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तारापद की उम्र कम थी, उसका इतिहास भी उसी अनुपात में संक्षिप्त था; किंतु लड़का बिलकुल असाधारण था
তারাপদর বয়স অল্প, তাহার ইতিহাসও সেই পরিমাণে সংক্ষিপ্ত কিন্তু ছেলেটি সম্পূর্ণ নূতনতর
वाणीकंठ की आर्थिक दशा वैसे अच्छी है, खाते-पीते आराम से हैं और इसी कारण इनके शत्रुओं की भी गिनती नहीं है
বাণীকণ্ঠের সচ্ছল অবস্থা, দুইবেলাই মাছভাত খায়, এজন্য তাহার শত্রু ছিল
मान लो, सुभाषिणी यदि जल-परी होती और धीरे-धीरे जल में से निकलकर सर्प के माथे की मणि घाट पर रख देती और प्रताप अपने उस छोटे-से धंधे को छोड़कर मणि को पाकर जल में डुबकी लगाता और पाताल में पहुंचकर देखता कि रजत-प्रासाद में स्वर्ण-जड़ित शैया पर कौन बैठी है और आश्चर्य से मुंह खोलकर कहता- ''अरे! यह तो अपनी वाणीकंठ के घर की वही गूंगी छोटी कन्या है 'सू'! मेरी सू' आज मणियों से जटित, गम्भीर, निस्तब्ध पातालपुरी की एकमात्र जलपरी बनी बैठी है
মনে করো, সুভা যদি জলকুমারী হইত, আস্তে আস্তে জল হইতে উঠিয়া একটা সাপের মাথার মণি ঘাটে রাখিয়া যাইত; প্রতাপ তাহার তুচ্ছ মাছধরা রাখিয়া সেই মানিক লইয়া জলে ডুব মারিত; এবং পাতালে গিয়া দেখিত, রুপার অট্টালিকায় সোনার পালঙ্কে— কে বসিয়া — আমাদের বাণীকণ্ঠের ঘরের সেই বোবা মেয়ে সু— আমাদের সু সেই মণিদীপ্ত গভীর নিস্তব্ধ পাতালপুরীর একমাত্র রাজকন্যা
तभी अचानक सुनाई पड़ा ‘रतन ! ’
সহসা শুনিল ""রতন""
सुशील सोचा, ज़रूर कोई गंभीर बीमारी हुई है इसलिए वो तरह-तरह की दवाइयां खिलाने लगा
সুশীল ভাবিল, শক্ত ব্যামো হইয়াছে; তাই কেবলই ঔষধ গিলাইতে লাগিল
और वह तत्क्षण निस्संकोच भोजन के आयोजन में सहयोग देने लगा
বলিয়া তৎক্ষণাৎ অসংকোচে রন্ধনের আয়োজনে যোগদান করিল
उसके गुरु कहां से कहां उतर आए हैं, सहसा एक ही क्षण में उसका वीभत्स चित्र उसकी आंखों के सामने नाचने लगा
গুরু যে কোথা হইতে কোথায় নামিয়াছেন, তাহা যেন বিদ্যুতালোকে সহসা এই মুহূর্তে তাহার হৃদয়ে উদ্‌ভাসিত হইয়া উঠিল
तब वह मन-ही-मन भगवान से ऐसी अलौकिक शक्ति के लिए विनती करती कि जिससे वह जादू-मन्तर से चट से ऐसा कोई चमत्कार दिखा सके जिसे देखकर प्रताप दंग रह जाये, और कहने लगे- ''अच्छा! 'सू' में यह करामात! मुझे क्या पता था
তখন সে মনে মনে বিধাতার কাছে অলৌকিক ক্ষমতা প্রার্থনা করিত— মন্ত্রবলে সহসা এমন একটা আশ্চর্য কাণ্ড ঘটাইতে ইচ্ছা করিত যাহা দেখিয়া প্রতাপ আশ্চর্য হইয়া যাইত, বলিত, ‘তাই তো, আমাদের সুভির যে এত ক্ষমতা তাহা তো জানিতাম না
रास्ते में दोपहर के समय नदी के किनारे की एक मंडी के पास नौका बाँधकर भोजन बनाने का आयोजन कर ही रहे थे कि इसी बीच एक ब्राह्मण-बालक ने आकर पूछा, ‘‘बाबू, तुम लोग कहाँ जा रहे हो
পথের মধ্যে মধ্যাহ্নে নদীতীরের এক গঞ্জের নিকট নৌকা বাঁধিয়া পাকের আয়োজন করিতেছেন এমন সময় এক ব্রাহ্মণ বালক আসিয়া জিজ্ঞাসা করিল, “বাবু, তোমরা যাচ্ছ কোথায়"
ज्येष्ठ के अंतिम दिनों से लेकर आषाढ़ के समाप्त होने तक इस अंचल में जगह-जगह क्रमानुसार समवेत रूप से अनुष्ठित मेले लगते
জ্যৈষ্ঠমাসের শেষভাগ হইতে আষাঢ়মাসের অবসান পর্যন্ত এ অঞ্চলে স্থানে স্থানে পর্যায়ক্রমে বারোয়ারির মেলা হইয়া থাকে
सुभाषिणी की उम्र बढ़ती ही जा रही है
সুভার বয়স ক্রমেই বাড়িয়া উঠিতেছে
वह प्रायः पढ़ना-लिखना छोड़कर मति बाबू की लाइब्रेरी में प्रवेश करके तस्वीरों वाली पुस्तकों के पन्ने पलटता रहता; उन तस्वीरों के मिश्रण से जिस कल्पना-लोक की रचना होती वह पहले की अपेक्षा बहुत स्वतंत्र और अधिक रंगीन था
এক-একদিন পড়াশুনা ছাড়িয়া দিয়া সে মতিবাবুর লাইব্রেরির মধ্যে প্রবেশ করিয়া ছবির বইয়ের পাতা উল্‌টাইতে থাকিত; সেই ছবিগুলির মিশ্রণে যে কল্পনালোক সৃজিত হইত তাহা পূর্বেকার হইতে অনেক স্বতন্ত্র এবং অধিকতর রঙিন
