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move among the Gunas (objects of perception),
does not get attached to them, Arjuna. (28)
प्रसंग --इस प्रकार कर्मासक्त मनुष्यां की और सांख्ययोगी की स्थिति का भेद बतलाकर अब आत्मतत्त्व
को पूर्णतया wasnt वाले महापुरुष के fart यह प्रेरणा की जाती है कि ae कर्मासक्त अज्ञानी मनुष्याँ ` .
को विचलित न करे-- Wis
प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते PHA |
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् | । २६।।
प्रकृति के yet से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य gH | ३
में और कर्मो में ara ted हैं, उन पूर्णतया न समझने ॰न्
ज्ञानी विचलित-न He ।। २६ ।। i
Those who are completely deluded by the | _
Gunas (modes) of Prakrti remain attached to
those Gunas and actions; the man of perfect
Knowledge should not unsettle the mind of —
those insufficiently knowing fools. (29)
प्रसंग --इस प्रकार कर्मो की अवश्यकर्तव्यता का प्रतिपादन करके अब भगवान् अर्जुन की दूसरे श्लोक ES
में की हुई प्रार्थना के अनुसार उसे परम कल्याण की प्राप्ति का ऐकान्तिक और सर्वश्रेष्ठ निश्चित ae | |
बतलाते हुए युद्ध के fers आज्ञा देते हैं-- ३
मयिसवग्भिकम्रग्भिसन्यस्याव्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: | 13011
। सम्पूर्ण कर्मो को मुझ में अर्पण करके आशारहित,
। ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध BH ।। ३० II
। Therefore, dedicating all actions to Me
‘| with your mind fixed on Me, the Self of all
freed from hope and the feeling of meum and
cured of mental fever, fight. (30)
() प्रसंग --इस प्रकार अर्जुन को उनके कल्याण का निश्चितत साधन बतलाते हुए भगवान् SS युद्ध
.. | करने की आज्ञा देकर oe उसका अनुष्ठान करने के फल का वर्णन करते F—
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति Arar: |
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि HA: । । ३१ ।।
जो ale मनुष्य दोष afte से रहित और श्रद्धायुक्त
aot कर्मो से we जाते हैं ।। ३१ ।।
Even those men who, with an uncavilling
and devout mind, always follow this teaching
tb ele .—-—YLL£A 05 CF OWS
॥/
YN १
ट्टु प्रसंग -इस प्रकार भगवान् ATT उपर्युक्त मत का अनुष्ठान करने का फल बतलाकर अब उसके IX
/। । अनुसार न चलने में हानि बतलाते हैं- i
iN सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतस: IRM
yr परंतु जो मनुष्य मुझ में दोषारोपण करते ET AL) |
ie १3 = । 0
‘“/,’ट्टै सम्पूर्णं ज्ञानों में मोहित और ASS EL ही समझ ।। ३२ ।। Mm
They, however, who, finding fault with \
this teaching of Mine, do not follow it, take
those fools to be deluded in the matter of all
knowledge, and lost.
प्रसंग —od श्लोक में यह बात कही गयी कि भगवान् के मन के अनुसार न चलने वाला AS हो
जाता है; इस पर ae जिज्ञासा होती है कि ale कोई भगवान् के मन के अनुसार कर्म न करके हठपूर्वक
कर्मो का aden त्याग ax दे तो क्या हानि है ? इस पर Hed है--
ae चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेरज्जानवानपि |
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: fe करिष्यति । । ३२ ।।
सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् अपने
स्वभाव से परवश BU कर्म Hed हैं, ज्ञानवान् AT अपनी | ;
प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है । फिर इसमें किसी।| .
का SS क्या करेगा ।। ३३ ।।
tendecies of his own nature. What use is any
external restraint? (33)
प्रसंग Za प्रकार सबको प्रकृति के अनुसार कर्म करने ose हैं, तो फिर कर्मबन्धन से छूटने के
लिये मनुष्य को क्या करना चाहिये ? gat जिज्ञासा पर कहते हैं--
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ |
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ।।२४।। ` .
इन्द्रिय-इन्द्रिय के ad में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के
Sa दोनों के वश में नहीं होना चाहिये, क्योंकि वे दोनों
हीइसर्ककांग्यम्पामर्मामेविघाफानेक्योंमहान्शत्रु
हैं ।। ३४ ।।
Attraction and repulsion are rooted in all
sense-objects. Man should never allow him-
self to be swayed by them, because they are
the two principal enemies standing in the
way of his redemption. (34)