिफ नहीं था लेकिन इस बात को ले कर उसे शक नहीं था कि वह बख्शा नहीं जाएगा। इस दहशत भरी जिंदगी में उसके पास बचाव का कोई तरीका था, कवच था तो महज इतना कि यह सारा कुछ जो हो रहा है उसकी कोई यथार्थ सत्ता न हो। यह एक दुःस्वप्न हो जो नींद खुलने पर खत्म हो जाएगा। उसका डर और उसकी समस्याएँ वास्तविक न हो कर उसकी चेतना का विकार हों, इसलिए वह मानसिक उत्पीड़न के बावजूद मूलभूत रूप से बचा रहेगा। इसकी भयंकर परिणति यही हो सकती थी कि सत्य के स्तर पर वह सुरक्षित और धरती पर बना रहेगा किंतु अपनी चेतना और अनुभूति के स्तर पर लहूलुहान या मृत हो जाएगा। इसमें तसल्ली की बात इतनी थी कि जैसा भी हो वह जीवित रहेगा। वह अपने लिए मिट जाएगा पर बाबा और सुनिधि के लिए मौजूद होगा।
लेकिन संकट के वास्तविक नहीं आभासी होने की आकांक्षा दीर्घायु नहीं हो पाती थी। जीवन दोहत्थड़ मार कर उसे झकझोर देता और हकीकत के धरातल पर ला कर पछाड़ देता था। तब वह पुनः अथाह बैचेनी के साथ बुरा घटित होने की प्रतीक्षा प्रारंभ कर देता था।
4 जनवरी 2011 मंगलवार के दिन वास्तविकता और भ्रम की टक्कर ज्यादा पेचीदा, विस्तृत और विवादास्पद हो गई। उस दिन रतन कुमार ने आरोप लगाया कि उस पर हमला किया गया था। उसने अपने जख्म दिखाए जो घुटनों, कुहनियों और माथे पर अधिक चटक थे। उसने जो बयान किया वो संक्षेप में यह था : सुबह के 5.30 का समय था तभी उसके घर की कालबेल बजी थी। यह वक्त अखबार वाले के अखबार फेंक जाने का होता था। अखबार फेंक कर वह घंटी बजा देता था। हमलावरों की ताकत असीम थी, उन्हें रतन कुमार के हाकर की इस आदत के बारे में भी पता था। इसलिए सुबह 5.30 पर घंटी हाकर ने नहीं उन्होंने बजाई थी। रतन कुमार ने दरवाजा खोला किंतु उसकी चौखट पर अखबार नहीं कुछ लोग थे। जाड़े में सुबह इस वक्त पर अँधेरा ही रहता है और रतन कुमार को वैसे भी ठीकठाक कहाँ दिखायी देता था। उसने उन लोगों को पहचानने से इनकार किया। इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं थी, वे धड़धड़ाते हुए भीतर आ गए।
कमरे में जीरो पावर का एक बल्ब जल रहा था। इतनी कम रोशनी में आगंतुकों को ठीक से देख पाना रतन कुमार के लिए मुमकिन नहीं था। उसने रोशनी करने के लिए स्विच बोर्ड की तरफ हाथ बढ़ाया तभी एक ने उसकी कोहनी पर जोर से मारा था। इसी घाव को बाद में रतन कुमार ने सार्वजनिक किया था। किस चीज से प्रहार किया गया था यह वह बता नहीं पाया। क्योंकि जीरो पावर के अँधेरे में उसे नहीं दिखा, कि हाकी, छड़, कुंदा - किस चीज से मारा गया था।
'मुझसे आपको क्या शिकायत है, आप किस बात का गु़स्सा निकाल रहे हैं? मेरा कसूर क्या है?' उसने सवाल किया था।
उसका कसूर यह बताया गया कि अखबार में ऊटपटाँग की बातें लिख कर उसने अनेक प्रतिष्ठित लोगों की भावनाओं को आहत किया है और अनेक पवित्र एवं महान संस्थाओं तथा पार्टियों की छवि मिट्टी में मिलाने का गु़नाह किया है।
रतन कुमार का कहना था कि उनकी इस बात पर उसका मिजाज गर्म हो गया था, उसने चीखते हुए कहा था, 'आप लोग सजा देंगे, क्यों? आप न्यायाधीश हैं, यमराज हैं या जल्लाद?' यह सुन कर वे लोग हँसने लगे थे। हँसते हुए ही उनमें से एक ने उसके माथे पर किसी चीज को दे फेंका था। वह क्या थी, इसे भी वह देख नहीं पाया था। बस जब माथे पर लगी थी, उसके स्पर्श और आघात के एहसास के आधार पर कह सकता था कि वह लोहे की कोई गोल चीज थी। कुल मिला कर यह निश्चित हो गया था कि कमरे में इतना प्रकाश था कि उन चारों को आराम से दिखाई दे रहा था कि वे रतन कुमार के हाथ और माथे को देख कर निशाना साध सकें और रतन कुमार को बमुश्किल इतना भी नहीं दिख रहा था कि वह जान सके कि उस पर किस आयुध से प्रहार किया गया है।
जब इस प्रकरण को ले कर बहसबाजी शुरू हुई तो उपरोक्त बिंदु सबसे प्रमुख मुद्दे के रूप में उभर कर सामने आया। रतन कुमार ने आरोप लगाया था कि चार लोगों ने उसके घर में घुस कर उसे मारा पीटा था और उसकी दोस्त सुनिधि के साथ बलात्कार की धमकी दी थी। उन्होंने यह भी धमकाया था कि कि किसी दिन एक ही समय पर प्रतापगढ़ में उसके बाबा और यहाँ राजधानी में खुद वह चार पहिया वाहन से रौंदे जाएँगे। वे इस पर ठहाका लगा कर हँसे थे कि अलग अलग जगहों पर अलग अलग लोग एक ही समय पर एक ही तरीके से मारे जाएँगे। अंत में उसने यह कह कर सबको चौंका दिया था कि वह चारों को पहचान गया है।
उसने चारों की जो शिनाख्त की थी वह अचंभे नहीं महाअचंभे में डाल देने वाली थी। उसने कहा, उनमें एक मुख्य सचिव स्वयं था और शेष तीन थे - शहर कोतवाल, प्रमुख सचिव गृह और मुख्यमंत्री का एक विश्वसनीय सलाहकार। रतन कुमार का कथन था कि ये चारों उस पर हमला करके बड़े खुश थे और जश्न मना रहे थे। उसी उत्सवी वातावरण में उनमें से एक ने कहा था कि रतन कुमार जैसी चुहिया का टेटुआ दबाने का काम उनके राज्य का कोई बहुत मामूली बिलार भी कर सकता था लेकिन वे खुद इसलिए आए कि इस तरह जो मजा मिल रहा है वह दुर्लभ है। अपने शिकार को अपने दाँतों से चीथ कर खाना कुछ और ही लुत्फ देता है। दूसरी बात, खुद आने में भी कोई खतरा नहीं है क्योंकि अपनी आँखों की कम ज्योति के कारण रतन कुमार उन्हें ठीक से देख नहीं सकेगा। इस पर कोतवाल ने एक जुमला कसा था - 'स्वाद भी सुरक्षा भी।' ध्यान देने की बात यह है कि यह सब कहते हुए वे अपने पद और परिचय नहीं बता रहे थे।
रतन कुमार को इस बार पहले की भाँति समर्थन नहीं प्राप्त हो रहा था। बल्कि यूँ कहा जाए कि कोई उसकी बात को गंभीरतापूर्वक नहीं ले रहा था। उसके आरोप इसी पर खारिज हो जाते थे कि प्रदेश के चार इतने बड़े अधिकारी खुद उसके घर जा कर हमला करेंगे, यह बात किसी को विश्वासयोग्य नहीं लगती थी। लोग यह स्वीकार करते थे कि सत्ता अपने से टकराने वालों को गैरकानूनी दंड देने में प्रायः संकोच नहीं करती है जबकि वह चाहे तो वैध तरीके से ही विरोधी की जिंदगी बरबाद कर सकती है। इसके बावजूद रतन कुमार का वर्णन इतना ड्रामाई, कोरी कल्पना और मसाला लगता था कि वह लोगों के गले नहीं उतरता था।
आखिर मौज लेने के लिए इतने बड़े हुक्मरान इतना बड़ा जोखिम कैसे उठा सकते है। संदेह की दूसरी वजह यह थी कि रतन कुमार आला हाकिमों के गुस्से की वजह अपने स्तंभ को बता रहा था। पहली बात कि वह स्तंभ बंद हो चुका था और दूसरी, उस स्तंभ में इन अधिकारियों के खि़लाफ एक बार भी कटूक्ति नहीं कही गई थी। ये चारों अपने नाम भी पूरे पूरे लिखते थे न कि शार्ट फार्म में, जिसको ले कर रतन कुमार ने न जाने कैसी बहकी बहकी बातें की थीं। फिर आखिर इन चारों को क्या पड़ी थी कि उसकी खाल खींचने उसके घर चले गए। जाहिर है यह सब रतन कुमार का दिमागी फितूर है या चर्चित होने के लिए की गई एक बेतुकी नौटंकी। खुद विश्वविद्यालय के कई अध्यापकों का मानना था कि कॉलम बंद होने से रतन कुमार बौखला गया था और यह सब अन्य कुछ नहीं अपने को चर्चा के केंद्र में ले आने का एक घृणित हथकंडा है। जबकि उच्च न्यायालय के दो न्यायमूर्ति लंच में बातचीत के बीच इस परिणाम पर पहुँचे : ये ब्लैकमेलिंग का केस है। दरअसल ये लौंडा सरकार से कोई बड़ी चीज हथियाना चाहता है।
इस वाकए के रतन कुमार के वर्णन में जो सबसे बड़ी खामी, सबसे गहरा अंतर्विरोध था वह था - देखना। रतन कुमार को जानने वालों को यह ज्ञात था कि उसको ठीक से दिखता नहीं है और अँधेरे अथवा जीरो पॉवर की हल्की लाइट में करीब करीब बिल्कुल ही नहीं देख सकता है। रतन कुमार स्वयं इस बात को स्वीकार करता था। यह उसके बयान से भी सिद्ध होता था। क्योंकि उसने बताया था कि 5:30 पर अँधेरा होता है और वह बाहर खड़े इन लोगों को नहीं पहचान सका था। कमरे में लाइटें जलाने के लिए उसने स्विच बोर्ड की तरफ हाथ बढ़ाया तो प्रहार हुआ। और उसका हाथ नीचे झूल गया। अर्थात रोशनी की दशा वैसी की वैसी रही। इतनी कम कि वह देख नहीं सका था, उसके हाथ पर किस चीज से प्रहार किया गया। रतन कुमार ने हमेशा यही कहा कि कमरे में और उसकी आँखों में रोशनी कम होने के कारण वह आगंतुकों को पहचान नहीं पा रहा था। तब फिर आखिर कौन सा चमत्कार हुआ कि उसने देख लिया : ये हैं : मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार और शहर कोतवाल।
जो रतन कुमार से सहानुभूति रखते थे उनको भी इस वृत्तांत पर एतबार नहीं था किंतु वे यह मानते थे कि रतन कुमार तिकड़मी और फर्जी इनसान नहीं है जो इस तरह के किस्से गढ़ कर शोहरत या कोई अन्य चीज हासिल करने की जुगत करेगा। इसलिए उन्हें यह मामला उसकी दिमागी हालत के ठीक न होने का लगता था। विचित्र बात थी, यही तर्क सत्ता के लोगों का भी था। उनका भी कहना था : इस शख्स को कोई मानसिक रोग है और इसके द्वारा 'अप्रिय' स्तंभ में लिखी बातें भी मनोरोग की ही उत्पत्ति थीं।
'लेकिन मेरे घाव। मेरे मत्थे का और मेरी कोहनी का घाव - वह तो है। पीठ के घावों के बारे में, खुद मुझे नहीं मालूम था, सुनिधि ने देखा और बताया था। तब अगर ये जख्म सच हैं फिर वह वाकया झूठ कैसे हो सकता है?' और इसी के बाद उसने पुनः पुराना रास्ता पकड़ लिया था। उसने अपने मन को शक्ति दी थी, सुनिधि को चूमा था और बाबा को फोन किया था, इसके बाद वह भूख हड़ताल पर बैठ गया था। उसकी माँग थी, अपराधियों पर कार्रवाई हो।
लेकिन अगले दिन वह अनशन स्थल से लापता हो गया था। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि वह भूख बरदाश्त नहीं कर सका था और भाग कर दो किमी की दूरी पर एक दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था। कुछ ने आँखों देखा हाल की तरह बयान किया : उसे नींद में चलने का रोग है। वह साढ़े तीन बजे रात को उठ कर खड़ा हो गया और मुँदी हुई आँखों के बावजूद चलने लगा। वह काफी दूर चला गया था और वह लौट कर वापस नहीं आया था।
पता नहीं इन बातों में कौन सच थी कौन झूठ? या सभी सच थीं और सभी झूठ। लेकिन इतना अवश्य था कि रतन कुमार अगली सुबह अनशन स्थल से गायब था और फिर उसे किसी ने नहीं देखा था। विश्वविद्यालय में भी उसके बारे में कोई सूचना न थी। वह जहाँ रहता था उस मकान में ताला लटका था और पड़ोसी भी कुछ बता सकने में असमर्थ थे। सुनिधि उसके मोबाइल पर फोन करती रहती थी लेकिन वह हमेशा बंद रहता था। फिर भी उसने हार नहीं मानी थी, जब वक्त मिलता वह उसका नंबर मिला देती थी। नतीजा पूर्ववत : उसका मोबाइल बंद होता था। इस प्रकार जब आठ दिन बीत गए तो वह अपने फ्लैट में फफक कर रोने लगी थी।
'भूख हड़ताल पर हो। ये तो हम भूल गए थे।' एक ने कहा, बाकी सब हँस पड़े। दूसरे ने एक लोकप्रिय फिल्मी संवाद की तर्ज पर कहा, 'खाना नहीं खाएगा, तो गोली खाएगा।' दहशत के मारे वह दी हुई चीजें खाने लगा।
सुनिधि बोली नहीं। वह उसी लय में कार चलाती रही। वह सोच रही थी, इस बार रतन की कहानी पर विश्वास नहीं किया जाएगा। उसके सारे वृत्तांत को प्रसिद्धि की प्यास, कपट की कहानी, बददिमाग का बयान सरीखे शब्दों से नवाजा जाएगा। उसकी बातें मनोविकार हों अथवा उनमें सौ प्रतिशत यथार्थ हो, इतना निश्चित था कि दोनों ही परिस्थितियों में वह तबाह हो रहा था। एक क्षण के लिए मान ही लिया जाए, यह सब उसके किसी काल्पनिक भय का सृजन है तो भी कहा जा सकता है कि वह उसके भीतर इतना फैल चुका था कि छुटकारा जल्दी संभव नहीं दिख रहा था। और यदि वाकई किसी सत्ता के निशाने पर था वह, तो पार पाना ज्यादा कठिन था।
स्थिति आशंकाओं से बहुत अधिक गूढ़, दुखद और किंकर्तव्यविमूढ़ कर देनेवाली थी। बाबा ने तीन बार जब अपनी पहचान बताई तब उसने दरवाजा खोला था। पहले उसने जरा सा खोल कर बाहर की थाह ली थी। उस समय उसका चेहरा देख कर सुनिधि दहल उठी थी। इतना थका हुआ, डरा हुआ और हारा हुआ चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था। यह और भी त्रासद इसलिए कि वह चेहरा रतन का था।
अंदर पहुँच कर बाबा दूसरे कमरे में चले गए। जाते हुए उन्होंने कहा, 'टीना बिटिया, मैं दफ्तर और घर की दौड़ाभागी से थक गया हूँ। अब थोड़ी देर आराम करूँगा।' उनके जाने के बाद रतन ने दरवाजे को परखा कि वह बंद है कि नहीं। बंद था। उसने भीतर से ताला लगा दिया।
सुनिधि ने उसे सहज दिखाने की असहज स्थिति से उबारने के लिए इधर उधर की बातें शुरू कर दीं। अपने दफ्तर पर चर्चा की। इंटरनेट और मोबाइल पर पढ़े कुछ लतीफे सुनाए और इधर देखी हुई एक रोमांटिक फिल्म पर अपनी मुख्तसर टिप्पणी प्रस्तुत की। वह गौर से सुन रहा था और उसके चेहरे पर उचित भावनाएँ भी उभर रही थीं, इससे सुनिधि को तसल्ली हुई। लेकिन वह इस बात से चौंक पड़ी थी और चिंतित हो गई थी कि वह अपनी भावनाएँ अजीब ढंग से छिपा लेना चाहता था। जब उसे हँसी आती थी तो वह अपनी हथेली से होठों को ढँक ले रहा था। अपनी आँखें हमेशा चारों ओर नचाता रहता था। जैसे हर कोने अंतरे से उसे खतरा था और वह लगातार नजर रख रहा था। उसके एक हाथ में कोई पत्रिका थी जिसे वह बोलते समय गोल करके मुँह के सामने कर लेता था। इससे आवाज गूँजती हुई सी और परिवर्तित हो उठती थी। सुनिधि को पक्का यकीन हो गया, वह किसी अदृश्य शत्रु से सावधानी बरतते हुए अपनी शिनाख्त को छिपाना चाह रहा है।
सुनिधि क्या बताए, वह पसोपेश में पड़ गई। सुंदर, सुखी दृश्य केवल विज्ञापनों में थे, अखबारों और टी.वी. के समाचार चैनलों के बाकी अंशों में हत्या, लूट, दमन, बलात्कार, षड्यंत्र और हिंसा व्याप्त थी। उसे लगा, रतन को ये सब बताने का अर्थ है उसकी आशंकाओं, दहशत और नाउम्मीदी की लपटों को ईंधन देना। यह बताना तो और भी मुसीबत की बात थी कि अनशन स्थल से गायब होने के बाद समाचार माध्यमों में उसकी कितनी नकारात्मक छवि पेश हुई थी। वह भगोड़ा, भुक्खड़, डरपोक और सनकी इनसान बताया जा चुका था।
लेकिन रतन के आग्रह को टालना भी संभव नहीं दिख रहा था। वह उसको देखते हुए उत्तर का इंतजार कर रहा था। जब से आई, पहली बार उसने रतन की पुतलियों को अपने चेहरे की तरफ स्थिर देखा था। अब उसे कुछ न बताने का अर्थ था उसकी पुतलियों को फिर से अविराम भटकाव के लिए बेमुरौव्वत छोड़ देना।
'अरे नहीं...' रतन कुमार खड़ा हो गया। वह खुशी और अविश्वास से हिल रहा था।
'हे भगवान, कितने प्यारे और भले आदमी हैं धरती पर।' प्रसन्नता रतन कुमार की आवाज में छलकी, अचानक वह खुशी से चिल्लाया, 'सुनिधि, आज फिर मेरी आँखों में रोशनी आ गई है। मैं इस वक्त साफ साफ देख रहा हूँ।' वह भागा हुआ गया और बाबा को ले आया, 'बाबा, मुझे दिख रहा है। यह कुछ ही देर के लिए होगा लेकिन फिलहाल मैं देख पा रहा हूँ। तुम्हारे कुर्त्ते पर नीले रंग की बटनें लगी हैं और रंगमहल वस्त्रालयवाले कैलेंडर में सबसे बारीक हरफों में छपा है - सन 1928 में स्थापित। मैं बगैर आँखों के नजदीक लाए कोई किताब पढ़ कर सुना सकता हूँ तुमको।' वह एक किताब ला कर सामान्य दूरी से पढ़ने लगा।
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वातचीत विद्यार्थियोके साथ
छोड़ी है जिनके लिए पूंजीपति वदनाम है । वर्ग-युद्धका विचार मुझे नहीं जंचता । भारतमें वर्ग-युद्ध अनिवार्य नही है, इतना ही नही यदि हम अहिंसाका सन्देश समझ लें तो हम उससे बच सकते है। जो वर्ग-युद्धके अनिवार्य होनेकी वाते करते है, उन्होने या तो अहिमाके फलितार्थ समझे ही नही या केवल ऊपरमे समझे है ।
धनवान स्वयं गरीब हुए बिना गरीबोंकी सहायता कैसे कर सकते है ? धन या पूंजीवाद ऐसी प्रणाली है जो अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा बनाये रखनेके लिए पूंजी और श्रमके बीच जबर्दस्त अन्तर बराबर कायम रखनेकी कोशिश करती है । इसलिए क्या इन दोनोंमें से किसी एकके हितोको भारी हानि पहुँचाये बिना कोई समझौता कराना सम्भव है ?
धनवान अपने धनका उपयोग स्वार्थपूर्ण सुखोके लिए न करके गरीबों के हितमाधनके लिए कर सकते है। यदि वे ऐना करें तो गरीबो और अमीरोके बीच आज जो अमिट खाई है वह नही रहेगी। वर्ग-विभाजन तो रहेगा, मगर वह माधारण होगा, बहुत भारी नही होगा । हमे पश्चिममे आये हुए पथभ्रष्ट करनेवाले शब्दो और नारोके वशीभूत नहीं हो जाना चाहिए। क्या हमारी अपनी विशिष्ट प्राच्य परम्पराएँ नहीं है ? क्या पूंजी और श्रमके प्रज्नका हम अपना हल निकालने में समर्थ नहीं है ? वर्णाश्रम धर्मको प्रणाली यदि ऊंच-नीच और पूंजी व श्रमके अन्तरको दूर करके उनका मुमेल गाधनेका साधन नहीं है तो और क्या है ? इस विषय में पश्चिममे आनेवाली हर चीजपर हिमाका रंग चढा होता है। मुझे उमपर इसलिए आपत्ति होती है कि इस मार्गके अन्तमे जो सर्वनाश है, उसे मैं देख चुका हूँ। आजकल पश्चिममें भी अधिक विचारशील लोगोको उम अन्धकूपके प्रति चिन्ता हो रही है जिगकी ओर उनको प्रणाली दौडी चली जा रही है। और मेरा परिचममे जो भी प्रभाव है, वह ऐसा हल निकालनेके मेरे सतत प्रयत्नके कारण है जिससे हिंसा और गोपणके कुचक्रमे निकलनेकी आशा होती है। मैने पाश्चात्य समाज व्यवस्था का सहानुभूतिपूर्वक अध्ययन किया है और मुझे पता चला है कि पश्चिमको आत्मामे जो वेचैनी भरी है, उसकी जडमे सत्यकी अविश्रान्त खोज है। मैं इस वृत्तिकी कद्र करता हूँ। हम वैज्ञानिक अनुसन्धानकी उस वृतिसे अपनी प्राच्य संस्थाओका अध्ययन करें, तो ससारने जिस समाजवाद और साम्यवादके सपने अभीतक देखे है, उससे अधिक सच्चे समाजवाद ओर साम्यवादका हम विकास कर लेगे। यह मान लेना वेशक गलत बात है कि जन-साधारणकी दरिद्रताके प्रश्नके बारेमें पाश्चात्य समाजवाद या साम्यवाद अन्तिम हल है ।
हम ठोक-ठोक और स्पष्ट रूपसे जानना चाहते है कि अहिंसासे आपका क्या अभिप्राय है । यदि अहिंसासे आपका अभिप्राय व्यक्तिगत घृणाका अभाव है तो हमें इसपर कोई आपत्ति नहीं है। हमें आपत्ति तो तब होती है जब आप अहिंसाका अर्थ किसीको न मारना बताते है । युद्ध व्यक्तिगत आधारपर नहीं लड़े जाते, बल्कि
राष्ट्रीय सम्मानकी अथवा हितोंकी रक्षा के लिए लड़े जाते है। विवाद नैतिक तथा शारीरिक दोनों ही ताकतोंके अधिकतम प्रयोग द्वारा सुझलाये गये है। जब हमारे राष्ट्रीय आदर्शकी विजयके लिए सब लोग सफलतापूर्वक शारीरिक शक्तिका प्रयोग कर सकते हैं और जब वह सबसे छोटा रास्ता है, तो आप उसपर आपत्ति क्यों करते है ? इसके अलावा, संसार अभी भी इतना आगे नहीं बढ़ पाया है कि नैतिक आग्रहकी कद्र कर सके।
मेरी अहिंसा नैतिक बलके अलावा अन्य सभी वलोके प्रयोगको अस्वीकार नही करती। पर यह कहना कि राष्ट्रीय समस्याओं के समाधानके लिए विश्वमें शारीरिक शक्तिका प्रयोग होता रहा है या आज हो रहा है, एक बात है और यह कहना कि उसका प्रयोग होते रहना चाहिए, दूसरी बात है । हम अन्धाधुन्ध पश्चिमकी नकल नहीं कर सकते । पश्चिममें यदि कुछ चीजें की जाती है तो उनके पास उनके प्रतिकार भी है; हमारे पास नहीं है। उदाहरणके लिए, सन्तति-निरोधको ही लीजिए । यह पद्धति वहाँ ठीक तरह लागू होती दिख सकती है, परन्तु यदि हम उस पद्धतिको, जैसीकि वह पश्चिममें प्रतिपादित की जा रही है, अपना ले, तो दस वर्षमें भारतमें नपुंसकोंकी एक नस्ल पैदा हो जायेगी । इसी प्रकार यदि हम पश्चिमकी तरह हिंसाको अपनाते है तो शीघ्र ही हम दिवालिया हो जायेगे, जैसेकि पश्चिम तेजीसे होता जा रहा है। अभी उस दिन मेरी एक यूरोपीय मित्रसे बात हो रही थी । वे सभ्यताके इस रूपसे भयभीत थे कि पश्चिमके अत्यन्त उद्योगसम्पन्न राष्ट्रो द्वारा विश्वकी अश्वेत नस्लोका बड़े पैमानेपर शोषण हो रहा है। अहिंसाका सिद्धान्त आज परीक्षाके दौरमें से गुजर रहा है। आत्मिक शक्तियो और पाशविक शक्तिके वीच जिन्दगी और मौतका संघर्ष चल रहा है। इसलिए संकटकी इस घडीमें हमें परीक्षासे नही कतराना चाहिए ।
बंगालके नजरबन्द युवकों और युवतियोंके सिलसिलेमें कांग्रेसने क्या किया है या उसे क्या करना चाहिए ?
मेरे पास जो समाधान है, वह मैने आपको बता दिया है। कांग्रेस संगठनको यदि हम अहिंसात्मक रीतिसे और ईमानदारीसे चलायें, तो उसमें आज जो भ्रष्टाचार . है ' हम उसे उससे मुक्त कर सकेंगे। वह भ्रष्टाचारसे बुरी तरह ग्रस्त है, और मुझे खेदके साथ यह स्वीकार करना पड़ता है कि बंगाल इस मामले में सबसे बड़ा पापी है। मै आपसे वादा करता हूँ कि इन नजरबन्दोमें से हरएक रिहा कर दिया जायेगा । पर हमें मन, वचन और कर्मसे सच्चा अहिंसक होना होगा ।
अपने समाजके उन सभी तत्वोंको, जिनका किसी-न-किसी तरह शोषण या दमन होता है, हम हरिजन मानते है। आपका सत्याग्रह आन्दोलन सदा उनके लिए है जो पददलित हैं। फिर एक पृथक् हरिजन आन्दोलनको क्या जरूरत है ?
मैं जो आन्दोलन चला रहा हूँ, यह एक पृथक हरिजन-आन्दोलन नहीं है। यह विश्वव्यापी महत्त्व रखता है।
बातन्त्रीत विद्यार्थियोके साथ
क्या भारतके युवकोके लिए सामाजिक व्यवस्थाको बदलनेका समय आ गया है ? यह कार्य स्वराज्यके लिए होनेवाले राजनैतिक प्रयत्नसे पहले होना चाहिए या पीछे ?
सामाजिक व्यवस्थाको बदलना और राजनैतिक स्वराज्य के लिए मघर्प, दोनो ही साथ-साथ चलने चाहिए। यहाँ पहले, पोछे या दोनोको अलग-अलग खण्डोमे बांटनेका तो सवाल ही पैदा नहीं होता। परन्तु नई सामाजिक व्यवस्था जबर्दस्ती नहीं लादी जा सकती। वह इलाज बीमारी भी खराब रहेगा। मै सुधारके लिए उतावला हूँ। मैं सामाजिक व्यवस्थामे व्यापक और आमूल परिवर्तन लाना चाहता हूँ। पर वह आगिक विकास होना चाहिए, जबर्तनी और ऊपरगे गोपी हुई चीज नहीं होनी चाहिए ।
कुछ नकली राष्ट्रवादी मुनलमानोको अवैध और अयुक्तियुक्त रियायतें देकर, जिससे उनको कभी न शान्त होनेवाली भूख और बढती हो जाती हैं, उन्हें कांग्रेसके अन्दर रखनेकी कोशिशसे आसिर क्या फायदा है ?
यदि राष्ट्रवादी मुसलमान नाली राष्ट्रवादी है, तो हम भी नकली राष्ट्रवादी है । इसलिए वह हमें अपने कोगने निगल देना चाहिए । 'अयुक्तियुक्त न्यिायन' से आपका क्या मतलब है, मुझे नहीं मालम । पर आप मुझे भी किसी अवैध रियायतका समर्थन करने नहीं पायेंगे । हमारे वीन यह एक समान आधार है।
सिलाफतके प्रश्नको कांग्रेस-मंचपर लानेके कारण क्या कांग्रेस-दल साम्प्रदायिक सम्बन्धोको कटुताके लिए उत्तरदायी नहीं है ?
काग्रेसका विलाफत आन्दोलनमं भाग लेना साम्प्रदायिक सम्बन्ध घन्टुना पैदा होनेके लिए उत्तरदायी है, यह कहना ऐतिहानिक दृष्टिगे मन नहीं है। वास्तविकता इससे बिलकुल उन्ही है, और मेरी मान्यता सदा नही रहेगी कि कावेगा अपने मुसलमान देशवानियांकीकी कामे उनका साथ देना ठोक ही था ।
[ अग्रेजीगे ]
टु दि स्टूडेंट्स, १०२०८-९
२४६. भाषणः टाउनहॉल, कलकत्ता में
अभिनन्दनका हिन्दीमें उत्तर देते हुए गांधीजी ने इस बातपर खेद प्रकट किया कि उन्हें बंगला भाषा नहीं आती। इस सुन्दर और मधुर भाषाको, जिसको गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी रचनाओंसे इतनी श्रीवृद्धि हुई है, सीखनेकी उनके मनमें बड़ी साध रही है।
उन्हें वह अवसर याद आया जब देशबन्धु चित्तरंजन दासके हाथों उन्हें एक और नागरिक अभिनन्दन पत्र प्राप्त हुआ था। वेशप्रिय यतीन्द्रमोहन सेनगुप्तके साथ, जिन्हें वे अब अपने निकट नहीं पा रहे थे, अपने घनिष्ठ और अन्तरंग सहयोगका भी उन्होंने मार्मिक शब्दोंमें उल्लेख किया।
अभिनन्दनमें उनको प्रशंसामें जो कुछ कहा गया था, उसे महात्माजी ने उनका आशीर्वाद माना और कहा मै हैरान हूँ कि उत्तरमें क्या कहूँ । मै तो ईश्वरसे केवल यह हार्दिक प्रार्थना हो कर सकता हूँ कि यह बृहत् नगर निगम एक आदर्श निकाय बन जाये और ऐसा उदाहरण रखे जिसके अनुकरणसे अन्य म्युनिसिपल संस्थाएँ भी लाभ उठा सकें ।
कलकत्तेको, जिसमें सुन्दर उद्यान, बड़ी-बड़ी सड़कें और आलीशान इमारतें है, महलोंकी नगरी कहना ठीक ही है। पर इस हकीकतको नजरन्दाज नहीं किया जा सकता कि तस्वीरका एक दूसरा पहलू भी है । एक ओर जहाँ ये शानदार चीजें है, जिन पर यह नगर गर्व कर सकता है, वहीं दूसरी ओर हरिजन जिन बस्तियों में रहते है उनको दशा दयनीय है। इस विरोधाभाससे मुझे बहुत दुःख पहुँचता है। सुबह मुझे कुछ हरिजन बस्तियों में जानेका अवसर मिला था और जिस अभागी स्थिति में वे लोग रह रहे है - न हवा है, न रोशनी है, न पानेको पर्याप्त पानी है - उसे देख कर मुझे बड़ी पीड़ा हुई । मैं तो स्वयं अपनी मर्जीसे हरिजन बन गया हूँ और यदि मैं कहूँ कि मुझे खुद उस जगह बँचेनी लगी थी तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस बड़े शहरकी सफाई और सेहतको जिम्मेदारी शहरके इन भंगियों और जमादारोंपर ही है। नगर निगमके सदस्योंसे मेरी प्रार्थना है कि उन्हें हर साल कुछ रकम इन लोगोंकी विभिन्न शिकायतोंको दूर करनेके लिए
१. नगर निगमकी ओरसे महापौर नलिनीरजन सरकारने तीसरे पहर अभिनन्दन-पत्र भेंट किया था, जो सफेद खद्दरपर बंगलामें छपा था ।
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महिलाएं भारतीय कार्यबल का एक अभिन्न अंग बनाती हैं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा प्रदान की गई सूचना के अनुसार, महिलाओं की श्रम भागीदारी दर 2001 में 25.63 प्रतिशत थी। यह 1991 में 22.27 प्रतिशत और 1981 में 19.67 प्रतिशत की तुलना में वृद्धि है। जहां महिला श्रम भागीदारी दर में वृद्धि रही है, वहीं यह पुरुष श्रम भागीदारी दर की तुलना में लगातार उल्लेखनीय रूप से कम होती जा रही है। 2001 में, ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम भागीदारी दर 30.79 प्रतिशत थी वहीं शहरी क्षेत्रों में 11.88 प्रतिशत थी। ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाएं मुख्य रूप से कृषि कार्यों में शामिल होती हैं। शहरी क्षेत्रों में, लगभग 80 प्रतिशत महिला श्रमिक संगठित क्षेत्रों में काम करती हैं जैसे घरेलू उद्योग, छोटे व्यापार और सेवाएं, तथा भवन निर्माण। 2004-05 के दौरान देश में कुल श्रम-शक्ति का अनुमान 455.7 मिलियन लगाया गया है जो विभिन्न राज्यों के लिए एम्प्लॉमेंट/अनएम्प्लायमेंट और जनसंख्या फैलाव पर एनएसएस 61वां राउंड सर्वे पर आधारित है। महिला श्रमिकों की संख्या 146.89 मिलियन थी या कुल श्रमिकों का केवल 32.2 प्रतिशत थी। इन महिला श्रमिकों में लगभग 106.89 मिलियन या 72.8 प्रतिशत कृषि कार्य करती थी यहां तक कि पुरुष श्रमिकों में उद्योग की भागीदारी केवल 48.8 प्रतिशत था। ग्रामीण श्रम-शक्ति में उद्योग की कुल भागीदारी लगभग 56.6 प्रतिशत थी।
महिला श्रमिकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक प्रावधान हैंः
- फैक्ट्री ऐक्ट (कारखाना अधिनियम), 1948 का सेक्शन (खंड) 22(2) के अनुसार किसी भी महिला को प्राइम मूवर (मूल गति उत्पादक) या किसी भी ट्रांसमिशन मशीनरी के किसी भी भाग की सफाई, ल्युब्रिकेट या समायोजित करने की अनुमति नहीं होगी जब प्राइम मूवर ट्रांसमिशन मशीनरी गति में होता है, अथवा मशीन के किसी भी भाग की सफाई, ल्युब्रिकेट या समायोजित करने की अनुमति नहीं होगी यदि सफाई, ल्युब्रिकेशन अथवा समायोजन के कारण महिला को उस मशीन से अथवा आसपास के मशीन से घायल होने का खतरा हो।
- फैक्ट्री ऐक्ट (कारखाना अधिनियम) 1984, सेक्शन 27, द्वारा कॉटन प्रेसिंग के लिए जिसमें कॉटन ओपनर काम कर रहा होता है, कारखाने के किसी भी भाग में महिला श्रम को प्रतिबन्धित किया गया है।
- फैक्ट्री ऐक्ट (कारखाना अधिनियम) 1948, सेक्शन (खंड) 66(1)(बी), के अनुसार किसी भी महिला को किसी भी कारखाने में 6 बजे सुबह से लेकर शाम 7 बजे के बीच के समय के अलावा काम करने की अनुमति नहीं है।
- बीड़ी और सिगार वर्कर (रोजगार की शर्ते) ऐक्ट 1966, सेक्शन (धारा) 25 के अनुसार किसी भी महिला को 6 बजे सुबह से लेकर शाम 7 बजे के बीच के समय के अलावा औद्योगिक परिसर में काम करने की अनुमति नहीं है।
- माइंस ऐक्ट (खान अधिनियम) 1952, सेक्शन 46(1)(बी) महिलाओं को किसी भी जमीन के ऊपरी खदान में 6 बजे सुबह से लेकर शाम 7 बजे के बीच के समय के अलावा काम करने की अनुमति नहीं है।
- माइंस ऐक्ट (खान अधिनियम) 1952, सेक्शन 46(1)(बी) जमीन के नीचे के खान के किसी भी भाग में महिला श्रम को प्रतिबन्धित करता है।
मेटर्निटी बेनिफिट (प्रसूति - लाभ)
- मेटर्निटी बेनिफिट ऐक्ट 1961, बच्चे के जन्म से पहले और बाद में निश्चित प्रतिष्ठानों में निश्चित अवधि के लिए महिला श्रम को नियंत्रित करता है और मातृत्व लाभ प्रदान करता है। भवन एवं अन्य कंस्ट्रक्शन (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 महिला लाभार्थी को मातृत्व लाभ के लिए वेलफेयर फंड (कल्याण निधि) प्रदान करता है।
महिला श्रमिकों के लिए अलग शौचालय और पेशाबघर का प्रावधान जो निम्नलिखित के अंतर्गत आता हैः
- फैक्ट्री ऐक्ट (कारखाना अधिनियम), 1948 की धारा 19।
- इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (इंटर स्टेट प्रवासी कर्मकार) (आरईसीएस) सेंट्रल रूल्स (केन्द्रीय नियम), 1980 का नियम 42।
महिला श्रमिकों के लिए अलग धोने की (वॉशिंग) सुविधा का प्रावधान जो निम्नलिखित के अंतर्गत आता हैः
- कॉन्ट्रेक्ट लेबर (विनियमन एवं उन्मूलन) ऐक्ट, 1970 का सेक्शन (धारा) 57।
- फैक्ट्री ऐक्ट, 1948 का सेक्शन (धारा) 42।
- इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (इंटर स्टेट प्रवासी कर्मकार) (आरईसीएस) ऐक्ट, 1979 का सेक्शन(धारा) 43।
क्रेच का प्रावधान जो निम्नलिखित के अंतर्गत आता हैः
- माइंस ऐक्ट (खान अधिनियम) 1952 का सेक्शन (धारा) 20।
- फैक्ट्री ऐक्ट (कारखाना अधिनियम), 1948 का सेक्शन (धारा) 48।
- इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमेन (आरईसीएस) अधिनियम, 1979 का सेक्शन (धारा) 44।
- प्लांटटेशन लेबर एक्ट (बागान श्रम अधिनियम), 1951 का सेक्शन (धारा) 9।
- बीड़ी और सिगरेट वर्कर (रोजगार की शर्ते) अधिनियम 1966, का सेक्शन (धारा) 25।
- बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन (भवन एवं अन्य कंस्ट्रक्शन) (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 का सेक्शन 35।
रोजगार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय के अन्तर्गत "महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण"
डीजीईटी नोडल एजेंसी होने के नाते, देश में महिलाओं के व्यावसायिक प्रशिक्षण को संभालता है, महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम मुहैया करता है। 1977 में डीजीईटी के अंतर्गत एक अलग वुमेन ट्रेनिंग विंग की स्थापना की गई थी। यह विंग देश में महिलाओं के व्यावसायिक प्रशिक्षण से संबंधित दीर्घावधिक नीतियों के निर्माण और क्रियांवयन के लिए जिम्मेदार है।
महिलाओं व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का लक्ष्य है महिलाओं को कुशलता प्रशिक्षण सुविधाओं में उनकी भागीदारी को बढ़ाकर अर्ध-कुशल/कुशल तथा उच्चतम कुशल श्रमिक के रूप में उद्योग जगत में महिला रोजगार को बढ़ावा देना। यह कार्यक्रम विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षक मुहैया करने के लिए महिलाओं हेतु आधारभूत (क्राफ्टमेन ट्रेनिंग स्कीम के तहत), ऐडवांस तथा पोस्ट-ऐडवांस लेवल पर कुशलता प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए, महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण संस्थान केन्द्रीय और राज्य क्षेत्रक योजनाओं के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं।
- केन्द्रीय क्षेत्रक के तहत डीजीईटी द्वारा वुमेन ट्रेनिंग विंग के अंतर्गत 11 संस्थानों की स्थापना की गई है जिसमें नोएडा में एक नेशनल वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टिच्यूट (एनवीटीआई) फॉर वुमेन तथा मुम्बई, बैंगलोर, तिरुवनंतपुरम, हिसार, इन्दौर, कोलकाता, तुरा, इलाहाबाद, वडोदरा और जयपुर में 10 रीजनल वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टिच्यूट (आरवीटीआई) शामिल हैं।
- ये संस्थान उन महिलाओं के लिए कुशलता/व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाते हैं जो दशवीं अथवा बारहवीं उत्तीर्ण चुकी हैं तथा विभिन्न कोर्सों के लिए विशिष्ट योग्यता शर्तों के लिए क्वालिफाई करती हैं। पाठ्यक्रमों को नामांकन के लिए आयु की कोई ऊपरी सीमा नहीं है। स्वरूपित दीर्घावधिक पाठ्यक्रमों के अलावा, उपर्युक्त संस्थान सामान्य वर्गों - गृहिणी, छात्र, स्कूल ड्रॉपआउट इत्यादि के लिए आवश्यकता-आधारित लघु-कालिक पाठ्यक्रम तथा आईटीआई इंस्ट्रक्टर के लिए ऐडवांस स्किल/अध्यापन में फ्रेशर ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाते हैं।
- स्टेट सेक्टर के अंतर्गत महिला आईटीआई/निजी वुमेन आईटीआई/विंग्स जनरल आईटीआई में व्यावसायिक प्रशिक्षण आयोजित करता है जो सीधे संबंधित स्टेट/यूटी सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
ऐडवांस और पोस्ट-ऐडवांस ट्रेनिंग प्रोग्राम्स जिसे वुमेन ट्रेनिंग द्वारा एनवीटीआई/आरवीटीआई में ऑर्गेनाइज किया जाता है अब एनसीटीवी की अनुशंसा के अनुसार ईटीआई के साथ अलाइन हो रहा है।
8 संस्थान जैसे एनवीटीआई, नोएडा, आरवीटीआई - इलाहाबाद, कोलकाता, तुरू, मुम्बई, बैंगलोर, तिरुवनंतपुरम और जयपुर के पास उनका स्वयं का भवन है जिसमें प्रशिक्षुओं के लिए आवास सुविधा (आरवीटीआई, मुम्बई के अलावा, जो एटीआई, मुम्बई के साथ हॉस्टल का साझा करता है)। आरवीटीआई, पानीपत के लिए (हिसार में) वडोदरा और इन्दौर, प्रशिक्षुओं के लिए हॉस्टल के साथ स्थायी भवन सीपीडब्ल्यूडी द्वारा निर्माणाधीन है।
आरवीटीआईआई आरवीटीआई में वर्तमान में 6500 प्रशिक्षुओं से अधिक को विभिन्न दीर्घ-कालिक और लघु-कालिक पाठ्यक्रमों में मैन्युअली प्रशिक्षित किया जाता है। ये सभी सीटें विशेष रूप से महिलाओं के लिए हैं। आरक्षण भारत सरकार के नियमों के अनुरूप है।
वर्तमान में आईडीओआई रु. का भत्ता प्रति महीने आधारभूत पाठ्यक्रमों में स्वीकृत संख्या का 25 प्रतिशत प्रदान किया जाता है। भत्ता के अतिरिक्त, 125 रु. प्रति महीने की दर से 4 प्रतिशत स्वीकृत संख्या के लिए स्कॉलरशिप प्रदान किया जाता है।
महिलाओं की सशक्तिकरण पर संसदीय समिति, जो 'महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण' पर आध्ययन पर आधारित है, ने निरीक्षण के लिए एक सूची अग्रसारित किया है और महिलाओं के व्यावसायिक और प्रशिक्षण प्रोग्राम के री-ओरिएंटिंग और स्ट्रेंथेनिंग के लिए अनुशंसा किया है।
महिलाओं के स्किल डेवलपमेंट और ट्रेनिंग पर वर्किंग ग्रुप की सशक्तिकरण पर संसदीय समिति की अनुशंसाओं और निरीक्षणों के आधार पर ग्यारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान प्रावधान बनाया गया था ताकि आन्ध्रप्रदेश, हिमाचलप्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, दिल्ली, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, असम और जम्मू एवं कश्मीर राज्यों में पीपीपी के अंतर्गत 12 और आरवीटीआई स्थापित किए जाएं। "इन-प्रिंसिपल" स्वीकृति के लिए प्रोपोजल प्लानिंग कमीशन को भेजा गया था। प्लानिंग कमीशन का कहना था कि यह ग्यारहवीं प्लान आउटले के तहत मौजूदा योजना का प्रसार है इसलिए "इन-प्रिंसिपल" स्वीकृति की जरूरत नहीं थी। उन्होंने एक रिवाइज्ड ईएफसी मेमोरेंडम का सुझाव दिया।
।ड्रेस मेकिंग (पोशाक बनाना)
।ड्रेस मेकिंग (पोशाक बनाना)
(आदर्श शिक्षण)
।हेयर एंड स्किन केयर (बालों और त्वचा की देखभाल)
।आशुलिपि (हिन्दी)
।सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस (हिन्दी)
।सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस (अंग्रेजी)
।सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस (अंग्रेजी)
।इंस्ट्रूमेंट मैकेनिक (यंत्र निरीक्षक)
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[ भाग II-खण्ड 3(ii)]
औद्योगिक न्यायाधिकरण, भीलवाड़ा, ( राजस्थान) पीठासीन अधिकारी - एम. एल. शर्मा, - प्रथम, आर. एच. जे.
औद्योगिक विवाद प्रकरण संख्या : 1/02
विवाद मध्य :
सेक्रेटरी, इलैक्ट्रोनिक ट्रेड यूनियन, एम.एम.टी.सी. लि.,
रिजनल मैनेजर, एम.एम.टी.सी. लि.,
श्री आर. सी. चैचाणी, अधिवक्ता श्री जी. एल. जैन, अधिवक्ता
आवेदक की ओर से अनावेदक की ओर से
1. केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय की अधिसूचना संख्याः एल29011/79/2001-आईआर / (एम) दिनांक 8-2-2002 के द्वारा औद्योगिक विषाद अधि. 1947 (तत्पश्चात् अधि. 1947 से सम्बोधित) की धारा 10 (1) (ग) के तहत निम्नलिखित विवाद इस न्यायाधिकरण को अधिनिर्णयार्थ प्रेषित किया :'क्या इलैक्ट्रोनिक ट्रेड यूनियन, भीलवाड़ा द्वारा मांग पत्र एनेक्जर "ए" प्रबंधक, एम.एम.टी.सी. लि., भीलवाड़ा को प्रेषित करना उचित है ? यदि नहीं, तो यूनियन किस राहत का अधिकारी है ?"
2. उपर्युक्तानुसार विवाद दिनांक 18-3-02 को प्राप्त होने पर क्रम संख्या 1/02 पर दर्ज हुआ तथा पक्षकारान को सूचित किया गया ।
3. दिनांक 2-12-02 को प्रस्तुत स्टेटमेंट आफ क्लेम के मुताबिक आवेदक यूनियन पंजीकृत है तथा अनावेदक कंपनी से मान्यता प्राप्त है। आवेदक यूनियन के सदस्यगण पूर्व में अनावेदक कंपनी की शाखा कंपनी माईका ट्रेडिंग कार्पोरेशन आफ इंडिया लि., जिसे संक्षेप में मिटको कहा जाता है, के अधीन कार्यरत थे। मिटको रुग्ण इकाई घोषित होने से बी. आई. एफ. आर. में मामला रेफर हुआ तथा बी. आई. एफ. आर. एवं भारत सरकार के आदेश के तहत इसे एम. एम. टी. सी. लि., में दिनांक 1-4-95 को विलय कर दिया गया। विलय के पश्चात् मिटको में कार्यरत श्रमिकगण की तैनाती एम.एम.टी.सी. लि. के अभ्रक प्रभाग में की गई । यह प्रभाग एम.एम.टी.सी. लि. के अन्य विभागों/प्रभागों की तरह एक शाखा है। मिटको के श्रमिकगण अभ्रक प्रभाग के श्रमिकगण होते हुए भी उन्हें एम.एम.टी.सी. लि. में कार्यरत श्रमिकगण के समान वेतन व परिलाभ का भुगतान नहीं किया जा रहा है। पूर्ववर्ती मिटको कंपनी एम.एम.टी.सी. कंपनी की सब्सीडरी कंपनी के रूप में कार्यरत तथा एम.एम.टी.सी. में
समय-समय पर लिये गये निर्णय तथा वेतनमान आदि मिटकों के कर्मचारीगण भी समान रूप से लागू होते थे। अनावेदक कंपनी के अभ्रक प्रभाग में कार्यरत श्रमिकगण का कार्य अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारीगण के कार्य के समान है। समान कार्य के लिए समान वेतन देय होता है, लेकिन मिटको कंपनी एम.एम.टी.सी. लि. अनावेदक कंपनी में विलय होने के पश्चात् मिटको कम्पनी के कर्मचारीगण को अनावेदक कंपनी के कर्मचारीगण के समान वेतन व परिलाभ नहीं दिए जा रहे हैं। स्टेटमेंट आफ क्लेम के पैरा सं. 7 के मुताबिक श्रमिकगण का वेतन पुनरीक्षण दिनांक 1-7-88 से तथा कर्मचारियों का वेतन पुरीक्षण दिनांक 1-11-92 से एवं अधिकारियों का वेतन पुनरीक्षण दिनांक 1-1-92 से नहीं किया है। आवेदक यूनियन ने रेफरेंस में वर्णित मांग पत्र विपक्षी नियोजक को प्रस्तुत किया। मांगों का विवरण क्लेम के पैरा सं. 10 में अ से द तक है। मांग पत्र में वर्णित मांगे उचित हैं तथा स्वीकार किये जाने योग्य है। आवेदक यूनियन ने निवेदन किया कि आवेदक यूनियन द्वारा प्रस्तुत मांग पत्र एनेक्सर ए वैध व उचित मानते हुए मांग में वर्णनानुसार वेतनमान व लाभ आवेदक यूनियन के सदस्यगण को प्रदत्त किये जाये ।
4. दिनांक 9-5-03 को प्रस्तुत जवाब (हिन्दी अनुवाद) के में चल रही है तथा मुताबिक मिटको वर्ष 1987-88 से लगातार 1991-92 में कम्पनी का नेटवर्क पूर्णतया समाप्त हो गया । बी.आई.एफ.आर. द्वारा अनुमोदित विलय योजना के मुताबिक माईका डिवीजन के कर्मचारियों को योजना में निर्धारित अधिकतम संख्या तक ही सीमित रखा जायेगा तथा उनकी सेवा शर्तें पूर्ववत रहेंगी जैसे कि विलय की तिथि से पूर्व थी। पूर्व मिटको के विभिन्न श्रेणी के कर्मचारीगण के वेतनमान में संशोधन का विवरण जवाब के पैरा सं. 4 में अंकित किया गया। विलय योजना में वेतन संशोधन का कोई प्रावधान नहीं था। एम.एम.टी.सी. के कर्मचारीगण के लिए पिछला वेतन समझौता दिनांक 4-8-95 को हुआ था। समझौते की अवधि दिनांक 1-11-92 से 31-10-97 तक 5 वर्ष की थी । म.एम.टी.सी. कर्मचारी संघों की फेडरेशन ने दिनांक 8-1-98 को नया मांग पत्र प्रस्तुत किया तथा एम.एम.टी.सी. के कर्मचारीगण के वेतन संशोधन के संबंध में नये समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। माईका डिवीजन के स्टाफ कर्मचारी केडर को वेतन पूर्व समझौता दिनांक 5-10-91 के अनुरुप देय है। दिनांक 5-10-91 के पश्चात् कोई समझौता नहीं हुआ । बी.आई.एफ.आर. की सिफारिश के बाद पूर्व मिटको के कर्मचारीगण पर सेवा शर्तों तथा वेतनमान पूर्व मिटको वाले लागू होते हैं तथा वाणिज्य मंत्रालय में यह शर्त रखी गई थी कि मिटको कर्मचारीगण एम.एम.टी.सी. के वेतनमान की मांग नहीं करेंगे। समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत आवेदक यूनियन के सदस्यगण के संबंध में लागू नहीं होता। आवेदक यूनियन द्वारा समान वेतनमान व अन्य परिलाभ के संबंध में की गई मांग उचित नहीं है। अनावेदक कंपनी ने बी.आई. एफ. आर. के प्रावधानों के अनुसार कार्य किया है ।
5. क्लेम के समर्थन में विरेन्द्र सिंह, अध्यक्ष यूनियन का शपथपत्र पेश हुआ। उससे अनावेदक कम्पनी की तरफ से जिरह हुई। जवाब के समर्थन में कोई साक्ष्य पेश नहीं हुई।
7. आवेदक यूनियन की तरफ से जाहिर किया गया कि आवेदक यूनियन के सदस्यगण समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत के आधार पर अनावेदक कंपनी में कार्यरत कर्मचारीगण को प्रदत्त वेतन एवं परिलाभ के समान वेतन एवं परिलाभ प्राप्त करने के अधिकारी हैं। मिटको का विलय एम.एम.टी.सी. में होने के पश्चात् पूर्व में मिटको के कर्मचारीगण का वेतनमान में कोई संशोधन नहीं किया गया तथा पूर्व मिटको के कर्मचारीगण एवं अनावेदक कम्पनी के कर्मचारीगण के कार्य में कोई भिन्नता नहीं है। इस संबंध में आवेदक यूनियन ने मांग पत्र प्रेषित किया था जो उचित व स्वीकार किये जाने योग्य है। आवेदक यूनियन की तरफ से पेश की गई साक्ष्य का कोई खंडन अनावेदक कंपनी की तरफ से नहीं हुआ है। अनावेदक कंपनी को नियमानुसार पक्षकार बनाया गया है। आवेदक यूनियन के सदस्यगण मांग पत्र में वर्णानुसार वेतनमान व अन्य लाभ प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
8. अनावेदक कंपनी की तरफ से जाहिर किया गया कि आवेदक यूनियन ने एम.एम.टी.सी. को जरिये रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा पक्षकार बनया है, जबकि रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा इस विवाद में उचित पक्षकार नहीं है। रेफरेन्स में यह तय होना है कि क्या प्रबंधक, एम.एम.टी.सी., भीलवाड़ा प्रोपर पक्षकार है। उचित पक्षकार के संबंध में अनावेदक कंपनी का सर्टिफिकेट इन कार्पोरेशन पेश किया जाना आवश्यक था - जिससे स्पष्ट हो पाता कि इस विवाद में उचित पक्षकार कौन है। उचित पक्षकार के अभाव में यह रेफरेन्स/ विवाद पोषणीय नहीं है क्योंकि आवेदक यूनियन की तरफ से जो मांग की गई है उसकी स्वीकृति के लिए रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा सक्षम नहीं है तथा उचित पक्षकार के विरुद्ध ही अवार्ड निष्पादन योग्य होता है। उचित पक्षकार के अभाव में विवाद से संबंधित कार्यवाही निरर्थक है, अतः रेफरेन्स खारिज किये जाने योग्य है ।
9. सर्वप्रथम यह उल्लेख किया जाना अनुचित नहीं होगा कि न्यायाधिकरण को प्राप्त रेफरेन्स के मुताबिक आवेदक यूनियन द्वारा मांग पत्र अनेक्सर ए प्रबंधक, एम.एम.टी.सी. लि., भीलवाड़ा को प्रेषित किया गया, जबकि 8 शुद्धि पत्र दिनांक 6-9-02 के संलग्न मांग पत्र एनेक्सर ए क्षेत्रीय श्रम आयुक्त, केन्द्रीय श्रम विभाग (भारत सरकार) सिविल लाईन्स, अजमेर को सम्बोधित है। प्रबंधक, एम. एम.टी.सी. लि., भीलवाड़ा को सम्बोधित या प्रेषित कोई मांग पत्र एनेक्सर ए के रूप में न्यायाधिकरण को प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन इस संबंध में अनावेदक कंपनी की तरफ से कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है। आवेदक यूनियन की तरफ से प्रस्तुत स्टेटमैंट आफ क्लेम के पैरा सं. 10 में भी कथित मांग पत्र का विवरण दर्ज है, जो एनेक्सर ए में दर्ज विवरण के समान है। मामले की इन परिस्थितियों में एनेक्सर ए विवादित मांग पत्र होना माना जाता है।
10. अनावेदक कंपनी की तरफ से लिखित बहस के माध्यम से जो एक मात्र तर्क पेश हुआ है वह तर्क यह है कि एम.एम.टी.सी. जरिये रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा इस विवाद में उचित पक्षकार नहीं है तथा उचित पक्षकार के अभाव में यह विवाद पोषणीय नहीं है। यह स्वीकृत तथ्य है कि पूर्व माईका ट्रेडिंग कार्पोरेशन (मिटको) जो वर्तमान में माईका डिवीजन के रूप में जानी जाती है, एम. एम. टी. सी. लि. की सब्सीडरी थी तथा मिटको रुग्ण इकाई होने की वजह से 1992 में बी.आई.एफ. आर. को रेफर हुई तथा बाद में मिटको का विलय एम. एम. टी. सी. में हो गया। अनावेदक कंपनी की तरफ से प्रस्तुत जवाब ( हिन्दी अनुवाद) के शुरू में
[PART II - SEC. 3 (ii) ]
ही उल्लेख है कि " पूर्व माईका ट्रेडिंग कार्पोरेशन (मिटको) जिसे वर्तमान में माईका डिवीजन के रूप में जाना जाता है, के मामले को वर्ष 1992 में बी.आई.एफ.आर. के पास भेजा गया था। विस्तृत जांच-पड़ताल के बाद बी.आई. एफ.आर ने दिनांक 23 अप्रैल, 1993 को पूर्व मिटकोको ब घोषित कर दिया। तदनुसार बी. आई. एफ. आर. ने 8-4-1996 की मिटिंग में मिटको के एम.एम.टी.सी. लिमिटेड में विलय एवं उसके पुनर्वास-सहअमालगामेशन-सह-विलय प्लान को स्वीकृति (सेंक्शन) दी।" इस तरह से पूर्व मिटको, आवेदक यूनियन के सदस्यगण जिसके कर्मचारीगण है, का विलय दी मिनरल एंड मैटल्स ट्रेडिंग कार्पोरेशन आफ इंडिया (एम.एम.टी.सी.) में हो गया तथा इस एम. एम. टी. सी. का रिजनल कार्यालय, भीलवाड़ा में स्थित है। आवेदक यूनियन के सदस्यगण, जो कि पूर्व मिटको के कर्मचारीगण थे तथा मिटको का विलय एम. एम. टी.सी. में होने से वर्तमान में वे एम.एम.टी.सी. की माईका डिवीजन, भीलवाड़ा में कार्यरत होने बतलाये गये हैं। आवेदक यूनियन के कथनानुसार भीलवाड़ा में माईका डिवीजन में कार्यरत पूर्व मिटको के कर्मचारीगण के कार्य तथा भीलवाड़ा में ही एम. एम. टी. सी. में कार्यरत कर्मचारीगण के कार्य में कोई · भिन्नता नहीं है, जबकि उनको देय वेतन व परिलाभों में भिन्नता है। इस तरह की स्थिति में वेतन व परिलाभ में भिन्नता से संबंधित विवाद एम.एम.टी.सी. की भीलवाड़ा स्थित कार्यालय के प्रबंधन एवं आवेदक यूनियन के मध्य होना स्वाभाविक है - परिणामतः भीलवाड़ा स्थित एम.एम.टी.सी.का कार्यालय विचाराधीन विवाद में अनुचित पक्षकार नहीं है। आवेदक यूनियन द्वारा मांग पत्र एम. एम. टी.सी. के भीलवाड़ा स्थित प्रबंधन कार्यालय को प्रेषित किया गया तथा विवाद भी भीलवाड़ा स्थित प्रबंधन कार्यालय आवेदक यूनियन के मध्य उत्पन्न हुआ - जिस स्थिति में एम.एम.टी.सी. को जरिये रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा पक्षकार बनाया जाना किसी तरह से अनुचित नहीं कहा जा सकता । अधि. 1947 की धारा 2 (जी) के तहत "नियोजक" को परिभाषित किया गया है जिसमें स्थानीय प्राधिकारी या उसकी तरफ से संचालित उद्योग के संबंध में उस प्राधिकारी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को नियोजक माना गया है। एम.एम.टी.सी. की तरफ से संचालित उद्योग में भीलवाड़ा स्थित कार्यालय में रिजनल मैनेजर मुख्य कार्यकारी अधिकारी होना प्रतीत होता है। यदि किसी कार्य के लिए उच्चाधिकारियों की स्वीकृति आवश्यक है तो वह स्वीकृती संबंधित अधिकारी याने रिजनल मैनेजर द्वारा प्राप्त किया जाना संभव है। उच्चाधिकारियों द्वारा इस तरह की स्वीकृति प्रदान नहीं किये जाने की स्थिति में संबंधित अधिकारी द्वारा कथित कार्य से इनकार किया जा सकता है, लेकिन विचाराधीन मामले में इस तरह का प्रसंग नहीं है क्योंकि एम.एम.टी.सी. के रिजनल मैनेजर, भीलवाड़ा द्वारा इस तरह का कोई तर्क पेश नहीं किया गया है कि उसने किसी तरह की स्वीकृति के लिए प्रधान कार्यालय या उच्चाधिकारियों को लिखा । भीलवाड़ा स्थित प्रबंधन कार्यालय से आवेदक यूनियन का विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में आवेदक यूनियन द्वारा भीलवाड़ा स्थित कार्यालय के रिजनल मैनेजर को स्वाभाविक तौर पर पक्षकार बनाया गया - जिस प्रयोजनार्थ कंपनी के किसी सर्टिफिकेट आफ इनकार्पोरेशन को पेश किये जाने की आवश्यकत नहीं थी। यदि इस संबंध में किसी सर्टिफिकेट आफ इन कार्पोरेशन की आवश्यकता थी तो वह अनावेदक कंपनी द्वारा पेश किया जाना संभव था। सर्टिफिकेट आफ इनकार्पोरेशन के संबंध में अनादेवक कंपनी की आपत्ति निरर्थक है। इसके अलावा अधि. 1947 के तहत समुचित सरकार द्वारा प्रेषित विवाद का
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मुजफ्फरनगर। नई मंडी पुलिस ने अंकित विहार में एक मकान पर छापा मारकर वहां नकली शराब बना रहे तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। एक आरेपी मौक से भागने में सफल हो गया। पुलिस ने मौके से सैकडों बने हुए पव्वे, खाली पव्वे, रैपर, बार कोड, कैमिकल व अन्य सामान जब्त किया है।
एसपी सिटी सतपाल अंतिल ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि नई मंडी पुलिस को सूचना मिली थी कि अंकित विहार स्थित एक मकान में कुछ लोग अवैध रूप से शराब बना रहे है। इस सूचना पर पुलिस ने बताये गये स्थान पर छापा मारा तो वहां चार लोग शराब बना रहे थे पुलिस ने मौके से तीन लोगों को दबोच लिया। जबकि एक मौके से फरार हो गया। एसपी सिटी ने बताया कि पकडे गये आरोपी सौरभ उर्फ मन्नू निवासी अंकित विहार, नीटू निवासी शिवनगर, सन्नी निवासी गांव सुहागा थाना दौराला है। मौके से फरार आरोपी संजीव निवासी अंकित विहार है। एसपी सिटी ने बताया कि पुलिस ने मौके से साढे पांच सौ पव्वे बने हुए तोहफा ब्रांड, खाली पव्वे रैपर, कैमिकल, बार कोड व अन्य उपकरण बरामद किये है। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर पकडे गये आरोपियों को जेल भेज दिया है और फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास कर रही है।
मुजफ्फरनगर। राष्ट्रीय छात्र लोकदल के प्रदेश महासचिव के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति को सम्बोधित एक ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।
ज्ञापन में राष्ट्रीय छात्र लोकदल के प्रदेश महासचिव समद खान ने कहा है कि महामारी के चलते जनता आर्थिक रूप से बहुत परेशान है। पैट्रोल कम्पनियों ने लगातार डीजल व पैट्रोल के दाम बढा दिये है इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड रहा है। किसानों को अपनी फसल के लिए डीजल कम कीमत पर नहीं मिल पा रहा है। इसलिए किसानों की फसलों का लागत मूल्य भी निकलना मुश्किल है। इसलिए पैट्रोलियम पदार्थो से टैक्स कम कर जनता को राहत दी जाये। इस दौरान अंकित सहरावत, पराग चौधरी, रवि कुमार एडवोकेट, मोनू कुमार एडवोकेट, नवैद फरीदी, दीपक राठी, आसिफ पठान आदि मौजूद रहे।
खतौली। थाना खतौली पर उ0नि0 नरेश कुमार भाटी द्वारा अभियुक्त अनिल पुत्र राजवीर सिंह निवासी ग्राम गालिबपुर थाना खतौली जनपद मुजफ्फरनगर को ढाकपुरी मोड के पास से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 01 तमंचा मय 02 कारतूस 315 बोर बरामद किए गए।
मुजफ्फरनगर। थाना पुरकाजी पर उ0नि0 प्रेमपाल सिंह द्वारा वॉछित अभियुक्त धर्मसिंह पुत्र रूपचन्द निवासी मौहल्ला झोझगान कस्बा व थाना पुरकाजी जनपद मुजफ्फरनगर को लक्सर रोड कस्बा पुरकाजी से गिरफ्तार किया गया। वहीं थाना मीरापुर पर उ0नि0 करन नागर द्वारा वॉछित अभियुक्त शादाब पुत्र नूर मौहम्मद निवासी मुझेडा सादात थाना मीरापुर जनपद मुजफ्फरनगर को मोन्टी तिराहे से गिरफ्तार किया गया। अभियोग की विवेचना उ0नि0 श्री करन नागर द्वारा की जा रही है।
जानसठ। थाना जानसठ पर उ0नि0 मनमोहन सिंह द्वारा अभियुक्त राहुल पुत्र सन्तराम निवासी ग्राम सादपुर थाना जानसठ जनपद मुजफ्फरनगर को बसाइच मोड से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 10 लीटर कच्ची नाजायज शराब बरामद की गयी।
पुरकाजी। थाना पुरकाजी पर उ0नि0 श्री जीतसिंह मय हमराहिगण द्वारा अभियुक्त मीर हसन पुत्र नूर मौहम्मद निवासी ग्राम भूराहेडी थाना पुरकाजी जनपद मुजफ्फरनगर को भुराहेडी चैक पोस्ट से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 310 ग्राम चरस बरामद की गयी।
मुजफ्फरनगर। थाना ककरौली पर उ0नि0 वीर नारायण सिंह द्वारा अभियुक्त हुसैन अहमद पुत्र नूर मौहम्मद निवासी टन्ढेढा जनपद मुजफ्फरनगर को प्राइमरी स्कूल के पास ग्राम टन्ढेडा से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 20 पव्वे देशी नाजायज शराब बरामद की गयी।
वहीं थाना भोपा पर उ0नि0 जगपाल सिंह द्वारा अभियुक्त सचिन पुत्र रूपचन्द निवासी ग्राम शुक्रतारी थाना भोपा जनपद मुजफ्फरनगर को जगंल ग्राम सुक्रतारी से गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त के कब्जे से 10 लीटर कच्ची नाजायज शराब बरामद की गयी।
मुजफ्फरनगर। संचारी रोग नियंत्रण अभियान का शुभारम्भ विधायक उमेश मलिक ने फीता काटकर किया। जिला महिला अस्पताल में आयोजित कार्यक्रम में सीएमओ डा. प्रवीण चोपडा ने विधायक उमेश मलिक व सीडीओ आलोक यादव का पुष्प भेंटकर स्वागत किया। इस अभियान के दौरान ही ५ जुलाई से घर घर टीम पहुंचकर लोगों में कोरोना संक्रमण की जांच करने का काम शुरू करेंगी।
जनपद मुजफ्फरनगर में आज संचारी रोग नियंत्रण अभियान का जिला महिला अस्पताल के अंदर फीता काटकर शुभारंभ किया गया। सीएमओ डा. प्रवीण चोपड़ा ने विधायक उमेश मलिक व सीडीओ आलोक यादव का फूल देकर स्वागत किया, वही विधायक ने बच्चां को अपने हाथों से दवाई पिला कर अभियान का शुभारंभ किया। विधायक व सीएमओ ने बताया कि ५ जुलाई से लगातार जनपद में घर घर में जाकर डाक्टरां की टीम घर में मौजूद सभी लोगों का कोरोना वायरस का टैस्ट करेगी। इस दौरान अगर किसी व्यक्ति में कोई भी सिप्टेम मिलता है तो फिर उसका अस्पताल में उपचार किया जाएगा। संचारी रोग नियंत्रण अभियान १ जुलाई से ३१ जुलाई २०२० तक लगातार चलेगा। कोविड १९ को देखते हुए जिलाधिकारी सेल्वा कुमारी जे. द्वारा संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम को लगातार जन जन तक पहुंचाने के लिए महिला जिला अस्पताल की टीम को दिशा निर्देश दे दिया गया है, जिससे मरीजों को कोरोना वायरस के साथ-साथ बाकी बीमारियों के संक्रमण से भी बचाया जा सके। संचारी रोग नियंत्रण अभियान का शुभारंभ बुढ़ाना विधायक उमेश मलिक व सीडीओ आलोक यादव द्वारा फीता काटकर शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम में सीएमओ डा. प्रवीण चोपड़ा, महिला अस्पताल की सीएमएस डा. अमृता रानी भाम्बे, डा. गीतांजलि वर्मा, डा. अलका सिंह सहित जिला अस्पताल के चिकित्सक मौजूद रहे।
मुजफ्फरनगर। भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन द्वारा पचेंडा रोड स्थित कार्यालय पर आयोजित एक वार्ता जिलाध्यक्ष प्रभात जौहरी की अध्यक्षता में हुई। वार्ता के दौरान यूनियन के जिला महासचिव योगेंद्र शर्मा द्वारा जानकारी दी गयी कि भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन के नये विंगों का गठन किया गया है। जिसमें ई रिक्शा एंड आटो रिक्शा, टैम्पू विंग, भवन व सन्ननिर्माण, भट्टा मजदूर यूनियन विंग व रेहडा पटरी विंग बनायी गयी है। इनके जिलाध्यक्ष क्रमशः राहुल रानिया, विजय कुमार, प्रविंद्र सिंह व अली कुमार को बनाया गया है। यूनियन के द्वारा किये गये कार्यो को मजदूरों तथा आम जन तक पहुंचाने के लिए दिव्या झाम्ब को मीडिया प्रभारी नियुक्त किया गया है। योगेंद्र शर्मा ने बताया कि पूर्व में लाकडाउन के दौरान भारतीय मजदूर ट्रेड यूनियन ने मुजफ्फरनगर में कंट्रोल रूम बनाकर प्रशासन के सहयोग से समस्त भारत में प्रवासी मजदूरों को उनके गृह जनपद भिजवाया तथा जरूरतमंद लोगो ंको कच्चा व पक्का राशन वितरित कराया। उन्होंने कहा कि यूनियन का मुख्य उद्देश्य मजदूरों एवं कामगारों के हितों की रक्षा करना एवं उनका उत्पीडन रोकना है और उन्हे समाज में बराबरी का हक दिलाकर सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का लाभ मजदूरों को दिलाना है। इस दौरान नीलम चौधरी, संजय कुमार, अम्बरीश कुमार, सूजर बघेल, नम्रता जौहरी, अमित चौधरी, दिव्या झाम्ब, मनोज कुमार, जितेदं्र नोटियाल, सुधीर कुमार एडवोकेट, अनिल कुमार, सचिन कुमार, श्रीमती हाजरा कस्सार, श्रीमती राजबाला, श्रीमती सविता, श्रीमती सुरभि, गौरव शर्मा, सुशील कुमार, अमित करानिया, अंकुर, हेमन्त शर्मा आदि मौजूद रहे।
मुजफ्फरनगर। प्राथमिक विद्यालय एरिया नम्बर 2 यूपीएस पटेल कन्या विद्यालय में पौधारोपण करती खण्ड शिक्षा अधिकारी नगर डा. सविता डबराल। इस अवसर पर प्रधानाध्यापक श्रीमती शबीना, सहायक शिक्षक अमरपाल, शैली, आयशा, सुल्ताना, मनोज एवं कुछ स्कूली बच्चे मौजूद रहे।
मुजफ्फरनगर। मदर्स प्राइड प्ले स्कूल मे आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया गया। भारत में हर वर्ष १ जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है कि डॅाक्टरों को उनके अमूल्य योगदान के दिए सम्मान दिया जाए। डॅाक्टर समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्कूल के सभी बच्चो ने इस दिवस को बड़ी ही धूम धाम से मनाया। जिसमे उन्हीने अपनी शिक्षिकाओं और माताओं के साथ मिलकर यह दिवस मनाया और इस चिकित्सक दिवस के बारे मैं जाना। कुछ बच्चो ने डॉक्टर की तरह सफ़ेद कोट पहनकर रोल प्ले किया जिसमे उन्हीने अपने घर के सदस्यों का इलाज किया। वही कुछ बच्चो ने सुन्दर सुन्दर आकृति बनाई कार्ड बनाकर सभी डॉक्टर को आभार जताया।
इस समय कोरोना महामारी से बचाव में डॅाक्टर अपनी जान की परवाह किए बगैर देश सेवा में लगे हुए। उन सभी को हम सभी मदर प्राइड की टीम की और से बहुत बहुत धन्यवाद । इस अवसर पर स्कूल की डायरेक्ट डॉ रिंकू एस गोयल जी ने सभी डॉक्टर को उनके अमूल्य योगदान के लिये आभार व्यक्त किया और उन सभी को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस की शुभकामनाएं दी और सभी बच्चो के कार्य को खूब प्रोत्साहित किया। इस दिवस को सफल बनाने मे स्कूल की सभी शिक्षिकाओं ने सहयोग किया।
भोपा। भाई बहन के बीच किसी बात को लेकर हुआ आपसी विवाद में एक युवक ने अपनी बहन की ससुराल पहुंचकर उसे गोली मारकर घायल कर दिया। मौके पर पहुंची पुलिस ने विवाहिता को उपचार के लिए अस्पताल भिजवाया।
जानकारी के अनुसार बागपत निवासी एक युवक का अपनी बहन प्रियंका पत्नी सचिन के साथ विवाद हो गया। बताया जाता है कि उक्त युवक अपनी बहन प्रियका की ससुराल कस्बा भोपा आया हुआ था। जहां आपसी विवाद में उक्त युवक ने अपनी बहन प्रियंका को गोली मार दी। जिससे वह घायल हो गयी। मामले की जानकारी मिलते ही पडौसी मौके पर पहुंच गये। वहीं पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंच गयी। मौके पर पहुंची पुलिस ने घायल महिला को तुरंत ही उपचार हेतु चिकित्सालय में भिजवा दिया।
मुजफ्फरनगर। कोरोना पॉजिटिव मिलने पर हॉट स्पॉट घोषित कर सील किए गए क्षेत्रों में सख्ती का असर दिखने लगा है। यहां पर लोगों की आवाजाही कम होने लगी है। स्वास्थ्य विभाग लगातार लोगों को जागरूक कर रहा है। सील क्षेत्रों में दुकानें नहीं खुली और सन्नाटा पसरा रहा।
कोरोना का बढ़ता ग्राफ चिता का सबब बना हुआ है। कोरोना पॉजिटिव मिलने पर लगातार हॉट स्पॉट की संख्या में इजाफा हो रहा है। सील क्षेत्रों में रहने वाले लोग नियम कायदों को ताक पर रखकर घरों से बाहर निकल रहे हैं। लोगों की आवाजाही को देखकर प्रशासन ने सख्त रवैया अपनाते हुए सील क्षेत्रों के लोगों को चेतावनी देकर घरों में रहने की नसीहत दी थी। इसके अलावा यहां पर पुलिस भी तैनात कर दी गई थी। सख्ती का असर सील क्षेत्रों में दिखाई देने लगा है। मंगलवार को सील क्षेत्रों में दुकानें नहीं खुली और लोगों ने भी अपने घरों से निकलने से परहेज किया। सील क्षेत्रों की ज्यादातर गलियों में सन्नाटा पसरा रहा। कोरोना पॉजिटिव मिलने पर शहर के मोहल्ला पंचमुखी, रामपुरी, केशवपुरी, शांतिनगर, लद्दावाला, खालापार, रहमतनगर को हॉट स्पॉट घोषित कर सील कर दिया था। अकेले पंचमुखी मोहल्ले में आधा दर्जन से ज्यादा पॉजिटिव मिलने पर यहां ज्यादा सख्ती बरती जा रही है।
मुजफ्फनगर। कोरोना पॉजिटिव दूसरे जूता व्यापारी की भी आज सुभारती मे उपचार के दौरान मौत हो गई। विदित हो कि 10 दिन पूर्व सगे भाई की भी मौत हो चुकी है। वैश्विक आपदा कोविड-19 के बढते प्रकोप के कारण देश संकट के दौर से गुजर रहा है। ऐसी परिस्थिती मे देश प्रदेश के साथ साथ जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड रही है। कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जन जीवन प्रभावित होता नजर आ रहा है। जनपद मे भी कोरोना के कई मरीज सामने आए है। तथा कोरोना पॉजिटिव की उपचार शहर से बाहर उपचार के दौरान मौत हो चुकी है। वहीं दूसरी और शाहपुर जूता व्यापारी के भाई की मेरठ के सुभारती अस्पताल मे उपचार के दौरान हुई मौत से परिजनो मे शोक छा गया।
बुढ़ाना। महिला की मौत से क्षुब्ध परिजन हत्यारोपी पति के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर एसएसपी कार्यालय पहुंचे। जानकारी के अनुसार बुढ़ाना क्षेत्र के काजीवाडा निवासी एक युवक का विवाह पिछले करीब छह वर्षो से अपनी पत्नी के साथ हरियाणा के वल्लभगढ में रह रहा था। बताया जाता है कि उक्त युवक की पत्नी की हरियाणा के वल्लभगढ में संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गयी। परिजनों का आरोप था कि महिला के पति ने उसकी हत्या की है जिसके चलते महिला के परिजन महिला के शव को लेकर हत्यारोपी के खिलाफ कार्यवाही की मांग के चलते एसएसपी कार्यालय पहुंचे। पुलिस अधिकारियों द्वारा पूरे मामले की जानकारी लेने तथा समझाने के पश्चात उक्त लोगों का गुस्सा शांत हुआ। पुलिस सूत्रों का कहना है कि महिला की मौत हरियाणा के वल्लभगढ में हुई है अतः इस ंसबंध में घटनास्थल वल्लभगढ होने के कारण वहीं से उक्त मामले में कार्यवाही हो सकेगी।
मुजफ्फरनगर। पालिकाध्यक्ष और ईओ के बीच चला आ रहा विवाद अब इतना बढ गया है कि इसमें निदेशालय को भी शामिल किया जा रहा है। पालिकाध्यक्ष ने ईओ को नोटिस भेजते हुए पालिका बोर्ड का तत्काल विशेष सत्र बुलाते हुए नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा-58 के तहत ईओ को कार्यमुक्त करने की चेतावनी दी है। इस संबंध में ईओ विनय कुमार मणि त्रिपाठी ने निदेशालय से आदेश मंगाया है। शासनादेश में ईओ को कार्यमुक्त करने का पालिकाध्यक्ष को कोई अधिकारी नहीं दिया गया है। पालिकाध्यक्ष अंजू अग्रवाल ने नगर पालिका ईओ विनय कुमार मणि त्रिपाठी पर आदेशों का पालन न करने का आरोप लगाते हुए नोटिस भेजा है। ठेकेदारों के प्रकरण में पालिकाध्यक्ष कई बार ईओ को भुगतान करने का निर्देश दे चुकी है, लेकिन फिर भी ईओ ने ठेकेदारों का भुगतान नहीं किया है। जिस कारण ठेकेदारों ने कई दिन तक नगर पालिका परिसर में धरना दिया। इस संबंध में पालिकाध्यक्ष ने ईओ पर कडी नाराजगी जताई है।
पालिकाध्यक्ष ने मजबूरीवशं नगर पालिका परिषद बोर्ड का तत्काल विशेष सत्र बुलाते हुए नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा -58 के अन्तर्गत ईओ को पालिका से कार्यमुक्त करने की चेतावनी दी है। ईओ विनय कुमार मणि त्रिपाठी ने बताया कि पालिकाध्यक्ष को विशेष बैठक बुलाकर ईओ को कार्यमुक्त करने का कोई अधिकार नहीं है।
ईओ ने बताया कि शासनादेश में स्पष्ट रूप से दिया गया है कि केन्द्रीयित सेवा के कार्मिकों (अधिशासी अधिकारी, राजस्व, लेखा संवर्ग) को पालिका पंचायत बोर्ड द्वारा अनाधिकृत ढंग से बोर्ड प्रस्ताव के तहत कार्यमुक्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पालिकाध्यक्ष द्वारा दिए गए नोटिस का जवाब तैयार किया जा रहा है।
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संसाधनों की उपलब्धता अनुसार इसी प्रकार के अन्य कार्यों की वरीयता को दृष्टिगत रखते हुये पूर्ण करने के प्रयास किये जायेंगे, जिस हेतु निश्चित समय-सीमा बताना संभव नहीं है।
132 के.व्ही विद्युत सब स्टेशन बेलखेड़ा का निर्माण कार्य [ऊर्जा]
37. ( क्र. 1621 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बरगी विधान सभा क्षेत्र के 132 के. व्ही. विद्युत सब स्टेशन बेलखेड़ा के निर्माण की निविदा प्रक्रिया पूर्ण हो कर निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया है? यदि नहीं, तो निर्माण कार्य कब तक प्रारम्भ होगा? (ख) कार्य के पूर्ण होने की अवधि क्या है ? अब तक कितने प्रतिशत कार्य हुआ है?
ऊर्जा मंत्री ( श्री पारस चन्द्र जैन ) : (क) बरगी विधानसभा क्षेत्रान्तर्गत 132 के.व्ही. विद्युत सब स्टेशन बेलखेड़ा के निर्माण हेतु मेसर्स बी. एस. लिमिटेड, हैदराबाद को दिनांक 01.03.2014 को कार्यादेश जारी किया गया था। लगातार प्रयास के उपरांत भी कार्य की प्रगति संतोषजनक नहीं पाये जाने के कारण उक्त कार्यादेश फरवरी 2017 में निरस्त किया गया। शेष कार्य संपादित कराने हेतु निविदा की प्रक्रिया अंतिम चरण में है एवं माह दिसम्बर 2017 में नवीन कार्यादेश जारी किया जाना संभावित है। नवीन कार्यादेश जारी किये जाने के उपरांत उपकेन्द्र के शेष निर्माण कार्य प्रारंभ किए जा सकेंगे। (ख) उपकेन्द्र निर्माण का लगभग 15 प्रतिशत कार्य किया जा चुका है। निविदा के आधार पर चयनित एजेंसी के कार्यादेश जारी करने के उपरांत शेष कार्य पूर्ण करने में लगभग 12 माह का समय लगना संभावित है।
माईनर के निर्माण कार्य की प्रगति नर्मदा घाटी विकास]
38. ( क्र. 1622 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) बरगी विधान सभा क्षेत्र की निर्माणाधीन बेलखेड़ी एवं पिपरिया माइनर नहरों का निर्माण कार्य आज दिनांक तक कितना हो चुका है? कितना निर्माण कार्य शेष है? दोनों नहरों का कार्य कब तक पूर्ण होगा ? (ख) बाँयी तट बाहर की शहपुरा माइनर जो कि ग्राम अंधुआ-बिलखरवा मगरमुंआ होते हुये आगे की ओर जाती है की सफाई, रिपेयर आदि पर विगत 3 वर्षों में मदवार कितनी राशि व्यय की गई? उक्त शहपुरा माइनर में विगत 3 वर्षों में कब-कब पानी छोड़ा गया? नहर में टेल तक पहुंचता है या नहीं ?
राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास ( श्री लालसिंह आर्य ) : (क) बरगी विधानसभा क्षेत्र की निर्माणाधीन बेलखेड़ी टेल माइनर के आर. डी. 0.00 कि.मी. से आर.डी. 1.575 कि.मी. तक तथा 1.730 कि.मी. से 15.00 कि.मी. तक का कार्य पूर्ण है। इसके 1.575 कि.मी. से 1.730 कि.मी. के मध्य ओपन ट्रफ एक्वाडक्ट का निर्माण कार्य शेष है। बेलखेड़ी टेल माइनर की वितरण नहर प्रणाली में 60 प्रतिशत कार्य पूर्ण है। बेलखेड़ी टेल माइनर पर प्रस्तावित ओपन ट्रफ एक्वाडक्ट की निविदा आमंत्रित करने की कार्यवाही प्रगति पर है। पिपरिया उपवितरण प्रणाली का 65 प्रतिशत कार्य पूर्ण है। बेलखेड़ी एवं पिपरिया नहर तथा उनकी प्रणाली के शेष कार्यों का निर्माण प्रगति पर है। इन दोनों ही नहरों के शेष कार्यों को दिसम्बर 2018 तक पूर्ण किया जाना लक्षित है। (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के
परिशिष्ट - "सत्तावन"
प्रपत्र-"अ" एवं "ब" अनुसार है। शहपुरा वितरण नहर की कुल लंबाई 24.00 कि.मी. में से 21.00 कि.मी. तक पानी पहुंचाया जा सका है, नहर के टेल तक पानी नहीं पहुंचता है।
बरबटी उद्गहन सिंचाई योजना में विलम्ब [नर्मदा घाटी विकास]
39. ( क्र. 1623 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्नकर्ता के प्रश्न क्रमांक 2236 दिनांक 25.07.2017 के उत्तर (क) एवं (ख) में बताया था कि बरबटी उद्वहन सिंचाई योजना के ठेकेदार द्वारा निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं करने के कारण 30.06.2017 को अनुबंध विच्छेद कर दिया गया है एवं नई एजेंसी निर्धारित होने के पश्चात् 18 माह में कार्य पूर्ण किया जाना लक्षित है ? (ख) यदि हाँ, तो क्या उक्त सिंचाई योजना की निविदा पुनः जारी की गयी एवं स्वीकृत की गयी ? यदि हाँ, तो कार्य कब प्रारम्भ होगा?
राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास ( श्री लालसिंह आर्य ) : (क) जी हाँ । (ख) पुनः निविदा जारी नहीं की गई है। तकनीकी कठिनाई के कारण डी. पी. आर. संशोधित की जा रही है। तदोपरांत कार्यवाही की जाएगी।
नवीन आंगनवाड़ी प्रारम्भ करना
[ महिला एवं बाल विकास]
40. ( क्र. 1638 ) श्री बलवीर सिंह डण्डौतिया : क्या महिला एवं बाल विकास मंत्री महोदया यह बताने की कृपा करेंगी कि (क) क्या लगभग 8-10 माह पूर्व परियोजना अधिकारी जनपद अम्बाह एवं मुरैना द्वारा दिमनी विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत नवीन आंगनवाड़ी केन्द्र व उपकेन्द्र प्रारम्भ करने बावत् जानकारी मांगी गई थी, जो प्रश्नकर्ता द्वारा प्रस्तुत कर दी गयी थी। (ख) क्या (क) में वर्णित प्रस्तुत जानकारी अनुसार नवीन केन्द्र प्रारंभ कर दिये गये हैं अथवा नहीं, यदि नहीं, तो क्यों व कब तक प्रारंभ कर दिये जायेंगे?
महिला एवं बाल विकास मंत्री ( श्रीमती अर्चना चिटनिस ) : (क) जी हाँ। प्रश्नकर्ता माननीय विधायक द्वारा दिनांक 13/05/2016 को विधानसभा क्षेत्र दिमनी अन्तर्गत जनपद पंचायत अम्बाह में 01 आंगनवाड़ी केन्द्र तथा 01 मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र एवं जनपद पंचायत मुरैना के लिये 05 आंगनवाड़ी केन्द्र खोलने का प्रस्ताव प्रेषित किया गया था। इसके पश्चात पुनः माननीय विधायक द्वारा दिनांक 23/05/2016 को जनपद पंचायत अम्बाह में 01 मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र खोलने का प्रस्ताव दिया गया था। (ख) नवीन आंगनवाड़ी / मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र खोलने के भारत सरकार द्वारा जनसंख्या मापदण्ड निर्धारित किये गये है। इन जनसंख्या मापदण्डों की पूर्ति होने पर नवीन आंगनवाड़ी केन्द्र/मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र खोले जाने का प्रावधान है। प्रश्नांश (क) अनुसार माननीय विधायक द्वारा विधानसभा क्षेत्र दिमनी के लिये 08 आंगनवाड़ी केन्द्र एवं मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र खोलने के प्राप्त प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित मापदण्डों की पूर्ति अनुसार 03 आंगनवाड़ी केन्द्र तथा 03 मिनी आंगनवाड़ी स्वीकृत कर संचालित किये गये है। शेष में से ग्राम पंचायत अन्तर्गत ग्राम चांदपुर की कुल जनसंख्या 1448 है जहाँ पूर्व से मापदण्ड अनुसार 02 आंगनवाड़ी केन्द्र
संचालित है एवं ग्राम तुतवास में 01 केन्द्र संचालित है, जनसंख्या मापदण्डों की पूर्ति न होने के कारण प्रस्ताव अनुसार अतिरिक्त केन्द्र खोला जाना संभव नहीं है। अतः शेष का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता है ।
उपलब्ध कराये गये आवंटन के संबंध में [ अनुसूचित जाति कल्याण]
41. ( क्र. 1690 ) श्री हेमन्त सत्यदेव कटारे : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या प्रदेश सरकार द्वारा अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्रामों के समग्र विकास हेतु अनुसूचित जाति कल्याण के संचालनालय से विकास कार्यों हेतु उपलब्ध करायी जाती है ? भिण्ड जिले में 2015-16 से 2017-18 तक विकासखण्डवार किन-किन अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्रामों को कितनी कितनी राशि किस-किस कार्य हेतु स्वीकृत की गई एवं आवंटन का उपयोग किया जाकर कार्य कराये गये या नहीं? स्पष्ट करें। (ख) क्या भारत सरकार द्वारा जनगणना के आंकड़े वर्ष 2011 में प्रकाशित किये गये उनको स्व-विवेक से बदलकर मनमाने ढंग से जिला स्तर पर अनुसूचित जाति बस्ती के ग्रामों की जनसंख्या में परिवर्तन किया जाकर सिर्फ गोहर विकासखण्ड के ग्रामों को लाभ देने के लिये कार्यवाही की गई जबकि अटेर विधान सभा क्षेत्र में जनगणना के अनुसार अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्रामों को विकास से वंचित रखने के लिये दोषी कौन है? क्या उनके विरुद्ध कार्यवाही की जावेगी। (ग) क्या अटेर विकास खण्ड के वास्तविक रूप से अनुसूचित जाति बाहुल्य ग्रामों को समग्र विकास हेतु राशि उपलब्ध करायी जावेगी ? यदि हाँ, तो कब तक।
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी हाँ। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी नहीं। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (ग) जी हाँ। वर्ष 2017-18 में अटेर विकासखण्ड हेतु रूपये 39.75 लाख उपलब्ध कराई गई है।
नहरों के पानी की वितरीका समिति का गठन [नर्मदा घाटी विकास]
42. (क्र. 1781 ) डॉ. कैलाश जाटव : क्या राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) गोटेगांव विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत समस्त नहरों के पानी वितरीका समिति का गठन कब से नहीं किया गया? इसका क्या कारण हैं? अगर नहीं किया गया है तो कब तक कर दिया जावेगा? (ख) विधानसभा क्षेत्र गोटेगांव अंतर्गत वितरण प्रणाली का क्या नियम है? क्या पानी वितरण से संबंधित विवरण किसानों को दिया जाता है? इसके लिए शासन द्वारा कोई बजट का प्रावधान है, यदि हाँ, तो वर्ष 2016-17, 2017-18 के मध्य कितनी कितनी राशि, कहाँ-कहाँ प्रदान की गई? (ग) गोटेगांव विधानसभा क्षेत्र में 2016-17, 2017-18 में कितनी नवीन नहरों / उपनहर/बरहा की स्वीकृति प्रदान की गई ? सूची प्रदान करें। स्वीकृत कार्यों में से कितने कार्य प्रारंभ कर दिये गये एवं कितने कार्य प्रारंभ होना शेष है?
राज्यमंत्री, नर्मदा घाटी विकास ( श्री लालसिंह आर्य ) : (क) वितरिका समिति का गठन जल उपभोक्ता संथाओं के प्रभावशील होने के बाद से ही नहीं हुआ है। वितरिका समिति के चुनाव संपन्न कराने के लिए अधिसूचना के प्रकाशन हेतु कार्यवाही प्रचलन में है। अधिसूचना प्रकाशन के उपरांत चुनाव द्वारा वितरिका समिति का गठन किया जाना लक्षित है । (ख) वितरण प्रणाली के लिए म.प्र.
सिंचाई प्रबंधन में कृषकों की भागीदारी अधिनियम 1999 अद्यतन संशोधनों सहित प्रभावशील है। पानी वितरण कार्य जल उपभोक्ता संथाओं द्वारा ही किया जाता है। शासन द्वारा संथा को रूपांकित सिंचाई क्षमता के आधार पर नहरों के रख-रखाव हेतु रूपये 60/- प्रति हेक्टेयर की दर से राशि दी जाती थी जिसे दिनांक 20/03/2017 से रूपये 100/- प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। वर्ष 2016-17 एवं 2017-18 में विधानसभा क्षेत्र गोटेगॉव के अंतर्गत संथाओं को रूपये 29.51 लाख की राशि प्रदान की गई है। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-"अ" अनुसार है। (ग) वर्ष 2016-17 एवं 2017-18 में किसी भी नवीन नहर / उपनहर की स्वीकृति प्रदान नहीं की गई है। वर्ष 2016-17 में बरहा की कुल 271 स्वीकृतियां एवं 2017-18 में कुल 106 स्वीकृतियां दी गई हैं। कुल 377 स्वीकृत कार्यों में से 210 कार्य प्रारंभ किये गये एवं शेष 167 अप्रारंभ कार्यों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र -"ब" अनुसार है।
शिक्षित बेरोजगोरों को रोजगार उपलब्ध कराया जाना [ अनुसूचित जाति कल्याण]
43. ( क्र. 1782 ) डॉ. कैलाश जाटव : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) नरसिंहपुर जिले की विधानसभा क्षेत्र गोटेगांव में विभाग द्वारा बेरोजगारी उन्मूलन एवं शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराये जाने हेतु कौन-कौन सी योजना संचालित है? संचालित समस्त योजनाओं की नियमावली की प्रतिलिपि उपलब्ध करावें । (ख) प्रश्नांश (क) अनुसार विधानसभा क्षेत्र में जो योजनायें संचालित हैं इन योजनाओं द्वारा कितने हितग्राहियों को वर्ष दिसम्बर, 2013 से वर्तमान तक वर्षवार कौन-कौन सी योजना से लाभ प्रदान किया गया? सूची उपलब्ध करावें। (ग) ऐसे कितने आवेदन हैं, जिनमें विभाग द्वारा रोजगार प्रदान किये जाने हेतु लोन स्वीकृत किया गया, किन्तु बैंक द्वारा लोन की राशि हितग्राही को प्रदान नहीं की गई ? इस हेतु विभाग द्वारा बैंक से राशि स्वीकृत न किये जाने को लेकर शासन स्तर पर कार्यवाही की गई, यदि हाँ, तो अवगत करावें। मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) म.प्र. राज्य सहकारी अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा बेरोजगारी उन्मूलन एवं शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराये जाने हेतु मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना, सावित्री बाई फुले स्व-सहायता समूह योजना संचालित है। संचालित योजनाओं की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'अ' अनुसार है । (ख) प्रश्नांश 'क' अनुसार संचालित योजनाओं से दिसम्बर, 2013 से वर्तमान तक वर्षवार / योजनावार लाभान्वित हितग्राहियों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र 'ब' अनुसार है। (ग) विभाग द्वारा आवेदक को रोजगार प्रदान किये जाने हेतु ऋण आवेदन पत्रों की अनुशंसा कर बैंकों को ऋण स्वीकृति हेतु प्रेषित किये जाते हैं। बैंक द्वारा ऋण राशि स्वीकृत की जाती है। विधानसभा क्षेत्र गोटेगांव के 140 ऋण आवेदन बैंकों को प्रेषित किये गये जिसमें से बैंक ने 90 प्रकरण स्वीकृत किये। 50 प्रकरण बैंक स्तर पर विचाराधीन हैं ।
विभाग के छात्रावासों के भोजन की गुणवत्ता [जनजातीय कार्य]
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मिलका या घानीका तेल
कहाँ कैसे जाते है, इसका भी अध्ययन किया है, जिसके परिणामस्वरूप वे लगभग वाजार भावपर ही अपना तेल बेच सकते है और इस कारण उनके तेलकी तुरन्त खपत हो जाती है। उनका तेल मशीनके तेलसे बढ़िया होता है, क्योकि उसमें तो सामान्यत मिलावट होती है और वह ताजा भी नही होता। लेकिन वघकि स्थानीय बाजार में वह मिलके बने तेलके साथ सफलतापूर्वक होड़ कर पाते है, श्री झवेरभाईको इतने भरसे सन्तोप नही है। उन्होने तो इस रहस्यको भी ढूंढ निकाला है कि मिलका बना तेल घानीके तेलकी अपेक्षा क्यो सस्ता होता है। वे तीन कारण बताते हैं, जिनमें से दो अपरिहार्य है। एक तो पूंजी है और दूसरा मशीनकी तेलकी अन्तिम बूँदतक निकाल लाने की क्षमता और वह भी घानीसे कम समयमें । किन्तु तेलके मिल मालिकको दलालो और आढतियोको जो कमीशन देना पड़ता है उससे इन लाभोका कोई अर्थ नहीं रह जाता। किन्तु तीसरा कारण है मिलावट और इससे श्री झवेरभाई तबतक पार नहीं पा सकते जबतक कि वे भी यही तरीका अख्तियार न कर ले। और यह तो स्वभावत. वे नही करेंगे। अतएव उनका सुझाव है कि मिलावटको कानून द्वारा रोका जाना चाहिए। यदि मिलावट के विरुद्ध कोई कानून मौजूद है तो उसको लागू करके अन्यथा कोई नया कानून बनाकर और तेलकी मिलोको लाइसेंस जारी करके ऐसा किया जा सकता है।
श्री झवेरभाईने ग्रामीण घानीके ह्रासके कारणोकी जाँच भी की है। सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि तेली नियमित रूपसे तिलहन नहीं जुटा पाता । मौसम खत्म होने पर गाँवोमें तिलहनका लगभग नाम-निशान भी नही रहता । तेलीके पास इतना पैसा नहीं होता कि वह तिलहनोको सग्रह करके रख सके और शहरोसे तिलहन खरीदने की तो उसमें और भी सामर्थ्य नही होती । यही कारण है कि या तो तेली नजर नहीं आते या बड़ी तेजीसे ऐसी स्थिति आ रही है कि वे नजर नही आयेगे । आजकल लाखो धानियाँ बेकार पड़ी है, जिसके कारण देशकी साधन-सम्पदाकी भारी बरवादी हो रही है। जहाँ तिलहनकी पैदावार होती हो उसी स्थानपर तिलहनका सग्रह करना और गाँवके तेलियोको उचित दरपर तिलहन बेचना और इस प्रकार जो घानियाँ अभी नष्ट नही हुई है, उनका पुनरुद्धार करना नि सन्देह सरकारका ही काम है। यह सहायता प्रदान करने में सरकारको कोई हानि नही होगी । श्री झवेरभाईके विचारानुसार यह सहायता सहकारी समितियो या पंचायतोंके माध्यमसे दी जा सकती है। शोधके आधारपर श्री झवेरभाई इस निष्कपंपर पहुँचे है कि ऐसा करने से घानीका तेल मशीनके तेलसे टक्कर ले सकेगा और गाँवोंपर आजकल जो मिलावटी तेल थोपा जाता है उससे उन्हे मुक्ति मिल जायेगी। इस बातका भी ध्यान रखना चाहिए कि ग्रामीणोको भोजनमें यदि कुछ चिकनाई मिलती भी है, तो वह केवल तेलसे ही मिलती है। सामान्यत. घी से वे अपरिचित ही रहते हैं।
सेगांव, २६ अगस्त, १९३९
[ अग्रेजीसे ।
१४७. एक महाराजाकी धमकी
कुछ सप्ताह पूर्व पटियालासे मुझे एक महत्त्वपूर्ण पत्र मिला था । उसमें महाराजा साहब पटियाला द्वारा दिये गये कुछ ऐसे गम्भीर वक्तव्य पेश किये गये कि वे ठीक है या नहीं, यह मालूम करने के लिए मैंने महाराजा साहबको लिखा। इस बातको अब तीन हफ्तेसे अधिक हो गये हैं, लेकिन मुझे कोई जवाब नही मिला ।। इसलिए मैं मान लेता हूँ कि मुझे पत्र भेजनेवाले सज्जनने उनके बारेमें जो कुछ लिखा है वह ठीक ही है। पत्रका मुख्य भाग यह हैः
१९८८ को हिदायत के खिलाफ, जो प्रजाके नागरिक अधिकारोंका अपहरण करनेवाला एक गैर कानूनी कानून है, पटियाला राज्य प्रजामण्डलने सत्याग्रह शुरू किया था। आपको सलाहपर वह सत्याग्रह बिना किसी शर्तके स्थगित कर दिया गया था। राज्यकी ओरसे पटियालाके प्रचार अधिकारीने १५ अप्रैलको एक विज्ञप्ति निकालकर कहा था कि सरकार उस हिदायत को ३-४ हफ्तेके अन्दर या तो रद्द कर देगी या वापस ले लेगी। साथ हो, यह भी बतलाया गया था कि उसपर विचार करके जल्द रिपोर्ट पेश करने के लिए सरकारने एक समिति नियुक्त की है। लेकिन यह घोषणा अभीतक अमलमें नहीं आई है। उसके बजाय, महाराजा साहबने २५ मईके इजलास खासके हुक्म द्वारा उस हिदायतपर अगले छह महीने और कड़ाईसे अमल करने का निर्देश दिया है। वह हिदायत इतनी व्यापक है कि उसके कारण प्रजामण्डलके कार्यकर्ता किसी तरहका कोई प्रचार कार्य नहीं कर सकते। इस आन्दोलनके सिलसिलेमें गिरफ्तार कार्यकर्ता अब भी जेलने है और दूसरोंपर मुकदमे चल रहे है। इसके अलावा, राज्यमें जमींदारों और किसानोंके बीच भी एक आन्दोलन चल रहा है।
प्रजामण्डलके कुछ कार्यकर्त्ताओंने १८ तारीखको महाराजा साहबसे मुलाकात की थी। मुलाकातके समय महाराजा साहबने कार्यकर्त्ताओंको सम्बोषित करते हुए कहा :
"मेरे पूर्वजोंने यह राज्य तलवारसे जोता है और मैं तलवारसे ही इसे कायम रखना चाहता हूँ। में किसी भी संस्थाको अपनी प्रजाके प्रतिनिधिके
१. बाद में महाराजाको बोरसे इसका उत्तर प्राप्त हुआ था; देखिए परिशिष्ट ९ । उत्तरके साथ उसपर गाधीजी की टिप्पणी भी प्रकाशित हुई थी; देखिए " टिप्पणीः 'एक महाराजाकी धमकी' पर ", १२-९-१९३९ ।
२. विक्रम सम्वत्का, अर्थात् ईस्वी सन् १९३२ का ।
एक महाराजाकी धमकी
रूपमें स्वीकार करने अथवा उस संस्थाको प्रजाको ओरसे बोलने देने से इन्कार करता हूँ। उनका तो एकमात्र प्रतिनिधि में हो हूँ। राज्यमें प्रजामण्डल- जैसी कोई संस्था नहीं रहने दो जा सकती। तुम अगर कांग्रेसका काम करना चाहते हो, तो मेरे राज्यसे बाहर चले जाओ। कांग्रेस ब्रिटिश सरकारको डरा-धमका सकती है, लेकिन यदि उसने मेरे राज्यमें कभी हस्तक्षेप करने को कोशिश की, तो मै भयंकर रूपसे उसका मुकाबला करूंगा। में अपने राज्यकी सीमा में अपने झण्डेके अलावा और कोई झण्डा लहराता हुआ देखना बरदाश्त नहीं कर सकता। तुम प्रजामण्डलकी अपनी हलचलें बन्द कर दो, नहीं तो मैं ऐसा दमन चक्र चलाऊंगा कि तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियाँ भी उसे नहीं भूलेंगी। अपने प्यारे प्रजाजनोंमें से कुछको जब में दूसरी तरफ जाते हुए देखता हूँ तो मुझे मार्मिक वेदना होती है। इसलिए मैं तुम्हें सलाह देता हूँ कि मण्डलको छोड़कर सब तरहका आन्दोलन बन्द कर दो, या फिर याद रखो कि में एक फौजी आदमी हूँ; मे खरी बात कहता हूँ और सीधी मार करता हूँ।"
यह हो सकता है कि मेरा पत्र महाराजा साहवके पासतक पहुँचा ही न हो, और अगर पहुँचा होता तो वे, पत्र भेजनेवाले ने मुझे जो बातें लिखी है, उनका अवश्य खण्डन करते। उनका कोई खण्डन मुझे मिला तो मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक प्रकाशित करूंगा। लेकिन मुझे यह जरूर कह देना चाहिए कि मुझे जिन्होने पत्र भेजा है वे एक जिम्मेदार व्यक्ति है।
अगर हम यह मान ले कि उक्त पत्रमें जैसा कहा गया है वैसी बातें महाराजा साहवने कही है, तो ऐसी धमकी देना किसी भी राजाके लिए, चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, एक बहुत गम्भीर बात है। उनके प्रति पर्याप्त आदर भाव रखते हुए, मैं कहना चाहूँगा कि सारे हिन्दुस्तान के लोगोमें आज इतनी जागृति आ गई है कि धमकियों या उनके मुताबिक कार्रवाई करने से भी उन्हें दवाया नही जा सकता । निरकुश स्वेच्छाचारके दिन अब हमेशा के लिए लद गये । प्रजाकी उभरती हुई भावनाको भीषण आतकसे कुछ समयके लिए दबा देना तो शायद सम्भव है, लेकिन उसे हमेशा के लिए नही दवाया जा सकता, इस बातका मुझे पूरा यकीन है ।
राजाओको खत्म कर देने की मेरे मनमें कोई इच्छा नही है। मित्रोने मुझसे यह शिकायत जरूर की है कि प० जवाहरलाल नेहरूने एक बार ऐसा कहा है, यद्यपि काग्रेसने ऐसी नीतिका प्रतिपादन नहीं किया है। उनसे इस वारेमें पूछने का मौका तो मुझे नहीं मिला, लेकिन अगर हम यह मान ले कि उन्होंने ऐसा कहा होगा, तो उसका यही अर्थ हो सकता है कि कुछ राजा खुद ही अपने सर्वनाशकी तैयारी कर रहे हैं । समाचारपत्रों के आधारपर जवाहरलालके बारेमें कोई निर्णय करना ठीक नही है। उनकी निश्चित राय तो अ० भा० देशी राज्य प्रजामण्डलको स्थायी समितिकी ओरसे दिये गये उनके वक्तव्यसे जानी जा सकती है। उसमें तो उन्होंने लोगोको ऐसी चेतावनी तक दी है कि वे जल्दबाजी में कोई काम न करे । उन१३८
जैसे निष्ठावान् कांग्रेसी काग्रेसको प्रत्यक्ष नीतिसे आगे जाकर कोई भी कार्रवाई नही करेगे । इसलिए कुछ नरेशोंको काग्रेससे जो भय और नफरत है वह ठीक नही है और उससे उन्हें मदद मिलने के बजाय हानि ही होगी। कांग्रेस रियासतोके मामलोंमें सीधे कोई हस्तक्षेप नही करना चाहती। लेकिन कांग्रेस रियासतोकी प्रजाका पथ-प्रदर्शन जरूर करती है। वे लोग कांग्रेस संगठनका अंग हैं। कांग्रेससे अपने सम्बन्धके कारण वे शक्ति और प्रेरणा प्राप्त करते है। मैं नहीं जानता कि इस जीवन्त और अटूट सम्बन्धको कैसे रोका जा सकता है। इसको खत्म करने की इच्छा करना तो बच्चोसे अपने माता-पिताको छोड़ देने के लिए कहना है । यह वात अच्छी-बुरी जैसी भी हो, पर इसे मान लेना ही ठीक है कि जिस तरह ब्रिटिश भारतके लोगोंका विराट् समुदाय अपने कष्ट निवारणके लिए सरकारकी वनिस्वत कांग्रेस पर ही ज्यादा भरोसा करता है, उसी तरह रियासतोके लोग भी अपने छुटकारेके लिए कांग्रेसका मुँह जोहते है । जब वे लोग यह कहते हैं कि वे अपने-अपने राजाओकी छत्रछाया में ही अपना विकास पूरा करना चाहते है तो ऐसा वे कांग्रेसकी सलाह और प्रेरणासे ही कहते है। इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि पटियालाके महाराजा साहब तथा उन जैसे विचार रखनेवाले अन्य नरेश अपने विचारोंको बदलेंगे और अपनी प्रजाके उस आन्दोलनका स्वागत करेंगे जो वह अपना पूरा विकास करने की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए चला रही है, तथा अपने राज्योंके सुषारकोको अपना दुश्मन नही समझेंगे। अपनी प्रजाकी माँगोको निबटाने में वे अगर कांग्रेससे मदद ले, तो अच्छा होगा। लेकिन अगर कांग्रेसकी मित्रतामें उनका अविश्वास हो तो उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है। यदि वे पर्याप्त सुधारो द्वारा अपनी प्रजाके प्रगतिशील भागको सन्तुष्ट कर ले तो इतना ही काफी होगा ।
पत्र लेखकने अपने पत्रमें वचन भंग किये जाने की जो बात लिखी है वह मेरे विचारसे महाराजाकी कथित धमकीसे भी बुरी चीज है। जहाँतक में देख सकता हूँ, इस बातमें तो कोई सन्देह ही नही है कि १९८८ की हिदायतको वापस लेने का वादा किया गया था; इसी तरह यह बात भी निस्सन्देह सच है कि वह वादा तोड़ दिया गया है। एक शक्तिशाली और धनवान राजाके लिए वचनको भंग करना बहुत खतरनाक बात है । वचन-भंग भी अपने कर्जको अदा करने से इन्कार करने को बनिस्बत कुछ कम दिवालियापन नही है । मैं महाराजा साहबसे प्रार्थना करता हूँ कि वे अपने वादेको पूरा करें और आशा करता हूँ कि उनके सलाहकार उन्हें ऐसा ही करने की सलाह देंगे ।
सेगाँव, २६ अगस्त, १९३९
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"एक्वीनास का झुकाव नैतिक प्रतिबंधों के प्रति ही अधिक था; उनके कानूनी तथा सवैधानिक स्वरूपों से तो जैसे उसका कोई सरोकार ही नहीं था।"
संत ग्रागस्टिन तथा अरस्तू के समान एक्वीनास भी दासता के संबंध में अपने विचारों की अभिव्यक्ति करता है। किंतु एक्वीनास के विचार प्रस्तुत संदर्भ में निश्चित रूप से अरस्तू और आगस्टिन के विचारों से भिन्न हैं। इनमें प्रथम भिन्नता यह है कि एक्वीनास दासता की चर्चा संदर्भ रूप में ही करता है, जबकि अरस्तु तथा ग्रामस्टिन ने दासता की चर्चा एक प्रतिपाद्य विषय के रूप में की है। दूसरे, एक्वीनास जहाँ नकारात्मक पक्ष पर बल देता है वहां अरस्तु तथा आगस्टिन उसके ( दासता के ) सकारात्मक पक्ष का ही समर्थन करते हैं, जैसाकि निम्न विवरण से स्पष्ट है :
अरस्तू दासता की पुष्टि व्यक्ति की बौद्धिक प्राप्तियों के आधार पर करता है और चूंकि इन प्राप्तियों का संबंध प्रकृति से है इसलिए वह दासता को प्राकृतिक मानता है । उसके अनुसार "वह जो प्रकृति से अपना न होकर पराया हो, प्रकृतिशः दास है ।" आगस्टिन ईसाईयत का समर्थक संत था। अतः अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर वह दासता को पापियों को दंड देने की एक व्यवस्था कहता है। उसके अनुसार दासता एक दैवी व्यवस्था है। इसके विपरीत दासता के समर्थन में एक्वीनास का लक्ष्य अपने सैनियो मे जोश, साहस एवं वीरता के भावों को भरना मात्र था । 'पराजितों को दास बना लिया जाएगा, यह कथन सैनिकों को पराजित न होने का संकल्प लेने में प्रभावी हो सकता हैऐसी एक्वीनास की मान्यता थी। अपने इस दृष्टिकोण के समर्थन में एक्वीनास न केवल रोम के इतिहास का उद्धरण प्रस्तुत करता है, बल्कि ईसाई धर्म की पुस्तकों से भी वह कुछ प्रमाण जुटाता है ।
कानून संबंधी सिद्धांत एक्वीनास के राजनीतिक दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। उसकी मान्यता थी कि शासन कानून के अनुसार ही संचालित हो । उसका निष्कर्ष था कि विधिगत शासन ही एक सच्चा शासन है। इस प्रकार उसके लिए कानून शासन की एक महत्त्वपूर्ण कसौटो बन जाता है, जिसके आधार पर किसी शासन को उचित अथवा अनुचित, अच्छा या बुरा या श्रेष्ठ अथवा निकृष्ट माना जा सकता है। एक्वीनास की कानून की धारणा अरस्तू, स्टोइक्स, सिसरो, रोमन कानून-वेत्ताओं एवं आगस्टिन के सिद्धांतों का एक ऐसा समन्वय है जो अपने में पूर्ण है। यूनानी विचारकों ने कानून को विवेक का परिणाम माना था, न कि इच्छा की अभिव्यक्ति । रोम के विवि-शास्त्र के अनुसार कानून को या तो विवेक का परिणाम माना जाता था या इच्छा की अभिव्यक्ति । एक्वीनास के अनुसार कानून एक साथ विवेक का परिणाम तथा इच्छा की अभिव्यक्ति भी है। वह कानून की परिभाषा इस प्रकार देता है : "कानून विवेक का वहमध्यादेश है जिसे लोकहित के लिए ऐसे व्यक्ति ने प्रख्यापित किया हो जो समाज के के लिए जिम्मेदार है
के अति महत्त्वपूर्ण दायित्व है । यहाँ एक्वीनास मध्ययुगीन मान्यताओं में आस्थावान् प्रतीत होता है ।
यह सही है कि एक्वीनास शासक को अनेकानेक कार्य सौंपता है किंतु वह उसे अमर्यादित सत्ता सौपने के पक्ष में नहीं है । वह प्रशासनिक सत्ता को सीमित करने क सुभाव देता है, किंतु इस ग्राशय का स्पष्टीकरण नहीं करता कि इसे किस प्रकार सीमित किया जा सकता है। एक्वीनास विधिगत शासन को ही सच्चा शासन मानता है, जिससे
है कि सत्ता का प्रयोग कानूनों के अनुसार होना चाहिए, न कि मनमाने ढंग से, इसलिए कि शासक अत्याचारी न बन सके। यदि शासक अत्याचारी बन जाता है तो, एक्वीनास के अनुसार ऐसे शासक का विरोध न्यायोचित है, किंतु यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि वह अत्याचारी शासकों के वध को अनुचित मानता है। यह श्राश्चर्य की बात है कि एक्वीनास विधिगत शासन को सच्चा शासन तो मानता है किंतु विधिगत शासन से अपने ऋणय को पूर्णतः स्पष्ट करने की उसने कभी आवश्यकता नही समझी।
एक्वीनास ने सरकारों के वर्गीकरण की भी चर्चा की है। परंतु इस विषय पर उसके पास अरस्तू से कुछ भी अधिक कहने को नहीं है । श्रेष्ठ शासन प्रणाली के संदर्भ मे अवश्य ही वह अरस्तु से भिन्न निष्कर्ष लेकर राजतंत्र की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करना है । एक्वीनास का राज्यों के वर्गीकरण का आधार, अरस्तू के समान हो, शासन का 'लक्ष्य' ही है : शासन किसके हित में चलाया जा रहा है ? यदि शासन का संचालन जनता के हित में होता है तो वह एक अच्छा शासन है और यदि शासन स्वयं शासकों के हित मे मचालित है तो एक्वीनास उसे एक निकृष्ट शासन मानता है। इन सभी प्रकार के शासनो मे उसने राजतंत्र का समर्थन किया है। राज्य की एकता इस निष्कर्ष का एक मात्र कारण है । वह एकता को राज्य का लक्ष्य मानता था। गैटिल का कथन है : ' एकता का प्रेम मध्ययुगीन जीवन की विशेषता थी और टामस भी उससे प्रभावित था, इसीलिए उसे लोकतत्र की अपेक्षा राजतंत्र पसंद था, क्योंकि उसका विश्वास था कि लोकतंत्र फूटर भगडो को जन्म देता है । मध्ययुग में चारों ओर अराजकता और उपद्रव फैले हुए थे। इसलिए राजनीतिक संगठन के संबंध में स्थायित्व और एकता का विचार और भी अधिक महत्त्व - पूर्ण था । राज्य की इस एकता की प्राप्ति वही कर सकता है जो स्वयं एक इकाई हो । जिस प्रकार शरीर पर हृदय का और सृष्टि पर ईश्वर का शासन है उसी प्रकार राज्य पर राजा का शासन उसे अधिक तर्कसंगत प्रतीत हुआ। एक्वीनास जानता था कि राजतंत्र को सबसे बड़ा खतरा उसके अधिनायकतत्र में परिवर्तित हो जाने में है। किंतु वह यह भी जानता था कि धिनायकतंत्र की स्थापना की संभावना प्रजातंत्र में जितनी अधिक होती है उतनी राजतंत्र में नहीं होती।"
फिर भी अपनी इस आशंका के निराकरण के लिए एक्वीनास ने राजा पर किन्ही नैतिक प्रतिबंधों का आरोपण किया है। उसकी मान्यता थी कि राजा की शक्तियाँ सीमित होनी चाहिएँ कितु, जैसाकि सेबाइन ने लिखा है, उसने अपने इस आशय का कहीं स्पष्टीकरण नही किया है। शासन का संचालन कानून के अनुसार होना चाहिए तथा अघि शासन का विरोध जनता द्वारा किया जा सकता है। सेबाइन ने लिखा है
"एक्वीनास का झुकाव नैतिक प्रतिबंधों के प्रति ही अधिक था; उनके कानूनी तथा सवैधानिक स्वरूपों से तो जैसे उसका कोई सरोकार ही नहीं था।'
संत आगस्टिन तथा अरस्तू के समान एक्वीनास भी दासता के संबंध में अपने विचारों की अभिव्यक्ति करता है। किंतु एक्वीनास के विचार प्रस्तुत संदर्भ में निश्चित रूप से अरस्तू और आगस्टिन के विचारों ने भिन्न हैं। इनमें प्रथम भिन्नता यह है कि एक्वीनास दासता की चर्चा संदर्भ रूप में ही करता है, जबकि अरस्तु तथा आगस्टिन ने दासता की चर्चा एक प्रतिपाद्य विषय के रूप में की है। दूसरे, एक्वीनास जहाँ नकारात्मक पक्ष पर बल देता है वहाँ अरस्तु तथा गस्टिन उसके ( दासता के) सकारात्मक पक्ष का ही समर्थन करते हैं, जैसाकि निम्न विवरण में स्पष्ट है :
अरस्तू दासता की पुष्टि व्यक्ति की बौद्धिक प्राप्तियों के आधार पर करता है और चूँकि इन प्राप्तियों का संबंध प्रकृति से है इसलिए वह दासता को प्राकृतिक मानता है । उसके अनुसार "वह जो प्रकृति से अपना न होकर पराया हो, प्रकृतिशः दास है।" स्टिन ईसाईयत का समर्थक संत था । प्रतः अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर वह दासता को पापियों को दंड देने की एक व्यवस्था कहता है। उसके अनुसार दासता एक दैवी व्यवस्था है । इसके विपरीत दासता के समर्थन में एक्वीनास का लक्ष्य अपने सैनिको मे जोश, साहस एवं वीरता के भावों को भरना मात्र था । 'पराजितों को दास बना लिया जाएगा, यह कथन सैनिकों को पराजित न होने का संकल्प लेने में प्रभावी हो सकता हैऐसी एक्वीनास की मान्यता थी । अपने इस दृष्टिकोण के समर्थन में एक्वीनास न केवल रोम के इतिहास का उद्धरण प्रस्तुत करता है, बल्कि ईसाई धर्म की पुस्तकों से भी वह कुछ प्रमाण जुटाता है।
कानून संबंधी सिद्धांत एक्वीनास के राजनीतिक दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। उसकी मान्यता थी कि शासन कानून के अनुसार ही संचालित हो । उसका निष्कर्ष था कि विधिगत शासन ही एक सच्चा शासन है। इस प्रकार उसके लिए कानून शासन की एक महत्त्वपूर्ण कसौटी बन जाता है, जिसके आधार पर किसी शासन को उचित प्रथवा अनुचित, अच्छा या बुरा या श्रेष्ठ अथवा निकृष्ट माना जा सकता है। एक्वीनास की कानून की धारणा अरस्तू, स्टोइक्स, सिसरो, रोमन कानून-वेत्ताओं एवं आगस्टिन के सिद्धातो का एक ऐसा समन्वय है जो अपने आपमें पूर्ण है। यूनानी विचारकों ने कानून को विवेक का परिणाम माना था, न कि इच्छा की अभिव्यक्ति । रोम के विधि-शास्त्र के अनुसार कानून को या तो विवेक का परिणाम माना जाता था या इच्छा की अभिव्यक्ति । एक्वीनास के अनुसार कानून एक साथ विवेक का परिणाम तथा इच्छा की अभिव्यक्ति भी है। वह कानून की परिभाषा इस प्रकार देता है : "कानून विवेक का वह अध्यादेश है जिसे लोकहित के लिए ऐसे व्यक्ति ने प्रख्यापित किया हो जो समाज के के लिए जिम्मेदार है
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ड्रग "ट्रॉक्सरुतिन" एक हैएंजियोपराटेक्टीक, डेंगैन्टेस्टेंट, वेरोनेटिक, एंटी-शोथ गतिविधि के साथ एक दवा इसका उपयोग जिल्द की सूजन, वैरिकाज़ नसों, ट्राफीक अल्सर, बवासीर, हेमटमास और एडिमा के इलाज के लिए किया जाता है।
नशीली दवाओं के मुख्य घटक "ट्रॉक्सरुतिन"bioflavonoid व्युत्पन्न दिनचर्या रेडोक्स प्रक्रियाओं में शामिल, कोशिका झिल्ली, हाइअल्युरोनिक एसिड, hyaluronidase अवरुद्ध स्थिर में पी-विटामिन प्रभाव प्रतिपादन - प्रतिक्रियाओं जो मुख्य रूप से अच्छा पाए जाते हैं, में कार्य करता है एक ही नाम पदार्थ। दवा, कमजोरी और केशिकाओं की पारगम्यता कम कर देता है स्त्रावी सूजन में संवहनी दीवारों को कम कर देता है और उन्हें मजबूत करता है, सतह के लिए प्लेटलेट्स की आसंजन सीमित। विरोधी edematous प्रभाव उत्पन्न करता है, बेहतर बनाता है पौष्टिकता संबंधी और अन्य रोग विकारों पुरानी शिरापरक कमी (CVI) द्वारा उत्तेजित कर देता है। ड्रग "Troxerutin" (उपयोग के लिए निर्देश, समीक्षाएँ यह पुष्टि) पुरानी शिरापरक कमी के साथ लोगों के लिए, वैरिकाज़ नसों पैरों में भारीपन की भावना राहत मिलती है, दर्द और निचले की सूजन कम कर देता है। औषधि दोनों प्राथमिक और अंतिम अवस्था रोग के शिरापरक कमी के साथ रोगियों में मदद करता है। संवहनी संरचना और उनके पारगम्यता में वृद्धि, एक फ्लू सहित की गड़बड़ी की विशेषता विकृतियों में, एलर्जी, स्कार्लेट ज्वर, खसरा, दवा एस्कॉर्बिक एसिड के साथ संयोजन, कि अपनी औषधीय कार्रवाई में वृद्धि होगी में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
यह दवा "Troxerutin" का उपयोग करने के लिए सिफारिश की हैबवासीर, बवासीर, वैरिकाज़ नसों, सीवीआई के साथ, पैरों में दर्द, सूजन और भारीपन, पेरिफेलेबट, सतही थ्रोम्फोलेबिटिस, पोस्ट-फ्लेबिटीस सिंड्रोम के साथ। सीवीआई के साथ, ट्राफीक विकार अक्सर होते हैं, जिल्द की सूजन, अल्सर; इस मामले में, दवा भी प्रभावी होगी सहायता के रूप में, आप सर्जरी हटाने या नसों के चक्रीय चिकित्सा के बाद, साथ ही बवासीर के कारण नसों पर कार्रवाई के दौरान दवा "ट्रॉक्सिरुटिन" का उपयोग कर सकते हैं। एक जेल के रूप में दवा हेमटॉमस और पोस्ट-ट्रोमैकाटिक एडिमा, हेमोराजिक डिएथिसिस और कैपीलरोटॉक्सिकोसिस के लिए निर्धारित होती है। अन्य बातों के अलावा, दवाओं का उपयोग कम हाथों की मांसपेशियों की ऐंठन, लेग पायरेस्टेसिया, रेटिनोपैथी, मधुमेह के सूक्ष्मोगापोथी, नाड़ी विकिरण चिकित्सा के साइड इफेक्ट के लिए किया जाता है।
जब दवा "Troxerutin" के रूप में इस्तेमाल करते हैंकैप्सूल दैनिक खुराक छह सौ से नौ सौ मिलीग्राम (एक कैप्सूल के लिए दो बार तीन बार) चिकित्सीय पाठ्यक्रम - एक या दो सप्ताह एक और तीन से चार सप्ताह या उससे अधिक के लिए प्रति दिन दो सौ चार सौ मिलीग्राम दवा लेने से सहायक देखभाल प्रदान की जा सकती है। रेटिनोपैथी में तीन सौ छह मिलीग्राम के तीन बार एक दिन का रिसेप्शन नियुक्त करता है। यह दवा लेने के साथ ही एक साथ होना चाहिए "ट्रॉक्सिरुटिन" (कैप्सूल) रोगी के प्रमाण से संकेत मिलता है कि दवा अच्छी तरह से सहन कर रही है।
रोगियों ने दवा का इस्तेमाल किया"ट्रॉक्सरुतिन" (जेल), इसके बारे में समीक्षा सकारात्मक छोड़ देती है, लेकिन दवा के सामयिक आवेदन के बाद त्वचा पर दाने के एक दाने के रूप में आपको एलर्जी की प्रतिक्रिया के बारे में शिकायत मिल सकती है। कैप्सूल में दवा लेने वाले कुछ लोग, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के क्षोभ और अल्सरेटिव घाव हैं।
दवा न लेंसक्रिय संघटक के लिए अतिसंवेदनशीलता वाले रोगियों के लिए "ट्रॉक्सिरुटिन", पेप्टिक अल्सर वाले लोग। कैप्सूल के रूप में, यह तीव्र चरण में पुरानी गैस्ट्रेटिस से पीड़ित लोगों के लिए दवा का उपयोग करने के लिए निषिद्ध है, और गर्भावस्था के पहले तिमाही में महिलाओं को भी। दवा अतिदेय के बारे में कोई जानकारी नहीं है स्तनपान अवधि के दौरान "ट्रॉक्सिरुटिन" के उपयोग पर भी कोई डेटा नहीं है।
लंबे समय तक कैप्सूल का उपयोग करने के लिए यह अनुशंसित नहीं हैगंभीर गुर्दे की शिथिलता वाले लोग यह जटिल उपचार के एक घटक के रूप में दवा का उपयोग करने की अनुमति है पहले से ही नोट किया गया दवा, वाहिकाओं की दीवारों की पारगम्यता और संरचना पर एस्कॉर्बिक एसिड के प्रभाव को बढ़ाती है।
मरीजों ने स्वेच्छा से अपनी छापों को साझा कियातैयारी। बहुत से लोग लिखते हैं कि गंभीर शिरापरक क्षति के मामले में, दवा एक सकारात्मक सकारात्मक प्रभाव पैदा नहीं करती है। लेकिन जो वैरिकाज़ नसों और सीवीआई हैं, वे अभी तक अत्यधिक गंभीरता से नहीं पहुंचे हैं, ध्यान दें कि इस स्थिति में "ट्रॉक्सरुतिन" दवा के लिए काफी मदद मिली है। समीक्षा में जानकारी होती है कि जेल के नियमित उपयोग के कारण पैरों पर शिरापरक नेट को समाप्त करना संभव है। हालांकि, मरीजों की राय के अनुसार बड़े शिरापरक नोड्स, इस दवा के साथ चिकित्सा का जवाब नहीं देते। इस से कार्यवाही करने से, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ड्रग "ट्रॉक्सरुतिन" का इस्तेमाल रोग के प्रारंभिक चरणों में किया जाना चाहिए, साथ ही निवारक प्रयोजनों के लिए, जब जहाजों के संचालन में समस्याएं हैं। एक विशेषज्ञ से संपर्क करें, और वह आपके लिए रोगों को रोकने के लिए एक दवा का उपयोग करने की एक व्यक्तिगत योजना स्थापित करेगा।
ड्रग "ट्रॉक्सरुटिन" के बारे में लोग क्या कहते हैं? ज्यादातर उत्साही समीक्षा। प्रोत्साहित रोगियों और कम कीमत दवाओं, और जिसके परिणाम चिकित्सा दिया जाता है। व्यक्तियों अतीत दर्द और निचले अंगों में जलन में अनुभवी, सूजन और अप्राकृतिक फैला हुआ नसों से पीड़ित है, उसके बाद पैरों पर दवा त्वचा के आवेदन चिकनी हो जाते हैं, नसों एक सामान्य उपस्थिति बन ने बताया, सूजन आसानी राहत महसूस किया।
बवासीर - एक समस्या का सामना करना पड़ता हैकई। उदाहरण के लिए, प्रसव के बाद महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा ऐसी बीमारी से आगे निकल जाता है। ड्रग "ट्रॉक्सिरुटिन" पूर्वोक्त रोग के मामले में सूजन और खून बह रहा को कम करने में सहायता करेगा। हालांकि, बवासीर के उपचार के लिए, केवल कैप्सूल के रूप में औषधि का उपयोग करना आवश्यक है। समीक्षाओं में, मरीजों की रिपोर्ट है कि चिकित्सा के बाद, रक्त हीरा नोड्स में कमी, खून बह रहा बंद हो जाता है, दर्द को दबा दिया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि कैप्सूल लेने से "ट्रॉक्सरुतिन" आपको रक्त के थक्कों के गठन के जोखिम को कम करने की अनुमति देता है। बवासीर के उपचार के दौरान प्रत्येक रोगी के लिए व्यक्तिगत रूप से चयन किया जाता है, एक नियम के रूप में, चिकित्सक प्रति दिन तीन सौ से नौ सौ मिलीग्राम दवा का स्वागत करता है।
जेल की कीमत "ट्रॉक्सरुटिन" निर्माता पर निर्भर करता है। इस प्रकार, रूसी दवा कंपनियों Ozon और Biokhimik द्वारा उत्पादित दवा की एक ट्यूब की औसत लागत 25-26 rubles (ओजोन चालीस ग्राम के ट्यूबों में एक जेल पैदा करता है, और Biokhimik 25 ग्राम प्रत्येक) है बल्गेरियाई कंपनियों "वेटप्रोम", "व्र्राम" और "सोफर्मा" की दवा हर चालीस-ग्राम ट्यूब के औसत से 31-33 रूबल की कीमत होगी। कैप्सूल में दवा अधिक महंगा है। बल्गेरियाई उत्पादक व्रमाड और सोफर्मा ने 1 9 4-197 रूबल की औसत कीमत पचास कैप्सूल के लिए बेच दी जबकि चेक कंपनियों लेचिवा और ज़ेंटाइवा ने तीस कैप्सूल के लिए 258-261 रूबल की औसत कीमत निर्धारित की।
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आवश्यकता इसलिए होती है कि व्यक्ति में सामाजिक जीवन की उत्तमता का ज्ञान करने की क्षमता नहीं होती, अथवा व्यक्ति सामाजिक जीवन की उत्तमता के हित में आचरण करने को इच्छुक नहीं रहते। कानून मानव के मन तथा विवेक की उपज है। यह मानव जीवन के समस्त व्यापारों का नियमन करता है, यहाँ तक कि जन्म तथा मरण की संस्कार क्रियाएँ भी कानून के अनुकूल ही होती हैं। कानून के पीछे सामूहिक शक्ति होती है, अतः समाज के जीवन के लिए कानून की आवश्यकता
। यद्यपि प्लेटो विवेक को सर्वोच्च मानता है, परन्तु सच्चे विवेकशील व्यक्ति के अभाव में वह कानून को आवश्यक समझता है क्योंकि कानून स्वयं विवेक की उपज हैं ।
(4) कानून विभिन्न मानवीय सद्गुणों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का साधन- यद्यपि प्लेटो लॉज में भी सर्वोत्तम व्यवस्था आदर्श राज्य की ही मानता है, जिसमें विवेक की सर्वोच्चता रहती है, तथापि उसके अभाव में द्वितीय सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था वह है जिसमें कानून की सर्वोच्चता रहती है। ऐसा राज्य यथार्थ राज्यों से उच्चतर होता है। उसमें सरकार सम्प्रभु कानून के अधीन रहती है, न कि कानून सरकार के अधीन । यदि कानून की सम्प्रभुता नहीं रहेगी तो न्याय नहीं रहेगा । ऐसे राज्य में न्याय शक्तिशाली का हित' हो जायेगा । अतः प्लेटो राज्य के लिए मौलिक कानून के अस्तित्व की कल्पना करता है, जिसका पालन शासक तथा शासित दोनों को करना चाहिए। ऐसे मौलिक कानून को परिवर्तित करने का अधिकार सरकार को नहीं होना चाहिए। यदि परिवर्तन आवश्यक ही हो तो समस्त जनता की इच्छा से उसे सम्पन्न किया जाये । इस सम्बन्ध में प्लेटो कानून की प्रस्तावना (preamble ) की आवश्यकता पर बल देता है जो आत्म-संयम की धारणा पर निर्मित हो । बार्कर के मत से कानून विवेक की अभिव्यक्ति है और चूँकि विवेक सम्प्रभु होता है, अतः कानून को भी सर्वोच्च आदेश देने वाला होना चाहिए । परन्तु कानून के द्वारा आत्म-संयम के गुण की भी अभिव्यक्ति होती है और आत्मसंयम विवेक तथा तृष्णा के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है, इसलिए कानून की प्रस्तावना का उद्देश्य भी ऐसा सामंजस्य स्थापित करना होना चाहिए ।
(5) लॉज में कानून तथा दण्ड-व्यवस्था के मध्य सम्बन्ध स्थापित - लॉज में प्लेटो ने कानून के संहिताकरण की भी व्यवस्था की है। यह व्यवस्था इंग्लैण्ड के उपयोगितावादी विचारक बेंथम की भांति है। प्लेटो ने अपराधों तथा उनके हेतु दण्ड व्यवस्था का भी विवेचन किया है। वह अपराध को मानसिक रोग का प्रतिफल मानता है। अतः वह दण्ड का उद्देश्य अपराधी का मानसिक उपचार करना मानता है । उसकी दृष्टि से कानून सामाजिक बुराइयों को दूर करने वाले होने चाहिए । सामाजिक बुराइयाँ शिक्षा के द्वारा दूर की जा सकती हैं। कानून का उद्देश्य केवल दण्ड देना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्तियों को स्वस्थ सामाजिक आचरण का प्रशिक्षण देना भी होना चाहिए । दण्ड का उद्देश्य अपराधी को हानि पहुँचाना मात्र नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे उत्तम सामाजिक प्राणी बनाना भी होना चाहिए । घोर अपराधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था भी बताई गई है। राजद्रोह, सार्वजनिक सम्पत्ति की चोरी, मजिस्ट्रेटों के दुराचरण, घूसखोरी, न्यायालयों की निन्दा आदि जघन्य अपराधों के लिए मृत्यु दण्ड तक की व्यवस्था बताई गई है । 1 Barker, op. cit, 353,
मँक्सी ने इसलिए प्लेटो को एथेंस का प्रथम विधि-दाता कहा है।
( 6 ) कानून का उद्देश्य समानता तथा निष्पक्षता - प्लेटो का एक प्राकृतिक शाश्वत-कानून के अस्तित्व पर भी विश्वास था। कानून के स्वरूप तथा उद्देश्य के सम्बन्ध में प्लेटो उसे सार्वभौम, विवेक पर आधारित तथा निष्पक्ष स्वरूप देता है । उसका आधार शिक्षा तथा नैतिकता होना चाहिए न कि बल-प्रवर्ती शक्ति । कानून सबके लिए समान होना चाहिए । उसका उद्देश्य शान्ति स्थापना हो, न कि युद्ध । उसमें जातिगत भेद-भाव की धारणा न हो । वह सबको समान न्याय प्रदान करने वाला हो, उसकी सत्ता सर्वोच्च हो ।
राज्य का सिद्धान्त ( मिश्रित राज्य)
लॉज प्लेटो के विचारों का व्यावहारिक पक्ष है - लॉज का मुख्य उद्देश्य एक यथार्थ जनसमूह (राज्य) के निमित्त सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक संगठन के लिए ऐसी सामान्य सांविधानिक पद्धति के नियमों का विवरण प्रस्तुत करना था जो कि रिपब्लिक में दर्शाये गए आदर्श से अधिकाधिक समीप्य रखें। प्लेटो के रिपब्लिक में वर्णित राज्य का स्वरूप आदर्शात्मक अथच स्वप्नलोकी था, परन्तु लॉज में जिस राज्य का चित्र प्रस्तुत किया गया है वह प्लेटो के दार्शनिक विचारों का व्यावहारिक पक्ष कहा जा सकता है। इसके निम्नलिखित आधार हैं---
( 1 ) लॉज में चित्रित राज्य व्यवस्था राजतन्त्र तथा लोकतन्त्र का सम्मिश्रण रिपब्लिक का आदर्श राज्य ज्ञान द्वारा शासित होता, अतः वह दार्शनिक राजा का राजतन्त्र है। परन्तु लॉज में वर्णित राज्य द्वितीय सर्वश्रेष्ठ है, जिसका शासन कानून की सम्प्रभुता पर आधारित होगा। इसमें आत्म-संयम का सिद्धान्त विवेक तथा तृष्णा तत्त्वों के मध्य सामंजस्य स्थापित करेगा, जिसका अभिप्राय है राजतन्त्र तथा लोकतन्त्र का सम्मिश्रण । इस प्रकार अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में प्लेटो के राजनीतिक विचारों में कानून पर आधारित मिश्रित राज्य के सिद्धान्त की प्रमुख धारणा रही है। परन्तु यह भी स्मरणीय है कि लॉज में प्लेटो अपने रिपब्लिक के मूलभूत सिद्धान्तों से पूर्णतया विमुख नहीं हो जाता । अतः लॉज की राज्य व्यवस्था आदर्श तथा यथार्थ का मध्यम मार्ग सिद्ध होता है । लॉज की राज्य व्यवस्था में शासक कानून से अप्रतिबन्धित राज्य का संरक्षक होने की अपेक्षा कानून के अधीन रहते हुए कानून का संरक्षक रहता है ।
(2) विशेषीकरण के आधार पर कार्य विभाजन के कठोर सिद्धान्त तथा साम्यवाद की धारणाओं का परित्याग- द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य में न्याय का स्थान आत्म-संयम ले लेता है, अतः आदर्श राज्य के अनेक सिद्धान्तों का परित्याग किया गया है। ऐसे राज्य में न तो कार्य विभाजन तथा कार्यों के विशेषीकरण को बल दिया गया है और न संरक्षक वर्ग के लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति तथा परिवार रखने का प्रतिबन्ध है। इसमें संरक्षक तथा शासक वर्गों को राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, साथ ही उत्पादकों को भी शासकों को चुनने का अधिकार प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार मिश्रित राज्य में राजतन्त्र के विवेकमूलक तथा लोकतन्त्र के स्वतन्त्रतामूलक सिद्धान्तों का सम्मिश्रण है । यह सिद्धान्त एक प्रकार
The mixed state sketched in the Laws is said to be a combination of the monarchic principle of wisdom with the democratic principle of freedom.* -Sabine, op. cit. 78.
