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प्रसंग —aet अर्जुन के मन में यह बात आ सकती है कि मैं यह युद्ध रूप घोर कर्म न करके यदि
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भिक्षावृतिसेअपनानिचहिकाताहुआशान्तिमयकर्पोमेंक्यारहूंतोसह्रजहीरागद्वेषसेघूय्सक्ता
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& fix आप मुझे युद्ध करने के लिये आज्ञा क्यों दे रहे है ? इस पर भगवान् कहते है--
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श्रेयान्स्वधर्मो विग्रुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
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स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:।। ३४।।
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गुगाहितभीअपनाधर्मअतिउत्तमहे।अपनेधर्मंमे
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तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय
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को देने वाला है ।। ३५ ।।
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One’s own duty, though devoid of merit,
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is preferable to the duty of another well
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performed. Even death in the performance of
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one’s own duty brings blessedness; another’s
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duty is fraught with fear. (35)
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प्रसंग --मनुष्य का स्वघर्म पालन करने FOS कल्याण है, पर धर्म का सेवन और निषिद्धकर्मो का
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आचरण करने में सव प्रकार से हानि है | इस बात को भलीभांति समझ लेने के are भी मनुष्य अपने इच्छा,
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विचार और धर्म के fea पापाचार मैं किस कारण प्रवृत्त हो ond है--इस बात के जानने की gear से
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अर्जुन पूछते हैं-- ।
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अर्जुन उवाच
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अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं ata Fea: |
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अनिच्छन्नपि aetq बलादिव नियोजित: । । ३६।।
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अर्जुन बोले--है कृष्ण ! at fet यह मनुष्य स्वयं
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न चाहता Sat भी बलात्कार से लगाये BU की Ale
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किससे प्रेरित slat पाप का आचरण करता
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Arjuna said : Now impelled by what, Krsna,
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does this man commit Sin even involuntarily,
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