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नमस्कार बात को समझो में एक बार फिर आप सभी का स्वागत हैं अमेरिका द्वारा लगाय गए टेरिफ को लेकर दुनिया भर में कोहराम मचा हुआ है थोड़ा सा पीछे चलते हैं साल था 1947 का और दुनिया के देशों में जिहां वही 1947 जब हम आजाद हुए थे और हम इन सब
बन रहा था, 1950 में जाकर लागू हुआ, लेकिन 1947 में उस वक्के जो मुल्क थे, जिसमें बृतेन, अमेरिका जैसे बड़े मुल्क, फ्रांस, जर्मणी सब शामिल थे, द्विती विश्विद्ध की विभीशिका से उबर चुके थे और उनको लगा कि अब दुनिया में वियाप
और उसके लिए एक समझोता हुआ था, उसका नाम था, General Agreement on Trade and Tariff, मतलब GATT, जी हां, ये GATT बहुत महत्पून समझोता रहा, बहुत महत्पून अध्याय रहा, जो दुनिया के देशों में व्यवसाय होता है उसको लेकर. यही GATT आगे चलकर, 1993 में जो उरुगवे में इसको लेकर
जब भारत उदारवाद के दोर में उसके आगे जाकर फिर मन्मोन सिंग् प्रधानमत्री बने उस दोर में इस पूरी WTO का सदस्य बना व्यापारों को आगे बढ़ाया तो इसकी चर्चा बहुत तेजी से आगे बढ़ाया। लेकिन इसका मूल देश्य क्या था? कि सारे देश म
अपना जो दूसरा कारेकाल है डुनाल्ड ट्रम्क का उसमें उन्होंने जिस तरीके से टेक्स लगाया है, reverse taxation उसको कह रहे हैं, reciprocal tax कह रहे हैं वो इसलिए कह रहे हैं कि जब आप हमारे देश में समान भेज रहे हो तो हम आपसे उतना tax नहीं ले रहे थे लेकिन आप हमारा समान |
जितना सीधा लगता है, मामला उतना सीधा है नहीं, बड़ा पेचीदा मामला है। लेकिन एक तो यह जो General Agreement on Trade and Tariff है, उसके दायरों को लांगता है, दुनिया के देशों में व्यापार जिस तरीके से चला आ रहा था, उसको पुरी तरीके से तोडता और चनौती देता है।
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इस बार मेले के अनुमती क्यों नहीं दी गई जो सालों साल से मेला चल रहा था। इस साल प्रशासन ने मेले के आयोजन के अनुमती इसलिए नहीं दी है कि पुलिस ने कहा कि जिस सालार मसूद गाजी की आयोजन किया जाता है वह महमूद गजनवी का सेनापती था। इतिहास म
संभल के एस्पी श्रीष चंड ने कहा कि महमूद गजनवी ने सोमनात के मंदीर को लूटा था उसका सेनापती सययत सालार मसूद गाजी था मेले को लेकर दूसरे समुदाय के लोगों ने आपत्ती दर्ज कराई है खानून व्यवस्था बिगडने का भी खत्रा है लिहा|
मतलब ये वीडियो बहुत वाइरल हो रहा है और ये वीडियो हम आपको दिखा भी रहे हैं इस बात को समझो कि हमारे वीडियो के साथ कि जिसमें श्रीष चन जी कह रहे हैं जो लोग मिलने आए हैं मुल्ला मौल्वियो और आयजन समीती के सदस्य उनको वो समझा रहे हैं कि
अगर अग्यानता के वशोतर आपको पता ही नहीं था कि ये सालार गाजी कौन था आपको पता ही नहीं कि वह इतना बड़ा आकरमन कारी था और आप लगाये जा रहे हो परंपरा के रूप में तो ठीक है फिर तो ये अग्यानता हुई लेकिन अगर आपको मालूम था कि वो महम
