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# ह- ९ ॰॰ १२९० २ १ स ८८ 6
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a हनिसिरस्दिर ण QO eee LA eg FPO?
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attachment, who has no identification with
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the body and does not claim it as his own,
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whose mind is established in the Knowledge
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of Self and who works merely for the sake of
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sacrifice. । (23)
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प्रसंग --पूर्वं श्लोक Fae बात कही गयी कि यज्ञ के fea कर्म करने वाले Gor के समस्त कर्म
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feet हो one हैं | aet केवल अग्नि में हविका cay करना हीं यज्ञ है और उसके सम्पादन करने के
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fered की जाने वाली क्रिया ह्री यज्ञ के लिये कर्म करना है, इतनी ह्री बात नहीं है; वर्ण, आश्रम, स्वभाव
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और परिस्थिति के अनुसार जिसका जो कर्तव्य है; वही उसके लिये ag है और उसका पालन करने के
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लिये आवश्यक क्रियाओं का Parl बुद्धि से लोकसंग्रहार्थ करना ही उस यज्ञ के ford कर्म करना है--इसी
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भावको सुस्पष्ट HCA के लिये अब भगवान् सात श्लोकों में भिन्न-भिन्न योगियों द्वारा किये जाने वाले परमात्मा
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की प्राप्ति के साधन रूप शाख्रविहितं कर्तव्य-कर्मो का विभित्न ast के नाम से वर्णन करते हैं--
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ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा FAT |
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wea तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना । । २४।।
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जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात् स्रुवा आदि भी ब्रह्म है
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और हवन किये जाने ara द्रव्य भी ब्रह्म हैं तथा
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ब्रह्मरूप Ha के द्वारा ब्रह्मरूप अग्नि में आहुति देना
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eq far भी ब्रह्म है--उस ब्रह्म कर्म में स्थितं रहने
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वाले योगी art प्राप्त किये जाने ara we भी ब्रह्म
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ae ।। २४ ।।
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In the practice of seeing Brahma every-
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where as a form of sacrifice Brahma is the
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ladle (with which the oblation is poured
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into the fire, etc.,); Brahma, again, is the
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oblation; Brahma is the fire, Brahma itself
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४
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= vAN. > ल् bal ८2 । ।
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