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वत्र्र्मका स्वरूप भी जानना चाहिये और अकर्म का |
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स्वरूप भी जानना चाहिये; तथा निषिद्ध SH का स्वरूप
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भी जानना चाहिए: क्योंकि at ar गति गहन
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है 1199 ।।
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The truth about action must be known and
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the ruth of inaction also must be known; even
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so the truth about prohibited action must be
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known. For mysterious are the ways of
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action. (17)
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प्रसंग --इस प्रकार श्रोता के अन्त:करण में रुचि GN wal उत्पन्न करने के लिये कर्मतत्त्व को et
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एवं उसका जानना आवश्यक बतलाकर अब अपनी often के अनुसार भगवान् कर्मका तत्त्व asd
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हैं--
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कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य:।
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a बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत् | । १८ ।।
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जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म
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में कर्म देखता है, de मनुष्यों में बुद्धिमान् है और वह
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योगी समस्त कर्मो को करने बाला है ।। १८ ।।
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He who sees inaction in action, and action
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in inaction, is wise among men; he is a yogi,
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who has performed all action. (18)
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प्रसंग --इस प्रकार कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म दर्शन का महत्त्व बतलाकरं अब oe श्लोक
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में भिन्न-भिन्न शैली से उपर्युक्त कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्मं दर्शनपूर्वक कर्म करने art ra और
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साधक Tor की असंगता का वर्णन करके उस विषय को स्पष्ट करते F—
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