मंडली का अध्यक्ष उसे बड़े यत्न से गाना सिखाने और पांचाली कंठस्थ कराने में प्रवृत्त हुआ और उसे अपने वृक्ष-पिंजर के पक्षी की भाँति प्रिय समझकर स्नेह करने लगा
দলাধ্যক্ষ তাহাকে পরম যত্নে গান শিখাইতে এবং পাঁচালি মুখস্থ করাইতে প্রবৃত্ত হইল, এবং তাহাকে আপন বক্ষ-পিঞ্জরের পাখির মতো প্রিয় জ্ঞান করিয়া স্নেহ করিতে লাগিল
उस समय वह प्रचुर मात्रा में स्नेह प्रकट करके अपनी माँ से लिपटकर चूमकर हँसती हुई करते-करते उसे एकदम परेशान कर डालती
তখন সে অতিমাত্রায় ভালোবাসা প্রকাশ করিয়া তাহার মাকে জড়াইয়া ধরিয়া চুম্বন করিয়া হাসিয়া বকিয়া একেবারে অস্থির করিয়া তোলে
एक के बाद एक नाना दलों में शामिल होकर भी तारापद ने अपनी स्वाभाविक कल्पना-प्रवण प्रकृति के कारण किसी भी दल की विशेषता प्राप्त नहीं की थी
তারাপদ পর্যায়ক্রমে নানা দলের মধ্যে ভিড়িয়াও আপন স্বাভাবিক কল্পনাপ্রবণ প্রকৃতি-প্রভাবে কোনো দলের বিশেষত্ব প্রাপ্ত হয় নাই
उसके नेत्रों ने सभी बातें कह दी थीं, किन्तु कोई उसे समझ न सका अब वह चारों ओर निहारती रहती है, उसे अपने मन की बात कहने की भाषा नहीं मिलती जो गूंगे की भाषा समझते थे, उसके जन्म से परिचित थे, वे चेहरे उसे यहां दिखाई नहीं देते
তাহার দুটি চক্ষু সকল কথাই বলিয়াছিল কিন্তু কেহ তাহা বুঝিতে পারে নাই, সে চারি দিকে চায়— ভাষা পায় না— যাহারা বোবার ভাষা বুঝিত সেই আজন্মপরিচিত মুখগুলি দেখিতে পায় না
शायद इन्हीं कारणों से पारस अपनी सुन्दरी युवती स्त्री को सम्पूर्णत: अपने हाथ की चीज नहीं समझता था, और मिजाज में वहम तो उसके बीमारी बनकर समा गया था
বোধ করি এই-সকল কারণেই পরেশ সুন্দরী যুবতী স্ত্রীকে সম্পূর্ণ নিজের আয়ত্তগম্য বলিয়া বোধ করিতেন না এবং বোধ করি সন্দিগ্ধ স্বভাব তাঁহার একটা ব্যাধির মধ্যে
अपने हाथों बनाकर खाना पड़ता और गांव की एक मातृ-पितृ-हीन अनाथ बालिका इनका काम-काज कर देती थी, उसको थोड़ा-बहुत खाना मिल जाता
নিজে রাঁধিয়া খাইতে হয় এবং গ্রামের একটি পিতৃমাতৃহীন অনাথা বালিকা তাঁহার কাজকর্ম করিয়া দেয়, চারিটি-চারিটি খাইতে পায়
कुरते का गला छाती तक उठ आया है और धोती इतनी बड़ी की ज़मीन पर ठीक से पाँव रख कर चल भी नहीं पा रहे
জামার গলা বুক পর্যন্ত নামিয়াছে, ধুতির কোঁচাটা এতই লুটাইতেছে যে, পা ফেলিয়া চলাই দায়
भाषा में इस मुद्रा का तरजुमा करने पर यह रूप होता–जरा भी अच्छा नहीं लगा, और न कभी अच्छा लगेगा
এই ভঙ্গিটিকে ভাষায় তর্জমা করিলে এইরূপ দাঁড়ায়, কিছুমাত্র ভালো লাগে নাই এবং কোনোকালে ভালো লাগিবে না
उन्होंने सोचा लड़की में शायद कोई दोष है, इसी से इस चतुराई का सहारा लिया गया है
তাহারা ভাবিল, মেয়ের বুঝি কোনো-একটা দোষ আছে, তাই এইরূপ চাতুরী অবলম্বন করা হইল
पर आज और दिनों की तरह उसके हाथ जल्दी-जल्दी नहीं चल रहे थे
অন্যদিনের মতো তেমন চটপট হইল না
इसके सिवा, एक बकरी और बिल्ली का बच्चा भी था उनके साथ सुभाषिणी की गहरी मित्रता तो नहीं थी, फिर भी वे उससे बहुत प्यार रखते और कहने के अनुसार चलते
ইহারা ছাড়া ছাগল এবং বিড়ালশাবকও ছিল; কিন্তু তাহাদের সহিত সুভার এরূপ সমকক্ষভাবের মৈত্রী ছিল না, তথাপি তাহারা যথেষ্ট আনুগত্য প্রকাশ করিত
चारु भी आजकल उसे बहुत नहीं देख पाती थी
চারুও আজকাল তাহাকে বড়ো একটা দেখিতে পাইত না
नौका की छत पर जाकर तारापद ने धीरे-धीरे खिबैया-माँझियों से बातचीत छेड़ दी
নৌকার ছাতের উপরে গিয়া তারাপদ ক্রমশ দাঁড়ি-মাঝিদের সঙ্গে গল্প জুড়িয়া দিল
विशेषकर कन्या के अश्रुओं को देखकर वे समझ गये कि इसके हृदय में कुछ दर्द भी है; और फिर हिसाब लगाकर देखा कि जो हृदय आज माता-पिता के बिछोह की बात सोचकर इस प्रकार द्रवित हो रहा है, अन्त में कल उन्हीं के काम वह आयेगा
