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एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह य:।
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अघायुरिन्द्रियारामो मोघं af स जीवति । । १६।।
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हे oe ! जो पुरुष इस ais में इस प्रकार परम्परा
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a प्रचलित oft चक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात्
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अपने HAT का Wert नहीं Hea, de seal के
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द्वारा Het में रमण करने वाला पापायु yeu व्यर्थ ही
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जीता है ।। १६ ।।
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Arjuna, he who does not follow the wheel
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of creation thus set going in this world (i.e.,
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does not perform his duties), sinful and sensual,
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he lives in vain. (16)
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प्रसंग —ael यह जिज्ञासा eel & कि उपर्युक्त प्रकार से सृष्टि-चक्र के अनुसार चलने का दायित्व
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किस श्रेणी के pet पर है ? इस पर परमात्मा को प्राप्त सिद्ध महापुरुष के सिवा इस सृष्टि से सम्बन्ध
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रखने वाले सभी मनुष्याँ पर अपने-अपने कर्तव्य पालन का दायित्व B—ae भाव दिखलाने के Ra दो
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श्लोकों में ज्ञानी महापुरुष के लिये कर्तव्य अभाव और उसका हेतु बतलाते है--
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यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानव:।
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आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते । । १७।।
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आत्मा में St तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो sah
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लिये कोई कर्तव्य नहीं है ।। १७ ।।
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He, however, who takes delight in the self
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alone and is gratified with the Self, .and is
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contented in the self, has no duty. (17)
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नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
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न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रय: । । १८।।
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उस महापुरुष का इस विश्व Fa तो aot करने से
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कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मो के न करने से हीं
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ole प्रयोजन teat है । तथा सम्पूर्ण प्राणियों में भी
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इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं
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weal ।।,१८ II
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In this world that great soul has no use
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whatsoever for things done nor for things not
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done; nor has he selfish dependence of any
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kind on any creature. (18)
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FT Tet TH TAL A SETS Bg aH ae aT Pre at Poe aw AGE a
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FA ART ATEAT BH RTT Bt ST, Te cas Ue FT eaE ar ore eM ara a
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Tot & og Pee at ar ager Prearf sa a ae saya afar atx cone
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TATE BE Gwe a feret Pet rare ar arden a wet oy oad aa-aReit arr ale ane S
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वर्णन का लक्ष्य कराते हुए भगवान् अर्जुन को अनासक्त भाव
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frat आज्ञा देते F—
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कर्मानुसार उनकी उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ, ये तीन गतियां बतलायी गयी Fl कर्म योग
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तथा सांख्य योग की दृष्टि से सत्काम भाव से विहित कर्म एवं उपासना करने वालां की गति
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तथा सामान्य भाव से सभी प्राणियाँ की गति का भी gat यथास्थान वर्णन किया गया है ।
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इसी प्रकार सत्व-गुणी, रजोगुणी तथा तमोगुणी प्राणियाँ की गति का Kay उल्लेख. है ।
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रचनाकाल से Bt गीता जन-जीवन को Senha करती आई है । आज का त्रस्त मानव
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भी गीता कौ ह्री शरण F जाने का विच्रार at करता & है, किन्तु कितना जा पाता है, ae
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उसके wa की गति पर निर्भर करता है ।
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विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में भीता का अनुवाद प्रकाशित हो चुका है । इसे विश्वमान्य
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aa माना जाता है । ge अतिवादी जन विभिन्न परकीय सम्प्रदायाँ के erful से इसकी
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Ge करते हैं । यह उनकी मन्दमतितां है । क्योंकि er geet के are इसकी तुलना की
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जाती है, वे दो सहस्र वर्ष से अधिंक प्राचीन नहीं हैं, जबके गीता का रचनाकाल कम से कम
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ate सहस्र oe पूर्व तो माना ही जाता है । अत: पूर्व-ग्रन्थ की पर-ग्रन्थ के साथ तुलना करनां
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'क्लीस्यांम्रणैश्यानिक्ताम्राणाष्णादै।ण्यम्राफाफ्याक्ता
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ळ्ळिफ्याओरअक्सिर्यंध्।
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fore प्रकार गीता का अनेक भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है, उसी प्रकार इसकी अनेक
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Senet भी उपलब्ध हैं । गीता के प्रस्तुत संस्करण के प्रणयन में यदि उन सभी को नहीं तो
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र्ण्यम्रेर्व्यफौयृष्टिमेंण्याक्याद्वे।जांप्तेयोर्व्यक्काप्रेफ्याद्वेक्ते,
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यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । ef, त्रुटियों का उत्तरदायित्व अवश्य हम पर होगा ।
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तदपि ef आशा ही नहीं अपितु विश्वास है किं हिन्दी otk अंग्रेजी के ses इससे अवश्य
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लाभान्वित et इस भावना के साथ ae आपको समर्पित है--
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waa तृतीया, Ho २०५० --अजशोक कौशिक
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७-एफ, कमला नगर, (सम्पादक)
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दिल्ली-११० ००७
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> ॥ . वज न्दि ४६7
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करमो की गति को बदलता नहीं, अत: दु.ख ही अधिक भोगता है । गीता मॆ जीवाँ Sa
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SS ६ ७७ वज
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Subsets and Splits
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