से शक्ति पृथक्करण तथा शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त का पूर्वगामी है जिसका पूर्ण विकास बाद में मॉण्टेस्क्यू ने किया था ।
( 3 ) लॉज में वर्णित मिश्रित राज्य की धारणा ऐतिहासिक आधार पर वास्तविक राज्यों के दृष्टान्तों द्वारा व्यक्त - मिश्रित राज्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने में प्लेटो दार्शनिक इतिहास का सहारा लेता है कि किस प्रकार राजनीतिक समाजों के उत्थान तथा पतन को ऐतिहासिक घटनाक्रम प्रभावित करते हैं। यद्यपि उसका ऐसा ऐतिहासिक विवेचन अस्पष्ट है । तो भी वह आदर्श राज्य की विश्लेपणात्मक तथा निगमनात्मक पद्धति से अधिक लाभकारी है। राजनीतिक समाजों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्लेटो रूसो की भाँति प्राकृतिक स्थिति के जीवन की कल्पना करता है, और अरस्तू की भाँति परिवारों तथा ग्रामों के मध्य एकता स्थापित करने हेतु राजनेताओं की उत्पत्ति होने के तथ्य को दर्शाता है। परन्तु मिश्रित राज्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने में उसका यह ऐतिहासिक विवेचन अपूर्ण तथा अस्पष्ट है । वह एथेंस के लोकतन्त्र तथा स्पार्टा के सैनिक वर्गतन्त्रों तथा परसिया के अत्याचारी राजतन्त्र की बुराइयों को दर्शाता है कि उनमें अप्रतिबन्धित स्वतन्त्रता, अज्ञान तथा स्वेच्छाचारिता राज्यों के नष्ट होने के कारण थे। अतः वह राज्यों के स्थायित्व के सम्बन्ध में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है कि यदि उनमें राजतन्त्र न हो तो कम से कम राजतन्त्रीय सिद्धान्त अवश्य अपनाया जाय जिसका अर्थ है कानून के अधीन विद्वानों के शासन का सिद्धान्त । इसी प्रकार यदि उनमें लोकतन्त्र न हो तो कम से कम जनता द्वारा शासन सत्ता में भाग लेने तथा जनता की स्वतन्त्रता के लोकतन्त्री सिद्धान्त को अपनाया जाय । निस्सन्देह ऐसी स्वतन्त्रता कानून के अधीन ही रहेगी।
(4) लॉज में वर्णित द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य के निमित्त प्लेटो राज्य की भौतिक आवश्यकताओं को दर्शाता है - मिश्रित राज्य की अन्य आवश्यकताओं के अन्तर्गत उसकी भौगोलिक परिस्थिति, जनसंख्या, संस्कृति आदि के बारे में भी प्लेटो ने विवेचन किया है । वह कृषि अर्थव्यवस्था वाले जनसमुदाय (agricultural community ) का विवेचन करता है। राज्य की जनसंख्या इतनी हो कि आत्मनिर्भरता बनी रहे । वह राज्य का समुद्र के समीप होना उपयुक्त नहीं मानता क्योंकि वह विदेशी व्यापार अथच जहाजरानी के विकास का द्योतक है। इस सम्बन्ध में भी प्लेटो एथेंस के लोकतन्त्र तथा स्पार्टा के सैनिकतन्त्र के दोषों से प्रभावित था । जनसमुदाय के लिए भाषा, जाति, कानून तथा धर्म की समानता की आवश्यकता को भी वह महत्त्व देता है ।
सामाजिक तथा आर्थिक संरचना ( परिवार तथा सम्पत्ति )
लॉज में सामाजिक सम्बन्धों का निरूपण करते हुए प्लेटो न तो रिपब्लिक के सिद्धान्तों का पूर्ण अनुगमन करता है और न परित्याग । वह राज्य के कार्य-कलापों में स्त्री-पुरुषों के समान भाग लेने के सिद्धान्त को मानता है। परन्तु जैसा बार्कर ने कहा है, 'महिलाओं को पुरुषों के समान ही शिक्षा देने तथा राज्य के कार्यों में समान कार्य करने के सिद्धान्त को तो वह पूर्णतया अपनाता है, इसके विपरीत वह इस सिद्धान्त का परित्याग करता है कि राज्य एक परिवार हो और पत्नियाँ तथा बच्चे
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यावत् खण्डप्रगतगुहाया मागच्छतीति पिण्डार्थः, ततः यत्रैव खण्डप्रपातगुहा तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'सव्वा कयमालकवत्तव्वया णेयन्त्रा' सर्वा कृतमालवक्तव्यता तमिस्त्रागुहाधिपसरवक्तव्यता नेतव्या ज्ञातव्या 'पावरं गट्टमालगे देवे पीइदाण सेआलंकारियभंड कडगाणि य से सव्यं तहेव जाव अट्टाहियमहामहिमा' नवग्म् अयं विशेषः नाटयमालको देवः प्रीतिदानं 'से' तस्य अलंकारिकमाण्डम् आभरणभ्रतभाजनम्, षटकानि च शेषम् उक्तविशेपातिरिक्त सर्वम् तथैव पूर्ववदेव सत्कारसन्मानादिकं कृतमालदेवताबद् वक्तव्यम् याग्दष्टाहिका महामहिमेति 'तपणं से भरहे राया णहमालगस्प देवस्स अट्टाढियाए महिमाए णिव्यत्ताए समाणोए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ' ततः खलु स भरतो राजा नाट्यमालकस्य देवस्य अष्टाहिकायां महामहिमायां निवृत्तायां परिपूर्गा सत्या सुपेगं सेनापति शब्दयति आह्वयति सहाविता' शब्दजैसा कहा गया है वैसा ही यहा पर सगृहांत हुआ है (उवागत सव्वा कयमालगवतव्वया णेयन्वा णवरि णहमालगे देवे पीइदाणं से आलंकारियभड कडगाणि य सेस सञ्वं तहेव अट्ठाहिया महा महिमा) वहा पहुंचकर उसने जो कार्य वहा पर किया वह कृतमालक देव को वक्तव्यता में जैसा कहा गया है वैसा ही यहापर जानना चाहिये, कृतमालक देव तमिस्रा गुहा का अधिपति देव है. उस वकन्यता में औरइस वक्तव्यता में यदि कोई व्अन्तर है तो वह ऐसा है कि नाटयमालक देवने भरतके लिये प्रोतिदान में आमरणों से भरा हुआ भाजन और कटकदिये इससे अतिरिक्त और सब अवशिष्ट कथन सत्कारसन्मान आदि करने का कृतमालक देव की तरह से ही आठदिन तक महामहोत्सव करने तक का है (तएण से भग्हेराया णहमालगस्स देवस्स अट्टाहिआए महिमाए णिग्वत्ताए समाणीए सुसेण सेणावई सदावेइ ) जब नाट्य मालक देव के विजयोपलक्ष्य में कृत आठ दिन का महोत्सव समाप्त हो चुका तव भरत महाराजा ने अपने सुपेण सेनापति को बुलाया ( सदा वित्ता जाव सिधुगमो णेयव्यो'
भावेश छे, ते प्रभाशे सत्रे पाणु सगृहीत धये । ४ ( उवामच्छित्ता सव्वा कयमालगवतब्बया णेयव्वा णवरि णहमालगे देवे पोहदाण से अलंकारियभंड़ षडगाणिय सेसं सव्व तहेव अठ्ठाहिया महामहिमा) त्या पहाथी ने तेथे त्या ते विषेत કૃતમાલક દેશની વક્તવ્યતામાં જેમ વ વવામા આવેલ છે તેમ અહીં પણ જાણી લેવુ જોઇએ કૃતમાલક દેવ તમિસ્રા ગુહાના અધિપતિ દેવ છે તે વક્તવ્યતામાં અને આ વક્તવ્યતાંમા તફાવત આટલા જ છે કે નાથમાલક ધ્રુવે ભરત મહારાજા માટે પ્રીતિદાનમાં આભરણા થી પૂશ્તિ ભાજન અને કટકા આપ્યાં એના સિવાયનુ શેષ અધુ થન સત્કાર, સન્માન વગેરે કરવા અંગેનુ કૃતમાલક દેવની જેમ જ આઠ દિવસ સુધી મહામહોત્સવ કરવા સુધીનુ છે (तपण से भरहे राया णहमालगस्स देवस्स अट्टाहिआप महिमाप णिव्वत्ताप समाणीप सुसेणं सेणावई सद्दावेह) रेन हेवना विपक्षमा आयोजित भाई दिवस सुषाने। મહાત્સવ સપૂર્ણ થઈ ચૂક્યો ત્યારે ભરત રાજાએ પેાતાના સુષેણ નામક સેનાપતિ ને લા ०ये. ( सहावित्ता नाव सिंधुगमो जेब्बो) Cीने तेथे ते सेनापति ने मा ते
प्रकाशिका टीका तृ०३ वक्षस्कार : सू०२६ भरतराशः दिग्यात्रावर्णनम्
यिला आहूय 'जाव सिंधुगमो यो यावत् परिपूर्णः सिन्धुगमः नेतव्यः ज्ञातव्यः 'एवं वपासी गच्छाहिणं भो देवाणुपिया । सिंधुए' इत्यादिकः सिन्धुनदी निष्कुटसाधनपाठो गङ्गाभिलापेन नेतव्यः ग्रहीतव्यः अस्मिन्नेव वक्षस्कारे त्रयोदशसूत्रे सिन्धु नदी निष्कुटसाघनपाठो द्रष्टव्य' 'जाव गंगाए महाणईए पुरत्थिमिल्लं णिक्खुड सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेड' यावत् गङ्गाया महानद्याः पौरस्त्यं पूर्वदिग्वर्ति निष्कुटं कोणस्थितभरतक्षेत्रखण्डरूपम् इदं च कैर्विभाजकैः विभक्तमित्याह सगंगामागरगिरिमर्यादम्, तत्र पश्चिमतः गङ्गाः पूर्वतः सागरः दक्षिणतः गिरिः वैताढ्य गिरिः उत्तरतश्च क्षुद्रहिमवद् गिरिः एतैः कृता या मर्यादा विभागरूपाः तया सह वर्तते यत्तत्तथा, एतैः कृतविभागमित्यर्थः 'समविसमणिक्खडाणि य' समविपमनिष्कुटानि च तत्र समानि च समभूमिभागवर्तीनि विपामाणि च दुर्गभूमिभागवर्त्तीनि यानि निष्कुटानि अवान्तरक्षेत्र खण्डरूपाणि तानि तथा 'ओअवेहि साधय तत्र प्रयाणं कृत्वा विजयं कुरू 'ओभवेत्ता' साधित्वा विजित्य 'अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छेहि ' अयाणि अग्रेगण्याणि वराणि श्रेष्ठानि रत्नानि स्वस्वजातौ उत्कृष्टवस्तूनि प्रतीच्छ गृहाण 'तप ण से सेणावई जेणेव गंगामहाणई तेणेव उवागच्छद' ततः खलु स सेनापतिः सुषेण नामकः यत्रैव गङ्गा महानदी तत्रैव उपागच्छति उवागच्छित्ता' उपागत्य 'दोच्चपि सक्खधामें जैसा कहा गया है वैसा हो जानना चाहिये, परन्तु यहा वह प्रकरण सिधु नदी के स्थान में गङ्गा शब्द को जोडकर कहा जावेगा जैसे "गच्छाहिण भी देवाणुनिया ।" हे देवानुप्रिय । सुषेण ! तुम जाओ और गगामहानदी के 'पुरथिमिल्ल णिक्वुड सगंगासागर गिरिमेराग समन् विसमणिक्खुडाणि य ओमवेहि " । पूर्वदिग्वर्ती निष्कुट - भरत क्षेत्र को - जो कि पश्चिम में गङ्गासे पूर्व में समुद्र से दक्षिण में वैताव्यगिरि से और उत्तर में क्षुद्र हिमवत्पर्वत से विभक्त हुआ है उसे साघो और उसके सम विषमरूप जो अवान्तर क्षेत्र खंड है, उन्हे साधो अपने वश में करो और उन्हें वश में करके वहां से प्राप्त अपनी अपनी जाति मे उत्कृष्ट वस्तुओं को प्रीतिदान में प्राप्त करो (तएण से सेणावई जेणेव गगा महाणई तेणेव उवाग छई ) इस तरह से भरत राजा द्वारा कहा गया वह सुषेण सेनापति जहां गंगा महानदी थी वहां पर गया ( उवाબધુ મિધુ નદીના પ્રકરણમાં જેમ કહેવામા આવ્યુ છે તેવુ જ અત્રે પણ સમજવુ પણ मडी सिन्धु नहीना स्थाने गगा शब्द लेडवो पडशे नेम है - "गच्छाहिण भो देवाणुप्पिया !" डे देवानुप्रिय । सुषेष्य तमे लखे। अने गंगा महानहीना (पुरस्थिमिल्ल णिषखुड़े संगंगासागरगिरिमेराग समविसर्माणिक्खुडाणिय ओअवेहि ) ५६ द्विश्वती निष्ठुर-भस्त क्षेत्रने के જે પશ્ચિમમા ગ ગામહાનદીથી પૂર્વ મા સમુદ્રથી, દક્ષિણમાં વૈત દ્વેષ ગિરિથી અને ઉત્તરમા ક્ષુદ્ર હિમવત પર્વતથી વિકૃત થયેલ છે તેને સાધા અને તેના સમવિષમ રૂપ જે અવાન્તર ક્ષેત્રખડ છે, તેમને સાધા, પાનાના વશમાં કરા અને તેમને વશષા કરીને ત્યાથી પ્રાપ્ત પોતचातानी लतिभा उत्ष्ट होय तेवी वस्तुमने प्रीतिद्वानभा प्रास रे । (तपणं से सेणावई नेणेव गगा महाणईते व उवागच्छई) या प्रमाणे भरत राल वडे याज्ञप्त थयेवो ते सुषेधु
यावत् खण्डप्रगतगुहाया मागच्छतीति पिण्डार्थः, ततः यत्रैव खण्डप्रपातगुहा तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'सव्वा कयमालकवतव्वया णेयन्त्रा' सर्वा कृतमालवक्तव्यता तमिस्त्रागुहाधिपसुरवक्तव्यता नेतव्या ज्ञातव्या 'एवरं णट्टमालगे देवे पीइदाण सेआलकारियभंड कडगाणि य से सव्वं तहेव जाव अढाहियमहामहिमा' नवग्म् अयं विशेषः नाटचमालको देवः प्रीतिदानं 'से' तस्य अलंकारिकमाण्डम् आभरणअतभाजनम्, षटकानि च शेषम् उक्तविशेपातिरिक्त सर्वम् तथैव पूर्ववदेव सत्कारसन्मानादिकं कृतमालदेवतावद् वक्तव्यम् याग्दष्टाहिका महामहिमेति 'तपणं से भरहे राया जहमालगरम देवस्म अट्टाहियाए महिमाए णिव्यत्ताए समाणीप सुसेणं सेणावई सद्दावेइ' ततः खलु स भरतो राजा नाट्यमालकस्य देवस्य अष्टाहिकायां महामहिमायां निवृत्तायां परिपूर्णायां सत्या सुपेगं सेनापति शब्दयति आह्वयति सहाविता' शब्दजैसा कहा गया है वैसा हो यहा पर सगृहोत हुआ है (उदाग छत्ता सव्वा कयमालगवतन्वया णेयव्वा णवरि णहमालगे देवे पोइदाणं से आलंकारियभड कडगाणि य सेस सञ्चं तहेव अट्टाहिया महा महिमा) वहा पहुँचकर उसने जो कार्य वहा पर किया वह कृतमालक देव को वक्तव्यता में जैसा कहा गया है वैसा ही यहापर जानना चाहिये कृतमालक देव तमिखा गुहा का अधिपति देव है. उस वक्तव्यता मे और इस वक्तव्यता में यदि कोई अन्तर है तो वह ऐसा है कि नाटयमालक देवने भरतके लिये प्रोतिदान में आमरणों से भरा हुआ भाजन और कटकदिये इससे अतिरिक्त और सब अवशिष्ट कथन सत्कारसन्मान आदि करने का कृतमालक देव की तरह से ही आठदिन तक महामहोत्सव करने तक का है- (तएण से भग्हेराया णड्डमालगस्स देवस्स अट्टाहिआए महिमाप णिग्वत्ताए समाणीए सुसेण सेणावई सह बेइ ) जय नाटच मालक देव के विजयोपलक्ष्य में कृत आठ दिन का महोत्सव समाप्त हो चुका तव भरत महाराजा ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाया (सदा वित्ता जाव सिधुगमो गेयव्यो' वुअकर उसने जो उससे कहा वह सब सिंधुनदी के प्रकरण यावे, ते प्रभाशे सत्रे पाशु सगृहीत धये। छ (उवागच्छता सव्वा कयमालगवतब्वया यत्रा णवरि णट्टमालगे देत्रे पोइदाण से अलंकारियभंड षडगाणिय सेर्स सव्व तहेव अट्टादिया महामहिमा) त्या पोथी ने तेथे ने डायेंत्याय ते विषे वृतभाष દેવની વતવ્યતામાં જેમ વર્ણવવામા આવેલ છે તેમ અહી પણ જાણી લેવું જોએ કૃતમાલક દેવ તમિસ્રા ગુહાના અધિપાત દેવ છે તે વક્તવ્યતામાં અને આ વક્તવ્યતાંમાં તફાવત આટલા જ છે કે નાટચમાલક વે ભરત મહારાજા માટે પ્રીતિઢાનમાં આભરણા થી • શ્ડ ભાજન અને કટકો આપ્યાં એના સિવાયનુ શેષ બધુ કથન સત્કાર, સન્માન વગેરે કૃતમાલક દેવની જેમ જ ઠ દિવસ સુધી મહામહોત્સવ કરવા સુધીનું છે अट्टाहिआप महिमाप णिव्वत्ताप समाणीप सुसेगं મારે ન થ માથક દેવના વિપક્ષ્યમા આયાજિત માઠ દિવસ સુધીના ઈ ચૂક્યો ત્યારે ભરત રાજાએ પાતાના સુષેણુ નામક સેનાપતિ ને એટલા सिंधुगमो णेन्बो) मोसावी ने तेथे २४ ते सेनापति ने
प्रकाशिका टीका तृ०३ वक्षस्कारः सू०२६ भरतराक्ष दिग्यात्रावर्णनम् यिला आाहप 'जाव सिंधुगमो यो यावत् परिपूर्णः सिन्धुगमः नेतन्यः ज्ञातव्यः 'एवं चपासी गच्छाहिणं भो देवाणुविया ! सिंधुए' इत्यादिकः सिन्धुनदी निष्कुटसाधनपाठो गङ्गामिलापेन नेतव्यः ग्रहीतव्यः अस्मिन्नेव बक्षस्कारे त्रयोदशसूत्रे मिन्धु नदी निष्कुटसाधनपाठो द्रष्टव्य 'जाव गंगाए महाणईए पुरथिमिल णिक्खुड सगंगासागरगिरिमेरागं समवसमणिक्खुडाणि य ओअवेड' यावत् गङ्गाया महानद्याः पौरस्त्यं पूर्वदिग्वर्ति निष्कुटं कोणस्थितभरतक्षेत्रखण्डरूपम् उदं च कैर्विभाजकः विभक्तमित्याह सगंगामागर रिमर्यादम्, तत्र पश्चिमतः गद्गाः पूर्वतः सागरः दक्षिणतः गिरिः चैताढ्य गिरिः उत्तरतश्च क्षुद्रहिमवद् गिरिः तैः कृता या मर्यादा विभागरूपाः तया सह वर्तते यत्तत्तथा, एतैः कृतविभागमित्यर्थः 'समविसमणिक्खुडाणि य' समविषमनिष्कुटानि च तत्र समानि च समभूमिभागवर्त्तीनि विपामाणि च दुर्गभूमिभागवर्तीनि यानि निष्कुटानि अवान्तरक्षेत्र खण्डरूपाणि तानि तथा 'ओअवेहि 'माघय तत्र प्रयाणं कृत्वा विजयं कुरु 'ओअवेत्ता' साधित्वा विजित्य 'अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छेहि ' अग्र्याणि अग्रेगण्याणि चराणि श्रेष्ठानि रत्नानि स्वस्वजातौ उत्कृष्टवस्तूनि प्रतीच्छ गृहाण 'तए ण से सेणावई जेणेव गंगामहाणई तेणेव उवागच्छइ' ततः खलु स सेनापतिः सुषेण नामकः यत्रैव गङ्गा महानदी तत्रैव उपागच्छति उवागच्छत्ता' उपागत्य 'दोच्चंपि सत्रखधामें जैसा कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये परन्तु यहा वह प्रकरण सिन्धु नदी के स्थान में गङ्गा शब्द को जोड़कर कहा जावेगा - जैसे "गच्छाहिण भी देवाणुपिया !" हे देवानुप्रिय ! सुषेण ! तुम जाओ और गगामहानदी के 'पुरथिमिल्ल णिक्वुड सगंगासागर गिरिमेराग समन् विसमणिक्खुडाणि य ओअवेहि " । पूर्वदिग्वर्ती निष्कुट - भरत क्षेत्र को जो कि पश्चिम में - में गङ्गासे पूर्व में समुद्र से दक्षिण में वैसाट्यगिरि से और उत्तर में क्षुद्र हिमवत्पर्वत से विभक्त हुआ है उसे साधो और उसके सम विषमरूप जो अवान्तर क्षेत्र खड है, उन्हे साघो अपने वश में करो और उन्हें वश में करके वहां से प्राप्त अपनी अपनी जाति मे उत्कृष्ट वस्तुओं से प्रीतिदान में प्राप्त करो (तएण से सेणावई जेणेव गगा महाणई तेणेव उवागच्छई) इस तरह से भरत राजा द्वारा कहा गया वह सुषेण सेनापति जहां गंगा महानदी थो वहां पर गया ( उवाબધુ સિંધુ નદૃીના પ્રકરણમાં જેમ કહેવામાં આવ્યુ છે તેવુ જ ઋત્રે પણ સમજવુ પણ भड़ी सिन्धु नहीना स्थाने जगा शण्ड भेडवो पडशे नेभ है - "गच्छाहिण भो देवाणुप्पिया !" डे हेवानुप्रिय । सुषेय तमे लम्बो भने गजा महानहीना (पुरस्थिमिल्ल णिक्खुढं सगंगा सागरगिरिमेराग समविसमणिक्खुडाणिय ओअवेदि) ५६ ढिगवती निष्ठुट- भरत क्षेत्रने के જે પશ્ચિમમા ગગામહાનદીથી પૂર્વ મા સમુદ્રથી, દક્ષિણમા વૈત દ્રા ગિથિી અને ઉત્તરમા ક્ષુદ્ર હિમત પૂ તથી વિભકૃત થયેલ છે તેને સાઘેા અને તેના સમવિષમ રૂપ જે અવાન્તર ક્ષેત્રખડ છે, તેમને સાધા, પાનાના વશમાં કરા અને તેમને વશમા કરીને ત્યાંથી પ્રાપ્ત પોતचातानी भतिभा उत्छुष्ट होय तेवी वस्तुने प्रीतिद्वानभा प्रभु ४३।। (तपणं से सेणावई जेणेव गंगा महाणईते णेव उवागच्छई) २सा प्रभाऐ भरत राम वडे याज्ञप्त थयेवो ते सुषेश
वारवले गगामहाणई विमलजलतुंगवीई णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरड' सस्कन्धावारवलः स्कन्धावार सैन्यसहितः सेनापतिः सुषेणः सेनापतिः द्वितीयमपि गङ्गायाः महानद्या : विमलजलतुङ्गवीचिम् निर्मोदकोस्थितकल्लोलम् अतिक्रम्य नौभूतेन चर्मरत्नेन उत्तरति पारं गच्छति 'उत्तरित्ता' उत्तीर्य पार गत्वा 'जेणेव भरहस्म रण्णो विजयखधावारणिवेसे जेणेच वाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छड' यत्रैव भरतस्य राज्ञो विजयस्कन्धावारनिवेशः यत्रैव वाद्या उपस्थानशाला तत्रैव उपागन्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओो पच्चोरुहह' आभिषेक्यात् अभिषेकयोग्यात् प्रधाना हस्विरत्नात् प्रत्यवरोहति अपस्तात् अवतरति 'पन्चोरुहित्ता' प्रत्यवरुद्य 'अग्गाह वराई रयणाइ गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छई' अग्र्याणि वराणि श्रेष्ठानि रत्नानि गृहीत्वा यत्रैच भरतो राजा तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'करयलपरिग्गद्दिय जाव अंजलिं कट्टु भरहं राय जएण विजएणं बद्धावेड' करतलरिगृहीतं यावत्पदात् दशनखं शिरसावर्त्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा भरतं राजानं जयेन विजयेन जयगच्छित्ता दोच्चपि सक्खंधावारबले गंगा महाणई विमल जलतु गवोई णावा भूएण चम्मरयणेणं उत्तर ) वहा जाकर उसने अपने स्कन्धावारूप बलसहित होकर जिसमें विमल जल की बड़ी २ लहरे उठ रहीं है ऐसी उस गंगामहानदी को नौका भून हुए चर्मरत्न के द्वारा पारकिया (उत्तरित्ता नेणेव भरहस्म रण्णो विजयखषावारणिवेसे जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणमाला तेणेव उवागच्छ६) पार करके फिर वह जहां पर भरत महाराजा का विजयस्कन्धावार का पडाव था. और जहां पर बाह्य उपस्थानशाला थो वहा पर आया ( उवगछित्ता अभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पञ्चोरुह ) वहां आकर वह अभिषेक्य- आभिषेक योग्य-प्रधान - हस्तिरत्न से नीचे उतरा (पञ्चोरुहित्ता अग्गाइ वराई' रयणाणि गहाय जेणेत्र भरहे राया तेणेव उवागण्ठ६) नीचे उतर कर वह श्रेष्ठ रत्नो को लेकर जहा भरत राजा थे वहां पर आया, ( उवागच्छिता करयलपरिग्गहिय जाव मंजलिकट्टु भग्ह रायं जपण विजपणं वद्धावेइ) वहा आकर के उसने दोनो हाथों को जोड़कर और तक्या महानही हनी त्या गये। (उवागच्छित्ता दोच्चपि समखधावारवले गंगा महाणई विमलजलतुंगवोइ णावाभूषणं चम्मरयणेण उत्तरह) त्या बहने तेथे पोताना કધાવાર રૂપ બલસહિત મુસજજ થઈને જેમા વિમલ જળની વિશાળ ત ગે। रही छे श्रेत्री ते गंगा महानहीने नौअभूत थपेक्षा ते यमरत्न वडे पार पुरी ( उत्तरित्ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवाરાળા) પાર કરીને પછી તે જ્યા ભરત રાજાને વિષય ધાવાર-પડાન-હતા અને જ્યા आझ उपस्थान शाणा ही त्या मान्य (उरागच्छता अभिसेक्काओ इत्थिरयणाओ पञ्चो Tદ) ત્યા આવીને તે આભિષેકય-અમિષેક ચાગ્ય-પ્રધાન હસ્તિરત્ન ઉપરથી નીચે ઉતર્યાં ( पच्चोरुहिता अग्गार वरराइ रयणाणि गद्दाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छर ) उतरीने ते श्रेष्ठ रत्नेने सर्व ने क्या भरत महारान हता त्या आध्ये ( उवागच्छत्ता कर यलपरिग्गहिये जाब अजलि कटूड भरह रायं जपण विजपणं बद्धावेश) त्या भावाने तेथे
प्रकाशिका टोका तृ. ३ वक्षस्कार सु० २६ भरतराज्ञ दिग्यात्रावर्णनम् विजयशन्दाभ्यां वर्द्धयति 'नद्धावित्ता' वर्द्धयित्वा स सेनापतिः 'अग्गाड चराई रयणाडं उवणेड' अग्र्याणि वराणि रत्नानि उपनयति अर्पयति राज्ञः समीपम् आनयति इत्यर्थः 'उए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाड वराडं रयणाई पडिच्छड' ततः आनयनानन्तरं खलु स भरतो राजा सुषेणस्य सेनापतेः अग्र्याणि वराणि रत्नानि प्रतीच्छति गृह्णाति 'पडिच्छित्ता'मतीष्य गृहीत्वा 'सुसेणं सेणावई सक्कारेड सम्माणे सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ' स भरतो राजा सुपेण सेनापति सत्कारपनि वस्त्रालङ्कागद पुरस्कारैः सन्मानयति मधुरवचनादिभिः, सत्कार्य सन्मान्य च प्रतिविसर्ज्जयति निजनिवासस्थानमप्रतिगन्तुमाज्ञापयतीत्यर्थः 'तपणं से मुसेणे सेणावर्ड भरहस्मरणो से मंपि तद्दे व जाव विहरड' ततः खलु भरतस्य राज्ञः सेनापतिः स सुपेणः शेपमपि अवशिष्टमपि तथैव पूर्वोक्त सिन्धुनिष्कुटसाधन नदेव यावत् स्नातः, कृतवलिकर्मा, कृतकौतुकमद्गलप्रायश्चित्त इत्यारभ्य यात्रत्त्रासादवरं प्राप्तः सन् इष्टान् इच्छाविषयीकृतान् शब्द स्परसरूपगन्धान पञ्चविषान् मानुष्यकान् मनुष्यसम्वन्धिनः कामभोगान तत्र शब्दरूपे कामौ स्पर्शरसगन्धाः भोगाः उन्हें अंजलि के रूप में कर भरतमहाराजा को जय विजय शब्दों से वधाई दी ( बद्धाविता अग्गाई बराई रयणाइ उवणेइ) बधाई देकर फिर उसने श्रेष्ठ रत्नो को उसके लिये अर्पित किया-राजा के पास उन्हें रक्खा (तएणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावडरूम अग्गाइ वराइ रयणाइ पडिच्छइ) भरतनरेश ने उस सुषेण सेनापति के उन प्रदत्त श्रेष्ठ रत्नो को स्वीकार कर लिया. (पडिच्छिता सुसेण सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ) स्वीकार करके फिर उसने सुपेण सेनापति का सरकार और सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ ) सत्कार सन्मान कर फिर भरत नरेश ने उसे विमर्जित कर दिया. (तएण से सुसेणे सेणाचई भरहस्स रण्णो संसपि तहेव नाव विह रई) इसके बाद भरत नरेश के पास से आकर वह उस सुषेण सेनापति ने स्नान किया बलि कर्म किया कौतुकमगल प्रायश्चित किये यावत् वह अपने श्रेष्ठ प्रासाद में पहुंचकर इच्छानुसार शब्द, स्पर्श, रस रूप और गंध विषयक पांच प्रकार के कामभोगों को भोगने लगा. शब्द रूप અન્ને હાથા ને જોડી ને અને તેમને અ જલિ રૂપમાં મનાવીને ભરત મહારાજાને જયવિજય शब्हे वडे वधाभवी भाभी (बद्धावित्ता भगाई चराई रयणाई उवणेइ) वधामाशी भायी ने पछी તેણે તે ભરત મહારાજાને શ્રેષ્ઠ રને અર્પિત કર્યું - શાની સામે શ્રેષ્ઠ રત્નો મૂક્યાં (તપળ से भरहे राया सुलेणरल सेणावइस्स अम्गाइ वराइ रयणाइ पडिच्छइ) भरत नरेशे ते सुषेधु सेनापति वडे अहत्त रत्नाने स्वीकार ये (पडिच्छिन्ता सुसेण सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ ) स्वीअर ४रीने पछी तेथे सुषेशु सेनापतिनी सरकार हुये भने सन्मान म्यु' (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ) सरार अने सन्मान ४रीने पछी भरत नरैशेते सुषेधु सेनापति ने हरपूर्ण विसति (तपणं से सुसेणे सेणावई भरहस्स रण्णो सेसूपि तहेव जाव विहरह) त्यार माह भरते नरेश पासेवी पोताना व्यावास - स्थान पर भावी ने सुषेशु सेनाપતિએ સ્નાન કર્યું, ખલિકમ ટુ", કૌતુક મગળ, પ્રાથશ્ચિત્ત યાવત તે પાતાના ક્ષેત્ર પ્રાસાદમાં પહેાચીને ઈચ્છાનુસાર શબ્દ, સ્પ, રસ રૂપ અને ગધ વિષયક પાંચ પ્રકારના
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c3ab02bf2bbea55b123bdb56d60cf4415d6416dc220bbfb0fcbeb21caa4a4eab
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वह लिखता है कि, हमारी जीत दिल्ली, आगराव जौनपुर आदि पर हुई और हिन्दू व मुसलमान सवने हमारी अधीनता स्वीकार की। केवल राणा सांगा ने सब विरोधियों का नेता वन कर सिर फेरा । वह विलायत हिन्द में इस तरह छाया हुआ था कि, जिन राजा और रावों ने किसी की आधीनता स्वीकार नहीं की थी वे भी अपने बड़प्पन को छोड़ कर उसके झण्डे के नीचे प्राये, तथा 200 मुसलमानी शहर उसके अधिकार में थे और मस्जिदें उसने खराव कर डाली थीं, तथा मुसलमानों की स्त्रियों व बच्चों को पकड़ कर कैद कर ले गया। उसके अधीन एक लाख सवार होने से विलायती कायदे के अनुसार उसका प्रदेश 10 करोड़ रुपये वार्षिक की आमदनी वाला था । इस्लाम से वैमनस्य होने से दस बड़े-बड़े सरदार उसके साथ थे । राजा सलहदी तंवर (रायसेन का) 30,000 सवारों का स्वामी, रावल उदयसिंह वागड़ी (डूंगरपुर का ) 12,000 सवारों का स्वामी, मेदिनीराय (चंदेरी का) 12,000 सवारों का स्वामी, भारमल ईडरी (ईडर का) 4,000 सवारों का स्वामी, नरवद हाड़ा 2 (बूंदी का) 7,000 सवारों का स्त्रामी, शत्रुदेव खीची ( गागरीन का) 6,000 सदारों का स्वामी, वीरमदेव (मेड़ता का) 4,000 सवारों का स्वामी, नरसिंह देव चौहान 4,000 सवारों का स्वामी, और सुलतान सिकन्दर का वेटा शाहजादा महमुदखां 10,000 सवारों का स्वामी, जिनकी कुल सेना दो लाख एक हजार सवार होती है, इस्लाम के विरुद्ध चढ़ कर आये। इधर मुसलमान भी जिहाद (धर्मयुद्ध) समझ कर तैयार हो गये ।
हिजरी 933, 13 जमादियुस्सानी शनिवार (चैत्र शुक्ल 15, वि० 1584 = 16 मार्च, 1527 ई०) के दिन वयाना के निकट खानवा नामक स्थान पर विरोधी की सेना से दो कोम पर वादशाही सेना का पड़ाव हुआ था । यह सुनकर विरोधी लोग इस्लाम को नष्ट करने के लिये हाथियों को
हिन्दुओं की गणनानुसार - वेवरिज, वारनामा (अं० [अ० ) भाग 2, पृ० 262।
2. बूंदी के राव नरायणदास का छोटा भाई और सूरजमल का चाचा, खटकड़ का जागीरदार और बूंदी की सेना का सेनापति । ( सं० )
फतहपुर सीकरी से 8 मील
पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम में । (सं० )
कहता है, कि हमारे हक में मरना और मारना दोनों अच्छा है। हमारे लोगों ने इस बात पर दृढ़ होकर मरने और मारने का झण्डा ऊंचा किया ।
जब लड़ाई ने उग्ररूप धारण किया और बहुत समय तक चलती रही, तव वादशाह के आदेश से खास जंगी सिपाही तावीनान -इ खास-इ- पादशाही जो कि जंजीर वन्द गाड़ियों की आड़ में थे, दोनों तरफ शाही गोल से निकले । वीच में बन्दूकचियों और तोपचियों को रख कर वे दोनों तरफ से टूट पड़े । जिससे बहुत से विरोधी मारे गये । उस्ताद अली कुली ने भी, जो अपने साथियों सहित बादशाह के गोल के आगे खड़ा था, वड़ी वीरता दिखलाई । तोप, बन्दूक व भारी पत्थरों से दूसरी तरफ वालों को बहुत नुकसान पहुंचाया, वन्दूकचियों ने भी शाही आदेश से गाड़ियों के आगे बढ़ कर बहुत से शत्रुत्रों को नष्ट किया । पैदलों ने बड़े खतरे की जगह में घुस कर प्रसिद्ध प्राप्ति की । वादशाह लिखता है कि, हम भी गाड़ियों को बढ़ा कर आगे बढ़े। जिससे सेना में बड़ा जोशखरोश पैदा हो गया और फौजों के चलने से ऐसी गर्द उड़ी कि, अंधेरा छा गया । लड़ाई ऐसी हुई कि कौन हारा, कौन जीता और किसने वार किया और किसके लगा, इसकी पहचान जाती रही । इस जगह वादशाह लिखता है कि, हमारे गाजियों के कान में गैब से उस कलामुल्लाह की के अनुसार आय आवाज आती थी, जिसका अर्थ यह है कि, "मत दबो, मत उदास हो. तुम ही विजयी रहोगे।" मुसलमान गाजी ऐसे लड़े कि फरिश्ते भी आसमान में उनकी प्रशंसा करते थे । दो पहर ढले, चार घड़ी दिन रहने तक लड़ाई ऐसी हुई कि, जिसके शोले प्रासमान तक पहुँचे । वादशाह की फौज ने विरोधियों की सेना को उनके गोल में मिला दिया । तब उन्होंने एकदम पूरा संकल्प कर दिल जान से तोड़ कर हमारे दाएं-बाएं गोल पर हमला किया और वाई तरफ हमारे गाजियों ने खरत का सवाव समझ कर बहादुरी से उनको वापस हटा दिया। इसके साथ ही हमको विजय की शुभ सूचना मिली । दूसरी तरफ वाले कठिनाई देख कर तितरवितर हो गये। बहुत से लड़ाई में मारे जाकर शेष बचने वालों ने जंगल का रास्ता लिया। लाशों के टीले और सिरों की मिनारे बन गयीं ।
हमनखां मेवाती बन्दूक के लगने से मारा गया। इसी तरह विरोधियों के बड़े-बड़े सरदार तीर और वन्दूकों से समाप्त हुए । जिनमें डूंगरपुर वा रावल उदयसिंह, जिसके साथ 12,000 सवार थे, राय चन्द्रभारण चौहान
सुलतान मुहम्मद वरुणी सरदारों को अपनी-अपनी जगह पर जमा कर पवादशाह के आदेश सुनने और उसका पालन कराने को मुस्तैद रहा । जव सव लोग जम गये, तब वादशाह ने आदेश दिया कि, हमारे आदेश के विना कोई अपनी जगह से नहीं हिले गीर विना याज्ञा लड़ाई नहीं करे ।
लगभग एक पहर और दो घड़ी दिन चढ़े लड़ाई शुरू हो गई । बुरंनगार और जरंगार से ऐमी भारी लड़ाई हुई कि, जिसका शोर आसमान तक पचा, अर्थात् महाराणा की जरंंगार शाही बुरंनगार पर टूट पड़ी और खुसरो कोकलताश और मलिक कासिम पर हमला किया । तव शाही आदेश से चीन तैमूर सुलतान उनकी मदद को गया और राजपूतों को हटा कर उनकी फौज में पहुँचा दिया। यह काररवाई तैमूर सुलतान की मानी गई । मुस्तफा रूमी ने शाहजादा हुमायूं की फौज से निकल गाड़ियों को सामने लाकर बन्दूकों और तोपों से दूसरी तरफ की फौजी कतारों को तोड़ना शुरू किया। लड़ाई के समय बादशाह के आदेशानुसार कासिन हुसैन मुलतान, ग्रहमद यूसुफ और किमामवेग उसकी सहायता के लिये पहुँचे । दूसरी तरफ के सेना वाले भी दम-वदन अपने आदमियों की मदद को चले आते थे । बादशाह ने हिन्दूवेग कोचीन और उसके बाद मुहम्मदी कोकलताश और ख्वाजा की असद और उसके बाद यूनसली, शाह मन्सूर वर्लास और अव्दुलाह कितावदार को और इनके पश्चात् दोस्त एशकका और मुहम्मद खलील अख्ताबेगी को मदद के लिये भेजा ।
इधर बादशाह की जरंन्गार पर दूसरी तरफ के वुरंनगार ने लगातार किये और गाजियों तक पहुँच गये । शाही फौज के गाजियों ने बहुतसों को तीरों से मारा और वहुतसों को वापस हटाया । फिर मोमिन अन्का (ग्रानाक) और रस्तम तुर्कमान ने शाही फौज से निकल कर विरोधियों की फौज के पीछे की तरफ से आक्रमण किया । मुल्ला महमूद और लो (क) वालिक को बादशाह ने उनकी मदद को भेजा । मुहम्मद सुलतान मिर्जा आदिल सुलतान, अब्दुल अजीज मीरखुर व कुतुल्ककदलकराविल, व मुहम्मद अली खिगजंग, शाह हुसैन बारकी (यारगी) भी लड़ाई का हाथ खोलकर युद्ध प्रारम्भ कर रणक्षेत्र में प्रा डटे, तथा ख्वाजा हुसैन वजीर को उसके सैनिकों सहित वादशाह ने उनकी मदद को भेजा । इन सव जिहाद करने वालों ने बड़ी कोशिश से लड़ाई की । वादशाह कुर्यान की पढ़कर
ने मीरावाई को महाराणा कुम्भा को राखो लिखा है । लेकिन यह वात गलत है। क्योंकि मीराबाई का भाई जयमल तो विक्रमी 1624 (हि० = 975 = 1567 ई० ) में प्रकवर की लड़ाई में चित्तौड़ पर मारा गया और महाराणा कुम्भा का देहान्त 1525 वि० (873 हि० = 1468 ई०) में हो गया था । फिर न मालूम कर्नल टॉड ने यह बात अपनी किताब में कहां से लिखी ।
इन महाराणा के 7 राजकुमार थे - भोजराज, कर, रत्तनसिंह, पर्वतसिंह, कृष्णदास, विक्रमादित्य और उदयसिंह । जिनमें से भोजराज, क, पर्वतसिंह और कृष्णदास तो कु वरपदे में ही परलोकवास कर गये । रतनसिंह, विक्रमादित्य व उदयसिंह ये तीनों मेवाड़ की गादी पर बैठे, जिनका हाल दूसरे भाग में लिखा जायेगा ।
महाराणा सांगा का जन्म वैशाख कृष्ण 9, 1538 वि० ( 23 मुहर्रम, 8°6 हि० = 24 मार्च, 1481 ई०) को, राज्याभिषेक जेष्ठ शुक्ल 5, 1565 वि० (4 मुहर्रम, 914 हि० = 4 मई, 1508 ई० ) को और देहान्त 1584 वि० ( 933 हि० रज्जव = 1527 ई० अप्रैल ) के वैशाख 1 में हुआ था ।
२. महाराणा रतनसिंह -
महाराणा सांगा (संग्रामसिंह) के सात पुत्र हुए - 1. पूर्णमल, 2. भोजराज, 3. पर्वतसिंह, 4. रतनसिंह, 5. विक्रमादित्य, 6. कृष्णसिंह, और 7. उदयसिंह । 1. पूर्णमल, 2. भोजराज 3. पर्वतसिंह और 6. कृष्णसिंह
महाराणा सांगा की मृत्यु की यह तिथि ठीक नहीं है । वावर ने चंदेरी विजय (7 जमादिउल अव्वल 934 हि० = जनवरी 29, 1528 ई०) के बाद अपने सरदारों से राणा सांगा पर सैनिक अभियान करने के लिये परामर्श किया । स्पष्टतया तब तक महाराणा सांगा की मृत्यु का समाचार नहीं मिला था। चतुर कुल व चरित, पृ० 27 पर दी गई महाराणा सांगा की मृत्यु तिथि माघ शु० 9, 1585 वि० ( जनवरी 30, 1528 ई० ) ठीक प्रतीत होती है । गोरीशंकर हीराचंद आदि बाद के इतिहासकारों ने भी यही तिथि स्वीकार को
है । (सं० )
जिसके साथ 4,000 सवार और राव दलपत जिसके 4,000 सवार और गंगू, कर्मसी व डूंगरसी जिनके साथ तीन-तीन हजार सवार थे, आदि और भी कई प्रसिद्ध सरदार मारे गये । जिधर इस्लाम की सेना जाती, कोई कदम मुर्दों से खाली नहीं पाती थी । इस जीत के बाद मैंने अपना नाम "गाजी" रखा । वाबर लिखता है कि, मैं इस्लाम के लिये इस लड़ाई के जंगल में भटक मैं अपना शहीद होना टान लिया था। लेकिन खुदा का शुक्र है कि, गाजी वन कर जीवित रहा ।
ऊपर लिखा हुग्रा खुलासा जो "तुजुक-इ-वावरी" से लिया गया है, केवल लड़ाई के हाल का है। यदि किसी पाटक को अधिक हाल की जानकारी प्राप्त करना हो, तो तुजुक-इ-वावरी को देखें ।
महाराणा सांगा का कद मंझला मोटा चेहरा, बड़ी ग्रांख, लम्बे हाथ और गेग्रा रंग था । यह दिल के बड़े मजबूत थे । इनकी जिन्दगी में इनके बदन पर शस्त्रों के 84 घाव लगे थे। एक आँख वेकाम, एक हाथ कटा हुआ और एक पैर लगड़ा ये भी लड़ाई की निशानियां उनके अंग पर विद्यमान थीं ।
इस महाराणा ने महियारिया गोत्र के चारण हरिदास को बादशाह् महमूद मालवी को गिरफ्तार करने की खुशी में अपना सम्पूर्ण चित्तोड़ का राज्य दे दिया था । हरिदास ने राज्य लेने से इंकार किया और वारह ग्राम पनी खुशी से लिये । जिनमें से पांचली नामक एक गांव अभी तक उसके वंशजों के अधिकार में है ।
इन महाराणा ने जोधपुर के राव जोधा के पौत्र और राव सूजा के पुत्र कुवर वाघा की तीन वेटियों से शादी की थी । ये तीनों राव बाघा की राणी चौहान पुहपावती से पैदा हुई थी । इनमें से धनवाई के पेट से बड़े कुवर रतनसिंह पैदा हुए । बूंदी के राव भांडा की पोतो और नरवद की वेटी महाराणी कर्मवतीबाई से महाराणा विक्रमादित्य और उदयसिंह पैदा हुए । इन महाराणा के सबसे बड़े राजकुमार भोजराज थे, जिनकी शादी मेड़ता के राजा वीरमदेव के छोटे भाई व जयमल के काका रतनसिंह की वेटी मीराबाई के साथ हुई थी । लेकिन उक्त राजकुमार का देहान्त महाराणा सांगा के जीवनका में ही हो गया था । कर्नल टॉड आदि कितने ही इतिहासकारों
महाराणा सांगा के देहान्त के समय सात में से तीन पुत्र - रतनसिंह, विक्रमादित्य और उदयसिंह जीवित रहे । इनमें से बड़ा रतनसिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा और छोटे दोनों विक्रमादित्य और उदयसिंह रणथम्भोर के स्वामी बने ।
इनको रणथम्भोर मिलने कारण यह है कि, बूंदी के राव भांडा के दूसरे बेटे नरवद की बेटी कर्मवतीबाई, महाराणा सांगा को व्याही गई थी । उसके गर्भ से विक्रमादित्य और उदयसिंह हुए। महाराणी हाड़ी कर्मवती से महाराणा सांगा अधिक प्रसन्न थे । एक दिन महाराणी हाड़ी ने महाराणा से प्रार्थना की कि, मेरे दोनों बेटों के लिये आपके हाथ से जागीर नहीं मिलेगी तो वाद में रतनसिंह इनको दुःख देगा । तब महाराणा सांगा ने कहा कि तुम जो जागीर मांगोगी वही तुम्हारे वेटों को दी जावेगी । इस पर राखी ने रणथम्भोर के लिये निवेदन की और महाराणा ने उसको स्वीकार किया । फिर महाराणी हाड़ी ने कहा कि यदि आपने मेरी विनती स्वीकार की है तो
जयमल का मारा जाना लिखा है, इस हालत में जयमल की वहिन मीराबाई कुम्भा की राणी किस तरह समझी जावे ? मीरावाई महाराणा विक्रमादित्य व उदयसिंह के समय तक जीवित रही और महाराणा ने उसको जो दुःख दिया वह उसकी कविता से स्पष्ट है । इससे स्पष्ट है कि कर्नल टॉड ने धोखा खाया है। इसका कारण यह होगा कि, महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ पर कुम्भश्यामजी के नाम से एक मन्दिर बनाया था । उसके पास ही एक दूसरा मन्दिर बना हुआ है जो, मीराबाई के नाम से प्रसिद्ध है । परन्तु यह पता नहीं कि यह मन्दिर मीराबाई का बनवाया हुआ है या किसी अन्य का । सम्भवतः इन दोनों मन्दिरों के पास-पास होने से मीराबाई महाराणा कुम्भा की स्त्री मानी गई । परन्तु हमारे यहां व मेड़तिया राठौड़ों व जोधपुर के इतिहास ग्रन्थों में मीराबाई को भोजराज की राणी लिखा है ।
रणथम्भोर~~-यह प्रसिद्ध किला इस समय जयपुर के राज्य में है । (सं० )
चार तो महाराणा सांगा के जीवनकाल सांगा के जीवनकाल में मृत्यु को प्राप्त हो गये। इनमें से 2 - भोजराज, सोलंखी रायमल की बेटी के गर्भ से जन्मा था. उसका विवाह मेड़ता के राव दूदा जोधावत के पांचवें वेटे रतनसिंह की बेटी मीराबाई के 2 साथ हुआ था । मीरवाई बड़ी धार्मिक और साधु-सन्तों का सम्मान करने वाली थी, वह वैराग्य के गोत बनाती और गाती । इससे उसका नाम व बहुत प्रसिद्ध है ।
मेड़ता-जोधपुर राज्य में एक कस्वा है, जिसके नाम से एक परगना "मेड़ता की पट्टी " कहा जाता है । ( सं० )
कर्नल टॉड मीराबाई को महाराणा कुम्भा की रागी लिखता है, परन्तु यह वात ठीक नहीं है। क्योंकि राव जोधा ने 1515 वि० (862 हि० = 1458 ई०) में जोधपुर वसाया । 1525 वि० (872 हि० = 1468 ई०) में महाराणा कुम्भा का देहान्त हुआ । तथा 1542 विक्रमी (890 हि० = 1485 ई०) में राव दूदा जोधावत की मेड़ता (भामादेव के वरदान से) मिला । 1584 वि० (933 हि०=1527 ई०) में महाराणा सांगा और बाबर बादशाह की लड़ाई में दूदा के दो पुत्र वीरमदेव (यहीं रायमल) और रतनसिंह (मीरावाई के पिता) मारे गये । वीरमदेव का वेटा जयमल 1624 विक्रमी (975 हि० = 1568 ई० ) में चित्तौड़ पर, अकबर से हुई लड़ाई में मारा गया ।
सोचना चाहिये कि महाराणा कुम्भा के समय दूदा को मेड़ता ही नहीं मिला था, फिर दवा की पोती "मीरावाई मेड़रणी " कुम्भा की रारणी किस तरह हो सकती है ।
महाराणा कुम्भा के देहान्त से 59 वर्ष वाद वावर और महाराणा सांगा की लड़ाई में मीराबाई का वाप रतनसिंह मारा गया । यदि टॉड का लिखना ठीक समझा जाय तो महाराणा कुम्भा के समय में रतनसिंह की अवस्था चालीस वर्ष से कम नहीं रही होगी। इस हिसाब से मारे जाने के समय उसकी अनुमानित सौ वर्ष की होनी चाहिये । इतनी
उमर के आदमी का बहादुरी के साथ लड़ाई में मारा जाना असम्भव है ।
महाराणा कुम्भा के 100 वर्ष वाद मीराबाई के चचेरे भाई
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वेले आसा दी वार का कीर्तन होगा । यह नहीं कहा, मुसल्ला फूंक दो, कीर्तन बंद कर दो, क्योंकि बाणी सिक्ख के अंदर की धार्मिकता की रीढ़ की हड्डी है। जो इंसान बाणी से, नाम से, सिमरन से टूट गया, वह चाहे जितनी मर्ज़ी राज की बातें करे तो क्षमा करना, वह राज भी कल को आएगा तो जुल्म की इंतहा करेगा। जिस इंसान के भीतर धर्म नहीं वह राज भी केवल माया की कामना है। पहले धर्म है । भाई गुरदास जी को आप जी ने पढ़ा - सुना है । ध्रुव का कई बार विचार हुआ । ध्रुव माँ के पास आया । उसको उस दिन ठोकर लगी, क्योंकि उसको तख़्त से नीचे उतारा गया था। पिता तख़्त पर बैठा था। ध्रुव पिता की गोद में बैठा था और सौतेली माँ ने आते ही ध्रुव को बांह से पकड़कर पिता की गोद से नीचे उतार कर कहा कि तू इस गोद में नहीं बैठ सकता । उसने माँ को आते ही यह कहा था कि जब तख़्त से धक्के पड़े तो तख़्त कैसे हासिल किया जाए। उसने पूछाः
किसु उदम ते राजु मिलि सत्रू ते सभि होवनि मीता? मेरी माँ! राज कैसे मिल सकता है ? तो समझदार माँ ने कहा कि अगर पुत्र अकेले राज की मांग लेकर चला है तो ज़ालिम भी बन सकता है। पहली बात यह धर्म की प्राप्ति करे। कहने लगी, पुत्र ! परमेसरु आराधीऐ जिदू होइऐ पतित पुनीता ।
( वार १०, पउड़ी १ ) पुत्र धर्म की प्राप्ति कर तो तुझे राज मिलेगा और अकेले राज की बातें करते रहे तो गुरु जी ने बाणी में कहा :
दानं परा पूरबेण भुंचंते महीपते ।।
पूरबले दान से तुझे पदवी मिल गई । गुरु अरजन देव साहिब कहने लगे :
बिपरीत बुध्यं मारत लोकह नानक चिरंकाल दुख भोगते ।। ( अंग १३५६)
ऐसे राजा मृत्यु के बाद दुख सहते हैं। गुरु हरिगोबिंद साहिब ने आज दो कृपाणें मंगवाईं । बाबा बुड्ढा जी ने जिस वक्त कृपाणें पहनाईं
पंज पिआले पंज पीर / 103
थीं, गुरमुखो, उस दिन बाबा बुड्ढा साहिब जी की आयु 100 वर्ष के करीब थी । 99 वर्ष और 7 माह की हम कह लें । बाबा बुड्ढा जी ने दो कृपाणें आज पहनाई हैं, क्योंकि बाबा बुड्ढा जी एक वो इतिहास का ग्रंथ हैं। मैंने शब्द ग्रंथ प्रयोग किया है, जिसने अपनी आंखों से गुरबाणी का कीर्तन रबाब से भी सुना, आंखों से देखा और कानों से सुना। जिसने अपनी आंखों से गुरबाणी कहते गुरबाणी का युग भी देखा, उस बाबा ने आज तीसरा पड़ाव भी दिया। अपने हाथों से और उसने शस्त्रों का भी युग आरंभ किया। बाबा बुड्ढा जी ने दो कृपाणें पहनाईं ।
धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब जी ने तख़्त से पहले आदेश दिया। आदेश सारे सिक्खों के लिए था, वह था कि आज के बाद मेरे पास सुंदर घोड़े लाए जाएं, सुंदर जवानियां भेंट की जाएं, सुंदर शस्त्र लाए जाएं और साथ जो कथन के शब्द थे, क्योंकि बहुत संगत थी, गद्दीनशीनी थी, मीरी- पीरी की कृपाणें पहनी गईं, तख़्त रचाया गया । आवाज़ दी गई, मत घबराओ कि हम मुट्ठी भर सिक्ख हैं। जितनी भी आप निकलती हुई नदियां देखते हो, ये सभी पर्वतों के छोटे-छोटे स्रोतों CREATME य सभाप से निकलती हैं। एक बार स्रोत निकल जाए तो नदियों को कभी पर्वतों की चट्टानें भी नहीं रोक सकतीं। एक छोटी सी माचिस की तीली पूरे जंगल को जला कर राख कर सकती है। ढाढियों को कहा कि आज के आद आप जवानों का खून गर्माने वाली वारें गाओ। आपकी सारंगी की तार में से जवानों के खून को गर्माने के लिए वारें निकलें।
उस वक्त सुर सिंघ गांव के नौजवान उठे। प्यारिओ ! उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा, गुरु हरिगोबिंद साहिब सच्चे पातशाह ! तेरे चरणों में अरदास है। एक कृपा करो कि छः महीने बाद तन ढकने को वस्त्र दे देना, दो वक्त की रोटी दे देना। आज के बाद हमने घर नहीं जाना। इस तन की जहां ज़रूरत हो इसे इस्तेमाल कर लेना । धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब के सामने फिर दो ढाढी खड़े हुए। ये भी दोनों भाई - नत्था और अब्दुल्ला सुरसिंघ गांव के थे । गुरमुखो ! यह अच्छा गाते थे। गुरु हरिगोबिंद साहिब को किसी ने हाथी भेंट किया और मेरी सरकार ने ढाढियों को हाथी भेंट में दे दिया। कहने लगे, आप शूरवीरों की वारें गाने वाले पैदल क्यों आओ। आज के
104 / माणस जनमु अमोलु है
बाद हाथी पर चढ़कर आना । वह चढ़े अवश्य परंतु उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, सच्चे पातशाह! हम तो गायक हैं, आपकी प्रशंसा करने वाले हैं। यह हाथी आपको अच्छे लगते हैं। गुरु साहिब तख़्त पर बैठे, दो कृपाणें पहनीं और आज जो प्रताप था, इसको सोन कवि ने गुरबिलास पातशाही ६ में लिखा है कि धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब जी के बैठने से यह तख़्त शोभा देने लगा है । धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब जी का नूर नहीं बताया जा सकता । चमकता चेहरा है। चंद्रमा और सूर्य आज दोनों फीके लग रहे हैं। जब मीरी और पीरी का मालिक तख़्त पर बैठा तो पहले परमात्मा को याद किया। अब हम तख़्त तो सभी ढूंढते हैं, परंतु परमात्मा को कौन याद करे ? गुरु ग्रंथ साहिब जी को हमने अगर सचमुच गुरु माना हो । न्यायमूर्ति कुर्सी पर बैठा हो, किसी की हिम्मत नहीं कि सांस ले सके । प्यारिओ ! योग्य गुरु बैठा हो और आप मनमर्ज़ी करें। इसका मतलब सारे पखंड करते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु मानने के लिए तैयार नहीं । वह इसलिए मानते हैं क्योंकि तेरे करके हमें ख़ज़ाना मिलना है :
कबीर साचा सतिगुरु किआ करै जउ सिखा महि चूक ।। अंधे एक न लागई जिउ बांसु बजाईऐ फूक ।।
धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब बैठे हैं। उस दिन दोनों भाइयों ने गाया। कहने लगे, दो कृपाणें बंधी हैं एक मीरी की, एक पीरी की । मीरी की कृपाण तो है परंतु पीरी की क्यों ? हम कहेंगे तलवार से बाहर वाले शत्रु पर विजय हासिल की जा सकती है, परंतु पीरी के लिए, धार्मिकता के लिए तलवार क्यों ? क्योंकि गुरमुखो ! मीरी की तलवार वही पकड़ेगा जो पहले भीतर से पीरी की धार्मिकता के मार्ग पर चला होगा। पीरी की तलवार को बाबा फ़रीद जी ने कहा कि :
वाट हमारी खरी उडीणी ।। खंनिअहु तिखी बहुतु पिईणी ।। उसु ऊपरि है मारगु मेरा ।। सेख फरीदा पंथु सम्हारि सवेरा ।।
पंज पिआले पंज पीर / 105
इस पीरी की तलवार को गुरु अमरदास ने कहा है : खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ।।
हज़ूर सिंहासन पर बैठे। दो बादशाह गुरु हरिगोबिंद साहिब जी के जीवन काल में रहे हैं । एक जहांगीर और दूसरा शाहजहां । सिक्खों में नई आत्मा डाली गई। जहांगीर अभी अपने सिंहासन पर है। गुरु हरिगोबिंद साहिब और जहांगीर की मुलाकात हुई। साहिब धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब आगरा मिले। सिक्ख कई दिनों का एक सिक्का संभाल कर बैठा था और मन में एक भय था कि मैं निर्धन हूं, तू पातशाह है। तुम्हारे पास चलकर नहीं आ सकता। कभी शुभ वक्त आए तो पातशाह तू दर्शन दे और इन नेत्रों से तेरे दर्शन करूं । यह सिक्का तुम्हारे चरणों की भेंट है, मैंने संभाल कर रखा है। मेरे तन छोड़ने से पहले अपनी अमानत ले लेना । धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब गए, इस घास खोदने वाले सिक्ख को किसी ने कहा, सिक्खा ! आज समाचार मिला है कि तेरे मन का सुलतान धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब सच्चे पातशाह आए हैं । चलो दर्शन कर लो। कहते हैं कि तन मन खिल गया । कहता है सतिगुरु के लिए सिक्का और गुरु के घोड़े के लिए सुंदर घास खोदकर छांटकर लाया ।
इतिहास कहता है कि उसने भूल से पातशाह का पूछा और अधिकारियों ने जहांगीर के कैंप की ओर इशारा कर दिया । चला गया । सिक्का और घास की गठरी रखकर एक बात कही, कहने लगा, जन्ममृत्यु तोड़ दो । परमात्मा ! मृत्यु का भय खत्म करो। जहांगीर कांप गया । उसने अपनी जुबान से कहा, सिक्खा ! मैं बादशाह हूं, सच्चे पातशाह ! साथ वाले कैंप में हैं। सिक्ख ने सिक्का उठाया, घास की गठरी उठाई । बस इतनी बात हम सारे समझ जाएं सिंहासन पर बैठने वाले, सिंहासन को मानने वाले । गुरमुखो ! हम सिंहासन इसलिए प्रयोग करते हैं ताकि हमें जहांगीर मिल जाए। जहांगीर के सामने रखा हुआ सिक्का और घास की गठरी उठाई, उसने हाथ पकड़कर कहा तुम्हें पता नहीं कि सुलतान के आगे सिक्का और घास रखकर उठाना इसका तिरस्कार है और उस
106 / माणस जनमु अमोलु है
निर्धन सिक्ख ने कहा, याद रखना, मैं पातशाह को मानने वाला हूं, मैं बादशाह के राज्य में नहीं रहता । उसने कहा, मैं इसके बदले सोने की मोहरें दूंगा, सिक्का और घास की गठरी मत उठा । कहने लगा, याद रख, जिसका राज हो, सिक्के भी उसके चलते हैं। तेरा राज असत्य है, असत्य राज के सिक्के सच्चे पातशाह के दरबार में नहीं चलेंगे। इस सिक्के को अपनी मोहर न समझ, इस सिक्के में केवल प्रेम की टकसाल की मुहर लगी है। याद रखो, पातशाह के दरबार में प्रेम के सिक्के चलते हैं, उसके राज में असत्य के सिक्के नहीं चलते। घास की गठरी और सिक्का उठा कर लाओ । धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब स्वयं लेने आए हैं और कहने लगे, मुझे घास की गठरी पकड़ा। जहांगीर दंग था। कहता, हे मन ! पातशाह भी तो ही फिर सिक्ख मानते हैं। जब पातशाह भी सिंहासन छोड़ कर अपने प्यारों को आगे लेने के लिए आया । धन्य गुरु हरिगोबिंद साहिब बैठे हैं सिंहासन पर । यहां कहे वचन नत्था और अबदुल्ला जी ने, भाई गुरदास जी ने कलम उठाई, कहते हैं :
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सत्य, संतोष, दया, धर्म और धीरज, ये पांच गुणों के प्याले । गुरु नानक साहिब से गुरु अरजन देव तक उन्होंने इन गुणों का वर्णन किया ।
पंजि पिआले पंजि पीर छठमु पीरु बैठा गुरु भारी ।
अब छठम पीर गुर भारी कैसे ? यहां समझदार लोग कहते हैं कि देखो! हम क्यों मीरी- पीरी का मालिक कहेंगे। दूसरे गुरुओं से भेदभाव नहीं । एक नदी की धारा पर्वत से जमी हुई चमकी पत्थर में से निर्मल जल निकलता है । धारा बनकर चला है । वह मानो उस धरती पर चला जा रहा है। सामने एक चट्टान आ जाए। उससे पानी रुक गया। टकराने के बाद उस चट्टान को नीचे रखकर उसके ऊपर होकर जब आबशार बन कर गिरा, पानी तो पहले भी सारा अच्छा है। उससे आबशार बनी है परंतु जहां आबशार बनती है, लोग वहां खड़े होकर देखते हैं कि टकराने वाले के ऊपर से भी पानी निकल गया ।
पंज पिआले पंज पीर / 107
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गई । वर्तमान युग के महान दार्शनिक सन्त विनोवा कहते हैं कि जिस प्रकार स्वतन्त्रता मिलते ही अंग्रेजी भंडे के स्थान पर भारतीय राष्ट्रीय झंडा लहराया गया ठीक उसी प्रकार संस्कृति को महान द्योतक राष्ट्रीय शिक्षा की योजना भी देश के सम्मुख प्रस्तुत की गई।
समाज की जैसी आर्थिक और सामाजिक स्थिति होती है उसी के आधार पर शिक्षा का भी ढाँचा होता है। हमने जो आर्थिक व सामाजिक ढाँचा पाया है वह वर्ग प्रणाली पर आधारित है। देश के प्रायः सभी शिक्षाशास्त्रियों ने इसमें परिवर्तन की मांग की । दिसम्बर सन् १९५३ ई. मे कल्याणी में जो अधिवेशन हुआ उसमें एक जोरदार प्रस्ताव द्वारा मांग की गई कि बुनियादी ढंग पर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा का पुनर्गठन किया जाय । इस प्रकार बुनियादी शिक्षा को ही देश को सभी समस्या के निवारण करने का एक मात्र उपाय मान कर अपनाया है । इस नवीन शिक्षा योजना को प्रमुख गतिविधियों को अध्ययन करने के लिए हम सबसे पहले यह समझ ले कि वास्तव में बुनियादी शिक्षा क्या है ?
बुनियादी शिक्षा क्या है ? ( दार्शनिक पृष्टभूमि ) (What is Basic Education-Philosophical Background)
बुनियादी शिक्षा शोषणविहीन एवं वर्ग विहीन रचना का शक्तिशाली साधन है । बुनियादी पाठशाला लघु रूप में एक आदर्श समाज होगा, जहां से सम्पूर्ण समाज को नई दिशा तथा नवीन प्रेरणा प्राप्त होगी । वाछनीय समाज के लिए सुयोग्य नागरिक तैयार करने में पाठशाला महत्वपूर्ण भाग लेगी । पंडित नेहरू के शब्दों में दुनियादी शिक्षा देश के नवयुवकों में सामाजिक दृष्टिकोण पैदा करके ऐसा समाज तैयार करेगी जिसकी कल्पना समाजवादी समाज रचना में अन्तर्निहित है। उनके विचारानुसार "बालक भविष्य की आशा है उन्हें अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्ति का विकास करना है जिससे भविष्य में वे उत्तरदायी हो सके । यह केवल पाठशाला में जाने मात्र से ही सम्भव नही वल्कि स्वस्थ मनोरंजन व स्वस्थ पूर्ण खेल भी अनिवार्य है। उन्हें अपनी मातृभूमि को सेवा करनी है और महान् बनाना है । यह तभी सम्भव होगा जब कि वे स्वयं महान् वने और अपने देश के स्तर को ऊंचा उठावें ।"16 गांधीजी बुनियादी शिक्षा को क्रान्ति व परिवर्तन
16 "Children are the future of India and they should make themselves fit physically and mentally for the responsibility of future. They can achieve this not only by going to school, but through sports and healthy recreation. It is their duty to serve the motherland and strive for making India great. They can make themselves great if they raise the status of country of which they are." Pt. Jawahar Lal Nehru: 'Modern Education' p. 28.
का प्रभावशाली शस्त्र बनाना चाहते थे। उनके विचारानुसार शिक्षा का अर्थ व्यक्तित्व का निर्मारण करना है। व्यक्तित्व विकास सामाजिक दायरे में ही सम्भव है। गांधीजी ने नई तालीम का दर्शन इस प्रकार प्रकट किया है, "यह जीवन की शिक्षा है जो जन्म से मृत्यु तक की प्रक्रिया में चलती है । "17 बुनियादी शिक्षा के द्वारा आध्यात्मक समाज की पूर्णता सम्भव है । प्रेम, अहिंसा, सत्य तथा न्याय पर धारित समाज ही गांधीजी के विचार से प्राध्यात्मक समाज है । ऐसी सामाजिक व्यवस्था में किसी प्रकार का आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक अथवा सामाजिक शोपरण नही हो सकता। गांधीजी वालक के मन और मस्तिष्क को समाज की व्यवस्था के अनुकूल ढालने के लिए बुनियादी शिक्षा को आवश्यक मानते थे ।
शिक्षा जीवन के गुरगो से सीधा सम्बन्ध रखती है। भारत में मानवीय तत्वो के अपव्यय तथा शहरों और ग्रामो का ह्रास देखकर ही गावीजी ने अपने जीवन के अनुभवों द्वारा सामाजिक जीवन के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा का प्रस्ताव किया, "एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में जिसमें गरीव का भेद न हो और हर एक को जीवन, वेतन और स्वतन्त्र जीवन के अधिकार का पूर्ण विश्वास हो । " 18 (नायकम् : 'हिन्दुस्तान तालीमी संघ' १९५४ ) भारत की आर्थिक दशा तथा ग्रामो के स्तर को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा निःशुल्क हो जो सभी विषमताओ को उखाड़ कर एक सुव्यवस्थित समाज की रचना करे ।
इस प्रकार बुनियादी शिक्षा का ढांचा और दर्शन इतना व्यापक तथा महत्वपूर्ण है कि इस आधार पर हम एक नये भारत का निर्मारण कर सकते है जैसा कि हम चाहते हैं । इस कल्पना का सपूर्ण रूप ध्यान में आने पर यह स्पष्ट समझ में है कि इसमें एक ऐसी पद्धति के बीज है जिसमें मानव के व्यक्तित्व का पूर्णं विकास होगा और समाज परिशुद्ध होगा जिसमें वैशिष्ठय और बुद्धिमानी का सबूत आगामी वर्षो में हमे मिलेगा और जो समय की गति और टीका के बावजूद भी बनी रहेगी। इस शिक्षा की पृष्टभूमि मे जीवन मे क्रम और श्रम का महत्व बढ़ाया जायेगा ताकि समाज को निष्क्रियता का उन्मूलन हो सके । यंग इंडिया में महात्मा गांधी ने कहा था कि "मै चरखे का चक्र समाज की एकता के रूप में भारत के प्रत्येक घर में स्वास्थ्य के समान देखना चाहता हूँ ।" 19
17 "This Education is for life and begins from the process birth to death." M. K Gandhi: 'Basic Education.'
18 "हिन्दुस्तान तालीमी संघ, सेवाग्राम प्रकाशन" वर्तमान शिक्षा की गंभीर स्थिति । 19 "I hold the spinning wheel to be as much as necessity in every house hold as the health." MK Gandhi, Young India, 19.1.21.
संक्षेप में, बुनियादी शिक्षा की कल्पना हिन्दुस्तान में अधिकांश व्यक्ति साक्षात् रूप में देखना चाहते हैं जिससे यहां उन्नतिशील और सुखी ग्रामीण समाज वन सके और वे बुद्धिमान तथा संस्कृति के प्रेमी हों । नागरिकता का लोगो में भाव हो और जनसंख्या विखरी हुई हो जिसे केन्द्र द्वारा संचालित नागरिकता का आर्थिक ढांचा कहते हैं । इस दर्शन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस नई शिक्षा में जीवन दर्शन के सभी मूल तथ्य विद्यमान है। इस योजना को और भी अधिक स्पष्ट समझने के लिए हम अपना ध्यान इसके उद्देश्य एवं प्रमुख सिद्धान्तों की ओर आकर्षित करते हैं ।
बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य एवं सिद्धान्त
(The Aims and Principles of Basic Education)
सभ्यता मानवीय क्रियाशीलता का परिणाम है । सभ्यता के उत्तरोतर विकास के लिए यह आवश्यक है कि वालक की क्रियात्मक प्रवृत्ति के विकास के हेतु रचनात्मक कार्यक्रमों से परिपूर्ण शिक्षा दी जाय। निष्क्रिय बैठना वालक के लिए प्रतिकूल है । अतः क्रियाशीलता को भी उद्देश्यपूर्ण बनाने की कल्पना पर ही आधारित शिक्षा की पृष्टभूमि होनी चाहिये । इसी एक मात्र नवनिर्माण की आकांक्षा पर बुनियादी शिक्षा का मौलिक रूप खड़ा है। बुनियादी अथवा वेसिक शिक्षा के 20 आधारभूत तत्व हमारी बुनियादी आवश्यकताएं हैं । यह वह शिक्षा है जो हमारी बुनियाद से प्रारम्भ होकर अथवा प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर विश्वविद्यालय तक समान रहती है। यह वह शिक्षा है जो हमारी बुनियाद से प्रारम्भ होकर पूर्ण जीवन की र केन्द्रित होती है। डा० जाकिर हुसैन के शब्दों में, "बुनियादी शिक्षा वर्धा योजना का एक अंग है जिसमें जीवन की सभी अच्छाइयों का दिग्दर्शन कराया जाता है । यह वर्धा योजना पूज्य बापू द्वारा प्रारम्भ की गई थी । सर्व प्रथम सन् १९३७ ई० में बापूजी ने नई तालीम कल्पना 'हरिजन' में प्रकाशित की थी । "21 इस प्रकार हम देखते हैं कि बुनियादी शिक्षा के पीछे जीवन की पूर्णता का लक्ष्य है जो भारत के नवनिर्माण का भी आवश्यक तत्व है। गांधीजी ने स्वयं एक वार शिक्षा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा है, 'आज की विचित्र शिक्षण पद्धति के कारण जीवन के दो दो टुकड़े हो गये हैं । आयु के पहले पन्द्रह वीस वर्षो में व्यक्ति जीने के झंझट में न पड़कर केवल शिक्षण प्राप्त करे एवं बाद को शिक्षण को वस्ते में लपेट कर मरने तक सफलता से जीये ।" आगे उन्होंने यह भी कहा है, "वह शिक्षा नहीं है जो जीवन
20 डा० जाकिर हुसैन कमेटो रिपोर्ट, १९५२, पृष्ट १६-१७ 21 डा० जाकिर हुसेन कमेटी रिपोर्ट, १९५२, पृष्ट १६-१७
को अधूरा रखे । बुनियादी शिक्षा का महत्व, जीवन की शिक्षा के रूप में प्रांकने से ही, पूर्ण रूपेरण प्रकट होगा ।
डा० जाकिर हुसैन ने बुनियादी शिक्षा की कान्फ्रेंस में जो ११ अप्रेल सन् १९४० ई० में जामिया मिलिया, देहली मे हुई, सभापतित्व भाषण में कहा है, "अगर हमारा देश अच्छा समाज बन गया तो वह बुनियादी मदरसों के बिना एक पद भी चैन नही लेगा । लेकिन जब तक बुनियादी मदरसे न होंगे यह समाज आसानी से वन कैसे जायेगा । " 21 विनोबा जी ने भी बुनियादी शिक्षा के उद्देश्यों पर विचार करते हुए कहा है, "बेसिक शिक्षा इस बात की नीव डालती है कि समाज में हर व्यक्ति कोई न कोई काम करे, उस कार्य को अपना सामाजिक और नैतिक कर्तव्य समझे। अपने काम और जीवन से समाज को एक आदर्श समाज बनाने में पूरा योग दे तो यह शिक्षा उत्तम होगी 13 श्राचार्य कृपलानी के अनुसार, "शिक्षा का गांवो मे आत्मनिर्भरता की योजनाओं का प्रगतिशील विकास भी करना
इस प्रकार उक्त कथनो से स्पष्ट है कि बुनियादी तालीम व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विचारों का विकास ही नही करती बल्कि मन, हृदय और मस्तिष्क मे समन्वय स्थापित करने के प्रमुख कारको का भी निर्माण करती है । अतः इसके सिद्धान्तो की स्पष्ट व्याख्या के लिए "हमे यह विचार अपने मस्तिष्क में रखने चाहिए कि वालक के पूर्ण विकास के लिये उसे विभिन्न रचनात्मक प्रवृत्तियो को कार्य रूप में परिगत करने का अवसर देना चाहिए ताकि उसे अन्वेषरण की प्रसन्नता एवं ज्ञान को सीखने की खुशी प्राप्त हो सके । " 25 तात्पर्य यह है कि बुनियादी शिक्षा है का उद्देश्य केवल मात्र सर्वांगीण विकास करना ही नही वल्कि आत्म विकास के लिए स्वतन्त्रता देना तथा यह भी प्रयत्न करना है कि सामुदायिक और राष्ट्रीय जीवन से व्यक्ति का अधिक से अधिक सम्पर्क स्थापित होने की सम्भावना हो सके। साथ ही साथ मनोरंजन व सास्कृतिक कार्यक्रम के द्वारा प्रसन्नता के भाव भी उत्पन्न हों । "यह शिक्षा इस प्रकार जीवन की पूर्णता के लिए वास्तविक जीवन की व्यवस्था ही
22 देखिये : वर्धा योजना नई तालीमी संघ वर्धा प्रकाशन पृष्ट २८-२६
23 विनोबा "शिक्षरण विचार" बुनियादी शिक्षा ।
24 आचार्य कृपलानी 'गांधी आश्रम का निर्णय', पृष्ट २६-२७
25 "The point to bear in mind is that the children should be encouraged to take up a variety of useful activities, which will give them the Joy of discovery and the joy of learning." Ramchandran : "Towards the Basic Pattern' 1957.
26 बुनियादी शिक्षा की ओर पृष्ठ ६. ७.
नहीं करती अपितु शिक्षा की प्रक्रिया को रचनात्मक कार्यक्रमो से सुमज्जित कर मानन्दमय भी बनाती है । "47
भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय के सचिव श्री हुमायु कबीर के विचार के अनुसार, "वेसिक उद्देश्य बालक के मानसिक और आत्मिक विकास की सम्भावनाएं प्रस्तुत करना है । इस शिक्षा के अन्तर्गत जो उद्योग पर बल दिया जाता है उसका लक्ष्य मात्र यान्त्रिकता का ज्ञान कराना ही नही बल्कि प्रत्येक प्रक्रिया का वैज्ञानिक अध्ययन कराना है । 28
स्वतन्त्र भारत की शिक्षा केवल उक्त कथन के अनुसार मानसिक व आत्मिक विकास की ही कल्पना नही अपितु समाज की नव रचना का उद्देश्य भी अपने में निहित रखती है । इस शिक्षा के सिद्धान्त ऐसे समाजवादी समाज का निर्माण करना है जिसमे गरीबी, असमानता, अस्पृश्यता एवं प्रशिक्षा का नाश हो सके । पंडित नेहरू के शब्दों में, "एक विशिष्ट वर्ग की उन्नति की सीमित विचारधारा इसमें नहीं है । भारत की ३६ करोड़ जनता का उदय करना बुनियादी शिक्षा अपना कर्तव्य समझती है । "29 आगे और नेहरू जी ने कहा है, "हमारा देश कृषि प्रधान व गांवों का देश
होने के कारण गांव मे संतुलित नेतृत्व के व्यक्तियों का निर्माण करने की आवश्यकता
की भी इसी शिक्षा के द्वारा पूर्ति होने की सम्भावना है । इस प्रकार हृदय परिवर्तन का कार्य इस शिक्षा संस्था द्वारा ही पूर्ण होगा ऐसा निश्चय इसके निर्माताओं का था । 30 पं० नेहरू के शब्दो में "बुनियादी शिक्षा सामाजिक क्रान्ति है जो जीवन में
27 "The field of Nai Talim", he said, "Entended from the moment a child is concieved in the month's mob to the moment of death." Nai Talim and new education for life. 28 "I hold that the child's development of the mind and the soul is possible in such a system of education only every handy craft has to be taught not merely mechanically as is designed today, but scientifically. The child should develop to know 'why and when' from the every procees." Himayun Kabır : Publication No. 58. Ministry of Education, Government of India.
29 "We have to remove poverty and ameliorate the lot of the country. Our objective is not the prosperity of only a section of the people. We have to see how 36 crores of people can progress." Pt. Nehru : "The seed that is sprouting mto a plant publication." Aug. 1952.
30 "We want good at the top to guide this great country to train up scores of thousands of Village leaders who have measures of intention and pride on their work." Pt. Nehru: on the occassion addressing development commissioners: Ap. 18. 1958.
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शुंगोंके शासन कालमें भारतवर्षमें बौद्ध, जैन, शैव और वैष्णव आदि सभी धर्म स्वतंत्र रूपसे विकसित हो रहे थे ।
शुंग-कालमें मिट्टीकी मूर्तियाँ बनानेका शिल्प भी प्रचलित रहा । इन मूर्तियोंमें विविध प्रकारके दृश्य बनाये गये हैं । एक मूर्तिमें उदयन और वासवदत्ताके हाथीपर सवार होकर उज्जयिनीसे भागनेकी घटना चित्रित की गई है ।
ईसाकी पहली शतीमें कुषाणवंशी राजाओं के शासन कालमें भारतीय मूर्तिशिल्प यूनानी शिल्पके सम्पर्क में आया । कुषाणवंशके बौद्ध राजा कनिष्कका राज्य भारतमें विन्ध्याचलसे लेकर चीनी साम्राज्यके काशगर, यारकन्द और खोतान तक फैला हुआ था । कनिष्कके प्रयत्नसे उसके बड़े साम्राज्यमें वौद्ध धर्मका प्रसार हुआ । इसी समय वौद्ध धर्मकी महायान शाखाकी विशेष प्रगति प्रारंभ हुई । महायान बौद्धोंने महात्मा बुद्धको देव रूपमें प्रतिष्ठित करके पूजना प्रारंभ किया । भारतवर्षके अन्य सम्प्रदायोंमें मूर्तिपूजा बहुत पहले से ही प्रचलित थी । कनिष्कने गौतमबुद्धको मूर्तियाँ बनाने के लिये गांधारके शिल्पियोंको नियुक्त किया । गान्धारमें यूनानी शिल्पकी शैली सिकन्दरके समय से ही चली आ रही थी। उनके सामने भारतीय शिल्पका आदर्श रखा गया । इस प्रकार जो भारतीय यूनानी शिल्पका मिश्रण हुआ, वह न तो स्वाभाविक ही था और न समयकी गतिसे परिपक्व ही हो सका था । सबसे पहली मूर्तिमें जो मिश्र शैलीका द्योतक है, गौतमबुद्ध पश्चिमी देशोंकी वेश-भूषामें दिखाये गये हैं । इस शैलीकी मूर्तियों में भारतीय व्यंजना अल्पांशमें ही प्रकट होती है, मूर्तियों में वास्तविकताके आधारपर शारीरिक सौन्दर्य और सौष्ठव पर्याप्त मात्रामें मिलता है । गौतमबुद्ध की आकृति से उनकी सरलता और त्यागभावनाकी झलक नहीं मिलती है। सबसे अधिक यूनानी प्रभाव, जो भारतीय दृष्टिसे हास्यास्पद है, गौतमबुद्धकी मूंछ और रत्न आदि अलंकारोंके रूपमें दिखाई देता है । बौद्ध विषय और यूनानी शिल्पशैलीकी लगभग साठ हजार मूर्तियाँ प्राप्त हो चुकी हैं ।
गान्धार-शैलीका प्रसार गान्धार, काबुल, स्वात प्रौर भारतके उत्तर पश्चिमी प्रान्तों हुआ । 'यूनानकी शिल्पशैलीने सारे भारतकी शिल्प-शैलीको प्रभावित किया है या नहीं' एक विवादास्पद प्रश्न है । योरपीय विद्वानोंने यूनानके पक्ष में बहुत कुछ कहा है, किन्तु उनके विचार इस संबंध में संभवतः निर्मूल हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि गन्धारका मूर्ति - शिल्प कुषाण कालमें मथुरा तक पहुँचा और मथुरामें भी कुछ मूर्तियाँ मिश्रशैलीकी मिलती हैं, जो तीसरी शती तककी वनी
हुई हैं; किन्तु इसके पहले और पश्चात् भी मथुराकी स्वतंत्र शिल्प-शैली रही है, जिसपर यूनानी मूर्तिकलाका प्रभाव नहीं पड़ा है और जिससे शुंगकालीन भरहुत और साँचीके मूर्तिशिल्पोंका मिश्रण प्रकट होता है । मथुराकी शिल्प-शैली कुषाण राजाओंकी उन मूर्तियों में दिखाई पड़ती हैं जो उस नगरमें मिली हैं । इन मूर्तियों में गान्धार-शैलीका तनिक भी प्रभाव नहीं है । इन मूर्तियोंसे यही सिद्ध होता है कि मथुरा-शैली उस प्रदेशमें लोक-प्रचलित थी । मथुरा-शैलीकी हजारों मूर्तियाँ, जो कुपाण-कालकी बनी हैं, मिल चुकी हैं ।
मथुरा और गान्धार-शैलीके साथ ही साथ दक्षिण भारत अमरावतीमें मूर्ति- शिल्पकी विशेष उन्नति हुई । ई० पू० २०० से लेकर लगभग २५० ई० तक अमरावतीमें एक स्तूपकी परिभित्ति बनाई गई और ईंटोंके बने हुए स्तूपके नीचेके भागको संगमरमरकी पट्टियोंसे ढका गया । यहांके मूर्तिशिल्पमें साँची और भरहुतकी शैलीके अनुरूप बुद्धके जीवनचरितके दृश्य प्रायः ग्रंकित किये गये हैं । इस समय बुद्धकी पूजा प्रचलित हो चुकी थी । अमरापतीकी बुद्धमूर्तियाँ छः फुट या इससे अधिक ऊँची भी मिली हैं। इन मूर्तियोंमें भारतीय शिल्पके अनुसार गौतमबुद्धकी गंभीर मुख-मुद्रा और वैराग्य भाव झलकता है । - श्रमरावतीकी परिभित्तिपर बनी हुई मूर्तियाँ बहुत आकर्षक हैं । इनपर प्रायः कमलके फूल और लताओं के दृश्य मूर्तरूपमें दिखाये गये हैं । भित्तियोंपर विविध प्रकारके पशु, पुरुष और बौने भी बनाये गये हैं । कुषाण कालको शै और वैष्णव सम्प्रदायकी मूर्तियां अभी तक नहीं मिली हैं। संभवतः ऐसी मूर्तियाँ बहुत कम बनी होंगी, क्योंकि उस समय बौद्ध धर्मकी विशेष उन्नति हो रही थी। दूसरी शताव्दी ईसवीमें भारशिव या नाग राजाओं के शासनकालमें राजाश्रय पाकर शैव सम्प्रदायकी पुनः उन्नति हुई । इस समयके शिल्पकी प्रधान विशेषता मूर्तियोंके लम्बे मुखकी है, जिसका उदाहरण मथुरा संग्रहालयकी एक माताकी मूर्तिमें मिलता हैं । इसके पहले शुंग और कुषाणकालमें मूर्तियोंके गोल मुख बनाये जाते थे । भारशिवकालमें शिवलिंगकी मूर्तियोंका प्रधान रूपसे विकास हुआ । भारशिवोंका राज्य ग्रन्त वाकाटक वंशमें मिल गया । वाकाटक-वंश भी शैव सम्प्रदायका धनुयायी था । इस वंशके राजाओंने मन्दिरोंमें एकमुख और चतुर्मुख शिवलिंगोंकी स्थापना की। वाकाटक-कालकी बनी हुई सबसे अधिक सुन्दर शिवकी चतुर्मुखमूर्ति मध्य भारत में अजयगढ़ राज्यके नचनाके मन्दिर मिली है । यह मूर्ति पांचवीं शती ईसवीमें बनी थी, जब भारतवर्ष में गुप्त राजाओके शासनकाल में
सभी शिल्प, कला और विज्ञानोंकी चरम उन्नति हो रही थी । इसी दृष्टि से गुप्तोंके शासनकालको स्वर्णयुग कहते हैं । गुप्तकालमें वैष्णव मूर्तियोंका प्रचार वढ़ा, किन्तु उस कालका स्वर्णिम प्रभाव चौथी शतीसे छठी शती तक शव और वौद्ध सभी सम्प्रदायोंकी मूर्तियोंपर समान रूपसे दृष्टिगोचर होता है । दक्षिण भारतमें वाकाटक और उत्तर भारतमें गुप्तवंशके राज्य सैकड़ों वर्षो तक समकालीन रहे । इन दोनों राज्यों में पारस्परिक संबंध बहुत घनिष्ट था । यही कारण है कि गुप्तकालमें सारा भारत एक साथ ही संस्कृतिकी दृष्टिसे प्रगतिशील हो
सका था ।
गुप्तकालमें बनी हुई बुद्धकी सबसे अच्छी मूर्तियाँ सारनाथ, मनकुवर ( इलाहाबाद ), मथुरा और सुलतानगंज (भागलपुर ) में मिली हैं । सारनाथकी मूर्तिमें बुद्ध धर्मचक्र प्रवर्तन करनेकी दशामें दिखाये गये हैं । वे पद्मासन लगाकर बैठे हैं। मनकुवरमें कुमारगुप्तके शासनकालमें बनी हुई मूर्ति मिली है । इस मूर्तिमें बुद्ध पद्मासन लगाकर अभयमुद्रामें बैठे हैं। दोनों ओर दो सिंह
उत्कीर्ण हैं । सिंहोंके बीचमें दो ध्यानी बुद्ध बनाये गये हैं। वहींपर एक धर्मचक्र भी बना है । मथुराकी मूर्तिमें बुद्ध ध्यानमग्न होकर खड़े हैं । उनका मुखमंडल निर्विकार है । इस मूर्तिमें बुद्ध उत्तरीय परिधान धारण किये हुए दिखाये गये हैं । सुलतानगंजकी बुद्धकी मूर्ति ताँबेकी बनी हुई है । यह सात फीट छः इंच ऊँची है । इन सभी मूर्तियोंसे बुद्धकी दिव्य प्रतिभा और शान्त एवं गंभीर व्यक्तित्वकी झलक मिलती है ।
वैष्णव सम्प्रदायकी प्रमुख मूर्तियाँ भिलसा, काशी, ललितपुर, पहाड़पुर, भरतपुर और सारनाथ में मिली हैं । भिलसामें विष्णुरूप वाराहके द्वारा पृथिवीका उद्धार मूर्तरूपमें अंकित किया है । वाराहने साहसपूर्वक पृथिवीको अपनी दाढ़ोंपर उठाकर धारण किया है । भिलसाकी विष्णुकी मूर्तिमें विष्णु खड़े दिखाये गये हैं और उनके हाथों में गदा और शंख हैं । काशीके समीप गोवर्धनधारी कृष्णकी मूर्ति मिली है । कृष्ण गोवर्धन पर्वतको धारण किये हुए स्वभावतः वीरकी भाँति खड़े हैं । ललितपुर (झाँसी) में गुप्तकालीन मन्दिरका खंडहर मिलता है जिसकी दीवालोंपर अंकित की हुई कई मूर्तियाँ मिलती हैं । एक दृश्यमें शेषनागपर सोये हुए विष्णु दिखाये गये हैं; उनके नाभिपद्मपर ब्रह्मा हैं, लक्ष्मी चरण दाब रही हैं और आकाशसे इन्द्र, शिव और पार्वती इत्यादि यह दृश्य देख रहे हैं । एक दृश्यमें नर-नारायणकी तपोभूमि अंकित की गई है। दोनों मूर्तियाँ
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जीसस ने अपने एक वक्तव्य में कहा है किसी ने जीसस को पूछा, अब्राहम के संबंध में आपका क्या खयाल है? अब्राहम एक पुराना पैगंबर हुआ यहूदियों का। पूछा जीसस से किसी ने, अब्राहम के संबंध में आपका क्या खयाल है? तो जीसस ने कहा, बिफोर अब्राहम वाज़, आई वाज़। इसके पहले कि अब्राहम था, मैं था। अब्राहम के पहले भी मैं था।
निश्चित ही, यह मरियम के बेटे जीसस के संबंध में कही गई बात नहीं है। अब्राहम के पहले! अब्राहम को हुए तो हजारों साल हुए!
कृष्ण सूर्य की-जगत की पहली घटना की- फिर मनु की, इक्ष्वाकु की, इनकी बात कर रहे हैं। उन्हें हुए हजारों वर्ष हुए। कृष्ण तो अभी हुए हैं। अभी अर्जुन के सामने खड़े हैं। जिस कृष्ण की यह बात है, वह किसी और कृष्ण की बात है।
एक घड़ी है जीवन की ऐसी, जब व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़ देता, तो उसके भीतर से परमात्मा ही बोलना शुरू हो जाता है। जैसे ही मैं की आवाज बंद होती है, वैसे ही परमात्मा की आवाज शुरू हो जाती है। जैसे ही मैं मिटता हूं, वैसे ही परमात्मा ही शेष रह जाता है।
यहां जब कृष्ण कहते हैं, मैंने ही कहा था सूर्य से, तो यहां वे व्यक्ति की तरह नहीं बोलते, समष्टि की भांति बोलते हैं। और कृष्ण के व्यक्तित्व में इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है कि बहुत क्षणों में वे अर्जुन के मित्र की भांति बोलते हैं, जो कि समय के भीतर घटी हुई एक घटना है। और बहुत क्षणों में वे परमात्मा की तरह बोलते हैं, जो समय के बाहर घटी घटना है।
कृष्ण पूरे समय दो तलों पर, दो डायमेंशंस में जी रहे हैं। इसलिए कृष्ण के बहुत-से वक्तव्य समय के भीतर हैं, और कृष्ण के बहुत-से वक्तव्य समय के बाहर हैं। जो वक्तव्य समय के बाहर हैं, वहां कृष्ण सीधे परमात्मा की तरह बोल रहे हैं। और जो वक्तव्य समय के भीतर हैं, वहां वे अर्जुन के सारथी की तरह बोल रहे हैं। इसलिए जब वे अर्जुन से कहते हैं, हे महाबाहो! तब वे अर्जुन के मित्र की तरह बोल रहे हैं। लेकिन जब वे अर्जुन से कहते हैं, सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज-सब छोड़, तू मेरी शरण में आ-तब वे अर्जुन के सारथी की तरह नहीं बोल रहे हैं।
इसलिए गीता, और गीता ही नहीं, बाइबिल या कुरान या बुद्ध और महावीर के वचन दोहरे तलों पर हैं। और कब बीच में परमात्मा बोलने लगता है, इसे बारीकी से समझ लेना जरूरी है, अन्यथा समझना मुश्किल हो जाता है।
जब कृष्ण कहते हैं, सब छोड़कर मेरी शरण आ जा, तब इस मेरी शरण से कृष्ण का कोई भी संबंध नहीं है। तब इस मेरी शरण से परमात्मा की शरण की ही बात है।
इस सूत्र में जहां कृष्ण कह रहे हैं कि यही बात मैंने सूर्य से भी कही थी- मैंने। इस मैं का संबंध जीवन की परम ऊर्जा, परम शक्ति से है। और यही बात! इसे भी समझ लेना जरूरी है।
सत्य अलग-अलग नहीं हो सकता। बोलने वाले बदल जाते हैं, सुनने वाले बदल जाते हैं; बोलने की भाषा बदल जाती है; बोलने के रूप बदल जाते हैं, आकार बदल जाते हैं, सत्य नहीं बदल जाता। अनेक शब्दों में, अनेक बोलने वालों ने, अनेक सुनने वालों से वही कहा है।
उपनिषद जो कहते हैं, बुद्ध उससे भिन्न नहीं कहते; लेकिन बिलकुल भिन्न कहते मालूम पड़ते हैं। बोलने वाला बदल गया, सुनने वाला बदल गया और युग के साथ भाषा बदल गई।
महावीर जो कहते हैं, वह वही कहते हैं, जो वेदों ने कहा है; पर भाषा बदल गई, बोलने वाला बदल गया, सुनने वाले बदल गए। और कई बार शब्दों और भाषा की बदलाहट इतनी हो जाती है कि दो अलग-अलग युगों में प्रकट सत्य विपरीत और विरोधी भी मालूम पड़ने लगते हैं।
मनुष्य जाति के इतिहास में इससे बड़ी दुर्घटना पैदा हुई है। इस्लाम या ईसाइयत या हिंदू या बौद्ध या जैन, ऐसा मालूम पड़ते हैं कि विरोधी हैं, राइवल्स हैं, शत्रु हैं। ऐसा प्रतीत होता है, इन सबके सत्य अलग-अलग हैं। इन सबके युग अलग-अलग हैं, इन सबके बोलने वाले अलग-अलग हैं, इन सबके सुनने वाले अलग-अलग हैं, इनकी भाषा अलगअलग है; लेकिन सत्य जरा भी अलग नहीं है। और धार्मिक व्यक्ति वही है, जो इतने विपरीत शब्दों में कहे गए सत्य की एकता को पहचान पाता है; अन्यथा जो व्यक्ति विरोध देखता है, वह व्यक्ति धार्मिक नहीं है।
तो कृष्ण यहां एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी कह रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि यही सत्य, ठीक यही बात पहले भी कही गई है। यहां एक बात और भी खयाल में ले लेनी जरूरी है।
कृष्ण ओरिजिनल होने का, मौलिक होने का दावा नहीं कर रहे हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि यह मैं ही पहली बार कह रहा हूं; यह नहीं कह रहे हैं कि मैंने ही कुछ खोज लिया है। वे यह भी नहीं कह रहे हैं कि अर्जुन, तू सौभाग्यशाली है, क्योंकि सत्य को तू ही पहली बार सुन रहा है। न तो बोलने वाला मौलिक है, न सुनने वाला मौलिक है; न जो बात कही तू जा रही है, वह मौलिक है। इसका यह मतलब नहीं है कि पुरानी है।
अंग्रेजी में जो शब्द है ओरिजिनल और हिंदी में भी जो शब्द है मौलिक, उसका मतलब भी नया नहीं होता। अगर ठीक से समझें, तो ओरिजिनल का मतलब होता है, मूल-स्रोत से। मौलिक का भी अर्थ होता है, मूल-स्रोत से। मौलिक का अर्थ भी नया नहीं होता। ओरिजिनल का अर्थ भी नया नहीं होता।
अगर इस अर्थों में हम समझें मौलिक को, तो कृष्ण बड़ी मौलिक बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, समय के मूल में यही बात मैंने सूर्य से भी कही थी; वही सूर्य ने अपने पुत्र को कही थी; वही सूर्य के पुत्र ने अपने पुत्र को कही थी। यह बात मौलिक है। मौलिक अर्थात मूल से संबंधित, नई नहीं। ओरिजिनल, कंसर्ल्ड विद दि ओरिजिन; वह जो मूल स्रोत है, जहां से सब पैदा हुआ, वहीं से संबंधित है।
लेकिन आज के युग में मौलिक का कुछ और ही अर्थ हो गया है। मौलिक का अर्थ है, कोई आदमी कोई नई बात कह रहा है। मूल की बात कह रहा है। नए अर्थों में कृष्ण की बात नई नहीं है; मूल के अर्थों में मौलिक है, ओरिजिनल है । वह जो सभी चीजों का मूल है, सभी अस्तित्व का, वहीं से इस बात का भी जन्म हुआ है।
मौलिक का जो आग्रह है नए के अर्थों में, अहंकार का आग्रह है, ईगोइस्टिक है। जब भी कोई आदमी कहता है, यह मैं ही कह रहा हूं पहली बार, तो पागलपन की बात कह रहा है।
लेकिन ऐसे पागलपन के पैदा होने का कारण है। इस बार वसंत आएगा, फूल खिलेंगे। उन फूलों को कुछ भी पता नहीं होगा कि वसंत सदा ही आता रहा है। उन फूलों का पुराने फूलों से कोई परिचय भी तो नहीं होगा; उन फूलों को पुराने फूल भी नहीं मिलेंगे। वे फूल अगर खिलकर घोषणा करें कि हम पहली बार ही खिल रहे हैं, तो कुछ आश्चर्य नहीं है; स्वाभाविक है। लेकिन सभी स्वाभाविक, सत्य नहीं होता। स्वाभाविक भूलें भी होती हैं। यह स्वाभाविक भूल है, नेचरल इरर है।
जब कोई युवा पहली दफा प्रेम में पड़ता है या कोई युवती पहली बार प्रेम में पड़ती है, तो ऐसा लगता है, शायद ऐसा प्रेम पृथ्वी पर पहली बार ही घटित हो रहा है। प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं से कहते हैं कि चांदत्तारों ने ऐसा प्रेम कभी नहीं देखा। और ऐसा नहीं कि वे झूठ कहते हैं। ऐसा भी नहीं कि वे धोखा देते हैं। नेचरल इरर है, बिलकुल स्वाभाविक भूल करते हैं। उन्हें पता भी तो नहीं कि इसी तरह यही बात अरबों-खरबों बार न मालूम कितने लोगों ने, न मालूम कितने लोगों से कही है।
हर प्रेमी को ऐसा ही लगता है कि उसका प्रेम मौलिक है। और हर प्रेमी को ऐसा लगता है, ऐसी घटना न कभी पहले घटी और न कभी घटेगी। और उसका लगना बिलकुल आथेंटिक है, प्रामाणिक है। उसे बिलकुल ही लगता है; उसके लगने में कहीं भी कोई धोखा नहीं है। फिर भी बात गलत है।
सत्य का अनुभव भी जब व्यक्ति को होता है, तो ऐसा ही लगता है कि शायद इस सत्य को और किसी ने कभी नहीं जाना। ऐसा ही लगता है कि जो मुझे प्रतीत हुआ है, वह मुझे ही प्रतीत हुआ है। यह स्वाभाविक भूल है।
कृष्ण इस स्वाभाविक भूल में नहीं हैं ।
ध्यान रहे, की गई भूलों के ऊपर उठना बहुत आसान है; हो गई भूलों के ऊपर उठना बहुत कठिन है। जानकर की गई भूल बहुत गहरी नहीं होती। जानने वाले को, करने वाले को पता ही होता है। जो भूलें सहज घटित होती हैं, बहुत गहरी होती हैं।
अगर हम प्लेटो से पूछें, तो वह कहेगा, जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। अगर हम कांट से पूछें, तो कांट कहेगा, जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। अगर हम हीगल से पूछें, तो हीगल भी कहेगा कि जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। अगर हम कृष्णमूर्ति से पूछें, तो वे भी कहेंगे, जो मैं कह रहा हूं, मैं ही कह रहा हूं। यह बड़ी स्वाभाविक भूल है।
कृष्ण कह रहे हैं, यही बात - नई नहीं; पुरानी नहीं- अनंत-अनंत बार अनंत-अनंत ढंगों से अनंत-अनंत रूपों में कही गई है।
सत्य के संबंध में इतना निराग्रह होना अति कठिन है। इतना गैर-दावेदार होना, यह दावा छोड़ना है।
ध्यान रहे, हम सब को सत्य से कम मतलब होता है, मेरे सत्य से ज्यादा मतलब होता है। पृथ्वी पर चारों ओर चौबीस घंटे इतने विवाद चलते हैं, उन विवादों में सत्य का कोई भी आधार नहीं होता, मेरे सत्य का आधार होता है। अगर मैं आपसे विवाद में पडूं, तो इसलिए विवाद में नहीं पड़ता कि सत्य क्या है, इसलिए विवाद में पड़ता हूं कि मेरा सत्य ही सत्य है और तुम्हारा सत्य सत्य नहीं है।
समस्त विवाद मैं और तू के विवाद हैं, सत्य का कोई विवाद नहीं है। जहां भी विवाद है, गहरे में मैं और तू आधार में होते हैं। इससे बहुत प्रयोजन नहीं होता है कि सत्य क्या है? इससे ही होता है कि मेरा जो है, वह सत्य है। असल में सत्य के पीछे हम कोई भी खड़े नहीं होना चाहते, क्योंकि सत्य के पीछे जो खड़ा होगा, वह मिट जाएगा। हम सब सत्य को अपने पीछे खड़ा करना चाहते हैं।
लेकिन ध्यान रहे, सत्य जब हमारे पीछे खड़ा होता है, तो झूठ हो जाता है। हमारे पीछे सत्य खड़ा ही नहीं हो सकता, सिर्फ झूठ ही खड़ा हो सकता है। सत्य के तो सदा ही हमें ही पीछे खड़ा होना पड़ता है। सत्य हमारी छाया नहीं बन सकता, हमको ही सत्य की छाया बनना पड़ता है। लेकिन जब विवाद होते हैं, तो ध्यान से सुनेंगे तो पता चलेगा, जोर इस बात पर है कि जो मैं कहता हूं, वह सत्य है। जोर इस बात पर नहीं है कि सत्य जो है, वही मैं कहता हूं।
कृष्ण का जोर देखने लायक है। वे कहते हैं, जो सत्य है, वही मैं तुझसे कह रहा हूं। मैं जो कहता हूं, वह सत्य है। ऐसा उनका आग्रह नहीं। और इसलिए मुझसे पहले भी कही गई है यही बात।
नए युग में एक फर्क पड़ा है। नया युग बहुत आग्रहपूर्ण है। महावीर नहीं कहेंगे कि मैं जो कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। वे कहते हैं, मुझसे भी पहले पार्श्वनाथ ने भी यही कहा है। मुझसे पहले ऋषभदेव ने भी यही कहा है। मुझसे पहले नेमीनाथ ने भी यही कहा है। बुद्ध नहीं कहते कि जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। वे कहते हैं, मुझसे भी पहले जो बुद्ध हुए, जिन्होंने भी जाना और देखा है, उन्होंने यही कहा है।
ऐसी भ्रांति हो सकती है कि ये सारे लोग पुरानी लीक को पीट रहे हैं। नहीं, पर वे यह नहीं कह रहे कि सत्य पुराना है। क्योंकि ध्यान रहे, जो चीज भी पुरानी हो सकती है, उसके नए होने का भी दावा किया जा सकता है। नए होने का दावा किया ही उसका जा सकता है, जो पुरानी हो सकती है, जिसकी पासिबिलिटी पुरानी होने की है। ये दावा यह कर
रहे हैं कि सत्य पुराना और नया नहीं है; सत्य सत्य है। हम नए और पुराने होते हैं, यह दूसरी बात है; लेकिन सत्य में इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता है।
यह सूर्य निकला, यह प्रकाश है। हम नए हैं। हम नहीं थे, तब भी सूर्य था; हम नहीं होंगे, तब भी सूर्य होगा। यह सूर्य नया और पुराना नहीं है। हम नए और पुराने हो जाते हैं। हम आते हैं और चले जाते हैं।
लेकिन हमारी दृष्टि सदा ही यही होती है कि हम नहीं जाते और सब चीजें नई और पुरानी होती रहती हैं। हम कहते हैं, रोज समय बीत रहा है। सचाई उलटी है, समय नहीं बीतता, सिर्फ हम बीतते हैं। हम आते हैं, जाते हैं; होते हैं, नहीं हो जाते हैं। समय अपनी जगह है। समय नहीं बीतता। लेकिन लगता है हमें कि समय बीत रहा है। इसलिए हमने घड़ियां बनाई हैं, जो बताती हैं कि समय बीत रहा है। सौभाग्य होगा वह दिन, जिस दिन हम घड़ियां बना लेंगे, जो हमारी कलाइयों में बंधी हुई बताएंगी कि हम बीत रहे हैं।
वस्तुतः हम बीतते हैं, समय नहीं बीतता है। समय अपनी जगह है। हम नहीं थे तब भी था, हम नहीं होंगे तब भी होगा। हम समय को न चुका पाएंगे, समय हमें चुका देगा, समय हमें रिता देगा। समय अपनी जगह है, हम आते और जाते हैं। समय खड़ा है; हम दौड़ते हैं। दौड़-दौड़कर थकते हैं, गिरते हैं, समाप्त हो जाते हैं; सत्य वहीं है।
जिस दिन, कृष्ण कहते हैं, मैंने सूर्य को कहा था; सत्य जहां था, वहीं है। जिस दिन सूर्य ने अपने बेटे मनु को कहा; सत्य जहां था, वहीं है। जिस दिन मनु ने अपने बेटे इक्ष्वाकु को कहा; सत्य जहां था, वहीं है। और कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं, तब भी सत्य वहीं है। और अगर मैं आपसे कहूं, तो भी सत्य वहीं है। कल हम भी न होंगे, फिर कोई कहेगा, और सत्य वहीं होगा। हम आएंगे और जाएंगे, बदलेंगे, समाप्त होंगे, नए होंगे, विदा होंगे- सत्य, सत्य अपनी जगह है। इस सूत्र में इन सब बातों पर ध्यान दे सकेंगे, तो आगे की बात समझनी आसान है।
कोई सवाल हो, तो पूछ लें!
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप।।2।1
इस प्रकार परंपरा से प्राप्त हुए इस योग को राजर्षियों ने जाना। परंतु हे अर्जुन, वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी-लोक में लुप्तप्राय हो गया है।
परंपरा से ऋषियों ने इसे जाना, लेकिन फिर वह लुप्तप्राय हो गया- ये दो बातें। पहली बात तो आपसे यह कह दूं कि परंपरा का अर्थ ट्रेडीशन नहीं है। साधारणतः हम परंपरा का अर्थ ट्रेडीशन करते हैं। टे्रडीशन का अर्थ होता है, रीति। ट्रेडीशन का अर्थ होता है, रूढ़ि। ट्रेडीशन का अर्थ होता है, प्रचलित। परंपरा का अर्थ और है। परंपरा शब्द के लिए सच में अंग्रेजी में कोई शब्द नहीं है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है ।
गंगा निकलती है गंगोत्री से; फिर बहती है; फिर गिरती है सागर में। जब गंगा सागर में गिरती है, और गंगोत्री से निकलती है, तो बीच में लंबा फासला तय होता है। इस गंगा को हम क्या कहें? यह गंगा वही है, जो गंगोत्री से निकली? ठीक वही तो नहीं है; क्योंकि बीच में और न मालूम कितनी नदियां, और न मालूम कितने झरने उसमें आकर मिल गए। लेकिन फिर भी बिलकुल दूसरी नहीं हो गई है; है तो वही, जो गंगोत्री से निकली।
तो ठीक परंपरा का अर्थ होता है कि यह गंगा, परंपरा से गंगा है। परंपरा का अर्थ है कि गंगोत्री से निकली, वही है; लेकिन बीच में समय की धारा में बहुत कुछ आया और मिला।
ऐसा समझें कि सांझ आपने एक दीया जलाया। सुबह आप कहते हैं, अब दीए को बुझा दो; उस दीए को बुझा दो, जिसे सांझ जलाया था। लेकिन जिसे सांझ जलाया था, वह दीए की ज्योति अब कहां है? वह तो प्रतिपल बुझती गई और धुआं होती गई और नई ज्योति आती गई। जिस ज्योति को आपने जलाया था सांझ, वह ज्योति तो हर पल बुझती और धुआं होती गई, और नई ज्योति उसकी जगह रिप्लेस होती गई। वह ज्योति तो लगाकर शून्य में खोती
गई, और नई ज्योति का आविर्भाव होता गया। जिस ज्योति को सुबह आप बुझाते हैं, यह वही ज्योति है, जिसको सांझ आपने जलाया था?
यह वही ज्योति तो नहीं है। वह तो कई बार बुझ गई। लेकिन फिर भी यह दूसरी ज्योति भी नहीं है, जिसको आपने नहीं जलाया था। परंपरा से यह वही ज्योति है। यह उसी ज्योति का सिलसिला है; यह उसी ज्योति की परंपरा है; यह उसी ज्योति की संतति है।
आप आज हैं; कल आप नहीं थे, लेकिन आपके पिता थे। परसों आपके पिता भी नहीं थे, उनके पिता थे। कल आप भी नहीं होंगे, आपका बेटा होगा। परसों बेटा भी नहीं होगा, उसका बेटा होगा। ठीक से समझें, तो जैसे ज्योति जली और बुझी, ठीक ऐसे ही व्यक्ति जलते और बुझते हैं, लेकिन फिर भी एक परंपरा है।
मां और बाप अपने बेटे को ज्योति दे जाते हैं। ज्योति जलती है, फिर नई संतति। अगर हम ठीक से देखें, तो आप हो नहीं सकते थे, अगर हजारों-लाखों वर्ष पहले एक व्यक्ति भी आपकी परंपरा में न हुआ होता। अगर लाखों वर्ष पहले एक व्यक्ति जो आपकी पिता की पीढ़ियों में रहा हो, न होता, तो आप कभी न हो सकते थे। वह गंगोत्री अगर वहां न होती, तो आज आप न होते। आप उसी धारा के सिलसिले हैं, शरीर की दृष्टि से आप उसी के सिलसिले हैं।
और आत्मा की दृष्टि से भी आप सिलसिला हैं, एक परंपरा हैं। यह आत्मा कल भी थी, परसों भी थी- किसी और देह में, किसी और देह में। अरबों-खरबों वर्षों में इस आत्मा की भी एक परंपरा है; शरीर की भी एक परंपरा है। परंपरा का अर्थ है, संतति प्रवाह, कंटिन्युटी ।
वैज्ञानिक एक शब्द का प्रयोग करते हैं, कंटीनम। अगर ठीक करीब लाना चाहें, तो परंपरा का अर्थ होगा, कंटीनम संतति प्रवाह, सिलसिला।
कृष्ण कह रहे हैं, परंपरा से इसी सत्य को ऋषियों ने एक-दूसरे से कहा।
इसमें दूसरी बात भी ध्यान रखें। जोर कहने पर है; जोर सुनने पर नहीं है। इसमें कृष्ण कह रहे हैं, परंपरा से ऋषियों ने कहा। कृष्ण यह भी नहीं कह रहे कि परंपरा से ऋषियों ने सुना। जब भी कहा गया होगा, तो सुना तो गया ही होगा, लेकिन जोर कहने पर है। कहने वाले का अनिवार्य रूप से ऋषि होना जरूरी है; सुनने वाले का ऋषि होना जरूरी नहीं है। जिसने सुना, उसने समझा हो, जरूरी नहीं है। लेकिन जिसने कहा, उसने न समझा हो, तो कहना व्यर्थ है, कहा नहीं जा सकता।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि कृष्ण कहते हैं कि ऋषियों ने परंपरा से इस सत्य को कहा, परंपरा से पाया नहीं। किसी ने उनसे कहा हो और उनको मिल गया हो, ऐसा नहीं। जाना होगा। जानना और बात है, सुन लेना और बात है।
इसलिए हम पुराने शास्त्रों को कहते हैं, श्रुति, सुने गए। या कहते हैं, स्मृति, मेमोराइज्ड, स्मरण किए गए। ध्यान रहे, शास्त्र जानने वालों ने नहीं लिखे, सुनने वालों ने लिखे हैं।
इस पृथ्वी का कोई भी महत्वपूर्ण शास्त्र लिखा नहीं गया है। सुना गया है और लिखा गया है। गीता भी सुनी गई और लिखी गई। जिसने लिखी, जरूरी नहीं कि वह जानता हो। बाइबिल लिखी गई, कुरान लिखा गया, वेद लिखे गए, महावीर-बुद्ध के वचन लिखे गए। महावीर और बुद्ध ने लिखे नहीं हैं, कहे। जिन्होंने लिखे, उनके लिए वह ज्ञान नहीं था, श्रुति थी। उसे उन्होंने सुना था, उसे उन्होंने स्मरण किया था, उसे उन्होंने लिखा था; संजोया, सम्हाला। कहना चाहिए, शास्त्र एक अर्थ में डेड प्रोडक्ट है। कहना चाहिए, मरे हुए का संग्रह है। जिन्होंने कहा, उन्होंने परंपरा से जाना।
परंपरा से जानने के दो अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ, जैसा साधारणतः लिया जाता है, जिससे मैं राजी नहीं हूं। एक अर्थ तो यह लिया जाता है कि हम शास्त्र को पढ़ लें और जान लें, तो जो हमने जाना, वह हमने परंपरा से जाना। नहीं; वह हमने परंपरा से नहीं जाना। वह हमने केवल रूढ़ि से जाना, रीति से जाना, व्यवस्था से जाना। और उस तरह का
जानना ज्ञान नहीं बन सकता। सिर्फ इन्फर्मेशन ही होगा; नालेज नहीं बन सकता। उस तरह का जानना मात्र सूचना का संग्रह होगा, ज्ञान नहीं।
शास्त्र पढ़कर कोई सत्य को नहीं जान सकता है। हां, सत्य को जान ले तो शास्त्र में पहचान सकता है, रिकग्नाइज कर सकता है। शास्त्र पढ़कर ही कोई सत्य को जान ले, तो सत्य बड़ी सस्ती बात हो जाएगी। फिर तो शास्त्र की जितनी कीमत है, उतनी ही कीमत सत्य की भी हो जाएगी। शास्त्र पढ़कर सत्य जाना नहीं जा सकता, सिर्फ पहचाना जा सकता है।
लेकिन पहचान तो वही सकता है, जिसने जान लिया हो, अन्यथा पहचानना मुश्किल है। आप मुझे जानते हैं, तो पहचान सकते हैं कि मैं कौन हूं। और आप मुझे नहीं जानते हैं, तो आप पहचान नहीं सकते। इसलिए सत्य शास्त्रों में सिर्फ रिकग्नाइज होता है, कग्नाइज नहीं होता। जाना नहीं जाता, पुनः जाना जाता है। जानने का मार्ग तो कुछ और है।
इसलिए कृष्ण जिस परंपरा की बात कर रहे हैं, वह परंपरा शास्त्र की परंपरा नहीं है; वह परंपरा जानने वालों की परंपरा है। जैसे परमात्मा ने सूर्य को कहा। लेकिन इसमें स्मरणीय है यह बात कि परमात्मा ने सूर्य को कहा। बीच में किताब नहीं है, बीच में शास्त्र नहीं है। डाइरेक्ट कम्युनिकेशन है। सत्य सदा ही डाइरेक्ट कम्युनिकेशन है। सत्य सदा ही परमात्मा से व्यक्ति में सीधा संवाद है। शास्त्र, शब्द बीच में नहीं है।
मोहम्मद पहाड़ पर हैं। बेपढ़े-लिखे, मोहम्मद जैसे बेपढ़े-लिखे लोग बहुत कम हुए हैं। लेकिन अचानक उदघाटन हुआ; डाइरेक्ट कम्युनिकेशन हुआ। जिसे इस्लाम कहता है, इलहाम। ईसाइयत कहती है, रिवीलेशन। सत्य दिखाई पड़ा। इसलिए हम ऋषियों को द्रष्टा कहते हैं। सत्य देखा गया। पढ़ा नहीं गया, सुना नहीं गया, देखा गया।
पश्चिम में भी ऋषियों को सीअर्स ही कहते हैं। देखा गया; देखने वाले। इसलिए हमने तो पूरे तत्व को दर्शन कहा। दिखाई जो पड़े सत्य, सीधा दिखाई पड़े; सीधा सुनाई पड़े, सीधा परमात्मा से मिले।
लेकिन परमात्मा से मिलने की भी परंपरा है। परमात्मा से आपको ही पहली दफा नहीं मिल रहा है। परमात्मा से अनेकों को और भी पहले मिल चुका है। मिलने वालों की भी परंपरा है। दो परंपराएं हैं, एक लिखने वालों की परंपरा है-लेखकों की। और एक जानने वालों की परंपरा है-ऋषियों की।
इसलिए कृष्ण कह रहे हैं, परंपरा से ऋषियों ने जाना। यह परंपरा का बोध कि मुझसे पहले भी सत्य औरों को मिलता रहा है इसी भांति ।
आपने आंख खोली और सूरज को जाना। जहां तक आपका संबंध है, आप पहली बार जान रहे हैं। लेकिन आपके पहले इस पृथ्वी पर जब भी आंख खोली गई है, सूरज जाना गया है। सूरज को इस भांति जानने की भी एक परंपरा है। आप पहले आदमी नहीं हैं ।
और ध्यान रहे, जिस आदमी को भी भ्रम पैदा हो जाता है कि सत्य को मैं जानने वाला पहला आदमी हूं, उसको दूसरा भ्रम भी पैदा हो जाता है कि मैं अंतिम आदमी भी हूं। भ्रम भी जोड़े से जीते हैं, पेअर्स में जीते हैं। भ्रम भी अकेले नहीं होते। जिस आदमी को भी यह खयाल पैदा हो जाएगा कि सत्य को जानने वाला मैं पहला आदमी हूं, मुझसे पहले किसी ने भी नहीं जाना, उस आदमी को दूसरा भ्रम भी अनिवार्य पैदा होगा कि मैं आखिरी आदमी हूं। मेरे बाद अब सत्य को कोई नहीं जान सकेगा। क्योंकि जो कारण पहले भ्रम का है, वही कारण दूसरे भ्रम में भी कारण बन जाएगा। पहले भ्रम का कारण अहंकार है। और ध्यान रहे, जिसका अभी अहंकार नहीं मिटा, उसको सत्य से कोई सीधा संबंध नहीं हो सकता। अहंकार बीच में बाधा है।
इसलिए कृष्ण बहुत जोर देकर कहते हैं कि परंपरा से ऋषियों ने जाना। लेकिन ध्यान रखना आप, परंपरा इस तरह की नहीं कि एक ने दूसरे से जान लिया हो। परंपरा इस तरह की कि जब भी एक ने जाना, उसने यह भी जाना कि मैं जानने वाला पहला आदमी नहीं हूं; न ही मैं अंतिम आ हूं। अनंत ने पहले भी जाना है, अनंत बाद में भी जानेंगे। मैं जानने वालों की इस अनंत श्रृंखला में एक छोटी-सी कड़ी, एक छोटी-सी बूंद से ज्यादा नहीं हूं। यह सूरज मेरी बूंद में
ही झलका, ऐसा नहीं; यह सूरज सब बूंदों में झलका है और सब बूंदों में झलकता रहेगा। जब कोई बूंद इतनी विनम्र हो जाती है, तो उसके सागर होने में कोई बाधा नहीं रह जाती।
इसलिए परंपरा का ठीक से अर्थ समझ लेना। अन्यथा हम परंपरा का जो अर्थ लेते हैं, वह एकदम गलत, एकदम झूठ और खतरनाक है। परंपरा का ऐसा अर्थ नहीं है कि मैं सत्य आपको दे दूंगा, तो आपको मिल जाएगा। और आप किसी और को दे देंगे, तो उसको मिल जाएगा। परंपरा का इतना ही अर्थ है कि मैं पहला आदमी नहीं, आखिरी नहीं; जानने वालों की अनंत श्रृंखला में एक छोटी-सी कड़ी हूं। यह सूर्य सदा ही चमकता रहा है; जिन्होंने भी आंख खोली, उन्होंने जाना है। ऐसी विनम्रता का भाव सत्य के जानने वाले की अनिवार्य लक्षणा है।
दूसरी बात कृष्ण कहते हैं, लुप्तप्राय हो गया वह सत्य ।
सत्य लुप्तप्राय कैसे हो जाता है? दो बातें इसमें ध्यान देने जैसी हैं। कृष्ण यह नहीं कहते कि लुप्त हो गया, लुप्तप्राय। करीब-करीब लुप्त हो गया। कृष्ण यह नहीं कहते कि लुप्त हो गया। क्योंकि सत्य यदि बिलकुल लुप्त हो जाए, तो उसका पुनर्प्राविष्कार असंभव है। उसको खोजने का फिर कोई रास्ता नहीं है।
जैसे एक चिकित्सक किसी आदमी को कहे, मृतप्राय; तो अभी जीवित होने की संभावना है। लेकिन कहे, मर गया, मृत हो गया, तो फिर कोई उपाय नहीं है। मृतप्राय का अर्थ है कि मरने के करीब है; मर ही नहीं गया। लुप्तप्राय का अर्थ है, लुप्त होने के करीब है, लुप्त हो ही नहीं गया।
सत्य सदा ही लुप्तप्राय होता है। क्योंकि एक दफे लुप्त हो जाए, तो फिर मनुष्य की सीमित क्षमता के बाहर है यह बात कि वह सत्य को खोज सके। एक किरण तो बनी ही रहती है सदा। चाहे पूरा सूरज न दिखाई पड़े, लेकिन एक किरण तो सदा ही किसी कोने से हमारे अंधकारपूर्ण मन में कहीं झांकती रहती है। जैसे कि मकान के अंधेरे में द्वार-दरवाजे बंद करके हम बैठे हैं, और खपड़ों के छेद से, कहीं एक छोटी-सी रंध्र से, छोटी-सी किरण भीतर आती हो। इतना सूर्य से हमारा संबंध बना ही रहता है। वही संभावना है कि हम सूर्य को पुनः खोज पाएं, उसी किरण के मार्ग से।
सत्य लुप्तप्राय ही होता है, लुप्त कभी नहीं होता। लुप्तप्राय का अर्थ है कि हर युग में, हर क्षण में, हर व्यक्ति के जीवन में वह किनारा और वह किरण मौजूद रहती है, जहां से सूर्य को खोजा जा सकता है। यही आशा है। अगर इतना भी विलीन हो जाए, तो फिर खोजने का कोई उपाय आदमी के हाथ में नहीं है ।
दूसरी बात, लुप्तप्राय सत्य क्यों हो जाता है? जैसे कोई नदी रेगिस्तान में खो जाए; लुप्त नहीं हो जाती, लुप्तप्राय हो जाती है। रेत को खोदें, तो नदी के जल को खोजा जा सकता है। ठीक ऐसे ही, जाने गए सत्य की परंपरा, सुने गए सत्य की परंपरा की रेत में खो जाती है। जाने गए सत्य की परंपरा, द्रष्टा के सत्य की परंपरा, शास्त्रों की, शब्दों की परंपरा की रेत में खो जाती है। धीरे-धीरे शास्त्र इकट्ठे होते चले जाते हैं, ढेर लग जाता है। और वह जो किरण थी ज्ञान की, वह दब जाती है। फिर धीरे-धीरे हम शास्त्रों को ही कंठस्थ करते चले जाते हैं। फिर धीरे-धीरे हम सोचने लगते हैं, इन शास्त्रों को कंठस्थ कर लेने से ही सत्य मिल जाएगा। और सत्य की सीधी खोज बंद हो जाती है। फिर हम उधार सत्यों में जीने लगते हैं। फिर राख ही हमारे हाथ में रह जाती है।
लेकिन शास्त्रों के रेगिस्तान में भी सत्य सिर्फ लुप्तप्राय होता है, लुप्त नहीं हो जाता। अगर कोई शास्त्रों के शब्दों को भी खोदकर खोज सके, तो वहां भी सत्य खोजा जा सकता है। लेकिन पहचान बड़ी मुश्किल है। पहचान इसलिए मुश्किल है कि जिस सत्य से हम अपरिचित हैं, उसे हम शास्त्रों के शब्दों के रेगिस्तान में खोज न पाएंगे। संभावना यही है कि सत्य तो न मिलेगा, हम भी भटक जाएंगे। ऐसा ही हुआ है।
हिंदू, हिंदू शास्त्रों में खो जाता है। मुसलमान, मुसलमान के शास्त्रों में खो जाता है। जैन, जैन के शास्त्रों में खो जाता है। और कोई यह नहीं पूछता कि जब महावीर को ज्ञान हुआ, तो उनके पास कितने शास्त्र थे! शास्त्र थे ही नहीं। महावीर के हाथ बिलकुल खाली थे। कोई नहीं पूछता कि जब मोहम्मद को इलहाम हुआ, तो कौन-सी किताबें उनके पास थीं! किताबें थीं ही नहीं। कोई नहीं पूछता कि जीसस ने जब जाना, तो किस विश्वविद्यालय में शिक्षा लेकर वे जानने गए थे!
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सुख-निद्रा का अनुभव ।
उसे केवल स्त्री की ही धुन सवार रहती है । चाहे फिर वह बहिन, बेटी ही क्यों न हो या पशु जाती की ही क्यो न हो ?
रात के समय उन कामोत्तेजक पदार्थों ने अपना प्रभाव बतलाया । कालिदास काम-पीड़ा से मुक्ति पाने की अभि लाषा से प्रभावती के निकट पहुचे और सहवास के आय करने लगे। प्रभावती ने कालिदास को ऐसा करते देख कहा- पिताजी सावधान रहिये । क्या
ही ऐसा त्याचार करने के लिए तत्पर हुए है ?- परन्तु उस समय तो कालिदास पर काम का भूत सवार था अतः उस समय उन्हें यह चिन्ता क्यों कर होती कि यह मेरी वेटी है ? प्रभावती की बात सुनकर बोले - बस ! चुप रह, अन्यथा तेरे जीवन का खैर नही है ।
प्रभावती समझ गई कि अब ये अपने वश में नही हैं। इस समय इनका विवेक लुप्त हो चुका है । अतएव बोली- पिताजी यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो कम-से कम दीपक तो बुझा दीजिए । क्या उसके रहते हुए आ अपनी बेटी के साथ और मैं अपने पिता के साथ भोग भोग सकूंगी ?
प्रभावती की बात सुन कालिदास दीपक बुझाने गए कि इतने में प्रभावती पहले से सोचे हुए स्थान में जाकर छि गई और किवाड़ बन्द कर लिए । कालिदास ने लौटकर प्रभावती को अनेक भय दिखाए, प्रलोभन दिए लेकिन उसने
कहा कि - आप सबेरे चाहे मुझे मार ही डालें परन्तु इस समय तो मैं किवाड़ नही खोलूंगी । प्रभावती को प्राप्त करने के लिए कालिदास ने अनेक उपाय किए परन्तु वे उनमें असफल ही रहे ।
जब सारी रात इसी प्रकार के उपद्रव करते-करते बीत गई और सबेरा होने आया एवं उत्तेजक पदार्थो का प्रभाव कम हुआ तो कालिदास का विवेक जागा और सोचा कि मै यह क्या कर रहा हूँ ? हाय-हाय ! अपनी बेटी से से ही व्यभिचार ? वह क्या समझेगी और में उसको किस प्रकार अपना मुंह दिखलाऊँगा ? मेरा कल्याण तो अंब मरने में ही है । इस प्रकार विचार कर कालिदास ने अपने प्राणत्याग का संकल्प कर लिया और फांसी लगाकर मरने के लिए तैयार हो गए ।
उधर पिता के उत्पातों को शांत और उत्तेजित पदार्थो के असर का समय समाप्त जानकर प्रभावती ने विचार कि अव तो पिताजी की बुद्धि ठिकाने पर आ गई है अतः वह किवाड खोलकर बाहर आई तो देखती है कि पिताजी मरने पर आमादा है। उसने कहा - पिताजी आप यह क्या कर रहे है ?
कालिदास - बस, बेटी मुझे क्षमाकर । मैं अपने इस चुकृत्य का परलोक में तो दंड पाऊँगा ही परन्तु इस लोक
मे भी मुंह दिखाने योग्य नही रहा । प्रतः तू मेरे काम में
३ बाधा न डाल । बुरे विचार लाकर मैं स्वयं भी भ्रष्ट हुआ
सुख-निद्रा का अनुभ
और तुझे भी भ्रष्ट करना चाहता था। अब तो मैं इस वाप का प्रायश्चित मर कर ही करूंगा ।
प्रभावती - पिताजी जरा ठहरिए और मेरी बात सुन लीजिये । आपके मन मे जो विकार उत्पन्न हुए और जो कुछ उत्पातादि किए उसमें आपका क्या दोप है ? यह तो राजा के प्रश्न का उत्तर मात्र है । प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही मैंने आपको ऐसे कामोत्तेजक पदाथ खिलाये थे जिन्होंने आपको ऐसा करने के लिये विवश कर दिया। अच्छी तरह समझ गये होंगे कि काम का सच्चा बाप एकान्त है । यदि कभी मन खराब भी हो जाय तथा स्त्री भी पास हो परन्तु एकान्त में न हो तो वे बुरे विचार कार्य रूप मे परिणत न हो सकेंगे । इसलिये प्रश्न का उत्तर देने के पहले ही उसका अनुभव करा दिया है ।
कालिदास - यद्यपि उत्तर देने के लिये ही तूने जान बूझकर मुझे ऐसे उत्तेजक पदार्थ खिलाये, जिससे मैं अपने प्रापे में नहीं रह सका, तथापि तेरे साथ अन्याय करने के विचारों के लिये तो मुझे प्रायश्चित करना ही चाहिये ?
प्रभावती - जब आप परवश थे तो उसका प्रायश्चिां क्या होगा ? फिर भी आप प्रायश्चित करना ही चाहते तो आपके साथ मै भी प्रायश्चित करती हूँ कि भविष्य : चाहे पर पुरुष पिता हो या भाई ही हो परन्तु उसके एकान्त में नही रहूँगी ।
दूसरे दिन राज सभा मे कालिदास ने प्रभावती द्वार
अनुभव कराये गए उत्तर को कह सुनाया, जिसे सुनकर राजा भोज बहुत प्रसन्न हुए ।
साराश यह कि काम विकार को कार्य रूप में परिणत कराने का अवसर तभी प्राप्त होता है जब स्त्री-पुरुष एकांत में हों । अतएव इससे बचने के लिए ही स्त्री पुरुष का एकांत स्थान में रहना त्याज्य माना गया है ।
मल्लिका का उत्तर सुनकर रानी बोली कि तेरा कहना ठीक है । वास्तव में मैंने पति प्रेम के प्रवेश में कार्य के श्रोचित्य पर ध्यान नही दिया । लेकिन अब मैं भी नहीं जाती हूँ । जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा ।
६. कर्तव्योन्मुख राजा का राज्य शासन
महाराज हरिश्चन्द्र श्राज सूर्योदय से पहले ही जाग
गए ।
धर्मात्मा मनुष्य सूर्योदय से पहले ही उठकर परमात्मा के ध्यान में लग जाते हैं । वे आलसियों की तरह सूर्योदय होने के बाद तक बिछोनों में नहीं पड़े रहते है। सूर्योदय होने के पश्चात् उठने से आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी कई हानियां बतलाई हैं । रात में देर तक जागना और फिर सूर्योदय के पश्चात् तक सोते रहना प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है। प्राकृतिक नियमों की अवहेलना करने वाला मनुष्य अपने जीवन, स्वास्थ्य, उत्साह और लाभ की भी अवहेलना करता है और प्राकृतिक नियमानुसार दण्डित होता है ।
महाराज हरिश्चन्द्र को सूर्योदय देखने का यह अव सर आज बहुत दिनों के पश्चात् प्राप्त हुआ था । उनके हृदय में आज आनंद था, उत्साह था, शरीर में स्फूर्ति थी, मन प्रसन्न था कि जिसका अनुभव वे बहुत समय से नही कर सके थे । रानी को धन्यवाद देते हुए कहने लगे - मुभे वन के प्राकृतिक दृश्य देखने, सुख - निन्द्रा लेने और प्रातःकाल उठने से जो आनन्द प्राप्त हुआ है, वह सब तेरी कृपा का
फल है । तेरी मांग का अभिप्राय मुझे इन सब प्रानन्दों से भेंट कराना था । वास्तव में मैं अपने जीवन को विषयवासना में व्यतीत करके विषपान ही कर रहा था । लेकिन तूने मेरी यह भूल दर्शादी । मैं तेरा उपकार मानता हूँ और इसे अपने ऊपर बहुत बड़ा ऋण समझता हूँ । देवयोग से सोने की पूंछ वाला मृग- शिशु प्राप्त हो जाता तब भी विषयवासना मे मुझे वह आनन्द न आता जो अब प्राप्त हो रहा है ।
दैनिक कार्यों से निवृत हो महाराज हरिश्चन्द्र राजसभा में आकर सिहासन पर आसीन हो गए । यह देखकर कुछ लोगों को तो आनद हुआ और कुछ को दुःख । दुःखी तो वे हुए जो राजा की अनुपस्थिति में प्रजा पर मनमाने अत्याचार कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे और निरंकुश हो अनेक प्रकार के अनादर करने में भी नहीं हिचकते थे । लेकिन आनंदित वे हुए जो लोग राजा के, राज्य के शुभचिन्तक व न्यायप्रिय थे तथा राजकर्मचारियों के अत्याचारों को देख देखकर दुखी हो रहे थे । वे तो हर्ष विभोर होकर कहने लगे लगे कि-श्राज सूर्यवंश का सूर्य पुनः उदित हुआ है ।
कुछ लोगों को आश्चर्य भी हुआ कि जो राजा विशेष समय से महलों के बाहर नहीं निकलते थे, राजकाज की श्रोर दृष्टि नही डालते थे, वे अचानक ठीक समय पर राजकार्य देखने में कैसे उद्यत हुए ? राजा के स्वभाव में अचानक इस प्रकार के परिवर्तन होने के कारण का लोगों ने
कर्तव्योन्मुख राजा का राज्य शासन
पता लगाया तो मालूम हुआ कि यह सव रानी की कृपा का फल है, जिससे राजा पुनः राजकाज देखने में प्रवृत हुए है। इस कृपा के लिए सभी रानी की प्रशसा करने लगे और आभार मानते हुए अनेकानेक धन्यवाद दिए ।
रानी के महल में न जाने के लिए वचन-वद्ध राजा एकाग्रचित होकर राजकाज देखने में लगे रहते थे । अव उनका संपूर्ण समय राज्य प्रबंध देखने, न्याय करने, प्रजा के दुःखों और प्रभावों को दूर करने, उसे सुख पहुंचाने आदि कार्यों में ही व्यतीत होता था । प्रजा के लिए सदाचार आदि नीति संबंधी और कला-कौशल आदि व्यवसाय संबधी शिक्षा का उन्होंने ऐसा प्रबंध किया कि जिससे राज्य में अपराधों का नाम ही न रहा था । वे अपराधों का पता लगा कर अपराधियों को शिक्षा देते थे और अपराध के उन कारणों का उन्मूलन ही कर देते जिससे पुनः अपराध न हो सकें । न्याय भी इतनी उत्तमता से करते थे कि किसी भी पक्ष को दुःख नहीं होता था । यही बात मुकदमों आदि की भी थी कि राजा दूध का दूध और पानी का पानी अलग अलग कर देते थे । कर्मचारियों द्वारा किसी पर अत्याचा न होने के बारे में बहुत ही सावधानी रखते थे और चोर डाकू आदि उपद्रवियों से प्रजा की रक्षा करना अपना पर कर्तव्य समझते थे।
महाराज हरिश्चन्द्र के इस प्रकार से राजकाज देखने और न्याय करने से थोड़े ही दिनों में राज्य व्यवस्था पुन
सुधर गई । प्रजा सुख-समृद्धि संपन्न हो गई और कोई दुःखी न रहा । हरिश्चंद्र का यह नीति-धर्ममय राज्य सत्य का राज्य कहलाने लगा और उनकी कीर्ति दिग्दिगन्त में व्याप्त हो गई । इस प्रकार रानी ने अपने त्याग, उद्योग से अपनी मनोकामना भी पूर्ण कर ली और राजा को अपने कर्तव्य पर भी आरूढ़ कर दिया एवं साथ ही अपना और पति का कलक भी धो डाला ।
७ : इन्द्र द्वारा गुणगान
आज स्वर्ग की सुधर्मा सभा विशेष रूप से सजाई गई चारों ओर पारिजात के फूल लगे हुए थे और सभा मध्य चवर छत्र आदि से सुशोभित सिंहासन पर इन्द्र बैठे हुए थे । लोकपाल आदि सब देव और देवियाँ यथास्थान बैठे थे तथा आत्मरक्षकादि भृतगण यथास्थान खड़े थे । सभा के मध्य एक मंच बना हुआ था जिस पर गायक-गायिकाए और नर्तक नर्तकियों सुसज्जित खडी थी ।
गायक गायिकाए आदि इन्द्र की प्राज्ञा की प्रतीक्षा में थे कि आज किस विषय के गीत गाए और नृत्य करे । तब इन्द्र ने कहा - अन्य विषयों के गीत आदि तो नित्य ही होते हैं लेकिन आज सत्य के गीत गाओ और उसी के अनुसार नृत्य हो । सत्य के प्रताप से ही हम लोग यह आनन्द भोग रहे हैं । इसलिए आज उसी के गुणगान करके यहाँ उपस्थित देव-देवियों को सत्य का महत्त्व सुनाओ ।
त्रैलोक्य में सत्य के बराबर अन्य कोई वस्तु नहीं है । सत्य से ही ससार की स्थिति है । यदि सत्य एक क्षण के लिए भी साथ छोड़ दे तो ससार के कार्य चलना कठिन ही नहीं, किन्तु असभव हो जाये । कीर्ति प्राप्त करने के लिए
सत्य एक अद्वितीय साधन है । सत्य का पालन किसी के द्वारा भी हो लेकिन उसकी ख्याति पवन की तरह सर्वत्र फैल जाती है । सत्य पालन में किसी प्रकार की आकांक्षा रखी जाएगी तो वह एक प्रकार का व्यापार हो जाएगा ।
सत्य का गान करने के लिए आज्ञा पाकर गायकगण आदि बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने गान और नृत्य द्वारा सत्य का जो सजीव दृश्य दिखलाया उससे सारी सभा प्रसन्न हो उठी और गायकों व नृत्यकारों की प्रशंसा करने लगी नृत्य-गान समाप्त होने पर इन्द्र ने कहा कि किमेरे प्रिय देवलोक के निवासियों ! आप लोगों ने जिस सत्य का नृत्य-गान देखा, सुना और प्रसन्न हुए हैं, वह सत्यजिसके पास रहता है वह सदैव आनंदित रहता है । सत्य सूक्ष्म है अतः उसका बिना आधार के उपयोग नहीं हो सकता और जब तक किसी को प्रयोग में लाते न देखे तब तक सत्य को समझने के लिए आदर्श नहीं मिलता । आप देवलोक मे है तब भी सत्य की उस मूर्ति के दर्शन का सौभाग्य. प्राप्त नहीं कर सके जिसके दर्शन का सौभाग्य मृत्युलोकवासियों को प्राप्त है ।
मृत्युलोक में अयोध्या के राजा हरिश्चन्द्र ऐसे सत्यवादी कि मानों साक्षात् सत्य हो हरिश्चंद्र के रूप में हो । हरिश्चद्र मे सत्य फूलों में सुगंध, तिल में तेल या दूध में घृत की तरह व्याप्त है । हरिश्चंद्र का सत्य मेरुपर्वत की तरह अचल है । जिस प्रकार कोई सूर्य को चन्द्र, चन्द्र को
इन्द्र द्वारा गुण-गार्न
लोक को प्रलोक, अलोक को लोक प्रोर चेतन्य को जड़ तथा जड़ को चेतन्य बनाने में समर्थ नहीं है, उसी प्रकार हरिश्चन्द्र को सत्य से विचलित करने में भी कोई समर्थ नहीं है। हरिश्चन्द्र का कोई भी कार्य सत्य से खाली नहीं है । सत्य पर ध्रुव के सदृश प्रटल हैं तथा कोई भी उनको सत्य से विलग करने में समर्थ नहीं हो सकता है ।
हरिश्चन्द्र के मृत्युलोक में होने से और हम देवलोक में हैं, इस विचार से आप उन्हें तुच्छ न समझे । धर्म-पुण्योपार्जन के लिए मृत्युलोक ही उपयुक्त है। वहाँ उपार्जित धर्मपुण्य के प्रताप के कारण ही हम आप इस लोक में आनन्द भोग रहे हैं । जो धर्म-पुण्य मनुष्य शरीर में हो सकते हैं वह इस देव-शरीर में नहीं । जन्म-मरण रहित होने के लिये मनुष्य जन्म ही धारण करना पड़ता है । मनुष्य शरीरधारी जीव बिना देवयोनि प्राप्त किए मोक्ष जा सकता है परन्तु देव शरीरधारी जीव मनुष्य जन्म धारण किये बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते है । सत्य पालन में हरिश्चन्द्र अद्वितीय हैं। उनकी बराबरी करने वाला संसार में दूसरा कोई नही है ।
संसार में मनुष्य विशेषतः दो प्रकार के माने जाते हैं । एक दुर्जन दूसरे सज्जन । सज्जन तो दूसरे की प्रशंसा सुनकर तथा दूसरे को सुखी देखकर सुखी होते हैं और दुःखी देखकर दुःखी होते हैं । वे दुःखी के दुःख दूर करने का उपाय करते हैं एवं कभी किसी को दुःख देने का विचार ही नहीं
करते है । दूसरों के दुर्गुणों का ढिंढोरा न पीटकर उसके दुर्गुणों को दूर करने का प्रयत्न करते हैं और ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि दुर्गुणों को पास भी नहीं फटकने देते हैं । लेकिन दुर्जनों का स्वभाव सज्जनों के स्वभाव से सर्वथा विपरीत होता है ।
विद्वानों ने दुर्जनों की तुलना इन्द्र से करते हुये उन्हें इन्द्र से भी बडा बतलाया है । वे कहते हैं कि इन्द्र का शस्त्र चत्र उसके हाथ में रहता है और शरीर पर ही आघात पहुंचा सकता है, लेकिन दुर्जनों का शस्त्र दुर्वचन उनके मुख मे रहता है और वह मनुष्य के हृदय पर आघात करता है । वज्र का घाव और पीड़ा मिट सकती है परन्तु दुर्वचन की पीड़ा मिटना कठिन है । इन्द्र की आंखों में जितना तेज है, उतना ही क्रोध दुर्जनों की आंखों में है । इन्द्र दूसरे के सद्गुण देखता है तो दुर्जन दुर्गुण देखता है । सारांश यह कि दुर्जन एक प्रकार से इंन्द्र ही है । लेकिन अन्तर केवल इतना ही है कि इन्द्र सद्गुणों में बड़े है और दुर्जन दुर्गुणों से ।
एक ही वस्तु प्रकृति की भिन्नता से भिन्न-भिन्न गुण देती. है । जो जल सीप में पड़कर मोती बन जाता है, वही यदि सर्प के मुख में गिरे तो विष बन जाएगा । जो बात सज्जनों को सुख देने वाली होती है, वही दुर्जनों को दुःख देने वाली हो जाती है । जो वर्षा वृक्षों को हरा-भरा कर देती है, उसी वर्षा से जवास सुख जाता है । सारांश यह कि अच्छी वस्तु भी विपरीत प्रकृति वाले के लिये बुरी हो जाती है ।
इन्द्र द्वारा गुण गान
इन्द्र द्वारा हरिश्चन्द्र की प्रशंसा सुनकर सारी सभा प्रसन्न हुई और हरिश्चन्द्र के सत्य और उसके साथ साथ मृत्युलोक और मनुष्य जन्म की सराहना करते हुए सत्य-रहित देवजन्म को धिक्कारने लगी। लेकिन एक देव को हरिश्चन्द्र की यह प्रशंसा अच्छी नही लगी । यद्यपि इन्द्र के भय से प्रगट में तो वह कुछ नहीं बोल सका परन्तु मन-मन ही जल उठा कि - ये इन्द्र हैं तो क्या हुआ, लेकिन इनको अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान नहीं है । देवताओं के सन्मुख हाड़-चाम से बने, रोगादि व्याधियों से युक्त मनुष्य की प्रशंसा करना, इनकी कितनी हीनता प्रगट करता है । मैं डरता हूँ अन्यथा इसी समय खड़ा होकर कहता कि क्या हरिश्चन्द्र हम देवताओं से भी बड़ा है जो यहाँ प्रशंसा की जा रही है । लेकिन अब मैं इन्द्र के कथन का प्रतिवाद मुख से न करके कार्य से करूंगा और जिस हरिश्चन्द्र की प्रशंसा की गई है उसको सत्य से पतित कर दिखला दूंगा कि - देखलो अपने उस हरिचन्द्र की सत्यभ्रष्टता, जिसकी प्रशंसा करते हुये आपने देवताओं को भी उससे तुच्छ होने के भाव दर्शाये थे ।
दुर्जनों को विशेषतः सद्गुणों से द्वेष होता ही है । इसी से वे दूसरे की कीर्ति सुनकर या सुखी देखकर ईर्ष्याग्नि से जलने लगते हैं । चन्द्रमा को ग्रसने की चिन्ता में डूबे हुए राहु की तरह दुर्जन दूसरे की कीर्ति, सुख और गुण ग्रसने की चिन्ता में रहते हैं तथा अवसर की प्रतीक्षा करते रहते हैं । यदि इन्द्र ने हरिश्चन्द्र की प्रशंसा की तो इससे उस देव
की कोई हानि न थी, परन्तु दुर्जन के स्वाभावानुसार वह अकारण ही हरिश्चन्द्र के साथ साथ सत्य और इंद्र से भी द्वेष करने लगा ।
ससार में ईर्ष्या से बढ़कर दूसरा दुर्गुण नहीं है । यद्यपि ईर्ष्या अग्नि नहीं है, फिर भी जिसमें होती है, उसको निरंतर जलाती रहती है। ईर्ष्या करने वाले का मन किसी भी अवस्था में प्रसन्न नहीं रहता है । वह इस विचार से मन-ही-मन जला करता है कि यह सुख या यश वैभवादि दूसरे को क्यों प्राप्त है ?
क्रोध और ईर्ष्या से भरा हुआ देव घर आया । उसकी आकृति देखकर उसकी देवियाँ डर गई। उन्होंने डरते डरते उससे पूछा कि आज आपका मन क्यों मलिन है ? ग्रांखें क्यों लाल है और शरीर क्यों कांप रहा है ? जान पड़ता है कि इस किसी पर क्रोधित हो रहे हैं । क्या सभा में इद्र ने कोई किया है। किसी ने कुछ ऐमी बात कह दी है जिससे आपको रोष आ गया है या अन्य कोई कारण है ?
देव - क्या तुम सभा में नहीं थीं ?
देवियाँ - वही थे और अभी वही से चली आ रही हैं । देव - फिर भी तुम्हें मालूम नहीं कि वहाँ क्या हुप्रा ? . देवियाँ - मालूम क्यों नहीं । वहाँ सत्य के विषय में
नृत्य-गान हुआ था और उसके पश्चात इन्द्र ने राजा हरिइचद्र के सत्य की महिमा बतलाई थी ।
इन्द्र द्वारा गुण-गान
देव - क्या यह अपमान कम है । हम देव शरीर. घारियों के सन्मुख ही हमारी सभा में, हमारा ही राजा मृत्युलोक के मनुष्य की प्रशंसा करे मोर हम सुनते रहें । इससे ज्यादा अपमान और क्या होगा ? क्या सत्य सिर्फ मृत्युलोक में है और वह भी वहाँ के मनुष्यों में ही है ? यह कितनी अनुचित बात है कि मृत्युलोक के मनुष्यों के सत्य की प्रशसा करके और हरिश्चंद्र को संसार में सबसे बड़ा सत्यधारी बतलाया जाए तथा देवलोक तथा देवलोक के गौरवसम्मान की अवहेलना की जाय ? यद्यपि वहाँ बैठे सब देव. देवियाँ इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा सुनते रहे और प्रसन्न होते रहे लेकिन उनकी समझ में यह बात नहीं आई कि इस प्रकार हम देवों का और देवलोक का कितना अपमान हो रहा है । यह तो योगायोग की बात थी जो मैं वही उपस्थित था और जिसे इस अपमान का ध्यान हुआ । इन्द्र ने
घोर अपमान किया है । लेकिन मैंने यह विचार कर लिया है कि हरिश्चंद्र को सत्य से पतित करके इन्द्र द्वारा की गई प्रशसा का प्रतिवाद करूँ और देवों पर लगे हुए कलक को मिटाकर इन्द्र को उनकी भूल दश
क्रोधावेश मे अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता है । क्रोधी की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । इसी से वह न कहने योग्य बात कह डालता है और न करने योग्य कार्य कर डालता है। इन्हीं कारणों से ज्ञानी पुरुष क्रोध के त्याग का उपदेश देकर कहते है कि क्रोध से सदा बचो ।
यद्यपि इन्द्र इस देव के स्वामी हैं, इसलिए वे उसके पूज्य हैं परन्तु क्रोधवश होकर उसने इन्द्र के लिए भी अभ्य शब्दों का प्रयोग कर डाला । क्रोधवश इस समय उसको अपने बोलने के प्रौचित्यानौचित्य का भी ध्यान नहीं रहा ।
देवियाँ उस देव के स्वभाव से परिचित थीं । वे विचारने लगीं कि स्वामी को दूसरे के गुण और प्रशंसा से द्वेष है । इनका यह रोग असाध्य है । इसलिए इसके बारे में इन की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी कहना क्रोधाग्नि में आहुति डालना है । अतः उन्होंने देव से फिर पूछा कि आप हरिश्चन्द्र को सत्य - भ्रष्ट किस प्रकार करेंगे ।
इसका भी मैं कुछ न कुछ उपाय विचार ही लूंगा, लेकिन पहले यह जान लेना चाहता हूँ कि तुम लोगों को मैं जो आज्ञा दूंगा, उसका पालन करोगी या नहीं ? देव ने उन देवियों से पूछा । मैं तुम्हारी भी कसौटी करूंगा कि तुम कहाँ तक पति- प्रज्ञा का पालन करती हो । अब तो मुझे उसी समय शाँति मिलेगी जब मैं हरिश्चंद्र को सत्यं से विचलित करके इन्द्र से कह सकू कि तुमने हमारे सामने जिस मनुष्य की प्रशंसा की थी, उसकी सत्यभ्रष्टता देख लो और प्रशसा करने का पश्चात्ताप करो ।
देव की बात सुनकर देवियाँ आपस में मंत्रणा करने लगी कि पति के प्रश्न का क्या उत्तर दिया जाय। उनमें से पहली वोली - यद्यपि जिस कार्य के लिए पति-प्राज्ञा चाहते हैं, वह है तो अनुचित, तथापि पति की आज्ञा म
हमारा कर्तव्य है ।
दूसरी - इन्द्र कह ही चुके हैं कि राजा हरिश्चंद्र कं सत्य से विचलित करने में कोई समर्थ नहीं है । इस पर भ पति हरिश्चंद्र को सत्य से विचलित करने का विचार कर रहे हैं जो उचित तो नही है, लेकिन यह बात कहकर कौन उनका कोपभाजन बने । इसलिए हमें तो अपने कर्तव्य प श्रीज्ञा पालन-पर दृढ़ रहना ही उचित है । अधिक-से-अधि वे हरिश्चंद्र का सत्य डिगाने में हमारी सहायता ही तो लेगे
तीसरी - लेकिन पति ने कहीं हम लोगों को छ द्वारा हरिश्चंद्र का सत्य भंग करने की आजादी तो ? चौथी - हम लोगों को इससे क्या मतलब ? हम पति की आज्ञा का पालन करेंगी । इन्द्र के कथन पर विश्वा रखो और सम्भव है कि पति के इस उपाय से हरिश्चंद्र व सत्य और अधिक ख्याति प्राप्त करे । हमारी तो स्वयं य इच्छा ही नहीं है कि हरिश्चद्र को सत्य से विचलित कर में पति को सहयोग दे, लेकिन जब ऐसा करने के लि विवश की जाती हैं तो चारा ही क्या है ? शास्त्रकारों इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि यदि विवश होकर किसी अनुचित कार्य में प्रवृत्त होना पड़े तो अपना हृदय निर्मल रखो और उस दशा में अपराध से बहुत कुछ बच जाते है । अतः अपना कोई अपराध न होगा, बल्कि हम तो पति- आज्ञा पालन का लाभ प्राप्त करेगी और उसके साथही हरिश्चंद्र के दर्शनों का भी लाभ प्राप्त करेंगी ।
इन्द्र द्वारा गुण-गा
इस प्रकार परस्पर में विचार करके उन देवियों ने उत्तर दिया कि हम तो आपकी आज्ञाकारिणी ही हैं, आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है । अतः आप हमें जो आज्ञा देंगे, उसका पालन करेंगे ।
देवियों से इस प्रकार का उत्तर सुनकर देव बहुत ही प्रसन्न हुआ कि कार्य के विचार में ही यह शुभ लक्षण दीख पड़े । तो निश्चय ही में हरिश्चंद्र को सत्य से विचलित कर दूंगा । जब तक मैं हरिश्चंद्र को सत्य से विचलित न कर दूं तब तक मेरे देवजन्म को, मेरे देवलोक में रहने को और मेरे साहस उद्योग को धिक्कार है ।
८. षडयंत्र का वीजारोपण
देवियों की बात सुनकर देव प्रसन्न तो हुआ, लेकिन उसके साथ ही वह दूसरी चिन्ता में पड़ गया कि हरिश्चद्र का सत्य भग करने के लिए किस उपाय को काम में लिया जाय ।
विचारवान मनुष्य को अपनी-अपनी वृत्तियों के अनु सार कोई-न-कोई उपाय सूझ हो जाता है। दुर्जन मनुष्य जब किसी का बुरा करना चाहते हैं, तब किसी-न-किसी षड़यंत्र का सहारा लेते हैं । वे उपाय उचित हैं या अनुचित, ऋशसनीय है या निदनीय, इस बात पर विचार नहीं करते ।
उन्हें तो केवल दूसरे की हानि करना अभीष्ट होता है । ऐसे मनुष्यों के बारे में एक कवि ने कहा है - घातयितु मेव नीचः परकार्य वेति न प्रसाधयितुम् । पातयितुमस्ति शक्तिर्वायोवृ न चोन्नमि तुम् ।। नीच मनुष्य पराये काम को बिगाड़ना जानता है, परन्तु बनाना नही जानता है । वायु वृक्ष को उखाड़ सकती है, परन्तु जमा नही सकती है ।
देव ने इस कार्य के लिए विश्वामित्र को अपना प्रस्त्र बनाना उपयुक्त समझा । उसने विचार किया कि यदि मैं
प्रत्यक्ष में हरिश्चंद्र से कोई छल करूंगा तो संभव है कि वह सावधान हो जाए। इसलिए मैं तो अप्रगट रहूँगा और विश्वामित्र को हरिश्चंद्र से भिड़ा दूंगा । विश्वामित्र स्वभावतः क्रोधी हैं और हरिश्चंद्र के प्रति सिर्फ एक बार उनके क्रोध को भड़काने की देर है कि वे फिर किसी के वश के नही है । हरिश्चंद्र की ख्याति तो सत्य के कारण ही है अतः बिना उसका भंग किए अपमान नहीं हो सकेगा । परंतु विश्वामित्र को कुपित कैसे किया जाय ? इसके लिए देव ने विचारा कि देवियों द्वारा विश्वामित्र के आश्रम को नष्ट कराया जाय । इससे वे अवश्य ही उन पर क्रुद्ध होकर वे उन्हें जला तो सकेंगे नहीं, केवल शारीरिक दड देगे । उस शारीरिक दण्ड को भोगते समय देवियाँ हरिश्चंद्र की शरण में जाएँगी ही और वह अवश्य ही इन देवियों को कष्ट-मुक्त करेगा। ऐसा करने से निश्चय ही विश्वामित्र की क्रोधाग्नि भड़क उठेगी और इस प्रकार मेरा षड़यंत्र सफल हो जाएगा ।
इस प्रकार अपनी योजना के बारे में विचार कर देव ने उन देवियों को आज्ञा दी कि तुम विश्वामित्र के आश्रम में जाकर वहाँ उपवन को नष्ट-भ्रष्ट कर डालो । विश्वामित्र के क्रोध से तुम किंचित् भी भयभीत न होना और वे जो कुछ भी दंड दें उसको सहन करती हुईं हरिश्चंद्र की शरण लेना । ऐसा करने पर वह तुम्हें उस कष्ट से दूर कर देगा और फिर तुम चली आना । बस तुम्हारी इतनी-सी सहायता से मैं अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर लूँगा ।
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श्रेणी रूसी भाषा में बोलने के भाग बुनियादी आकृति विज्ञान है। यह ज्ञात है कि वे चार वर्गों में विभाजित हैंः स्वतंत्र, सेवा, मोडल (या इनपुट) शब्द और विस्मयादिबोधक। पहले एक संज्ञा लागू होता है। काफी हद तक यह मुख्य भाषाई अवधारणाओं के रूप में माना जा सकता है।
हमारे शब्दकोश यह लोगों, जानवरों, कुछ बातें या पदार्थों हो, वस्तुओं को दर्शाने शब्दों की एक बड़ी संख्या में शामिल है। इन सभी संज्ञाएं। इसके अलावा, व्यक्तिगत विशेषताओं, उदाहरण, ईमानदारी, दया, ईर्ष्या के लिए सहित अमूर्त अवधारणाओं, कर रहे हैं; सो, चल रहा है, नृत्य, विश्राम। इस तरह की संज्ञाओं भी निष्पक्षता के मामला है और सवाल का जवाब कर रहे हैं "कौन हैं? " या "क्या? "।
इन सभी शब्द कहा जाता है चेतन और अचेतन वस्तुओं जैसे लिंग, संख्या और मामले के रूप में इस तरह के रूपात्मक श्रेणियों की है। तदनुसार, वे तीन लिंग (मर्दाना, स्त्री, मध्य) में बांटा जाता है, संख्या (एकवचन और बहुवचन), और साथ ही छह मामलों में भिन्नता है।
भाषण का एक भाग के रूप में संज्ञा गुड़िया, लड़की, ठंढ, आनन्द, चीनीः यह कर्ताकारक एकवचन के रूप में एक प्रारंभिक आकार है।
रूस में, हर 100 शब्दों के लिए 40 संज्ञाओं के लिए खाते। वे शाब्दिक संरचना का 40% है। इसका मतलब यह है कि लगभग हर दूसरा शब्द विषय या अवधारणा है कि सवाल का जवाब है, "कौन हैं? " या "क्या? "। क्योंकि भाषण में एक संज्ञा की भूमिका जिआदा करना मुश्किल है।
काफी हद तक यह व्याकरण इकाइयों के बिना पूर्ण ऐक्य नहीं होगा। सजा के बाद, एक नियम के रूप में, वहाँ वस्तुओं और उनके बीच संबंधों के बीच संबंध हैं, इसलिए लगभग उनमें से हर एक एक संज्ञा है, और एक अक्सर से अधिक है। भाषण प्रसिद्ध भाषाविद् के इस हिस्से का महत्व है, वीजी कहा Vetvitsky, "ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर व्याकरण" के रूप में यह परिभाषित करने हर कदम देखा जा रहा है सभी "ऑर्केस्ट्रा" - निर्भर शब्द उस रूप को विरासत में और उसके साथ सहमत हैं।
यह एक महत्वपूर्ण भूमिका और संज्ञाओं की अस्पष्टता, और अर्थपूर्ण भाषा (रूपकों, विशेषण, तुलना) के एक साधन के रूप में उनके उपयोग, और कई, न केवल सीधे, लेकिन यह भी एक आलंकारिक अर्थ की उपस्थिति निभाता है।
वाक्यों में भाषण के कुछ हिस्सों की इस श्रेणी में प्रेडीकेटिव अड्डों के गठन में एक आवश्यक कार्य करता है। उदाहरण के लिए, एक संज्ञा में एकमात्र प्रमुख शब्द के रूप में कार्य कर सकते हैं कर्ताकारक वाक्य। एक अद्भुत उदाहरण अलेक्जेंडर ब्लोक, "रात से उद्धरण है। स्ट्रीट। लालटेन। फार्मेसी . . . "
सवाल में संज्ञा की भूमिका तो सीमित नहीं है। एक विधेय रूप में, यह तथाकथित bicomponent वाक्यों में कर्ताकारक में व्यक्त किया जा सकता हैः "मेरी बहन - छात्र", और रूपों परोक्ष मामले निम्न मानों में से एक वितरक के रूप में प्रयोग किया जाता हैः
- वस्तु ( "माशा भरता डायरी");
- व्यक्तिपरक ( "महिला उज्ज्वल और खुश थी");
- गुणवाचक ( "मंत्रिमंडल प्रमुख पर्याप्त जगह है");
- क्रिया-विशेषण ( "हम सब द्वार पर एकत्र हुए")।
सुंदर (रों) पोशाक (आई), सुंदर (रों) छवि (ओं), सुंदर (च) फूल (ओं): तथ्य संज्ञा लिंग और संख्या की श्रेणी है कि के कारण, यह क्षमता शब्द उसके साथ बातचीत के जरिए के विभिन्न रूपों के साथ संयुक्त किया जाना है।
भाषण के इस हिस्से के व्यक्त मूल्यों की विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों, जो बीच में यूनिट हैं (मटर, पुआल), सामग्री (दूध, शहद, चांदी), संग्रह (पत्तियों, रेत, जानवरों) में बांटा गया है। लेकिन शायद सबसे कई और भाषण के उपयोग में बड़े पैमाने पर - संज्ञाएं, जो ठोस और अमूर्त अवधारणाओं शामिल हैं।
बहुत वाक्यांश "ठोस संज्ञाओं" पहले से ही पर्याप्त रूप से समूह की सामग्री का निर्धारण। इस अवधारणा को अलग अलग चीजें हैं और वास्तविकता की घटना कहा जाता है। उनके खास यह है कि श्रेणी विशिष्ट संज्ञा का शब्द पूरी तरह से किसी भी अंकों के साथ जोड़ा जाता है - एक सामूहिक दोनों मात्रात्मक और क्रमसूचक, और दो छोटे बच्चों, दूसरे बच्चे, दो छोटे बच्चों, दो पेंसिल - दूसरे पेंसिल।
दूसरी विशेषता - बनाने की क्षमता को आकार बहुवचनः मुन्ना - बच्चों पेंसिल - पेंसिल।
नाम जो कुछ अमूर्त अवधारणाओं, भी, रूस शब्दावली का एक ठोस परत है। ये शब्द - संज्ञाएं, नाम या कुछ अमूर्त अवधारणाओं, कार्रवाई या स्थिति को इंगित करता (एक संघर्ष, आनन्द), गुणवत्ता या विशेषताओं (नैतिकता, अच्छाई, पीला)।
या केवल एक ही (मौन, चमक, हँसी, बुराई), या केवल एक से अधिक (काम करने के दिन, छुट्टियों, चुनाव, गोधूलि) - विशिष्ट सार ही में से एक के रूप में उपयोग होने वाले नाम के विपरीत। इसके अलावा, वे के साथ संयुक्त नहीं किया जा सकता गणन संख्या। मत कहो, तीन चुप्पी, दो चमक। सार संज्ञाओं से कुछ क्रिया विशेषण का एक बहुत का उपयोग कर सकते हैं - थोड़ा कम - बहुत कुछ, "और बच्चों का एक बहुत खुशी लाया! ", "मुसीबत का एक बहुत लाएगा," "और कितना भाग्य था"!
हम औसत रूस की शब्दावली विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं, तो हम इसे में इस्तेमाल कुछ शब्दों की लोकप्रियता के बारे निष्कर्ष निकाल सकते हैं। अक्सर तो बात करने के लिए, हर रोज संज्ञाएं, इस्तेमाल किया। किसी भी व्यक्ति के एक भाषण में नाम के बर्तन (चम्मच, चाकू, कांटा, बर्तन, पैन, आदि), भोजन (रोटी, दूध, सॉसेज, पास्ता, आदि), शब्द रोजगार, परिवहन से संबंधित ध्वनि होगा, अध्ययन करता है।
निर्धारित करने के लिए कितनी बार भाषण में इस्तेमाल किया या उस नाम (अवधारणा का नाम), philologists-वैज्ञानिकों कस्टम शब्दकोशों पैदा करते हैं। उनमें से कुछ ही संज्ञाएं, ऐसे में संभव के अध्ययन के कुछ निष्कर्ष निकालना के आधार पर कर रहे हैं, इसलिए। इन शब्दकोशों आवृत्ति कहा जाता है।
साल, लोगों, समय, बात है, जीवन, दिन, हाथ, काम, शब्द, जगहः इन शब्दों को देखते हुए संज्ञाओं के हजारों की इन सूचियों में से एक में सबसे लगातार थे।
वैज्ञानिकों के देखने के लिए, यहां तक कि आदिम आदमी, हमारे आसपास की दुनिया को जानने प्रकृति और उसके घटना की खोज तो उनसे अपना नाम देने की दृष्टि से। समय के साथ इन नामों जनजातियों की भाषा में ठीक किया गया है, उसकी शब्दावली का निर्माण। इसी तरह, संज्ञाओं बच्चे के भाषण में दिखाई देते हैं। व्यावहारिक रूप से यह उनके लिए पहले बोले गए शब्दों हैः माँ, पिता, औरत, किटी, आदि प्राचीन लोगों की तरह बच्चे भी बेसब्री से चारों ओर और अधिक उन्नत अवधारणाओं को देख रही है और इस के नाम पर या उस वस्तु जानना चाहता है, और उसके बाद।
तो, समय के साथ, बच्चों में हो साहचर्य लिंक, उनकी शब्दावली नई संज्ञाओं के साथ समृद्ध है। उदाहरण के लिए, बच्चे को जानता है घास क्या है, और उसके बाद वह यह जानता है जब वह एक खास रंग नहीं है, विकसित करता है, और शब्द "हरे। " ईंट, पत्थर, लकड़ी - संज्ञा "दीवार" सामग्री पर निर्भर करता है "मांस" हो जाता है। और इन शब्दों को भी धीरे-धीरे बच्चे के शब्दकोश में शामिल किए गए हैं।
संज्ञा, एक वस्तु या घटना को संकेतित करते, यह व्यापक अर्थों में कहता है। इसलिए, यह वस्तुओं और बातें (डेस्क, नोटबुक, पाठ्यपुस्तक, अलमारी), माल (पेंट, आटा, क्षार), जीवित प्राणियों और जीव (मनुष्य, बिल्ली, स्टार्लिंग, बेसिलस), घटनाओं, घटना, तथ्यों (ओपेरा के नाम हो सकता है, तूफान, आनन्द), स्थान नाम, लोगों के नाम और उपनाम है, साथ ही गुणों, गुण, कार्यों, राज्यों (दया, बुद्धि, घूमना, उनींदापन)। सभी संज्ञाओं के उपयोग की इन हड़ताली उदाहरण।
उनकी मदद के साथ यह शहर की सड़कों नेविगेट करने के लिए, संकेत पढ़ने, क्योंकि संस्थाओं और संगठनों के नाम भाषण के इस हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं आसान है। इसी तरह, आसान कल्पना करना क्या एक किताब या लेख में चर्चा की जाएगी (, शीर्षक एक नियम के रूप में, वहाँ एक संज्ञा है)। यह एक सबसे पुराना, सबसे आम व्याकरण में सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख हिस्सा कहा जा सकता है, सबसे स्वतंत्र,।
यह एल धारणा से सहमत होना असंभव नहीं है, यह बुला रोटी भाषा, भाषण में एक संज्ञा की भूमिका को परिभाषित किया। कैसे महत्वपूर्ण भाषा के कामकाज में इस श्रेणी एक व्यक्ति के जीवन में इस उत्पाद को बहुत महत्वपूर्ण है, और।
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अनुपकुमारी ने सक्रोध कहा- "राजा साहब के कर्तव्य की विवेचना करना मेरी शक्ति से बाहर की बात है, और न मैं अपने को उसका अधिकारी ही समझती हूँ । व्यर्थ समय नष्ट करना ठीक नहीं।"
रानी श्यामकुवरि ने अपने मन का क्रोध दमन करते हुए कहा-ने "इतनी रुक्षता से कोई दुश्मन भी शायद ही पेश थावे, अगर कोई उसका घोर शत्रु उसके द्वार पर लाकर आँचल पसारकर सीख माँगे । खैर, अपने बच्चों के लिये सब कुछ बरदास्त करूँगी । हाँ, सुनिए, कमला और किशोरी, दोनो ही बहुत थर्के से विवाह करने योग्य हो गई हैं। अभी तक उनका विवाह नहीं हुआ । राजा साहब को अभी तक उनके योग्य वर ढूँढ़ने को समय नहीं मिला। उनका विवाह इस वर्ष होना जरूरी है। कृपा कर स्त्री होने के नाते तो जरूर ही उनके विवाह की शाज्ञा दें, और राजा साहब को भी कहसुनकर इसके लिये उद्यत करें । बस, यही मेरी प्रार्थना है। इसे स्वीकार करना या न करना आपके हाथ है ।"
अनूपकुमारी ने ज़ोर से हँसकर कहा- "मैं इसके लिये क्या कर से सकती हूँ । क्या राजा साहब को नहीं मालूम कि उन्हें अपनी लाड़ली लड़कियों की शादी करना है। मैं आज्ञा देनेवाली कौन हूँ, जो आप इस तरह व्यंग्य कहती हैं।"
रानी श्यामकुँवर अपने मन का क्रोध दमन न कर सकीं। उन्होंने सक्रोध कहा- "इतना अभिमान अच्छा नहीं । रावण का गर्व जब नहीं रहा, तब एक तुद्र नारी का कभी नहीं रह सकता । जो कुछ शान तक नहीं किया, वह अपने बच्चों के खातिर करना पड़ा । खैर, जाती हूँ । अगर राजा साहब अपनी लड़कियों का विवाह नहीं कर सकते, तो उनको ननिहालवाले करेंगे, और गवर्नमेंट करेगी। मैं अब तक अनूपगढ़ की लाज जाने से डरती थी, किंतु देखती
हूँ, खुलकर लड़ना पड़ेगा। मेरे बच्चे मुट्ठी बाँधकर इस दुनिया में आए हैं, जिन्हें अधिकार से वंचित करना तुम्हारी जैसी सड़कों पर फिरनेवाली वेश्याओं के हाथ में कदापि नहीं । यदि स्वत्व के लिये पति से भी युद्ध करना पड़े, तो करूंगी। मैं अब तक अपने ससुर के वंश की लाज मर्यादा से डरती थी, और सहज भाव से शांतिपूर्वक काम निकालना चाहती थी, किंतु देखती हूँ, इन तिलों में तेल नहीं। मैं जाती हूँ, और कहे जाती हूँ कि तुम......"
क्रोध का उफान दूध के उफान से भी अधिक तेज़ होता है । जिस वक्त दबा हुआ क्रोध प्रवाहित होने लगता है, वह रुकना नहीं जानता । रानी श्यामकुँवरि क्रोध से आगे न कह सकीं ।
अनुपकुमारी उनका भयंकर रूप देखकर कुछ स्तंभित हो गई । रानी श्यामकुँवार ने जाते हुए कहा - "सब कुछ खोकर भी मैंने धैर्य रक्खा था, परंतु इस दुनिया का क़ायदा है कि जितना दबो, उतना ही लोग दबाते हैं। अब देखूँगी, कितने दिन तुम और राजा साहब आनंद करते हो । पति के ऊपर वार करना स्त्री का धर्म नहीं, इससे चुप बैठी थी, और उस भावना में पड़कर अपने बच्चों का जीवन नष्ट कर डाला । मेरे बेटे को तो तूने न-मालूम क्या खिलाकर नष्ट कर डाला, अब मेरी लड़कियों का जीवन, उनकी इज्जतआबरू नष्ट करने के लिये श्रामादा है। जब तक मेरे शरीर में एक बूँद रक्त रहेगा, उसे बहाकर उनकी रचा करूंगी। मा के साए के नीचे से कोई आततायी उसके बच्चे को नष्ट नहीं कर सकता । जो तेरे मन में थावे, राजा साहब से कह देना, और यह भी जान लेना कि अब तुम्हारा कुचक्र अधिक नहीं चल सकता । तुम्हारे पाप का घड़ा भर गया है......'
कहते-कहते वह तेजी से कमरे के बाहर हो गई । अनुपकुमारी भय के साथ चुपचाप खड़ी रही ।
रानी श्यामकुँवरि के जाने के बाद उसे होश हुआ। वह दौड़कर उन्हें पकड़ने के लिये द्वार की ओर ऊपटी, परंतु रानी श्यामकु वरि उसके घर से बाहर निकल गई थीं। वह क्रोध से काँपती हुई अपने उसी कमरे में लौट आई।
कमरे में आते ही देखा, उनके प्यार की दासी कस्तूरी पान का डिब्बा लिये खड़ी है। उसे देखते ही उसका क्रोध अपना प्रतिशोध निकालने के लिये थाकुल हो उठा । उसने उसके हाथ से पान का डिब्बा छीन लिया और उसे मारना शुरू किया । असहाय दासी रोकर अपने उद्धार की प्रार्थना करने लगी। उसकी करुण पुकार अनुपकुमारी को और अधिक मारने के लिये उत्तेजित करने लगी । थोड़ी देर में घर-भर की दासियाँ उस कमरे में एकत्र हो गई, लेकिन किसी को साहस न हुआ कि अभागिनी कस्तूरी को बचावें ।
दूसरी दासियों को देखकर अनूपकुमारी ने सक्रोध चिल्लाकर कहा - "तुम लोग अब यहाँ आई हो । मेरे घर में वह टुकदही मेरा अपमान करके चली गई, और तुम लोगों में से किसी को साहस न हुआ कि उसकी अच्छी तरह मरम्मत करतीं। मेरा श्यपमान करने का मज़ा उसे मिल जाता । मैं आज ही तुम सबको । निकाल दूँगी । जानती हो, अनूपगढ़ की रानी मैं हूँ । वह तो मेरी टुकड़ हैल है।"
कस्तूरी ने चिल्लाकर कहा - "मेरा क्या क़ुसूर है, थाप ही ने तो पान लगाने के लिये कहा था, इसलिये पान लगाकर अब आई हूँ । मुझे क्या मालूम था कि वह हरामजादी आपकी बेइज़्ज़ती करने आई श्री ।"
अनूपकुमारी ने उसे मारते हुए कहा -- "सब तेरा क़सूर है । किसने उसे मेरे खास कमरे में बैठाने को कहा था । बता, तू उसे यहाँ क्यों लाई थी ?"