বিশেষত, বালিকার ক্রন্দন দেখিয়া বুঝিলেন ইহার হৃদয় আছে এবং হিসাব করিয়া দেখিলেন, ‘যে হৃদয় আজ বাপ-মায়ের বিচ্ছেদসম্ভাবনায় ব্যথিত হইয়া উঠিয়াছে সেই হৃদয় আজ বাদে কাল আমারই ব্যবহারে লাগিতে পারিবে
छोटा सुशील नित नये उपाय निकाल कर स्कूल से अनुपस्थित रहता था कि इस वक्त सुबल चन्द्र का उसे झांसा देने का कोई भी उपाय व्यर्थ था
বাস্তবিক সুশীল এতরকম উপায়ে স্কুল পলাইত এবং সে এত অল্পদিনের কথা যে, তাহাকে ফাঁকি দেওয়া তাহার বাপের কর্ম নহে
इधर सुबलचन्द्र के छोटे हो जाने के बाद से पेट में जैसे आग लगी रहती हमेशा ही भूख लगती जैसे पत्थर भी खाये तो हजम हो जाये ऐसी स्थिति हो गयी थी
কিন্তু হঠাৎ অল্পবয়স হইয়া আজকাল তাঁহার এমনি ক্ষুধা হইয়াছে যে, নুড়ি  হজম করিয়া ফেলিতে পারিতেন
दोनों के ही मन की इच्छा पूरी हुई लेकिन बहुत मुश्किलें भी खड़ी हो गयी
দুইজনের মনের ইচ্ছা পূর্ণ হইল বটে, কিন্তু ভারি মুশকিল বাধিয়া গেল
शायद उसके मन में हल्की-सी आशा जीवित थी कि हो सकता है, भैयाजी, लौट आयें-- आशा के इसी बन्धन से बंधी वह किसी भी तरह दूर नहीं जा पा रही थी
বোধ করি তাহার  মনে ক্ষীণ আশা জাগিতেছিল, দাদাবাবু যদি ফিরিয়া আসে-- সেই বন্ধনে পড়িয়া কিছুতেই দূরে যাইতে পারিতেছিল না
तारापद ने कहा, ‘‘हैं"
তারাপদ কহিল, “আছেন"
मानो वह पूर्वजन्म में तापस-बालक रहा हो और निर्मल तपस्या के प्रभाव से उसकी देह का बहुत-सा अतिरिक्त भाग क्षय होकर एक साम्मर्जित ब्राह्मण्य-श्री परिस्फुट हो उठी हो
যেন সে পূর্বজন্মে তাপস-বালক ছিল এবং নির্মল তপস্যার প্রভাবে তাহার শরীর হইতে শরীরাংশ বহুলপরিমাণে ক্ষয় হইয়া একটি সম্মার্জিত ব্রাহ্মণশ্রী পরিস্ফুট হইয়া উঠিয়াছে
वह नीरव दुपहरिया के समान शब्दहीन और संगहीन एकान्तवासिनी बनी रहती
সে নির্জন দ্বিপ্রহরের মতো শব্দহীন এবং সঙ্গীহীন
बस इतनी-सी बात जानी जा सकी कि लड़का सात-आठ बरस की उम्र में ही स्वेच्छा से घर छोड़कर भाग आया है
মোট কথা এইটুকু জানা গেল, ছেলেটি সাত-আট বৎসর বয়সেই স্বেচ্ছাক্রমে ঘর ছাড়িয়া পলাইয়া আসিয়াছে
तारापद ने अपने आप अभ्यास करके अच्छी तरह वंशी बजाना सीख लिया था–करतब दिखाने के समय वह द्रुत ताल पर लखनवी ठुमरी के सुर में वंशी बजाता–यही उसका एकमात्र काम था
তারাপদ নিজে নিজে অভ্যাস করিয়া ভালো বাঁশি বাজাইতে শিখিয়াছিল— জিম্‌ন্যাস্টিকের সময় তাহাকে দ্রুত তালে লক্ষ্মৌ ঠুংরির সুরে বাঁশি বাজাইতে হইত—এই তাহার একমাত্র কাজ ছিল
शायद उसके मन में रह-रहकर तरह-तरह की आशंकाएं उठ रही थीं
বোধ করি মধ্যে মধ্যে মাথায় অনেক ভাবনা উদয় হইয়াছিল
किंतु, जब उसने सुना कि तारापद सोनामणि उसको ‘भाई’ कहकर पुकारती है, जब उसने सुना कि तारापद ने केवल बाँसुरी पर कीर्तन का सुर बजाकर माता और पुत्री का मनोरंजन ही नहीं किया है, सोनामणि के अनुरोध से उसके लिए अपने हाथों से बाँस की एक बाँसुरी भी बना दी है, न जाने कितने दिनों से वह उसे ऊँची डाल से फल और कंटक-शाखा से फूल तोड़कर देता रहा है तब चारु के अंतःकरण को मानो तप्तशूल बेधने लगा
কিন্তু যখন সে শুনিল, তারাপদ সোনামণির নিকট কিছুমাত্র অপরিচিত নহে, বামুনঠাকরুনকে সে মাসি বলে এবং সোনামণি তাহাকে দাদা বলিয়া থাকে, যখন শুনিল তারাপদ কেবল যে বাঁশিতে কীর্তনের সুর বাজাইয়া মাতা ও কন্যার মনোরঞ্জন করিয়াছে তাহা নহে, সোনামণির অনুরোধে তাহাকে স্বহস্তে একটি বাঁশের বাঁশি বানাইয়া দিয়াছে, তাহাকে কতদিন উচ্চশাখা হইতে ফল ও কণ্টক-শাখা হইতে ফুল পাড়িয়া দিয়াছে, তখন চারুর অন্তঃকরণে যেন তপ্তশেল বিঁধিতে লাগিল
यथासमय मति बाबू और इस लड़के के लिए पास-पास दो आसन डाले गए
