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Wy ३०
Heal ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुष:।।१६।।
इसलिये तू निरन्तर आसतक्ति से रहित होकर सदा
कर्तव्य कर्म को भलीभांति Hear रह | क्योंकि stra
से ted होकर कर्म करता SST मनुष्य परमात्मा को .
प्राप्त हो Stat है ।। १६ ।।
Therefore, go on efficiently doing your duty
without attachment. Doing work without
attachment man attains the Supreme. (19)
प्रसंग --पूर्वं श्लोक में भगवान् ने जो ae बात कही कि आसक्ति से रहित होकर कर्म करने वाला
मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है, उस बात को पुष्ट करने के लिये जनकादि का प्रमाण देकर पुन:
अर्जुन के लिये af करना उचित बतलाते हैं--
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय:।
लो कसंग्रहमे वापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि । । २०।।
जनकादि ज्ञानीजन भी arate tea कर्मद्वारा ही
परम fates को प्राप्त Bx थे | इसलिये तथा लोक संग्रह
को cad Sy भी तू कर्म करने को a योग्य है अर्थात्
ga कर्म करना ही उचित है ।। २० ।।
It is through action (without attachment)
alone that Janaka and other wise men reached
perfection. Having an eye to maintenance of
the world order too you should take to
action.
87 श्रीमद्भंगवद्गीता
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तस्मादसक्त: Add कार्यं कर्म समाचर। ।
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श्लोक में भगवान् ने अर्जुन को लोक संग्रह की ओर देखते हुए करना उचित
बतलाया; FA पर Ae जिज्ञासा होती है कि कर्म करने से किस प्रकार लोकसंग्रह होता है ? aa: यही बात
समझाने के लिये Hed F—
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो «AA: |
a यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते । । २१।।
MS पुरुष जो-जो आचरण करता है, ASAT Foo
भी वैसा-वैसा St आचरण करते हैं | वह जो HS प्रमाण
कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार
बरतने WT जाता है ।। २१ ।।
For whatever a great man does, that very
thing other men also do; whatever standard
he sets up; the generality of men follow the
same. (21)
प्रसंग --इस प्रकार MS महापुरुष के HI को लोकसंग्रह में हेतु बतलाकर अब भगवान् तीन
श्लोकों में अपना उदाहरण देकर वर्णाश्रम के अनुसार विहित कर्मो के करने की अवश्यकर्तव्यता का प्रतिपादन
करते F—
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु ea |
नानवाप्तमवाप्तव्यं at एव A APTI २२।।
हे अर्जुन ! मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य
है AK न कोई भी प्राप्त करने APA वस्तु अप्राप्त है,
at भी मैं कर्म में ही बरतता हं ।। २२ ।।
worlds for Me to do, nor is there anything
worth attaining unattained by Me. Yet Icontinue
to work. (22)
यदि ह्यहं न add जातु कर्मण्यतन्दित:।
मम वर्त्मनुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: । । aI