कस्तूरी ने हाथ जोड़ते हुए कहा - "यह गलती हुई, माक्र फीजिए, आपने तो उन्हें बैठाने के लिये कहा था, इसलिये यहाँ ले आई थी ।"
अनुपकुमारी ने उसे मारना बंद नहीं किया था। हालाँकि मारते-मारते उसके हाथ दुखने लगे थे, फिर भी वह मारती रही, जिससे उसका क्रोध उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता था। क्रोध उस अवस्था में अधिक उम्र हो जाता है, जब मनुष्य को कुछ कष्ट या पीड़ा होती है ।
अनुपकुमारी ने सक्रोध कहा- "हरामजादी, तू उसे रानी समझकर यहाँ लाई थी । तू यह अच्छी तरह जान ले कि अनूपगढ़ की रानी मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ । मेरा लड़का अनूपगढ़ का राजा होगा, मैं राजमाता होऊँगी। उसके भरोसे मत रहना । जमीन में गड़वाकर कुत्तों से खाल नुचवा लूँगी । बोल, तू उसे यहाँ लाई क्यों ? झाड़ गारकर दरवाज़े से बाहर क्यों नहीं कर दिया ?"
कस्तूरी रोती हुई उसके पैरों पर गिर पड़ी, औौर समा माँगने
लगी ।
अनूपकुमारी बिलकुल थक गई थी । वह हाँफती हुई सोफ़ा पर बैठ गई । उसकी आँखों से अंगारे थव भी निकल रहे थे, श्रोष्ठयुगल फड़क रहे थे, और उसके शरीर में इस समय वृद्धावस्था तथा विलासिता के सभी चिह्न प्रकट होने लगे थे। सामने दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर वह द्विगुणित क्रुद्ध हो गई। उसने सक्रोध पान का डिब्बा उठाकर उस मूक चुगुलखोर के मारा । दर्पण टूटकर, टुकड़े-टुकड़े होकर भूमि पर गिरकर अपनी इहलीला समाप्त करने लगा ।
उसने अपने पैर का स्लीपर निकालकर सिसकती हुई फस्तूरी पर फेककर मारते हुए कहा - "दूर हो सामने से हरामजादी ! चद्म
अभी मेरे महल से अपना मुद्द काला कर जा अपनी अम्मा के पास । अब मेरे यहाँ तेरा कुछ काम नहीं । जिसकी इतनी भावभगत की थी, उसी के पास जा ।"
कस्तूरी उठकर जान बचाने के लिये जी छोड़कर भागी । अनुपकुमारी गुस्से से ताव-पेच खाती रही । क्रोध उसकी विवेकशून्यता पर हँसने लगा ।
माधवी को होश आए शाज कई दिन हो चुके हैं, किंतु उसकी स्मरण शक्ति किसी तरह वापस न थ्राई । डॉक्टर हुसैनभाई ने बहुत यल किया, और फ़िजी के कई एक चतुर डॉक्टरों ने भी अरसक कोशिश की, किंतु सब निष्फल गया। पंडित मनमोहननाथ को फ़िज़ी पहुँचे हुए दस दिन हो चुके थे। वह दक्षिणी अमेरिका जाने के लिये व्यग्र हो रहे थे, और इधर माधवी की दशा में कोई अंतर पड़ता नहीं दिखाई देता था ।
राधा अपनी माता के पास चली गई थी, किंतु शीघ्र ही वापस झाने का वचन दे गई थी। पंडित मनमोहननाथ के प्रति उसकी भक्ति जाग्रत् हो गई थी, और वह ऐसे बड़े आदमी का सहारा छोड़ने के लिये तैयार न थी । उसे उस नीच व्यवसाय से घृणा हो गई थी । उसने जहाज डूबनेवाली रात को, जब कैप्टेन एडमंड हिक्स का प्राणांत हुआ था, यह प्रतिज्ञा की थी कि गुलामों के व्यापार में सहायता करना छोड़, मेहनत-मजदूरी कर अपना गुज़र करेगी । बाद में पंडित मनमोहननाथ के सत्संग से वह प्रतिज्ञा उत्तरोत्तर दृढ़ होती गई ।
माधवी के प्रति अमीलिया का स्नेह उत्तरोत्तर बढ़ता जाता था । उसकी असहाय दशा देखकर करुणा से उसका हृदय श्रोत-प्रोत हो जाता और उसने अपने को उसकी सेवा शुश्रूषा के लिये उत्सर्ग कर दिया। कैप्टेन अल्फ्रेड जैकन्स ने कोई थापत्ति नहीं की। उन्हें उसी में प्रसन्नता थी, जिसमें अमीलिया को आनंद मिले। उसकी कार्य-तत्परता देखकर पंडित मनमोहननाथ उसे पुत्री की भाँति
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है । यद्यपि सत्र आत्माओं का सध्यम परिमाण प्रदेश संख्या की दृष्टि से समान है; तथापि लम्बाई, चौड़ाई आदि सबकी एकसी नहीं है। इसलिए प्रश्न होता है कि जीवद्रव्य का आधारक्षेत्र कमसे कम और अधिक से अधिक कितना माना जाता है ? इस प्रश्न का उत्तर यहाँ यह दिया गया है कि एक जीव का आधारक्षेत्र लोकाकाश के असंख्यातवें भाग से लेकर सम्पूर्ण लोकाकाश तक हो सकता है । यद्यपि लोकाकाश असंख्यात प्रदेश परिमाण है, तथापि असंख्यात संख्या के भी असंख्यात प्रकार होने से लोकाकाश के ऐसे असंख्यात भागो की कल्पना की जा सकती है, जो अंगुलासंख्येय भाग परिमाण हों; इतना छोटा एक भाग भी असंख्यात प्रदेशात्मक ही होता है । उस एक भाग में कोई एक जीव रह सकता है, उतने उतने दो भाग में भी रह सकता है। इसी तरह एक एक भाग बढ़ते बढ़ते आखिरकार सर्व लोक में भी एक जीव रह सकता है अर्थात् जीवद्रव्य का छोटे से छोटा आधारक्षेत्र अंगुलासंख्येय भाग परिमाण का खंड होता है, जो समग्र लोकाकाश का एक असंख्यातवाँ हिस्सा होता है । उसी जीव का कालान्तर मे अथवा उसी समय जीवान्तर का कुछ बड़ा आधारक्षेत्र उक्त भाग से दुना भी पाया जाता है। इसी तरह उसी जीव का या जीवान्तर का आधारक्षेत्र उक्त भाग से तिगुना, चौगुना, पाँचगुना आदि क्रम से बढ़ते बढ़ते कभी असंख्यातगुण अर्थात् सर्व लोकाकाश में हो सकता है। एक जीव का आधारक्षेत्र सर्व लोकाकाश तभी हो सकता है, जब वह् जीव केवलिसमुद्धात की दशा में हो । जीव के परिमाण की न्यूनाधिकता के अनुसार उसके आधारक्षेत्र के परिमाण की जो न्यूनाधिकता ऊपर कही गई है, वह एक जीव की अपेक्षा से समझनी चाहिए ।" सर्व जीवराशि की अपेक्षा से तो जीवतत्त्व का आधारक्षेत्र सम्पूर्ण लोकाकाश ही है।
अब प्रश्न यह होता है कि एक जीवद्रव्य के परिमाण में जो कालभेद से न्यूनाधिकता पाई जाती है, या तुल्य प्रदेश वाले भिन्न-भिन्न जीवों के परिमाण में एक ही समय मे जो न्यूनाधिकता देखी जाती है, उसका कारण क्या है ? इसका उत्तर यहाँ यह दिया गया है कि कार्मण शरीर जो अनादि काल से जीव के साथ लगा हुआ है और जो अनन्तानन्त अणुप्रचय रूप होता है, उसके संबन्ध से एक ही जीव के परिमाण में या नाना जीवों के परिमाण में विविधता आती है। कार्मण शरीर सदा एक सा नहीं रहता । उसके संबन्ध से औदारिक आदि जो अन्य शरीर प्राप्त होते हैं, वे भी कार्मण के अनुसार छोटे बड़े होते हैं । जीवद्रव्य वस्तुतः है तो अमूर्त्त, पर वह शरीरसंबन्ध के कारण मूर्तवत् बन जाता है । इसलिए जब जब जितना जितना बड़ा शरीर उसे प्राप्त हो, तब तब उसका परिमाण उतना ही हो जाता है।
धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य की तरह जीवद्रव्य भी अमूर्त है, फिर एक का परिमाण नहीं घटता बढ़ता और दूसरे का क्यों घटता बढ़ता है ! इस प्रश्न का उत्तर स्वभाव भेद के सिवा और कुछ नहीं है ? जीवतत्व का स्वभाव ही ऐसा है कि वह निमित्त मिलने पर प्रदीप की तरह संकोच और विकास को प्राप्त करता है; जैसे खुले आकाश में रखे हुए प्रदीफ का प्रकाश अमुक परिमाण होता है, पर उसे जब एक कोठरी में रखा जाता है तब उसका प्रकाश कोटरी भर ही बन जाता है; फिर उसी को जब एक कुंडे के नीचे रखा जाता है तब वह कुंडे के नीचे के भाग को ही प्रकाशित करता है, लोटे के नीचे रखे जाने पर उसका प्रकाश उतना ही हो जाता है। इस प्रकार प्रदीप की तरह जीवद्रव्य भी संकोच-विकासशील है । " इसलिए वह जब जब जितने छोटे या बड़े शरीर को धारण करता है तब तब शरीर के परिमाणानुसार उसके परिमाण में संकोच-विकास होता है ।
यहाँ प्रश्न होता है कि यदि जीव संकोचस्वभाव के कारण छोटा होता है तब वह लोकाकाश के प्रदेश रूप असंख्यातवें भाग से छोटे भाग में अर्थात् आकाश के एक प्रदेश पर या दो, चार, पाँच आदि प्रदेश पर क्यों समा नहीं सकता ? इसी तरह यदि उसका स्वभाव विकसित होने का है, तो वह विकास के द्वारा सम्पूर्ण लोकाकाश की तरह अलोकाकाश को भी व्याप्त क्यों नहीं करता ? इसका उत्तर यह है कि संकोच की मर्यादा कार्मण शरीर पर निर्भर है; कार्मण शरीर तो कोई भी अंगुलासंख्यात भाग से छोटा हो ही नहीं सकता; इसलिए जीवका संकोच कार्य भी वहाँ तक ही परिमित रहता है, विकास की मर्यादा लोकाकाश तक ही मानी गई है । इसके दो कारण बतलाए जा सकते हैं, पहला तो यह कि जीव के प्रदेश उतने ही हैं जितने लोकाकाश के । अधिक से अधिक विकास दशा में जीव का एक प्रदेश आकाश के एक ही प्रदेश को व्याप्त कर सकता है, दो या अधिक को नहीं; इसलिए सर्वोत्कृष्ट विकास दशा में भी वह लेकाकाश के बाहरी भाग को व्याप्त नहीं कर सकता । दूसरा कारण यह है कि विकास गतिका कार्य है, और गति धर्मास्तिकाय के सिवा हो नहीं सकती; इस कारण लोकाकाश के बाहर जीव के फैलने का प्रसंग हो नहीं आता ।
प्र० - असंख्यात प्रदेश वाले लोकाकाश में शरीरधारी अनन्त जीव कैसे समा सकते हैं ?
-सूक्ष्मभाव में परिणत होने से निगोदशरीर से व्याम एक ही आकाश क्षेत्र में साधारणशरीरी अनन्त जीव एक साथ रहते हैं; और मनुष्य आदि के एक औदारिक शरीर के ऊपर तथा अन्दर अनेक संमूर्छिम जीवो की स्थिति देखी जाती है, इसलिए लेकाकास में अनन्तानन्त जीवों का समावेश विरुद्ध नहीं है ।
यद्यपि पुद्गल द्रव्य अनन्तानन्त और मूर्त हैं; तथापि लोकाकाश में उनके समा जाने का कारण यह है कि पुद्गलों में सूक्ष्मत्व रूप से परिणत होने की शक्ति है । जब ऐसा परिणमन होता है तब एक ही क्षेत्र में एक दूसरे को व्याघात पहुँचाए बिना अनन्तानन्त परमाणु और अनन्तानन्त स्कन्ध स्थान पा सकते है, जैसे एक ही स्थान में हजारों दीपकों का प्रकाश व्याघात के बिना ही समा जाता है । पुद्गलद्रव्य मूर्त होने पर भी व्याघातशील तभी होता है, जब स्थूल भाव में परिणत हो । सूक्ष्मत्वपरिणाम दशा में वह न किसी को व्याघात पहुँचाता है और न स्वयं ही किसी से व्याघात पाता है । १२-१६ ।
कार्य द्वारा धर्म, अधर्म और आकाश के लक्षणों का कथनगतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः । १७ ।
आकाशस्यावगाहः । १८ ।
गति और स्थिति में निमित्त बनना यह अनुक्रम से धर्म और अधर्म द्रव्यों का कार्य है ।
अवकाश में निमित्त होना आकाश का कार्य है ।
धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों अमूर्त होने से इन्द्रियगम्य नहीं हैं; इससे इनकी सिद्धि लौकिक प्रत्यक्ष के द्वारा नहीं हो सकती । यद्यपि आगम प्रमाण से इनका अस्तित्व माना जाता है, तथापि आगमपोपक ऐसी युक्ति भी है जो उक्त द्रव्यों के अस्तित्व को सिद्ध करती है । यह युक्ति यह है कि - जगत मे. गतिशील और गतिपूर्वक स्थितिशील
१. यद्यपि "गतिस्थित्युपग्रहो" ऐसा भी पाठ कहीं कही देखा जाता है; तथापि भाष्य को देखने से "गतिस्थित्युपग्रहो" यह पाठ अधिक संगत जान पड़ता है। दिगम्बर परम्परा में तो "गतिस्थित्युग्रह " ऐसा ही पाठ निर्विवाद सिद्ध है ।
कार्य द्वारा धर्मादि का लक्षण
पदार्थ जीव और पुद्गल दो हैं । यद्यपि गति और स्थिति दोनों ही उक्त दो द्रव्यों के परिणाम व कार्य होने से उन्हीं से पैदा होते हैं, अर्थात् गति और स्थिति का उपादान कारण जीव और पुद्गल ही हैं, तथापि निमित्त कारण जो कार्य की उत्पत्ति में अवश्य अपेक्षित है, वह उपादान कारण से भिन्न होना ही चाहिए । इसीलिए जीव-पुल की गति में निमित्त रूप से धर्मास्तिकाय की और स्थिति में निमित्त रूप से अधर्मास्तिकाय की सिद्धि हो जाती है। इसी अभिप्राय से शास्त्र में धर्मास्तिकाय का लक्षण ही 'गतिशील पदार्थों की गति में निमित्त होना' बतलाया है और अधर्मास्तिकाय का लक्षण ' स्थिति में निमित्त होना' बतलाया गया है ।
धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गल ये चारो द्रव्य कहीं न कहीं स्थित है, अर्थात् आद्येय बनना या अवकाश लाभ करना उनका कार्य है । . पर अपने से अवकाश -- स्थान देना यह आकाश का कार्य है । इसीसे अवगाइप्रदान को आकाश का लक्षण माना गया ।
साख्य, न्याय, वैशेषिक आदि दर्शनों में आकाशद्रव्य तो माना गया है; पर धर्म, अधर्म द्रव्यों को और किसी ने नहीं साना; फिर जैनदर्शन ही उन्हें स्वीकार क्यों करता है
- जड़ और चेतन द्रव्य जो दृश्यादृश्य विश्व के खास अंग हैं, उनकी गतिशीलता तो अनुभव सिद्ध है । अगर कोई नियामक तत्त्व न हो तो वे द्रव्य अपनी सहज गतिशीलता के कारण अनन्त आकाश कहीं भी चले जा सकते हैं । यदि वे सचमुच अनन्त आकाश में चले ही जायें तो इस दृश्यादृश्य विश्व का नियत संस्थान जो सदा सामान्य रूप से एकसा नजर आता है वह किसी भी तरह घट नहीं सकेगा; क्योंकि अनन्त पुद्गल और अनन्त जीव व्यक्तियाँ भी अनन्त परिमाण विस्तृत आकाश क्षेत्र मे मेरोकटोक संचार होने से ऐसे पृथक् हो जायँगी, जिनका पुनः
[५.१९-२९मिलना और नियतसृष्टि रूप से नजर आना असम्भव नहीं तो दुःसंभव अवश्य हो जायगा । यही कारण है कि गतिशील उक्त द्रव्यों की गतिमर्याद को नियन्त्रित करने वाले तत्व को जैन दर्शन स्वीकार करता है । यही तत्त्व धर्मास्तिकाय कहलाता है । गतिमर्यादा के नियामक रुप से उक तत्त्व को स्वीकार कर लेने पर तुल्य युक्ति से स्थितिमर्यादा के नियामक रु से अधर्मास्तिकाय तत्त्व को भी जैन दर्शन स्वीकार कर ही लेता है ।
पूर्व, पश्चिम आदि व्यवहार जो दिग्द्रव्य का कार्य माना जाता है. उसकी उपपत्ति आकाश के द्वारा हो सकने के कारण दिग्दव्य को आकाश से अलग मानने की जरूरत नहीं । पर धर्म, अधर्म द्रव्यों का कार्य आकाश से सिद्ध नहीं हो सकता; क्योकि आकाश को गति और स्थिति का नियामक मानने से वह अनन्त और अखंड होने के कारण जड़ तथा चेतन द्रव्यों को अपने मे सर्वत्र गति व स्थिति करने से रोक नहीं सकता और ऐसा होने से नियत दृश्यादृश्य विश्व के संस्थान की अनुपपनि बनी ही रहेगी। इसलिए धर्म, अधर्म द्रव्यों को आकाश से अलग स्वतन्त्र मानना न्यायप्राप्त है । जब जड़ और चेतन गतिशील हैं, तब मर्यादित आकाशक्षेत्र मे उनकी गति, नियामक के बिना ही अपने स्वभाव से नहीं मानी जा सकती; इसलिए धर्म, अधर्म द्रव्यों का अस्तित्व युक्तिसिद्ध है । १७, १८
कार्य द्वारा पुद्गल का लक्षणशरीरवाङ्मनःप्राणापानाः पुद्गलानाम् । १९ । सुखदुःखज्जीवितमरणोपग्रहाच । २० ।
शरीर, वाणी, मन, निःश्वास और उच्छ्वास ये पुद्गलों के उपकारकार्य हैं ।
कार्य द्वारा पुद्गल का लक्षण
तथा सुख, दुःख, जीवन और मरण ये भी पुद्गलों के उपकार हैं । अनेक पौगलिक कार्यों में से कुछ कार्य यहाँ बतलाए हैं, जो जीव पर अनुग्रह या निग्रह करते हैं । औदारिक आदि सत्र शरीर पौगलिक ही है अर्थात् पुद्गल से ही बने हैं । यद्यपि कार्मण शरीर अतीन्द्रिय है, तथापि वह दूसरे औदारिक आदि मूर्त द्रव्य के संबन्ध से सुखदुःखादि 'विपाक देता है; जैसे जलादि के संबन्ध से धान । इसलिए उसे भी पौगलिक ही समझना चाहिए ।
दो प्रकार की भाषा में से भावभाषा तो वीर्यान्तराय, मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण के अयोपशम से तथा अंगोपारा नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाली एक विशिष्ट शक्ति है; जो पुद्गल सापेक्ष होने से पौलिक है, और ऐसे शक्तिवाले आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर वचनरूप में परिणत होने वाली भाषावर्गणा के स्कन्ध ही द्रव्यभाषा है ।
लव्धि तथा उपयोग रूप भावमन पुद्गलावलंबी होने से मौलिक "है । ज्ञानावरण तथा वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से और अंगोपाग नामकर्म के उदय से मनोवर्गणा के जो स्कन्ध गुणदोषविवेचन, स्मरण आदि कार्यों में अभिमुख आत्मा के अनुग्राहक अर्थात् उसके सामर्थ्य के उत्तेजक होते हैं वे द्रव्यमन है। इसी प्रकार आत्मा के द्वारा उदर से बाहर निकाला जाने वाला निश्वासवायु - प्राण और उदर के भीतर पहुॅचाया जाने वाला उवासवायु - अपान ये दोनों पौगलिक हैं, और जीवनप्रद होने से आत्मा के अनुग्रहकारी हैं ।
भाषा, मन, प्राण और अपान इन सबका व्याघात और अभिभक 'देखा जाता है। इसलिए वे शरीर की तरह पौगलिक ही हैं ।
जीव का प्रीतिरूप परिणाम मुख है, जो सातावेदनीय कर्म रूप अन्तरंग कारण और द्रव्य, क्षेत्र आदि बाह्य कारण से उत्पन्न होता है ।
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प्रिलिम्स के लियेः
मेन्स के लियेः
चर्चा में क्यों?
इस एंथ्रोपोसीन युग में मानव हस्तक्षेप को पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के हर घटक में देखा जा सकता है। इस तरह के मानव की वजह से होने वाले परिवर्तनों के कारण झीलों, तालाबों जैसे उथले आर्द्रभूमि का नुकसान प्रमुख चिंता का विषय बन रहा है।
- एंथ्रोपोसीन युग भूगर्भिक समय की एक अनौपचारिक इकाई है, जिसका उपयोग पृथ्वी के इतिहास में सबसे हालिया अवधि का वर्णन करने के लिये किया जाता है जब मानव गतिविधियों का ग्रह की जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने लगा था।
उथले पानी की आर्द्रभूमिः
- परिचयः
- ये कम प्रवाह के साथ स्थायी या अर्द्ध-स्थायी जल क्षेत्र की आर्द्रभूमियाँ हैं। इनमें वर्नल पोंड (तालाब) व स्प्रिंग पूल, नमक झीलें और ज्वालामुखीय गड्ढा युक्त झीलें शामिल हैं।
- ये पारिस्थितिक महत्त्व और मानव आवश्यकता के रूप में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं (जैसे कि पीने का पानी और अंतर्देशीय मत्स्य पालन)।
- उथली प्रकृति होने के कारण सूरज की किरणें जल निकाय के तल में प्रवेश करती हैं।
- तापमान (नियमित रूप से ऊपर-से-नीचे की ओर परिसंचरण तथा) निरंतर मिश्रण के साथ होने वाला एक समतापी प्रक्रम है, जो विशेष रूप से भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में होता है।
- चिंताएँः
- समय के साथ ये जल निकाय, पानी के साथ आने वाले तलछट से भर जाते हैं।
- इसलिये पानी की गहराई धीरे-धीरे कम हो जाती है। यह काफी स्पष्ट है कि तापमान और वर्षा प्रतिरूप में छोटे से बदलाव ने इस प्रकार के जल निकाय पर व्यापक प्रभाव डालते है।
- वर्ष 1901-2018 तक भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीनहाउस गैस को ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ भूमि-उपयोग और भूमि-क्षेत्र परिवर्तन के लिये प्रेरित कारकों के रूप में भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
- तापमान और गर्मी वितरण में इस तरह के क्षेत्रीय पैमाने पर बदलाव का असर वर्षा पैटर्न पर भी पड़ेगा। इसलिये भारत के प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों, मीठे पानी के संसाधनों और कृषि के लिये खतरा बढ़ रहा है, जो अंततः जैवविविधता, खाद्य, जल सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा समग्र रूप से समाज को प्रभावित करते हैं।
- सूरजपुर पक्षी अभयारण्य (यमुना नदी बेसिन में शहरी आर्द्रभूमि) का एक उदाहरण जिसमें अक्तूबर 2019 में सूरजपुर आर्द्रभूमि में जल स्तर , उच्च शैवाल उत्पादन के साथ-साथ दुर्गंध संबंधी मुद्दों को कम किया।
- परिचयः
- आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जल पर्यावरण और संबंधित वनस्पति एवं जंतु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक उपस्थित होता है। वे वहाँ उपस्थित होते हैं जहाँ जल स्तर भूमि की सतह पर या उसके निकट होता है अथवा जहाँ भूमि जल से आप्लावित होती है।
- वे स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच की संक्रमणकालीन भूमि हैं जहाँ जल स्तर आमतौर पर भूमि सतह पर या उसके निकट होती है अथवा भूमि उथले जल से ढकी होती है।
- इन्हें प्रायः "प्रकृति का गुर्दा" और "प्रकृति का सुपरमार्केट" कहा जाता है, ये भोजन और पानी प्रदान करके लाखों लोगों की सहायता करने के साथ ही बाढ़ व तूफान की लहरों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- तटीय आर्द्रभूमिः
- तटीय आर्द्रभूमिः यह भूमि और खुले समुद्र के बीच के क्षेत्रों में पाई जाती है जो तटरेखा, समुद्र तट, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों की तरह नदियों से प्रभावित नहीं होते हैं।
- उष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले मैंग्रोव दलदल इसका एक अच्छा उदाहरण है।
- दलदलः
- ये जल से संतृप्त क्षेत्र या पानी से भरे क्षेत्र होते हैं और गीली मिट्टी की स्थिति के अनुकूल जड़ी-बूटियों वाली वनस्पतियाँ इनकी विशेषता होती है। दलदल को आगे ज्वारीय दलदल और गैर-ज्वारीय दलदल के रूप में जाना जाता है।
- स्वैंप्सः
- ये मुख्य रूप से सतही जल द्वारा पोषित होते हैं तथा यहाँ पेड़ व झाड़ियाँ पाई जाती हैं। ये मीठे पानी या खारे पानी के बाढ़ के मैदानों में पाए जाते हैं।
- बॉग्सः
- बॉग्स दलदल पुराने झील घाटियाँ अथवा भूमि में जलभराव वाले गड्ढे हैं। इनमें लगभग सारा पानी वर्षा के दौरान जमा होता है।
- मुहानाः
- जहाँ नदियाँ समुद्र में मिलती हैं वहाँ जैवविविधता का एक अत्यंत समृद्ध मिश्रण देखने को मिलता है। इन आर्द्रभूमियों में डेल्टा, ज्वारीय मडफ्लैट्स और नमक के दलदल शामिल हैं।
- तटीय आर्द्रभूमिः यह भूमि और खुले समुद्र के बीच के क्षेत्रों में पाई जाती है जो तटरेखा, समुद्र तट, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों की तरह नदियों से प्रभावित नहीं होते हैं।
आर्द्रभूमियों का महत्त्वः
- अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्रः आर्द्रभूमि अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जो वैश्विक रूप से लगभग दो-तिहाई मछली प्रदान करते हैं।
- वाटरशेड की पारिस्थितिकी में अभिन्न भूमिकाः उथले पानी और उच्च स्तर के पोषक तत्त्वों का संयोजन जीवों के विकास के लिये आदर्श परिस्थिति होते हैं जो खाद्य जाल का आधार हैं, ये मछली, उभयचर, शंख और कीड़ों की कई प्रजातियों के भोजन प्रबंधन में सहायक होते हैं।
- कार्बन प्रच्छादनः आर्द्रभूमि के सूक्ष्मजीव, पादप एवं वन्यजीव जल, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का अंग हैं। आर्द्रभूमि कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय अपने पादप समुदायों एवं मृदा के भीतर संग्रहीत करती है।
- बाढ़ की गति और मिट्टी के कटाव को कम करनाः आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक अवरोधकों के रूप में कार्य करती हैं जो सतही जल, वर्षा, भूजल तथा बाढ़ के पानी को अवशोषित करती हैं एवं धीरे-धीरे इसे फिर से पारिस्थितिकी तंत्र में छोड़ती है। आर्द्रभूमि वनस्पति बाढ़ के पानी की गति को भी धीमा कर देती है जिससे मिट्टी के कटाव कमी आती हैं।
- मानव और ग्रह जीवन के लिये महत्त्वपूर्णः आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी पर जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण है। एक अरब से अधिक लोग जीवन यापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं एवं प्रजनन करती हैं।
आर्द्रभूमि को खतराः
- शहरीकरणः शहरी केंद्रों के पास आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास के कारण आर्द्रभूमि पर दबाव बढ़ रहा है। सार्वजनिक जल आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक हैं।
- दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी के अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में 1,000 से अधिक झीलें, आर्द्रभूमि और तालाब हैं।
- लेकिन इनमें से अधिकांश को बड़े पैमाने पर अतिक्रमण (नियोजित और अनियोजित दोनों), ठोस अपशिष्ट एवं निर्माण के मलबे के डंपिंग के माध्यम से होने वाले प्रदूषण का खतरा है।
- दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी के अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में 1,000 से अधिक झीलें, आर्द्रभूमि और तालाब हैं।
- कृषिः आर्द्रभूमि के विशाल हिस्सों को धान के खेतों में बदल दिया गया है। सिंचाई के लिये बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांँधों के निर्माण ने संबंधित आर्द्रभूमि के जल स्वरूप को बदल दिया है।
- प्रदूषणः आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती है। हालांँकि वे केवल कृषि अपवाह से उर्वरकों और कीटनाशकों को साफ कर सकते हैं लेकिन औद्योगिक स्रोतों से निकले पारा एवं अन्य प्रकार के प्रदूषण को नहीं।
- पेयजल आपूर्ति और आर्द्रभूमि की जैवविविधता पर औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव को लेकर चिंता बढ़ रही है।
- जलवायु परिवर्तनः वायु के तापमान में वृद्धि, वर्षा में बदलाव, तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड संचयन में वृद्धि तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है।
- तलकर्षणः आर्द्रभूमि या नदी तल से सामग्री को हटाना। जलधाराओं का तलकर्षण आसपास के जल स्तर को कम करता है तथा निकटवर्ती आर्द्रभूमियों को सुखा देता है।
- ड्रेनिंगः धरती पर गड्ढों को खोदकर, जो पानी इकट्ठा करके आर्द्रभूमि से पानी निकाला जाता है इससे आर्द्रभूमि संकुचित हो जाती है और परिणामस्वरूप जल स्तर गिर जाता है।
आर्द्रभूमि संरक्षण की दिशा में किये गए प्रयासः
- वैश्विक स्तर पर पहलः
- संयुक्त राष्ट्र ने स्थलीय, जलीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण एवं पुनर्स्थापना के उद्देश्य से 2021-2030 को पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर दशक घोषित किया।
- रामसर कन्वेंशनः
- मोंट्रेक्स रिकॉर्डः
- राष्ट्रीय स्तर पर पहलः
- अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी का मुकाबला करने के लिये आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना, निष्पादन एवं निगरानी के संदर्भ में एक एकीकृत दृष्टिकोण होना चाहिये।
- आर्द्रभूमि के समग्र प्रबंधन के लिये पारिस्थितिकीविदों, वाटरशेड प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं सहित शिक्षाविदों एवं पेशेवरों के बीच प्रभावी सहयोग।
- वेटलैंड्स के महत्त्व के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर उनके जल की गुणवत्ता के लिये वेटलैंड्स की निरंतर निगरानी करके वेटलैंड्स को होने वाली क्षति बचाने के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।
प्रश्नः "यदि वर्षावन और उष्णकटिबंधीय वन पृथ्वी के फेफड़े हैं, तो निश्चित ही आर्द्रभूमियाँ इसके गुर्दों की तरह काम करती हैं।" निम्नलिखित में से आर्द्रभूमियों का कौन-सा एक कार्य उपर्युक्त कथन को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022)
(a) आर्द्रभूमियों के जल चक्र में सतही अपवाह, अवमृदा अंतःस्रवण और वाष्पन शामिल होते हैं।
उत्तरः (c)
अतः विकल्प (c) सही है।
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (c)
प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर अवधारणा की व्याख्या कीजिये। भारत के रामसर स्थलों के दो उदाहरण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)
प्रिलिम्स के लियेः
मेन्स के लियेः
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने बंगाल की खाड़ी बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग उपक्रम (बिम्सटेक) की दूसरी कृषि मंत्री-स्तरीय बैठक की मेज़बानी की।
बैठक की मुख्य विशेषताएँः
- भारत ने सदस्य देशों से कृषि क्षेत्र में परिवर्तन के लिये आपसी सहयोग को मज़बूत करने के लिये एक व्यापक क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने में सहयोग करने का आग्रह किया।
- इसने सदस्य देशों से एक पोषक भोजन के रूप में बाजरा के महत्त्व और उसके उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास-अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष - 2023 के दौरान सभी के लिये एक अनुकूल कृषि खाद्य प्रणाली और एक स्वस्थ आहार अपनाने का भी आग्रह किया।
- कृषीय जैवविविधता के संरक्षण एवं रसायनों के उपयोग को कम करने के लिये प्राकृतिक और पारिस्थितिक कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- डिजिटल खेती और सटीक खेती के साथ-साथ भारत में 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के तहत कई पहलें भी साकार होने की दिशा में हैं ।
- क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिये बिम्सटेक देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर मार्च 2022 में कोलंबो में आयोजित 5वें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत के वक्तव्य पर प्रकाश डाला गया।
- बिम्सटेक कृषि सहयोग (2023-2027) को मज़बूत करने के लिये कार्य योजना को अपनाया गया।
- बिम्सटेक सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं और कृषि कार्य समूह के तहत मत्स्य पालन एवं पशुधन उप-क्षेत्रों को लाने की मंज़ूरी दी गई है।
बिम्सटेक (BIMSTEC):
- परिचयः
- बिम्सटेक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें सात सदस्य देश शामिल हैंः पाँच दक्षिण एशिया से हैं, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से म्याँमार एवं थाईलैंड दो देश शामिल हैं।
- यह उप-क्षेत्रीय संगठन 6 जून, 1997 को बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
- बिम्सटेक क्षेत्र में लगभग 1.5 बिलियन लोग शामिल है, जो 2.7 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ वैश्विक आबादी का लगभग 22% है।
- बिम्सटेक सचिवालय ढाका में है।
- संस्थागत तंत्रः
- महत्त्वः
- तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में विकास सहयोग के लिये एक प्राकृतिक मंच के रूप में बिम्सटेक के पास विशाल क्षमता है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक धुरी के रूप में अपनी अनूठी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
- बिम्सटेक के बढ़ते मूल्यों को इसकी भौगोलिक निकटता, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक और मानव संसाधनों तथा समृद्ध ऐतिहासिक संबंधों एवं क्षेत्र में गहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक विरासत को महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
- बंगाल की खाड़ी में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण केंद्र बनने की क्षमता है, यह ऐसा स्थान है जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित टकराते हैं।
- यह एशिया के दो प्रमुख उच्च विकास केंद्रों- दक्षिण और दक्षिण- पूर्व एशिया के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है।
बिम्सटेक की चुनौतियाँः
- बैठकों में विसंगतिः बिम्सटेक ने हर साल मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित करने और हर दो साल में शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन 20 वर्षों में केवल पाँच शिखर सम्मेलन हुए हैं।
- सदस्य देशों द्वारा उपेक्षितः ऐसा लगता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग केवल तभी किया है जब वह क्षेत्रीय विन्यास में SAARC के माध्यम से काम करने में विफल रहा और अन्य प्रमुख सदस्य देश जैसे कि थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक के बज़ाय ASEAN की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- व्यापक फोकस क्षेत्रः बिम्सटेक का फोकस बहुत व्यापक है, जिसमें कनेक्टिविटी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे सहयोग के 14 क्षेत्र शामिल हैं। यह सुझाव दिया जाता है कि बिम्सटेक को छोटे फोकस क्षेत्रों के लिये प्रतिबद्ध रहना चाहिये और उनमें कुशलतापूर्वक सहयोग करना चाहिये।
- सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्देः बांग्लादेश म्याँमार के रोहिंग्याओं के सबसे खराब शरणार्थी संकटों में से एक का सामना कर रहा है जो म्याँमार के रखाइन राज्य में क़ानूनी कार्यवाही करने से बच रहे हैं। म्याँमार और थाईलैंड के बीच सीमा पर संघर्ष चल रहा है।
- BCIM: चीन की सक्रिय सदस्यता के साथ एक और उप-क्षेत्रीय पहल, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (BCIM) फोरम के गठन ने बिम्सटेक की अनन्य क्षमता के बारे में अधिक संदेह पैदा किया है।
- आर्थिक सहयोग पर अपर्याप्त फोकसः अधूरे कार्यों और नई चुनौतियों पर ध्यानाकर्षण होने पर ज़िम्मेदारियों के बोझ बढ़ता है।
- वर्ष 2004 में एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हेतु रूपरेखा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावज़ूद बिम्सटेक इस लक्ष्य से बहुत दूर है।
- सदस्य देशों के बीच बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की आवश्यकता है।
- चूँकि यह क्षेत्र स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है और एकजुटता तथा सहयोग की आवश्यकता पर बल दे रहा है जिससे एफटीए बंगाल की खाड़ी को संपर्क, समृद्धि एवं सुरक्षा का पुल बना देगा।
- भारत को इस धारणा का मुकाबला करना होगा कि बिम्सटेक एक भारत-प्रभुत्व वाला ब्लॉक है, इस संदर्भ में भारत गुजराल सिद्धांत का पालन कर सकता है जो द्विपक्षीय संबंधों में लेन-देन के प्रभाव को सशक्त करने का इरादा रखता है।
- बिम्सटेक को भविष्य में नीली अर्थव्यवस्था, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्ट-अप तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के बीच आदान-प्रदान तथा लिंक को बढ़ावा देने जैसे नए क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)
प्रश्न. आपके विचार में क्या बिमस्टेक, सार्क (SAARC) की तरह एक समानांतर संगठन है? इन दोनों के बीच क्या समानताएँ और असमानताएँ हैं? इस नए संगठन के बनाए जाने से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य कैसे प्राप्त हुए हैं? (मेन्स-2022)
स्रोतः पी.आई.बी.
प्रिलिम्स के लियेः
स्थानीय शासन, RBI, नगर निगम, GDP, GST।
मेन्स के लियेः
नगर निगम वित्त रिपोर्ट, RBI।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सभी राज्यों में 201 नगर निगमों (MCs) के लिये बजटीय आँकड़ों का संकलन और विश्लेषण करते हुए नगर निकाय निगम वित्त रिपोर्ट जारी की है।
- RBI की रिपोर्ट 'नगर निगमों के लिये वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों' को अपने विषय के रूप में तलाशती है।
नगर निगमः
- परिचयः
- भारत में नगर निगम दस लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले किसी भी महानगर/शहर के विकास के लिये ज़िम्मेदार एक शहरी स्थानीय निकाय है।
- महानगर पालिका, नगर पालिका, नगर निगम, सिटी कारपोरेशन आदि इसके कुछ अन्य नाम हैं।
- राज्यों में नगर निगमों की स्थापना राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों द्वारा तथा केंद्रशासित प्रदेशों में संसद के अधिनियमों के माध्यम से की जाती है।
- नगरपालिका अपने कार्यों के संचालन के लिये संपत्ति कर राजस्व पर अधिक निर्भर रहती है।
- भारत में पहला नगर निगम वर्ष 1688 में मद्रास में स्थापित किया गया तथा उसके बाद वर्ष 1726 में बॉम्बे और कलकत्ता में नगर निगम स्थापित किये गए।
- भारत में नगर निगम दस लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले किसी भी महानगर/शहर के विकास के लिये ज़िम्मेदार एक शहरी स्थानीय निकाय है।
- संवैधानिक प्रावधानः
- भारत के संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद-40 को शामिल करने के अलावा स्थानीय स्वशासन की स्थापना के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किया गया था।
- 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में एक नया भाग IX-A सम्मिलित किया है, जो नगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के प्रशासन से संबंधित है।
- इसमें अनुच्छेद 243P से 243ZG शामिल हैं। इसने संविधान में एक नई बारहवीं अनुसूची भी जोड़ी। 12वीं अनुसूची में 18 मद शामिल हैं।
- नगर निगमों (MCs) का खराब कामकाजः
- भारत में स्थानीय शासन की संरचना के संस्थागतकरण के बावज़ूद नगरपालिका के कामकाज़ में कई खामियाँ हैं और उनके कामकाज़ में कोई सराहनीय सुधार नहीं हुआ है।
- परिणामस्वरूप भारत में शहरी आबादी के लिये आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता खराब बनी हुई है।
- वित्तीय स्वायत्तता की कमीः
- अधिकांश नगरपालिकाएँ केवल बजट तैयार करती हैं और बजट योजनाओं के खिलाफ वास्तविक समीक्षा करती हैं, लेकिन बैलेंस शीट और नकदी प्रवाह प्रबंधन के लिये अपने लेखा परीक्षण वित्तीय विवरणों का उपयोग नहीं करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण अक्षमताएँ देखी जाती हैं।
- जबकि भारत में नगरपालिका बजट का आकार अन्य देशों के समकक्षों की तुलना में बहुत छोटा है, राजस्व में संपत्ति कर संग्रह और सरकार के ऊपरी स्तरों से करों एवं अनुदानों का अंतरण होता है, जिसके बावज़ूद वित्तीय स्वायत्तता की कमी बनी रहती है।
- न्यूनतम पूंजीगत व्ययः
- स्थापना व्यय, प्रशासनिक लागत और ब्याज तथा वित्त शुल्क के रूप में नगरपालिका का प्रतिबद्ध व्यय बढ़ रहा है, लेकिन पूंजीगत व्यय न्यूनतम है।
- नगरपालिका बॉण्ड के लिये एक सुविकसित बाज़ार के अभाव में नगरपालिकाएँ ज़्यादातर बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधार व केंद्र / राज्य सरकारों से ऋण पर अपने संसाधन अंतराल को पूरा करने के लिये भरोसा करती हैं।
- स्थिर राजस्व/व्ययः
- भारत में नगरपालिका राजस्व/व्यय एक दशक से अधिक समय से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 1% पर स्थिर है।
- इसके विपरीत ब्राज़ील में सकल घरेलू उत्पाद का4% और दक्षिण अफ्रीका में सकल घरेलू उत्पाद का 6% नगरपालिका राजस्व / व्यय है।
- अप्रभावी राज्य वित्त आयोगः
- सरकारों ने नियमित और समयबद्ध तरीके से राज्य वित्त आयोगों (एसएफसी) का गठन नहीं किया है, जबकि उन्हें प्रत्येक पाँच वर्ष में स्थापित किया जाना अपेक्षित है। तदनुसार, अधिकांश राज्यों में, एसएफसी स्थानीय सरकारों को निधियों का नियम-आधारित अंतरण सुनिश्चित करने में प्रभावी नहीं रहे हैं।
- नगरपालिका को विभिन्न प्राप्ति और व्यय मदों की उचित निगरानी एवं प्रलेखन के साथ ठोस तथा पारदर्शी लेखांकन प्रथाओं को अपनाने व अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिये विभिन्न प्रगतिशील बॉण्ड, भूमि-आधारित वित्तपोषण तंत्र का पता लगाने की आवश्यकता है।
- शहरी जनसंख्या घनत्व में तेज़ी से वृद्धि, हालांकि बेहतर शहरी बुनियादी ढाँचे की मांग करती है, इसलिये स्थानीय सरकारों को वित्तीय संसाधनों के अधिक प्रवाह की आवश्यकता होती है।
- समय के साथ नगर निगमों की राजस्व सृजन क्षमता में गिरावट के साथ ऊपरी स्तरों से करों और अनुदानों के हस्तांतरण पर निर्भरता बढ़ी है। इसके लिये नवोन्मेषी वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है।
- भारत में नगर पालिकाओं को कानून द्वारा अपने बजट को संतुलित करने की आवश्यकता है, और किसी भी नगरपालिका उधार को राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता है।
- नगर निगम राजस्व उछाल में सुधार लाने के लिये, केंद्र तथा राज्य अपने GST (वस्तु और सेवा कर) का छठवाँ हिस्सा साझा कर सकते हैं।
प्रश्न. भारत में पहला नगर निगम निम्नलिखित में से कहाँ स्थापित किया गया था? (2009)
उत्तरः (B)
प्रिलिम्स के लियेः
आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, धारा सरसों हाइब्रिड (DMH -11)।
मेन्स के लियेः
GM फसलें और उनका महत्त्व, भारत का खाद्य तेल क्षेत्र और इसका महत्त्व।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र ने GM सरसों की पर्यावरणीय मंज़ूरी को चुनौती देने वाली याचिका में कहा कि भारत पहले से ही आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग कर रहा है।
- इसके अलावा लगभग 9.5 मिलियन टन (MT) GM कपास बीज का वार्षिक उत्पादन होता है और 1.2 मिलियन टन GM कपास के तेल का उपभोग मनुष्यों द्वारा किया जाता है तथा लगभग 6.5 मिलियन टन कपास के बीज का उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है।
भारत में खाद्य तेल क्षेत्र की स्थितिः
- देश की अर्थव्यवस्था में स्थानः
- भारत दुनिया में तिलहन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
- कृषि अर्थव्यवस्था में तेल क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
- कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आँंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 के दौरान नौ कृषित तिलहनों से 36.56 मिलियन टन अनुमानित उत्पादन हुआ है।
- भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और वनस्पति तेल का नंबर एक आयातक है।
- भारत में खाद्य तेल की खपत की वर्तमान दर घरेलू उत्पादन दर से अधिक है। इसलिये देश को मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
- वर्तमान में भारत अपनी खाद्य तेल की मांग का लगभग 55% से 60% आयात के माध्यम से पूरा करता है। इसलिये घरेलू खपत की मांग को पूरा करने के लिये भारत को तेल उत्पादन में स्वतंत्र होने की ज़रूरत है।
- पाम तेल (कच्चा + परिष्कृत) आयातित कुल खाद्य तेलों का लगभग 62% है और मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किया जाता है, जबकि सोयाबीन तेल (22%) अर्जेंटीना और ब्राज़ील से आयात किया जाता है तथा सूरजमुखी तेल (15%) मुख्य रूप से यूक्रेन व रूस से आयात किया जाता है।
- भारत में आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले तेलों के प्रकारः
- भारत में मूँगफली, सरसों, कैनोला/रेपसीड, तिल, कुसुम, अलसी, रामतिल/नाइज़र सीड और अरंडी पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली सबसे अच्छी तिलहन फसलें हैं।
- सोयाबीन और सूरजमुखी का भी हाल के वर्षों में महत्त्व बढ़ गया है।
- बगानी फसलों में नारियल सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- गैर-पारंपरिक तेलों में चावल की भूसी का तेल और बिनौला तेल सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।
- खाद्य तेलों पर निर्यात-आयात नीतिः
- खाद्य तेलों का आयात ओपन जनरल लाइसेंस (OGL) के तहत आता है।
- किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ताओं और उपभोक्ताओं के हितों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये सरकार समय-समय पर खाद्य तेलों के शुल्क ढाँचे की समीक्षा करती है।
संबंधित सरकारी पहलः
- भारत सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- पाम ऑयल शुरू किया, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विशेष ध्यान देने के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है।
- वर्ष 2025-26 तक पाम तेल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का प्रस्ताव है।
- वनस्पति तेल क्षेत्र में डेटा प्रबंधन प्रणाली में सुधार और इसे व्यवस्थित करने के लिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत चीनी तथा वनस्पति तेल निदेशालय ने मासिक आधार पर वनस्पति तेल उत्पादकों द्वारा इनपुट ऑनलाइन जमा करने के लिये एक वेब-आधारित मंच (evegoils.nic.in) विकसित किया है।
- पोर्टल ऑनलाइन पंजीकरण और मासिक उत्पादन रिटर्न जमा करने के लिये विंडो भी प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नः
प्रश्नः निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2018)
आयातित खाद्य तेलों की मात्रा पिछले पाँच वर्षों में खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन से अधिक है।
सरकार विशेष मामले के रूप में सभी आयातित खाद्य तेलों पर कोई सीमा शुल्क नहीं लगाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (a)
प्रश्न. पीड़को के प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ है जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपो का निर्माण किया गया है?(2012)
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (GM फसलें या बायोटेक फसलें) कृषि में उपयोग किये जाने वाले पौधे हैं, जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके संशोधित किया गया है। अधिकतर मामलों में इसका उद्देश्य पौधे में एक नया लक्षण पैदा करना है जो प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होता है। खाद्य फसलों में लक्षणों के उदाहरणों में कुछ कीटों, रोगों, पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब होने में कमी, रासायनिक उपचारों के प्रतिरोध (जैसे- जड़ी-बूटियों के प्रतिरोध) या फसल के पोषक तत्त्व प्रोफाइल में सुधार शामिल हैं।
GM फसल प्रौद्योगिकी के कुछ संभावित अनुप्रयोग हैंः
पोषण वृद्धि - उच्च विटामिन सामग्री; अधिक स्वस्थ फैटी एसिड प्रोफाइल; अतः 2 सही है।
तनाव सहनशीलता - उच्च और निम्न तापमान, लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता; अतः 1 सही है।
ऐसी कोई संभावना नहीं है जो GM फसलों को अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशनों में बढ़ने तथा प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम बनाती हो। अतः 3 सही नहीं है।
वैज्ञानिक कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें तैयार करने में सक्षम हैं जो सामान्य रूप से एक महीने तक ताज़ा रहती हैं। अतः 4 सही है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।
प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?
बोल्गार्ड I बीटी कपास (एकल-जीन प्रौद्योगिकी) 2002 में भारत में व्यावसायीकरण के लिये अनुमोदित पहली बायोटेक फसल प्रौद्योगिकी है, इसके बाद वर्ष 2006 के मध्य में बोल्गार्ड II- डबल-जीन प्रौद्योगिकी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति, बायोटेक के लिये भारतीय नियामक निकाय द्वारा अनुमोदित फसलें ।
बोल्गार्ड I कपास एक कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक फसल है जिसे बाॅलवर्म से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह जीवाणु बैसिलस थुरिंगिनेसिस से एक माइक्रोबियल प्रोटीन को व्यक्त करने के लिये कपास जीनोम को आनुवंशिक रूप से बदलकर बनाया गया था।
बोल्गार्ड II तकनीक में एक बेहतर डबल-जीन तकनीक शामिल है - cry1ac और cry2ab, जो बाॅलवर्म तथा स्पोडोप्टेरा कैटरपिलर से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे बेहतर बाॅलवर्म प्रतिधारण, अधिकतम उपज, कम कीटनाशकों की लागत एवं कीट प्रतिरोध के खिलाफ सुरक्षा मिलती है।
बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II दोनों कीट-संरक्षित कपास दुनिया भर में व्यापक रूप से बाॅलवर्म को नियंत्रित करने के पर्यावरण के अनुकूल तरीके के रूप में अपनाए जाते हैं। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।
मुख्य परीक्षाः
प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने मं जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (2019)
प्रिलिम्स के लियेः
मेन्स के लियेः
चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-बेलारूस अंतर-सरकारी आयोग का 11वाँ सत्र आयोजित किया गया।
- अंतर-सरकारी आयोग ने वर्ष 2020 में आयोग के दसवें सत्र के बाद हुए द्विपक्षीय सहयोग के परिणामों की समीक्षा की।
- कुछ परियोजनाओं के संबंध में हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए, आयोग ने संबंधित मंत्रालयों और विभागों को ठोस परिणामों को अंतिम रूप देने के लिये व्यापार एवं निवेश क्षेत्रों में प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का भी निर्देश दिया।
- भारत और बेलारूस ने फार्मास्यूटिकल्स, वित्तीय सेवाओं, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, भारी उद्योग, संस्कृति, पर्यटन तथा शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ज़ोर देते हुए अपने सहयोग को व्यापक बनाने की अपनी प्रबल इच्छा दोहराई।
- दोनों मंत्रियों ने अपने-अपने व्यापारिक समुदायों को पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये इन क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ जुड़ने का निर्देश दिया।
- दोनों पक्ष प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।
भारत-बेलारूस संबंधः
- राजनयिक संबंधः
- बेलारूस के साथ भारत के संबंध परंपरागत रूप से मधुर और सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
- भारत, वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद बेलारूस को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
- बहुपक्षीय मंचों पर समर्थनः
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) जैसे कई बहुपक्षीय मंचों पर दोनों देशों के बीच सहयोग दिखाई देता है।
- बेलारूस उन देशों में से एक था जिनके समर्थन ने जुलाई 2020 में UNSC में अस्थायी सीट के लिये भारत की उम्मीदवारी को मज़बूत करने में मदद की।
- भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में बेलारूस की सदस्यता और अंतर-संसदीय संघ (IPU) जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय एवं बहुपक्षीय समूहों जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बेलारूस का समर्थन किया है।
- व्यापक भागीदारीः
- दोनों देशों के बीच एक व्यापक साझेदारी है और विदेश कार्यालय परामर्श (FOC), अंतर-सरकारी आयोग (IGC), सैन्य तकनीकी सहयोग पर संयुक्त आयोग के माध्यम से द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये तंत्र स्थापित किया गया है।
- दोनों देशों ने व्यापार और आर्थिक सहयोग, संस्कृति, शिक्षा, मीडिया एवं खेल, पर्यटन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, कृषि, वस्त्र, दोहरे कराधान से बचाव, निवेश को बढ़ावा देने व संरक्षण सहित रक्षा एवं तकनीकी सहयोग जैसे विभिन्न विषयों पर कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- व्यापार और वाणिज्यः
- आर्थिक क्षेत्र में वर्ष 2019 में वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार कारोबार 569.6 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का था।
- वर्ष 2015 में भारत ने बेलारूस को बाज़ार अर्थव्यवस्था का दर्जा दिया और 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की ऋण सहायता से भी आर्थिक क्षेत्र के विकास में मदद मिली है।
- बाज़ार अर्थव्यवस्था का दर्जा बेंचमार्क के रूप में स्वीकार किये गए वस्तु का निर्यात करने वाले देश को दिया जाता है। इस स्थिति से पहले देश को गैर-बाज़ार अर्थव्यवस्था (NME) के रूप में माना जाता था।
- बेलारूस के व्यवसायियों को 'मेक इन इंडिया' परियोजनाओं में निवेश करने के लिये भारत के प्रोत्साहन का लाभ मिल रहा है।
- भारतीय प्रवासीः
- वर्तमान में 112 भारतीय नागरिक बेलारूस में रहते हैं इसके अलावा 906 भारतीय छात्र वहाँ राज्य चिकित्सा विश्वविद्यालयों में चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे हैं।
- भारतीय कला और संस्कृति, नृत्य, योग, आयुर्वेद, फिल्म आदि बेलारूस के नागरिकों के बीच लोकप्रिय हैं।
- काफी संख्या में बेलारूस के युवा भी हिंदी और भारत के नृत्य रूपों को सीखने में गहरी रुचि रखते हैं।
- वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक आकर्षण केंद्र के एशिया में क्रमिक बदलाव को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ सहयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिये अतिरिक्त अवसर पैदा करता है।
- बेलारूस को विविधतापूर्ण एशिया में कई भौगोलिक उप-क्षेत्रों के साथ संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया में भारत इन उप-क्षेत्रों में से एक हो सकता है, लेकिन इसके लिये बेलारूस की पहल निश्चित रूप से भारत के राष्ट्रीय हितों और धार्मिक उद्देश्यों (National Interests and Sacred Meanings) के "मैट्रिक्स" के अनुरूप होनी चाहिये।
- साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिये भी कुछ अवसर विद्यमान हैं।
- बेलारूस भारतीय दवा कंपनियों हेतु यूरेशियन बाज़ार में "प्रवेश बिंदु" बन सकता है।
- साझा विकास सहित सैन्य और तकनीकी सहयोग की संभावना का पूरी तरह से खुलासा नहीं किया गया है।
- यह सिनेमा (बॉलीवुड) भारतीय व्यापार समुदाय और पर्यटकों के हित को प्रोत्साहित कर सकता है।
- पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद + योग) के आधार पर बेलारूस में स्थापित किये जा रहे मनोरंजन केंद्रों द्वारा पर्यटन और चिकित्सा सेवाओं के निर्यात में अतिरिक्त वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
- आपसी हित बढ़ाने के लिये नए नवोन्मेषी विकास बिंदुओं की स्थापना तथा सफल विचारों को प्रोत्साहित करना और सक्रिय विशेषज्ञ कूटनीति संचार का प्रमुख महत्त्व है।
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त्रिकोणमितीय तालिकाएँ बनाने का श्रेय आर्यभट्ट को जाता है। उन्होंने त्रिकोणमितीय तालिकाओं को ज्यामितीय ढंग से परिकलित (compute) किया और ज्या (sine) तथा कोज्या (cosine) के मानों का प्रयोग अपनी खगोल वैज्ञानिक गणनाओं में किया। इसके अलावा उन्होंने गणितीय तथा ज्यामितीय श्रेणियों (series) के योग के लिए सूत्र बनाये और £n2 तथा £n' जैसी श्रेणियों का योग निकाला।
आर्यभट्ट के बाद वराहमिहिर आये (जन्म 505 ई.)। उन्होंने अपने ग्रंथ, बृहतसंहिता में आर्यभट्ट एवं उनसे पहले के खगोल विज्ञान संबंधी निष्कर्षों को संकलित किया । वराहमिहिर के साथ समस्या यह थी कि उन्होंने ज्योतिष का स्तर बढ़ाकर उसे वैज्ञानिक खगोल विज्ञान के स्तर पर लाने का प्रयास किया। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि नियम बनाने वाले ब्राह्मणों ने उन पर ऐसा करने के लिए दबाव डाला । वराहमिहिर भी ब्राह्मण थे और राज दरबार में कार्य करते थे। खगोल-विज्ञान पर अपना काम जारी रख सकने के लिए यह ज़रूरी था कि वे पुरोहितों और राजा का समर्थन प्राप्त करें। उनकी स्थिति शायद दयनीय थी और उन्हें विज्ञान की आवश्यकताओं और ऋषियों के आदेशों के साथ समझौता करना पड़ता था । कारण यह था कि ऋषियों के वचन सत्य एवं न टाले जा सकने वाले समझे जाते थे। अतः उन्होंने ज्योतिष को अपने खगोल विज्ञान संबंधी शोध प्रबंध के तीन प्रमुख घटकों में से एक के रूप में शामिल किया । जहाँ वे एक ओर अपनी जीविका चलाने के लिए राजाओं और राजकुमारों की जन्म कुंडलियाँ बनाते थे, वहीं दूसरी ओर
अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा का प्रदर्शन करते ।
उदाहरण के तौर पर दो ग्रहणों के स्वरूप की चर्चा के बाद उस समय प्रचलित मत के अनुसार तथा अत्यंत वैज्ञानिक आधार पर उन्होंने उन लोगों के प्रति शिकायत की जो इस विषय में नहीं जानते थे। उन्होंने कहा कि आम आदमी हमेशा ही यह कहता आ रहा है कि ग्रहण का कारण राहु है। यदि राहु नहीं दिखाई देता और ग्रहण नहीं लगता तो उस समय ब्राह्मण लोग अनिवार्यतः स्नान नहीं करते ।
एक ओर तो जहाँ लोगों को वराहमिहिर से सहानुभूति हो सकती है क्योंकि उन्हें बहुत ही तनाव व कुंठा झेलनी पड़ी वहाँ दूसरी ओर उन्होंने प्राकृतिक घटनाओं को परावैज्ञानिक और अवैज्ञानिक के मेल से व्यक्त करने की परिपाटी चलायी। इससे संभवतः आर्यभट्ट के बाद भारतीय खगोल विज्ञान की उल्लेखनीय प्रगति रुक गयी। क्योंकि शताब्दी बीतने पर भी स्वयं खगोल शास्त्रियों को ही राहु-केतु के सिद्धांत से ग्रहण की स्थिति को स्पष्ट करने में कोई आपत्ति नहीं होती थी। ब्रह्मगुप्त ने (जन्म 598 ई.) जो एक महान् वैज्ञानिक थे, अपने ब्रह्मस्फुत सिद्धांत में घोषणा की कि "कुछ लोग सोचते हैं कि ग्रहण का कारण राहु नहीं है। किंतु यह एक गलत धारणा है क्योंकि वस्तुतः यह राहु ही है जो ग्रहण लगाता है । वेद जो कि ब्रह्मा के मुख से निकले भगवान के ही शब्द हैं, यही बताते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने यह कथन इस बात की पूरी जानकारी के साथ दिया था कि ये आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा श्रीसेन के वैज्ञानिक सिद्धांतों के विरुद्ध जा रहे थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि राहु आदि काल्पनिक माने जाते हैं, जैसा कि आर्यभट्ट और वराहमिहिर ने किया था तो उन्हें स्वर्गिक सुखों से वंचित होना पड़ेगा और यह सामान्यतः स्वीकृत धार्मिक सिद्धांत के बाहर हो जाएगा और इसकी कतई अनुमति नहीं हैं"।
हम पाते हैं कि विज्ञान तथा अ-विज्ञान की यह मिलावट जो भारतीय खगोल शास्त्रियों ने आर्यभट्ट के बाद शुरू की, उसके फलस्वरूप भारतीय खगोल विज्ञान के सामने मानो चुनौती नहीं रही। खगोल विज्ञान के स्थान पर ज्योतिष शास्त्र हावी होने लगा। जो दुनिया में सबसे शक्तिशाली वैज्ञानिक विचारधारा थी. वह राजनीति एवं धर्मान्धता का शिकार बन गयी। जब हम आर्यभट्ट के सुझाव कि पृथ्वी घूमती है और ग्रह स्थिर है पर विचार करते हैं तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है। अथर्ववेद ने कर्मकांडो का सहारा लेकर कहा कि पृथ्वी स्थिर थी और जो इस कथन के विरुद्ध गया वह विधर्मी था । आधुनिक ऐतिहासिक अनुसंधान से यह ज़ाहिर होता है कि सभी खगोलशास्त्रियों ने या तो आर्यभट्ट के उपर्युक्त कथन को एकदम नज़रअंदाज़ कर दिया या फिर इसका जानबूझकर ग़लत अर्थ निकाला। वे अपने ब्राह्मण आचार्यों को यह दिखाना चाहते थे कि वे सच्चे हिंदू हैं जो वेदों में पूर्ण विश्वास करते हैं तथा विश्व को भूकेंद्रिक (geocentric) मानते है । कुछ मतों के अनुसार तो यहाँ तक संभावना है कि सूर्यकेंद्रीय परिकल्पना को मिटा देने के लिए पाण्डुलिपियों में भी जानबूझकर रद्दोबदल किया गया है ।
बोध प्रश्न 5
नीचे दी गयी तालिका में कॉलम 1 में कुछ खगोलशास्त्रियों के नाम दिये गये हैं तथा कॉलम 2 में उनके द्वारा दिये कथन हैं। कौन सा कथन किस खगोलशास्त्री से संबंधित है, बताइए।
भारत में विज्ञान का स्वर्ण युग
NAM Noo
में भा
विज्ञान का इतिहास
सासनिद वंश ने पर्शिया साम्राज्य (वर्तमान ईरान) पर सन् 227-637 ई. तक शासन किया।
कॉलम 1
क) आर्यभट्ट ख) वराहमिहिर ग) ब्रह्मगुप्त
कॉलम 2
i) ग्रहण राहु और केतु द्वारा लगते हैं । ii) पृथ्वी घूमती है तथा आकाश स्थिर है।
iii) पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य, चंद्र तथा ग्रह इसके चारों ओर घूमते हैं। iv) ग्रहण चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने के कारण लगता है।
भारतीय विज्ञान का गौरवशाली अध्याय हमेशा के लिये लुप्त नहीं हुआ था हालांकि गुप्त साम्राज्य के ह्रास के बाद इसका पतन आरंभ हो गया, जिसका अब हम संक्षेप में वर्णन करेंगे ।
4.3.3 गुप्त साम्राज्य का पतन
ईसा की पांचवी शताब्दी के उत्तरार्ध तक, गुप्त साम्राज्य काफी कमज़ोर हो गया था। हूणों ने उत्तर की ओर से आक्रमण करके न केवल पंजाब और राजस्थान पर अधिकार कर लिया बल्कि पूर्वी मालवा तथा मध्य भारत के भी बड़े भू-भाग पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। हूणों के शिलालेख मध्य भारत में प्राप्त हुए हैं। गुप्त राजा जिन राज्यपालों को शासन करने के लिए नियुक्त करते थे, वे प्रायः स्वतंत्र होते थे। ईसा की छठी शताब्दी के शुरू तक उन्होंने अपने अधिकार से ही भूमि के रूप में अनुदान देना शुरू कर दिया। पश्चिमी भारत हाथ से निकल जाने पर व्यापार और वाणिज्य से प्राप्त होने वाला राजस्व गुप्त राजाओं को मिलना बंद हो गया। इससे सेना पर होने वाले खर्च तथा धार्मिक आदि कार्यों के लिए धन की कमी हो रही थी और धार्मिक साधन भी काफी कम हो गये थे। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था टूटने लगी, वैसे-वैसे शिल्पकला और अन्य वस्तुओं की माँग भी तेज़ी से घटती गयी। नतीजा यह निकला कि कई कुशल कारीगरों ने जीविका चलाने के लिए दूसरे व्यापार अपना लिये। 473 ई. में गुजरात से मालवा को रेशम के बुनकरों का जाना एक ऐसा ही उदाहरण है।
इस प्रकार आंतरिक तथा बाह्य दोनों कारण (जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है) मिल गये और उससे गुप्त साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया । टुकड़ों में बँटा यह साम्राज्य अब विज्ञान की प्रगति के लिए सामाजिक एवं बौद्धिक आधार प्रदान करने में असमर्थ हो गया। गुप्त साम्राज्य के पतन से भारतीय समाज अशांति और संघर्ष के एक लंबे दौर से गुजरने लगा। एक मात्र अपवाद दक्षिण भारत का चोल साम्राज्य था, जहाँ तकनीकी और शिल्प एक बार फिर गुप्त साम्राज्य की ही तरह फलने-फूलने लगे। अब हम आपको संक्षेप में बताएँगे कि भारत में इस्लाम के आने तक यहाँ क्या स्थिति थी ।
4.4 संघर्ष का युग
750 ई. से 1000 ई. की अवधि में उत्तर-पूर्व में पाल साम्राज्य, उत्तर पश्चिम में प्रतिहार साम्राज्य तथा दक्षिण में राष्ट्रकूटों के बीच अधिकार जमाने के लिए संघर्ष चल रहा था। ये समय-समय पर उत्तर तथा दक्षिण भारत के क्षेत्रों पर भी नियंत्रण करते रहे। नवीं शताब्दी तक, चोल राजाओं ने पल्लवों, चालुक्यों, पांड्यों तथा राष्ट्रकूटों को हराकर दक्षिण भारत में अपनी शक्ति मजबूत कर ली
उत्तर भारत में यह काल ठहराव और पतन का काल था । रोमन तथा ससेनियन साम्राज्यों के साथ भारत का व्यापार काफी समृद्धशाली एवं लाभप्रद था। किंतु इन साम्राज्यों के पतन के कारण देश के व्यापार तथा वाणिज्य को गहरा धक्का लगा। इससे साम्राज्य के अंदर कई छोटे-मोटे रजवाड़े सिर उठाने लगे जो हमेशा अपने को स्वतंत्र घोषित करने की ताक में रहते थे। इन रजवाड़ों ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया जिसमें ग्राम-समूह आत्मनिर्भर हो गये और इस प्रकार व्यापार को बढ़ावा नहीं मिला।
इसके अलावा जाति-पाँति की प्रथा ने फिर से जड़े जमा लीं, जिसमें ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों को तरजीह दी जाती थी तथा शद्रों को धार्मिक तथा सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था । कुम्हार, बुनकर, सुनार, संगीतज्ञ, नाई, सड़क बनाने वाले तथा इसी प्रकार का अन्य कार्य करने वालों को छोटी जाति का समझा जाता था। बौद्धिक धरातल पर जो भी कोशिश होती उसका
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के लिये यदि कोई कानून बनाया जा रहा है, तो इसमें दिक्कत क्या है. वास्तव में तो यह संविधान की भावनाओं के अनुरूप ही है.
सभापति महोदया, समय बदल रहा है, धर्म स्वातंत्र्य का डॉ. गोविन्द जी कह रहे थे कि पहले से कानून है. उन्होंने आई.पी.सी. और सी.आर.पी.सी. का तो उल्लेख किया किंतु एक धर्म स्वातंत्र्य विधेयक वर्ष 1968 में भी आया था और मैं सदन के सामने गर्व से कहना चाहता हूं कि तब भी माननीय वीरेन्द्र कुमार सखलेचा जो उस समय उपमुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने यह विधेयक लेकर आये थे और तब भी सामने के पक्ष के लोगों ने इसका विरोध किया था ( मेजों की थपथपाहट) यदि वास्तव में इस देश की संस्कृति की इस देश के संविधान की और इस देश के धर्म स्वातंत्र्य की कोई रक्षा करने की बात करता है तो वह भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ करती है और इसलिये पहला विधेयक भी वर्ष 1968 में आया था, जो सखलेचा जी लेकर आये थे. धर्मनिरपेक्षता की बात बारबार की जाती है, हम उसको सर्वधर्म सम्भाव बोलते हैं और यही इस विधेयक में भी लिखा है और संविधान भी यही कहता है.
सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म निरत सुत नीति.
हमने किसी से नहीं कहा कि इस धर्म पर चलो कि उस धर्म पर चलो, सब आपस में प्रेम से रहो और अपने-अपने धर्म पर चलो, यही हमारी संस्कृति सिखाती है. अब डॉक्टर साहब कहते हैं कि भय बना देंगे, यह डर क्यों है, यह भय क्यों हैं इसका मतलब है कि कानून का उल्लंघन करने वाले को ही कानून का भय होता है, जिसको कानून का उल्लंघन करना ही नहीं है, जिसको जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराना ही नहीं है, जिसको थ्रेट इंड्यूसमेंट और मिस रिप्रेजेंटेशन से धर्म परिर्वतन नहीं कराना है, वह डर क्यों रहा है? वह क्यों ऐसा कहता है कि जैसे इसे किसी के खिलाफ उपयोग किया जायेगा, वह सीना तानकर बोले कि हां हम कन्वेंस करके धर्म परिर्वतन करेंगे और इसीलिये 60 दिन का नोटिस देने को हम तैयार हैं, पर वह कहते हैं कि नोटिस मत देना. कांग्रेस की सरकार में इस धर्म स्वातंत्र्य विधेयक जो वर्ष 1968 में आया था, उसके पहले जस्टिस नियोगी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. सभापति जी, यह कांग्रेस की सरकार ने बनाई थी, देखिये जस्टिस नियोगी की रिपोर्ट क्या कहती है, डॉ. गोविन्द सिंह जी भी कृपया ध्यान दें.
Conversions are mostly brought about by under influence misrepresentation, etc., or in other words not by conviction but by various inducements offered for proselytization in various forms. यह आपकी सरकार के समय 1954 में बनी थी और 1956 में इसने अपनी रिपोर्ट दी थी. आपने उस समय कानून क्यों नहीं बनाया.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- अब उनको समझ में ही नहीं आया, वह जवाब क्या देंगे.
डॉ. सीतासरन शर्मा - वह डॉक्टर हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- अब आप इतनी क्लिस्ट इंग्लिस पढ़ रहे हैं, उधर स्लीपिंग प्वाइंट है, वह पकड़ नहीं पाते.
श्री के.पी. सिंह -- इसका हिन्दी अनुवाद आप कर दो यार.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- मैं तो आपका भी स्लीपिंग प्वाइंट देखकर हड़बड़ा गया था. मैं तो कर ही नहीं पाता. .. ( व्यवधान)..
डॉ. सीतासरन शर्मा -- Suitable control on conversions brought about through illegal means should be imposed if necessary Legislative measures should be enacted. कानून बनाना पड़ेगा, यह नियोगी कमेटी ने आज से 40-50 साल पहले कहा था और उसी के कारण आपने तो नहीं बनाया, क्योंकि आप तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं. आप नहीं चाहते कि इस देश की संस्कृति बची रहे और इसीलिये आपने कानून नहीं बनाया 1968 में माननीय सखलेचा जी को, परंतु वह कानून थोड़ा सरल था, अब परिवर्तन आ गया है. यह मेरे पास 1968 का रखा है, उसमें पूरे प्रावधान नहीं थे, उस समय की जरूरत के हिसाब से थे, किंतु अब इंटरनेट का युग आ गया है, अब सोशल मीडिया है, अब आदमी अपनी पहचान आसानी से छुपा सकता है और इसीलिये वह धर्म किसी का होता है और कोई धर्म का नाम लिख लेता है. हमारे यहां एक फेक्ट्री पकड़ी गई, नकली घी बनाती थी, नाम था नर्मदांचल घी फेक्ट्री और उसके संचालक थे अल्पसंख्यक, तो यह धोखा देने के लिये और इसलिये misrepresentation इस इंटरनेट युग में बहुत ज्यादा होने लगा है, सोशल मीडिया से बहुत ज्यादा होने लगा है और इसीलिये इस एक्ट में परिवर्तन आवश्यक था और इसीलिसे वर्ष 1968 की जगह आज वर्ष 2020 का अध्यादेश और वर्ष 2021 में यह एक्ट लाया गया है. मैं सोचता हूं कि डॉ. साहब ने जो कहा है उनकी बात निर्मूल है, कुछ एक्ट के प्रावधानों पर बात जरूर करेंगे, उसके बाद मैं अपनी बात समाप्त करूंगा.
डॉ. गोविन्द सिंह-- आप तो एक लाइन बोलकर चुप हो गये, हमने कहा उसका भी तो वन बाई वन बताओ.
डॉ. सीतासरन शर्मा-- क्या बोले डॉक्टर साहब.
डॉ. नरोत्तम मिश्र-- थोड़ा बहुत हमारे लिये भी तो छोड़ेंगे.
श्री शैलेन्द्र जैन-- डॉ. साहब के जवाब तो डॉ. साहब ही दे पायेंगे.
डॉ. सीतासरन शर्मा-- वह भी डॉ. हैं, पीएचडी हैं. सभापति जी, इसमें ऐसी कौन सी बात
है जिसमें इनको ऐतराज है, दुर्व्यपदेशन, प्रलोभन, धमकी या बल प्रयोग, असम्यक, असर, प्रपीड़न इसमें से आपको किस चीज पर ऐतराज है, क्या आप यह चाहते हैं कि misrepresentation से धर्म
परिवर्तन हो जाये. अब इसमें एक समस्या और आजकल आ रही है और वह है कि नाम बदलकर के और misrepresentation करके सोशल मीडिया के माध्यम से विवाह कर लिया जाता है और उसके बाद में विवाहित महिला का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाया जाता है. सभापति जी, सिर्फ हम यह बात नहीं कह रहे, केरल हाईकोर्ट ने, अब वहां पर तो कोई भारतीय जनता पार्टी की सरकार है नहीं, केवल एक सदस्य जीता है, वहां या तो यूडीएफ आता है या एलडीएफ आता है. पर वहां भी हाईकोर्ट ने इस बात को माना है कि इस तरह से बहलाया, फुसलाया और धमकी दी जा रही है और इस तरह से गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है और इसीलिये कानून लाना जरूरी था. एक-दो सुझाव है. एक तो विधि मंत्री जी आपसे अनुरोध है धारा-4 में इसमें जो कम्पलेंट एक्ट परिवाद के जो आपने व्यक्ति लिखे हैं - " रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण, संरक्षकता और अभिरक्षा " इसमें सामाजिक संस्थाएं भी जुड़नी चाहिये क्योंकि कई बार ऐसे लोग भय के कारण क्योंकि हमारे सामने ऐसे बहुत से लोग बैठे हैं जो धर्म परिवर्तन करवाने वालों के पक्ष में खड़े हो जायेंगे इसीलिये सामाजिक संस्थाओं को भी अधिकार देना चाहिये कि वे परिवाद प्रस्तुत कर सकें. धारा-5 के अंतिम परन्तुक में यह तो लिखा है किपरन्तु यह भी इस धारा में उल्लिखित दूसरे या उत्तरवर्ती अपराध की दशा में, कारावास पांच वर्ष से कम का नहीं होगा परन्तु दस वर्ष तक का हो सकेगा तथा जुर्माने का भी दायी होगा." जुर्माने की राशि नहीं लिखी. ऊपर के पूरे परन्तुकों में लिखी है. इसमें जुर्माने की राशि आनी चाहिये. इनको संशोधित करने में बहुत समस्याएं नहीं हैं क्योंकि धारा-15 में आपने यह प्रावधान किया है कि छोटे-मोटे विषय हैं उनको राज्य शासन संशोधित कर सकता है. धारा-7 में है कि- धारा 6 के अधीन किसी विवाह को शून्य किया जायेगा. उसमें बाकी सब बातें तो हैं किन्तु समय-सीमा नहीं है. इसमें समय-सीमा भी जुड़नी चाहिये ताकि एक निश्चित समय-सीमा में जो पीड़ित व्यक्ति है उसको न्याय मिल सके. वह अपने धर्म में अपने आप वापस हो जायेगा. विवाह ही शून्य हो जायेगा किन्तु उसको कानूनी जामा इस धारा के तहत मिलेगा. यह भी मेरा अनुरोध है. सभापति महोदया, मैं पुनः माननीय गृह मंत्री जी को, विधि मंत्री जो को और माननीय मुख्यमंत्री जी को इस सदन के माध्यम से बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने धर्म स्वतंत्रता विधेयक को लाया. इससे प्रदेश के पीड़ित और शोषित व्यक्ति हैं उनको कानून का प्रोटेक्शन मिल सकेगा. मैं सामने वाले सदस्यों से अनुरोध करूंगा कि इसको सर्वसम्मति से पारित करें. धन्यवाद.
सुश्री हिना लिखीराम कावरे (लांजी) - माननीय सभापति महोदया, जो धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक विचार के लिये लाया गया है. निश्चित ही हमारा देश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और सभी
व्यक्तियों को अपना धर्म चुनने का अधिकार है लेकिन यदि यह विधेयक विचार के लिये लाया है तो पूरी तैयारी से लाया गया है. मैं आपके माध्यम से मंत्री जी से जानना चाहती हूं कि आपको यह लाना ही पड़ा तो आपने पूरे प्रदेश का सर्वे करवाया ही होगा कि आखिर इस संबंध में जो अपराध, एफआईआर दर्ज हुई हैं तो पूरे प्रदेश का आंकड़ा निकलवाया होगा. इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है. यदि कानून पहले से है, नियम पहले से है, अधिनियम पहले से है तो फिर इसकी जरूरत क्यों है. इसका मतलब है कि अपराध बढ़े हैं. तो आपके पास एफआईआर भी होंगी. जब मंत्री जी जवाब दें तो हम यह अपेक्षा करते हैं कि वे इसका जवाब दें. यदि शिकायतें हुई हैं कि जबरन धर्म परिवर्तन की बात हुई है और शिकायत हुई है तो उसका जिक्र मंत्री जी यहां करें क्योंकि जिस समय हमारी माननीय विधायक कलावती भूरिया जी यह बात रख रहीं थीं कि मुझे डराया जा रहा है. जान से मारने की धमकी दी जा रही है . उस समय माननीय गृह मंत्री जी ने सदन में कहा था कि इस तरह की कोई भी शिकायत हमारे पास नहीं आई है. इसका मतलब है कि जब तक लिखित शिकायत किसी थाने में या किसी अधिकारियों के पास यदि शिकायत नहीं पहुंची है, तो सरकार इस पर कार्यवाही तो नहीं करेगी, क्योंकि मैं भी उस समय सदन में मौजूद थी. विधायक सदन के अंदर चिल्ला रहा था, बोल रहा था, लेकिन उस विधायक का कोई महत्व नहीं था और यदि ये विधेयक यहां पर आया है, जिसकी वास्तव में कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर आया है तो निश्चित रुप से इसके पीछे कारण भी होंगे. मैं चाहूंगी कि मंत्री जी इसका सारगर्भित उत्तर देंगे. और एक बात यदि आर्थिक, मानसिक दबाव के कारण या प्रलोभन के कारण जो भी कारण इसमें स्पष्ट किये गये हैं कि यदि इन सब कारण के चलते यदि धर्म परिवर्तन हो रहा है, तो सजा तो आप दो, सजा तो देना ही है, लेकिन इसके पीछे उत्पन्न कारणों को भी हमको देखना पड़ेगा कि क्यों हमको इन सब चीजों की जरुरत पड़ती है. यदि आप युवाओं को, युवाओं का मतलब लड़के और लड़कियां दोनों होते हैं, यदि युवाओं को आप रोजगार देंगे, यदि उनको आप उनकी क्षमता के अनुरुप काम सौंपेंगे, तो निश्चित रुप से अपराधों में कमी आयेगी और बहुत सारे कारण ऐसे होते हैं, जो केवल और केवल बेरोजगारी के चलते आते हैं. इसलिये आप आर्थिक रुप से मजबूत बनाइये हमारे युवाओं को, फिर आप देखिये ऐसे कानूनों में संशोधन करने की आपको आवश्यकता कभी भी नहीं पड़ेगी. सभापति महोदय, आपने बोलने के लिये समय दिया, धन्यवाद.
श्री यशपाल सिंह सिसौदिया (मंदसौर ) -- सभापति महोदया, मैं गृह मंत्री जी का, मुख्यमंत्री जी का एक ऐसे विषय पर जिसकी आवश्यकता पड़ती जा रही थी, पड़ रही थी. विधेयक संशोधन के साथ आया है, मैं रामेश्वर शर्मा जी को भी स्मरण करुंगा, हमारे सम्मानित
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एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है। वाद्ययंत्र का शैक्षणिक अध्ययन, अंग्रेज़ी में ओर्गेनोलोजी कहलाता है। केवल वाद्य यंत्र के उपयोग से की गई संगीत रचना वाद्य संगीत कहलाती है। संगीत वाद्य के रूप में एक विवादित यंत्र की तिथि और उत्पत्ति 67,000 साल पुरानी मानी जाती है; कलाकृतियां जिन्हें सामान्यतः प्रारंभिक बांसुरी माना जाता है करीब 37,000 साल पुरानी हैं। हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि वाद्य यंत्र के आविष्कार का एक विशिष्ट समय निर्धारित कर पाना, परिभाषा के व्यक्तिपरक होने के कारण असंभव है। वाद्ययंत्र, दुनिया के कई आबादी वाले क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से विकसित हुए.
32 संबंधोंः चन्द्रशेखर वेंकटरमन, ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम, झांझ, झिल्लीस्वरी, डमरु, डिजरीडू, ड्रम, तालवाद्य, तंतुस्वरी, द हू, ध्वनि, नट, नायलॉन, प्रयोगात्मक वाद्य यंत्र, बाँस गीत, बार्तोलोमियो क्रिस्टोफोरी, बिरहा, बैगपाइप, मुस्तफ़ा क़न्दराली, स्वरित्र, हारमोनियम, होर्नबोस्तेल-साक्स, वाद्य संगीत, वाद्यशास्त्र, वायुस्वरी, वायुवाद्य, विद्युतस्वरी, गन्धर्व वेद, गायन, गिटार, गजनी (2008 फ़िल्म), कम्पनस्वरी।
सीवी रमन (तमिलः சந்திரசேகர வெங்கடராமன்) (७ नवंबर, १८८८ - २१ नवंबर, १९७०) भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। १९५४ ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा १९५७ में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था। .
अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम अथवा ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (A P J Abdul Kalam), (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा। इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई। कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये। .
झांझ (Cymbal) एक वाद्य यन्त्र है। गोलाकार समतल या उत्तलाकार धातु की तश्तरी जैसा ताल वाद्य, जिसे ढोल बजाने की लकड़ी से या इसके जोड़े को एक-दूसरे से रगड़ते हुए टकराकर बजाया जाता है। तांबे, कलई (टीन) और कभी-कभी जस्ते के मिश्रण से बने दो चक्राकार चपटे टुकड़ों के मध्य भाग में छेद होता है। मध्य भाग के गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है। डोरी में लगे कपड़ों के गुटकों को हाथ में पकड़कर परस्पर आघात करके वादन किया जाता है। यह गायन व नृत्य के साथ बजायी जाती है। यह प्रसिद्ध लोकवाद्य हॅ। कुछ क्षेत्रों में इसे करताल भी कहते हैं। हालांकि करताल तत, काँसा अथवा पीतलनिर्मित झाँझ का एक छोटा संस्करण है। .
संगीत वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में, झिल्लीस्वरी या मेम्ब्रेनोफ़ोन (Membranophone) वे वाद्य हैं जिनमें झिल्लियाँ होती हैं जिनके कांपने से ध्वनी उत्पन्न होती है। इसका उदाहरण तबला है। .
डमरु या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यन्त्र होता है। इसमें एक-दूसरे से जुड़े हुए दो छोटे शंकुनुमा हिस्से होते हैं जिनके चौड़े मुखों पर चमड़ा या ख़ाल कसकर तनी हुई होती है। डमरू के तंग बिचौले भाग में एक रस्सी बंधी होती है जिसके दूसरे अन्त पर एक पत्थर या कांसे का डला या भारी चमड़े का टुकड़ा बंधा होता है। हाथ एक-फिर-दूसरी तरफ़ हिलाने पर यह डला पहले एक मुख की ख़ाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिस से 'डुग-डुग' की आवाज़ उत्पन्न होती है। तेज़ी से हाथ हिलाने पर इस 'डुग-डुग' की गति और ध्वनि-शक्ति काफ़ी बढ़ाई जा सकती है। .
डिजरीडू (didgeridoo) ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समुदाय द्वारा विकसित एक वायुवाद्य (श्वास या वायु द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाला संगीत वाद्य यंत्र) है। अनुमान लगाया जाता है कि इसका विकास उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पिछले १५०० वर्षों में कभी हुआ था। वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में यह एक वायुवाद्य है। आधुनिक डिजरीडू 1 से 3 मीटर (3 से 10 फ़ुट) लम्बे होते हैं और बेलन या शंकु का आकार रखते हैं। .
ड्रम, संगीत वाद्ययंत्रों के एक ऐसे तालवाद्य (परकशन) समूह का एक सदस्य है जिन्हें तकनीकी दृष्टि से झिल्लीयुक्त वाद्ययंत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ड्रम में कम से कम एक झिल्ली होती है जिसे ड्रम का सिर या ड्रम की त्वचा या खाल कहते हैं जो एक खोल पर फैला हुआ होता है और ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इस पर या तो सीधे बजाने वाले के हाथों से या ड्रम बजाने की छड़ी से प्रहार किया जाता है। ड्रम के नीचे की तरफ आम तौर पर एक "प्रतिध्वनि सिर" होता है। ड्रम से ध्वनि उत्पन्न करने के लिए अन्य तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है जैसे थम्ब रोल (अंगूठे को घुमाना).
तालवाद्य (percussion instrument) संगीत में ऐसा वाद्य यन्त्र जिस से ध्वनी उसपर हाथ या अन्य किसी उपकरण से प्रहार द्बारा या रगड़कर उत्पन्न हो। इसके उदाहरण तबला, डमरु, झांझ और मृदंग हैं। झांझ जैसे तालवाद्यों में दो एक-समान भाग होते हैं जिन्हें आपस में टकराकर संगीत बनाया जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि मानव स्वर के बाद तालवाद्य ही सबसे पहले आविष्कृत संगीत वाद्य थे।The Oxford Companion to Music, 10th edition, p.775, ISBN 0-19-866212-2 .
संगीत वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में, तंतुस्वरी या कोर्डोफ़ोन (Chordophone) ऐसे वाद्य होते हैं जिनमें एक या अनेक तंतु (तार) होते हैं जिनमें कम्पन से ध्वनी उत्पन्न होती है। इसका उदाहरण सितार है। .
द हू एक अंग्रेजी रॉक बैंड है, जिसका गठन 1964 में गायक रोजर डाल्ट्रे, गिटारवादक पीट टाउनशेंड, बासवादक जॉन एंटविसल और ड्रम वादक कीथ मून ने मिलकर किया था। वे अपने ऊर्जावान लाइव प्रदर्शन के जरिये मशहूर हुए जिसमें अक्सर वाद्य यंत्रों की क्षति होती थी। द हू 100 मिलियन रिकॉर्ड बेच चुका है और ब्रिटेन में शीर्ष 27 चालीस एकल एलबम तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में 17 टॉप टेन (शीर्ष दस) एलबम ला चुका है, जिनमें 18 स्वर्ण, 12 प्लेटिनम और 5 मल्टी प्लेटिनम एलबम पुरस्कार सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका में शामिल हैं.
ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ("'नीला"': ध्वनि तरंग, "'लाल"': कान का पर्दा, "'पीला"': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। "'हरा"': श्रवण तंत्रिकाएँ, "'नीललोहित"' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, "'नारंगी"': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .
नट (अंग्रेजीः Nat caste) उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है जिसके पुरुष लोग प्रायः बाज़ीगरी या कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं तथा उनकी स्त्रियाँ नाचने व गाने का कार्य करती हैं। इस जाति को भारत सरकार ने संविधान में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शामिल कर लिया है ताकि समाज के अन्दर उन्हें शिक्षा आदि के विशेष अधिकार देकर आगे बढाया जा सके। नट शब्द का एक अर्थ नृत्य या नाटक (अभिनय) करना भी है। सम्भवतः इस जाति के लोगों की इसी विशेषता के कारण उन्हें समाज में यह नाम दिया गया होगा। कहीं कहीं इन्हें बाज़ीगर या कलाबाज़ भी कहते हैं। शरीर के अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत होने के साथ साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य व गायन में काफी प्रवीण होती हैं। नटों में प्रमुख रूप से दो उपजातियाँ हैं-बजनिया नट और ब्रजवासी नट। बजनिया नट प्रायः बाज़ीगरी या कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं जबकि ब्रजवासी नटों में स्त्रियाँ नर्तकी के रूप में नाचने-गाने का कार्य करती हैं और उनके पुरुष या पति उनके साथ साजिन्दे (वाद्य यन्त्र बजाने) का कार्य करते हैं। .
नायलॉन (nylon) कुछ ऐलिफ़ैटिक यौगिकों पर आधारित कृत्रिम पॉलीमरों का सामूहिक नाम है। यह एक रेश्मी थर्मोप्लास्टिक सामग्री होती है जिसे रेशों, परतों और अन्य आकारों में ढाला जा सकता है। नायलॉन आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग दाँत के बुरुशों, वस्त्रों, मोज़ों, इत्यादि में होता है। अन्य थर्मोप्लास्टिकों की तरह यह अधिक तापमान पर पिघल जाता है इसलिए इसके वस्त्र आग से सम्पर्क में आने पर बहुत संकटमय होते हैं क्योंकि वह पिघलकर त्वचा से चिपक जाते है और फिर आग पकड़ लेते हैं, जिस कारणवश अब इसका प्रयोग अन्य वस्तुओं में अधिक देखा जाने लगा है, जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स (जिसमें इसके परावैद्युत गुण काम आते हैं), संगीत वाद्यों के तंतुओं, इत्यादि में। .
प्रयोगात्मक वाद्य यंत्र (experimental musical instrument या custom-made instrument) उन वाद्य यन्त्रों को कहते हैं जो किसी प्रचलित वाद्य यन्त्र में परिवर्तन/परिवर्धन करके बनाए जाते हैं, या कोई बिलकुल ही नया वाद्ययन्त्र बनाया या पारिभाषित किया गया हो। श्रेणीःवाद्य यंत्र.
बाँस गीत, छत्तीसगढ़ की यादव जातियों द्वारा बाँस के बने हुए वाद्य यन्त्र के साथ गाये जाने वाला लोकगीत है। बाँस गीत के गायक मुख्यतः रावत या अहीर जाति के लोग हैं। छत्तीसगढ़ में राउतों की संख्या बहुत है। राउत जाति यदूवंशी माना जाता है। अर्थात इनका पूर्वज कृष्ण को माना जाता है। ऐसा लगता है कि गाय को जब जगंलों में ले जाते थे चखने के लिए, उसी वक्त वे बाँस को धीरे धीरे वाद्य के रूप में इस्तमाल करने लगे थे। शुरुआत शायद इस प्रकार हुई थी - गाय घास खाने में मस्त रहती थी और राउत युवक या शायद लड़का बाँस के टुकड़े को उठा कर कोशिश करता कि उसमें से कोई धुन निकले, और फिर अचानक एक दिन वह सृजनशील लड़का बजाने लग गया उस बाँस को बड़ी मस्ती से। छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में बाँस गीत बहुत महत्वपुर्ण एक शैली है। यह बाँस का टुकड़ा करीब चार फुट लम्बा होता है। यह बाँस अपनी विशेष धुन से लोगों को मोहित कर देता है। बाँस गीत में एक गायक होता है। उनके साथ दो बाँस बजाने वाले होते हैं। गायक के साथ और दो व्यक्ति होते हैं जिसे कहते हैं "रागी" और "डेही"। सबसे पहले वादक बाँस को बजाता है, और जँहा पर वह रुकता है अपनी साँस छोड़ता है, वही से दूसरा वादक उस स्वर को आगे बड़ाता है। और इसके बाद ही गायक का स्वर हम सुनते हैं। गायक लोक कथाओं को गीत के माध्यम से प्रस्तुत करता है। सिर्फ गायक को ही उस लोक कथा की शब्दावली आती है। "रागी" वह व्यक्ति है जिसे शब्दावली नहीं मालूम है शायद पूरी तरह पर जो गायक के स्वर में साथ देता है। "डेही" है वह व्यक्ति जो गायक को तथा रागी को प्रोत्साहित करता है। जैसे "धन्य हो" "अच्छा" "वाह वाह"। उस गीत के राग को जानने वाला है "रागी"। छत्तीसगढ़ में मालिन जाति का बाँस को सबसे अच्छा माना जाता है। इस बाँस में स्वर भंग नहीं होता है। बीच से बाँस को पोला कर के उस में चार सुराख बनाया जाता है, जैसे बाँसुरी वादक की उंगलिया सुराखों पर नाचती है, उसी तरह बाँस वादक को उंगलिया भी सुराखों पर नाचती है और वह विशेष धुन निकलने लगती है। रावत लोग बहुत मेहनती होते हैं। सुबह 4 बजे से पहले उठकर जानवरों को लेकर निकल जाते हैं चराने के लिए। संध्या के पहले कभी भी घर वापस नहीं लौटते। और घर लौटकर भी बकरी, भे, गाय को देखभाल करते हैं, करनी पड़ती है। पति को निरन्तर व्यस्त देखकर रवताईन कभी कभी नाराज़ हो जाती है और अपने पति से जानवरों को बेच देने को कहती है। इस सन्दर्भ में एक बाँस गीत इस प्रकार गाए जाते हैं - रावत और रवताईन के वार्तालाप - रवताईनः छेरी ला बेचव, भेंड़ी ला बेचँव, बेचव करिया धन गायक गोठन ल बेचव धनि मोर, सोवव गोड़ लमाय रावतः छेरी ला बेचव, न भेड़ी ला बेचव, नइ बेचव करिया धन जादा कहिबे तो तोला बेचँव, इ कोरी खन खन रवताईनः कोन करही तौर राम रसोइया, कोन करही जेवनास कोन करही तौर पलंग बिछौना, कोन जोही तौर बाट रावतः दाई करही राम रसोइया, बहिनी हा जेवनास सुलरवी चेरिया, पंलग बिछाही, बँसी जोही बाट रवताईनः दाई बेचारी तौर मर हर जाही, बहिनी पठोह ससुरार सुलखी चेरिया ल हाट मा बेचँव, बसी ढीलवँ मंझधार रावतः दाई राखें व अमर खवा के बहिनी राखेंव छे मास सुलखी बेरिया ल छाँव के राखेंव, बँसी जीव के साथ सभी प्रकार के लोक गीत जैसे सुवा, डंडा, करमा, ददरिया - बाँस गीत में गाते हैं। परन्तु मौलिकता के आधार पर देखा जाये तो बाँस गीत को मौलिकता है लोक कथाओं में। बहुत सारे लोक कथाएँ हैं जिन में से है शीत बसन्त, भैंस सोन सागर, चन्दा ग्वालिन की कहानी, अहिरा रुपईचंद, चन्दा लोरिक की कहानी। रावत जाति के लोग ही बाँस गीत गाया करते हैं इसीलिये गीत के पात्र, गीत का नायक नायिका रावत, अहीर ही होते हैं। गाय भैंस पर आधारित कथाओं की संख्या अधिक है। बाँस गीतों में कहानी होने के कारण एक ही कहानी पूरी रात तक चलती है। कभी कभी तो कई रातों तक चलती है। बाँस गीत के गायक शुरु करता है प्रार्थना से, प्रार्थना करते हैं जिन देव देवीयों से वे है सरस्वती, भैरव, महामाया, बूढ़ा, महादेव, गणेश, चौसंठ योगिनी बेताल गुरु इत्यादि। रावत लोग एक भैंस की कहानी को गाते हैं जिसका नाम है "भैंस सोन सागर"। कहानी इस प्रकार हैः राजा महर सिंह के पास लाख के करीब मवेशियों की झुंड थी। उनमें से एक थी सोन सागर नाम की भैंस, सोन सागर हर साल जन्मष्टमी के दिन सोने का बच्चा पैदा करती थी। परन्तु वह सोने का बच्चा किसी को भी दिखाई नहीं देता था। राजा महर सिंह ने एक बार घोषण की कि अगर कोई व्यक्ति उन्हें सोने का बच्चा को दिखा दे, तो उसको अपना आधा राज्य, आधी मवेशिया दे देगा और अपनी बहन खोइलन के साथ शादी भी करा देगा। किन्तु जो व्यक्ति को असफलता मिलेगी, उसे कारागार में डाल दिया जायेगा। न जाने कितने रावत अहीरों आये पर किसी को भी सफलता नहीं मिली। सभी का कारागार में बन्द कर दिया गया। अन्त में आये तीन भाई-तीन भाईयों जो थे बहुत कम वर्ष केः बड़ा कठैता - 12 वर्ष का था, सेल्हन 9 साल का और सबसे छोटा कौबिया जो सिर्फ 6 साल का था। राजा को बड़ा दुःख हुआ, उन्होने तीनों भाईयों को समझाने की कोशिश की "तुम तीनों भाईयों क्यों कारागार में जाना चाहते हो?" पर तीनों ने कहा कि वे कौशिश करेंगे कि उन्हें कारागार में न जाना पड़े। इसके बाद तीनों भाईयों सोन सागर भैंस को दूसरे जानवरों के साथ चराने लगे। देखते ही देखते जन्माष्टमी की रात आ गई। तीनों भाईयों ने क्या किया पता है, सोन सागर भैंस के गले में घंटी बाँध दी। रात बढ़ती गई। भैंस एक डबरे के अन्दर चली गई। बड़ा भाई कठैता भैंस पर न रखा और सेल्हन और कौबिया वहीं पर सो गए। पर जैसे रात बढ़ती गई, कठैता को भी बड़ी ज़ोर की नींद लगी और वह भी सो गया। सोन सागर भैंस उसी वक्त डबरे से निकलकर शिव मन्दिर में चली गई। हर साल जन्माष्टमी की रात में राजकुमारी खौइलन उसी मन्दिर में पूजा करने आती थी। और जैसे ही सोन सागर सोने का बच्चे को जनम देती, राजकुमारी खौइलन उसे कलश की तरह चढ़ाती थी। उसे भगवान शंकर ने आशीर्वाद दिया था कि जन्माष्टमी में उसे अपना पति मिलेगा। राजकुमारी नहाने जा रही थी। सोन सागर भैंस जैसे ही सोने का बच्चे को जन्म दिया, राजकुमारी खौइलन तुरन्त उसे अपनी साड़ी में छिपा ली और फिर नहाने चली गई। सोने सागर भैंस उसी डबेर में वापस चली गई। कठैती की सबसे पहले नींद खुल गई - वह तुरन्त डबरे भीतर गया और फिर हैरान खड़ा रह गया। सेलहन और कोबिया भी नींद खुलते ही अन्दर गया और कठैता को हैरान देख ही समझ गया। अब क्या होगो? तीनों भाईयों बड़े दुःखी होकर खड़े रह गये - इसके बाद कठैता नेें बुद्धिमत्ता का परिचय दिया - उसने ध्यान से जंमीन की और देखने लगा - ये तो सोन सागर के पाव का निशान - तो इसका मतलब है कि वह कहीं बाहर गई थी। सेल्हन और कोबिया उस डबरे के भीतर ही ढूंड रहे थे अगर सोने का बच्चा उन्हें वही कही मिल जाये। इधर कठैता सोन सागर के पांव के निशान के साथ चलता गया, चलता गया - जब वह शिव मन्दिर तक पहुँच गया तो देखा कि राजकुमारी खौइलन नहाके आ रही थी। कठैता को लगा कि राजकुमारी कुछ छिपा कर ले जा रही थी। उसने पुछ राजकुमारी से, तो राजकुमारी बहुत नाराज़ हो गई। दोनों जैसे झगड़ ही रहे थे कि अचानक सोने का बच्चा गिर गया। राजकुमारी को अचानक याद आई कि भगवान शंकर ने तो मुझे वरदान दी थी कि मुझे मेरा पति यँही मिलेगा। उसने कठैता को पूरी बात बता दी। कठैता बड़ा खुश होकर सोने के बच्चे को लेकर राजा के पास पहुँचा। राजा पहले तो आश्चर्य चकित रह गये - उसके बाद अपना वचन पूरा किया। इसी तरह कठैता और खोइलन की शादी हो गई। श्रेणीःलोकगीत श्रेणीःछत्तीसगढ़ के लोकगीत.
बार्तोलोमियो क्रिस्टोफोरी डि फ्राँसेस्को (४ मई १६५५- २७ जनवरी १७३१) इटली के रहने वाले व संगीत वाद्ययंत्रों के निर्माता थे। इन्हें पियानो वाद्य यंत्र के आविश्कारक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म वेनिस गणराज्य के वादुआ नामक शहर में हुआ था। .
बिरहा लोकगायन की एक विधा है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार के भोजपुरीभाषी क्षेत्र में प्रचलित है। बिरहा प्रायः अहीर लोग गाते हैं । इसका अतिम शब्द प्रायः बहुत खींचकर कहा जाता है । जैसे, - बेद, हकीम बुलाओ कोई गोइयाँ कोई लेओ री खबरिया मोर । खिरकी से खिरकी ज्यों फिरकी फिरति दुओ पिरकी उठल बड़ जोर ॥ बिरहा, 'विरह' से उत्पन्न हुई है जिसमें लोग सामाजिक वेदना को आसानी से कह लेते हैं और श्रोता मनोरजंन के साथ-साथ छन्द, काव्य, गीत व अन्य रसों का आनन्द भी ले पाते हैं। बिरहा अहीरों, जाटों, गुजरों, खेतिहर मजदूरों, शहर में दूध बेचने वाले दुधियों, लकड़हारों, चरवाहों, इक्का, ठेला वालों का लोकप्रिय हृदय गीत है। पूर्वांचल की यह लोकगायकी मनोरंजन के अलावा थकावट मिटाने के साथ ही एकरसता की ऊब मिटाने का उत्तम साधन है। बिरहा गाने वालों में पुरुषों के साथ ही महिलाओं की दिनों-दिन बढ़ती संख्या इसकी लोकप्रियता और प्रसार का स्पष्ट प्रमाण है। आजकल पारम्परिक गीतों के तर्ज और धुनों को आधार बनाकर बिरहा काव्य तैयार किया जाता है। 'पूर्वी', 'कहरवा', 'खेमटा', 'सोहर', 'पचरा', 'जटावर', 'जटसार', 'तिलक गीत', 'बिरहा गीत', 'विदाई गीत', 'निर्गुण', 'छपरहिया', 'टेरी', 'उठान', 'टेक', 'गजल', 'शेर', 'विदेशिया', 'पहपट', 'आल्हा', और खड़ी खड़ी और फिल्मी धुनों पर अन्य स्थानीय लोक गीतों का बिरहा में समावेश होता है। बिरहा के शुरूआती दौर के कवि 'जतिरा', 'अधर', 'हफ्तेजूबान', 'शीसा पलट', 'कैदबन्द', 'सारंगी', 'शब्दसोरबा', 'डमरू', 'छन्द', 'कैद बन्द', 'चित्रकॉफ' और 'अनुप्राश अलंकार' का प्रयोग करते थे। यह विधा भारत के बाहर मॉरीसस, मेडागास्कर और आस-पास के भोजपुरी क्षेत्रों की बोली वाले क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाकर दिनों-दिन और लोकप्रिय हो रही है। .
"द बैगपाइपर", १७वीं शताब्दी, नीदरलैण्ड का एक चित्र। बैगपाइप एक पश्चिमी वाद्य यन्त्र है। यह मूल रूप से स्कॉटलैण्ड का वाद्य यन्त्र है। बैगपाइप भारत के उत्तरांचल प्रान्त में काफी प्रचलित है। यह वहाँ के विभिन्न पारम्परिक समारोहों तथा आयोजनों में बजाया जाता है। स्थानीय बोली में इसका प्रचलित नाम "पाइप" अथवा "बीन-बाजा" है, यह अन्य स्थानीय वाद्य यन्त्रों "ढोल-दमों" के साथ बजाया जाता है। उत्तरांचल में इसके प्रचलन के पीछे अनुमान लगाया जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल गढ़वाली, कुमाऊंनी सैनिकों ने इसे प्रचलित किया। श्रेणीःसंगीत श्रेणीःवाद्य यन्त्र lmo:Baghèt.
मुस्तफ़ा क़न्दराली (जन्म 1930, कन्दरा, कोजाएली, तुर्की) तुर्क क्लारिनेट (संगीत यंत्र) के लिए प्रसिद्ध थे। वे तुर्क और जिप्सी संगीत में रुचि रखते थे। .
अनुनादी बक्से के उपर स्थापित "'स्वरित्र"' स्वरित्र (tuning fork) एक सरल युक्ति है जो मानक आवृत्ति की ध्वनि पैदा करने के काम आती है। संगीत के क्षेत्र में इसका उपयोग एक मानक पिच (pitch) उत्पादक के रूप में अन्य वाद्य यंत्रों को ट्यून करने में होती है। यह देखने में अंग्रेजी के यू आकार वाले फोर्क की तरह होता है। यह प्रायः इस्पात या किसी अन्य प्रत्यास्थ धातु का बना होता है। इसे किसी वस्तु के उपर ठोकने पर एक निश्चित आवृत्ति की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति इसके फोर्कों की लम्बाई तथा फोर्कों के प्रत्यास्थता पर निर्भर करती है। .
भारत-पाकिस्तान-अफ़्ग़ानिस्तान में लोकप्रीय हस्त-चालित शैली का एक हारमोनियम हारमोनियम (Harmonium) एक संगीत वाद्य यंत्र है जिसमें वायु प्रवाह किया जाता है और भिन्न चपटी स्वर पटलों को दबाने से अलग-अलग सुर की ध्वनियाँ निकलती हैं। इसमें हवा का बहाव पैरों, घुटनों या हाथों के ज़रिये किया जाता है, हालाँकि भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल होने वाले हरमोनियमों में हाथों का प्रयोग ही ज़्यादा होता है। हारमोनियम का आविष्कार यूरोप में किया गया था और १९वीं सदी के बीच में इसे कुछ फ़्रांसिसी लोग भारत-पाकिस्तान क्षेत्र में लाए जहाँ यह सीखने की आसानी और भारतीय संगीत के लिए अनुकूल होने की वजह से जड़ पकड़ गया। हारमोनियम मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। ये विभाजन संभवता उनके निर्माण स्थान अथवा निर्माण में पर्युक्त सामिग्री की गुणवत्ता के आधार पर होता है। इसके प्रकार है - १.ब्रिटिश २.जर्मन ३.खरज। अपने निर्माण की शैली या स्थान के अनुसार इनके स्वरों की मिठास में अंतर होता है जिसे योग्य संगीतज्ञ ही पहचान सकता है। हारमोनियम भारतीय शास्त्रीय संगीत का अभिन्न हिस्सा है। हारमोनियम को सरल शब्दों में "पेटी बाजा" भी कहा जाता है। .
होर्नबोस्तेल-साक्स (Hornbostel-Sachs) संगीत वाद्य यंत्रों को वर्गीकृत करने की एक प्रणाली है। इसका संगठन एरिख़ मोरित्ज़ फ़ोन होर्नबोस्तेल और कर्ट साक्स ने किया था और इसका प्रथम प्रकाशन सन् १९१४ में "ज़ाइट्श्रिफ़्ट फ़्युएर एत्नोलोजी" (Zeitschrift für Ethnologie) में हुआ था। .
वाद्य संगीत ऐसी संगीत रचना होती है जिसमें बोल और गायन नहीं होते हैं। ऐसे संगीत की रचना पूर्ण रूप से वाद्य यन्त्र पर की जाती है। ऐसी रचना संगीत रचयिता स्वयं अपने किसी प्रदर्शन के लिये कर सकता है। वाद्य संगीत की परम्परा पश्चिमी संस्कृति और भारत में बहुत प्राचीन है। भारत में बहुत पहले समय से वीणा के उपयोग से वाद्य संगीत की रचना की जाती थी। .
वाद्यशास्त्र (Organology) संगीत वाद्य यंत्रों व उनके वर्गीकरण के अध्ययन को कहते हैं। इसमें वाद्यों के इतिहास, विकास, अलग-अलग संस्कृतियों में प्रयोग, ध्वनी-उत्पत्ति के तकनीकी पहलू सभी शामिल हैं। .
संगीत वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में, वायुस्वरी या एरोफ़ोन (Aerophone) ऐसे वाद्य हैं जिनमें ध्वनी किसी वायु-समूह में कम्पन पैदा करने से होती है। इसका उदाहरण बाँसुरी है। .
वायुवाद्य या सुषिर वाद्य (wind instrument) संगीत में ऐसा वाद्य यंत्र होता है जो एक या एक से अधिक अनुनादक (रेज़ोनेटर) में उपस्थित वायु में कम्पन पैदा करने से धवनि उत्पन्न करे। इसमें आमतौर में एक मुहनाल बनी होती है जिस से बजाने वाला मुँह लगाकर श्वास द्वारा वाद्य को बजाता है। शहनाई, बाँसुरी, इत्यादि वायुवाद्यों की श्रेणी में आते हैं। .
संगीत वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में, विद्युतस्वरी या इलेक्ट्रोफ़ोन (Electrophone) ऐसे वाद्य होते हैं जिनमें ध्वनी विद्युत के प्रयोग से होती है। इसका उदाहरण थेरेमिन है। .
गंधर्व वेद चार उपवेदों में से एक उपवेद है। अन्य तीन उपवेद हैं - आयुर्वेद, शिल्पवेद और धनुर्वेद। गन्धर्ववेद के अन्तर्गत भारतीय संगीत, शास्त्रीय संगीत, राग, सुर, गायन तथा वाद्य यन्त्र आते हैं। .
हैरी बेलाफोन्ट 1954 गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है। गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है। पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं। .
एक क्लासीकल गिटार गिटार (अंग्रेज़ीः Guitar) एक लोकप्रिय वाद्य यन्त्र जिसमें तार (जो कि आमतौर पर छह होते हैं) के बजाने से ध्वनि उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रिक गिटार में विद्युत प्रवर्धन (इलेक्ट्रिकल एम्पलीफिकेशन) की मदद से ध्वनि उत्पन्न होती है। .
गजनी (2008 फ़िल्म)
ग़जनी (घजनी) गीता आर्ट्स के बैनर तले बनी ए.आर. मुरुगाडोस द्वारा निर्देशित एवं निर्मित 2008 की एक बॉलीवुड फिल्म है। तमिल फिल्म जो मुरुगाडोस द्वारा ही निर्देशित थी, इसी नाम से बनी ग़जनी की पटकथा क्रिस्टोफ़र नोलन द्वारा लिखित तथा निर्देशित हॉलीवुड की फिल्म "मेमेंटो" पर आधारित है। इसकी मुख्य भूमिका में आमिर खान और असिन है जबकि जिया खान, प्रदीप रावत और रियाज़ खान सहायक भूमिकाओं में हैं। आमिर खान ने इस भूमिका के लिए अपने निजी प्रशिक्षक के साथ लगातार एक साल अपनी निजी व्यायामशाला में प्रशिक्षण के लिए बिताया। यह फिल्म मारधाड़ वाली अपने रोमांटिक तत्वों के साथ एक्शन-थ्रिलर फिल्म है जो कि उच्च प्रकृति के पूर्व स्मृति लोप (एंटीरोग्रेड एम्नेसिया) रोग से ग्रस्त एक अमीर व्यापारी की जिंदगी की छानबीन करती है, जिसे यह रोग अपनी प्रेयसी मॉडल कल्पना की एक हिंसक मुठभेड़ में हत्या के कारण हो जाता है। वह पोलोरोयड इंस्टैंट कैमरा के फोटोग्राफ्स एवं चिरस्थायी टैटूज के जरिये हत्या का बदला लेने की कोशिश करता है। आमिर खान का चरित्र ग़जनी द गेम शीर्षक वाले 3-डी वीडियो गेम में, जो इसी फिल्म पर आधारित है, विशेष स्थान पाएगा. .
संगीत वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में, कम्पनस्वरी या इडियोफ़ोन (Idiophone) वे वाद्य हैं जिनका पूरा शरीर बिना झिल्ली या तंतु (तार) के प्रयोग के कांपता है और उस कम्पन से ध्वनी उत्पन्न करता है। इसका उदाहरण झांझ है। .
यहां पुनर्निर्देश करता हैः
वाद्य यंत्र, वाद्य यंत्रों, संगीत वाद्य यंत्र, संगीत वाद्यों।
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हितकर नही होता, क्योकि उसका किया हुआ तप भी दूसरों को तपाने के लिए होता है या प्रदर्शन के द्वारा अहंभाव की वृद्धि के लिए ही होता है।
५. लाभ - कषाय - युक्त आत्मा के लिए ससार पक्ष में धन-धान्य का लाभ तथा साधु- पक्ष में उत्तम वस्तुओ एवं लब्धियों का लाभ भी हितकर नही होता, क्योंकि वह उनका दुरुपयोग करता है। धन-मद में चूर होकर व्यक्ति लोगो का तिरस्कार करता है और साधारण से अपराध पर अपनी लब्धियों द्वारा साधु लोगो के विनाश के लिए प्रस्तुत हो जाता है, अत सकषायी आत्मा के लिए उत्तम लाभ भी हानिकर हो जाता है।
६. पूजा - सत्कार - कषायशील व्यक्ति की अधिक प्रशंसा तथा वस्त्र आदि उत्तम वस्तुओं से सम्मान, पुरस्कार एव प्रतिष्ठा आदि भी उसके पतन का कारण बन जाता है। जैसे दुर्बल व्यक्ति के लिए पौष्टिक पदार्थ हानिकारक होते है, वैसे ही कषाय- युक्त व्यक्ति के लिए दीक्षा - पर्याय, परिवार, सूत्रज्ञान, तप, लाभ और पूजा-सत्कार ये सब मंगलकारी होने पर भी अनिष्टकारी बन जाते हैं। जैसे दूध अमृततुल्य होते हुए भी सर्प उसे विष के रूप में परिणत कर देता है, वैसे ही कषाययुक्त व्यक्ति भी इन सद्गुणों को दुर्गुण बना देता है।
यही छ. बाते कषाय युक्त आत्मार्थी के लिए शुभ है। वह इनको धर्मसाधना या धर्म का प्रभाव समझकर इनके सदुपयोग के लिए कृत संकल्प रहता है। उसकी दीक्षा पर्याय सयम की वृद्धि के लिए, सुशिष्य परिवार प्रवचन - प्रभावना एव शासनोत्रति के लिए, विद्वत्ता ज्ञान - सवर्धन के लिए, तप कर्म-निर्जरा के लिए, लाभ चतुर्विध सघ के लिए और पूजा-सत्कार केवल धर्म-महिमा बढ़ाने के लिए होते है। जो व्यक्ति कषाय मुक्त होकर निजस्वरूप में अवस्थित है, वे ही वास्तव में आत्मवान् कहे जाते है।
ये छः पदार्थ शुभकर्मोदय का तथा आवरण एव अंतराय के क्षयोपशम के फल के रूप में प्राप्त होते हैं, जैसे कि पर्याय आयुष्कर्म का फल है, परिवार साता- वेदनीय आदि कर्मों का फल है, श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम का सुपरिणाम विद्वत्ता है, तप, लाभ, पूजा-सत्कार ये उच्च गोत्र के उदय से और अतराय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होते है। अतः इनके मिलने पर अहकार करना व्यर्थ ही है। यह समझते हुए आत्मवान् पुरुष इनके सदुपयोग के लिए यत्नशील रहते है।
आर्यजाति और आर्यकुल
मूल- छव्विहा जाइआरिआ मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहाअंबट्ठा य कलंदा य, वेदेहा वेदिगाइया । हरिया चुंचुणा चेव, छप्पेया इब्भजाइओ ॥ १ ॥
पष्ठ स्थान
छव्विहा कुलारिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा - उग्गा, भोगा, राइन्ना, इक्खागा, णाया, कोरव्वा ॥ २३ ॥
छाया - षड्विधा जात्यार्या मनुष्याः प्रज्ञप्तास्तद्यथाअम्बष्ठाश्च कलन्दाश्च, वैदेहा वैदिकादिकाः । हरिताश्चुञ्चुनाश्चैव, षडेते इभ्यजातिकाः ॥ १ ॥ षड्विधाः कुलार्या मनुष्याः प्रज्ञप्तास्तद्यथा- उग्राः, भोगाः, राजन्या, इक्ष्वाकाः, कौरव्याः ।
मूलार्थ - छः प्रकार के जात्यार्य वर्णन किए गए हैं, जैसे - अम्बष्ठ, कालन्द, वैदेह, वैदिकादिक, हरित और चुञ्चुन । ये छहों इभ्य जातियां है।
छः प्रकार के कुलार्य मनुष्य कथन किए गए हैं, जैसे- उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाक, ज्ञात और कौरव्य ।
विवेचनिका- पूर्व सूत्र के द्वितीय अंश में उन कषाय- मुक्त व्यक्तियो का वर्णन किया गया है जिनके लिए पर्याय, श्रुत एव परिवार आदि शुभानुबन्धी बन जाते है। शुभानुबन्धी आत्माएं ही वैभव-सम्पन्न एव कुलीन होती है, अतः प्रस्तुत सूत्र मे सूत्रकार भारतवर्ष की उन छः जातियों का उल्लेख करते हैं जो वैभव की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध मानी जाती थी और उन छः भारतीय कुलों का उल्लेख करते हैं जिन्हें आर्य-वर्ग में कुलीन माना जाता था।
अम्बष्ठ, कालन्द, वैदेह, वैदिक, हारित और चुंचुन ये छः जातिया इभ्य अर्थात् समृद्ध कहलाती है। इभ्य शब्द का अर्थ वृत्तिकार लिखते है - "इभमर्हन्तीति इभ्याःयद्रव्यस्तूपान्तरित उच्छितकदलिकादण्डो हस्ती न दृश्यते, ते इभ्या इति श्रुतिः " जिसके घर में इतनी धनराशि हो जिसकी ओट मे खडा हुआ हाथी भी न दीख सके वह इभ्य कहलाता है। जाति शब्द मातृपक्ष से सम्बन्ध रखता है, अतः आर्य जाति का अर्थ हैनिर्दोष विशुद्ध मातृपक्ष वाली आर्य जाति। इस कथन से यह भी संकेत प्राप्त होता है कि प्राचीन भारत मे ये छः जातिया अत्यन्त समृद्ध थीं।
आर्य-कुल उसे कहते हैं, जिसका पैतृक पक्ष विशुद्ध एव निर्दोष तथा निष्कलंक हो । प्राचीन भारत मे आर्यकुल भी छः थे, जैसे कि - उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाककुल, ज्ञात- कुल और कौरव्य - कुल। ये कुल अन्य कुलों से विशेष श्रेष्ठ माने जाते थे। ये ऋषभदेव जी ने आरक्षण का दायित्व सम्भालने वाले जो कुल स्थापित किए थे वे उग्रकुल .कहलाए, जो गुरुत्व-भाव से स्थापित किए थे वे भोगकुल कहलाए, जो मित्र - भाव से स्थापित किए गए या स्वीकृत किए गए वे राजन्य - कुल माने गए, जिस वंश मे ऋषभदेव जी उत्पन्न हुए थे उस वंश में जो उत्पन्न हुए वे इक्ष्वाककुल कहलाए। भगवान महावीर के श्री स्थानाङ्ग सूत्रम
पूर्वज जिस कुल मे उत्पन्न हुए, वे ज्ञात और शान्तिनाथ जी का कुल कौरव्य कहलाता है।
भारतीय ऐतिहासिक परम्परा मे इभ्य जातिया अब अपना अस्तित्व किस रूप में एवं किस नाम से बचाए हुए है, यह ऐतिहासिक शोध का विषय है। यद्यपि भारत के प्रायः सभी लोग समृद्ध थे, आर्यकुलो मे भी समृद्धियो की कमी न थी, फिर भी सूत्रकार ने 'इभ्य' आर्य-जातियों को पृथक् रखा है। इसका कोई विशेष कारण अवश्य रहा होगा।
मातृपक्ष की विशुद्धता एवं प्रधानता सतति मे विनीतता एव लज्जालुता सिद्ध करती है और पितृ पक्ष की विशुद्धता एवं प्रधानता वीरता - धीरता प्रदर्शित करती है। क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था प्रायः पितृ-पक्ष प्रधान ही रही है।
यह भी सभव है कि आर्य-जाति उन्हें कहा गया हो जिनका जन्म ऐसी कुल-परम्पराओ मे हुआ हो जिन्होने विशुद्ध एवं सात्विक आचरण वाली विदेशी महिलाओ से विवाह कर लिया हो और साथ ही वे कन्या- पक्ष की अतुल विदेशी सम्पत्ति भारत मे भी ले आए हो और ऐसे लोगों के धीरे-धीरे आर्य-कुलो के अलग वर्ग स्थापित हो गए हों। पालित श्रावक का विवाह विदेशी वणिक पुत्री से हुआ था। (उत्तरा० २१वा अध्ययन) चन्द्रगुप्त का यूनानी सैल्यूकस की लड़की से विवाह भी प्रसिद्ध है, उसके साथ अतुल सम्पत्ति का आना भी इतिहास-सम्मत है।
हो सकता है कि अपनी सुदीर्घ विकास-परम्परा में ये आर्य जाति धीरे-धीरे आर्य-कुलो मे विलीन हो गई हों। ये सब मेरी सम्भावनाए है जो वास्तविकता के लिए ऐतिहासिक विश्लेषण की अपेक्षा रखती हैं।
लोक स्थिति
मूल- छव्विहा लोगट्ठिई पण्णत्ता, तं जहा- आगासपइट्ठिए वाए, वायपइट्ठिए उदही, उदही पइट्ठिया पुढवी, पुढवी- पइट्ठिया तसा थावरा पाणा, अजीवा - जीवपइट्ठिया, जीवा कम्मपट्ठिया ॥ २४ ॥
छाया - षड्विधा लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता तद्यथा-आकाशप्रतिष्ठितो वातः, वातप्रतिष्ठितः उदधि, उदधिप्रतिष्ठिता पृथ्वी, पृथिवी प्रतिष्ठिताः त्रसाः, स्थावराः प्राणिनः, अजीवा जीवप्रतिष्ठिताः, जीवाः कर्मप्रतिष्ठिताः ।
मूलार्थ - छः प्रकार की लोक- स्थिति बतलाई गई है, जैसे कि आकाश - प्रतिष्ठित वायु है, वायु-प्रतिष्ठित उदधि है, उदधि- प्रतिष्ठित पृथ्वी है, पृथ्वी - प्रतिष्ठित त्रस - स्थावर प्राणी हैं, अजीव जीव-प्रतिष्ठित हैं और जीव कर्म- प्रतिष्ठित है।
विवेचनिका - पूर्व सूत्र में जाति आर्यों और कुल आर्यों का वर्णन किया गया है। उन
आर्य मनुष्यों की स्थिति लोक मे ही है, अतः अब सूत्रकार लोक स्थिति के विषय का साकेतिक वर्णन प्रस्तुत करते है -
लोकस्थिति छः प्रकार की है- आकाश के आधार पर वात, [ तनुवात और घनवात इन दोनों का समावेश वात में ही हो जाता है] वात के आधार पर घनोदधि, घनोदधि के आधार पर पृथ्वी, पृथ्वी के आधार पर त्रस और स्थावर प्राणी रहते है। अजीव जीव के आधार पर आधारित हैं और जीव स्वकृत कर्मों पर प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार लोकस्थ पदार्थो का आधार और आधेयभाव सूत्रकार ने वर्णित किया है।
यद्यपि उपर्युक्त विषय भूगोल- शास्त्र का है, परन्तु सर्वज्ञ दृष्टि अध्यात्म-साधक को उस आधार से परिचित करा देना चाहती है जहा पर अवस्थित होकर वह 'साधना' के लिए प्रयत्नशील रहता है।
इस प्रसंग में शका हो सकती है कि वायु के आधार पर घनोदधि और उसके आधार पर पृथ्वी, ये दोनों वायु पर कैसे ठहर सकते है ? इस शका का समाधान यह है- यदि कोई मनुष्य चमडे की मशक को फूंकनी से भरकर वायु भर दे, उसके मुंह को चमड़े की डोरी से बाध दे। उसी मशक के ठीक मध्य भाग को भी बाध दे, ऐसा करने से उस मशक के दो भाग हो जाएगे जिस से वह मशक डमरू के सदृश लगने लग जाएगी। तब मशक का मुह खोलकर ऊपर के भाग में से के भाग में से वायु को निकाल दिया जाए और उसकी जगह पानी भर कर उस मशक का मुह बंद कर दें और बीच का बंधन बिल्कुल खोल दे। तत्पश्चात् ऐसा देखने में आएगा कि पानी मशक के ऊपर के भाग में ही रहेगा नीचे नहीं जा सकेगा क्योकि ऊपर के भाग मे जो पानी है उसका आधार मशक के नीचे के भाग का वायु है। जैसे मशक घनवायु के आधार पर पानी ऊपर रहता है, वैसे ही पृथ्वी आदि भी घनवायु के आधार पर टिके हुए है। (भगवती सूत्र १, उ ६)
घनवायु मे वजन उठाने का कितना बल है? इसे स्पष्ट करने के लिए अब दूसरा उदाहरण लीजिए - पहियों मे भरी हुई घनवायु के आधार पर सैकडो मनो एव टनो का भार ट्राली, बस, ट्रक आदि आधुनिक वाहन एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते है, यह सब घनवायु का ही प्रभाव है। अतः सिद्ध हुआ कि घनोदधि और पृथ्वी दोनो का आधार घनवायु । त्रस एवं स्थावर प्राणियों का आधार पृथ्वी है।
इस प्रकार सूत्रकार का कथन सत्य है कि- आकाश के आधार पर वायु है, आधार पर घनोदधि है और घनोदधि के आधार पर पृथ्वी ।
जीव के आधार पर अजीव अवस्थित है अर्थात् सचेतन दृश्यमान स्थूल शरीर का आधार जीव है। इतना ही नहीं अपने ऊपर उठाए हुए वस्त्र - आभूषण तथा अन्य जड पदार्थो का आधार भी जीव है। अजीव का विकास भी जीव ही करता है। अतः उसकी कार्य - रूपता जीवाश्रित है।
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इसाबेल तूफान (2003) के रूप में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के 7 अभियान के दौरान कक्षा से देखा. आंख, आईव़ोल और आसपास के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशेषता rainbands स्पष्ट रूप से कर रहे हैं अंतरिक्ष से इस दृश्य में दिखाई देता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान प्रणाली है जो एक विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावातों द्वारा चरितार्थ होती है और जो तीव्र हवाओं और घनघोर वर्षा को उत्पन्न करती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है। वे अन्य चक्रवात आंधियों जैसे नोर'ईस्टर, यूरोपीय आंधियों और ध्रुवीय निम्न की तुलना में विभिन्न ताप तंत्रों द्वारा उत्पादित होते है, अपने "गर्म केंद्र" आंधी प्रणाली के वर्गीकरण की ओर अग्रसर होते हुए.
विश्व मानचित्र अंतर ऊष्ण कटिबंध को लाल पट्टी से दर्शाते हुए। मौसमी क्षेत्र ऊष्णकटिबंध (Tropics) दुनिया का वह कटिबंध है जो भूमध्य रेखा से अक्षांश २३°२६'१६" उत्तर में कर्क रेखा और अक्षांश २३°२६'१६" दक्षिण में मकर रेखा तक सीमित है। यह अक्षांश पृथ्वी के अक्षीय झुकाव (Axial tilt) से संबन्धित है। कर्क और मकर रेखाओं में एक सौर्य वर्ष में एक बार और इनके बीच के पूरे क्षेत्र में एक सौर्य वर्ष में दो बार सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है। विश्व की आबादी का एक बड़ा भाग (लगभग ४०%) इस क्षेत्र में रहता है और ऐसा अनुमानित है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण यह आबादी और बढ़ती ही जायेगी। यह पृथ्वी का सबसे गर्म क्षेत्र है क्योंकि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण सूर्य की अधिकतम ऊष्मा भूमध्य रेखा और उसके आस-पास के इलाके पर केन्द्रित होती है। .
फ़रवरी 27, 1987 को बेरिंट सागर के ऊपर ध्रुवीय ताप चक्रवात (साइक्लोन) घूमती हुई वायुराशि का नाम है। उत्पत्ति के क्षेत्र के आधार पर चक्रवात के दो भेद हैं.
---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैंः- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। .
thumbnail टेक्सास (Texas) संयुक्त राज्य अमेरिका का एक दक्षिणी प्रान्त है। स्थितिः 31 डिग्री 40 मिनट उ. अ. तथा 98 डिग्री 30 मिनट पं॰ दे.। यह संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिणी मध्य राज्यों में से एक राज्य है। इसके पूर्व में लुइज़िऐना (Louisiana) और आरकैनसस (Arkansas), पश्चिम में न्यूमेक्सिको, उत्तर में आरकैनसस तथा ओक्लाहोमा (Oklahoma) तथा दक्षिण में मेक्सिको एवं मेक्सिको की खाड़ी स्थित है। इस राज्य का क्षेत्रफल 2,67,339 वर्ग मील है जिसमें से 3,695 वर्ग मील क्षेत्र जल से घिरा हुआ है। इसकी राजधानी ऑस्टिन (Austin) है। टक्सैस की ढाल गल्फ कोस्ट से उत्तर, उत्तर-पश्चिम और पश्चिम की ओर है। सुदूर उत्तर-पश्चिम तथा पश्चिम में इसकी ऊँचाई 4,000 फुट है। सुदूर पश्चिम में रॉकी पर्वतमाला की पूर्वी शाखा इसे पार करती है, जिसकी मुख्य चोटियाँ ग्वॉडलूप (Guadalupe) 8,715 फुट, लिवरमूर (Livermore) 8,382 फुट तथा ऐमॉरी (Emory) 7,835 फुट ऊँची हैं। यहाँ की मुख्य नदियाँ रीओग्रैंड, न्यूएसेस, सैन ऐनटोनिओ, ग्वॉडलूप, कॉलोरॉडो, ब्रैजस, ट्रिनिटी, नेचेज तथा साबीन हैं। टेक्सैस के निम्नलिखित चार प्राकृतिक भाग हैंः 1.
नील नदी का डेल्टा नदीमुख-भूमि या डेल्टा नदी के मुहाने पर उसके द्वारा बहाकर लाय गए अवसादों के निक्षेपण से बनी त्रिभुजाकार आक्रति होती हैं। डेल्टा का नामकरणकर्त्ता हेरोडोड़स को माना जाता हैं। .
आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .
हिन्दू काल गणना के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमा वस्या के अन्त तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है। तिथि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है। तिथि .
तूफ़ान या आँधी पृथ्वी या किसी अन्य ग्रह के वायुमंडल में उत्तेजना की स्थिति को कहते हैं जो अक्सर सख़्त मौसम के साथ आती है। इसमें तेज़ हवाएँ, ओले गिरना, भारी बारिश, भारी बर्फ़बारी, बादलों का चमकना और बिजली का चमकना जैसे मौसमी गतिविधियाँ दिखती हैं। आमतौर पर तूफ़ान आने से साधारण जीवन पर बुरा असर पड़ता है। यातायात और अन्य दैनिक क्रियाओं के अलावा, बाढ़ आने, बिजली गिरने और हिमपात से जान व माल की हानि भी हो सकती है। रेगिस्तान जैसे शुष्क क्षेत्रों में रेतीले तूफ़ान और समुद्रों में ऊँची लहरों जैसी ख़तरनाक स्थितियाँ भी पैदा हो सकती हैं। इसके विपरीत बारिश व हिमपात से कुछ इलाक़ों में सूखे की समस्या में मदद भी मिल सकती है। मौसम-वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि हर साल पृथ्वी पर लगभग १.६ करोड़ गरज-चमक वाले तूफ़ान आते हैं।, Seymour Simon, pp.
दक्षिणावर्त (कलॉकवाइज़) का अर्थ इस प्रकार घूमना है कि घूमने की दिशा दाहिने हाथ (दक्षिण हस्त) की तरफ हो, अर्थात घड़ी की सुइयों के घूमने की दिशा। date.
अपोलो १७ से पृथ्वी के एक प्रसिद्ध तस्वीर में मूल रूप से शीर्ष पर दक्षिण ध्रुव था, हालांकि, यह परंपरागत दृष्टिकोण फिट करने के लिए ऊपर से नीचे कर दिया गया था दक्षिणी गोलार्ध पीले में दर्शित दक्षिणी गोलार्ध दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से दक्षिणी गोलार्ध किसी ग्रह का वह आधा भाग होता है, जो उसकी विषुवत रेखा के नीचे (दक्षिणी ओर) होता है। गोलार्ध का शाब्दिक अर्थ है आधा गोला। हमारा ग्रह अक्षवत् दो भागों में बंटा है, जिन्हे उत्तरी गोलार्ध व दक्षिणी गोलार्ध कहते हैं। उत्तरी गोलार्ध का उत्तरी छोर तथा दक्षिणी गोलार्ध का दक्षिणी छोर बहुत ठंडे स्थान होने के कारण वहाँ बर्फ का साम्राज्य रहता है। दक्षिणी गोलार्ध के दक्षिणी ध्रुव पर तो बर्फ से बना विशाल महाद्वीप ही मौजूद है। दक्षिणी गोलार्ध में पांच महाद्वीप-आस्ट्रेलिया,नौ-दसवा दक्षिण अमेरिका,एक तिहाई अफ्रीका तथा एशिया के कुछ दक्षिणी द्वीपों मौजूद है। दक्षिण गोलार्द्ध चार महासागरों- हिन्द महासागर, अन्ध महासागर, दक्षिणध्रुवीय महासागर और प्रशान्त महासागर मौजूद है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव की वजह से उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु, दक्षिणायन (२२ दिसंबर के आसपास) से वसंत विषुव (लगभग २१ मार्च) तक चलता है और शीत ऋतु, उत्तरायण (२१ जून) से शरद विषुव (लगभग २३ सितंबर) तक चलता है। .
इस कमानी व भार के भौतिक तंत्र में दोलन देखा जा सकता है दोलन (oscillation) एक लगातार दोहराता हुआ बदलाव होता है, जो किसी केन्द्रीय मानक स्थिति से बदलकर किसी दिशा में जाता है लेकिन सदैव लौटकर केन्द्रीय स्थिति में आता रहता है। अक्सर केन्द्रीय स्थिति से हटकर दो या दो से अधिक ध्रुवीय स्थितियाँ होती हैं और दोलती हुई वस्तु या माप इन ध्रुवों के बीच घूमता रहता है लेकिन किन्ही दो ध्रुवों के बीच की दूरी तय करते हुए केन्द्रीय स्थिति से अवश्य गुज़रता है। किसी भौतिक तंत्र में हो रहे दोलन को अक्सर कम्पन (vibration) कहा जाता है। .
चिकित्सा के क्षेत्र में निश्चेतनता (Coma .
साधारण ताप पर पारा द्रव रूप में होता है। पारे का अयस्क पारा या पारद (संकेतः Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती है। .
पुर्तगाली भाषा (पुर्तगालीः Língua Portuguesaपोर्तुगेस, पोर्तुगेश) एक यूरोपीय भाषा है। ये मूल रूप से पुर्तगाल की भाषा है और इसके कई भूतपूर्व उपनिवेशों में भी बहुमत भाषा है, जैसे ब्राज़ील। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसकी लिपि रोमन है। इस भाषा के प्रथम भाषी लगभग २० करोड़ हैं। .
प्रमुख का अर्थ विशेष है। .
श्रेणीःप्रशान्त महासागर प्रशान्त महासागरप्रशान्त महासागर अमेरिका और एशिया को पृथक करता है। यह विश्व का सबसे बड़ा तथा सबसे गहरा महासागर है। तुलनात्मक भौगौलिक अध्ययन से पता चलता है कि इस महासागर में पृथ्वी का भाग कम तथा जलीय क्षेत्र अधिक है। .
प्रवाह एक हिन्दी शब्द है। .
अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्यः वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्रायः चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .
फिलीपींस के प्रमुख नगर फ़िलीपीन्स दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक देश है। इसका आधिकारिक नाम 'फिलीपीन्स गणतंत्र' है और राजधानी मनीला है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित ७१०७ द्वीपों से मिलकर यह देश बना है। फिलीपीन द्वीप-समूह पूर्व में फिलीपीन्स महासागर से, पश्चिम में दक्षिण चीन सागर से और दक्षिण में सेलेबस सागर से घिरा हुआ है। इस द्वीप-समूह से दक्षिण पश्चिम में देश बोर्नियो द्वीप के करीबन सौ किलोमीटर की दूरी पर बोर्नियो द्वीप और सीधे उत्तर की ओर ताइवान है। फिलीपींस महासागर के पूर्वी हिस्से पर पलाऊ है। पूर्वी एशिया में दक्षिण कोरिया और पूर्वी तिमोर के बाद फिलीपीन्स ही ऐसा देश है, जहां ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। ९ करोड़ से अधिक की आबादी वाला यह विश्व की 12 वीं सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यह देश स्पेन (१५२१ - १८९८) और संयुक्त राज्य अमरीका (१८९८ - १९४६) का उपनिवेश रहा और फिलीपीन्स एशिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। .
अंगूठाकार फैमिली गाए (Family Guy) फैमिली गाए फ़ॉक्स ब्रॉड्कास्टिङ कम्पनी के लिये बनाया गया एक कॉमेडी शो है जिसकी रचना सेथ मक्फार्लेन ने की है। इसकी कहानी ग्रिफ़िन परिवार के बारे मे है। ग्रिफ़िन परिवार मे पिता पीटर, माँ लोइस, उनके बच्चे मेग, क्रिस व स्टीवी और उनका मानवरूपी पालतू कुत्ता ब्रायन हैं। फैमिली गाए एक काल्पनिक शहर क्वाहोग, रोड आइलैन्ड मे स्थित है। इस शो का अधिकांष हास्य मेटा-कल्पित कट-अवे के रूप में प्रदर्शित होता है जो अक्सर अमरीकी संस्कृति पर कटाक्ष करता है।.
केरल का करापुजा बांधः यह मिट्टी का बांध है। रोमनकाल में बना और अब तक उपयुक्त बाँध (स्पेन) बाँध एक अवरोध है जो जल को बहने से रोकता है और एक जलाशय बनाने में मदद करता है। इससे बाढ़ आने से तो रुकती ही है, जमा किये गया जल सिंचाई, जलविद्युत, पेय जल की आपूर्ति, नौवहन आदि में भी सहायक होती है। .
बिहार में बाढ का प्रकोप बाढ से घिरे लोग बाढ के कारण पलायन को मजबूर ग्रामीण बाढ़ बहुतायत या अधिक मात्रा में पानी का एकत्र हो जाना है। सामान्यतः यह पानी बहता भी रहता है। .
बांग्लादेश गणतन्त्र (बांग्ला) ("गणप्रजातन्त्री बांग्लादेश") दक्षिण जंबूद्वीप का एक राष्ट्र है। देश की उत्तर, पूर्व और पश्चिम सीमाएँ भारत और दक्षिणपूर्व सीमा म्यान्मार देशों से मिलती है; दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। बांग्लादेश और भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल एक बांग्लाभाषी अंचल, बंगाल हैं, जिसका ऐतिहासिक नाम "বঙ্গ" बंग या "বাংলা" बांग्ला है। इसकी सीमारेखा उस समय निर्धारित हुई जब 1947 में भारत के विभाजन के समय इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से पाकिस्तान का पूर्वी भाग घोषित किया गया। पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान के मध्य लगभग 1600 किमी (1000 मील) की भौगोलिक दूरी थी। पाकिस्तान के दोनों भागों की जनता का धर्म (इस्लाम) एक था, पर उनके बीच जाति और भाषागत काफ़ी दूरियाँ थीं। पश्चिम पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार के अन्याय के विरुद्ध 1971 में भारत के सहयोग से एक रक्तरंजित युद्ध के बाद स्वाधीन राष्ट्र बांग्लादेश का उदभव हुआ। स्वाधीनता के बाद बांग्लादेश के कुछ प्रारंभिक वर्ष राजनैतिक अस्थिरता से परिपूर्ण थे, देश में 13 राष्ट्रशासक बदले गए और 4 सैन्य बगावतें हुई। विश्व के सबसे जनबहुल देशों में बांग्लादेश का स्थान आठवां है। किन्तु क्षेत्रफल की दृष्टि से बांग्लादेश विश्व में 93वाँ है। फलस्वरूप बांग्लादेश विश्व की सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक है। मुसलमान- सघन जनसंख्या वाले देशों में बांग्लादेश का स्थान 4था है, जबकि बांग्लादेश के मुसलमानों की संख्या भारत के अल्पसंख्यक मुसलमानों की संख्या से कम है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मुहाने पर स्थित यह देश, प्रतिवर्ष मौसमी उत्पात का शिकार होता है और चक्रवात भी बहुत सामान्य हैं। बांग्लादेश दक्षिण एशियाई आंचलिक सहयोग संस्था, सार्क और बिम्सटेक का प्रतिष्ठित सदस्य है। यह ओआइसी और डी-8 का भी सदस्य है।.
ओकलाहोमा में एक बवंडर। "चिमनीकार" सरंचना पतली नलीका की तरह है जो पृथ्वी से बादलों तक जाती है। इस बवंडर का नीचला भाग पारदर्शी धूल के बादलों से घिरा हुआ है जो सतह पर चलने वाली बवंडर की तेज हवाओं ने उपर उठा दिया है। बवंडर की हवा इसकी चिमनी की त्रिज्या से बहुत अधिक विस्तारित होती हैं। बवण्डर हवा के प्रचंडतापूर्वक चक्रन करने वाले स्तंभ को बवंडर (बवंडर) कहा जाता है जो पृथ्वी की सतह और कपासी वर्षी बादल दोनों को जोड़ता है। कुछ दुर्लभ अवस्थाओं में ऐसा भी पाया जाता है कि यह कपासी मेघ का आधार होता है। इन्हें अक्सर ट्विस्टर्स अथवा चक्रवात कहा जाता है। हालांकि मौसम विज्ञान में 'चक्रवात' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में अल्पदाब वाले परिसंचरण के लिये किया जाता है। बवंडर विभिन्न आकार और आकृतियों वाले होते हैं लेकिन वे आमतौर पर संक्षेपण कीप के रूप में खिखते हैं जिनका संकीर्ण भाग पृथ्वी की सतह को स्पर्श करता है और इसका दूसरा सिरा धूल के बादलों द्वारा घेर लिया जाता है। अधिकतर बवंडरों में हवा की गति से कम और लगभग से अधिक होती है तथा छितराने से पूर्व कुछ मीलों (कुछ किलोमीटर) तक चलता है। मुख्य चरम मान तक पहुँचने वाले बवंडर से भी अधिक गति प्राप्त कर सकते हैं तथा ३ किमी से भी अधिक विस्तारित हो सकते हैं एवं दर्ज़नों मील (सैकड़ों किलोमीटर) पृथ्वी की सतह पर चल सकते हैं। .
बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है और हिंद महासागर का पूर्वोत्तर भाग है। यह मोटे रूप में त्रिभुजाकार खाड़ी है जो पश्चिमी ओर से अधिकांशतः भारत एवं शेष श्रीलंका, उत्तर से बांग्लादेश एवं पूर्वी ओर से बर्मा (म्यांमार) तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह से घिरी है। बंगाल की खाड़ी का क्षेत्रफल 2,172,000 किमी² है। प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों के अन्सुआर इसे महोदधि कहा जाता था। बंगाल की खाड़ी 2,172,000 किमी² के क्षेत्रफ़ल में विस्तृत है, जिसमें सबसे बड़ी नदी गंगा तथा उसकी सहायक पद्मा एवं हुगली, ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदी जमुना एवं मेघना के अलावा अन्य नदियाँ जैसे इरावती, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियां सागर से संगम करती हैं। इसमें स्थित मुख्य बंदरगाहों में चेन्नई, चटगाँव, कोलकाता, मोंगला, पारादीप, तूतीकोरिन, विशाखापट्टनम एवं यानगॉन हैं। .
ब्रास़ील (ब्राज़ील) दक्षिण अमरीका का सबसे विशाल एवं महत्त्वपूर्ण देश है। यह देश ५० उत्तरी अक्षांश से ३३० दक्षिणी अक्षांश एवँ ३५० पश्चिमी देशान्तर से ७४० पश्चिमी देशान्तरों के मध्य विस्तृत है। दक्षिण अमरीका के मध्य से लेकर अटलांटिक महासागर तक फैले हुए इस संघीय गणराज्य की तट रेखा ७४९१ किलोमीटर की है। यहाँ की अमेज़न नदी, विश्व की सबसे बड़ी नदियों मे से एक है। इसका मुहाना (डेल्टा) क्षेत्र अत्यंत उष्ण तथा आर्द्र क्षेत्र है जो एक विषुवतीय प्रदेश है। इस क्षेत्र में जन्तुओं और वनस्पतियों की अतिविविध प्रजातियाँ वास करती हैं। ब्राज़ील का पठार विश्व के प्राचीनतम स्थलखण्ड का अंग है। अतः यहाँ पर विभिन्न भूवैज्ञानिक कालों में अनेक प्रकार के भूवैज्ञानिक संरचना सम्बंधी परिवर्तन दिखाई देते हैं। ब्राज़ील के अधिकांश पूर्वी तट एवं मध्य अमेरिका की खोज अमेरिगो वाससक्की ने की एवं इसी के नाम से नई दुनिया अमेरिका कहलाई। सन् १५०० के बाद यहाँ उपनिवेश बनने आरंभ हुए। यहाँ की अधिकांश पुर्तगाली बस्तियों का विकास १५५० से १६४० के मध्य हुआ। २४ जनवरी १९६४ को इसका नया संविधान बना। इसकी प्रमुख भाषा पुर्तगाली है। .
एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका (Encyclopædia Britannica; हिन्दी अर्थः 'ब्रितानी विश्वकोश') ब्रिटैनिका कंपनी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी भाषा का विश्वकोष है। कंपनी ने 32 खंडों में प्रकाशित होने वाले इस प्रिंट संस्करण का प्रकाशन बंद कर दिया है (मार्च, २०१२) और अब डिजिटल संस्करण पर ध्यान दिये जाने की बात कही है। इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका को सबसे पहले 1768 में स्कॉटलैंड में प्रकाशित किया गया था। इसके नये संस्करण प्रत्येक दो साल में प्रकाशित होते थे। इसे अंतिम बार 2010 में प्रकाशित किया गया था। हर दो साल पर प्रकाशित होने वाले 32 खंडों के प्रिंटेड संस्करण की कीमत 1400 अमेरिकी डॉलर (करीब 69,900 रुपये) थी। लेकिन अब इसके ऑनलाइन संस्करण के लिए प्रति वर्ष केवल 70 अमेरिकी डॉलर (करीब 2800 रुपये) कीमत चुकानी होगी। इसके अलावा, कंपनी ने लोगों की सुविधानुसार प्रति माह के हिसाब से ऑनलाइन सदस्यता शुल्क 1.99 से लेकर 4.99 अमेरिकी डॉलर तक भी शुरू कर दिया है। .
विश्व के मानचित्र पर भूमध्य रेखा लाल रंग में गोलक का महानतम चक्र (घेरा) उसे ऊपरी और निचले गोलार्धों में बांटाता है। भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव से सामान दूरी पर स्थित एक काल्पनिक रेखा है। यह पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में विभाजित करती है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी के केंद्र से सर्वाधिक दूरस्थ भूमध्यरेखीय उभार पर स्थित बिन्दुओं को मिलाते हुए ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा को भूमध्य या विषुवत रेखा कहते हैं। इस पर वर्ष भर दिन-रात बराबर होतें हैं, इसलिए इसे विषुवत रेखा भी कहते हैं। अन्य ग्रहों की विषुवत रेखा को भी सामान रूप से परिभाषित किया गया है। इस रेखा के उत्तरी ओर २३½° में कर्क रेखा है व दक्षिणी ओर २३½° में मकर रेखा है। .
अमेरिका में स्थिति मिसिसिप्पी (Mississippi) संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी क्षेत्र में एक राज्य है। इसकी पश्चिमी सीमा मिसिसिपी नदी द्वारा बनाई गई है। मिसिसिपी उत्तर में टेनेसी, पूर्व में अलबामा, दक्षिण में लूइसियाना और पश्चिम में, मिसिसिपी नदी के पार, लुइसियाना और अर्कांसस से अपनी सीमा रखता है। इसकी दक्षिणी सीमा का छोटा हिस्सा मैक्सिको की खाड़ी से भी लगता है। 1699 में फ्रेंच उपनिवेशवादियों ने पहले यूरोपीय बस्ती की स्थापना की। उपनिवेशवादियों ने अफ्रीकी गुलामों को मजदूरों के रूप में आयात किया। ग्रेट ब्रिटेन की सप्तवर्षीय युद्ध में जीत के बाद फ्रांस ने पेरिस की संधि (1763) के तहत मिसिसिपी क्षेत्र का ब्रिटेन को आत्मसमर्पण कर दिया। अमेरिकी क्रांति के बाद, ब्रिटेन ने इस क्षेत्र को नए संयुक्त राज्य अमरीका को सौंप दिया। 10 दिसंबर 1817 को मिसिसिपी को संघ में 20वें राज्य के तौर पर भर्ती किया गया। 9 जनवरी, 1861 को मिसिसिपी संघ से अपने अलगाव की घोषणा करने वाला दूसरा राज्य बन गया और यह परिसंघीय राज्य अमेरिका के संस्थापक सदस्यों में से एक था। 2015 के अनुमान के मुताबिक मिसिसिप्पी की जनसंख्या 29,92,333 है। जिस हिसाब से उसका अमेरिका के राज्यों में 32वां स्थान है। क्षेत्र में भी उसका स्थान 32वां ही है। अंग्रेज़ी सरकारी भाषा है जो 96% जनता द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है। .
मौसम वातावरण की दशा को व्यक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है। अधिकांश मौसम को प्रभावित करने वाली घटनाएं क्षोभ मंडल (ट्रोपोस्फीयर) में होती है। मौसम दैनंदिन तापमान और वर्षा गतिविधि को संदर्भित करता है जबकि जलवायु लम्बी समयावधि में औसत वायुमंडलीय स्थितियों के लिए शब्द है। यह एक क्षणिक घटना है .
वायुवेगमापी ऋतुविज्ञान या मौसम विज्ञान (Meteorology) कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं। मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है किन्तु अट्ठारहवीं शती तक इसमें खास प्रगति नहीं हो सकी थी। उन्नीसवीं शती में विभिन्न देशों में मौसम के आकड़ों के प्रेक्षण से इसमें गति आयी। बीसवीं शती के उत्तरार्ध में मौसम की भविष्यवाणी के लिये कम्प्यूटर के इस्तेमाल से इस क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी। मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन की दर (समय और दूरी के सापेक्ष) बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं। .
संयुक्त राज्य मेक्सिको, सामान्यतः मेक्सिको के रूप में जाना जाता एक देश है जो की उत्तर अमेरिका में स्थित है। यह एक संघीय संवैधानिक गणतंत्र है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर पर सीमा से लगा हुआ हैं। दक्षिण प्रशांत महासागर इसके पश्चिम में, ग्वाटेमाला, बेलीज और कैरेबियन सागर इसके दक्षिण में और मेक्सिको की खाड़ी इसके पूर्व की ओर हैं। मेक्सिको लगभग 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैं, मेक्सिको अमेरिका में पांचवा और दुनिया में 14 वा सबसे बड़ा स्वतंत्र राष्ट्र है। 11 करोड़ की अनुमानित जनसंख्या के साथ, यह 11 वीं सबसे अधिक आबादी वाला देश है। मेक्सिको एक इकतीस राज्यों और एक संघीय जिला, राजधानी शामिल फेडरेशन है। .
मेक्सिको की खाड़ी का नक़्शा मेक्सिको की खाड़ी (स्पेनीः Golfo de México, गोल्फ़ो दे मेहिको) पश्चिमी अंध महासागर का एक समुद्र है। यह उत्तर अमेरिका और क्यूबा से घिरा हुआ है और कैरिबियाई सागर के पश्चिम में स्थित है। इसका क्षेत्रफल लगभग १६ लाख वर्ग किमी है और इसका सबसे गहरा स्थान सतह से १४,३८३ फ़ुट (४,३८४ मीटर) की गहराई पर स्थित सिग्स्बी खाई है। माना जाता है के इस सागर की द्रोणी का निर्माण आक्ज से लगभग ३० करोड़ वर्ष पूर्व इसके फ़र्श के नीचे धंसने से हुआ। उस से पहले यह एक ज़मीनी क्षेत्र था। इस समुद्र में विलय होने वाली सबसे बड़ी नदी मिसिसिप्पी नदी है। इसके पश्चिमोत्तर छोर पर संयुक्त राज्य अमेरिका का फ़्लोरिडा राज्य और उत्तर में अमिका के ही अलाबामा, मिसिसिप्पी, लुइज़ियैना और टॅक्सस राज्य हैं। दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में मेक्सिको के तामाउलिपास, वेराक्रूस, ताबास्को, काम्पेचे, यूकातान और किन्ताना रू राज्य हैं। इसके दक्षिण-पूर्व में क्यूबा पड़ता है। इस समुद्र में मछलियों, झींगों और अन्य समुद्री जीवों की भरमार है और अमेरिका, मेक्सिको और क्यूबा के मछुआरे उद्योग यहाँ पर बहुत पनपे हैं। .
यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.
एक रिपोर्ट के एक मुख पन्ने का उदाहरण लिखित रिपोर्ट वह दस्तावेज है जो विशिष्ट दर्शकों के लिए केंद्रीकृत और मुख्य सामग्री प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट का इस्तेमाल प्रायः एक प्रयोग, जांच या पूछताछ के परिणाम को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। यह रिपोर्ट सार्वजनिक या निजी, एक व्यक्ति विशेष या आम जनता के लिए हो सकती है। रिपोर्ट का प्रयोग सरकारी, व्यवसायिक, शिक्षा, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में होता है। रिपोर्ट में प्रायः प्रत्ययकारी तत्वों का प्रयोग होता है, जैसे चित्रालेख, चित्र, आवाज़ या विशेष रूप से तैयार की गयी शब्दावली जिससे कि विशिष्ट दर्शकों को कार्यवाही करने हेतु विश्वास दिलाया जा सके.
शब्दावली विज्ञान (Terminology), पारिभाषिक शब्दों तथा उनके उपयोग के अध्ययन की विद्या है। पारिभाषिक शब्द (टर्म) उन शब्दों, सामासिक-शब्दों या बहु-शाब्दिक-अभिव्यक्तियों को कहते हैं जिनका उपयोग विशिष्ट सन्दर्भ में विशिष्ट अर्थ रखता है। ये 'विशिष्ट अर्थ' उन शब्दों के 'सामान्य उपयोग के अर्थ' से बहुत अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिये साधारण अर्थ में 'कार्य' का मतलब कोई भी काम करना -जैसे खाना खाना, हँसना, चलना, पढ़ना आदि है, किन्तु भौतिकी में बल और उस बल के कारण उसकी दिशा में हुए विस्थापन के गुणनफल को कार्य कहते हैं। शब्दावली विज्ञान वह विधा (डिसिप्लिन) है जो पारिभाषिक शब्दों के विकास तथा अन्य पहलुओं का अध्ययन करती है। किन्तु ध्यान देने योग्य है कि शब्दावली विज्ञान, कोशरचना से भिन्न है क्योंकि शब्दावली विज्ञान में अवधारणाओं तथा अवधारणाओं के समुदाय का भी अध्ययन सम्मिलित है। .
शिकारी शिकार करने वाले को कहा जाता है। अन्य उपयोग.
श्रेणी (गणित)
गणित में किसी अनुक्रम के जोड़ को सीरीज कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कोई श्रेणी सीमित (लिमिटेड) हो सकती है या अनन्त (इनफाइनाइट)। .
विश्व मानचित्र जिसमें समशीतोष्ण कटिबन्ध "'हरे रंग"' से दिखाया गया है। शीतोष्ण कटिबन्ध या समशीतोष्ण कटिबन्ध (temperate zone) ऊष्णकटिबन्ध और शीत कटिबन्ध के बीच का क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहाँ गर्मी और सर्दी के मौसम के तापमान में अधिक अन्तर नहीं होता। लेकिन यहाँ के कुछ क्षेत्रों में, जैसे मध्य एशिया और मध्य उत्तरी अमेरिका, जो समुद्र से काफ़ी दूर हैं, तापमान में काफ़ी परिवर्तन होता है और इन इलाकों में महाद्वीपीय जलवायु पाया जाता है। समशीतोष्ण कटिबन्धीय मौसम ऊष्णकटिबन्ध के कुछ इलाकों में भी पाया जा सकता है, खासतौर पर ऊष्णकटिबन्ध के पहाड़ी इलाकों में, जैसे एन्डीज़ पर्वत शृंखला। उत्तरी समशीतोष्ण कटिबन्ध उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (तकरीबन २३.५° उ) से आर्कटिक रेखा (तकरीबन ६६.५° उ) तक तथा दक्षिणी समशीतोष्ण कटिबन्ध दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (तकरीबन २३.५° द) से अंटार्कटिक रेखा (तकरीबन ६६.५° द) तक का क्षेत्र होता है। विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या समशीतोष्ण कटिबन्ध में - खासतौर पर उत्तरी समशीतोष्ण कटिबन्ध में - रहती है क्योंकि इस इलाके में भूमि की बहुतायत है। .