যথাসময়ে মতিবাবু এবং এই ছেলেটির জন্য পাশাপাশি দুইখানি আসন পড়িল
जो उपेक्षित रोगी लड़का हमेशा चोरी करके पेड़ों से फल और गृहस्थों से उसका चौगुना प्रतिफल पाता घूमता-फिरता वह भी अपनी परिचित ग्राम-सीमा के भीतर अपनी कष्ट देने वाली माँ के पास पड़ा रहा और समस्त ग्राम का दुलारा यह लड़का एक बाहरी जात्रा-दल में शामिल होकर निर्ममता से ग्राम छोड़कर भाग खड़ा हुआ
যে উপেক্ষিত রোগা ছেলেটা সর্বদাই চুরি-করা গাছের ফল এবং গৃহস্থ লোকদের নিকট তাহার চতুর্গুণ প্রতিফল খাইয়া বেড়ায় সেও তাহার পরিচিত গ্রামসীমার মধ্যে তাহার নির্যাতনকারিণী মার নিকট পড়িয়া রহিল, আর সমস্ত গ্রামের এই আদরের ছেলে একটা বিদেশী যাত্রার দলের সহিত মিলিয়া অকাতরচিত্তে গ্রাম ছাড়িয়া পলায়ন করিল
सुशील उन्हें इतना कम खाने देता कि भूख के मारे वो छ्टपट करते
সুশীল তাঁহাকে যতই অল্প খাইতে দিত পেটের জ্বালায় তিনি ততই অস্থির হইয়া বেড়াইতেন
उस दिन पारस को किसी जरुरी मामले की पैरवी के लिए बाहर जाना था और, संन्यासी का यहां तक पतन हुआ था कि उस समाचार को पाकर वे गौरी से मिलने के लिए तैयार थे
সেইদিন মফস্বলে পরেশের একটি জরুরি মকদ্দমা ছিল, সন্ন্যাসীর এতদূর পতন হইয়াছিল যে, তিনি সেই সংবাদ লইয়া গৌরীর সহিত সাক্ষাতের জন্য প্রস্তুত হইয়াছিলেন
पोस्टमास्टर को बहुत कम तनख्वाह मिलती थी
পোস্টমাস্টারের বেতন অতি সামান্য
आकाश में वर्षा के नए बादल आ गए
আকাশে নববর্ষার মেঘ উঠিল
पानी से निकलकर सूखे में डाल देने से मछली की जो दशा होती है वही दशा इस बड़े गांव में आकर इन पोस्टमास्टर की हुई
জলের মাছকে ডাঙায় তুলিলে যে-রকম হয়, এই গণ্ডগ্রামের মধ্যে আসিয়া পোস্টমাস্টারেরও সেই দশা উপস্থিত হইয়াছে
इधर कन्या के विवाह की चिन्ता में माता-पिता बहुत बेचैन हो उठे हैं और गांव के लोग भी यत्र-तत्र निन्दा कर रहे हैं
এ দিকে কন্যাভারগ্রস্ত পিতামাতা চিন্তিত হইয়া উঠিয়াছেন লোকেও নিন্দা আরম্ভ করিয়াছে
और विशेषकर मुंह के भाव के सिवा जिसके पास जन्म से ही और कोई भाषा नहीं, उसकी आंखों की भाषा तो बहुत उदार और अथाह गहरी होती ही है, करीब- करीब साफ-सुथरे नील-गगन के समान उन आंखों को उदय से अस्त तक, सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक छवि-लोक की निस्तब्ध रंगभूमि ही मानना चाहिए
মুখের ভাব বৈ আজন্মকাল যাহার অন্য ভাষা নাই তাহার চোখের ভাষা অসীম উদার এবং অতলস্পর্শ গভীর— অনেকটা স্বচ্ছ আকাশের মতো, উদয়াস্ত এবং ছায়ালোকের নিস্তব্ধ রঙ্গভূমি
नंदीग्राम कब छूट गया, तारापद को पता न चला
নন্দীগ্রাম কখন ছাড়াইয়া গেল তারাপদ তাহার খোঁজ লইল না
मौन स्वभाव मतिलाल बाबू तक ने उससे दूध पीने का अनुरोध किया; उसने संक्षेप में कहा, ‘‘मुझे अच्छा नहीं लगता"
মৌনস্বভাব মতিলালবাবুও তাহাকে দুধ খাইবার জন্য অনুরোধ করিলেন; সে সংক্ষেপে বলিল, “আমার ভালো লাগে না"
सुशील की इच्छा है आज सारा दिन वहीँ बिताये
সুশীলের ইচ্ছা, সেইখানেই আজ দিনটা কাটাইয়া দেয়
आज सुशील चन्द्र कई बार उठने के प्रयास में इस तरफ उस तरफ करते हुए बार बार सो जा रहा है लेकिन अंत में अपने पिता के इतनी चीख पुकार के मारे उसे उठना ही पड़ा
আজ সকালে সুশীলচন্দ্র বিছানা ছাড়িয়া উঠিতেই চায় না অনেকবার তুড়ি দিয়া উচ্চৈঃস্বরে হাই তুলিল; অনেকবার এপাশ ওপাশ করিল; শেষকালে বাপ সুবলচন্দ্রের গোলমালে ভারি বিরক্ত হইয়া উঠিয়া পড়িল
वह था गुसाइयों का छोटा लड़का प्रताप! प्रताप बिल्कुल आलसी और निकम्मा था
গোঁসাইদের ছোটো ছেলেটি— তাহার নাম প্রতাপ লোকটি নিতান্ত অকর্মণ্য
पहले उसने एक जात्रा-दल का साथ पकड़ा
প্রথম সে একটা যাত্রার দলের সঙ্গ লইয়াছিল
तारापद ने वंशी उठाकर उलट-पलटकर देखी, उसमें अब कोई दम नहीं था
