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प्रसंग ~-इस प्रकार गुरुजनों से तत्त्वज्ञान सीखने की विधि और उसका फल बतलाकर अब उसका
Hees बतलाते हैं--
अपि चेदसि पापेभ्य: सर्वेभ्य: पापकृत्तम:।
ad ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि । । ३६।।
यदि तू अन्य as पापियों से भी अधिक पाप करने
वाला है; तो भी तू ज्ञान-रूप नौका द्वारा नि:संदेह सम्पूर्णं
पाप-समुद्र से seats तर जायेगा ।। ३६ ।।
Even though you were the foulest of all
sinners, this Knowledge alone would carry
you, like a raft, across all your sin. (36)
प्रसंग -कोई भी दृष्टान्त परमार्थ विषय को पूर्ण रूप से नहीं aan सकता, उसके एक अंश को
ही समज्ञाने के fort उपयोगी होता है; अतएव पूर्व श्लोक मैं बतलाये हुए ज्ञान के महत्त्व को afta के
Gert से पुन: स्पष्ट करते हैं--
यथैधांसि समिद्घोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन |
ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा । । ३०।।
क्योंकि हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनों को
भस्ममय कर देता है, वैसे St ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्णं
कर्मो को भस्ममय कर देता है ।। ३७ ।।
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For as the blazing fire turns the fuel to
ashes, Arjuna, even so the fire of Knwoledge
turns all actions to ashes. (37)
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123 श्रीमद्भगवद्गीता