समुद्र तल से ऊँचाई दिखाता एक बोर्ड समुद्र तल या औसत समुद्र तल (अंग्रेज़ीःMean sea level) समुद्र के जल के उपरी सतह की औसत ऊँचाई का मान होता है। इसकी गणना ज्वार-भाटे के कारण होने वाले समुद्री सतह के उतार चढ़ाव का लंबे समय तक प्रेक्षण करके उसका औसत निकाल कर की जाती है। इसे समुद्र तल से ऊँचाई (MSL-Metres above sea level) में व्यक्त किया जाता है। इसका प्रयोग धरातल पर स्थित बिंदुओं की ऊँचाई मापने के लिये सन्दर्भ तल के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग उड्डयन में भी होता है। उड्डयन में समुद्र की सतह पर वायुमण्डलीय दाब को वायुयानों के उड़ान की उँचाई के सन्दर्भ (डैटम) के रूप में उपयोग किया जाता है। .
साइबेरिया का नक़्शा (गाढ़े लाल रंग में साइबेरिया नाम का संघी राज्य है, लेकिन लाल और नारंगी रंग वाले सारे इलाक़े साइबेरिया का हिस्सा माने जाते हैं गर्मी के मौसम में दक्षिणी साइबेरिया में जगह-जगह पर झीलें और हरियाली नज़र आती है याकुत्स्क शहर में 17वी शताब्दी में बना एक रूसी सैनिक-गृह साइबेरिया (रूसीः Сибирь, सिबिर) एक विशाल और विस्तृत भूक्षेत्र है जिसमें लगभग समूचा उत्तर एशिया समाया हुआ है। यह रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। सन् 1991 तक यह सोवियत संघ का भाग हुआ करता था। साइबेरिया का क्षेत्रफल 131 लाख वर्ग किमी है। तुलना के लिए पूरे भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है, यानि साइबेरिया भारत से क़रीब चार गुना है। फिर भी साइबेरिया का मौसम और भूस्थिति इतनी सख़्त है के यहाँ केवल 4 करोड़ लोग रहते हैं, जो 2011 में केवल उड़ीसा राज्य की आबादी थी। यूरेशिया का अधिकतर स्टॅप (मैदानी घासवाला) इलाक़ा साइबेरिया में आता है। साइबेरिया पश्चिम में यूराल पहाड़ों से शुरू होकर पूर्व में प्रशांत महासागर तक और उत्तर में उत्तरध्रुवीय महासागर (आर्कटिक महासागर) तक फैला हुआ है। दक्षिण में इसकी सीमाएँ क़ाज़ाक़स्तान, मंगोलिया और चीन से लगती हैं। .
गैस से द्रव बनने की परिघटना को संघनन कहते हैं। यह वाष्पन की उल्टी है। प्रायः जल-चक्र के सन्दर्भ में ही इसका प्रयोग होता है। वर्षा भी एक प्रकार का संघनन ही है। .
संगठन (organisation) वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों की समीक्षा करते हुए स्वयं का नियन्त्रण करती है, तथा अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है। संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं - सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक आदि। .
हाइती या हेटी (हाइती; अयेति), आधिकारिक तौर पर 'हाइती गणराज्य' केरिबियन देश है।। यात्रा सलाह.कॉम यह ग्रेटर एल्तिलिअन द्वीपसमूह में हिस्पानिओला द्वीप पर डोमिनिकन गणराज्य के साथ स्थित है। अयेति (ऊंचे पहाड़ों की भूमि) द्वीप के पहाड़ी पश्चिमी हिस्से के लिए स्थानीय ताइनो या अमरेनियन नाम था। देश की सर्वाधिक ऊंची चोटी पिक ला सेली (२,६८० मीटर) है। हाइती का कुल क्षेत्रफल २७,७५० वर्ग किलोमीटर है (१०,७१४ वर्ग मील) है और इसकी राजधानी पोर्ट-अउ-प्रिंस है। यहाँ क्रियोल और फ्रांसीसी भाषा बोली जाती है। हाइती की क्षेत्रीय, ऐतिहासिक और जातीय-भाषाई स्थिति कई कारणों से अद्वितीय है। यह लैटिन अमेरिका का पहला स्वतंत्र देश था, उपनिवेशवाद के बाद के दौर का पहला स्वतंत्र देश था, जिसका नेतृत्व किसी काले व्यक्ति के हाथों में था और केवल ऐसा देश जिसकी आजादी एक सफल दास विद्रोह के भाग के रूप में मिली थी। हिस्पानो-कैरेबियन पड़ोसियों के साथ साझा सांस्कृतिक संबंध होने के बावजूद हाइती अमेरिका का इकलौता मुख्यतः फ्रांसीसी भाषी देश है। यह कनाडा के अतिरिक्त दूसरा ऐसा देश है, जहां फ्रांसीसी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में दर्जा दिया गया है। बाकी अन्य फ्रांसीसी भाषी देश फ्रांस के विदेशी विभाग या फिर समुदाय रहे हैं। .
हिंद महासागर हिंद महासागर और चीन सागर के इस मानचित्र को हंगरी में जन्मे तुर्क मानचित्रकार और प्रकाशक इब्राहिम मुटेफेरीका द्वारा 1728 में उत्कीर्ण किया गया था हिन्द महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा समुद्र है और पृथ्वी की सतह पर उपस्थित पानी का लगभग 20% भाग इसमें समाहित है। उत्तर में यह भारतीय उपमहाद्वीप से, पश्चिम में पूर्व अफ्रीका; पूर्व में हिन्दचीन, सुंदा द्वीप समूह और ऑस्ट्रेलिया, तथा दक्षिण में दक्षिणध्रुवीय महासागर से घिरा है। विश्व में केवल यही एक महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम यानी, हिन्दुस्तान (भारत) के नाम है। संस्कृत में इसे रत्नाकर यानि रत्न उत्पन्न करने वाला कहते हैं, जबकि प्राचीन हिन्दु ग्रंथों में इसे हिन्दु महासागर कहा गया है। वैश्विक रूप से परस्पर जुड़े समुद्रों के एक घटक हिंद महासागर को, अंध महासागर से 20° पूर्व देशांतर जो केप एगुलस से गुजरती है और प्रशांत महासागर से 146°55' पूर्व देशांतर पृथक करती हैं। हिंद महासागर की उत्तरी सीमा का निर्धारण फारस की खाड़ी में 30° उत्तर अक्षांश द्वारा होता है। हिंद महासागर की पृष्टधाराओं का परिसंचरण असममित है। अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी सिरों पर इस महासागर की चौड़ाई करीब 10,000 किलोमीटर (6200 मील) है; और इसका क्षेत्रफल 73556000 वर्ग किलोमीटर (28400000 वर्ग मील) है जिसमें लाल सागर और फारस की खाड़ी शामिल हैं। सागर में जल की कुल मात्रा 292,131,000 घन किलोमीटर (70086000 घन मील) होने का अनुमान है। हिन्द महासागर में स्थित मुख्य द्वीप हैं; मेडागास्कर जो विश्व का चौथा सबसे बड़ा द्वीप है, रीयूनियन द्वीप; कोमोरोस; सेशेल्स, मालदीव, मॉरिशस, श्रीलंका और इंडोनेशिया का द्वीपसमूह जो इस महासागर की पूर्वी सीमा का निर्धारण करते हैं। .
हिमशैल (iceberg) मीठे जल के ऐसे बड़े टुकड़े को कहते हैं जो किसी हिमानी (ग्लेशियर) या हिमचट्टान (आइस-शेल्फ़) से टूटकर खुले पानी में तैर रहा हो। उत्प्लावन बल के कारण किसी भी हिमशैल का लगभग दसवाँ हिस्सा ही समुद्री पानी के ऊपर नज़र आता है जबकि उसका बाक़ी नौ-गुना बड़ा भाग जल के नीचे होता है। .
हवाई का नक़्शा हवाई (हवाइयन भाषाः Hawai'i, हवइ'इ - अंत में 'इ' को दो बार बोलें) संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रशान्त महासागर के मध्य में स्थित एक प्रान्त है। यह अमेरिका का अकेला प्रांत है जो पूरी तरह द्वीपों से ही बना हुआ है और हवाई द्वीप समूह के अधिकांश द्वीप इसी प्रांत में सम्मिलित हैं। हवाई के आठ मुख्य द्वीप हैं, जो उत्तरपश्चिम से दक्षिणपूर्व में एक पंक्ति पर बिछे हैं। इन आठ द्वीपों के नाम हैं (उत्तरपश्चिम से शुरू होते हुए) - नि'इहउ, कउअ'इ, ओअहू, मोलोक'इ, लान'इ, कहो'ओलवे, मउइ और हवइ'इ। इनमें हवइ'इ का द्वीप सबसे बड़ा है और पूर्ण प्रांत के नाम से भिन्न करने के लिए उसे कभी-कभी "बड़ा द्वीप" भी बुलाया जाता है। अगर बाक़ी सभी द्वीपों को मिलाया जाए तो बड़ा द्वीप उन सबके क्षेत्रफल से बड़ा है। पर्यटन और जनसँख्या की दृष्टि से चार द्वीप - ओआहू (Oʻahu), माउइ (Maui), बड़ा द्वीप (Hawaiʻi) और काउआइ (Kauaʻi) - हवाई के मुख्य द्वीप माने जाते हैं। हवाई की राजधानी होनोलूलू ओअहू पर स्थित है। मउइ अपने बालू-तट (बीच) के लिए विख्यात है। कउअ'इ में दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित और आगम सिद्धांतों पर स्थापित एक सुन्दर शैव मंदिर है। .
जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.
जलवायु प्रदेशों का वितरण जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दशा को व्पक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह शब्द मौसम के काफी करीब है। पर जलवायु और मौसम में कुछ अन्तर है। जलवायु बड़े भूखंडो के लिये बड़े कालखंड के लिये ही प्रयुक्त होता है जबकि मौसम अपेक्षाकृत छोटे कालखंड के लिये छोटे स्थान के लिये प्रयुक्त होता है। उदाहरणार्थ - आज से तीस हजार साल पहले पृथ्वी की जलवायु आज का अपेक्षा गर्म थी। पर, आज से तीस हजार साल पहले पृथ्वी का मौसम आज की अपेक्षा गर्म था कहना ग़लत होगा। .
जलवाष्प अथवा जल वाष्प पानी की गैसीय अवस्था है और अन्य अवस्थाओं के विपरीत अदृश्य होती है। पृथ्वी के वायुमण्डल में इसकी मात्रा लगातार परिवर्तनशील होती है। द्रव अवस्था में स्थित पानी से जलवाष्प का निर्माण क्वथन अथवा वाष्पीकरण के द्वारा होता रहता है और संघनन द्वारा जलवाष्प द्रव अवस्था में भी परिवर्तित होती रहती है। बर्फ़ से इसका निर्माण ऊर्ध्वपातन की प्रक्रिया द्वारा होता है। .
जापान, एशिया महाद्वीप में स्थित देश है। जापान चार बड़े और अनेक छोटे द्वीपों का एक समूह है। ये द्वीप एशिया के पूर्व समुद्रतट, यानि प्रशांत महासागर में स्थित हैं। इसके निकटतम पड़ोसी चीन, कोरिया तथा रूस हैं। जापान में वहाँ का मूल निवासियों की जनसंख्या ९८.५% है। बाकी 0.5% कोरियाई, 0.4 % चाइनीज़ तथा 0.6% अन्य लोग है। जापानी अपने देश को निप्पॉन कहते हैं, जिसका मतलब सूर्योदय है। जापान की राजधानी टोक्यो है और उसके अन्य बड़े महानगर योकोहामा, ओसाका और क्योटो हैं। बौद्ध धर्म देश का प्रमुख धर्म है और जापान की जनसंख्या में 96% बौद्ध अनुयायी है। .
अक्ष पर घूर्णन करती हुई पृथ्वी घूर्णन करते हुए तीन छल्ले भौतिकी में किसी त्रिआयामी वस्तु के एक स्थान में रहते हुए (लट्टू की तरह) घूमने को घूर्णन (rotation) कहते हैं। यदि एक काल्पनिक रेखा उस वस्तु के बीच में खींची जाए जिसके इर्द-गिर्द वस्तु चक्कर खा रही है तो उस रेखा को घूर्णन अक्ष कहा जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। .
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वर्षा (Rainfall) एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर उठता है और ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते हैं। .
ऊँचाई बढ़ने पर वायुमण्डलीय दाब का घटना (१५ डिग्री सेल्सियस); भू-तल पर वायुमण्डलीय दाब १०० लिया गया है। वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है। अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुमान मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाए गए द्रवस्थैतिक दबाव द्वारा लगाया जाता है। कम दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता है, जबकि अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर अधिक वायुमंडलीय द्रव्यमान होता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है उस स्तर के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता जाता है, इसलिए बढ़ती ऊंचाई के साथ दबाव घट जाता है। समुद्र तल से वायुमंडल के शीर्ष तक एक वर्ग इंच अनुप्रस्थ काट वाले हवा के स्तंभ का वजन 6.3 किलोग्राम होता है (और एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले वायु स्तंभ का वजन एक किलोग्राम से कुछ अधिक होता है)। .
विश्व मौसम विज्ञान संगठन एक मौसम विज्ञान संगठन है, जिसे 1873 में खोजा गया और 1950 में स्थापित किया गया। .
संक्षेप में, प्रकृति के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। .
गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .
गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .
आँधी मौसम से संबंधित धटना है जिसमें तेज़ हवाओं के के साथ धूल और गुबार उड़ कर दृश्यता को कम कर देते हैं। कभी कभी आँधी झंझावाती और चक्रवाती तूफानों के पहले हिस्से को भी कहा जाता है जिसमें वर्षा नहीं होती। श्रेणीःमौसम श्रेणीःमौसम विज्ञान श्रेणीःमौसम संबंधित विपदायें.
मानव आँख का पास से लिया गया चित्र मानव नेत्र का योजनात्मक आरेख आँख या नेत्र जीवधारियों का वह अंग है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील है। यह प्रकाश को संसूचित करके उसे तंत्रिका कोशिकाओ द्वारा विद्युत-रासायनिक संवेदों में बदल देता है। उच्चस्तरीय जन्तुओं की आँखें एक जटिल प्रकाशीय तंत्र की तरह होती हैं जो आसपास के वातावरण से प्रकाश एकत्र करता है; मध्यपट के द्वारा आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता का नियंत्रण करता है; इस प्रकाश को लेंसों की सहायता से सही स्थान पर केंद्रित करता है (जिससे प्रतिबिम्ब बनता है); इस प्रतिबिम्ब को विद्युत संकेतों में बदलता है; इन संकेतों को तंत्रिका कोशिकाओ के माध्यम से मस्तिष्क के पास भेजता है। .
विगत प्रत्यक्षानात्मक अनुभवों (पास्ट पर्सेप्चुअल एक्स्पीरिएन्सेज़) का बिंबों और विचारों (इमेजेज़ ऐंड आइडियाज़) के रूप में, विचारणात्मक स्तर पर, रचनात्मक नियोजन कल्पना (इमैजिनेशन) है। कल्पना की मानसिक प्रक्रिया के अतंर्गत वास्तव में दो प्रकार की मानसिक प्रक्रियाएँ निहित हैं - प्रथम, विगत संवेदनशीलताओं का प्रतिस्मरण, बिंबों एवं विचारों के रूप अर्थात स्मृति, द्वितीय, उन प्रतिस्मृत अनुभवों की एक नए संयोजन में रचना। लेकिन कल्पना में इन दोनों प्रकार की क्रियाओं का इतना अधिक सम्मिश्रण रहता है कि न तो इनका अलग-अलग अध्ययन ही किया जा सकता है और न इनकी अलग-अलग स्पष्ट अनुभूति ही व्यक्तिविशेष को हो पाती है। इसी कारण कल्पना को एक उच्चस्तरीय जटिल प्रकार की मानसिक प्रक्रिया कहा जाता है। .
क्षोभमण्डल या ट्रोपोस्फ़ीयर (troposphere) पृथ्वी के वायुमंडल का सबसे निचला हिस्सा है। इसी परत में आर्द्रता, जलकण, धूलकण, वायुधुन्ध तथा सभी मौसमी घटनाएं होती हैं। यह पृथ्वी की वायु का सबसे घना भाग है और पूरे वायुमंडल के द्रव्यमान का ८०% हिस्सा इसमें मौजूद है। भूमध्य रेखा (इक्वेटर) पर इसकी गहराई २० किमी है जो ध्रुवों पर घटकर सिर्फ़ ७ किमी ही रह जाती है। क्षोभमण्डल की औसत ऊँचाई १० से 12 कीमी है। वायुमंडल में इसके ऊपर की परत को समतापमण्डल या स्ट्रैटोस्फ़ीयर कहते हैं। इन दोनों परतों के बीच की रेखा का नाम ट्रोपोपौज़ है। इस मंडल का तापमान १५℃ से -५६℃ तक होता है। ऊँचाई के साथ इसमे वायुदाब व तापमान में कमी होती है .
कॅरीबियाई क्षेत्र अन्ध महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है। यह द्वीपसमूह लंबाई का और चौड़ाई का क्षेत्र है, जिसमें ७००० से अधिक द्वीप स्थित हैं। इसमें कई छोटे देश हैं। इनमें बहुत भारतीय लोग भी हैं। मध्य अमेरिका और कैरीबिया विश्व की विवर्तनिक प्लेटें .
कोरिआलिस बल और उसका प्रभाव भौतिक विज्ञान में, कॉरिऑलिस प्रभाव किसी घूर्णी निर्देश तंत्र में किसी गतिशील वस्तु में प्रेक्षित विक्षेपन होता है। फेरेल का नियमः इस नियम के अनुसार, "धरातल पर मुख्य रूप से चलने वाली सभी हवाएं पृथ्वी की गति के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।" यह नियम बड़े क्षेत्रों पर चलने वाली स्थायी पवनों, छोटे चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों पर लागू होता है। इस नियम का प्रभाव महासागरीय धाराओं, ज्वारीय गतियों, राकेटों, आदि पर भी देखा जाता है। श्रेणीःभौतिकी श्रेणीःघूर्णन.
कोरिया (कोरियाईः 한국 या 조선) एक सभ्यता और पूर्व में एकीकृत राष्ट्र जो वर्तमान में दो राज्यों में विभाजित है। कोरियाई प्रायद्वीप पर स्थित, इसकी सीमाएं पश्चिमोत्तर में चीन, पूर्वोत्तर में रूस और जापान से कोरिया जलसन्धि द्वारा पूर्व में अलग है। कोरिया 1948 तक संयुक्त था; उस समय इसे दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया में विभाजित कर दिया गया। दक्षिण कोरिया, आधिकारिक तौर पर कोरिया गणराज्य, एक पूंजीवादी, लोकतांत्रिक और विकसित देश है, जिसकी संयुक्त राष्ट्र संघ, WTO, OECD और G-20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सदस्यता है। उत्तर कोरिया, आधिकारिक तौर पर लोकतांत्रिक जनवादी कोरिया गणराज्य, किम इल-सुंग द्वारा स्थापित एक एकल पार्टी कम्युनिस्ट देश है और सम्प्रति उनके बेटे किम जोंग-इल के दूसरे बेटे किम जोंग-उन द्वारा शासित है। उत्तर कोरिया की वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्यता है। पुरातत्व और भाषाई सबूत यह सुझाते हैं कि कोरियाई लोगों की उत्पत्ति दक्षिण-मध्य साइबेरिया के अल्टायाक भाषा बोलने वाले प्रवासियों में हुई थी, जो नवपाषाण युग से कांस्य युग तक लगातार बहाव में प्राचीन कोरिया में बसते गए। 2 शताब्दी ई.पू.
ग्लोब पर अंध महासागर की स्थिति अन्ध महासागर या अटलांटिक महासागर उस विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीपों को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक करती है। क्षेत्रफल और विस्तार में दुनिया का दूसरे नंबर का महासागर है जिसने पृथ्वी का १/५ क्षेत्र घेर रखा है। इस महासागर का नाम ग्रीक संस्कृति से लिया गया है जिसमें इसे नक्शे का समुद्र भी बोला जाता है। इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेजी अक्षर 8 के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक सागर, जो बेरिंग जलडमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक फैला है, मुख्यतः अंधमहासागर का ही अंग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल-डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई १२,८१० मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जार्जिया के दक्षिण स्थित वैडल सागर भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल इसके अंतर्गत समुद्रों सहित ४,१०,८१,०४० वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल ३,१८,१४,६४० वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी इसके अधीन विश्व का सबसे बड़ा जलप्रवाह क्षेत्र है। उत्तरी अंधमहासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा ३.७ प्रतिशत है जो २०°- ३०° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है। .
अरब सागर जिसका भारतीय नाम सिंधु सागर है, भारतीय उपमहाद्वीप और अरब क्षेत्र के बीच स्थित हिंद महासागर का हिस्सा है। अरब सागर लगभग 38,62,000 किमी2 सतही क्षेत्र घेरते हुए स्थित है तथा इसकी अधिकतम चौड़ाई लगभग 2,400 किमी (1,500 मील) है। सिन्धु नदी सबसे महत्वपूर्ण नदी है जो अरब सागर में गिरती है, इसके आलावा भारत की नर्मदा और ताप्ती नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। यह एक त्रिभुजाकार सागर है जो दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः संकरा होता जाता है और फ़ारस की खाड़ी से जाकर मिलता है। अरब सागर के तट पर भारत के अलावा जो महत्वपूर्ण देश स्थित हैं उनमें ईरान, ओमान, पाकिस्तान, यमन और संयुक्त अरब अमीरात सबसे प्रमुख हैं। .
दो व्यक्तियों की मध्य अधोरक्त (तापीय) प्रकाश में छाया चित्र अवरक्त किरणें, अधोरक्त किरणें या इन्फ़्रारेड वह विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसका तरंग दैर्घ्य (वेवलेन्थ) प्रत्यक्ष प्रकाश से बड़ा हो एवं सूक्ष्म तरंग से कम हो। इसका नाम 'अधोरक्त' इसलिए है क्योंकि विद्युत चुम्बकीय तरंग के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में यह मानव द्वारा दर्शन योग्य लाल वर्ण से नीचे (या अध) होती है। इसका तरंग दैर्घ्य 750 nm and 1 mm के बीच होता है। सामान्य शारिरिक तापमान पर मानव शरीर 10 माइक्रॉन की अधोरक्त तरंग प्रकाशित कर सकता है। .
ग्लोब पर भूमध्य रेखा के समान्तर खींची गई कल्पनिक रेखा। अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या१८०+१ (भूमध्य रेखा सहित) है। प्रति १ डिग्री की अक्षांशीय दूरी लगभग १११ कि.
उत्तरी गोलार्ध पीले में दर्शित उत्तरी गोलार्ध उत्तरी ध्रुव के ऊपर से उत्तरी गोलार्ध पृथ्वी का वह भाग है जो भूमध्य रेखा के उत्तर में है। अन्य सौर मण्डल के ग्रहों की उत्तर दिशा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के स्थिर समतल में लिया जाता है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव की वजह से उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु, दक्षिणायन (२२ दिसंबर के आसपास) से वसंत विषुव (लगभग २३ मार्च) तक चलता है और ग्रीष्म ऋतु, उत्तरायण (२१ जून) से शरद विषुव (लगभग २३ सितंबर) तक चलता है। उत्तरी गोलार्ध का उत्तरी छोर पूरी तरह ठोस नहीं है, वहाँ समुद्र के बीच जगह-जगह विशाल हिमखन्ड मिलते हैं। .
ERS 2) अन्तरिक्ष उड़ान (spaceflight) के संदर्भ में, उपग्रह एक वस्तु है जिसे मानव (USA 193) .
उर्दू भाषा हिन्द आर्य भाषा है। उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है। उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं। ये मुख्यतः दक्षिण एशिया में बोली जाती है। यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है, तथा पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। इस के अतिरिक्त भारत के राज्य तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय भाषा है। .
1887 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
1933 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
1970 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
1994 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
2005 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
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लोकमान्य ने होमरूल आन्दोलन किया । उन दिनों लालाजी अमरीका में होमरूल कार्य का प्रचार कर रहे थे। बाबू विपिन चन्द्र पाल सुरत-काग्रेस के समय ही जेल में डाल दिये गये थे। मगर वे जल्दी ही छूट गये. और कुछ समय इंग्लैंड जाकर रहे । लौटने पर उन्होंने अपनो नीति बदल दी और यह कहना शुरू किया कि ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर रहने में ही हमारा और ब्रिटिश साम्राज्य का हित है। दिल्ली भारत की राजधानी. बनाई गई उसपर उन्होंने सतोष प्रकट किया । यह भी लिखना शुरू किया कि लार्ड हार्डिग ने प्रातिक स्वराज्य की स्थापना का ध्येय मजूर कर लिया है और हिंदुस्तान शीघ्र ही स्वराज्य मण्डित सयुक्तराज्य बन जायगा । अंग्रेज राजनेताओं को उसके सहयोग की आवश्कता मालूम होने लगी । इसलिए सहयोग की नीति राष्ट्रीय ढल
को छोड देनी चाहिए । क्रांतिकारी राष्ट्रवाढ हमारे मार्ग का एक सकट ही है। मुसलमान राष्ट्र तथा चीन की ओर से ब्रिटिश साम्राज्य के लिए संकट पैदा हो गया है। हमारे लिए भी वह एक सकट है । इसलिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भारतीय राष्ट्रवाद से या कलवश्य हो समझौता करना पडेगा । पैन - इस्लामिज्म के सकट को देखते हुए हिन्दुस्तान को क्रांतिकारी राष्ट्रवाद छोड़ देना चाहिए और ब्रिटिश साम्राज्य से मित्रता करनी चाहिए । इस विचारधारा का उद्गम बगाल के तत्कालीन अति गरम नेता विपिनचन्द्र पाल के लेखों में है । आज हिन्दूसभा के कुछ नेता इसी पैन- इस्लामिङ्म का हौवा खडा करके एक ओर हिन्दूराज्य की घोषणा करते हैं और दूसरी ओर ब्रिटिश राज्य से सहयोग करने की पुकार मचाते हैं। मुसलमानी साम्राज्य के द्वेष या भय से बगाल के नेताओ मे ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति प्रेम बल्कि भक्ति पैदा हुई थी ।
इसलिए विपिन बाबू की नीति उस परपरा के अनुरूप कही जा सकती है। परंतु महाराष्ट्र में जो लोग क्रांतिकारी के नाम से प्रसिद्ध हैं वे मुसलमानी साम्राज्य के भय का हौवा खडा करके अग्रेजों से सहयोग की इतनी आवश्यकता क्यों बताते हैं, यह महाराष्ट्रीय परम्परा की दृष्टि से समझना कठिन है। १८५७ में दिल्ली के तख्त पर बूढे मुगल बादशाह को बैठाकर स्वराज्य स्थापना का प्रयत्न करते हुए नाना साहब पेशवा, झाँसी की
राष्ट्रीय पद्धर्म
रानी अथवा तात्या टोपे इन क्रांतिकारियों को भय नहीं मालूम हुआ; क्योंकि उन्हें यह आत्मविश्वास था कि हिन्दुस्तान में मुसलमान हिन्दुओं पर सदा के लिए अनियंत्रित सत्ता नहीं चला सकते । फिर महाराष्ट्रीय राजनेता इस बात को जानते थे कि हिन्दू मुसलमानों की एकता के द्वारा पहले जब हम अपनी गुलामी के बधन तोडने लगेंगे तभी दोनों का भला होगा। जो हो, इस समय तो विपिनचावू ब्रिटिश साम्राज्य से सहयोग करने की नीति का प्रतिपादन करते थे और श्रागे चलकर जब महात्मा गाधी ने काग्रेस को सहयोग की दीक्षा ढो तब भी उन्होंने गाधीजी का विरोध किया था ।
१९१४ में जब लोकमान्य तिलक जेल से छूटकर ग्राये तब उनके सामने यह प्रश्न था कि देश का बल कैसे बढ़ाया जाय और उसमें फिर साम्राज्यवाद से लडने की शक्ति कैसे पैदा की जाय ? देश की हालत कैसी ही हो, उसे कार्य प्रवण कैसे बनाना चाहिए और प्रतिपक्षी पर उसकी छाप कैसे बैठानी चाहिए, लोकमान्य इस क्ला में निपुण थे । मनुष्य की बुद्धि परिस्थति से बँधी हुई रहती है, यह सच हो तो भी वह उसी बुद्धि की सहायता से परिस्थति पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है। इसीलिए बुद्धि के केवल परिस्थति-निष्ठ होने से काम नहीं चलता। उसे आत्म-निष्ठ भी होना पड़ता है। यह ग्रात्म-निष्ठ बुद्धि जात परि स्थिति के उस पार जाकर यह पहचान सकती है कि भावी काल की अज्ञात परिस्थति अपने अनुकूल कैसे बनाई जाय । जात के उस पार उड़कर जाने की शक्ति मानवी बुद्धि को प्रेरणा से प्राप्त होती है । सत्य सशोधन, काव्य सृष्टि और राष्ट्र निर्माण जैसे महत् कार्य के लिए आवश्यक नेतृत्वकला इन सबके लिए इस यात्म-निष्ठ बुद्धि की या त प्रेरणा-युक्त बुद्धि की आवश्यकता होती है। लोकमान्य के जैसा लोक नायव मीमे
प्राप्त होता है। हॉ, अलवन्ते अंत. प्रेरणा के फेर मे पड़कर बुद्धि की परिस्थिति पर की पकड़ ढीली न होने देनी चाहिए। वह टीली हुई कि मनुष्य सासारिक कार्यों में और झगड़ों में टिकने के योग्य बन जाता है। बुद्धि के पीछे यदि प्रेरणा का बल न हो तो बुद्धि परिस्थिति की दासी हो त जाती है। इसके विपरीत यदि
तो परिस्थिति के ज्ञान के प्रभाव में वह मनुष्य व्यवहार शून्य आदर्श - वादी बन जाता है। राष्ट्रनिर्माण के लिए ऐसा आदर्शवाद बहुत उपयोगी नही होता । वास्तववाद र्शवाद का समन्वय जो बुद्धि कर सकती है वही राष्ट्रनिर्माण कर सकती है । लोकमान्य की बुद्धि इसी तरह की थी। 'सुख- दु.ख समे कृत्वा लाभा लाभौ जया जयौ' बुद्धि का यह समत्व उनके पास था औौर 'योग. कर्मसु कौशलम्' मे वर्णित कर्मयोग भी उन्हें
सहज प्राप्त था ।
लोकमान्य की राजनीति का अंतर क्रान्तिवादी था, परन्तु उनके मन मे पहले से ही यह दृढ निश्चय था कि हिन्दुस्तान मे क्राति जनता के द्वारा करानी होगी और उसका स्वरूप लोक सत्ताक होगा । लोक-चल का सगठन कैसे किया जाय और उनका सामर्थ्य कैसे बढ़ाया जाय यह वे जानते थे । सूरत मे काग्रेस के दो टुकडे हो गये । प्रागतिक ढल वालों ने अपना 'कन्वेन्शन' ज्यों-त्यों चालू रक्खा । राष्ट्रीय दल जिस काग्रेस को चाहता था वह नष्ट हो गई। इस सारी परिस्थिति पर विचार करके उन्होंने यह तजवीज की कि काग्रेस पर कब्जा किया जाय । उसका वर्तमान ध्येय स्वीकार करके ही वे उसकेर टाखिल हो सकते थे। वे जानते थे कि राजनैतिक सस्था में राष्ट्र - शक्ति के प्रविष्ट हो जाने पर उनके साधन और साव्य उसके विकास के साथ ही साथ बटलने चाहिए । जिस मात्रा मे राष्ट्र-शक्ति का विकास होता जाता है उसी मात्रा मे को अधिक उच्च ध्येय सूने और पटने लगते हैं।
मे घुसने का अवसर न मिला तो राष्ट्र-शक्ति के सगठन के सस्था खडी करके उसके द्वारा राष्ट्र का काम करने की उनकी तैयारी थी । हम यह देखें कि इस समय काग्रेस का रुख क्या था । इस वक्त को काग्रेस प्रागतिकों की काग्रेस थी, जिसपर सूरत में औपनिवेशिक स्वराज्य का व्येय व वैध नीति लढ गई थी । कुछ प्रागतियों की यह इच्छा थी कि सूरत की फूट फिर से जुड़ जाय, लेकिन वे अपना नया ध्येय बदलने को तैयार न थे। इनमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, प० मालवीयजी व गोखले तो इस मत के थे कि यदि गरम दल के लोग नई परिस्थति के अनुकूल होकर काग्रेस में आना मजूर करे तो उन्हें लेकर फूट मिटा ली
जाय, किन्तु सर फीरोजशाह मेहता गरम दल वालों को किसी तरह कायस में आने देना नहीं चाहते थे । सूरत के बाद, सन् १६०८ में मद्रास में डा० रासबिहारी घोष के व सन् १९०६ मे लाहौर में प० मालवीयजी के सभापतित्व में काग्रेस के अधिवेशन हुए । लाहौर अधिवेशन के अध्यक्ष सर फीरोजशाह मेहता चुने गये थे, लेकिन गरम दल को काग्रेस में शामिल न करने के अपने मत के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया व मालवीयजी अध्यक्ष बनाये गये । परन्तु जबतक लो० तिलक छूटकर नही या जाते तबतक इस मेल के प्रयत्न मे सफलता मिलनी कठिन थी 1 फिर जब १६१४ मे लोकमान्य छूटकर आ गये तब श्रीमती वेसेंट ने भी इस मत को जोर की गति दी कि गरम दल से मेल कर लेना चाहिए । इस समय तक मा० गोखले ने भी खुद अपने अनुभव से यह देख लिया था कि मॉर्ले-मिंटो सुधार कितने निराशाजनक हैं और उनके द्वारा प्रारम्भिक शिक्षा के जैसा प्रश्न भी हल नहीं हो सकता था। इधर ब्रिटिश राजनेता भी यह महसूस करने लगे थे कि लार्ड हार्डिंग के प्रांतिक स्वराज्यसबधी सुधारों का विकास करने की आवश्यकता है। फिर यूरोपीय महायुद्ध शुरू हो गया था, इससे सभी यह मानने लगे थे कि युद्ध में हिन्दुस्तान की सहायता लेने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार दिये जायेंगे व दिये जाने चाहिए। ऐसे समय नरम-गरम दोनों दलों के एक हो जाने से देश का चढा हित होगा ऐसी राय गोखले, बनर्जी और मालवीयजी की थी। डा० वेसेंट व तत्काल न काग्रेस के मन्त्री श्री सुव्वाराव पतलू की मध्यस्थता से यह तय हुआ कि गरम अर्थात् राष्ट्रीय दल तो प्रागतिक अर्थात् नरम ढल वालों का ध्येय स्वीकार कर ले व राष्ट्रीय टल की जो सस्थाएँ इस ध्येय को मान ले, उन्हें प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया जाय। यह शर्त प्रागतिक लोग मजूर कर लें व टोनों दल के लोग बहुमत के निर्णय पर चलकर एक्ता से रहें । प्रागतिकों ने यह भी मजूर किया था कि आगामी मद्रास - काग्र स मे यह समझौता पास करा लिया जायगा ।
लेकिन इस बीच में तिलक व गोखले के दरम्यान हुई एक बातचीत से गोखले को यह निश्चय हो गया कि तिलक-पक्ष का मत परिवर्तन नहीं
हुआ है, बल्कि अपने पुराने मत पर उन लोगों की वैसी ही दृढ श्रद्धा है। वे एक आपद्धर्म के तौर पर प्रागतिकों का ध्येय मजूर कर रहे हैं । त उन्होंने ( गोखले ने ) मद्रास काग्रेस के मनोनीत सभापति बा० भूपेन्द्रनाथ वसु को एक पत्र लिखा व बताया कि तिलक के भाव विचार क्या हैं व क्यों उनसे समझौता न करना चाहिए । पत्र में उन्होंने कहा कि तिलक तो काग्रेस के द्वारा सरकार से स्वराज्य को एक ही मॉग करना चाहते हैं व जबतक वह मजूर न हो तबतक अडगे की नीति के द्वारा सरकार तंत्र को वेकार बनाकर अग्रज राजनेताओं को काग्रेस को शरण आने पर वाध्य करना चाहते हैं । यदि काग्रेस के द्वारा यह नीति न चलाई जा सके तो 'राष्ट्रीय सघ' के नाम से अलग संगठन बनाकर उसके द्वारा अपना कार्यक्रम पूरा करेंगे। अर्थात् तिलक वही पुराने तिलक बने हुए हैं, यह उन्होंने भूपेन बाबू को बताया। इसके फलस्वरूप समझौते का प्रश्न फिर एक साल के लिए आगे चला गया । अपने इस रुख परिवर्तन का स्पष्टीकरण गोखले ने इस प्रकार किया- "हम समझ गये थे कि नवीन परिस्थिति के कारण तिलकपक्ष का मत व नीति बदल गई हैं, किन्तु बाद में हमें अपना यह भ्रम मालूम हुआ। अतएव हमने समझौते का विरोध किया । सच पूछा जाय तो १६०७ में भी गरम-नरम दल का विरोध अन्तिम ध्येय-सनधी उतना नहीं था जितना इस प्रश्न पर था कि अगेकी नीति कार की जाय या सहयोग की और अपनी शक्ति स्वराज्य की एक ही मूलग्राही मॉग पर केन्द्रित की जाय या फुटकर सुधारों पर बिखेरी जाय । "
लो० तिलक को अपनी अडगा या विरोध नीति चलाने के लिए. काग्रेस पर कब्जा करना व उसे प्रचल व सगठित बनाना आवश्यक था । उन्हें यह आत्मविश्वास था कि एक बार काग्रेस में घुस जाने पर वह हमारे अनुकूल ही साबित होगी, क्योंकि वे मानते थे कि सरकारी दमननीति के कारण लोकमत दबा हुआ है। यों वह उनकी नीति के अनुकूल ही है।
इधर १६१५ में मा० गोखले व सर मेहता दोनों धुरधर प्रागतिक नेता परलोकवासी हो गए । उस साल काग्रेस बबई में हुई थी। उसमें
समझौते का प्रस्ताव पास हो गया व १६१६ की लखनऊ-काग्रेस में राष्ट्रीय दल लोकमान्य के नेतृत्व में उपस्थित हुआ । इस साल ऐसा अनुभव होने लगा मानो तिलक ने काग्रेस पर कब्जा कर लिया। इसी साल स्वराज्य की एक सर्वसम्मत मॉग पेश की गई व मुस्लिम लीग का भी समर्थन लोकमान्य ने जिना, महमूदाबाट के राजा व डा० अनसारी आदि मुसलमानों के नेताओं से समझौता करके प्राप्त कर लिया था। उस समय अपने भाषण में उन्होंने कहा था, "जिस वहिष्कार संबंधी प्रस्ताव पर इतना झगड़ा हुआ था उनसे भी यह प्रस्ताव अधिक महत्व का है। हिंदू, मुसलमान, नरम-गरम सच दलवालों ने सयुक्तप्रात में संयुक्त होकर स्वराज्य में की हलचल करने का निश्चय किया है और हमें यह सौभाग्य (Luck) अ (now ) लखनऊ ( Lucknow ) में मिला है। * कुछ लोग यह शिकायत करते हैं कि हिन्दुओं को मुसलमानों के सामने झुकना पड़ा है। पर मै कहता हूँ कि अकेले मुसलमानों को भी स्वराज्य के अधिकार दिये गये तो हम उसे बुरा न मानेगे । यह कहते समय मैं हिन्दुस्तान के तमाम हिन्दुओं की भावना व्यक्त कर रहा हूँ । यदि अकेले राजपूत या पिछड़ी जातियों को ज्यादा लायक समझकर उन्हें सब अधिकार दे दिये जायँ तत्र भी मैं कुछ नहीं कहूँगा । हिन्दुस्तान के किसी भी वर्ग को दिये जायँ तत्र भी मुझे कोई चिंता नहीं है, क्योंकि तब झगडा उस वर्ग वशेष समाज के बीच ही रहेगा, आज का तिरंगी सामना तो मिट जायगा ।"
लोकमान्य का निश्चित मत था कि स्वराज्य के लिए केवल प्रस्ताव पास करने से काम न बनेगा, सारे देश में जोर का आन्दोलन करना पडेगा, लेकिन काग्रे स के जरिये एकाएक ऐसा होना शक्य नहीं था। अत एव उन्होंने 'होमरूल लीग' या 'स्वराज्य सघ' नामक एक स्वतंत्र सस्था खड़ी की । काग्रेस की मॉग के लिए साल भर लगातार आन्दोलन करते रहना इसका काम था। मद्रास में डा० वेसेंट ने भी ऐसा ही एक स्वराज्य सघ शुरू किया था, लेकिन दोनों को एक कर देने की उनकी तैयारी न थी। मगर लोकमान्य का खयाल था कि कांग्रेस का काम करनेवाले ये दोनों सघ एक हो सकते हैं। उन्होंने अपने लेखों में यह स्पष्ट
* We have that luck now in Lucknow
किया था कि 'स्वराज्य संघ' का कांग्रेस से विरोध नही, उलटा वे यह काम करेगे जो काग्रेसकन कर पाई थी । भिन्न-भिन्न प्रातो में 'स्वराज्य सघ' स्थापित हों तो उनमें परस्पर विरोध होने की कोई गु जायश नहीं है ।
लोकमान्य ने यद्यपि 'स्वराज्य' शब्द का भाषान्तर 'होम रूल' कर दिया व सम्राट के प्रति वफादारी की घोषणा भी कर टी तथापि नौकरशाही यह अच्छी तरह जानती थी कि उनके आन्दोलन से जो लोकशकि निर्माण होनेवाली है वह उसके लिए मारक ही साबित होगी। इसलिए उसने १६१६ में लोकमान्य पर राजद्रोह का तीसरा मुकदमा चलाया और इधर बबई सरकार ने उन्हीं दिनों डा० वेसेट को बबई - प्रात में थाने से रोक दिया, परन्तु बम्बई हाईकोर्ट ने लोकमान्य को चरी कर दिया जिसमे वे लखनऊ नाकर काग्रेस में स्वराज्य के प्रस्ताव पर एकवाक्यता करा सके। किन्तु लखनऊ के बाद फिर तिलक महाराज व डा० सेट के आदोलन को दबाने की शुरूआत नौकरशाही ने कर टी, जिसका पहला कदम था भारतरक्षा कानून के मातहत डा० वेसेंट व श्रीएरु डेल को मद्रास-प्रात में नजरबढ कर देना । इस टमन नीति के साथ ही मद्रास के तत्कालीन गवर्नर लार्ड पेटलैंड ने मेद-नीति से भी काम लेना शुरू किया। उन्होंने कहा कि 'सरकार काग्रेस के खिलाफ नहीं है, स्वराज्य सघ के विचारों के खिलाफ है। इसपर लोकमान्य ने जवाब दिया कि '१६०८ मे सरकार की नीति थी -- नरम दल व गरम को दफना काग्रे स-विरोध न बताना व स्वराज्यसघ को टनाना वही पुरानी भेद नीति है । वस्तुत. काग्रेस व स्वराज्य सघ के लक्ष्य में कोई अन्तर नहीं है । अतः इस समय हमे 'वय पचोत्तर शतम्' वाली कहावत चरितार्थ करनी चाहिए। जो ऐसा नहीं करेगा वह भावो इतिहास मे देशद्रोही गिना जायगा ।'
इस प्रकार लोकमान्य के आवाज उठाने पर डा० वेसेंट की नजरवढी के खिलाफ देश में बड़े जोर की लहर उठ खड़ी हुई व फिर से स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा एवं कौंसिलों से इस्तीफे व सत्याग्रह तक की चर्चा राजनैतिक क्षेत्रों में होने लगी। अतक जो बडे-बडे लोग स्वराज्यसंघ से दूर रहते थे वे उसमें शामिल होने लगे। नरम गरम का भेट कतई मिट गया । कलकत्ते में तय हुआ कि सारे बंगाल प्रान्त में स्वराज्य का
आन्दोलन चलाया जाय। लखनऊ में भी मुसलमानों ने पेटलैंड साहब का विरोध करके डा० वेमेंट के प्रति अपनी हमदर्दी जाहिर की । कौसिलो के मभासद वीत, वैरिस्टर, सत्र हर सूबे में होमरूल लीग के सदस्य बनने लगे। हजागे लोग अपना यह हद नक्ल्प प्रकट करने लगे कि सरकार नाराज हो तो पर्वाह नहीं, न्यगज्य-प्राप्ति के लिए हम वरावर उद्योग करते रहेंगे। भारत रक्षक नेना ने लिए जो भरती करना चाहते थे उन्होंने वह बन्द कर दिया । स्वदेशी शिकार की शपथ ली जाने लगी। पेंटलैंड साहब को वापस बुलाने के लिए विलायत तार जाने लगे। मि० बोमनजी अरे ने स्वराज्य आन्दोलन चलाने के लिए एक लाख रु० देने का
अभियन्चन दिया। यह चर्चा भी चली कि श्रीमती वैसेंट को छुड़ाने के लिए सत्याग्रह छेड़ा जाय । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, मुम्लिम लीग, होमरूल लीग टि मन्थाएँ इसमें दिलचसी लेने लगी। उन्हीं दिनो प्रयाग में प० मालवीयजी की तमे लो० तिलक का खगज्य पर भाषण हुआ जिसमें उन्होंने मत्या थवा निशन्स प्रतिकार के बारे में कहा-
जो कानून कायदे न्याय व नीति के विरुद्ध हो उनका हम पालन नहीं कर मक्ते । निशन्त प्रतिकार माधन है, माध्य नही । किमी सास हुक्म को मानने या न मानने से क्या हानि-लाभ होगा, इसका विचार करके काम करना नि शन्त्र प्रतिकार है। यदि हमारी ममतोल बुद्धि ने यह फैसला दिया कि ग्राम गलती से इन हुक्म को तोड़ना ही लाभदायक है तो इस नियम पर चलना नैतिक दृष्टि से समर्थनीय होगा । लेकिन इन प्रश्न का निर्णय इतनी बड़ी सभा में नहीं किया जा सकता। वह आपको अपने नेताओं पर ही छोड़ना चाहिए। हमागे लक्ष्य मिद्धि के मार्ग में कृत्रिम व ग्रन्या कानून या परिस्थति बाधक हो उसका मुकाबला करना निशस्त्र प्रतिकार है । निगन्न प्रतिकार बिलकुल वैव है । इतिहास ने यह साबित कर दिया है कि कानून सगत व विधि-विहित दो अलग-अलग शव्द है। जबतक कोई भी कायदा न्याय व नीति सगत न हो व १९वीं२० वी मढ़ी की नीति के अनुकूल लोकमतानुमार न हो तबतक वह कानून-मगत भले ही हो, विधिविहित नहीं हो सकता । यह भेद ग्राप
तरह समझ लें । मे कहता हूँ कि श्राप बिलकुल वैध मार्ग पर
चलिए । परन्तु साथ ही मै यह कहता हूँ कि प्रत्येक कायटा शास्त्रीय अर्थ में 'वैध' नहीं हो सकता । "
इन्हीं दिनों महात्मा गाधी हिदुस्तान में अपना दो साल का प्रारंभिक निरीक्षण कार्य पूरा करके चम्पारन मे सत्याग्रह का पहला प्रयोग कर रहे थे । इसी समय अप्रैल में उन्होंने उस जिले के मैनस्ट्रिट का हुक्म खुल्लमखुल्ला तोडा था व अन्त को सरकार के हुक्म से वह निषेधाज्ञा वापस ले लेनी पडी थी। इस तरह अब भारतीय राजनीति धीरे धीरे सत्याग्रह के पथ पर अग्रसर हो रही थी । लो० तिलक इस सिद्धान्त का प्रकट रूप से समर्थन करने लगे थे । इतने ही में डा० वेसेट छोड दी गई व ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की कि 'हिन्दुस्तान को स्वराज्य मिलेगा लेकिन यह किस्तों में दिया जायगा। पहली किस्त महायुद्ध के बाद मिलेगी, बाकी के किस्तें कच दी जायेंगी इसका फैसला पार्लामेंट समय-समय पर करेगी व पहली किस्त की योजना बनाने के लिए व भारत का लोकमत जानने के लिए भारत मन्त्री माटेगू साहव हिन्दुस्तान आयेंगे।' इससे वह क्षुब्ध वातावरण कुछ देर के लिए शान्त हो गया व जबतक मागू-सुधारों का रूप सामने नहीं आ जाता तबतक स्वराज्य के लिए सत्याग्रह का या प्रत्यक्ष प्रतिकार का प्रश्न खडा होने का कारण नहीं रहा ।
१६१७ के दिसंबर में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ते में होनेवाला था । राष्ट्रीय दल ने अध्यक्ष के लिए डा० वेसेंट का नाम सुझाया । वह मजूर भी हो गया । सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि प्रागतिकों को यह पसद नहीं हुआ, लेकिन इस समय काग्रेस में तिलक महाराज का बोलबाला था । इसका फल यह हुआ कि प्रागतिक अपनीला 'प्रागतिक परिषद्' बनाई । कलकत्ता काग्रोस में मुख्य प्रश्न स्वराज्य का ही था । काग्रेस व मुस्लिम लीग ने अपनी मागों की एक तजवीज तैयार कर रक्खी थो । उसका समर्थन तो करना ही था, पर साथ ही मारटेगू साहब की स्वराज्य घोषणा पर भी उसे अपनी राय देनी थी । लोकमान्य आदि राष्ट्रीयनेताओं ने इस योजना के तीन हिस्से किये थे : (१) हिन्दुस्तान को स्वराज्य देना, (२) वह किस्तों में देना और (३) इन किस्तों के स्वरूप व समय का निश्चय पालीमेंट द्वारा होना। इनमें पहले दो हिस्से नेताओं को मजूर
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80. हितबद्ध पक्षकारों के इस तर्क के विपरीत कि कच्चे माल की कीमत में उतार-चढ़ाव के कारण घरेलू उद्योग को क्षति हुई है, और घरेलू उद्योग अपने माल की उस कीमत पर बिक्री करने में सक्षम रहा जो आयात कीमतों से मेल खाती है, इसके द्वारा कोई कीमत अधोरदन अथवा क्षति हुई है, यह देखा जाता है कि घरेलू उद्योग की बिक्री कीमत और आयातित उत्पादों के उतराई मूल्य के बीच ऋणात्मक कीमत अधोरदन है, जैसा कि उपर्युक्त तालिका में दर्शाया गया है। यह देखा जाता है कि घरेलू उद्योग की बिक्री कीमत आयातित उत्पाद के उतराई मूल्य से कम है। इससे पुनः यह स्पष्ट होता है कि यह विचाराधीन उत्पाद घरेलू रूप से तथा आयातित रूप से प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध है। इससे यह विश्वास और भी सुदृढ़ होता है कि यद्यपि वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2012-13 में आयातों में उद्रेक रहा है, तथापि, ऐसा इस विचाराधीन उत्पाद की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए हुआ है। इसके अतिरिक्त, हितबद्ध पक्षकारों द्वारा किए गए प्रस्तुतिकरण के अनुसार स्व-नियंत्रित उत्पादन के तर्क के साथ-साथ संस्थापित क्षमता की सीमाओं और उत्पाद बास्केट के बीच इस विचाराधीन उत्पाद की सीजनल उपलब्धता ने भी कभी-कभार इसमें अपना योगदान दिया है। जन हितः रक्षोपाय करार के अनुच्छेद- 3 में निम्नलिखित उल्लेख किया गया है
"कोई सदस्य गाट 1994 के अनुच्छेद-10 के अनुसरण में विगत रूप से सुस्थापित और सार्वजनिक की गई प्रक्रियाओं का अनुसरण करके सक्षम प्राधिकारियों के किसी सदस्य द्वारा निम्नलिखित जांच करके रक्षोपाय शुल्क का अनुप्रयोग कर सकता है। इस जांच में सभी हितबद्ध पक्षकारों को तर्क संगत सार्वजनिक नोटिस और सार्वजनिक सुनवाई अथवा अन्य कोई समुचित साधन शामिल होगा जिसमें आयातक, निर्यातक और अन्य हितबद्ध पक्षकार अपने विचार एवं साक्ष्य प्रस्तुत कर सके जिसमें अन्य पक्षकारों द्वारा किये गये प्रस्तुतिकरण का प्रत्युत्तर देने तथा अन्य बातों के साथ-साथ अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर मिल सके कि क्या रक्षोपाय शुल्क का अनुप्रयोग करना जनहित में होगा या नहीं। सक्षम प्राधिकारी एक रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे जिसमें अपने निष्कर्ष बतायेंगे और तथ्यों तथा विधि के सभी संगत मुद्दों के संबंध में तर्कसंगत निष्कर्ष प्रदान करेंगे।"
अर्थव्यवस्था में कभी-कभार विभिन्न आर्थिक पक्षकारों के हित विभिन्न एवं परस्पर प्रतिस्पर्धी हो जाते है। रक्षोपाय शुल्क का अधिरोपण विभिन्न पक्षकारों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित कर सकता है और यह प्रभाव सभी विभिन्न आर्थिक पक्षकारों के लिए हमेशा सर्वाधिक उपयुक्त हो यह भी संभव नहीं है, खासकर तब जबकि उनके हित परस्पर प्रतिस्पर्धी हो। अतः विभिन्न आर्थिक पक्षकारों समूहों के हितों का उपलब्ध सूचना के आधार पर विश्लेषण किया गया।
जन हित के प्रश्न के संबंध में किये गये लिखित प्रस्तुतिकरण में घरेलू उद्योग ने उल्लेख किया है कि उन्होंने भारत में बढ़ती मांग को पूरा करने तथा भारत में रोजगार सृजित करने के लिए उन्होंने महाड, महाराष्ट्र में एक नई उत्पादन सुविधा की स्थापना की है और उस पर भारी निवेश किया है और अतः भारत में संबद्ध वस्तु के आयातों पर रक्षोपाय शुल्क अधिरोपण करना तथा शैशव काल में मौजूद घरेलू उद्योग को तत्काल संरक्षण प्रदान करना जनहित में होगा। तथापि उन्होंने उनके उत्पाद का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले अधोगामी उद्योग पर रक्षोपाय शुल्क के अधिरोपण के न्यूनतम प्रभाव, यदि कोई, और उस अधोगामी उद्योग द्वारा विनिर्मित अंतिम उत्पाद का प्रयोग करने वाली जनता पर उसके परिणामी प्रभाव के संबंध में सांख्यिकीय आंकड़ों के रूप में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।
दूसरी ओर, अन्य हितबद्ध पक्षकारों ने प्रस्तुतिकरण किया है कि दो उपभोक्ता सेगमेंट अर्थात पाइराजोलोन उद्योग और फार्मा उद्योग भारत में मिथाइल एसिटोएसिटेट की अधिकांश खपत करते हैं। उन्होंने पुनः यह प्रस्तुतिकरण किया है कि पाइराजोलोन उत्पादकों का बड़े पैमाने का संगठन नहीं है और वे छोटे-छोटे व्यापारी उद्यम है जो अपने उत्पाद में काफी लंबे समय तक वित्तीय घाटे को सहन करने में समर्थ नहीं होते है। रक्षोपाय शुल्क का किसी प्रकार का अधिरोपण इन विनिर्माताओं को पाइराजोलोन का विनिर्माण बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और इसके परिणाम स्वरूप मिथाइल एसिटोएसिटेट की मौजूदा मांग समाप्त हो जाएगी। इन पक्षकारों ने पुनः यह प्रस्तुतिकरण किया है कि फार्मा उद्योग मिथाइल एसिटोएसिटेट की खपत
एमोक्सी फार्मूलेशन्स का उत्पादन करने के लिए करते है जो डीपीसीओ के अंतर्गत कवर होता है। चूंकि इस उद्योग का अंतिम उत्पाद डीपीसीओ के अधीन होता है इसलिए यह उद्योग बाजार में अपने उत्पाद की कीमतों में वृद्धि नहीं कर सकता है। तथापि इसके कच्चे माल अर्थात मिथाइल एसिटोएसिटेट पर रक्षोपाय शुल्क का अधिरोपण करने से इसकी लागत में वृद्धि हो जाएगी और एमोक्सी फार्मूलेशन्स का उत्पादन अर्थक्षम नहीं रहेगा जिससे इस उद्योग को अपना उत्पादन बंद करने अथवा किसी अन्य विकल्प की ओर देखने के लिए मजबूर होना पड़ जायेगा। यह कारक उपभोक्ता / जनहित में नहीं होंगे।
घरेलू उद्योग ने अपने प्रत्युक्ति प्रस्तुतिकरणों में उपर्युक्त प्रस्तुतिकरणों का खंडन यह उल्लेख करके किया है कि अधोगामी फार्मास्युटिकल्स उत्पादक अनन्यतः निर्यातोन्मुखी इकाईयां हैं और वे निर्यात के लिए स्थापित की गई हैं तथा भारतीय घरेलू मांग को पूरा नहीं करती हैं। तथापि उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कोई दस्तावेजी साक्षय प्रस्तुत नहीं किया है।
जहां तक कुछ हितबद्ध पक्षकारों द्वारा उठाये गये इस प्रश्न का सवाल है कि भारत में पाइराजोलोन के उत्पादकों को संभावित क्षति होगी, इस संबंध में घरेलू उद्योग द्वारा यह प्रस्तुतिकरण किया गया है कि अधोगामी उत्पाद के पाटन के कारण अधोगामी उत्पादकों द्वारा सहन की गई क्षति के लिए विचाराधीन उत्पाद पर उदग्रहण किये जा रहे रक्षोपाय शुल्क को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पाइराजोलोन के उत्पादकों को एमएएई पर रक्षोपाय शुल्क अधिरोपित न होने के बावजूद उन्हें गंभीर क्षति पहले से ही हो रही है जिससे यह स्पष्ट होता है कि इन उत्पादकों की चिंता का कारण अपर्याप्त पाटन रोधी शुल्क है न कि विचाराधीन उत्पाद पर उदग्रहण किया जा रहा शुल्क।
इस मामले की जांच की गई है। यह नोटिस किया गया कि घरेलू उद्योग भारत में विचाराधीन उत्पाद का एक मात्र उत्पादक है और उसका बाजार में 100 प्रतिशत बाजार हिस्सा है। यद्यपि कुछ हितबद्ध पक्षकारों ने तर्क दिया है कि यदि रक्षोपाय शुल्क का अधिरोपण कर दिया जाता है तो घरेलू उद्योग को लाभ होगा इससे घरेलू उद्योग की एकाधिकारवादी प्रवृति बढ़ जायेगी। तथापि किसी भी हितबद्ध पक्षकार ने अपने दावे के समर्थन में कोई दस्तावेज साक्षय प्रस्तुत नहीं किया है। इसके साथ ही घरेलू उद्योग ने भी अपने इस तर्क के समर्थन में की रक्षोपाय शुल्क का अधिरोपण करना अंततः जनहित में होगा कोई मूर्त साक्षय उपलब्ध नहीं कराया है। उन्होंने केवल उल्लेखन ही किया है। यह भी देखा गया है कि यह विचाराधीन उत्पाद सीजनल रूप से उपलब्ध है। घरेलू उद्योग इस विचाराधीन उत्पाद के साथ-साथ कई अन्य उत्पादों का एक ही फैक्ट्री में अन्य उत्पादों के साथ संयोजन करके उत्पादन करते हैं जिसका पहले वर्णन किया जा चुका है। इस विचाराधीन उत्पाद का उत्पादन करने की क्षमता 4950 मी. टन तक सीमित है परंतु वे उत्पाद के स्विंग मोड का प्रयोग करके अपना उत्पादन 7260 मी. टन तक कर सकते हैं।
एक हितबद्ध पक्षकार द्वारा यह तर्क दिया गया है कि आयातों की चक्रीय प्रवृति विवेकाधीन है। उनके द्वारा यह उल्लेख किया गया है कि आयातों की मात्रा पहली तिमाही और द्वितीय तिमाही में अधिक रही है जबकि तृतीय तिमाही और चतुर्थ तिमाही में इसकी मात्रा कम रही है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि तृतीय तिमाही और चतुर्थ तिमाही के दौरान जब आयात न्यूनतर रहे तो घरेलू बिक्रियों में अचानक वृद्धि हो गयी। यह इस कारण है कि पहली दो तिमाहियों के दौरान घरेलू उद्योग अपनी सीमित क्षमता का उपयोग मोनोमिथाइल एसिटोएसिटेट (एमएमएए) का उत्पादन करने में करते हैं जिससे उन्हें मिथाइल एसिटोएसिटेट की बिक्री में अधिक लाभ प्राप्त होता है क्योंकि एमएमएए की मांग सीजनल होती है जो केवल पहली दो तिमाहियों तक ही सीमित रहती है। अतः घरेलू उद्योग का यह अभिकथन कि आयातों से घरेलू उद्योग का भारतीय बाजार में मिथाइल एसिटोएसिटेट से विस्थापन हो रहा है, असत्य है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यह देखा जा सकता है कि वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में एमएमएए के उत्पादन का अनुपात एमएए के उत्पादन की तुलना में अधिक रहा है जैसाकि निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है।
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.रहतीं, उसके बदले वहाँ एक बड़ी बोतल में चमकती हुई सुनहरी मछलियाँ ऊपर• नीचे भा जा रही थीं। बोतल के ऊपर मास्टर साहब के हस्ताक्षरों में वेणु के नाम लिखा एक कागज चिपका था । और एक नई मच्छी जिल्द वाली अंग्रेजी तस्वीरों की किताब थी, उसके भीतर के पन्ने पर एक कोने में वेरणु का नाम और उसके नीचे प्राज की तारीख, महीना और सन् लिखा था ।
वेरसु ने दौड़कर अपने पिता के पास जाकर कहा, "पिताजी, मास्टर साहब कहाँ गए ? "
पिता ने उसे पास खीचते हुए कहा, "वे काम छोड़कर चले गए हैं।" वेणु पिता का हाथ छुड़ाकर पास के कमरे में बिछौने के ऊपर भौंधा लेटकर रोने लगा । व्याकुल होकर अघर बाबू कुछ सोच न सके कि क्या करें । दूसरे दिन साढ़े दस बजे हरलाल मेस के एक कमरे में चौकी के ऊपर उदास बैठा हुम्रा सोच रहा था कि कॉलेज जाए या नहीं । इसी बीच हठात् देखा कि पहले प्रधर बाबू के दरबान ने कमरे में प्रवेश किया और उसके पीछे वेरपु कमरे में घुसते ही हरलाल के गले से लिपट गया। हरलाल का गला भर आया; बोलते ही उसकी आँाँखों से आँसू टपक पड़ेंगे इस डर से वह कुछ भी नहीं कहसका । वेरणु ने कहा, "मास्टर साहब, हमारे घर चलो ! "
वेणु अपने वृद्ध दरबान चन्द्रभान के पीछे पड़ गया था कि जैसे भी हो उसे मास्टर साहब को घर ले ही चलना होगा। मुहल्ले का जो कुली हरलाल का पिटारा उठाकर लाया था उससे पता लगाकर श्राज स्कूल जाने वाली गाड़ी में चन्द्रभान ने वेणु को हरलाल के मेस में लाकर उपस्थित कर दिया ।
हरलाल का वेणु के घर जाना क्यों एकदम प्रसंभव था, यह वह कह भी नही सका और उसके घर भी नहीं जा सका। वेणु ने जो उसके गले से लिपटकर उससे कहा था, 'हमारे घर चलो' - इस स्पर्श और इस बात की स्मृति ने कितने दिन, कितनी रातें उसके गले का दबाकर जैसे उसकी साँस को रोक कर रखा हो । किन्तु, धीरे-धीरे ऐसा दिन भी आया जब दोनों ओर का सब-कुछ समाप्त हो गया, हृदय की नसों को जकड़कर वेदना - निशाचर चमगादड़ के समान फिर लटकता नहीं रह सका ।
बहुत प्रयत्न करने पर भी पढ़ने में हरलाल वैसा मनोयोग फिर नहीं दे पाया । किसी भी प्रकार स्थिर होकर वह पढ़ने नहीं बैठ पाता था। पढ़ने की थोड़ी-सी चेष्टा करते ही झट पुस्तक बन्द कर देता और अकारण ही तेजी से रास्ते
का चक्कर लगा आता। कॉलेज में लेक्चरों को नोट करने में बीच-बीच में बड़ा व्यवधान पड़ जाता और बीच-बीच में जो कुछ घिच- पिच लिख पाता उसके साथ प्राचीन ईजिप्ट की चित्र लिपि को छोड़कर भोर किसी वर्णमाला का सादृश्य नहीं था ।
हरलाल ने समझा कि ये सब अच्छे लक्षण नहीं है। परीक्षा में बर्फ वह उत्तीर्ण हो भी जाय, लेकिन छात्रवृत्ति पाने की कोई संभावना नहीं थी। वृत्ति पाए बिना कलकत्ता में उसका एक दिन भी काम नहीं चलेगा। दूसरी भोर घर माँ को भी दो-चार रुपए भेजने चाहिए। बहुत सोच-विचार करके वह नौकरी की कोशिश में बाहर निकला। नौकरी पाना कठिन था। किन्तु न मिलना उसके लिए और भी कठिन था; इस कारण प्राता छोड़कर भी वह भाशा नहीं छोड़
हरलाल के सौभाग्य से एक बड़े अँग्रेज़ सौदागर के कार्यालय में उम्मीदवारी के लिए जाने पर हठात् बड़े साहब की निगाह उस पर पड़ गई। साहब का विश्वास था कि वह चेहरा देखकर मादमी पहचान लेता था। हरलाल को बुलाकर उसके साथ दो-चार बातें करके उन्होंने मन-ही-मन सोचा, 'यह भादमी ठीक रहेगा ।' प्रश्न किया, "काम जानते हो ? " हरलाल ने कहा, "नहीं," "जमानत दे सकोगे ?" उसका उत्तर भी 'नहीं' मिला। "किसी बड़े भावमी से सर्टीफिकेट ला सकते हो ?" वह किसी बड़े ग्रादमी को नहीं जानता था ।
सुनकर साहब ने जैसे मोर भी खुश होकर कहा, "प्रच्छा ठीक, पच्चीस रुपये वेतक पर काम प्रारम्भ करो, काम सीखने पर उन्नति होगी।" उसके बाद साहब ने उसकी वेश-भूषा की भोर देखते हुए कहा, "पन्द्रह रुपया पेशगी देता हूँ, थ्रॉफिस के उपयुक्त कपड़े तैयार करा लेना ! "
कपड़े तैयार हुए, हरलाल ने ऑॉफिस जाना भी शुरू कर दिया। बड़े साहब उससे भूत के समान काम कराने लगे। और बलकों के घर चले जाने पर भी हरलाल को छुट्टी नहीं मिलती थी। कभी-कभी साहब के घर जाकर भी उन्हें
काम समझा आना पड़ता ।
इस तरह काम सीख लेने में हरलाल को देर नहीं लगी। उसके सहयोगी चलकों ने उसे नीचा दिखाने की बहुत कोशिश की, उसके विरुद्ध ऊपर के लोगों से चुगली भी की, किन्तु इस मूक, निरीह, सामान्य हरलाल का कोई भपकार नहीं कर सका ।
जब उसकी तनख्वाह चालीस रुपये हो गई, तब हरलाल घर से माँ को लाकर एक मामूली-सी गली में छोटे घर में रहने लगा। इतने दिनों बाद उसकी
माँ का दुःख दूर हुआा। माँ बोली, "बेटा, मंब घर में बहू लाऊंगी।"
हरलाल ने माता के पैरों को धूल लेकर कहा, "माँ, इसके लिए माफ़ी देनी पड़ेगी ।"
माता का एक और अनुरोध था । उन्होंने कहा, "तू जो दिन-रात प्रपने छात्र वेणुगोपाल की बात करता है, उसको एक बार भोजन के लिए निमंत्रित कर ! उसे देखने की मेरी इच्छा है ।'
हरलाल ने कहा, "माँ, इस घर में उसे कहाँ बैठाऊंगा । ठहरो, एक बड़ा घर तो लूं, उसके बाद उसे निमंत्रित करूँगा ।"
वेतन वृद्धि के साथ छोटी गली से बड़ी गली में और छोटे घर से बड़े में हरलाल का निवास-परिवर्तित होता गया। तब भी वह पता नहीं मन में क्या सोचकर घघरलाल के घर जाने या वेणु को अपने घर बुला लाने का किसी प्रकार निश्चय नहीं कर पाया ।
शायद उसका संकोच कभी भी न मिटता । तभी अचानक खबर मिली, कि वेणु की माँ जाती रही । सुनकर क्षरण-भर भी देर न करके वह प्रधरलाल के घर जाकर पहुँचा ।
इन दो असमवयसी मित्रों का बहुत दिन बाद फिर एक बार मिलन हुआ । वेणु के सूतक का समय बीत गया, तो भी इस घर में हरलाल का आनाजाना चलता रहा। किन्तु, ठीक पहले जैसा मम कुछ नहीं रहा। वेणु भम बड़ा होकर अँगूठे और तर्जनी से अपनी नई मूंछों की रेखा को सँभालने लगा था। चाल-चलन में बाबूपन झलकने लगा था। अब उसके योग्य बन्धु-बान्धवों का भी प्रभाव नहीं था । फोनोग्राफ पर थिएटर की नर्तकियों के हल्के गाने बजाकर वह मित्रों का मनोरंजन करता। सोने के कमरे की वह पुरानी और टूटी चौकी मौर धब्बों वाली टेबिल जाने कहाँ गई। शीशे, तस्वीर, सामान से कमरा जैसे छाती फुलाए हुए हो । वेणु अब कॉलेज जाता, किन्तु उसमें द्वितीय वर्ष की सीमा पार करने की कोई जल्दी नहीं दिखती थी । बाप ने तय कर लिया था कि दो-एक परीक्षाएँ पास करवाकर विवाह की हाट में लड़के की बाज़ार दर बढ़ा लेंगे । किन्तु, लड़के की माँ जानती थीं और स्पष्ट रूप से कहती थीं, "मेरे वेरणु को साधारण लोगों के लड़कों के समान गौरव का प्रमाण देने के लिए परीक्षाएँ. पास करने का हिसाब नहीं देना पड़ेगा। लोहे के सन्दूक में कम्पनी का कागज सुरक्षित बना रहे ।" लड़का भी माता की यह बात मन-ही-मन मच्छी तरह
समझ गया था ।
जो हो, वेरणु के लिए अब वह नितान्त अनावश्यक था, यह हरलाल भली-भाँति समझ गया भौर केवल रह-रहकर उस दिन की बात याद माती जब वेणु ने सवेरे अचानक उसके उस मेस के निवास पर जाकर उसके गले से लिपटकर कहा था, 'मास्टर साहब, हमारे घर चलो,' न वह वेग्गु था, न वह घर था, अब मास्टर साहब को कौन बुलायगा ।
हरलाल ने सोचा था, अब वह बी-बीच में वेशु को अपने घर प्रामंत्रित करेगा। किन्तु उसको बुलाने का साहस नहीं हुआ। एक बार सोचा, 'उसको आने के लिए कहूँ, उसके सोचा, 'कहने से लाभ क्या-वेरणु शायद निमंत्रण की रक्षा करे, किन्तु, रहने दो !'
हरलाल की माँ ने नहीं छोड़ा। वे बार-बार कहने लगीं, वे अपने हाथों से बनाकर उसे खिलायँगी- 'हाय ! बेचारे की माँ मर गई ! '
अन्त में हरलाज एक दिन उसे निमंत्रित करने गया। बोला, "प्रघरबाबू से प्रनुमति लेकर प्राता हूँ ।'
वेणु ने कहा, "अनुमति नहीं लेनी होगी, भ्राप क्या सोचते हैं मैं अभी तक वही - छोटा बच्चा हूँ ।"
हरलाल के घर वेर भोजन करने प्राया। माँ ने कार्तिकेय-जैसे इस लड़के को अपने स्निग्ध नेत्रों के प्राशीर्वाद से अभिषिक्त करके बड़े यत्न से खिलाया। उन्हें बार-बार लगने लगा, हाय ! इस उमर के ऐसे लड़के को छोड़कर इसकी माँ जब मरी होगी तब पता नहीं उसके प्रारणों को कैसा लगा होगा।"
भोजन समाप्त करते ही वेरणु ने कहा, "मास्टर साहब, मुझे भाज कुछ जल्दी जाना पड़ेगा, मेरे दो-एक मित्रों के आने की बात है। "
यह कहकर जेब से सोने की घड़ी निकालकर एक बार समय देखा; उसके बाद जल्दी से विदा लेकर बग्घी में जाकर बैठ गया। हरलाल अपने घर के दरवाजे पर खड़ा रहा । गाड़ी सारी गली को कँपाती हुई क्षरण-भर में ही भाँखों से प्रोझल हो गई ।
माँ बोलों, "हरलाल, उसको बीच-बीच में बुला लाया कर ! इस उमर में उसकी माँ मर गई है, यह सोचकर मेरा जी कैसा होने लगता है।"
हरलाल चुप रहा । इस मातृहीन लड़के को सान्त्वना देने की उसे कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत हुई । लम्बी साँस लेकर मन-ही-मन बोला, 'बस यहीं तक, अब फिर कभी नहीं बुलाऊंगा । एक दिन पाँच रुपए महीने की मास्टरी ज़रूर की थी - किन्तु, मैं तो साधारण हरलाल मात्र हूँ।'
एक दिन संध्या के बाद ग्रॉफिस से लौटकर हरलाल ने देखा, उसके नीचे के कमरे में अंधेरे में कोई भादमी बैठा है। वहीं कोई आदमी है इस पर ध्यान दिए बिना ही वह शायद ऊपर चला जाता, किन्तु दरवाजे से घुसते ही लगा वातावरण एसेन्स की सुगन्ध से भरा हो । घर में घुसते ही हरलाल ने प्रश्न किया, "कौन, साहब हैं।"
वेरगु बोल पड़ा, "मास्टर साहब, मैं हूँ।"
हरलाल ने कहा, "क्या मामला है । कब प्राए ?"
वेरपु ने कहा, "बहुत देर का आया हूँ। आप ऑफिस से इतनी देर में लौटते हैं यह तो मैं जानता ही न था।"
बहुत समय हुघ्रा जब वह दावत खाकर गया था। उसके बाद से वेर एक बार भी इस घर में नहीं भाया । न बात, न चीत, भ्राज एकाएक इस प्रकार वह इस संध्या समय इस अंधेरे घर में बैठा प्रतीक्षा कर रहा था। इससे हरलाल का मन उद्विग्न हो उठा।
ऊपर के कमरे में जाकर बत्ती जलाकर दोनों बैठ गए । हरलाल ने पूछा, "सब अच्छा तो है ? कोई विशेष खबर है ?"
वेणु ने कहा, 'पढ़ना लिखना क्रमशः उसके लिए बहुत नीरस होता जा रहा है। कहाँ तक वह सालों उसी सैकिण्ड इयर में भ्रटका पड़ा रहे । उससे अवस्था में बहुत छोटे अनेक लड़कों के साथ उसको पढ़ना पढ़ता है, उसे बड़ी शर्म लगती है। किन्तु पिताजी किसी भी तरह नहीं समझते ।'
हरलाल ने पूछा, "तुम्हारी क्या इच्छा है।"
वेणु ने कहा, "उसकी इच्छा है कि वह विलायत जाए, बैरिस्टर हो आए । उसके साथ ही पढ़ने वाले, यहाँ तक कि पढ़ने-लिखने में उससे बहुत कमजोर एक लड़के का विलायत जाना निश्चित हो गया है ।"
हरलाल ने कहा, "अपने पिता को अपनी इच्छा बताई है ?"
वेरणु ने कहा, "बताई है। पिताजी कहते हैं, बिना पास हुए विलायत जाने का प्रस्ताव वे सुनना नहीं चाहते। किन्तु मेरा मन उचट गया है-यहाँ रहकर मैं किसी भी तरह पास नहीं हो सकूँगा ।"
हरलाल चुपचाप बैठकर सोचने लगा ।
वेणु ने कहा, "इस बात को लेकर प्राज पिताजी ने मुझसे जो मन में आया कह डाला । इसीसे मैं घर छोड़कर चला भाया हूँ। माँ के रहते ऐसा कभी नहीं हो सकता था ।" कहते-कहते वह क्षोभ से रोने लगा ।
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गांझाँकी होती है जो जीवित पकड़े जाकर पिजरों में भरे हुए शहर में आते हैं। देहलीके मछर अपने कार्य में कुछ ऐसे चतुर नहीं है पर फिर भी मछलियां कभी कभी बाजारोमै अच्छी बिकती है । विशेष कर राहू और सिधाड़ी जो अपने यहांकी 'कार्प' के समान होती हैं, अच्छी होती हैं । जाड़ेक दिनोंमे मछुए कम मछलियां पकड़ंत है, कारण यह कि यहां के लोग ससे उतनाही डरते हैं जितना हम लोग गर्मीसे । जाड़ेके दिनों में यदि कोई मछली बाजार में दिखलाई दे तो ख्वाजासरा उन्हें स्वयं खरीद लेते हैं; वह लोग इसे बहुत पसन्द करते है पर इसका कोई विशेष कारण सुझे अब तक मालून नही हुआ । अमीर लोग अपने कोड़ोंके बल जो उनके दरवाजों T पर इसी कार्य्यके लिये लटकते रहते हैं, जाड़के दिनोंसे प्रायः मछली पकड़वाया करते हैं।
अब आपही करें कि क्या कोई पेरिसका भला आदमी अपनी इच्छा और खुशीसे यहा आयेगा; इसमें सन्देह नहीं कि यहाँके धनीपात्रोको हमेशः अच्छी चीजें मिला वरती है पर यह केवल उनके रुपये और बहुत से नौकही वलसे मिलती हैं। देहली साधारण स्थितिके लोग नहीं रहते ; बड़े यड़े अमीर, उमग और रईस या बिलकुलही कम हैसियत के लोग जिनका जीवन कष्टसं बीतता है, रहते हैं। यद्यपि मुझे यहां अच्छा वेतन मिलता है और मैं यव्यभी करता हूं पर बहुधा मुझे अच्छा भोजन नहीं मिलता ; और जो मिलता भी है वह बहुतही रद्दी, जो अमीर लोगों के नापसन्द होने के कारण बच रहता है । मदिरा जो हमारे यहां भोजनका प्रधान अंग है, देहलीकी किसी दूकान में नहीं मिलती । जो सदियां देशी अंगूरकी बन सकती है वह भी नहीं मिलती क्योंकि मुसलमानांके कुरान
और हिन्दुओंके शास्त्रों में उसका पीना वर्जित है । अहमदाबाद और गोर्लेफ्फुण्डा में मुझे कुछ डच और अंग्रेजों के यहां अच्छी मदिरा पनिका सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं । मुगलराज्य भी जो मदिरा शीराज घा कनारी टापूसे भाती है, अच्छी होती है । शीराजी मदिरा ईरानसे खुड़की के रास्ते ' बन्दर अव्वास :' और महांसे जहाजके द्वारा सूरत में पहुँचती और वहांसे देहली आती हैं। शीराजसे देहलीतक मदिरा आ४५ दिन लगते हैं । किनारी टापूसे मदिरा सूरत होती हुई देवली आती हैं। पर यह दोनों मदिराएं इतनी महँगी होती हैं कि इनका मूल्यही इन्हें बदमजा कर देता है । एक शीशी जो तीन अंग्रेजी बोतलों के बराबर होती है १५ या १६ रुपयेको आती है जो मदिरा इस देश में बनती है और जिसे यहाके लोग ' अर्क कहते हैं बहुतही तेज होती है; वह गुड़से भभकेन खींचकर बनाई जाती है और बाजार मे नही विकने पाती और धर्मविरुद्ध होने के कारण अंग्रेजी वा ईमाइयाँके अतिरिक्त इसे कोई भी नहीं पी सकता । यह अर्क ठीक वैसाही है जैसा पोलण्डके लोग अनाजसे बनाते है और जिसके जगमा अधिक पीने से मनुष्य बीमार पड़ जाता 2 1 समझदार आदमी यहां तो सादा पानी पीयेंगा या नीबू का शरत जो यहां महजहीम मिल जाता है और हानिकारक भी नहीं होता । इस गर्म देशमे लोगाको मदिराकी आघटयकता भी नहीं होती । मदिरा न पीने और बरावर पसीने शाते रहने के कारण यहाके लोग सर्दी, हुतिया दुबार पीटंस दर्द आदिक रोगामे बचे रहते हैं और जो ऐसे रोगी यहां आते हैं वह शीघ्रटी अच्छे भी हो जाते हैं और जिसकी परीक्षा में स्वयं कर चुका हूँ । यहाँको घट बीमारियां बहुत कम होती है जिनकी हमारे देश प्रधानता है
घनियरकी भारत यात्रा ।
सार यदि अभाग्यवश कभी हो भी जाती है तो वह इतनी भयंकर नहीं होती जैसी हमारे यहां । इस देश के लोग प्रायः स्वस्थ्य रहने पर भी उतने साहसी नही होते जैसे हमारे देशभाई । गर्मीकी अधिकता के कारण यहां के लोग बहुत सुस्त हो जाते हैं और यह गर्मी विदेश से आये हुए लोगोंपर तो और भी बुरी तरह अपना प्रभाव डालती है।
देहलीम शिल्पके कारखाने बिलकुल ही नहीं है, पर इससे यह न समझना चाहिये कि यहां के लोगोंको कुछ आताही नहीं, क्योंकि यहां के प्रत्येक प्रान्त में अच्छे अच्छे कारीगरोंकी बनाई बहुत ही सुन्दर चीजें दिखलाई पड़ती है और जो बिना किसी प्रकारकी मशीन वा कलके बनाई जाती हैं और कदाचित् ऐसे लोगोंके हाथकी बनी होती
जिन्होंने कभी किसीसे इसकी शिक्षा भी नहीं पायी । कभी कभी तो यह लोग युरोपकी बनी वस्तुओंकी ऐसी नकल करते हैं कि असल और नकलमे कुछ भी : भेद नहीं मालूम होता । शिकारी और बन्दूकें बहुत ही सुन्दर और अच्छी बनती हैं और सोनेके गहने तो ऐसे अच्छे बनते हैं कि कोई युरोपियन सुनार उनका सुकापला नहीं कर सकता ।
चित्र बनाने और नक्काशी करनेका काम तो यहां ऐसा उत्तम और बारीक होता है कि जिनको देखकर मैं चकित हो गया। अकबर बादशाहकी एक बड़ी लड़ाई की तस्वीर एक चित्रकारने सात वर्ष में एक ढालपर बनाई थी, उसे देखकर मैं हैरान हो गया । पर हिन्दु स्थानी चित्रकार मुँह वा किसी और अपर उस भाषोको नहीं झलका सकते जो उस समय चित्रित के मनम होते हैं, पर यदि इन्हें पूर्णरूपसे शिक्षा दी जाय तो यह दोषं मिट सकता है; और इससे यह स्पष्ट प्रकट है कि भारत में बहुत अच्छी चीजोंका न होना
यहां के लोगोंकी अयोग्यके कारण नहीं वरन् शिक्षाके अभावसे हैं और यह भी प्रकट है कि यदि इन लोगोको उत्साह दिलाया जाय तो बहुतसे अच्छे अच्छे काम यहां हो सकते हैं। कारीगरोंको यहां उनके कामोंका ति पुरस्कार नहीं मिलना वरन् उलटे उनसे सतका वर्ना किया जाता है । धनी लोग सब चीजें सस्ते सुल्यपर लिया चाहते हैं । जब कभी किसी अमीरको कारीगर की आवश्यकता होती है तो वह उन्हें बाजार से क्या मँगाता है और उस घेचारेसे जबरदस्तीने काम लिया जाता है और चीज तय्यार हो जानेपर उसके योग्यतानुसार नही किन्तु अपने उच्छानुसार उसे मजदूरी देता है; और कारीगर कोड़ांकी मार खानेसे बच जानेहीपर अपना अहोभाग्य समझता है। तय ऐसी अवस्थाम कब सम्भव है कि कोई कारीगर अच्छी और सुन्दर चीज बनानेकी घेष्टा करे ; उन्हें तो नाम पैदा करनेकी अपेक्षा अपनी जानकी फिक्र करनी पड़ती है । वह लोग यही समझते हैं कि किसी तरह जल्दी पीछा छूटे और इतनांही मजदूरी मिल जाय जिससे उसका और उसके बाल बच्चाका काम चल जाय; और इसी लिये वही कारीगर कुछ अधिक नाम पैदा कर सकना और अपनी योग्यता दिखला सकता है जो घादशाह या किसी और अमीसा नौकर है, और केवल अपने स्वामहीको लिंय चीज बनाना है।
किलेके अन्दरके मकानोंका वर्णन । जिलेमें शही महलमरा और अनेक सौर महल है लेकिन इससे आप यह न समझे कि यह कामके त्यायर या स्पेनके युकी भांति है क्योंकि यहांकी कोई वस्तु युरोपरी मारतो नहीं मिल्नी, और जैसा मैंने ऊपर वर्णन किया है उनके समानना भी नहीं होनी चाहिये।
क्योंकि वे सारत इस देशके जल वायुके अनुन्तारही लुन्दर और शानदार हैं ।
हथियापोल दरवाजा । किलेके दरवाजेपर कोई ऐसी वस्तु नही है जिसका वर्णन किया जाय। हां उसके दोनों ओर दो बड़े बड़े पत्थरके हाथ बनाकर खड़े किये गये हैं जिनमें से एक पर चित्तौड़ के सुविख्यात राजा जयमल और दूसरेपर उनके भाई फत्ताकी सूर्त्ति है । यह दोनो भाई बड़े घीर और पराक्रमी थे, इनकी माता इनसे भी अधिक बहादुर थी । यह दोनों भाई अकबरसे इतनी बहादुरीसे लड़े थे कि इनका नाम प्रलयतक संसारमं अमर रहेगा । जिस तमय शाहन्शाह अकचरने इनके शहरको चारों ओरसे घेर लिया तो इन्होंने बड़ी वीरतासे उनका सामना किया, और इतने बड़े वादशाह के 'सामने पराजय स्वीकार करनेकी अपेक्षा उन्होंने अपनी तथा माता की जाने देदेना उत्तम समझा, और यही कारण है कि उनके दुश्मनो ने भी उनकी मूर्तियाँको चिन्हस्वरूप रखना उचित समझा । यह दोनों हाथी जिनपर यह दोनों बीर बैठे हैं बड़े शान्दार है; उन्हें देखकर मेरे दिल में उनका ऐसा आतंक समाया जिसका कि मैं बर्णन नहीं कर सकता ।
इस फाटकसे होकर. किले में जानेपर आगे एक लम्बी चौड़ी सड़क मिलती है जिसके बीचोबीच पानीकी नहर बहती है और उसके दोनो ओर पांच या छ फरान्सीसी फुट ऊंचा और प्रायः चार फीट छौड़ा घदूग पेरिसके 'पॉण्ट नीयांफ' की भांति घना हुआ है और जिसको छोड़कर दोनो ओर घरावर महराघदार दालान बनते चले गये हैं, जिनमे भिन्न भिन्न विभागाके दारोगा और छोटो श्रेणीफे ओहदेदार बैठे हुए अपना काम करते रहते हैं, और वह
मन्तवदार भी जो रातके समय पहरा देने जाते हैं, इसीपर ठहरते हैंः पर इनके नीचेसे आने जानेवाले सवारों और साधारण लोगों को इससे कोई कष्ट नहीं होता ।
किलेके दूसरे फाटकका वर्णन--किलेकी दूसरी पोर के फाटकर्क अन्दरकी और भी ऐसीडी लम्बी चौड़ी सड़क है और उसके दोनों ओर बैंसेही चबूतरे हैं, पर मेहरातदार दालानांक स्थानमें वहां दुकाने बनी हुई हैं; और सच पूछिये तो यह एक बाजार है, जो लावकी छतके कारण जिसमें ऊपरकी और हवा और प्रकाशके लिये रोशन्दान बने हुए दें, गरमी और बरसात के कारण बड़े कामका है ।
इन दोनों सड़बकि अतिरिक्त इसके दाहिनें और बाएं ओर भी अनेक छोटी छोटी सड़कें हैं, जो उन मकानों की ओर जाती हैं जहां नियमानुसार उमरा लोग सप्ताह में एक दिन बारी बारीसे पहरा दिया करते है । यह मकान जहां उमरा लोग चौंकी देते हैं, अच्छे है क्योंकि यह लोग उन्हें अपनेही व्ययसे सजाते हैं। यहां बड़े घड़े दोवानखान हैं और उनके सामने द्याग हैं जिनमें छोटो छोटी नहरें हौज और फौव्वारे बने हुए हैं। जिस अमीरकी नौकरी होती है इस लिये मोजन शाही खासेंमेमे शाता है जब भोजन आता है व शमीर को धन्यवाद और सम्मानस्वरूप सहलकी ओर मुंह करके तीन यार आदाय बजा लाना अर्थात् जमीनतक हाथ लेजाकर माथेतक लाना होता है। इनके अतिरिक्त भिन्न भिन्न स्थानों में सरकारी दफ्तरो लिये बने हुए हैं और सबै लगे हैं, जिनमें प्रत्येकमे किसी अच्छे कारीगरकी निगरानीमै काम हुआ करता है। किसीमें
चिकनदोज और जरदोज आदि काम करते हैं, किसीम सुनार, किसीमें चित्रकार और नक्काश, किसीम रङ्गसाज, बढ़ई और स्वरादी, किसमें दरजी और मोची, किसी में कमखाब और मखमल बुननेवाले और जुलाहे जो पगड़ियां बिनते, कमरके बान्धनेके फूलदार पटके और जनाने पायजामोंके लिये बारीक कपड़ा बनाते है, बैठते है, यह कपड़ा इतना महीन होता है कि केवल एकही रात व्यवाहरमे लानेसे बेकाम हो जाता है, पचीस और तीस रूपये मूल्यका होता है और जब इनपर सूईसे बढ़िया जरीका काम किया जाता है तो इनका मूल्य और भी अधिक हो जाता है । यह सब कारीगर सवेरेसे भाकर अपना अपना काम करते और शाम को अपने घर चले जाते है, और इन्हीं कामोंस उनका जीवन व्यतीत हो जाता है; और जिस अवस्थामे वह जन्म लेता है उससे उन्नत अवस्था में होनेकी चेष्टा भी नहीं करता । चिकनदोज आदि अपनी सन्तानको अपनाही काम सिखलाते हैं, सुनारका लड़का सुनारही होता है, और शहरका हकमि अपने पुत्रको हकीमी ही सिखलाता है; और यहांतक कि कोई व्यक्ति अपने लड़के वा लड़की का विवाह अपने पेशेवालोंके अतिरिक्त और किसीके घर नहीं करता । इस नियमका पालन मुसल्मान भी वैसाही करते हैं जैसा कि हिन्दू, जिनके शास्त्रोंकी यह आज्ञा है। और इसी लिये बहुतसी सुन्दर लड़कियां कुंवारीही रह जाती हैं ; पर यदि उनके मां बाप चाहें तो उन लड़कियोका विवाह बहुत ही अच्छी जगह हो सकता है।
खास व आम और नकारेका वर्णन ---अब में
खास व भामका वर्णन करना उचित समझता हूं जो इन मकानों के भागे मिलता है; यह इमारत बहुत ही सुन्दर और अच्छी है । यह
एक बड़ा सा मकान है जिसक चारों ओर महरायें हैं और 'पैलेस रायल ' से मिलता है, पर भेद इतनाही है कि इसके ऊपर कुछ इमारत नहीं है । इसकी महराब ऐसी बनी हुई हैं कि एक महरावमेंसे दूसरी महराबमें जा सकते हैं। इसके सामने एक बड़ा दरवाजा है जिसके ऊपर बालाखाना बना हुआ है। इसमें शहनाई, नफरियां और नारे रखे हुए है और इसी कारण लोग इसे नक्कारखाना कहते हैं, जो दिन और रातको नियत समयपर बजाये जाते हैं । यह नकारे नवआगन्तुकं फिरागियों के कानोंको बहुतही बुरे मालूम होते हैं। दस वारह नफोरियां और इतनेही नक्कारे एक साथ बजाये जाते हैं; इनमें सबसे बड़ी नफीरी जिसको ' करना ' कहते हैं, ९ फीट लम्बी है, और इसके नीचेका मुंह एक फरान्सीसी फुटसे कम नहीं है । लोहे या पीतलके सबसे छोटे नक्कारेकी गोलाई कमसे कम छ. फीट है । इसीसे आप समझ सकते हैं कि इस नक्कारखानेसे कितना शोर होता होगा । जब में पहलेपहल यहां आया तो
शोर के मारे मेरे कान बहरे हो गये, पर अभ्यास हो जाने के कारण अब मैं उसे बड़े चाव से सुनता हूं; विशेषत रातके समय जय कि मकानकी छतपर लेटे हुए उसकी आवाज दूरसे सुनाई देती है तो बहुतही सुरीली और भली मालूम होती है, और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, कारण कि इसके बजानेवाले वचपनहीसे इसकी शिक्षा पाते और इन वाजोंकी आवाजके ऊंचा मीचा करने और सुरीली और लैदार बनानमै वड़े चतुर होते हैं । यदि दूरसे सुनी जाय तो बहुत अच्छी माहूल होती है । नक्कारखाना बादशाही महलसे बहुत दूर बना है जिसमें बादशाहको इसकी आवाज से कष्ट न हो ।
नक्कारखानेके दरवाजे के सामने सहनके आगे एक बड़ा दालान है, जिसकी छत सुनहरे कामकी है। यह बहुत ऊंचा हवादार और तीन ओरसे खुला हुआ है । उस दीवार के बीचोघीच जो इसके और महलसराके मध्यम है, प्रायः छः फीट ऊंचा और एक फुट चौड़ा शहनशीन बना हुआ है, जहां नित्य दोपहर के समय बादशाह आकर बैड़ता है, उसके दाएं और बाएं शाहजादे खड़े होते हैं और ख्वाज :सरा या तो मोर्च्छल हिलाते हैं या बड़े बड़े पंखे हिलाते है और या बादशाहका हुकुम बजा लामेके लिये हाथ बांधे खड़े रहते हैं । तख्त के नीचे चान्दीका जङ्गला लगा हुआ है जिसमें उमरा, राजे तथा अन्य राजाओं के प्रतिनिधि हाथ बांधे और मीची आंखे किये खड़े रहते हैं; और तख्त से कुछ दूर हटकर मन्तवदार या छोटे छोटे उमरा खड़े रहते हैं। इसके अतिरिक्त जो स्थान खाली बचता है उसम पड़े छोटे अमीर गरीब सब तरहके लोग भरे रहते है; केवल यही एक स्थान है कि जहां सर्वसाधारणको बादशाह के सामने उपस्थित होने का अवसर मिलता है और इसी लिये उसे ' आम व खास, ' कहते हैं। यहां डेढ़ दो घण्टोतक लोगोंका सलाम और मुजरा होता रहता है । इसी समय बादशाह के मुलाइजके लिये अच्छे अच्छे सजे हुए घोड़े पेश किये जाते हैं । इनके बाद हाथियांकी बारी आती है, जिनकी मैली खाल खूध नहला धुलाकर साफ कर दी जाती और फिर स्याहांसे रंग दी जाती है। इनके सिरसे दो लाल की लकीरे सूंडके नीचे तक खीच दी जाती है। इनपर जरीकी झूल पड़ी होती है जिसमें चान्दीके दो घण्टे एक जजीरसे बांधकर उसके दोनो और लटका दिये जाते हैं और सफेद ' सुरागाय ' की टुमें जो तिव्मनसे आती हैं और यहुमुल्य होती हैं, लटका दी जाती हैं जो पढ़ी चढ़ी
सोछे सी मालूम होती हैं। दो छोटे छोटे हाथ जो खूब सजे होते हैं खिदमतगारों की तरह इन बड़े हाथियोंके दोनों ओर चलते । यह हाथी झम झमकर और सँभलकर पैर रखते और इतराते हुए चलते हैं और जब तस्तके निकट पहुंचते हैं तो महावत जो उनकी गर्दनपर बैठा होता है लोहेकी कुछ नोकदार चीज उसे चुभोता और जबान से कुछ कहता है ; उस समय हाथी घुटनेके बल बैठकर सूंड ऊपर की ओर उठाकर चिग्घाड़ता है जिसे लोग उसका 'सलाम' करना समझते हैं। इसके उपरान्त और जानवर पेश होते हैं जैसे सिधाय हुए हरिन जो लड़ाये जाते हैं, नीलगाय, गैण्डे और बंगाल के बड़े बड़े भैंसे जिनके सीग इतने बड़े और तेज होते हैं, जिनसे वह शेर के साथ लड़ सकते हैं, चीते जिनसे हिरनका शिकार खेला जाता है और अनेक प्रकारके शिकारी कुत्ते जो बुखारा आदिसे आते हैं और जिनपर लाल रंगकी झले पड़ी होती हैं, पेश होते हैं। सबके अन्तमे शिकारी पक्षी जैसे बाज शिकरे आदि जो तीतर और खरगोश को पकड़ते पेश होते है। कहते है कि यह पक्षी हरिनपर भी छोड़े जाते हैं जिनपर यह बहुत तेजीसे झपटते और पजे मार मारकर उन्हे अन्धा कर देते है। इन सबके पेश हो जाने के बाद कभी कभी दो एक अमीरोंके सवार भी पेश किये जाते हैं जिनके कपड़े और समय की अपेक्षा अधिक बहुमूल्य और सुन्दर होते हैं । इनके घोड़ों पर पाखर पड़ी दोती हैं और तरह तरह के जेवर जैसे हैकल झुनझुने आदिसे सजे होते हैं । बहुधा बादशाहकी प्रसन्नता के लिये अनेक स्नेल किये जाते हैं, मरी हुई भेंड जिनका पेट साफ करके फिर सी दिया जाता है। बीचमे रख दी जाती है और उमरा, मन्सबदार गुर्जबर्दार और आसावर उनपर तलवार से अपना कर्तब दिखलाते
पर्तियरकी भारतयात्रा ।
और एकही हाथ में उन्हें काटनेकी चेष्टा करते हैं; यह सब खेल दरघारके आरम्भ हुआ करते हैं । इनके बाद राज्यसम्बन्धी अनेक मामले पेश होते हैं । फिर बादशाह सब सवारोंको बड़े गौरसे देखता है ; जबसे लड़ाई बन्द हुई कोई सवार या पैदल ऐमा नहीं है जिसे बादशाहने स्वयम् न देखाहो, बहुतोका वेतन बादशाह स्वयम् बढ़ाता, अनेकांका कम करता और कइयोंको विल्कुलही मौकूफ कर देता है ।
इस अवसरपर सर्वसाधारण जो अर्जियां पेश करते हैं वह सब बादशाह के कार्नातक पहुँचती है, और बादशाह स्वयम् लोगोस उनके दु.खके विषयमे पृछता और उसके निवारण के उपाय करता है । इनमेंसे दस अर्जियाँ देनेवाले चुनकर सप्ताह में एक दिन बादशाह के सामने पेश किये जाते है और उस दिन बादशाह पूरे दो घण्टों तक वह अर्जियां सुना करता है, इन अर्जी दनवाले व्यक्तियों के चुननेका काम एक अमीरके सुपुर्द है। इनका फैनला बादशाह शहरके दो काजियों के साथ अदालत खाना नामक कमरेमें बैठकर करता है और इसमें कभी नागा नहीं पड़ता। इससे यह स्पष्ट प्रकट है कि वह एशियाई बादशाह जिन्हें हम फिरंगी लोग मूर्ख और तुच्छ समझने हैं अपनी प्रजाका न्याय करनेम त्रुटि नहीं करते ।
इम 'आम व खास' दरवारमें होनेवाली बात जिनका मैंने अभी जिक्र किया है यद्यपि सब उचित और अच्छी है पर तौभी मुझे उन खुशामदों आदिका उल्लेख करना आवश्यक है जो यहां देखने में आती है। यदि किसी छोटीसे छोटी वातके विषयमे वादशाह के मुँहसे कोई अच्छा शब्द निकल आता है तो दन्यार के बड़े बड़े उमरा आस्मानकी ओर हाथ उठाकर उस शब्द के साथ
तीसरा भाग
करामात' कहकर चिल्ला उठते है, और अर्ज करते है कि सुबहान अल्लाह ! क्या खूब इर्शाद हुआ है । और कदाचित् ही कोई ऐसा सुगल हो जिसे यह और न आता हो, और वह इसे ऐसे अवसरॉपर न पढ़ता होः - भगर शद रोज रा गोयद शबस्त ई । बबायद गुफ्य पँयक माह परवी ॥ अर्थात् यदि वादशाह दिनको रात कहे तो कहना चाहिए वह देखिए चन्द्रमा और सितारे हैं । यह खुशामद का रोग प्रायः सच छोटे बड़ॉर्म पाया जाता है। यदि कोई मुगल मेरे पास दवा लेने के लिये आता है तो वह सब बातोंसे पहले मुझसे यह कह लेता है कि आप अपने समयके अरस्तू, सुकरात और बोअलीसेना है; पहले पहल तो मैंने उन लोगोको इस बातसे रोकना चाहा और कहा कि जितनी प्रशंसा आप मेरी करते हैं मैं कभी इस योग्य नहीं हूं और मेरी समता उन महानुभावोंसे नहीं हो सकती ! पर जब मैने देखा कि मेरी इन बातोंसे वह और भी अधिक प्रशंसा करते चले जाते है तो मै चुपचाप उनकी वात सुन लेता और कुछ दिनाम में इन बातोंके सुननेका वैसाही अभ्यस्त हो गया जैसा यहां के शाही नक्कारखानोंके रागोका । मैं आपको एक ऐसी बात सुनाता हूँ, जिससे आपको इन घातका पूरा परिचय मिल जायगा । एक पण्डितने जिसे मैं ही अपने आकांके पास ले गया था, अपने वनाये एक इलोकर्मे पहले तो उन्हें वड़े बड़े राजाओसे अधिक बतलाया और फिर बहुतसी व्यर्थकी बाते वककर अन्तम चड़ाही गम्भीरता से कहा " जिस समय आप घोड़ेपर सवार होकर अपनी फौजके आगे आगे चलते है, उस समय वह अष्टदिग्गज जो पृथ्वी को अपने ऊपर है आपका बोझ नहीं संभाल सकते और इस कारण पृथ्वी कांपने लगती है । यह सुनतेही मुझे हॅसी आई और मैंने
सर्नियरकी भारतयात्रा ।
पड़ी गम्भरितासे अपने भाकासे कहा कि आप जरा सँभालकर घोडेपर सवार हुआ करें, ऐसा न हो कि कही भडॉल आजाय और सारी पृथ्वी उलट पुलट हो जाय। उन्होंने हँसकर उत्तर दिया कि मैं पालकी की सवारी अधिक पसन्द करता हूं।
आम व खासके बड़े दालानसे सटा हुआ एक खिलवतखाना है जिसे गुस्लखाना कहते हैं, यहां बहुत कम आदमियों को जानेकी आशा है । यद्यपि यह आम व खासके बराबर नहीं है पर फिर भी बहुतही बड़ा और सुन्दर सुनहरे कामका है और शहनशीनकी तरह चार या पांच फरान्सीसी फुट ऊंचा है। यहां कुरसी पर बैठ कर बादशाह वजीरेंसि जो इधर उधर खड़े होते है सलाह करता बड़े बड़े अमीरों और सूबेदारोंकी अर्जियां सुनता और अनेक गूढ़ राज्य कार्य करता है । जिस तरह सवेरे आम व खासमे उपस्थित न होनेसे अमीरोपर जुर्माना होता है उसी तरह सन्ध्याको यहां न हाजिर होनेसे सजा मिलती है। केवल मेरे आका दानिशमन्द खां एक ऐसे अमीर है जो अपनी बिद्वत्ता योग्यता और अनेक दूसरे राज्यकाय्यके कारण यहां आनेसे बरी हैं। हां बुधवारको जो उनकी चौकीका दिन है उन्हे भी और अमीरों की तरह हाजिर होना पड़ता है। इन दोनो हाजिरियां की चाल बहुत पुरानी है, और कोई भी अमीर इसकी शिकायत नहीं कर सकता, कारण कि स्वयं बादशाह जबतक उसे कोई बीमारी न हो दोनो वक्त दरबार में आता है । औरंगजेबको उसकी अन्तिम बीमारीके समय यदि दोनों समय नहीं तो एक समय अवश्य लोग दग्बारमै सठा लाते थे । वह दिन रातमे एक समय अवश्य लोगों के सामने आना उचित समझता था क्योकि इतने बीमार होने के समय उसके एक दिन भी दरारंभ म
आनंसे सब राजकार्योंमे हलचल और शहर में हड़ताल पड़ जाने की सम्भावना थी ।
यद्यपि गुमलखानेके दरबार मे यही बात होती है जो मैने अभी कही है पर आम ष खामकी तरह यहां सी अधिकांश जानवरों आदिका मुलाइजा होता है; हां रात हो जाने के कारण और सामने सहनके छाटे होनेके कारण अमीरोके रिमालोका मुलाइजा नहीं हो सकता । इस समय के दरबार में यह विशेषता है कि वह मन्सवदार जिनकी उस दिन चौकीकी बारी होती है बड़ीही शिष्टता और अदबके साथ सलाम करते हुए सामने से गुजर जाते हैं; इनके आगे लोग हाथोंमै 'कॉर' लिये हुए चलते है; यह कौर यहुनही सुन्दर होते है और चांदीकी छड़ियों के सिर पर मढ़े होते हैं, इनमें से कुछ तो मछलियोंकी शक्लके, कुछ एक बड़े भयानक सर्पके रूपके जिसे अजदहा कहते है, कुछ शेरकी शक्ल के, और हाथ और पंजे की तरह बने हुए तथा इसके अतिरिक्त अनेक प्रकारके जिनका विचित्र ही अर्थ बतलाया जाता है, होते हैं। इन लोगांमसे बहुत से बुर्ज-बरदार होते है जो शरीर के दृष्ट पुष्ट देखकर भरती किये जाते हैं और जिनका यह काम है कि दरबारके समय हुल्लड़ या गड़बड़ न होने दें और बादशाही आज्ञापत्र आदि पहुंचाएँ तथा पादशाह जो आज्ञा दे बहुत जल्द उनका पालन करें ।
शाही महलसराका बयान । अब मैं आपको बड़ी प्रसन्नता से शाही महलसराकी सैर कराता हूं जैमी अभी किलेकी इमारतकी कराई है । पर कोई व्यक्ति आँखा देखी अवस्था नहीं बनला सकता । बादशाह के देहलीम उपस्थित न होनेके समय यद्यपि
मुझे अनेक घार वहां जानेका अवसर प्राप्त हुआ है, और मुझे याद है कि एक बार बड़ी बेगमकी वीमारीके समय जो वहांकी रीतिके अनुसार बाहर नहीं लाई जासकती थीं बहुत दूरतक अन्दर जानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था, पर मेरे शिरपर एक लम्बी काश्मीरी शाल इस तरह डाल दी गयी थी कि एक लम्बी स्कार्फ ( ओढनी ) की भांति वह मेरे पैरोतक लटकती थी और एक ख्वाजःसरा मेरा हाथ इस तरह पकड़कर ले गया था जैसे कोई अन्धेको लिये जाता हो, इसलिये आपको उन्ही वृत्तान्तोसे सन्तुष्ट होना चाहिये जो मैने कुछ ख्वाजसराओके मुंहमे सुनकर लिखा है। उनका कथन है कि महलसरामे बेगमोंकी योग्यता और हैसियत के अनुसार अलग अलग बहुत सुन्दर और बड़े बड़े महल बने हुए हैं जिनके दरवाजों के सामने हौज, छोटे छोटे सुन्दर बाग और क्यारियां, नहरें, फौवारे छाएदार छोटी छोटी आरामगाह और दिनकी गरमीसे बचने के लिये गहरे तहखाने और रातको ठण्डकमे आराम करने के लिये ऊंचे ऊंचे बबूतरे और सहन बने हुए और ऐसे हैं कि इस देशकी कष्टप्रद उष्णता वहा पहुंच नहीं सकती । यह लोग एक छोटेसे बुर्जकी जो नदीकी ओर है बहुतही प्रशंसा करते हैं जिसमे आगरेंक दोनों - बुर्जोकी भांति सोनेके वर्क चढ़े हुए मीनाकारीके काम और बहुत सुन्दर सुन्दर घड़े घड़े शीशे लगे हुए हैं ।
दरबार और तख्त-ताऊस (मयूरासनका) बयान । किलेका बयान समाप्त करनेके पहले मैं कुछ बात और दरबार खास घ आमकी अपेक्षा बतलाता हूं और उन वार्षिक जलमों और दरवारोंके सम्बन्धमे कुछ कहा चाहता हूं, विशेषतः उस बड़े दरवारके विषयमे जो मैंने लड़ाई समाप्त हो जानेके याद देखा था, और जिम
को बढ़कर मैंने कोई तमाशा अपनी सारी उमरमें नहीं देखा। उस दिन बादशाह दीवान आमखासमै एक जड़ाऊ तख्त पर बैठा था; उसके कपड़े बहुत ही सुन्दर और फूलदार रेशमके बने हुए थे और उसपर बहुत अच्छा जरीका काम किया हुआ था; सिरपर एक जरीका सन्दील था, जिसपर बड़े बड़े बहुमूल्य हीरोंका तुर्रा लगा हुआ था; उसमे एक पुखराज ऐसा था जो बेजोड़ कहा जा सकता वह सूर्यर्थ्यके समान चमकता था । उसके गले मे बड़े बड़े मोतियाँका एक कण्ठा था जो हिन्दुओं की मालाकी तरह पेट तक
लटकता था ।
छः सोनेके पायपर यह तख्न बना है; कहते हैं कि यह बिलकुल ठोस हैं; इनमें याकूत और कई प्रकारके हीरे जड़े हुए है। मैं उनकी गिनती और मूल्यका निश्चय नहीं कर सकता, क्योंकि इसके निकट जानेकी किसीको आज्ञा नहीं है, इससे कोई उनकी गिनती आदि का पता नहीं लगा सकता पर विश्वास कांजिये कि उसमें हीरे और जवाहरात बहुत है। मुझे खूब याद है कि उसका मूल्य चार करोड़ रुपये आंका गया था। इस तख्तको औरंगजेबके पिता शाहजहांने इसलिये बनवाया था कि खजाने में जो पुराने राजाओं और पठान बादशाहों की छूट छूट और और प्रत्येक अमीर उमराके समय समय पर नजर करनेसे जो जवाहरात इकट्ठे हुए थे, लोग उन्हें देखें । उसकी बनावट और कारीगरी उसके जवाहरोक समान नहीं है। हां, दो मोर जो मोतियाँ और जवाहिरोंने बिलकुल ढके हुए हैं इसको एक कारीगर ने - जिसका काम आश्चर्यकारक था और जो वास्तवमै फ्रान्स का निवासी था, और जो एक विचित्र प्रकारके नकली होरे बना बना कर युरोपके रईसोको ठगा करता था और ओ यहां भागकर
गर्नियरकी भारतयात्रा ।
सुगल सम्राटकी शरण में आया था और यहां भी बहुत रुपये कमाये थे - बनाया था ।
तफतके नीचेकी चौकी पर जिसके चारों ओर चांदका कठहरा लगा हुआ था और ऊपर जरीकी झालरका एक बड़ा चन्दुआ रंगा हुआ था उमरा बहुमूल्य घरप पहने खड़े थे । वहांके खम्भे जरीके काम किये कपड़ों से मढ़े हुए थे, और रेशमी चन्दुए जिनमें रेशम और जरीके फुंदने लगे हुए थे, तने थे और बहुत बढ़िया रेशमी कालीन बिछे हुए थे। बाहर एक खेमा खड़ा था जिसे अस पक ( एक प्रकारका बड़ा खेमा ) कहते है और जो इन मकानोंसे भी बड़ा था । वह सहनमे आधी दूरतक फैला हुआ था और चारो ओरसे चांदीकी पत्तियाँसे मढे हुए कटहरोसे घिरा था । उसम लकड़ी के तीन बड़े खम्भे थे, जो जहाजके मस्तूलके समान थे, और बाकी सब छोटे थे ।
इस खेमेके बाहर की ओर लाल रलका कपड़ा लगा हुआ था, और भीतरकी और मछलीपटमकी सुन्दर छींट थी । यह छीट इसी काम के लिये बनाई गई थी; उसके वेल बूटे ऐसी उत्तमतासे बनाये गये थे और उनका रंग इतना तेज था कि वह बहुत ही सुन्दर और प्राकृतिक मालूम होते थे । सब अमीरांको आज्ञा दी गई थी कि वे आम व खासके चारों ओरकी महराबे अपने अपने खर्चसे सजाएँ, इसलिये बादशाह के विशेष कृपापात्र बननेके लिये सबोने अपनी अपनी महराबोके सजान में एक दूसरेसे बढ़ जानेका प्रयत्न किया, जिसका फल यह हुआ कि सारी दीवारे आदि कमखाव और जरामे ढँक गई और जमीन बहुमूल्य सुन्दर कार्लानोंसे भर गई ।
इस जलसेके तीसरे दिन पहले बादशाह और उसके बाद बहुतसे अमीर उमरा बड़ी बड़ी तराजुओं में जिनके पलडे और बट्टे सोनेके थे ताँले गये । मुझे याद हैं कि औरंगजेब के तौलमें गतवर्षकी अपेक्षा एक सेर बढ़ जाने से सारे दरबारने प्रसन्नता प्रकट की थी । इस प्रकारके जलसे हरसाल हुआ करते हैं पर ऐसा शान्दार जलसा कभी नहीं हुआ और न इतना कभी व्यय हुआ । कहा जाता है कि इस जलसेके इतनी धूमधाम से होनेका कारण यहथा कि बादशाहकी इच्छा थी कि लड़ाई के कारण वर्षोतक जिन सौदागरोंका कमखाय आदि नहीं बिका था उनका माल धिक जाय । इस जलसेमें उमराका बहुत अधिक खर्च पड़ा और अन्त में उसका एक भाग बेचारे फौजी सिपाहियोंके सिर थोपा गया ; इन सिपाहियाँको नाचार होकर अपने अपने अमीरोके आज्ञानुसार अपने कपने कपड़ों के लिये कमखाब खरीदना पड़ा ।
इन वार्षिक जलसौपर एक पुरानी रसम है, जिसे अमीर लोग बहुत नापसन्द करते हैं । उनको ऐसे अवसरों पर कोई एक बहुमूल्य चीज नजर करनी पड़ती है जिसका मूल्य उनके वेतनके अनुसार कम था अधिक होना है। कुछ अमीर तो बहुत ही अच्छी अच्छी चींज पेश करते हैं । यह नजर कभी तो केवल दिखावे के लिये कभी इसलिये कि बादशाह उनकी उन पिछली बुगइयांको भूल जाय जो उन्होंने अपने स्चेदारीके समयमे की थी और उसके सम्बन्धमे कोई दण्ड न दे बैठे, और कभी उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये और इसी प्रकार अपना घेतन बढ़वा लेनेके लिये होती हैं । निदान बहुत से लोग तो उमदः हीरे मोती और माणिक आदि नजर करते हैं और कुछ मोनेके जडाऊ बर्तन आदि और अशरफियां जिनका मूल्य १२)
होता है नजर करते है । ऐसेही जशनके अवसर पर जब बादशाह जाफरखांकी एक नवीन हवेली देखने के बहानेसे गया, जो न केवल राजमन्त्री ही था बल्कि बादशाहका सम्बन्धी भी था, तो उसने ढाई लाख रुपये की अशरफियां, कुछ अच्छे मोती और एक लाल जिसका मूल्य एक लाख रुपये कहा जाता है नजर किया था । पर शाहजहांने जो जवाहरात के परखने में बहुत निपुण था उसका मूल्य केवल साढ़े बारहसौ रुपये से भी कम बतलाया जिसे सुनकर बड़े बड़े जौहरी जिन्होने उसके परखने मे धोखा खाया था चकित होगये ।
मीना बाजार - कभी कभी इन अषसरों पर महलसरामें एक कृत्रिम बाजार लगा करता है । बाजार में बड़े बड़े अमीरों और म न्सबदारोंकी सुन्दर स्त्रियां दूकानें लगाकर बैठतीं और कमखाब और अच्छी अच्छी जरदोजीके कामकी चीजें. जरीकी मन्दीलें, सफेदवारीक कपड़े जो अमीरजादियोंके व्यवहार में आते हैं तथा और और बहुमूल्य चीजे बिक्री के लिये रखती हैं। बादशाह उसकी बेगमें और शाहजादियां आदि वहां माल खरीदने जाती हैं। यदि किसी अमीरकी बेटी रूपवती और नवयौवना होती है तो उसकी मां उसे अवश्य अपने साथ इस बाजार में लेजाती है, जिसमें बादशाहकी दृष्टि उमपर पड़जाय और बेगमोंसे भी परिचय होजाय । बड़ा मजा तो यह है कि हॅमी दिल्लगके लिये स्वयं बादशाह एक एक पैसे पर झगड़ता है और कहता है कि यह बेगम साहब बहुत महँगी चीजें येचती हैं इससे सस्ती और अच्छी चींजे आगे मिलेगी, हम इससे अधिक एक कौड़ी न देंगे, आदि आदि । इधर यह चेष्टा करती हैं कि हमारी चीजे अधिक मूल्यपर बिके और बादशाह अधिक नही देता, तव वात वात कर बैठता है कि मालूम होता है कि सा
मौदा ही नहीं लेना है, आपके पास इतना मूल्यही नहीं है, हमारा माल आपके लिये बहुत महँगा है, आपको जहां सस्ता मिले वहीं चले जाइये । बादशाहकी अपेक्षा बेगम और भी अधिक झगड़ा करती हैं। इनकी बातों में इतना अधिक गरमा गरमी होती है कि वह एक अच्छा खासा झगड़ा मालन होता है। इतना हो चुकने पर वह माल खरीद लिया जाता है। बादशाह बेगम, शाहजादे और शाहजादियां जो चीजें खरीदती हैं उनका मूल्य उसी समय दे दिया जाता है । मूल्य देनेमें रुपयो के साथ साथ अशरफियां भी गिन देते हैं । यह अशरफियां मानों अनजान होकर दी जाती हैं । उस दूकानदार या उसकी सुन्दर कन्याकी नजर होती हैं। दूकानदारिनें भी उन्हें यही बेपरवाही से उठा लेती हैं। और इसी प्रकार हॅसी खुशसि बाजार समाप्त होता है ।
शाहजहां बहुत बिलासी था । यद्यपि बहुतसे अमीरोंको यह बात खटकवी, पर फिर भी वह प्रायः ऐसे ऐसे अवसरों पर यही स्वांग कराया करता । इसके अतिरिक्त वह रातके समय महलमें उन स्त्रियों को भी बुला लेता और उन्हें रातभर वहीं रखता जिन्हें
कञ्चनी ' कहते हैं । ये स्त्रियां बाजारू नहीं होती थीं, बल्कि अच्छी प्रतिष्ठित होती थीं और अमीरों या मन्सबदारोंके यहां षिवाह आदिके अवसर पर केवल नाचने गाने जाती थीं । यह कञ्च नियां बहुधा बहुतही सुन्दर और रूपवती होती हैं और इनके वस्त्र भी अच्छे और बहुमूल्य होते हैं। यह बहुत ही अच्छी गानेवाली होती है; और नाचने में अपने अंगको इस सुन्दरतासे लचकाती है कि देखकर आश्चर्य होता है। ये कञ्चनियां ताल और स्वर में भी ठीक होती हैं, पर फिर भी कस्बियां ही होती हैं ।
बानयरकी भारतयात्रा ।
इस मेले मे आनेहीसे शाहजहांका सन्तोष नहीं बुधवार के दिन जब वह नियमानुसार सलाम करने के लिये दरबारसे हाजिर होती तो वह प्रायः रात मरके लिये वहीं ठहरा लिया करता और रात भर नाच गाना हुआ करता । पर औरंगजेब अपने पिताकासा विलास-प्रिय नहीं है; उसने इनका आना जाना एकदम रोक दिया है। पर हां, नियमानुसार बुधवार के दिन सलाम करनेके वास्ते हाजिर होने से मना नहीं किया; इस दिन वह दूरहीसे सलाम करके चली जाती हैं । इस समय जब कि मैं मीना प्राजार और कञ्चनियाका जिक्र कर रहा हूं एक घटनाका वर्णन भी आवश्यक समझता हूं जो बर्नर्ड नामक एक फ्रांसीसीसे सम्बन्ध रखता है । मेरी समझ में प्लुटार्क का यह कथन बहुत ही ठीक है - 'साधारण और छोटी छोटी बातों को छिपा रखना भी उचित नहीं है; क्योंकि प्रायः उनसे किसी जाति या समाजकी रीति नीति आदिके सम्बन्ध में उचितं मत देने में बड़ी बड़ी बातोकी अपेक्षा अधिक सहायता मिलती है । लिये यद्यपि यह हँसीकी बात है पर फिर भी सुनने योग्य है ।
जहांगीरके अन्तिम समयमे बर्नर्ड नामक एक प्रसिद्ध और योग्य डाक्टर था । उसपर बादशाहकी बहुत अधिक कृपा थी । प्रायः वह बादशाहके भोजमे योग दिया करता था, और दोनो बहुत अधिक मदिरा पी लेते थे। बादशाह और डाक्टर दोनोका स्वभाव भी एकहीसा था । बादशाह दिन रात भोग विलाममे लिप्त रहता और राज्यका कुल कार बार अपनी प्रसिद्ध बेगम नूरजहांको सौंप दिया था । वह कहा करता था राजकार्य चलाने के लिये उम की बुद्धि और योयाता बहुत अधिक है, उसम मेरे हाथ लनेकार्ड
कोई आवश्यकता नही ।' वर्नर्डका बेतन साधारणत पच्चीस रुपये रोज था, पर बादशाह के महलसगमे और दूसरे अमीरोंके यहां जानेके कारण, और न केवल इसलिये कि वह डाक्टर था बल्कि बादशाहका कृपापात्र होने के कारण लोग उसकी बहुत खातिर किया करते थे, उसे बहुत कुछ मिल रहता । पर वह धनकी कुछ परवा न करता और एक ओरसे लेतेही दूसरी ओर किसीको दे देता; इससे वह सब लोगोका प्रिय हो गया था ; विशेषतः कञ्चनियाँका जिन्हें उसने बहुत कुछ दिया था। रात भर उस पर कञ्चनियोका जमघट लगा रहता । एक बार यह उनमंस एक युवती पर जो बहुत ही सुन्दर और नाचने गाने में प्रसिद्ध थी भा - सक्त हो गया । इसने उसके लिये अनेक चेष्टाऍ की, पर उसकी मां उसे एक पल के लिये भी अपनी आंखोंसे ओट न होने देती; क्योंकि वह समझती थी कि अवस्थाके कम होने के कारण कहीं उसके रूप या स्वास्थ्यकी कुछ हानि न हो । इसलिये बर्नर्ड अपनी प्रेमिका से वाञ्चित रहा। एक दिन दरवार में जहांगीरने उसे एक उत्तम चि कित्सा करने पर कुछ इनाम देना चाहा। उसने प्रार्थना की कि में चाहता हूं कि हुजूर मुझे इस इनामसे माफ रखें और उसके बदले मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करें कि यह कञ्वनी जो दरवारमै इम समय सलाम के लिये हाजिर हुई है मुझे मिल जाय । सब दरबार जिसे उसके ईसाई और कञ्चनके मुसलमान होने के कारण इस प्रार्थना के स्वीकार होने में सन्देह था उसकी घात सुनकर मुसकरा दिया । पर जहांगीर जिसे धर्मकी कुछ परवा न थी, इसपर जोरमे हॅम पड़ा और उसने आज्ञा दी कि इस कञ्चनको अभी इसके कन्धे पर बैदा हो और यह उसे लेजाय । उमी समय भरे दरवारम
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जावें तो भी आप, या जब आपकी आँख बन्द होती है तो भी
नज़र आपके पास होती है और जब खुलती है तो नजर होती है जो बन्द हुई आँख में थी ।
चूँ यक दाना खारो गुल आमद पदीद ।
कुदाम अस्त आलाओ ना कुजास्त ।। वरूने शुभा शुमा ओ ओ दरूने शुमा ।
बजुज जाते वालाओ यकता कुजास्त ।।
"जिस तरह एक ही दाने से फूल और कॉटे पैदा हो जाते हैं, फिर उनमे अच्छा बुरा कौन है, इसी तरह के अन्दर और बाहर सिवाय एक तत्व के और है ही कौन ?" यह तमाम जगत मय अपने पिता पितामह देश काल के उसी एक मे से जाहिर हो गया या उसने बिखर कर यह तमाम शक्लें बना लीं, तो फिर वही वह हुआ, दूसरा आया कहाँ से ? अब उसमें असत् तत्व कौनसा है कि जिसका हमको त्याग करना है । वह यह है - वह तत्व केवल इतना है कि जो हम उस तत्व को भूल कर एक नया कल्पित या सत् तत्व उस अनेकता का बना बैठे हैं, केवल उसी को छोड़ना है। कोई इस बात को जाने या न जाने, देख तो उसी को रहा है इसमे सन्देह नहीं । उसको देखता हुआ जो यह समझता है कि वह गैर को देख रहा है यही ग़लती और दुख का मूल कारण है।
वह प्रभु बिखरे और सृष्टि बन गई, या जगत कहाँ से आया ?
उन्हीं में से और कहाँ से । उनका गैर वन कर या वही बन कर ? नामरूप में तो प्रभु के उस रूप से भिन्न वनकर ही आया, जिस रूप के बाद यह संसार बना, लेकिन चूँकि उन्हीं का है, उन्हीं से है इसलिए उनसे अलहदा नहीं ।
अगर कोई कहे कि नहीं, अनन्त मे सीमित देखना चनता नहीं और अगर हम इसको मान भी लें तो यह कहना पड़ता है कि यह सब कुछ उसी अनन्त के सङ्कल्प का नतीजा है, जो सारे जगत की उत्पति बग़ैर देश काल के कर देता है जिस तरह आप और आपका सङ्कल्प दो चीजें नहीं इसी तरह प्रभु और उनका सङ्कल्प यह जगत है ।
प्रश्न - अनन्त में सङ्कल्प नहीं होना चाहिए ? उत्तर - क्या अनन्त जड़ है जो सङ्कल्प न हो ?
प्रश्न - वह सृष्टि क्यों बनाता है ?
उत्तर - आप को यह पूछने का हक ही क्या है ? यह क्यों पूछते हैं कि वह दुनिया को क्यों बनाता है ? हमारा दिल चाहता है, इसी तरह उसका भी दिल चाहता है कि वह सृष्टि को बनाये । वह किसी के मातहत हो कर कुछ नहीं करता और न कुछ करने के बाद किसी के मातहत होता है । यह उसकी लीला है कि कभी एक से अनेक बन जाता है कभी अनेक से एक और कभी एक और अनेक भी नहीं रहता।
प्रश्न - क्या वह सृष्टि बनाकर महदूद ( सीमित ) नहीं हो
जाता ?
उत्तर -- वह सीमित तो तब हो जब किसी और को साथ ले आये, वह तो खुद ही ऐसा करता है ।
प्रश्न - वह तो निराकार और सूक्ष्म है और यह जगत साकार और स्थूल है। यह देखिए पत्थर कितना सख्त है ।
उत्तर - 'यह साकार है और स्थूल है' यह आपके ज्ञान का एक दर्जा है और 'वह सूक्ष्म है और निराकार है' यह दूसरा दर्जा है । जिस तरह आप स्वप्न में स्थूलता और साकारता को अनुभव करते हैं और वह स्थूलता और साकारता उस स्वप्न दृष्टि तक सत् होती है उसी तरह यह जगत की स्थूलता और साकारता इसी मन्द दृष्टि तक है, असली जागृत में नहीं, और अगर कुछ स्थूलता और साकारता है भी तो उसकी अपनी बनाई है। वह सवेशक्तिमान इसीलिए तो है कि जो चाहे कर लेता है ।
प्रश्न - वह शून्य से जगत को पैदा करता है ? उत्तर - नही । क्या वह और उसका सङ्कल्प खुद शून्य है ? जब नहीं, तो वह शून्य से क्यों पैदा करता है ।
प्रश्न --क्या जगत का उपादान कारण वह है ? उत्तर - दूसरा जब है ही नहीं तो दूसरा निमित्त या उपादान कारण बन कहाँ से जायगा । वह है और उसकी लीला ।
प्रश्न - लेकिन यह हम लोग और हमारा अज्ञान कहाँ से आ
गया ?
उत्तर - वहीं से, जहाँ से सब कुछ आया है।
प्रश्न - तो क्या ज्ञान स्वरूप मे अज्ञान भी हो सकता है ? उत्तर - जब उसमे सब कुछ है तो फिर अज्ञान की बात ही क्या रही ? और ज्ञान का होना भी तो उसका एक ज्ञान या उसके ज्ञान स्वरूप होने का प्रमाण है। क्योंकि वह जानता है कि अगर ज्ञान न होगा तो ज्ञान का पता ही न चलेगा। आप में अज्ञान डाला इसीलिए तो आज इतनी बातें कर रहे हैं और पूछ रहे है । आप मे यह धुन है कि कब आपको असली तत्व का ज्ञान हो । सच कहिए कि जब आपको इस अज्ञान के बाद उस ज्ञानस्वरूप प्रभु का पता चलेगा तो आपको कितनी खुशी होगी । इसलिए उसके ज्ञानस्वरूप होने ही ने तो यह आप में भूल डाली है ताकि इसके बाद आप उसके मिलने और जानने के आनन्द को ले सकें। उसके बाहर कुछ नहीं, इसलिए वह सच कुछ ठीक बना रहा है।
अब उसने सृष्टि बना कर अपनी लामहदूदियत अपरिच्छिन्नता न खोई, खुद वैसे का वैसा ही रहा और जगत भी बना लिया । जिस तरह आपकी सोई नजर स्वप्न सृष्टि को सत् बना लेती है उसी तरह प्रभु की माया या शक्ति ने जो कुछ हमको दिखाया उसको सत् बना कर दिखा दिया और इस खेल में यह बताया कि आप उस तत्व को जानने की कोशिश करें, जो सत् है । और सन् के जानने के लिए उसी सन् ने अपनी सत् शक्ति द्वारा इस असन् जगत को सामने रख दिया और कह दिया कि ढो पदार्थ हैं- एक सत् और दूसरा असत; एक असीमित, दूसरा
६१ सीमित; एक अविकारी दूसरा विकारी, एक नाश से रहित, दूसरा नाशवान; एक सुख का भण्डार और दूसरा असत् जड़ दु.खरूप । यह हैरान होने की बात नहीं कि उसने यह सब कुछ कहाँ से और कैसे ला रखा है। यह उसकी मामूली शक्ति का चमत्कार है। और जो भ्यूलता और साकारता आपको हैरान कर रही है वह ज्ञान के एक दर्जे की हालत है । वही चीज ज्ञान के दूसरे दर्जे में सूक्ष्म और निराकार बन जाती है । यह अनुभव की बात है इसलिए इस बात को यों फैसला कर लीजिए कि वह सर्वशक्तिमान है और उसने इस जगत को बनाया अपनी माया से, और दो पदार्थ कायम कर दिये - एक सत् दूसरा असत् । अब सत् वह खुद आप है और असत् यह जगत है जो कि सत् जड़ और दुखरूप है और वह है सच्चिदानन्द । इसलिए वेदान्त का कहना है कि आपका प्रश्न किसमें है - सत् में या असत् जगत में ? जब आपको यह मालूम हो जायगा कि यह सब कुछ ब्रह्म हो ब्रह्म है तो गैर न रहेगा । इसलिए इच्छा फिर भी मिट जायगी । इसलिए इच्छा के अभाव का वड़ा तरीक़ा यह है कि या तो सब में भगवान को देखे या सब को असत, जड़ और दुःखरूप जान कर उसका त्याग कर दे ।
मन को रोकने का तरीका
मुझसे किसी ने पूछा कि मन कैसे रोका जाय तो मैंने कहा कि मन को रोकने का पहला दर्जा तो यह है कि मुस्तकिल मिज़ाज
( धीरज वाला ) हो । अगर मन की गति एक मुद्दत तक क़ाबू में न आवे तो घबराये नहीं, बल्कि यह ख्याल करे कि जिस कदर जल्द मन काबू में आ जायगा उसी कदर जल्द यह खेल काबू करने का खत्म हो जायगा। जिधर आपका मन दौड़ता है उसमें आप नुक्स, कमियाँ और त्रुटियॉ देखने की कोशिश करें। जिस तरह आपको सख्त भूख लगी हो और आप से कोई आकर कहे कि यह है खाना, खा लीजिए और साथ ही आपको कोई
दे कि यह खाना अत्यन्त अपवित्रता से बना है, तो आपकी सख्त भूख उस वक्त घृणा की शक्ल में बदल जायगी और आप उस खाने से परहेज करने लगेंगे।
अगर आपको दूर कहीं चॉदी नज़र आ रही है, और आप वहाँ जाकर देखें कि वह चॉदी न थी, सीपी की झूठी झलक थी, तो फिर दूर आने पर उसमें चॉदी देख कर भी उसमें करण नही रहता । अगर एक आदमी आप को पैसा दे रहा हो, आप उसको लेकर चने खाने को तैयार हों और उसी वक्त कोई कह दे कि आपकी जेब में यह लाख रुपये के
जवाहरात किसने डाल दिये हैं; तो फिर उस बात को सुन कर आपके मन मे यह भाव ही कहाँ आ सकता है कि आप उस पैसे वाले के पीछे जावे ।
एक और उपाय मन को रोकने का यह भी है कि अगर एक जगह पर आप चल कर नहीं पहुँच सकते, तो आप सवारी में
बैठ कर वहाँ जा सकते है । इसी तरह अगर आपका मन आपके हाथ में किसी तरह न आ सकता हो तो फिर आप उनकी नज़दीकी करें जिन्होंने पहले अपने मन को अपने हाथ मे ले रखा है।
वेदान्त का सिद्धान्त है कि या तो आपके सामने ब्रह्म ही ब्रह्म है, कि जो नित्य प्राप्त है और या भ्रम ही भ्रम है । आकर्षण दोनों तरह से जाता रहा - पहले में नित्य प्राप्ति के कारण और दूसरे मे भ्रम के कारण। इसलिए संसार का आकर्षण ही जब कुछ मानी नहीं रखता तो फिर इच्छा को स्थान कहाँ मिल सकता है ? नित्य प्राप्ति मे तो इच्छा बनती नहीं और असत् पदार्थ को जान लेने पर उसकी इच्छा गायब हो जाती है ।
और दूसरे, संसार के पदार्थों की इच्छा भी तो शान्ति ही के लिए होती है। अगर यह मालूम हो जावे कि इच्छा करना ही शान्ति को दूर करना है, तो फिर मनुष्य इच्छा करना ही क्यों न छोड़ देगा; क्योंकि जिस चीज़ को वह इच्छा करने के बाद पाना चाहता है उसी को अपनी इच्छा से खो रहा है। दिल मे आई शान्ति की इच्छा कि वह पदार्थ मुझे मिल जावे तो शान्ति मिल जावेगी, लेकिन हम पूछते हैं कि जब तक यह इच्छा पैदा न हुई थी उस वक्त तक क्या था - शान्ति या अशान्ति ? अशान्ति तो कह नहीं सकते; अशान्ति तो उस अवस्था का नाम है जो चित्तवृत्तियों या इच्छाओं के प्रतिकूल अवस्था हो ।
और जब इच्छा ही नहीं थी, तो उसकी प्रतिकूलता भी न थी । इसलिए पहले अशान्ति तो हो नहीं सकती। अगर कोई कहे कि नहीं, पहले इच्छा के न होने पर भी अशान्ति ही थी, क्योंकि वहाँ क्रिया रहित मनुष्य पड़ा था और वह एक सुस्ती की हालत थी या dull प्रभाव था । इसलिए यह ग़लत है कि इच्छा की प्रतिकूलता का नाम ही अशान्ति है । देखिए, वहाँ कोई इच्छा ही न थी फिर भी शान्ति थी ?
उत्तर - यह गलत है। अगर इच्छा के अभाव पर, जिसको कि आप इच्छा का अभाव कह रहे हैं, वहाँ अशान्ति थी तो यह ग़लत है क्योंकि मेरे सिद्धान्त में इच्छा की प्रतिकूलता अशान्ति है । इच्छा से पहली का नाम जो आपने शान्ति रक्खा है वह गलत है, क्योंकि जिस तरह और जिस जगह आप इच्छा का अभाव बता रहे हैं वैसी अवस्था मे तो इच्छा वहाँ सूक्ष्मरूप में मौजूद है वरना वहाँ अशान्ति हरगिज न होती, क्योंकि जो उस अपनी अवस्था को इच्छा का अभाव वतला कर भी अशान्त, सुस्त और dull बता रहा है उसका मतलब यह है कि वह अपनी उस अवस्था मे प्रसन्न नहीं है क्योंकि वह उसमें सुस्ती, काहली और duliness को अनुभव कर रहा है जिसका मतलब यह है कि वह उस अवस्था की इच्छा कर रहा है कि जो कुछ चुस्त, चालाक और active हो । इसके तो यह माने हुए कि वह अवस्था इच्छा से रहित नहीं है इसलिए उसका प्रतिकूल है । पस जव प्रतिकूल है तो फिर अशान्ति
६५ क्यों न हो ! अगर आप कहें कि नहीं, स्वभावतः वह अशान्त है तो हम कहेंगे कि फिर स्वभावत अपने प्रतिकूल को अनुभव कर रही है अगर उसका प्रतिकूल न होता तो वह अशान्त न होती ।
अगर आप कहें कि नहीं, इच्छा से पहले शान्ति थी तो फिर हम पूछते हैं कि फिर इच्छा शान्ति के लिए की गई है या अशान्ति के लिए ? अगर शान्ति के लिए, तो शान्ति तो पहले ही थी; और अगर अशान्ति के लिए, तो क्या पहली शान्ति में अशान्ति पैदा हो गई थी ? अगर अशान्ति पैदा हो गई थी तो अशान्ति ही आपके लिए प्राप्त वस्तु हो गई, फिर अशान्ति के लिए भी इच्छा क्यों कर हुई ? सच बात तो यह है कि अशान्ति के लिए कोई मनुष्य इच्छा करता ही नहीं।
'इच्छा से पहले शान्ति थी' जब यह सिद्धान्त क़ायम हो गया तो फिर इच्छा किस लिए पैदा हो ?
प्रश्न - तो क्या आपका मतलब यह है कि मनुष्य dull ( जड़ ) वन जाये और कुछ करे ही नहीं ?
उत्तर - यह मैंने कब कहा है ? प्रश्न तो इच्छा का है न कि कर्म का। अगर आप कहें कि शान्ति मनुष्य को जड़ और मूक बना देगी तो उसका उत्तर यह है कि अगर ऐसी शान्ति जड़ता से और मूक बनने से मिलती है तो मुबारक है; क्योंकि चेतना, स्फूर्ति और बोलना भी तो शान्ति ही के लिए है, यहाँ तक
कि मोक्ष, समाधि वगैरह की कुल अवस्थाएँ शान्ति के लिए है । लेकिन यह बात ग़लत है कि शान्त पुरुष जड़ हो जाता है, क्योंकि जो पुरुप शान्त होगा उसकी प्रकृति भी अशान्त नही हो सकती । इसलिए उसकी शक्ति ( energy ) या प्रकृति को तो कुछ काम करना ही है, वह करेगी ही, किसी तरह रुक नही सकती, बल्कि उन पुरुषों से ज्यादा अच्छा करेगी कि जो अशान्त होकर काम कर रहे हैं । यह नियम है कि जब दिल मे कोई फिक पैदा हो जाती है तो मनुष्य की तमाम शक्तियाँ हिल जाती हैं और वह घबरा जाता है, फिर वह कोई काम ठीक नहीं कर सकता । आप चलती गाड़ी में बैठ कर अपना मजमून या व्रत साफ और उतना सुन्दर नहीं लिख सकते जितना आप शान्त और न हिलते हुए घर मे बैठ कर लिख सकते हैं । प्रकृति को अपना काम करना है और वह करेगी ही, उसमें क अनिच्छा का क्या ताल्लुक़ है? जिस तरह हवा चलती है, सूरज रोशना देता है, चॉद चमकता है, दिन-रात बदलते हैं, उसी तरह मनुष्य की क्रियाएँ हो जाती हैं। वे जड़ होकर अपना काम करती हैं और यह चेतन होकर ईश्वरीय संकल्प के अनुसार अपना काम करता है ।
उसके सामने अनुकूल और प्रतिकूल नही रहता और ईश्वर के सामने आ ही नहीं सकता, क्योंकि उसने तो अपनी इच्छा को मिटाकर प्रतिकूलता को मिटा दिया है । और ईश्वर के सामने प्रतिकूल इसलिए नही है कि प्रतिकूलता और अनुकूलता उसी
६७ की इच्छा से बनी हैं, उसको मुखालफत का पता इसलिए नहीं चलता कि उसके साथ दूसरा है नहीं कि जिसको उसके कामों में दखल देना है या जिसे उस संसार रूपी स्कीम ( Scheme ) को दुरुस्त करना या ग़लत कहना है ।
जीव अपनी इच्छा को इसलिए छोड़ देता है कि पहले ईश्वरीय इच्छा अपना काम कर रही है उसकी हुकूमत मे मुझको दखल देने की हिम्मत नहीं; और फिर जिस शान्ति के लिए इच्छा करता है वह उस इच्छा से गायब होती नज़र आती है।
हॉ, एक इच्छा ज्ञानी के मन में होती है और वह यह कि वह ईश्वरेच्छा के मुताबिक चलता रहे । अगर उस इच्छा के प्रतिकूल कुछ हो तो वह जुरूर दुखी होता है, लेकिन कुछ आगे जा कर वह इस ख्याल को भी छोड़ देता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी अपनी इच्छा अब ईश्वरीय इच्छा के प्रतिकूल जा ही नहीं सकती । इसलिए जो होता है उसको वह ईश्वरीय इच्छा समझता है और जो ईश्वरीय इच्छा होती है उससे उसको प्रतिकूलता का ख्याल स्वप्न में भी नहीं आ सकता। इसलिए इसका अपना प्रतिकूल भी उड़ जाता है, और वह शान्त हो जाता है। अक्सर ऐसा होता है कि जो स्वभाववश वह क्रियाएँ करता है उसके प्रतिकूल संसार में पैदा हो जाते हैं लेकिन वह घबराता नहीं क्योंकि उस प्रतिकूलता को भी वह अनुकूलता ख्याल करता है, इसलिए कि वह प्रतिकूलता उसके सामने उसके मालिक की इच्छा से
जाहरी हालत में वह उसकी मुखालफत करता रहेगा, क्योंकि ईश्वर ही उसके अन्दर उसके पार्ट को उस प्रतिकूल अवस्था के खिलाफ चलाना चाहता है, लेकिन यह प्रतिकूल को सामने रखता हुआ भी प्रतिकूलता को प्रतिकूल नहीं समझता, क्योंकि यह जानता है कि यह प्रतिकूल नाममात्र को है वास्तव में तो इसके प्रभु प्रीतम की इच्छा है। इस तरह ज्ञानी अपनी इच्छा का अभाव कर बैठता है, और इस तरह अपने शत्रु काम को जीत लेता है।
I am convinced there is no condition higher than that silence which comes of the abandonment of all latent desires
मुझे यह पूर्ण विश्वास हो गया है कि उस अवस्था से बड़ी और कई अवस्था नहीं, जो तमाम इच्छाओं के अभाव पर मिलती है ।
जुज ई कि महव कुनम अज़ दिल आरज़ूहा रा । न माँदा अस्त मरा दर दिल आरजू दिगर ।। अर्थात् - सिवाय इसके कि मैं आम इच्छाओं को दिल की तख्ती से साफ कर दूँ, मेरे अन्दर दूसरी इच्छा ही नहीं रही है ?
प्रश्न - लेकिन यह भी तो इच्छा है कि आप अपने दिल की तख्ती से सब कुछ साफ करे ?
उत्तर - लेकिन यह इच्छा तो उस समय तक है कि जब तक और इच्छाएँ भी बाकी हैं। जब यह इच्छा पैदा हुई कि बाकी
इच्छाएँ न रहें तो दिल में साहस पैदा हो गया कि अब उनको मिटाये बग़ैर न रहेंगे, और जब ये इच्छाऍ गई तो उनको मिटाने की इच्छा तो खुद ही चली जायगी ।
एक समय मुझ से किसी ने पूछा कि महाराज, जब कुल इच्छाओं का अत्यन्त प्रभाव ही मोक्ष ह तो फिर ईश्वरीय इच्छा करना भी तो बन्धन ही होगा ? मैंने कहा, ठीक है, लेकिन भेद इतना है कि जब आपके पाँव में कॉटा चुभता है तो आप उसको निकालने के लिए दूसरा कॉटा लेते हैं; लेकिन जब पॉव का कॉटा निकल गया तो हाथ का कॉटा बेकार हो गया। इसी तरह जिस मन में बेइन्तहा इच्छा अपना काम कर रही हैं उनको निकालने के लिए ईश्वर दर्शन की इच्छा जरूरी है। जब यह पैदा हुई, बाक़ी इच्छाएँ जाती रहीं और इस इच्छा का यह प्रभाव हुआ कि ईश्वर की समीपता और दर्शन हुए, और जब यह समीपता मिली तो यह इच्छा भी गायब हो गई ।
इसलिए जब तक सांसारिक इच्छाएं मन में हैं उस समय तक ईश्वर की इच्छा का होना ज़रूरी है और जब यह इच्छा मन में आ जायगी बाकी इच्छाएँ भाग निकलेंगी, और जब मन मे कोई इच्छा न रहेगी तो भगवान के दर्शन होगे; और जब दर्शन होंगे तो दर्शन की इच्छा भी उड़ जायगी ।
मेरा सिद्धान्त है- इच्छा के परदे में शान्ति । जब इच्छाओं का अभाव हुआ चित्त शान्त हो गया । योग भी यही है कि चित्तवृत्तियों का शान्त हो जाना या रुक जाना । जब इच्छा ही
कोई नहीं तो फिर तो विक्षेप कैसा ?
अशान्ति कैसी ? जब अशान्ति नहीं और जब विक्षेप नहीं तो चित्त-वृत्तियों का
निरोध आप ही हो गया। ईश्वर-दर्शन की इच्छा सविकल्प समाधि है और इस इच्छा का भी अन्त में मिट जाना निर्विकल्प समाधि है ।
चाह गई चिन्ता गई मनुत्रा चेपरवाह । जिनको कछु ना चाहिए सो शाहनपति शाह ।।
प्रश्न - शान्त अवस्था में इच्छा क्यों पैदा हो जाती है ? उत्तर - अशान्ति के बाद यह बताने के लिए कि शान्ति इच्छा से पहले ही थी और जब एक दफा यह मालूम हो जाता है तो फिर शान्त अवस्था मे इच्छा पैढ़ा नहीं होती ।
प्रश्न -लेकिन पहले भी ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर - इसको जानने की जरूरत क्या है, क्योंकि इसका उत्तर उस शान्त अवस्था की छान-चीन से मिल सकता है जिसमें अभी इच्छा पैदा नहीं हुई और वहाँ हम इसलिए पहुँच नहीं सकते क्योंकि वह इच्छा के उत्पन्न होने से जाती रही है, जो इच्छा के अभाव पर शान्त अवस्था होगी उसमें छानवींन हो नहीं सकती क्योंकि वहाँ तो इच्छाओं का अत्यन्त अभाव पहले ही हो चुका है, इसलिए इस बात को जानने की कोशिश न करो कि उसमे इच्छा क्यों पैदा हुई । सिर्फ इतना काफी है कि इच्छा क्योंकर मिटे और फिर शान्त अवस्था कैसे आवे ।
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शिक्षण तकनीक आदर्श गुण
और सामाजिक सम्मान, आदि का विकास
करना होता है। इसीलिये वे लोग स्वयं की वंशानुक्रमीय धरोहर का वर्तमान
पर्यावरण में प्रयोग करके सामान्य स्तर को ही प्राप्त कर पाये । अतः दोनों
ही समूहों में प्रयत्नों प्रेरणाओं और क्रियाशीलता के कारण तत्व भिन्नता स्पष्ट हो रही है ।
सामान्य स्तर से धनात्मक विकान दोनों ही समूहों में तत्व एच तथा क्यू में समान रहा है । तत्व "स्न" प्रथम समूड में धनात्मक विचलन स्टैन्स 86048 पर रहा जबकि तृतीय मूह में तत्व "एन" सामान्य स्तर पर रहा है। इसका मुख्य कारण वंशानुक्रमीय विशेषता प्रभाव हो सकता है । ऐसा देखा गया है कि उच्च वर्ग के व्यक्तियों में कुछ विशेषतायें स्वाभाविक रूप से विकसित होती है जो उनकी उच्चता साधन सम्पन्नता दूरदर्शिता आदि को स्पष्ट करती है और समाज में उच्च स्थान प्रदान करती हैं। ये लोग चतुरता से कार्य सम्पादन करते हैं व्यवहारिक होते हैं विश्लेषण के आधार पर करते हैं और पूर्ण बुद्धिमत्ता का परिचय देते हैं । अतः इस तत्व में प्रथम समूह का धनात्मक विचतन और तृतीय समूह का सामान्य स्तर तक स्थापित होना स्वाभाविक प्रतीत होता है। सामाजिक-आर्थिक स्तर का तृतीय समूह व्यक्तित्व तत्व "ई, आई एम में धनात्मक विचलन लिये हुये हैं और प्रथम समूह में सामान्य स्तर पर रहे हैं । तत्व "ई" को "हम्बल बनाम असर टिव से जाना जाता है । इस तत्व की अधिकता से व्यक्तित्व में स्वतन्त्र भाव आक्रामकता प्रतिस्पर्धा और हठीपन आदि विशेषतायें विकसित होती हैं। छात्र/छात्रा-अध्यापकों के तृतीय समूह स्तर पर इस तत्व की प्रधानत व्यवसायिक गम्भीरता को प्रगट करती है जो प्रत्येक शिक्षक का आवश्यक गुण माना जाता है । इसका मुख्य कारण जीवन में उच्चता प्राप्त करने की तीव्र
इच्छा और शिक्षण के प्रति समर्पण का भाव माना जा सकता है । इच्छा भावित पर हुये अध्ययनों ने स्पष्ट किया है कि लक्ष्य प्राप्ति करने में सरलता स्पष्टता एवं स्वाभाकिता दृढ इच्छा शक्ति विल पावरहूँ का ही परिणाम होती है। यदि हम सामाजिक-आर्थिक स्तर माँपनी के मैनुअल के पृष्ठ ११४ पर बनी तालिका को देखें तो प्रस्तुत कार्यका तथ्य प्रतिशत उच्च वर्ग 81078 उच्च मध्यम वर्ग 120/8 निम्न मध्यम वर्ग
१००%४ तथा निम्न वर्ग 11028 रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि
तृतीय रामूह सबसे पड़ा समूह है जिसमें 16028 कैरास रहते हैं । अतः यह
वर्ग अपनी इच्छा शक्ति मेहनत लगन और समर्पण के भाव को स्थापित करके आदर्श अध्यापक बनने की कोशिश करते हैं । परिणामस्वरूप इनका विकास सकारात्मक रहता है और इसीलिये इनका धनात्मक विचलन रहा है। उच्च वर्ग ने स्वयं को इस कार्य के लिये वंशानुक्रमीय आधार पर ही उपयोगी मान लिया तथा विशेष रुचि नहीं दिखलाई अतः उनका विकास इस तत्व में सामान्य स्तर पर ही रहा है। तत्व "आई" का भी तृतीय समूह में धनात्मक विचलन पाया गया है । इस तत्व को "टफ माइण्डड बनाम टेण्डर माउण्डड के नाम से जाना जाता है। अध्यापकों में इस तत्व की प्रखरता से मानसिक
लचीलापन निर्भरता अति सुरक्षित भावात्मक आदि व्यिक्तत्व विशेषताओं का विकास माना जाता है। इस प्रकार के लोग रचनात्मक प्रवृत्ति के होते हैं । वे कल्पनात्मक विचारों से ग्रस्त रहते हैं । ये शालीन व्यवहार को पसन्द करते हैं न कि अव्यवहारिकता को प्रस्तुत शोध में तृतीय समूह सामान्य स्थिति को स्थापित करता है अतः वे स्वयं को शालीन बनाने के लिये रचनात्मक कार्यों को सम्पादित करने के लिये नवीन योजनाओं का निर्माण करते रहते हैं ताकि स्वयं को शिक्षक के रूप में स्थापित कर सकें । इनके मन में व्यवसायिक सुरक्षा का भाव तीव्र होता है । अतः कुछ
-21548विशेष कार्य करके ही वे स्वयं को सुरक्षित मात्र हैं। इसके विपरीत प्रथम समूह अपनी सुरक्षा को उच्च वर्ग के कारण मानता है अतः वह नवीन योजनाओं को बनाना और उन पर अगल करने का प्रयास ही नहीं करता है । इसीलिये इत तत्व में वह सामान्य स्तर पर रहा है। व्यक्तित्व तत्व "एम" का स्टैन्स 86.5+0 रहा है जो सामान्य से धनात्मक विचलन स्थापित करता है । इस तत्व को "व्यवहारिक बनाम काल्पनिक के नाम से जाना जाता है । इस तत्व की प्रधानता से व्यक्तित्व में आंतरिक शक्ति का व्यवहार पर प्रभाव स्पष्ट होता है। ऐसा व्यक्ति अपने क्षेत्र में नवीनता स्थापित करता है । वह अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा रचनात्मक कार्यों को स्पष्ट करता है जो सामान्य लोगों की समझ में नहीं आते हैं और वह व्यक्ति अपने समूह से कटता जाता है। लेकिन यही रचनात्मकता एक दिन उसको विख्यात करती है । महान शिक्षाशास्त्री इसी मार्ग पर चलकर प्रसिद्ध हुये हैं। प्रशिक्षण के दौरान यह स्पष्ट किया जाता है कि अध्यापक को अपनी समस्या का समाधान स्वविवेक के आधार पर करना चाहिये ताकि छात्रों का अहित न हो । परिणामस्वरूप उनमें काल्पनिक दृष्टिकोण का विकास स्वाभाविक रूप से हो जाता है । इसी विशेषता को "टी० पी0 नन" महोदय ने "स्वाभाविकता" और जिनलिटी माना है जो अन्य लोगों से व्यक्ति को सैद्धान्तिक व व्यवहारिक रूप से भिन्न रूप में स्थापित करती है। उच्च वर्ग अपने अहं के कारण और समर्पण के अभाव के कारण स्वयं को इस तत्व में सामान्य स्तर का पाता है । जबकि तृतीय समूह अपनी उच्चाकांक्षा के कारण, समर्पण
के कारण धनात्मक विचलन पर आया है ।
शोध कर्ता ने प्रथम समूह व तृतीय समूह के बीच भिन्नता की सार्थकता को जानने का प्रयास किया । व्यक्तित्व के 16 तत्वों में से सिर्फ तत्व "बी, एन, क्यू4" में ही भिन्नता की सार्थकता स्पष्ट हुई है । तत्व "बी" में सार्थक भिन्नता 0.01 स्तर पर स्थापित हुई है। यह तत्व छात्र/
-81558जन्मजात योग्यता स्पियरमैन आदि माना जाता है । अभ्यास के द्वारा इसमें तीव्रता, तेजी लाई जा सकती है, लेकिन कम या अधिक नहीं हूँ मात्रा किया जा सकता है । शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धि के प्रयोगों से स्पष्ट हो चुका है कि समाज के उच्च वर्ग में मानसिक योग्यताओं के समूह अधिक तीव्र होते हैं एनास्टेसी, 1934 अपेक्षाकृत मध्य वर्ग स्तर के । अतः बौद्धिक रूप से दोनों ही समूहों में जो अन्तर प्रगट हुआ है वह उचित ही प्रतीत होता है। व्यक्तित्व तत्व "क्यू4" में सार्थक भिन्नता 0.05 सा पर प्रगट हुई है। इस तत्व को मानसिक उतोजना के रूप में जाना जाता है । उच्च स्तरीय समूह का अहं समाज में उच्चता के भाव के कारण तनाव विकसित करने में सहायक होती है जबकि सामान्य स्तरी वर्ग सोच-समझ कर कार्य करता है ताकि उसका सम्मान बना रहे । वह असामान्य दशा में भी आराम से सोच-समझ कर कार्य करता है जल्दी तनावग्रस्त नहीं होता है । परिणामस्वरूप शिक्षण व्यवसाय में वह सफल होता है तथा उसका छात्र, समाज सहयोगियों में सम्मान होता है । अतः दोनों समूहों की भिन्नता इस तत्व में स्पष्ट होती है । सामाजिक आर्थिक स्तर के प्रथम समूह तथा तृतीय समूह छात्र/छात्रा अध्यापकों में तत्व "एन" में सार्थक भिन्नता 0.0 स्तर पर स्थापित हुई हैं। इस तत्व को अग्रगामी बनाम चतुर" के नाम से जाना जाता है । अध्यापन के क्षेत्र में विषय की गहनता ज्ञान को देने का तरीका तथा कथा समस्याओं का समाधान आदि को शालीनता चतुरता, और मर्मज्ञता के साथ करना माना जाता है। जो अध्यापक अभ्यास के दौरान तकनीकों का सही प्रशिक्षण प्राप्त कर लेते हैं, वे अन्य शिक्षकों की अपेक्षा अधि कुशल छुस्किल्ड) हो जाते हैं। इसीलिये इस तत्व में दोनों समूहों में भिन्नता की सार्थकता स्पष्ट हुई है ।
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उलमान की मान्यता है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा को छोड़ शेष शब्द जाति या सामान्य का बोध कराते हैं । उनसे विशिष्ट व्यक्ति, गुण, क्रिया आदि का अलगअलग ग्रहण नहीं होता, वरन् उनके समग्र समुदाय का बोध होता है। यदि शब्द न रहें, या शब्द और अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध में व्याघात आ जाय तो उस जाति की धारणा, उस समग्र समुदाय का बोध भी शब्द के साथ ही समाप्त हो जायगा ।!