তারাপদ বাঁশিটা তুলিয়া উলটিয়া পালটিয়া দেখিল, তাহাতে আর পদার্থ নাই
इस शहर को छोड़कर वे अन्यत्र कहीं जाने की सोचने लगे
এই নগর অবিলম্বে পরিত্যাগ করা তিনি কর্তব্য বোধ করিলেন
इस आकस्मिक अवरोध पर घर के भीतर चारु ने भारी आंदोलन उपस्थित कर दिया
এই আকস্মিক অবরোধে চারু ঘরের মধ্যে ভারি একটা আন্দোলন উপস্থিত করিল
पक्षी ने थोड़ा-बहुत गाना सीखा और एक दिन तड़के उड़कर चला गया
পাখি কিছু কিছু গান শিখিল এবং একদিন প্রত্যুষে উড়িয়া চলিয়া গেল
उन्हीं की बात करते-करते धीरे-धीरे रतन पोस्टमास्टर के पास ही जमीन पर बैठ जाती
এই কথা হইতে হইতে ক্রমে রতন পোস্টমাস্টারের পায়ের কাছে মাটির উপর বসিয়া পড়িত
नदी की स्वर-ध्वनि, मनुष्यों का शोर, नाविकों का सुमधुर गान, चिड़ियों का चहचहाना, पेड़-पौधों की मर्मर ध्वनि, सब मिलकर चारों ओर के गमनागमन आन्दोलन और कम्पन के साथ होकर सागर की उत्ताल तरंगों के समान उस बालिका के चिर-स्तब्ध हृदय उपकूल के पार्श्व में आ कर मानो टूट-फूट पड़ती हैं
যেন তাহার হইয়া কথা কয় নদীর কলধ্বনি, লোকের কোলাহল, মাঝির গান, পাখির ডাক, তরুর মর্মর— সমস্ত মিশিয়া চারি দিকের চলাফেরা-আন্দোলন-কম্পনের সহিত এক হইয়া সমুদ্রের তরঙ্গরাশির ন্যায় বালিকার চিরনিস্তব্ধ হৃদয়-উপকূলের নিকটে আসিয়া ভাঙিয়া ভাঙিয়া পড়ে
उससे पूछा, ‘‘चारु, कैसा लगा"
তাহাকে জিজ্ঞাসা করিলেন, “চারু, কেমন লাগল"
चारु की इस धमकी से न डरकर तारापद एक-दो दिन संध्या के समय पुरोहित जी के घर गया था
চারুর এই শাসনে ভীত না হইয়া তারাপদ দুই-একদিন সন্ধ্যার পর বামুনঠাকরুনের বাড়ি গিয়াছিল
बारंबार उसके इतने समीप से निकलती कि तारापद चाहता तो अनायास ही उसकी पीठ पर थप्पड़ जमा सकता था
বারংবার এত কাছে ধরা দিল যে তারাপদ ইচ্ছা করিলে অনায়াসেই তাহার পৃষ্ঠে এক চপেটাঘাত বসাইয়া দিতে পারিত
उसके ऐसा मन में आता कि किसी प्रकार वह यह बता दे कि संसार में वह भी एक कम आवश्यक व्यक्ति नहीं लेकिन उसके पास न तो कुछ करने को था और वह न कुछ कर ही सकती थी
কোনোমতে জানাইয়া দিতে যে, এই পৃথিবীতে সেও একজন কম প্রয়োজনীয় লোক নহে কিন্তু কিছুই করিবার ছিল না
और वह तारापद के कमरे में जाकर उसकी प्रिय वंशी लेकर उस पर कूद-कूदकर उसे कुचलती हुई निर्दयतापूर्वक तोड़ने लगी
এবং সে তারাপদর ঘরে গিয়া তাহার শখের বাঁশিটি বাহির করিয়া তাহার উপর লাফাইয়া মাড়াইয়া সেটাকে নির্দয়ভাবে ভাঙিতে লাগিল
सुशील तंग हो कर बोलता, ‘बाबा स्कूल नहीं जायेंगे क्या
সুশীল বিরক্ত হইয়া আসিয়া বলিত, 'বাবা, ইস্কুলে যাবে না
किस प्रकार क्षमा-प्रार्थना करनी होती है, उस विद्या का उसने कभी अभ्यास न किया था, अतएव उसका अनुतप्त क्षुद्र हृदय अपने सहपाठी से क्षमा-याचना करने के लिए अत्यंत कातर हो उठा
কেমন করিয়া ক্ষমা প্রার্থনা করিতে হয় সে বিদ্যা তাহার কোনোকালেই অভ্যাস ছিল না, অথচ অনুতপ্ত ক্ষুদ্র হৃদয়টি তাহার সহপাঠীর ক্ষমালাভের জন্য একান্ত কাতর হইয়া উঠিল
सुबल चन्द्र के उधम मचाने के कारण वृद्ध पुत्र के पढने में व्यवधान उत्पन्न होता था इसलिए छोटे पिता को नियंत्रण में रखने के लिए उसे एक स्लेट पकड़ा देता जिसमें बहुत कठिन-कठिन गणित के सवाल होते
সুবলের ছুটাছুটি গোলমালে তাহার পড়ার ব্যাঘাত হইত তাই সে জোর করিয়া সুবলকে ধরিয়া সম্মুখে বসাইয়া হাতে একখানা শ্লেট দিয়া আঁক কষিতে দিত
किन्तु पारस उनके संबंध में मुंह खोलकर सन्देह प्रकट न कर सकने के कारण अत्यंत व्याकुल हो उठा और उसका सन्देह अदीठ फोड़े की तरह क्रमश: खुद उसी के मर्मस्थल को कुरेद-कुरेदकर खाने लगा
পরেশ ইঁহার সম্বন্ধে মুখ ফুটিয়া সংশয় প্রকাশ করিতে পারিতেন না বলিয়াই তাহা গুপ্ত ক্ষতের মতো ক্রমশ তাঁহার মর্মের নিকট পর্যন্ত খনন করিয়া চলিয়াছিল
