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सम.सिद्बावसिदौचकृज्यापिननिवघ्यते।।सा।
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जिसमें get का सर्वथा अभाव हो गया है, जो
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हर्ष-शोक आदि a-al से सर्वथा अतीत हो war
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है--ऐसा fafa aie असिद्धि में aa रहने वाला
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कर्मयोगी कर्म करता Sar भी उनसे नहीं SAT ।। २२ ।।
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The Karmayogi, who is contented with
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whatever is got unsought, is free from jealousy
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and has transcended all pairs of opposites
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(like joy and grief), and is balanced in success
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and failure, is not bound by his action. (22)
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प्रसंग —aet यह प्रश्न उठता है किं उपर्युक्त प्रकार से किये हुए कर्म बन्धन Bg नहीं बनते, इतनी
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& aa है या उनका और भी Ge महत्व है । इस पर कहते है--
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गतसंगस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतस: |
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यज्ञायाचरत: कर्म समग्रं प्रविलीयते । । २३।।
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जिसकी arate सर्वथा ase हो गयी है, जो
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देहाभिमान six ममता से ced हो गया हडै, जिसका
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चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है--ऐसे
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केवल यज्ञ सम्पादन के लिये कर्म करने वाले मनुष्य के
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न्धांकर्मभलीमाँतियिलीनहोजातेहैं ।। २३ ।।
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