जाति अमूर्त होती है और अमूर्त जाति या सामान्य का बोध शब्द पर ही निर्भर रहता है। यदि शब्द का अर्थ वस्तुजगत का कोई विशिष्ट पदार्थ होता तो उसकी सत्ता शब्द-निरपेक्ष भाव से भी मानी जाती, पर तथ्य यह है कि शब्द वस्तु के सामान्य रूप का बोध कराते हैं, जिसकी सता शब्द पर ही निर्भर रहती है । वस्तुविशेष या व्यक्ति को शब्द का अर्थ नहीं माना जा सकता । भारतीय भाषादर्शन में व्यक्ति को शब्द का अर्थ मानने वाले मत का युक्तिपूर्वक खण्डन किया जा चुका था। भारतीय व्याकरण-दर्शन में जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य को समग्रतः शब्दार्थ माना गया है । मीमांसकों ने केवल जाति को शब्दार्थ माना है । उलमान व्यक्तिवाचक संज्ञा को व्यक्तिबोधक मानते हैं और अन्य पदों को जाति, गुण, क्रिया आदि के सामान्य बोध का हेतु । शब्दार्थ के स्वरूप की समस्या पर हमने स्वतन्त्र अध्याय में विस्तार से विचार किया है। शब्द- अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध के निरूपण के इस सन्दर्भ में उलमान की मान्यता का सार यह है कि अर्थ सामान्यबोध-रूप होने के कारण शब्द पर आश्रित रहते हैं । भातव्य है कि भारतीय वैयाकरणों ने भी शब्द और अर्थ के नित्य सम्बन्ध की कल्पना करते हुए समग्र अर्थबोध को शब्दबद्ध माना था। विशिष्ट मूर्त वस्तु को शब्द का अर्थ मानने वालों ने व्याकरण- मत का खण्डन करने के लिए यह युक्ति भी दी थी कि शब्द और अर्थ में अविनाभाव, नित्य या प्राप्ति रूप सम्बन्ध अनुभवसिद्ध नहीं है, पर इस आक्षेप की व्यर्थता इस बात से सिद्ध हो जाती है कि व्यक्ति या विशिष्ट वस्तु शब्द का संकेतित अर्थ नहीं, उसकी आधि संकेतित अर्थ होती है, जिसने जाति, गुण, किया तथा संज्ञा का बोध मिश्रित रहता है । मीमांता तथा न्याय दर्शन के चिन्तन के आलोक में उलमान की मान्यता में एक परिष्कार अपेक्षित है कि सभी व्यक्तिवाचक पदों का अर्थ भी विशिष्ट व्यक्ति ही नहीं होता उन संज्ञा पदों से भी जाति या जातिविशिष्ट व्यक्ति का ही ग्रहण होता है ।
१. our words, except proper names stand for class concepts: they denote not single objects, qualities, events etc. but whole categories of these. If the word is lost, if the relation between name and sense is disrupted then the class concept our awareness of the category may Perish with it वही, पृ० २०८
एडवर्ड सपोर ( Sapir) ने अर्थ और अर्थबोध पर भाषा के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा है कि मनुष्य के समाज में जो भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है उसका मनुष्य के बोध पर अधिकार हो जाता है । 'यथार्थ शब्द' की रचना बहुत हद तक, जन समुदाय के भाषा-संस्कार पर अनजाने ही हो जाती है । बोध की साधारण प्रक्रिया भी शब्द से प्रभावित होती है । उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति विभिन्न प्रकार की रेखाएँ खींचता है तो उन्हें लोग सीधी, टेढ़ी, घुमावदार आदि के वर्ग में अलग-अलग इसीलिए समझ पाते हैं कि उन शब्दों में ही अलग-अलग वर्गों का बोध कराने की शक्ति है । हम देखते और सुनते हैं और उनका विशेष रूप में अनुभव करते हैं, क्योंकि हमारे समाज का भाषा-संस्कार वस्तुओं के बोध को एक विशेष रूप में पहले ही ढाल देता है । तात्पर्य यह कि बाह्य वस्तु से वस्तु का बोध अभिन्न नहीं । शाब्दबोध में वस्तु का स्वरूप भाषिक संस्कार से विशेष रूप में ढल कर बोध का विषय बनता है ।
सपीर की इस मान्यता में शब्द की व्यापकता तथा उसके प्रभाव के प्रति अतिशय आग्रह है । निश्चय ही कुछ हद तक शब्द अर्थ के स्वरूप को निर्धारित करते हैं, पर रेखाओं की ऋजुता, वक्रता आदि के बोध का जो एक मात्र कारण शब्द में उन रूपों की अभिव्यक्ति की शक्ति को माना गया है, वह दूरगामी विचार है । भारतीय व्याकरण-दर्शन में भी सभी प्रकार के बोध को शब्दबद्ध या सविकल्पक माना गया था जिसे इस अर्थ में ही स्वीकार किया जा सकता है कि बाह्य वस्तु भी शब्दबद्ध होकर ही विचार का विषय बन सकती है । रेखाओं को वक्रताऋजुता आदि को वस्तुगत नहीं मान कर उसके बोध का श्रेय भाषा-संस्कार को देना कुछ अतिगामी विचार जान पड़ता है। क्या सरल रेखा का बोध अलग-अलग भाषिक संस्कार वाले व्यक्तियों को अलग-अलग रूप में होता है ? इसके विपरीत तथ्य यह है कि किसी अविकसित भाषा में किसी वस्तु के बोत्रक शब्द का अभाव होने पर भी उस वस्तु का बोध होता ही है और फलस्वरूप उसको सही अभिव्यक्ति देने के लिए उपयुक्त शब्द का निर्माण होता है। यदि बोध भाषा-संस्कार तक ही सीमित होता तो भाषा में नये-नये शब्द की रचना का क्या प्रयोजन होता ? प्रणय के प्रसंग में मानमनुहार को व्यक्त करने वाला शब्द अंग्रेजी भाषा में नहीं मिलता, तो क्या यह मान लिया जाय कि मानमनुहार शब्द से भारत में जिस अर्थ को अभिहित किया जाता है उस अर्थ का अनुभव कभी किसी अंग्रेजी भाषा-भाषी को होता ही नहीं ? ष्ट है कि समय बोध को भाषानुगत तथा सविकल्पक सिद्ध
१. E. Sapir, selected writings, P, 162
करने के लिए जो विचार भारतीय वैयाकरणों ने व्यक्त किया था, वही सपीर की मान्यता में भी प्रतिध्वनित है। इस समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि हम लोक-सिद्ध वस्तु और उसकी ओर निर्देश करने वाले शब्द के अर्थ के सम्बन्ध भेद को स्पष्ट रूप से समझें । शब्द का अर्थ लोक सिद्ध विशिष्ट वस्तु नहीं, - उसका प्रत्यय है जो शब्द से व्यक्त होता है और जिसकी सत्ता शब्द - सापेक्ष है । वस्तु की सत्ता शब्द - निरपेक्ष भी हो सकती है । प्रत्यय में वस्तु-बोध शब्द से प्रभावित हो सकता है, वस्तु का भौतिक रूप नहीं ।
प्रत्येक भाषा में कुछ ऐसे शब्द होते हैं, जिन्हें दूसरी भाषा में अनूदित करना कठिन होता है । उन शब्दों के ठीक पर्यायवाची शब्द अन्य भाषाओं में नहीं मिलते । उदाहरण के लिए ईरानी आर्यभाषा परिवार के 'ईमान' शब्द का पर्यायवाची कोई एक शब्द न तो भारतीय आर्य भाषाओं में मिलता है और न भारोपीय भाषा परिवार की अन्य भाषाओं में ही । भारतीय आर्यभाषा के मानमनुहार शब्द का पर्यायवाची शब्द अंग्रेजी आदि में उपलब्ध नहीं । फोन्च भाषा के esprit शब्द का पर्यायवाची शब्द यूरोप की किसी दूसरी भाषा में नहीं मिलता । कान्ट ने फोन्च भाषा के ऐसे शब्दों की सूची में esprit शब्द को रखा है, जिनका दूसरी भाषाओं में अनुवाद करना कठिन है । ऐसे शब्द प्रायः बौद्धिक, नैतिक, मनोभावात्मक तथा सामाजिक तत्त्वों से सम्बद्ध होते हैं और जातिविशेष की विशिष्ट मनोवृत्ति को सूचित करते हैं । कान्ट ने फ्रेन्च भाषा के esprit आदि शब्दों के अन्य भाषाओं में अनुवाद की कठिनाई का कारण बताते हुए कहा है कि चूंकि इस प्रकार के कुछ शब्द लोगों के मन के रहने वाले पदार्थ को व्यक्त करने की अपेक्षा भाषाविशेष का व्यवहार करने वाले देश की अपनी एक विशिष्ट मनोवृत्ति को अधिक व्यक्त करते हैं, इसलिए उन्हें दूसरे देश की किसी भाषा में सरलता से अनूदित नहीं किया जा सकता । यदि ऐसे शब्दों को दृष्टि में रख कर अर्थ के साथ उनके सम्बन्ध पर विचार किया जाय तो यह निष्कर्ष प्राप्त होगा कि शब्द का न केवल उसके संकेतित अर्थ से सम्बन्ध होता है, वरन् उस अर्थ के बोध की प्रक्रिया में मनुष्य के विशिष्ट मनोभाव से भी उसका अनिवार्य सम्बन्ध होता है। उस शाब्दबोध में मानव के संस्कार से निर्मित विशिष्ट भाव-बोध भी घुलामिला रहता है। तात्पर्य
१. The words esprit ( instead of bon sens) frivolite, galanteric etc. cannot easily be translated into other languages, because they express the piculiar mentality of the nation using them, rather than the object which one has in mind when one is thinking Kant, Anthropologie से उलमान की Language and style में उद्धृत, पृ० २१९.
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Coronavirus Live Updates:
- अमेरिका में लगातार दूसरे दिन 2000 लोगों की मौत हुई है. इससे एक दिन पहले भी अमेरिका में 24 घंटे के अंदर 2 हजार लोगों ने दम तोड़ दिया था.
- राजस्थान में कुल 383 मामले कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. राजस्थान में रात की रिपोर्ट में 20 मरीज और सामने आए. जिनमें से 129 सिर्फ जयपुर से सामने आए हैं.
- द्वारका में तबलीगी जमात के जिन 66 लोगों को क्वारंटीन किया गया था उन सभी का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव निकला है.
- भोपाल, उज्जैन और इंदौर अब पूरी तरह से सील कर दिए गए हैं. 14 जिलों में फुल लॉक डाउन है. आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना जिला प्रशासन की जवाबदारी है. कोरोना बीमारी को जानबूझकर छुपाने वाले व्यक्ति पर FIR और दंडात्मक कार्यवाही होगी.
- गौतम बुद्ध नगर में 2 और कोरोना पॉजिटिव मिले हैं. चौड़ा गांव सेक्टर 22 नोएडा से एक महिला और सुपरटेक कैपटाउन से एक पुरूष कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. दोनो के परिवार के सदस्य सीज फायर कंपनी में कार्यरत थे.
- कोरोना पॉजिटिव का मामला मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने बंगाली मार्केट इलाके को सील करने का फैसला लिया है.
- लुटियन दिल्ली का ये पहला मामला है, जहां किसी इलाके को सील किया गया है. कल से सीमित समय के लिए ही मार्केट खुलेगी.
- दिल्ली में 20 हॉटस्पॉट्स को सील किया गया है. सील की हुई जगहों पर डोर टू डोर जरूरी सामान की सप्लाई होगी.
- धारावी में 64 वर्षीय पुरुष की मुंबई के KEM अस्पताल में मौत हो गई है.
- कुछ दिनों पहले ही कोरोना के लक्षण दिखाई देने के बाद अस्पताल में किया गया था भर्ती.
- मुंबई में 72, नवी मुंबई में 1, बुल्धाना में 1, पुणे में 36, अकोला में 1, थाणे में 3, केडीएमसी में 1 और पुणे ग्रामीण में 2 मामले पिछले 12 घंटे में सामने आए हैं.
- मुंबई में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 45 पहुंचा. आज बीएमसी ने पांच और लोगों की मौत की पुष्टि की है.
- महाराष्ट्र में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 72 पहुंचा. 24 घंटे में हुई 8 लोगों की मौत.
- वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने कहा है कि आईटी विभाग ने 14 लाख करदाताओं को लाभान्वित करने के लिए सभी लंबित आयकर रिफंडों को तुरंत 5 लाख रुपये तक जारी किया.
- MSMEs सहित लगभग 1 लाख व्यापारिक संस्थाओं को लाभ प्रदान करने के लिए, सभी GST और कस्टम रिफंड भी जारी किए जाएंगे.
- अगले एक साल तक मंत्री, विधायकों की वेतन में कटौती. 15 फीसदी वेतन की होगी कटौती.
- कटौती की ये राशि कोरोना उन्मूलन कोष में जमा होगी.
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार कैबिनेट की बैठक हुई.
- इस बैठक में सभी विभागों के मंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही जुड़े थे. 3 मार्च के बाद आज पहली बार कैबिनेट की बैठक हुई.
- विधायक निधि को 1 साल के लिए ससपेंड किया गया. 2020-21 की विधायक निधि का इस्तेमाल कोरोना से लड़ने में किया जाएगा.
- मंत्रियों के वेतन में 30 फीसदी की कटौती के प्रस्ताव पर मुहर.
- विधयकों के वेतन में भी 30 फीसदी की कटौती.
- आपदा निधि 1951 में बदलाव किया गया. अब तक आपदा निधि में 600 करोड़ की राशि थी जिसे अब बढ़ा कर 1200 करोड़ किया गया है.
- ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के कनफेडरेशन ने पीएम मोदी से अपील करते हुए 30 अप्रैल, 2020 तक लॉकडाउन को बढ़ाने की अपील की है.
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शब-ए-बरात के मौके पर लोगों से अपने घर में रहकर इबादत करने की अपील की है.
शब-ए-बरात के मौके पर सभी को मुबारकबाद। आप सब से मेरी गुजारिश है की इस साल अपने अपने घरों से ही इबादत करें, अपनी और अपने परिवार की हिफाज़त करें।
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया है. कैबिनेट ने एक साल के लिए विधायक निधि को खत्म कर दिया है. इसी के साथ ऐलान किया है कि मुख्यमंत्री और मंत्रियों के वेतन में भी कटौती की जाएगी. सरकार ने कोविड फंड के लिए अध्यादेश पास कर ये निर्णय लिया है.
- कोरोनावायरस की स्थिति पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बैठक बुलाई है. बैठक में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन, चीफ सेक्रेटरी विजय देव, हेल्थ सेक्रेटरी, होम सेक्रेटरी समेत कई आला अधिकारी मौजूद रहेंगे. ये बैठक शाम 7 बजे मुख्यमंत्री आवास पर होगी.
- लोगों का कहना है कि कहीं न कहीं सरकार ये संदेश लोगों तक पहुंचाने में नाकाम हुई कि 15 जिले पूरी तरह से सील नहीं किए जाएंगे सिर्फ कुछ हॉटस्पॉट को ही पूरी तरह से सील किया जाएगा.
- उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित लोगों में 0-20 की उम्र के 16 प्रतिशत, 21 से 40 की उम्र के 44 प्रतिशत, 41 से 60 की उम्र के 27 प्रतिशत और 60 से ज्यादा की उम्र के 13 प्रतिशत हैं.
- KEM हॉस्पिटल की एक महिला स्टाफकर्मी कोरोनावायरस से संक्रमित पाई गई है. ये महिला स्वास्थ्य कर्मी मुंबई के धारावी में रहती है. अब तक धारावी में कोरोनावायरस से संक्रमण के 10 मामले सामने आ चुके हैं.
- सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने उनके निर्वाचन क्षेत्र वायनाड में 26,000 किलों चावल और लगभग 2,000 किलो दाल भेजी है. इसी के साथ दो वेंटिलेटर्स भी उनके निर्वाचन क्षेत्र में पहुंच चुके हैं.
- हेल्थ मिनिस्ट्री के जॉइंट सेक्रेटरी लव अग्रवाल ने बाताया है कि आज की तारीख तक 402 लोगों को डिस्चार्ज किया जा चुका है और कुल संक्रमित लोगों की संख्या 5194 हो चुकी है. अब तक 149 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से लगभग 32 की मौत कल हुई है.
- लव अग्रवाल ने कहा कि टेस्ट की तादाद बढ़ाने के लिए निजी लैब्स को भी मंजूरी दी गई है. उन्होंने बताया कि 139 लैब्स हैं, 65 प्राइवेट लैब्स हैं.
- 3.5 करोड़ भवन निर्माण श्रमिक के लिए 31 हजार करोड़ कि राशि उपलब्ध है.
- गृह मंत्रालय के मुताबिक कुछ राज्यों ने लॉकडाउन को टाइट किया है. साथ ही धार्मिक गुरुओं से भी लोगों को जागरूक करने के लिए सहयोग लिया जा रहा है.
- लव अग्रवाल का कहना है कि कमजोर लक्षणों से कैसे निपटा जाए, इसके लिए ढांचागत सुविधा तेजी से बढ़ाई जा रही है. उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें लगातार फैसले ले रही हैं.
- स्वास्थ्य संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने बताया है कि अब तक भारत में कोरोना वायरस के चलते 149 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 402 लोग इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं.
- चेन्नई एक्सप्रेस फिल्म के प्रोड्यूसर करीम मोरानी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. उनकी दोनों बेटियां शाजा और जोया भी कोरोनावायरस से संक्रमित हैं. शाजा पहले से ही कोरोना से संक्रमित थीं, जिसके बाद कल यानी मंगलवार को दूसरी बेटी जोया का भी टेस्ट पॉजिटिव आया. आज करीम मोरानी भी संक्रमित पाए गए, जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल शिफ्ट कर दिया गया है.
- इटली में अब तक कोरोनो वायरस के 135,586 मामलों की पुष्टि हुई है. इन आंकड़ों में 17,127 लोगों की मौत के आंकड़ें भी शामिल हैं. यह जानकारी कोविड-19 आपातकाल का प्रबंधन कर रहे सिविल प्रोटेक्शन डिपार्टमेंट के हवाले से मिली है.
- समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से सोमवार को 880 नए एक्टिव मामले रजिस्टर किए गए हैं. इसके साथ देशभर में एक्टिव संक्रमण के कुल 94067 मामले हो गए हैं. पिछले दिन की तुलना में 1,555 से अधिक लोग इस संक्रमण से उबरे हैं, जिसके बाद ठीक होने वाले लोगों की संख्या 24,392 हो गई है.
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी के संसद सदस्यों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिग की और कहा कि सभी को कोरोनोवायरस के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा.
- उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के क्वारंटीन सेंटर से 21 लोग फरार हो गए हैं. सभी फरार लोगों पर FIR दर्ज की गई है. 21 लोगों को 14 दिन के क्वारंटीन में रखा गया था. क्वारंटीन पूरा होने में अभी 4 दिन बाकी था, उससे पहले ही ये लोग फरार हो गए.
- यूपी के आगरा में कोरोना वायरस से संक्रिमत एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई है. आगरा में कोरोना से हुई यह पहली मौत है. इससे प्रशासन में हड़कंप मच गया है.
- 67 वर्षीय महिला कोरोना वायरस से संक्रमित थी. वो आगरा के SN अस्पताल में भर्ती थी. आगरा जिलाधिकारी ने इसकी पुष्टि की है. महिला आगरा के कमला नगर की रहने वाली बताई जा रही है. आगरा में 65 लोग कोरोना संक्रमित हैं.
- एमपी के इंदौर में टाटपट्टी बाखल में स्वास्थ्य विभाग की टीम के बाद अब चन्दन नगर इलाके में पुलिस पर हमला हुआ है. पुलिस घरों के बाहर झुंड लगाकर खड़े लोगों को समझाने गई थी. इलाके के लोगों ने पुलिसकर्मी पर किए हमले का वीडियो वायरल कर दिया है. हमला करने वाले इमरान, समीर, सल्लू नासिर समेत कुल आधा दर्जन लोगों को पुलिस ने किया गिरफ्तार किया है.
- इस मामले में अभी तक कई लोग फरार हैं. गिरफ्तार आरोपियों पर रासुका के तहत कार्रवाई की तैयारी चल रही है.
- गोवा में सिर्फ 7 लोग बीमारी से पीड़ित है .गुजरात में 165 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं 25 को डिस्चार्ज किया जा चुका है जबकि 13 की मौत हुई है. हरियाणा में 147 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं, 28 को डिस्चार्ज किया जा चुका है. यहां 3 की मौत हुई है.
- हिमाचल प्रदेश में 18 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और 2 को डिस्चार्ज किया जा चुका है. यहां एक व्यक्ति की मौत हुई है.
- जम्मू कश्मीर में ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. यहां 116 लोग कोरोना से संक्रमित है जबकि 2 की मौत हुई है. झारखंड में अब तक सिर्फ 4 लोगों में कोरोना की पुष्टि हुई है.
- कर्नाटक में 175 लोगों में कोरोना की पुष्टि हुई है, इसमें से 25 को डिस्चार्ज किया जा चुका है जबकि 4 की मौत हुई है.
- मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बुधवार को कोरोना वायरस पॉजिटिव के 8 नए केस सामने आए हैं. इस तरह से भोपाल में कोरोना पीड़ितों की संख्या 91 हो गई है.
- स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस वायरस से महाराष्ट्र सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ और यहां कुल 1018 पॉजिटिव मामले सामने आए. इसके बाद तमिलनाडु में 690 मामले आए.
- वहीं आंध्र प्रदेश में 305 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं जबकि 4 लोगों की मौत हुई है. अंडमान निकोबार में 10 कोरोना पीड़ित हैं. अरुणाचल प्रदेश में 1, असम में 27 और बिहार में 38 लोग इस बीमारी से पीड़ित हुए हैं. बिहार में एक की मौत की सूचना है, जबकि चंडीगढ़ में 18, छत्तीसगढ़ में 10 लोग इस बीमारी से पीड़ित पाए गए हैं.
- इस बीच दिल्ली में कोरोना पीड़ितों की संख्या 576 पहुंच गई है, 21 लोगों को अस्पताल से डिस्चार्ज किया चुका है और 9 लोगों की मौत हो गई है.
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए राज्य से राज्यसभा और लोकसभा सदस्यों के साथ मीटिंग की. इस दौरान कोरोना वायरस को लेकर चल रही तैयारियों पर बात हुई.
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण में बुधवार को एक पायदान का सुधार हुआ है. वायु में जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड की 60 फीसदी की कमी आई है.
- शहर का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) मंगलवार की 106 की तुलना में 88 पर और "संतोषजनक" श्रेणी में आया.
- महाराष्ट्र में कोरोना पॉजिटिव के 60 नए मामले सामने आए हैं. इस तरह से राज्य में कोरोना पीड़ितों की संख्या 1078 हो गई है.
Number of #COVID19 cases has reached 1078 in Maharashtra as 60 more people tested positive today. 44 fresh cases have been found under Brihanmumbai Municipal Corporation area, 9 under Pune Municipal Corporation area, 4 in Nagpur, 1 each in Ahmednagar, Akola Buldhana.
- दिल्ली पुलिस के एक सहायक सब-इंस्पेक्टर की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव पाई गई है. रिपोर्ट आते ही दिल्ली पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है. मामले के सामने आते ही उस कालकाजी पुलिस कालोनी को सील कर दिया गया है, जहां एएसआई रहता है.
- दक्षिण पूर्वी दिल्ली जिला के एक आला पुलिस अफसर ने आईएएनएस को बताया कि कोरोना पॉजिटिव एसएसआई की उम्र 49-50 साल के आसपास है.
- पीड़ित को फिलहाल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कोरोंटाइन किया गया है. जबकि पत्नी और बच्चों को घर में ही एहतियातन क्वारेंटीन कर दिया गया है.
- भारत में कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़कर 5194 हो गई है. इनमें से 401 लोग ठीक हो चुके हैं और 4643 लोग अभी भी पीड़ित हैं. वहीं मरने वालों की संख्या 149 हो गई है.
- राजस्थान में कोरोना वायरस के 5 नए केस सामने आए हैं. इनमें से तीन केस जयपुर, और एक-एक केस बीकानेर व बांसवाड़ा से हैं.
- केजीएमयू में मंगलवार को 296 सैंपल जांच के लिए लाए गए. इनमें से 2 पॉजिटिव पाए गए. इनमें से एक 32 वर्षीय महिला और दूसरी 12 वर्षीय लड़की है.
- महाराष्ट्र में कोरोना पीड़ित एक 44 साल के शख्स की मौत हो गई है. इस तरह से राज्य में मरने वालों की कुल संख्या 9 हो गई है.
- नोएडा में स्वास्थ विभाग की टीम की बड़ी लापरवाही सामने आई है. सेक्टर 8 में संदिग्धों की जांच के लिए आई टीम ने जांच के बाद ग्लब्स, मास्क और अन्य मेडिकल उपकरण खुले में फेंक दिए. इससे इलाके के लोग दहशत में हैं. इसी जगह से कल रात प्रशासन ने तकरीबन 200 लोगों को क्वारंटीन सेंटर भेजा था.
- सेंसेक्स बुधवार सुबह को 464.27 प्वाइंट्स की गिरावट के साथ 29,602.94 पर खुला है. निफ्टी भी 78.30 प्वाइंट्स की गिरावट के साथ 8,713.90 पर रहा.
- बिहार में मंगलवार को 4 नए कोरोना पॉजिटिव केस सामने आए. इस तरह से राज्य में कोरोना पीड़ितों की कुल संख्या 38 हो गई है. सिवान और बेगूसराय जिले से दो-दो केस सामने आए हैं. फिलहाल इनकी यात्रा के बारे में छानबीन की जा रही है.
- लॉकडाउन के चलते इंडस्ट्रियल यूनिट्स बंद होने से मथुरा में यमुना नदी का पानी काफी साफ हो गया है.
- गुजरात पुलिस सूरत में पोस्टर्स दिखाकर कोरोना वायरस को लेकर लोगों में जागरूकता फैला रही है.
- मध्य प्रदेश के इंदौर में 22 नए कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. इस तरह से जिले में अबतक कोरोना पीड़ितों की संख्या 173 हो चुकी है. इंदौर में अबतक 15 लोगों की इस महामारी से मौत हो चुकी है.
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश के सभी 75 जिलों में कोविड-19 की जांच के लिए कलेक्शन सेंटर स्थापित किए जाएंगे.
- मुख्यमंत्री ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा कि उत्तर प्रदेश के जिन 6 मंडलों में सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं है, उन सभी के मुख्यालयों पर टेस्टिंग लैब स्थापित किए जाएंगे. साथ ही प्रदेश के सभी 75 जिलों में कोविड-19 की जांच के लिए कलेक्शन सेंटर स्थापित किए जाएंगे.
- इसके अलावा देवीपाटन (गोंडा), मिर्जापुर, बरेली, मुरादाबाद, अलीगढ़ और वाराणसी के बीएचयू हॉस्पिटल में एक लैब बनाने की प्रक्रिया चल रही है.
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इवेंट प्लानिंग व्यवसाय शुरू करने की धारणा के बारे में अभी अपने घन या घर कार्यालय से डेड्रीमिंग? शायद आप कई सालों से घटनाओं और बैठकों के उद्योग में काम कर रहे हैं और सोचते हैं कि अब अपने लिए काम करने का तरीका जानने का एक अच्छा समय है। या शायद आपने अतीत में कुछ घटनाओं को व्यवस्थित करने में मदद की है और महसूस करते हैं कि यह आपके जीवन का जुनून हो सकता है। इस पेशे को आगे बढ़ाने के सभी अच्छे कारण। लेकिन कोई भी जो अपने स्वयं के कार्यक्रम नियोजन व्यवसाय को शुरू करने की कल्पना पर विचार करता है, इससे पहले कि आप ग्राहकों से बात करना शुरू करें, कुछ महत्वपूर्ण कदमों का पालन करना चाहिए।
01 - लाभ कार्यक्रम योजना कौशल और अनुभव हासिल करेंएक कार्यक्रम नियोजन व्यवसाय की दीर्घकालिक सफलता उस अनुभव पर आधारित होगी जो योजनाकार अपने ग्राहकों को लाता है। इसका मतलब है, यदि आप एक ईवेंट प्लानिंग व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको एक ठोस योजना होनी चाहिए कि एक ईवेंट प्लानर क्या है, और सुनिश्चित करें कि आपके पास कुछ ठोस कौशल हैंः
सीएमपी पदनाम या एमपीआई में भागीदारी सहित उद्योग में पेशेवर प्रमाणन प्राप्त करना भी सहायक होगा।
ठीक है, मान लीजिए कि आप पांच साल तक कॉर्पोरेट मीटिंग में काम कर रहे हैं और व्यवसाय बनाने के लिए तैयार हैं। एहसास करने वाली पहली बात यह है कि आपकी ताकत कॉर्पोरेट क्षेत्र में हैं। कई योजनाकारों ने एक आम त्रुटि यह कहने के लिए कहा है कि वे कॉरपोरेट मीटिंग्स, विवाह, धन उगाहने वाली गैला आदि सहित सभी प्रकार की घटनाओं को समन्वयित करने के इच्छुक हैं।
रूक जा। जबकि विभिन्न प्रकार की सेवाओं की पेशकश करने के लिए आग्रह हो सकता है, आप जिस कारण से तैयार हैं, वह आपके सामूहिक पिछले अनुभवों पर आधारित है। समय में आप घटनाओं की पूरी श्रृंखला को संभाल सकते हैं, लेकिन शुरुआत में यह मानते हैं कि कॉर्पोरेट, एसोसिएशन, गैर-लाभकारी और सामाजिक घटनाओं के बीच विशिष्ट अंतर हैं। तदनुसार अपने बाजार का निर्धारण करें।
चूंकि आपने अपने बाजार पर फैसला किया है, तो आप सोच सकते हैं कि यह दुनिया के लिए जो पेशकश कर सकता है उसके बारे में खबर साझा करने का एक अच्छा समय है। इतना शीघ्र नही। अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना ऐसी कल्पनाओं के रूप में ग्लैमरस नहीं है। बाकी सब कुछ की तरह, एक कार्यक्रम नियोजन व्यवसाय शुरू करने के लिए एक व्यापार योजना की आवश्यकता होती है।
अच्छी खबर यह है कि सहायता के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं। विशेषज्ञों के लिए होम बिजनेस रैंडी डुर्मियर व्यवसाय योजना मूल बातें के बारे में कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और प्रक्रिया के माध्यम से आपको चलता है। यूएस लघु व्यवसाय प्रशासन एक अच्छा संसाधन है जो व्यापार योजनाओं को लिखने के बारे में भी सामग्री प्रकाशित करता है।
अब जब आप महसूस करते हैं कि एक कार्यक्रम नियोजन व्यवसाय बनाना "प्रगति पर काम" के रूप में देखा जाना चाहिए, शुरुआत में अपनी व्यावसायिक संरचना निर्धारित करना बहुत महत्वपूर्ण है। सबसे मौलिक कदम यह सुनिश्चित करना है कि आप तय करें कि किस प्रकार की व्यावसायिक इकाई आपकी योजना के लिए सबसे अच्छी तरह काम करती है। इसके लिए, पेशेवर सलाह सुरक्षित करना महत्वपूर्ण है।
आपके लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं, और व्यवसाय संगठन के प्रकार का चयन करना महत्वपूर्ण है जो आपकी रुचियों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करता है। टैक्स प्लानिंग के विशेषज्ञ विलियम पेरेज़ ने आईआरएस द्वारा अमेरिका के भीतर मान्यता प्राप्त व्यावसायिक संगठनों के छह रूपों की रूपरेखा दीः एकल मालिक, सी-निगम, एस-निगम, साझेदारी, ट्रस्ट और गैर-लाभकारी संगठन।
व्यापार बीमा अनिवार्य है। कार्यक्रम नियोजन व्यवसायों को व्यापार के मालिक के हितों की रक्षा के लिए सामान्य देयता और बीमा के अन्य रूपों को सुरक्षित रखना चाहिए। बीमा के कई रूप मौजूद हैं, इसलिए सभी आवश्यकताओं को जानने के लिए बीमा सलाहकार से बात करना सबसे अच्छा है।
चाहे आप घर-आधारित व्यवसाय शुरू करने की योजना बना रहे हों या यदि आपके पास कहीं और एक छोटा कार्यालय होगा, तो बीमा के इन रूपों (लेकिन इस तक सीमित नहीं) के बारे में प्रश्न पूछेंः
यह एक पल के लिए व्यापार संरचना के बोझ को हल्का करने का प्रयास करने का समय है। अब यह विचार करने का समय है कि आप अपने आपूर्तिकर्ताओं के नेटवर्क में कौन शामिल करना चाहते हैं। कार्यक्रम योजनाकार विभिन्न प्रकार के आपूर्तिकर्ताओं के साथ काम करते हैं, जिनमें कैटरर्स , फूलवाला, फोटोग्राफर और बहुत कुछ शामिल है।
और यद्यपि आप सोच सकते हैं कि आप सभी कार्यों को संभाल सकते हैं, अंततः आपको अपने कार्यक्रमों और समग्र संचालनों का समर्थन करने के लिए संसाधनों का बुनियादी ढांचा स्थापित करने की आवश्यकता होगी। इसमें प्रशासनिक, बिक्री, विपणन, संचार, कानूनी, लेखांकन और अन्य कार्यों के लिए स्टाफिंग संसाधन शामिल हैं।
आप में से कुछ "कानूनी" और "लेखांकन" के संदर्भ से निराश हो सकते हैं। मत बनो वे बहुत महत्वपूर्ण दोस्त और संसाधन हैं। लेकिन अब यह थोड़ा गहराई से सोचने का समय भी है और इस बात पर विचार करना जारी रखें कि आप किस तरह की घटना नियोजन सेवाओं की पेशकश करेंगे।
हम मानते हैं कि आप में से कई ने शायद इस बारे में पहले ही सोचा है, लेकिन आपकी मूल सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। आपका उत्पाद क्या है? आपका लक्षित बाजार कौन है?
क्या आप अपने ग्राहक की ओर से स्थानों, खानपान, उत्पादन, वक्ताओं, उपहार, परिवहन, आवास और अधिक के लिए पूर्ण सेवा योजना और निष्पादन की पेशकश करेंगे? क्या आप योजना के एक विशेष पहलू में विशेषज्ञ होंगे? घटना संचार और अधिक के लिए संचार सेवाओं के बारे में क्या?
सेवाओं को ध्यान में रखते हुए, अपनी फीस संरचना निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। कई स्वतंत्र और छोटी घटना नियोजन फर्मों को अपने खर्चों को कवर करने और उचित लाभ बनाने के विभिन्न तरीकों से अवगत होना चाहिए। आखिरकार, यह आपको पांच साल से व्यवसाय में रखने में मदद करेगा। अधिकांश कार्यक्रम योजनाकार निम्नलिखित के आधार पर चार्ज करते हैंः
ज्यादातर मामलों में, यह चरण 9 नहीं होना चाहिए, लेकिन यह आवश्यक है कि आप अपनी नई फर्म लाएंगे ताकि आवश्यक वास्तविकताओं पर विचार करते समय आप निराश न हों। और प्रत्येक व्यवसाय स्वामी अलग-अलग होगा कि वह ऐसे फंडों को सुरक्षित और स्रोत कैसे चुनता है।
अधिकांश व्यवसायों को एक ऑपरेटिंग बजट की आवश्यकता होती है, और फर्म स्थापित करते समय नकदी के आरामदायक आधार तक पहुंचना महत्वपूर्ण होगा। हालांकि सीमित धनराशि वाले व्यवसाय को स्थापित करना संभव है, फिर भी लाभदायक बनने के इंतजार के दौरान अपने व्यवसाय को शुरू करने और किसी भी जीवित व्यय को कवर करने के लिए पर्याप्त धनराशि रखना महत्वपूर्ण है।
आपके व्यापार मॉडल के स्थान पर, आपकी सेवाओं की समझ, यह समझने के लिए कि आप अपनी सेवाओं के लिए कैसे शुल्क लेंगे, अब समय महत्वपूर्ण व्यवसाय और विपणन सामग्री विकसित करना शुरू करने का समय है।
खैर, अब आप अपने व्यवसाय के लिए सही नाम चुनने के लिए तैयार हैं और अपनी व्यावसायिक विकास योजना का काम करते हैं। आपको व्यापार कार्ड, स्टेशनरी, एक वेबसाइट, बिक्री संपार्श्विक, प्रस्ताव, ग्राहक समझौते और भी बहुत कुछ बनाने की आवश्यकता होगी।
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रूस में कई बड़े ऑपरेटर हैंमोबाइल संचार। वे बाजार के एकाधिकारवादी हैं, लेकिन यह सामान्य है। अंत में, एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए, ये कंपनियां अपने ग्राहकों को एक विकल्प प्रदान करती हैं।
प्रसिद्ध "Beeline", "MegaFon" और के अलावाएमटीएस, हमारे पास Tele2 भी है। ग्राहक प्रतिक्रिया इंगित करती है कि यह सेवा प्रदाता भी विशेष ध्यान देने योग्य है। अपने दिलचस्प टैरिफ योजनाओं, एक विस्तृत कवरेज क्षेत्र और विभिन्न प्रचारों के कारण, कंपनी अपने ग्राहकों के लिए बहुत वफादार है। इसलिए, यह आश्चर्यजनक नहीं है कि अब यह पूरे रूस में 35 मिलियन से अधिक ग्राहकों की सेवा करता है।
Tele2 की गतिविधियां शुरू हुईं (ग्राहकों की समीक्षा)2003 में वह समय इसकी पुष्टि कर सकता है)। शुरुआत स्वीडिश वाणिज्यिक समूह द्वारा दी गई थी, जिसने रूस में एक नए सेलुलर प्रदाता के निर्माण में धन डाला था। पहला क्षेत्र मॉस्को टेली 2 के लिए था, एक सफल व्यवसाय चलाने के दृष्टिकोण से सबसे अधिक आशाजनक है। बाद में, निश्चित रूप से, अन्य क्षेत्र जुड़े थे। 2 साल बाद, कंपनी के ग्राहक आधार में 3 मिलियन लोग शामिल थे।
कंपनी ने सही मायने में इसका प्रदर्शन किया है3 जी / एलटीई उच्च गति इंटरनेट कनेक्शन प्रौद्योगिकी की शुरुआत के कारण पहल और अभिनव बन गई। यह हाल ही में हुआ, शाब्दिक रूप से 2013/2014 में। इन सेवाओं की पेशकश के कारण, ऑपरेटर अपने उपयोगकर्ताओं के आधार को कई मिलियन ग्राहकों द्वारा बढ़ाने में सक्षम था।
जैसा कि Tele2 की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है,कंपनी का कवरेज अब रूसी संघ के 64 क्षेत्रों में काम करता है (जिनमें 59 का इंटरनेट कनेक्शन है)। इसके अलावा, ऑपरेटर मास्को मेट्रो में देश के पहले 4 जी नेटवर्क के लॉन्च का दावा कर सकता है।
दिलचस्प है, सभी कंपनी सेवाएं विभाजित हैं।उन्हें कैसे पेश किया जाता है, इस बारे में अधिक स्पष्टता के लिए कई श्रेणियों में। तो, एक खंड "शुल्क" है, जहां एक व्यक्ति अपने मोबाइल पर कॉल, संदेश, इंटरनेट डेटा से एक पैकेज कनेक्ट कर सकता है; और "सेवा" भी, जहाँ आप कुछ एक बार का विकल्प चुन सकते हैं। बदले में, इन वर्गों को संचार, मनोरंजन, संदेश और अन्य कार्यों के लिए विकल्पों में विभाजित किया जा सकता है।
कुछ समय के लिए, हम नोट करेंगे कि कौन-से ग्राहक एक समय पर विकल्प चुन सकते हैं जो टेली 2 (मॉस्को) की सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। टैरिफ हम और अधिक विस्तार से थोड़ा आगे का वर्णन करते हैं।
तो संचार के लिए विकल्प शायद हैंसबसे लोकप्रिय इस ऑपरेटर के साथ। इसमें एक स्पैम फ़िल्टर, कॉलर आईडी (और आपके नंबर को छिपाने का एक विकल्प), सभी खर्चों पर नियंत्रण, आपको जानने की क्षमता है और आपने कब कॉल किया, होल्ड करें, कॉल फ़ॉरवर्डिंग, सब्सक्राइबर ब्लॉकिंग, सामूहिक मोड में कॉन्फ़्रेंस कॉल, Tele2 "-कॉल्स और बहुत कुछ। कंपनी की वेबसाइट पर उनमें से प्रत्येक का अधिक विस्तृत वर्णन है, इसलिए यहां हम उस पर समय बर्बाद नहीं करेंगे। सामान्य तौर पर, सेवा के नाम से, आप अनुमान लगा सकते हैं कि क्या मतलब है। उनमें से कुछ डिफ़ॉल्ट रूप से उपलब्ध हैं, जबकि अन्य को अलग से जोड़ा जाना चाहिए।
"मनोरंजन" की श्रेणी में डेटिंग, न्यूज़ सब्सक्रिप्शन के साथ पोर्टल, मानचित्र पर दोस्तों की खोज, बीप्स के बजाय संगीत फ़ाइलों की स्थापना और बहुत कुछ शामिल है।
उन लोगों के लिए जो संपर्क में रहना चाहते हैं, अभिनय करते हैंविकल्प "सक्रिय शून्य", "बीकन", "भुगतान का वादा" और अन्य। संदेश भेजने से संबंधित सेवाओं की श्रेणी में, विकल्प हैंः "डे एसएमएस" और "ऑपरेटर 2" की साइट से एक संदेश भेजना। सब्सक्राइबर समीक्षाओं से पता चलता है कि यह सब एक संबंधित आवेदन जमा करके ऑनलाइन ऑर्डर किया जा सकता है।
अन्य सभी मोबाइल ऑपरेटरों की तरह, Tele2 के पास टैरिफ का अपना नेटवर्क है, जो अपने ग्राहकों को सेवाओं के प्रावधान का अर्थ देता है। यह ग्राहक की आवश्यकताओं, उसकी प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए बनाया गया है।
कुल मिलाकर, ऑपरेटर की 6 योजनाएँ हैं, जिन्हें कहा जाता हैः "ब्लैक", "वेरी ब्लैक", "ब्लैकेस्ट", "सुपरब्लैक", "ऑरेंज", "डिवाइसेज के लिए इंटरनेट"। जाहिर है, काले रंग की पृष्ठभूमि पर बनाई गई कॉर्पोरेट शैली और कंपनी के लोगो को वापस लाने के लिए इस रंग के साथ विकल्पों का जुड़ाव बनाया गया है।
तो, वे टेली 2 में ग्राहकों को क्या पेशकश कर रहे हैं, निर्दिष्ट टैरिफ से कनेक्ट कर रहे हैं?
आधार रेखा "ब्लैक" है। यह तर्कसंगत है कि "Tele2" का वर्णन करने वाले ग्राहकों की समीक्षा इसे सबसे सरल कहती हैः यह उन ग्राहकों को सूट करेगा जो न्यूनतम के साथ संतुष्ट हैं। विकल्प आपको नेटवर्क के भीतर मुफ्त कॉल करने की अनुमति देता है, साथ ही साथ 2 गीगाबाइट मोबाइल ट्रैफ़िक भी देता है। पैकेज में एक बोनस के रूप में, 150 एसएमएस संदेश प्रदान किए जाते हैं। टैरिफ योजना की लागत 99 रूबल है।
"बहुत काला" टैरिफ उपलब्ध सेवाओं की राशि परकहीं अधिक। यहां इंटरनेट ट्रैफ़िक दोगुना हो गया था, और रूस में सभी नंबरों पर मुफ्त कॉल के लिए 400 मिनट का पैकेज जुड़ा था किराया मूल्य 299 रूबल है, संदेशों की संख्या 400 हो गई है।
अगला "ब्लैकएस्ट" पैकेज 10 जीबी हैकॉल और संदेशों के लिए ट्रैफ़िक और 1000 मिनट। यह विकल्प Tele2 ग्राहकों के लिए उपलब्ध है, मास्को क्षेत्र जिसके लिए उनके गृह क्षेत्र के रूप में सेट किया गया है। अन्य क्षेत्रों के कुछ ग्राहक समीक्षाओं से संकेत मिलता है कि उनके पास थोड़ी अलग टैरिफ संरचना है, इसलिए यह हमारे मामले में भिन्न हो सकती है। पैकेज की कीमत 599 रूबल है।
"सुपरब्लाक" दो बार उतना ही प्रदान करता हैअवसर - 2000 मिनट की कॉल; साथ ही 15 जीबी इंटरनेट। इसकी कीमत प्रति माह 1199 रूबल है। यह एकीकृत टैरिफ योजनाओं का पूरा सेट है जो कंपनी के ग्राहक को आवंटित किया जाता है।
"ऑरेंज" और "इंटरनेट" - विशेष दरें। पहले क्षेत्र के भीतर सभी संख्याओं को प्रति मिनट 1 रूबल की कीमत पर कॉल करना संभव बनाता है; दूसरा 7 जीबी इंटरनेट ट्रैफिक प्रदान करता है और 1.8 रूबल के सभी नंबरों पर कॉल करता है। 299 रूबल के लिए (मतलब मासिक भुगतान)। टेली 2 राउटर और मोडेम के साथ काम करने के उद्देश्य से अंतिम पैकेट रखता है।
सबसे पहले, उनके लेखक मूल्यांकन करते हैंTele2 सर्विस्ड कवरेज। यह इस कारण से महत्वपूर्ण है कि यह उपभोक्ता के लिए संचार की गुणवत्ता और उपलब्धता को सीधे प्रभावित करता है। ऑपरेटर के बुनियादी ढांचे को जितना अधिक उन्नत किया जाएगा, सेवाओं की गुणवत्ता उतनी ही अधिक होगी। यह मोबाइल टावरों और उन क्षेत्रों को संदर्भित करता है जिसमें उनका संकेत उपलब्ध है। इस मुद्दे पर ऑपरेटर के बारे में कोई शिकायत नहीं है - वास्तव में, शहरों और कस्बों में, जहां प्रदाता के कवरेज क्षेत्र को मानचित्र पर चिह्नित किया गया है, संकेत काफी मजबूत है।
एक अन्य प्रश्न सेवा प्रदान करना हैसंचालक द्वारा। इस संबंध में, निश्चित रूप से, नकारात्मक समीक्षाएं भी हैं। कुछ ग्राहकों की शिकायत है कि वे लंबे समय तक अपनी सेटिंग्स प्राप्त नहीं करते हैं ("टेली 2" एक मिनट के भीतर स्वचालित सेटिंग्स भेजने का वादा करता है, जबकि वास्तव में इसमें कई घंटे लगते हैं) इस तथ्य के बारे में शिकायतें हैं कि ग्राहक को उसके नए नंबर के लिए सक्रियण कोड नहीं भेजा जाता है। बहुत सी समान कहानियां हैं - जाहिर है, समस्याएं ऑपरेटर के सक्रिय विकास, इसके आधार के विस्तार के साथ जुड़ी हुई हैं। ऐसे सभी मामलों में, कंपनी का सलाहकार वापस फोन करता है और यह स्पष्ट करने के लिए कहता है कि क्या समस्या हल हो गई है।
किसी भी प्रदाता के काम में तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु -ये कीमतें हैं। शिक्षा टैरिफ की नीति में, साथ ही भुगतान कैसे आयोजित किया जाता है, में टेली 2 वास्तव में सफल रहा। इसका जिक्र कम से कम उन लाभप्रद विकल्पों द्वारा किया जा सकता है, जो हमने ऊपर वर्णित किए हैं।
वास्तव में, संचार सेवाओं के रूसी बाजार में अधिक किफायती टैरिफ मिलना मुश्किल है। और भी कठिन - उच्च स्तर की सेवा के साथ उनके संयोजन को देखने के लिए।
आज यह माना जाता है कि Tele2 सकते हैंघरेलू बाजार में सामान्य तीन शीर्ष ब्रांडों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बनें। यह कुछ नया और दिलचस्प है, कुछ ऐसा है जो आपको मोबाइल संचार को अधिक सुलभ बनाने की अनुमति देता है। दूरसंचार व्यवसाय में ऐसे खिलाड़ी अधिक दिखाई देते हैं, संचार की गुणवत्ता बढ़ जाती है और संचार की कीमत गिर जाती है।
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नमस्कार, आप सुन रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज की समाचार श्रृंखला में सोमवार 07 दिसंबर 2020 का प्रादेशिक आडियो बुलेटिन, अब आप रीना सिंह से समाचार सुनिए.
बसों के संचालन में कोरोना संक्रमण के प्रकोप का असर अब तक दिख रहा है। शादियों के सीजन पर भी बसों में लोग उम्मीद से कम ही सफर कर रहे हैं। इंदौर मार्ग पर भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड (बीसीएलएल) की चार्टेड व बाकी साधारण बसों में 20 फीसद से अधिक यात्रियों की संख्या नहीं बढ़ी रही है। चार्टेड बसों में इंदौर, उज्जैन, नीमच, छिंदवाड़ा, रीवा, नसरुल्लागंज, सागर समेत अन्य मार्गों पर चलने वाली बसों में सफर करने वाले लोग शादियों के सीजन में भी कम हैं। लगातार घाटे से जूझ रहे अब बस संचालक जल्द ही प्रदेश भर में बसों का संचालन बंद करने का मन बना चुके हैं। मप्र प्राइम रूट बस एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर जल्द ही बैठक कर हड़ताल का निर्णय लिया जाएगा।
राजधानी भोपाल में स्थित आइएसबीटी, नादरा, लालपुर और पुतली घर बस स्टैंडों पर रौनक नहीं लौट रही है। कम यात्रियों के बसों में सफर करने से चारों बस स्टैंडों पर कोरोना से पहले की तरह चहल-पहल नहीं दिख रही है। बस संचालकों का कहना है कि उम्मीद थी कि शादियों के मुहूर्त शुरू होने पर यात्रियों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन ज्यादा यात्री नहीं बढ़ पा रहे। कुल 733 में से 195 बसों का ही संचालन हो रहा है।
बस संचालक सुरेन्द्र तनवानी ने बताया कि मप्र शासन ने अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर माह का 15 दिन साढ़े पांच महीने) का टैक्स माफ किया था। इसके बाद पांच सितंबर से राजधानी सहित प्रदेश भर में पांच सितंबर से बसों का संचालन शुरू हुआ था, लेकिन कोरोना के कारण यात्रियों की संख्या नहीं बढ़ने से घाटा उठाना पड़ रहा है। घाटे की पूर्ति 50 फीसद यात्री किराया बढ़ने के बाद ही हो सकती है।
जबलपुर रेलवे स्टेशन में युवती के पास मिले 50 लाख र्स्पये नकद की जांच आरपीएफ ने आयकर विभाग को सौंप दी है। इधर मुंबई के एक व्यापारी ने स्टेशन पर मिले हवाला के रूपये पर अपना दावा किया है। इसके लिए उसने आरपीएफ और आयकर विभाग को आवेदन भेजा है। मुंबई के कांदीवली के व्यापारी कमलेश शाह ने आवेदन में कहा है कि महानगरी एक्सप्रेस से जो रूपये मुंबई भेजे जा रहे थे,वह उसके हैं। व्यापारी के दावे के बाद आरपीएफ ने अपनी जांच और इससे जुड़े सभी दस्तावेज आयकर विभाग की इंवेस्टिगेशन विंग को सौंप दिए हैं, ताकि वे मामले की तहत तक जा सके।
स्टेशन से बरामद किए गए 50 लाख र्स्पये नकद अभी भी आरपीएफ के पास हैं। इसे लेने के लिए आयकर विभाग की इंवेस्टिगेशन विंग ने भोपाल स्थित अपने मुख्यालय से स्वीकृति मांगी थी, जो अब तक नहीं मिली है। इसमें आ रही अड़चनों को अब दूर किया जा रहा है। संभावना है कि दो दिन के भीतर स्वीकृति मिल जाएगी। सूत्र बताते हैं कि इंवेस्टिगेशन विंग ने जबलपुर के हवाला कारोबारी पंजू के यहां छापामारी की तैयारी कर ली है। वहीं मुंबई के व्यापारी कमलेश शाह को भी पूछताछ के लिए जबलपुर बुलाया जा सकता है।
मझगवां में बरगमा गांव निवासी संदीप काछी की असमय मौत के प्रकरण में मदनमहल पुलिस ने वासु होटल व बिंदू इलेक्ट्रिकल के संचालक के विरुद्ध धारा 304 ए के तहत एफआइआर दर्ज कर ली है। बिजली का करंट लगने के बाद बिल्डिंग से गिरकर हुई युवक की मौत के लिए पुलिस ने इन दोनों को जिम्मेदार ठहराया है। सुरक्षा इंतजाम किए बगैर युवक को बिजली का झालर लगाने की जिम्मेदारी दी गई थी। झालर लगाते समय हादसे की चपेट में आ जाने से उसकी मौत हो गई थी।
मदनमहल थाना प्रभारी नीरज वर्मा ने बताया कि मझगवां निवासी संदीप काछी बिंदू इलेक्ट्रिकल नाम से संचालित दुकान में काम करता था। उसके पास इलेक्ट्रिीशियन की डिग्री या डिप्लोमा नहीं था। 13 नवंबर को सुबह करीब 11 बजे बिंदू इलेक्ट्रिकल के संचालक दरविंदर सिंह ग्रोवर ने संदीप को बिजली का झालर लगाने के लिए वासु भोजनालय गया था। जहां झालर लगाते समय बिजली का करंट लगने से संदीप काछी (26) भवन से नीचे गिर पड़ा था। बिजली का करंट लगने व भवन से गिरने के कारण चोट लगने से संदीप की मौत हो गई थी।
थाना प्रभारी वर्मा ने बताया कि संदीप की असमय मौत पर मर्ग कायम कर विवेचना प्रारंभ की गई। घटनास्थल की जांच व स्वजन के बयान लिए गए। जिसमें यह तथ्य सामने आया कि संदीप के पास इलेक्ट्रिकल की डिग्री या डिप्लोमा नहीं था। बावजूद इसके बिंदू इलेक्ट्रिकल के संचालक दरविंदर सिंह ग्रोवर ने विजय मोटवानी की वासू होटल में बिजली का झालर लगाने उसे भेज दिया था। संदीप को कोई भी सुरक्षा सामग्री नहीं दी गई थी। झालर लगाते समय छत से महज दो फीट दूर बिजली की हाइटेंशन लाइन की चपेट में आने से संदीप बिल्डिंग से गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट व मिले साक्ष्यों के आधार पर दरविंदर व विजय मोटवानी के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कर दोनों की तलाश की जा रही है।
प्रदेश के सचिवालय सेवा में प्रथम से लेकर तृतीय श्रेणी के पद हैं। इनमें अतिरिक्त सचिव, उपसचिव, अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी, सहायक से लेकर ड्राइवर तक शामिल हैं। सभी को मिलाकर करीब 1800 पद हैं। जानकारी के लिए बता दें कि सचिवालय सेवा में कर्मचारियों की सीधी भर्ती में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इसके लिए सचिवालय (मंत्रालय) सेवा भर्ती नियम में संशोधन कर दिया गया है।
साथ ही साथ सूचना दे दी गई है कि सीधी भर्ती के 33 प्रतिशत पद महिलाओं से भरे जाएंगे, ये आरक्षण हर वर्ग के पदों के अनुसार होगा। इसी तरह हर श्रेणी में छह प्रतिशत पद दिव्यांगों के लिए आरक्षित रहेंगे। इस बारे में प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है।
वहीं सीधी भर्ती के पदों में अनुसूचित जाति के लिए 16, अनुसूचित जनजाति के लिए 20 और ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण होगा। इनके लिए आरक्षित रिक्त स्थानों को भरने के लिए पूरी संख्या में उम्मीदवार नहीं मिलते है तो उनका फिर से विज्ञापन निकाला जाएगा।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि एलोपैथी से इलाज कर रहे अन्य पद्धति से प्रशिक्षित डॉक्टर्स (झोलाछाप) के क्या कार्रवाई की जा रही है? एक्टिंग चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने यह भी पूछा कि इन नीम हकीमों के इलाज पर लगाम लगाने के लिए सरकार के प्रस्तावित कदम क्या हैं? कोर्ट ने 4 जनवरी तक इस संबंध में स्टेटस रिपोर्ट मांगी। कोरोना के संकटकाल में ऐसे डॉक्टरों का जाल और तेजी से फैला है।
पूर्व में स्वास्थ्य विभाग ने जबलपुर पुलिस महानिरीक्षक को रिपोर्ट दी थी। इस पर महानिरीक्षक ने जबलपुर एसपी को निर्देश दिया था कि वे संबंधित झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कमिश्नर और कलेक्टर ने भी झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। लेकिन कुछ के खिलाफ ही एफ आई आर दर्ज की गई। आग्रह किया गया कि झोलाछाप डॉक्टरों की क्लीनिक बंद कराई जाए। उनके प्रैक्टिस करने पर रोक लगाई जाए।
प्रदेश की पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी को सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस देना पीडब्ल्यूडी के अधिकारी के लिए महंगा पड़ गया। शासन ने नोटिस भेजने वाले पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री ओम हरि शर्मा को उनके पद से हटा दिया है। शर्मा को ग्वालियर से हटाकर भोपाल अटैच कर दिया गया है।
शर्मा ने इमरती देवी को ग्वालियर में मिला सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस भेजा था। नोटिस में कहा गया था कि इमरती देवी को शासकीय बंगला मंत्री पद पर कार्यकाल की अवधि के लिए आवंटित किया गया था, लेकिन अब वे किसी पद पर नहीं हैं। इसलिए उन्हें यह बंगला तत्काल खाली कर विभाग को सौंप देना चाहिए।
जानकारी के मुताबिक नोटिस मिलने के बाद से इमरती देवी बेहद गुस्से में थीं। उन्होंने सरकार और पार्टी संगठन में यह मामला उठाने की धमकी दी थी। अब उनकी धमकी का असर है या कुछ और, लेकिन रविवार शाम होने से पहले ही संबंधित अधिकारी को भोपाल अटैच करने का आदेश जारी हो गया।
इमरती देवी को कमलनाथ सरकार में मंत्री बनने के बाद झांसी रोड का बंगला क्रं. 44 ए आवंटित किया गया था। यह बंगला पहले शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जयभान सिंह पवैया को मिला था। उनके चुनाव हारने के बाद इमरती देवी को ग्वालियर में यह बंगला पसंद आ गया था। बता दें कि शिवराज सिंह कैबिनेट में मंत्री रहीं इमरती देवी उपचुनाव में डबरा से हार गई थीं। इसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तमिलनाडु दौरे पर हैं। तमिलनाडु के तिरूचेंदुर में सीएम शिवराज सिंह चौहान का बीजेपी कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। वह वेल यात्रा में शामिल होने के लिए तमिलनाडु पहुंचे हैं। इस दौरान हिंदू संस्कृति पर टिप्पणी करने वालों पर उन्होंने वार किया है। सीएम शिवराज ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मैं वेल यात्रा में शामिल हो रहा है। यहां की संस्कृति हमारी परंपरा है।
वहां पर लोगों को संबोधित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हिंदू अस्मिता और हमारे आराध्य देव कोई मजाक का या अपमान का विषय नहीं हैं कि कोई भी उनके विषय में सहूलियत के हिसाब से कुछ भी कह दे। मैं ऐसे लोगों को फिर से चेतावनी देता हूं कि हमारे भगवान और संस्कृति का मजाक न उड़ाएं, यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सीएम ने कहा कि मैं अपने सभी तमिल मित्रों से आग्रह करता हूं कि वे हमारी संस्कृति और परंपरा को नष्ट करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ हाथ मिलाएं।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री जी का अपना क्या है। उनके लिए पूरा भारत ही उनका परिवार है। वे दिन-रात देश की प्रगति, उन्नति और जनता के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। मैं तमिलनाडु की जनता से आह्वान करता हूं कि भगवान मुरुगन पर ओछी टिप्पणी करने वाले नास्तिकों और धर्म विरोधी तत्वों को उखाड़ कर फेंक दें और हमारे पीएम, जिन्होंने कहा है कि सबका साथ, सबका विकास के साथ आगे बढ़ें।
भोपाल समेत प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए उपयोग में आने वाली वन भूमि अथवा गैर वन भूमि के परीक्षण के लिए वन विभाग द्वारा ऑनलाइन प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। इस योजना को लोक सेवा गारंटी अधिनियम के दायरे में लाया जाकर अधिकतम दो सप्ताह में प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाएगा। इससे उद्योगपतियों को काफी राहत मिलेगी। उन्हें तय समयावधि में प्रमाण पत्र मिल जाएगा।
वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने बताया कि अभी तक यह परीक्षण फाइलों पर एवं मैदानी स्तर पर मैन्युअली किया जाता था। नई व्यवस्था होने से न केवल समय और श्रम की बचत होगी, बल्कि होने वाली त्रुटियों की संभावना खत्म हो जाएगी। भूमि परीक्षण की प्रक्रियाओं में अनुकूलता लाने के लिए अब यह कार्य आईटी इनेबल्ड सर्विसेस के जरिण् हो सकेंगे। आवेदक बिना किसी कार्यालय में जाए वेबसाइट के माध्यम से आवेदन कर सकेंगे। भूमि की पड़ताल सेटेलाइट डेटा और जियो ग्राफिक इन्फार्मेशन की सहायता से स्वतः हो जाया करेगी।
आप सुन रहे थे रीना सिंह से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज में सोमवार 07 का प्रादेशिक आडियो बुलेटिन। मंगलवार 08 दिसंबर को एक बार फिर हम आडियो बुलेटिन लेकर हाजिर होंगे, अगर आपको यह आडियो बुलेटिन पसंद आ रहे हों तो आप इन्हें लाईक, शेयर और सब्सक्राईब जरूर करें, सब्सक्राईब कैसे करना है यह हर वीडियो के आखिरी में हम आपको बताते हैं। फिलहाल इजाजत लेते हैं, नमस्कार।
(साई फीचर्स)
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विश्वास की भावना से उसमे शान्ति का संचार होता है। किन्तु अभी वह विश्वास का प्रयोग परीक्षा तथा अनुभव के लिए ही करता है। उसके इस परीक्षरण-काल मे यदि उसे अपने इस विश्वास के कारण धोखा खाना पडता है, तो इसका प्रभाव वड़ा प्रतिकूल पडता है । वह विश्वास से खिच जाता है और धीरे-धीरे इस प्रकार की कई घटनाओ से उसके अविश्वासी स्वभाव का सृजन होने लगता है । डेढ दो वर्ष के बच्चे के हाथ से आप खिलौना मांगें, प्रथम तो वह यदि आप से अच्छी तरह विश्वास न होगा तो खिलौना देगा ही नहीं, किन्तु वह यदि आप पर विश्वास करता है तो दे देगा । खिलौना लेकर आप भाग जाने का, उसे फेक देने का स्वाँग करे तो वह आपसे तुरन्त खिलौना ले लेगा और फिर आपको न देगा । वह आपके स्वाँग को नहीं समझ पाया था । थोड़ा-बहुत विश्वास जो उसने श्राप पर जमाया था, उसे आपने थोडे-से खेल मे ही खो दिया । यह मैंने एक साधारण-सा उदाहरण दिया। ऐसे ही अनेक वातावरण कारण बच्चा अविश्वासी हो जाता है । यह अविश्वास कभी-कभी व्यापक और कभी-कभी एकागी होता है ।
पहले यह सकेत किया जा चुका है कि किन्ही बच्चो मे विश्वास की भावना वेग से बढ़ती है और किन्ही मे धीरे-धीरे, जिस बच्चे मे विश्वास की गति मन्द होती है, उसे समझना चाहिए कि वह ज्ञानार्जन मोर अनुभव मे आगे नही बढ रहा है । बच्चे की ज्ञान वृद्धि की गति आँकने के लिए उसके विश्वास का अध्ययन वडा उपयोगी होता है। किन्तु यह तभी होता है जब बच्चे के विश्वास को उसके ज्ञान के आधार पर स्वत विकसित होने का अवसर मिले । यह उसके विश्वास का स्वाभाविक विकास है । आश्वासन द्वारा या प्रत्यक्ष विश्वास का उपदेश बच्चे के लिए न तो उपयोगी होता है और न ऐसा विश्वास स्थायी ही होता है । गतिविश्वास, अविश्वास जैसे उसके विकृति रूप विश्वास के विक विकास मे ही होते हैं । स्वत ज्ञान तथा अनुभव द्वार विश्वास दृढ तथा उपयोगी होता है और उसमे विकृति माने
सम्भावना नहीं रहती। इसलिए बच्चे मे विश्वास पैदा करने का उत्तम साधन है, उसे ज्ञान तथा अनुभव देना । ज्ञान तथा अनुभव के प्रकाश मे प्रति विश्वास कभी धोखा नही खाता और ऐसे विश्वास तथा प्रविश्वास का हृदय की अन्य भावना पर भी कोई प्रभाव नहीं पडता । अन्य प्रकार से प्रति विकृत विश्वास या प्रविश्वासी का हृदय पर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे विश्वासी व्यक्ति का हृदय कठोर होना तथा विश्वास का अत्यन्त सरल होना । औरगजेब की कठोरता सर्वविदित है । उसका अविश्वास ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर नही वढा था बल्कि विघटित घाती एव वातावरणो ने उसका सृजन किया था। शिवाजी भी
ही कहे जा सकते है यद्यपि वे औरगजेब की विकृत अवस्था की तुलना के योग्य नहीं है, पर समयोचित उत्तम अविश्वास की भावना उनमे भी थी अन्यथा वे अफजल खाँ से ठगे जाते । किन्तु इतना प्रविश्वासी होते हुए भी उनकी सरलता पूर्व थी । स्पष्ट है कि शिवाजी के विश्वास तथा प्रविश्वास का विकास ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर हुआ था, इसीलिए उसका प्रभाव हृदय पर नहीं पड़ा ।
कहने का तात्पर्य यह है कि विश्वास के स्वाभाविक विकास के लिए यह आवश्यक है कि बच्चे की ज्ञानार्जन प्रवृत्ति तथा अनुभव को विकसित किया जाए । प्रत्यक्षतः उसके विश्वास या अविश्वास को छेड़ना उचित नही होता । यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्वास की नाव - श्यकता से कम श्रावश्यकता अविश्वास की नहीं है । बल्कि समान मात्रा मे जब दोनो प्रवृत्तियाँ वर्तमान रहती हैं तभी उनकी वास्तविक उपयोगिता भी होती है । इनमे से किसी एक की वृद्धि स्वय तो भयप्रद हो ही जाती है साथ-ही-साथ वह दूसरी को बिलकुल दबा देती है । ऐसी स्थिति बडी जटिल हो जाती है । बढी हुई भावना स्वय को विकृत तो कर ही देती है उसके द्वारा दवा दी गई दूसरी भावना का भी प्रभाव बडा प्रतिकूल पड़ता है। स्वाभाविक रूप से विकसित होने के कारण ऐसी विता उत्पन्न होती है । स्वाभाविक विकास मे दोनो की मात्रा समान
रहती है । वस्तुत यही स्थिति उत्तम चरित्र के निर्माण में उपयोगी भी होती है। शिवाजी में दोनो ( अविश्वास - विश्वास ) की स्थिति समान रूप से थी । इसीलिए दोनो का यथावस्था उपयोग होता रहा । बच्चों की कल ना - शक्ति का विकास
कल्पना बडी सुखद होती है, क्योकि उसकी सीमा नही होती । हम असम्भव कल्पनाएँ भी किया करते है और उनमे हमारे मन को एक प्रकार की शान्ति, सुखद शान्ति मिलती है । मानव जीवन मे कल्पना का वडा व्यापक महत्व है। कल्पना को पहले लोग मनुष्य के मन का फितूर समझते थे । वेकार बैठे लोगो के दिन काटने का वह एक साधन मानी जाती थी । किन्तु मनोविज्ञान ने मानव जीवन मे कल्पना की उपयोगिता का अध्ययन किया है । मनोविज्ञान न यह सिद्ध कर दिया है कि व्यक्तित्वनिर्माण मे तथा मन के सतुलन को ठीक रखने मे कल्पना का प्रमुख हाथ है । जिस रूप मे वह उपस्थित होती है, भले ही उसका वह रूप वास्त विक हो, किन्तु उसका आधार वास्तविक होता है । कल्पना केवल निरी कल्पना नही, वह हमारे अनुभवो का नूतन सस्करण है। अपने अनुभवो के प्रकाश मे मनुष्य कल्पनाओ की सृष्टि करता है और उसके द्वारा अपने मन को, अपनी भावना को प्रेरित करता है । सफलता की वाढ मे मुरझाया हुआ मान-वमन, कल्पना से ही प्रेरणा तथा उत्साह प्राप्त करता है । जीवन में कभी भी सुख न प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी इसी कल्पना पर अपनी आशा लगाए जीवित रहता है । यही नही, कल्पना के ही द्वारा मनुष्य अपने भविष्य को देखता है और उसका निर्माण करता है, वस्तुत कल्पना मानव जीवन को सगिनी है । सगिनी ही नहीं, वह समस्त मानसिक ससार को आगे बढाने वाली पथ-प्रदर्शिका है। मानव को प्रगति का इतिहास कल्पना की प्रगति का इतिहास है ।
कल्पना के प्राधार, इन्द्रियो द्वारा प्राप्त प्रत्यक्ष ज्ञान के विविध विषय ही होते हैं। जिनका कभी इन्द्रियो द्वारा प्रत्यक्ष नही होता, उनकी
कल्पना नही होती । क्षीरसागर की कल्पना हम इसलिए करते हैं क्योकि क्षीर और सागर का हमने अलग-अलग प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया है । केवल दोनो के संयोजन के ढग मे ही कल्पना है । वस्तुतः कल्पना का यही रूप ही है । उसका सारा सामान वास्तविक तथा पुराना होता है. केवल उनसे निर्मित दृश्य ही नूतन तथा कभी-कभी प्रवास्तविक होते हैं । मानव-शिशु जैसे ही इन्द्रिय जन्य ज्ञान का साक्षात्कार करने लगता है, वह कल्पना के पीछे दौडने लगता है । वयस्क की अपेक्षा यद्यपि इसका ज्ञान सीमित तथा प्रधूरा रहता है, फिर भी वह वयस्क की तुलना कल्पनाएँ अधिक करता है। बात यह है कि जिन स्थितियो मे कल्पना उत्पन्न होती है, वे स्थितियाँ बाल-मन को विशेष सुलभ होती हैं । कल्पना के लिए पहली स्थिति मन का खाली रहना है । यदि मन किसी काम मे सलग्न है, तो कल्पना नहीं करता । परन्तु यदि वह यो ही अवकाश पर है, तब तो उसके लिए एकमात्र कल्पना ही सहारा होती है । कहना न होगा कि बच्चा वयस्क की तरह अन्य किन्ही कार्यों मे बहुत कम व्यस्त रहता है । दूसरी स्थिति है असन्तोष । जब व्यक्ति मे असन्तोष की अधिकता हो जाती है या उसकी कोई इच्छा पूर्ण रह जाती है तो कल्पना उसके प्रसन्तोष को दूर करने का प्रयत्न करती है तथा इच्छापूर्ति के लिए काल्पनिक सफलता उपस्थित करती है । बच्चा अविकसित के कारण बहुत ही अपूर्ण रहता है । वह अपनी इस अपूर्णता की पूर्ति के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है, किन्तु जैसा वह चाहता है, जल्दी ही पूर्ण विकास होता तो सम्भव नही होता । इसलिए वह नाना प्रकार की कल्पनाओ मे मग्न होकर अपने भावी व्यक्तित्व की रूपरेखा खीचा करता है ।
बालक और वयस्क की कल्पनाओ मे आकाश-पाताल का अन्तर होता है । सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि बच्चा जितना ही छोटा होता है, उसकी कल्पनाएं उतनी ही प्रस्थायी होती है । वह कल्पना करता जाता है और उसके स्वरूप को भूलता जाता है। किन्तु एक वात होती
है, इन भूली हुई कल्पनाओ का प्रभाव उसके भव्यक्तं मने पर पडता है और तदनुसार वह बालक की प्रगति को प्रमाणित करती है । इसलिए वयस्कों की अपेक्षा वच्चो की वना अधिक प्रभावशालिनी तथा उपयोगी कही जा सकती है। दूसरी विशेषता यह होती है कि वयस्क यथासम्भव-असम्भव कल्पनाओ की सृष्टि कम करता है। ऐसी बातो की कल्पना, जो उसके जीवन मे होनी असम्भव होती है, वयस्क बहुत कम करता है । यद्यपि इन असम्भव कल्पनाओ मे आनन्द उसे भी मिलता है, किन्तु बच्चो जैसा नही । बच्चा ग्रपनी कल्पना के सम्बन्ध मे यह नही सोचता कि क्या ये जीवन मे सम्भव भी है ? वह तो उमग मे भाकर असम्भव से भी आगे की कल्पना कर डालता है और इसीलिए उसे वयस्क की अपेक्षा कल्पना मे बडा श्रानन्द मिलता है। पक्षियो के साथ प्रकाश में उडने की वह कल्पना करता है तथा महापुरुषों की कहानी के आधार पर, अपने को जगतपूज्य तथा ससार विजेता के रूप में भी, कल्पना- ससार मे देख लेता है । चूंकि वयस्क ऐसी कल्पना को अस म्भव तथा हास्यास्पद समझता है, इसलिए यदि वह तरग मे आकर ऐसी कल्पना करता भी है तो उसके मन को न तो उतना आनन्द ही मिलता है और न इन कल्पनाओ का कोई प्रभाव ही पडता है । किन्तु वच्चा इन कल्पनाओ से पर्याप्त आनन्द भी लेता है और उसके भावी जीवन पर इनका गहरा प्रभाव भी पड़ता है । वात यह है कि बच्चा केवल करके ही नही रह जाता, बल्कि जिन कल्पनाओ मे उसे आनन्द मिलता है उन्हें जीवन में उतारने के लिए वह तुरन्त प्रयत्नशील हो जाता है । किसी को घोडे पर चढा देख वह स्वय घुडसवार होने की कल्पना तो करता हो है साथ इसके लिए समय तथा परिस्थिति की प्रतीक्षा किए विना वह लकड़ी के घोडे से ही काम चला लेता है । स्याही की मूंछो का निर्मार कार वह वयस्क होने की कल्पना को चरितार्थ कर लेता है । कहने का तात्पर्य यह है कि वच्चा कल्पनामात्र मे उपयोग नहीं करता वल्कि उस
को अपने जीवन में लाने के लिए लालायित हो उठता है ।
? कल्पना द्वारा प्राप्त उसकी यह लालसा उसे आगे सहायता करती है ।
बच्चो का सासारिक अनुभव बहुत कम होता है और बिना किसी पूर्व अनुभव के कल्पनाओ का उदय होना सम्भव होता है, इसलिए प्राय. वे सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर विशेष कल्पना किया करते हैं । इमीलिए बालको के लिए कहानी की वडी उपयोगिता है। इन कहानियों के आधार पर उत्पन्न कल्पनाएँ ही बच्चे के जीवन की दिशा निश्चित करती हैं । अनेक महापुरुषों के जीवन का अध्ययन करने पर हमे स्पष्ट ज्ञान होता है कि बचपन में कहानियों के आधार पर उन्होने जिन उच्च कल्पनाओ मे विचरण किया तदनुसार ही वे अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सके हैं। शिवाजी की माँ उन्हे गोद मे लेकर देशभक्तो, वीरो तथा अन्य महापुरुषों की कहानियाँ सुनाया करती थी । वे जिन महापुरुषो की कहानी सुनते रहे उन्ही के समान स्वय को बनाने की कल्पना करते रहे । यद्यपि वे वैसे नही बने, किन्तु जो बने वह उनसे कम नही था । यह भी निश्चित है कि महापुरुषो की कहानी से उन्होने अपने व्यक्तित्व के सम्बन्ध मे जो कल्पनाएँ की होगी, वे सभी उनके जीवन मे ही उतरी होगी, किन्तु शिवाजी जिस रूप में आज हमारे हृदय में विराजमान हैं, उनके उस रूप की निर्माता वे कल्पनाएँ ही हैं । वातावरण की विभिन्नता के कारण प्रत्येक बच्चे मे कल्पना के विविध रूप होते हैं । सभी बच्चे एक ही कल्पना नही कर सकते। कोई बच्चा सैकडो वीगे के बीच मे दहाडने वाला योद्धा होने की कल्पना करता है तो कोई प्रवल तर्क तथा प्रमारणो द्वारा सभा को स्तब्ध कर देने वाला विद्वान होने का स्वप्न देखता है। दोनो ही अपनी-अपनी कल्पना के आधार पर अपना कार्यक्रम निश्चित करते है । भले ही पहला बच्चा
• वैसा वीर तथा दूसरा बच्चा वैसा विद्वान न बन सके, जैसा उसने सोचा
था, किन्तु यह निश्चित है कि पहला व्यक्ति शारीरिक योग्यता तथा दूसरा बौद्धिक योग्यता मे दक्षता प्राप्त करेगा। कहने का तात्पर्य यह है
बढ़ाने में पर्याप्त
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Небольшой провинциальный городок в Центральном Черноземье. Районный центр, где советский застой внезапно сменился бурным капитализмом. Людям пришлось бороться за жизнь в изменившихся условиях. Одни решили бросить малую родину и перебраться в город покрупнее, другие нашли спасение в садах и огородах, а третьи постучались в дверь преступного мира. И она, конечно, же открывалась быстро. Вот такой путь и выбрал герой этой истории.
सामग्री में तस्वीरें - विषयगत। वे मेरे मित्र फोटोग्राफर अलेक्जेंडर निकोलेविच कोज़ीन के लिपसेटक में बने एक्सएनयूएमएक्स-आईज़ में हैं।
"कल मैं काम पर जाऊंगा"
कुछ साल पहले, सोवियत संघ का पतन हो गया। लोग जीवन की नई वास्तविकताओं के लिए अभ्यस्त और अनुकूल होने लगे। यह सब अलग तरह से काम करता था। दिमित्री कोनव नई रेल पर जाने के लिए प्रबंधन नहीं कर सकता है। वह खुद को एक पुराना कुत्ता समझता था कि नई चाल नहीं सिखाई जाती। और एक छोटे से प्रांतीय शहर में जीवन (भले ही यह एक क्षेत्रीय केंद्र था) किसी भी संभावना को आकर्षित नहीं करता था। जो कुछ भी नष्ट किया जा सकता था वह नई लोकतांत्रिक सरकार के पहले वर्षों में नष्ट हो गया। लोग जितने बच सकते थे, बच गए। दिमित्री ने बचने की कोशिश की। यह बुरी तरह से निकला, लेकिन floundering आवश्यक था। यह उसकी पत्नी और दो बच्चों द्वारा मांग की गई थी। बेटी का जन्म एक्सएनयूएमएक्स, बेटे में - एक्सएनयूएमएक्स में हुआ था।
कोनव परिवार जिला केंद्र के उपनगरीय इलाके में एक छोटे से घर में रहता था। उन्हें दिमित्री के माता-पिता से आवास विरासत में मिला और पिछले कम्युनिस्ट युग के भूत का प्रतिनिधित्व किया - पुराना, किसी भी समय उखड़ने के लिए तैयार। पहले, दिमित्री के पास मरम्मत करने का समय नहीं था - युवा, पत्नी, दोस्त। अब - वहाँ कोई पैसा नहीं था। वित्तीय समस्याओं पर घोटाले और झगड़े कोनव्स के जीवन का एक सामान्य घटक बन गए हैं।
कारखाने, सामूहिक खेतों को धूल से ढंक दिया गया था। शहर में केवल एक ही स्थान पर काम करना संभव था - बाजार पर। लेकिन उस समय तक वह पहले से ही प्रभाव क्षेत्र में विभाजित था। और नए लोगों ने वहां शिकायत नहीं की। सामान्य तौर पर, चित्र उदास दिखाई देता है। बेशक दिमित्री ने स्थिति को ठीक करने की कोशिश की। बाईं कमाई से मिलने वाले पैसे पर उसने शराब खरीदी। दुख डालना पड़ा।
तो अक्सर ऐसा होता हैः जब यह निराशाजनक लगता है कि स्थिति निराशाजनक है। और इसलिए यह दिमित्री के साथ हुआ। एक बार, हमेशा की तरह, उसने अपनी पत्नी से झगड़ा किया, और अपने दोस्तों के साथ मछली पकड़ने चला गया। वह एक दो दिन घर पर नहीं था। लेकिन जब दिमित्री वापस आया, तो वह सचमुच खुशी से झूम उठा। कैच को टेबल पर छोड़ते हुए उसने स्वेतलाना से कहाः "कल मैं काम पर जाऊंगा। " पति ने विवरण में जाना नहीं छोड़ा, आखिरकार, कि "आप खुद को सब कुछ समझेंगे"।
"आप और क्या चाहते हैं? "
एक महीना बीत गया। कोनव का जीवन नाटकीय रूप से बदल गया, परिवार में पैसा दिखाई दिया। कोई विवरण नहीं स्वेतलाना पता नहीं था। वह केवल यह जानती थी कि उसका पति बाजार में "काम" करता है। और बाजार, वैसे, उस समय एक स्थानीय व्यापारी द्वारा स्नेग्रीव के नाम से पूरी तरह से नियंत्रित किया गया था। उसने अपने साथी के साथ मिलकर एक शक्तिशाली संगठित आपराधिक समूह बना लिया था, जो जल्दी ही पूरे क्षेत्र में एक प्रमुख बन गया। व्यवसायी क्षेत्रीय केंद्र में रहते थे, जहां से कठपुतलियों की तरह क्षेत्र के बाजारों का प्रबंधन किया जाता था। उनके पास पर्याप्त प्रतिस्पर्धी थे, लेकिन स्नेगिरोव्स्काया ने आपराधिक समूह को मजबूती से संगठित किया। लेकिन दिमित्री को उससे काम मिल गया। वह सुबह जल्दी निकल गया, रात में लौटा, लेकिन हमेशा पैसे या कुछ मूल्यवान चीजों के साथ। थोड़े समय में, स्वेतलाना के पास, शायद, वह सब कुछ था जो एक साधारण महिला जो सुदूर प्रांत में पली-बढ़ी थी, वह सपना देख सकती थी। विभिन्न रंगों और मॉडलों के चमड़े के जैकेट, फर कोट, कपड़े, जूते - चीजों की एक बड़ी मात्रा में गुना कहीं नहीं थी। यही बात सोने के गहनों पर भी लागू होती है। महिला ने उन्हें तीन लीटर जार में रखा! और कहाँ? जहां से यह धन रातोंरात आया, महिला ने सोचना नहीं पसंद किया। समृद्धि है, बच्चों को कपड़े पहनाए जाते हैं, कपड़े पहनाए जाते हैं - खुशी के लिए और क्या चाहिए?
दिमित्री खुद प्रसन्न थी। वह एक युवा, मजबूत और लंबा आदमी है, उसने "आसान पैसे" को चोट पहुंचाई और व्यावहारिक रूप से कुछ भी जोखिम नहीं उठाया। तब, स्नेग्रीव के संगठित अपराध समूह में से किसी ने भी नहीं सोचा था कि चीजें कैसे समाप्त हो सकती हैं। चमड़े की जैकेट में कई और कसकर मुड़ा हुआ पुरुषों की कंपनी में दिमित्री ने बाजार को नियंत्रित किया। उनका कार्य स्थानीय व्यापारियों और यदि आवश्यक हो तो संरक्षण से श्रद्धांजलि एकत्र करना था। खैर, अगर किसी ने "छत" के लिए भुगतान करने से इनकार कर दिया, तो उसने एक लंबी और थकाऊ बातचीत की प्रतीक्षा की। चूंकि शहर छोटा था, लगभग हर कोई एक-दूसरे को जानता था, कुछ गंभीर घटनाएं बहुत कम ही हुईं। उसी समय, "छत", मुझे श्रद्धांजलि का भुगतान करना चाहिए, मेरे "पालतू जानवरों" को समझ के साथ व्यवहार करना चाहिए। अगर कोई पैसे में भुगतान नहीं कर सकता था, तो वे ले गए, जैसा कि वे कहते हैं, दयालु रूप में, वह सामान, जिसके साथ उसने व्यापार किया। लेकिन कभी-कभी ऐसा हुआ कि रिटेल आउटलेट्स के मालिकों ने गलत व्यवहार करना शुरू कर दिया। यह या तो एक नरसंहार, या बाजार से पूरी तरह से निष्कासन के साथ समाप्त हो गया। सच है, "सूचक निष्पादन" की पूरी जोड़ी विद्रोह के प्रयासों को रोकने के लिए पर्याप्त थी।
दिमित्री को बस तरह से लेना पसंद था। एक दिन, वह सामान्य से पहले घर लौट आया, सभी प्रकार के स्टेशनरी, एक फैशनेबल ब्रीफकेस, और अपनी बेटी के लिए एक स्कूल की वर्दी से भरे कुछ बैगों को खींचकर। उसी समय, परिवार का मुखिया अपने बेटे और अपनी पत्नी के लिए एक और सोने के गहने उपहार में लाया। खैर, और कैसे? सितंबर आ रहा था, कात्या पहली क्लास में जाने वाली थी। सब कुछ उच्चतम स्तर पर होना था। प्रस्तुत करने के बाद, संतुष्ट दिमित्री सोफे पर बैठ गई और खुश स्वेतलाना को देखते हुए पूछाः "आप और क्या चाहेंगे? " उसने एक बार फिर कुछ और सभ्य के लिए झोंपड़ी बदलने की पेशकश की। लेकिन उसके पति ने सिर्फ अपना हाथ लहराया, फेंक दियाः "समय नहीं। "
"मैं तुम्हारे साथ रात नहीं बिताऊंगा"
समय-समय पर, रात में, दिमित्री अपने दोस्तों को घर में लाया, आइए बताते हैं। आमतौर पर पुरुषों ने रसोई में बैठकर काम के मुद्दों पर चर्चा की। इस समय स्वेतलाना उनके लिए खाना बना रही थी, और फिर चुपचाप हटा दिया गया। दिमित्री ने तुरंत नियमों के बारे में चेतावनी दीः कुछ भी मत पूछो और टुकड़ी का मुखौटा लगाओ। स्वेतलाना ने बहस नहीं की।
लेकिन एक बार पुरुष पैकेज लेकर आए। लगभग एक दर्जन पैकेज थे जो उनमें थे, स्वेतलाना को पता नहीं था। उसने टेबल सेट किया और अचानक मेहमानों में से एक, जैसे कि दुर्घटना से, उसके पैर के साथ पैकेज को छुआ था। वह गिर गया, उसके पास से पैसे के बंडल बाहर आ गए। उस आदमी ने स्वेतलाना को देखा और उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार किया। लेकिन महिला ने शांति से अपने व्यवसाय के बारे में जाना जारी रखा, जैसे कि कुछ भी देख रही हो।
सुबह में, दिमित्री ने उसे केवल एक शब्द कहाः "पारित। " और तब से, उनकी झोंपड़ी में पैसे की थैलियाँ दिखाई देने लगीं। दिमित्री ने उन्हें एक बड़ी छाती में डाल दिया, लेकिन उसे ताला बंद नहीं किया। कुछ समय बाद, उसने दिन के दौरान भागना शुरू कर दिया और स्वेतलाना को काम देना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, ताकि शाम के छह बजे तक वह आवश्यक राशि को गिना और एक बैग में रख दिया। राशियाँ लगातार बदल रही हैं। कभी-कभी उसे कई पैकेज पकाने पड़ते थे। तब वह इस गतिविधि बेटी की ओर आकर्षित हुई। दिमित्री, और अधिक बार अपने सहयोगियों में से कोई व्यक्ति नियत समय पर आया और चुपचाप पैकेज ले लिया। मौके पर अब तक किसी ने पैसा नहीं गिना है। लेकिन स्वेतलाना जानती थी कि वह गलती नहीं कर सकती, इसलिए उसने कई बार जाँच की। फिर घर में बॉडी आर्मर दिखाई देने लगे। उन्हें समय-समय पर मेहमानों द्वारा भी जाना जाता था। आमतौर पर रात में, जब दिमित्री अनुपस्थित था। इस समय वह कहाँ था, स्वेतलाना को पता नहीं था, और उसके पति ने पूछने की अनुमति नहीं दी। आमतौर पर, दिमित्री सुबह पीला और थका हुआ लौटा। पूछताछ के किसी भी प्रयास, वह कठोरता से बंद कर दिया।
एक बार, दिमित्री की माँ ने उनके घर में रात बिताई। परिवार का मुखिया खुद अनुपस्थित था, और स्वेतलाना और उसका बेटा अस्पताल में थे - लड़का अचानक बीमार हो गया। कात्या अपनी दादी की देखरेख में रही। छाती के ढक्कन को खोलने के लिए सास की आवश्यकता क्यों अज्ञात है। लेकिन, पैसे देखकर उसने लड़की को पकड़ लिया और अपने घर चला गया। अगली सुबह, एक महिला अपनी बहू के पास आई और बोलीः "मैं अब तुम्हारे साथ रात नहीं बिताऊँगी! "
तथ्य यह है कि दिमित्री ने बॉक्स ऑफिस को बनाए रखा, शायद सभी को पता था, जिसमें स्नेग्रीव के प्रतियोगी भी शामिल थे। लेकिन कभी किसी ने उन्हें उठाने की कोशिश भी नहीं की। लेकिन ऐसा करना आसान था।
"क्या करना है? "
इस तरह कुछ साल बीत गए। यह वर्ष का अगस्त 1997 है। सब कुछ हमेशा की तरह था, कुछ भी परेशान नहीं था। अचानक, दिन अचानक पीला दिमित्री दिखाई दिया। कर्कश आवाज में, उसने स्वेतलाना से कहाः "उन्होंने बुलफिंच को मार डाला . . . क्या करना है? "
कुछ ही दिनों में, एक प्रांतीय शहर में जीवन नाटकीय रूप से बदलने लगा। इस समय के दौरान, यह ज्ञात हो गया कि स्नेग्रीव को उनके एक प्रतियोगी ने समाप्त कर दिया, जिन्होंने पूरे क्षेत्र में सत्ता पर कब्जा करने का फैसला किया। और गंभीर सुरक्षा के बावजूद, आपराधिक प्राधिकरण जीवित नहीं रह सका। उनकी कार पर हमला किया गया था, जिसमें केवल स्नेग्रीव ही मारे गए थे, कोई भी गार्ड घायल नहीं हुआ था। जब एक नई सरकार शहर में आई, तो स्नेग्रीवस्काय संगठित आपराधिक समूह के पूर्व सदस्यों के प्रति बहुत वफादार थी। कोई खून-खराबा नहीं हुआ, वे चुपचाप और शांति से सेवा में चले गए, चलो, नए मालिक को कहते हैं। लेकिन दिमित्री ने फैसला किया कि यह एक शाफ़्ट के साथ टाई करने का समय था। वह आदमी "अंत तक" नहीं जाना चाहता था।
कुछ साल बाद दिमित्री की मृत्यु हो गई, जो जीवन में खुद को खोजने में असफल रही। अपने अंतिम वर्षों में उन्होंने केवल शराब पी और "सुनहरा समय" याद किया। और स्वेतलाना ने बच्चों की परवरिश की। उसके लिए क्या प्रयास किए गए, वह केवल एक ही जानती है। कभी-कभी, शहर के बाजार में पहुंचने पर, एक महिला अपने दिवंगत पति के पूर्व सहयोगियों को नोटिस करती है। हाँ, उनका जीवन बहुत ही धैर्यपूर्ण है, लेकिन सभी जीवित हैं। बस, वे पुनर्निर्माण करने में सक्षम थे, और वह - नहीं।
पुनश्च इस कहानी को पढ़ने के बाद, कई लोग सवाल पूछेंगेः लेखक वास्तव में क्या कहना चाहता था? आखिरकार, उन कठिन वर्षों में समान मामलों के बहुत सारे थे। उनके बारे में किताबें लिखी गई हैं, फिल्में और सीरीज़ बनाई गई हैं। क्यों एक ही बात के बारे में, और यहां तक कि एक बहुत ही गंभीर और सभ्य पोर्टल "सैन्य समीक्षा" पर?
लेकिन क्यों? ये घटनाएँ उन वर्षों में हुईं जब मैं एक किशोर था। और कहानी का मुख्य पात्र मेरे करीबी दोस्त का रिश्तेदार है। मैं उससे अच्छी तरह परिचित था और बिल्कुल भी किसी बात पर शक नहीं करता था। हमने कभी-कभी एक-दूसरे को देखा, लेकिन अलग-अलग शहरों में रहते थे। और यद्यपि मैं दिमित्री के जीवन के छाया पक्ष के बारे में नहीं जानता था, लेकिन एक किशोरी के रूप में भी, मुझे लगा कि वह बेचैनी से रह रहा था। हर समय उसके लिए कठिन क्या है। फ्योडोर दोस्तोवस्की सही थे, इस विचार को व्यक्त करते हुए कि उजागर होने का डर, खुला - एक वास्तविक जल्लाद। यह बदसूरत बड़े आकार में बढ़ता है, और जीवन में हर छोटी चीज पहले से ही कुछ भयानक के साथ धमकी देती है, जो शब्दों में वर्णन करने की भावना की कमी है। यहां यह है - एक व्यक्ति के भीतर एक युद्ध जो एक चौराहे पर बन गया है और जिसे दो बैंकों के बीच लगातार तैरने के लिए मजबूर किया जाता है। उस और भाषण के बारे में।
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· प्रधानमंत्री ने स्ट्रीट वेंडर्स को साफ-सफाई रखने और कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सभी उपायों का पालन करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें अपना कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
(पिछले 24 घंटों में जारी कोविड-19 से संबंधित प्रेस विज्ञप्तियां, पीआईबी के क्षेत्रीय कार्यालयों से मिली जानकारियां और पीआईबी द्वारा जांचे गए तथ्य शामिल हैं)
जिस दिन भारत में एक ही दिन में सबसे अधिक लगभग 75,000 लोग ठीक हुए उसी दिन एक दिन में रिकॉर्ड नमूनों की जांच भी हुई। पिछले 24 घंटों में 11.5 लाख से अधिक कोविड-19 नमूनों की जांच की गई। भारत उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां पर दैनिक जांच की दर बहुत अधिक है। दैनिक परीक्षण क्षमता पहले ही 11 लाख को पार कर चुकी है। पिछले 24 घंटों में 11,54,549 नमूनों की जांच की गई जिसके साथ ही भारत ने जांच की राष्ट्रीय नैदानिक क्षमता को और मजबूत किया है। इस उपलब्धि के साथ ही अभी तक कुल 5.18 करोड़ (5,18,04,677) से अधिक नमूनों की जांच हो चुकी है। देशव्यापी परीक्षण के उच्च स्तरों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती करने और समय पर उचित उपचार के मूल्यवान अवसर प्रदान हुए हैं। इसने मृत्यु दर में कमी (1.69% आज) आई है और ठीक होने वालों की संख्या बढ़ी है। इस उपलब्धि के आधार पर, प्रति मिलियन टेस्ट (टीपीएम) में 37,539 की तेज वृद्धि हुई है। यह निरंतर ऊपर की तरफ बढ़ता जा रहा है। जनवरी 2020 में पुणे में एक जांच प्रयोगशाला से शुरू होकर आज देश 1678 प्रयोगशालाएं काम कर रही है जिसमें सरकारी क्षेत्र की 1040 प्रयोगशालाएं और 638 निजी प्रयोगशालाएं शामिल हैं।
पिछले 24 घंटों के दौरान भारत में ठीक होने वाले रोगियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। एक ही दिन में रिकॉर्ड 74,894 मरीज ठीक हुए हैं और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। इसके साथी ही ठीक होने वाले मरीजों की कुल संख्या 33,98,844 तक पहुंच गई है जिसके बाद ठीक होने की दर (रिकवरी दर) 77.77% तक पहुंच गई है। साप्ताहिक आधार पर ठीक होने वालों की कुल संख्या जुलाई के तीसरे हफ्ते के 1,53,118 से बढकर, सितंबर 2020 के पहले सप्ताह में 4,84,068 हो गई है। पिछले 24 घंटे के दौरान कुल 89,706 नए मामले सामने आए हैं, जिनमें अकेले महाराष्ट्र का योगदान 20,000 से अधिक और आंध्र प्रदेश का 10,000 से अधिक का योगदान रहा है। नए मामलों में से 60 फीसदी मामले केवल 5 राज्यों से दर्ज किए हैं। देश में कुल सक्रिय मामलों की संख्या 8,97,394 हैं। महाराष्ट्र 2,40,000 से अधिक मामलों के साथ इस सूची में सबसे ऊपर है जबकि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश, दोनों राज्यों में 96,000 से अधिक मामले सक्रिय है। पांच राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु का कुल सक्रिय मामलों में 61 फीसदी का योगदान है। पिछले 24 घंटों में कुल 1,115 मौतें दर्ज की गई हैं। महाराष्ट्र में 380 मौतें तथा कर्नाटक में 146 मौतें हुई हैं, जबकि तमिलनाडु में 87 मौतें दर्ज की गई हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज डब्ल्यूएचओ दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के 73वें सत्र में भाग लिया। यह पहली बार है जब दो दिवसीय कार्यक्रम कोविड महामारी के कारण पूरी तरह से वर्चुअल प्लेटफार्म के जरिये आयोजित किया जा रहा है। बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, डॉ. हर्षवर्धन ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में महामारी से अपने नागरिकों के जीवन और आजीविका की रक्षा करने के लिए देश के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, देश ने "वायरस को रोकने और कम करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। "स्वास्थ्य शासन की बहुआयामी और बहु-क्षेत्रीय प्रकृति, समाधान; संसाधनों और हस्तक्षेपों के बीच आपसी संबंधों की मांग करती है, ताकि लोगों को इसका लाभ मिल सके। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा, "स्वच्छ भारत अभियान, 2022 तक सभी के लिए आवास, पोषण मिशन, कौशल विकास, स्मार्ट शहर, ईट राइट इंडिया, फिट इंडिया और कई ऐसी बहु-क्षेत्रीय पहलें शुरू की गई हैं जो लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बना रही हैं जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति भी बेहतर हो रही है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश के स्ट्रीट वेंडर्स के साथ 'स्वनिधि संवाद' किया। भारत सरकार ने कोविड-19 से प्रभावित गरीब स्ट्रीट वेंडर्स को उनकी आजीविका फिर से शुरू करने में मदद के लिए 1 जून, 2020 को पीएम स्वनिधि योजना शुरू की थी। मध्य प्रदेश में 4.5 लाख स्ट्रीट वेंडर पंजीकृत थे, जिनमें से लगभग 1.4 लाख स्ट्रीट वेंडर्स के लिए 140 करोड़ रुपये की राशि को स्वीकृति प्रदान की गई है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस अवसर पर स्ट्रीट वेंडर्स को फिर से अपनी आजीविका को पटरी पर लाने के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने स्ट्रीट वेंडर्स के आत्मविश्वास, दृढ़ता और कड़ी मेहनत की भी सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई भी आपदा सबसे पहले गरीबों को उनकी नौकरी, भोजन और बचत पर असर डालते हुए प्रभावित करती है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उस कठिन समय का भी जिक्र किया जब अधिकांश गरीब प्रवासियों को अपने गांवों में वापस जाना पड़ा। प्रधानमंत्री ने स्ट्रीट वेंडर्स को साफ-सफाई बनाए रखने और कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सभी उपायों का पालन करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें अपना कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 10 सितंबर को डिजिटल माध्यम से प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) का शुभारम्भ करेंगे। प्रधानमंत्री ई-गोपाला ऐप भी लॉन्च करेंगे, जो किसानों के प्रत्यक्ष उपयोग के लिए एक समग्र नस्ल सुधार, बाजार और सूचना पोर्टल है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा बिहार में मछली पालन और पशुपालन क्षेत्रों में भी कई पहलों का शुभारम्भ किया जाएगा। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) मत्स्य क्षेत्र पर केन्द्रित और सतत विकास योजना है, जिसे आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक पांच साल की अवधि के दौरान सभी राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया जाना है और इस पर अनुमानित रूप से 20,050 करोड़ रुपये का निवेश होना है। पीएमएमएसवाई के अंतर्गत 20,050 करोड़ रुपये का निवेश मत्स्य क्षेत्र में होने वाला सबसे ज्यादा निवेश है। इसमें से लगभग 12,340 करोड़ रुपये का निवेश समुद्री, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि में लाभार्थी केन्द्रित गतिविधियों पर तथा 7,710 करोड़ रुपये का निवेश फिशरीज इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए प्रस्तावित है।
सीएसआईआर-सीएमईआरआई, दुर्गापुर ने स्कूली शिक्षा विभाग, जम्मू एवं कश्मीर के सहयोग से जिज्ञासा कार्यक्रम के एक अंग के रूप में कोविड-19 से निपटने में सीएसआईआर-सीएमईआरआई के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहलों के बारे में कल एक वेबिनार का आयोजन किया।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के ऑनलाइन विपणन खंड में प्रवेश ने बड़ी तेजी से अखिल भारतीय पहुंच स्थापित की है। इससे कारीगर केवीआईसी ई-पोर्टल www.kviconline.gov.in/khadimask के माध्यम से देश के दूर से दूर स्थित भागों में अपने उत्पाद बेचने में समर्थ हो रहे हैं। यह ऑनलाइन बिक्री इस वर्ष 7 जुलाई को केवल खादी के फेस मास्क बनाने के साथ शुरू हुई थी लेकिन इसने इतनी जल्दी ही पूरी तरह विकसित ई-मार्केट मंच का रूप धारण कर लिया है आज इस पर 180 उत्पाद मौजूद हैं तथा और बहुत से उत्पाद इसमें शामिल होने की प्रक्रिया में हैं। केवीआईसी रोजाना अपनी ऑनलाइन माल सूची में कम-से-कम 10 नए उत्पाद जोड़ रहा है और इसने इस वर्ष 2 अक्टूबर तक कम-से-कम 1000 उत्पादों को जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। दो महीने से भी कम समय में केवीआईसी ने लगभग 4000 ग्राहकों को अपनी सेवा उपलब्ध कराई है।
पंजाब : राज्य सरकार ने निजी अस्पताल, क्लीनिक और प्रयोगशालाओं को जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण के साथ सूचीबद्ध होने के बाद रैपिड एंटीजन जांच (आरएटी) कराने की अनुमति दे दी है। इससे आम लोगों के बीच जांच को मजबूत कर कोरोना वायरस पॉजिटिव रोगियों की समय पर पहचान कर महामारी को नियंत्रित किया जा सकेगा।
महाराष्ट्र : तीन माह से अधिक समय के बाद राज्य में पहली बार कोरोना के मामले राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना के मामलों की तुलना में तेजी से बढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र में दैनिक वृद्धि दर (सात दिन की संयुक्त दर) बढ़कर 2.21 प्रतिशत हो गई है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 2.14 प्रतिशत ही है। प्रतिदिन 10 से 12 हजार मामलों के स्थान पर महाराष्ट्र में अब हर दिन कोरोना के 20 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। राज्य में सबसे अधिक मामले पुणे में सामने आए हैं, जहां बीते कुछ दिनों से देश में सबसे अधिक 4 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र में कोविड-19 के 2,43,809 सक्रिय मामले हैं। नगरपालिका प्राधिकारी के अनुसार शहर में 7,099 भवन सील किए गए हैं और 568 कंटेनमेंट जोन हैं। इस बीच राज्य सरकार ने सभी ऑक्सीजन निर्माण इकाइयों को कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत स्वास्थ्य गतिविधियों के लिए आवंटित करने के निर्देश दिए हैं। कालाबाजारी की रिपोर्ट सामने आने के बाद खाद्य और औषधि, आबकारी और पुलिस अधिकारियों के दल को ऑक्सीजन निर्माण करने वाली इकाईयों में तैनात किया गया है।
गुजरात : वडोदरा नगर निगम द्वारा संचालित एसएसजी अस्पताल में मंगलवार रात आग लग गई। अस्पताल में 272 कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों का उपचार चल रहा था। आग कोविड-19 आइसोलेशन भवन के आईसीयू में एक वेंटीलेटर के तार में शार्टसर्किट के चलते लगी। घटना में कोई घायल नहीं हुआ और आईसीयू वार्ड के सभी 39 रोगियों को सुरक्षित बचा लिया गया।
राजस्थान : मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलौत ने डॉक्टरों की सलाह के बाद एक माह के लिए अपनी सभी बैठक को रद्द कर दिया है। इस दौरान वह केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा बैठक में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री निवास और कार्यालय के 40 से अधिक कर्मचारियों के कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद इसकी घोषणा की गई है। इनमें मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी और राजस्थान सशस्त्र पुलिस बल के जवान शामिल हैं।
मध्यप्रदेश : राज्य सरकार ने सभी नागरिकों की मुफ्त कोविड जांच कराने की घोषणा की है। यह निर्णय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। इसके साथ ही राज्य में बुखार क्लीनिक की संख्या बढ़ाने का फैसला भी हुआ। बैठक में 3,700 ऑक्सीजन बेड बढ़ाने का निर्णय भी लिया गया, जिसके बाद राज्य में 11,700 ऑक्सीजन बेड उपलब्ध रहेंगे।
छत्तीसगढ़ : राज्य में कोरोना के 50 हजार से अधिक मामले हो गए हैं। 2,545 ताजा मामले सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ में अब कोरोना के 50,114 मामले हैं। राज्य में अब तक 407 लोगों की कोविड-19 से मृत्यु हो चुकी है और 26,915 सक्रिय मामले हैं। राज्य में लगभग 40 प्रतिशत मामले ग्रामीण इलाकों से मिले हैं।
अरुणाचल प्रदेश : राज्य में 221 और लोग जांच में कोरोना पॉजिटिव पाए गए और एक व्यक्ति की मृत्यु हुई। राज्य में अब 1670 सक्रिय मामले और रिकवरी दर 69.42 प्रतिशत है। राज्य में अब तक 9 लोगों की कोरोना वायरस से मृत्यु हो चुकी है।
असम : राज्य में कल 2579 और लोग कोरोना पॉजिटिव मिले और 2166 लोगों को उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी दी गई। असम में अब कोरोना के कुल 1,30,823 मामले और 29,203 सक्रिय मामले हैं। अब तक 101239 रोगियों को उपचार के बाद छुट्टी दी गई है।
मणिपुर : राज्य में कोरोना वायरस के 96 नए मामले सामने आए हैं। मणिपुर में 126 लोग उपचार के बाद स्वस्थ हुए और 76 प्रतिशत रिकवरी दर है। राज्य में 1679 सक्रिय मामले हैं।
मिजोरम : कल कोरोना वायरस के 69 नए मामलो की पुष्टि हुई। मिजोरम में अब कोरोना वायरस के 1192 कुल मामले, 447 सक्रिय मामले और 745 लोग उपचार के बाद स्वस्थ हुए हैं।
नगालैंड : दीमापुर के जिलाधिकारी ने सामान और यात्री वाहनों के लिए सुरक्षा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। सभी सामान ढोने वाली गाडियों के चालक और सहायक की प्रवेश के समय जांच की जाएगी और यात्री वाहन सभी यात्रियों का विवरण रखेंगे। नगालैंड में अब कोरोना के 4245 मामले हैं। इसमें 1823 सशस्त्र बल, 1312 बाहर से लौटे लोग, 309 फ्रंटलाइन कार्यकर्ता और 801 संपर्क में आए लोगों के हैं।
केरल : राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने मल्लापुरम, कासरगोड, तिरुवनंतपुरम और इरनाकुलम जिलों में कोविड-19 की जांच बढ़ाने का निर्णय लिया है। स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार कन्नुर, तिरुवनंतपुरम और कोझिकोड़ में कोविड-19 मृत्यु दर अधिक है। अगस्त में इस जिलों में मृत्यु दर राज्य की औसत दर से अधिक रही। राज्य में अब 27.9 दिन में कोरोना के मामले दोगुना हो रहे हैं। इस बीच राजधानी के एक निराश्रित गृह में 108 सहवासी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। केरल में कल दूसरी बार कोविड के 3 हजार से अधिक मामले सामने आए। राज्य में 3,026 नए मामले सामने आने के बाद 23,217 सक्रिय मामले हैं। केरल में 1.98 लाख लोग निगरानी मे हैं और 372 लोगों की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है।
तमिलनाडु : चेन्नई मेट्रो ने लोगों के अनुरोध के बाद गुरुवार से रात 9 बजे तक संचालन करने का फैसला लिया है। मेट्रो का फेज-1 विस्तार दिसंबर तक पूरा हो जाएगा। कोरोना महामारी के कारण काम प्रभावित हुआ और पहले जून में इसका उद्घाटन होना था। चेन्नई के अलन्दूर में चार खंड को हॉटस्पॉट घोषित किया गया है। अलन्दुर में सोमवार को 13 प्रतिशत की दर से सबसे ज्यादा सक्रिय मामले थे। राज्य में कल कोरोना के 5684 नए मामले सामने आए, 6599 लोगों को उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी दी गई और 87 लोगों की मृत्यु हुई। राज्य में अब कोरोना के 4,74,940 कुल मामले और 50,213 सक्रिय मामले हैं। राज्य में अब तक 8012 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 4,16,715 लोगों को अस्पताल से छुट्टी दी गई है। चेन्नई में 11,029 सक्रिय मामले हैं।
कर्नाटक : उपमुख्यमंत्री और इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. सी एन अश्वत नारायण ने आज कोविड-19 महामारी के प्रभाव को कम करने मे सहायता करने वाले 22 उत्पादों को जारी किया है। इनमे से 6 उत्पाद कर्नाटक नवाचार और प्रौद्योगिकी सोसायटी (केआईटीएस) के तत्वाधान में बेंगलुरू बायो-नवाचार केंद्र (बीबीसी) के पर्यवेक्षण में और 16 उत्पाद अन्य के पर्यवेक्षण में जारी किए गए हैं। विधानसभा अध्यक्ष विश्व हेगड़े केगेरी ने कहा है कि 21 सितंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में भाग लेने वाले सभी लोगों को कोविड जांच कराना अनिवार्य है।
आंध्रप्रदेश : कोविड-19 के उपचार की प्रक्रिया को तेज करने के लिए राज्य सरकार ने प्लाज्मा दान अभियान की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत सभी स्वस्थ हुए योग्य रोगियों की जानकारी एकत्र की जाएगी। लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक डोनर को 5 हजार रुपए दिए जाएंगे। राज्य में इस समय 37 हजार संभावित प्लाज्मा डोनर हैं और उनकी सहमति लेने की प्रक्रिया जारी है। राज्य में वर्तमान में हर दिन 65 से 70 हजार कोविड-19 के नमूनों की जांच हो रही है। सरकार प्रतिदिन लगभग 15 करोड़ रूपए भोजन, आवास, दवाइयों और जांच आदि कोविड संबंधी सभी प्रबंधों पर व्यय कर रही है।
तेलंगाना : पिछले 24 घंटे में कोरोना के 2479 नए मामले सामने आए। 2485 लोग स्वस्थ हुए और 10 लोगों की मृत्यु हुई। 2479 मामलो में से 322 मामले जीएचएमसी में सामने आए। राज्य में अब 1,47,642 कुल मामले और 31,654 सक्रिय मामले हैं तथा 1,15,072 लोगों को उपचार के बाद छुट्टी दी गई है। तेलंगाना में कोरोना से अब तक 916 लोगो की मृत्यु हुई है। उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल के जूनियर डॉक्टरों ने जरूरी और ऑक्सीजन की आपूर्ति देखने के लिए पोस्ट आपरेटिव वार्ड में मॉनिटर की मांग पूरी न होने तक अनिश्चितकाल तक ओपीडी, इलेक्टिव सर्जरी और वार्ड ड्यूटी का बहिष्कार किया है। मुख्यमंत्री केसीआर ने कार्पोरेट क्षेत्र में कोविड के उपचार को नियमित करने के लिए कार्यबल की घोषणा की है। कोविड-19 महामारी के दौरान अड़चन को देखते हुए कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय के अंतर्गत कंपनी पंजीयक ने मंगलवार को राज्य की कंपनियों को गत वर्ष के एजीएम के आयोजन के लिए तीन महीने का अतिरिक्त समय दिया है।
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१४५. सद्संस्कार संजीवक शिवसागरजी
दिगंबर परम्परा शिवसागरजी आचार्य वीरसागरजी की भाति प्रभावक आचार्य थे । वे परम तपस्वी थे । बालब्रह्मचारी थे। स्वाध्याय योग में उनकी सहज रुचि थी । उनकी मातृभाषा महाराष्ट्री थी। हिंदी भाषा बोलने का भी उन्हे अच्छा अभ्यास था ।
शिवसागरजी के दीक्षा गुरु वीरमागरजी थे । वीरसागरजी की गुरु परम्परा ही शिवसागरजी की गुरु परम्परा है । शातिसागरजी, बीरसागरजी इन तीनो का क्रम दिगम्बर परम्परा के इतिहास मे गुरु-परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण शृखला है । जन्म और परिवार
शिवसागरजी का जन्म महाराष्ट्र प्रात के अन्तर्गत औरगाबाद जिले के अडगाव मे बी० नि० २४२८ (वि० स० १६५८) मे खण्डेल परिवार मे हुआ। रावका उनका गौत्र था। उनके पिता का नाम नेमिचद्रजी एव माता का नाम दगडा बाई था। शिवसागरजी के दो भाई और दो बहिनें थी । उनका अपना नाम हीरालाल था ।
पिता नेमिचद्रजी, माता दगडा बाई दोनों के संरक्षण मे शिवसागरजी ( बालक हीरालाल ) के शैशव जीवन का विकास हुआ । जैन विद्यालय मे शिक्षक हीरालालजी गगवाल ( वीरसागरजी ) के द्वारा उन्होंने अनेक प्रकार की धार्मिक शिक्षाए पाई । हिन्दी भाषा का भी अध्ययन किया । योग की बात थी प्लेग के आक्रमण से शिवसागरजी के माता-पिता का एक ही दिन मे निधन हो गया। कुछ समय के बाद बड़े भाई पत्नी को छोड़कर काल के मेहमान बन गए । प्रियजनो का यह वियोग शिवसागरजी के शिक्षा विकास मे भी विघ्न रूप सिद्ध हुआ। गृहस्थी के सचालन का दायित्व-भार भी उनके कधो पर आया ।
सद्संस्कार सजीवक आचार्य शिवसागर
ससार का यह विचित्र चित्र उनके मन को विरक्ति की और खीचकर से गया । भौतिक सुखो के भोग मे उनकी अरुचि हो गई। विवाह संबन्ध को उन्होने अस्वीकार कर दिया। जब वे २८ वर्ष के थे भाग्य से उन्हे शान्तिसागरजी के दर्शनो का योग मिला । शान्तिसागरजी की सन्निधि से शिवसागरजी की जीवन-धारा त्याग की ओर प्रवाहित हुई। गुरु चरणो मे पहुचकर वे अपने को धन्य मानने लगे। उन्होंने प्रथम सम्पर्क मे ही गुरु से द्वितीय प्रतिमा व्रत स्वीकार कर अपने में कृतार्थता का अनुभव किया । सप्तम प्रतिमा व्रत को ग्रहण उन्होने वीरमागरजी के पास किया ।
उनकी अध्यात्म के प्रति अभिरुचि दिन प्रतिदिन बढती रही । अध्यात्म ग्रंथो के अध्ययन, मनन और स्वाध्याय से उनकी त्यागमयी भावना मे उत्कर्ष आया । मयम ग्रहण करने की भी इच्छा जागृत हुई अत वैराग्य भावना से प्रेरित होकर वीरसागरजी के द्वारा उन्होंने वी० नि० २४७० (वि० स० २०००) मे क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। उस समय उनका नाम शिवसागर रखा गया । क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण के समय उनकी अवस्था लगभग ४२ या ४३ वर्ष की थी
गृहस्थजीवन मे वीरसागरजी का नाम हीरालाल था और शिवसागरजी का नाम भी हीरालाल था। जैन विद्यालय में शिवसागरजी को प्रारम्भिक धार्मिक शिक्षा भी वीरसागरजी के द्वारा ही प्राप्त हुई थी ।
क्षुल्लक दीक्षा के छह वर्ष बाद वी० नि० २४७६ ( वि० सं० २००६ ) मे शिवसागरजी ने वीरसागरजी द्वारा नागौर मे आषाढ शुक्ला एकादशी के दिन मुनि दीक्षा ग्रहण की । गुरु की मन्निधि मे शिवसागरजी ने अपने जीवन मे विविध योग्यताओं का विकास किया। नाना प्रकार के अनुभवो को बटोरा । वीरसागरजी के स्वर्गवास के बाद शिवसागरजी को वी० नि० २४८४ (वि० स० २०१४) मे आचार्य पद पर नियुक्त किया गया ।
शिवसागरजी विद्वान् थे। गुरु की सन्निधि में उन्हें आठ वर्ष रहने का अवसर प्राप्त हुआ । यह आठ वर्ष का काल उनके जीवन मे ज्ञानाराधना की दृष्टि से भी विशेष लाभ कर सिद्ध हुआ । उन्होने चारो प्रकार के अनुयोगों से सम्बन्धित विविध ग्रंथो का अध्ययन किया। समयमारकलश, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, स्वयम्भूस्तोत्र आदि संस्कृत, प्राकृत कई स्तोत्र ग्रंथ उन्हें कण्ठस्थ
आचार्य पद प्राप्ति के बाद उन्होंने दूरगामी यात्राए भी की। अजमेर,
उदयपुर, प्रतापगढ़, कोटा आदि क्षेत्रो मे चातुर्मास किए। क्षुल्लक, एलक, आर्थिका आदि कई दीक्षाए आचार्य शिवसागरजी द्वारा संपन्न हुई। कई मुनि दीक्षाए भी उनके द्वारा प्रदान की गई ।
दिगम्बर धर्मसघ की आचार्य शिवसागरजी के शासनकाल मे बनेक रूपो मे श्री वृद्धि हुई । शिष्य -सम्पदा का भी विशेष विकास हुआ ।
मुनिचर्या के नियमों की प्रतिपालना मे शिवसागरजी सजग थे एवं अनुशासन की भूमिका पर वे अधिक दृढ़ थे ।
शिवसागरजी ने वीरसागरजी के उत्तराधिकारी के रूप मे ११ वर्ष तक आचार्य पद का दायित्व सम्यक् प्रकार से वहन किया। वे वी०नि० २४६५ (वि० म० २०२५) मे फाल्गुन कृष्णा अमावस्या के दिन समाधि अवस्था मे स्वर्गवास को प्राप्त हुए ।
१४६. घोर परिश्रमी आचार्य घासीलालजी
घासीलालजी स्थानकवासी परम्परा के विक्रम की २०वी सदी के यशस्वी विद्वान् आचार्य थे। आगम ग्रंथो के विशिष्ट ज्ञाता थे। श्रुतयोग की उन्होने विशेष रूप से आराधना की एव जैन जैनेतर सम्प्रदायो मे भी वे प्रसिद्धि को प्राप्त थे ।
आचार्य घासीलालजी का जन्म मेवाड में हुआ । आचार्य जवाहर लालजी के पास वी० नि० २४२८ (वि० स० १९५८) माघ शुक्ला त्रयोदशी बृहस्पतिवार को उन्होने भागवती दीक्षा स्वीकार की ।
प्रारम्भ मे उनकी बुद्धि बहुत मन्द थी । एक नवकार मंत्र को कठाग्र करते उन्हे दिन लगे । कवि ने कहा हैकरत करत अभ्यास ते, जडमति होत सुजान ।
रमरी आवत-जावत है, शिल पर परत निशान ॥
इस पद्य को उन्होने अपने जीवन मे चरितार्थ कर दिखाया । एक निष्ठा से वे सरस्वती की उपासना में लगे रहे। व्याकरण, न्याय, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र मे उन्होंने प्रवेश पाया और एक दिन वे हिन्दी, मस्कृत, प्राकृत, मराठी, गुजराती, फारसी, अग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओ के विज्ञ बन गए । धर्म प्रचारार्थ उन्होंने अनेक गावो और नगरो मे विहरण किया ।
आगम व्याख्या ग्रंथो मे आचार्य घासीलालजी के ग्रथो का महनीय स्थान है । उन्होंने तीस वर्षों मे बत्तीस सूत्रो की टीका - रचना कर आगमो की व्याख्या को मस्कृत, गुजराती और हिन्दी मे प्रस्तुत किया। टीकाओ के अतिरिक्त अन्य साहित्य भी उन्होंने रचा है। उनकी सरल सौम्य वृत्ति का जनता पर अच्छा प्रभाव रहा ।
इन टीका ग्रंथो मे आचार्य घासीलालजी के श्रमप्रधान जीवन के दर्शन
होते है ।
आगम टीकाओं के कार्य को सफलतापूर्वक निर्वहण के लिए सरसपुर ( अहमदाबाद) मे सोलह वर्ष तक रहे । इस कार्य के सम्पन्न होते ही उन्होने अनशनपूर्वक ४-१-७३ को तदनुसार वी० नि० २५०० (वि० स २०३०) को इस जगत् से विदा ले ली ।
वर्तमान में आचार्य घासीलालजी का सम्प्रदाय दीक्षा गुरु जवाहर लालजी के सम्प्रदाय से भिन्न है ।
१४७. आनन्दघन आचार्य आनन्दऋषि
आनन्दऋषिजी स्थानकवासी परम्परा श्रमण सघ के प्रमुख आचार्य हैं। वे संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, फारसी, राजस्थानी, उर्दू, अग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं के विद्वान् हैं। महाराष्ट्री उनकी सहज मातृभाषा हैं। उनके कण्ठ मधुर हैं और ध्वनि प्रचण्ड है ।
ऋषि सम्प्रदाय की परम्परा मे ऋषिलवजी, सोमजी, मोतीरामजी, सोहनलालजी, काशीरामजी आदि अनेक प्रभावी आचार्य हुए हैं। वर्तमान में आनन्दऋषिजी इस परम्परा को उजागर कर रहे हैं तथा श्रमण सघ के दायित्व को भी मभाल रहे है।
आनन्दऋषिजी का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के अहमदाबाद नगर जिले के अन्तर्गत सिराल चिचोडी ग्राम के गुगलिया परिवार मे वी० नि० २४२७ ( वि० स० १९५७ ) में हुआ था। उनके पिता का नाम देवीचन्द्रजी था एव माता का नाम हुलासी बाई था। उनके ज्येष्ठ भ्राता का नाम उत्तमचन्दजी था । आनन्दऋषि का नाम गृहस्थ जीवन मे नेमिचन्द्रजी था ।
आनन्दऋषिजी के पिता का देहान्त उनकी पाल्यावस्था में हो गया था। अत माता हुलासीदेवी ही बालक का पालन-पोषण करने में माता-पिता दोनो की भूमिका कुशलता पूर्वक वहन करती थी ।
हुलासीदेवी का धर्म प्रधान जीवन था । वह पाचो पर्वतिथियो पर उपवास करती एव प्रतिदिन सामायिक करती, पाक्षिक प्रतिक्रमण करती एवं अन्य बहिनो की धर्म-साधना मे सहयोग प्रदान करती थी ।
मा के धार्मिक सस्कारो का जागरण बालक मे भी हुआ । हुलासीदेवी से प्रेरणा प्राप्त कर बालक ने आचार्य रत्नऋषिजी से सामायिक पाठ, प्रतिक्रमण तात्त्विक प्रथ एवं अध्यात्म प्रधान स्तवन कठस्थ किए थे ।
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निर्णय निर्माण में महिलाओं की भूमिका की जाँच कीजिए
25.10 मूल निवासी महिलाएँ
सरकार उन ऐतिहासिक व सामाजिक तत्वों से परिचित है जो जाति व लिंग के कारण मूल निवासियों और टोरेस जलडमरूमध्य द्वीपीय महिलाओं को प्रभावित करते हैं। इन महिलाओं की आवश्यकताओं व समस्याओं को सभी विभागों की नीतियों व कार्यक्रमों के माध्यम से दुरुस्त करना सरकार की निश्चित नीति है।
मूल निवासियों के अभाव को दूर करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। चुनाव घोषणापत्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है इन लोगों को अपने कल्याण के लिए सरकार पर निर्भरता से ऊपर उठाकर बेहतर जीवन प्रदान करना इस प्रतिबद्धता में शामिल है। इन लोगों के स्वास्थ्य, निवास, शिक्षा, रोज़गार व आर्थिक विकास को बेहतर बनाने के लिए सरकार दृढ़ प्रतिज्ञ है। इस समय सरकार द्वारा मूल निवासियों पर होने वाला व्यय सर्वाधिक है। इस बजट के द्वारा सरकार महिलाओं व उनके समुदायों को वास्तविक लाभ पहुँचाने के लिए अपनी उपलब्धियों को और बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है।
मूल निवासी रोज़गार
मूल निवासी (देशज) समुदाय विकास रोज़गार परियोजना कार्यक्रम में कई परिवर्तन किये जाएँगे। सामाजिक सुरक्षा अधिनियम में परिवर्तन के कारण उपरोक्त परियोजना के सभी भागीदार अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकेंगे जो अब तक केवल बेरोज़गारी भत्ता पाने वालों को उपलब्ध थे।
रोज़गार व आत्मनिर्भरता बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने देशज समुदायों में छोटे व्यवसायों के विकास में सक्रिय योगदान दिया है। एक लघु व्यवसाय समर्थन निधि की संरचना की गई है जो विशिष्ट रूप से देश या देशज लघु व्यवसाय में सहायक होगी। इन प्रयासों से अधिकाधिक देशज महिलाओं को रोज़गार प्राप्त हो सकेगा, विशेष रूप से निजी क्षेत्र में ।
मूल निवासी शिक्षा
शिक्षा में बढ़ोत्तरी, महिलाओं को अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सहायता प्रदान करती है।
देशज महिलाएँ अभी भी अन्य ऑस्ट्रेलियाई महिलाओं की अपेक्षा शिक्षा प्राप्त करने में अनेक बाधाओं का सामना करती हैं। इस क्षेत्र विशेष के लिए सरकार ने अधिक धन राशि सुनिश्चित की है। देशज शिक्षा अनुकूल अभिक्रम कार्यक्रम, देशज शिक्षा प्रत्यक्ष सहायता कार्यक्रम तथा उच्च शिक्षा सहायता कार्यक्रम के माध्यम से देशज (मूल निवासी) महिलाओं में साक्षरता, संख्या ज्ञान, ग्रहणशीलता, तथा अन्य शैक्षणिक उपलब्धियों का विस्तार किया जाता है।
मूल निवासी स्वास्थ्य
स्वास्थ्य देखभाल का देशज महिलाओं के लिए विशेष महत्व है। ऐबओरिजिनल तथा टौरेस जलडमरूमध्य द्वीपीय महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिए सरकार ने कई नये उपाय आरंभ किये हैं। इस क्षेत्र में वर्तमान सरकार द्वारा व्यय की जाने वाली राशि निरंतर बढ़ी है। इस क्षेत्र के किए गए विशेष प्रयास निम्नलिखित हैः
नई व्यवस्था सकल स्वास्थ्य रक्षा प्राथमिक सुविधाओं के योजनाबद्ध एवं समन्वित विस्तार का ढांचा तैयार करेंगे ताकि देशज जनता की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुरूप धनराशि व्यय की जा सके।
क्षेत्रीय योजनाओं या वर्तमान् सुविधाओं के परिप्रेक्ष्य में उन क्षेत्रों में धनराशि व्यय की जाएगी जहाँ स्वास्थ्य / चिकित्सा आवश्यकताएँ और प्रभावी रूप से धनराशि व्यय करने की क्षमता की पहचान कर ली गई है।
सामुदायिक, राज्य व क्षेत्रीय सरकारों तथा स्वास्थ्य, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े संगठनों के सामजस्य से नई सुविधाएँ वर्तमान् सुविधाओं से श्रेष्ठ होंगी।
महिलाएँ, अतिरक्षा व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे
अनेक ऑस्ट्रेलियाई महिलाएँ देश की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के प्रति सचेत है। अन्तर्राष्ट्रीय फौजदारी न्यायालय के लिए एक क़ानून पारित कराने में सरकार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऑस्ट्रेलियाई सहायता कार्यक्रम के माध्यम से द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय धनराशि द्वारा विश्व भर में महिलाओं के लिए सरकार विशेष योगदान कर रही है। ऑस्ट्रेलिया की सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के मुद्दों को लेकर भी सरकार ने कार्यवाही की है।
ऑस्ट्रेलियाई सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के प्रवेश और सम्बन्धित मुद्दों और उनकी कार्यप्रणाली को सुगम बनाने तथा सशस्त्र सेनाओं में सेवारत अधिकारियों के लिए कार्य व पारिवारिक लचीलेपन के विषय में कार्यवाही की है। ऑस्ट्रेलिया की सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के रहने व प्रोन्नति के सम्बन्ध में 1997 की सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के प्रतिवेदन की बीस सिफारिशों में से अधिकांश सरकार द्वारा कार्यान्वित की जा चुकी हैं। इनमें समता की नीति और प्रशिक्षण कार्य क्षमता, कार्य और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ तथा मानव संसाधन प्रबन्ध रोज़गार प्रथा तथा समता पालन पुनर्विचार इत्यादि विषय सम्मिलित हैं।
अप्रैल 1999 में ऑस्ट्रेलिया सशस्त्र सेनाओं ने भेदभाव, उत्पीड़न, यौन अपराध, मेल जोल या गलत यौन व्यवहार के सम्बन्ध में संशोधित नीति प्रकाशित की। इस नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी कार्मिकों को यौन उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त वातावरण में कार्य करने का मूल अधिकार तथा दूसरों के साथ न्यायोचित व्यवहार करने की जिम्मेदारी है, ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है जो भेदभाव या उत्पीड़न पर आधारित है या उसे बढ़ावा देता है। यौन अपराध के विषय में एक सूचना पत्र लोगों, व्यक्तियों और संस्थाओं के ऊपर होने वाले यौन उत्पीड़न के प्रभाव और ऐसा होने पर उससे निपटने के उपाय की चर्चा करता है।
प्रतिरक्षा सामुदायिक संगठन सशस्त्र सेना कर्मचारियों व उनके परिवारों की सहायतार्थ सामाजिक कार्य, परिवार एवं शिक्षा संपर्क और संबंधित कार्यक्रमों आदि में संलग्न है। इसकी सेवाओं में प्रबन्धकों द्वारा संयोजित शिशु देखभाल केन्द्र हैं, पति या पत्नी रोज़गार कार्यक्रम तथा विशेष आवश्यकताओं वाले परिवारों को सहायता शामिल है। सशस्त्र सेवा परिवारों, सामुदायिक समूहों तथा सशस्त्र सेवा परिवारों द्वारा शुरू किए गए स्व-सहायता परियोजनाओं के लिए परिवार सहायता निधि कार्यक्रम द्वारा अनुदान दिया जाता है।
फरवरी 1999 में, ऑस्ट्रेलिया सशस्त्र सेना ने बिना वेतन आंशिक अवकाश व्यवस्था प्रवर्तित की है जिसका उद्देश्य सेनाओं के स्थाई कर्मियों को कार्य की लचीली दशाएँ उपलब्ध कराना है। इस उपाय से कर्मियों को अपनी घर और परिवार की जिम्मेदारियों में संतुलन स्थापित करने में मदद मिलेगी, उन्हें दुःसाध्य परिश्रम से राहत मिलेगी तथा शिक्षा, प्रशिक्षण व अन्य ज़रूरतों में सहायता प्राप्त होगी।
वर्तमान समय में सशस्त्र सेनाओं की सभी श्रेणियों में लगभग 85 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए खुले हैं। रक्षा विभाग सेनाओं में महिलाओं के खुले विकल्प तथा बन्द रास्तों दोनों पर विचार आरम्भ किया है। वर्ष् के अन्त तक इसके निष्कर्षों पर सरकार विचार करेगी।
लिंग (महिला-पुरुष) सम्बन्धी मुद्दे महिलाओं के प्रति उन न्याय से संबंधित हैं। महिलाएँ कई स्तरों पर भेदभाव का शिकार होती हैं। ऑस्ट्रेलिया भी इसका अपवाद नहीं । यद्यपि ऑस्ट्रेलिया पहला देश था जिसने 1902 में महिलाओं को पहली बार मतदान तथा चुने जाने का अधिकार प्रदान किया और इस प्रक्रिया में यह विश्व नेता का अग्रणी देश बना, तथापि महिलाएँ पुरुषों पर आश्रित हैं। महिलाएँ पहले ( और अक्सर आज भी) यौन सम्बन्ध का ही विषय मानी जाती हैं। उनकी भूमिका बच्चों के जन्म और लालन पालन तक ही सीमित है। कई मामलों में उनकी स्थिति वेश्याओं जैसी ही थी। महिलाओं को विवाह बंधन में रहकर, या बाहर, यौन विक्रय करना ही था। पत्नी की इच्छा के विरुद्ध भी पति को पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने का कानूनी अधिकार था। पति को शारीरिक सम्बन्ध स्थापित न करने देना पत्नी को तलाक दिए जाने का कारण बन सकता था। 1980 के दशक में इस स्थिति में परिवर्तन हुआ। बीसवीं शताब्दी में भी मताधिकार युक्त महिलाएँ भेदभाव तथा यौन दासत्व का शिकार रहीं।
पिछले कुछ दशकों से, राज्य (विशेषतः संघ सरकार) ने लिंग भेद को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है। बजट के प्रावधानों में विभिन्न प्रकार से महिलाओं की आर्थिक स्वतन्त्रता सुनिश्चित की गई है। अधिकाधिक महिलाएँ अब रोज़गार पा रही हैं तथा सबके समान वेतन सुनिश्चित किया गया है। बच्चों के जन्म व लालन पालन के लिए महिलाओं को सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। स्वास्थ्य रक्षा तथा सेवा निवृत्ति लाभ भी उन्हें प्रदान किये जा रहे हैं। सरकार ने स्तन कैंसर के इलाज़ के लिए विशेष प्रयास किये हैं। अधिकाधिक महिलाओं द्वारा लघु उद्योगों का प्रबंध किया जा रहा है। 1990 के दशक के अन्त तक संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़कर लगभग एक-चौथाई हो गया; वरिष्ठ कार्यकारी पद भी अब महिलाओं को अधिकाधिक प्राप्त होने लगे हैं। अभी भी बहुत कुछ करना शेष है, विशेषकर मूल निवासी महिलाओं व लड़कियों के लिए ।
25.12 कुछ उपयोगी पुस्तकें
मेरियन सिक्स (संपादित), ऑस्ट्रेलियन विमेन एंड द पॉलिटिकल सिस्टेम, लौंगमेन चेशायर,
जोसेलिन क्लार्क एंड केट व्हाइट, विमेन इन ऑस्ट्रेलियन पॉलिटिक्स, फ़ोटेना बुक्स, 1983 1
हेलेन मरचेन्ट एंड बेटसी वियरिंग, जेन्डर रीक्लेक्ड : विमेन इन सोशल वर्क, हेल एंड आयरमौंगर, 19861
मेरियन सौयर एंड मेरियन सिक्स, विमेन एंड रियैलिटीज़ इन ऑस्ट्रेलिया, जौर्ज ऐलेन एंड अनविन, 1984 ।
टेलिवरिंग ऑन आर कमिटमेंट्स फौर विमेन्स स्टेटमेंट बाई सेनेटर द हॉनरेबल जोसेलिन न्यूमैन, मिनिस्टर फौर फैमिलि एंड कम्यूनिटी सरविसिज़ एंड मिनिस्टर असिस्टिंग द प्राइम मिनिस्टर फ़ौर द स्टेट विमेन, 11 मई, 1999 1
मेरियन सीवर, 'विमेन एंड विमेन्स इशुज़ इन 1980 फ़ेडेरल एलेक्शन्स', पॉलिटिक्स XVI, 2, pp.243-9 I
25.13 बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
मताधिकार व संघीय संसद के लिए चुने जाने का अधिकार; महिलाओं के सवैतनिक रोज़गार उनके द्वारा आन्दोलन को बढ़ावा देने में सहायक हुए। (अधिक विवरण के लिए भाग 25.1 देखें)
उनके नौकरी पेशा जीवन में परिवर्तन होता है और वित्तीय सुरक्षा प्राप्त होती है; राज्य लालन व देखभाल के लिए समय देता है। (अधिक विवरण के लिए भाग 25.1 देखें)
विवाह विच्छेद होने पर दम्पत्ति सेवा निवृत्ति के पश्चात् मिलने वाली धन-राशि को आपस में समता के आधार पर बाँट सकेंगे। (अधिक विवरण के लिए उपभाग 25.3.3 देखें )
बोध प्रश्न 2
यह अधिनियम कर्मियों को अपने कार्य व पारिवारिक जिम्मेदारियों में संतुलन स्थापित करने में सहायक होगा। यह महिलाओं और पुरुषों के लिए बिना किसी भेदभाव के समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करता है। (अधिक विवरण के लिए भाग 25.4 देखें)
आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में पत्नियाँ भी यौन विषय के रूप में देखी जाती हैं जिनका कर्त्तव्य पति की यौन इच्छाओं की पूर्ति करना मात्र है। आर्थिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय महिलाओं को 'यौन दासता से मुक्त कराना है। (अधिक विवरण के लिए भाग 25.2 देखें)
ऑस्ट्रेलिया के लघु उद्योग संचालकों में 34 प्रतिशत महिलाएँ है। महिलाओं की व्यावसायिक कुशलता को बढ़ावा देने के लिए अधिक धनराशि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है। (अधिक विवरण के लिए उपभाग 25.4.2 देखें)
बोध प्रश्न 3
कर सुधारों से आय कर में अधिक छूट दी जाएगी, निम्न और मध्यम आय वर्गीय लोगों को अतिरिक्त पारिवारिक मुआवजा प्राप्त होगा। इस क़दम से महिलाओं को अपने बच्चों के पालन पोषण में बहुत सहायता तथा सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होगी। (अधिक विवरण के लिए उपभाग 25.5.1 देखें)
माता-पिता दोनों को रोज़गार, शिक्षा व प्रशिक्षण के अवसर होंगे, 60 प्रतिशत तक शिशु देखभाल उपलब्ध कराने पर देखभाल मुआवज़ा प्राप्त होगा (अधिक विवरण के लिए उपभाग 25.5.3 देखें)
बोध प्रश्न 4
राज्य परिवारों और पारिवारिक सम्बन्धों को शिक्षा व रोकथाम के द्वारा सुदृढ़ करने के लिए कृत संकल्प हैं। (अधिक विवरण के लिए भाग 25.6 देखें)
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बिजली, बिजली और गरज के बारे में आपके सभी सवालों के जवाब; मौसम विज्ञान का सामान्य निदेशालय बिजली, बिजली और गड़गड़ाहट से संबंधित सभी माप करता है जो हम विशेष रूप से बरसात के मौसम में सामना करते हैं, और तुरन्त दिखाते हैं कि तुर्की में वेबसाइट और मोबाइल एप्लिकेशन से नागरिकों की सेवा के लिए बिजली कहाँ मौजूद है।
बिजली कैसे बनती है?
बिजली एक प्राकृतिक घटना है जो वातावरण में उच्च वोल्टेज विद्युत क्षेत्रों के कारण होती है। वायुमंडल में विद्युत क्षेत्रों के निर्माण का मुख्य स्रोत सूर्य की किरणों द्वारा वायुमंडल का आयनीकरण है। यह आयनीकरण परमाणुओं से इलेक्ट्रॉनों के पृथक्करण और वातावरण में उनकी रिहाई से होता है।
तड़ित का निर्माण दो आवेशित क्षेत्रों के बीच विद्युत विभवान्तर के कारण होता है। लोडेड जोन अक्सर तूफानी बादलों में बनते हैं जो सैकड़ों या हजारों मीटर ऊंचे होते हैं। बादल में घर्षण और टकराव की घटनाओं के कारण आवेशित कण अलग हो जाते हैं और समान आवेश वाले कण एक दूसरे को पीछे हटाते हैं और विभिन्न आवेश वाले क्षेत्र बनाते हैं।
जैसे ही इन चार्ज किए गए क्षेत्रों के बीच विद्युत क्षमता का अंतर बढ़ता है, एक "स्पार्क जंप" होता है, जिससे बिजली गिरती है। स्पार्किंग तब होती है जब एक उच्च वोल्टेज विद्युत प्रवाह हवा द्वारा आयनित होता है और बिजली शुरू करने का कारण बनता है। इस करंट के वायु द्वारा आयनित होने के परिणामस्वरूप, बिजली का कोर बनता है और इस कोर से एक उच्च वोल्टेज करंट प्रवाहित होता है।
यह हाई-वोल्टेज करंट वातावरण में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसों को आयनित करता है, जिससे बिजली की दृश्य प्रकाश और ध्वनि घटना होती है। इस प्रक्रिया के दौरान बिजली गिरने से वातावरण में उच्च तापमान होता है, जो हवा के अणुओं को गर्म करता है, जिससे उच्च दबाव वाली शॉक वेव बनती है। नतीजतन, दृश्यमान और श्रव्य बिजली और गड़गड़ाहट बनती है।
लाइटनिंग और लाइटनिंग में क्या अंतर है?
बिजली और बिजली दोनों प्राकृतिक घटनाएं हैं जो विद्युत आवेशित बादलों के बीच होती हैं। हालांकि, लाइटनिंग और लाइटनिंग के बीच कुछ अंतर हैं।
बिजली एक प्रकार का विकिरण है जो वातावरण में विद्युत आवेशों के तेजी से निर्वहन के परिणामस्वरूप होता है। यह अक्सर गरज के साथ देखा जाता है और बिजली का एक दृश्य भाग होता है। बिजली धारियों के रूप में दिखाई देती है जो आकाश में घूमती हैं और आमतौर पर सफेद या नीले रंग की होती हैं।
दूसरी ओर, तड़ित तड़ित एक बहुत तेज़ विद्युत धारा है जो तड़ित के साथ उत्पन्न होती है। बिजली आमतौर पर बादलों के बीच या बादलों और जमीन के बीच होती है और यह वातावरण में विद्युत आवेशों के तेजी से निर्वहन के कारण होती है। बिजली चमकने के साथ आकाश में एक हिंसक चमकती और चीखने की आवाज होती है, और आमतौर पर एक सफेद या नीली चमक के रूप में दिखाई देती है।
संक्षेप में, बिजली एक दृश्य घटना है, जबकि बिजली एक शक्तिशाली विद्युत प्रवाह है, जिसके साथ आकाश में एक हिंसक चमकती और चीखने की आवाज आती है।
रिवर्स लाइटनिंग कैसे होती है?
इसे "रिवर्स लाइटनिंग", "हाई एल्टीट्यूड लाइटनिंग" या "एलवेन लाइटनिंग" के रूप में भी जाना जाता है, यह एक दुर्लभ घटना है जिसमें बिजली ऊपर की ओर यात्रा करती है। सामान्य बिजली के बोल्ट आमतौर पर ऊपर की ओर उठने वाले आयनित वायु चैनलों के माध्यम से नीचे जाते हैं। हालाँकि, रिवर्स लाइटनिंग वह स्थिति है जिसमें लाइटनिंग अपनी सामान्य दिशा के विपरीत ऊपर की ओर बढ़ती है।
रिवर्स लाइटिंग आमतौर पर उच्च ऊंचाई वाले क्षोभमंडलीय बादलों या समताप मंडल में होती है। इन बिजली का निर्माण सामान्य बिजली से अलग होता है और विपरीत दिशा में चलने वाले वातावरण में बिजली के क्षेत्र के परिणामस्वरूप होता है।
सामान्य बिजली में आवेशित कण जमीन से ऊपर की ओर बढ़ते हैं, जबकि विपरीत बिजली में आवेशित कण उच्च ऊंचाई से नीचे की ओर बढ़ते हैं। यह गति इसलिए होती है क्योंकि विद्युत क्षेत्र उन क्षेत्रों में विपरीत दिशाओं में चलते हैं जहां उच्च ऊंचाई पर वातावरण कम होता है।
रिवर्स लाइटनिंग आम तौर पर सामान्य लाइटिंग की तुलना में कम हिंसक होती है और इसमें कम ऊर्जा होती है। हालांकि, माना जाता है कि इन बिजली के हमलों का वायुमंडल में ओजोन और नाइट्रेट आयनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इन प्रभावों में ओजोन रिक्तीकरण और रासायनिक प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं जिनका वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव पड़ सकता है।
वास्तव में रिवर्स लाइटनिंग क्यों होती है यह अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, और इस घटना की जांच जारी है।
तुर्की में सर्वाधिक बिजली कहाँ गिरती है?
बिजली की गतिविधि के मामले में तुर्की बहुत गहन भूगोल में स्थित है। हालांकि बिजली गिरने की आवृत्ति देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग हो सकती है, यह आम तौर पर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों, पठारों और तटीय क्षेत्रों में अधिक आम है।
बिजली गिरने के मामले में पूर्वी अनातोलिया, दक्षिणपूर्वी अनातोलिया, मध्य अनातोलिया, काला सागर, भूमध्यसागरीय और एजियन क्षेत्र तुर्की के सबसे तीव्र क्षेत्रों में से हैं। इन क्षेत्रों में प्रति वर्ष बिजली गिरने की औसत संख्या 5 से 15 मिलियन के बीच हो सकती है।
उच्च पर्वतीय क्षेत्र और पठार बिजली गिरने के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में से हैं। विशेष रूप से यूफ्रेट्स, टाइग्रिस और किज़िलिर्मक नदियों के आसपास के स्टेपी क्षेत्र और टॉरस पर्वत के ऊंचाई वाले क्षेत्र बिजली गिरने के लिए अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में से हैं।
हालांकि, बिजली चमकना भौगोलिक क्षेत्रों तक सीमित घटना नहीं है। लंबी संरचनाएं, पेड़ और धातु की वस्तुएं, विशेष रूप से खुले क्षेत्रों में, बिजली गिरने का संभावित खतरा पैदा कर सकती हैं। इसलिए, यह नहीं भूलना चाहिए कि बिजली गिरने का खतरा हमेशा मौजूद रहता है और आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए।
गड़गड़ाहट कैसे बनती है?
गड़गड़ाहट एक प्राकृतिक घटना है जो बिजली के बनने के कारण होती है। बिजली वातावरण में हवा को आयनित करने वाले आवेशित कणों के कारण होती है। यह आयनित हवा बिजली के रूप में दिखने वाले उच्च तापमान और दबाव के अंतर के साथ फट सकती है।
बिजली गिरने के बाद, जिस चैनल में बिजली गिरती है, वहां की हवा अचानक गर्म हो जाती है और फैल जाती है। यह विस्तार आसपास की हवा को तेज गति से चलाता है और एक हिंसक दबाव तरंग बनाता है। यह दबाव तरंग हमारे कानों से टकराती है और गड़गड़ाहट के रूप में सुनाई देती है।
बिजली के नजदीक होने पर थंडर को अधिक तीव्रता से सुना जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वातावरण में नमी, तापमान और दबाव जैसे कारकों के आधार पर ध्वनि की गति बदलती है। बिजली की आवाज अधिक ऊंचाई पर भी सुनी जा सकती है, जहां ध्वनि की गति वातावरण में तापमान और आर्द्रता जैसे कारकों के आधार पर भिन्न होती है।
बिजली चमकने के तुरंत बाद गड़गड़ाहट सुनी जा सकती है और अक्सर बिजली चमकने के बाद आती है। हालाँकि, कभी-कभी जब बिजली दूर के स्थान पर होती है या तीव्रता में कम होती है, तो गड़गड़ाहट बहुत कम या बिल्कुल भी सुनाई नहीं दे सकती है।
हालांकि गड़गड़ाहट को कभी-कभी केवल एक शक्तिशाली ध्वनि के रूप में माना जाता है, यह वास्तव में प्रकृति में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। उदाहरण के लिए, यह वातावरण में नमी को घोलकर पौधों को बढ़ने में मदद कर सकता है और हवा को सक्रिय करके ताजी हवा प्रदान करता है।
थंडर के प्रकृति में कई फायदे हैं। यहाँ वज्रपात के कुछ लाभ दिए गए हैंः
पौधों को बढ़ने में मदद करता हैः वातावरण में विद्युत आवेशों के संतुलन के कारण थंडर हवा में नमी को घोल देता है। यह नमी पानी के उन स्रोतों में से एक है जो पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
हवा को साफ करने में मदद करता हैः थंडर हवा को गति देकर हवा को साफ करता है। खासकर शहरों में हवा में जमा प्रदूषण और गंदे कण बादलों की गड़गड़ाहट से साफ हो जाते हैं।
हवा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता हैः थंडर हवा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है। उच्च तापमान के कारण हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो सकती है, लेकिन गरज के साथ हवा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है।
तड़ित के कारण होने वाली विद्युत ऊर्जाः तड़ित विद्युत ऊर्जा है जो विद्युत आवेशों के तीव्र संचलन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा का उपयोग बिजली गिरने के कारण होने वाले पावर ग्रिड जैसे स्थानों में किया जा सकता है।
बारिश में मदद करता हैः थंडर को अक्सर बारिश का अग्रदूत माना जाता है। हवा के नम होने पर तापमान और दबाव में बदलाव से बिजली गिरने से बारिश होती है।
थंडर, प्रकृति के एक भाग के रूप में, कई लाभ हैं। हालांकि, कभी-कभी यह बहुत गंभीर हो सकता है और इसके हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। विशेष रूप से, बिजली गिरने, आग लगने और बिजली गुल होने जैसे परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।
बिजली कितने वोल्ट और कितने एम्पियर उत्पन्न करती है?
विभिन्न कारकों के आधार पर बिजली का वोल्टेज भिन्न हो सकता है। लेकिन आमतौर पर तड़ित का औसत वोल्टेज लगभग 1 लाख वोल्ट होता है। कुछ मामलों में यह मान और भी अधिक हो सकता है और बिजली गिरने के बिंदु पर वस्तु के आधार पर अलग-अलग होगा। हालांकि, उच्च वोल्टेज के अलावा, बिजली का करंट भी काफी अधिक होता है, और प्रभाव के क्षण में तात्कालिक करंट 100.000 एम्पीयर से अधिक होना संभव है। इसलिए, यह नहीं भूलना चाहिए कि बिजली लोगों, जानवरों और संरचनाओं के लिए खतरनाक हो सकती है।
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महत्त्वपूर्ण हरी खाद की परियोजना के पीछे जानबूझकर व्यय कम किया गया है, क्योंकि, यह बड़ा कठिन कार्य है। इस संदर्भ में संघ आयुक्त और संघ के अध्यक्ष का भी ध्यान आकर्षित किया गया था ।
बहुत संभव है कि किसी पंचायत संघ परिषद द्वारा लिये गये इस निर्णय की तुलना में उसके संबंध में दर्शाया गया यह अभिप्राय अधिक प्रस्तुत हो, परन्तु महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा अभिप्राय गुणवत्ता के आधार पर नहीं, परंतु गतिविधि के कारण दर्शाया गया था और इसलिए तो उसके संदर्भ में केवल ध्यान आकर्षित किया गया
ग्रामोद्योग की कार्यवाई के संबंध में नीचे दिये गये अनुच्छेद, चयनिल इन १२ संघों के अलावा तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिलों के कुछ क्षेत्रों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। यहाँ उसके लिए निश्चित क्षेत्रों का संस्थाकीय प्रबंध और ग्रामोद्योग इकाईयों की जनता के लिए सापेक्ष उपयोगिता पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। उसका कार्यान्वित की गई तकनीक के साथ कोई संबंध नहीं है।
अधिकांश पंचायत संघों ने अपनी औद्योगिक इकाइयों को अपेक्षाकृत विलम्ब से आरम्भ किया था। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि नियुक्त किये गये विस्तरण अधिकारी (उद्योग) और अन्य आवश्यक कर्मचारीगण की नियुक्ति ही देर से हुई थी। इसके अलावा, ये अधिकारी एवं कर्मचारी ही सही अर्थ में ग्रामोद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए सक्षम थे। साथ ही, अधिकांश संघों ने ग्रामोद्योगों के प्रशिक्षण एवं उसके उत्पादन के लिए कुछ औद्योगिक नीतियों को कार्यान्वित कर दिया था, परन्तु १९६१ से ६५ तक के पांच वर्ष की समयावधि के लिए दी हुई लगभग रु. ५०,००० की राशि को इन संघों ने १९६३-६४ तक ही व्यय कर दिया था ।
इनमें प्रस्थापित की गईं सबसे अधिक सामान्य परियोजनाओं में (१) सिलाई एवं कशीदेकारी की इकाई (२) बढई एवं लोहारी प्रशिक्षण और उत्पादन केन्द्र (३) मिट्टी के काम के लिए इकाइयाँ ( इन इकाइयों में से विशेषकर तिरुनेलवेली जिले में स्थित कुछ सामान्य सुविधा केन्द्र (४) चर्मउद्योग केन्द्र (५) मधुमक्खी के छत्तों के केन्द्र (६) बैलों से चलनेवाले कोल्हू के लिए सहकारी संस्थाओं के द्वारा की जानेवाली सहायता और महिलाओं के लिए धान कूटने की इकाइयाँ और रस्सी बनाने की इकाइयों का समावेश होता है।
इसके अतिरिक्त संघों के द्वारा कुछ परियोजनाएँ चलाई जाती हैं और मद्रास खादी एवं ग्रामोद्योग संघ भी कुछ परियोजनाएँ चलाता है। इसके साथ ही संघ अपने जिलास्तरीय कार्यालयो द्वारा कई ग्रामोद्योगों को सहायता देता है।
पंचायत संघों के द्वारा कार्यान्वित किये जाने वाले कार्यक्रमों से लाभान्वित होनेवालों की संख्या बहुत सीमित है। जैसे कि सिलाईकला की एक इकाई दो-तीन वर्षों में ३० से ४० महिलाओं को प्रशिक्षित करती है। इसके लिए एक वर्ष का पाठ्यक्रम है। इसलिए कई बार एक ही स्थान पर यह पाठ्यक्रम चलाया जाता है। इसके उपरांत, यह प्रशिक्षण केन्द्र छोड़ जाने के पश्चात् महिलाएँ उनके द्वारा लिए गए प्रशिक्षण का कितना लाभ उठा पाई हैं इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई अनुवर्ती कार्यक्रम भी नहीं है। उनमें से कुछ महिलाएँ इतनी गरीब होती हैं कि उनके पास सिलाई की मशीन खरीदने के पैसे नहीं होते हैं और इच्छा होने पर भी वे खरीद नहीं पाती हैं। इसलिए ऐसी महिलाएँ और किशोरियों के लिए सिलाई की मशीनें खरीदने में कुछ आर्थिक सहायता का प्रबंध होगा तभी यह कार्यक्रम सार्थक हो सकता है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के व्यापक आयाम उसका शैक्षणिक मूल्य है। सिलाई एवं कशीदेकारी के इन प्रशिक्षण केन्द्रों को अधिक स्वतंत्रता और सुविधाएँ प्रदान की जाएँ तो ये प्रशिक्षार्थीयों और प्रशिक्षक के बीच पारस्परिक शिक्षा एवं विचारों के आदान प्रदान के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन सकते हैं। इस स्तर पर जाने अनजाने ही कुछ सीमा तक उसके द्वारा शिक्षा का प्रसार होता ही है। इसलिए अगर प्रशिक्षकों को पाठ्यक्रम के संदर्भ में अधिक स्वतंत्रता एवं सुविधाएँ दी जाएँ तो ये केन्द्र ग्रामीण जीवन में अधिक योगदान दे सकेंगे।
इसी प्रकार बढई एवं लुहारी काम के लिए २० से ३० युवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है परन्तु उनके लिए रोजगारी के अवसर अत्यन्त सीमित होते हैं। इस समय अधिकांश केन्द्र, पंचायत संघों के कार्यालय एवं पंचायतों के द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय आदि संस्थाओं के लिए उपस्कर बनाते हैं। प्रशिक्षण के लाभ या रोजगारी और सेवा की सुविधाएँ उस वस्ती तक ही सीमित रहती हैं। साथ ही स्थानिय टैकनोलोजी को सर्वस्पर्शी रूप में विकसित करने में भी इन केन्द्रों का योगदान सीमित पाया गया है। ऐसी ही स्थिति चमड़े कमाने के औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र या अन्य उद्योगों के लिए खोले गये प्रशिक्षण केन्द्रों के संदर्भ में बनी हुई है।
इसके साथ यह स्मरण में रखना चाहिए कि मिट्टी के कामका उद्योग, कुम्हारों
के लिए सामान्य सुविधाकेन्द्र, बैलों से चल रहे कोल्हू के लिए सहकारी संस्थाएँ और धान कूटने के उद्योगों की समस्याएँ भी भिन्न होती हैं। कुछ सहकारी संस्थाओं को सुचारु ढंग से चलाने के लिए कार्यालय होते हैं। हिसाब के बहीखाते समुचित रूप से तैयार किये जाते है। ऐसा होते हुए भी इन संस्थाओं के सदस्यों मे या प्रशिक्षार्थियों मे अपनेपन की भावना का विकास नहीं हो पाया है। इसलिए ये सभी केन्द्र यंत्रवत् कार्य करनेवाले ही बने रहे हैं। ये केन्द्र कारीगरों के सहायता अवश्य करते हैं, परन्तु इसके पश्चात् वे कारीगर वैयक्तिक रूप से तो उनके दृष्टिपथ से दूर हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप कोई संस्था या सहकारी सोसायटी बड़ी संख्या में प्रशिक्षार्थी तैयार करती है तो भी, वैयक्तिक रूप से तो, कारीगर की स्थिति दारुण ही बनी रहती है। ऐसी स्थिति कोल्हू तेल उत्पादक इकाइयों की सहकारी संस्थाएँ, धान कूटनेवाली सहकारी संस्थाएँ आदि में अधिक पाई जाती है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि जो व्यक्ति ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र चलाते हैं या उन पर निगरानी रखते हैं वे अपने दायित्व को केवल संख्या की दृष्टि से और यांत्रिक रूप से देखते हैं। उन्हें केवल अपने दफ्तर और आलेख से मतलब रहता है। इसके अलावा जब वे प्रतिव्यक्ति आय आदि की गिनती करते हैं (जो उन्हें बार-बार करते रहना होता है) तब वे असंबद्ध जानकारी और मनगढंत बातों के आधार पर निष्कर्ष तैयार करते हैं और उसमें भी कई प्रकार की गलतियाँ करते रहते हैं। इसलिए इन गतिविधियों के द्वारा जिस लक्ष्य को सिद्ध करने का प्रारंभिक उद्देश्य था इससे बिल्कुल विपरीत ही परिणाम देखने को मिलते हैं। इसके पीछे प्रमुख उद्देश्य तो ग्रामोद्योग द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को सार्थक रोजगारी प्रदान करने का था।
इसके अलावा रोजगारी देनेवाले उद्योगों को अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे धान कूटने के उद्योग में कची सामग्री की कमी, क्योकि इस समय तो चावल पर ही कई क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण है। उधर मिट्टीकाम के उद्योगों के सामने बिक्री की समस्याएँ हैं, जब कि ( हाथ से बने) कागज उद्योग को सरकारी नियंत्रणों की समस्या सताती है। तेल के देशी कोल्हू के संदर्भ में भी सरकार का एक नियम ऐसा है कि अगर कोल्हू की सहकारी संस्थाएँ निर्धारित संख्या से (बीस से अधिक) कर्मचारी रखती हैं तो उन्हें बिक्रीकर देना पड़ता है। इसका नतीजा ७यह रहता है कि ये संस्थाएँ कानून में संशोधन करने या कर देने की बजाय निश्चित सीमा से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर, सीमित संख्या में ही कर्मचारी रखती हैं।
संक्षेप में, कारण कोई भी हो, पंचायत संघ ग्रामोद्योग में अधिक रुचि नहीं रखते हैं या उस संदर्भ में नेतृत्व लेकर आरंभ भी नहीं करते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनकी यह मान्यता रही है कि उन्हें निश्चित परियोजना मे दर्शाए गये दायित्व से अधिक कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। कई बार ऐसा भी होता है कि सिलाइ वर्ग के कार्यक्रम (सरकार द्वारा) निश्चित की गई समयावधि से अधिक समय के लिए भी चलाए जाते हैं तब उसे रोकने के अधिकार का उपयोग नहीं किया जाता। परन्तु तकनीकी या निरीक्षण विभाग के सत्ताधीश उसके प्रति हीनभावना से देखते हैं। यह स्थिति दूर होनी चाहिए। इसके स्थान पर जिन ग्रामपंचायत संघों के पास अधिक धनराशि है और वे अपने आप ऐसे कार्यक्रम चलाते हैं तो उन्हें आगे बढ़ने के लिए समुचित अवसर एवं प्रोत्साहन देना चाहिए।
अन्य गतिविधियां
इसके साथ ही पंचायत संघ अन्य कुछ गतिविधियां भी चलाते हैं। यथा, महिलाएँ और वचों के लिए कल्याणकारी परियोजनाएँ, सामाजिक शिक्षा एवं ग्रामीण रुग्णालय तथा प्रसूतिकेन्द्र, इसके लिए सरकारी अनुदानों से प्रति वर्ष रु. १,०००/या रु. ५,०००/- तक की राशि भी दी जाती है। इसके अलावा कई संघ, अपनी अतिरिक्त केन्द्रीय धनराशि से भी इस प्रकार की गतिविधियों के लिए धनराशि का प्रबंध करते हैं। कई संघ अब तक ऐसी एक या दूसरी गतिविधि करते ही रहते हैं। यद्यपि इन अन्य कार्यों के लिए धन का प्रबंध बहुत कम या आंशिक होता है। इसका एक कारण यह रहता है कि उनके पास फुटकर या निश्चित किये गये कार्यों को छोड़ धन का प्रबंध नहीं होता है जब कि उधर किसी निश्चित कार्य के लिए व्यय के संदर्भ में सरकार की ओर से घोषित विशेष सूचनाओं का पालने अनिवार्य होता है।
जिला विकास परिषद
पंचायतों के सघन अध्ययन के लिए चयनित पंचायत संघों से पूर्व रामनाथपुरम् के एक ही विकास जिले से चयन किये गये संघों से तीन पंचायते हैं। इसे छोड़कर अन्य सभी नौ पंचायत संघ तंजावुर, कोयम्बतूर एवं उत्तरी आर्कोट जिले की दोनों ओर स्थित है।
एक विशेष नियम द्वारा जिला विकास परिषदों का गठन हुआ है फिर भी मूलतः े परामर्श देनेवाल एवं अभिशंसा करनेवाली संस्थाएँ हैं। सामान्य रूप से इस परिषद
की बैठक प्रति दो मास आयोजित होती है और उसके अध्यक्ष पद पर जिलाधीश रहते हैं। यही समूह कुछ बातों के संदर्भ में प्रति छह मास विस्तृत चर्चा करते हैं। प्रत्येक परिषद में विभिन्न विषयों के लिए एक प्रवर समिति होती है, जो इस प्रकार है ( १ ) खाद्य एवं कृषि (२) उद्योग एवं श्रमिक (३) लोक निर्माण (४) शिक्षा (५) स्वास्थ्य एवं कल्याण (६) सामान्य कार्य ।
इन समितियों के सदस्यों का निर्वाचन जिला विकास परिषद द्वारा होता है। सामान्य कार्यों की समिति का अध्यक्षपद जिला समाहर्ता संभालते हैं। अन्य समितियों के अध्यक्ष अशासकीय व्यक्ति होते हैं। पूर्व में ( १९६०-६१ तक) विधान परिषद या विधानसभा के कोई सदस्य अध्यक्ष पद पर रहते थे, परंतु इस समय प्रति वर्ष निर्वाचित इन समितियों के अध्यक्ष ही अध्यक्ष पद का दायित्व निभाते हैं। इन प्रवर समितियों की बैठक जिला विकास परिषद की बैठक से पूर्व आयोजित होती है और इस बैठक में चर्चित विषयों को जिला विकास परिषद की बैठक में प्रस्तुत किया जाता है। जिला विकास परिषद की बैठक में विचार विमर्श के लिए निश्चित विषयों की संख्या लगभग ३० से ४० रहती है। इन विषयों के अलावा कुछ सदस्यों द्वारा कुछ प्रश्न उठाएँ जाते हैं। उनकी संस्था प्रत्येक बैठक और प्रति संघ परिषद में कम या अधिक रहती है। इन प्रश्नों के उत्तर जिलाधीश, अध्यक्ष या संबंधित अधिकारी देते हैं।
जिला विकास परिषद की कार्यवाही दो भागों में होती है। (अ) सरकार द्वारा निश्चित की हुई और (ब) अशासकीय
सरकार द्वारा निश्चित की गई कार्यवाही में प्रमुखरूप से नियोजित विकास के लिए परियोजनाएँ, उसके लक्षांक और उसकी समीक्षा को समाविष्ट किया जाता है। सामान्यरूप से जिला विकास परिषद की बैठक दो से तीन घंटे चलती है, परन्तु कई बार सारा दिनभर भी चलती है। रामनाथपुरम् जैसे जिलों में प्रमुखरूप से ये बैठके में ये क्रमशः रुप से विभिन्न संघों के प्रधान कार्यालयों में आयोजित होती हैं। जिलाधीश के निजी सचिव (पंचायत विकास) उस जिले की परिषद के प्रमुख कार्यवाहक का दायित्व निभाते हैं। उनके अधिकार में पर्याप्त संख्या में कर्मचारी काम करते हैं।
पश्चिम संजावुर जिले में १९६२-६३ और १९६३-६४ (दिसम्बर ३१ ) की समयावधि में पारित विषयों के संदर्भ में २५ फरवरी, १९६४ के दिन एक सदस्य द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर इस परिषद में हो रही चर्चा का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
प्रश्न : जिला विकास परिषद में अब तक कितने प्रस्ताव पारित किये गये हैं? कितने प्रस्तावों के कार्य संपन्न हुए हैं ? कितने प्रस्ताव सरकार में अनिर्णित पड़े हैं?