कुछ दिन जब ऊपर-ऊपर से वह भलमनसाहत बरतती तब किसी आगामी उत्कट-विप्लव के लिए तारापद सतर्कतापूर्वक प्रस्तुत हो जाता
কিছুদিন যখন উপরি-উপরি সে ভালোমানুষি করিতে থাকে তখনই একটা উৎকট আসন্ন বিপ্লবের জন্য তারাপদ সতর্কভাবে প্রস্তুত হইয়া থাকে
इसी बीच में एक दिन तीसरे पहर, तट के समीप मछली का शिकार करते हुए प्रताप ने हंसते-हंसते पूछा- ''क्यों री सू, मैंने सुना है कि तेरे लिए वर मिल गया है, तू विवाह करने कलकत्ता जा रही है देखना, कहीं हम लोगों को भूल मत जाना'' इतना कहकर वह जल की ओर निहारने लगा
ইতিমধ্যে একদিন অপরাহ্নে জলে ছিপ ফেলিয়া প্রতাপ হাসিয়া কহিল, “কী রে সু, তোর নাকি বর পাওয়া গেছে, তুই বিয়ে করতে যাচ্ছিস দেখিস আমাদের ভুলিস্‌ নে” বলিয়া আবার মাছের দিকে মনোযোগ করিল
प्रताप की विशेष रुचि एक ही है वह है मछली पकड़ना
প্রতাপের প্রধান শখ— ছিপ ফেলিয়া মাছ ধরা
ऐसी अवस्था में उसका घर छोड़ने का कोई कारण नहीं था
এমন অবস্থায় তাহার গৃহত্যাগ করিবার কোনোই কারণ ছিল না
अन्नपूर्णा ने प्रश्न किया, ‘‘तो फिर तुम उन्हें छोड़कर क्यों आए"
অন্নপূর্ণা প্রশ্ন করিলেন, “তবে তুমি তাঁকে ছেড়ে এলে যে"
ब्राह्मण-बालक ने कहा, ‘‘मेरा नाम तारापद है"
ব্রাহ্মণ বালক কহিল, “আমার নাম তারাপদ"
संध्या के बाद जब चारु जल्दी-जल्दी खाकर सो जाती तब अन्नपूर्णा नौका-कक्ष के दरवाजे के पास आकर बैठतीं और मति बाबू और तारापद बाहर बैठते अन्नपूर्णा के अनुरोध पर तारापद गाना शुरू करता उसके गाने से जब नदी के किनारे की विश्रामनिरता ग्राम-श्री संध्या के विपुल अंधकार में मुग्ध निस्तब्ध हो जाती और अन्नपूर्णा का कोमल हृदय स्नेह और सौंदर्य-रस से छलकने लग जाता तब सहसा चारु बिछौने से उठकर तेजी से आकर सरोष रोती हुई कहती, ‘‘माँ, तुमने यह क्या शोर मचा रखा है! मुझे नींद नहीं आती"
সন্ধ্যার পরে যখন সকাল-সকাল খাইয়া চারু শয়ন করিত তখন অন্নপূর্ণা নৌকাকক্ষের দ্বারের নিকট আসিয়া বসিতেন এবং মতিবাবু ও তারাপদ বাহিরে বসিত এবং অন্নপূর্ণার অনুরোধে তারাপদ গান আরম্ভ করিত; তাহার গানে যখন নদীতীরের বিশ্রামনিরতা গ্রামশ্রী সন্ধ্যার বিপুল অন্ধকারে মুগ্ধ নিস্তব্ধ হইয়া রহিত এবং অন্নপূর্ণার কোমল হৃদয়খানি স্নেহে ও সৌন্দর্যরসে উচ্ছলিত হইতে থাকিত তখন হঠাৎ চারু দ্রুতপদে বিছানা হইতে উঠিয়া আসিয়া সরোষ-সরোদনে বলিত, “মা, তোমারা কী গোল করছ, আমার ঘুম হচ্ছে না
चारु आवाज को सप्तम पर चढ़ाकर, भौंह चढ़ाकर, मुँह बनाकर कहती, ‘‘ये सोना, तू पढ़ने के समय हल्ला मचाने आती है, मैं अभी जाकर पिताजी से कह दूँगी"
চারু কণ্ঠস্বর সপ্তমে চড়াইয়া চোখ মুখ ঘুরাইয়া বলিত, “অ্যাঁ সোনা! তুই পড়ার সময় গোল করতে এসেছিস, আমি এখনই বাবাকে গিয়ে বলে দেব"
काँठालिया के मति बाबू और अन्नपूर्णा विवाह के मुहूर्त के बारे में विचार करने लगे, किंतु स्वाभाविक गोपनताप्रिय, सावधान मति बाबू ने बात को गोपनीय रखा
কাঁঠালিয়ায় মতিবাবু এবং অন্নপূর্ণা বিবাহের দিনক্ষণ আলোচনা করিতে লাগিলেন, কিন্তু স্বাভাবিক গোপনতাপ্রিয় সাবধানী মতিবাবু কথাটা গোপন রাখিলেন
सावन का महीना था लगातार वर्षा हो रही थी
শ্রাবণমাসে বর্ষণের আর অন্ত নাই
तारापद ने नौका की छत पर पाल की छाया में जाकर आश्रय लिया
তারাপদ নৌকার ছাদের উপরে পালের ছায়ায় গিয়া আশ্রয় লইল
माँ की अपेक्षा पिता उसको अधिक प्यार करते थे, पिता की उसे थोड़ी-थोड़ी याद है
মায়ের চেয়ে বাপ তাহাকে বেশি ভালোবাসিত, বাপকে অল্প অল্প মনে আছে
उसने सोचा था कि तारापद नामक अपने नवार्जित परम रत्न को जुटाने की बात का विस्तारपूर्वक वर्णन करके वह अपनी सहेली के कौतूहल एवं विस्मय को सप्तम पर चढ़ा देगी
সে ভাবিয়াছিল তারাপদ নামক তাহাদের নবার্জিত পরমরত্নটির আহরণকাহিনী সবিস্তারে বর্ণনা করিয়া সে তাহার সখীর কৌতুহল এবং বিস্ময় সপ্তমে চড়াইয়া দিবে
