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aq omits ora er ® sie sarges era
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की प्रेरणा से फल F Sach होकर STAT है ।। १२ ।।
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Offering the fruit of actions to God, the
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Karmayogi attains everlasting peace in the
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shape of God-Realization; whereas he who
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works with a selfish motive, being attached
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to the fruit of action through desire, gets tied
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down. (12)
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प्रसंग --यहाँ यह बात कही गयी कि `कर्मयोगी` कर्म फल से न बैधकर परमात्मा की प्राप्ति रूप
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शान्ति को प्राप्त होता है और `सकाम पुरुष` फल में आसक्त होकर जन्म-मरण रूप बन्धन में पड्ता है,
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* किंतु यह नहीं बतलाया कि सांख्ययोगी का क्या होता है ? अत एव अब सांख्ययोगी की स्थिति बतलाते
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सर्वकर्माणि मनसा सन्यस्यास्ते Fa asit |
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नवदारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्।।१३।।
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अन्त:करण जिसके वश में है, Car सांख्ययोग का
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ART करने वाला पुरुष न करता Se AK न
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करवाता SA Sf Adal वाले शरीर BT घर में सब
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कर्मो को मन से त्यागकर आनन्दपूर्वक सच्चिदानन्दघन
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परमात्मा के स्वरूप में स्थित रहता है ।। १३ ।।
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The self-controlled Sankhyayoga, doing
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nothing himself and getting nothing done by
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others, rests happily in God, the embodiment
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ae? श्रीमद्र्भगवद्गीता
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