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प्राचीन काल में, तिलचट्टे का सम्मान के साथ इलाज किया जाता था। बलेन कीटों को घर में समृद्धि का संकेत माना जाता था। आजकल, स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है। हर कोई जानता है कि खतरनाक कीट न केवल भोजन को खराब करते हैं, बल्कि हानिकारक बैक्टीरिया और रोगाणुओं को ले जाने में भी सक्षम हैं। एक तिलचट्टा कान में पड़ सकता है, एक व्यक्ति को काट सकता है और यहां तक कि विद्युत तारों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
कीड़ों को प्राप्त करने के लिए सबसे दुखद बात हैआधी परेशानी, आपको उनकी संतानों का ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा, कीट के विनाश के कुछ हफ्तों के बाद, मादा द्वारा छिपाए गए अंडे से एक कॉकरोच का लार्वा बाहर निकल जाएगा। और सारी समस्याएं खत्म होने लगेंगी।
कॉकरोच के लार्वा क्या दिखते हैं?
सभी "बालेन सबोटर्स" विकास के तीन चरणों से गुजरते हैंः
- अंडा;
- अप्सरा;
- परिपक्व व्यक्ति।
अंडे वयस्क मादा अपने आप को उनके नीचे ले जाती हैपरिपक्वता। फिर उन्हें एकांत स्थान पर रख देता है (उदाहरण के लिए, बेसबोर्ड के तहत)। कुछ हफ्तों बाद क्लच से अप्सराएं निकलती हैं। ये कॉकरोच के लार्वा हैं। फोटो में दिखाया गया है कि युवा कीट सफेद पैदा होते हैं, लेकिन कुछ घंटों के बाद वे काले पड़ जाते हैं।
निम्फ वयस्क कीटों के साथ रहते हैं। पोषण वे साझा करते हैं, व्यवहार समान है। फर्क सिर्फ इतना है कि वे प्रजनन नहीं करते हैं।
"रसोई हमलावरों" की जनसंख्या कम हो सकती है,ठीक युवा पीढ़ी को नष्ट कर रहा है। ऐसा करने के लिए, आपको यह जानना होगा कि तिलचट्टे का लार्वा कैसा दिखता है। यह बहुत सरल है। वे वयस्कों की तरह दिखते हैं। केवल अप्सराएँ छोटी होती हैं और उनका रंग गहरा होता है। और वृद्धि के दौरान, वे अपने खोल को फेंक देते हैं, अर्थात 5-6 बार पिघलाते हैं।
2-3 महीने की उम्र में कॉकरोच वयस्क हो जाते हैं, यह उनकी प्रजातियों पर निर्भर करता है।
हमारे अक्षांशों में, ज्यादातर अक्सर लाल तिलचट्टे पाए जाते हैं- प्रेरक। हालांकि शुरू में यह उष्णकटिबंधीय कीड़े हैं। उनके पास पंख भी हैं। क्या प्रसन्नता - बेलन कीट नहीं उड़ते हैं। ऊंचाई से गिरने पर अधिकतम वे अपनी मदद से संतुलन बना सकते हैं।
लाल तिलचट्टा के लार्वा में पंख और मूंछें भी होती हैं। वैसे, यह मूंछ है जो कीड़े को बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करने की अनुमति देता है। इस स्पर्शनीय अंग के क्षतिग्रस्त होने के बाद, कीट पूरी तरह से जीवित नहीं रह सकता है।
वयस्क आमतौर पर 1-1.5 तक बढ़ते हैंलंबाई में सेंटीमीटर। क्रमशः, निम्फ्स और भी छोटे होते हैं। यह वास्तव में लघु आकार है जो "मूंछ" को मानव आंखों से जल्दी से छिपाने की अनुमति देता है। प्लिंथ, दीवार में दरार, वेंटिलेशन, स्टोव के नीचे की जगह - लाल कीटों के लिए सही जगह।
एक वयस्क व्यक्ति की तरह, तिलचट्टा लार्वा भोजन के मलबे, रोटी और चीनी के टुकड़ों पर फ़ीड करता है। दिन के दौरान, कीट आश्रय में "बाहर बैठता है" और रात में "शिकार" पर जाता है।
वर्तमान में, लाल कॉकरोच सभी महाद्वीपों पर आम हैं। उनके अस्तित्व के लिए मुख्य स्थिति एक सकारात्मक तापमान है।
बहुत कम आवासीय क्षेत्रों में अक्सर काले तिलचट्टे होते हैं। उन्हें अमेरिकी या रसोई भी कहा जाता है।
ये कीड़े व्यावहारिक रूप से प्रशिया से दोगुने बड़े हैं। वे कोयले के रंग में भी भिन्न होते हैं। काले तिलचट्टे का लार्वा भी एक लाल रंग की अप्सरा का अधिक होता है।
"अमेरिकियों" के छोटे पंख भी होते हैं। किशोर और महिलाएं उनका उपयोग नहीं करते हैं। नर, बदले में, लंबे पंख होते हैं, वे उन्हें लंबी दूरी पर कूदने में मदद करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि काले तिलचट्टे को मारना आसान हैप्रासाकोव की तुलना में। मादा, अंडे देती है, संतानों को लावारिस छोड़ देती है। क्लच से दो सप्ताह के बाद लार्वा दिखाई देना चाहिए। यदि इस समय के दौरान अंडे अन्य प्रकार के तिलचट्टे पाते हैं, तो वे "रिश्तेदारों" पर दावत देते हैं।
वैसे, लाल कीड़ों की तरह काले कीड़े, घर के अंदर गुणा करना पसंद करते हैं। हालांकि वे प्रकृति में रह सकते हैं। मुख्य बात यह है कि तापमान 0 डिग्री से नीचे नहीं जाता है।
एक कीट से कितने लार्वा की अपेक्षा की जाती है?
लोग कहते हैंः "मैंने एक तिलचट्टा देखा, जिसका मतलब है कि उनमें से कम से कम दस हैं।" यह डराने वाले बेलन कीटों का डरावना गुणन है। समस्या के पैमाने को समझने के लिए, आपको प्रश्न का उत्तर जानने की आवश्यकता हैः कॉकरोच एक तरफ कितने लार्वा सेट करता है?
सटीक राशि की गणना करना असंभव है। औसत जीवन स्तर के साथ, क्लच में अप्सराओं की संख्या अंडों की संख्या के अनुरूप होगी। यदि यह महिला को लगता है कि खरीद के लिए स्थितियां प्रतिकूल हैं, तो वह पहले से संतानों के साथ कैप्सूल छोड़ देती है।
अच्छे तापमान और पर्याप्त पोषण के साथ, कई कीट लार्वा अंडे में परिपक्व हो सकते हैं। इसके अलावा, तिलचट्टे खुद की संतानों की संख्या को विनियमित करने में सक्षम हैं।
चंगुल की संख्या कीट के प्रकार पर निर्भर करती हैः
- Prusaks एक समय में 25-50 अंडे देते हैं, अपने जीवन के दौरान वे 12 बार संतानों को छोड़ने में सक्षम होते हैं।
- काले तिलचट्टे ने लगभग 2 गुना कम अंडे काट लिए - 12-18, लेकिन 22 चंगुल उनके जीवन के लिए छोड़ दिए जाते हैं।
सबसे खतरनाक कीट एक गर्भवती महिला है।कीट। खुद को मरते हुए, वह अंडे को फेंकने का प्रबंधन करती है, जिसे नष्ट करना लगभग असंभव है। एक और दुखद तथ्य यह है कि एक तिलचट्टा लार्वा एक पहले से ही स्वतंत्र व्यक्ति में पैदा होता है। इस प्रकार, रसोई तोड़फोड़ के खिलाफ लड़ाई एक अंतहीन मैराथन में बदल जाती है।
क्यों तिलचट्टे इतने दृढ़ हैं?
वैज्ञानिकों का मानना है कि 350 मिलियन साल पहले पृथ्वी पर कॉकरोच दिखाई देते थे। और, शायद, जितने अधिक जीवित रहेंगे।
कीटों की जीवन शक्ति को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा समझाया गया हैः
- विपरीत-लिंग वाले तिलचट्टों की दौड़ जारी रखने के लिए, एक बार संभोग करना पर्याप्त है। पुरुष यौन कोशिकाओं को एक महिला के शरीर में 4 साल तक संग्रहीत किया जा सकता है।
- पानी के बिना, कीट एक सप्ताह रह सकता है, भोजन के बिना - एक महीना। भागदौड़ भरी जिंदगी के लिए, नल से पर्याप्त बूंदें मिलेंगी और वे साधारण कागज या कार्डबोर्ड से खा सकते हैं।
- लगभग 40 मिनट में एक कॉकरोच सांस नहीं ले सकता है।
- कीट -5 डिग्री तक तापमान पर रह सकता है।
- एक तिलचट्टा रहने और एक संक्रमण से पीड़ित होने में सक्षम है, भले ही उसका सिर फटा हो। ऐसे व्यक्ति प्यास और भूख से मर जाते हैं।
- विकिरण उनके लिए भयानक नहीं है। प्राचीन कीटों में बहुत धीमी कोशिका विभाजन चक्र होता है।
जिसने भी कभी कॉकरोच को पकड़ने की कोशिश की हो,याद है कि यह एक बहुत तेजी से किया जा रहा है। और कोई आश्चर्य नहीं कि कीड़े लगभग 5 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलते हैं। अन्य बातों के अलावा, वयस्कों ने अपने जीवन के अनुभवों को अपने रिश्तेदारों के साथ साझा करना सीखा है।
तस्वीर और भी निराशाजनक हो जाती है अगर हम याद रखें कि अंडे नष्ट करना लगभग असंभव है। न तो ठंड और न ही रसायन उन्हें लेते हैं।
यह पता चला है, आपको पहले वयस्कों से छुटकारा पाने की आवश्यकता हैव्यक्तियों, 2-3 सप्ताह तक प्रतीक्षा करें जब तक कि अंडों से अप्सराएं न निकल जाएं। और इसके बाद ही युवा पीढ़ी के साथ लड़ाई शुरू करते हैं। यह पता लगाना आवश्यक है कि तिलचट्टे और वयस्कों के लार्वा से कैसे छुटकारा पाया जाए। कई विधियाँ हैं।
सबसे पहले इसे आजमाने की सलाह दी जाती हैविभिन्न कीट जाल। यह 2-3 आउटपुट वाला एक बॉक्स हो सकता है। एक चारा अंदर रखा गया है, कीट इसे खाता है, खुद को संक्रमित करता है, अपने रिश्तेदारों को चलाता है और पहले से ही कॉलोनी में मृत संक्रमण फैलता है।
चिपचिपा और विद्युत जाल केवल उन कीड़ों को नष्ट कर सकते हैं जो उनमें चलते हैं। हालाँकि, इन विधियों को सबसे सुरक्षित माना जाता है।
कॉकरोच के खिलाफ स्प्रे के बारे में क्या कहा जा सकता है। रसायन का उपयोग केवल तभी किया जा सकता है, जब कमरे में बच्चे और पालतू जानवर न हों। आपको पहले से दस्ताने, एक मुखौटा और काले चश्मे पहनकर अपनी सुरक्षा करनी चाहिए।
जहरीले जैल और पाउडर प्रभावी माने जाते हैं। एक हफ्ते से भी कम समय में निम्फ गायब हो जाते हैं। इस मामले में, प्रसिद्ध क्रेयॉन बड़ी संख्या में तिलचट्टे और उनके लार्वा से छुटकारा नहीं पा सकते हैं।
अल्ट्रासोनिक निशान अच्छी तरह से मदद करते हैं। लोग और जानवर उन्हें नहीं सुनते, लेकिन कीड़े अल्ट्रासाउंड को बर्दाश्त नहीं करते हैं। हालांकि, ऐसे फंड काफी अधिक हैं।
जो लोग स्टोर "रसायन विज्ञान" का उपयोग करने से डरते हैंलोकप्रिय तरीके बचाव में आएंगे। यह पता चला है कि तिलचट्टा लार्वा और वयस्क कीट एक साधारण कैमोमाइल के फूलों को सहन नहीं करते हैं। संयंत्र को पाउडर के एक राज्य के लिए पीसने और अपार्टमेंट के चारों ओर तितर बितर करने की सिफारिश की जाती है।
अपार्टमेंट को फ्रीज करने के लिए एक अधिक कट्टरपंथी तरीका होगा। -5 डिग्री से नीचे के तापमान पर तिलचट्टे मर जाते हैं।
इसके अलावा, कीटों में गंध की एक विकसित भावना होती है। वे गैसोलीन और अमोनिया की गंध को बर्दाश्त नहीं करते हैं। दहनशील तरल को स्किर्टिंग और कोनों पर लगाया जा सकता है। और फर्श को धोने के लिए तरल अमोनिया।
कई पीढ़ियों के लिए, लार्वा और वयस्क बोरिक एसिड के साथ समाप्त हो जाते हैं। यह एक प्रभावी और सस्ता तरीका है। अपार्टमेंट के लिए लगभग 100 ग्राम एसिड की आवश्यकता होगी।
पाउडर सिंक के पास और प्लिंथ की परिधि के आसपास बिखरे हुए हो सकते हैं। संक्रमित तिलचट्टा न केवल खुद मर जाएगा, बल्कि कॉलोनी से कई रिश्तेदारों को संक्रमित करने का समय भी होगा।
सच है, कीड़े जल्दी से महसूस करते हैं कि यहपाउडर से बचना चाहिए। इसलिए, हमारी दादी और महान दादी अपने समय में एक छोटी सी चाल के साथ आए। उन्होंने चिकन योलक्स लिया, उन्हें बोरिक एसिड पाउडर के साथ मिलाया और उनमें से छोटे गोले बनाए। उज्ज्वल नए चारा ने अप्सराओं और तिलचट्टों को आकर्षित किया, कीड़े "भोजन" तक चले गए और मर गए।
बेशक, आदर्श रूप से आपको घर को कॉल करना चाहिए।पेशेवरों, वे पूरी तरह से कमरे कीटाणुरहित करने में सक्षम होंगे। दुर्भाग्य से, इन विधियों में से कोई भी गारंटी नहीं देता है कि तिलचट्टे वापस नहीं आएंगे, लेकिन वे उन्हें थोड़ी देर के लिए कीटों से राहत देंगे।
बिन बुलाए मेहमानों को घर में आने से रोकने के लिए, निवारक उपायों का पालन करने की सिफारिश की जाती हैः
- अपार्टमेंट को साफ रखें;
- मेज पर खाना-पीना मत छोड़ो;
- सामान्य सफाई करना (छिपी हुई जगहों का निरीक्षण करना)।
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जर्मन राज्य के इतिहास हमेशा चमकदार और जीवंत किया गया है। एक शासक एक और ने ले ली है, पुराने सिक्के नए और प्रासंगिक के साथ प्रतिस्थापित किया गया। यह जर्मनी और उसके सिक्कों के बारे में राज्य के इतिहास के संदर्भ में नहीं बात करने के लिए गलत होगा।
सिक्के जर्मनी पाँच ऐतिहासिक कालों में विभाजित किया जा सकता हैः
- जर्मन साम्राज्य (1971-1918)।
- Weimar गणराज्य (1919-1933)।
- तीसरा रैह (1933-1945)।
- GDR (1949-1990)।
- डे (1949-1990)।
इन अवधियों के सभी सिक्के असली मुद्राशास्त्री के लिए मूल्य के हैं। कलेक्टरों, सिक्के एकल अवधि या जर्मनी के क्षेत्र इकट्ठा करने के लिए इतना है कि अंततः एक पूर्ण संग्रह कर दिया प्रयास करें।
जर्मन सिक्कों की कीमतें बहुत अधिक नहीं हैं। यह भी नौसिखिया मुद्राशास्त्री संग्रह में भाग लेने की अनुमति देता है। जर्मनी के इतिहास की सबसे अधिक मूल्यवान धन - एक सिक्का अवधि तीसरा रैह, की जो अधिकृत क्षेत्रों में तैयार किए गए।
जर्मनी के इतिहास की अवधि 1918 से पहले - एक साम्राज्य। अपने अस्तित्व के 47 वर्षों में, सिक्के लाखों ढाला गया था। वे सब उनके क्षेत्राधिकार, बराबर कीमत घटक और सामग्री जिसमें से वे बना रहे हैं में काफी अलग हैं। इन संकेतकों से सीधे जर्मन सिक्कों की कीमत पर निर्भर हैं।
सिक्के और 1918 तक जर्मनी के टिकटों ड्यूक्स कि तस्वीरों से ढाला 2-3-5 टिकटों के अंकित मूल्य। रिवर्स सभी सिक्के के लिए एक ही था। यह शाही ईगल चित्रित किया गया था जर्मन साम्राज्य की और पाठ DEUTSCHES रेक।
सिक्के जर्मनी 1918 से पहले, सोने और चांदी 900 कैरेट से बना। उनमें से सबसे मूल्यवानः
- 1901 में 2 ब्रांड (चांदी);
- 1878 (सोना) में 10 ब्रांडों;
- 20 अंक 1872 (सोना)।
यह उल्लेखनीय है तीसरे सिक्का एक वजन 9 ग्राम और 100 प्रतियां प्रकाशित संस्करण है। इस सिक्के और बाजार में अपनी उच्च कीमत के लिए एक उच्च मांग इंगित करता है।
तीसरा रैह (1933-1945 gg। ) का इतिहास नाटक और ऐतिहासिक घटनाओं की तीव्रता से भरा है। तुम पैसे और ऐतिहासिक संदर्भ में ब्याज के बिना उनके मूल्य नहीं ले सकते।
मुद्राशास्त्री का अनुमान तीसरे रैह के सिक्के बहुत ही उच्च और है महंगा। सिक्के नाजी जर्मनी के Pfennig कहा जाता है।
पहले सिक्का 1933 में हिटलर द्वारा जारी किए गए - एक 4 reyhspfenniga। यह जर्मन ईगल और नए नाजी स्वस्तिक के लिए मानक ढाला। वह 1945 तक जर्मन पैसा शोभा।
1933 में, यह जर्मन चांदी से टकसाल पैसे रह गए, और सिक्कों के लिए सस्ता धातुओं का इस्तेमाल शुरू किया। हालांकि, जर्मन सोने के सिक्कों की minting पर नहीं दिया है। तीसरा रैह के दौरान यही कारण है कि सोने के सिक्कों सिक्का लेनेवालों के लिए महान मूल्य के हैं। वे सीमित मात्रा में कर रहे हैं और शुद्ध सोने के 5 ग्राम के एक औसत वजन की है।
वहाँ एडॉल्फ हिटलर के अग्रभाग पर तीसरा रैह की छवि के साथ बहुत ही दुर्लभ सिक्के हैं।
एक बार जब समग्र जर्मन राज्य क्योंकि राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सैन्य संघर्ष का विभाजित किया गया था। अब, पश्चिम और पूर्वी जर्मनी वहाँ कुछ राजनीतिक और मौद्रिक थे। जीडीआर के राज्य क्षेत्र पर ब्रांड की रोजमर्रा की जिंदगी में शुरू किए गए थे, और जर्मनी में - Pfennig।
जर्मनी की मौद्रिक इतिहास (1949-1990 gg। ) 1949 में मौद्रिक सुधार के साथ शुरू कर दिया। Pfennig गणराज्य के मुख्य सिक्का के रूप में अपनाया गया था।
सबसे मूल्यवान सिक्कों जीडीआर के इतिहास 1949 में जारी किए गए थे। यह पहली और स्मारक आइटम, सीमित मात्रा में ढाला था।
जर्मनी में सर्वाधिक सक्रिय सिक्का 1972 के ओलम्पिक खेलों साल को समर्पित किया गया। वे एक स्मारिका के रूप में और प्रियजनों के लिए उपहार के रूप में खरीदे गए थे। यह एक बूम और मुद्राशास्त्री और कलेक्टरों के लिए गतिविधि के शिखर पर था। सिक्का सक्रिय रूप से अंतर पर न केवल गणराज्य के राज्य क्षेत्र पर, बल्कि विदेशों में भी।
1949 से पहले, जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य के राज्य क्षेत्र पैसे रीच्समार्क, ranentnye ब्रांडों और मित्र देशों की कमान के रूप में प्रस्तुत किए गए। यह गलत हो अगर राष्ट्रीय मुद्रा इकाइयों के तीन दैनिक उपयोग में एक दूसरे के बराबर हैं जाएगा। यह असुविधाजनक और अव्यावहारिक है।
मौद्रिक सुधार 1948 में किया गया था, जो करने के लिए जीडीआर के राज्य क्षेत्र केवल जर्मन मार्क और Pfennig के लिए प्रासंगिक थे अनुसार। जीडीआर धारावाहिक उपयोग के लिए कीमती धातुओं (सोना और चांदी) की टकसाल सिक्के से इनकार कर दिया। कीमती धातुओं केवल स्मारक सिक्के जर्मनी ढाला गया था।
डीएम जीडीआर बार एक उच्च मूल्य नहीं है। 20 रूबल सिक्के के शुरू कीमत। इस मूल्य निर्धारण नीति भी नौसिखिया मुद्राशास्त्री इकट्ठा करने में लगे हुए किया जाएगा।
की सबसे महंगी सिक्का जीडीआर - 1981 में 10 ब्रांड है, जो सिक्के श्रृंखला ढालने के लिए एक जांच के रूप में इस्तेमाल किया गया है। यह "बर्लिन टकसाल के 700 वीं वर्षगांठ" को समर्पित किया गया और शुद्ध चांदी से बना है।
जर्मनी के इतिहास में, वहाँ क्षणों है कि न केवल पुस्तकों के पन्नों में, लेकिन यह भी जनता के पैसे पर सन्निहित हैं कर रहे हैं।
मुख्य रूप से जर्मन स्मारक सिक्का के निशान बड़ी मात्रा में उत्पादन नहीं कर रहे हैं। अपवाद सिक्के कि 1972 म्यूनिख ओलंपिक के लिए ढाला गया है। तब के बारे में 30 000 हजार प्रतियां जारी किए गए। इस प्रचार और बड़े पैमाने पर स्मारक सिक्के दौर को देखते हुए कीमत कम है।
स्मारक सिक्के जर्मनी - सस्ती और मुद्राशास्त्री की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए सुलभ।
- 20 टिकटों हेनरी के जन्म की 100 वीं वर्षगांठ के लिए 1971 में जारी किए हैं। मूल्य - 300-400 रूबल।
- 20 टिकटों फ्रेडरिक वॉन शिलर के सम्मान में 1972 में जारी किए हैं। मूल्य - 300-400 रूबल।
- 20 टिकटों ओटो Grotevolya के सम्मान में 1973 में जारी किए हैं। मूल्य - 300-350 रूबल।
जर्मनी स्मारक सिक्के जर्मनी के इतिहास और वर्तमान समय के निजी संग्रहकर्ताओं द्वारा मांग है।
टिकटों - लाभ या एक शौक?
कलेक्टर - यह हमेशा एक है जो खुशी की खातिर अपनी ही बात करता है और बिना किसी स्वार्थ के नहीं है। कौन प्राचीन सिक्कों की एकत्रित कर रहा है - उपयुक्त व्यवसाय प्रकारों को सक्रिय रूप से इंटरनेट पर विकसित कर रहे हैं में से एक है।
यह प्रतिभूतियों में न केवल निवेश करने के लिए फैशनेबल है (लंबे समय में, वे पैसे बाद में लाना होगा), लेकिन सिक्कों में। उनके लिए कीमत केवल हर गुजरते साल के साथ में वृद्धि होगी - यह एक तथ्य यह राज्य के लिए सुरक्षित है।
के सोचते हैं। ट्रायल सिक्का निशान तीसरा रैह सीमित संस्करण में प्रकाशित किए गए थे और महान मूल्य है। फिलहाल, वहाँ की उम्मीद नहीं है अवसरों फिर तीसरा रैह सिक्कों की अतिरिक्त परीक्षण अवधि nachekanit। वे केवल और अधिक महंगा हो जाएगा। इन सिक्कों के मालिकों केवल अमीर हो जाएगा।
सिक्के, डाक टिकट जर्मनी अब - यह न सिर्फ एक शौक है, बल्कि भविष्य में एक उचित निवेश है।
हम जर्मनी की मुश्किल ऐतिहासिक पथ और बैंक नोट है, जो राज्य के साथ जुड़े रहे पर चर्चा की। जर्मनी के गतिशील इतिहास आप बाजार है कि घटना या महान व्यक्ति के सम्मान में ढाला गया पर विशेष और स्मारक सिक्के की एक बड़ी संख्या को देखने के लिए अनुमति देता है। वे एक किफायती मूल्य और गुणवत्ता के संबंध में सिक्का लेनेवालों के बीच अच्छा मांग है। इंटरनेट पर, आप उन साइटों, जो खरीद सौदे को पूरा करने का अवसर प्रदान "सिक्के जर्मनी" कहा जाता है के दर्जनों देख सकते हैं। इस बाजार में जर्मन सिक्कों की प्रासंगिकता को दर्शाता है।
आधुनिक जर्मन यूरो-सिक्के नहीं कम गुणवत्ता के हैं। अब तेजी से सिक्का लेनेवालों आधुनिक और जर्मन सिक्के खरीदने। उनके लिए, यह लंबे समय एल्बम कलेक्टरों में एक विशेष स्थान के लिए तैयार किया गया है। आधुनिक सिक्के अब इसके अंकित शर्तों पर बेचा जाता है। एक बार जब वे जर्मनी में सिक्के की इतिहास बन जाते हैं, जिसके लिए ग्राहकों को और अधिक भुगतान करने को तैयार हैं।
याद रखें, सिक्कों का संग्रह - यह एक शौक है कि आप बहुत सारा पैसा ला सकता है। उचित इकट्ठा, ब्याज और फायदेमंद है।
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भारतीय समाज में इसी छोड़ने और न छोड़ने की भयानक लड़ाई आज तक दृष्टिगोचर होती है। सहस्रों लाखों स्त्री-पुरुष हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में केवल इसी भेद के लिये एक ओर से दूसरी ओर चले गये हैं । धर्म ज़बर्दस्ती नहीं बदला जाता । जो ऐसा दबाव डालता है, वह इतिहास में अत्याचारी कहलाता है, लोग उससे घृणा करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह घृणा जीवित रहती है और इसका फल यह होता है कि जो व्यक्तिसमूह एक उपासना में निहित होता है, वह उस दूसरे व्यक्तिसमूह से घृणा करने लगता है जो दूसरी उपासना में निहित होता है । इस प्रकार अपनेको सुरक्षित रखने की, ऊँचा समझने की प्रतिस्पर्धा अनिवार्य युद्ध को जन्म देती है ।
किन्तु जब कोई व्यक्ति अपने उच्च व्यक्तित्व के बल पर उठता है तब श्रद्धा से लोग उसकी बताई वीथियों पर चलते हैं । वही संत, भक्त, पैगंबर हैं, धर्म गुरु हैं। उसके सिद्धांतों का मूल वही मानवता के आधारभूत सिद्धांत हैं, जो उसे परस्पर प्रेम करना सिखाते हैं, ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, मोह, लोभ से अलग हटाते हैं। इसी को विद्वत्-समाज मनुष्यता का शाश्वत आधार कहता है । न्याय की माँग की विजय कामना ही उसका प्रत्येक शब्द है । परस्पर लड़नेवाले धर्मों को जानते नहीं । वे महात्माओं की वाणी को समझते नहीं ।
उनकी भाँति उनके ऊँचे सिद्धांतों को न समझने के कारण यह प्रज्ञतपस्याहीन जन-समाज जो आध्यात्मिक तत्त्वों के प्रति जागरुक नहीं होता, परस्पर लड़ता है । उच्चवर्गों के स्वार्थी लोग जनता के अंधविश्वासों का फ़ायदा उठाते हैं ।
ठीक है। किन्तु समस्या का हल नहीं होता। मनुष्य का आधार यदि एक है, तो अपने विश्वासों को खंडित करके क्यों उपासना करता है ? बुद्धिमान लोगों ने यह बात बहुत पहले सोच ली थी। उन्होंने पहले एक
ऐसा मत चलाने का प्रयत्न किया जिसमें हिन्दू-मुस्लिम एकता हो । फिर एक मानव-धर्म बनाया । किन्तु यह मूर्ख जन-समाज नहीं सुधरा । इसके दिमाग़ में यह बात नहीं कि जैसे वह स्वयं कुछ सोचता है, और लोग भी वैसा ही कुछ सोच सकते हैं ।
आधुनिक समय में उच्चवर्गों ने जहाँ एक ओर सार्वभौम धर्मों को नियंत्रित किया, वहाँ सर्वधर्म सम्मेलन भी किये, अर्थात् सब धर्म बने रहें ।
ऐसा समय आ गया है, जब एक दूसरे पर प्रहार नहीं करना चाहिये । किन्तु वह भी जन समाज में कारगर नहीं हुआ । क्योंकि प्रत्येक धर्म का अपना एक अलग वातावरण था, प्रत्येक धर्म की अपनी एक भिन्न भाषा थी, वस्त्र थे, ग्रग-भंगिमा थी, उनमें परस्पर ऐक्य और सामंजस्य होना कठिन था । इस कठिनाई को दूर करने के लिये बार-चार महापुरुषों ने जन्म लिया और नये-नये सिद्धांतों का प्रचार किया। लोगों में भक्ति जगी । उन्होंने अपने पुराने विश्वासों को छोड़ा, नयों को स्वीकार किया । किन्तु ऐसे लोग उस महापुरुष के स्वर्गवासी होते ही उसके धूल में पड़े पग-चिह्नों पर पत्थर की चरण पादुका बनाकर बैठ गये । जो सुधार कर गये वे तो जीवन्मृत थे, पहुँचे हुए थे। जो सुधर गये वे अपनी सुधरी हुई अवस्था कैसे त्याग सकते थे ?
पहेली उलझी हुई है। वास्तव में इस
सचको एक दूसरे दृष्टिकोण मे
देखना होगा ।
हिमालय की चोटियों पर, विन्ध्य की कान्तार पंक्तियों तथा एकांत निर्जन में अनेक ऐसे व्यक्ति नाम ही चले गये हैं, जिन्होंने अपनी इच्छाओं को नष्ट कर दिया था। वे समाज में रह ही नहीं सके । ऐसे लोगों के लिये हम यही श्रद्धा काम में लाते हैं जो युद्ध के नाम मृत असंख्य सैनिकों के प्रति एक पापाण स्तंभ बनाकर दिखाया जाता है। उनके विषय में और अधिक क्या कहा जा सकता है ? यहाँ तो हम उनसे प्रभावित हैं, उनको पूजते हैं, जो जल में रहकर निरन्तर मगर से बैर करते रहे । हमारा समाज
प्रारंभ से ही कुछ अभावपूर्ण रहा है। उसकी श्रद्धा पर तो कभी अविश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि धर्म की रक्षा के लिये वह अनहोने कारणों अद्भुत कार्य कर चुका है जैसे मनुष्य को अछूत बनाकर रखना, और कालांतर में उसे इतना विश्वास दिला देना कि वह इसी तरह जिये जाये । उसका धर्म ही यह है । धर्म की इस व्यवस्था को इस व्यवस्था को बहुत से लोग ठीक मानते हैं। प्रस्तू तक समाज में दास प्रथा रखने के कायल थे । पर यह उच्चवर्गों के दृष्टि से सोचने का परिणाम है । मध्यम मार्ग से सोचना भी अधिकतकर नहीं होता। हमारे नाई - न्यायी ब्राह्मरण या न्यायी ठाकुर बनने को सदैव तत्पर रहते हैं, किन्त महतर की हजामत बनाने से काटने को दौड़ते हैं । उनको शत रहती है कि बाभन बनिये भंगी के हाथ का खा लें तो हम हजामत बना देंगे। महात्मा गांधी के इतने उपदेश भी इन पर कारगर नहीं हुए । प्रत्येक नाई प्रायः गांधीजी से भक्ति रखता है । किन्तु इसका उत्तर तुलसीदास दे गये हैं कि समर्थ को दोष नहीं होता ।
मनुष्य समर्थ क्यों होता है ? कौन असमर्थ होता है ? संत किसका प्रतिनिधित्व करते हैं ? भारतीय समाज में इतने संत क्यों हैं ? इस सबका उत्तर देना अत्यंत आवश्यक है ।
समाज, सामर्थ्य और संत, यह तीनों शब्द एक दूसरे से मिले हुए हैं. किन्तु इनमें पहले दो इस धरती के हैं, उस लोक का है, जहाँ हम सबको ततोगत्ला जाकर पहुँचना है । वह आता है हमें उठाने । क्यों ? कभी भगवान् बनकर, कभी भगवान् का भेजादूत बनकर, कभी दूत का भी दास बनकर अपना काम करके, यहाँ दुख उठाकर, चला जाता है। उसे हमसे प्रीत है, वह हमारे कष्टों को देख नहीं पाता उसे हम पर दया करना है। वह क्यों हमें इस अंधकार में डालकर बार-बार दरवाज़ा खोलकर बंद कर देता है, कि हम किरण को आशा में भटकते हैं, अँधेरे में एक दूसरे से टकराते हैं ?
इसके लिये हमें संतपरम्परा का विवेचन करना अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है। परंपरा के लिये समाज का अध्ययन करना याज्य है ।
संतों की परंपरा
से भी बहुत पहले से इस भारत में अनेक सभ्यताएँ पल रही थीं । हम उस समय का क्रमानुगत इतिहास उपस्थित नहीं कर सकते। किन्तु तत्कालीन विचारधाराओं का जो इंगित मिलता है वह काफ़ी प्रकाश डालता है। आर्यों के आगमन से नये द्वार खुलते हैं । इतिहास-गृह में हमारा प्रवेश सुलभ हो जाता है। कोकसभ्य जातियों के दर्शन होते हैं। उनसे संघर्ष होता है, संघर्ष में विजयी होने पर वे अपनी व्यवस्था सब पर लागू करते हैं। कालांतर में उनको यह याद नहीं रहता कि वे कहीं बाहर से आये थे क्योंकि वे यहीं जम जाते हैं। इस भारत भूमि को कहने लगते हैं । इसके बाद भी जातियाँ चिंतन
को स्वीकार नहीं करतीं । मात्र चिंतन का प्रश्न ही नहीं उठता । चिंतन के साथ का व्यवहार उन्हें ग्राह्य लगता है। परंतु दबे रहने के कारण वे उभर नहीं पातीं। कालांतर में उन जातियों के बढ़ते हुए संसर्ग से विजेता
में अनेक ऐसी बातों का प्रवेश हो गया जिन्हें हम आर्य नहीं कह सकते । इसके बाद लगभग सहस्र वर्ष तक कोई प्रमुख विदेशी आक्रमण नहीं होता। कर्मकाण्ड बढ़ जाते हैं। बुद्ध काल श्रा उपस्थित होता है । जैन धर्म बढ़ता है। अहिंसा और हिंसा का द्वन्द्व चलता है । अनेक साम्राज्य बनते हैं। विदेशियों के आक्रमण होते हैं । हपं की मृत्यु के बाद से मुसलमानों तक कोई विशेष आक्रमणकारी नहीं दिखता। मुसलमानों की विजय से ब्रिटिश सत्ता तक का इतिहास बहुत दूर का नहीं है ।
संतों की परम्परा
संत भक्त उठे हैं हमें उन पर दृष्टिपात करना चाहिये । इसके साथ ही दो व्यक्ति और है- ईसा और मुहम्मद, जिनसे हमारे इतिहास का संबंध है। राजनैतिक विजेता हमारे विषय के बाहर हैं क्योंकि उनका हमारे धर्म से संबंध नहीं माना जाता । 'ईश्वर के अपने लोग ही हमारे आलोच्य विषय है। राजाओं ने धर्मों का प्रसार
किया है किन्तु हम उन पर न जाकर वस्तुतः उन्हें देखेंगे जो धर्म के विषय में दूसरों का मुख नहीं देखते थे, जिनके नाम पर अनेक संप्रदाय चल पड़े हैं और भारत के विस्तीर्ण क्षेत्र पर दिखाई देते हैं ।
इन संप्रदाय की इतनी भीड़ है कि उसका संपूर्ण वर्णन करना त्यंत कठिन कार्य है । हम इसे संक्षेप में ही देखेंगे । वाह्य के साथ संतों के आंतरिक रूपों को देखना भी आवश्यक है। वेदकाल में एक र ऋषि मुनि तथा तपस्वी हैं, तो दूसरी ओर व्रात्य । उत्तर वैदिक काल, सूत्रकाल में शिव के दो स्वरूपों के संत मिलते हैं। एक वे जो श्रार्थ्य सामाजिक व्यवस्था में ग्राह्य थे, दूसरे वे जो ब्राह्मण धर्म से दूर रहते थे । तीसरे वे संत जो आगे चलकर घोर रूप में परिणत हो गये । इन्हीं के साथ ही कापालिकों, कालामुखों के आदि रूप, भूत-पिशाच की उपासना में सांसारिकता से ऊपर उठे हुए लोगों को गिना जा सकता है । इतिहास काव्यों के काल में तथा बाद में भी जब षड्दर्शन, कर्मकाण्ड का प्राबल्य हुआ यही मुख्य द्वन्द्व दिखाई देता है । गौतम बुद्ध के समय से, अथवा मौर्य साम्राज्य के युग से एक नया रूप उपस्थित होता है । एक और बुद्धि-प्रधान क्षेत्र के अनुयायी भिक्षु बनकर दिखाई देते हैं । इसी समय चारवाक का लोकामत धर्म उठता है । इसके साथ पाशुपत धर्मावलंबी भिन्न-भिन्न संप्रदाय, योग तथा अन्य विचारों का अनुगमन करते हुए मिलते हैं। इन्हीं पाशुपतों के अंतिम समय में कनफटे नाथ जोगियों के दर्शन होते हैं जो वज्रयान के सिद्धों में घुल-मिल जाते हैं, और फिर अपनी परंपरा कुछ दूर श्रागे तक ले जाते हैं।
यहाँ इस्लाम के साथ-साथ अनेक सूफ़ी मतावलंबी साधु श्रा जाते हैं। भारत में निर्गुण और सगुण परंपरा चलती है। मुगल साम्राज्य के अंत समय में कुछ एकता और संगठन करनेवाले धर्म उठते हैं, जैसे सिख इत्यादि शासन में अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे गांधी जैसे संत, अरविन्द जैसे योगी हमारे सामने आते हैं ।
संक्षेप में यही हमारे देश की संत परंपरा का वाह्य रेखा चित्र है । इसमें आस्तिक, ना.स्तक, शुद्ध, अशुद्ध, ब्राह्मण, ब्राह्मण सभी का समावेश हो जाता है ।
का विषय है कि ये सब आज हिन्दू कहलाते हैं और इनके भेदा अधिकांश लुप्त से हो गये हैं। एक तथ्य ही प्रगट होता है कि परस्पर स्नेह से रहो, सत्य की ओर मत जाओ, सब मनुष्य जीवित रहने के अधिकारी हैं। इन पर कोई नहीं करे। मनुष्य को के अत्याचार सुख मिलना चाहिये । उसका सुख केवल बाहरी चकमक न होकर अंदरबाहर दांना में एक-सा होना चाहिये । इस सुख की कोई एक व्याख्या नहीं है । पर कुछ ऐसा अवश्य रहा है जिसके कारण जन-समाज ने श्रद्धा की है । सहस्रों वर्षों से मनुष्य ने जो भय से सिर झुकाया है वह इसीलिये कि उसने इन्हें मृत्यु जय कहा है - वह अवस्था जन मनुष्य मृत्यु से भय नहीं पाता । जब उसे लगता है कि वह सब दुर्गम रहस्यों को पार कर चुका है। जा पाना था वह तो पा लिया। संसार का दुख नहीं रहा है ।
तब संसार के दुख से मुक्ति पा जानेवाला ही जो मनुष्यता के तत्त्वावधान में अपने गुणों का वर्धन कर लेता है, हमारे समाज में पूज्य रहा है। उसका कोई मत हो, वह कुछ भी क्यों न कहता रहे, विरोधों के बावजूद यदि उसका व्यक्तित्व महान् है, यदि कुछ लोग उसके पीछे चलनेवाले हैं, उसे इस अनेक शताब्दियों की धारा में स्वीकार कर लिया जाता
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तिब्बत के अपने छोटे से प्रवास में हमारी इच्छा भी किसी एक तिब्बती मराडी को देखने की थी। कैलाश व मानसरोवर से अपने देश को लौटते हुए हमें इन में से ग्यानिमा मण्डी में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था ।
मानस से ग्यानिमा चार दिन का मार्ग है; किन्तु हमने लम्बी मंज़िलें तय कर के इसे तीन दिन में ही पार किया था । पहले दिन का मार्ग राक्षस ताल के साथ होकर गया है। राह में कैलाश शैल से आने वाली अनेक नदियों को भी पार करना पड़ा । हम जब राक्षसताल के आस पास पहुँचे, तो दोपहर ढल रही थी। तेज़ हवा से
कर एकत्र हो गया है। इस किंवदन्ती के आधार पर ही कैलाश के श्रद्धालु यात्री न तो राक्षस ताल के निकट से सफ़र करते हैं और न उसका जल ही ग्रहण करते हैं। वैसे उसका जल मधुर तथा अपेक्षाकृत शीतल है और सम्भवतः पाचक भी ।
राक्षस ताल के निकट ही 'बरखा' गांव में मार्ग की देख भाल के लिये इस इलाके के 'तरजय' का डेरा रहता है । तरजय का पद हमारे यहां के तहसीलदार के बराबर समझिये । वह इस प्रदेश से राज कर वसूल करता है तथा राजधानी लासा को जाने आने वाली डाक के भेजने का इन्तज़ाम करता है। उसकी मदद के लिये एक दो सिपाही भी यहां रहते हैं । तरजय के डेरे के अतिरिक्त बरखा में दो चार दुकानें भी भोटिया
व्यापारियों की हैं। बरखा से 'लजण्डा'
'रन्ता छू' व 'शलजङ्' होकर ग्यानिमा को सीधा मार्ग गया है। बीच में एक दो जगह
मामूली चढ़ाई ब उतार है अन्यथा रास्ता मैदान का है । लजण्डा में एक पहाड़ी गुफ़ा में यात्री विश्राम करते हैं । हम रात यहां न ठहर कर सीधे रन्ताछू चले गये । तिब्बत मे सूर्योदय व सूर्यास्त का दृश्य बड़ा अद्भुत होता है । हमने रन्ताछू के मार्ग में आज सूर्यास्त का आनन्द लिया। वहां एक लम्बे चौड़े मैदान में हम डेढ़ दर्जन यात्री एकत्र सफर कर रहे थे। साथ में सात चंवर गाय भी थीं। अभी हम मैदान के मध्य में थे कि पश्चिम की हिम धवल चोटियों में सूर्य भगवान् छिप चले । पन्द्रह दिन के बाद आज दूर में हमें हिमालय के दर्शन हुए, किन्तु निकट में ही तिब्बत की छोटी छोटी पहाड़ियों में अस्ताचल को जाते हुए सूर्य की मन्द किरणों से वह मैदान सुनहरा सा जान पड़ता
उल्लास पाकर ताल में ऊंची लहरें उठ रही थीं और उसकी थपेड़ों की आवाज़ दूर तक सुनाई देती थी । राहगीर को ऐसा मालूम देता था, मानो किसी समुद्र में तूफ़ान-सा उठ खड़ा हुआ है। सचमुच राक्षस ताल तिब्बत का समुद्र ही तो है । उस का वह विशाल पाट मीलों से दिखाई देता है। उत्तर में वह चौड़ा और दक्षिण में आगे जाकर लम्बग्रीव सा हो गया है। इस ताल के मध्य में तीन चार छोटे-छोटे टापू भी नज़र हैं । इन में लामा लोगों का निवास है, ऐसा इधर वालों का विश्वास है । साधन के अभाव के कारण कोई यात्री वहां तक पहुँच नहीं पाता। यहां यह किंवदन्तो है कि गये ज़माने में लंका के अधिपति राक्षसराज रावण ने कैलाश पर जब हमला किया था, तो युद्ध की थकान व मेहनत से उसका सारा शरीर पसीने से सराबोर हो गया था। राक्षस ताल में रावण का वही प्रस्वेद भर
व सूखी तरकारियां सब मिल जाती हैं। हां, युक्त प्रांत के मैदान से आने के कारण इसके भाव खूब मंहगे हैं। घाटा रुपये में चार सेर, मसूर की दाल दो सेर, गुड़ दो सेर ब सुखी तरकारी डेढ़ सेर की यहां से ले सकते हैं।
घी, दूध, दही तिब्बत में काफ़ी होता है । इन चीज़ों की दुकाने यहां नहीं हैं। आसपास के गांवों के तिब्बती गूजर फेरी लगा कर यहां ये सामान बेच जाते हैं । यही तरीक़ा मांस की बिक्री का है और वह यहां बहुत मात्रा में मिलता है ।
तिब्बती वेश में लेखक के साथी
नैपाली, लद्दाखी व भोटिया व्यापारी अपना' सामान बेचकर तिब्बती लोगों से ऊन, नमक व सुहागा खरीदते हैं। कानपुर की लाल इमली मिल में जो ऊनी माल तैयार होता है, उसमें तिब्बत का ही ऊन अधिकांश में इस्तेमाल होता है । इन तिब्बती व्यापारियों की दुकानें ग्यानिमा मण्डी में नहीं हैं, क्योंकि वे तो इस मुल्क के बाशिन्दे ही ठहरे। प्रति दिन ये तिब्बती व्यापारी लेन देन व सैर के लिये मण्डी में आते हैं और सौदा कर के घरों को वापिस चले जाते हैं।
ग्यानिमा मण्डी के नैपाली व भोटिया व्यापारी अधिकतर हिन्दू हैं और तिब्बती व लद्दाख़ी व्यापारी बौद्ध; किन्तु यहां इन दोनों धर्मों का ऐसा समन्वय हो गया है कि धार्मिक दृष्टि से कोई भेदभाव प्रतीत नहीं होता । हिमालय पहाड़ के अनेक भागों में हिन्दू व बौद्ध सभ्यता का यह नज़ारा प्रायः देखने में आता है। नैपाली व भोटिया व्यापारियों के हितों की देख रेख के लिये नैपाल व भारतीय सरकार के वाणिज्य दूत भी तिब्बत में रहते हैं। भारतीय सरकार का वाणिज्य दूत ग्यानिमा से ८० मील उत्तर में स्थित गरतोक में रहता है और वह समय समय पर भिन्न भिन्न मण्डियों का दौरा करता रहता है । जिन दिनों हम ग्यानिमा में थे, तो भारतीय भोटिया व्यापारियों व तिब्बत सरकार में चुंगी के टैक्स की बावत कुछ झगड़ा चल रहा था और उसे सुलझाने के लिये गरतोक से वाणिज्य दूत ग्यानिमा में आने वाला था ।
तिब्बती के यहां चाय पार्टी
निवास व आराम की दृष्टि से ग्यानिमा मण्डी में हमारा यह सप्ताह अच्छी तरह गुज़रा; किन्तु पानी की दिक्कत इन दिनों खूब रही। मण्डी के बाहर उथले पानी की दो-तीन धारायें बहती हैं। मण्डी के सब निवासी सुबह-शाम इन धाराओं को ख़राब करते हैं। बहुत से लोग रसोई आदि के काम में भी यही पानी इस्तेमाल करते हैं। वैसे स्वच्छ जल का एक चश्मा सामने वाली पहाड़ी के नीचे है; लेकिन कुछ इनेगिने सफ़ाई पसन्द लोग ही वहां जा पाते हैं। स्वयं मण्डी के अन्दर और चारों ओर मृत जानवरों का हाड़-मांस व दूसरा मैला जहां-तहां देखने में आता है। तिब्बती लोग स्वभावतः गन्दे होते हैं। उस ऊंचे पठार में रहने के कारण, उनमें सफ़ाई के प्रति उपेक्षा का होना स्वाभाविक है । स्नान तो दूर रहा, वे मुंह-हाथ भी शायद साल में एक दो बार ही धोया करते हैं। जल का स्पर्श आमतौर पर
वे नहीं करते। भोजन में भी उनके जल का स्थान । चाय ने ले लिया है। एक दिन इसी तरह घूमते-घामते हम एक वृद्ध तिब्बती के डेरे पर जा पहुंचे। वह
मण्डी में सुबह-शाम बिक्री के लिये दूध दही लाता था और अपनी चांवर गाय बोझ के लिये किराये पर उठाता था। सुना था कि उसके यहां बिछाने का मृगचर्म अच्छा मिलेगा । जब हम उसके यहां पहुँचे तब वह 'ङ' ( एक प्रकार की शराब ) पीने में मस्त था । कुछ मित्र भी उसके साथ थे । गान्धी टोपी में हमें देख कर वह डेरे से बाहर आया और के साथ अन्दर लिवा ले गया। स्वागत सत्कार के बाद हम से वह 'घाण्डी बाबा' ( गान्धी जी ) के समाचार पूछने लगा और साथ ही छङ् का एक प्याला भेंट करने लगा । हमने थोड़ा हंस कर इनकार कर दिया । तब उसने कुछ तिब्बती मिठाई व चाय हमारे सामने पेश की कैलाश यात्रा का हाल पूछा। इस स्वागत सत्कार के बाद हमने उस से मृगचर्म लेकर बिदा ली । तिब्बती स्वभाव में मिलनसार, ख़ुश मिजाज़ व रहमदिल होते है। आज ज्ञान व दरिद्रता ने उन्हें कुछ लोभी व पतित कर दिया है। यदि वहां की सरकार थोड़ा भी ध्यान दे; तो लामाओं के देश के ये निवासी काफ़ी तरक्की कर सकते हैं ।
चलते समय सारी तिब्बती पोशाक ही ख़रीद ली। उस पोशाक में वे बड़े भले मालूम देते थे । अन्ततः चार अगस्त को प्रातः अपने अगुआ रामसिंह से बिदा लेकर हमने अपने प्यारे वतन के लिये प्रस्थान किया। रामसिंह को हमसे बिदा लेते समय बहुत दुःख हुआ । इतने दिन साथ रहते रहते हमसे उसे कुछ लगाव-सा होगया था । स्वभाव का थोड़ा बड़-बोल होते हुए भी वह अपने काम में हुशियार था और सत्य तो यह है कि उसके ही कारण हमें अपने तिब्बत प्रवास में अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी। चलते समय हमने उसे कुछ नकदी इनाम में दी, साथियों ने कपड़े लत्ते दिये और हरिवंशीटपर्पण किया। वह हमें मण्डी से बाहर तीन चार मील आगे तक छोड़ने भी नयनों से वापिस लौट गया ।
ग्यानिमा मण्डी के सात दिन के इस प्रवास में हमने कुछ थोड़ा बहुत ख़रीद फरोख्त भी किया। यहां की याददाश्त के लिये किसी ने काठ के प्याले लिये, किसी ने चुकटा ( गरम ऊनी धुस्सा) लिया और किसी ने कस्तूरी आदि ली । लेकिन, हमारे कृष्णचन्द्र जी ने
डिस्ट्रिक्ट जेल, सहारनपुर ]
ग्यानिमा मण्डी से चलकर हम नीति धुरे (Pass) के रास्ते अपने तीर्थ बदरीनाथ पहुंचे और वहां से पैदल हरिद्वार आये । प्रति वर्ष हज़ारों यात्री इस रास्ते से बदरीनारायण की यात्रा करते हैं। हमें भी इस सफ़र से सन्तोष मिला । हम बीस जून को कैलाश यात्रा के लिये हरद्वार से बिदा हुए थे और दो मास बाद ६०० मील का कठिन सफ़र समाप्त कर २१ अगस्त को हरद्वार । पर अब भी हरद्वार में गंगा तट पर बैठे बैठे हमें कैलाश व मानसकी उस कठिन तम यात्रा की याद कभी कभी होती है।
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मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्री राजनाथ सिंह जी, श्री गजेंद्र शेखावत जी, अन्य महानुभाव और यहां उपस्थित देवियों और सज्जनों !
देशभर के अनेक कॉमन सर्विस सेंटरों से आए हज़ारों लोग, विशेषकर गांवों के पंच-सरपंच भी इस वक्त हमारे साथ जुड़े हुए हैं।
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के मनाली से वहां के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी, वन मंत्री श्री गोविंद सिंह ठाकुर जी, सांसद राम स्वरूप शर्मा जी भी तकनीक के माध्यम से इस कार्यक्रम में हमारे साथ शामिल हैं।
उनके साथ अटल जी के प्रिय गांव से भी कुछ लोग जुड़े हुए हैं।
मैं आप सभी का भी स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं।
आज इस मंच से सबसे पहले मैं देश के लोगों को, दुनिया को, क्रिसमस की बहुत-बहुत बधाई-शुभकामनाएं देता हूं।
Merry Christmas!!!
आज भारत के दो-दो रत्नों, हम सभी के श्रद्धेय अटल जी और महामना मदन मोहन मालवीय जी का जन्मदिवस भी है।
मैं उन्हें नमन करता हूं, देश की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
मुझे बताया गया है कि प्रीणी में आज अटल जी की स्मृति में हवन हुआ है, कुछ अन्य कार्यक्रम भी हुए हैं।
आज देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण एक बड़ी परियोजना का नाम अटल जी को समर्पित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश को लद्दाख और जम्मू कश्मीर से जोड़ने वाली, मनाली को लेह से जोड़ने वाली,रोहतांग टनल, अब अटल टनल के नाम से जानी जाएगी।
हिमाचल के लोगों को, प्रीणी के लोगों को ये सरकार की तरफ से अटल जी के जन्मदिन पर एक छोटा सा उपहार है।
ये अटल जी ही थे, जिन्होंने इस टनल के महत्व को समझा और इसके निर्माण का मार्ग बनाया था।
अटलजी के नाम पर इस टनल का नामकरण होना, हिमाचल के प्रति उनके लगाव और अटल जी के प्रति आप सभी के आदर और असीम प्यार काभी प्रतीक है।
पानी का विषय अटल जी के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, उनके हृदय के बहुत करीब था।
पानी को लेकर उनका विजन, हमें आज भी प्रेरणा देता है।
अटल जल योजना हो या फिर जल जीवन मिशन से जुड़ी गाइडलाइंस, ये 2024 तक देश के हर घर तक जल पहुंचाने के संकल्प को सिद्ध करने में एक बड़ा कदम हैं।
ये पानी ही तो है जो घर, खेत और उद्योग, सबको प्रभावित करता है।
और हमारे यहां पानी के स्रोतों की क्या स्थिति है ये किसी से छुपी नहीं है।
पानी का ये संकट एक परिवार के रूप में, एक नागरिक के रूप में हमारे लिए चिंताजनक तो है ही, एक देश के रूप में भी ये विकास को प्रभावित करता है।
न्यू इंडिया को हमें जल संकट की हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार करना है।
इसके लिए हम पाँच स्तर पर एक साथ काम कर रहे हैं।
पहला- पानी से जुड़े जो डिपार्टमेंट हैं, हमने उनके Silos को तोड़ा।
दूसरा- भारत जैसे विविधता भरे देश में हमने हर क्षेत्र की जमीनी स्थिति को देखते हुए योजनाओं का स्वरूप तय करने पर जोर दिया।
तीसरा- जो पानी उपलब्ध होता है, उसके सही संचयन औऱ वितरण पर ध्यान दिया।
पाँचवाँ- सबसे महत्वपूर्ण- जागरूकता और जनभागीदारी।
चुनाव से पहले जब हमने पानी के लिए समर्पित एक जलशक्ति मंत्रालय की बात की थी, तो कुछ लोगों को लगा कि ये कैसा वादा है।
लेकिन बहुत कम लोगों ने इस बात पर गौर किया कि क्यों इसकी जरूरत थी।
वर्षों से हमारे यहां पानी से जुड़े विषय, चाहे Resources हों, Conservation हो, Management हो, तमाम ऑपरेशन औऱ काम अलग-अलग डिपार्टमेंट और मंत्रालयों में रहे।
यानि एक तरह से कहें तो जिस Silos की मैं बात करता हूं, उसका ये बेहतरीन उदाहरण था।
इस वजह से कहीं राज्य और केंद्र सरकार में, कहीं केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों में, कहीं अलग-अलग विभागों और मंत्रालयों के बीच अकसर विवाद होता रहता था, कुछ न कुछ दिक्कतें आती रहती थीं।
इसका नुकसान ये हुआ कि पानी जैसी मूल आवश्यकता के लिए जो Holistic Approach होनी चाहिए थे, वोपहले की सरकारों के समय अपनाई नहीं जा सकी।
जल शक्ति मंत्रालय ने इस Compartmentalized Approach से पानी को बाहर निकाला और Comprehensive Approach को बल दिया।
इसी मानसून में हमने देखा है कि समाज की तरफ से, जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से Water Conservation के लिए कैसे व्यापक प्रयास हुए हैं।
जिस क्षेत्रीय विविधता की बात मैंने की, वो पानी से जुड़ी योजनाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
हमारे यहां तो कहा जाता है कि हर कोस पर पानी बदल जाता है।
अब जो देश इतना विविध हो, इतना विस्तृत हो, वहां पानी जैसे विषय के लिए हमें हर क्षेत्र की आवश्यकताओं को देखते हुए आगे बढ़ना होगा।
इसी सोच ने अटल जल योजना का आधार तय किया है।
यानि एक तरफ जल जीवन मिशन है, जो हर घर तक पाइप से जल पहुंचाने का काम करेगा और दूसरी तरफ अटल जल योजना है, जो उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देगी जहां ग्राउंडवॉटर बहुत नीचे है।
इस योजना से महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, यूपी, एमपी और गुजरात, इन सात राज्यों के भूजल को ऊपर उठाने में बहुत मदद मिलेगी।
इन सात राज्यों के 78 जिलों में, 8,300 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में भूजल का स्तर चिंताजनक स्थिति में है।
इसका क्या खामियाजा वहां के लोगों को उठाना पड़ता है, वो इस समय हमारे साथ लाइव जुड़े हुए साथी बहुत अच्छी तरह जानते हैं।
इन क्षेत्रों के किसानों की,पशुपालकों की, छोटे-छोटे उद्यमियों की, वहां की महिलाओं की दिक्कतें किसी से छिपी नहीं हैं।
लोगों को इन दिक्कतों से मुक्ति मिले, जल स्तर में सुधार हो, इसके लिए हमें हमें जागरूकता अभियान चलाने होंगे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और जरूरी डेटा को जोड़ना पड़ेगा।
और सबसे प्रमुख बात, हमें जल संरक्षण और संवर्धन पर बल देना होगा ताकि पानी की एक-एक बूंद का उचित उपयोग हो।
आखिर ये होगा कैसे?
इस टीम का नेतृत्व कौन करेगा?
अफसर, कर्मचारी, ब्यूरोक्रेट?
इसके लिए हमें उन लोगों तक जाना होगा, उन लोगों को जोड़ना होगा, जो पानी का इस्तेमाल करते हैं, जो पानी के संकट से प्रभावित हैं।
इसके लिए हमें अपनी उन माताओं-बहनों के पास जाना होगा जो घरों की असली मुखिया होती हैं। घरों में पानी का उपयोग जरूरत के अनुसार ही हो, जहां तक संभव हो Recycle किए पानी से काम चलाया जाए, ये अनुशासन घरों के भीतर लाना ही होगा।
इसके लिए हमें किसानों के पास भी जाना होगा।
हमारी खेती भूजल से सिंचाई पर बहुत अधिक निर्भर है।
लेकिन ये भी सच है कि हमारे सिंचाई के पुराने तौर-तरीकों से बहुत सा पानी बर्बाद हो जाता है।
इसके अलावा गन्ना हो, धान हो, बहुत सी ऐसी फसलें भी हैं जो बहुत ज्यादा पानी चाहती हैं।
इस प्रकार की फसलें, जहां होती हैं, वहां कई बार ये पाया गया है कि इन जगहों पर भूजल का स्तर तेजी से घटता जा रहा है।
इस स्थिति को बदलने के लिए हमें किसानों को वर्षा जल के संचयन के लिए, वैकल्पिक फसलों के लिए जागरूक करना होगा, ज्यादा से ज्यादा माइक्रो-इरिगेशन की तरफ बढ़ना होगा, हमें Per Drop More Crop को बढ़ावा देना होगा।
जब हम घर के लिए कुछ खर्च करते हैं, तो अपनी आय और बैंक बैलेंस भी देखते हैं, अपना बजट बनाते हैं। ऐसे ही जहां पानी कम है, वहां गांव के लोगों को वॉटर बजट बनाने के लिए, उस आधार पर फसल उगाने के लिए हमें प्रोत्साहित करना होगा।
और यहां अभी गांवों से जो लोग आए हैं, जो हमारे साथ लाइव जुड़े हैं, उनको मैं बताना चाहता हूं कि अटल जल योजना में सबसे बड़ी जिम्मेदारी आपकी ही है।
आप जितना अच्छा काम करेंगे, उससे गांव का तो भला होगा ही, ग्राम पंचायतों का भी भला होगा।
अटल जल योजना में इसलिए ये भी प्रावधान किया गया है कि जो ग्राम पंचायतें पानी के लिए बेहतरीन काम करेंगी, उन्हें और ज्यादा राशि दी जाएगी, ताकि वो और अच्छा काम कर सकें।
मेरे सरपंच भाइयों और बहनों,
आपकी मेहनत, आपका परिश्रम, आपकी भागीदारी, देश के हर घर तक जल पहुंचाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मैं अटल जल योजना से जुड़े सभी 8,300 सरपंचों से कहना चाहता हूं कि आपकी सफलता न सिर्फ अटल जल योजना को कामयाब बनाएगी बल्कि जल जीवन मिशन को भी मजबूती देगी।
ये आपका जानना भी बहुत जरूरी है।
ये देश के प्रत्येक नागरिक को भी जानना जरूरी है।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी आज देश के 3 करोड़ घरों में ही नल से जल पहुंचता है।
18 करोड़ ग्रामीण घरों में से सिर्फ 3 करोड़ घरों में।
70 साल में इतना ही हो पाया था।
अब हमें अगले पाँच साल में 15 करोड़ घरों तक पीने का साफ पानी, पाइप से पहुंचाना है।
इसके लिए अगले पाँच वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने जा रही हैं।
निश्चित रूप से ये संकल्प विराट है, लेकिन हमारे पास सफल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, हमें सफल होना ही है।
ऐसे में हमारी प्रतिबद्धता जमीन पर, देश के गांव-गांव में दिखनी बहुत आवश्यक है।
आज जो जल जीवन मिशन की गाइडलाइंस जारी की गई हैं, वो इसमें हमारी मदद करने वाली हैं।
जल जीवन मिशन का ये अभियान सिर्फ हर घर तक स्वच्छ जल पहुंचाने से नहीं जुड़ा हुआ है।
हमारी मां बहनों को घर से दूर जाकर पानी न लाना पड़े, उनकी गरिमा का सम्मान हो, उनकी जिंदगी आसान बने, इस मिशन का ये भी लक्ष्य है।
आज भी मैं जब किसी बुजुर्ग मां को पानी के लिए भटकते देखता हूं, जब किसी बहन को सिर पर मटके रखकर मीलों पैदल चलते देखता हूं, तो बचपन की बहुत सी यादें ताजा हो जाती हैं।
देशभर की करोड़ों ऐसी बहनों को पानी जुटाने की तकलीफ से भी मुक्ति दिलाने का समय आ गया है।
जैसे हमने हर घर में शौचालय पहुंचाए, उसी तरह हर घर में जल भी पहुंचाएंगे, ये प्रण लेकर हम निकल पड़े हैं।
जब संकल्प ले लिया है, तो इसे भी सिद्ध करके दिखाएंगे।
गांव की भागीदारी और साझेदारी की इस योजना में गांधी जी के ग्राम स्वराज की भी एक झलक है।
पानी से जुड़ी योजनाएं हर गांव के स्तर पर वहां की स्थिति-परिस्थिति के अनुसार बनें, ये जल जीवन मिशन की गाइडलाइंस बनाते समय ध्यान रखा गया है।
इतना ही नहीं,
ग्राम पंचायत या पंचायत द्वारा बनाई गई पानी समिति ही अपने स्तर पर पानी से जुड़ी योजना बनाएगी, उसे लागू करेगी, उसकी देखरेख करेगी।
और इसलिए,
हमें, पानी की लाइन की प्लानिंग से लेकर उसके प्रबंधन तक से गांव को जोड़ने का काम हमें करना है।
हमें हमेशा याद रखना है कि गांव के मेरे भाई-बहनों के पास, बुजुर्गों के पास पानी के स्रोतों को लेकर, पानी के भंडारण से जुड़ी बातों का खज़ाना है।
हमें गांव के लोगों से बड़ा एक्सपर्ट और कौन मिलेगा?
इसलिए गांव के लोगों के अनुभव का हमें पूरा इस्तेमाल करना है।
हमारी सरकार का प्रयास, जल जीवन मिशन में ज्यादा से ज्यादा गांव के लोगों को अधिकार देने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का है।
इस मिशन के लिए हर गांव में एक विशेष कमेटी बनाई जाएगी, गांव के स्तर पर ही एक्शन प्लान बनेंगे। मेरा ये आग्रह होगा कि इस कमेटी में कम से कम 50 प्रतिशत गांव की ही बहनें हों, बेटियां हों।
यही नहीं, साफ पानी आ रहा है या नहीं, इसकी जांच के लिए गांव के ही निवासियों, वहां के बेटे-बेटियों को ट्रेनिंग दी जाएगी।
इसी तरह, कौशल विकास योजना के माध्यम से बड़े स्तर पर गांवों के युवाओं को फिटर, प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, मिस्त्री, ऐसे अनेक कामों की ट्रेनिंग दी जाएगी।
हां, इन सारे प्रयासों के बीच,
कुछ दुर्गम इलाकों में, कुछ सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में, मौसम और भौगोलिक स्थिति की वजह से पाइप लाइन पहुंचाने में कुछ मुश्किल जरूर आएगी।
ऐसी जगहों को क्या छोड़ देंगे?
ऐसे स्थानों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी।
वहां भी ये सुनिश्चित किया जाएगा कि उन गांवों के लोगों को शुद्ध पानी मिले।
जल जीवन मिशन के दौरान एक और नई चीज की जा रही है। इस योजना की मॉनीटरिंग के लिए स्पेसटेक्नोलॉजी और आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस, दोनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
हर गांव में पानी का कितना भंडारण हो रहा है, कितना खर्च हो रहा है, पानी की स्थिति के बारे में सारी जानकारी पर निरंतर नजर रखी जाएगी।
जल जीवन मिशन में सरकार ने ये भी प्रावधान किया है कि आपके गांव में योजना पूरी होने पर सरकार पानी समिति के खाते में सीधे पैसे भेजेगी। ताकि पानी से जुड़ी व्यवस्थाओं की देखरेख और संचालन गांव के लोग ही करें।
मेरा एक और आग्रह है कि हर गांव के लोग पानी एक्शन प्लान बनाएं, पानी फंड बनाएं। आपके गांव में पानी से जुड़ी योजनाओं में अनेक योजनाओं के तहत पैसा आता है। विधायक और सांसद की निधि से आता है, केंद्र और राज्य की योजनाओं से आता है।
हमें ये व्यवस्था बनानी होगी कि ये सारा पैसा एक ही जगह पर आए और एक ही तरीके से खर्च हो। इससे टुकड़ों-टुकड़ों में थोड़ा-थोड़ा पैसा लगने के बजाय ज्यादा पैसा एक साथ लग पाएगा।
मैं आज इस अवसर पर दुनिया भर में बसे भारतीयों से भी आग्रह करूंगा कि वो इस पावन अभियान में अपना योगदान दें।
मैं आज इस मंच से, गांव में रहने वाले अपने भाई-बहनों से भी अपील करता हूं, कि वो पानी के संरक्षण के लिए, पानी के वितरण की व्यवस्था को संभालने के लिए, पानी की recycling के लिए आगे आएं।
आप अपना समय दें, अपना श्रम दें। आप एक कदम चलेंगे तो सरकार 9 कदम चलेगी।
आइए, एकजुट होकर, कदम से कदम मिलाते हुए, देश के सामान्य जन को स्वच्छ पानी के अधिकार से जोड़ने का अपना दायित्व निभाएं।
आपके प्रयास, आपकी सफलता, देश की जल सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
एक बार फिर अटल जल योजना के लिए, जल जीवन मिशन के लिए पूरे देश को शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!!!
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राज काफी समय पहले नन्दिनी से एक ब्रेकफास्ट शॉप पर टकराया था। वे दोनों रोजाना की तरह अपने अपने काम पर जा रहे थे और उस दिन काम पर देरी होने के वजह से ब्रेकफास्ट करने के लिए संयोग वश एक ही आउटलेट पर रुक गए... लेकिन नन्दिनी हमेशा की तरह झल्लाई हुई, आदतन, क्योंकि उसे पहले ही काफी देर हो चुकी थी और उसके बाद वो बिखर सी जाती थी। अपने बालों को मेसी बन मे बांधे, कान से फोन चिपकाए उसने फटाफट अपना ऑर्डर कलेक्ट किया और जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, वह राज से जा टकराई जो ठीक उसके पीछे लाइन में खड़ा था। एक ही पल में उसने पूरी प्लेट राज के उपर बिखेर दी।
"हे भगवान! ये क्या किया मैंने... प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए।" घबराई हुई वो माफ़ी मांगने लगी।
"नहीं नहीं... ठीक है, हो जाता है, कोई बात नहीं।" वह झुक गया और उसका बिखरा सामान उठाने में मदद करने लगा।
"आपका शुक्रिया, सच में.. एक बार फिर से माफ़ी चाहूँगी।" नन्दिनी ने कहा और सामान उठाया और चली गई।
राज एक पल को उसे देखता रह गया।
राज जब शॉप से बाहर आया तो नन्दिनी अब भी वहीं खड़ी थी।
"आप अब भी यहीं हैं?"
"मैं ...आप पर यूँ पूरा दाग लगने के बाद मैं ऐसे ही नहीं जा सकती थी।" नन्दिनी थोड़ी सकपकाई सी, सीधे अपनी बात कह गई थी।
ये एहसास उसे बाहर आने के बाद हुआ कि इस तरह से उसका व्यवहार कितना बुरा लगा होगा सामने वाले को। अपनी गलतियों को हर पर जीने वालों मे से थी नंदिनी तभी इतनी उलझी उलझी रहती थी।
"नहीं ठीक है। मेरी कार में एक एक्स्ट्रा शर्ट है, मैं चेंज कर लूँगा!"
"पक्का ना... आप ठीक हैं?"
"मैं ... मुझे माफ़ करें, एक बार फिर से।" नंदिनी ने कहा और चली गई। राज उसे जाते हुए देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। नुकसान होने के बावजूद उसका मूड उतना खराब नहीं हुआ, जितना नुकसान करके नन्दिनी खुद पर बिफरे पड़ी थी।
नन्दिनी जो ऑफिस देर से पहुंची थी, उसे इसका इनाम मिल गया था और हर दूसरे दिन की तरह, देर से आने के लिए उसपर चिल्लाया गया और फाइलों का एक बड़ा सा ढेर और बहुत सारे असाइनमेंट मिल चुके थे।
"वाह! यही बाकी था... " नन्दिनी अपनी कुर्सी पर पसर गई।
"एक और दिन बकवास से भरा।"
"तुम्हे देरी क्यों हुई?" उसकी सहेली रेणु, जिसकी मेज ठीक उसके सामने ही थी, ने उससे पूछा।
नंदिनी ने आह भरी।
"मैं ... क्या बताऊँ यार कोई खास बात नहीं, वही चीजें, रोज का है मेरा तो।"
बिलकुल सही। नन्दिनी के लिए हर दिन हमेशा एक जैसा लगता था।
उसे काम से, घर वापस जाना पड़ता था, कभी-कभी मौका मिला तो क्लब और मॉल चली जाती थी। ऐसा लग रहा था कि उसका जीवन बिना किसी दिशा गोल गोल घूम रहा है।
खैर उसका दिन खत्म होते होते, उसे थका हुआ और हमेशा की तरह उनींदे छोड़ फिर अगले दिन आने के लिए चल दिया। उसने अपनी चीजें उठाईं, जिन जरूरी फाइलों पर उसे काम करने की जरूरत थी और घर जाने के लिए निकल पड़ी। घर जाते हुए उसे खुशी इस बात की रहती थी कि कम से कम, वह अपने घमंडी बॉस से दूर थी और खुल कर सांस ले सकती थी।
नन्दिनी बेपरवाह मजे से गाड़ी चला रही थी और उसके फोन की घंटी बजी तो उसने उसी बेपरवाही से उस तक पहुंचने की कोशिश की जिस चक्कर में ब्रेक लगाने के बावजूद उसकी गाड़ी किसी की कार से टकरा गई। वह कार से उतरी, उसकी आँखें दहशत से भर गईं।
"हे भगवान! क्या अब मेरे हाथो कत्ल भी हो गया...!" वह चिल्लाई, उस गाड़ी में उसे ड्राईवर स्टीयरिंग व्हील पर नहीं दिखा।
दरअसल वह कार से उतर आया था।
"अरे ठीक है, मैं हूँ...नहीं लगी... तुम प्लीज चिल्लाना बंद करो" उसने उसकी ओर देखा।
"आप!" वे दोनों चिल्लाए।
"सुबह ब्रेकफास्ट शॉप... " उसने एक राहत की साँस ली और फिर मुस्कराई।
"तुम हमेशा ही इतनी लापरवाह हो, है ना?" वो हँसा।
"मैं ... मैं बहुत शर्मिंदा हूँ सच।" वह सोचने के लिए रुकी। "एक मिनट... हमेशा लापरवाह? आपका क्या मतलब है?
हम केवल दो बार टकराए हैं।"
"चलो, रहने भी दो।" वह मुस्कराया।
"हाय! मैं राज हूँ।"
"मैं...नंद... हे भगवान! अपनी कार को तो देखो, मैंने इसका सत्यानाश कर दिया।"
राज नन्दिनी के साफ व्यवहार से इम्प्रेस हो चुका था, वह मुस्कराया। "जाने भी दो बस कुछ खरोंच है।"
"मैं..." नन्दिनी वापस अपनी कार में गई और एक कार्ड ले आई।
"यहाँ, मुझे बाद में कॉल करिए और हम आपकी कार की मरम्मत के बिल पर बात करेंगे।"
"अरे नहीं..." फिर राज ने कुछ सोचकर खुद को रोक लिया।
नन्दिनी ने ध्यान नहीं दिया कि दो मुलाकात में राज आप से तुम तक का सफर तय कर चुका था।
उसके बाद वे बाद में अपने अलग रास्ते चले गए और राज ने उसे कुछ दिनों तक कार्ड रहते हुए भी कॉन्टेक्ट नहीं किया।
"हे ब्यूटीफुल! "
"गुड मॉर्निंग।"
नन्दिनी ऑफिस जाने की तैयारी कर रही थी और उसका फोन उसके कान और कंधे के बीच में था। "कौन...?"
"राज। उस दिन ब्रेकफास्ट शॉप में। क्या तुम ...?"
"अरे हाँ, याद आया, मैं आज ही हिसाब करती हूँ।" नन्दिनी ने आह भरी।
"आपने मुझे कार रिपेयर का बिल देने के लिए कॉल किया है, है ना?"
"अरे यार, रहने भी दो। चलो आज दोपहर या शाम को मिलते हैं जो भी तुम्हें सूट करे।" राज ने कहा।
"शाम को पक्का ना नन्दिनी?"
"आप पहले से ही मेरा नाम जानते हैं?"
"कम ऑन! यह तुम्हारे कार्ड पर लिखा है।"
"ओह्ह्ह्ह्ह्..... वह हँसी।
"मैं सच मे भूल गई कि मैंने तुम्हें कार्ड दिया था।"
इस खूबसूरत मुलाकात के बाद राज और नंदिनी अक्सर मिलने लगे, एक-दूसरे को ऑफिस से पिक अप किया , डेट पर गए, एक-दूसरे के साथ का आनंद लिया और देखते देखते उन्हें एक दूजे से प्यार हो गया। यह इतनी तेजी से हुआ कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब नाइट आउट करने लगे और एक दूसरे के फ्लैट पर कई दिन बिताने लगे।
नंदिनी अब कम लापरवाह हो गई, उसे कोई ऐसा मिल गया जिसे वह चाहती थी और खुश रहती थी। इससे पहले वह हमेशा अपने बॉस, अपनी दिनचर्या और यहाँ तक कि अपने जीवन की हर चीज से नफरत करती थी। उसके पास किसी भी चीज़ की कोई प्लानिंग नहीं होती थी और वह कुछ भी सही करने के लिए बहुत ही बेतरतीब हो गई थी।
राज जो हमेशा कोमल और नरम स्वभाव और अंतर्मुखी रहा था, लेकिन नन्दिनी के साथ, उसने कुछ अलग महसूस किया। कभी भी उसके जैसा किसी को ना देखा या ना ही किसी से दोस्ती रही थी। नन्दिनी के साथ ही उसके कुछ दोस्तों से राज की दोस्ती भी हुई। जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह उससे और अधिक जुड़ गया कि उसने उसे अपने साथ रहने के लिए मना लिया। नन्दिनी ने राज के साथ रहने की स्वीकृति तो दी लेकिन अपना अपार्टमेंट किराए पर नहीं दिया। वह वीकेंड पर या राज से नोक-झोंक होने पर वहाँ वापस आ जाती थी। नन्दिनी एक सेफ लकीर के इर्द-गिर्द ही रहती थी।
समय के साथ उनकी प्रेम कहानी अलग हो गई। नन्दिनी के देर से आने या राज के फोन नहीं उठाने जैसी छोटी बातों पर उनके बीच व्यर्थ के तर्क वितर्क और निरर्थक झगड़े होने लगे। समय के साथ चीजें बदतर होती गईं क्योंकि राज का नन्दिनी के लिए प्यार एक जुनून में बदल गया था। वह नहीं चाहता था कि उसके आस-पास के लोग, उससे बात करें या उसे सिद्दत से देखे भी।
"तुम्हारी समस्या क्या है, राज?" नन्दिनी ने एक दिन उससे पूछा।
"तुम सब जानते हुए मुझसे ये पूछ रही हो!"
"हाँ बिल्कुल! मैं तुमसे साफ सुनना चाहती हूँ राज मैं थक चुकी हूँ... जो लोग मेरे करीब आते हैं, उनके साथ तुम्हारा आपे के बाहर आकर व्यवहार.. तुम जो करते हो कभी उसपर सोचा है शांति से।" नन्दिनी परेशान हो उठी थी।
"ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"
"तुम्हें क्या लगता है प्यार क्या है?" उसने पूछा।
"तुम्हें लगता है कि प्यार सिर्फ एक साथ रहने, बिस्तर या कमरा साझा करने और हमेशा रोमांस में डूबा रहना है?"
"नहीं, मैं..." राज उसके करीब चला गया। "ऐसी बात नहीं है..."
"मुझे मत छुओ राज!"
"अच्छा, वाह!... लेकिन और लोग छू.... "
"राज!" नन्दिनी घृणा से चीख उठी।
"यदि तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं तो मुझे यकीन है कि हमारे बीच ये जो कुछ भी है यह प्यार नहीं है और मैं ऐसे रिश्ते में नहीं बंधना चाहती जो मेरी आत्मा को धिक्कारने लगे।"
वह जाने के लिए मुड़ी तो राज ने उसका हाथ पकड़ लिया, और उसे आगोश में भर लिया। ये वो जगह थी जहाँ हर बार नन्दिनी पिघल जाती थी और इस बार भी यही हुआ। एक रात की नई सुबह और दोनों ने खुद को वापस वहीं पाया जहाँ उन्होंने शुरू किया था। उनके विषाक्त संबंधों का मूल जड़ उनका ही ये समझोता बन गया। उनके लिए, एक साथ वापस करीब होने से उस पल के लिए वो समस्या हल हो जाती थी, वो हर अपमान भूल जाते थे।
जिस तरह से उनका रिश्ता बना, उससे वे दोनों सहज नहीं थे, लेकिन चीजों को बदलने के लिए उन्होंने कोई मजबूत प्रयास भी नहीं किए।
राज एक शाम घर लौटा, गुस्से में क्योंकि वह अपनी जॉब से हाथ धो चुका था उसने चारो ओर देखा नन्दिनी नहीं दिखाई दी तो पारा गर्म होकर चढ़ गया!
कुछ देर बाद नन्दिनी आई तो दोनों में फिर से झगड़ा हुआ। नन्दिनी टूट गई थी। इस बार उसने भावनाओ में बहने से खुद को रोक लिया। हर बार के झगडे का अंत राज का जुनूनी प्रेम या बस यूँ ही माफी मांग लेना नहीं हो सकता था।
वह चुपचाप अपने फ्लैट पर लौट आई। उसने ध्यान दिया इस बार वो काफी दिनों बाद लौटी थी। घर बिखरा हुआ छोड़ गई थी पिछली बार, आज बिखरे रिश्ते के साथ लौटी थी। पिछली बार अचानक ही राज अपनी ऑफिसिअल ट्रिप बीच में छोड़ आया था और वो हमेशा से ही नन्दिनी को आँखों के सामने पाना चाहता था।
बीती यादो के बोझ तले थकी हारी नन्दिनी बिस्तर पर पसर गई।
सुबह कई बार बज रही फोन की घण्टी से नन्दिनी की नींद खुली।
"बोलो राज.. क्या हुआ?" नन्दिनी ने आह भरते हुए कहा। वो खुद को समान्य रखते हुए बात कर रही थी ।
"क्या तुम अब भी नाराज़ हो?"
"नहीं, मैं ठीक हूँ। मुझे लगता है राज मैं तुमसे दूर रहकर ज्यादा खुश हूँ। तुम्हें क्या दुख हो रहा है कि इसबार मेरे दिल को बिना ज्यादा छलनी तुमने जाने दिया!"
"नहीं! प्लीज नन्दिनी मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता...कल की बात भूल जाओ!"
"हाँ सही कहा राज.. भूल जाते हैं, मुझे लगता है हमे एक ब्रेक लेना चाहिए। "
"क्या? क्यों...? मैं माफी मांग रहा हूँ ना यार!"
"ये हमारी बेहतरी के लिए है।"
"मतलब तुम मुझे अपनी जिंदगी से निकाल रही हो, छुटकारा पा रही हो मुझसे!"
"पता नहीं राज! बस यही बेहतर होगा कि हम इस विषाक्त रिश्ते से बाहर निकलना ही होगा, ये हमे अंदर ही अंदर खा रहा है... "
"मुझे माफ कर दो।" राज गिड़गिड़ा रहा था इस उम्मीद से कि नन्दिनी इस कठोर फैसले को बदल दे।
"इसके लिए अब बहुत देर हो चुकी है। चलो एक ब्रेक लेते हैं आखिर पता तो चले कि हम वास्तव में इस रिश्ते से चाहते क्या हैं?"
"प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो... "
"हम ब्रेक अप नहीं कर रहे हैं, राज... बस अभी ब्रेक ले रहे हैं। प्लीज अब बार बार खुद को और मुझे परेशान मत करना!" नन्दिनी ने कहा और फोन रख दिया।
राज के अंदर भी कुछ टूट सा गया, खुद से वादा किया अब कम से कम वो नन्दिनी को और परेशान नहीं करेगा, जैसे वो चाहे वही होगा।
राज और नन्दिनी को रिलेशनशिप से ब्रेक लिए हुए दो महीने हो चुके थे। हालाँकि वे लगातार एक-दूसरे के बारे में सोचते रहें और चाहकर भी अपने दिल में उठ रहे भावनाओ की ज्वारभाटा से ब्रेक नहीं ले पाए थे, लेकिन लिए गए प्रण अनुसार वे न तो आपस में बात करते थे और न ही मिलते थे।
हालाँकि अपनी नॉर्मल जिंदगी में अब वे दोनों ऐसे काम करते थे जो वे सामान्यतः कभी नहीं करते थे, भरी महफिल में भी वे खोए हुए और सुस्त दिखते क्योंकि पिछली कुछ ही दिनों के भीतर एक दूसरे की आदत बन चुके थे। शायद वे एक-दूसरे के बिना जीना ही भूल गए थे पर साथ रहना भी दम घोंटता था। कोई कड़ी अब भी इन्हें जोड़े हुए थी तो वह उनके कॉमन फ्रेंड्स जो अब भी दोनों से मिलते थे और उनके इस निर्णय का सम्मान - सर्मथन भी कर रहे थे। कुछ चीजे टूट कर भी खूबसूरत दिखती हैं इसलिए अलग होने पर भी उनका जीवन ठीक ठाक ही चल रहा था ।
जो अच्छा हुआ उसमे से एक यह था कि अब राज ज्यादातर सोच-समझ कर फैसले लेता और अंतर्मुखी स्वभाव से बाहर आकर खुलकर दोस्तों से बात करता था, उनकी अच्छी सलाह पर अमल भी करता था। उधर नन्दिनी भी अपने जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सों में बदलाव कर रही थी। अपने जीवन को, घर को, काम को व्यवस्थित कर रही थी और उसका बॉस काम के प्रति उसके लगन को देख कर इतने कम समय ही उससे प्रभावित हो रहा था। नई चीजे करना, नई जगह घूमना जैसे वह खुद को ही फिर से तलाश रही थी। उसे महसूस हो रहा था कि राज के साथ उसके बिगड़े रिश्ते में उसका भी उतना ही हाथ था। खुद की उलझन को इतना खुला छोड़ा था जिसमें उसका प्यार भी उलझ कर रह गया।
रेणु ने पार्टी रखी तो नन्दिनी मना नहीं कर पाई आने से। वैसे भी राज से ध्यान हटाने के लिए वो हर सम्भव प्रयास कर ही रही थी।
"अरे! तुम कमाल लग रही हो!! थैंक्स आने के लिए, मेरी पार्टी मे चार चांद लगा दिए तुमने! " रेणु ने नन्दिनी को गले लगा कर कहा।
नन्दिनी ब्लैक कलर की साड़ी में सचमुच तारों भरी रात सी चमक रही थी।
"वाह चार चांद.. क्या उपमा दी.. कहाँ है बाकी तीन चांद... ।" नन्दिनी कहते हुए रुक गई। उसकी नजर रोहित पर पड़ी। राज, रेणु, नंदिनी और रोहित... उनकी चौकड़ी का चौथा शख्स, रेणु का होने वाला मंगेतर जो राज का भी खास दोस्त बन चुका था। उसने नन्दिनी को इशारे से अभिनन्दन किया। वो समझ गई अगर रोहित है तो राज भी होगा ही।
नंदिनी मुस्कुराई और रोहित के पास बैठ गई। "तुमने मुझे नहीं बताया कि तुम उसे भी बुला रहे हो?"
"हम दोनों तो अब भी दोस्त हैं तो मैं क्यों नहीं बुला सकता? खैर मैं कोई पुरानी बात नहीं छेड़ूंगा।"
"जो भी हो... छोड़ो जाने दो!" नन्दिनी ने वेटर को इशारा कर अपने लिए कुछ खाने को मंगा लिया।
उसके अंदर कुछ तोड़ रहा था। उसे लगा इसी पल वो इस जगह से दूर चली जाए।
अचानक उसे किसी ने कन्धे पर थपकी दी। जैसे ही वह मुड़ी, उसने राज को देखा।
"तुम!" खाना उसके गले में आ फँसा।
"क्या तुम ठीक हो, नन्दिनी?" राज घबरा कर बोल बैठा और रोहित ने नन्दिनी के पीठ पर थपकी दी।
"तुम जाओ!!" नन्दिनी धीरे से चिल्लाई, जोर से खांसने से या किसी और कारण उसकी आंखें नम हो आई थी।
"तो क्या अब हम दुश्मन भी हैं?"
"नहीं दुश्मन तो नहीं, फिर भी देखो तो, तुमने बिना छुए मेरा गला घोंट दिया और भोलेपन से सवाल पूछ रहे हो?" नन्दिनी ने खुद को संभालते हुए कहा। जैसे कुछ था जो बाहर आना चाहता था, एक घुटन को आजादी चाहिए थी, फोन पर की गई बातचीत में कोई कितना तोड़ता एक दूजे को।
हालाँकि इसके आगे वह अपने मुंह से शब्द नहीं निकाल पा रही थी। राज को देखने के बाद वह अब उस माहौल में असहज हो उठी थी। उसने ध्यान दिया कि ईन दो महीने मे राज पहले की तुलना में अधिक सुंदर, नया सा और बेहतर लग रहा था। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। ज़बान दिल का साथ नहीं दे रही थी।
वह वहाँ और एक क्षण भी अधिक नहीं बैठ सकती थी। राज की उपस्थिति उसके अंदर कुछ बदल रही थी।
"ठीक है, मैं चलती हूँ, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है।" उसने अपना पर्स उठाया और रेणु को बाय कहा।
जब वह जाने के लिए मुड़ी तो राज ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"अभी मत जाओ, प्लीज।"
उसकी आँखों ने दर्द साफ दिख रहा था क्योंकि वह जानता था कि वह उसे फिर से खोने वाला है। उन दो महीनों में उसके बिना रहना उसके लिए आसान नहीं था और वह उसे फिर से जाने नहीं देना चाहता था।
"मैं ... मैं ..." नन्दिनी ने उसकी आँखों में देखा और तुरंत मुँह फ़ेर लिया।
"देखो हाथ छोड़ दो, यहाँ तमाशा करने की कोई जरूरत नहीं है मैं यहाँ नहीं रुक सकती.. मुझे यहाँ होना ही नहीं चाहिये था।"
उसने धीरे से उसका हाथ छुड़ाया और चली गई।
राज ने उदास होकर आह भरी और कुर्सी पर बैठ गया।
"तो तुम क्या यहाँ खाना खाने आए हो ?" रोहित ने कहा तो राज चौंक गया।
"अरे जाओ भाई। उसके पीछे जाओ! ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा, इतनी दूरियाँ काफी रही... "।
"वह मुझे नहीं चाहती रोहित। वो..." राज की आंखों में आंसू आ गए।
"वो चाहती है! वह तुमसे बहुत प्यार करती है, क्या तुम उसकी आँखों में नहीं देख सकते जो ना चाहते हुए भी तुम्हें ही तलाश रही थी? और यदि तुम्हें अपनी गलतियों का एहसास है तो जाओ बताओ! " रोहित चिल्लाया।
सच में मुझे ऐसा करना चाहिए? कहीं वो हमेशा के लिए ना नाराज हो जाए?"
"यार तुम सच मे ऐसे हो या तुम्हारे दिल से वो शिद्दत चली गई है?" रेणु ने पूछा।
"या यों कहें, ये जनाब आशिकी का नाटक कर रहे हैं।"
उनके ताने फिर भी सहनीय थे पर नंदिनी से दूरी असहनीय!
राज पार्टी से बाहर भागा और उसकी दो प्रतीक्षित व्याकुल आँखे किसी को ढूंढ रही थी। बेतहाशा पार्किंग, गार्डन मे ढूंढने के बाद वो एक बेंच पर आ बैठा।
"मुझे ढूंढ रहे हो?"
नन्दिनी की आवाज पर वह उसे देखने के लिए मुड़ा और उसे कसकर गले लगा लिया।
"मैं ... मुझे माफ़ कर दो।" वह फूट कर रोया, अपने बिखरे हुए अंतस को समेटते हुए आज सब कुछ आंसुओ के रास्ते बहा देने को तैयार दिखा।
"रोहित ने मुझसे कहा था कि तुम मुझसे एक बार मिलना चाहते हो।"
नन्दिनी अब भी संयत लग रही थी।
"हाँ। मैं...मैं...क्या सिर्फ यही वजह है तुम रुकी हो यहाँ?"
"क्या तुम्हें मेरी याद आती है?" नन्दिनी ने पूछा।
"आई मिस्ड यू बैडली , नन्दिनी।" राज ने आह भरी। "काश मैं कह सकता कि मुझे याद आती थी क्योंकि ऐसा एक पल नहीं गुजरा जब तुम्हें भूला हूँ, तुम साँस बनकर मुझमे प्रवाहित थी... अपनी नादानी मे तुम्हें खो दिया था, किस मुँह से तुम्हें परेशान करता..."
नन्दिनी ने उसका चेहरा थाम कर कहा " और मैंने...मैंने भी तो ना खुद को समझने की कोशिश की ना इस रिश्ते को सुलझाने की, आदतन भाग खड़ी हुई!... "
"मत रुको, प्लीज मत रुको.. कोसो, बोलो पर दूर मत जाना... " ज़माने बाद वो दोनों एक दूजे के करीब थे, सिर्फ शरीर से नहीं बल्कि आत्मा तक एक दूजे के साथ को तरस रही थी, जैसे दो अपूर्ण लोग एक साथ रहकर ही पूर्ण होते बेशक अपनी अपूर्णता को स्वीकार सके तो!
"मैंने तुम्हें बहुत याद किया, नन्दिनी! मुझे लगा कि तुमने हमेशा के लिए छोड़ दिया है, तुम्हें वापस पाने की उम्मीद खो चुका था मैं।"
"नहीं, बेवकूफ। हमने एक ब्रेक लिया था, तुम्हें पता है मैं लापरवाह हूँ पर बातें सीधी करती हूँ। " नन्दिनी हँस पड़ी।
"हमारे बीच जो बुरा हुआ उसके लिए मुझे बहुत अफसोस है, मैं तुमसे वादा करता हूँ कि अब जो तुम्हारे सामने है एक बदला हुआ राज है।"
"मुझे भी अफसोस है, राज।"
उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और दुनिया जहान को भुला खुद को तलाशने लगे उस रिश्ते में जो उनके जीवन का हिस्सा बन चुका था। हर बार परफेक्शन जरूरी नहीं, कई बार चाहत भारी पड़ जाती है। मुकम्मल जहान किसे मिला है जिसे तलाशने मे बचा खुचा भी लुटा दें।
राज अचानक घुटनों पर आ गया।
"मुझसे शादी करोगी नन्दिनी? इस बेवकूफ को तुम्हारी ताउम्र जरूरत है.. हाँ तुम मेरी चाहत और जरूरत दोनों हो.. हाँ मैं मतलबी हूँ और दिल के हाथो मजबूर हूँ.. तुम्हारी ना पर भी तुम्हारा इंतजार नहीं छोड़ूंगा!"
"हाँ मिस्टर! तुम मुझे जैसे हो मंजूर हो.. सुधार लूँगी अपने लायक, अब मैदान नहीं छोड़ूंगी..."
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गया शिक्षक निर्वाचन सीट पर बीजेपी की जीत लगभग तय हो गयी है. दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती के बाद बीजेपी के प्रत्याशी जीवन कुमार लगभग चार हजार वोटों की बढत बना चुके हैं. इस सीट से जेडीयू के संजीव श्याम सिंह सीटिंग विधान पार्षद हैं. जेडीयू ने उन्हें ही मैदान में उतारा है. लेकिन संजीव श्याम सिंह की हार तय हो गयी है. हालांकि रिजल्ट का औपचारिक एलान नहीं हुआ है. यहां तीसरे नंबर पर निर्दलीय अभिराम शर्मा रहे, जिन्हें प्रशांत किशोर का समर्थन हासिल था. वैसे विधान परिषद की पांच सीटों में से एक पर रिजल्ट घोषित कर दिया गया है. कोसी शिक्षक एमएलसी सीट परजदयू प्रत्याशी संजीव कुमार सिंह ने जीत हासिल की है. संजीव कुमार को 8692 मत मिले. वहीं, बीजेपी प्रत्याशी रंजन कुमार को 599 वोट मिले.
बिहार में विधान परिषद की पांच सीटों के लिए हुए चुनाव की काउंटिंग जारी है. कुल पांच सीटों में से एक का रिजल्ट घोषित कर दिया है. वहीं, एक अन्य सीट पर नतीजा तय हो गया है. भाजपा ने ये सीट महागठबंधन से छीन लिया है. हालांकि रिजल्ट का औपचारिक एलान होना बाकी है. कोसी शिक्षक क्षेत्र से जदयू के संजीव सिंह ने जीत दर्ज की है. गया शिक्षक निर्वाचन सीट पर बीजेपी की जीत लगभग तय हो गयी है.
तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले का फर्जी वीडियो वायरल करने के आरोपी यूट्यूबर मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. इस याचिका के जरीये मनीष ने तमिलनाडु और बिहार में दर्ज सभी मामलों की सुनवाई एक जगह करने की अपील की है. फिलहाल वो तमिलनाडु पुलिस की हिरासत में है.
गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच कांटे की लड़ाई हो रही है. बीजेपी ने विधान परिषद के पूर्व सभापति और मौजूदा एमएलसी अवधेश नारायण सिंह को मैदान में उतारा है. वहीं आरजेडी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के भाई पुनीत कुमार को टिकट दिया है. खबर लिखे जाने तक दोनों में कांटे की लड़ाई चल रही थी.
सारण शिक्षक एमएलसी सीट पर प्रथम वरीयता के वोटों की गिनती के बाद दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती हो रही है. प्रथम वरीयता के वोटों में प्रशांत किशोर समर्थित अफाक अहमद को सबसे ज्यादा वोट मिले. अफाक अहमद को प्रथम वरीयता के 2014 वोट मिले हैं. प्रथम वरीयता के वोटों में दूसरे नंबर पर सीपीआई के आनंद पुष्कर रहे, जिन्हें 1770 वोट मिले हैं.
सासाराम में हिंसा के दौरान बम धमाके में घायल युवक की वाराणसी में इलाज के दौरान मौत हो गयी. बम धमाके के दौरान उसके सिर में चोट लगी थी. इलाज के दौरान आज राजा नामक एक युवक की मौत हो गयी है. राजा की मौसी सासाराम में रहती हैं. अपनी मौसी से मिलने के लिए वह मां के साथ सासाराम आया था लेकिन तभी वहां हिंसा होने लगी. हिंसा के दौराम बम के धमाके से वह बुरी तरह से घायल हो गया था, उसके सिर में चोटे आई थी. राजा की गंभीर हालत को देखते हुए सदर अस्पताल के चिकित्सकों ने उसे वाराणसी रेफर कर दिया था.
गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार जीवन कुमार निर्णायक बढत बनाते हुए दिख रहे हैं. वहां जेडीयू के सीटिंग एमएलसी संजीव श्याम सिंह काफी पिछड़ गये हैं. यहां प्रथम वरीयता के मतों की गिनती में बीजेपी के जीवन कुमार 2462 वोट से आगे हैं. जीवन कुमार को 5684, संजीव श्याम को 3222 मत प्राप्त हुए हैं. तीसरे नंबर पर निर्दलीय अभिराम शर्मा हैं, जिन्हें प्रशांत किशोर का समर्थन हासिल था. गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में दूसरी वरीयता के मतों की गिनती के बाद ही रिजल्ट आयेगा.
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के लिए भी मतगणना शुरू हो गई है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक महागठबंधन के उम्मीदवार वीरेंद्र नारायण यादव पहले राउंड की गिनती में एनडीए उम्मीदवार महाचन्द्र प्रसाद सिंह से 331 वोटों से आगे चल रहे हैं. सारण स्नातक क्षेत्र पर कुल 9 उम्मीदवार मैदान में हैं, मगरजेडीयू और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला है.
बिहार में विधान परिषद की पांच सीटों पर रहे चुनाव में पहला रिजल्ट आ गया है. कोसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जेडीयू के संजीव सिंह ने भारी मतों से जीत हासिल कर ली है. इस सीट पर मतगणना समाप्त हो चुकी है, जिसमें जेडीयू प्रत्याशी संजीव कुमार सिंह ने जीत हासिल की है. संजीव कुमार को 8692 मत मिले. वहीं, बीजेपी प्रत्याशी रंजन कुमार को सिर्फ 599 वोट मिले. इस सीट पर कुल 13467 वोट वैलिड पाए गए थे. उधर, गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के जीवन कुमार आगे चल रहे हैं. पहले राउंड की समाप्ति के बाद जीवन कुमार को 2939 वोट मिले थे. वहीं, सीटिंग एमएलसी जेडीयू के संजीव श्याम सिंह को सिर्फ 1604 वोट मिले थे. निर्दलीय अभिराम शर्मा तीसरे स्थान पर थे.
आरा की कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. आरा कोर्ट में हुए बम ब्लास्ट के मामले में अदालत ने दोषी कुख्यात लंबू शर्मा को फिर से फांसी की सजा सुनाई है. कोर्ट ने आरोपी लंबू शर्मा को पहले ही दोषी करार किया था. इससे पहले भी आरा की कोर्ट ने लंबू शर्मा को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगाते हुए केस को फिर से निचली अदालत में भेज दिया था.
बिहार में अब जातीय जनगणना के सेकेंड फेज के काम की सुगबुगाहट तेज होने लगी है. बिहार में अब हर जाती को अपना एक कोड दे दिया गया है. अगरिया 1 नंबर पर जबकि 2 नंबर पर अघोरी है. ब्राह्मण के लिए ये कोड 128 है जबकि कायस्त का कोड 22 है. राजपूत का कोड 171, भूमिहार का कोड 144, कुर्मी का कोड 25, कुशवाहा-कोईरी को कोड नंबर 27 दिया गया है. यादव जाति को 167 कोड दिया गया है जिसमें ग्वाला, गोरा, घासी, मेहर, अहीर, सदगोप, लक्ष्मीनारायण गोला शामिल हैं.
पटना एसकेएमसीएच में भर्ती पटना के कारोबारी योगेंद्र कुमार की हत्या व आर्म्स एक्ट का आरोपी बंदी कृष्ण मुरारी कुमार फरार हो गया है. वह मंगलवार को तड़के सुबह चार बजे सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर हथकड़ी के साथ मेडिसिन के आइसीयूवार्ड से भागा है. कैदी भागने की सूचना के बाद पूरे परिसर में अफरा- तफरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी.
मंगलवार को पटना शहर के जिन पांच इलाकों का एक्यूआइ केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था उसमें सभी पांचों इलाके में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण पीएम 10 रहा है. पीएम 2. 5 जहां हवा में सूक्ष्म धूलकण है, वहीं पीएम 10 हवा में मौजूद मोटे आकार के धूलकण हैं. शहर के डीआरएम कार्यालय दानापुर के पास का एक्यूआइ 121, पटना सिटी स्थित गवर्नमेंट हाइ स्कूल शिकारपुर का एक्यूआइ 138, राजवंशी नगर का एक्यूआइ 175, समनपुरा का एक्यूआइ 210 दर्ज किया गया है.
यूट्बर यू मनीष कश्यप पर पुराने मामले में भी केस दर्ज किया जा रहा है. मनीष के खिलाफ पटना में आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) ने एक और केस दर्ज किया है. ये केस एक पुराने वीडियो के आधार पर किया गया है. जिसमें मनीष कश्यप अपने दो साथियों के साथ मिलकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करता हुआ दिख रहा है. इओयू के अनुसार नयी एफआइआर में मनीष कश्यप, रवि पुरी और अमित सिंह को नामजद किया गया है. आइपीसी और आइटी एक्ट की धाराओं के तहत दर्ज इस नए केस की टीम बनाकर इसकी जांच शुरू कर दी है.
जवाहर नवोदय विद्यालय सिलेक्शन टेस्ट (जेएनएसवीटी) छठी कक्षा में प्रवेश परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी कर दिया गया है. जवाहर नवोदय विद्यालयों में शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए छठी कक्षा में प्रवेश के लिए परीक्षा 29 अप्रैल को राज्य के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर सुबह 11. 30 बजे से आयोजित की जायेगी. रिजल्ट जून में जारी किया जायेगा. एडमिट कार्ड navodaya. gov. in जाकर डाउनलोड कर सकते हैं. सेलेक्सन टेस्ट दो घंटे का होगा. परीक्षा 11:30 बजे से 1:30 बजे तक ली जायेगी. इसमें तीन सेक्शन होंगे.
बिहार में गर्मी अब बढ़ती जा रही है. इस बार कड़कड़ाती ठंड के बाद अब भीषण गर्मी का सामना भी लोगों को करना पड़ेगा. फिलहाल मौसम का तेवर अधिक खतरनाक नहीं है लेकिन अब सूबे का तापमान तेजी से बढ़ने के आसार हैं. 3 से 5 डिग्री तक तापमान आने वाले दिनों में बढ़ सकता है. राजधानी पटना समेत प्रदेश के अधिकतर जिलों के अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी होगी और लोगों को उमस भरी गर्मी का सामना करना पड़ सकता है.
बिहार विधानपरिषद चुनाव परिणाम आज आएगा. पांच निर्वाचन क्षेत्रों में शुक्रवार को हुए चुनाव में 72. 5% वोटिंग हुई थी. इन चुनाव में गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में आठ, सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में नौ, गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में 12, सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में 12 और कोसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में सात प्रत्याशी मैदान में हैं.
बिहार विधानपरिषद की पांच सीटों की मतगणना बुधवार को सुबह आठ बजे से शुरू हो जायेगी और देर रात तक परिणाम आने की संभावना है. जिनका परिणाम बुधवार को आयेगा उसमें गया स्नातक निर्वाचन क्षेत्र, सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र, गया शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र, कोसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र और सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र शामिल है.
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बनाती हैं ॥ १० ॥ देखो देखो, श्रीकृष्ण शत्रुके चारों ओर पैंतरा बदल रहे हैं। उनके मुखपर पसीनेकी बूँदें ठीक वैसे ही शोभा दे रही हैं, जैसे कमलकोशपर जलकी बूँदें ॥ ११ ॥ सखियो ! क्या तुम नहीं देख रही हो कि बलरामजीका मुख मुष्टिकके प्रति क्रोधके कारण कुछ कुछ लाल लोचनोंसे युक्त हो रहा है। फिर भी हास्यका अनिरुद्ध आवेग कितना सुन्दर लग रहा है ॥ १२ ॥ सखी! सच पूछो तो व्रजभूमि ही परम पवित्र और धन्य है। क्योंकि वहाँ ये पुरुषोत्तम मनुष्यके वेषमें छिपकर रहते हैं। स्वयं भगवान् शङ्कर और लक्ष्मीजी जिनके चरणोंकी पूजा करती हैं, वे ही प्रभु वहाँ रंग-बिरंगे जंगली पुष्पोंकी माला धारण कर लेते हैं तथा बलरामजीके साथ बाँसुरी बजाते, गौएँ चराते और तरह-तरहके खेल खेलते हुए आनन्दसे विचरते हैं ॥ १३ ॥ सखी पता नहीं, गोपियोंने कौन-सी तपस्या की थी, जो नेत्रोंक दोनोंसे नित्य-निरन्तर इनकी रूप- माधुरीका पान करती रहती हैं। इनका रूप क्या है, लावण्यका सार ! संसारमें या उससे परे किसीका भी रूप इनके रूपके समान नहीं है, फिर बढ़कर होनेकी तो बात ही क्या है ! सो भी किसीके सँवारने-सजानेसे नहीं, गहने कपड़ेसे भी नहीं, बल्कि स्वयंसिद्ध है। इस रूपको देखते-देखते तृप्ति भी नहीं होती। क्योंकि यह प्रतिक्षण नया होता जाता है, नित्य नूतन है। समग्र यश, सौन्दर्य और ऐश्वर्य इसीके आश्रित हैं। सखियो ! परन्तु इसका दर्शन तो औरॉके लिये बड़ा ही दुर्लभ है। वह तो गोपियोंके ही भाग्यमें बदा है। १४ । सखी । व्रजको गोपियाँ धन्य हैं। निरन्तर श्रीकृष्णमें ही चित्त लगा रहनेके कारण प्रेमभरे हृदयसे, आँसुओंके कारण गद्गद कण्ठसे वे इन्हींकी लीलाओंका गान करती रहती हैं। वे दूध दुहते, दही मथते, धान कूटते, घर लीपते, बालकोंको झूला झुलाते रोते हुए बालकोंको चुप कराते, उन्हें नहलाते - धुलाते, घरोंको झाड़ते बुहारते-कहाँतक कहें, सारे काम-काज करते समय श्रीकृष्णके गुणोंकि गानमें ही मस्त रहती हैं ॥ १५ ॥ ये श्रीकृष्ण जब प्रातःकाल गौओंको चरानेके लिये व्रजसे वनमें जाते हैं और सायङ्काल उन्हें लेकर व्रजमें लौटते हैं, तब बड़े मधुर
* स्त्रियाँ जहाँ बातें कर रही थी, बाँसे निकट ही वसुदेव-देवकी कैद थे अतः ये उनकी बातें
खरसे बाँसुरी बजाते हैं। उसकी टेर सुनकर गोपियाँ घरका सारा कामकाज छोड़कर झटपट रास्तेमें दौड़ आती हैं और श्रीकृष्णका मन्द-मन्द मुसकान एवं दयाभरी चितवनसे युक्त मुखकमल निहार-निहारकर निहाल होती हैं। सचमुच गोपियाँ हो परम पुण्यवती है ॥ १६ ॥
भरतवंशशिरोमणे जिस समय पुरवासिनी स्त्रियाँ इस प्रकार बातें कर रही थीं, उसी समय योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्णने मन-ही-मन शत्रुको मार डालनेका निश्चय किया ॥ १७ ॥ स्त्रियोंकी ये भयपूर्ण बातें माता-पिता देवकी वसुदेव भी सुन रहे थे। वे पुत्रस्नेहवश शोकसे विहल हो गये। उनके हृदयमें बड़ी जलन, बड़ी पीड़ा होने लगी। क्योंकि वे अपने पुत्रोंके बल वीर्यको नहीं जानते थे ॥ १८ ॥ भगवान् श्रीकृष्ण और उनसे भिड़नेवाला चाणूर दोनों ही भिन्न-भिन्न प्रकारके दाँव-पेंचका प्रयोग करते हुए परस्पर जिस प्रकार लड़ रहे थे, वैसे ही बलरामजी और मुष्टिक भी भिड़े हुए थे ॥ १९ ॥ भगवान्के अङ्ग प्रत्यङ्ग वज्रसे भी कठोर हो रहे थे। उनकी रगड़से चाणूरको रग-रग ढीली पड़ गयो। बार-बार उसे ऐसा मालूम हो रहा था मानो उसके शरीरके सारे बन्धन टूट रहे हैं। उसे बड़ी ग्लानि, बड़ी व्यथा हुई ॥ २० ॥ अब वह अत्यन्त क्रोधित होकर बाजकी तरह झपटा और दोनों हाथोंके घूंसे बाँधकर उसने भगवान् श्रीकृष्णकी छातीपर प्रहार किया ॥ २१ ॥ परन्तु उसके प्रहारसे भगवान् तनिक भी विचलित न हुए, जैसे फूलोंके गजरेको मारसे गजराज। उन्होंने चाणूरको दोनों भुजाएँ पकड़ लीं और उसे अन्तरिक्षमें बड़े वेगसे कई बार घुमाकर धरतीपर दे मारा परीक्षित् ! चाणूरके प्राण तो घुमानेके समय ही निकल गये थे। उसकी वेष-भूषा अस्त-व्यस्त हो गयी, केश और मालाएँ बिखर गर्यो, वह इन्द्रध्वज (इन्द्रकी पूजाके लिये खड़े किये गये बड़े झंडे) के समान गिर पड़ा ॥ २२-२३ । इसी प्रकार मुष्टिकने भी पहले बलरामजीको एक घूंसा मारा। इसपर बली बलरामजीने उसे बड़े जोरसे एक तमाचा जड़ दिया ॥ २४ ॥ तमाचा लगनेसे वह काँप उठा और आँधीसे उखड़े हुए वृक्षके समान अत्यन्त व्यथित और
अन्तमें प्राणहीन होकर खून उगलता हुआ पृथ्वीपर गिर पड़ा ॥ २५ ॥ हे राजन् ! इसके बाद योद्धाओंमें श्रेष्ठ भगवान् बलरामजीने अपने सामने आते ही कूट नामक पहलवानको खेल खेलमें ही बायें हाथके बायें हाथके घूंसेसे उपेक्षापूर्वक मार डाला ॥ २६ ॥ उसी समय भगवान् श्रीकृष्णने पैरकी ठोकरसे शलका सिर धड़से अलग कर दिया और तोशलको तिनकेकी तरह चीरकर दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार दोनों धराशायी हो गये ॥ २७ ॥ जब चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल - ये पाँचों पहलवान मर चुके, तब जो बच रहे थे, वे अपने प्राण बचानेके लिये स्वयं वहाँसे भाग खड़े हुए ॥ २८ ॥ उनके भाग जानेपर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी अपने समवयस्क ग्वालवालोंको खींच-खींचकर उनके साथ भिड़ने और नाच-नाचकर भेरीध्वनिके साथ अपने नूपुरोंकी झनकारको मिलाकर मल्लक्रीडा - कुश्तीके खेल करने लगे ॥ २९ ॥
भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामकी इस अद्भुत लीलाको देखकर सभी दर्शकोंको बड़ा आनन्द हुआ। -इस श्रेष्ठ ब्राह्मण और साधु पुरुष 'धन्य है, धन्य है', प्रकार कहकर प्रशंसा करने लगे। परन्तु कंसको इससे बड़ा दुःख हुआ। वह और भी चिढ़ गया ॥ ३० ॥ जब उसके प्रधान पहलवान मार डाले गये और बचे हुए सब-के-सब भाग गये, तब भोजराज कंसने अपने बाजेगाजे बंद करा दिये और अपने सेवकोंको यह आज्ञा दी - ॥ ३१ ॥ 'अरे, वसुदेवके इन दुश्चरित्र लड़कोंको नगरसे बाहर निकाल दो। गोपोंका सारा धन छीन लो और दुर्बुद्धि नन्दको कैद कर लो ॥ ३२ ॥ वसुदेव भी बड़ा कुबुद्धि और दुष्ट है। उसे शीघ्र मार डालो और उग्रसेन मेरा पिता होनेपर भी अपने अनुयायियोंके साथ शत्रुओंसे मिला हुआ है। इसलिये उसे भी जीता मत छोड़ो ॥ ३३ ॥ कंस इस प्रकार बढ़-बढ़कर बकवाद कर रहा था कि अविनाशी श्रीकृष्ण कुपित होकर फुर्तीसे वेगपूर्वक उछलकर लीलासे ही उसके ऊँचे मञ्चपर जा चढ़े ॥ ३४ ॥ जब मनस्वी कंसने देखा कि मेरे मृत्युरूप भगवान् श्रीकृष्ण सामने आ गये, तब वह सहसा अपने सिंहासनसे उठ खड़ा हुआ और हाथमें ढाल तथा तलवार उठा ली ॥ ३५ ॥ हाथमें तलवार लेकर वह चोट करनेका
अवसर ढूँढ़ता हुआ पैंतरा बदलने लगा। आकाशमें उड़ते हुए बाजके समान वह कभी दायीं ओर जाता तो कभी बायीं ओर। परन्तु भगवान्का प्रचण्ड तेज अत्यन्त दुस्सह है। जैसे गरुड़ साँपको पकड़ लेते हैं, वैसे ही भगवान्ने बलपूर्वक उसे पकड़ लिया ॥ ३६॥ इसी ॥ समय कंसका मुकुट गिर गया और भगवान्ने उसके केश पकड़कर उसे भी उस ऊँचे मञ्चसे रंगभूमिमें गिरा दिया। फिर परम स्वतन्त्र और सारे विश्वके आश्रय भगवान् श्रीकृष्ण उसके ऊपर स्वयं कूद पड़े ॥ ३७ ।। उनके कूदते ही कंसको मृत्यु हो गयी। सबके देखते-देखते भगवान् श्रीकृष्ण कंसको लाशको धरतीपर उसी प्रकार घसीटने लगे, जैसे सिंह हाथीको घसीटे । नरेन्द्र ! उस समय सबके मुँहसे 'हाय ! हाय !' की बड़ी ऊँची आवाज सुनायीं पड़ी ॥ ३८ ॥ कंस नित्य-निरन्तर बड़ी घबड़ाहटके साथ श्रीकृष्णका ही चिन्तन करता रहता था। वह खाते-पीते, सोते-चलते बोलते और साँस लेते - सब समय अपने सामने चक्र हाथमें लिये भगवान् श्रीकृष्णको ही देखता रहता था। इस नित्य चिन्तनके फलस्वरूप वह चाहे द्वेषभावसे ही क्यों न किया गया हो - उसे भगवान् के उसी रूपकी प्राप्ति हुई, सारूप्य मुक्ति हुई, जिसकी प्राप्ति बड़े-बड़े तपस्वी योगियोंके लिये भी कठिन है ॥ ३९ ॥
कंसके कङ्क और न्यग्रोध आदि आठ छोटे भाई थे। वे अपने बड़े भाईका बदला लेनेके लिये क्रोधसे आग-बबूले होकर भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामकी ओर दौड़े ॥ ४० ॥ जब भगवान् बलरामजीने देखा कि वे बड़े वेगसे युद्धके लिये तैयार होकर दौड़े आ रहे हैं, तब उन्होंने परिघ उठाकर उन्हें वैसे ही मार डाला, जैसे सिंह पशुओंको मार डालता है ॥ ४१ ॥ उस समय आकाशमे दुन्दुभियाँ बजने लगीं। भगवान्के विभूतिस्वरूप ब्रह्मा, शङ्कर आदि देवता बड़े आनन्दसे पुष्पोंकी वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं ॥ ४२ ॥ महाराज कंस और उसके भाइयोंकी स्त्रियाँ अपने आत्मीय स्वजनोंकी मृत्युसे अत्यन्त दुःखित हुईं। वे अपने सिर पीटती हुई आँखोंमें आँसू भरे वहाँ आयीं ॥ ४३ । वीरशव्यापर सोये हुए अपने पतियोंसे लिपटकर के शोकग्रस्त हो गयीं और बार-बार आँसू बहाती हुई ऊँ
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के ही कारण हैं । रुपये के स्वर में जो मधुरता है। वह देवताओं के घाक्यों मे नहीं। कोयल के मधुर स्वर में नहीं और न संसार के किसी बाजे मे है । रुपये के स्वर के आगे मनुष्य इन सभी को भूल जाता है ।
रुपयों को ठुकरा कर इस संसार में कोई भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता । राम दरावण युद्ध, महाभारत का युद्ध और ब्रिटेन जर्मनी का युद्ध सब रुपये के कारण ही हुये और जिस पर रुपये की कृपा वही विजयी हुआ । रुपये की शक्तियों ईश्वर की शक्तियों से बढ़ी हैं। रुपये के द्वारा संसार में बड़े से बड़ा भले से भला और बुरे से बुरा कार्य किया जा सकता है अतः रुपया ही सब कुछ है।
८०० पृष्ठ ११५ शब्दार्थ वशवर्तिनी = वश में की हुई । शक्ति । अलौकिक = इस लोक से = इस लोक से परे । मधुरिमा = मीठापन, मधुरता । चीलापारिण = सरस्वती । लक्ष्मीपति = विष्णु । पाँच जन्य = शङ्खारल काकली = मधुर वाणी । कामिनी = सुन्दर स्त्री । डमरू वाले = शिवजी ।
५७ १९६- सव भयहरण = संसार के दुख दूर करने वाला । धवलवर्ण= श्वेत रङ्ग । रुष्टिपुष्ट-क्रोध और प्रसन्नता । साख = विश्वास । प्रत्यक्षवाद = जो कुछ हो वह आँखों के सामने हो । सधः फल दानी = शीघ्र फल देने वाला ।
ठाकुर जी बोलते नहीं
मैं रुपया हूँ ।
यह गद्यांश पान्डेय वेचन शर्मा '७५' द्वारा लिखित 'रुपया'. नामक पाठ का है। रुपया अपनी आत्म कहानी कहते हुये यह सिद्ध करता है कि सेरी शक्ति ईश्वर की शक्ति से भी बड़ी है। वह कहता कि. -मन्दिर में रखकर पूजी जाने वाली ईश्वर की मूर्ति न बोलती न पैरों से चलती है और न लोगों को उसपर इतना विश्वास ही होता है कि उसकी सहायता से उनका कार्य हो जायगा । इसके विपरीत, रुपये को वह शब्द करता है । वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर हाथों हाथ पहुँच जाता है। अभी बम्बई है तो दूसरे दिन
कलकर्चे में । जिस व्यक्ति के पास रुपया है उसे यह विश्वास है कि मैं रुपये के जल से यह काम कर लूँगा श्रथवा करबा लूँगा । मनुष्य जितना रुपये को चाहते हैं देवताओं को नहीं। ईश्वर मे भी वह तेज और शक्ति नहीं जो रुपये में है। वर्तमान समय में प्रत्येक वस्तु तर्क की कसौटी पर कसी जाती है उसे सिद्ध करने के लिये उदाहरण चाहिये अथवा उसे आँखों के सामने करके दिखाना चाहिये । रुपये मे ये सम्पूर्ण गुण विद्यमान है । वह दिखाई भी देता है शीघ्र फल देते वाला है उसमे आकर्षण है वह जबकि ईश्वर दिखाई नहीं देता कठोर तपस्या करने के बाद फल देता है उसके रुप रङ्ग का पता नहीं जो आकर्षित करे । अतः युग के अनुसार रुपया ही ईश्वर है और ईश्वर से भी अधिक शक्तिमान है।
५०० ११६, ११७ शब्दार्थ मर्यादा मर्यादा = लज्जा । 'सर्वधर्मान / परित्यज्यमामे के शरण ब्रेज = सम्पूर्ण धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में ।
प्रश्न १ लेखक ने रुपये को ईश्वर से बड़ा क्यों माना ।
उत्तर रुपया ईश्वर से बड़ा इसलिये माना है कि वर्तमान समय में रुपये की ही महत्ता है। जिसके पास रुपया है वह सब कुछ कर सकता है जिसके पास रुपया नहीं वह कुछ नहीं कर सकता । दर दर घूमने वाला भिखारी संसार के दुखों से दुखी है उसे यदि + रुपया मिल जाता है तो वह अनेक सुखों का भोग करने लगता है ६३ः रुपया जन दुःख हरण और शरण शरण है। रुपये के द्वारा ईश्वर द्वारा रचित प्रकृति में परिवर्तन कर दिये जाते हैं और ईश्वर अपनी प्रकृति को बदलती हुई देख कर भी उसे अपने अनुकूल नहीं बता सकता बल्कि रुपये वाला अपनी इच्छानुसार उसे बदल डालता है । ईश्वर जहाँ पर्षा नहीं करना चाहता वहाँ रुप वर्षा कर सकता है। ईश्वर जहां पाड़ बनाता है। वहाँ मनुष्य रुपये से मैदान बना लेता है। इस प्रकार रुपया ईश्वर से अधिक शक्तिशाली है लोगों ने ईश्वर को बोलते हुये नहीं सुना किन्तु रुपया बोलता है ।
ईश्वर की मूर्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलते हुये नहीं देखा किन्तु रुपया चलता है । ईश्वर के उपासकों को ईश्वर पर इतना विरु पास नहीं रहता कि उनका कार्य ईश्वर की सहायता से हो ही जायमा जबकि रुपया रखने वाले की सहायता से यह विश्वास रहता है कि उनका कार्य अवश्य हो जायगा । रुपये के आगे मनुष्य ईश्वर को ईश्वर से अधिक आकर्षण है। मनुष्य को भूल जाता है । रुपये में ईश्वर जितना ध्यान रुपये का रहता है उतना ईश्वर का नहीं। अतः रुपया ईश्वर से बड़ा है ।
प्रश्न २ आजकल धन देवता की पूजा की प्रधानता से कौन कौन सी खराबियां हो रही हैं ? उनका संक्षेप में उल्लेख करो ।
उत्तर- धन के द्वारा जन समुदाय की उन्नति तथा अवनति दोनो ही हुई हैं । सदुपयोग ने मनुष्य की उन्नति की है और दुरुपयोग ने अविनति की है। अधिकतर यह देखा गया है जिन लोगों को धर्म मिल जाता है वह अभिमान में आकर अनेक अनुचित कार्य करने लगते है । संसार में धन ही उनकी प्रिय वस्तु हो जाती है उसको प्राप्त करने के लिय वे मनुष्य की समाज की और राष्ट्र की उपेक्षा करने लगते हैं धन प्राप्त करने के लिये जमीदार किसानों का शोषण करते हैं । साहूकार निर्धनों का और मिल मालिक मजदूरों का शोषण करते हैंठकमारकिट करके राष्ट्र और समाज दोनों का ही करते है। वर्तमान समय में ये कार्य नित्यप्रति बढ़ते जा हैं. और लोग धन प्राप्त करने के लिये नये २ साधनों का विकार कर रहे हैं । डाकू बनकर लड़कों को उड़ाना, स्त्रियों को बेचना और उससे भी अधिक बुरे कार्यों को अपनाने लगे हैं।
प्रश्नोत्तर ३ मेरा जन्म अमेरिका की एक खान में हुआ था । न. मां की गोद में आनन्द के साथ रहता था। मुझे न कोई दुःख था न अशान्त । मेरे साथ मेरे अन्य भाई भी थे जिनसे हिलमिल कर मेरा समय आनन्द पूर्वकं व्यतीत हो रहा था ।
'सब दिन जात न एक समाने । बाबा तुलसीदास जी की चौपाई
"अनुसार मेरे सर पर आपत्तियों की काली घटायें सड़राई । एक दिन कुछ लोग खोदते सोते मेरे घर के पास भी पहुँचे। उन्होंने मुझे पल पूर्वक मेरी मां की गोदी से छीन लिया और पकड़ कर बाहर ले श्रये । मुझे रेल के डिब्बे में सवार कराके न्यूयार्क भेज दिया गया जहाँ मुझे एक कारखाने मे शरण मिली । मैं बाहर मैदान में पड़ा र जहाँ मुझे गर्मी, वर्षा और जाड़े का सामना करना पड़ा। अव मेरी विपत्तियों का और भी बढ़ना श्रारम्भ हुआ। मुझे बिजली की भट्टी में डालकर इतना तपाया गया कि मेरी चिर सहचरी मिट्टी तथाचन्य बन्धुषों से मेरा बिछो हुआ और मुझे गलाकर अपने सभी रजनों से अलग कर दिया गया। मैंने हृदय पर पत्थर रख सब कुछ सहन किया। मुझे अब अपनी कुरुपता से छुटकारा मिल गया था इस कारण मुझे कुछ संतोष हुआ ।
एक दिन नसकुछ लोगों ने समुद्र के किनारे बंदरगाह पर बाकर डाल दिया । मैं अपने इस भाग्य पर आश्चर्य कर रहा था । मुझे दूसरे दिन जहाज पर लाद दिया गया और मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि मैं समुद्री यात्रा पर था । कई दिन पश्चात मुझे बग्बई बंदरगाह पर लाकर उतारा गया ।
ई से मुझे फिर एक कारखाने पर भेज दिया गया जहाँ मुझे फिर नई वापत्तियों का सामना करना पड़ा । मुझे फिर इतना तपाया गया कि मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इस बार मुझे अपना अस्तित्व ही खोना पड़ेगा। मुझे गला कर सांचे में ढाला गया। सांचे से निकलने पर तो मेरा रूप अत्यन्त ही सुन्दर था । मुझे चन्द्रमा की भाँति गोल सुन्दर मुखड़ा मिला । बाहर निकलने पर तो मेरा बड़ा आदर सत्कार हुआ। अब तो मुझे बालक, वृद्ध, स्त्री पुरुष सभी चाहते हैं सभी मुझ से प्रेम करते हैं। अब मैं अपने सौभाग्य पर प्रसन्न हूँ ।
प्रश्नोत्तर ४. पाण्डेय वेचन जी शर्मा 'उम' उन साहित्यकों में से
हैं जो अपनी लेखनी से हिन्दी में युगान्तर उपस्थिति कर सकते हैं आपका जन्म सन् १९०१ में चुनार में हुआ था । सिन्दू सेन्ट्रल स्कूल से अधूरी शिक्षा प्राप्त कर आप साहित्य क्षेत्र मे कूद पड़े और कहानी आम कहानी, लेख नाटक उपन्यास इत्यादि से साहित्य की वृद्धि और पुष्टि करने में जुट गये । उम्र जी आदर्शवाद के पक्षपाती न हो कर यथार्थवाद के पक्षपाती हैं। आदर्शवाद के नाम से समाज
की बुराइयों की ओर से न तो स्वयं आँख मीचना कहते हैं और न समाज को ही अज्ञानान्धकार में रख कर उसे प्रत्यक्ष और यथार्थ की ओर से धोखे में डाले रखना चाहते हैं ।
आप सावा वेश में जो कुछ भी लिखते हैं उसमें भावों की उता तथा भाव व्यञ्जनाको प्रगल्भंता रहती है। आपके वाक्य छोटे औरशब्द सरल होते हैं किन्तु उन शब्दों में प्रवाह और प्रभाव रहता है। श्राप विशुद्ध अथवा परिमार्जित हिन्दी के पक्षपाती न हो कर बोलचाल की हिन्दी के पक्षपाती हैं प्रचलित उर्दू अथवा अंग्रेजी शब्दों को प घड़ल्ले से अपना लेते हैं । आपकी भाषा का नमूना देखियेः "ठाकुर जी बोलते नहीं, मैं बोलता हूँ उनसे बड़ा हूँ । ठाकुर जी चलते नहीं मैं चलता हूँ उनसे मेरी अधिक है। देवताओं से वह आकर्षण नहीं, जो मुझ में है । ईश्वर में छह तेज तथा शक्ति नहीं जो मुझ में है ।"
प्रश्नोत्तर ५ बुढ़ौती वृढ़ा से भाववाचक संज्ञा । मनमनाइट વુદ્રાંતી • मनमताना से भाववाचक संज्ञा । तुष्टि तोष से भाववाचक संज्ञा वेरहमी बेरहम से भाववाचक संज्ञा । मधुरिसा मधुर से भाववाचक संज्ञा । पराजित पराजय से त प्रत्यय लगाकर विशेषण ।
प्रश्नोत्तर ६ पाञ्चजन्य श्री कृष्ण के शंख का नाम विजय के समय बजाया करते थे । सप्तशती -- दुर्गाचरित्र के सात सौ मन्त्रों की पुस्तक । यह दुर्गापाठ भी कहलाता है। दुर्गाओं में इसका विशेष रूप से पाठ किया जाता है। प्रत्यक्षवाद् -- इसमें आदर्श भूत
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विधानसभा चुनाव राउंड-अपः पश्चिम बंगाल के नेता तरुण साहा और शिखा मित्रा ने कहा कि उन्हें उम्मीदवाद बनाने से पहले भाजपा की ओर से उनसे स्वीकृति नहीं ली गई. राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा कि 'जय श्रीराम' के नारे से ममता बनर्जी की चिढ़ के कारण यह फ़ैसला लिया. टिकट न मिलने से नाराज़ 15 नेताओं को असम भाजपा ने छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित किया.
कोलकाताः भारतीय जनता पार्टी ने बीते बृहस्पतिवार को पश्चिम बंगाल के पांचवें छठे, सातवें और आठवें चरण के चुनाव के लिए 148 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी. इस सूची में पार्टी ने तरुण साहा को काशीपुर-बेलगाचिया सीट और दिवंगत कांग्रेस नेता सोमेन मित्रा की पत्नी शिखा मित्रा को चौरिंगी सीट से अपना प्रत्याशी बनाया था.
हालांकि दोनों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. दोनों नेताओं ये तक कह दिया कि भाजपा ने स्वीकृति के बिना उनकी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, काशीपुर-बेलगाचिया सीट से तृणमूल कांग्रेस की निवर्तमान विधायक माला साहा के पति तरुण साहा ने भाजपा के टिकट पर आने वाले चुनाव में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया है. पत्रकारों से बाचीत में उन्होंने कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं और भाजपा ने उनसे सलाह लिए बिना उन्हें प्रत्याशियों की सूची में शामिल किया है.
माला साहा ने तृणमूल की ओर से काशीपुर-बेलगाचिया सीट पर साल 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में लगातार जीत दर्ज की थी. हालांकि इस समय पार्टी ने कोलकाता के डिप्टी मेयर अतिन घोष को यहां से टिकट दिया है.
शिखा मित्रा ने भाजपा द्वारा बृहस्पतिवार को शहर की चौरिंगी सीट से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा किए जाने के तुरंत बाद कहा कि उनकी स्वीकृति के बिना उनके नाम का ऐलान किया गया है और वह राजनीति में नहीं आएंगी.
मित्रा ने खुद के भाजपा में शामिल होने के कयासों पर विराम पर भी विराम लगा दिया. भाजपा नेता तथा पारिवारिक मित्र शुभेंदु अधिकारी से उनकी मुलाकात के बाद ऐसी अटकलें तेज हो गई थीं.
शिखा ने चौरिंगी सीट पर साल 2011 में जीत दर्ज की थी. हालांकि बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गईं. वर्तमान विधायक के इस्तीफा दे देने से साल 2014 में यहां उपचुनाव कराए गए थे, जिसमें तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी नयना बंदोपाध्याय ने विजय हासिल की थी. इस चुनाव में बंदोपाध्याय एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस की ओर से मैदान में हैं.
बहरहाल टिकटों की घोषणा के बाद भाजपा में एक बार फिर बगावत देखने को मिली. भाजपा युवा मोर्चा की राज्य इकाई के नेता और पूर्व भाजपा नेता तपन सिकदर के बेटे सौरव सिकदर ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने पार्टी पर पुराने नेताओं का अपमान करने का आरोप लगाया.
राज्य के अन्य इलाकों में जहां भाजपा ने दूसरे दलों के नेताओं को उम्मीदवार बनाया है, वहां से विरोध की खबरें आ रही हैं.
पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा के लिए 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच आठ चरणों में मतदान संपन्न होगा. मतों की गिनती दो मई को होगी.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पिछले 10 साल से सत्ता में है. इस बार भाजपा और अन्य विपक्षी दल उसे चुनौती दे रहे हैं. भाजपा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है.
पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को राज्य की 294 में से 211 सीटों पर विजय हासिल हुई थी, जबकि भाजपा को महज तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस को इस चुनाव में 44 सीट और माकपा को 26 सीट मिली थीं.
एगराः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने शुक्रवार को टीएमसी छोड़ने वाले नेताओं को 'गद्दार' करार देते हुए कहा कि यह अच्छी बात है कि उन्होंने खुद ही उनकी पार्टी छोड़ दी, लेकिन इन दलबदलुओं ने भाजपा के पुराने नेताओं को नाराज कर दिया, क्योंकि भगवा पार्टी ने अपने वफादारों के ऊपर दलबदलू नेताओं को तरजीह देते हुए उन्हें मैदान में उतारने का फैसला किया है.
पूर्व मेदिनीपुर के एगरा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी ने भाजपा पर दंगा, लूट और हत्या की राजनीति करने का आरोप लगाया, और सभी से अपने इलाकों में दिखाई देने वाले ऐसे बाहरी लोगों से सतर्क रहने का आग्रह किया.
'बंगाली गौरव' को अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाने वाली टीएमसी ने भाजपा को 'बाहरी लोगों की पार्टी' करार दिया है, क्योंकि उसके शीर्ष नेता राज्य के बाहर से आते हैं.
मुकुल रॉय जैसे अन्य नेताओं के साथ भाजपा में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी के स्पष्ट संदर्भ में टीएमसी सुप्रीमो ने कहा 'गद्दार, मीरजाफर अब भाजपा के उम्मीदवार बन गए हैं, जिससे भगवा पार्टी के पुराने नेता नाखुश हैं. ' बनर्जी ने कहा कि इन दलबदलुओं को अतीत में कई जिम्मेदारियां दी गई थीं.
'नो वोट टू बीजेपी' का नया नारा गढ़ने वाली बनर्जी ने लोगों से माकपा और कांग्रेस को भाजपा के दोस्त बताते हुए उन्हें भी वोट न देने की अपील की.
माकपा, कांग्रेस और आईएसएफ ने पश्चिम बंगाल में एक नया गठबंधन बनाया है.
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल में मतदान केंद्रों के 100 मीटर के भीतर राज्य पुलिसकर्मियों को उपस्थित रहने की अनुमति नहीं देने के चुनाव आयोग के कथित फैसले के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार को चुनाव निकाय से मिला. सांसदों ने यह आरोप लगाया कि बंगाल में निष्पक्ष चुनाव वास्तविकता से बहुत दूर होता जा रहा है.
सौगत रॉय, यशवंत सिन्हा, मोहम्मद नदीमुल हक, प्रतिमा मंडल और महुआ मोइत्रा सहित टीएमसी संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग के कदम को पक्षपातपूर्ण बताया.
ज्ञापन में कहा गया है कि उचित स्तर पर इसकी पुष्टि की जानी चाहिए.
टीएमसी ने कहा कि ईसीआई का निर्णय केवल पश्चिम बंगाल के लिए है, देश के चार अन्य राज्यों के लिए नहीं हैं, जहां उसके साथ चुनाव होने जा रहे हैं.
पार्टी ने कहा कि केंद्रीय बलों की तैनाती कानून-व्यवस्था को संभालने में राज्य सरकार की मदद करने के लिए होनी चाहिए और न कि राज्य पुलिस के कर्मचारियों का जान-बूझकर अपमान करने के लिए जिन्होंने विभिन्न सरकारों के अंतर्गत काम किया है.
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल और चार अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले अभिनेता अरुण गोविल बृहस्पतिवार को भाजपा में शामिल हो गए जिन्होंने धारावाहिक 'रामायण' में राम की भूमिका निभाई थी.
गोविल ने कहा कि उन्होंने यह फैसला 'जय श्रीराम' के नारे से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की 'चिढ़' के कारण लिया.
भाजपा द्वारा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए 148 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा किए जाने के बाद गोविल नई दिल्ली में भाजपा महासचिव अरुण सिंह तथा केंद्रीय मंत्री देबाश्री चौधरी की उपस्थिति में भगवा दल में शामिल हुए.
वर्ष 1987 में आए रामानंद सागर के रामायण धारावाहिक में राम की भूमिका निभाने वाले गोविल ने कहा कि भाजपा उन्हें देश के लिए कुछ करने का एक 'मंच' प्रदान करेगी.
63 वर्षीय गोविल हिंदी और भोजपुरी सहित कई भाषाओं की फिल्मों में काम कर चुके हैं.
गुवाहाटीः असम भाजपा ने विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष दिलीप कुमार पॉल समेत 15 नेताओं को बृहस्पतिवार को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया.
निष्कासित किए गए नेता पार्टी द्वारा विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज थे और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भरा था.
भाजपा प्रदेश महासचिव राजदीप रॉय ने कहा कि पार्टी के असम प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने तत्काल प्रभाव से अनुशासनात्मक कार्रवाई को मंजूरी दी.
निष्कासित 15 सदस्यों में से एक दिलीप कुमार पॉल हैं, जिन्होंने टिकट न मिलने पर भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और वह सिलचर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.
गुवाहाटीः असम कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के लिए तीन वीडियो जारी किए हैं जिनमें पांच गांरटी के वादे को रेखांकित किया गया है. इन वीडियो में पार्टी ने जनता की बेहतरी, समरसता और वित्तीय मोर्चे पर राहत सुनिश्चित करने के लिए लोगों से उसके पक्ष में मतदान करने का आह्वान किया है.
असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) की प्रवक्ता बबीता शर्मा ने कहा कि पारंपरिक 'भावना' कथा के जरिये विवादित नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने की गांरटी देने के लिए जारी पहले वीडियो की सफलता के बाद दो और वीडियो जारी किए गए हैं.
उन्होंने कहा कि इनमें गृहणियों को महीने में दो हजार रुपये देने और 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का वादा किया गया है.
उल्लेखनीय है कि 'भावना' वैष्णव आध्यात्मिक नाटक है, जिसकी संस्कृति को 16 एवं 17वीं सदी में श्रीमंत शंकरदेव और उनके अनुयायियों ने लोकप्रिय बनाया था.
गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दो मार्च को तेजपुर दौरे पर पांच गांरटी अभियान की शुरुआत की थी.
तिरुवनंतपुरमः माकपा नीत सत्तारूढ़ एलडीएफ ने छह अप्रैल को होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए शुक्रवार को अपना घोषणा-पत्र जारी कर दिया जिसमें उसने युवाओं के लिए 40 लाख रोजगारों का सृजन करने और सभी गृहणियों को 'पेंशन' देने का वादा किया है.
माकपा राज्य समिति के सचिव के विजयराघवन, भाकपा सचिव कन्नन राजेंद्रन और एलडीएफ के अन्य नेताओं ने यहां एकेजी केंद्र पर घोषणा-पत्र जारी किया.
इसमें तटों के क्षरण को रोकने के लिए 5,000 करोड़ रुपये के तटीय क्षेत्र विकास पैकेज समेत कई अन्य वादे भी किए गए हैं.
इस मौके पर विजयराघवन ने कहा कि सभी गृहणियों को पेंशन दी जाएगी, हालांकि इस बारे में उन्होंने विस्तार से कुछ नहीं कहा. उन्होंने बताया कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 2,500 रुपये की जाएगी.
कोयंबटूरः मक्कल नीधि मय्यम प्रमुख और अभिनेता कमल हासन ने शुक्रवार को कोयंबटूर में अपनी पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया और गृहणियों के कौशल को विकसित करके उनके लिए आय का वादा किया.
उन्होंने कहा कि कौशल विकास जैसी पहलों से महिलाएं हर महीने 10 हजार रुपये से लेकर 15 हजार रुपये तक कमा सकती हैं.
तमिलनाडु की प्रमुख पार्टियों सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और मुख्य विपक्षी दल द्रमुक ने कुछ दिनों पहले अपने घोषणा पत्रों में परिवार की मुखिया महिला को 1,500 रुपये और 1,000 रुपये की मदद देने का वादा किया था.
हासन ने कहा कि गृहणियों को कमाने के उचित अवसर देने की योजना है और इसका मतलब उन्हें सरकारी खजाने से खैरात बांटना नहीं है.
उन्होंने कहा कि ऐसी पहलों से सरकार पर वित्तीय रूप से बोझ भी नहीं पड़ेगा और साथ ही महिलाएं अपने कौशल एवं काम से उचित पारिश्रमिक भी पा सकेंगी.
पुदुचेरीः मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने छह अप्रैल को होने वाले पुडुचेरी विधानसभा चुनाव में मुथियालपेट सीट के लिए अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा की साथ ही कहा कि विधानसभा की अन्य सीटों पर वह सेक्युलर डेमोक्रेटिक एलाइंस (एसडीए) को समर्थन देगी.
पार्टी ने मुथियालपेट सीट से आर. सरावनन को उम्मीदवार बनाया है. सरावनन पेशे से वकील हैं.
माकपा की पुदुचेरी इकाई के सचिव आर. राजनगम ने बृहस्पतिवार को संवाददताओं से कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाली एसडीए के घटक दल माकपा ने मुथियालपेट सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है.
साथ ही उन्होंने कहा कि माकपा अन्य सीटों के लिए मतदाताओं से एसडीए का समर्थन करने की अपील करेगी जहां से कांग्रेस, द्रमुक और गठबंधन के अन्य दलों के उम्मीदवार खड़े किए हैं.
इरोडः अन्नाद्रमुक के वर्तमान विधायक टीएन वेंकटचलम ने पेरुंदुरई निर्वाचन क्षेत्र से बृहस्पतिवार को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया.
वेंकटचलम को विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की ओर से टिकट नहीं दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया.
वह पेरुंदुरई सीट से 2011 में चुने गए थे और जयललिता सरकार में राजस्व एवं प्रदूषण नियंत्रण मंत्री थे.
इसके बाद 2016 में वह पुनः उसी सीट से विधायक चुने गए थे.
वेंकटचलम पेरुंदुरई से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने इस सीट से जयकुमार को प्रत्याशी बनाया है.
इस बार टिकट न मिलने से नाराज होकर वेंकटचलम ने अपने समर्थकों से मुलाकात करने के बाद निर्दलीय लड़ने का फैसला किया. उन्होंने बृहस्पतिवार दोपहर को नामांकन पत्र दाखिल किया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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अक्सर भावनाओं के स्तर पर जुड़ाव को प्रेम कहा जाता है। लेकिन सद्गुरु बता रहे हैं कि दो प्राणियों को इतना गहरा जोड़ना भी संभव है, कि उनकी जीवन ऊर्जाएं आपस में जुड़ जाएं। ऊर्जा के स्तर पर जुड़ने के बाद एक प्राणी के संसार छोड़ने के बाद दूसरा भी कुछ समय में सहज ही शरीर त्याग सकता है।
प्रश्नः ऐसा लगता है कि प्रेम मेरे जीवन के लिए एक ड्राइविंग फ़ोर्स है। लेकिन मैं थोड़े भ्रम में हूं कि किसी के साथ एक हो जाने और किसी के लिए बिना शर्त प्रेम करने में क्या फर्क है?
सद्गुरुः क्या वह वाकई बेशर्त है?
प्रश्नः पता नहीं। हो सकता है कि न हो।
सद्गुरु : इसमें बहुत सारी शर्तें मौजूद होती हैं। आपने दूसरे इंसान के लिए जो शर्तें तय की हैं, उससे आपकी जो उम्मीदें हैं, अगर वे सब कल टूट जाएं, तो यही प्रेम क्रोध और फिर नफरत में बदल जाएगा। इसलिए अगर हमें आपके प्रेम को कायम रखना है तो हमें दूसरे इंसान को इस तरह कंट्रोल करना होगा कि वह सिर्फ वही करे जो आप उससे उम्मीद करते हैं। वरना यह बढ़िया प्रेम बहुत बुरे गुस्से में बदल जाएगा।
मैं रिश्तों को कम करके आंकने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, मगर उसकी सीमाओं को जानने में कोई बुराई नहीं है। उसकी अपनी सीमाएं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह ख़ूबसूरत नहीं है। एक फूल बहुत सुंदर होता है, लेकिन अगर मैं उसे कुचल दूं, तो दो दिनों में वह खाद बन जाएगा। मैं एक पल में एक फूल को नष्ट कर सकता हूं मगर क्या इससे फूल की सुंदरता और अहमियत कम हो जाती है? नहीं। इसी तरह, आपका प्रेम बहुत नाजुक है। उसके बारे में काल्पनिक धारणाएं न बनाएं। साथ ही, मैं उससे जुड़ी सुंदरता से इंकार नहीं कर रहा हूं।
लेकिन अगर आप जीवन के इतने क्षणभंगुर आयाम को अपने जीवन का आधार बनाते हैं तो स्वाभाविक रूप से आप हर समय चिंतित और बेचैन रहेंगे क्योंकि आप इतने नाजुक फूल पर बैठे हुए हैं। मान लीजिए अगर आप अपना घर जमीन पर नहीं, फूल पर बनाते हैं क्योंकि वह बहुत सुंदर है, तो आप हमेशा डर-डर कर जिएंगे। अगर आप जमीन पर बुनियाद रख कर घर बनाते हैं और फिर फूल को निहारते हैं, उसे सूंघते और छूते हैं, तो यह आपके लिए बहुत बढ़िया होगा। लेकिन अगर आपने फूल के ऊपर घर बनाया, तो आप लगातार डर में रहेंगे। मैं सिर्फ उसी संदर्भ में यह बात कर रहा हूं। हम प्रेम के महत्व से इंकार नहीं कर रहे।
हालाँकि मैं ये सबके लिए नहीं कहना चाहता, मगर बहुत से लोगों के लिए ऐसा ही है कि एक स्तर पर प्रेम बस उनकी एक जरूरत है जिसके बिना वे नहीं जी सकते। जिस तरह शरीर की जरूरतें होती हैं, भावनाओं की भी जरूरत होती है। जब मैं कहता हूं, 'मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता,' तो यह ऐसा कहने से अलग नहीं है, 'मैं बैसाखी के बिना नहीं चल सकता'। अगर आपके पास ऐसी बैसाखी हो जिसमें हीरा जड़ा हो तो आप बड़ी आसानी से अपनी बैसाखी के प्रेम में पड़ सकते हैं। अब अगर आपने उसे अगले दस सालों तक इस्तेमाल कर लिया फिर अगर हम आपसे कहें, 'अब आप इस बैसाखी के बिना चलने के लिए स्वतंत्र हैं'। तो आप कहेंगे, 'नहीं, नहीं, मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूँ।' इसमें कोई समझदारी नहीं है। इसी तरह, प्रेम के नाम पर आप अपने भीतर खुद को पूरी तरह असहाय और अपूर्ण बना लेते हैं।
क्या इसका मतलब यह है कि इसमें कोई सुंदरता नहीं है, इसका कोई दूसरा आयाम नहीं है? जरूर है। ऐसे बहुत सारे लोग हुए हैं, जिन्होंने ने इस तरह जीवन जिया कि वे दूसरे के बिना अपना अस्तित्व नहीं रख सकते थे। अगर वाकई ऐसा होता है कि दो लोग एक की तरह हो जाते हैं, तो यह बहुत अद्भुत है।
यह घटना राजस्थान की है। एक राजा थे जिनकी एक युवा पत्नी थी जो उनसे बेहद प्रेम करती थी और उनके प्रति पूरी तरह समर्पित थी। मगर राजाओं की हमेशा ढेर सारी पत्नियां होती थीं। इसलिए जिस तरह रानी उनके ध्यान में पूरी तरह डूबी रहती थी, उसे यह काफी मूर्खतापूर्ण लगता था। वह हैरान होता था और उसे यह अच्छा भी लगता था, लेकिन कई बार अति हो जाती थी। फिर वह उसे थोड़ा दूर करके बाकी रानियों के साथ समय बिताता था, लेकिन वह स्त्री उसके लिए पूर्ण रूप से समर्पित थी।
राजा और रानी के पास दो बोलने वाली मैना थी। मैना ऐसी चिड़िया होती है जो ट्रेनिंग देने पर तोते से बेहतर बोल सकती है। एक दिन इनमें से एक चिड़िया मर गई तो दूसरी ने खाना-पीना छोड़ दिया और चुपचाप बैठी रही। राजा ने उसे खिलाने की हर संभव कोशिश की मगर सफल नहीं हुआ और वह चिड़िया दो दिन में मर गई।
वह बोली, 'हां, मेरे साथ भी ऐसा ही है।' राजा यह सुनकर बहुत खुश हुआ।
एक दिन, राजा अपने दोस्तों के साथ शिकार खेलने गया। उसके दिमाग में चिड़ियों के मरने और पत्नी की यह बात घूम रही थी कि उसके लिए भी यह सच है। वह इसे जांचकर देखना चाहता था। इसलिए उसने अपने कपड़े लेकर उस पर खून लगाकर एक सिपाही के हाथों महल भिजवा दिया। उसने घोषणा कर दी, 'राजा पर एक बाघ ने हमला कर दिया और उन्हें मार डाला।' रानी ने अपनी आंखों में आंसू लाए बिना बहुत गरिमा के साथ उनके कपड़े लिए, लकड़ियां इकट्ठी कीं, उनके ऊपर उन कपड़ों को रखा और फिर खुद उस पर लेटकर मर गई।
लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। रानी बस चिता पर लेटी और मर गई। कुछ और करने को नहीं था क्योंकि वह मर चुकी थी, इसलिए उन्होंने उसका अंतिम संस्कार कर दिया। जब यह खबर राजा को मिली, तो वह दुख में डूब गया। उसने सिर्फ एक सनक में आकर उसके साथ मजाक किया और वह वास्तव में मर गई। उसने आत्महत्या नहीं की, वह बस यूं ही मर गई।
लोग इस तरह भी प्रेम करते थे क्योंकि कहीं न कहीं दो लोग आपस में जुड़ जाते थे। भारत में विवाह के संस्कारों का एक पूरा विज्ञान होता था। जब दो लोगों का विवाह होता था तो सिर्फ दो परिवारों और दो शरीरों की अनुकूलता नहीं देखी जाती थी। दोनों के बीच ऊर्जा की अनुकूलता पर भी ध्यान दिया जाता था।
ज्यादातर यह होता था कि दोनों ने एक-दूसरे को देखा तक नहीं होता था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उनकी अनुकूलता कोई ऐसा व्यक्ति तय करता था, जो इस बारे में उनसे बेहतर जानता था। अगर वे खुद चुनाव करते, तो उनका चुनाव नाक, आंख व बाक़ी की कई चीजों के आधार पर होता। ये चीज़ें विवाह के तीन दिन बाद कोई मायने नहीं रखतीं। अगर आपकी पत्नी की आंखें बहुत खूबसूरत हों, मगर वह सिर्फ आपको गुस्से से घूरती रहे, तो उसका क्या फ़ायदा?