उसको सारा चार्ज सौंप देने के बाद पुराने पोस्टमास्टर चलने को तैयार हुए
তাহাকে সমস্ত চার্জ বুঝাইয়া দিয়া পুরাতন পোস্টমাস্টার গমনোন্মুখ হইলেন
एक बार बड़े जोर से उनकी इच्छा हुई कि "लौट जायें और जगत् की गोद से वंचित उस अनाथिनी को साथ ले आयें"- लेकिन तब तक पाल में हवा भर गई थी, वर्षा का प्रवाह और भी तेज हो गया था, गांव को पार कर चुकने के बाद नदी-किनारे का श्मशान दिखाई दे रहा था और नदी की धारा के साथ बढ़ते हुए पथिक के उदास हृदय में यह सत्य उदित हो रहा था, ‘‘जीवन में न जाने कितना वियोग है, कितना मरण है, लौटने के क्या लाभ ! संसार में कौन किसका है ! ’
একবার নিতান্ত ইচ্ছা হইল, ""ফিরিয়া যাই, জগতের ক্রোড়বিচ্যুত সেই অনাথিনীকে সঙ্গে করিয়া লইয়া আসি""- কিন্তু তখন পালে বাতাস পাইয়াছে, বর্ষার স্রোত খরতর বেগে বহিতেছে, গ্রাম অতিক্রম করিয়া নদীকূলের শ্মশান দেখা দিয়াছে- এবং নদীপ্রবাহে ভাসমান পথিকের উদাস হৃদয়ে এই তত্ত্বের উদয় হইল, জীবনে এমন কত বিচ্ছেদ, কত মৃত্যু আছে, ফিরিয়া ফল কী পৃথিবীতে কে কাহার
काँठलिया के जमींदार मतिलाल बाबू नौका से सपरिवार अपने घर जा रहे थे
কাঁঠালিয়ার জমিদার মতিলালবাবু নৌকা করিয়া সপরিবারে স্বদেশে যাইতেছিলেন
अंत में कोई उपाय न देखकर फटी हुई लेख-पुस्तिका का टुकड़ा लेकर तारापद के पास बैठकर खूब बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा, ‘मैं फिर कभी किताब पर स्याही नहीं फैलाऊँगी'
অবশেষে কোনো উপায় না দেখিয়া ছিন্ন খাতার এক টুকরা লইয়া তারাপদর নিকটে বসিয়া খুব বড়ো বড়ো করিয়া লিখিল, “আমি আর কখনো খাতায় কালী মাখাব না"
तारापद का कुल-शील कुछ भी तो ज्ञात नहीं है
তারাপদর কুলশীল কিছুই জানা নেই
उसका हृदय एकाएक उमड़ आया और उसने रोते-रोते कहा, ‘‘नहीं, नहीं तुम्हें किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, मैं रहना नहीं चाहती"
একেবারে উচ্ছ্বসিতহৃদয়ে কাঁদিয়া উঠিয়া কহিল, ""না না, তোমার কাউকে কিছু বলতে হবে না, আমি থাকতে চাই নে""
वहां और कोई भी न था सहसा गौरी अमेघवाहिनी विद्युल्लता की तरह ब्रह्मचारी के शास्त्राध्ययन के बीच जाकर टूट पड़ी
পরমানন্দ নিভৃত ঘরে জনহীন মধ্যাহ্নে শাস্ত্রপাঠ করিতেছিলেন হঠাৎ অমেঘবাহিনী বিদ্যুল্লতার মতো গৌরী ব্রক্ষ্মচারীর শাস্ত্রাধ্যয়নের মাঝখানে আসিয়া ভাঙিয়া পড়িল
सुशील तो अब भारी मुश्किल में पड़ गया लेमनचूस खाना उसे जितना ही अच्छा लगता था उतना ही बुरा पाचक खाने में लगता था उसे तो अब मुसीबत नजर आने लगी थी
সুশীল মহা মুশকিলে পড়িয়া গেল লজঞ্জুস সে যেমন ভালোবাসিত পাঁচন খাইতে হইলে তাহার তেমনি সর্বনাশ বোধ হইত
सद्य-विधवा गौरी ने खिड़की में से देखा कि उसके गुरुदेव पिछवाड़े के तालाब के किनारे चोर की तरह छिपे खड़े हैं ,सहसा उस पर बिजली-सी टूट पड़ी, उसने आंखें नीची कर ली
সদ্যবিধবা গৌরী যেমন বাতায়ন হইতে গুরুদেবকে চোরের মতো পুষ্করিণীর তটে দেখিল, তৎক্ষণাৎ বজ্রচকিতের ন্যায় দৃষ্টি অবনত করিল
उसकी माँ ने उसे छाती से लगाकर आँसुओं से आर्द्र कर दिया, उसकी बहनें रोने लगीं; उसके बड़े भाई ने पुरुष-अभिभावक का कठिन कर्तव्य-पालन करने के उद्देश्य से उस पर मृदुभाव से शासन करने का यत्न करके अंत में अनुतप्त चित्त से खूब प्रश्रय और पुरस्कार दिया
তাহার মা তাহাকে বক্ষে চাপিয়া ধরিয়া অশ্রুজলে আর্দ্র করিয়া দিল, তাহার বোনরা কাঁদিতে লাগিল; তাহার বড়ো ভাই পুরুষ-অভিভাবকের কঠিন কর্তব্য পালন উপলক্ষে তাহাকে মৃদু রকম শাসন করিবার চেষ্টা করিয়া অবশেষে অনুতপ্তচিত্তে বিস্তর প্রশ্রয় এবং পুরস্কার দিল
लेमनचूस का सुशील चन्द्र को विशेष लोभ था