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वो आखिर सय्यत सलार मसूद गाजी क्योंकि उनी की नाम पर गाजी में लाओ था वो था कौन सलार गाजी मसूद दरसल गजनवी का सेनापती और भाँजा था जीहां वही महमूद गजनवी जिसको हम आज भी एक आकरांता के रूप में याद करते हैं और जैसे ही महमू
अपने मामाकी ही तरह सालार गाजी भी दिल्ली, मेरट, गुलनशहर, बदाईं और कनोच के राजाओं को रॉंदता हुआ देवस्थानों को, मंदिरों को ध्वस्थ करता हुआ बारा बंकी तक आ गया था। वह बहराईश पर आकरमन करके आयोध्या पहुँचना चाहता था प
उसी तरीके से याद भी किया जाता है, आदर के साथ, सम्मान के साथ और उनको बहुत अत्तक पूजा भी जाता है. तो एक लाग तीसे जार से जादा की सेना थी सययत सालार गाजी के पास और उसको ख़त्म कर दिया गया. बहराईत जिले में ही सययत सालार मसूद गाजी की दर यहीं पर उसकी याद में जेठ मिला कायजन होता है। करीब एक महीना तर चलने वाले इस मेले में जियारत करने के लिए बड़ी संख्या में जाहिरीन पहुँझते हैं। इनमें आम लोगों के साथ-साथ नामी हस्तियां और अन्य बड़े लोग भी शिर्कत करते हैं। इसी सा
तो मेले का नाम अलख है उसी व्यक्ति की याद में किया जाता है। कोई जेट मेला है, कोई नेजा मेला है, संभल मेला है। और संभल जैसे ही नाम आता फिर से विवादों का पिटारा खुल जाता है। क्योंकि हाली में संभल में वहाँ की मस्जित को लेकर बहुत सारे|
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नमस्कार, बात को समझो में एक बार फिर आपका स्वागत हैं। और आज बात ये समझने वाली है और समझने समझानी की कोशिश होने वाली है कि वक्फ बोर्ड को लेकर इतना हंगामा क्यों हैं बरपा? हमारे याथ सदीयों से कहावत है कि ज़गडे के बड़े कारण तीन जर, जोरू और जमीन और वक्फ में सारी बात हो रही है जमीन को लेकर, अचल समपत्यों को लेकर वक्फ बोर्ड क्या है? वक्फ बोर्ड को लेकर सारा ये हंगामा क्यों मचा हुआ है? और नया कानून जो वक्फ को लेकर आ रहा है उसको लेकर इतनी चर्चा क्यों हैं? लोकसभा में पेश हो गया, जबर्डस चर्चा चल रही है
और इस बार के रमजान में भी कुछ अलगी तस्वीर देखने को मिली जब अलविल्गा के नमाज में भी बाहों पर काली पट्टियां चड़ गईं क्या ये बाहों पर चड़ीवी काली पट्टियां केवल वोड़ बैंक और धर्म की पॉलिटिक्स धर्म की राजनीती जो हिंदुस्तान में होती है वहां तक सीमित है या मामला उस से आगे का कहीं जादा गंभीर किसी धर्म को उसके नियम कानुन को आहत करने वाला है या सचमुझ सब कुछ जमीन का संपत्ती का खेल है जिसको लेकर ये सारी उठापटक कसमकश रस्साकशी चल रही है और इसको लेकर जो सबसे बड़ी बात देखने में आई जो विरुदभास देखने में आया ये एक तरफ
रमजान के दौरान सौगाते मोदी हुआ शायद इसलिए कि बिहार में चुनाव है शायद क्या ऐसा ही होता भी है राजनीती ऐसे ही चलती है लेकिन दूसरी तरफ वहीं पर ऐसा बिल, ऐसा विधयक जो संयुक्त संसदिय समीती के पास गया संयुक्त संसदिय समीती की लंबी बैटकों और चर्चाओं के बाद सौसे जादा बातों, मुलाकातों, बैटकों के बाद ये आखिर सदन में पेश हो गया है लोकसमा में प्रस्तुत हुआ है और कोशिश यह है कि इसपर जलत से जल वोटिंग हो जाये और ये बिल भारित हो लेकिन सबसे पहले हम समस्ते हैं बात को समस्ते हैं कि वक्व होता क्या है दरसल वक्व