जब विवाह जानकार लोगों द्वारा तय किया जाता था, तो वे मंगलसूत्र नाम की एक चीज बनाते थे। मंगलसूत्र का मतलब है, पवित्र धागा। पवित्र धागा तैयार करना एक विस्तृत विज्ञान है। हम रुई के कुछ रेशे लेकर उसमें सिंदूर और हल्दी लगाते हैं, फिर उसे एक खास तरह से ऊर्जा दी जाती है। एक बार इसे बांध देने पर यह जीवन भर और उसके आगे के लिए होता है।
कई बार एक ही पति-पत्नी कई जीवनकालों तक पति-पत्नी रहे और वे सचेतन होकर ऐसा चुनाव करते थे, क्योंकि उन दिनों लोगों को सिर्फ शारीरिक या भावनात्मक स्तर पर ही नहीं बांधा जाता था। आप शरीर, मन और भावना के स्तर पर जो करते हैं, वह मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है। मगर आप ऊर्जा के स्तर पर जो करते हैं, वह हमेशा रहता है। आप लोगों की नाड़ियां भी साथ बांध सकते हैं। इसीलिए इस रिश्ते को जीवन भर के लिए माना जाता था। इस पर फिर से विचार करने का कोई प्रश्न नहीं था क्योंकि आपकी समझ से कहीं गहरी किसी चीज को ऐसे लोगों द्वारा जोड़ा जाता था, जो जानते थे कि क्या किया जाना चाहिए।
आजकल भी वे प्रक्रियाएं की जाती है, मगर यह ऐसे लोग करते हैं, जिन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं होती। इसलिए लोग स्वाभाविक(कुदरती) रूप से इंकार करते हैं, 'हम यह धागा नहीं पहनना चाहते।' अब आप उसे पहनें या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके पीछे का विज्ञान नष्ट हो चुका है।
जब यह प्रक्रिया ऐसे लोग करते थे जो जानते थे कि इसे कैसे करना है, तो उन दो लोगों के दिमाग में यह बात नहीं उठती थी कि 'इस व्यक्ति को मेरी पत्नी होना चाहिए या नहीं?' 'क्या यह व्यक्ति हमेशा मेरा पति रहेगा?' यह रिश्ता बस चलता रहता था। वह मृत्यु के साथ भी नहीं ख़त्म होता था।
भारत में ऐसे कई दंपत्ति(शादीशुदा कपल) हैं, जिनमें एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा कुछ महीनों के अंदर चला जाता है, चाहे वह बिलकुल स्वस्थ ही क्यों न हो, क्योंकि उनकी ऊर्जा इस तरह एक साथ बांध दी जाती है। अगर आप किसी दूसरे इंसान से इस तरह बंधे हैं कि दो लोग एक बनकर रहते हैं, तो यह अस्तित्व का बहुत अच्छा तरीका है। यह एक चरम संभावना नहीं है, मगर फिर भी जीने का एक खूबसूरत तरीका है।
आज जब लोग प्रेम की बात करते हैं, तो वे सिर्फ उसके भावनात्मक(इमोशनल) पक्ष की बात करते हैं। भावनाएं आज कुछ कहेंगी और कल कुछ। जब आपने पहली बार यह रिश्ता बनाया था, तो आपने सोचा था, 'यह हमेशा के लिए है' मगर तीन महीने के अंदर आप सोचने लगे, 'आखिर मैं इस इंसान के साथ क्यों हूं?' क्योंकि यह रिश्ता आपकी पसंद और नापसंद के अनुसार चल रहा है। इस तरह के रिश्ते में आप सिर्फ कष्ट उठा सकते हैं क्योंकि जब कोई रिश्ता अस्थिर होता है, जब वह कभी हां, कभी ना में होता है, तो आप भयानक पीड़ा और कष्ट से गुजरते हैं, जो बिल्कुल अनावश्यक है।
प्रेम का मकसद पीड़ा पैदा करना नहीं है, हालांकि पीड़ा को लेकर बहुत सी कविताएं लिखी गई हैं। आप प्रेम में इसलिए पड़ते हैं क्योंकि उससे आप आनंद में डूब जाते हैं। प्रेम लक्ष्य नहीं है, आनंद लक्ष्य है। लोग किसी के साथ प्रेम में पड़ने को लेकर पागल होते है, भले ही वे कई बार घायल और चोटिल हो चुके हों क्योंकि प्रेम में पड़ने का अनुभव उनके लिए बहुत आनंददायक था। प्रेम बस आनंद का जरिया है। फिलहाल अधिकांश लोग आनंदित होने का यही तरीका जानते हैं।
मगर अपनी प्रकृति से आनंदित होने का भी एक तरीका है। अगर आप आनंदित हैं तो प्रेमपूर्ण होना कोई समस्या नहीं है, आप वैसे ही प्रेम से भरे होंगे। बस जब आप प्रेम में आनंद खोजते हैं, तब आप यह चुनने लगते हैं कि आपको किसके साथ प्रेमपूर्ण होना है। मगर जब आप आनंदित होते हैं, तो आप किसी भी चीज को देखकर उससे प्रेम कर सकते हैं क्योंकि उसमें उलझने का कोई डर नहीं होता। जब उलझने का डर नहीं होता, तभी आप जीवन के साथ भागीदारी को जान सकते हैं।
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सूरए मुअव्वज़तैन या सूरः फलक और सूरः नास
हज़रत उक्बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया कि तुम्हें मालूम नहीं आज रात जो आयतें मुझ पर नाज़िल हुर्थी (वह ऐसी बेमिसाल है कि उनकी मिस्त न कभी देखी गयीं, न सुनी गयीं) ।
قل أعوذ برب الناس و
قل أعوذ برب الفلقه
"कुल अऊजु बिरब्बिन्नास" और "कुत् अञ्जु बिरब्बिल फ़लक़" (मआरिफुल हदीस, सहीह मुस्लिम)
हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ल० का मामूल था कि हर रात को जब आराम फरमाने के लिये अपने बिस्तर पर तशरीफ लाते तो अपने दोनों हाथों को मिला लेते ( जिस तरह दुआ के वक़्त दोनों हाथ मिलाये जाते हैं) फिर हाथों पर फेंकते और कुल् हुवल्लाहु अहद' और 'कुल् अऊजु बिरब्बिल फूलक' और 'कुल अनु बिरबिन्नास पढ़ते फिर जहाँ तक हो सकता अपने जिस्म मुबारक पर दोनों हाथ फेरत, सर मुबारक और चेहरा मुबारक और जसदे अतहर के सामने के हिस्से से शुरू फ़रमाते ( उसके बाद बाक़ी जिस्म पर जहाँ तक आप सल्ल० के हाथ जा सकते वहाँ तक फेरते) यह आप तीन बार करते ।
हज़रत उबई बिन काब रजि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ल० ने ( उनकी कुन्नियत अबुल मुन्ज़िर से मुखातब करते हुए ) उनसे फ़रमाया- ऐ अबुल मुन्ज़िर! तुम जानते हो कि किताबुल्लाह की कौन-सी आयत तुम्हारे पास सबसे ज्यादा अज्मत वाली है? मैंने अर्ज़ किया अल्लाह और उसके 1सदृश, 2 - नियम, 3 पवित्र शरीर 4 लकब, उपाधि ।
रसूल को ज़्यादा इल्म है। आप सल्ल० ने (मुकर्रर ) फरमाया- ऐ अबुल मुन्ज़िर तुम जानते हो कि किताबुल्लाह की कौन सी आयत तुम्हारे पास सबसे ज्यादा अज्मत वाली है? मैंने अर्ज कियाः
الله لا إله إلا هو الحى القيوم في سورة بقرة آية: ٢٥٥
"अल्लाहु ला इलाह इल्ला हुवल्हय्युल कंप्यूमु"
तो आप सल्ल० ने मेरा सीना ठोंका (गोया इस जवाब पर शाबाशी दी) और फ़रमाया- ऐ अबूल्मुन्ज़िर तुझे यह इल्म मुदाफिक आए और मुबारक हो । ( सहीह मुस्लिम, मज़ारिफुल हदीस)
सूरए बकरा की आखिरी आयतें
ऐफा बिन अब्दुल कलामी रजि० से रिवायत है कि एक ने रसूलुल्लाह सल्ल० से अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्ल० क़ुरआन की कौन-सी सूरत सबसे ज़्यादा अज़्मत वाली है? आप सल्ल० ने फ़रमाया- " कुल् हुवल्लाहु अहद" उसने अर्ज़ किया और आयलों में क़ुरआन की कौन-सी आयत सबसे ज्यादा अज़्मत वाली है? आप सल्ल० ने फरमाया- "आयतल्फुर्सी- अल्लाहु ला इलाह इल्ला हुवत् हय्युल कय्यूमु" उसने अर्ज कियाऔर क़ुरआने की कौन-सी आयत है, जिसके बारे में आपकी खास तौर पर ख़्वाहिश है कि उसका फायदा और उसकी बरकात आपको और आपकी उम्मत को पहुँचे? आप सल्ल० ने फरमाया- भूरए 'बकरा' की आख़िरी आयतें ('आमनर्रसूलु' से खत्म सूरत तक ) ।
फिर आप सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया ये आयतें अल्लाह तआला की रहमत के उन खासुलू ख़ास ख़ज़ानों में से हैं जो उसके अ अज़ीम के तहत है। अल्लाह तआला शानुहू ने ये आयाते रहमत इस उम्मत को अता फ़रमाई हैं। ये दुनिया और आख़िरत की हर भलाई और हर चीज़ को अपने अन्दर लिये हुए है। (मुस्नदे दारमी, मआरिफुल हदीस)
सूरए आले इम्रान की आख़िरी आयतें
हज़रत उसमान बिन अफ्फान रजि० से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया कि जो कोई रात को सूरए आले इम्रान की आखिरी आयात पढ़ेगा उसके लिये पूरी रात की नमाज़ का सवाब लिखा जाएगा।
"इन्न फी खल्फिस्समावाति वल् अर्जि"
إن في خلق السموات والأرض
से ostal Y "ला तुख़्लिफुल मीआद" तक
(मुनदे दारमी, मआरिफुल हदीस )
सूरए हश्र की आख़िरी तीन आयतें
रसूले अकरम सल्ल० फ़रमाते हैं कि जो शख़्त सुबह इस तअव्वुज़ को सूरए हश्र की इन आयतों के साथ पढ़े तो अल्लाह तआला शानुहू उसके लिये सत्तर हज़ार फिरिश्ते मुकर्रर करता है जो शाम तक उसके लिये दुआए भफ़िरत करते हैं और अगर शाम को पढ़े तो सुबह तक उसके लिये मस्फिरत की दुआ करते हैं और अगर मर जाता है तो शहीद मरता है ।
(तिर्मिज़ी, दारमी, इब्ने सअद, हिस्ने हसीन)
أعوذ بالله السميع العليم من الشيطان الرجيم و هو الله الذي لا إله إلا هو عالم الغيب والشهادة هو الرحمن الرحيم و هو الله الذي لا إله إلا هوه الملك القدوس السلام المؤمن المهيين الـعـزيـز الخيار المتكبر سبحان الله عنّا يشركونه هو الله الخالق البارئ المصور له الأسماء الحسنى يسبح له مافي
السموات والأرض ، وهو العزيز الحكيم ، سورة حشر، آية : ٢٢ - ٢٤
"अऊजु बिल्ला-हिस्समीइत् अलीमि मिनरशैता-निर्रजीम, (तीन बार पढ़कर फिर पढ़े) हुवल्लाहुल्- लज़ी ला इलाह इल्ला हुव, आलिमुल्-गैवि वश्शहादति, हुवर्रहमानुर् रहीम । हुवल्लाहुल्-लजी ला इलाह इल्ला हू । अल्मलिकुल् कुवसुस्- सलामुल् मुअमिनुल मुहेमिनुल अजीजुल जब्बारुल मुतकब्बिर् सुब्हानल्लाहि अम्मा युरिकून । हुवल्लाहुल खालिकुल बारिउल मुसव्विरु लहुल् अस्माउल हुस्ना, पुसब्बिहु लहू माफिस्समावाति वल अर्जि व हुवल अजीजुल हकीम" ।
अनुवादः वह अल्लाह (ऐसा है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह मैब का और पोशीदा चीज़ों का जानने वाला है। वह रहमान और रहीम है। वह अल्लाह (ऐसा है) कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह बादशाह है, पाक है, सलामती वाला है, अम्न देने वाला है, निगहबानी करने वाला है, अजीज़ है, जब्बार है, खूब बड़ाई वाला है। अल्लाह उस शिर्क से पाक है, जो वे करते हैं, वह अल्लाह पैदा करने वाला है, ठीक-ठीक बनाने वाला है। उसके अच्छे-अच्छे नाम हैं, जो भी चीजें आसमानों और ज़मीन में है सब उसकी तस्बीह करती हैं और वह ज़बरदस्त हिक्मत वाला है।
सूरए तलाक़ की आयत ( रुकूअ 1, पारा 28 )
हज़रत अबू ज़र रजि० फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया है कि मुझको एक ऐसी आयत मालूम है कि अगर लोग उस पर अमल करें तो वही उनको काफी है और वह आयत यह हैः
ه ومن يتق الله يجعل له مخرجاه ويرزقه من حيث لا يحني ب ده
سورة الطلاق آية: ٢-T
व मैयत्तकिल्लाह यज्अल्लहू मरजेंव व यर्जुवहु मिन् हैसु ला यतसिबु, (सूरए तलाक, आयतः 2-3 ) अनुवादः जो शख़्स अल्लाह से डरता है तो अल्लाह उसके लिये हर
1परोन, 2 गुप्त, 3- अत्यन्त शक्तिशाली, टूटे हुए को जोड़ने वाला, 4- प्रशंसा ।
मुश्किल और मुसीबत से मजात' का रास्ता निकाल देता है और उस जगह से रिफ़ देता है, जहाँ से उसका गुमान भी नहीं होता यानी जो शख्स अल्लाह तआला शाजुहू से डरे, अल्लाह तआला शानुहू उसके लिये नजात का रास्ता पैदा कर देता है और उसको ऐसी जगह से रिज़क देता है, जहाँ से ख़्याल और गुमान तक नहीं था। (मुस्नये अहमद, इब्ने माजा, दारमी, मिश्कात)
हज़रत अबू हुरैरा रजि० से रिवायत है कि नबीए करीम सल्ल० ने इर्शाद फरमाया कि अल्लाह तआला शानुहू इर्शाद फरमाता है । (हदीसे क़ुद्सी )
أنا عند ظن عبدي بي وأنا معه إذا دعاني
"अना इन्द जन्नि अब्दी वी व अना महू इज़ा दशानी" अनुवादः मैं अपने बन्दे के लिये पैसा ही हूँ जैसा वह मेरे मुतअल्लिक ख़्याल करे और जब वह पुकारता है तो मैं उसके साथ होता हूँ।
(बुख़ारी अल्-अदबुल् मुफ़रद )
हदीस शरीफ में है कि रसूलुल्लाह सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया कि दुआ मांगना बेऐनिही इबादत करना है। फिर आप सल्ल० ने बतौरे दलील क़ुरआन करीम की यह आयत तिलावत फरमाईः
وقال ربكم ادعوني أستجب لكم ، سورة مؤمن آية: 60
"व काल रब्बुकुमुद ऊनी अस्तजि लकुम" । ( सूरए मोमिन, आयतः 60 )
अनुवादः और तुम्हारे रब ने फ़रमाया है- मुझसे दुआ मांगा करो और मैं तुम्हारी दुआ कबूल करूँगा ।
(मुम्नदे अहमद, तिर्मिज़ी, अबू दाऊद, हिस्ने हसीन, इब्ने भाजा, अन्नसाई)
1-घुटकारा 2-समृग, समान।
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लेकिन एक बात जो रासायनिक मिश्रण निर्माता आमतौर पर आपको नहीं बताते हैं, वह यह है कि उपयोग किए जा रहे प्रत्येक रसायन की सीमा क्या है, इसका मतलब यह है कि यह रसायन वास्तव में कंक्रीट में किस हद तक अंतर कर सकता है। और यह कुछ ऐसा है जो वास्तव में विज्ञान पर आधारित नहीं है और श्चित रूप से यह विज्ञान पर आधारित है क्योंकि यह सब वास्तव में रसायनों की क्रिया के तंत्र से संबंधित है।
लेकिन ये संख्याएं अनिवार्य रूप से अभ्यास से ली गई हैं, ठीक है, जो मैं स्लाइड पर प्रस्तुत कर रहा हूं वह अनिवार्य रूप से अभ्यास से ली गई है। तो, पहली पीढ़ी की उच्च श्रेणी का पानी कम हो जाता है यानी आपकी लिग्नोसल्फोनेट आधारित सामग्री को उपयुक्त कार्रवाई के लिए लगभग 75 मिलीमीटर की गिरावट की आवश्यकता होगी, जिसका अर्थ है कि वे तभी प्रभावी होंगे जब पानी और सीमेंट का अनुपात लगभग 0.45 हो और इस 75 मिलीमीटर की गिरावट को बढ़ाया जा सके। लगभग 150 से 200 मिलीमीटर तक।
उच्च श्रेणी के पानी की क्रिया से पानी कम हो जाता है जो पुराने प्रकार के होते हैं जो कि लिग्नोसल्फोनेट होते हैं। जब आप दूसरी पीढ़ी के बारे में बात कर रहे हैं जो एसएनएफ या एसएमएफ मिश्रण है तो वे कंक्रीट के साथ काम कर सकते हैं जो 25 और 50 के बीच काफी शुष्क स्थिरता या ढीले गांठ होते हैं और वे इन कंक्रीट को लगभग एक बहने वाली स्थिति में 250 मिलीमीटर से अधिक की गिरावट में बदल सकते हैं.
तो, अनिवार्य रूप से एक बहने वाला कंक्रीट जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। तो यह जो मेल खाता है वह है पानी से सीमेंट का अनुपात 0.35 से 0.41 अब बहुत बार साइट पर हम ऐसी स्थितियों में आते हैं जहां लोग बहुत उच्च प्रदर्शन वाले कंक्रीट बनाने की कोशिश कर रहे हैं, पानी के सीमेंट अनुपात के संदर्भ में आप 0.35 से कम पानी सीमेंट अनुपात के कंक्रीट के बारे में बात कर रहे हैं। कभी-कभी लागत में कटौती करने के लिए ठेकेदारों ने सल्फोनेटेड नेफ़थलीन फॉर्मलाडेहाइड का उपयोग करने की कोशिश की।
हमने पहले देखा था कि लागत के मामले में, SNF शायद आपके PCE की लागत का 40% है। बेशक अब हम इस वास्तविकता को जानते हैं कि 40% केवल सामग्री की प्रारंभिक लागत है यदि आप इसे कंक्रीट में प्रभावशीलता के संदर्भ में देखते हैं तो लागत PCE लागत से लगभग 20 से 25% कम है। लेकिन जो लोग आपको नहीं बता रहे हैं ये कंस्ट्रक्शन केमिकल निर्माता आपको नहीं बता रहे हैं ।
और ठेकेदारों को इस बात की जानकारी नहीं है कि जब आप 0.35 से नीचे बहुत कम पानी सीमेंट अनुपात में आते हैं तो इस SNF में आवश्यक प्रभावशीलता नहीं होती है। यदि आप 0.35 से कम पानी सीमेंट अनुपात पर ठोस प्रवाह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो SNF आपके सिस्टम में मिश्रण का सही विकल्प नहीं है। लेकिन अगर आपके सिस्टम में पर्याप्त मात्रा में पानी है तो आप स्लंप को लगभग एक बहने वाली स्थिरता तक बढ़ा देंगे ।
तो, आइए हम एक विशिष्ट मिक्स डिज़ाइन देखें, मान लें कि हम M40 कंक्रीट डिज़ाइन कर रहे हैं, आपको क्या लगता है कि M40 कंक्रीट के लिए अनुमानित सीमेंट सामग्री लगभग 400 किलोग्राम होगी, पानी सीमेंट अनुपात 0.35 के बारे में क्या बहुत कम हो सकता है शायद हम करेंगे 0.4 - 0.42 के बारे में बात करें। मान लीजिए 0.42.
तो, हम अब उस सीमा में हैं जहां SNF काफी प्रभावी हो सकता है, इसलिए 0.42 जल सीमेंट अनुपात पर मेरी पानी की मात्रा कितनी है? यह 168 किलो प्रति घन मीटर है। तो, लगभग 160 से 175 किलोग्राम प्रति घन मीटर की पानी की मात्रा पर मेरी दूसरी पीढ़ी के मिश्रण काफी प्रभावी हैं। जब मैं 160 से नीचे आना शुरू करता तो मैं आपको लैब में किए गए किसी वैज्ञानिक प्रयोग के आधार पर यह नहीं बता रहा हूं।
लेकिन यह क्षेत्र में अभ्यास से है, जब आप 160 किलोग्राम प्रति घन मीटर पानी से कम आते हैं तो एसएनएफ की प्रभावशीलता संदिग्ध हो सकती है। कंक्रीट का काम करने के लिए बहुत अधिक SNF की आवश्यकता हो सकती है और यदि आप बहुत अधिक SNF जोड़ते हैं तो कंक्रीट गंभीर रूप से मंद हो जाएगा। यह पहले दिन या शायद 2, 3 दिन के लिए भी सेट नहीं होगा। यदि आप बहुत बड़ी मात्रा में SNF जोड़ते हैं।
इसलिए, यदि आप 160 से कम हैं, तो आपके PCE सबसे प्रभावी ढंग से काम करेंगे, जो वास्तव में बिना किसी स्लंप कंक्रीट के काम कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि बहुत कम पानी सीमेंट अनुपात और आप 250 मिलीमीटर से अधिक की गिरावट को बढ़ा सकते हैं, आप बना सकते हैं 0.25 से 0.3 के जल सीमेंट राशन पर भी सेल्फ-कॉम्पैक्टिंग कंक्रीट। आप में से जो कंक्रीट के रिएक्टर पाउडर के बारे में जानते हैं, आप में से कितने लोग रिएक्टिव पाउडर कंक्रीट के बारे में जानते हैं।
या आपने इसके बारे में सुना है, ठीक है, प्रतिक्रियाशील पाउडर कंक्रीट क्या है जिसे अल्ट्रा- हाई स्ट्रेंथ कंक्रीट, अल्ट्रा-हाई स्ट्रेंथ कंक्रीट भी कहा जाता है और यहां हम एक कंक्रीट के बारे में बात कर रहे हैं जहां
कोई मोटे एग्रीगेट नहीं है, यह कंक्रीट है केवल महीन एग्रीगेट के साथ। दूसरे शब्दों में, आप कंक्रीट को अधिक से अधिक समरूप बना रहे हैं, आप समग्र आकार को केवल महीन एग्रीगेट तक सीमित करके इंटरफेशियल ट्रांज़िशन ज़ोन के प्रभाव को कम कर रहे हैं ।
जब आप इस प्रकार का कंक्रीट बनाते हैं तो यह 150 मेगा पास्कल से अधिक की ताकत के लिए अभिप्रेत है। हम बात कर रहे हैं 200 - 300 मेगा पास्कल कंप्रेसिबल स्ट्रेंथ के बारे में जो 0.2 से अधिक के वॉटर सीमेंट रेशियो के साथ हासिल नहीं किया जा सकता है। तो, हम 0.2 से कम के पानी के सीमेंट अनुपात के बारे में बात कर रहे हैं जो 0.15 के करीब हो सकता है, और यह एक ऐसी प्रणाली है जो भारी सीमेंट समृद्ध है, इसमें बहुत अधिक सीमेंट है, इसमें सिलिका फ्यूम जैसी अधिक पूरक सामग्री है।
मिश्रण में सीमेंटयुक्त पाउडर सामग्री का विस्तार करने के लिए सिलिका फ्यूम फ्यूम जैसे बहुत महीन परिवर्धन, और यह सुनिश्चित करने के लिए हम हमेशा बहुत छोटे पैमाने के फाइबर का उपयोग करते हैं जिससे कंक्रीट की विशेषताओं में वृद्धि हो रही है। इसलिए, हम वास्तविक कठोर गुणों को देखेंगे कि बाद के सत्र में फाइबर की मदद से उन्हें कैसे बढ़ाया जाएगा, लेकिन मैं जो इंगित करना चाहता था वह यहां हम पानी सीमेंट अनुपात 0.15 से 0.2 के बारे में बात कर रहे थे।
और उस सीमा पर एकमात्र मिश्रण जो किसी भी प्रभाव को देने के बारे में आ सकता है, वह है PCE मिश्रण और सही मायने में बोलना, PCE के साथ भी आवश्यक मिश्रण की मात्रा आमतौर पर 2.5 से 3% के क्रम की होती है। इसलिए, हम नियमित कंक्रीट के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, नियमित कंक्रीट में हम शायद ही PCE मिश्रण के 1.5% से अधिक का उपयोग करते हैं।
लेकिन जब हम प्रतिक्रियाशील पाउडर कंक्रीट की बात करते हैं तो हम 2.5 से 3% के बारे में बात कर रहे हैं, कुछ हद तक प्रवाह क्षमता प्रदान करने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में मिश्रण की आवश्यकता होती है और यदि आप RPC या प्रतिक्रियाशील पाउडर कंक्रीट पर साहित्य पढ़ते हैं, तो आप देखेंगे कि ये सुपर प्लास्टिसाइज़र लेंगे लगभग 30 से 40 मिनट का मिश्रण वास्तव में आवश्यक प्रवाह क्षमता और कम पानी सीमेंट अनुपात प्राप्त करने के लिए पर्याप्त प्रभावशीलता प्राप्त करने के लिए।
तो, कृपया फिर से याद रखें कि जब सुपर प्लास्टिसाइज़र को कंक्रीट में जोड़ा जाता है, तो आप सभी ने जॉब साइट्स में देखा होगा जब सुपर प्लास्टिसाइज़र को कंक्रीट में जोड़ा जाता है। कंक्रीट में SP किस अवस्था में पानी के साथ या पानी के ठीक बाद में जोड़ा जाता है ? मिश्रण पानी के हिस्से के साथ आप सुपर प्लास्टिसाइज़र मिलाते हैं और फिर आप कंक्रीट में मिलाते हैं। अधिकांश पानी सुपर प्लास्टिसाइज़र
के बिना शुरुआत में ही डाला जाता है।
और वह सब मुख्य रूप से उस मुद्दे के कारण किया जाता है जिसके बारे में हमने पहले बात की थी कि सुपर प्लास्टिसाइज़र से सल्फेट सिस्टम में आने से पहले C3A को सीमेंट से सल्फेट के साथ प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता होती है। तो सुपर प्लास्टिसाइज़र पानी के शेष भाग के साथ मिश्रण में मिलाते हैं, और जब ऐसा होता है जब इसे पानी के साथ मिलाया जाता है।
यानी कंक्रीट की पूरी मात्रा में SP का फैलाव स्वचालित रूप से पता लगाया जाता है। तो यहां हम पानी सीमेंट अनुपात के बारे में बात कर रहे हैं जो इतने कम हैं कि मिश्रण में पानी की मात्रा बेहद कम है। इसलिए, जब आप बहुत अधिक मात्रा में सुपर प्लास्टिसाइज़र जोड़ रहे हैं और इस सिस्टम में SP वास्तव में सिस्टम में मौजूद सभी सीमेंट कणों के साथ इंटरैक्ट करने में काफी समय लगेगा।
यही कारण है कि मिश्रण समय को अधिक से अधिक बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि आप सीमेंट अनुपात में पानी को कम और कम करने जा रहे हैं। तो, अब 0.15 से 0.2 पानी सीमेंट अनुपात के बारे में बात करते हुए, मिश्रण समय पहले से ही लगभग 30 से 40 मिनट तक बढ़ा दिया गया है। अब तैयार मिक्स कंक्रीट परिदृश्य में या साइट पर विशिष्ट मिश्रण समय क्या है जब आपके पास बैचिंग प्लांट होते हैं तो मिक्सर वास्तव में कितनी देर तक घूमता है? लोगों के पास 3 मिनट, 5 से 10 मिनट तक नंबर आ रहे हैं।
यदि आपने कुछ साइटों को कार्य करते हुए देखा है तो आपको आश्चर्य होगा कि वे वास्तव में कंक्रीट का उत्पादन कैसे करते हैं क्योंकि मैंने मिश्रण समय को 30 सेकंड तक कम देखा है। तो, सभी सामग्री मिक्सर में धंस जाती हैं, कुछ बार घुमाने पर झाड़ी को घुमाते हैं, और आपकी सामग्री ट्रक में निकल जाती है। अब जबकि यह उन प्रणालियों के लिए ठीक हो सकता है जिनमें पानी की मात्रा काफी अधिक होती है। तो, हम फिर से इस तरह के कंक्रीट के बारे में 160 से 175 किलोग्राम पानी की मात्रा के बारे में बात कर रहे हैं ।
ताकि आपके द्वारा जोड़ा गया कोई भी सुपर प्लास्टिसाइज़र सभी सीमेंट कणों को प्रभावी ढंग से छितरा कर सके। लेकिन जब आप कम पानी की मात्रा के बारे में बात करते हैं, तो कंक्रीट का मिश्रण बहुत उचित होना चाहिए, खासकर जब कंक्रीट में उदाहरण के लिए सिलिका फ्यूम जैसे अतिरिक्त महीन कण होते हैं। जब भी आप सीमेंट को सिलिका फ्यूम जैसे बहुत महीन कण सामग्री के साथ प्रतिस्थापित करते हैं तो आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि मिश्रण के लिए पर्याप्त समय दिया गया है।
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उसकी कोई भी सन्तान नहीं थी पुत्र की इच्छा से बह राजा तप करने लगा इस प्रकार पुत्र प्राप्ति के लिये तप करते समय उस राजा के पास ब्राह्मण का भेष घर जनार्दन भगवान् चाये ॥६॥१०॥ भगवान याकर राजा से कहने लगे कि हे राजन् ! द्याप यह क्या कर रहे हैं ? राजा ने कहा पुत्र प्राप्ति के लिये यज्ञ कर रहा हूँ तब विप्र वेप धारी भगवान् ने कहा कि है राजन् ! विधि विधान से चैत्र के महीने की वामन द्वादशी का व्रत करिये, तब तेरा पुत्र होगा ऐसा कह भगवान अन्तर्धान हो गये ॥११॥१२॥ राजा ने भगवान् का कहा व्रत यथोक्त विधि से करके वह सामिग्री वेद वेत्ता बुद्धिमान दरिद्री
को देकर कहा कि हे भगवन् ! जिस प्रकार पा ती के गर्भ में स्वयमपूत्रत्व को प्राप्त हुये हो उसी सत्य से मेरा भी श्रेष्ठ पुत्र हो जाना चाहिये ।।१३।।१४।। हे मुने ! इस विधि के करने से उस राजा का प्रति विख्तात ऊग्राश्व नाम का महा वलवान पुत्र हुआ है इस व्रत के करने से पुत्र पुत्र प्राप्त करता है धन की अभिलापा वाला धन प्राप्त करता है जो राज्य से भ्रष्ट है वह पुनः अपने राज्य को प्राप्त कर लेता है तथा मरकर विष्णु लोक में जाता है वहां चिरकाल तक निवास कर पुनः फिर मृत्यु लोक में व्याकर नहुस के पुत्र ययाति के समान बुद्धिमान तथा चक्रवर्ती राजा होता है ।१५।।१६।।१७॥ इति वाराह पुराणे धरणी ते वामन् द्वादशी व्रतम् नाम काशीराम शर्मा कृत भाषा टीकायाम् त्रयस्चत्वारिंशो अध्याय ॥४३॥ अथ चालिसवांऽध्यायः
दोहा :- वैसाख सिता द्वादशी, नवालीस अध्याय ।
जामदग्नय पूजन किये, भव संकट मिट जाय ।।
अथः जामदग्नय द्वादशी व्रतम् - दुर्वासा कहने लगा- वैसाख महीने में भी इसी प्रकार विधि पूर्वक संकल्प करे तथा एकादशी के दिन पूर्वोक्त विधान से स्नान करके देवालय में जावे ॥१॥ वहां निम्न लिखित मन्त्रों से भगवान् की आराधना करे जामदग्नाय नमः कह पैरों की पूजा करे । सर्व धारिणो कह उदर की पूजा करे ।।२।। मधुसूदनाय नमः कह कर कटि प्रदेश की पूजा करे । श्री वत्स धारिणे नमः कह जंघाओं की पूजा करे शारान्तकाय नमः कह भुजाओं की पूजा करे शितिकण्ठाय कह कूर्चक यानी भौंवों के बीच के भाग की पूजा करे। और शांखायनम चक्रायनमः कहकह शंख चक्र की पूजा करे ब्रह्माण्ड धारिणेसम कहकर सिर की पूजा करे बुद्धिमान मनुष्य इस प्रकार पूजा करके फिर उनके सामने पहिले के समान कलश रक्खे उसको वस्त्र से आच्छादित करे फिर उस कलश में बांस का पात्र रक्खे उसमें हरि की प्रतिमा रक्खे, प्रतिमा जामदग्नय रूप से सोने की चनावे, जामदग्नय प्रतिमा के दाहिने हाथ में कुल्हाड़ी वनावे ।।३।।४।१५।।६।। फिर अर्ध, गन्ध, धूर, नैवेद्यादि तथा नाना प्रकार के फूलों से पूजन कर उन्हीं के सामने रात्रि में भक्ति पूर्वक जागरण करे ।।७।। प्रातःकाल सूर्योदय होने पर कलश सहित प्रतिमा ब्राह्मण को दे
देवे हे सत्य तप ! इस प्रकार व्रत करने वाले को जो फल प्राप्त होता है वह मुझसे सुनिये ॥८॥ एक महा भाग्यवान् वीरसेन नाम का राजा था उसने एक समय पुत्र प्राप्ति के लिये तीव्र तप करना आरम्भ किया ॥६॥ उसके तीव्र तप करने पर उसको देखने कुछ दूर से महामुनि याज्ञवल्क आये ।।१०।। परम तेजस्वी महामुनि योज्ञवल्क को थाते देख राजा वीरसेन ने उनका अभ्युत्थानादि सत्कार किया ॥११॥ वीरसेन से पूजा पाकर याज्ञवल्क ने
कहा कि राजन् ! किस लिये तप कर रहे हो आपकी क्या अभिलाषा है सो कहिये ।।१२।। राजा वीरसेन ने कहा है महाभाग ! मे अपुत्र हूँ मेरी पुत्र संतति नहीं है इसलिये तपस्या से इस शरीर को सुखा रहा हूँ ।।१३।। याज्ञवल्क बोला हे राजन् ! इस महा क्लोश कारक तप को छोड़ दीजिये अल्प परिश्रम से ही आपका पुत्र हो जायगा ।।१४।। राजा ने कहा है महाराज ! में आपके शरण हूँ थाप प्रीति से कहिये कि कौनसा वह स्वल्प प्रयास का उपाय है जिससे कि मेरा पुत्र हो जावे ॥१५॥ दुर्वासा ने कहा- राजा के इस प्रकार पूछने पर महामुनि याज्ञवल्क ने राजा को वैसाख शुक्ल द्वादशी का व्रत बताया तथा सुनाया ।॥१६॥ उस राजा ने विधि विधान से इस व्रत को किया फिर इस व्रत के प्रभाव से नल नाम का परम धार्मिक भी विख्यात् पुत्र प्राप्त किया ।।१७।। जो कि नल राजा अव संसार में प्रख्यात है हे महामुने ! इस व्रत का यह फल सिर्फ प्रासांगिक कहा है ॥१८ ।। इस व्रत के करने से सुपुत्र पैदा होता है। विद्या प्राप्त होती है, लक्ष्मी मिलती है उत्तम कान्ति होती है इस जन्म में ही नहीं बल्कि परलोक की भी महिमा सुनिये ॥१६॥ इस व्रत को करने वाला एक कल्प तक अपराधों के साथ ब्रह्मलोक में निवास कर कीड़ा करता है फिर सृष्टि में चक्रवर्ती राजा होता है निश्चय मे इस व्रत को करने वाला तीस कल्प तक जीवित रहता है ।२०।।२०। इति श्री वाराह पुराणे यादि कृ व्रत्तान्ने द्वादशी महात्म्ये जामदग्न्य द्वादशी व्रतम् नाम काशीराम शर्मा कृत भाषा टीकायाम् चतुत्वारिंशोऽध्या
वाराह पुराण प्रथः पैंतालिसवाँऽध्यायः
दोगः -- पेंतालिस अध्याय में राम व्रत अभिराम ।
जेठ की सिता द्वादशी, किये मिले उपराम ।। अथ श्रीराम द्वादशी व्रतम - दुर्वासा ने कहा- जेष्ठ
महीने भी पूर्वोक्त प्रकार से संकल्प कर स्नान कर देवालय में कर परमदेव की अनेक विधि फल फूलों से पूजा करे ॥१॥ नाभिरामाय मन्त्र मे पैरों की पूजा करे त्रिविक्राय मन्त्र से कटि देश की पूजा करे घृत विश्वायनमः गन्त्र से उदर की पूजा हे ।।२।। सम्वत् सरायनमः कह छाती की पूजा करे सम्वर्त ाय नमः मन्त्र से कराठ की पूजा करे, सर्वास्त्र धारिणे नमः हकर भुजाओं की पूजा करे कमलायनमः चक्रायनमः कह रकमल तथा चक्र की पूजा करे, सहस्र शिरशे नमः कहकर महात्मा के सिर की पूजा करे, इस प्रकार पूजा करके क्ति प्रकार से कलश स्थापन करे ।।३।।४।। कलश को त्रादि से याच्यादित करे फिर पर्वोक्त विधि से सुवर्ण मय म लक्ष्मण की प्रतिमा सुन्दर ताम्रपात्र में कलश के ऊपर पित । करे तदनन्तर विधि विधान पूर्वक उनकी पूजा करे दिशी के प्रतः काल समय में कलशे के सहित उस प्रतिमा
ब्राह्मण के लिये दे देवे तो उस मनुष्य के सारे हित प नष्ट हो जाते हैं । पहिले समय सन्तान रहित राजा शरथ जी ने भी पुत्र की कामना लेकर वसिष्ठ मुनि की मेवा
है । फलतः वसिष्ठ मुनि ने उनको पुत्र प्राप्ति के लिये ही व्रत बतलाया था ॥५॥६॥७॥ राजा दशरथ ने पहिले रहस्य को जान यही व्रत किया है जिसके प्रभाव से अव्यय विष्णु भगवान् प्रसन्न होकर चार प्रकार से पैदा हुये । वयम् रामचन्द्र जी दशरथ के महा चलवान पुत्र हुये हैं
यह इस जन्म का फल कहा पार लौकिक फल मुनये ।।८।।६।। इस व्रत के प्रभाव में मनुष्य तब तक सर्ग लोक के भोगों को भोगता है जब तक कि इन्द्र तथा देवता आदि वर्ग लोक में स्थित रहते हैं उसके पश्चात् मृत्य लोक में कर सैकड़ों यज्ञ करने वाला राजा होता है ।।१०।। यदि निष्काम से इस व्रत को करे तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं तथा शाखत निर्वाण को प्राप्त होता है ॥११॥ इति वाराह पुराणे श्री राम द्वादशी व्रतम् नाम काशीराम शर्मा कृत भाषा टीकायाम् पंचचत्वारिंशोऽध्यायः ॥४५॥
ध्ययः छयालीसवाँऽध्याय
दोहा :- छयालीस अध्याय में कृष्ण व्रत विस्तार ।
सिता द्वादशी, करि मिलि है फल चार ।। अथः कृष्ण द्वादशी व्रतम् - दुर्वासा ने कहा- पूर्वोक्त विधि से आषाढ़ महीने में भी दशमी के दिन संकल्प कर एकादशी के दिन मृत्तिका से स्नान कर देवालय में जाकर भगवान् का पूजन करे चक्रपाणये नमः कहकर भुजाओं की पूजा करे, भूपतये नमः कहकर कण्ठ की पूजा करें, शङ्खाय नमः चक्राय नमः कह कर शंख की पूजा करे, पुरुषाय नमः कह कर सिर की पूजा करे इस प्रकार विधि विधान से पूजा करके पहिले के सामान उनसे आगे से वस्त्राच्छादित कलश स्थापित करे फिर उसके ऊपर सोने की चतुवूह युक्त वासुदेव भगवान की प्रतिमा स्थापित करे । १।।२।। ।। ३ ।। उस प्रतिमा के फल फूल, धूप- दीप, नैवेद्यादि से विधिवत् पूजा करके वेद वेत्ता ब्राह्मण को सहित दे देवे ।।४।। ऐसा करने से जो फल प्राप्त होता है वह मुझमे सुनिये यदुवंशवर्द्धक वसुदेव विख्यात् हुआ है तथा उसके समान व्रत वाली उसकी देवकी नाम की
परायण भी थी परन्तु उसकी कोई बहुत समय पश्चात् वासुदेव के घर में नारद मुनि आ पहुंचा । वासुदेव ने उसका प्रातिथ्य सत्कार किया सरकार पाकर भक्ति से नारद मुनि कहने लगा हे वासुदेव ! मुझमे इन देव कार्य को सुनिये कि में इस कथा को सुनकर शीघ्र आपके पास आया हूँ ।।७।।८।। हे यदु श्रेष्ठ वासुदेव ! मैंने देव सभा में पृथ्वी देखी है वह पृथ्वी गौरूप धर देव सभा में जाकर कहने लगी कि हे देवताओं में भार सहन नहीं कर सकती हूँ दुष्ट पाखंडी असुरों के संग से में पीड़ित हो रही हूं। अतः उन पापियों को शीघ्र मारिये पृथ्वी के ऐसा कहने पर वे सारे देवता पृथ्वी के सहित नारायण के पास गये तथा नारायण का मन से ध्यान करने पर नारायण भगवान् प्रत्यक्षता को प्राप्त हुये ॥६॥१०॥ प्रत्यक्ष दर्शन देकर नारायण बोले हे देवताओ ! इस कार्य को मैं अपने आप मृत्यु लोक में मनुष्य के समान जाकर सिद्ध कर लूंगा इसलिये सन्देह न कीजिये ।११।। किन्तु आड़ महीने की द्वादशी का पारण जो स्त्री अपने पति सहित करेगी उसी के गर्भ से में पैदा हूंगा ॥ १२ ॥ नारायण के इस प्रकार कहने पर देवता निश्चिन्त हो अपने स्थान को चले गये । में यहां आपके पास हूं हो इसलिये मैंने श्रापको यह व्रत सुनाया है वह शीघ्र कीजिये ।।१३।। इस द्वादशी का वृत पारण करने से वसुदेव ने साक्षात् कृष्ण भगवान् को पुत्र के रूप से प्राप्त किया है तथा ऐश्वर्य लक्ष्मी प्राप्त की है ।।१४।। इस लोक में सुख भोगकर अन्त में वसुदेव परम गति को प्राप्त हुआ है हे सत्य तप ! यह आप महीने की विधि मैंने तुझे बतादी है ।।१५।। इति वाराह पुराणे आदि कृत व्रतान्ते श्री कृष्ण द्वादशी व्रतम् नाम काशीराम शर्मा कृत भाषा टीकायाम पड्चत्त्वारिंशोऽध्यायः ॥४६॥
अथः सैंतालीसवाँऽध्यायः
दोहा :- सैंतालिस अध्याय में नृग नृप का व्रतान्त ।
श्रावण शुक्ला द्वादशी, करे रक्षा नितान्त । प्रथः बुद्ध द्वादशी व्रतम् - दुर्वासा ने कहा- श्रावण के महीने शुक्ल द्वादशी के दिन व्रत करे । तथा पूर्वोक्त विधि के अनुमार गन्ध पुष्पादि से जनार्दन भगवान की पूजा करे ।।१।। दामोदराय नमः कहकर पैरों की पूजा करे, हृपि केशाय नमः कहकर कटि प्रदेश की पूजा करे, सनातनायः कहकर जठर की पूजा करे, श्री वत्स धारिणे कहकर छाती की पूजा करे, ॥२॥ चक्रपाणये नमः कह कर भुजाओं की पूजा करे हरयेः नमः कह कण्ठ की पूजा करे, तथा मुजकेशाय नमः कह सिर की पूजा करे, भद्राय नमः कहकर शिखा की पूजा करे, ।।३।। इस प्रकार पूजन कर पूर्वोक्त प्रकार से कलश स्थापन करे । कलश के ऊपर वस्त्र रक्खे फिर उसके ऊपर सुवर्णमय भगवान दामोदर की मूर्ति स्थापित करे तदनन्तर नामोचारण पूर्वक उस प्रतिमा की पूजा गन्ध, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्यादि से करनी चाहिये ।।४।।५।। फिर पूर्वोक्त विधि के अनुसार उस प्रतिमा को वेद वेदाङ्ग पारङ्गत ब्राह्मण को देवे इस प्रकार नियम से जो इस व्रत को करता है उसका फल मुझसे सुनिये ।।६। हे मुने यह जो श्रावण मास की विधि कही है पापों का नाश करने वाला उसका फल सावधानता पूर्वक सुनिये ।।७।। पहिले कृत युग में एक नृग नाम का महा बलवान् राजा था। वह शिकार खेलने की अभिलाषा से घोर जंगल में जाकर घुयने लगा ।।८।। वह कभी घोड़े में सवार होकर व्याघ्र सिंह, हाथियों से व्याप्त तथा चोर, डाकू, सर्प, व्याल, यादमियों से निषेवित बढ़ी दूर घोर जंगल में गया ॥६॥ अकेला
वाराह पुराण१५१
ही राजा घोड़े को एक पेड़ के नीचे खोलकर स्वयम कुशासन विछाकर दुख युक्त होकर सो गया ॥१०॥ तभी रात्रि में १४ हजार व्याध मृग मारने के लिये घूमते हुये राजा के चारों तरफ से ये ॥ ११॥ वहां उन व्याधों ने सुवर्ण तथा रत्नों से विभूषित सोये हुये नृग राजा को अति उग्र परम लक्ष्मी से युक्त देखा ।।१२।। वे व्याध राजा नृग को देख शीघ्र अपने स्वामी से कहने लगे । उनका स्वामी भी रत्न तथा सोने के लालच से राजा को मारने के लिये उद्यत हुआ ॥१३॥ तथा घोड़े के लालच से टन अपने नौकर व्याधों को कहा । वे वन चाकर व्याध सोये हुये राजा के पास जाकर राजा को मारने के लिये तैयार हुये ॥१४॥ तभी राज के शरीर से श्वेत भरणों से तथा माला चन्दन यादि से विभूषित एक नारि निकली ॥१५॥ और उस देवी ने चक्र लेकर सारे म्लेछ मार गिराये उन चोरों को मार कर वह देवी फिर उसी राजा के शरीर में शीघ्र प्रवेश कर गई राजा ने भी नींद से जागकर मरे हुये उन म्लेचों को तथा अपने ही शरीर में प्रवेश करती उस देवी को देखा । ।।१६। ॥१७ फिर राजा घोड़े पर सवार हो वाम देव के आश्रम में गया वहाँ ऋषि से पूछने लगा कि महाराज वह स्त्री कौन थी तथा वह जो म्लेच्छ मरे पड़े थे वह कौन थे ॥१८॥ हे ऋपे ! यह मुझे वताइये वाम देव ऋषि ने कहा है राजन् ! तू पहिले जन्म में क्षुद्र जाति का र.जा था, उस जन्म में तूने ब्राह्मणों से सुनकर श्रावण मास शुक्ल द्वादशी पारण किया है ।।१६।। ।।२०।। वह एकादशी का व्रत तथा द्वरदशी पारण विधि विधान तथा भक्ति पूर्वक तूने किया है उस ही के उपवास से तुझे राज्य मिला है ।।२१।। वह द्वादशी देवी पत्तियों में आपकी रक्षा करती हैं ।।२३।। हे राजन् ! वह
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श्री चन्द्र महोत्री ]
के 'प्रधान गुणों का उल्लेख किया है- १ प्रतिभा ( Genius ), -२ विद्या ( Learning ) प्रतिभा दो शक्तियों उद्भावन-शक्ति ( Invention ) और विचार-शक्ति ( Judgment ) का समन्वय है। फिल्डिंग कहता है
इस श्रेणी के ऐतिहासिकों के कई ग्यास जम्बरी गुणों के सम्बन्ध में मैं अब बताऊँगा । पहला है प्रतिभा, जिसके बिना होरेस कहता है 'हमारा सारा अध्ययन व्यथे है।" प्रतिभा कहने से मैं उस शक्ति या शक्ति समूह को समझता हूँ जो हमारे सभी ज्ञेय विषयों के अन्तस्तल में जाकर उनके प्रकृतिगत पार्थक्य पर विचार करने में समर्थ है । यह शक्ति है उद्भावन और विचार-शक्ति और इन दोनों की सम्मिलित शक्ति को प्रतिभा कहा जाता है। इन शक्तियों के सम्बन्ध में व्यक्तियों की भ्रान्त धारणा है। उद्धावन-शक्ति का व्यवहार सृजन शक्ति के अर्थ में होता है, और कई रोमा एटक लेखक इस अर्थका सुयोग लेकर प्रतिभा का अत्यधिक मूल्य बतलाते हैं। लेकिन उद्भावन कहने से अनुसन्धान करके आविष्कार करने के सिवा मैं और कुछ नहीं समझ पाता, अर्थात उद्भावन का अर्थ होता है हमारे विचार्य विषय के भीतर प्रवेश करके उसके सार को प्राप्त करना । विचार से लग यह मर्म की खोज सम्भव नहीं क्योंकि दो विषयों के भीतर के सत्य को हम बिना दोनों के भेद पर विचार किये कैसे पायेंगे 1...लेकिन विद्या और ज्ञान के बिना इन दोनों शक्तियों का भी कुछ उपयोग नहीं। इसके पक्ष में केवल होंग्स का नहीं लेखकों के मत दिये जा सकते हैं कि यंत्र के किसी काम में व्यवहुत न होने पर या यन्त्रव्यवहार के योग्य उपादान न होने पर श्रमिक का कुछ भी लाभ नहीं। एक मात्र शिक्षा ही यह उपादान जुटा सकती है क्योंकि प्रकृति से हम शक्ति या और शिक्षा उस अस्त्रको व्यवहार-योग्य बनाती हैं, उपादान संग्रह करती है ।'
इस युग के औपन्यासिक जब फिल्डिंग के इस दृष्टिकोण से उपन्यास पर विचार करेंगे, तो फिर नये वास्तव का जन्म होगा। वर्तमान जगत् के समस्त विषयों के अन्तःस्थित सत्य और विभेद की जाँच करने और मानवता के एकत्व की प्राप्ति की शक्ति जिस दिन औपन्यासिक को फिर मिल जायगी, उस दिन उपन्यास भी अपना गौरव प्राप्त करेगा। ऐसा कहने का मतलब यह नहीं कि फिल्डिंग या अठारहवीं शताब्दी के उपन्यास ही आदर्श हैं। जो औपन्यासिक समाज की समग्रता को हृदयंगम करना चाहता है, उस मनुष्य के साथ मनुष्य के सम्बन्ध और समाज में फिल्डिंग के समय से अब तक जो परिवर्तन हुए हैं, उन्हें समझना होगा, उन पर विचार करना होगा । फिल्डिंग ने औपन्यासिक में जिन गुणों के होने की बात कही है, उन गुणों को यदि का कोई श्रौपन्यासिक प्राप्त करना चाहता है, तो उसे समाज के अन्तस्तल के क्रान्तिकारी स्पन्दन को प्रकाशित करना होगा। यह टीक है कि आधुनिक मनोविज्ञान ने मानव-चरित्र के सम्बन्ध में बहुत सं तथ्यों का संग्रह किया है, मनुष्य के गम्भीरतर अवचेतन मन ( unconscious ) में डुबकी लगाकर अनेक गुप्त मरिणयों की खोज की है, लेकिन इतने ही स मानव चरित्र की सम्पूर्णता को समझा नहीं जा सकता, मनुष्य के कार्यों और विचारों पर विशेष विवेचन नहीं हो सकता। आधुनिक मनस्तत्व विश्लेषण (Psycho-analysis )
ने मनुष्य का ज्ञान बहुत बढ़ा दिया है, और कोई औपन्यासिक ज्ञान के इस पहलू की उपेक्षा नहीं कर सकता । लेकिन केवल इस ज्ञान की सहायता से व्यक्ति के पूर्ण रूप पर विचार नहीं हो सकता। सामाजिक मनुष्य पर समाज की पृष्ठभूमि पर विचार करना होगा। इसीलिए समाज विज्ञान और इतिहास की वस्तुवादी व्याख्या ( Materialistic Interpretatian of History ) पढ़ने की आवश्यकता है। तभी व्यक्ति को पूर्ण रूप से व्यक्त किया जा सकेगा, व्यक्तित्व भी विकसित हो उठेगा । व्यक्ति समूचे समाज का एक अंश है, और इस समाज के नियम कानून व्यक्ति के मन यन्त्र पर उसी प्रकार वियोजित ( decomposed ) और प्रतिसृत (refracted) होकर उसमें परिवर्तन करते हैं, और उसे चलाते हैं, जिस प्रकार प्रिज्म के भीतर आलोक की किरणें प्रविष्ट होती हैं। समाज से विच्छिन्न व्यक्ति का रूप है खण्ड रूप, विकृत रूप । गतिशील समाज के तरंगयुक्त वक्ष में पड़े व्यक्ति का ही रूप पूर्ण है, और पूर्णरूप को प्रस्फुटित करना ही कलाकार का लक्ष्य है। औपन्यासिक जब इस सामाजिक प्राणी को सही रूप में देखेगा, और उसकी जीवन गति से पैर मिलायेगा, तभी वास्तव की सृष्टि होगी, और पूँजीवाद की मृत्यु के बाद भी उपन्यास अमरत्व प्राप्त करेगा ।
इक्यूज़न एण्ड रियलिटी, लिटरेचर और एक बंगला पुस्तक के आधार पर
कथा-साहित्य की समस्याएँ
[ शिवदानसिंह चौहान ]
साथियो ! इस समय हिन्दी में कथा-साहित्य तेजी से बढ़ रहा है। कुछ लोग तो पेशे से कहानी या उपन्यास लेखक हैं ही और उनकी संख्या दर्जनों से ऊपर है लेकिन और कालेजों में भी विद्यार्थियों की एक बहुत बड़ी संख्या कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हो रही है। हिन्दी में आधुनिक कहानी बहुत नयी चीज है, क़रीब एक चौथाई शताब्दी की, फिर भी जितने लेखक, छोटे या वड़े, इस कला का विकास करने में लगे हुए हैं, उससे बड़ी-बड़ी आशायें बँधती हैं। परन्तु एक बात ध्यान देने की है। हिन्दी में जा पत्र-पत्रिकाएँ निकलती हैं, उनमें वैसे कहानियाँ तो काफी संख्या में रहती हैं इतना ही क्यों, कोई एक दर्जन पत्रिकाएँ तो कहानी की ही होंगी लेकिन वे अक्सर दूसरी या तीसरी कोटि की ही कहानियाँ होती हैं। प्रथम कोटि की कहानियाँ तो कभी-कभी ही देखने को मिन्नती हैं। फिर कोई लेखक आज उच्चकोटि की कहानी लिख लेता है तो कल उसी की क़लम से तीसरे और चौथे दर्जे की कहानी निकलती है। मेरे सामने यह प्रश्न अक्सर उठा है कि एक कहानी में कोई लेखक जितनी सफलता पा चुकता है अगली कहानियों में वह उससे अधिक सकलता क्यों नहीं पाता ? क्या कारण है कि इतने कथाकारों के होत हुए भी श्रेष्ठ रचनाओं का निर्माण नहीं हो रहा है ? इन प्रश्नों ने मुझे हैरान किया है मुझे अपने गल्प- सम्मेलन में बुलाकर इन प्रश्नों पर विचार करने के लिए जोर दिया है उससे मैं पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहता हूँ, और चाहता हूँ कि आप भी इन प्रश्नों पर मेरे साथ सोचें, क्योंकि आपमें से कई ने अपनी कहानियाँ पढ़कर सुनायी हैं और कुछ आप में से ऐसे भी होंगे जिन्होंने यहाँ पर सुनायों तो नहीं, लेकिन जो कहानियाँ लिखते हैं, या लिखने की इच्छा रखते हैं। आपमें से कुछ की कहानियाँ शायद किसी पत्र में प्रकाशित भी हुई हों और मैं ऐसी आशा क्यों न करूँ कि आपमें से कुछ आगे चलकर बड़े कहानी-लेखक भी बनेंगे । और फिर, यहाँ जो कहानियाँ पढ़ी गई हैं, उन्हें सुनकर मुझे गहरी निराशा हुई है। उन कहानियों के पीछे लेखकों की चेतना में यह जानने की चेष्टा मुझे कहीं न दिखाई दी कि वे जो कहानी लिख रहे हैं वह क्यों महत्वपूर्ण है, अर्थात उनकी कहानी में ऐसी क्या विशेषता है, ऐसा क्या गुण है जो सुनने या पढ़नेवालों के लिए महत्वपूर्ण होगा- इस सचेत चेष्टा के अभाव में आपकी कहानियाँ पुरानी
● १६ फरवरी को सेन्ट ऐन्ड्रज कालेज, गोरखपुर के गएप-सम्मेलन में सभापति पद से दिया भाषण ।
कथाओं के टुकड़ों को दुहराती-सी दिखाई दीं, शब्दों और मुहाविरों के हेर फेर से ज्यादा फ़र्क ना सका । आपकी इन कहानियों को मैं लिखने के प्रारम्भिक प्रयत्न के रूप में ही मानता हूँ, लेकिन प्रारम्भिक रचनाओं में भी किसी सत्य तक पहुँचने की एक गंभीर चेष्टा तो होनी ही चाहिए, क्योंकि ऐसी चेष्टा या शोध के भीतर ही प्रतिभा का बीज अंकुरित होता है और पनपता है, और किसी भी लेखक की प्रारम्भिक अभिव्यक्तियों में भी लोकर देता और एक ऐसी सूक्ष्म व्यापकता ला देता है जिसमें लेखक के भावी विकास का आभास सुनने या पढ़नेवाले को मिलता जाता है। आपकी कहानियों में मुझे इस चेष्टा का भाव मिला। इसलिए जो प्रश्न मैंने उठाये हैं उनका आपके लिए तो और भी महत्व है। आज हमें सोचना है कि क्या करें कि कहानी लिखने का जो उत्साह चारों ओर उमड़ पड़ा है, वह व्यर्थ न जाय। अर्थाकड़ों लेखकों की सैकड़ों कहानियों में जो शक्ति प्रतिदिन व्यय होती है, वह व्यर्थ न जाय, और ऐसा न हो कि साधारण कहानियाँ ही लिखी जाती रहें और अगर कभी कोई महान कहानी किसी से बन पड़े तो उसे अपवाद या दैव संयोग की तरह एक विशेष घटना माना जाय ।
इस प्रश्न की गंभीरता समझने के लिए ज़रा और खुलासा करने की ज़रूरत । 'हंस' के सम्पादन कार्य में मुझे प्रतिदिन ऐसी कहानियों और कविताओं को पढ़ने का मौका मिलता है जिनका कहीं भी प्रकाशित होना साहित्य की अभिवृद्धि में सहायक नहीं हो सकता। तो भी जो लेखक उन्हें लिखते हैं वे यही सोचते हैं कि उन्होंने एक श्रेष्ठ कलाकृति का निर्माण किया है। और प्रोत्साहन पाने या कीर्ति पाने का विचार तो रहता ही है, परन्तु वे उन्हें इसलिए भी भेजते हैं क्योंकि रचना की श्रेष्ठता में उनका अडिग विश्वास होता है; और जब मैं उन्हें रचना वापस कर देता हूँ तो वे दुबारा वैसी ही रचना फिर भेज देते हैं और इस तरह की सैकड़ों रचनाओं को पढ़ने के बाद मैं खिन्न भी हुआ हूँ, क्योंकि साहित्यिक शक्तियों के अपव्यय का भाव जितना ही विराट् होता जाता है उतना ही वह चेतना में ज्यादा नुकीला होकर चुभता है। मुझे ऐसा लगा है कि अगर प्रोत्साहन देने के विचार से उनमें से कुछ रचनाओं को छाप भी दिया जाय तो भी उनके लेखक शायद ही कभी साहित्य की ऊँची चोटियों को छू सकें। आप प्रश्न कर सकते हैं कि हर नये लेखक से श्रेष्ठ अभिव्यक्ति की अपेक्षा क्यों रखूँ, और फिर यदि प्रोत्साहन न दिया जायगा तो लेखक के व्यक्तित्व का विकास कैसे होगा ? ये प्रश्न संगत हैं, इसमें सन्देह नहीं । लेकिन लिखने की फिर सार्थकता क्या रह जाय यदि अधिकतर लेखक सारा जीवन लिखने में ही बिता दें और फिर भी कोई श्रेष्ठ चीज न लिख पायें ? हिन्दी में ऐसे कितने लेखक आपको नहीं मिलते ? इसलिए किसी लेखक की प्रारम्भिक रचनाओं के प्रति उदारता दिखाने का ही यह प्रश्न नहीं है और यह यह जानने हुए कि महान लेखक या कलाकार बने-बनाये पैदा नहीं होते, अधिक से अधिक वे अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित वृत्तियों को लेकर जन्मते हैं और चारों ओर के सामाजिक जीवन के वातावरण से संघर्ष में पड़कर वे वृत्तियाँ उनके अन्दर अपेक्षाकृत अधिक तीव्र अनुभूति, पैनी दृष्टि और सूक्ष्म भावचेतना का विकास करने में सहायक होती
हैं; तथा यह जानते हुए कि कितने भी अध्यवसाय और प्रोत्साहन से ही लेखक महान बन भी नहीं सकता, यद्यपि प्रोत्साहन की कमी और अध्यवसाय के अभाव में और सामाजिक परिस्थितियों की विषमता के कारण अनेक प्रतिभासम्पन्न, क्षमताशील लेखकों की सृजनशक्ति निकास न पाने के कारण घुटकर सूख जाती है मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि यदि थोड़ी-सी भी साहित्यिक वृत्तियों का लेखक गंभीरता पूर्वक लेखन कार्य की आवश्यकताओं को समझकर प्रयत्न करे तो वह साधारणतया अच्छा नहीं लिख सकता । और चूँकि हिन्दी में चन्द लेखकों को छोड़कर अधिकांश साधारण तल की चीज़ भी नहीं लिखतें, इस कारण मेरा यह सोचना भी उचित है कि यदि किसी लेखक की प्रारम्भिक रचनाओं में उन्हें अच्छा बनाने की गम्भीर चेष्टा का है तो उसे प्रोत्साहन देकर हिन्दी के साधारण लेखकों की नयी कतारें खड़ी करने से लाभ क्या ? इसका यह अर्थ नहीं कि मैं इन लेखकों की साधारण रचनाओं में लगे श्रम का सम्मान नहीं करता, यदि न करता तो आपके सामने यह प्रश्न न उठाता। लेकिन क्यों हमारे लेखकों की नई पौध भी निर्जीव-सी निकले ? साहित्य के सभी अंगों पर यह बात लागू होती है और यह समस्या सर्वव्यापी है। परन्तु यहाँ हम कथाकार के रूप के एकत्र हुए हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिये कि हिन्दी के कथा-साहित्य के क्षेत्र में साहित्यिक शक्तियों विराट् सीमा तक पहुँच गया है।
इस प्रश्न के 'क्यों' और 'कैस' पर पहले भी आक्रमण किया जा चुका है। यहाँ एक दो का उल्लेख करना जरूरी है। इस समस्या को कई रूप में पेश भी किया गया है । छिछला साहित्य ही क्यों पैदा हो रहा है? जीवन से साहित्य का सम्बन्ध टूटा-सा क्यों लगता है ? हमारे साहित्य में राष्ट्र की आत्मा अर्थात उसका सुख-दुःख उसका संघर्ष, उसकी कक्षाएँ क्यों नहीं बोलतीं ? उसमें प्राण-रस का प्रभाव क्यों है जिससे वह शुष्क और उथला हो रहा है ? और इस कमी की पूर्ति के लिए 'मधुकर' - सम्पादक पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी ने एक रामबाण औषधि ईजाद की कि लेखकों को अपने-अपने नगरों के अन्दर मच्छर मारने, चूहे पकड़ने और क़ुनैन वाँटने का काम उठाना चाहिए ! काफ़ी विज्ञापन के बाद भी लेखकों ने इस औषधि का इस्तेमाल नहीं किया-करना भी नहीं चाहिए था। चतुर्वेदीजी का विचार था कि इस तरह लेखक जनता के सम्पर्क में तो वेंगे ही, वे कुछ ज्यादा व्यावहारिक प्राणी भी बन सकेंगे। लेकिन समस्या का यह समा धान एकांगी और उथला था, ग़लत भी था। मैं यह नहीं कह रहा कि जनता से सम्पर्क न स्थापित किया जाय, वह तो करना ही चाहिए, लेकिन किसी काम को करने का एक तरीक़ा होता है। कम से कम सड़क पर चूहे पकड़ने से तो जनता से एकात्म नहीं हुआ जा सकता, और न उससे साहित्य को नई प्रेरणा और शक्ति ही मिल सकती है। फिर भी जो लोग पतली-सी टहनी को देखकर उसे ही समूचा पेड़ मान लेते हैं, वे ऐसी ही ग़लती करते हैं। इसके दूसरे छोर पर जो लोग 'टेकनीक' को ही महत्व देते हैं, वे एक दूसरी ही से इस प्रश्न पर आक्रमण करते हैं। नये कथा-साहित्य की त्रुटियों पर रोशनी डालते सुझाव पेश करते हैं कि लेखकों को कहानी-कला को पहले समझकर ही लिखा
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शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। . हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .
अकबर और हाजीपुर आम में 10 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): दिल्ली, पूर्णिमा, बाबर, बंगाल, मुसलमान, हिन्दू, हिन्दी, जैन धर्म, औरंगज़ेब, अंग्रेज़ी भाषा।
दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ीः National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैंः हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .
पूर्णिमा पंचांग के अनुसार मास की 15वीं और शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य मनाया जाता हैं। .
ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था, जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश के संस्थापक था। वो तैमूर लंग के परपोते था, और विश्वास रखते था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है! .
बंगाल (बांग्लाः বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृतः अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .
मिसरी (ईजिप्ट) मुस्लिमान नमाज़ पढ रहे हैं, एक तस्वीर। मुसलमान (अरबीः مسلم، مسلمة फ़ारसीः مسلمان،, अंग्रेजीः Muslim) का मतलब वह व्यक्ति है जो इस्लाम में विश्वास रखता हो। हालाँकि मुसलमानों के आस्था के अनुसार इस्लाम ईश्वर का धर्म है और धर्म हज़रत मुहम्मद से पहले मौजूद था और जो लोग अल्लाह के धर्म का पालन करते रहे वह मुसलमान हैं। जैसे कुरान के अनुसार हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी मुसलमान थे। मगर आजकल मुसलमान का मतलब उसे लिया जाता है जो हज़रत मुहम्मद लाए हुए दीन का पालन करता हो और विश्वास रखता हो। मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने भारत को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान कहा है । .
शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .
हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .
जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .
अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ - ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फ़तवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी क़ानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुस्लिमों पर अतिरिक्त कर भी लगाया। ग़ैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। मुग़ल शासनकाल में उनके शासन काल में उसके दरबारियों में सबसे ज्यादा हिन्दु थे। और सिखों के गुरु तेग़ बहादुर को दाराशिकोह के साथ मिलकर बग़ावत के जुर्म में मृत्युदंड दिया गया था। .
अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ीः English हिन्दी उच्चारणः इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .
अकबर 180 संबंध है और हाजीपुर 115 है। वे आम 10 में है, समानता सूचकांक 3.39% है = 10 / (180 + 115)।
यह लेख अकबर और हाजीपुर के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखेंः
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उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा ने 75 में से 67 जिलों में जीत हासिल की है। वैसे तो इन चुनावों की हकीकत सबको मालूम है, पर इसे विधानसभा चुनाव का सेमी-फाइनल बताते हुए, गोदी मीडिया द्वारा जश्न का माहौल बनाया जा रहा है।
सरे-आम लोकतंत्र की हत्या कर हासिल की गई इस जीत को " शानदार " बताते हुए तथा जीत का श्रेय मुख्यमंत्री योगी को देते हुए मोदी जी ने ट्वीट किया " यह विकास, जनसेवा और कानून के राज के लिए जनता जनार्दन का आशीर्वाद है।" सचमुच "कानून के राज" का नायाब नमूना था पंचायत चुनाव!
पंचायत सदस्यों के जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव के लोकप्रिय जनादेश को, जिसमें भाजपा बुरी तरह पराजित हुई थी, रौंदकर हासिल इस जीत से गदगद योगी जी ने उम्मीद जाहिर की, " यह चुनाव पंचायती व्यवस्था को मजबूत करेगा " और उन्होंने इसके आधार पर विधानसभा में 300 से ऊपर सीट जीतने का एलान कर दिया।
बहरहाल, लोग जानते हैं कि इसी तरह 2015 के पिछले चुनाव में सपा ने 63 ज़िलों में जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर जीत हासिल की थी, जब प्रदेश में उसकी सरकार थी और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में वह बुरी तरह पराजित हुई थी ( 406 में 47 सीट )। कुछ ऐसा ही 2010 में हुआ था।
जाहिर है, इन नतीजों से आगामी विधान-सभा चुनाव की संभावनाओं का कोई लेना देना नहीं है। बल्कि जिस तरह धनबल, बाहुबल और सरकारी मशीनरी का नँगा नाच हुआ है, उसके खिलाफ लोगों में रोष है।
योगी जी प्रदेश में "भयमुक्त, सुरक्षा" का माहौल बनाने को पिछली सरकार की तुलना में अपना सबसे बड़ा USP बताते हैं, इन चुनावों में ताकत और भ्रष्टाचार के बल पर लोकतंत्र का अपहरण करके उन्होंने सेल्फ-गोल कर दिया। राज्य-प्रायोजित भयादोहन और वोटों की दिन-दहाड़े डकैती की तमाम वायरल तस्वीरें लोगों के दिलो-दिमाग में छायी रहेंगी, योगी और भाजपा आखिर किस मुँह से 6 महीने बाद चुनाव में कह पाएंगे कि पिछली सरकार में गुंडागर्दी थी और हमारी सरकार में भय-भ्रष्टाचार मुक्त रामराज !
अब उत्तर प्रदेश की जनता को यह अच्छी तरह समझ में आ गया है कि मलाईदार पदों की अपनों के बीच बंदरबांट तथा विधानसभा चुनाव के पहले अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए ही सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर के बीचोबीच प्रदेश की जनता को पंचायत चुनाव के मौत के मुंह में झोंका था जिसने लाखों लोगों को लील लिया।
इसके साथ ही अब उप्र विधानसभा चुनाव की तैयारी में संघ-भाजपा ने सारे घोड़े खोल दिये हैं। संघ के दो शीर्ष नेता दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ और भैया जी जोशी अयोध्या में मोर्चा संभाल चुके हैं। स्वयं मोदी जी पूरे प्रदेश, विशेषकर वाराणसी के अपने संसदीय क्षेत्र, लखनऊ में योगी के कामकाज और अयोध्या मंदिर निर्माण में ' रुचि ' ले रहे हैं। महामहिम राष्ट्रपति का उत्तर प्रदेश दौरा हुआ, उन्होंने राजधानी लखनऊ में अम्बेडकर मेमोरियल का शिलान्यास किया, जाहिर है चुनाव जब 6 महीने रह गया है, इसके भी राजनीतिक निहितार्थ हैं।
राजधानी दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के प्रदेश-मंत्री अमित वाल्मीकि के स्वागत के बहाने किसानों को उकसाने का प्रयास किया जिसके बाद किसानों से उनकी झड़प हुई। किसान नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि सरकार जातिगत टकराव पैदा करना चाहती है। उप्र ही नहीं, पड़ोसी राज्यों बिहार और हरियाणा में भी उकसावामूलक, साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने वाली घटनाएं लगातार घट रही हैं।
जाहिर है इस सबके तार उत्तर प्रदेश के नजदीक आते विधानसभा चुनाव से जुड़े हुए हैं।
इसी दौरान कश्मीर पर प्रधानमंत्री ने एक नई पहल का राग छेड़ा है। जम्मू में ड्रोन देखे जा रहे हैं और कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं। जाहिरा तौर पर सीमा पर तथा मुस्लिम बहुल सीमावर्ती क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के अंदर होने वाले developments से उप्र चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश होगी।
आज यक्ष प्रश्न यह है कि संघ-भाजपा उत्तरप्रदेश में अपनी सत्ता बरकरार रखने की ये जो तमाम desperate कोशिशें कर रहे हैं, क्या वे कामयाब होंगी ?
दरअसल, उत्तर प्रदेश में भाजपा के वोटिंग पैटर्न पर गौर किया जाय तो भाजपा के उभार की पहली लहर 90 के दशक में आई थी, जब कांग्रेस से बड़े पैमाने पर जनता के विभिन्न तबकों का अलगाव बढ़ रहा था, उस समय मंदिर आंदोलन की लहर पर सवार होकर वह 1991 में सत्ता में आई थी 31% वोट के साथ, 93 में उसे 33% और 96 में 32% वोट मिले थे। पर यह लहर 5 साल से अधिक sustain नहीं कर सकी। 2002 के चुनाव में गिरकर इसका मत प्रतिशत 20%, 2007 में 17%, 20012 में 15% पंहुँच गया। लेकिन 2012 के मात्र 15% वोट से abnormally बढ़कर 2017 में उसका वोट 39.7% पंहुँच गया, 25% वोटों की असामान्य वृद्धि। यह भाजपा के अपने इतिहास की अधिकतम मत तो है ही, आपातकाल के बाद प्रदेश में किसी दल को मिला अधिकतम वोट है। यह वोट abnormal aberrations हैं, जो गुजरात मॉडल, नोटबन्दी, सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा-बालाकोट जैसी घटनाओं-परिघटनाओं के इर्द-गिर्द निर्मित 5 साल चली मोदी लहर का परिणाम थे। 2014-19 के इस असामान्य मोदी euphoria ( या mania ! ) के दौर को छोड़ दिया जाय तो, यह वोट उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्वाभाविक ताकत की अभिव्यक्ति नहीं हैं और वह इन्हें sustain नहीं कर सकती।
2019 के बाद हुए 2 चुनावों के परिणाम इसकी पुष्टि करते हैं-11 विधान सभा सीटों के उपचुनाव तथा पंचायत चुनाव। उपचुनाव की सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 46 % से गिरकर 35.6% रह गया। जिला पंचायत चुनावों में भाजपा महज 20% सीटें जीत पाई और दूसरे नम्बर पर खिसक गई।
इस असामान्य लहर के दौरान तमाम तबके इसके fold में आये थे और एक बड़ा सोशल coalition बना था, परन्तु उसके अंतर्विरोध 5 साल के योगी और 7 साल के मोदी शासन के दौरान निरन्तर तीखे होते गए हैं और उसमें लगातार बिखराव हो रहा है।
दरअसल, सतही ढंग से जातियों-समुदायों के जोड़ गणित की कथित सोशल इंजीनियरिंग के कुख्यात फॉर्मूले के आधार पर जो लोग राजनीति की व्याख्या करते हैं वे अक्सर यह भूल जाते हैं कि ये समीकरण परिस्थिति विशेष के वृहत्तर आर्थिक-सामाजिक तथा राजनीतिक सन्दर्भ में ही आकार ग्रहण करते हैं, उससे अलग थलग ये यांत्रिक ढंग से न बनाये जा सकते हैं और न एक बार बन जाने के बाद हमेशा के लिए जारी रखे जा सकते हैं। इस तरह के गठजोड़ विभिन्न जाति समुदायों के बीच से उभरे हुए power-groups द्वारा मूलतः अपने हितों के अनुरूप बनाये जाते हैं, उनकी वह दिशा जब उस समुदाय के आम लोगों के भोगे हुए यथार्थ, उनके वास्तविक भौतिक जीवन, उनकी वास्तविक/कल्पित आशाओं-आकांक्षाओं से मेल खाती है तभी वह गठजोड़ जन-स्वरूप ग्रहण करता है और सफल होता है, जैसे ही यह बेमेल हो जाता है वह सोशल इंजीनियरिंग फेल हो जाती है।
यही बात हिंदुत्व की लहर के लिए भी सच है। यह स्पष्ट है कि देश-काल की किन्हीं खास परिस्थितियों में ही यह प्रभावी होती है, संघ-भाजपा तो इसे हर चुनाव में ही उभारने और इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं पर वे सफल कभी-कभी ही होते हैं।
2014 के आसपास का वह एक विशिष्ट historical conjunctuture था जिसमें कारपोरेट पूँजी और मीडिया द्वारा ब्राण्ड मोदी गढ़ा गया। याद कीजिये 2011 से 2014 का वह दौर जब मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी सालों में लुढ़कती जॉबलेस ग्रोथ के बीच "विकास और रोजगार के पर्याय" गुजरात मॉडल का जादू सबके सर चढ़ कर बोल रहा था। किसानों के लिए मोदी जी स्वामीनाथन आयोग के आधार पर MSP की कानूनी गारण्टी की मांग कर रहे थे और 2 करोड़ सालाना रोजगार का वायदा कर रहे थे, भारत को चीन की तरह मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का सब्जबाग दिखा रहे थे, उधर काला धन विदेशों से लेकर सबके खाते में 15 लाख जमा करने का वायदा कर रहे थे जबकि मनमोहन सरकार भ्रष्टाचार-विरोधी अन्ना आंदोलन के भंवर में फंसी हुई थी। " हिन्दू हृदय सम्राट " तो वे 2002 से थे ही।
यह वह ऐतिहासिक सन्दर्भ था जब युवा, किसान, बेरोजगार, श्रमिक, भ्रष्टाचार से हलकान आम आदमी, अर्थव्यवस्था और कारोबार में तेजी की बाट जोहते व्यवसायी, मध्यवर्ग -सब मोदी लहर की " चपेट " में आते गए। यही वह सन्दर्भ था जिसमें उन सामाजिक तबकों को छोड़कर जो राजनीतिक कारणों से भाजपा-मोदी के खिलाफ थे, मसलन उत्तर प्रदेश में मुसलमान, यादव और जाटव, अन्य सब बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ चले गए। बेशक सपा तथा बसपा के सामाजिक न्याय के अवसरवादी मॉडल से विक्षोभ तथा आर्थिक मोर्चे पर उनकी गरीब विरोधी नव-उदारवादी नीतियों से आयी बदहाली ने उन्हें भाजपा की ओर ठेलने में भूमिका निभाई।
मोदी जी के राज्यारोहण के बाद 5 साल तक -काले धन से लेकर पाकिस्तान तक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक जैसे चमकदार कारनामों और उज्ज्वला जैसे कतिपय populist कार्यक्रमों की मदद से यह मोदी लहर sustain की।
पर आज सन्दर्भ बिल्कुल बदला हुआ है। आज ब्राण्ड मोदी खत्म हो चुका है। महामारी के दौरान हुई अनगिनत मौतों का दाग मोदी-योगी के दामन पर है। अपने को privileged और well-connected समझने वाला, मोदी जी का सबसे उत्साही समर्थक मध्यवर्ग इसके receiving end पर रहा। मोदी जी के राज में अपनी इस असहाय स्थिति की उसने सपने में भी कल्पना नहीं की थी, जाहिर है उसका भयानक मोहभंग हुआ है।
अर्थव्यवस्था रसातल में है, विकासदर एक साल से जीरो के नीचे चल रही है। बेरोजगारी चरम पर है। ऊपर से मंहगाई भी आसमान छू रही है। पहले नोटबन्दी, GST, अब अनियोजित लॉकडाउन ने पूरी अर्थव्यवस्था, विशेषकर असंगठित क्षेत्र को जिस तरह बर्बाद किया है, उसने 90% श्रमिक आबादी को भयानक असुरक्षा, चरम आर्थिक संकट,यहां तक कि एक हिस्से को भूखमरी की स्थिति मे धकेल दिया है। इनमें सबसे बड़ी आबादी तो समाज के कमजोर तबकों दलितों-आदिवासियों, अतिपिछड़ों की ही है, जिन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का जो सब्जबाग दिखाया गया था, वह भी पूरी तरह धूल-धूसरित हो चुका है।
ऐसी स्थिति में 2014, 17 या 19 की तरह भाजपा के पक्ष में कोरोना की आग में झुलसे मध्यवर्ग, आर्थिक रूप से तबाह निम्नवर्ग तथा 5 साल योगी राज में सामाजिक रूप से वंचित-उत्पीड़ित रहे हाशिये के तबकों का rainbow coalition पुनः बन पाना अब असम्भव है। आज जब सारे ही लोग मोदी-योगी राज की तबाही के भुक्तभोगी हैं, सबने कोरोना के कहर के दौरान, जब सरकार गायब हो गयी थी, एक दूसरे का हाथ थामा, सबके गम और लड़ाई साझा है, किसान-आंदोलन ने पूरे देश और प्रदेश में तमाम सामुदायिक विभाजनों के पार विराट किसान एकता कायम की है तथा secular democratic एजेंडा का बोलबाला स्थापित किया है, पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से चली आ रही खाई को पाट कर साम्प्रदायिक सौहार्द का माहौल कायम किया है, तब लाख कोशिश के बाद भी किसी के लिए बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण का माहौल बना देना आसान नहीं होगा।
5 साल तक चली मोदी लहर हमेशा के लिए खत्म हो चुकी है, इसका यह उतार irreversible है और कोई भी कीमियागिरी अब इसका पुनर्जीवन नहीं कर सकती।
आने वाले दिनों में किसान आंदोलन, राफेल के नए खुलासे, कोविड प्रबंधन, बेरोजगारी-मंहगाई और अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के भंवर से निकल पाना भाजपा के लिए और कठिन होता जाएगा और 2022 में उत्तरप्रदेश में इसकी नैया डूबना तय है।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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यह चिंटू नाम के एक चीते की कही हुई बात है जो हर उस आदमी के लिए है जो उसकी बात को पढ़ने या सुनने का इच्छुक है क्योंकि यह एक पोस्टर पर लिखा है.
यह पोस्टर मध्यप्रदेश के वन विभाग द्वारा छह महीने पहले लगाया गया था, जो विभाग के आला अधिकारियों के कहने पर आधिकारिक आदेश के रूप में लगाया गया है. यह फ़रमान कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आसपास बसने वाले उन सभी लोगों के लिए है जिन्हें पोस्टर पर दिखता दोस्ताना 'चिंटू' चीता यह बताना चाहता है कि इस उद्यान को वह अपना घर बनाना चाहता है.
जिस घर की बात चिंटू कह रहा है उसे 50 असली अफ़्रीकी चीते आपस में साझा करेंगे. अलबत्ता इस घर में यहां बागचा गांव में रहने वाले उन 556 मनुष्यों की कोई साझेदारी नहीं होगी, क्योंकि उन्हें विस्थापित अथवा पुनर्वासित करते हुए कहीं और बसाया जाएगा. इस विस्थापन से इन जंगलों से लगभग अभिन्न रूप से जुड़े लोगों और मुख्यतः सहरिया आदिवासियों की ज़िंदगियों और रोज़गारों पर घातक संकट उत्पन्न होने की आशंका है.
बहरहाल केवल ऐसे पर्यटक जो भारी-भरकम ख़र्च कर बाहर से मंगाए गए इन चीतों को देखने के लिए सफ़ारी पर जाएंगे, ही इस जंगल को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने की हैसियत रखते हैं. लेकिन इस परियोजना से स्थानीय लोगों के जीवन और हितों का शामिल नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. उनमें से अधिकतर लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं.
पोस्टर और कार्टूनों में इस 'प्यारे' चित्तीदार बड़ी बिल्ली को देखकर बहुत से स्थानीय लोग दुविधाओं में घिरे हुए हैं. इस अभयारण्य से कोई 20 किलोमीटर दूर पैरा जाटव नाम की छोटी बस्ती में रहने वाले आठ साल के सत्यन जाटव ने अपने पिता से पूछा, "क्या यह कोई बकरी है?" उसके छोटे भाई अनुरोध ने बीच में अपनी राय देते हुए कहा कि यह ज़रूर एक तरह का कुत्ता होगा.
चिंटू की घोषणा के बाद पूरे क्षेत्र में पोस्टरों की शक्ल में दो कॉमिक्स लगाए गए हैं जिसमें, दो बच्चों मिंटू और मीनू को, चीतों कर बारे में जानकारी साझा करते हुए दिखाया गया है. वे दावा करते दिखते हैं कि ये जानवर कभी भी आदमी पर हमला नहीं करते हैं और तेंदुओं की अपेक्षा कम ख़तरनाक हैं. बल्कि, मिंटू ने तो यहां तक सोच रखा है कि वह उन चीतों के साथ दौड़ लगाएगा.
आशा है कि अगर ये जाटव लड़के कभी चीतों से टकरा भी जाएं, तो उन्हें पालतू बनाने के बारे में कभी नहीं सोचेंगे.
असल कहानी अब शुरू होती है, और इसका हर शब्द पीड़ा में डूबा हुआ है.
एसिनोनिक्स जुबेटस (अफ़्रीकी चीता) एक ऐसा जानवर है जो बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है, और वह बड़ा स्तनपायी होने के साथ-साथ पृथ्वी का सबसे तेज़ भागने वाला जानवर है. यह एक विलुप्तप्राय प्रजाति है और भारत में नहीं पायी जाती. बहरहाल भारत आने के बाद यह अप नी रिहाइश के आसपास बसे सैकड़ों परिवारों को विस्थापन के लिए विवश कर देगा.
मध्यप्रदेश के शिवपुर ज़िले के पश्चिमी सीमांत पर बसा बागचा गांव मुख्यतः सहरिया आदिवासियों का इलाक़ा है. सहरिया आदिवासी मध्यप्रदेश में विशिष्टतः असुरक्षित जनजातीय समूह (PVTG) में आते हैं जिनकी साक्षरता दर सिर्फ़ 42 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना के अनुसार विजयपुर ब्लॉक के इस गांव की कुल आबादी केवल 556 है. ये लोग मिट्टी और ईंट के बने घरों में रहते हैं जिनकी छतें पत्थर की पट्टियों से बनी होती हैं. यह पूरा क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान से घिरा हुआ है. यह भूक्षेत्र कूनो पालपुर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कूनो नदी यहीं से बहती हुई निकलती है.
बागचा पहुंचने के लिए शिवपुर से सिरोनी शहर की तरफ़ जाने वाले हाईवे को छोड़ कर एक धूल-धक्कड़ वाली सड़क में दाख़िल होना होगा. इस पूरे इलाक़े में करधई, खैर, और सलाई के हवादार पर्णपाती जंगल मिलते हैं. कोई बारह किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद टीले पर बसा और बड़ी तादाद इधर-उधर चरते मवेशियों से भरा यह गांव दिखाई देता है. यहां से सबसे नज़दीकी जन-स्वास्थ्य केंद्र गांव से लगभग 20 किलोमीटर दूर है जहां 108 नंबर पर डायल करने के बाद पहुंचा जा सकता है, बशर्ते बेसिक फ़ोन या नेटवर्क सेवाएं काम करें. बागचा में एक प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन पांचवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई करने के लिए बच्चों को 20 किलोमीटर दूर ओछा के मध्य विद्यालय जाना होता है, जहां से उनकी वापसी केवल सप्ताहांत को ही हो पाना संभव है.
सहरिया अपनी छोटी-छोटी ज़मीनों पर वर्षा पर निर्भर खेती करते हैं और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कूनो में पायी जाने वाली वनस्पतियों और कंद-मूलों अर्थात 'नॉन-टिंबर फारेस्ट प्रोड्यूस (एनटीएफ़पी) की बिक्री पर आश्रित होते हैं. उनके विस्थापन के परिणामस्वरूप जंगली वनस्पतियां और औषधियां भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगी. मसलन चीर के पेड़ से निकाली गई गोंद उनकी आय का एक बड़ा स्रोत हैं. साथ ही वे विभिन्न प्रकार के फल, कंद, जड़ी-बूटियां और केंदु के पत्ते भी बेचते हैं. अगर मौसम ने साथ दिया तो प्रत्येक सहरिया परिवार अपने दस सदस्यों के औसत से इन सभी स्रोतों से कम से कम 2-3 लाख रुपए प्रतिवर्ष की कमाई की अपेक्षा रखता है. इस आमदनी में वे बीपीएल (ग़रीबी रेखा के नीचे) कार्ड पर मिलने वाले राशन को भी शामिल रखते हैं. राशन में मिले अनाज से उन्हें अगर कोई ठोस सुरक्षा नहीं भी मिलती है तो भी अपनी खाद्य-व्यवस्था में उन्हें एक बड़ी स्थिरता ज़रूर महसूस होती है.
जंगल से निष्कासित होकर वे इन सभी चीजों को गंवा देंगे. "जंगल से हमें जो सुविधाएँ मिलती हैं, वे ख़त्म हो जाएँगी. चीर के पेड़ों से मिलने वाली गोंद पर हमारा कोई अधिकार नहीं रह जाएगा, जिन्हें बेच कर हम अपने लिए नमक और तेल खरीदते हैं. यह सब समाप्त हो जाएगा. हमें आमदनी के लिए सिर्फ़ अपनी मेहनत पर निर्भर रहना होगा और हमारी स्थिति एक मजदूर से अधिक कुछ नहीं रह जाएगी," बागचा के एक सहरिया हरेथ आदिवासी निराशा के साथ बताते हैं.
विस्थापन और संरक्षणविद प्रो. अस्मिता काबरा के अनुसार, विस्थापन के मानवीय और आर्थिक पक्ष बेहद महत्वपूर्ण हैं. साल 2004 में बागचा में उनके द्वारा किए गए शोध के अनुसार उस समय गांव को जंगल के बिक्री योग्य उत्पादों से अच्छी-ख़ासी आमदनी होती थी. "इस बृहद जंगल से जलावन की लकड़ी, तख्ते और सिल्लियां, जड़ी-बूटी, और औषधियां, फल, महुआ और बहुत सी अन्य सामग्रियां प्रचुर मात्रा में मिलती थीं," वह बताती हैं. आधिकारिक वेबसाईट के मुताबिक कूनो राष्ट्रीय उद्यान 748 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है और वृहद्तर कूनो वन्यजीवन प्रमंडल के अंतर्गत आता है. कुल मिला कर यह 1,235 वर्ग किलोमीटर का भूक्षेत्र है.
जंगल से खदेड़े जाने के आसन्न ख़तरों और वन विभाग के साथ रोज़-रोज़ के इस लुकाछिपी के खेल के बावजूद बागचा के ये आदिवासी हार मानने को तैयार नहीं हैं. स्थानीय लोगों के एक समूह में घिरे हुए हरेथ दृढ़ता के साथ कहते हैं, "हमें अभी विस्थापित नहीं किया जा सका है, ग्राम सभा की बैठकों में हमने अपनी मांग पूरी स्पष्टता के साथ रखी है." सत्तर वर्षीय यह आदिवासी नवगठित ग्राम सभा का सदस्य है. यह ग्राम सभा, उनके कथनानुसार, वन विभाग की पहल पर ही मार्च 6, 2022 को गठित की गई थी, ताकि विस्थापन की योजना को गतिशीलता दी जा सके. वन अधिकार अधिनियम, 2006 [धारा 4 (2)(ई)] के अंतर्गत केवल गांव की ग्राम सभा की लिखित सहमति के बाद ही ख़ाली कराने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.
एक महीने बाद 7 अप्रैल, 2022 को बैठक बुलाई गई. एक शाम पहले ही पूरे गांव को कहा गया था कि अगले दिन की बैठक में सभी लोग शामिल हों. जब 11 बजे पूर्वाह्न बैठक शुरू हुई, तो सबसे एक काग़ज़ पर दस्तखत करने को कहा गया, जिस पर लिखा गया था उनके साथ कोई ज़ोर-जबरदस्ती नहीं की जा रही है और वे सभी अपनी मर्ज़ी से अपने गांव से जा रहे हैं. काग़ज़ पर सिर्फ़ उन 178 लोगों के नाम दर्ज़ थे जिनको पुनर्वास के लिए मुआवजा दिया जा रहा था. ग्राम सभा ने काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया.
विडंबना यह है कि जंगल में कभी शेर भी नहीं देखे गए, और आज इस बात को बाईस साल हो गए.
अंधाधुंध शिकार के कारण भारत में विलुप्त हो चुके एशियाई चीता (एकिनोनिक्स जुबेटस वेनाटिकस) - बिल्ली प्रजाति के ये पीले और चित्तीदार जीव - अब इतिहास किताबों और शिकारियों की बहादुरी के किस्सों में ही ज़िंदा बच गए हैं. देश के अंतिम तीन एशियाई चीतों को एक छोटी रियासत के तात्कालिक महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में मार गिराया था.
के राजाओं' की तस्वीरें आज भी हमारे अनेक सरकारी प्रतीकों के रूप में सुस्थापित हैं.
स्थान रखता है.
पर्यावरण, वन और मौसम परिवर्तन मंत्रालय ने इस वर्ष जनवरी से 'भारत में चीता के सम्मिलीकरण के लिए कार्य योजना' नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की है. इस कार्यक्रम में यह भी बताने की चेष्टा दिखती है कि 'चीता' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है - वह जिस पर चित्तियाँ अंकित हों. इस शब्द का उल्लेख मध्य भारत की नवपाषाण युगीन गुफाओं में बने चित्रों में भी मिलता है. साल 1970 के दशक में भारत सरकार ने ईरान के शाह से कुछ एशियाई चीतों को भारत में लाने के उद्देश्य से बातचीत भी की ताकि भारत में चीतों को आबादी को एक एक स्थिरता दी जा सके.
2009 में मामले ने दोबारा तूल पकड़ा जब पर्यावरण, वन और मौसम परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन्यजीवन संस्थान और भारतीय वन्यजीवन ट्रस्ट से भारत में चीतों के बसाने की संभावनाओं का आकलन करने अनुरोध किया. आज एशियाई चीते केवल ईरान में पाए जाते हैं, लेकिन उनकी तादाद इतनी कम है कि उनका आयात असंभव है. यही हालत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका में पाए जाने वाले अफ्रीकी चीतों की है. इन चीतों की उत्पत्ति का इतिहास कोई 70,000 साल पुराना है.
मध्य भारत के दस अभ्यारण्यों का सर्वेक्षण करने और 345 वर्ग किलोमीटर के कूनो अभ्यारण्य को 2018 में शेरों को बसाने के उद्देश्य से विकसित कर 784 वर्ग किलोमीटर कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित करने के बाद इसे ही अफ्रीकी चीतों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया. यहां बस एक ही दिक्कत थी : बागचा गांव जो उद्यान के ठीक बीचोंबीच आ रहा था, उसे वहाँ से हटाने की आवश्यकता थी. जनवरी 2022 में पर्यावरण, वन और मौसम परिवर्तन मंत्रालय ने सभी आदिवासियों को सकते डालते हुए एक प्रेस अनुज्ञप्ति जारी की जिसमें कूनो को "मनुष्य-रहित क्षेत्र" बताया गया था.
कार्ययोजना के अनुसार कूनो में चीतों के बसने से अतीत की तरह शेरों, बाघों, तेंदुओं और चीतों के एक साथ मिल कर रहने की प्रवृति दोबारा विकसित होगी." दुर्भाग्यवश इस वक्तव्य में दो बड़े दोषों को सहजता के साथ रेखांकित किया जा सकता है. योजनानुरूप बसाए जाने वाले चीते अफ्रीकी हैं, भारत में कभी पाए जाने वाले एशियाई चीते नहीं हैं. और, फिलहाल कूनो में एक भी शेर नहीं बसाए जा सके हैं क्योंकि 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद गुजरात सरकार ने अभी उन्हें अभी तक भेजा नहीं है.
रघुनाथ आदिवासी बताते हैं, "बाईस साल बीत गए हैं और शेर अभी तक नहीं आए हैं, और न वे भविष्य में कभी आएंगे." बागचा में लंबे समय से रहने वाले रघुनाथ को अपने घर से विस्थापित कर दिए जाने की चिंता है, क्योंकि कूनो से लगे गांवों की अनदेखी अतीत में भी होती रही है. पहले भी इन गांवों के लोगों की मांगों और हितों को ख़ारिज किया जाता रहा है.
"जंगल के राजाओं" के स्थानांतरण की इस महत्वाकांक्षी योजना को वन्यजीव संरक्षणवादियों की चिंताओं से भी सह मिला है, क्योंकि कुछ अंतिम बचे हुए एशियाई शेर (पंथेरा लियो लियो ) अब पूरी तरह से एक ही स्थल, यानी गुजरात के सौराष्ट्र प्रायद्वीप तक सीमित हो कर रह गए हैं. कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का संक्रमण, जंगल में फैली आग या दूसरे ख़तरे उनके अस्तित्व को पूरी तरह मिटा सकते हैं, इसलिए उनमें से कुछेक शेरों को कहीं दूसरी जगह स्थानांतरित करना बहुत ज़रूरी है.
केवल आदिवासियों ने ही नहीं बल्कि जंगल में रहने वाले दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों ने भी वन विभाग को आश्वस्त किया है कि वे जानवरों के साथ सहअस्तित्व के सिद्धांत के अनुसार ज़िंदगी गुज़ार सकते हैं. पैरा गांव के पुराने निवासी 70 वर्षीय रघुलाल जाटव कहते हैं, "हमने सोचा कि शेरों के लिए हमें जंगल छोड़ कर जाने की क्या ज़रूरत है? हम जानवरों के स्वभाव से परिचित हैं. हमें उनसे डर नहीं लगता है. हम इसी जंगल में जन्मे और बड़े हुए हैं. हम भी शेर हैं!" उनका गांव कभी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर था, और वहां उन्होंने अपने जीवन के 50 साल बिताए थे. वह बताते हैं कि उनके साथ ऐसा कुछ भी, कभी नहीं हुआ जिसे अप्रिय कहा जा सके.
भारतीय वन्यजीवन संस्थान के डीन और संरक्षणवादी प्राणीविज्ञानी डॉ. यादवेन्द्र झाला बताते हैं कि अतीत में और हाल-फ़िलहाल भी ऐसी घटना का हवाला नहीं मिलता, जब किसी चीते ने आदमी पर हमला कर दिया हो. "मनुष्य के साथ टकराव एक बड़ा मुद्दा नहीं है. चीतों की प्रस्तावित रिहाइश बड़ी संख्या में मांसभक्षियों के बसने की उपयुक्त जगह इसलिए भी है कि लोगों दावा पाले गए मवेशी उनके लिए सुलभ और उचित आहार होते हैं. जंगल में मवेशीपालन जानवरों और मनुष्यों के बीच के संभावित टकराव को न्यूतम करने में मददगार सिद्ध होता है." शेष मारे गए मवेशियों की क्षतिपूर्ति के लिए संभव होने पर अलग बजट का प्रावधान किया जा सकता है.
अफ्रीकी चीतों के इस साल 15 अगस्त तक भारत पहुंच जाने की आशा है. संयोग की बात है कि भारत की आज़ादी का दिन भी यही है.
बागचा गांव इस पूरे घटनाक्रम का पहला शिकार बनेगा.
25 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े को चारदीवारी से घेर दिया जाएगा और हरेक दो किलोमीटर की दूरी पर वन प्रहरियों के लिए एक ऊंचा टावर बना होगा. पहली खेप में जो 20 चीते अफ्रीका से मंगाए जाएंगे उनमें हरेक के लिए चारदीवारी से घिरा 5 वर्ग किलोमीटर का अहाता होगा. चीतों की सुख-सुविधाओं और स्वास्थ्य को पहली प्राथमिकता दी जाएगी. यह ज़रूरी भी हैः अफीका के वन्यजीवन पर केंद्रित आ ईएनसीएन की एक रिपोर्ट में अफ़्रीकी चीते (एकिनोनिक्स जुबेटस) का उल्लेख ऐसे जीव के रूप में किया गया है जो विलुप्तप्राय है. कई दूसरी रिपोर्टों में भी उसकी संख्या में भारी गिरावट पर चिंता प्रकट की गई है.
संक्षेप में, एक ग़ैर स्थानीय और विलुप्तप्राय होती प्रजाति को सर्वथा एक नई दुनिया और परिवेश में लाने - और स्थानीय और वंचित जनजातीय समूहों को उनके लिए स्थान ख़ाली करने के लिए विवश करने की इस परियोजना में 40 करोड़ रुपए का व्यय अनुमानित है. यह निर्णय 'मानव और पशुओं के बीच के टकराव' में निश्चय एक नया आयाम जोड़ेगा.
प्रो. काबरा संकेत करती हैं, "संरक्षण की यह बहिष्करण-नीति - कि मनुष्य और वन्यजीव एक साथ नहीं रह सकते हैं - दिखती नहीं है, सिर्फ़ अनुभूत की जा सकती है." उन्होंने इस वर्ष जनवरी में प्रकाशित 'संरक्षण के लिए निर्वासन' विषय पर एक पेपर के लेखन में सहयोग किया है. वह सवाल करती हैं कि वन्य अधिकार अधिनियम 2006 के प्रभावी होने और जंगल में रहने वालों के अधिकारों की रक्षा के बावजूद पूरे देश में 14,500 जितनी बड़ी संख्या में परिवारों को टाइगर रिजर्व से विस्थापित किया जा चुका है. उनका तर्क है कि इस तीव्रता के साथ विस्थापन की वजह यह थी कि कानून और सत्ता हमेशा ही अधिकारियों के पक्ष में रहे और उन्होंने हर कारगर और 'वैध' हथकंडों का प्रयोग किया ताकि ग्रामवासी 'स्वेच्छया' विस्थापन के लिए सहमत हो जाएं.
बल्कि, उनके कथनानुसार, सरकार का यह उद्देश्य कि आगामी 15 वर्षों में चीतों की संख्या बढ़कर 36 हो जाएगी, बहुत व्यवहारिक नहीं प्रतीत होता, और शायद ही पूरा हो पाए. "पूरी परियोजना अंततः एक महिमामंडन और खर्चीले सफारी पार्क में परिवर्तित होकर रह जाएगी," चेल्लम जो भारत में जैवविविधता संबंधी शोध और संरक्षण को बढ़ावा देने वाले नेटवर्क बायोडाईवर्सिटी कालेबोरेटिव के सदस्य भी हैं, आगे जोड़ते हैं.
एक अतिरिक्त खतरा इन विदेशी जानवरों के साथ आए पैथोजन का भी है जिसकी अनदेखी के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. "परियोजना में ज्ञात पैथोजेन से होने वाले संक्रमणों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है. उसी तरह अफ़्रीकी चीते भी स्ठानीय वन्यजीवों से फैलने वाले संक्रमण का शिकार हो सकते हैं," ये विचार डॉ. कार्तिकेयन वासुदेवन के हैं.
यह अफ़वाह भी ज़ोर-शोर पर है कि चीतों का आगमन - जो कि पिछले वर्ष ही होना था - को किसी विशेष तकनीक व्यवधान के कारण स्थगित कर दिया गया है. भारत का वन्यजीवन सुरक्षा अधिनियम 1972 अपनी धारा 49बी स्पष्टतः कहता है कि हाथी-दांत का व्यापार, यहां तक कि आयात तक क़ानूनी रूप से पूरी तरह निषिद्ध है. अपुष्ट स्रोतों के अनुसार, नामीबिया भारत को कोई भी चीता तब तक उपहार में नहीं देगा जब तक भारत 'कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इन्डेंजर्ड स्पेसीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा' (सीआईटीईएस) के अधीन सूचीबद्ध हाथी-दांत के व्यापार से अपना प्रतिबंध नहीं हटाएगा. इस सूची से मुक्त होने के बाद हाथी-दांत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिबंध-मुक्त हो जाएगा. बहरहाल के लिए इस तथ्य कोई आधिकारिक कोई पुष्टि ही हुई है, और न इसे ख़ारिज ही किया गया है.
रिपोर्टर इस रिपोतार्ज़ को लिखने और अनूदित करने में उनके अमूल्य शोध-सहयोग के लिए सौरभ चौधुरी का हार्दिक आभार प्रकट करती है.
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भगवन्नामके विषयमें दिव्य संदेश
(१) जगत्के ईश्वरवादीमात्र ईश्वरके नामको मानते हैं। भगवान्के नामसे उसके स्वरूप, गुणसमूह, महिमा, दया और प्रेमकी स्मृति होती है। जैसे सूर्यके उदयमात्रसे जगत् के सारे अन्धकारका नाश हो जाता है, वैसे ही भगवान्के नाम-स्मरण और कीर्तनमात्रसे ही समस्त दुर्गुण और पापोंका समूह तत्काल नष्ट हो जाता है। जिनके यहाँ परमात्मा जिस नामसे पुकारा जाता है, वे उसी नामको ग्रहण करें, इसमें कोई आपत्ति नहीं ।
(२) परन्तु परमात्माका नाम लेनेमें लोग कई जगह बड़ी भूल कर बैठते हैं। भोगासक्ति और अज्ञानसे उनकी ऐसी समझ हो जाती है कि हम भगवन्नामका साधन करते ही हैं और नामसे पापनाश होता ही है । इसलिये पाप करनेमें कोई आपत्ति नहीं है, यों समझकर वे पापोंका छोड़ना तो दूर रहा, भगवान्के नामकी ओट या उसका सहारा लेकर पाप करने लगते हैं। एक मुकद्दमेबाज एक नाम-प्रेमी भक्तको गवाह बनाकर अदालतमें ले गया, उससे कहा - 'देखो, मैं जो कुछ तुमसे कहूँ, न्यायाधीशके पूछनेपर वही बात कह देना ।' गवाहने समझा कि यह मुझसे सच्ची ही बात कहनेको कहेगा । पर उसकी बात सुननेपर पता लगा कि झूठ कहलाना चाहता है। इससे उसने कहा - 'भाई ! मैं झूठी गवाही नहीं दूंगा ।' मुकद्दमेबाजने कहा- 'इसमें आपत्ति ही कौनसी है ? क्या तुम नहीं जानते कि भगवान्के नामसे पापोंका नाश होता है। तुम तो नित्य भगवान्का नाम लेते ही हो, भक्त हो, जरा-सी झूठसे क्या बिगड़ेगा? एक ईश्वरके नाममें पापनाशकी जितनी शक्ति है उतनी मनुष्यमें पाप करनेकी नहीं है। मैं तो काम पड़नेपर यों ही कर लिया करता हूँ।' उसने कहा - 'भाई! मुझसे यह काम नहीं होगा, तुम करते हो तो तुम्हारी मर्जी । मतलब यह कि इस प्रकार परमात्माके नाम या उसकी प्रार्थनाके भरोसे जो लोग पापको आश्रय देते हैं वे बड़ा अपराध
करते हैं। वे तो पाप करनेमें भगवान्के नामको साधन बनाते हैं, नाम देकर बदलेमें पाप खरीदना चाहते हैं। ऐसे लोगोंकी दुर्गति नहीं होगी तो और किसकी होगी ?'
(३) कुछ लोग जो संसारके पदार्थोंकी कामनावाले हैं वे भी बड़ी भूल करते हैं। वे भगवान्का नाम लेकर उसके बदले में भगवान्से धन सम्पत्ति, पुत्र - परिवार, मान- बड़ाई आदि चाहते हैं। वास्तवमें वे भी भगवन्नामका माहात्म्य नहीं जानते । जिस भगवन्नामके प्रबल प्रतापसे राजराजेश्वरके अखण्ड राज्यका एकाधिपत्य मिलता हो, उस नामको क्षणभंगुर और अनित्य तुच्छ भोगोंकी प्राप्तिके कार्यमें खो देना मूर्खता नहीं तो क्या है ? संसारके भोग आने और जानेवाले हैं, सदा ठहरते नहीं। प्रत्येक भोग दुःखमिश्रित हैं। ऐसे भोगोंके आने-जानेमें वास्तवमें हानि ही क्या है ?
(क) जो लोग यह समझकर नाम लेते हैं कि इसके लेनेसे हमारे पाप नाश हो जायँगे वे भी विशेष बुद्धिमान् नहीं हैं; क्योंकि पापोंका नाश तो पापोंके फल-भोगसे भी हो सकता है। जिस ईश्वरके नामसे स्वयं प्रियतम परमात्मा प्रसन्न होता है, जो नाम प्रियतमकी प्रीतिका निदर्शन है, उसे पाप नाश करनेमें लगाना क्या भूल नहीं है? वास्तवमें ऐसा करनेवाले भगवन्नामका पूरा माहात्म्य नहीं जानते, क्या सूर्यको कहना पड़ता है कि तुम अँधेरेका नाश कर दो। उसके उदय होनेपर तो अन्धकारके लिये कोई स्थान ही नहीं रह जाता ।
(४) भगवान्का नाम भगवत्प्रेमके लिये ही लेना चाहिये । भगवान् मिलें या न मिलें, परन्तु उनके नामकी विस्मृति न हो । प्रेमी अपने प्रेमीके मिलनेसे इतना प्रसन्न नहीं होता जितना उसकी नित्य स्मृतिसे होता है । यदि उसके मिलनेसे कहीं उसकी स्मृति छूट जाती हो तो वह यही चाहेगा कि ईश्वर भले ही न मिले, परन्तु उसकी स्मृति उत्तरोत्तर बढ़े, स्मृतिका नाश न हो । यही विशुद्ध प्रेम है।
भगवन्नामके विषय में दिव्य संदेश
(५) नाम-साधनमें कहीं कृत्रिमता न आ जाय । वास्तवमें आजकल जगत्में दिखावटी धर्म 'दम्भ' बहुत बढ़ गया है। बड़े-बड़े धर्मके उपदेशक न मालूम किस सांसारिक स्वार्थको लेकर कौन-सी बात कहते हैं, इस बातका पता लगाना कठिन हो जाता है । इस दम्भके दोषसे सबको बचना चाहिये । दम्भ कहते हैं बगुलाभक्तिको । अंदर जो बात न हो और ऊपरसे मान- बड़ाई प्राप्त करने या किसी कार्यविशेषकी सिद्धिके लिये दिखलायी जाय वही दम्भ है । दम्भी मनुष्य भगवान्को धोखा देनेका व्यर्थ प्रयत्न कर स्वयं बड़ा धोखा खाता है। भगवान् तो सर्वदर्शी होनेसे धोखा खाते नहीं, वह धूर्त जो जगत्को भुलावेमें डालकर अपना मतलब सिद्ध करना चाहता है स्वयं गिर जाता है। पाप उसके चिरसंगी बन जाते हैं। पापोंसे उसकी घृणा निकल जाती है। ऐसे मनुष्यको धर्मका परमतत्त्व, जिसे परमात्माका मिलन कहते हैं, कैसे प्राप्त हो सकता है ? अतएव इस भयंकर दोषसे सर्वथा बचना चाहिये ।
इस युगमें नाम जप ही प्रधान साधन है
संसार- समुद्रसे पार होनेके लिये कलियुगमें श्रीहरि नामसे बढ़कर और कोई भी सरल साधन नहीं है। भगवन्नामसे लोक-परलोकके सारे अभावोंकी पूर्ति तथा दुःखोंका नाश हो सकता है। अतएव संसारके दुःख-सुख, हानि-लाभ, अपमान-मान, अभाव-भाव, विपत्ति- सम्पत्तिसभी अवस्थाओंमें प्रतिक्षण भगवान्का नाम लेते रहना चाहिये, विश्वासपूर्वक लेते रहना चाहिये । नाम साक्षात् भगवान् ही हैं, यों मानना चाहिये। नाम-जप इस युगमें सबसे बढ़कर भजन है।
नाम-जप करनेवालोंको बुरे आचरण और बुरे भावोंसे यथासाध्य बचना चाहिये। झूठ-कपट, धोखा - विश्वासघात, छल-चोरी, निर्दयताहिंसा, द्वेष-क्रोध, ईर्ष्या - मत्सरता, दूषित आचार, व्यभिचार आदि दोषोंसे अवश्य बचना चाहिये । एक बातसे तो पूरा खयाल रखकर बचना चाहिये - वह यह कि भजनका बाहरी स्वाँग बनाकर इन्द्रियतृप्ति या किसी भी प्रकारके नीच स्वार्थका साधन कभी नहीं करना चाहिये। नामसे पाप नाश करना चाहिये; परन्तु नामको पाप करनेमें सहायक कभी नहीं बनाना चाहिये । नाम जपते- जपते ऐसी भावना करनी चाहिये कि 'प्रत्येक नामके साथ भगवान्के दिव्य गुण, अहिंसा, सत्य, दया, प्रेम, सरलता, साधुता, परोपकार, सहृदयता, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, संतोष, शौच, श्रद्धा, विश्वास आदि मेरे अंदर उतर रहे हैं और भरे जा रहे हैं। मेरा जीवन इन दैवी गुणोंसे तथा भगवान्के प्रेमसे ओतप्रोत हो रहा है। अहा! नामके उच्चारणके साथ ही मेरे इष्टदेव प्रभुका ध्यान हो रहा है, उनके मधुर- मनोहर स्वरूपके दर्शन हो रहे हैं, उनकी सौन्दर्य - माधुर्य-सुधामयी त्रिभुवन - पावनी ललित लीलाओंकी झाँकी हो रही है। मन-बुद्धि उनमें तदाकारताको प्राप्त हो रहे हैं।'
मन न लगे तो नाम - भगवान्से प्रार्थना करनी चाहिये - 'हे नामइस युगमें नाम-जप ही प्रधान साधन है
भगवन् ! तुम दया करो, तुम्हीं साक्षात् मेरे प्रभु हो; अपने दिव्य प्रकाशसे मेरे अन्तःकरणके अन्धकारका नाश कर दो । मेरे मनके सारे मलको जला दो। तुम सदा मेरी जिह्वापर नाचते रहो और नित्य-निरन्तर मेरे मनमें विहार करते रहो । तुम्हारे जीभपर आते ही मैं प्रेम सागरमें डूब जाऊँ; सारे जगत्को, जगत्के सारे सम्बन्धोंको, तन-मनको, लोकपरलोकको, स्वर्ग-मोक्षको भूलकर केवल प्रभुके - तुम्हारे प्रेममें ही निमग्न हो रहूँ । लाखों जिह्वाओंसे तुम्हारा उच्चारण करूँ, लाखोंकरोड़ों कानोंसे मधुर नाम- ध्वनिको सुनूँ और करोड़ों-अरबों मनोंसे दिव्य नामानन्दका पान करूँ । तृप्त होऊँ ही नहीं। पीता ही रहूँ नामसुधाको और उसीमें समाया रहूँ । '
यदि मन विशेष चंचल हो तो फिर जिह्वा और ओठोंको चलाकर नामका स्पष्ट उच्चारण करते हुए उसे सुननेका प्रयत्न कीजिये । तन्द्रा आती हो तो आँखें खोलकर वाणीसे स्पष्ट जप कीजिये । मनकी चंचलताका नाश करनेके लिये इन्द्रियोंका संयम आवश्यक है और उसके लिये स्पष्ट उच्चारणपूर्वक वाचिक जप करना चाहिये । वाचिक जपसे मन-इन्द्रियोंकी चंचलताका शमन होता है, फिर उपांशु जपके द्वारा नामकी रस- माधुरीकी ओर चित्तकी गति की जाती है। तदनन्तर मानसिक जपके द्वारा मधुर नाम- रसका पान किया जाता है ।
भगवान्के सभी नाम एक-से हैं, सबमें समान शक्ति है, सभी पूर्ण हैं; तथापि जिस नाममें अपनी रुचि हो, जिसमें मन लगता हो और सद्गुरु अथवा सन्तने जिस नामका उपदेश किया हो, उसीका जप करना उत्तम है। दो-तीन नामोंका, जैसे राम, कृष्ण, हरि - जप एक ही भावनासे, एक साथ भी चलें तो भी हानि नहीं है ।
इस प्रबल कलिकालमें जीवोंके कल्याणके लिये भगवान्का नाम ही एकमात्र अवलम्बन है -
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू । राम नाम अवलंबन एकू ॥ - पर मनुष्यका जीवन आज इतना व्यस्त हो चला है कि वह कहता है कि 'मुझे अवकाश ही नहीं मिलता। मैं भगवान्का नाम कब तथा कैसे लूँ ।' यद्यपि यह सत्य नहीं है। मनुष्यके लिये काम - सच्चा काम उतना नहीं है, जितना वह व्यर्थके कार्योंको अपना कर्तव्य मानकर जीवनका अमूल्य समय नष्ट करता है और अपनेको सदा काममें लगा पाता है। वह यदि व्यर्थके कार्योंको छोड़कर उतना समय भगवान्के स्मरणमें लगावे तो उसके पास भजनके लिये पर्याप्त समय है । पर ऐसा होना बहुत कठिन हो गया है। ऐसी अवस्थामें यदि जीभके द्वारा नामजपका अभ्यास कर लिया जाय तो जितनी देर जीभ बोलनेमें लगी रहती है, उसके सिवा प्रायः सब समय - सारे अंगोंसे सब काम करते हुए ही नाम-जप हो सकता है। जीभ नाममें लगी रहती है और काम होता रहता है। न काम रुकता है, न घरवाले नाराज होते हैं। वादविवाद तथा व्यर्थ बोलना बंद हो जानेसे मनुष्यकी वाणी पवित्र और बलवान् हो जाती है, झूठ - निन्दासे मनुष्य सहज ही बच जाता है, वाणीके अनर्गल उच्चारणसे होनेवाले बहुत से दोषोंसे वह सहज ही छूट जाता है। नाम-जपसे पापोंका निश्चित नाश, अन्तःकरणकी शुद्धि होती है, उसकी तो सीमा ही नहीं है । इसलिये ऐसा नियम कर लेना चाहिये कि सुबह उठनेके समयसे लेकर रातको सोनेके समयतक जितनी देर आवश्यक कार्यसे बोलना पड़ेगा, उसे छोड़कर शेष सब समय जीभके द्वारा भगवान्का नाम जपता रहूँगा । अभ्याससे जितना ही यह नियम सिद्ध होगा, उतना ही अधिक भगवान्की कृपासे मानवजीवन परम और चरम सफलताके समीप पहुँचेगा ।
सर्वार्थसाधक भगवन्नाम
भगवान्के नाममें कोई नियम नहीं है। सभी जातिके, सभी वर्गके, सभी नर-नारी, बालक-वृद्ध सभी समय, सभी अवस्थाओंमें, भगवान्का नाम जीभसे जप सकते हैं, मनसे स्मरण कर सकते हैं। भगवान्का नाम वही, जो जिसको प्रिय लगे- राम, कृष्ण, हरि, गोविन्द, शिव, महादेव, हर, दुर्गा, नारायण, विष्णु, माधव, मधुसूदन आदि कोई भी नाम हो । भगवान्का नाम ले रहा हूँ, इस भावसे जपना चाहिये ।
१. जिनको समय कम मिलता हो - बोलना अधिक पड़ता होऐसे लोग, जैसे वकील, अध्यापक, दुकानदार आदि - वे घरसे कचहरी, विद्यालय और दूकानपर जाते-आते समय रास्तेमें भगवान्का नाम लेते चलें और हो सके तो मनमें स्मरण करते चलें ।
२. विद्यार्थी स्कूल-कॉलेज जाते-आते समय भगवान्का नाम लें। ३. किसान हल जोतते, बीज बोते, निनार करते, पौधा लगाते, पानी सींचते, खाद देते, खेती काटते आदि समय भगवान्का नाम जपें ।
४. मजदूर हाथोंसे हर प्रकारका काम करते रहें और नाम जपते रहें । घरसे कामके स्थानपर जाते-आते समय नाम जप करें।
५. उच्च अधिकारी, मिनिस्टर, सेक्रेटरी, जज, मुन्सिफ, जिलाधीश, परगनाधिकारी, डिप्टी कलक्टर, पुलिस अफसर, रेलवे- अफसर तथा कर्मचारी, डाक-तारके कार्यकर्ता, तहसीलदार, कानूनगो, पटवारी, इंजीनियर, ओवरसियर, जिलापरिषद् तथा म्युनिसपलिटीके अधिकारी और कर्मचारी - बैंकोंके अधिकारी और कर्मचारी - सभी अपना-अपना काम करते तथा जाते-आते समय भगवान्का नाम जीभसे लेते रहें ।
६. व्यापारी, सेठ-साहूकार, उद्योगपति, आढ़तिये और दलाल आदि सभी सब समय जीभसे भगवन्नाम लेते रहें ।
७. गृहस्थ माँ - बहिनें चर्खा कातते समय, चक्की पीसते समय, पानी भरते समय, गो-सेवा करते समय, बच्चोंका पालन करते समय, रसोई बनाते समय, धान कूटते समय तथा घरके अन्य काम करते समय भगवान्का नाम जपती रहें ।
८. पढ़ी-लिखी बहिनें साज- शृंगार बहुत करती हैं, फैशनपरस्त होती जा रही हैं, यह बहुत बुरा है; पर वे भी साज-शृंगार करते समय भगवान्का नाम जपें। अध्यापिकाएँ और शिक्षार्थिनी छात्राएँ स्कूलकॉलेज जाते-आते समय भगवान्का नाम लें।
९. सिनेमा देखना बहुत बुरा है- पाप है, पर सिनेमा देखनेवाले रास्तेमें जाते-आते समय तथा सिनेमा देखते समय जीभसे भगवान्का नाम जपें ।
१०. इसी प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी नर-नारी सब समय भगवान्का नाम लें । सोनार, लोहार, कुम्हार, सुथार ( बढ़ई), माली, नाई, जुलाहा, धोबी, कुर्मी, चमार, भंगी सभी भाई-बहिनें अपना-अपना काम करते हुए जीभसे भगवान्का नाम लें ।
आवश्यकता समझें तो जेबमें छोटी-सी या पूरी १०८ मनियोंकी माला रखें ।
सब लोग अपने-अपने घरमें, गाँवमें, मुहल्लेमें, अड़ोस-पड़ोसमें, मिलने-जुलनेवालोंमें इसका प्रचार करें। यह महान् पुण्यका परम पवित्र कार्य है। याद रखना चाहिये - भगवन्नामसे सारे पाप-ताप, दुःखसंकट, अभाव - अभियोग मिटकर सर्वार्थसिद्धि मिल सकती है, मोक्ष तथा भगवत्प्रेमकी प्राप्ति हो सकती है ।
इस महान् कार्यमें सभी लोग लगें, यह करबद्ध प्रार्थना है।
स्वरूपका चिन्तन न हो सके तो निरन्तर भगवान्का नाम-स्मरण ही करना चाहिये । भगवान् के नाम-स्मरणसे मन और प्राण पवित्र हो जायँगे और भगवान्के पावन पदकमलोंमें अनन्य प्रेम उत्पन्न हो जायगा । नाम-जपकी सहज विधि यह है कि अपने श्वास-प्रश्वासके आने-जानेकी ओर ध्यान रखकर श्वास-प्रश्वासके साथ-ही-साथ मनसे और साथ ही धीमे स्वरसे वाणीसे भी भगवान्का नाम-जप करता रहे। यह साधन उठते-बैठते, चलते-फिरते, सोते-खड़े रहते सब समय किया जा सकता है। अभ्यास दृढ़ हो जानेपर चित्त विक्षेपशून्य होकर निरन्तर भगवान्के चिन्तनमें अपने आप ही लग जायगा। प्रायः सभी प्रसिद्ध भक्तों और संतोंने इस साधनका प्रयोग किया था। महात्मा चरणदासजी कहते हैंस्वासा माहीं जपेतें दुबिधा रहे न कोय ।
इसी प्रकार कबीरजी कहते हैंसाँस साँस सुमिरन करौ, यह उपाय अति नीक । मतलब यह कि भगवान्के स्वरूप, प्रभाव, रहस्य, गुण, लीला अथवा नामका चिन्तन निरन्तर तैलधाराकी भाँति होते रहना चाहिये । यही अखण्ड भजन है ।
भगवान्के नाम-श्रवण और कीर्तनका महान् फल होता है । जहाँतक भगवान्के नामकी ध्वनि पहुँचती है, वहाँतकका वातावरण पवित्र हो जाता है। मृत्युकालके अन्तिम श्वासमें भगवान्का नाम किसी भी भावसे जिसके मुँहसे निकल जाता है, उसको परमपदकी प्राप्ति हो जाती है। भगवान्के नामका जहाँ कीर्तन होता है वहाँ यमदूत नहीं जा सकते । अतएव दस नामापराधोंसे बचते हुए भगवान्के नामका जपकीर्तन और श्रवण अवश्य ही करना चाहिये ।
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होता है । जमालके साथ तीन साल उस मेलेकी सैर की है । अबकी बार झगडोके कारण शायद मेला न हो सकेगा। मैने जमालको लिखा कि फिर हरिद्वार ही होवे । यह लिखते हुए मिर्ज़ाका एक शेअर याद आ गया । आप भी सुनिए । कैसा चस्पाँ होता है ? और दूसरे मिसरेमे 'ही' शब्द क्या मजा दे रहा है ।
अपना नही यह शेवा कि आरामसे बैठें। उस दरपै नही बाट तो कअबे ही को हो आये ॥
" नवाव प्रच्छन मियाँ रामपुरवालोका जिक्र किया था ना वह जिनका 'सर्द - मुहरी वाला शेअर था । आज सुबह न जाने किस धुनमे बैठा था कि उनका एक और शेर याद तो खैरसे अग्रेजी राजका वह हाल है कि-सागरको मेरे हाथसे लेना कि चला मै ।
वर्ना नवाबसाहबका यह शेर अंग्रेजके ९० सालके शासनपर कैसी यथार्थ टिप्पणी है -
असीरीका यह एहतमाम अल्लाह-अल्लाह ! नशेमन भी है जेरे- दाम अल्लाह-अल्लाह ।।
शेअर सुनकर दाद नही दी तो या तो मुझपर बदमज़ाकीका इल्ज़ाम आयेगा या आपपर बदजोकीका ।
होश्यारपुर ११-१-५०
"आपकल चले गये और दिनचर्य्यामे जैसे एक रिक्ति-सी हो गई । वह साहिरकी रुबाई तो याद है ना ?
चन्द कलियाँ निशातकी चुनकर सुद्दतों महवे-यास रहता हूँ
तुझसे मिलना खुशोकी बात सही तुझसे मिलकर उदास रहता हूँ
[ पत्रोत्तर देना आपको स्मरण नही रहा तो याद आनेपर केवल यह शेअर लिख भेजा - ]
लीजिए चचा (गालिव) का एक शेर सुनिए-मै बेखुदीमें भूल गया राहे-कूए-यार ।
जाता वगर्ना एक दिन अपनी खबरको मै ॥ लुधियाना १७-३-५२
[ सुमत साहबके पत्रोत्तर न देनेपर मैं भी उन्हें पत्र नही लिख सका तो आप सिर्फ यह लिखा । ]
"आखिर गुनाहगार हूँ काफ़िर नही हूँ मै"
[ मेरे एक पत्रके जवाबमे --]
कुछ इस अदासे आपने पूछा मेरा मिजाज कहना ही पड़ा "शुक्र है परवर्दिगारका "
नौ - भेद न हो इनसे, ऐ रहरवे-फ़रजाना । कम-कोश तो है, लेकिन बेज़ौक़ नहीं राही ॥
-- इक़बाल
" देख रहा हूँ कि आप बहुत नाराज़ है । इस बातपर न मुझे तज्जुब है न रज । इसलिए कि मै खुद भी अपने से बेहद नाराज़ हूँ ।
० सै
हूँ खुद अपनी नजरमें इतना ख्वार कि मैं अपनेको गर कहूँ खाकी जानता हूँ कि आये खाकको आर ।
यह लम्बी कहानी कभी लिखी जा सकी तो लिखूंगा।"
[ मुझे पत्र देनेमे बिलम्ब हुआ तो इस तरह मुझे स्मरण किया - ]
मेरे खयालम यूँ तेरी याद आती है । कि जैसे साजके तारोंमें रागिनीका खिराम ॥ कि जैसे गुँचए-नौरसमें क़तर ए-शबनम । कि जैसे सीनए-शाइरमें बारिशे-इल्हाम ॥
लीजिए एक शेअर सुनिएे
- सर्दार जअफ़िरी
गमे-ह्यातके पैकर बदलते रहते है । वही शराब है सागर बदलते रहते है ।
और एक का शेर है । जिसने तड़पा-तडपा दिया है। आपका शायद पढा हुआ होआऐ ग़मे-दौरों ! दरे- मैखाना है नजदीक । बैठेंगे जरा चलके वहाँ बात करेंगे ॥
होश्यारपुर ४-८-५५.
[पत्र न लिखने पर किस मजेका तना दिया है - ] "लीजिए उस्ताद दागका, एक पुराना शेअर सुनिए7
देखो देखो मुझपे बरसाते रहो तीरे-निगाह । संद जिस दम आँखसे ओझल हुआ, जाता रहा ।।
होश्यारपुर २१-४-५५
"आपने तो पत्र लिखनेकी जैसे कसम खा ली हो । ऐसे भी कोई नाराज होता है --
बारहा देखी है उनकी रंजिशें । पर कुछ अबको सर गिरानी और है ।।
देहली आये, प्राय एक सप्ताह ठहरे । खवर भी न दी । लीजिए पिछले दिनों एक मजेदार शेर सुना था, आपकी नज़र है -
भला यह बताओ कि फिर क्या बनेगा ? ० मनाते-मनाते जो हम जाएँ ।
पिछले दिनों नवाशहर जाना पड़ा । वापिसीमे गढ़शकरके डाकबँगलेमे कुछ देरके लिए ठहरा । वे तीन-चार दिन आँखों फिर गये, जब उस बँगलेमें बैठकर गालिब -नामा तैयार किया जा रहा था ।
मुझे याद है वह जरा-जरा, तुम्हें याद हो कि न याद हो
अनुवर साबिरीके दो शेर सुनिएकिसने आवाज दी रोते-रोते ? • चौंक उठा हुस्न भी सोते सोते ।। दर्द-दिलकी सुके फिक्र क्यों हो ? हो ही जायेगा कम होते-होते ॥
आजकल क्या कुछ लिखा जा रहा है। प्रूफरीडरोकी लिस्टसे तो शायद मेरा नाम सदाके लिए कट चुका होगा -
तुम जानो तुमको गैरसे जो राहो- रस्म हो । मुझको भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो ॥
होश्यारपुर २६-४-५५
"मै दो दिनके लिए लाहोर चला गया था । राजा गुलाममहदी और अन्वर साहबसे मुलाकात रही । एक छोटी-सी मुशाइरेकी मोहबत भी वन गई । हफीज जालन्धरी आये हुए थे । उनकी जवान अब भी वही पहिलेका सा जादू हू । छोटी बहरमे एक गजल पढी । तडपा-तडपा दिया । चार शेअर जो हाफिजेमे महफूज रह गये, हाजिरे - खिदमत है -
सिमट आये है घरमें
तू किधर जा रहा है
सुबह होते ही हो गये
शमअके जॉ-निसार
दीवाने ।।
रुखसत ।
परवाने ॥ ।।
" कर रहा हूँ तलाश
अपनोकी ।
जबसे गुम हो गये है बेगाने ।। बढ़ गई बात अर्जे-मतलबपर । मुख्तसर यह कि वोह नहीं माने ॥
हरिसदन मंसूरी १५-९-५५
[ मेरे पत्रोत्तर न देनेपर उलाहनेमे केवल यह पत्र लिखा --]
आपने गेरो-शा और शेरो-सुखन पाँचो भागोके प्रूफ अत्यन्त परिश्रमसे देखे । आपको वहम है कि शायद के हिस्सोके प्रूफ आपको न भेजूं । मगर जव के हिस्से कम्पोज ही नही तो प्रूफ कहाँसे भेजता ? उसीका उलाहना है ।
लालेकी खन्दारूईप सबकी नजर गई । दागे-जिगर कि राजे-निहाँ-का-निहाँ रहा ॥
- दीवान
सख्तियाँ बढ़ रही है आलमकी ।> हौसले मुस्कराये जाते है ।
-- खुर्शीद
अगर्चे पोर होगये, गई न इश्क़-बाजियाँ । ७ कि मुख्तसर न हो सकीं उम्मोदकी दराजियाँ ॥ गिर गोदिरम न थे, मिली शराब बेतलब । रहेंगी याद साकिया ! तेरो गदा-नवाजियाँ ॥ जो उनके दरपे जा रहे तो कोई खास बात थी । वगर्ना जानते है सब हमारी बेनियाजियाँ ॥ -- दीवाना
होश्यारपुर ७ जून १९५५
"लाहोरकी क्या पूछते हो ? पुराने दोस्तोमे अन्वर और गुलाममहदीके अलावा कोई नही मिला । खुर्शीद रावलपिण्डीमे है, सबा और फ कराचीमे । मुद्दतो बाद जो जाना हुआ तो शौकका यह आलम था कि हर अजनबी पर हबीबका गुमान होता था । और उन लोगोकी खातिरदारी और मुहब्बत देखकर जी भर-भर आता था ।' चार शेर सुनिए -
उस दौरसे जीनेकी दुआ माँग रहा हूँ । जिस दौरमें मरनेको हुआ काम न आये ॥ काम आया न तूफ़ाने-बहारांमें नशेमन । सब कामके तिनके थे, मगर काम न आये । --'सबा'
चिरागे-हुस्न जलाओ बहुत अँधेरा है । नक़ाब रुखसे हटाओ बड़ा अँधेरा है।
जिसे खिरदकी जबाँसे शराब कहते है। वह रोशनी-सी पिलाओ बड़ा अँधेरा है ।
उक्त उदाहरणोमे स्पष्ट हो गया होगा कि गजलका शेयर अपनेमे कईकई भाव सँजोये हुए होता है । हर व्यक्ति अपनी रुचिके अनुसार उसके भाव ग्रहण करता है ।
'मीर' के दो शेअर सुनिए
असबाब मुहैया थे, सब मरने ही के लेकिन अब तक न सुए हम जो, अन्देशा कफ़नका था ।
इश्ककी सोजिशने दिलमें कुछ न छोड़ा क्या करें । लग उठी यह आग नागहाँ कि घर सब फुंक गया ॥ मीरने न जाने किस आलम यह शेअर कहे होगे और आपका जौकेसलीम न जाने क्या असर कुबूल करेगा । मगर मुझे तो पहिला शेअर मुस्लिमलीगी मिनिस्ट्रीके युगमे पडे हुए बगालके अकालकी याद ताज़ा कर रहा ह । अकालकी विभीषिकाने मरनेके सब साधन उपलब्ध कर दिये थे । यदि कफनपर कण्ट्रोल न होता तो हर अकाल-पीडित जोते रहने की बर्दाश्त न करके सहर्ष मृत्युका आलिंगन करता ।
दूसरा शेअर भारत-बटवारेके समय हुए लंकाकाण्डपर कहा गया प्रतीत होता है । अव यह मेरी समझ ही तो है । वर्ना यह तो मै भी जानता हूँ कि मीरके युगमे न बगालमे अकाल पड़ा था न भारत विभाजन हुआ था । उसने तो न जाने किस भावावेशमे कहे होगे । और यही गजलकी विशेषता है कि वह कभी प्रासंगिक नही होती । उसके शेयर हर मौका-महलके लिए चुने जा सकते है ।
५ दिसम्बर १९५७ ई०
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वक्रोति सिद्धान्त और स्वभावोक्ति ] भूमिका
किये हैं। उनके अनुसार स्वभावोक्ति जाति की पर्याय है और उसको परिभाषा इस प्रकार है :
नानावस्थं पदार्थाना रूपं साक्षात् विवृण्वती ।
स्वभावोक्तिश्च जातिश्चेत्याद्या सालकृतियथा ॥ २८
अर्थात् विभिन्न अवस्थाओं में पदार्थ के स्वरूप का साक्षात् वर्णन करता हुआ प्राथमिक अलंकार स्वभावोक्ति या जाति कहलाता है। यहाँ साक्षात् के प्रथं के विषय में मतभेद है : तरुणवाचस्पति ने साक्षात् का अर्थ किया है प्रत्यक्षमिव दर्शयन्तो अर्थात् प्रत्यक्षसा दिखाती हुई, हृदयंगमा टोका में साक्षात् का अर्थ किया गया है अव्याजैनप्रकृत रूप में । इन दोनों में प्रसंगानुसार दूसरा अर्थ हो अधिक संगत प्रतीत होता है क्योंकि एक तो उदाहरणों में सजीवता को अपेक्षा श्रव्याजता ही अधिक है, दूसरे दण्डी ने स्वभावोक्ति को वक्रोक्ति से पृथक माना है :
भिन्नं द्विधा स्वभावोक्तिर्वक्रोक्तिश्चेति वाङ्मयम् ।
तोसरे उन्होंने स्वभावोक्ति को आदि अर्थात् प्रारम्भिक अलंकार मानते हुए उसका साम्राज्य मूलतः शास्त्र में ही माना है। इस दृष्टि से दण्डी के अनुसार स्वभावोक्ति में पदार्थों के अपने गुणों का प्रकृत वर्णन रहता है उनका यह अनारोपित प्रकृत रूप वर्णन हो अपने आप में आकर्षक होने के कारण स्वभावोक्ति अलंकार-पदवी का अधिकारी और काव्य के लिए भी वांछनीय हो जाता है 'काव्येष्वप्येतदोप्सितम् ।'
उद्भट ने स्वभावोक्ति का क्षेत्र सीमित कर दिया है - उनके मत में क्रिया में प्रवृत्त मृगशावकादि को लोलाओं का वर्णन हो स्वभावोक्ति हैः
क्रियाया संप्रवृत्तस्य हेवाकाना निबन्धनम् ।
कस्यचित् मृगडिम्भादेः स्वभावोक्तिरुदाहृता ।। ३।८९
यहां वास्तव में 'मृगशावकादि की लीला' का प्रयोग सांकेतिक रूप से प्राकृतिक व्यापार के व्यापक अर्थ में ही किया गया है; फिर भी स्वभावोक्ति की परिधि संकुचित तो हो हो जाती है क्योकि उससे मानव-व्यापार का सर्वथा बहिष्कार भी समोचीन नहीं माना जा सकता। रुद्रट ने इसके विपरीत, स्वभावोक्ति के क्षेत्र का सम्यक् विस्तार कर दिया है, उन्होंने अर्थालंकारों के चार वर्ग किये हैं-वास्तव, औषम्य, प्रतिशय तथा श्लेष । इनमें स्वभावोक्ति अथवा जाति 'वास्तव' वर्ग का प्रमुख अलंकार
१४० } है- इस प्रकार से ट ने जाति को 'वास्तव' का हो सहय्यापी बना दिया है। 'वास्तव' में वस्तु के स्वरूप का वचन होता है-यह स्वरूप-कथन पुष्टायें (रमणीयायें) तो होता है, परन्तु बंपरीत्य, औषम्य, अतिशय तथा इलेप आदि के चमत्कार पर निर्भर नहीं रहता।
वास्तवमिति तज्ज्ञेय क्रियते वस्तुस्वरुपयन यतू । पुष्टायमविपरीत निरुपमनतिशयम् अश्तेषम् ॥ ८/१०
वट को यह परिभाषा पदार्थ के वस्तुगत सौन्दर्य को अत्यन्त स्पष्ट व्याख्या है। वस्तुगत सौन्दर्य का भी प्रयं यही है कि यथासम्भव वस्तु का सहजात रूप ही प्रस्तुत किया जाय, भावना कल्पना के द्वारा उस पर बाह्य गुणों का आरोप न किया जाय । विरोध-मूलक, श्रौपम्य अर्थात् सादृश्य-साधर्म्य-मूलक, प्रतिदाय-मूलक तथा इलेध-मूलक समग्र अप्रस्तुत-विधान कल्पना का चमत्कार है। इस कल्पनात्मक समस्तुत विधान के बिना पदार्थ के प्रस्तुत रमणीय गुणों का चित्रण हो वस्तुगत सौन्दर्य का चित्रण है-वहीं वट के मत में 'वास्तव' है । इस प्रकार स्ट के अनुसार स्वभावोक्ति वा स्वरूप अत्यन्त स्पष्ट है किसी प्रकार के प्रस्तुत गुर्गों के आरोप के बिना पदार्थ का प्रस्तुत पुष्ट अर्थात् रमणीय रूप अक्ति करना हो स्वभाव चयन या स्वभावोक्ति है। यह पुष्ट अर्थ क्या है, इसका संकेत हट के ढोकाकार नमिसाघु की व्याख्या में मिल जाता है । 'जाति का निरूपण करते हुए नमिसाधु कहते हैं जातिस्तु अनुभवं जनयति धन परस्य स्वरूप वर्ष्यमानमेव अनुभवमिवंतोतिस्थितम् । प्रयत् जाति में वस्तु-स्वरूप का ऐसा सजीव वर्णन रहना है कि वह श्रोता के मन में अनुभव मा उत्पन्न कर देता है। जो रूप प्रनुभव में परिणत हो जाता है वही रमणीय है, वहो पुष्टायें है। वस्तुगत सौन्दर्य और भावगल मौन्दर्य में यही भेद है कि एक दृष्टि का विषय अधिक होता है, दूमरा भावना का स्वभावोक्ति या जाति वस्तु के दर्शनीय । स्वस्म का यथावत् श्रोता अथवा पाठक के मन में संचार कर प्राय. वही अनुभव उत्पन्न कर देती है जो उसके साक्षात् दर्शन से होता है। स्वरूप को यह अनुभवरूपता हो उसको रमणीयता या दाता है।
छट के उपरान्त भोज ने अपनी प्रकृति के अनुसार स्वभावोत्ति सम्बन्धी प्रचलित मनों का समन्वयात्मक विवेचन किया है। उन्होंने अलकार रूप में जाति नाम हो ग्रहण किया है और उसको स्वपत्तिमूलक परिभाषा की हैः
वक्रोक्ति सिद्धान्त और स्वभावोक्ति ] भूमिका
नानावस्थासु जायन्ते यानि रूपारिग वस्तुनः स्वेभ्यः स्वेभ्यः निसर्गेभ्यः तानि जाति प्रचक्षते ॥
( सरस्वतीकण्ठाभरण ३२४५ )
अर्थात् जाति के अन्तर्गत वस्तु के ऐसे रूपों का वर्णन आता है जो अपने स्वभाव से हो भिन्न भिन्न अवस्थाम्रों में उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार भोज ने 'जाति' का 'जायन्ते के साथ सम्बन्ध घटा कर वस्तु के जायमान रूपों का वर्णन हो स्वभावोक्ति के अन्तर्गत माना है। इसी आधार पर अर्थव्यक्ति गुरण से उसका भेद करते हुए उन्होंने लिखा है कि अर्थव्यक्ति और जाति में यह भेद है कि उसमें सार्वकालिक रूपों का वर्णन रहता है, इसमें जायमान अर्थात् आगन्तुक रूपों का । जैसा कि डा० राघवन प्रादि प्रायः सभी विद्वानों का मत है, भोज का यह भेद निरर्थक है और इसी प्रकार स्वभावोक्ति को पदार्थ के जायमान रूपों तक सीमित करने का प्रयत्न भी व्यर्थ है । इसको अपेक्षा भोज को एक अन्य उद्भावना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। दण्डी के प्राधार पर, किन्तु उनके मत का संशोधन करते हुए, भोज ने वाङ्मय का तीन रूपों में विभाजन किया है : वक्रोक्ति, रसोक्ति और स्वभावोक्ति
वक्रोक्तिश्च रसोक्तिश्च स्वभावोक्तिचेति वाङ्मयम् ।
इनमें अलंकार - प्रधान साहित्य वक्रोक्ति के अन्तर्गत प्राता है, रस-भावादि-प्रधान रसोक्ति के अन्तर्गत, और गुरण प्रधान साहित्य स्वभावोक्ति के अन्तर्गत । ( देखिए शृंगारप्रकाश भाग २, अध्याय ११) । भोज ने समन्वय के अनावश्यक उत्साह के कारण स्वभावोक्ति को गुण-प्रधान मान लिया है क्योंकि वे अलंकार, रस और रोति सम्प्रदायों का समंजन करना चाहते थे । परन्तु स्पष्टतया यह मत अधिक तर्कपुष्ट नहीं है। इसको उपेक्षा कर देने पर भोज का उपर्युक्त विभाजन आधुनिक मालोचनाशास्त्र को कसौटी पर भी खरा उतरता है । काव्य के तीन प्रमुख तत्व है- सत्य, भाव और कल्पना । साहित्य के विभिन्न रूपों में इनका महत्व भिन्न अनुपात में रहता है। इनमें सत्य का अर्थ है सहज रूप, कहीं जीवन और जगत के सहज या प्रस्तुत रूप का चित्रण प्रधान होता है - इसी को भोज ने स्वभावोक्ति कहा है। कहीं भाव का प्राधान्य होता है वहीं भोज के शब्दों में रसोक्ति होगी, घोर कहीं कल्पना का प्राधान्य रहता है मर्यात् प्रस्तुत को अपेक्षा कवि मप्रस्तुत-विधान की सृष्टि में अधिक रुचि लेता है ऐसा में काव्य प्रलंकृत होता है और दण्डो या भोज के शब्दों में वक्रोक्ति के अन्तर्गत आता है । एक अन्य दृष्टि से भी भोज का यह विभाजन प्राधुनिक आलोचनाशास्त्र के अनुकूल
[ वक्रोक्ति-सिद्धान्त और स्वभावोक्ति
पड़ता है। सौन्दर्य के दो व्यापक रूप है : (१) वस्तुपरक और ( २ ) व्यक्तिपरक । इनमें से वस्तुगत सौन्दर्य भोज को स्वभावोक्ति का हो पर्याय है। व्यक्तिपरक सौन्दर्य भावना या कल्पना की प्रसूति है और इस दृष्टि से उसके दो रूप हो सकते है - एक वह जो मन के माधुर्य का प्रक्षेपण हो और दूसरा वह जो कल्पना का विलास हो। इनमें से पहला रसोक्ति है, दूसरा वक्रोक्ति ।
भोज के समसामयिक कुन्तक ने यह सब स्वीकार न करते हुए स्वभावोक्ति को मलकारता का निषेध किया। परन्तु महिमभट्ट ने उनके आह्वान का उचित उत्तर दिया : महिमभट्ट और उनके अनुयायी हेमचन्द्र तथा माणिक्यचन्द्र के तर्क का साराध इस प्रकार है। -स्वभाव मात्र का वर्णन स्वभावोति नहीं है, इसमें सन्देह नहीं । । परन्तु वस्तु के दो रूप होते हैंः एक सामान्य रूप दूसरा विशिष्ट रूप । सामान्यरूप का ग्रहण सभी जनसाधारण कर सकते हैं, किन्तु विशिष्ट रूप का साक्षात्कार केवल प्रतिभावान् हो कर पाते हैं । अतएव सामान्य स्वभाव का वर्णन मात्र मलकार नहीं है। इस सामान्य लौकिक अर्थ को अधिक से अधिक अलकार्य कहा जा सकता हैः कवि-प्रतिभा हो इसे अपने ससर्ग से चमका देती है, अन्यथा अपने सहज रूप में तो यह प्रपुष्ट अर्थ-दोष है। इसके विपरीत विशिष्ट स्वभाव लोकोत्तर प्रतिभा-गोचर हैः जिसमें केवल रमरगीय वाच्य का वाचन होता है, प्रवाच्य का वाचन नहीं । कवि का प्रातिन नयन हो उसका उद्घाटन कर सकता है । यह विशष्ट स्वभाव-वर्णन हो स्वभा वोक्ति भ्रलकार है। महिमभट्ट तथा उनके अनुयायो आचार्यों को धारणा है कि कुन्तक ने सामान्य और विशेष के इस भेद को न समझ कर स्वभावोक्ति का वास्तविक स्वरूप नहीं पहचाना है । *
* देखिए डा० राघवन का लेख हिस्टरी ऑफ स्वभावोक्ति । । न हि स्वभावमात्रोक्ती विशेषः कश्चनानयोः । उच्यते वस्तुनस्तावद् द्वेरुप्यमिह विद्यते । तत्रैकमस्य सामान्य यद्विकल्पगोचरः । स एव सर्वशब्दाना विषय परिकीर्तित मत एवानिधेय ते घ्यामल बोषयन्त्यलम् ॥ विशिष्टमस्य यद्रूप तत् प्रत्यक्षस्य गोचर । स एव सत्कविगिरा गोचर प्रतिभाभुवम् ।
व्यत्तिविवेक २।११३-१६ ( अगले पृष्ठ पर)
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मिशनरियों का दल बम्बई पहुंचा, जहाँ पर ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। थोड़े ही दिन बाद डैलिया तथा वर्ड दोनों मथुरा पहुंचीं। डेलिया को मथुरा के ट्रेनिंग स्कूल का कार्यभार सौंप दिया गया। यह स्कूल इसाई कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग प्रदान करता था । इसी प्रकार वर्ड ने एक अस्पताल में नर्स के रूप में सेवा कार्य प्रारम्भ कर दिया 12 वहा से उन दोनों महिलाओं को बरेली भेज दिया गया । तत्पश्चात् बिजनौर में इनकी नियुक्ति की गई जहाँ पर कुछ अंग्रेजी परिवार रहते थे। वहीं पर उन महिलाओं ने हिन्दी का ज्ञान भी प्राप्त किया 13
भारत जाने के चार महीने बाद यहाँ की गर्मी का प्रभाव उन महिला निरियों को दिखाई देने लगा । गर्मी के मौसम की गर्म दवाओं में वे व्यस्त नहीं थीं, इस प्रकार मई तथा जून के महीने में डेलिया ने नैनीताल तथा मर्थ वई ने मसूरी में व्यतीत किये । इसी समय इन नरियों को इस आशय के पत्र प्राप्त होते रहते थे कि भारत में फ्रेण्ड्स मिशन की स्थापना की जाए।
मिशनरी कार्यों के प्रारम्भ के लिए ये महिलायें भारत में उचित स्थान की तलास में थीं। सबसे पहले गुना की और इनका ध्यान गया, किन्तु ठीक प्रकार से कान में होने के कारण वहा से इनका इरादा
1- ए सेन्चुरी बाफ प्लान्टिंग, हिन्दी वाफ द अमेरिकन फ्रेण्ड्स मिशन इन इण्डिया वाई ई०अन्ना निक्सन प्रोफेस पुष्ठ 10-12.
बदल गया । उसी समय लखनऊ में एक चर्चा के दौरान नौगांव सैनिकछावनी का उल्लेख बाया जो ब्रिटिश सेना का मुख्यालय था। वहाँ पोलिटिकल एजेन्ट तथा पुलिस अधीक्षक का भी कार्यालय था इल कस्बे के वास-पास देशी रियासतें थीं। जहाँ के समीप गांवों में लगभग एक लाख लोग निवास करते थे। जखनऊ में नामक पादरी ने
डेलिया के साथ बात-चीत में कहा था कि बुन्देलखण्ड का 9852 वर्ग मील का क्षेत्र मिनरी कार्यों के लिये बहता पड़ा है जिसे आपको अपने हाथ में लेना चाहिए। नौगांव के चारों ओर स्थित यह क्षेत्र इस कार्य के लिये सर्वथा उपयुक्त है। साथ ही यहां स्थित खोजी सेना आप लोगों की सुरक्षा का उचित बन्दोवस्त भी करेगी। इन दोनों महिलाओं ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया और नौगांव में एक किराये का बाला लेकर मिनरी कार्य की प्रारम्भ किया ।
डेलिया का नौगांव आगमन :
9 दिसम्बर 1895 को कोरियन फ्रेण्ड्स मिशन की ओर से डेलिया की सुपरिन्टेन्डेन्ट, ऐसा को कोषाध्यक्ष तथा मथी की बाडीटर नियुक्त किया गया और इस प्रकार खेल 1896 की इन महिलाओं ने फ्रैण्ड्स मिशन की स्थापना की। उस समय गर्मी के मौसम का प्रारम्भ ही का था तथा बुन्देलखण्ड में चारों ओर काल पड़ा हुआ था। चारों और गर्म हवाएं तेजी से चल रही थी। इस विरीत परिस्थिति के बावजूद भी ये महिलाएं जाने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये जुटी हुई थीं।
1- ए सेन्चुरी आफ प्लान्टिंग, ए हिन्दी आफ द अमेरिकन फ्रेन्ड्स मिशन इन इण्डिया वाई ईन्डा निक्लन प्रीपेन-पुष्ठ 16.
प्रारम्भ में इसाई धर्म के सन्देशों की और लोग अधिक आकृष्ट नहीं हुये । जब ये गावों में जाती थीं तो काल पीड़ित लोग उनसे रोटी और कपड़े की माँग करते थे। यह काल का तीसरा वर्ष था। लोग पेड़ों की पत्तिया खाकर किसी तरह गुजर कर रहे थे। काल के वातावरण में भूखे, नंगों की मदद में उन नरियों का सारा पैसा खर्व हो गया था, अतः इन्होंने अमेरिका स्थित ने बोर्ड को और अधिक आर्थिक सहायता देने का आग्रह किया। ये महिलाएं ऐसे बच्चों को लाकर नौगांव मिशन में रखती थीं जिनके माँ-बाप नहीं थे। एक घड़सान को साफ करके इन बच्चों को रहने के लिये जगह बनाई गई थी। इनकी देख-रेख का कार्य ऐस्थर नामक नर्म किया करती थी, जबकि डेलिया चर्च में प्रार्थना तथा शिक्षा देने का कार्य करती थी। इसके अतिरिक्त छावनी में रहने वाले अंग्रेजी सेनाओं को भी प्रार्थना कराने का कार्य लिया ही किया करती थी । 1896 के काल मे बुन्देलखण्ड की 2 लाख 25 हजार का भूमि प्रभावित हुई थी 12 बातों की जनसंख्या लगभग 6 करोड़ 50 नाब थी । 1891 से लेकर 1901 के बीच बुन्देलखण्ड की 9 प्रतिशत जनसंख्या समाप्त हो की थी । ऐसी कठिन परिस्थिति में काफी अन्तराल के बाद 1600 डालर डेलिया को कमिशनरियों से प्राप्त हुआ। बाद में चकर 40,210:56 डानर का चन्दा अन्य लोगों ने भी दिया जिससे कान पीड़ितों के लिये कपड़ा, कम्बल तथा अन्य सहायता दी गई 13
1- ए सेन्चुरी आफ ब्लान्टिंग, ए हिन्दी बफ द अमेरिकन फ्रेन्ड्स मिशन इन इण्डिया वाई ईजना निक्सन प्रमुष्ठ 17.
अनाथालय का प्रारम्भ :
1895-96 के बालों की विभीषिका के परिणाम स्वल्य तमाम अलदाय बच्चों को उनके मा तथा बाप नौगांव के मिशन में ऐस्थर तथा डेलिया की देख-रेख में छोड़ जाते थे। यद्यपि उनके माता-पिताओं ने उन बच्चों को छोड़ते हुये यह कहा था कि काल की समाप्ति के बाद वे उन्हें वापस लेने जायेंगे, लेकिन गरीबी के प्रकोप में वे वापस नहीं लौटे। ऐसी परिस्थिति में डेलिया ने नौगांव में एक अनाथालय खोला जिसमें उन गरीब बच्चों की देख-रेख की जाती थी 12 इतना सब कुछ करने के बावजूद भी डेलिया आस-पास के गांवों में लोगों को आसानी से क्लाई धर्म में दीक्षित न कर की। लेकिन धीरे-धीरे अनाथालय में रखे गये बच्चों का पालन-पोषण तथा शिक्षा-दीक्षा इस प्रकार की गई कि वे इसाई बना लिये गये। इस बनायालय में 500 बच्चों को प्रारम्भ में शरण दी गईं 13
अमेरिकन फ्रैण्डल मिशन की साईहिलाओं ने एक भारतीय महिला पंडिता रमाबाई की अनाथालय की देख-रेख तथा विधवाओं बादि की मदद करने के लिये कार्य-भार सौपा। पंडिता रमाबाई पूना के निकट बेडगांव की रहने वाली थी। वह पूना से नौगांव कई बार अनाथ बच्चों, विधवाओं तथा निम्न जाति के तिर बच्चों को लेने के लिये जा चुकी थी। नौगांव के फ्रेण्ड्स मिशन में लड़के
1- ए सेन्चुरी जाफ प्लान्टिंग, ए हिन्दी वाफ द अमेरिकन फ्रेड्स मन इन इण्डिया वाई ई०अन्ना निक्सन प्रीपेस पृष्ठ 18.
3- द प्लान्टिंग ए चर्च-पृष्ठ 18+ 4- वही
तथा 3 लड़कियां, मिशन परिवार के सदस्य के रूप में स्थायी रूप से रख ली गयीं। इस मिशन के अन्तर्गत एक बन्धी महिला जो लखनऊ की रहने वाली थी और जिसका नाम चारलोटे बाई था" को नौकरी देकर इस मिशन में रख लिया गया। निःसन्देह बारलोटे बाई ग थी, किन्तु फिर भी अनी योग्यता वीरता से उतने अधिकांश लोगों को प्रभावित कर रखा था। इस प्रकार वह धीरे-धीरे इस नये बनायालय में प्रेरणा का बन गई जिसने यहाँ पल रहे बच्चे उनसे अत्यति प्रभावित हुये। इस नायालय के बच्चे उसकी सेवाओं को कभी भू नहीं पायेंगे। डेलिया फिनर के कार्यों से नौगांव का मिशन दिन-प्रतिदिन सशक्त होता चला गया। आने भारत छोड़ने से पूर्व उसने अमेरिका मिशन बोर्ड को एक पत्र लिखकर यह प्रार्थना की थी कि इल क्षेत्र में एक मिशन का स्थायी रूप से मुख्यालय बनाने के लिये
5 हजार डॉलर की सहायता प्रदान की जाय। यह उल्लेखनीय है कि नौगांव में मिशन के कार्य का प्रारम्भ कर किराये के मकान में हुआ था। किन्तु डेलिया की यह सिफारिश का सिद्ध हुई। नवम्बर 1891 प्रारम्भ में डैलिया नौगांव से अमेरिका वापस पहुंची। तत्पश्चात् उसने अमेरिकन मिल बोर्ड के सामने नौगांव में न के निर्माण के लिये आर्थिक सहायता प्राप्त करने हेतु दनीनें पेश कीं । अन्ततः उसकी
1- प्लान्टिंग ए चर्च, पुष्ठ 18.
3- वहीः पृष्ठ 19.
4- ए सेन्चुरी बाफ प्लान्टिंग ए चर्व एष्ठ 20-21.
