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प्नक्ता-अनक्मर्युक्तकर्पयोगींफेल्यार्णोकाक्यनिक्तोहुएउसर्केकर्मोमेंलिप्तनवोनेकोक्ता “Tay
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सर्वभूतात्मंभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।। ७ ।।
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जिसका AA अपने वश A है, जो जितेन्द्रिय एवं
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विशुद्ध अन्त:करण वाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का
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आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है, Gat कर्मयोगी
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कर्म करता sar Ht लिप्त नहीं होता ।। ७ ।।
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The Karamayogi, who has fully conquered
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his mind and mastered his senses, whose heart
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is pure, and who has identified himself with
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the self ofall beings (viz, God), remains untainted,
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even though performing action. (7)
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प्रसंग --दूसरे श्लोक में कर्मयोग और सांख्ययोग की सूत्र रूप से फल में एकता बतलाकर सांख्ययोग
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की अपेक्षा सुगमता के कारण कर्मयोग श्रेष्ठ बतलाया | फिर तीसरे श्लोक में कर्मयोगी at प्रशंसा करके,
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चौथे और stat श्लोकों में दोनों के फल St एकता का और स्वतन्त्रता का भलीभाति प्रतिपादन किया |
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तदनन्तर BS श्लोक के पूवार्द्ध में कर्मयोग के बिना सांख्ययोग का सम्पादन कठिन बतलाकर उत्तरार्द्ध
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में कर्मयोग की सुगमता-का प्रतिपादन करते हुए सातवें श्लोक में कर्मयोगी के लक्षण बतलाये | इससे ae
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बात सिद्ध हुई कि eat साधनों का फल एक होने पर भी दोनों साधन परस्पर भिन्न FI अत: दोनों का
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स्वरूप जानने की इच्छा होने पर भगवान् पहले, आठवें और ad श्लोकों में सांख्ययोगी के व्यवहार काल
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के साधन का स्वरूप बतलाते हैं--
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प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नु न्मिषन्निमिषन्नपि ।
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इज्रियाणींन्दियार्येबु वर्तन्त इति थाय्यन्। lel
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