कोई भी चलियाचल संपत्ती हो सकती है जिसे इसलाम को मनने वाला कोई भी व्यक्ति धर्मिक कारियों के लिए दान कर सकता है हाला कि इसमें आगे बढलकर इसका विष्तार ये भी होआ कि आप इसलाम को मने, लैकन हैं अप जब धर्मिक कारियों के लिए इसको दान कर देते हैं Allah के नाम पर इसको दान कर देते हैं तो इस ढान किओही संपत्ती का कोई मालिक नहीं ह اका ढान कियोःही संपत्ती का मालिक whole thing अल्लाह को मणा जाता है ओर लेकिन उसे sanctions करने के लिए कुछ संस्थान बनायेग्ये हैं क्योंकि अल्लाह के नाम की संपत्ती है लेकिन जंमीन पर उनके नुमाइन्दे बनकर बोर्ड के नाम पर, बोर्ड और एक कुछ संथान है और इसमें विदिवत कानुन भी है कुछ लोगों को लग सकता है कि वक्व बोर्ड को लेकर इतनी बात क्यों होती है
क्या ये कोई ऐसी संस्था है जो सम्विधान से, कानून से, भारत से उपर है?
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वो संभल की मस्जिद हो या फिर छावा फिल्म के आ जाने के बाद औरंगजेब का पुरा काम, औरंगजेब का किर्दार, औरंगजेब का चरित्र या फिर औरंगजेब की कबर हो और फिर उससे जाकर सालार मसूद के नाम पर होने वाला मेला हो सब विवादों में हैं क्यों व
तो उनको जितना कुरे देंगे उतना वो रिसेंगे और वो खाव भर नहीं पाएंगे कभी। यह बात समझनी जरूरी है। और इसलिए बात को समझो में इसी मुद्धे पर हम बात करेंगे। दो अलग-अलग बात हैं। एक यह है कि इतिहास में जो हो गया उसको बदला नहीं
इतिहास में हमारे पुरुवज किस हालात से कैसे निफटे वो हमारे कंट्रोल में, हमारे नियंत्रण में नहीं है, नहीं था और न हो पाएगा. इतिहास से लड़ने की कोशिश बेकार है, इतिहास से सबक लिया जा सकता है, इतिहास को याद रखा जा सकता है ताकि ऐसी गलतिय
इस बात के साथ ही एक तथ्य भी महत्पून है कि अगर इत्याहास में कुछ हुआ है और उसमें कोई नायक था जो अपनी जमीन के लिए, अपनी विरासत के लिए, अपनी माटी के लिए लड रहा था और कोई खलनायक था जो आक्रमन करना चाहता था या बरबरता पुर
लेकिन उसके भीतर अच्छाई ढूनना या उस खलनायक को भी किसी तरीके से महिमा मंदित करने की कोशिश करना ये जब गड़बडियां होती हैं तो सारा संतुरण पिगड़ जाता है और फिर इतहास के जखम और भीतर तक कुरे दे जाते हैं और उससे निकलने वाला �
फिर एक पुलीस वाले ने कह दिया जो आयोजन करता आए मेले के बहराईच से सम्मंद है और आसपास के खिषित्रों मेला होता है उत्तपदेश के बहराईच से कि भाई ये तो आकरमन करता था और आकरमन करता की याद में कैसा मेला करना और बस विवादों का पिटारा खुल
बात को समझो में सबसे पहले समझना ज़रूरी है कि आखिर जिस किर्दार जिस व्यक्ती के नाम पर ये सारा विवाद सारा बबाल हो रहा है वैसे बबाल होता है पर चलो बबाल ही सही वो आखिर सय्यत सलाद मसूद गाय | 4 | Hindi voice |
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