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टेरेसा पामर ने अपनी अमेरिकी फीचर फिल्म की शुरुआत डरावनी फिल्म द ग्रज 2 में एक कुटिल स्कूली छात्राओं में से एक के रूप में की। लेकिन उस फिल्म को शूट करने से पहले, पामर ने हैरी पॉटर स्टार डैनियल रैडक्लिफ के साथ स्वतंत्र नाटक दिसंबर लड़कों पर काम किया। दिसंबर के लड़कों में , पामर एक असली जंगली बच्चा निभाता है जो रैडक्लिफ के चरित्र को अपने पहले असली रोमांटिक मुठभेड़ के साथ प्रदान करता है।
डैनियल रैडक्लिफ के साथ काम करनाः पामर ने डैनियल रैडक्लिफ को डालने से पहले दिसंबर के लड़कों पर हस्ताक्षर किए, लेकिन संभव है कि रैडक्लिफ पहले शामिल हो गया था, इसने परियोजना के पामर की राय को एक या दूसरे तरीके से नहीं बदला होगा।
शूटिंग शुरू होने से पहले पामर ने एक हैरी पॉटर फिल्म नहीं देखी थी और इसलिए वह कुछ अभिनेत्री के रूप में अपनी ऑनस्क्रीन प्यार रुचि से स्टार-हिट नहीं थी।
"यह वास्तव में अजीब लग रहा है लेकिन मुझे वास्तव में नहीं पता था कि डैनियल कौन था क्योंकि मैंने हैरी पॉटर फिल्मों को नहीं देखा था। मैंने 'डैनियल रैडक्लिफ' सुना और मैं ऐसा था, 'ओह, ठीक है। ' और फिर कोई ऐसा था, 'हैरी पॉटर, helloooo! ' मैं ऐसा था, 'हे मेरे भगवान! मैंने इसे नहीं देखा है। ' मुझे नहीं पता था। लेकिन, मेरे आस-पास के हर किसी ने इस बारे में इतना बड़ा सौदा किया कि मैं मदद नहीं कर सका, लेकिन जब मैं पहली बार उससे मिला तो वास्तव में घबरा गया। मुझे याद है मैं हिलाने की तरह था। यह विचित्र था क्योंकि मैंने उसे कभी भी कुछ भी नहीं देखा था। इसके बारे में बहुत ज्यादा प्रचार - लेकिन यह हमारे लिए बहुत अच्छा था।
हमने दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में गोली मार दी जहां से मैं हूं और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में हमारे पास कोई हस्तियां नहीं थीं। हैरी पॉटर ऑस्ट्रेलियाई के लिए इतना अद्भुत था, उसके बाद थोड़ा ऑस्ट्रेलियाई स्वतंत्र फिल्म चुनने के लिए, बस इतना रोमांचक।
और जाहिर है, मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से, उसे जहाज पर रखना बहुत बड़ी बात थी। "
जहां तक दिसंबर के लड़कों के सेट पर रैडक्लिफ के साथ अपना समय बिताया गया, पामर ने रैडक्लिफ को काम करने में खुशी की घोषणा की। "वह बहुत शानदार और प्रतिभाशाली है। साथ ही, उनके पास यह आश्चर्यजनक सफलता और प्रसिद्धि है और ये सभी चीजें हैं, जो आपको लगता है कि वह इससे बहुत प्रभावित होंगे लेकिन वह वास्तव में नहीं है।
वह बहुत अप्रभावित और निर्विवाद है। एक नियमित 18 वर्षीय लड़के की तरह। मुझे लगता है कि वह वास्तव में उन छोटे लड़कों को सेट करने और बनाने के लिए लाया, जो जाहिर है, उन्हें मूर्तिपूजा करते हैं, बस इतना सहज महसूस करते हैं। वे सभी भाइयों की तरह लटका रहे हैं। मुझे बहन की तरह लगा। यह इतना मजेदार था। यह इतना अच्छा अनुभव था। "
टेरेसा पामर का काल्पनिक फिल्मों के खिलाफ कुछ भी नहीं हैः पामर ने समझाया कि ऐसा नहीं है कि उसने हैरी पॉटर फिल्मों को नहीं देखा है। पामर ने कहा, "मुझे फंतासी फिल्में पसंद हैं। " "मुझे बताया गया है कि आपको बैठने और सभी हैरी पॉटर फिल्मों को देखने और एक ही समय में सभी पुस्तकों को पढ़ने के लिए दो सप्ताह की आवश्यकता है। और मैं पिछले कुछ सालों में इतनी पागल व्यस्त हूं, मैं सक्षम नहीं हूं। लेकिन मेरी पसंदीदा फिल्म, जो लड़कियां समझेंगे कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं, नोटबुक है । हर कोई इसे प्यार करता है। हम सभी रोते हैं। . . . इस तरह की एक फिल्म देखने के लिए, यह बहुत सुंदर है और आप कहानी में लपेट गए हैं और आप इस तरह का रिश्ता बनाना चाहते हैं, और आप एक साथ मरना चाहते हैं और इन सभी बेवकूफ चीजें।
लेकिन, अभिनय के मामले में, मुझे नाटक में अभिनय पसंद है। मुझे खुद को धक्का देना और लगातार चुनौती देना पसंद है। मैंने पहली फिल्म की, वास्तव में, मैंने एक बलात्कार पीड़ित खेला जो मेरे भाई के बच्चे के साथ गर्भवती थी। बहुत तीव्र, खासकर पहली बार मैंने कभी भी काम किया होगा।
और उसके बाद दिसंबर के लड़के उसके साथ आए। तो, मैं निश्चित रूप से कार्य करने के लिए नाटक कहूंगा। "
पाल्मर ने समझाया, " एडगर पात्रों पर एक मौका लेनाः " मुझे लगता है कि यहां टाइपकास्ट प्राप्त करना बहुत आसान है। " "और मुझे लगता है कि ऐसा कुछ है जिसे मैंने कुछ गहरे फिल्मों को करके और कुछ गहरे, गड़बड़ वाले पात्रों को ले कर जितना संभव हो उतना दूर जाने की कोशिश की। मैं वास्तव में इस तथ्य से प्यार करता हूं कि मैंने लुसी जैसे चरित्र के बारे में कभी नहीं देखा या सुना है, जो इस युवा फूल लड़की थी जो बहुत अधिक यौन संबंध रखती थी, और वह पुरुषों को छेड़छाड़ करने के लिए अपने शरीर का उपयोग करती है। उन सभी तत्वों के साथ खेलना बहुत दिलचस्प था। "
चरित्र में शामिल होनाः इस बहुत ही युवा युवा महिला को पकड़ने से पामर के लिए एक चुनौती सामने आई। "उन दोनों पात्रों को मैं बहुत दूर से हटा दिया गया हूं। मैं स्वाभाविक रूप से काफी हंसमुख, खुश व्यक्ति हूं और मैं मोहक नहीं हूं, इसलिए किसी भी व्यक्तिगत अनुभव से आकर्षित करना मुश्किल था।
लेकिन मैंने कई अलग-अलग फिल्में देखीं। मैं दिसंबर लड़कों के लिए लोलिता देखता हूं। मैंने डोमिनिक स्वैन के प्रदर्शन का अध्ययन किया। मैंने सोचा कि वह उस फिल्म में वास्तव में शानदार थी। यह उनकी पहली फिल्म थी। और इस तरह की विभिन्न चीजें। बलात्कार फिल्म के साथ, मैं वास्तव में बैठ गया और उन लोगों से बात की जिन्होंने अपने जीवन में उन तरह की चीजों का अनुभव किया था। मैंने बस इतना ही जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जितनी मैं कर सकता था और बस इसे अपने सिर में ले गया और वहां कुछ डाल दिया। निर्देशक ने मुझे निर्देशित किया और चरित्र को बनाने और मोल्ड करने की कोशिश करने में मेरी मदद की। "
वह लव सीनः प्रत्येक डैनियल रैडक्लिफ प्रशंसक दिसंबर के लड़कों में प्यार दृश्य के बारे में जानना चाहता है और पामर इसे फिल्माने के बारे में बात करने में प्रसन्न था। पामर ने खुलासा किया, "जाहिर है कि उस प्रकृति का एक दृश्य हमेशा बहुत अजीब होता जा रहा है और मैं निश्चित रूप से थोड़ा घबरा गया था। " "मैंने पहले सेक्स दृश्य और चुंबन दृश्य किए थे, जबकि दान ने कभी ऐसा नहीं किया था। मुझे याद है, 'मैं थोड़ी परेशान हूं,' और हम दोनों ने इसे एक-दूसरे को स्वीकार किया। हम इसके बारे में हँसे।
यह वास्तव में आखिरी दृश्य था जिसे हमने फिल्म में शूट किया था और हमने सुबह 4 बजे क्रिसमस ईव पर शूटिंग समाप्त कर दी थी। हर कोई इतना थक गया था और उस चरण तक, आप इतने थके हुए हैं कि आप केवल ऑटो पायलट पर हैं। आप जो भी कर रहे हैं उसके बारे में सोचने के लिए आपके पास समय भी नहीं था। तुम बस की तरह हो, 'आह, चलो बस इसे रास्ते से बाहर निकालो। आइए बस इसे करें। ' मुझे लगता है [निर्देशक] रॉड हार्डी ने विशेष रूप से ऐसा किया था। वह जानता था कि यह कैसे होगा। शूट के आखिरी दिन, हम बस इसे पूरा करना चाहते हैं, और हमने वास्तव में किया और यह बिल्कुल मजेदार था। "
बिल्डिंग अप बैकस्टोरीः टेरेसा पामर दिसंबर के लड़कों में अपने चरित्र के इतिहास के रूप में अपने विचारों के साथ आया। "मैंने एक बैकस्ट्रीरी बनाई थी। रॉड और मैंने एक साथ काम किया, और वास्तव में यह कारण है कि मुझे फिल्म क्यों मिली क्योंकि उसने मुझसे पहले मुझसे पूछा था, 'देखो, मैं चाहता हूं कि आप चरित्र के बारे में सोचें। मुझे अपने विचार बताओ। ' मैं इस विस्तृत बैकस्टोरी के साथ आया था जब वह 3 वर्ष की थी और जैसे वह स्कूल गई थी और ये सभी मजेदार चीजें थीं। वह जैसा था, 'वाह! यह अविश्वसनीय है क्योंकि मेरे पास चरित्र के लिए बहुत सारे विचार थे। '
मेरे विचार थे कि वह वास्तव में एक बहुत ही निष्क्रिय परिवार में बहुत ही निष्क्रिय परिवार में लाई गई थी। अगर वह अपने चाचा के साथ इस छोटे से कारवां में रह रही है, तो यह छोटा सा कारवां, आप वास्तव में नहीं जानते कि उसके साथ क्या होता है। मुझे लगता है कि उसे बहुत बुरे प्रभावों के अधीन किया गया है। मुझे लगता है कि वह वास्तव में काफी दुखद चरित्र है, और मुझे लगता है कि मैप्स के साथ उसका रिश्ता, वह वास्तव में उससे उतनी ही अधिक हो जाती है जितनी वह करता है। "
ऊपर अगला - अमेरिका में बच्चे : "मैं तोरी फ्रेडरकिंग खेल रहा हूं जो टॉपर ग्रेस के चरित्र मैट फ्रैंकलिन की सपना लड़की है। और यह 80 की कॉमेडी है इसलिए मैंने दिसंबर के लड़कों के साथ 60 के दशक में किया, अब मैंने 80 के दशक में बच्चों के साथ अमेरिका किया और यह वास्तव में मजेदार था। यह अमेरिकी भित्तिचित्र की तरह है लेकिन 80 के दशक के लिए। ऐसा लगता है कि सुपरबाड - इसे महसूस करने का प्रकार। यह बहुत उल्लसित है। मैंने कॉमेडिक प्रतिभाओं के साथ काम किया। यह अद्भुत था। यह मार्च में आता है। "
80 के दशक के बाल और मेकअपः पामर ने इसे एक शब्द में वर्णित कियाः हास्यास्पद।
पामर ने मजाक उड़ाया, "यह हर दिन हेयरर्सप्रै के पूरे कटोरे की तरह है। " "नहीं, यह आकाश की तरह था। मेरे पास ये विशाल बड़ी बैंग्स हैं। मैंने अपनी भौहें तक सीधे आंखों को तैयार किया था। वह बहुत अच्छा था। मेरे पास इन कंधे पैड थे। मुझे इस विंटेज हैल्स्टन सोना स्पार्कली ड्रेस पहनना पड़ा। वे चाहते थे कि वह सुनहरी लड़की की तरह हो। यह बहुत मजेदार था और 80 के दशक में संगीत भी फिल्म में सबसे अच्छा 80 संगीत है। मुझे लगता है कि हर कोई वास्तव में इसे पसंद करेगा। "
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आज, वास्तव में, विकास की शुरुआत में, वास्तव मेंगेम उद्योग, गेमर्स के बीच में आपको निशानेबाजों नामक खेल का एक उल्लेख मिल सकता है। अब हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि यह सब कैसे शुरू हुआ, गेमिंग कंप्यूटर सेक्टर के इस क्षेत्र के विकास का इतिहास क्या था, और आधुनिक गेमर्स द्वारा सुझाए गए कुछ अच्छे निशानेबाजों को भी नोट किया गया। स्वाभाविक रूप से, बिना ध्यान के बने रहना और, इसलिए बोलना, शैली की क्लासिक।
गेम के आगमन के बाद से, जहां यह आवश्यक थागोली मार (और कुछ भी है कि चाल के लिए लगभग हमेशा), निशानेबाजों पीसी के लिए खेल के बाजार में लगभग एक अग्रणी स्थिति के साथ-साथ आधुनिक वीडियो गेम के लिए ले लिया। आज, सबसे अच्छा खेल-निशानेबाजों दुनिया भर में gamers के बीच इतना पागल मांग कर रहे हैं, और यह है कि यह कल्पना करना असंभव है।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि अब परिभाषा हैशूटर खेल का एक बहुत हो जाता है। , के रूप में यह ऊँची एड़ी के जूते पर मुख्य चरित्र इस प्रकार उन पहले व्यक्ति निशानेबाजों, अभी भी एफपीएस (पहले व्यक्ति शूटर) के रूप में भेजा, और जहां विचारों किसी तीसरे पक्ष से लिया जा सकता हैः एक नियम के रूप में, वे दो बुनियादी प्रकार में विभाजित हैं। सामान्य, अच्छा निशानेबाजों में दोनों शैलियों ऐसे बहुतायत में आज मिल रहे हैं कि यह कल्पना करना असंभव है। लेकिन इस अनूठी गंतव्य के इतिहास को देखो।
इस प्रकार के खेल बनाने का इतिहासकि बहुत शुरुआत में, और अब लगभग सभी गेम दो-आयामी मॉनिटर और स्क्रीन पर एक तीन-आयामी छवि को स्थानांतरित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। अब अनुकरण लगभग पूर्णता तक पहुंच गया है। और अगर आप खाते में सबसे आधुनिक हेलमेट या आभासी वास्तविकता के कुछ अप्रचलित बिंदुओं का उपयोग करते हैं, तो आम तौर पर भावनाओं के बारे में बात करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यह केवल बनी हुई है जब एक बुलेट आपको मारता है।
और सब कुछ काफी भोलेपन से शुरू हुआ तथ्य यह है कि उस समय वहाँ, 3 डी तकनीक का कोई निश्चित था, इसलिए ज्यादातर मामलों में छद्म तत्वों का इस्तेमाल किया, मुख्य रूप से लंबे गलियारों और लेबिरिंथ के रूप में है। यही कारण है कि अक्सर कहा जाता है समय का सबसे अच्छा निशानेबाजों है "एक्शन।" और अगर एक की जरूरत है तो बस चलती ठिकानों पर शूट करने के लिए, यह मुश्किल समय निर्धारित करने की बना रही हैः अब वह है, एक निश्चित जगह पर उपयोग करने के लिए कुछ विशिष्ट कार्य करने के लिए, पहेली को सुलझाने, आदि के बाद ही पूरा उपयोग करने के लिए प्राप्त की जाएगी चाबी के लिए देखने के लिए था .. सभी पहेली और नष्ट दुश्मन, अगले, और अधिक कठिन स्तर तक परिवर्तन किया। वैसे, हाल ही में जब तक एक बहु-स्तरीय मिशन प्रणाली सबसे लोकप्रिय माना जाता था।
लेकिन शैली की उत्पत्ति के पीछे। माना जा रहा है कि इस योजना के पहले समय में वोल्फेंस्टीन 3 डी, होवर टैंक 3 डी, कैटाकॉब 3 डी आदि शामिल थे।
थोड़ी देर बाद, ऐसे अनूठे खेल थे,वे बाद में शैली की क्लासिक्स बन गए और इसे आगे विकसित और कयामत, भूकंप, हेरेथिक, हेक्सेन, ड्यूक नुकेम 3 डी, रक्त, अवास्तविक और कई अन्य जैसे जारी रहे।
वैसे, ये गेम अलग दिखते थे यद्यपि पहले व्यक्ति के दृश्य के साथ त्रि-आयामी स्थान का अनुकरण किया गया था, लेकिन वे डॉस के तहत चल रहे थे, और उनमें से कई अंततः विंडोज प्लेटफॉर्म में स्थानांतरित हो गए थे।
मुख्य दिशा के लिए, इसमें हैएफपीएस (पीसी पर सबसे अच्छा पहला व्यक्ति शूटर जिसका मतलब है) मूल रूप से राक्षसों, लाश, म्यूटेंट आदि को नष्ट करना आवश्यक था। लेकिन एक ही समय में परियोजनाएं विकसित हो रही थीं जिसमें खिलाड़ी ने जो कुछ हो रहा था, उसकी अपनी आँखों से नहीं देखा, बल्कि चरित्र को नियंत्रित किया, उसकी पीठ के पीछे उन्हें तीसरे व्यक्ति शूटर (तीसरे व्यक्ति शूटर) कहा जाता था।
और उस समय के सर्वश्रेष्ठ निशानेबाजों की सूची, निस्संदेह,इस प्रवृत्ति के प्रतिभाशाली प्रतिनिधि के बिना नहीं कर सकता, कब्रों के लुप्तप्राय के रूप में कुख्यात लारा क्रॉफ्ट के साथ पहले से ही एक क्लासिक खेल टॉम्ब रेडर बन गया है।
दिलचस्प क्या हैः खेल इतनी मांग में था कि उसे अगली कड़ी में चार और टुकड़े मिले। उन्होंने शीर्षक भूमिका में एंजेलिना जोली के साथ नामांकित फिल्म के दो हिस्सों को भी गोली मार दी लेकिन ब्याज केवल इस तथ्य से नहीं था कि यह शूट करने के लिए आवश्यक था, बल्कि यह भी कि प्रत्येक मिशन के साथ कई पहेलियाँ और पहेलियाँ हल होनी थीं, और कभी-कभी भी रसातल को पार करने का एकमात्र तरीका चुनना पड़ता था।
सबसे दिलचस्प क्या हैः तो यह केवल एक, गेमप्ले जारी रखने के लिए एकमात्र संभव समाधान खोजने के लिए आवश्यक था। आज, बहुत अधिक अप्रत्याशित और अप्रत्याशित खेल हैं, जहां कहानी का विकास पूरी तरह से खिलाड़ी के कार्यों पर निर्भर हो सकता है।
स्वाभाविक रूप से, जब पहली ग्राफ़िक3 डीएफएक्स कार्ड की तरह चिप्स, और फिर एनवीडिया रिवा को 3 डी बनावट के मॉडलिंग के संदर्भ में कंप्यूटर सिस्टम की उत्पादकता में काफी वृद्धि करने की अनुमति दी गई, और उन्नत तकनीकों का उपयोग करने वाले कई गेम जारी रहे। उदाहरण के लिए, सिक्वेल भूकंप, अवास्तविक, कयामत, आदि जारी किए गए थे।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण घटना पंथ थाआज का खेल आधा जीवन यह एक वास्तविक सफलता थी। इस शूटर ने बाद में अपने अनूठे इंजन के आधार पर नए विकास के लिए एक प्रोटोटाइप के रूप में काम किया।
अब सबसे लोकप्रिय में से एक नहीं याद करने के लिए कैसेकाउंटर स्ट्राइक नामक खेल? लेकिन वास्तव में यह प्रारंभिक आधा जीवन के इंजन पर आधारित है, और यहां तक कि बहुत से शाखाएं हैं जैसे विरोध करने वाले बल और अधिक आधुनिक संशोधनों। वैसे, खेल ही आधा जीवन नहीं इतने लंबे समय पहले एक दूसरे जन्म प्राप्त किया।
इसके अलावा, सबसे अच्छा खेल निशानेबाजों के कई बंद कर दिया हैयह एकल खिलाड़ी मिशन की तरह है और आदेश कार्रवाई मान, और ऑनलाइन संचार प्रौद्योगिकियों, आदेशों के हस्तांतरण और आदेश अपने आप में एक सख्त पदानुक्रम (जो अकेले कार्यक्रम टीम व्यूअर या RaidCall पैकेज में इस्तेमाल प्रौद्योगिकियों के लायक है) का उपयोग कर।
तथाकथित के विचार के संबंध मेंहाइब्रिड संस्करण, यहां पर खुद को प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देना उचित है तथ्य यह है कि वे दो मुख्य पहलुओं के कारण अपना अनौपचारिक नाम प्राप्त कर चुके हैंः दृष्टि मोड (पहले या तीसरे व्यक्ति से) के स्विचिंग और अकेले गेमप्ले का मार्ग, टीम या इंस्टॉल किए गए बॉट्स के साथ। कृपया, अवास्तविक टूर्नामेंट का नवीनतम संस्करण, भूकंप IV, सुदूर रो - ये सभी ऐसे तरीके हैं (यह मुख्य खिलाड़ी से संबंधित गेम प्रक्रिया के बारे में है)
उपरोक्त सभी के अतिरिक्त,कि वर्तमान और, जैसा कि हम पहले से ही समझ चुके हैं, पीसी पर सर्वश्रेष्ठ सर्वश्रेष्ठ निशानेबाजों में एक विशिष्ट विशेषता हैः उनके पास कई उपयोगकर्ता मोड हैं विशेष रूप से, यह गेमिंग टकराव को संदर्भित करता हैः उदाहरण के लिए, आप मौत के दौर का चयन कर सकते हैं, जब एक लड़ाई केवल वास्तविक समय में दो खिलाड़ियों के बीच होती है। कृपया, एक ही भूकंप III: अखाड़ा या अवास्तविक टूर्नामेंट का चौथा भाग विशेष रूप से नेटवर्क मैचों के लिए डिज़ाइन किया गया है। यद्यपि आप एकल मिशन का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान के दृष्टिकोण से, यह निस्संदेह और उबाऊ होने का पता चला है।
नेटवर्क गेम्स के विकास के लिए, यहांसबसे बड़ा प्रभाव इंटरनेट तकनीकों द्वारा प्रदान किया गया था। यह बिल्कुल महत्वहीन बन गया है, जहां आप हैं - आप आसानी से ऑस्ट्रेलिया के प्रतिद्वंद्वी के साथ खेल सकते हैं या संयुक्त राज्य अमेरिका में खिलाड़ियों की एक टीम की भर्ती कर सकते हैं।
मैं क्या कह सकता हूं, लेकिन एक बार पीसी पर सबसे पहले प्रथम-व्यक्ति निशानेबाजों को आधुनिक खेल प्रतियोगिताओं में शामिल किया गया था, जिसमें टीम चैंपियनशिप आयोजित की गई थी।
अगर किसी को भी याद नहीं है, तो गेमर्स की रूसी टीम ने एक बार क्वैक III के लिए मुख्य पुरस्कार जीता और थोड़ी देर बाद - और काउंटर स्ट्राइक पर।
2015 को इस दिशा में लाने के लिए खेलों के संदर्भ मेंकई आश्चर्य यदि आप 2015 के सबसे लोकप्रिय, लोकप्रिय और सबसे ज्यादा प्रत्याशित गेमों का दर्ज़ा बनाते हैं, जिसमें पीसी पर वर्ष के सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज हैं, विभिन्न अनुमानों के अनुसार, यह कुछ ऐसा दिखाई दे सकता हैः
यह सबसे पूर्ण सूची नहीं है यहां आप गेम की एक बड़ी संख्या और पूरी तरह से अलग-अलग शैलियों को शामिल कर सकते हैं।
और यह हम सभी के ऐसे राक्षसों के बारे में बात नहीं कर रहे हैंसम्मान के पदक, ड्यूटी, सीमा कॉल, Titanfall, बायोशॉक, Crysis, युद्ध थंडर, किरच सेल, S.T.A.L.K.E.R, मेट्रो 2033 और इतने पर के रूप में संशोधन। डी। और यह पीसी पर सबसे अच्छा निशानेबाजों के सभी नहीं है। उनकी सूची है कि लंबे समय तक नहीं है, और बहुत लंबी हो सकती है।
और अगर आपको "गंभीर सैम" याद है, जहां आपको इसकी आवश्यकता हैबस वह सब है, भेद के बिना, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस खेल को एक एफपीएस-शूटर अब भी है से बाहर की शूटिंग में तनाव या नकारात्मकता से राहत का एक साधन बनी हुई हैः सिर्फ अंधाधुंध सभी राक्षसों पर पीसने, तो भी शैली में संगीत भी साथ में भारी धातु। यही कारण है कि एक पूर्ण ड्राइव कहा जाता है!
अब वे क्या प्रतिनिधित्व करते हैं के बारे में कुछ शब्द"एंड्रॉइड" (या अन्य मोबाइल सिस्टम) पर सर्वश्रेष्ठ निशानेबाजों। यहां आपको केवल उसी प्ले मार्केट (Google Play) या AppStore की रेटिंग में प्रस्तुत सूची को देखना होगा।
चैंपियनशिप ज़ोंबी आतंक और सेना का हैविज्ञान-कथा, नोवा 3, विशेष सेना, दस्ते हड़ताल 2, क्रिटिकल OIps, आधुनिक लड़ाकू, युद्ध के मैदान के कॉल, नियॉन छाया, मिशन इम्पॉसिबल, मृत Effext 2, एफपीएस ज़ोंबी अपराध सिटी, का तूफानः डेड ट्रिगर 2, मृत पृथ्वी की तरह रणनीति अंधेरे, स्निपर 3 डीः .. हत्यारा, शत्रु हड़ताल, विकास, स्वाट, आदि आप की गणना कर सकते हैं के रूप में वे कहते हैं कि अनंत को,। सामान्य तौर पर, एंड्रॉयड "पर सबसे अच्छा शूटर" "" की सूची में लगभग हर दिन नए रिलीज के साथ अद्यतन।
ठीक है, अंत में, कुछ परिणाम सबसे अच्छा निशानेबाजों, काफी विविधता प्रस्तुत कर रहे हैं, हालांकि यह इस शैली में बनाई गई कई क्षेत्रों का उल्लेख किया जा सकता है। विशेष रूप से, यह समन्वित टीम के काम, द्वितीय विश्व युद्ध, आतंकवादी विरोधी आपरेशनों, बुराई की टकराव, जिसमें से सबसे लोकप्रिय ज़ोंबी-हॉरर हैं की लड़ाई के लिए एक वापसी, और इतने पर से संबंधित है। डी लेकिन सामान्य रूप में, पीसी पर एक अच्छा शूटर, मुझे लगता है, तात्कालिकता नहीं खोने के लिए हो जाएगा, खासकर जब आप आभासी वास्तविकता प्रौद्योगिकी, जहां प्रत्येक खिलाड़ी अपने आप को महसूस कर सकते हैं के अभूतपूर्व विकास पर विचार करें, के रूप में यह अपने चरित्र के शरीर में थे (ठीक है, क्या नहीं है "अवतार"?)
हेलमेट का उपयोग एक अतिरिक्त प्रोत्साहन देगाखेल उद्योग, और कौन जानता है, हो सकता है कि खिलाड़ी जल्द ही आंदोलन या आस-पास की जगह की धारणा की पूर्णता को न केवल महसूस कर पाएंगे, बल्कि असली दर्द जब विरोधी के हथियार क्षतिग्रस्त हो जाएंगे?
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गुजरात के गर्वनर आचार्य देवव्रत जी, उत्तर प्रदेश की गर्वनर और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री बहन आनंदी बेन, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी जी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल जी और यहां उपस्थित सभी महानुभाव, देवियो और सज्जनों।
कई चेहरे 12-15 साल के बाद देख रहा हूँ। यहाँ ऐसे भी चेहरे दिख रहे हैं जिन्होंने अपनी जवानी गुजरात के लिए खपा दी थी। कई रिटायर्ड अफसर नजर आ रहे हैं जिन्होंने अपने समय में गुजरात को बहुत कुछ दिया, और उसी के कारण आज गुजरात का दीया ओरों को रोशनी दे रहा है।
तो मैं खास तो गुजरात सरकार का इसलिए आभारी हूँ कि भवन तो ठीक है, कोई भी वहाँ रिबन काट लेता, लेकिन मुझे आप सबके दर्शन करने का मौका मिल गया।
सबसे पहले तो आप सबको गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। भगवान गणेश की कृपा देशवासियों पर बनी रहे। राष्ट्र निर्माण के हर संकल्प सिद्ध हों। इस पावन पर्व पर आप सबको और देशवासियों को भी और विशेष करके आज गुजरात का कार्यक्रम है तो गुजरात के लोगों को अनेक-अनेक मंगलकामना हैं।
और गणेश चतुर्थी को शाम को प्रतिक्रमण पूर्ण होने के बाद एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य हम करते हैं और जैन परम्परा में यह बहुत ही उत्तम संस्कार है 'मिच्छामी दुकड़म'। मन से, वचन से, कर्म से, कभी भी, किसी को दुख पहुँचाया है तो क्षमा याचना का ये पर्व माना जाता है 'मिच्छामी दुक्ड़म'। तो मेरी तरफ से भी गुजरात के लोगों का, देश के लोगों को और अब तो दुनिया को भी 'मिच्छामी दुकड़म'।
मुझे खुशी है कि भगवान सिद्धि विनायक के पर्व पर हम एक और सिद्धि का उत्सव मनाने के लिए यहाँ इकट्ठे हुए हैं। गरवी गुजरात सदन गुजरात के करोड़ों जनों की भावनाओं, परम्परा और संस्कृति के अनुकूल सभी की सेवा के लिए तैयार है। मैं आप सभी को, गुजरात-वासियों को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
अभी आपने एक तो फिल्म देखी गुजरात भवन की, लेकिन मैं अभी वहाँ जाकर आया हूँ। कुछ देर पहले गुजरात संस्कृति की अनुपम झलक भी यहाँ पर हमको देखने को मिली है। और एक प्रकार से कलाकारों ने कम समय में और कम जगह में शानदार प्रस्तुति की है।
साथियो, गुजरात भवन के बाद अब गरवी गुजरात सदन की उपस्थिति अनेक तरह की नई सहूलियत ले करके आएगी। मैं इस बिल्डिंग के निर्माण से जुड़े साथियों को बधाई देता हूँ, जिन्होंने तय समय से पहले इस शानदार इमारत का निर्माण किया है।
दो साल पहले सितम्बर में मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री जी ने इसका शिलान्यास किया था और आज सितम्बर के प्रारंभ में ही इसका उद्घाटन करने का मौका मुझे मिला है। मुझे खुशी है कि समय पर प्रोजेक्ट्स पूरा करने की एक आदत सरकारी संस्थाओं में, सरकारी एजेंसियों में विकसित हो रही है।
और जब मैं गुजरात में था तो मैं डंके की चोट पर मैं कहता था कि जिसका शिलान्यास मैं करता हूँ उसका उद्घाटन भी मैं ही करूँगा। और उसमें अहंकार नहीं था, सार्वजनिक commitment रहता था उसमें। और उसके कारण मेरे सभी साथियों को इन कामों के लिएजुटे रहना पड़ता था। और उससे परिणाम भी मिलते थे। और इस कार्य संस्कृति को न सिर्फ हमें अपनाए रखना है बल्कि हर स्तर पर इसका विस्तार होना बहुत जरूरी है।
साथियो, ये भवन भले ही Mini Gujarat का मॉडल हो, लेकिन ये New India की उस सोच का भी प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसमें हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को, हमारी परम्पराओं को आधुनिकता के साथ जोड़ करके आगे बढ़ने की बात करते हैं। हम जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं, आसमान को छूना चाहते हैं।
और इस भवन में जैसे बताया गया eco friendly, water harvesting, waterrecycling जैसे आधुनिक systems का भी भरपूर उपयोग है तो दूसरी तरफ रानी गिवाब का भी चित्रण है। इसमें जहाँSolar power generation की व्यवस्था है, वहीं मोढेरा सूर्य मंदिर को भी जगह मिली है।Solid waste management की आधुनिक तकनीक के साथ ही इस इमारत में कच्छ की लिपण कला के आर्ट को भी वहाँ पर जगह दी गई है जिसमें पशुओं के waste को आर्ट की शक्ल दी जाती है।
भाइयो और बहनों, निश्चित तौर पर ये सदनगुजरात के art & craft हस्तशिल्प के लिए और गुजरात के heritage tourism को promote करने के लिए बहुत अहम सिद्ध हो सकता है। देश की राजधानी में जहाँ दुनियाभर के लोगों का, व्यापारियों, कारोबारियों का आना-जाना होता है, वहाँ इस प्रकार की सुविधा का होना बहुत उपयोगी है।
इसी तरह गुजराती संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनियों के लिए सदन के सेंट्रल आरकिएम का उपयोग करने का विचार भी बहुत ही अभिनंदनीय है।
मैं मुख्यमंत्रीजी से आग्रह करूँगा कि यहाँ गुजरात टूरिज्म से जुड़ी जो व्यवस्था है उसको और सशक्त बनाया जाए। सांस्कृति कार्यक्रम और फूड फेस्टिवल जैसे आयोजनों के माध्यम से दिल्ली के, देशभर के पर्यटकों को गुजरात के साथ connect किया जा सकता है।
एक समय था गुजरात का खाना तो खास करके उत्तर भारत के लोग, उनको पसंद नहीं आता था, कहते थे अरे यार बहुत मीठा होता है और कहते थे यार, करेले में भी आप मीठा डालते हैं? लेकिन इन दिनों में देख रहा हूँ, लोग पूछते हैं भई गुजरात खाना अच्छाकहाँ मिलेगा? गुजराती थाली कहाँ अच्छी मिलती है? और गुजरात के लोगों की विशेषता है, जब वो गुजरात में होते हैं तो Saturday, Sunday शाम को खाना नहीं पकाते, वो बाहर जाते हैं और जब गुजरात में होते हैं तब इटालियन ढूंढते हैं, मैक्सिकन ढूँढते हैं, साउथ इंडियन डिश ढूंढते हैं। लेकिन गुजरात के बाहर जाते हैं तो गुजराती डिश ढूँढते हैं। और यहाँ खमण को भी ढोकला बोलते हैं और हाँडवा को भी ढोकला बोलते हैं।ये हैं तो एक ही परिवार के, अब अगर गुजरात के लोग बढ़िया branding करें, इन चीजों को पहुँचायें तो लोगों को पता चले कि भई खमण अलग होता है, ढोकला अलग होता है और हाँडवा अलग होता है।
नए सदन में गुजरात में निवेश आकर्षित करने के लिए, गुजरात में उद्योगों के लिए, एक अहम सेंटर बने इसके लिए नई व्यवस्थाएं की गई हैं। और मुझे विश्वास है कि इन सुविधाओं से गुजरात में निवेश के इच्छुक भारतीय और विदेशीनिवेशकों को और अधिक सुविधा मिलेगी।
साथियो, ऐसे माहौल में जब सदन के आधुनिक डाइनिंग हॉल में लोग बैठेंगे और सामने ढोकला हो, फाफड़ा हो, खांडवी हो, पुदीना मुठिया हो, मोहनथाल हो, थेपला हो, सेव तथा टमाटर का चाट हो, न जाने क्या-क्या हो...एक बार एक पत्रकार ने मेरे साथ समय मांगा था। तब मैं गुजरात मुख्यमंत्री था। और उनकी एक आदत थी कि वो ब्रेकफास्ट पर समय मांगते थे और ब्रेकफास्ट करते-करते वो इंटरव्यू करते थे। तो खैर इंटरव्यू तो अच्छा हो ही गया, उसमें तो मुझे मालूम है क्या बोलना, क्या नहीं बोलना, और ज्यादा मालूम है क्या नहीं बोलना। लेकिन उसके बाद भी जब उन्होंने रिपोर्ट किया तो लिखा- कि मैं गुजरात भवन गया था, गुजरात के मुख्यमंत्री से बात की, लेकिन दुखी हूँ कि उन्होंने गुजराती नाश्ता नहीं कराया, साउथ इंडियन कराया। मैं चाहूँगा कि अब किसी को ऐसी नौबत न आए। गुजरात भवन में उसकी अपनी पहचान बननी चाहिए। लोग ढूँढते आने चाहिए।
गुजरात ने विकास को, उद्यम को, परिश्रम को हमेशा महत्व दिया है। विकास के लिए गुजरात की ललक को करीब डेढ़ दशक तक मुख्यमंत्री के नाते मैंने बहुत करीब से देखा है। बीते 5 वर्षों से मैं देख रहा हूं कि गुजरात ने विकास के अपने सफर को और तेज़ किया है। पहले आनंदीबेन पटेल ने विकास की रफ्तार को नई ऊर्जा दी, नया सामर्थ्य दिया और बाद में रूपाणी जी ने नई बुलंदियों को छूने के लिए अनेक नए प्रयास किए। हाल के वर्षों में गुजरात की विकास दर दस प्रतिशत से अधिक रही है।
साथियो, केंद्र और राज्य में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से और दोनों सरकारों के साझा प्रयासों से गुजरात के विकास में आने वाली अनेक अड़चनें दूर हुई हैं। ऐसी ही एक अड़चन नर्मदा डैम को लेकर थी, और अभी विजय जी ने उसका काफी वर्णन भी किया। आज हम अनुभव कर रहे हैं कि समस्या का समाधान होते ही कैसे नर्मदा का पानी गुजरात के अनेक गांवों की प्यास बुझा रहा है, किसानों को लाभ पहुँचा रहा है।
साथियो, सोनी योजना हो या फिर सुजलाम-सुखलाम योजना, इन दोनों योजनाओं ने जो गति पकड़ी है, उससे आज गुजरात के लाखों परिवारों को सुविधा मिल रही है। गुजरात में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो पा रही है।
और मुझे खुशी है कि जल संचयन हो या गांव-गांव जल पहुंचाने का अभियान, गुजरात ने इसमें अपनी एक महारत हासिल की है, योजनाबद्ध तरीके से सिद्धि प्राप्त की है और उसमें वहाँ के नागरिकों की भी भागीदारी है। ये जन-भागीदारी से हुआ है। और ऐसे ही प्रयासों से हम 2024 तक हर घर जल पहुंचाने में...पूरे देश की बात मैं कर रहा हूं.. हम सफल होंगे।
साथियो, सिंचाई के अलावा infrastructure के दूसरे क्षेत्रों में भी अभूतपूर्व निवेश बीते पाँच वर्षों के दौरान गुजरात में हुआ है और infrastructure project के निर्माण की रफ्तार भी बढ़ी है। अहमदाबाद में मेट्रो सहित आधुनिक infrastructure के अनेक projects तेजी से पूरे हुए हैं। बडोदा, राजकोट, सूरत और अहमदाबाद के airports को आधुनिक बनाया गया है। इसके अलावा धोलेरा एयरपोर्ट और एक्सप्रेस वे की मंजूरी द्वारका मैं जैसा विजय जी ने बताया, वहाँ एक पूल का निर्माण वे-द्वारका के लिए, railway university, Maritimemuseum, Marine police academy, Gandhi museum, ऐसे अनेक कार्य, जो गुजरात में इन पाँच वर्षों में हुए हैं।Statue of Unity ने तो दुनिया के Tourist map में भारत को और अधिक सम्मान देने में मदद की है। विश्व के known magazines खास करकेtourism sector से जुड़े हुए, Statue of Unity की चर्चा अवश्य करते हैं। और मैं अभी थोड़े दिन पहले पढ़ रहा था, मुझे खुशी भी हुई कि जन्माष्टमी के दिन 34 हजार लोग Statue of Unity, सरदार साहब को दर्शन करने के लिए लोग पहुँचे थे। एक दिन में 34 हजार लोगों का जाना अपने-आप में बहुत बड़ी बात है।
साथियो, सामान्य मानवी को सुविधा पहुँचाने और स्वास्थ्य को उत्तम बनाने के लिए भी गुजरात ने सराहनीय काम किया है। बीते 5-6 वर्षों में गुजरात में मेडिकल के infrastructure में और तेजी से काम हुआ है। अहमदाबाद सहित राज्य के अनेक हिस्सों में आधुनिक अस्तपतालों और मेडिक कॉलेज का जाल बिछाया जा रहा है। इससे युवाओं को गुजरात में ही मेडिकल की पढ़ाई और रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं।
स्वास्थ्य के साथ-साथ उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना को लागू करने में भी गुजरात काफी आगे रहा है। गुजरात की जनता के जीवन को आसान बनाने की इस मुहिम को, ease of livingको आगे बढ़ाने के लिए इसकी रफ्तार को हमें और गति देनी है।
साथियो, भारत के अलग-अलग राज्यों की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक ताकत ही उसे महान बनाती है, ताकतवर बनाती है। लिहाजा देश के हर हिस्से, हर राज्य की ताकत को, शक्तियों को पहचानकर हमें आगे बढ़ाना है। उनको नेशनल और ग्लोबल स्टेज पर अवसर देना है। इसी साझा ताकत से हम उन संकल्पों को सिद्ध कर पाएंगे, जो आने वाले पाँच वर्षों के लिए तय किए गए हैं।
दिल्ली में तकरीबन हर राज्य के भवन हैं, सदन हैं। ये गेस्ट हाऊस के रूप में ही सीमित न रहें, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। राज्यों के ये सदन दिल्ली में सही मायने में राज्यों के ब्रांड के रूप में प्रतिनिधि हों, देश और दुनिया से संवाद करने वाले हों, और इसके लिए काम करना जरूरी है। ये भवन टूरिज्म और ट्रेड के सेंटर बनें, इस दिशा में भी काम किया जाना चाहिए।
साथियो, देश के कई राज्य हैं जो connectivity के लिहाज से थोड़े दूर हैं। देश-विदेश के बिजनेस लीडर उद्यमियों को दिल्ली से वहाँ जाने में कई बार काफी समय भी लग जाता है। जब समय कम हो तो देश की राजधानी में उस राज्य का बिजनेस सेंटर होना कल्चर को, आर्ट को और क्राफ्ट को showcase करने के लिए भी वहाँ सुविधा होना बहुत बड़ा उपयोगी होता है।
जम्मू कश्मीर और लेह-लद्दाख से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक, विंध्य के आदिवासी अंचलों से लेकर साउथ के समुद्री विस्तार तक, हमारे पास देश के साथ शेयर करने और दुनिया को ऑफर करने के लिए बहुत कुछ है। अब हमें इसको प्रमोट करने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। ऐसे में राज्यों के भवन में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई भी यहाँ जाकर पर्यटन से लेकर निवेश तक के सारे सवालों के जवाब हासिल कर सके।
फिर एक बार आप सभी को गरवी गुजरात के लिए बहुत-बहुत बधाई। और मैं आशा करता हूँ गुजरात के व्यंजनों को स्वाद लेते-लेते ये ज़रूर याद रखिएगा कि हमें देश को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति दिलानी है। मुझे विश्वास है कि इस मिशन में भी गरवी गुजरात सदन मिसाल बनेगा।
फिर एक बार आप सबको इस नए भवन के लिए बधाई, शुभकामनाएं। और अच्छा लगा, काफी मिशन के लोग भी यहाँ आए हुए हैं। तो, बीच-बीच में मिशन के लोगों को गुजरात भवन बुलाते रहें जरा तो अपने-आप आपका कारोबार बढ़ता जाएगा। तो इसको करते रहना चाहिए।
बहुत-बहुत धन्यवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
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शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
आंबेडकर जयंती या भीम जयंती डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन १४ अप्रैल को तौहार के रूप में भारत समेत पुरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन को 'समानता दिवस' और 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकी जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिभाशाली डॉ॰ भीमराव आंबेडकर को समानता के प्रतिक और ज्ञान के प्रतिक भी कहां जाता है। भीमराव विश्व भर में उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और उनकी प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे इन्होंने १४ अप्रेल १९२८ में पुणे शहर में मनाई थी। रणपिसे आंबेडकर के अनुयायी थे। उन्होंने आंबेडकर जयंती की प्रथा शुरू की और भीम जयंतीचे अवसरों पर बाबासाहेब की प्रतिमा हाथी के अंबारी में रखकर रथसे, उंट के उपर कई मिरवणुक निकाली थी। उनके जन्मदिन पर हर साल उनके लाखों अनुयायी उनके जन्मस्थल भीम जन्मभूमि महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षास्थल दीक्षाभूमि, नागपुर और उनका समाधी स्थल चैत्य भूमि, मुंबई में उन्हें अभिवादन करने लिए इकट्टा होते है। सरकारी दफ्तरों और भारत के हर बौद्ध विहार में भी आंबेडकर की जयंती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। विश्व के 55 से अधिक देशों में डॉ॰ भीमराव आंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। गुगल ने डॉ॰ आंबेडकर की 124 वी जयंती 2015 पर अपने 'गुगल डुडल' पर उनकी तस्वीर लगाकर उन्हें अभिवादन किया। तीन महाद्विपों के देशों में यह डुडल था। . भीमराव रामजी आम्बेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ - ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब आम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता; वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और बातचीत में शामिल हो गए, पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। .
आंबेडकर जयंती और भीमराव आम्बेडकर आम में 29 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चैत्य भूमि, दीक्षाभूमि, धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस, नवयान, नेपाल, पाकिस्तान, पुणे, बौद्ध धर्म, बौद्ध-दलित आंदोलन, बोधिसत्व, भारत, भारत सरकार, भारत का संविधान, भारतीय रिज़र्व बैंक, भीम जन्मभूमि, भीमराव आम्बेडकर, मध्य प्रदेश, महानतम भारतीय (सर्वेक्षण), महू, मुम्बई, म्यान्मार, लंदन, श्रीलंका, संयुक्त राज्य, हंगरी, जर्मनी, विहार, कोलंबिया विश्वविद्यालय, १४ अप्रैल।
चैत्यभूमि मुंबई के दादर स्थित भारतीय संविधान के निर्माता भारतरत्न डॉ भीमराव आंबेडकर जी की समाधि स्थली और बौद्ध धर्म के लोगो का आस्था का केंद्र हैं। दादर के समुद्र तट पर चैत्य भूमि स्थित है। दिल्ली में अपने निवास में ६ दिसंबर १९५६ को आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ और उनका पार्थिव मुंबई में लाया गया, चैत्यभूमि में ७ दिसंबर १९५६ को भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने आंबेडकर का बौद्ध परम्परा के अनुसार दाह संस्कार किया था। आंबेडकर का दाह संस्कार के पहले उन्हें साक्षी रख उनके १०,००,००० अनुयायिओं ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली और यह दीक्षा उन्हें भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने दी थी। .
दीक्षाभूमि भारत में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है। यहां बौद्ध धर्म की पुनरूत्थान हुआ है। महाराष्ट्र राज्य की उपराजधानी नागपुर शहर में स्थित इस पवित्र स्थान पर बोधिसत्त्व डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने १४ अक्टूबर १९५६ को पहले महास्थविर चंद्रमणी से बौद्ध धम्म दीक्षा लेकर अपने ५,००,००० से अधिक अनुयायिओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। त्रिशरण, पंचशील और अपनी २२ प्रतिज्ञाएँ देकर डॉ॰ आंबेडकर ने हिंदू दलितों का धर्मपरिवर्तन किया। अगले दिन फिर १५ अक्टूबर को ३,००,००० लोगों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी और स्वयं भी फिर से दीक्षीत हुए। देश तथा विदेश से हर साल यहां २५ लाख से अधिक आंबेडकरवादी और बौद्ध अनुयायी आते हैं। हर साल १४ अक्टूबर को यहां हजारों की संख्या में लोग बौद्ध धर्म परावर्तित होते रहते हैं। यहां १४ अक्टूबर २०१५ में ५०,००० दीक्षीत हुए हैं। १४ अक्टूबर २०१६ में २०,००० और २५ अक्टूबर २०१६ को मनुस्मृति दहन दिवस के उपलक्ष में ५,००० ओबीसी लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है। महाराष्ट्र सरकार ने दीक्षाभूमि को 'अ' वर्ग ('ए' क्लास) पर्यटन क्षेत्र का दर्जा दिया है। नागपुर शहर के सभी धार्मिक व पर्यटन क्षेत्रों में यह पहला स्थल है, जिसे 'ए' क्लास का दर्जा हासिल हुआ है। .
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों एक प्रमुख त्यौहार है। दुनिया भर से लाखों बौद्ध अनुयायि एकट्टा होकर हर साल १४ अक्टूबर के दिन इसे दीक्षाभूमि, महाराष्ट्र में मनाते है। २० वीं सदी के मध्य में भारतीय संविधान के निर्माता, बोधिसत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने अशोक विजयादशमी के दिन १४ अक्टूबर १९५६ को नागपुर में अपने ५,००,००० अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। डॉ॰ आंबेडकर ने जहां बौद्ध धम्म की दीक्षा ली वह भूमि आज दीक्षाभूमि के नाम से जानी जाती है। डॉ॰ आंबेडकर ने जब बौद्ध धर्म अपनाया था तब बुद्धाब्ध (बौद्ध वर्ष) २५०० था। विश्व के कई देशों एवं भारत के हर राज्यों से बौद्ध अनुयायि हर साल दीक्षाभूमि, नागपुर आकर 'धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस' १४ अक्टूबर को एक उत्सव के रूप में मनाते है। यह त्यौहार व्यापक रूप से डॉ॰ आंबेडकर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने यह दिन बौद्ध धम्म दीक्षा के चूना क्योंकि इसी दिन ईसा पूर्व ३ री सदी में सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म ग्रहन किया था। तब से यह दिवस बौद्ध इतिहास में अशोक विजयादशमी के रूप में जाना जाता था, डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया। इस त्यौहार में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध व्यक्ति एवं भारत के प्रमुख राजनेता भी सामिल रहते है। .
नवयान भारत का बौद्ध धर्म का सम्प्रदाय हैं। नवयान का अर्थ है- नव .
नेपाल, (आधिकारिक रूप में, संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य नेपाल) भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एक दक्षिण एशियाई स्थलरुद्ध हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर मे चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल के ८१ प्रतिशत नागरिक हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। नेपाल विश्व का प्रतिशत आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। नेपाल की राजभाषा नेपाली है और नेपाल के लोगों को भी नेपाली कहा जाता है। एक छोटे से क्षेत्र के लिए नेपाल की भौगोलिक विविधता बहुत उल्लेखनीय है। यहाँ तराई के उष्ण फाँट से लेकर ठण्डे हिमालय की श्रृंखलाएं अवस्थित हैं। संसार का सबसे ऊँची १४ हिम श्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं जिसमें संसार का सर्वोच्च शिखर सागरमाथा एवरेस्ट (नेपाल और चीन की सीमा पर) भी एक है। नेपाल की राजधानी और सबसे बड़ा नगर काठमांडू है। काठमांडू उपत्यका के अन्दर ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नाम के नगर भी हैं अन्य प्रमुख नगरों में पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगंज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगंज, वीरेन्द्रनगर, त्रिभुवननगर आदि है। वर्तमान नेपाली भूभाग अठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा संगठित नेपाल राज्य का एक अंश है। अंग्रेज़ों के साथ हुई संधियों में नेपाल को उस समय (१८१४ में) एक तिहाई नेपाली क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया को देने पड़े, जो आज भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में विलय हो गये हैं। बींसवीं सदी में प्रारंभ हुए जनतांत्रिक आन्दोलनों में कई बार विराम आया जब राजशाही ने जनता और उनके प्रतिनिधियों को अधिकाधिक अधिकार दिए। अंततः २००८ में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि माओवादी नेता प्रचण्ड के प्रधानमंत्री बनने से यह आन्दोलन समाप्त हुआ। लेकिन सेना अध्यक्ष के निष्कासन को लेकर राष्ट्रपति से हुए मतभेद और टीवी पर सेना में माओवादियों की नियुक्ति को लेकर वीडियो फुटेज के प्रसारण के बाद सरकार से सहयोगी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद प्रचण्ड को इस्तीफा देना पड़ा। गौरतलब है कि माओवादियों के सत्ता में आने से पहले सन् २००६ में राजा के अधिकारों को अत्यंत सीमित कर दिया गया था। दक्षिण एशिया में नेपाल की सेना पांचवीं सबसे बड़ी सेना है और विशेषकर विश्व युद्धों के दौरान, अपने गोरखा इतिहास के लिए उल्लेखनीय रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए महत्वपूर्ण योगदानकर्ता रही है। .
इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान या पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ़ पाकिस्तान भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। 20 करोड़ की आबादी के साथ ये दुनिया का छठा बड़ी आबादी वाला देश है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर रावलपिंडी हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैंः पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा। क़बाइली इलाक़े और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। इन के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (तथाकथित आज़ाद कश्मीर) और गिलगित-बल्तिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित हैं हालाँकि भारत इन्हें अपना भाग मानता है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इक़बाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का ज़िक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1970 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा - पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान रह गया। .
पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का "डेट्राइट" जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। इसा पूर्व 6 वी शताब्धी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। आज, हालाँकि बौद्ध धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैंः हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है किन्तु सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं। .
दीक्षाभूमि, नागपुर यह हिंदू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में सबसे नीचे के पायदान पर रखे गए लोगों द्वारा अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के लिए बीसबीं सदी में चलाया गया आंदोलन है। इसका डॉ॰ भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं द्वारा दलितों के लिए चलाए गए आंदोलनों से गहरा संबंध है। अंबेडकर मानते थे कि दलितों का हिंदू धर्म के भीतर रहकर सामाजिक उत्थान संभव नहीं हो सकता है। इसी विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने १४ अक्टूबर 1956 ई. को अपने 10,00,000 अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उन्होंने अपने समर्थकों को 22 बौद्ध प्रतिज्ञाओं का अनुसरण करने की सलाह दी। इस आंदोलन को श्रीलंकाइ बौद्ध भिक्षुओं का भरपूर समर्थन मिला। .
बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व (बोधिसत्त्व; बोधिसत्त) सत्त्व के लिए प्रबुद्ध (शिक्षा दिये हुये) को कहते हैं। पारम्परिक रूप से महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले को बोधिसत्व माना जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुसार, बोधिसत्व मानव द्वारा जीवन में प्राप्त करने योग्य चार उत्कृष्ठ अवस्थाओं में से एक है। बोधिसत्व शब्द का उपयोग समय के साथ विकसित हुआ। प्राचीन भारतीय बौद्ध धर्म के अनुसार, उदाहरण के लिए गौतम बुद्ध के पूर्व जीवन को विशिष्ट रूप से प्रदर्शित करने के लिए काम में लिया जाता था।http://www.britannica.com/EBchecked/topic/70982/bodhisattva दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब " गौतम बुद्ध " कहलाते हैं, बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करते हुए बोधिसत्व प्राप्त करे और बोधिसत्व के बाद दस बलों या भूमियों को प्राप्त करे। बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है सम्पूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है" (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर न के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं। .
भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायोंः हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 29 राज्यों तथा सात केन्द्र शासित प्रदेशों के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है। भारत के नागरिकों से संबंधित बुनियादी दीवानी और फौजदारी कानून जैसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, आदि मुख्यतः संसद द्वारा बनाया जाता है। संघ और हरेक राज्य सरकार तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका के अन्तर्गत काम करती है। संघीय और राज्य सरकारों पर लागू कानूनी प्रणाली मुख्यतः अंग्रेजी साझा और वैधानिक कानून (English Common and Statutory Law) पर आधारित है। भारत कुछ अपवादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्याय अधिकारिता को स्वीकार करता है। स्थानीय स्तर पर पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया है। भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैंः न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। .
भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। .
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। इसकी स्थापना १ अप्रैल सन १९३५ को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ऐक्ट १९३४ के अनुसार हुई। बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई हैं, उनके द्वारा प्रदान किये गए दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धांत के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक बनाई गई थी। बैंक कि कार्यपद्धती या काम करने शैली और उसका दृष्टिकोण बाबासाहेब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने रखा था, जब 1926 में ये कमीशन भारत में रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फिनांस के नाम से आया था तब इसके सभी सदस्यों ने बाबासाहेब ने लिखे हुए ग्रंथ दी प्राब्लम ऑफ दी रुपी - इट्स ओरीजन एंड इट्स सोल्यूशन (रुपया की समस्या - इसके मूल और इसके समाधान) की जोरदार वकालात की, उसकी पृष्टि की। ब्रिटिशों की वैधानिक सभा (लेसिजलेटिव असेम्बली) ने इसे कानून का स्वरूप देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया गया। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन १९३७ में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन १९४९ से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है। उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने ४ सितम्बर २०१६ को पदभार ग्रहण किया। पूरे भारत में रिज़र्व बैंक के कुल 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांश राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं। मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने ३१ मार्च २०१४ तक सन् २००५ से पूर्व जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया है। .
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भीम जन्मभूमि स्मारक के आम्बेडकर की मुर्ति को पुष्प अर्पित करते हुए, 14 अप्रैल 2016 भीम जन्मभूमि मध्य प्रदेश के महू (डॉ॰ आम्बेडकर नगर) में स्थित भीमराव आम्बेडकर की जन्मस्थली है। आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक सैन्य छावनि महू के काली पलटन इलाके में हुआ था। यहां मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी जन्मस्थली पर एक भव्य स्मारक बनाया है, जिसे 'भीम जन्मभूमि' नाम दिया गया है। स्मारक का उद्घाटन 14 अप्रैल 1991 को 100 वीं आम्बेडकर जयंती के दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा द्वारा हुआ था। स्मारक की रचना वास्तुकार ईडी निमगेड द्वारा की गयी थी। बाद में स्मारक को 14 अप्रैल, 2008 को 117 वीं आंबेडकर जयन्ती के मौके पर लोकार्पित किया था। हर साल, लाखों आम्बेडकरवादी, बौद्ध और पर्यटक आम्बेडकर को अभिवादन करने इस उनके जन्मभूमि स्थान की जगह पर जाते हैं। यह स्थान भोपाल से दो से तीन घंटे और इंदौर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर आम्बेडकर को अभिवादन करने के लिए, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में 125 वीं आम्बेडकर जयंती के दिवस पर दौरा किया था। 2018 में 127 वीं आम्बेडकर जयंती पर भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महू का दौरा करके बाबासाहब आम्बेडकर को अभिवादन किया था। पंचतीर्थ के रुप में भारत सरकार द्वारा विकसित किये जा रहे आम्बेडकर के जीवन से संबंधित पांच स्थलों में से यह एक है। .
भीमराव रामजी आम्बेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ - ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब आम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता; वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और बातचीत में शामिल हो गए, पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। .
मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .
महानतम भारतीय (सर्वेक्षण)
सबसे महान भारतीय या महानतम भारतीय (अंग्रेजीःThe Greatest Indian) एक सर्वेक्षण जो रिलायंस मोबाइल द्वारा प्रायोजित है और सीएनएन आईबीएन और हिस्ट्री चैनल के साथ साझेदारी में, आउटलुक पत्रिका द्वारा आयोजित किया गया था। आधुनिक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपुर्ण योगदान और भारतीयों के जीवन में अद्वितीय असाधारन बदलाव लाने वाला महानतम शख्सियत खोजने के लिए भारत में दि ग्रेटेस्ट इंडियन या सबसे महानतम भारतीय इस कार्यक्रम का जनमत सर्वेक्षण जून 2012 से अगस्त 2012 दौरान आयोजित किया गया था, इसके विजेता, डॉ॰ भीमराव आंबेडकर हैं, 11 अगस्त को इसकी घोषणा हुई थी। इस सर्वेक्षण में करीब 2 करोड़ वोटिंग डॉ॰ आंबेडकर को हुई थी। इस सर्वेक्षण में पहले भारत के विभिन्न छेत्रों (जैसे, कला, राजनिती, अर्थशास्त्र, समाज सेवा, खेल, उद्योग, संगीत आदी) के 100 महान हस्तियों में से ज्यूरी के जरीये उनमें से 50 महान भारतीयों को चूना गया। बाद में 50 नामों में से वोटिंग के जरीये जवाहरलाल नेहरू से ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तक के 10 नाम रखे गये और एक बार फिर सभी नागरिकों द्वारा की गई अंतरराष्ट्रीय ऑनलाईन वोटिंग ओपन की गई, इसमें सर्वाधिक मतदान या मतदान डॉ॰ भीमराव आंबेडकर को मिले, वे दस में नंबर वन पर ही चुने गयें। भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे महान या महानतम भारतीय डॉ॰ भीमराव आंबेडकर हैं। वे स्वतंत्र्यता पूर्व के भी महानतम भारतीय है। महानतम ब्रिटेन स्पिन (Greatest Britons spin-offs) नापसंद के अन्य संस्करणों के विपरीत, महानतम भारतीय इतिहास के सभी समय अवधि से लोगों को शामिल नहीं किया था। दो कारणों से इस चुनाव के लिए दिए गए थे। इसमें महात्मा गांधी को नहीं लिया गया, उन्हें बिना सर्वेक्षण के महान बना दिया, नहीं तो विशेष रूप से डॉ.
महूँ (Mhow), अधिकृत नाम डॉ॰ आम्बेडकर नगर भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के इन्दौर जिले का एक छोटा सा छावनी कस्बा है। यह मुंबई-आगरा रोड पर इंदौर शहर के दक्षिण में 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर की जन्मभूमि है। सन् 2003 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस शहर का नाम बदलकर 'डॉ॰ आम्बेडकर नगर' रख दिया गया है। महू में भारतीय थलसेना के कई इकाइयाँ है। यहाँ पर इन्फैंन्ट्री स्कूल, सेना का संचार प्रौद्योगिकी महाविद्यालय (MCTE) और थलसेना का युद्ध महाविद्यालय स्थित हैं। .
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंंबई (पूर्व नाम बम्बई), भारतीय राज्य महाराष्ट्र की राजधानी है। इसकी अनुमानित जनसंख्या ३ करोड़ २९ लाख है जो देश की पहली सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है एवं यह पुल द्वारा प्रमुख भू-खंड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। मुम्बई का तट कटा-फटा है जिसके कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आनेवाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्वप्रथम मुम्बई ही आते हैं इसलिए मुम्बई को भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। मुम्बई भारत का सर्ववृहत्तम वाणिज्यिक केन्द्र है। जिसकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 5% की भागीदारी है। यह सम्पूर्ण भारत के औद्योगिक उत्पाद का 25%, नौवहन व्यापार का 40%, एवं भारतीय अर्थ व्यवस्था के पूंजी लेनदेन का 70% भागीदार है। मुंबई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज, नेशनल स्टऑक एक्स्चेंज एवं अनेक भारतीय कम्पनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुम्बई में अवस्थित हैं। इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यवसायिक अपॊर्ट्युनिटी, व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करती है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है। .
म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .
लंदन (London) संयुक्त राजशाही और इंग्लैंड की राजधानी और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। ग्रेट ब्रिटेन द्वीप के दक्षिण पूर्व में थेम्स नदी के किनारे स्थित, लंदन पिछली दो सदियों से एक बड़ा व्यवस्थापन रहा है। लंदन राजनीति, शिक्षा, मनोरंजन, मीडिया, फ़ैशन और शिल्पी के क्षेत्र में वैश्विक शहर की स्थिति रखता है। इसे रोमनों ने लोंड़िनियम के नाम से बसाया था। लंदन का प्राचीन अंदरुनी केंद्र, लंदन शहर, का परिक्षेत्र 1.12 वर्ग मीटर (2.9 किमी2) है। 19वीं शताब्दी के बाद से "लंदन", इस अंदरुनी केंद्र के आसपास के क्षेत्रों को मिला कर एक महानगर के रूप में संदर्भित किया जाने लगा, जिनमें मिडलसेक्स, एसेक्स, सरे, केंट, और हर्टफोर्डशायर आदि शमिल है। जिसे आज ग्रेटर लंदन नाम से जानते है, एवं लंदन महापौर और लंदन विधानसभा द्वारा शासित किया जाता हैं। कला, वाणिज्य, शिक्षा, मनोरंजन, फैशन, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, मीडिया, पेशेवर सेवाओं, अनुसंधान और विकास, पर्यटन और परिवहन में लंदन एक प्रमुख वैश्विक शहर है। यह दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय केंद्र के रूप में ताज पहनाया गया है और दुनिया में पांचवां या छठा सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र जीडीपी है। लंदन एक है विश्व सांस्कृतिक राजधानी। यह दुनिया का सबसे अधिक का दौरा किया जाने वाला शहर है, जो अंतरराष्ट्रीय आगमन द्वारा मापा जाता है और यात्री ट्रैफिक द्वारा मापा जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा शहर हवाई अड्डा है। लंदन विश्व के अग्रणी निवेश गंतव्य है, किसी भी अन्य शहर की तुलना में अधिक अंतरराष्ट्रीय खुदरा विक्रेताओं और अल्ट्रा हाई-नेट-वर्थ वाले लोगों की मेजबानी यूरोप में लंदन के विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा संस्थानों का सबसे बड़ा केंद्र बनते हैं। 2012 में, लंदन तीन बार आधुनिक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन गया। लंदन में लोगों और संस्कृतियों की विविधता है, और इस क्षेत्र में 300 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। इसकी 2015 कि अनुमानित नगरपालिका जनसंख्या (ग्रेटर लंदन के समरूपी) 8,673,713 थी, जो कि यूरोपीय संघ के किसी भी शहर से सबसे बड़ा, और संयुक्त राजशाही की आबादी का 12.5% हिस्सा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 9,787,426 की आबादी के साथ, लंदन का शहरी क्षेत्र, पेरिस के बाद यूरोपीय संघ में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला है। शहर का महानगरीय क्षेत्र यूरोपीय संघ में 13,879,757 जनसंख्या के साथ सबसे अधिक आबादी वाला है, जबकि ग्रेटर लंदन प्राधिकरण के अनुसार शहरी-क्षेत्र की आबादी के रूप में 22.7 मिलियन है। 1831 से 1925 तक लंदन विश्व के सबसे अधिक आबादी वाला शहर था। लंदन में चार विश्व धरोहर स्थल हैंः टॉवर ऑफ़ लंदन; किऊ गार्डन; वेस्टमिंस्टर पैलेस, वेस्ट्मिन्स्टर ऍबी और सेंट मार्गरेट्स चर्च क्षेत्र; और ग्रीनविच ग्रीनविच वेधशाला (जिसमें रॉयल वेधशाला, ग्रीनविच प्राइम मेरिडियन, 0 डिग्री रेखांकित, और जीएमटी को चिह्नित करता है)। अन्य प्रसिद्ध स्थलों में बकिंघम पैलेस, लंदन आई, पिकैडिली सर्कस, सेंट पॉल कैथेड्रल, टावर ब्रिज, ट्राफलगर स्क्वायर, और द शर्ड आदि शामिल हैं। लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय, नेशनल गैलरी, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, टेट मॉडर्न, ब्रिटिश पुस्तकालय और वेस्ट एंड थिएटर सहित कई संग्रहालयों, दीर्घाओं, पुस्तकालयों, खेल आयोजनों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों का घर है। लंदन अंडरग्राउंड, दुनिया का सबसे पुराना भूमिगत रेलवे नेटवर्क है। .
श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजीःCeylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .
संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) (यू एस ए), जिसे सामान्यतः संयुक्त राज्य (United States) (यू एस) या अमेरिका कहा जाता हैं, एक देश हैं, जिसमें राज्य, एक फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, पाँच प्रमुख स्व-शासनीय क्षेत्र, और विभिन्न अधिनस्थ क्षेत्र सम्मिलित हैं। 48 संस्पर्शी राज्य और फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, कनाडा और मेक्सिको के मध्य, केन्द्रीय उत्तर अमेरिका में हैं। अलास्का राज्य, उत्तर अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसके पूर्व में कनाडा की सीमा एवं पश्चिम मे बेरिंग जलसन्धि रूस से घिरा हुआ है। वहीं हवाई राज्य, मध्य-प्रशान्त में स्थित हैं। अमेरिकी स्व-शासित क्षेत्र प्रशान्त महासागर और कॅरीबीयन सागर में बिखरें हुएँ हैं। 38 लाख वर्ग मील (98 लाख किमी2)"", U.S. Census Bureau, database as of August 2010, excluding the U.S. Minor Outlying Islands.
हंगरी (हंगेरियाईः Magyarország), आधिकारिक तौर पर हंगरी गणराज्य (हंगेरियाईः Magyar Köztársaság, शाब्दिक अर्थ "हंगरी गणराज्य"), मध्य यूरोप के पैनोनियन बेसिन में स्थित एक स्थल-रुद्ध देश है। इसके उत्तर में स्लोवाकिया, पूर्व में यूक्रेन और रोमानिया, दक्षिण में सर्बिया और क्रोएशिया, दक्षिण पश्चिम में स्लोवेनिया और पश्चिम में ऑस्ट्रिया स्थित है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर बुडापेस्ट है। हंगरी, यूरोपीय संघ, नाटो, ओईसीडी और विसेग्राद समूह का सदस्य है और एक शेंगन राष्ट्र है। इसकी आधिकारिक भाषा हंगेरियाई है, जो फिन्नो-उग्रिक भाषा परिवार का हिस्सा है और यूरोप में सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली गैर भारोपीय भाषा है। हंगरी दुनिया के तीस सबसे अधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है और प्रति वर्ष लगभग 8.6 लाख पर्यटकों (2007 के आँकड़े) को आकर्षित करता है। देश में विश्व की सबसे बड़ी गर्म जल की गुफा प्रणाली स्थित है और गर्म जल की सबसे बड़ी झीलों में से एक हेविज़ झील यहीं पर स्थित है। इसके साथ मध्य यूरोप की सबसे बड़ी झील बलातोन झील भी यहीं पर है और यूरोप के सबसे बड़े प्राकृतिक घास के मैदान होर्टोबैगी भी हंगरी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। हंगरी की सरकार एक संसदीय गणतंत्र है, जिसे 1989 में स्थापित किया गया था। हंगरी की अर्थव्यवस्था एक उच्च-आय अर्थव्यवस्था है और कुछ क्षेत्रों में यह एक क्षेत्रीय अगुआ है। .
कोई विवरण नहीं।
बौद्ध अनुयायीओं के प्रार्थना स्थल या उपासनास्थल मठों को विहार कहते हैं। विहारों में बुद्ध प्रतिमा होती है। विहार में बौद्ध भिक्षु निवास करते है। उच्च शिक्षा में धार्मिक विषयों के अलावा अन्य विषय भी शामिल थे, और इसका केन्द्र बौद्ध विहार ही था। इनमें से सबसे प्रसिद्ध, बिहार का नालन्दा विश्वविद्यालय था। अन्य शिक्षा के प्रमुख केन्द्र विक्रमशिला और उद्दंडपुर थे। ये भी बिहार में ही थे। इन केन्द्रों में दूर-दूर से, यहाँ तक की तिब्बत से भी, विद्यार्थी आते थे। यहाँ शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती थी। इन विश्वविद्यालयों का खर्च शासकों द्वारा दी गई मुद्रा और भूमि के दान से चलता था। नालन्दा को दो सौ ग्रामों का अनुदान प्राप्त था। बौद्ध धर्म में बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने के स्थान को विहार कहते हैं। यही विहार जो तुर्कों द्वारा दिया गया है। वह बाद में बिहार हो गया। बिहार शब्द विहार का अपभ्रंश रूप है। यह शब्द बौद्ध (मठों) विहारों कि क्षेत्रीय बहुलता के कारण (बिहार) तुर्कों द्वारा दिया हुआ नाम है। बौद्ध विहार एकनाल में वनवाया गया था। .
कोलंबिया विश्वविद्यालय अमरीका के नया यॉर्क प्रांत में स्थित एक महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय है। श्रेणीःअमेरिकी विश्वविद्यालय श्रेणीःन्यू यार्क.
१४ अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १०४वॉ (लीप वर्ष में १०५ वॉ) दिन है। वर्ष में अभी और २६१ दिन बाकी है। .
आंबेडकर जयंती 80 संबंध है और भीमराव आम्बेडकर 161 है। वे आम 29 में है, समानता सूचकांक 12.03% है = 29 / (80 + 161)।
यह लेख आंबेडकर जयंती और भीमराव आम्बेडकर के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखेंः
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कुछ महीने पहले .... .
ऑफिस में आकर कंप्यूटर ओन ही किया था की.... कंप्यूटर की स्क्रीन पे इक मेसेज डिस्पले होने लगा ...अर्जेंट मीटिंग इन 10मिनट्स ...हमारे डायरेक्टर का इनविटेशन आया था.... सारे डिपार्टमेंट चीफ और प्रोजेक्ट मेनेजर कांफ्रेंस रूम में डिस्कशन केलिए तुरंत आये...मैं कांफ्रेंस रूम जाते हुए यही सोच रहा था.... की ,यह कौन सो अर्जेंट मीटिंग का इनविटेशन आगया है .... जिसे सारी मीटिंग के ऊपर हायर प्रायोरिटी में रखा गया है .... मीटिंग में डायरेक्टर बहुत परेशान सा लग रहा था.... .
डायरेक्टर ने हम सबसे कहा की......इक प्रोजेक्ट जिसके ऊपर ना जाने कितने मिलिउन डोलोर्स और तीन चार साल बर्बाद हो चुके थे! उसकी डेड लाइन अपर मैनेजमेंट से आ गई है... अगर प्रोजेक्ट इस साल डिलीवर नहीं हुआ तो डिपार्टमेंट का नाम बहुत ख़राब होगा और आने वाले सालो में फंडिंग की भी कटुती हो जाएगी.... जिससे सब के इन्क्रीमेंट और प्रमोशन पर असर पड़ेगा....
पास्ट में उस प्रोजेक्ट से ,कई प्रोजेक्ट मेनेजर अपना पल्ला झाड़ चुके थे.... . ऐसे में हायर मैनेजमेंट का प्रेशर था की.... इसे जल्दी से जलदो ख़त्म किया जाए ... पर कोई भी मेनेजर उस प्रोजेक्ट को छुने के लिए राजी ना था...ऐसे में डायरेक्टर बड़ी मज़बूरी में सबकी तरफ देख रहा था की....
किसे नया बलि का बकरा बना कर वोह अपनी कुर्सी बचाये .... .
ऐसे में सब की निगाह उधर घूम गयी जब इक आवाज आई......,
सर .... . यह प्रोजेक्ट आपके दिए हुए समय में मैं पूरा कर सकता हूँ! ... यह कौन नया बलि का बकरा खुद शहीद होने आ गया... ऐसा सोच मेरी और सब लोगो की नजर उधर की तरफ घुम गयी.......
सबकी आँखे आश्चर्य से फट गयी, जब सबने देखा उस चुनोती को लेने वाला हमारे डिपार्टमेंट का इक मात्र नेत्रहीन प्रोजेक्ट मेनेजर मैक्स है...सबके मन में इक ही ख्याल आ रहा था . . . .
यह आँखों से तो अँधा है ही पर अकल का भी अँधा लगता है.... .
जब कोई प्रोजेक्ट 3 साल में 20% ख़त्म नहीं हुआ तो ......1 साल में कैसे पूरा होगा? ... उसकी हाँ सुन डायरेक्टर इक पल के लिए खुश हुआ .... . पर यह ख़ुशी,.... .
इक नेत्रहीन मेनेजर को देख काफूर हो गयी, उसे लगा बलि बकरा तो मिला गया, पर यह बकरा कल कटा भी तो उसका दामन भी लपेटे में आ जायेगा ...पर और कोई चारा ना देख डायरेक्टर ने भी आधे अधूरे मन से उस प्रोजेक्ट की कमांड मैक्स के हाथो में सोंप दी.... .
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मेने और मैक्स ने पहले इक प्रोजेक्ट में साथ-साथ काम किया हुआ था! उसकी और मेरी थोड़ी सी जान पहचान थी ... मैं बोला यार तूने यह क्या कर दिया? . . उस प्रोजेक्ट का ना तो प्रोजेक्ट प्लान सही ढंग से बना है , ना ही उसमे पुरे रिसोर्सेज है और न ही उसका स्कोप क्लियर है ...उसमे लफड़े ही लफड़े है! ! !
मुझे मैक्स की बात सुन बड़ी हैरानी हुयी ... पर यह हैरानी जल्दी ही हकीकत में बदल गयी, जब इक हफ्ते बाद मैक्स ने उस प्रोजेक्ट का हाई लेवल व्यू का प्रेजेंटेशन देकर सबको कन्विंस और इम्प्रेस कर दिया की ,यह काम इतना कठिन नहीं था... जितना इसे बना दिया गया था .... मैं मैक्स से बहुत इम्प्रेस हुआ .... .
मैं उसे उसकी सिट पे बधाई देने गया की उसने 2 साल का काम सिर्फ इक हफ्ते में कर दिखाया ... मैक्स बोल यार....
मुझे हैरानी इस बात की है इतने सारे लोग इतनी बेसिक मिस्टेक कैसे कर सकते है?
जब कोई आँख वाला जिस काम को ना बोलता है तो उसे करके वोह अपने अन्दर इक नया जोश महसूस करता है की.... .
उसने बताया . . जब वोह पैदा हुआ था उसकी आँखे कुछ साल बाद हमेशा हमेशा के लिए ख़राब हो गयी .... घर वालो पे इतने पैसे ना थे की किसी की आँखे हॉस्पिटल में डोनेशन में लेलेते . . उसने बचपन में पढने के लिए बहुत मेहनत की .... उसका स्कूल जो सिर्फ नेत्रहीन बच्चो के लिए था... उसके घर से 3मिल्स दूर था वोह 6 साल की उम्र से रोज खुद पैदल जाता था .... और रास्ता याद रखने के लिए रास्ते में पड़ने वाले हर पेड़ पौधे , दीवार और कंही कंही सडक को छुता हुआ उनपे अपना निशान बनाता जाता या उन्हें सूंघ कर पहचान बनता .... .
मैक्स बोला ......बचपन से लेकर कॉलेज जाने तक मुझे चीजे हमेशा बहुत ध्यान से देखने समझने और उनकी विवेचना करने की आदत सी हो गयी है ...इस प्रोजेक्ट की कुछ मीटिंग मेने पहले अटेंड की थी और मेने पुराने प्रोजेक्ट मेनेजर और आर्किटेक्ट को सलाह भी दी थी.... पर किसी ने उसपे ध्यान नहीं दिया....
तब भी, मैं इस प्रोजेक्ट को बार बार अपने मन में देख और समझ रहा था.... .
मैक्स बोल .... . जिन्दगी में स्कूल से लेकर कॉलेज तक बस यही सुनता आया हूँ! ! !
अरे यह तो अँधा है, यह भला क्या कर लेगा? .... . इसे दिखाई तो देता नहीं फिर यह क्या प्लान बनाएगा और क्या किसी को समझाएगा ? ....
उसकी बातो ने मुझे इक नयी उर्जा दी और मुझे लगा....
जब इक नेत्रहीन इन्सान जीवन में इतनी कठनाई होने के बावजूद अपनी जिन्दगी के प्रति इतना आशावादी है तो क्या कारण है हमारे निराश होने का ?
इस घटना के बाद, मेरी और मैक्स की बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी , मैं जिन्दगी को उसके नजरिये से देखता तो चीजे बहुत आसन लगती और कोई भी समस्या ऐसी ना लगती जिसका हल ना खोज जा सके......उसके लड़ने की इच्छा शक्ति ने इक नया जोश और जूनून मेरे अन्दर में भर दिया......देखते देखते कई दिन यूँही बीत गए ....
बहुत दिन से देख रहा था की मैक्स ऑफिस नहीं आ रहा ...मुझे लगा शायद वोह छुट्टी पे गया हो.... पर आज ऑफिस में उसके बॉस को देखा तो रहा नहीं गया और उससे पूछ बैठा की, क्या मैक्स छुट्टी पर है ? .... .
उसने मुझे अजीब सी नजर से देखा और बोला.... . शायद तुम्हे पता नहीं है? मैक्स हॉस्पिटल में है. . उसको हाई माइग्रेन की प्रॉब्लम हो गयी है ...मुझे यह खबर सुन झटका सा लगा .... .
भगवान भी बड़ा बेरहम है दुनिया में रोज हजारो मरते है जीते है, पर किसी को बार बार मारना और फिर जिन्दा करने की सजा, मेरी समझ से परे है ?
पुरे दिन काम में मन ना लगा . . जैसे ही शाम हई ऑफिस से सीधा हॉस्पिटल मैक्स को देखने चला गया .... हॉस्पिटल के काउंटर पे उसका रूम पुछा और उधर की तरफ चल दिया ...अभी उसके रूम के पास पहुंचा ही था की उसके रूम के बहार कुछ डॉक्टर और नर्स खड़े आपस में बात करते दिखाई दिए .... . मुझे वंहा आता देख .... उन्होंने पुछा ... क्या तुम इसके रिश्तेदार या दोस्त हो? . . मेने पुछा क्या बात है?
ऑफिस के अन्दर पहुच उस डॉक्टर की टीम ने मुझे घेर लिया और बोले ....
मेरी आहट सुन उसने मुझे पहचान लिया और वोह ख़ुशी से झूम सा उठा... . .
ऐसा लगता था जैसे वोह सिर्फ मेरे आने का ही इन्तजार कर रहा था .... .
मैं उसके बेड के पास पड़ी इक कुर्सी खिंच बैठ गया ...उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहा . . क्या बात है आज तू कुछ बोल नहीं रहा ? मेने बड़े रुंधे से गल्ले में कहा क्या बोलू . . तुझे पता है की तेरा ऑपरेशन होना है . . बोला यार ऑपरेशन की चिंता से ज्यादा तो मुझे अपने विटनेस की चिंता थी... अब तू आ गया है तो तूने उसपे साइन तो कर दिया होगा.... मैं बोला हाँ मेने कर दिया है. . पर तेरी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी की... इतनी परेशानी उठाने के बाद भी तू बिलकुल परेशान नहीं है.... .
इक ग्लैडिएटर जो सिर्फ लड़ने के लिए पैदा होता है वोह क्यों डरेगा की अगली लड़ाई में उसकी मौत होगी या जिन्दगी नसीब होगी....... .
और इस बार तो दोनों के चांस 50-50 हैं तो गम किस बात का . . आयेंगे फिर से द्वारा कोई ऐसा प्रोजेक्ट करने जो कोई छूना भी ना चाहता हो ....
शायद पत्थर के भगवान से सिर्फ पत्थर दिल की ही उम्मीद की जा सकती है .... .
की अगर खुदा कंही है तो, मैं उससे पूछता की उसका कसूर क्या है ?
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धैर्य्यवती हो उसके पुत्र से जितने अच्छे अच्छे कार्य परमात्मा करावे, उतने ही थोड़े हैं। इनके जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था । संन्यासी होने पर पूर्वनाम बदल कर विवेकानन्द नाम
रखा गया ।
बालापन में स्वामी विवेकानन्द ने नरेन्द्रनाथ रहते समय ही अपनी अनुपम विचार-शक्ति, प्रखर बुद्धि और चमत्कारिक प्रतिभा से सब को चकित और स्तम्भित कर दिया था। "होनहार बिरवान के होत चीकने पात" इस लोकोक्ति के अनुसार छात्रावस्था में ही इन्होंने यूरोपियन दर्शन शास्त्र में अच्छी जानकारी प्राप्त करली थी। जब वे कालेज में पढ़ते थे तब ही उन्होंने हर्कट स्पेन्सर के दार्शनिक विचारों की आलोचना की और अपनी वह आलोचना हर्बर्ट स्पेन्सर के पास भेज दी। महात्मा स्पेन्सर इनकी आलोचना देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए और सत्य के अनुसन्धान करने के लिये इनको उत्साहित किया ।
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गुरू से भेंट सन् १८८४ से २८८६
कालेज में अध्ययन करते समय यह नास्तिक हो गये थे। उस समय इनका ईश्वर, जीव इत्यादि पर कुछ विश्वास नहीं
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गुरु से भेंट
रहा। उन दिनों बङ्गाल में ही नहीं सारे भारतवर्ष में धर्म विप्लव मच रहा था । बङ्गदेश में कृश्चियन मत की उत्ताल तरङ्गों को रोकने के लिये ब्रह्मसमाज की नींव पड़ चुकी थी । कृष्णमोहन बनर्जी, कालीचरण बनर्जी, माईकेल मधुसूदन दत्तादि जैसे विद्वान् भी प्रभु ईसा मसीह के शरणागत हो चुके थे । कहने को ब्रह्मसमाज क्रिश्चियन मत की उत्ताल तरङ्गों के रोकने को स्थापित हुआ था, । परन्तु कुछ परिवर्तन रुप में उसके द्वारा कृश्चियन मत के लिये नयी मत के लिये नयी सड़क बनने लग गई थी। जिसकी स्थिति अभी तक ज्यों की त्यों है। ब्रह्म समाज के प्रवीण नायक, बाबू केशवचन्द्र सेन की वाक्यपटुता के प्रभाव से हिन्दुओं के धार्मिक विचार और विश्वास में परिवर्तन हो गया था। ऐसे कठिन धर्म विप्लव के समय में स्वामी विवेकानन्द भी ब्रह्मसमाज के विचारों की ओर झुक गये थे। परन्तु उनकी ब्रह्मसमाज से कुछ तृप्ति नहीं हुई। इस बीच में उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी ( विश्वविद्यालय ) से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करली थी । और कानून की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, साथ ही अपने संशयों की निवृत्ति के लिये कितने ही व्यक्तियों के पास गये पर कहीं भी उनकी शङ्का का समाधान नहीं हुआ । एक दिन उनके पितृव्य ( चाचा ) जो राम कृष्ण परमहंस के शिष्य थे । उनको अपने साथ परमहंसजी के पास लेगये ।
*महात्मा रामकृष्ण परमहंस एक पहुंचे हुए साधु थे । आज कल के कनफटे चिमटा हाथ में लिये, "दाता भला करे " कहने वाले साधुओं की तरह नहीं थे। जिस तरह मथुरा के प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती को स्वामी दयानन्द
श्री रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द के गुरु थे। स्वामी विवेकानन्द तथा उनके साथी श्री रामकृष्ण परमहंस को अवतार मानते हैं । परन्तु बास्तव में रामकृष्ण परमहंस ने कभी स्वयं अवतार होने का दावा नहीं किया था। सन् १९९० में श्री के प्रसिद्ध लेखक और ब्रह्मसमाज के प्रख्यात नायक पं० शिवनाथ शास्त्री एम० ए० ने माडर्न रिव्यू में "Men as I have seen" शीर्षक लेखावली लिखी थी जिसमें उन्होंने बङ्गाल के प्रसिद्ध पुरुषों के दर्शनों का उनके हृदय पर जो प्रभाव पड़ा था वह दिखलाया था उक्त लेखावली में उन्होंने उक्त परमहंस जी का भी वर्णन किया है जो नवम्बर सन् १९९० के मार्डन रिव्यू के में छुपा है। एक बार उक्त परम हंस जी की पीड़तावस्था में पंडित शिवनाथ शास्त्री उनसे मिलने गये थे। तब तो उक्त शास्त्रीजी ने परमह सजी से कहाःAs there are many edition of a book so there have been many editions of God Almighty and your disciples are about to make you a new one. He too smiled and said:-Just fancy God Almighty dying of a cancer in the throat what great fools these fellows must be.The Modern Review of November 1910. fa vifa es पुस्तक के कितने ही संस्करण होते हैं उसी भांति सर्व शक्तिमान जगदीश्वर के भी बहुत से संस्करण हुए हैं और अब आपके शिष्यवर्ग आप का नया संस्करण करने वाले हैं । इस पर परमह सजी हंसे और कहाः-सोचो तो सही सर्वशक्तिमान् परमेश्वर गले में फोड़ा होने के कारण मर रहा है ये मनुष्य कैसे मूर्ख हैं।
गुरू से भेंट
सरस्वती को देख कर, उनके द्वारा अष्टाध्यायी और महाभाष्य के भारतवर्ष में पठन पाठन की प्रणाली के प्रचार की आशा हुई थी वैसे ही श्री रामकृष्ण परमहंस को हमारे चरित्रनायक नरेन्द्रनाथ दत्त ( स्वामी विवेकानन्द ) को देख कर यह आशा हुई कि इसके द्वारा मेरे सिद्धान्तों का प्रचार होगा। श्री रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्रनाथ दत्त को देखते ही पूछाः- "क्या तुम धर्म विषयक कुछ भजन गा सकते हो ?" इसके उत्तर में नरेन्द्रनाथ दत्त ने कहाः- "हां गा सकता हूं" । पीछे उन्होंने दो तीन भजन अपनी स्वाभाविक मधुर ध्वनि में गाये। उनके भजन गाने से परमहंसजी बहुत प्रसन्न हुये । तब से वे परमहंसजी का सत्सङ्ग करने लगे और उनके शिष्य तथा वेदान्त मत के द्रुढ़ अनुयायी हो गये थे ।
सन् १८८६ का वर्ष महात्मा रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों के लिये ही नहीं किन्तु समस्त भारतवर्ष के लिये बुरा था उस वर्ष की १६वीं अगस्त को महात्मा रामकृष्ण परमहंस इस भारतमाता की गोद खाली कर गये। उनके शिष्य और भक्तों को उनकी वियोग वेदना सहन करनी पड़ी। परमहंसजी के देहान्त के कारण समस्त धर्मानुरागियों में शोक की ज्वाला प्रज्वलित हो गई थी ।
गुरू स्मारक
उनके देहान्त हो जाने के पश्चात् उनकी ग्रेज्यूएट शिष्य मंडली को उनके वेदान्त सम्बन्धी विचारों के प्रचार करने की अपरिमित लालसा हुई। जिस युवावस्था में हतभाग्य इस देश के नवयुवकों को भोग विलास के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं है वहां रामकृष्ण परमह स के नवयुवक शिष्यों ने अपनी तरुणावस्था का कुछ विचार न करके सांसारिक माया से मोह हटा लिया और अपने गुरु के उपदेशों के प्रचार करने की असीम चेष्टा करने लगे। उन्होंने अपने समस्त सुख चैन को लात मार कर हिन्दू जाति और भारतवर्ष की सेवा करने की प्रतिज्ञा की । परमहंस जी की ग्रेज्यूएट शिष्य-मंडली ने अपने पहले नाम बदल कर विवेकानन्द अभयानन्द ब्रह्मानन्द, रामकृष्णानन्द, अद्वयानन्द, त्रिगुणातीतानन्द, निरंजना नन्द आदि नवीन नाम धारण कर लिये । हमारे चरित्र नायक नरेन्द्रनाथ दत्त ने अपना नाम विवेकानन्द रखा ।
अज्ञातवास और भारत भ्रमण
सब से पहले स्वामी विवेकानन्द हिमालय शिखर पर छः वर्ष तक एकान्तवास में रहे। फिर वहांसे तिब्बत गये वहां
उन्हों ने बौद्धधर्म सम्बन्धी जानकारी प्राप्त की । फिर भारतवर्ष में जहां तहां उपदेश करते रहे । इस भ्रमण में वह राजपूताने की प्रसिद्ध रियासत खेतड़ी गये थे। उस समय उन्हों ने भारतवर्ष में दूर दूर तक भ्रमण किया था । मदरास और पश्चिमी किनारे त्रिवेन्डुम तक गये थे। जहां कहीं गये, वहीं उन्हें नव्य भारत के निर्माण करने में सफलता प्रात हुई थी ।
किन्तु स्वामी विवेकानन्द के विकास होने का कारण शिकागो की रिलिजस पार्लियामेंट (धर्मसम्मेलन) थी * श्री
* शिकागो में स्वामी विवेकानन्द की सफलता सुनकर थियोसोफिकल सोसाईटी ने भी वाह वाह लूटनी चाही थी । यह अफ़वाह थी कि अमेरिका में स्वामी विवेकानन्द को थियोसोफिकल सोसाईटी के कारण सफलता प्राप्त हुई। स्वयं स्वामी विवेकानन्द को मदरास में इस चर्चा का अपनी वक्तृता में प्रतिवाद करना पड़ा था। वहां पर उन्हों ने "My plane of Campaign" शीशंक जो वक्तृता दी थी उसमें स्पष्ट कहा थाः 'There s another talk going round that the Theosophists helped the little achievements of mine in America and in England. I have to tell you in plain words that every bit of it is wrong, every bit of it (From Columbo to Almora, page 117. ) इसका भावार्थ यह है
रामनाथ के स्वर्गीय महाराज ने स्वामी जी को भेजने का खर्च
उठाया था ।
देशी भाषा के समाचार पत्रों में भेड़ियाघसान बहुत दिनों से चली आती है। हिन्दी भाषा के कई समाचार पत्र तो बिना किसी परिणाम को पहुंचे ही प्रवल विरोध करने को उतारू हो कि चारों ओर यह चर्चा हो रही है कि इङ्गलेंड और अमेरिका में मुझे जो किं चित् मात्र सफलता प्राप्त हुई है उस में थियोसोफिस्टों ने सहायता दी है । इस विषय में मुझे आप लोगों से स्पष्ट कह देना है कि यह चर्चा नितान्त अशुद्ध और सत्य है। श्रागे इस बृत्तान्त से पता लगता है थियोसोफिस्टों ने स्वामी जी को सहायता देने के स्थान में उनके काम में बाधा उपस्थित करने का प्रयत्न किया होगा । यद्यपि उन्हों ने थियोसोफ़िस्टों के विरोध करने के विषय में स्पष्ट नहीं कहा हैं तथापि आगे उन्होंने जो कुछ कहा है, उससे ऐसी ध्वनि निकलती है। स्वामीजी के शब्द ये हैंः
"We hear so much talk in this world of libral ideas and sympathy with differences of opinion, that is very good, but as a fact we find that one sympathises with another so long as the other believes in everything he has got to say, as soon as he dares to differ, that sympathy is gone, that love vanishes. There are other s again, who have their own axes to grind and if any arises in a country which prevents the grinding of their own axes, their hearts burn, any amount of hatred comes out, aud they do not know, what to do ?
जाते हैं । जो पत्र सम्पादक काशी नरेश के विलायत यात्रा की व्यवस्था देने पर भी अपने पत्र में मिथ्या समाचार छाप देते हैं कि उन्होंने व्यवस्था नहीं दी और जब काशी नरेश की व्यवस्था उनकी सेवा में पहुंचाई जावे तो भी वे अपनी बात का प्रतिवाद छापना उचित नहीं समझते हैं तब ऐसे समाचार पत्रों से आशा ही क्या की जा सकती थी ? ऐसे संङ्कीर्ण नीतिवाले समाचार पत्रों ने स्वामी विवेकानन्द के अमेरिका जाने का प्रतिवाद किया तो आश्चर्य ही क्या है ? हिन्दी के स्वर्गीय एक "कोविद रत्न" नै तो टेसू लिखकर ही विवेकानन्द की दिल्लगी उड़ाई थी। इस पर उदार हृदय पाठकों को क्षुब्ध नहीं होना चाहिये । क्योंकि आज कल भी हिन्दी भाषा के कितने ही समाचार पत्रों के ऐसे ऐसे सभ्य और शिक्षित सम्पादक हैं, जो अपने प्रतिवादियों को" टेसू की उम्मेदवारी या "होली का नाच" लिखकर गालियां दिया करते हैं। कितने ही ऐसे सम्पादक हैं जो हिन्दू समाज से पुरानी कुप्रथाओं को उठाने में पाप समझते हैं हिन्दी ही के पत्र क्यों बङ्गभाषा तथा उर्दू के समाचार पत्र भी इस रोग से मुक्त नहीं है । अतएव पुरानी चाल के अंग्रेज़ी भाषा के समाचार पत्रों ने भी स्वामी विवेकानन्द की विलायत यात्रा का प्रवल प्रतिवाद किया था, पर इस विरोध से स्वामी विवेकानन्द की यात्रा में कुछ रुकावट नहीं हुई। वे किसी विरोध बाधा से भयभीत न होकर
PASTAJAGIONCHE CARGAIRAKOMES KELSKAZIN
"करतल भिक्षा, तरुतल वासा" इस सिद्धान्त को धारण करके जापान होते हुए अमेरिका पहुंच ही तो गये ।
कहा जाता है, परमेश्वर उसकी सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करता है। जब स्वामी विवेकानन्द अपने आत्मिक बल के सहारे अमेरिका जाने को तैयार हुए तो परमेश्वर ने भी उनको सहायता दी । अमेरिका में पग रखते ही उनके धैर्य की परीक्षा का समय उपस्थित हुआ। जिस समय वे अमेरिका पहुंचे, उस समय उनके पास जो थोड़ा सा रुपया था, निबट गया। वहाँ उनके भूखे मरने की नौबत तक आगई थी। वहां अनेक कठिनाइयों से सामना करना पड़ा । सम्भव है इसी लिये स्वामी जी ने अपने एक व्याख्यान में कहा थाःसंसार में जितने प्रसिद्ध महापुरुष हुए हैं, यदि ध्यान देकर उनके चरित्र पढ़ोगे तो तुमको मालूम होगा कि दुःख ने विशेष करके उनके जीवन को उच्च और उदार बनाने में बहुत बड़ा काम किया है। दुःख ने सुख की अपेक्षा उनको उत्तम शिक्षायें दीं, निर्धनता ने सधनता की अपेक्षा उनको परिश्रमी और सहनशील बनाया। निन्दा और अनादर के
थपेड़ों ने प्रशंसा और श्लाघा की अपेक्षा उनकी छिपी हुई आन्तरिक योग्यता को अधिक उभरने का अवसर दिया" ।
एक दिन जब वे बोस्टन के पास एक गांव की गली में खिन्न चित्त से भ्रमण कर रहे थे, तब तो एक वृद्धा महिला को स्वामी जो की सूरत शक्ल और पोशाक देख कर आश्चर्य हुआ। इसमें सन्देह नहीं, स्त्रियों के हृदय में दया का श्रोत पुरुषों की अपेक्षा विशेष होता है। जब तिब्बत में बौद्ध लामा, ब्रह्मसमाज के प्रसिद्ध संस्थापक, प्रातः स्मरगीय राजा राजमोहन राय के प्राण लेने को उतारू होगये थे तब वहां पर बौद्ध महिलाओं ने राजा साहब के जीवन की रक्षा की थी। यही दशा स्वामी विवेकानन्द की भी हुई उनका परिचय अमेरिकनों को उक्त अमेरिकन महिला द्वारा प्राप्त हुआ था । एक अमेरिकन महिला का गेरुआ बस्त्रधारी हिन्दू सन्यासी के प्रति इस भांति अपनी दया का परिचय देना क्या परमात्मा की प्रेरणा नहीं है ?
अमेरिकन महिला ने स्वामी जी से यह जान कर कि वे कौन हैं ? उनको अपने यहां भोजन के निमित्त निमन्त्रण दिया अमेरिकन लोग बड़े ही कौतुक प्रिय होते हैं । इस अमरिकन महिला ने भी स्वामी जी को अपने यहां निमन्त्रण देने में विशेष कौतुक समझा था। उसने समझा था कि पूर्वीय मनुष्यों का नमूना ही अपने मित्रों को दिखलायेंगे । किन्तु थोड़ी देर पीछे ही उक्त अमेरिकन महिला को ज्ञात हुआ कि ये तो गूदड़ी
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२३० नंषधीयचरित में रस योजना
से अभिहित किया जाएगा।
उपर्युक्त प्रकरण को नलगन घर्मवीरता ग्रथवा देव-विषयक रति भाव का द्योतक नही स्वीकार किया जा सकता । क्योकि नन के द्वारा उत्साहित होकर किसी धार्मिक क्रिया के सम्पादित किये जाने के रूप में इस प्रकरण की अदतारणा नहीं की गई है। अपितु उसके दैनिक नृत्य के रूप में इस प्रकरण की अवतारण की गई है जिसमे यह प्रकरण ननगत धर्म सूतक उत्साह की व्यजना न कर प्रधान रूप से नवगत तत्त्वज्ञता की ही व्यजना करता है। धर्ममूव उत्पाह की प्रतीति उस तत्त्वज्ञना वा ही परिपोष करती है। इसी प्रकार यह प्रकरण देव-विषयक रनि-प्रतीति पर्यायी भी नहीं है। क्योंकि नल के द्वारा की गई विष्णु के विभिन्न तारो की स्तुति नल के विह्वन हृदय की पुकार न होकर ईश्वर प्रणिधान मूलक दैनिक कार्य का सम्पादन है। नल वें द्वारा राम की स्तुति में तत्त्व दृष्टि तथा समार को राम रूप देने के लिए की गई कामना तथा तम-विनाश एव तापोपशम के लिए की गई स्तुनि यादि नलगत तत्त्वज्ञता की ही प्राधान्येन व्यजना करते हैं । विष्णु के विभिन्न अवतारों की स्तुति करते हुए उनके बारे मे नल ने जो कल्पनाएँ की हैं वे भी प्राधा येन नलगत तत्त्वज्ञता की ही व्यजना करती हैं। और स्तुति के अन्त में नल का सम्प्रज्ञात समाधि मे विष्णु का साक्षात्कार करना तथा सुपात्री को पितरो के यज्ञ से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुओं का दान करना आदि भी नलगत तत्त्वबुद्धि को ही व्यक्त करते हैं ।
शान्त रसाभिन्यजन उपर्युक्त प्रकरणों में व्यक्त नलगत तत्त्वज्ञता पर्यन्त मे नलगत उत्तमता की व्यजना कर अगी रमकी परिपोषक बन जाती है ।
यद्यपि श्रीहर्षं ने अन्य स्थानों पर शान्त रन की विशद योजना नहीं को है, परन्तु नैषध मे ऐसे अवतरण की कमी नहीं है जो नलगत तत्त्वज्ञता व्यजना करते हो । यदि उपर्युक्त प्रकरण को ध्यान में रखकर ही शान्त रस को दृष्टि से नैपध का मूल्याक्न किया जाये तो नैषध को शृगार रम प्रधान महा-काव्य होते हुए भी शान्त रम के शान्त वातावरण में प्रवाहित होने वाली एव शृंगार रस को तरगिणी के नाम से अभिहित किया जा सकता है। क्योंकि नल एक ओर शृंगार रस का ग्राश्रय है तो दूसरी ओर वह एक तत्त्वज्ञ भी है। और वास्तविकता तो यह है कि तत्त्वन वह पहले है और शृणार-रम का प्राश्रय बाद मे । श्रीप ने अनेक स्थानो पर नल की इस विशेषता को और मवेत तो किया ही है। नल दमयन्ती-सभोग- वणन के पूर्व भी वे इस तथ्य की ओर संकेत कर देते हैं
प्रात्मवित् सह तया दिवानिय भोगभागपि न तापमाप स
आता हि विषयैक्तानना ज्ञानघोनमनस न लिम्पति ॥ २०१८-२
प्रग-रम-योजना २३१
इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रीहप ने शृगार-रस-प्रधान महाकाव्य म भी समानाधिकरण्य विशेधी शान्न रस की योजना कर और उसे भी समुचित रूप से मन्निविष्ट करने के कारण निर्विरोधी रखकर एक ओर अपना को प्रकट कर दिया है और दूसरी ओर नल-दमयन्ती सभोग के सूक्ष्मतम व्यापारी की योजना करत हुए भी उसे वासनात्मकता से दूषित नहीं होने दिया है ।
नैषधीयचरितगा अग-रस-योजना सम्वनी उपयुक्त समस्त विवेचन के निष्कर्षस्वरूप यह कहा जा सकता है कि श्रीहप ने नैवध म सभो रमो की आस्वाद्य योजना की है। यद्यपि उन्होंने शृंगार रस की अपेक्षा अन्य रसोबी प्रधान रूप से योजना की है। परन्तु विनिविष्ट
होते हुए भी वे स्वतन्त्र रूप से है और नँय में उनकी सत्ता पृयक् रूप में प्रतीन न होकर भुगार रस के अग के रूप में ही प्रतीत होतो है । लक्षण- ग्रंथवारो न महाकाव्य को विभिन रमो से समन्वित करने के प्रति आग्रह प्रदर्शित करत हुए भी काव्यगत भावात्मक एकता को प्रभुण बनाये रखने के लिए कवियो को विशेष रूप से मावधान कर दिया है और इसमें कोई संदेह नहीं कि श्रोहप विभिन्न रसो से समन्वित नैषध में उस एकता को बनाये रखने मे पूणतया सफल रहे हैं। नैषध का विगम लोक मात्र करने वाले पाठक को यह भ्रम हो सकता है कि श्रीहर्ष न नैषध मे शृंगार-भित रमो के लिए समुचित अवसर नहीं प्रदान किया है । परन्तु नैषध का पाठ यदि थोडी-सी भी गहराई में जाकर उसका आद्योपान्त अध्ययन करेगा तो उसे शृंगार रस के समान हो अनुभूति प्रवण शृगार भिन्न अन्य रसो के अभिव्यजक् प्रकरण भी पग पग पर दृष्टिगत होंगे। यद्यरि श्रोहप ने शृगार रस के समान अय रमो की विस्तृत तथा प्राचुर्येण योजना नहीं की है पर वह अपेक्षित भी नहीं थी। क्योकि महाकाव्य म सभी रसो की समान योजना को अधिक प्रशस्य नहीं माना जाता और भावात्मक एकता की दृष्टि में वसा वरना समुचिन भी नही होता । अत नैपघगन शृगार भिन्न अयरमो को अग के रूप में की गई योजना को औचित्य युक्त ही वहा जाएगा। ध्वयालोककार के अनुसार तो नेपघ मे शृंगार रस की प्राधान्येन माअाधान की गई योजना का ये उत्कर्ष का मूल कहा जा सकता है
प्रसिद्धपि प्रबन्धाना नानारसनिब धने ।
एको रसोऽड गोक्तव्यस्तेषामुत्कर्षमिच्छता ॥ ध्व० ३-७७ ।
चतुर्थ अध्याय भावादि योजना
भावादि भी रमों के समान हो आस्वाद्य होते है । अन रम के साथ-साथ उन्हें भी काव्य की जात्मा स्वीकार किया गया है
रम-भाव - सदाभास-भावशान्त्यादिराम ।
ध्वनरात्नागिभावन भासमानो व्यवस्थित ॥ ध्व० २-२५ ।
भावादि पद भाव, रमाभाग, भावाभास, भाव-शान्ति, भावोदय, भाव-सन्धि नथाभावशवला सभी ना बोध होता है । अत इन सभी का आस्वाद होने के कारण रम नाम में भी अभिहित किया गया है
रमभावो तदाभामौ भावम्यप्रशमोदयो ।
सन्धि शवलताचति सर्वोऽपि रसनाद्रमा ।। सा० द० ३-२५६-२६० ।
नैपरगत भावादि-योजना
श्रीहर्ष नै नैषधीयचरित मे भावादियों की भी प्रान्जल व्यजना की है। यद्यपि महाकाव्य मरमो की ही प्राधायेन याजना अभीष्ट होती है तथा भावादि
में किसी न किसी रमादि की हो अगता को प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु यत्र-तत्र पृक् रूप से भी आस्वाद्य होत ही हैं। नैपपीयचरित म ऐसे अनेत्र अवसर आए है जहाँ पर भावादि स्वतन्त्र रूप से आस्वाद्य है। उदाहरण-स्वरूप अधोलिखित को लिया जा सकता है ।
कान्नादि विषया रति भाव
वान्नादि विषयक पद वान्तविषयक तथा कान्ताविषयक उभय विध रति स्थायीभाव है । क्याकि रति वासना का उदय वननायत्र में ही नहीं होना अपितु नायिका मे भी होता है। इसके साथ-साथ यद्यपि रति वामना नायकनायिका दर्शनादि के अनन्तर ही उद्बुद्ध होती है परन्तु नायक-नायिका के समान अन्य अनेक उपकरण भी कही नहीं रनि-मनोवोध के प्रधान कारण बन सकते
भावादि योजना २३३
हैं । कानादि-गन आदि पद से उन उपकरणों का ग्रहण किया जा सकता है । रतिवासनोबोध इन विभिन्न कारणों के आधार पर कान्नादि विषयक रति भाव को विभाजित किया जा सकता है। भरत ने रति भाव के लक्षण मे रति-भावाद्बोधक अनेक विभावो तथा अनुभावा का निर्देश किया है। उनके अनुसार विभिन्न ऋतुए, कुसुमादि माल्य, अनुर्वेपन, आभरण, भोजन, वरभवन का अनुभव तथा अप्रातिकूत्यादि विभावी एव स्मित, मधुरभाषण क्षेप तथा क्टाक्षादि अनुभात्रा के मयोग म रति भाव की व्यजना होती है । ना० शा० पृ० ३५० ।
भरत के रति-भाव- लक्षण पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि उसने एक ओर देवादि वियपत्र रनि भात्रा के बीज सन्निहित हैं तो दूसरी ओर वान्तादिविय रनि के नी ।
श्रीन पानादि विषयक रनि भाव की व्यजना प्रचुर मात्रा मे की है । पर उन्होंने कान्नादि-विष रनि भाव की व्यजना मे नल-दमयन्ती का प्राय कम हो विषय बनाया है । नल-दमयन्ती को विषय बनाकर व्यक्त रति स्थायी भाव का उन्होन सत्र सम्यक् परिपोष किया है। शृंगार रस को नैषध का अगीरम वे जा बनाना चाहत थे। परन्तु नल-दमयन्ती को विषय बनाकर की गई भावी व्यपना का नँपघ म सवथा अभाव हो ऐसा नहीं कहा जा सक्ता । उदाह्रण म्वरूप निम्नलिखित स्थला को उद्धृत किया जा सकता है । अन्त पुर में भ्रमण करता हुआ नल पहले दमयन्ती वा मोह चिन बनाता है। उसके उपरान्त वह् सम्पह दृष्टि से उस चिन का अवलोकन करता है कौमारधीनि निवारयन्नी वृनानि रोमावलिवत्रचिह्ना । सालियन यौवनीयद्वा स्यामवस्या परिचेकाम ॥ ०६-३८। नल के द्वारा दमयन्ती के चित्र का बनाया जाना तथा उमका दशन किया जाना नलगन दमयन्ती विरति भाव की व्यजना करता है।
दमयन्नी ने नल को अपनी पूरी का दशन करन में अमन देखकर स्वप निश्चिन्त हा तलका मुख देखन के लिए अपने नेत्रों को प्रेरित किया था। उसी समय नल की दृष्टि पुरी की ओर से सहसा जो लौटती है तो दमयन्ती की दृष्टि से उसका समागम हो जाना है
पुरीमा मनागिति प्रियाय भैम्यानिभूत विसर्जित ।
यथौ कटाक्ष सहमा निर्वात्तना तदोक्षणंनाघपथे समागमम् ॥ ० १६-१२२ । यहा पर नल आलम्बन है। नलमुख का दशन करने के लिए दमयन्नी का दृष्टिनिक्षेप अनुभाव है। इन दोनों के सयोग से दमयन्तीगत नल-विषयक रति भाव की व्यजना होती है ।
श्रीहर्ष न कान्तादिविषयक रति भाव की विशद याजना सोलहवे मर्ग में की है। भोजन करते हुए बारातियो तथा भोजन परोसने वाली परिचारिकाओं के क्रिया२३४ नैषधीयचरित में रस-योजना
कलापो पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि बारातियो की दृष्टि भोजन अपेक्षा परिचारिकाज की भाव-भगिमाओवी और तथा परिचारिकाओं की दृष्टि भाजन परासत को अपना बारातियों के विपकी और अधिक लगी हुई थी । यद्यपि दम ने स्वय ही बारातियों तथा परिचारिकाओं को एक-दूसरे के निवट आने वा जवसर दे दिया था परन्तु भोजन करते हुए बाराती तथा परिचारिकायें एक-दूसरे के इतना अधिक निकट पहुंच जात है कि पाठक को यह आभास तक नहीं हो सकता कि वाराती कोई नवागन्तुक थे या बाराती तथा परिचारिकायें एक-दूसरे से परिचित नही ये अथवा उन दोनो वा निकट सम्पर्क नहीं था ।
वाराती तथा परिचारिवाओं में से कोई भी एक-दूसरे से कम नहीं था । यदि की पर कोई बाराती अपने अनुराग को प्रकट करन में आतुर था तथा परिचारिक उस अनुराग वा प्रत्युत्तर देने में उसे मात दे देती है तो वही पर परिचारिका के अनुराग को ताडने म वाराती भी पीछे नहीं रहता
तिरोवनमरोजनालया स्मिते स्मित यत् खलू यूनि वालया । तया तदीये हृदये निखाय तद्व्यधीयतामम्मुखलक्ष्यवेधिता ॥ कृत यद यत्व रणोचितत्यजा दिदृक्षुच भुयंदवारि बालया । हृदस्तदीयस्य तदेव कामुके जगाद वार्तामखिला खल खलु ।।
नं० १६-५६-५७ । दूसरी ओर एव दूसरा बाराती तो सभी लोगों की आखो मे धूल झोकने तक का साहस कर लेता है
जन ददत्या कलितानतेमुख व्यवस्थता माहमिन चुम्वितुम् ।
पदे पतद्वारिणि मन्दपाणिना प्रतीक्षितोऽन्येक्षणवञ्चनक्षण ॥ नं० १६-५८ । कोई बाराती यदि किमी परिचारिका के द्वारा किये गये सवेन को देखकर ही आनन्दानुभव करने लगता है तो कोई किसी दूसरी परिचारिका के कामसूचक. किया-कलापो को देखकर उसकी प्राप्ति के बारे मे निश्चिन्त सा हो जाता है
युवानमालोक्य निदग्धशीलया स्वपाणिपाथोरह्नालनिर्मित । श्लथाऽपि सङ्ख्या परिधि क्लानिधो दधावहो त प्रति गाढबन्धताम् ॥ मुख यदस्मायि विभज्य सुश्रवा लिय यदानव्य नताम्यमासिनम् । मवादि वा यमृदु गद्गद युवा तदैव जग्राह तदाप्तिलग्नवम् ॥ २०१६-५६,६१
परिचारिकाये हो कामविवश हो गई हो ऐसी बात नहीं, बारातिया मे भी कोई यदि निर्लज्ज बन गया था तो कोई तडफ्ने तर लगा था
विलोक्य यूना ध्यजन विधुन्वतीमवाप्तसत्वेन भृश प्रसिध्विद । उदस्तवण्ठन मृपोष्मनाटिन्ग विजित्य लज्जा ददृशे तदाननम् ।।
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बॉक्सर विद्रोह के दौरान सेना की भयंकर पराजय ने सेना में सुधार करना अति आवश्यक क दिया। 1901 में यह तय किया गया कि पताका व्यवस्था को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। सेनाओं को प्रांतीय सैनिक विद्यालयों में प्रशिक्षित किया जाएगा। परंपरागत सैन्य परीक्षा पद्धति को समाप्त कर दिया गया। सेना को सुरक्षित इकाइयों सहित पश्चिमी पद्धति के आधार पर संगठित किया जाने लगा। लेकिन इन उपायों के द्वारा भी सेना में बढ़ते क्षेत्रीयवाद तथा व्यक्तिगत वफादारियों को न रोका जा सका।
1901 से 1906 के बीच युआन शि-काई ने सेना में सुधार के महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 1905 में उसने उत्तरी सेना (जिसे बेयांग सेना कहा जाता था) की छः डिवीजनों का निर्माण किया। इस सेना के पास आधुनिक हथियार थे और इसके अधिकारियों को विदेशों या नये सैनिक विद्यालयों में प्रशिक्षित किया गया था। इसके पास जापानी प्रशिक्षक थे। इस सेना की इकाईयां व्यक्तिगत तौर पर युआन शि-काई के प्रति वफादार थी। इसी कारणवश वह इस सेना पर बहुत अधिक निर्भर था और उसने मांचू विरोध एवं शासक वंश विरोधी सेनाओं का साथ दिया।
17.2.3 प्रशासनिक एवं संस्थात्क सुधार
प्रशासन को चुस्त एवं कड़ा करने के लिए बहुत से सुधार किये गये। मांचू तथा चीनी अधिकारियों के बीच संतुलन के सिद्धांत का परित्याग कर दिया गया। कोटे की अनिवार्य नौकरियों को समाप्त कर दिया गया। इससे मांचुओं को फायदा हुआ और चीनी अधिकारियों में इसके कारण बहुत अधिक असंतोष पैदा हुआ ।
राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने के प्रयास में चिंग ने संसदात्मक तौर-तरीकों से राजनीतिक व्यवस्था के सुधार की घोषणा की। शासक एवं शासित के बीच घनिष्ठ संबंधों की आवश्यकता पर बल देते हुए राज्य ने संवैधानिक सुधारों के कार्यक्रम का प्रारम्भ किया। इस सुधार की प्रेरणा जापान से प्राप्त की गई थी और जापान के विषय में यह समझा गया कि गंजी सुधारों तथा डायट के निर्माण के द्वारा मेजी सम्राट अपनी जनता के संसाधनों को प्राप्त करने में सफल हुआ था। जुलाई 1905 में महारानी दावागर ने एक आयोग का गठन किया । इस आयोग की स्थापना लागू करने योग्य राजनीतिक सुधारों के लिए सरकार को सलाह देने के लिए की गई थी। अगस्त 1907 में एक संवैधानिक सरकारी आयोग का भी गठन किया गया। संपूर्ण देश में अधिकारियों ने संसदात्मक सरकार के स्वरूप के पक्ष में भरपूर समर्थन दिया। सरकार ने संवैधानिक सभा एवं प्रान्तीय सभाओं के निर्माण का वायदा किया। अगस्त 1908 में उन संवैधानिक सिद्धांतों की घोषणा की गई जो परिवर्तन का आधार बनने थे । स्थानीय स्वायत्त शासन के अंतर्गत तुरंत ब्यूरो का निर्माण किया जाने वाला था। प्रान्तीय सभाओं के लिए 1909 में चुनाव होने वाले थे। लेकिन संसद का कार्य केवल 1917 में ही शुरू हो सका। गौन शू सम्राट तथा सी-क्ली की जल्दी ही 1908 में मृत्यु हो गई। सिंहासन का उत्तराधिकारी पूची था और उसने यौन-तोंग सम्राट के रूप में 1909 से 1912 तक शासन किया । उसका पिता प्रिंस चिन रिजेन्ट बन गया था। लेकिन उसके पिता ने सी क्सी के मुख्य सलाहकार युआन शि-काई से दूरी को बनाकर रखा और उसने अधिक रूढ़िवादी नीति का अनुसरण किया जो सुधारों के पक्ष में न थी ।
इन राजनीतिक परिवर्तनों के उद्देश्य को जिस तरह से चिंग राज्य एवं कुलीन वर्ग ने समझा उसमें एक मूलभूत विरोधाभास था। चिंग शासन कर्ताओं के लिए ये सुधार किसी भी प्रकार से साम्राज्यिक संप्रभुता या शक्ति को कमजोर करने के लिए न थे लेकिन प्रान्तीय कलीनों ने इन सुधारों का यह अभिप्राय लगाया कि वास्तव में सत्ता का हस्तांतरण स्थानीय एवं प्रान्तीय स्तरों पर होगा।
इसी के साथ-साथ अन्य कई प्रकार की समस्याएं थीं। चुनाव अपरिहार्य तौर पर समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लिए था। चुनाव के लिए संपत्ति एवं शैक्षिक योग्यताओं ने यह सुनिश्चित कर दिया था कि सामान्य व्यक्ति जनमत का उपयोग नहीं कर सके। चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए 5,000 तायन्स से अधिक की वार्षिक आमदनी या प्रान्तीय डिग्री या नये माध्यमिक स्कूलों में किसी एक से स्नातक होना आवश्यक था। इसलिए स्वाभाविक ही था कि प्रान्तीय सभाओं की सदस्यता पर् उच्च कुलीनों का वर्चस्व था । उदाहरण के तौर पर, शातुंग के प्रान्त की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 80 लाख में से मात्र 119,000 लोगों को मताधिकार प्राप्त था और हुबाई में 3 करोड़ 40 लाख में से 113,000 को।
सीमित मताधिकार के बावजूद भी ये संस्थाएं विरोध का केन्द्र हो गई थीं। फरवरी 1910 में
पैकिंग की एक सभा में प्रतिनिधियों ने मांग की कि संसद को तुरंत बुलाया जाए। परिणामस्वरूप अक्तूबर 1910 में एक राष्ट्रीय सलाहकार सभा का आयोजन किया गया। इस सभा के आधे सदस्यों को सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था। बढ़ते दबाव के कारण प्रिंस चुन ने वायदा किया कि 1913 के आस-पास एक वास्तविक संसद को बुलाया जाएगा। अन्तरिम उपाय के तौर पर 1911 में एक मंत्रिपरिषद का गठन किया गया और इसके अंदर मुख्य रूप से राजकुमार एवं मांचू वंश के कुलीन थे। ठीक इसी समय बहुत से प्रान्तों में सशस्त्र संघर्ष भड़क उठा और यह मांचू वंश के निर्णायक पतन की शुरुआत थी ।
सुधारों की असफलता के कारण ऐसी आर्थिक एवं सामाजिक अव्यवस्था व्याप्त हुई जिसने चीन को हिला कर रख दिया और इस तरह का असंतोष उत्पन्न हो गया जिसको आधे अधूरे उपायों से संतुष्ट नहीं किया जा सकता था ।
बोध प्रश्न 1
1) चिंग वंश द्वारा किए गए शैक्षिक सुधारों का 10 पंक्तियों में विवरण दीजिए।
2) चिंग शासकों द्वारा 20वीं सदी के प्रारंभिक दशक में किए गए प्रशासनिक एवं संस्थात्मक सुधारों के उद्देश्यों का 10 पंक्तियों में विवेचन कीजिए।
17.3 अर्थव्यवस्था की स्थिति और विदेशी स्वार्थ
20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक चीन में विदेशी प्रभाव क्षेत्र का प्रसार पर्याप्त मात्रा में हो चुका था। 1902 से 1910 तक विदेशी पूंजी का निवेश 78 करोड़ 30 लाख से बढ़ कर 161 करोड़ तक बढ़ गया। इस धन का अधिकतम भाग रेलवे निर्माण, खान तथा अन्य औद्योगिक व्यवसायों में लगा था।
इसके फलस्वरूप बहुत से परिवर्तन ए । विदेशी पूंजीपतियों के द्वारा प्रस्तुत की गई इस चुनौती के कारण चीन में भी आधुनिकंपनियों के उत्थान को प्रोत्साहन मिला। उदाहरण के तौर पर चीन में प्रथम आधुनिक की स्थापना 1897 में कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना
तथा 1907 में बैंक ऑफ कम्युनिकेशन तथा हुबू बैंक के रूप में हुई। इन सबके फलस्वरूप प्राइवेट कंपनियों का विकास हुआ। 1904 में प्राइवेट कंपनियों के सम्मिलन की आज्ञा प्रदान कर दी गई। 1908 तक उद्योग मंत्रालय; कृषि एवं वाणिज्य मंत्रालयों के साथ 227 कंपनियां रजिस्टर्ड थीं ।
राष्ट्रीय आधुनिक सेक्टर की वृद्धि असमान थी । प्राथमिक तंत्रीय सुविधाओं का अभाव, व्यापारियों एवं अधिकारियों में व्याप्त अविश्वास जैसी बहुत सी समस्याएं थीं। इसके अलावा स्वदेशी कंपनियां विदेशियों के साथ प्रतियोगिता करने में सक्षम थीं। चीन के द्वारा कस्टम में स्वायत्तता खो देने के कारण सरकार बाजार को सुरक्षित नहीं कर सकती थी। पश्चिमी सामानों को आंतरिक करों से मुक्त कर दिया गया था। सरकारी कोष पर बहुत अधिक भार पड़ जाने से सरकार भी स्वयं धन निवेश करने की स्थिति में नहीं थी और ऐसा इसलिए हुआ था कि चीन को भारी युद्ध हर्जाने को अदा करना पड़ा। बॉक्सर संधि की शर्तों के अनुसार उसको 1902 से 1910 तक 22 करोड़ 40 लाख तॉयल युद्ध हर्जाने के तौर पर अदा करने थे। यह अनुमान लगाया गया है कि चिंग का वार्षिक बजट 9 करोड़ तॉयल का था । संतुलन बनाये रखने के लिए ऐसे विदेशी ऋणों को लेना पड़ा जिसने आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया । जिना उधार लिए चीन के पास निवेश हेतु कोई धन न था । गहरे आर्थिक संकट के बावजूद राज्यं एवं अर्थव्यवस्था के रूपांतरण के महत्वपूर्ण सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम निकले।
17.4 विरोधी शक्तियां
इस समय में चीन के अंदर नवीन सामाजिक शक्तियों का उदय हुआ । उदाहरण स्वरूप संधि बंदरगाहों में पूंजीपतियों एवं बिचौलियों के रूप में एक बुर्जुआ वर्ग का उदय हुआ। चीन के सभी सहयोगी पूंजीपति विदेशी कंपनियों में थे और चीन तथा पश्चिमी व जापानी व्यापारियों के बीच मध्यस्थता का कार्य करते । शंघाई एक ऐसा क्षेत्र था जहां चीनी पूँजीपति में विदेशी व्यापारिक स्वार्थों के साथ अधिक संपर्क में आये तथा दूसरी ओर दोनों में संघर्ष भी हुआ। 1905 तथा 1907 के बहिष्कार में राष्ट्रवादी भवनाएं अधिक स्पष्ट हुईं । उदाहरण के तौर पर, 1907 में शंघाई-निंगपो रेलवे निर्माण के लिए चीनी तथा ब्रिटिश कंपनियों के मध्य हुए समझौते के विरुद्ध कुलीनों व्यापारियों तथा कुलियों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से विरोध प्रकट किया। पश्चिमी विरोध के ये वर्ष चीनी साम्राज्य के विरुध शत्रुता में रूपांतरित हो गये क्योंकि चीनी सरकार चीन तथा चीन के व्यापारिक हितों की रक्षा करने में असमर्थ रही।
ऐसे अन्य कई सामाजिक समूह थे जिनका उद्भव चिंग एवं साम्राज्यिक व्यवस्था के विरुद्ध शक्तिशाली शत्रुओं के रूप में हुआ। 20वीं सदी के प्रारंभिक दशक में युवकों को सैनिक जीवन अपनाने के लिए उत्साहित किया गया । बहुत से विद्यार्थियों ने देश की बेहतर सेवा करने के लिए "अपने लेखनी का परित्याग कर तलवार को ग्रहण कर लिया।" मिलिट्री अकादमियों के स्नातक एवं नये स्कूल कन्फ्यूशियसवादी विचारधारा से दूर होते जा रहे थे। वे ऐसे उद्देश्य से प्रेरित थे जिसके द्वारा न केवल चीन को बचाना चाहते थे अपितु वे एक ऐसे नये एवं मजबूत चीन का निर्माण करना चाहते थे जो पश्चिमी तथा जापानी दोनों प्रकार के साम्राज्यवाद की चुनौतियों का सामना कर सके। जहां एक ओर व्यापारियों, सैनिकों तथा विद्यार्थियों के बीच असंतोष बढ़ रहा था, ठीक इसके अनुरूप कृषकों के बीच भी असंतोष बढ़ा । यद्यपि इस समय किसानों के ताइपिंग एवं बॉक्सर जैसे विद्रोह नहीं हुए। यांगजी क्षेत्र के निचले तथा मध्य प्रान्तों में लगातार इस तरह के दंगे होते रहते । गुप्त संस्थाएं जो सामान्यतः वंशीय पतन के दौरान उभर कर सामने आती थीं एक बार फिर सक्रिय हो उठीं ।
वह ग्रामीण प्रबुद्ध वर्ग जिसे शक्ति के क्षेत्रीयकरण से मुख्य रूप से लाभ मिला था अब वह हर कीमत पर अपने हितों की सुरक्षा करने को उत्सुक था । विदेशी शक्तियों के आर्थिक साम्राज्यवाद के चारों ओर फैल जाने से, उन्होंने इसे अपने आर्थिक हितों के लिए खतरा समझा। चिंग के द्वारा उनके हितों की सुरक्षा न कर पाने के कारण वे बहुत क्रोध में थे। 19वीं सदी के अंत तक ग्रामीण संपन्न वर्ग के मज़बूत व्यापारिक हित विकसित हो चुके थे। व्यापारियों एवं जमींदारों के बीच अब मजबूत संबंधों का बढ़ता रुझान था (अब उन दोनों के बीच एक मजबूत समूह बन गया जिसको शेन शांग कहा जाता था ) ।
खान तथा रेलवे में छूट के लिए किये गये आंदोलन से स्पष्ट है कि शैन-शांग ने विदेशी
प्रतियोगिता एवं घुसपैठ को रोकने और राज्य के विरुद्ध अपने आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों को बढ़ाने का दृढ़ निश्चय किया। अपने इस प्रयास में वे अक्सर बड़े नौकरशाहों का भी समर्थन करते। उदाहरण के लिए 1890 में चीन के एक बड़े अधिकारी झांग-झी-डोंग (1837-1909) ने एक अमेरीकी कंपनी से हानको- कैन्टन रेलवे निर्माण के अधिकारों को वापस खरीद लिया। उसको हुबई हुनान तथा कुआतिंग के कुलीनों का सक्रिय समर्थन प्राप्त था। 1911 में चिंग के द्वारा रेलवे के राष्ट्रीयकरण के प्रस्ताव के प्रति प्रांतीय शैन-शांग ने शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाया । लेकिन चिंग की इस घोषणा का दूसरा पक्ष यह था कि उसने विदेशी बैंक सिंडीकेट से विशाल ऋण प्राप्त करने के लिए समझौता किया था और इस कार्यवाही को चीनी राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध विश्वासघात समझा गया। शैन - शांग ने इसको उनकी देशभक्ति, प्रांतीय स्वायत्तता तथा आर्थिक सम्पन्नता के लिए एक ख़तरे एवं अपमान के रूप में लिया। सिच्वान प्रांत में रेलवे की रक्षा करना एक तरह से क्रांति को आमंत्रित करना बन गया। इसका आगे विवेचन किया जाएगा किन्तु पहले हमें चीनी राष्ट्रवाद के विकास पर प्रकाश डालने की आवश्यकता है।
17.5 चीनी राष्ट्रवाद का विकास
20वीं सदी के प्रारंभ में चीनी राष्ट्रवाद ने अधिक सुनिश्चित स्वरूप को ग्रहण कर लिया था। अब वह मुख्य रूप से मांचू विरोधी एवं साम्राज्यवाद विरोधी मुद्दों पर केन्द्रित था।
मांचू वंश 1644 में सत्ता में आया तथा उसने स्वयं को अलग समूह में रखते हुए अपनी विशेष पहचान को बनाये रखा। लेकिन उनके इस अलगाववाद से किसी भी तरह से चीन के अस्तित्व को खतरा पैदा नहीं हुआ। उनकी अपनी मात्रभूमि मंचूरिया पर आप्रवासियों को बसने का आज्ञा नहीं थी। नागरिक एवं सैनिक प्रशासन में मांचुओं के लिए पदों को सुरक्षित कर दिया गया था। मांचू प्रभुत्व को एक सामाजिक परंपरा के द्वारा लागू किया गया। इस सामाजिक परंपरा के तहत चीनियों को सर पर एक लंबी चोटी रखना पड़ता था। एक ऐसी लंबी चोटी जिसको 20वीं सदी के प्रथम दशक में मांचू प्रभुत्व तथा उनके अंतर्गत चीनी अधीनता के प्रतीक के तौर पर देखा जाने लगा। इन सभी के बावजूद मांचू काफी लचीले थे । उन्होंने चीन की सामाजिक एवं राजनीतिक परंपरा तथा कन्फ्यूशियसवाद को अपना लिया था। इन्होंने नौकरशाही के समर्थन तथा प्रांतीय कुलीनों के मौन समर्थन से शासन किया । यही वह समर्थन था जो कई कारणों से कमजोर पड़ गया था और जिनको पहले ही उद्धृत किया जा चुका है।
मांचू विरोधी भावनाएं जीवित थीं और उन्हें लंबे समय तक गुप्त संस्थाओं द्वारा बनाये रखा गया। बॉक्सर आंदोलन के प्रारंभ में शक्तिशाली मांचू विरोधी तत्व विद्यमान थे। मांचू विरोध धीरे-धीरे जनसंख्या के विशाल हिस्से में फैल गया। चीनी बुद्धिजीवियों में यह विरोध सम्राट की निरंकुश शक्तियों की निंदा करने के साथ फैला।
इसी के साथ 19वीं सदी के दौरान समय-समय पर चीनी अधिकारियों एवं किसानों के द्वारा विदेश विरोधी भावनायें अभिव्यक्त की गई। 20वीं सदी के प्रथम दशक में विदेशी व्यापार एवं वाणिज्य पर सीधे-सीधे हमले किये गये। अमेरिका के अप्रवास संबंधी कानूनों के विरोध में 1905 में चीनी सौदागरों तथा व्यापारियों ने शंघाई में अमेरिकी सामान का बहिष्कार किया। अमेरिका के अप्रवास संबंधी कानून चीनियों के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण थे। इस बहिष्कार आंदोलन में विद्यार्थी एवं जनता ने भारी संख्या में भाग लिया। इस राजनीतिक बहिष्कार की मुख्य विशेषता यह थी कि अब चीनी मात्र अपने आर्थिक विशेषाधिकारों के हनन का विरोध नहीं कर रहे थे अपितु राष्ट्र के प्रति वफादार एवं आत्म चेतना का प्रदर्शन भी कर रहे थे । ठीक इसी तरह के बहिष्कार का आयोजन 1908 में जापानी सामान के विरुद्ध किया गया । अवैध सामग्री ले जाते हुए तातसू मारू नाम के जापानी जहाज पर चीनियों ने अधिकार कर लिया। जापानियों ने इसका प्रबले विरोध किया तथा माफी एवं क्षतिपूर्ति की मांग की। इसने चीनियों के क्रोध को और उग्र कर दिया तथा उन्होंने जापानी सामान के बहिष्कार को संगठित किया। व्यापारियों ने जापान के सामान के गोदामों को जला डाला तथा गोदी मजदूरों ने जापानी जहाजों को खाली करने से इंकार कर दिया ।
इन बहिष्कारों से स्पष्ट है कि साम्राज्यवाद का विरोध तथा चीन की संप्रभुता की रक्षा के प्रति दृढ़ संकल्प बढ़ रहा था। लेकिन साम्राज्यवाद का बढ़ता यह विरोध किसी भी तरह से विरोधाभासों से मुक्त न था। जैसे मांचू विरोधी राष्ट्रवाद का विकास हो रहा था वैसे-वैसे
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आज के समय में तनाव से भरे जीवन, पॉल्यूशन और संक्रामक रोंगों के बीच शरीर की इम्युनिटी को मजबूत रखना और तन-मन को शांत रखना बहुत महत्वपूर्ण है. जब यह काम एक गरमागरम चाय की प्याली से हो जाए, तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है. हिंदुस्तान में तुलसी की चाय सबसे स्वास्थ्य वर्धक और सुकूनदायक मानी जाती है. यदि ऑर्गेनिक तुलसी के साथ ग्रीन टी और अन्य स्वास्थ्यवर्धक सुगंधित औषधी और जड़ी-बूटियों का मेल हो, तो सोने पर सुहागा.
तुलसी का भारतीय संस्कृति से सदियों पुराना नाता है. भागवत पुराण में तुलसी को औषधियों की रानी बताया गया है. आयुर्वेद में भी तुलसी का बहुत महत्व है और इसे अतुलनीय बताया गया है. दुनिया को तुलसी के इन फायदों से परिचित कराने में ऑर्गेनिक इंडिया की बहुत जरूरी किरदार है. 1997 में बाजार में आई. ऑर्गेनिक इण्डिया ने इस चमत्कारी औषधी को दुनिया में स्वास्थ्य के क्षेत्र में फिर से प्रतिष्ठित किया. साथ ही राष्ट्र में ऑर्गेनिक क्रांति की आरंभ की.
1. तनाव घटाती है- कुछ शोध बताते हैं कि तुलसी कोर्टिसोल हॉर्मोन का संतुलन बनाए रखने में सहायता करती है. कोर्टिसोल को शरीर का मुख्य तनाव हॉर्मोन बोला जाता है. इसका स्तर नियंत्रित रहने से आपको तनाव मुक्त रहने में सहायता मिल सकती है.
- ऑर्गेनिक इण्डिया की तुलसी ग्रीन टी अश्वगंधा में तुलसी के साथ अश्वगंधा के गुण हैं जो तनाव घटाने और शरीर में एंटी ऑक्सीडेंट्स का लेवल बढ़ाने में मददगार हैं. इसके अतिरिक्त तुलसी सिम्पली कैमोमाइल के सुगंधित तत्व नेचुरल ढंग से एंग्जाइटी और स्ट्रेस को कम करके संवेदनाओं को शांत करते हैं.
2. एंटी ऑक्सीडेंट- तुलसी में एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो शीघ्र बूढ़ा बनाने वाले फ्री रेडिकल्स से शरीर की रक्षा करते हैं और लंबे समय तक हेल्दी बनाए रखने में मददगार होते हैं.
- ऑर्गेनिक इण्डिया की तुलसी ग्रीन टी जैस्मीन, तुलसी क्लासिक और तुलसी ओरिजनल में नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट्स हैं जो स्वास्थ्य अच्छी रखने में मददगार हैं.
3. इम्युनिटी बढ़ाती है- तुलसी इम्युनिटी यानी शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाने में मददगार है. तुलसी में विटामिन C, कैल्शियम, जिंक और आयरन के साथ ही सिट्रिक, टारटरिक और मैलिक एसिड भी होते हैं. इनमें एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं.
- तुलसी जिंजर टर्मरिक में तुलसी, अदरक और हल्दी का बहुत बढ़िया मिश्रण है जो न सिर्फ स्वाद में बेमिसाल है, बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी मददगार है. तुलसी ग्रीन टी लेमन जिंजर में लेमन ग्रास, तुलसी, प्रीमियम ग्रीन टी के साथ जायकेदार और टेस्टी अदरक का मिश्रण एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल का काम करता है.
4. मेटाबॉलिज्म अच्छा रखती है- तुलसी में इसेंशियल ऑयल, वोलेटाइल ऑयल पाया जाता है जो एंटी बैक्टीरीअल, एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी सेप्टिक गुणों वाला होता है. यह शरीर से टॉक्सिक पदार्थ बाहर करता है और शरीर के मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है. इससे वजन भी नियंत्रित रहता है.
- तुलसी ग्रीन टी हनी लेमन हेल्दी मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा देती है जो कि वजन संतुलित रखने के लिए काफी जरूरी है. इसके अलावा, यह फैट घटाने में भी मददगार है. वहीं, तुलसी डिटॉक्स कहवा पारंपरिक कश्मीरी ग्रीन टी और साबुत मसालों के साथ आपकी बॉडी से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है, पाचन शक्ति बढ़ाकर वेट लॉस में मददगार है.
5. सर्दी-जुकाम, सांस संबंधी परेशानियों को दूर करती है- तुलसी कफ, खांसी, जुकाम, सांस संबंधी कठिनाई जैसे ब्रोंकाइटिस में लाभ करती है. इसमें इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एंटीट्यूसिव और एक्सपेक्टोरेंट होते हैं, जो कफ और बलगम से छुटकारा दिलाते हैं. तुलसी में उपस्थित खास तरह के ऑयल शरीर की जकड़न में भी आराम पहुंचाते हैं.
- तुलसी मुलेठी का तुलसी, मुलेठी, पिपरमिंट और सौंफ का स्वास्थ्य वर्धक मिश्रण गले की खराश दूर करने और सूखी खांसी में आराम दिलाने में मददगार है. वहीं, में प्रीमियम ग्रीन टी और तुलसी का बेहतरीन मिश्रण है जिसमें प्राकृतिक रूप से एंटी ऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है. यह आम रोंगों से बचाने में सहायक है.
6. स्टेमिना बढ़ाने में मददगार- तुलसी स्टेमिना बढ़ाने में मददगार है. इसमें मैग्नीशिम, आयरन, विटामिन A, C और K पाया जाता है. यह खून की नलियों को लचीला बनाकर आर्टरी में क्लॉटिंग को रोकती है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है और शरीर की ताकत बढ़ती है. तुलसी में आरजीनीन नामक एमिनो एसिड होता है, जो मर्दों में शुक्राणुओं को हेल्दी बनाता है.
- तुलसी मुलेठी का तुलसी, मुलेठी, पिपरमिंट और सौंफ का स्वास्थ्य वर्धक मिश्रण गले की खराश दूर करने और सूखी खांसी में आराम दिलाने में मददगार है. वहीं में प्रीमियम ग्रीन टी और तुलसी का बेहतरीन मिश्रण है, जिसमें प्राकृतिक रूप से एंटी ऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है. यह आम रोंगों से बचाने में सहायक है.
1. वजन कम करने के लिए फायदेमंद- ग्रीन टी में उपस्थित एंटी ऑक्सीडेंट मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर वजन कम करने में सहायता कर सकते हैं. कुछ अध्ययन के अनुसार, ग्रीन टी में उपस्थित कैटेचिन और कैफीन के मिश्रण का सेवन वजन कम करने और वजन को संतुलित रखने में कुछ हद तक सहायता कर सकता है.
2. शुगर लेवल कंट्रोल करने में हेल्पफुल- ग्रीन टी में उपस्थित पैलीफेनाल से ब्लड शुगर का स्तर कम रहता हैं. इससे डाइबिटीज के मरीजों को बहुत लाभ मिलता है.
3. ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखने में मददगार- ग्रीन टी में उपस्थित विटामिन K बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मददगार है. बीपी को कंट्रोल करने के लिए एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम यानी ACE की जरूरत होती है और ग्रीन टी एक प्राकृतिक ACE के रूप में कार्य करती है.
4. कोलेस्ट्रॉल पर कंट्रोल- ग्रीन टी के सेवन से मेटाबॉलिज्म बढ़ता है और कोलेस्ट्रोल पर नियंत्रण रहता है.
5. दिल की रोंगों से बचाती है- एक शोध के मुताबिक, ग्रीन टी कार्डियोवस्कुलर यानी दिल की रोग और इसके सभी कारणों को कम करने में मददगार होती है. ग्रीन टी में केचिन, पॉलीफेनोलिक यौगिक होते हैं जो कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम को मजबूत करके दिल की रोंगों से बचाते हैं.
6. इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार- ग्रीन टी में उपस्थित एंटी ऑक्सीडेंट्स बॉडी के फ्री रेडिकल्स को समाप्त करते हैं. इससे शरीर की इम्युनिटी मजबूत होती है और रोंगों का खतरा कम होता है.
7. तनाव से राहत- ग्रीन टी तनाव को कम करने के साथ-साथ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार कर सकती है. इसके अलावा, यह एकाग्रता बढ़ाने में भी सकारात्मक असर दिखा सकती है.
अपने दिन की आरंभ ऑर्गेनिक इण्डिया की के साथ करें. तुलसी आपके शरीर के नेचुरल PH बैलेंस को बनाए रखने में सहायता करती है, तनाव दूर करती है, इम्युनिटी मजबूत करती है और स्टेमिना बढ़ाती है. ग्रीन टी के साथ मिलकर तुलसी के औषधीय गुणों में कई गुना वृद्धि हो जाती है. प्रीमियम ग्रीन टी और तुलसी का बेहतरीन मिश्रण है. तुलसी के औषधीय गुण इसे तनाव और थकान दूर करने के लिए सबसे उपयुक्त साधन बनाते हैं. यह मेटाबॉलिज्म को हेल्दी रखकर वजन घटाने में मददगार है. इसके अलावा, यह फैट बर्न करने में भी सहायता करती है. इसमें प्राकृतिक रूप से एंटी ऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है.
तुलसी जिंजर टर्मरिक में तुलसी, अदरक और हल्दी का बहुत बढ़िया मिश्रण है जो न सिर्फ स्वाद में बेमिसाल है, बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी मददगार है. यह तनाव और थकान दूर करती है. साधारण सर्दी-जुकाम से राहत देती है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाकर कई रोंगों से बचाने में भी मददगार है. इसके औषधीय तत्व इन्फ्लेमेशन घटाने के अतिरिक्त लिवर की कार्यप्रणाली को भी सुचारू बनाते हैं.
तुलसी ग्रीन टी हनी लेमन में प्रीमियम ग्रीन टी की पत्तियों के साथ शहद की मिठास घुलकर इसे अनूठा स्वाद प्रदान करती है. इसका लेमन फ्लेवर इसकी फ्रेशनेस को और बढ़ा देता है. यह हेल्दी मेटाबॉलिज्म को बढ़ावा देती है जो कि वजन संतुलित रखने के लिए काफी जरूरी है. इसके अलावा, यह फैट घटाने में भी मददगार है.
तुलसी मुलेठी में है तुलसी, मुलेठी, पिपरमिंट और सौंफ का स्वास्थ्य वर्धक मिश्रण. यह जायकेदार मिश्रण गले की खराश दूर करने और सूखी खांसी में आराम दिलाने में मददगार है. मसालेदार लज्जत के साथ मिठास से भरे जायके वाला यह पेय सर्दी-खांसी और गले की आम तकलीफों में भी लाभकारी है.
ऑर्गेनिक इण्डिया के उत्पाद क्यों है दूसरों से अलग?
बाजार में इन दिनों तुलसी प्रोडक्ट की भरमार है, लेकिन ऑर्गेनिक इण्डिया के उत्पाद में मिट्टी की परख, बीजारोपण से लेकर फसल कटने तक हर चरण में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आप तक पहुंचने वाला उत्पाद पूरी तरह ऑर्गेनिक हो. उसमें किसी भी प्रजाति का कीटनाशक, हेवी मेटल, केमिकल इत्यादि न हों. बहुत ही कठोर गुणवत्ता परीक्षणों से गुजरने के बाद ही ऑर्गेनिक इण्डिया के प्रोडक्ट आप तक पहुंच पाते हैं, इसीलिए आप इनकी गुणवत्ता को लेकर पूरी तरह निश्चिंत हो सकते हैं.
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गयासुद्दीन ने इस पराजय से लज्जित होकर फिर युद्ध की तैयारी कर अपने सेनापति ज़फ़रखां को बड़ी भारी सेना के साथ मेवाड़ पर भेजा। वह " मेवाड़ के पूर्वी हिस्से को लूटने लगा, जिसकी सूचना पाते ही महाराणा अपने ५ कुँवर - पृथ्वीराज, जयमल, संग्रामसिंह, पत्ताः ( प्रताप ) और रामसिंह - तथा कांधल चूंडावत (चूडा के पुत्र), सारंगदेव अजावत, कल्याणमल ( खींची?), पंवार राघव महपावत और किशनसिंह डोडिया आदि कई सरदारों एवं बड़ी सेना के साथ मांडलगढ़ की तरफ बढ़ा । वहां ज़फ़रखां के साथ घमसान युद्ध हुआ, जिसमें दोनों पक्ष के बहुत से वीर मारे गये और ज़फ़रखां हारकर मालवे को लौट गया । इस लड़ाई के प्रसंग में उपर्युक्त प्रशस्ति में लिखा है कि मेंदपाट के • अधिपति राजमल ने मंडल दुर्गं ( मांडलगढ़ ) के पास जाफ़र के सैन्य का नाश कर शकपति ग्यास के गर्वोन्नत सिर को नीचा कर दिया है। वहां से रायमल मालवे की ओर बढ़ा, खैराबाद की लड़ाई में यवन-सेना को तलवार के घाट उतारकर मालवावालों से दण्ड लिया और अपना यश बढ़ाया ।
इन लड़ाइयों के सम्बन्ध में फ़िरिश्ता ने अपनी शैली के अनुसार मौन धारण किया है, और दूसरे मुसलमान लेखकों ने तो यहां तक लिख दिया है कि वर्णन है, परन्तु उसपर से यह निश्चय नहीं हो सकता कि वह कौन था । इमादुल्मुल्क, ज़हीरुल्मुल्क आदि मुसलमान सेनापतियों के उपनाम होते थे, अतएव वह ग़यासशाह का कोई.. सेनापति हो, तो आश्चर्य नहीं ।
( 2 ) रायमल रासा; वीरविनोद; भाग १, पृ० ३३६-४१ ३! ( २ ) मौला मंडल दुर्गमध्यधिपतिः श्रीमेदपाटावनेग्रहिंग्राहमुदारजाफरपरीवाशेरुवी रव्रजं । कंठच्छेदम चिक्षिपत्क्षितितले श्रीराजमल्लो द्रुतं भ्यासक्षोणिपतेः क्षणानिपतिता मानोन्नता मौलयः ॥ ७७ ॥ ( दक्षिण द्वार की प्रशस्ति, भावनगर इन्स्क्रिप्शन्स; पृ० १२१)
(३) खेरावादतरून्विदार्य यवनस्कंधान्विभिद्यासिंभिदण्डान्मालवजान्बला दुपहरन् भिंदश्च वंशान्द्विषां । स्फूर्जत्संगर सूत्रभृगिरिवरासंचारिसेनांत हैः कीर्तेर्मण्डलमुच्च कैर्व्यरचयत् श्री राजमल्लो नृपः ॥ ७८ ॥
गद्दी पर बैठने के बाद रायासुद्दीन सदा ऐश-इशरत में ही पड़ा रहा और महल से बाहर तक न निकला, परन्तु चित्तोड़ की लड़ाई में उसका विद्यमान होना महाराणा रायमल के समय की प्रशस्ति से सिद्ध है ।
गयासशाह के पीछे उसका पुत्र नासिरशाह मांडू की सल्तनत का स्वामी हुआ । उसने भी मेवाड़ पर चढ़ाई की, जिसके विषय में फ़िरिश्ता लिखता है कि नासिरशाह की चित्तोड़ "हि० स० ६०६ ( वि० सं० १५६०=३० स० १५०३ ) में नासिरुद्दीन ( नासिरशाह ) चित्तौड़ की ओर बढ़ा, जहां राणा से नज़राने के तौर बहुतसे रुपये लिये और राजा जीवनदास की, जो रागा के मातहतों में से एक था, लड़की लेकर मांडू को लौट गया। पीछे से उस लड़की का नाम 'चित्तोड़ी वेगम' रक्खा गया" । नासिरशाह की इस चढ़ाई का कारण फ़िरिश्ता ने कुछ भी नहीं लिखा, तो भी संभव है कि गयासशाह की हार का बदला लेने के लिये वह चढ़ आया हो। इसका वर्णन शिलालेखां या ख्यातां में नहीं मिलता ।
यह प्रसिद्ध है कि एक दिन कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्रामसिंह ने जन्मपत्रियां एक ज्योतिषी को दिखलाई; उन्हें देखकर उसने कहा
ख्यातों आदि में यह भी लिखा है - 'एक दिन महाराणा सुलतान ग़यासुद्दीन के एक दूत से चित्तोड़ में विनयपूर्वक बातचीत कर रहे थे, ऐसे में कुंवर पृथ्वीराज वहां ग्रा पहुंचा। महाराणा को उसके साथ इस प्रकार बातचीत करते हुए देखकर वह ऋद हुआ और उसने अपने पिता से कहा कि क्या आप मुसलमानों से दबत हैं कि इस प्रकार नम्रतापूर्वक बात - चीत कर रहे हैं ? यह सुनकर वह दूत क्रुद्ध हो उठ खड़ा हुआ और अपने डेरे पर श्राकर मांडू को लौट गया। वहां पहुंचकर उसने सारा हाल सुलतान से कहा, जो अपनी पूर्व की पराजयों के कारण जलता ही था; फिर यह सुनकर वह और भी क्रुद्ध हुआ और एक बड़ी सेना के साथ चित्तोड़ की ओर चला। इधर से कुंवर पृथ्वीराज भी, जो बड़ा प्रबल और वीर था, अपने राजपूतों की सेना सहित लड़ने को चला। मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर दोनों दलों में घोर युद्ध हुआ, जिसमें पृथ्वीराज ने विजयी होकर सुलतान को कैद कर लिया और एक मास तक चित्तोड़ में क़ैद रखने के पश्चात् दण्ड लेकर उसे मुक्त कर दिया ( वीरविनोद, भाग १, पृ० ३४१ ४२ ) । इस कथन पर हम विश्वास नहीं कर सकते, क्योंकि इसका कहीं शिललिखादि में उल्लेख नहीं मिलता; शायद यह भाटों की गड़ंत हो ।
( २ ) त्रिग्ज़; फिरिश्ता; जि० ४, पृ० २४३ ।
कि ग्रह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं, परंतु राजयोग संग्रामसिंह के है, इसलिये मेवाड़ का स्वामी वही होगा। इसपर वे दोनों भाई संग्रामसिंह के शत्रु बन गये और पृथ्वीराज ने तलवार की हूल मारी, जिससे संग्रामसिंह की एक आंख फूट गई। ऐसे में महाराणा रायमल का चाचा सारंगदेव पहुंचा। उसने उन दोनों को फटकार कर कहा कि तुम अपने पिता के जीते-जी ऐसी कुता क्यों कर रहे हो ? सारंगदेव के यह वचन सुनकर वे दोनों भाई शान्त हो गये और वह संग्रामसिंह को अपने निवासस्थान पर लाकर उसकी आंख का इलाज कराने लगा, परंतु उसकी जाती ही रही । दिन-दिन कुंबरों में परस्पर का विरोध बढ़ता देखकर सारंगदेव ने उनसे कहा कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर तुम्हें आपस में विरोध न करना चाहिये । यदि तुम यह जानना ही चाहते हो कि राज्य किसको मिलेगा, तो भीमल गांव के देवी के मंदिर की चारण जाति की पुजारिन से, जो देवी का मानी जाती है, निर्णय करा लो । इस सम्मति के अनुसार वे तीनों भाई एक दिन सारंगदेव तथा अपने राजपूतों सहित वहां गये तो पुजारिन ने कहा कि मेवाड़ का स्वामी तो संग्रामसिंह होगा और पृथ्वीराज तथा जयमल दूसरों के हाथ से मारे जायेंगे । उसके यह वचन सुनते ही पृथ्वीराज और जयमल ने संग्रामसिंह पर शस्त्र उठाया । उबर से संग्रामसिंह और सारंगदेव भी लड़ने को खड़े हो गये । पृथ्वीराज ने संग्रामसिंह पर तलवार का वार किया, को सारंगदेव ने अपने सिर पर ले लिया और वह भी तलवार लेकर
( १ ) वीरविनोद में इस कथा के प्रसंग में सारंगदेव के स्थान पर सर्वत्र सूरजमल नाम दिया जो मानने के योग्य नहीं है, क्योंकि संग्रामसिंह का सहायक सारंगदेव ही था । सूरजमल के पिता क्षेमकर्ण की महाराणा कुंभकर्ण से सदा अनबन ही रही ( नैणसी की ख्यात; पत्र २२, पृ० १ ) और दाड़िमपुर की लड़ाई में उदयसिंह के पक्ष में रहकर उसके मारे जाने के पीछे उसका पुत्र सूरजमल तो महाराणा का विरोधी ही रहा; इतना ही नहीं, किन्तु सादड़ी से लेकर गिरवे तक का सारा प्रदेश उसने बलपूर्वक अपने अधीन कर लिया था (वही, पत्र २२, पृ० इसी कारण महाराणा रायमल को वह बहुत ही खटकता था, जिससे उसने अपने कुंवर पृथ्वीराज को उसे मारने के लिये भेजा था, जैसा कि आगे बतलाया जायगा। सूरजनल तो उक्त महाराणा की सेवा में कभी उपस्थित हुआ ही नहीं ।
( २ ) इस विषय में नीचे लिखा हुआ दोहा प्रसिद्ध है -
पीथल खग हाथां पकड़, वह सांगा किय वार । सांरग केले सीस पर, उणवर साम उबार ।।
झपटा। इस कलह में पृथ्वीराज सख्त घायल होकर गिरा और संग्रामसिंह भी कई घाव लगने के पीछे अपने प्राण बचाने के लिये घोड़े पर सवार होकर वहां से भाग निकला, उसको मारने के लिये जयमल ने पीछा किया । भागतां हुआ संग्रामासँह सेवत्री गांव में पहुंचा, जहां राठोड़ बीदा जैतमालोत (जैतमाल का वंशज' ) रूपनारायण के दर्शनार्थ आया हुआ था। उसने सांगा को खून से तर-बतर देखकर घोड़े से उतारा और उसके घावों पर पट्टियां बांधीं; इतने में जयमल भी अपने साथियों सहित वहां पहुंचा और बीदा से कहा कि सांगा को हमारे सुपुर्द कर दो, नहीं तो तुम भी मारे जाओगे । वीर बीदा ने अपनी शरण में लिये हुए राजकुमार को सौंप देने की अपेक्षा उसके लिये लड़कर मरना क्षात्रधर्म समझकर उसे तो अपने घोड़े पर सवार कराकर गोड़वाड़ की तरफ़ रवाना कर दिया और स्वयं अपने भाई रायपाल तथा बहुतसे राजपूतों सहित जयमल से लड़कर वीरगति को प्राप्त हुआ। तब जयमल को निराश होकर वहां से लौटना पड़ा। कुछ दिनों में पृथ्वीराज और सारंगदेव के घाव भर गये । जब महाराणा रायमल ने यह हाल सुना, तब पृथ्वीराज को कहला भेजा कि दुष्ट, मुझे मुंह मत दिखलाना, क्योंकि मेरी विद्यमानता में तूने राज्यलोभ से ऐसा क्लेश बढ़ाया और मेरा कुछ भी लिहाज़ न किया। इससे लज्जित होकर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ में जा रहा है ।
( १ ) मारवाड़ के राठोड़ों के पूर्वज राव सलखा के चार पुत्रों में से दूसरा जैतमाल था, जिसके वंशज जैतमालोत कहलाये । उस ( जैतमाल ) के पीछे क्रमशः बैजल, कांधल, ऊदल और मोकल हुए । मोकल ने मोकलसर बसाया । मोकल का पुत्र बीदा था, जो मोकलसर से रूपनारायण के दर्शनार्थ आया हुआ था। उसके वंश में इस समय केलवे का ठाकुर उदयपुर राज्य के दूसरी श्रेणी के सरदारों में है ।
( २ ) रूपनारायण के मन्दिर की परिक्रमा में राठोड़ बीदा की छत्री बनी हुई है, जिसमें तीन स्मारक-पत्थर खड़े हुए हैं। उनमें से तीसरे पर का लेख बिगड़ जाने से स्पष्ट पढ़ा नहीं जाता। पहले पर के लेख का आशय यह है कि वि० सं० १५६१ ज्येष्ठ वदि ७ को महाराणा रायमल के कुंवर संग्रामसिंह के लिये राठोड़ बीदा अपने राजपूतों सहित काम आया। दूसरे पर का लेख भी उसी मिती का है और उसमें राठोड़ रायपाल का कुंवर संग्रामसिंह के लिये काम आना लिखा है । इन दोनों लेखों से निश्चित है कि सेवंत्री गांववाली घटना वि० सं० १५६१ ( ई० स० १५०४ ) में हुई थी ।
( ३ ) वीरविनोद; भाग १, पृ० ३४५ ।
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