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of Truth, Knowledge and Bliss, mentally
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relegating all actions to the mansion of nine
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gates (the body with nine openings). (13)
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प्रसंग --जबकि आत्मा वास्तव में कर्म करने वाला भी नहीं है और इन्द्रियादि & करवाने aren भी
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wel है, तो फिर सब मनुष्य अपने को कर्मो का कर्ता क्यों मानते है और a कर्म फल के भागी क्यों aa
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हैं--
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न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति Ay: |
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न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु `प्रवर्तते । । १४।।
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परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन की, न कर्मो ar
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स्वभाव ही बर्त रहा है ।। १४ ।।
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God determines not the doership nor the
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doings of men, nor even their contact with
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the fruit of actions; but it is Nature alone
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that functions. (14)
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प्रसंग ol साधक समस्त कर्मो को और कर्म फलो को भगवान् के अर्पण करके कर्म Ga से अपना
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सन्वन्ध-बिर्च्छदकालेतेहैं,उनर्केशुभाशुभकर्मौर्कफलफेच्चणीक्याफ्याहोत्तेहें?झाजिज्ञप्ता
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पर Hed हैं--
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Ted कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु:।
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अज्ञानेनाव्रतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव: । । १४।।
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सर्वव्यापी परमेश्वर भी न किसी के arg कर्म को
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Ny) ` । । प 2 ॠ ।) । न ‘ -
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