লজঞ্জুসের প্রতি সুশীলচন্দ্রের বড়ো লোভ ছিল
तारापद बोला, ‘‘उनके और भी चार लड़के और तीन लड़कियाँ हैं"
তারাপদ কহিল, “তাঁর আরো চারটি ছেলে এবং তিনটি মেয়ে আছে"
सुभा ग्वाल-घर में अपनी चिर-संगिनियों से विदा लेने के लिए गई
সুভা গোয়ালঘরে তাহার-বাল্যসখীদের কাছে বিদায় লইতে গেল,
देखा गया, लड़का हर काम अपनी इच्छा के अनुसार करता, लेकिन ऐसे सहज भाव से करता कि उसमें किसी भी प्रकार की जिद या हठ का आभास न मिलता
দেখা গেল, ছেলেটি সম্পূর্ণ নিজের ইচ্ছা অনুসারে কাজ করে, অথচ এমন সহজে করে যে তাহাতে কোনোপ্রকার জেদ বা গোঁ প্রকাশ পায় না
देखा, पोस्टमास्टर अपनी खटिया पर लेटे हुए हैं, यह सोचकर कि वे आराम कर रहे हैं, वह चुपचाप फिर बाहर जाने लगी
দেখিল, পোস্টমাস্টার তাঁহার খাটিয়ার উপর শুইয়া আছেন-- বিশ্রাম করিতেছেন মনে করিয়া অতি নিঃশব্দে পুনশ্চ ঘর হইতে বাহিরে যাইবার উপক্রম করিল
अन्दर से बहुत डांट-फटकार बताकर कन्या के अश्रुओं की धारा को और भी तीव्र रूप देकर उसे निरीक्षकों के सम्मुख भेज दिया
মা নেপথ্য হইতে বিস্তর তর্জন গর্জন শাসন করিয়া বালিকার অশ্রুস্রোত দ্বিগুণ বাড়াইয়া পরীক্ষকের সম্মুখে পাঠাইলেন
भोजन के समय रोदनोन्मुखी होकर भोजन के पात्र को ठेलकर फेंक देती, खाना उसको रुचिकर नहीं लगता; नौकरानी को मारती, सभी बातों में अकारण शिकायत करती रहती जैसे-जैसे तारापद की विद्याएँ उसका एवं अन्य सबका मनोरंजन करने लगीं, वैसे-ही-वैसे मानो उसका क्रोध बढ़ने लगा
আহারের সময় রোদনোন্মুখী হইয়া ভোজনের পাত্র ঠেলিয়া ফেলিয়া দেয়, রন্ধন তাহার রুচিকর বোধ হয় না, দাসীকে মারে, সকল বিষয়েই অকারণ অভিযোগ করিতে থাকে, তারাপদর বিদ্যাগুলি যতই তাহার এবং অন্য সকলের মনোরঞ্জন করিতে লাগিল, ততই যেন তাহার রাগ বাড়িয়া উঠিল
रातभर जागते और स्वप्न देखते हुए बालिका के कानों में पोस्टमास्टर के हंसी-मिश्रित स्वर गूंजते रहे, ‘वाह, यह कैसे हो सकता है
সমস্ত রাত্রি স্বপ্নে এবং জাগরণে বালিকার কানে পোস্টমাস্টারের হাস্যধ্বনির কন্ঠস্বর বাজিতে লাগিল-- ""সে কী করে হবে'
नदी के किनारे बछड़े पूँछ उठाए दौड़ रहे थे, गाँव का टट्टू-घोड़ा रस्सी से बँधे अपने अगले पैरों के बल कूदता हुआ घास चरता फिर रहा था, मछरंग पक्षी मछुआरों के जाल बाँधने के बाँस के डंडे से बड़े वेग से पानी में झप से कूदकर मछली पकड़ रहा था, लड़के पानी में खेल रहे थे, लड़कियाँ उच्च स्वर से हँसती हुई बातें करती हुई छाती तक गहरे पानी में अपना वस्त्रांचल फैलाकर दोनों हाथों से उसे धो रही थीं, आँचल कमर में खोंसे मछुआरिनें डलिया लेकर मछुआरों से मछली खरीद रही थीं, इस सबको वह चिरनूतन अश्रांत कौतूहल से बैठा देखता था, उसकी दृष्टि की पिपासा किसी भी तरह निवृत्त नहीं होती थी
নদীতীরে বাছুর লেজ তুলিয়া ছুটিতেছে, গ্রাম্য টাটুঘোড়া সম্মুখের দুই দড়ি-বাঁধা পা লইয়া লাফ দিয়া দিয়া ঘাস খাইয়া বেড়াইতেছে, মাছরাঙা জেলেদের জাল বাঁধিবার বংশদণ্ডের উপর হইতে ঝপ্‌ করিয়া সবেগে জলের মধ্যে ঝাঁপাইয়া মাঝ ধরিতেছে, ছেলেরা জলের মধ্যে পড়িয়া মাতামাতি করিতেছে, মেয়েরা উচ্চকণ্ঠে সহাস্য গল্প করিতে করিতে আবক্ষজলে বসনাঞ্চল প্রসারিত করিয়া দুই হস্তে তাহা মার্জন করিয়া লইতেছে, কোমর-বাঁধা মেছুনিরা চুপড়ি লইয়া জেলেদের নিকট হইতে মাছ কিনিতেছে, এ-সমস্তই সে চিরনূতন অশ্রান্ত কৌতুহলের সহিত বসিয়া বসিয়া দেখে, কিছুতেই তাহার দৃষ্টির পিপাসা নিবৃত্ত হয় না
तारापद में कोई गुण है, इसे उसका मन स्वीकार करने से विमुख रहता और उसका प्रमाण जब प्रबल होने लगा तो उसके असंतोष की मात्रा भी बढ़ गई
তারাপদর যে কোনো গুণ আছে ইহা স্বীকার করিতে তাহার মন বিমুখ হইল, অথচ তাহার প্রমাণ যখন প্রবল হইতে লাগিল, তাহার অসন্তোষের মাত্রাও উচ্চে উঠিল